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ब्लॉग संख्या :-533
दिनांक-12/10/2029
विषय-सिलसिले
ज्वलंत प्रश्नों के धीरे धीरे
सिलसिले शुरू हो गए।
मेरे अंतर्मन में थी कुछ बातें
बस ख्यालों के जलजले रह गए।।
खामोशियों से जलते है अधर
बखौफ फलसफे बदल गए।
खींचती तृष्णा पकड़कर वाँह मेरी
कुछ सवाल अनसुलझे रह गए।।
कामनाओं के झकोरे रोकते हैं
क्यों तुम्हारे इरादे बदल गए।
मध्य निशा का मैं अभागा
क्यों तेरे दर के सजदे बदल गए।।
ये सिलसिले कब तक चलते रहेंगे
हम किसी गुमनाम आग में जलते रहेंगे...............?
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय-सिलसिले
ज्वलंत प्रश्नों के धीरे धीरे
सिलसिले शुरू हो गए।
मेरे अंतर्मन में थी कुछ बातें
बस ख्यालों के जलजले रह गए।।
खामोशियों से जलते है अधर
बखौफ फलसफे बदल गए।
खींचती तृष्णा पकड़कर वाँह मेरी
कुछ सवाल अनसुलझे रह गए।।
कामनाओं के झकोरे रोकते हैं
क्यों तुम्हारे इरादे बदल गए।
मध्य निशा का मैं अभागा
क्यों तेरे दर के सजदे बदल गए।।
ये सिलसिले कब तक चलते रहेंगे
हम किसी गुमनाम आग में जलते रहेंगे...............?
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
सिलसिला
माँ ने बचपन में कहा,
चाँद की तरफ ,
दिखाकर उँगली ।
वो देखो चंदा मामा ।
पहना दिया,
रिश्तो का जामा ।
गगन में हैं जो सीतारे,
वो हैं सब,
अपने गुजरे हुए प्यारे ।
जब भी इन रिश्तो ,
याद किया तो,
एक सुकून मिला ।
सदियों से चला आ रहा,
यह सिलसिला ।
@ प्रदीप सहारे
माँ ने बचपन में कहा,
चाँद की तरफ ,
दिखाकर उँगली ।
वो देखो चंदा मामा ।
पहना दिया,
रिश्तो का जामा ।
गगन में हैं जो सीतारे,
वो हैं सब,
अपने गुजरे हुए प्यारे ।
जब भी इन रिश्तो ,
याद किया तो,
एक सुकून मिला ।
सदियों से चला आ रहा,
यह सिलसिला ।
@ प्रदीप सहारे
भावों के मोती
12/10/2019
शीर्षक- सिलसिला
विधा- ग़ज़ल
बह्र- 212 212 212 2
आपकी चाहतों का असर हो,
आपका साथ अब हर डगर हो।
सिलसिला प्यार का हम चलाएं,
बावफा आपकी गर नज़र हो।
आपकी सादगी भा गई है,
आपकी बंदगी हर पहर हो।
दिल गलीचा बनाकर बिछाया,
अब बता दो बशर के किधर हो।
आपकी नींद हम सो रहे हैं,
आप यूँ अब हमारी नजर हो।
कायदा पढ़ रहे इश्क का हम,
आरज़ू से सनम बाख़बर हो।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
12/10/2019
शीर्षक- सिलसिला
विधा- ग़ज़ल
बह्र- 212 212 212 2
आपकी चाहतों का असर हो,
आपका साथ अब हर डगर हो।
सिलसिला प्यार का हम चलाएं,
बावफा आपकी गर नज़र हो।
आपकी सादगी भा गई है,
आपकी बंदगी हर पहर हो।
दिल गलीचा बनाकर बिछाया,
अब बता दो बशर के किधर हो।
आपकी नींद हम सो रहे हैं,
आप यूँ अब हमारी नजर हो।
कायदा पढ़ रहे इश्क का हम,
आरज़ू से सनम बाख़बर हो।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
सिलसिला
विधा--ग़ज़ल
मात्रा भार -- 18
प्रथम प्रयास
सिलसिला सांसों का ये चल रहा
ख्वाब भी नित नया एक पल रहा ।।
कुछ टूटे कुछ सजे ख्वाब हैं
हर स्थिति में इंसान ढल रहा ।।
सफर है जीवन ये इक सुहाना
जो जाना हकीकत संभल रहा ।।
वक्त का दौर कब किसके साथ
आज इधर तो कल उधर चल रहा ।।
वक्त का ही डंका यहाँ बजता
कोई हँस रहा कोइ मचल रहा ।।
सिलसिला सांसों का नाजुक बड़ा
तारे तोड़ने क ख्वाब खल रहा ।।
प्यार का बंधन बड़ा प्यारा है
नहि जाने 'शिवम' इसमें हल रहा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/01/2019
विधा--ग़ज़ल
मात्रा भार -- 18
प्रथम प्रयास
सिलसिला सांसों का ये चल रहा
ख्वाब भी नित नया एक पल रहा ।।
कुछ टूटे कुछ सजे ख्वाब हैं
हर स्थिति में इंसान ढल रहा ।।
सफर है जीवन ये इक सुहाना
जो जाना हकीकत संभल रहा ।।
वक्त का दौर कब किसके साथ
आज इधर तो कल उधर चल रहा ।।
वक्त का ही डंका यहाँ बजता
कोई हँस रहा कोइ मचल रहा ।।
सिलसिला सांसों का नाजुक बड़ा
तारे तोड़ने क ख्वाब खल रहा ।।
प्यार का बंधन बड़ा प्यारा है
नहि जाने 'शिवम' इसमें हल रहा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/01/2019
नमन मंच भावों के मोती
12 /10 /2019/
बिषय,, सिलसिला,,
काली निशा के आगोश में
शुरू हो गया बिचार मंथन का सिलसिला
नेकियां करने के बाद दिया लोगों ने बुराई का सिला
अच्छाइयां भुलाना. जमाने के उसूल हैं
पीठ पर वार करने में मशगूल हैं
किसी पर. विश्वास करना हमारी नादानी थी
उन्होंने हमें क्या दिया ए उनकी मेहरबानी थी
कांटे जिसके पास हैं वो फूल कहाँ से लाएंगे
आपके पैरों तले वह शूल ही बिछाएंगे
लेकिन हम भी कांटों पर चल कर दिखाएंगे
जख्म तो होंगे पर भर भी जाएंगे
निशान उनकी पल पल याद दिलाएंगे
मंजिल नहीं छोड़ेंगे चलत ही जाएंगे
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
12 /10 /2019/
बिषय,, सिलसिला,,
काली निशा के आगोश में
शुरू हो गया बिचार मंथन का सिलसिला
नेकियां करने के बाद दिया लोगों ने बुराई का सिला
अच्छाइयां भुलाना. जमाने के उसूल हैं
पीठ पर वार करने में मशगूल हैं
किसी पर. विश्वास करना हमारी नादानी थी
उन्होंने हमें क्या दिया ए उनकी मेहरबानी थी
कांटे जिसके पास हैं वो फूल कहाँ से लाएंगे
आपके पैरों तले वह शूल ही बिछाएंगे
लेकिन हम भी कांटों पर चल कर दिखाएंगे
जख्म तो होंगे पर भर भी जाएंगे
निशान उनकी पल पल याद दिलाएंगे
मंजिल नहीं छोड़ेंगे चलत ही जाएंगे
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
दिनांक .. 12/10/2019
विषय .. सिलसिला
**********************
फिर अश्क गिरे इन आँखों से,फिर याद तुम्हारी आई है।
वर्षो से रहा है ये सिलसिला जो,आज उभर कर आई है।
ये ही दिन, तारीख भी यही था, ये ही था वो मौसम,
छोड गये जब मुझे अकेला, वो बात याद फिर आई है।
**
भाव शून्य था वो निर्मोही, मेरी प्रीत समझ ना आई।
मै उसमें संसार ढुँढती, उसे बात समझ ना आई।
शेर प्रीत भी भक्ति है मै जोगन बन गयी उसकी,
पर वो श्याम बना ना मेरा, ना बना राम रघुराई।
**
पर वो प्रीत का मेरा सिलसिला, मन मंदिर मे अब भी है।
उसकी ही मोहक छवि मन में, प्रीत भी उसके ही प्रति है।
शायद उसमें भाव जगे और, प्यार मेरा लाये उसको,
यही भावना मन मे मेरे , यही सिलसिला जीवन है।
**
तुम भी बोलो कुछ तो पढ कर, जीवन दुख की बाती है।
दीपक मे दिन रात जली जो अश्क मेरे ना पानी है।
शेर सुधी जन कहाँ खो गये, जाकर उसे बताओ ना,
इक विरहन दिन रात जल रही, प्रीत मे राधा रानी है।
स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
विषय .. सिलसिला
**********************
फिर अश्क गिरे इन आँखों से,फिर याद तुम्हारी आई है।
वर्षो से रहा है ये सिलसिला जो,आज उभर कर आई है।
ये ही दिन, तारीख भी यही था, ये ही था वो मौसम,
छोड गये जब मुझे अकेला, वो बात याद फिर आई है।
**
भाव शून्य था वो निर्मोही, मेरी प्रीत समझ ना आई।
मै उसमें संसार ढुँढती, उसे बात समझ ना आई।
शेर प्रीत भी भक्ति है मै जोगन बन गयी उसकी,
पर वो श्याम बना ना मेरा, ना बना राम रघुराई।
**
पर वो प्रीत का मेरा सिलसिला, मन मंदिर मे अब भी है।
उसकी ही मोहक छवि मन में, प्रीत भी उसके ही प्रति है।
शायद उसमें भाव जगे और, प्यार मेरा लाये उसको,
यही भावना मन मे मेरे , यही सिलसिला जीवन है।
**
तुम भी बोलो कुछ तो पढ कर, जीवन दुख की बाती है।
दीपक मे दिन रात जली जो अश्क मेरे ना पानी है।
शेर सुधी जन कहाँ खो गये, जाकर उसे बताओ ना,
इक विरहन दिन रात जल रही, प्रीत मे राधा रानी है।
स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
12.10.2019
शनिवार
विषय -सिलसिला
विधा -ग़ज़ल
#सिलसिला प्यार का,ख़त्म होगा नहीं
ज़िन्दगी जन्म लेगी ,हमेशा यहीं ।।
प्यार से, प्यार का ही ,बनेगा जहाँ
प्यार है आसमाँ, प्यार है ये ज़मीं।।
दर्द भी है,नई ज़िन्दगी प्यार की
आँसुओं की भी क़ीमत,
मिलेगी यहीं।।
किसने हासिल किया,प्यार में दो जहाँ
हीर भी थी यहीं और राँझा यहीं।।
प्यार का सिलसिला,चलने देना ‘ उदार ‘
दिल के अहसास में, आएगी कुछ नमीं ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
शनिवार
विषय -सिलसिला
विधा -ग़ज़ल
#सिलसिला प्यार का,ख़त्म होगा नहीं
ज़िन्दगी जन्म लेगी ,हमेशा यहीं ।।
प्यार से, प्यार का ही ,बनेगा जहाँ
प्यार है आसमाँ, प्यार है ये ज़मीं।।
दर्द भी है,नई ज़िन्दगी प्यार की
आँसुओं की भी क़ीमत,
मिलेगी यहीं।।
किसने हासिल किया,प्यार में दो जहाँ
हीर भी थी यहीं और राँझा यहीं।।
प्यार का सिलसिला,चलने देना ‘ उदार ‘
दिल के अहसास में, आएगी कुछ नमीं ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
विषय सिलसिला
विधा काव्य
12 अक्टूबर 2019,शनिवार
जिंदगी भी सिलसिला है
यह कभी रुकता नहीं है।
भागता ही जा रहा नित
दूर भी ये जाता नहीं है।
ये भक्ति का सिलसिला
चलता रहे ,चलता रहेगा।
है जिंदगी चार दिनों की
नित कांरवा आगे बढ़ेगा।
शुभ अशुभ सिलसिले हैं
जानले पहिचानले मानव।
एक तरफ शाश्वत सत्य है
दूजी और बसता है दानव।
जन्म मृत्य मध्य जीवन में
सतत सिलसिले आते जाते।
सोचो समझो जानो जल्दी
यँहा लोग इतिहास रचाते।
आना जाना सिलसिला है
खाना पीना सिलसिला है।
तुम आये मानव जीवन में
पर हित श्रेष्ठ सिलसिला है।
पुरुष से बन गये पुरूषोत्तम
सिलसिला ये चलता रहता।
निर्मल पावन जीवन सर में
कोई बहता तो कोई तरता।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
मंच को सादर नमन 🙏
दिनांक-12.10.2019
विधा - पद
विषय- सिलसिला
212 212 212 212
जिस्म जख्मी सही लड़खड़ाते चलो ।
जोश के सिलसिले को बढ़ाते चलो ।।
जिन्दगी ये दुबारा मिलेगी नहीं ।
जान हँसकर वतन पर लुटाते चलो।।
दर्द दिल में छुपे हों हजारों मगर ।
मुस्कुराकर सभी को लुभाते चलो।।
फासलों में फँसा है पड़ा फैसला ।
फासले को पलक में मिटाते चलो।।
बर्फ में थे दबे साँस फिर भी चली ।
राज की बात सबको बताते चलो ।।
एक तेरे भरोसे ही सोता वतन ।
आखिरी साँस सबको जगाते चलो।।
हर कदम पर यहाँ मौत बैठी हुई।
ठोकरों से " नफेे" तुम लुढ़ाते चलो।।
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित रचना
मौलिक
दिनांक-12.10.2019
विधा - पद
विषय- सिलसिला
212 212 212 212
जिस्म जख्मी सही लड़खड़ाते चलो ।
जोश के सिलसिले को बढ़ाते चलो ।।
जिन्दगी ये दुबारा मिलेगी नहीं ।
जान हँसकर वतन पर लुटाते चलो।।
दर्द दिल में छुपे हों हजारों मगर ।
मुस्कुराकर सभी को लुभाते चलो।।
फासलों में फँसा है पड़ा फैसला ।
फासले को पलक में मिटाते चलो।।
बर्फ में थे दबे साँस फिर भी चली ।
राज की बात सबको बताते चलो ।।
एक तेरे भरोसे ही सोता वतन ।
आखिरी साँस सबको जगाते चलो।।
हर कदम पर यहाँ मौत बैठी हुई।
ठोकरों से " नफेे" तुम लुढ़ाते चलो।।
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित रचना
मौलिक
दि०-12.10.2019
शीर्षक शब्द- सिलसिला
विधा-चतुष्पदी
====================
(01)
मैं बैरी हूँ निज का स्वयं साहाय्य नहीं ठहराता है ।
उत्तुंग शिखर पर चढ़ने का सिलसिला नहीं बन पाता है ।।
यों सदा अधोगति मेरी है कलपता रहूँ कर हाथ खड़े ,
मेरे जीवट रह जाते हैं नैरास्यपुंज की माँद पड़े ।।
***************************
(02) सोरठा मुक्तक
=============
पहने गैरिक वस्त्र, कुछ-कुछ ऐसे सन्त हैं ।
जिन्हें समझते अस्त्र,जीवन यापन के निमित ।।
गात हुआ बलहीन ,जो घर से निर्गत करे ।
यत्र तत्र सर्वत्र , चलहि सिलसिला अनवरत ।।
=====================
'अ़क्स ' दौनेरिया
शीर्षक शब्द- सिलसिला
विधा-चतुष्पदी
====================
(01)
मैं बैरी हूँ निज का स्वयं साहाय्य नहीं ठहराता है ।
उत्तुंग शिखर पर चढ़ने का सिलसिला नहीं बन पाता है ।।
यों सदा अधोगति मेरी है कलपता रहूँ कर हाथ खड़े ,
मेरे जीवट रह जाते हैं नैरास्यपुंज की माँद पड़े ।।
***************************
(02) सोरठा मुक्तक
=============
पहने गैरिक वस्त्र, कुछ-कुछ ऐसे सन्त हैं ।
जिन्हें समझते अस्त्र,जीवन यापन के निमित ।।
गात हुआ बलहीन ,जो घर से निर्गत करे ।
यत्र तत्र सर्वत्र , चलहि सिलसिला अनवरत ।।
=====================
'अ़क्स ' दौनेरिया
12/10/2019
विषय-सिलसिला🙅
==================
सदियों से मैं गुलामी की
बेड़ियों में जकड़ी रही
अनवरत चलता रहा ये सिलसिला
व्यथित माँ भारती ने बोला,
"हाँ,कभी स्वतंत्र हुई थी मैं
पर इसका सुख
मुझे अब तक न मिला
मुझे लूटने का का तो
अब भी चला आ रहा है ये सिलसिला
स्वतंत्र देश में भी जो सत्ताधीन हुए
सबने मिलकर विश्वासघात किया
नेताओं,समाज के ठेकेदारों ने
मेरे सीने पर कुठाराघात किया
पीड़ित हूँ, अत्यंत व्यथित हूँ
खत्म होता ही नहीं है ये सिलसिला
इक्कीसवीं सदी में भी
मेरी बेटियां प्रायः उपेक्षित ही हैं
दुराचार,पक्षपात अन्याय से
निज बंधु बान्धवों से प्रताड़ित हैं
युगों से चला ही आ रहा है ये सिलसिला
बस साज श्रृंगार भर से स्त्री को
विभिन्न उपमाओं से अलंकृत करते हैं
उसके ममतामय,त्यागस्वरूप का
बस महिमामंडन भर कर देते हैं
फिर उसी पूज्या को भोगवस्तु समझ
अपमानित करने का शुरू हो जाता है सिलसिला..।।"
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®
विषय-सिलसिला🙅
==================
सदियों से मैं गुलामी की
बेड़ियों में जकड़ी रही
अनवरत चलता रहा ये सिलसिला
व्यथित माँ भारती ने बोला,
"हाँ,कभी स्वतंत्र हुई थी मैं
पर इसका सुख
मुझे अब तक न मिला
मुझे लूटने का का तो
अब भी चला आ रहा है ये सिलसिला
स्वतंत्र देश में भी जो सत्ताधीन हुए
सबने मिलकर विश्वासघात किया
नेताओं,समाज के ठेकेदारों ने
मेरे सीने पर कुठाराघात किया
पीड़ित हूँ, अत्यंत व्यथित हूँ
खत्म होता ही नहीं है ये सिलसिला
इक्कीसवीं सदी में भी
मेरी बेटियां प्रायः उपेक्षित ही हैं
दुराचार,पक्षपात अन्याय से
निज बंधु बान्धवों से प्रताड़ित हैं
युगों से चला ही आ रहा है ये सिलसिला
बस साज श्रृंगार भर से स्त्री को
विभिन्न उपमाओं से अलंकृत करते हैं
उसके ममतामय,त्यागस्वरूप का
बस महिमामंडन भर कर देते हैं
फिर उसी पूज्या को भोगवस्तु समझ
अपमानित करने का शुरू हो जाता है सिलसिला..।।"
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®
भावों के मोती
विषय =सिलसिला
===========
ओढ़े दिखावटी प्रेम के मुखौटे
यह झूठे मुलाकातों के सिलसिले
संवेदनाएं मन की कहीं गुम हो गईं
बातों में सरसता छुप-सी गई
शर्तो के अनुबन्ध पर बंधा हर रिश्ता
कभी लगता अपना-सा कभी पराया
प्रेम की बदलने लगी है परिभाषा
प्रेम अब त्याग नहीं, सिर्फ पाने की आशा
प्रेम में बार-बार छले जाते हैं लोग
बात-बात में दिल तोड़ जाते लोग
फिर भी प्रेम कभी कम नहीं होता
प्रेम में खुद को भूल जाते हैं लोग
अहम और वहम के इस टकराव में
बिगाड़े हमेशा रिश्तों के रूप
काँच से बिखरते इन रिश्तों में
फिर कहाँ खिलते हैं प्रेम के फूल
इन बिखरी किर्चों की चुभन से
घायल होते फिर तन और मन
रिश्तों में प्रीत दम तोड़ती नजर आती
शर्तों में ज़िंदगी अब बंधन नहीं चाहती
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित
विषय =सिलसिला
===========
ओढ़े दिखावटी प्रेम के मुखौटे
यह झूठे मुलाकातों के सिलसिले
संवेदनाएं मन की कहीं गुम हो गईं
बातों में सरसता छुप-सी गई
शर्तो के अनुबन्ध पर बंधा हर रिश्ता
कभी लगता अपना-सा कभी पराया
प्रेम की बदलने लगी है परिभाषा
प्रेम अब त्याग नहीं, सिर्फ पाने की आशा
प्रेम में बार-बार छले जाते हैं लोग
बात-बात में दिल तोड़ जाते लोग
फिर भी प्रेम कभी कम नहीं होता
प्रेम में खुद को भूल जाते हैं लोग
अहम और वहम के इस टकराव में
बिगाड़े हमेशा रिश्तों के रूप
काँच से बिखरते इन रिश्तों में
फिर कहाँ खिलते हैं प्रेम के फूल
इन बिखरी किर्चों की चुभन से
घायल होते फिर तन और मन
रिश्तों में प्रीत दम तोड़ती नजर आती
शर्तों में ज़िंदगी अब बंधन नहीं चाहती
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित
भावों के मोती
शीर्षक- सिलसिले
सिलसिले अपनों से नाराजगी के
चलते आए हैं, चलते ही रहेंगे।
ताल्लुक फिर भी नहीं टूटते उनसे
रुठने मनाने के ये सिलसिले
यूं ही चलते आए हैं, चलते ही रहेंगे।
कभी आंसू कभी मुस्कान की
वजह बनते हैं ।
हर क़दम पर साथ-साथ रहते हैं।
इन्हीं के लिए हम सब्र के साथ
जीवन जीते हैं।
रोने हँसने के सिलसिले जीवन भर
चलते आए हैं चलते ही रहेंगे।
कांटों में भी फूल खिलते आए हैं
खिलते ही रहेंगे।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
शीर्षक- सिलसिले
सिलसिले अपनों से नाराजगी के
चलते आए हैं, चलते ही रहेंगे।
ताल्लुक फिर भी नहीं टूटते उनसे
रुठने मनाने के ये सिलसिले
यूं ही चलते आए हैं, चलते ही रहेंगे।
कभी आंसू कभी मुस्कान की
वजह बनते हैं ।
हर क़दम पर साथ-साथ रहते हैं।
इन्हीं के लिए हम सब्र के साथ
जीवन जीते हैं।
रोने हँसने के सिलसिले जीवन भर
चलते आए हैं चलते ही रहेंगे।
कांटों में भी फूल खिलते आए हैं
खिलते ही रहेंगे।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
विषय-सिलसिला
दिनांक 12-10 -2019
तेरी यादों का सिलसिला नहीं थमता।
दिल बेचैन सदा तेरी याद में रहता।
कब तक तेरे वादों पर यकीन मैं करता।
भूल भी नहीं सकता प्यार मैं करता।
तन्हाइयों से अक्सर बात मैं करता।
गम की सौगात सीने लगा मैं फिरता।
तेरी यादों का सिलसिला सोने नहीं देता।
मैं रहूँ खामोश तो वो बेचैन करता।
सपनों में कभी तुझे देखा मैं करता।
आँख खुलते ही बातें खुद से करता।
अब मौत के साथ थमेगा सिलसिला।
आऊंगा अगले जन्म यही वादा करता।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
तेरी यादों का सिलसिला नहीं थमता।
दिल बेचैन सदा तेरी याद में रहता।
कब तक तेरे वादों पर यकीन मैं करता।
भूल भी नहीं सकता प्यार मैं करता।
तन्हाइयों से अक्सर बात मैं करता।
गम की सौगात सीने लगा मैं फिरता।
तेरी यादों का सिलसिला सोने नहीं देता।
मैं रहूँ खामोश तो वो बेचैन करता।
सपनों में कभी तुझे देखा मैं करता।
आँख खुलते ही बातें खुद से करता।
अब मौत के साथ थमेगा सिलसिला।
आऊंगा अगले जन्म यही वादा करता।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
अब खत्म ये फासला नहीं होता।
गर दिल का मामला नहीं होता।
तुम भी एक बार तो कहते मुझसे।
फिर इस तरह मुकाबला नहीं होता।
अब भी बची है, इन्सानियत वरना।
मुरदे के साथ काफिला नहीं होता।
हजार कोशिशें की , दरिया में डूब।
उफ के हासिल बुलबुला नहीं होता।
रखा जो पावं, जमीं लगी सरकने ।
क्यूं खत्म ये सिलसिला नहीं होता।
विपिन सोहल
गर दिल का मामला नहीं होता।
तुम भी एक बार तो कहते मुझसे।
फिर इस तरह मुकाबला नहीं होता।
अब भी बची है, इन्सानियत वरना।
मुरदे के साथ काफिला नहीं होता।
हजार कोशिशें की , दरिया में डूब।
उफ के हासिल बुलबुला नहीं होता।
रखा जो पावं, जमीं लगी सरकने ।
क्यूं खत्म ये सिलसिला नहीं होता।
विपिन सोहल
नमन भावों के मोती
आज का विषय, सिलसिला
दिन, शनिवार
दिनांक, 12,10,2019
माला भावों के मोती की गूँथा करूँ ,
सिलसिला उम्र भर ये चलता रहे ।
डगमगायें कलम न मैं लिखती रहूँ ,
शब्द हकीकत के रंग में ढलते रहें ।
ज्ञान के दीप की कभी वर्तिका बन सकूँ ,
सदा भावों की सरिता बहती रहे ।
गीत मिलन के हमेशा लिख्खा करूँ ,
सिलसिला अनवरत सौहार्द का चलता रहे ।
मैं भावों की दुनियाँ को संवारे रखूँ ,
गुलशन साहित्य का महकता रहे ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
आज का विषय, सिलसिला
दिन, शनिवार
दिनांक, 12,10,2019
माला भावों के मोती की गूँथा करूँ ,
सिलसिला उम्र भर ये चलता रहे ।
डगमगायें कलम न मैं लिखती रहूँ ,
शब्द हकीकत के रंग में ढलते रहें ।
ज्ञान के दीप की कभी वर्तिका बन सकूँ ,
सदा भावों की सरिता बहती रहे ।
गीत मिलन के हमेशा लिख्खा करूँ ,
सिलसिला अनवरत सौहार्द का चलता रहे ।
मैं भावों की दुनियाँ को संवारे रखूँ ,
गुलशन साहित्य का महकता रहे ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
तिथि __12 /12/2019/शनिवार विषय__ सिलसिला
विधा॒॒॒__ मुक्तक
मात्रा भार _14
जीवन मरण का सिलसिला।
आवागमन का सिलसिला।
यह संसार रूकता नहीं,
चल चलाई का सिलसिला।
नेकी वदी का सिलसिला।
फूल कांटों का सिलसिला।
अनवरत चलता रहेगा
ये मोल-भाव का सिलसिला।
चला यादों का सिलसिला।
किऐ वादों का सिलसिला।
रूकें राहें तब हमारी
टुटे सांसों का सिलसिला।
अपनी प्रीत का सिलसिला।
हार जीते का सिलसिला।
दिखे सुने यहां अनगिनत
हुऐ भाषण का सिलसिला।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय जय श्री राम रामजी
1भा ,सिलसिला ,(मुक्तक)
(मात्रा भार -14)
12/10/2019 शनिवार
विधा॒॒॒__ मुक्तक
मात्रा भार _14
जीवन मरण का सिलसिला।
आवागमन का सिलसिला।
यह संसार रूकता नहीं,
चल चलाई का सिलसिला।
नेकी वदी का सिलसिला।
फूल कांटों का सिलसिला।
अनवरत चलता रहेगा
ये मोल-भाव का सिलसिला।
चला यादों का सिलसिला।
किऐ वादों का सिलसिला।
रूकें राहें तब हमारी
टुटे सांसों का सिलसिला।
अपनी प्रीत का सिलसिला।
हार जीते का सिलसिला।
दिखे सुने यहां अनगिनत
हुऐ भाषण का सिलसिला।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय जय श्री राम रामजी
1भा ,सिलसिला ,(मुक्तक)
(मात्रा भार -14)
12/10/2019 शनिवार
12/10 /2019
भावो के मोती
विषय सिलसिला
प्रेम का सिलसिला मेरा तुम्हारा
चलता रहा है चलता ही रहेगा
दस्ताने मुहब्बत की तुमको सुनाना
अजी ताउम्र तुमको सुनना पड़ेगा
भावो की मोती पिरो कर मैं लाई
प्रेम से तुमको पहनना पड़ेगा
तुझको सुनाऊँगी गीत मिलन के
प्रेम की नदियां में बहना पड़ेगा
तुम मुरली बजाओगे मैं रास करुँगी
ये सिलसिला मोहनचलता ही रहेगा
स्वरचित
मीना तिवारी
भावो के मोती
विषय सिलसिला
प्रेम का सिलसिला मेरा तुम्हारा
चलता रहा है चलता ही रहेगा
दस्ताने मुहब्बत की तुमको सुनाना
अजी ताउम्र तुमको सुनना पड़ेगा
भावो की मोती पिरो कर मैं लाई
प्रेम से तुमको पहनना पड़ेगा
तुझको सुनाऊँगी गीत मिलन के
प्रेम की नदियां में बहना पड़ेगा
तुम मुरली बजाओगे मैं रास करुँगी
ये सिलसिला मोहनचलता ही रहेगा
स्वरचित
मीना तिवारी
12/10/2019
विषय ___सिलसिला |
सदियों से चलते ये ससिलसिले |
जन्म ,बचपन,युवा,वृद्धा वस्था मृत्यु |
खभी थमते नही अनवरत अनादि अंततक |
रिश्ते नातो के बीच कलह ,सौहार्द के |
शासन मे,राजा,प्रजा के मध्य यू चलते सिलसिले |
कभी पुष्पित पल्लवित होते कभी मुरझाते |
परिवार,समाज,देश मे भी उन्नति पतन |
ईश्वर वभक्त के बीच के उदार भाव |
मानव व मानवधर्म के बीच उथल पुथल |
कभी रूकते नही अनवरत चलते रहेगे ये सिलसिले |
स्वरचित,,,,दमयंती मिश्रा
विषय ___सिलसिला |
सदियों से चलते ये ससिलसिले |
जन्म ,बचपन,युवा,वृद्धा वस्था मृत्यु |
खभी थमते नही अनवरत अनादि अंततक |
रिश्ते नातो के बीच कलह ,सौहार्द के |
शासन मे,राजा,प्रजा के मध्य यू चलते सिलसिले |
कभी पुष्पित पल्लवित होते कभी मुरझाते |
परिवार,समाज,देश मे भी उन्नति पतन |
ईश्वर वभक्त के बीच के उदार भाव |
मानव व मानवधर्म के बीच उथल पुथल |
कभी रूकते नही अनवरत चलते रहेगे ये सिलसिले |
स्वरचित,,,,दमयंती मिश्रा
तिथि 12/10/2019 /शनिवार
बिषय__सिलसिला
विधा॒॒॒ __क्षणिकाऐं
1)
बिष घोल सिलसिला
चल रहा अनवरत
सुखद फल किसको मिला
सब कुछ अंदर तक हिला।
2)
मौत बांट रहे
ईमान बेच रहे
गजब ढा रहे
बताऐं कब तक चलेगा
ये राग-द्वेष का सिलसिला
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय जय श्री राम रामजी
भा.शी. सिलसिला
क्षणिकाऐं
बिषय__सिलसिला
विधा॒॒॒ __क्षणिकाऐं
1)
बिष घोल सिलसिला
चल रहा अनवरत
सुखद फल किसको मिला
सब कुछ अंदर तक हिला।
2)
मौत बांट रहे
ईमान बेच रहे
गजब ढा रहे
बताऐं कब तक चलेगा
ये राग-द्वेष का सिलसिला
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय जय श्री राम रामजी
भा.शी. सिलसिला
क्षणिकाऐं
दिनांक १२/१०/२०१९
शीर्षक-"सिलसिला"
कसक है जो दिल में
चलो निकालते हैं आज
आहृलादित हो सबके साथ
फिर खुशियाँ मनाते हैं आज।
बात बात में रूठना मनाना
होती नहीं है अच्छी बात
कुछ अपनी कहे, कुछ उनकी सुने
खत्म करें शिकवा ये आज।
बनी रहे मिठास हमेशा
करने होंगे कुछ प्रयास
आगाज किया जो अच्छे कर्मों का
टूटे ना सिलसिला ये आज।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक-"सिलसिला"
कसक है जो दिल में
चलो निकालते हैं आज
आहृलादित हो सबके साथ
फिर खुशियाँ मनाते हैं आज।
बात बात में रूठना मनाना
होती नहीं है अच्छी बात
कुछ अपनी कहे, कुछ उनकी सुने
खत्म करें शिकवा ये आज।
बनी रहे मिठास हमेशा
करने होंगे कुछ प्रयास
आगाज किया जो अच्छे कर्मों का
टूटे ना सिलसिला ये आज।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
विषय-सिलसिला
विधा -पद्य
दिनांकः 12:10:2019
शनिवार
आज के विषय पर मेरा प्रयास:
जो अहंकार रावण में था ,
वह आज निरंतर जारी है ।
किया जो चीरहरण दुशासन ने,
आज भी सहती नारी है ।।
चला आ रहा युगों से ,
यह सिलसिला पुराना है ।
नारी उत्पीड़न हो रहा ,
अब सबको फिर समझाना है ।।
ज्यों अपहरण सीता हुआ,
अभी कहीं नहीं रूक रहा ।
ज्यों भीष्म पाॅन्डव मूक बने ,
बैठे आज आदमी चुप रहा ।।
कंस जैसे अत्याचार भी ,
सतत आज भी हो रहे ।
होता हर दिन खून खराबा,
कब किसी को फिक्र रहे ।।
कब खत्म होगा यह सिलसिला,
कब पाप घड़ा ये भरता है ।
अवतार लेकर पाप मिटाने ।
कब ईश्वर थरा उतरता है ।।
स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर
(डॉ नरसिंह शर्मा 'निर्भय ,जयपुर)
चयन के लिए
विधा -पद्य
दिनांकः 12:10:2019
शनिवार
आज के विषय पर मेरा प्रयास:
जो अहंकार रावण में था ,
वह आज निरंतर जारी है ।
किया जो चीरहरण दुशासन ने,
आज भी सहती नारी है ।।
चला आ रहा युगों से ,
यह सिलसिला पुराना है ।
नारी उत्पीड़न हो रहा ,
अब सबको फिर समझाना है ।।
ज्यों अपहरण सीता हुआ,
अभी कहीं नहीं रूक रहा ।
ज्यों भीष्म पाॅन्डव मूक बने ,
बैठे आज आदमी चुप रहा ।।
कंस जैसे अत्याचार भी ,
सतत आज भी हो रहे ।
होता हर दिन खून खराबा,
कब किसी को फिक्र रहे ।।
कब खत्म होगा यह सिलसिला,
कब पाप घड़ा ये भरता है ।
अवतार लेकर पाप मिटाने ।
कब ईश्वर थरा उतरता है ।।
स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर
(डॉ नरसिंह शर्मा 'निर्भय ,जयपुर)
चयन के लिए
सिलसिला
हरिगीतिका छन्द
विधान 28 मात्रा
गागालगा गागालगा गागालगा गागालगा
समीक्षा हेतु
***
नफरत नहीं उर में रखें, अब प्रेम की बौछार हो।
इक दूसरे की भावना का अब यहाँ सत्कार हो।।
अब भाव की अभिव्यक्ति का,ये सिलसिला है चल पड़ा।
ये लेखनी सच लिख सके ,जलते वही अँगार हो ।।
ये रूठने का सिलसिला क्यों आप अब करने लगे ।
अनुराग से आप'को मनाने का हमें अधिकार हो।
जीवन चक्र का सिलसिला यूँ अनवरत चलता रहा
सद्भावना अरु प्रेम से प्रतिदिन यहाँ त्यौहार हो ।
बेकार बातों की बहस का सिलसिला क्यों हो रहा ।
सम्मान करना युगपुरुष का अब सदा आचार हो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
हरिगीतिका छन्द
विधान 28 मात्रा
गागालगा गागालगा गागालगा गागालगा
समीक्षा हेतु
***
नफरत नहीं उर में रखें, अब प्रेम की बौछार हो।
इक दूसरे की भावना का अब यहाँ सत्कार हो।।
अब भाव की अभिव्यक्ति का,ये सिलसिला है चल पड़ा।
ये लेखनी सच लिख सके ,जलते वही अँगार हो ।।
ये रूठने का सिलसिला क्यों आप अब करने लगे ।
अनुराग से आप'को मनाने का हमें अधिकार हो।
जीवन चक्र का सिलसिला यूँ अनवरत चलता रहा
सद्भावना अरु प्रेम से प्रतिदिन यहाँ त्यौहार हो ।
बेकार बातों की बहस का सिलसिला क्यों हो रहा ।
सम्मान करना युगपुरुष का अब सदा आचार हो ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
को समर्पित
दिनांक:12/10/2019
विधा:हाइकु
विषय:सिलसिला
काव्य लेखनी
सिलसिला विधाएँ
बिद्यार्थी बन।
रिश्ते दरके
गुस्ताख सिलसिला
ड्योढ़ी रोई।
अभिनन्दन
सिलसिला हो प्रेम
तूफानी मन।
देह व्यापार
हर युग की व्यथा
क्यूँ सिलसिला ।
शिक्षित बेटी
सिलसिला दहेज
जर्जर बेदी।
सिलसिला था
बारिश घनघोर
चिंतन बैठा।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
दिनांक:12/10/2019
विधा:हाइकु
विषय:सिलसिला
काव्य लेखनी
सिलसिला विधाएँ
बिद्यार्थी बन।
रिश्ते दरके
गुस्ताख सिलसिला
ड्योढ़ी रोई।
अभिनन्दन
सिलसिला हो प्रेम
तूफानी मन।
देह व्यापार
हर युग की व्यथा
क्यूँ सिलसिला ।
शिक्षित बेटी
सिलसिला दहेज
जर्जर बेदी।
सिलसिला था
बारिश घनघोर
चिंतन बैठा।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव लखनऊ उत्तर प्रदेश
उसके और मेरे बीच प्यार
का शुरू सिलसिला हो गया।
दिल से दिल मिले और
हम दोनों के प्यार का
अफसाना बन गया,
कुछ इस तरह उसके
और मेरे प्यार का शुरू
सिलसिला हो गया।
आँखों से आँखें मिलीं
और हम दोनों का दिल
एकदूजे में खो गया, मैं
उसकी और वो मेरा हो
गया, कुछ इस तरह उसके
और मेरे प्यार का शुरू
सिलसिला हो गया।
साँसों से साँसें मिलीं और हम
दोनों का दिल ज़ोर ज़ोर से
धड़कने लगा और देखते ही
देखते इस प्यार का सिलसिला
बढ़ता गया, कुछ इस तरह
उसके और मेरे प्यार का
शुरू सिलसिला हो गया।
रौशनी अरोड़ा 'रश्मि'
का शुरू सिलसिला हो गया।
दिल से दिल मिले और
हम दोनों के प्यार का
अफसाना बन गया,
कुछ इस तरह उसके
और मेरे प्यार का शुरू
सिलसिला हो गया।
आँखों से आँखें मिलीं
और हम दोनों का दिल
एकदूजे में खो गया, मैं
उसकी और वो मेरा हो
गया, कुछ इस तरह उसके
और मेरे प्यार का शुरू
सिलसिला हो गया।
साँसों से साँसें मिलीं और हम
दोनों का दिल ज़ोर ज़ोर से
धड़कने लगा और देखते ही
देखते इस प्यार का सिलसिला
बढ़ता गया, कुछ इस तरह
उसके और मेरे प्यार का
शुरू सिलसिला हो गया।
रौशनी अरोड़ा 'रश्मि'
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