Tuesday, November 26

"सबक/सीख"25नवम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-576
पत्थर से सर टकराना क्या।
है जीते जी मर जाना क्या।

जब कश्ती ही छूट गयी तो।
फिर लहरों से घबराना क्या।

सूख गए हैं आंसू अरमां के।
फिर बादल का बरसाना क्या।

सीखा चाहत में आज सबक।
है अपना क्या बेगाना क्या।

भवंरे के मन की तुम जानोगे।
है कलियों का खिल जाना क्या।

खेत चर गये खूब गधे जब।
फिर अब पीछे पछताना क्या।

शर्म करो कोई जुर्म हो सोहल़।
है प्यार मे यूं शरमाना क्या़।

विपिन सोहल

विषय सीख,सबक
विधा काव्य

25 नवम्बर 2019,सोमवार

कुपात्र में सीख न डालो
दुर्बुद्धिवश ढुल जावेगी।
सुपात्र जीवन सहज ले
सदभक्त भक्ति भावेगी।

दानव मानव बन जाता है
सबक ही जीवन दर्पण है।
कल्पलतेव होती है शिक्षा
मातृभूमि तन मन अर्पण है।

जीवन भर सीख सीखते
संघर्षो में सदा जूझते।
हर पल सबक सीखकर
प्रगति पथ आगे ही बढ़ते।

जीवन तो संग्राम सुहाना
सीख सीखते और सिखाते।
स्व अनुभव जीवन में बांटे
सदा बटोही मार्ग दिखाते।

स्वरचित मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

प्रथम प्रस्तुति

इक सबक भूलता न दूजा मिलता
इस चमन में पुष्प पूर्ण कहाँ खिलता ।।

अन्जान राहें रहें जिनकी बाहें
उनका भी यहाँ पता नही चलता ।।

सूरज निकले देर नही होती
पलक झपकते दिखता वो ढलता ।।

सबक औरों से मिले नही खास
सबक अपनों का यहाँ बहुत खलता ।।

जो भी मिला यही कहा अरमान -
पर पानी अपनों से ही फिरता ।।

सबक हर हाल में मिलना होता
अटल नियम 'शिवम'जो नही बदलता ।।

समझाने से कहाँ कोई समझा
इंसा चोट खाकर ही सँभलता ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 25/11/2019

आज का विषय, सबक, सीख
दिन, सोमवार

दिनांक,25, 11,2019,

गुरुजन मात पिता की सीख, जो कर लेता धारण अपने शीश।

मंजिल उसके ही कदम चूमती, जग उसको लगता है ठीक ।

जीवन पथ टेढ़ा मेढ़ा है, संभल संभल के चलना सीख।

फूल और काँटे आयेंगे, खुली रखनी होगी अपनी दीठ।

भली बुरी नीयत की मनु तू, परख अपने विवेक से करना सीख।

तुझे सबक मिलेंगे कदम कदम पर, सार तू इनका गहना सीख ।

अपने जीवन के उपवन को, निज उपक्रम से हरदम सींच।

है एक विश्व का पालनहारा, सबको अपना कहना सीख ।

स्वरचित, मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

दिनांक-25/11/2019
विषय-सीख


शैशव का स्वप्न.........इतिहास से सीख

इतिहास उन्हीं का होता है
जो पांव अनल पर रखता है
तप कर अगणित चोटें सहकर
तब स्वर्ण खरा उतरता है
किसी के गले का हार बनता।।

बीच भंवर में पतवार को थामो .......
लहरों में जरा उतरकर
चलो निरंतर तुम मत बैठो
हाथों को यूं मल मलकर
गगन चूमने के खातिर
निज पंखों का विस्तार करो
लक्ष्य को भेदने वाले
कंटक संघर्षों का पथ स्वीकार करो।।

जुल्फों को ढक लेते हैं......
अंतर्मन की साया को
मन की मादकता को डस लेते हैं
जीवन पथ की काया को
जीवन की इस आपाधापी को......
तुम स्वीकार करो
आर करो या पार करो
हर कंटक पथ स्वीकार करो
कष्टों के आलिंगन को
अंगीकार करो या तो तेज धार करो।।

स्वरचित.....
सत्य प्रकाश सिंह

तिथि _25/11/2019/सोमवार
विषय _* सीख /सबक*

विधा॒॒॒ _ काव्य

सिर्फ यही विनय तुमसे भगवन,
सत्संग सीख हमें अच्छी मिले।
यहां रहें अथवा कहीं रहें,
जीवन में राहें सच्ची मिले।

नहीं रखूं मैं कभी लालसा,
प्रशंसा और धनदौलत की।
सबक याद रहे एक हमेशा,
तेरे नाम की शोहरत की।

सबकुछ दीना दाता तूने
चाहूं मात्र यही मै भिक्षा।
चलूं प्रभु सदाचार की राह,
मिले मुझे सद्व्यवहारी शिक्षा।

समय का सदुपयोग करें हम।
नहीं कुछ दुरुपयोग करें हम।
प्रकृति अपनी सब प्रदाता
इसका ही अनुशरण करें हम।

स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय

25/11/19
सीख

दोहावली
***

मोबाइल से बँट रहा ,देखो ज्ञान विशेष ।
पालन खुद करते नहीं,अलग रखें हैं भेष ।।

खाली बैठे क्या करें , देते रहते सीख ।
थोड़ा खुद पालन करें,,तो बदले तारीख ।।

निष्ठा परिश्रम लगन ही ,मानव की पहचान
समझें महत्व सीख का ,जीवन हो आसान ।।

जब तक चाहे सीखिये,मन में रख उल्लास
उम्र बने बाधक नहीं ,मन में गर विश्वास ।।

उम्मीदों की नाव पर ,रखिये पैर सँभार ।
उत्तम शिक्षा है यही ,कोय न खेवनहार।।

स्वरचित
अनिता सुधीर
25/11/2019
विषय-सीख/सबक

"""”""""""""""""""""”""""""""

ये ज़िंदगी
बड़ी अनमोल है
कभी गुरु,कभी माँ
कभी सखी साथी का
निभाती अहम रोल है

कभी ये गुरु बन हमें
सबक सिखाने आती है
कभी माँ बन दुलराती है
कभी सहेली बन समझाती है

मगर तब हमारी बुद्धि
या तो कुंद होती है
या मंद होती है
तब वह सजा स्वरूप
हमें ठोकर लगा जाती है...

जब हम जवानी के
नशे में चूर होते हैं
'अहं' के अहसास से
भरपूर होते हैं
संस्कार की बातें
तब हमें बंदिशें लगती हैं
अनमोल सीख की बातें
तब हमें दुश्मन सी नज़र आती हैं

फलतः हम अपनों से
तथा स्वयं से दूर होते हैं
हमें तब सिर्फ और सिर्फ
निज सफलता की बात ही भाती है...

परिश्रम,संयम व धैर्य
सफल जीवन के लिए ज़रूरी है
हाथ पर हाथ धरे रहने की
कहो,,,हमारी क्या मजबूरी है?

भोजन,जल ,प्रजनन
पशु,पक्षी भी स्वाभाविक
रूप से करते हैं
एक मानव जीवन ही अमूल्य है
जिसमें हम चिंतन मनन कर सकते हैं

विवेक बुद्धि पूरित ज़िंदगी,,
मनुज को
अन्य प्राणियों से अलग दर्शाती है..!!

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®
5 /11 /2019
बिषय,, सबक,, सीख

ठोकर जाने कितने सबक सिखाती है
जिंदगी कैसे जीऐं समझाती है
नदी से ही सीख लें.जो वर्षा में उफनाती है
गर्मी आते ही सूख मैदान हो जाती है
वृक्ष सिखाते सदैव झुककर रहना
पत्थर खाकर भी फल खिलाते रहना
मात पिता की सीख प्रसाद मानना चाहिए
वुजुर्गों की बात का सम्मान करना चाहिए
नहीं किसी का कभी अपमान करना चाहिए
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार

25.11.2019
विषय: सबक,सीख

विधा : पद (छंदबद्ध कविता)

तू हालातों में ढलता चल

ले आशा की चिंगारी दिल,
बिन थके निरंतर चलता चल।
चूमें चरण सफलता साथी,
तू हालातों में ढलता चल ।।

चुने चोंच से तिनका चिड़िया,
उड़-उड़कर रखती शाखा पर।
कहे अरमानों का आशियाना ,
बनता है केवल आशा पर ।
हिला घोंसला गिरा जमीन पर ,
आया तेज हवा का झोंका ।
कहती चिड़िया मुझे मिला है ,
और ठीक बुनने का मौका ।

नहीं निराशा आये मन में ,
सदा हँसी-खुशी उछलता चल।
चूमें चरण सफलता साथी ,
तू हालातों में ढलता चल ।।

पथ का साथी बनकर जिसने ,
खुद तन,मन तुझे भरोसा था।
गर छोड़ गया मझधार बीच ,
समझ की तुम पर भरोसा था।
पता उसे तेरी ताकत का ,
न तुझे जरूरत सहारे की ।
कभी रुक न सकती वो कश्ती,
है जिसको लगन किनारे की ।

न दोष लगा उस साथी को ,
मत भावों में तू पिघलता चल ।
चूमें चरण सफलता साथी ,
तू हालातों में ढलता चल ।।

मानों एहसां उस पत्थर का ,
जो ठोकरें बनकर लगा तुम्हें ।
एहसास कराकर गलती का ,
ठीक वक्त दिया जगा तुम्हें ।
गिरकर उठ संभल कर चलना,
उस ठोकर ने सीखलाया है ।
लक्ष्य कितना दूर है तुमसे ,
उसने तुम्हें बतलाया है ।

गलती से मत गलती करना ,
तू खुद ही खुद संभलता चल।
चूमें चरण सफलता साथी,
तू हालातों में ढलता चल ।।

एक-एक पल बचा-बचाकर ,
वक्त को सख्त बना लो तुम ।
प्रशिक्षण में बहाकर पसीना ,
युद्धों में रक्त बचा लो तुम ।
इक- इक सिक्का डालने से,
एक दिन गुल्लक भर जाती है।
आवाज उठे जब मिल सबकी,
सिंह की सूरत डर जाती है ।

मत नखरे नफरत करो नफे,
तू परेशानियों में पलता चल।
चूमें चरण सफलता साथी ,
तू हालातों में ढलता चल ।।

नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित कविता
मौलिक

25/11/2019
"सीख/सबक"

छंदमुक्त
################
गर्दिश में सितारे जिसके रहते
सबक जिंदगी से उसे मिलते
फिर तो दोस्त भी दुश्मन बना
सबक के संग गम भी मिला।

असफलता जब इंसा को मिला
कर्म की राह पे औंधे मुँह वो गिरा
उठकर जो संभलना सीख लिया
मेहनत और लगन से कर्म किया
फिर मुकाम आसानी से मिला।

वक्त ने जिस किसी को धोखा दिया
राह अकेला वो चलना सीख लिया
और गिर-गिरकर संभलता रहा
तूफानों से भी लड़ना सीख लिया।

बेल पेड़ के नीचे ......
सर ढँककर जो भी न गया
सर उसका लहुलूहान हुआ
सबक क्या खूब उसे मिला
जैसे--------
"दूध का जला छाछ भी.
फूक-फूककर पीता ....।"

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

दिनांक-२५/११/२०१९
शीर्षक-सबक/सीख


सीखने की कोई उम्र नही होती
सीख सकते हम जीवन भर
परनिंदा में क्यों समय गंवाए
सीखने में ही समय लगाये।

यह जगत है सीखो का भंडार
बस चाहिए हमें दृष्टि सही
प्रत्येक घटना को नई दृष्टि से देखें
छिपे होते है संदेश कई।

दुर्बल भी सबल बन जाता
सीख ले जब पाठ नया
धर्य लगन बेकार नही
बस दे उसे दिशा सही।

धरा की सबसे छोटे प्राणी
चींटी सीखाती हमें अनुशासन का पाठ
हम मनु तो विवेकशील प्राणी
सीख ले इनसे पाठ सही।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव

विषय- सबक /सीख
दिनांक 25-11- 2019
सबक हर मोड़ पर,जिंदगी से सदा पाया मैंने।
सबक से सबक,जिंदगी को जन्नत बनाया मैंने।।

सबसे ले सबसे ,और राह प्रशस्त किया मैंने ।
जो मिला जिसे मिला,सबक सदा लिया मैंने।।

ठोकर लगी तो कभी,राह को बदला नहीं मैंने ।
उससे भी संभल,चलने का सबक लिया मैंने ।।

बड़े बुजुर्ग अनुभव को, हृदय गम किया मैंने।
आज जो कुछ हूँ,उसका श्रेय उन्हें दिया मैंने।।

आदर्श उन्हें ही बना,हर कदम फूंक रखा मैंने ।
जहां चालबाजों का,परख अपना बनाया मैंने।।

ना आई बहकावें में,धैर्य को धारण किया मैंने ।
बुजुर्ग सलाह से सदा,शुरु हर कार्य किया मैंने।।

आशीर्वाद सदा उनका, हर कदम लिया मैंने।
दुआओं में कितना दम,देख लिया आज सबने।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

25/11/19
विषय-सबक,सीख।


न समझना पांव का पत्थर
गर शीश चढ़ बैठी तो
सबको सबक सीखा देगी,
कोम्लांगी ले खड़ग हाथ
दुर्गा सी संहारक बन जायेगी,
सृजन हार जब बने संहारक
भुमि कम्पन से थर्राती है,
अभिमानी मानव को
पल में धूल चटाती है,
फौलादी हो निशचय तो
पर्वत को भी झुकाती है,
विषमताओं को कर दर किनार
जीवन गतिमान बनाती है‌

स्वरचित

कुसुम कोठारी।

शीर्षक- सबक/ सीख

सीख लो फूलों से,
कांटों में भी मुस्काना।
सीख लो भूलों से,
फिर से ना दोहराना।।

सीख लो दीपक से
तम से खौफ न खाना।
सीख लो नदियों से
अवरोधों से टकराना।।

सीख लो पानी से
हर रंग को अपनाना।
सीख लो हवा से
कोमल भाव बहाना।।

स्वरचित- निलम अग्रवाल,खड़कपुर

विषय-सबक/सीख
विधा-दोहे

दिनांकः 25/11/2019
सोमवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:

ठोकर खाकर संभलो,आखिर होगी जीत ।
ऐसा होता ही रहा,यही जगत की रीत ।।

हो जीवन में लालसा,सदा सीख की चाह ।
हर पल सबको ये मिले,रहे सदा उत्साह ।।

जीवन होता है वही,सबके आये काम ।
जो स्वार्थ में लिप्त है ,वह जीवन नाकाम ।।

जीवन कहते प्रेम को,यही सदा से धर्म ।
जिसने भी समझा इसे,उसने समझा मर्म ।।

विपदा में संकट हरे,वही आदमी नेक ।
जीवन परहित है सदा,समझो यही विवेक ।।

बिन स्वार्थ पूरे करें,सदा हमारे फर्ज ।
मात-पिता सेवा करें,उनका हम पर कर्ज ।।

रहे देश निष्ठा सदा,करें सदा सम्मान ।
सदा सभी तैयार हों,होने को कुर्बान।।

जग में गुरु ही हैं बड़े,करें सभी सम्मान ।
सदा रहम वे करें,बनते हम विद्वान ।।

ये गीता संदेश है ,करना सबको कर्म ।
नहीं कर्म छोडो कभी ,ये है बड़ा अधर्म ।।

स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय,

नमन "भावों के मोती"🙏
25/11/2019
ाइकु (5/7/5)
विषय:-"सबक"

(1)
काम न आये
किताबों के "सबक"
चोट सिखाये
(2)
वक़्त पे चींटी
सिखा गई "सबक"
हाथी भी पस्त
(3)
मौसम जैसे
जिंदगी के "सबक"
परीक्षा लेते
(4)
समझ नेता
लोकतंत्र में वोट
"सबक" देता
(5)
जीवन कक्ष
प्रेम के "सबक" से
ईश समक्ष

स्वरचित
ऋतुराज दवे

इतना सबक ना सीखा ऐ जिन्दगी,
हमे कौन सा यहाँ सदिया गुजारनी है।


इतना ना मुझको रूला ऐ जिन्दगी,
हमें कौन सा यहाँ सदिया गुजारनी है।

कुछ तो कर रहम मुझपे, कुछ तो गम कम करदे।
कुछ तो आँसू कम कर दे, कुछ तो कुछ तो आहे कम करदे।

इतना ना दिल को सता ऐ जिन्दगी,
हमें कौन सा यहाँ सदिया गुजारनी है।

शेर सिंह सर्राफ
दिनाँक-25/11/2019
शीर्षक-सी
ख , सबक
🥀🥀🥀🥀🥀🥀
सबक बुद्धु को देकर देखें
कितना कठिन है समझाना
भाग्य अपना बनाने को भी
हर रोज बनाता इक बहाना।
🎄🎄🎄🎄🎄🎄
मन में हो उमंग अगर
पत्थर से सीख है मिलती
तरास कर पत्थर को देखो
कितनी सुंदर तस्वीर है बनती
🎍🎍🎍🎍🎍🎍
जीवन की गहराइयाँ
उन परिंदों से पूछिए
ऊँची उड़ान भरने को
प्रशिक्षण किससे लेते।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
सीख लीजिए मछली से
जो अथाह सागर रहती
लेकर जन्म पानी में
वह तैरना किससे सीखी ।
🥀🥀🥀🥀🥀🥀
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
दिनांक 25-11-19
विषय -सीख /सबक

विधा - छंदमुक्त

जीवन के हर पल क्षण से,
सीख हमें नित है मिलती l
पालन करके सीख का ही,
जीवन बगिया है खिलती l

क्षण पल कतरा ज़र्रा ज़र्रा,
नई सीख से राह सजाते l
प्रकृति,ब्रह्माण्ड,चंदा,रवि,
सीख भिन्न भिन्न दे जाते l

ऊँचे पहाड़ गिरि तुंग श्रृंग,
ऊँचा उठने की बात बताते l
अविरल सतत प्रवाह वेग,
नदी प्रपात हमें समझाते l

सागर विशाल जलनिधि ओढ़े,
रत्न छिपाए सीख सिखाता l
कितने भी श्रेष्ठ बनो जीवन में,
अहं न करना बात बताता l

रात व दिन,ऋतु परिवर्तन भी,
आते जाते विचलित न होते l
सुख दुख में समभावी रहते,
बोझ सा जीवन ये नहीं ढोते l

समय का पहिया है गतिशील,
क्षण भर न कभी डगमग होताl
कर्तव्य पथ हो चाहे कठिन,
अविराम चलो ये कहता जाता l

पादप विटप वल्लरी कानन,
मौन रहकर भी सीख दे जाते l
परहित जीवन जीना सीखो,
धरा पर शीतलता ये लाते l

खग,विहग,मृग, जीव जगत,
सब मेलजोल की शिक्षा देते l
बुद्धिमान प्राणी मनुज को ये,
अनुपम परोक्ष सुदीक्षा देते l

कभी मनुज भी मनुज को ही,
ऊँची श्रेष्ठ सीख दे जाते,
बुरे व्यक्तित्व ही सर्वाधिक,
निंदा से हमें सम्पूर्ण बनाते l

कुसुम लता पुन्डोरा
आर के पुरम
नई दिल्ली

विषय : सबक/सीख
विधा: स्वतंत्र

दिनांक 25/11/2019

शीर्षक : सीख

सूरज हमें यह सीख देता,
हर काम समय पर करना।

घड़ी हमें यह सीख देती,
अहर्निशं चलते रहना।

धरा हमें यह सीख देती,
विशाल हृदय रखना ।

पेड़ हमें यह सीख देते,
विनयशाली बन जाना।

पुष्प हमें यह सीख देते,
हरदम मुसकुराते रहना।

पानी हमें यह सीख देता,
निरन्तर बहते रहना।

सड़क हमें यह सीख देती,
परिश्रम से मंजिल पाना।

पहिया हमें यह सीख देता,
अनवरत आगे बढ़ना ।

आकाश हमें यह सीख देता,
सफलता से क्षितिज पाना।

भगवान हमें यह सीख देते,
परोपकार करते रहना ।

'भावों के मोती' सीख यह देता,
विषय पर सुंदर सृजन करना

गुरू 'रिखब' को यह सीख देते,
सेवा से जीवन सफल बनाना।

रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
जयपुर राजस्थान

विषय - सबक/सीख
25/11/19

सोमवार
कविता

जिंदगी हर घड़ी हमको सबक सच्चा सिखाती है।
दुखों की कालिमा में पथ उजालों का दिखाती है।

कभी कर्तव्य से होकर विमुख जब राह भूलें तो,
वही देकर सजा ,अवसर सुधरने का दिलाती है।

जो वैभव के नशे में चूर हो करते अनैतिकता,
जिंदगी देकर ठोकर फिर जमीं पर ला गिराती है।

जहाँ संवेदना से शून्य होकर टूटते रिश्ते ,
विपत्ति के समय रिश्तों की गरिमा यह बताती है।

जो जीते हैं सदा अपने लिए बस स्वार्थी बनकर,
यह दे संदेश सबके मन में परहित भाव लाती है।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

सबक/सीख

देती है सीख
हर ठोकर
जिन्दगी में
बच कर
चलना है
सड़क के
पत्थरों से
जिन्दगी में

लो सबक
हर संकट से
जिन्दगी में
संभल कर
उठो, चलो
जिन्दगी में

देते है
सही सीख
और सबक
माता पिता
जिन्दगी में
करो उनका
सम्मान
गाँठ बाँध कर
रखो हर सीख
जिन्दगी में

मत करो
गलत काम
दूर रहो
भ्रष्टाचार
बेईमानी से
नेक ईमान बनों
जिन्दगी में

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

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