Monday, November 4

"समीर/पवन/हवा"24अक्टुबर 2019

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ब्लॉग संख्या :-545
दिनांक-24.10.2019
शीर्षक- समीर/पवन/हवा

विधा- क्रमशः जुदा-जुदा
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(01 )समीर *दोहा मुक्तक*
प्रियवर ! तेरे दीद से,चाहत बहा समीर ।
यह उर मम घायल हुआ,उठी विरह की पीर।।
विचलित सारी वृत्तियाँ,लगीं उगलने आह ,
समझ नहीं आता मुझे,कैसे राखों धीर ।।
(02)पवन*मुक्तक*
चले आइए टुक इधर कान्ह प्यारे,
मुरादों का तेरी पवन बह रहा है ।
महफ़िल सजी है कि यादों की दिल में,
तुम्हीं मेरे सब कुछ भजन कह रहा है।।
नहीं मुझको सूझें हसीं जग की राहें,
मुझे तेरी बंशी ने जग भर भुलाया,
दिल का ये अहवाल आकर मिलेगा,
बिना तेरे कैसे अमन रह रहा है ।।
(03)हवा *कुण्डलिया छन्द*
आई पश्चिम की हवा,खींच गई प्राचीर ।
आकर भारत देश की,यह बदली तसबीर।।
यह बदली तसबीर,जुड़ी अंग्रेजी कल्चर ।
जाति धर्म का चक्र,कर दिया उसको पंचर।।
पहनावों में खलल,सिमटती खादी पाई ।
तहस-नहस सब खेल,हवा पश्चिम की आई।।
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'अ़क्स' दौनेरिया

विषय समीर,पवन,हवा
विधा काव्य

24 अक्टूबर 2019,गुरुवार

षड ऋतुओं का अद्भुत संगम
जग जीवन समीर पर निर्भर।
हर प्राणी गिनती की श्वास ले
जीवित रहता इसी धरा पर।

पवन देव मलय पवन नित
जग सारा सुरभित करता है।
सदा समीर से आस लगाकर
धरा कृषक विपदा हरता है।

सागर में सुनामी प्रचण्ड
दुनियां में भूचाल मचाता।
नगर गाँव और शहरों में
विनाश लीला को फैलता।

धरती धधके ग्रीष्म ऋतु में
लू पवन के चलते झौंखे।
सनन सनन सन चले हवाएं
कौन जाड़े में इनको रोके?

स्वरचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
हांक ले गया
पवन गड़रिया
मेघ रेवड़


बैठा बादल
पवन कांधे पर
घूमे संसार

हवा का झोंका
है जीवन या मृत्यु,
दीप के लिए

हवा गुजरी
बांस के हृदय में
बजी बांसुरी

करता गिला
हवा में प्रदूषण,
चैन स्मोकर

तिथि _24/10/2019/गुरुवार
विषय _समीर/हवा/पवन/वयार

विधा॒॒॒ _काव्य /छंदमुक्त

चले पवन प्रभु कुछ ऐसी,
नहीं कोई दीप बुझ पाये।
जलते रहें चिराग हर घर में,
न निर्धन का मन बुझ पाये।

शीतल मंद सुगंध समीर वहे
मलयालज खुशबू महकायें।
प्रेम प्रीत की वयार वहे जब
हर जन मनमंदिर हुलषायें।

उडें वैरभाव जाऐं झोंके में,
भगवन कहीं ऐसी हवा चले।
मनमीत मिले हमें मनमोहन,
कभी तो सुहावन हवा मिले।

यह धुंध मिटे आतंकवाद की
जो वहके हो वापस आ जायें।
बोलें प्रेम से जय हे मां भारती
तब सब चैन की सांस ले पायें।

स्वरचित
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी 'अजेय' मगराना गुना मध्य प्रदेश
24/10/2019
विषय-हवा/पवन/समीर
िधा-मुक्त
===============

आज सुबह मैं ज़रा जल्दी उठ गई
दिल में सैर करने की प्रबल इच्छा हुई
सुबह की गुलाबी ठंडी हवा से
आज दिल की बातें खूब हुईं

प्रातःकालीन ताज़ी हवा से मानो
चेतना की खिड़कियां खुल गईं..!!

मदमाता सौरभ समीर
झर झर झरने का नीर,
श्यामल जमुना का तीर
हृदय में शांति की अनुभूति हुई

प्रातःकालीन ताज़ी हवा से मानो
चेतना की खिड़कियां खुल गईं..!!

ज्यूँ अदना सा बीज
पौधा बनने को चाहे
थोड़ी ऊष्मा,थोड़ा नीर
थोड़ी परवाह, मंद समीर
बस इतने भर से अंकुर को
विराट वटवृक्ष बनने की राह मिल गई

वैसे ही दिल की बगिया चाहे
थोड़ी सी ऊष्मा,पवन का झोंका
थोड़ा स्नेह, अतीव विश्वास
प्रकृति का सानिध्य पाकर
अनायास मेरे दिल की कली खिल गई

प्रातःकालीन ताज़ी हवा से मानो
चेतना की खिड़कियां खुल गईं..!!

सुरभित मलयज मंद समीर बहे
नील गगन में पंछी उड़े
पीत पुष्प शोभित उपवन में
पंछियों का कलरव,
कोकिल का मधुर गान सुन
तन मन अंतर्मन में
मदहोशी सी छा गई ।।

प्रातःकालीन ताज़ी हवा से मानो
चेतना की खिड़कियां खुल गईं..!!

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®
सभी मित्रों को नमन 🙏🙏

िषय - पवन /समीर /हवा
दिनांक - 24/10/2019

(सुधार अपेक्षित 🙏)

गुनगुनी सी धूप अब होने लगी।
शबनमी यादें अंतस छूने लगी।

भींगती हैं नर्म - नर्म दूव अब,
तृप्त होती भाव सुधा पीने लगी।

तन से जो अब छू रहा शीतल समीर,
अनुभूतियों की गुदगुदी होने लगी।

सिंदूरी सी हो उठी है साँझ अब,
मन में कहीं हरशृंगार कली झरने लगी।

धानी चुनर लहरा उठी सृष्टि की 'उषा',
मन में नव उमंग की ब्यार सी बहने लगी।

स्व रचित
डॉ उषा किरण
पूर्वी चंपारण, बिहार
24/10/2019
नमन मंच भावों के मोती समूह,गुरूजनों, मित्रों।


शीतल बहै समीर सखी री।
.......मन हुए आह्लादित।
भ्रमर पुष्प पर गुंजन लागे।
.......पाने को मकरन्द।

पवन नहीं जब बहै सखी री।
....... व्याकुल होवै तन मन।
मुश्किल होवै श्वांस लेवन में।
.......मनचित्त में नहीं आनन्द।

हवा‌ जरूरत है सबकी।
.......जो भी हैं सजीव।
श्वांस के लिए है बहुत जरूरी।
.......मन में भरे उमंग।

पत्ते जब हिलते हैं पेड़ों पर।
........ पशु पक्षी खुश होते हैं।
सबके लिए है हवा जरूरी।
......... प्राणवायु इसीसे मिलते हैं।

......... वीणा झा........
.... बोकारो स्टील सिटी....
......... स्वरचित........

24/10/2019
शीर्षक-समीर

विधा- चौपई छंद
मात्रा भार-15
अंत- गुरु लघु

चलती शीतल मंद समीर।
हरती सबके मन की पीर।

हिम का आलय पहरेदार,
धरणी मन में धरती धीर।

वैदेही के उर में राम,
भरा रहे आंखों में नीर।

मर्यादा के पालनहार,
जय रघुनंदन जय रघुवीर।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
24/10/2019
"पवन/समीर/हवा"

✍️✍️
स्वार्थ की चली जो हवा
दुनिया का रुप बदल रहा
इंसानियत को ये ले उड़ा
दया धर्म कहीं खो गया।
✍️✍️
आधुनिकता की हवा में
हमारे युवा वर्ग बह रहे
अपने संस्कार छोड़कर
पश्चिम दिशा को बढ़ रहे।
✍️✍️
अपने मन के आँगन में
प्रेम का दीप जलाया था
हवा का झोंका आया था
प्रेम की लौ बुझाना चाहा
लेकिन बुझा न पाया था।
✍️✍️
जाने कैसी हवा चली
तन-मन में आग लगी
ख्वाबों में मैं यूँ उलझी
पता ही न चला......
कब सुबह से शाम हुई।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
24/10/2019
गुरुवार

विषय समीर/ पवन/ हवा

दिल मेरा कह रहा...
मंद समीर बह रहा...
मुहब्बत भरी....
शरारत हरी....
मौसम में खो न जाएं...
चलो अब घर लौट जाये....

वो नज़ारा सुहाना.....
वो मदमस्त ज़माना....
घटा दोपहरी....
यादें सुनहरी.....
हमको फिर से बुलाएं....
चलो अब घर लौट जाएं....

दिल है मचलता....
हजारों उछलता....
शोख़ कलियां....
झुमती डालियां.....
सौ सौ ख्वा़ब दिखाएं....
चलों अब घर लौट जाये...

याद है अबतक....
मीत थे हमतुम....
तुम्हारा मुस्कुराना....
मेरा लिपट जाना....
दिल में आग लगाए.....
चलो अब घर लौट जाये...।

स्व रचित डॉ.विभा रजंन(कनक)
विषय - समीर /पवन/ हवा
दिनांक 24-10 -2019
हवा ने छू कर मुझे,अहसास उसका करवाया।
ऐसा हुआ मदहोश,फिर होश में ना आया ।।

उसकी कल्पना कर,मैं खयालों में ऐसे खोया।
बैठे बैठे ही मैं उसे याद कर,गहरी नींद सोया।।

हौश जब मुझे आया,अजीब खुमार छाया।
एक हवा ने देखो,मुझे स्वर्ग एहसास कराया।।

देख चेहरा मेरा,जाने क्या अनुमान लगाया।
मुझे भी नहीं पता, कोई दिल को इतना भाया।।

वो हवा एहसास,मैं न कभी भी बिसरा पाया।
कुछ पल ही सही,मैंने जिंदगी का सुख पाया।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

विषय -पवन /हवा/समीर
24/10/19

गुरुवार
दोहे

पंचभूत में पवन का , होता अधिक महत्त्व।
जिनसे मानव को मिला , भू पर जीवन-तत्त्व।।

आतप से तपकर मनुज, होता अधिक अधीर।
शीतल मंद पवन हरे , उसके तन की पीर।।

पवन - वेग से झूमती , वृक्षों की हर डाल।
रक्तिम-कोंपल गुच्छ छवि,लगे पुष्प की माल।।

प्रातः झोंका पवन का ,मन पुलकित कर जाय।
नवल -भाव सौन्दर्य से , जीवन में रस आय।।

पवन सिखाता है हमें, रखें पुनीत विचार ।
परहित को ही मान लें , जीवन का आधार।।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
सादर नमन
हवा
खुली हवा में

साँस लेने की
आज लगी है
बड़ी तलब
आईये, जनाब
मुट्ठीभर ताजी हवा
पेश है, बा-अदब
हँसिये, गुनगुनाइए
धुआँ उड़ाइए
आज मुफ्त है
तो छककर लुत्फ उठाइए
हो सकता है
कल से ये
आम न हो
या महंगी ही इतनी हो जाए
कि
खरीदने के लिए
आपके पास दाम न हो
-©नवल किशोर सिंह
24-10-2019
स्वरचित
पवन/समीर/हवा
द्वितीय प्रस्तुति

स्वार्थ की‌ हवा चली कुछ ऐसी।
कि भाई भाई को पहचाने ना।
जान के दुश्मन बन गये एक दूजे के।
स्वार्थ के सिवा कुछ जाने ना।

मां बाप की बेच दी संपत्ति।
खुद कुछ काम कर नहीं सका।
दिन-रात लड़ाई झगड़ा करते।
इसके सिवा कुछ जाने ना।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
25/10/2019

बह रही शीतल हवा
तन मन को भिगोती
मौन भाषा से हरष
करती आनंदित
बादलो के संग
बहती बन समीर
होती निराली अदाए
ले पवन को झूम जाते मेघ
हो प्रफुल्लित वृक्ष
पट पादप ओर लताये
गीत गाते है सुरीले
तन मन भी गया उठते
है गीत मिलन के
प्रकृति की अदभुत छटा
नृत्य करती हो
आनंदित
रे पवन तू रोज आना
गीत गाने के लिए

शोर्षक-हवा/ समीर/पवन

सुरभित समीर तैरी यादों का
मेरी सांसों में,अहर्निश बहता‌ रहता है।
चाहे कितना दूर रहो तुम मुझसे
मेरे मनमंदिर का, नेह दीप नहीं बुझता है।।

महसूस करती हूं पल-पल तुम्हें
जाने क्या हो गया है आजकल मुझे
पलकों में तेरा ही अक्श रहता है।

बैठी रहती,अक्सर तुझसे लिपटी हुई
बातें करती,अक्सर बहकी-बहकी सी
जवाना मुझको दीवाना कहता है।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
विषय- हवा,समीर,पवन
दि. गुरुवार/24-10-19

विधा ---दोहे
1.
नित्यगीत, वायु व पवन,समीर और बयार।
हवा,मरुत सब एक हैं, जान गया संसार ।।
2.
वायु प्रदूषण से घिरे, पीड़ित हैं सब लोग।
शुद्ध वायु अरु जल मिले, बने जिन्दगी भोग।।
3.
बिना वायु जीवन कठिन, सदा रखें ये ख्याल।
वायु प्रदूषण मुक्त हो,दूर हटे जंजाल।।
4.
पिता तरक्की का सफर, सुख की सुखद समीर।
पिता सदा हरते रहे, घर बाहर की पीर।।

******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551

नमन् भावों के मोती
24/10/19
विषय हवा

विधा हाइकु
1
सर्द हवा में
कांपती हथेलियां-
ट्रेन सफ़र
2
गर्म हवा में
स्वेद पोंछता यात्री-
गर्मी के दिन
3
शीतल हवा
एयर कंडीसन-
मध्याह्न वक्त
4
पानी पट्टियां
तपते शरीर में-
पंखे की हवा
5
उड़ती धूल
आँखों में आके पड़ी-
पवन संग
6
हवा उघारे
बसन बदन से-
आँख में आँसू

मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित

24अक्टूवर19गुरुवार
विषय-समीर/हवा/पवन

विधा-हाइकु💐💐💐💐💐💐💐💐💐
(१)
नवतपा में
हवा को लगी है लू
भागा,छाँव-छू👌
💐💐💐💐💐💐
(२)
तन-बदन
आग लगा चल दी
बासन्ती हवा👍
💐💐💐💐💐💐
(३)
शीत-लहर
कंपकंपाती हवा
ढाए कहर💐
💐💐💐💐💐💐
(४)
चला पवन
पुरवाई लेकर
राग मल्हार🎂
💐💐💐💐💐💐
(५)
हवा हो जाए
मुख मोड़ो पाक से
आतंकवाद💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला

दिनांक-२४/१०/२०१९
शीर्षक-"हवा",समीर"


शुद्ध हवा के लिए तरस गया इंसान
खूब प्रदुषित किये पर्यावरण,
फिर हुए परेशान।
मिली हवा जो मुफ्त में,
किये नही परवाह
बनस्पति सब उजाड़ कर
हो रहे बिमार
हवा -पानी बदलने को दिये
चिकित्सक सलाह,
शुद्ध हवा जो घर पर मिले
क्यों पड़े बिमार?
हवा की रूख देखकर
करें जो हम काम
आधी सफलता हाथ में
काम हो आसान।
दिनांक 24/10/2019
विधा:हाइकु

विषय :हवा/वायु/पवन

हवा का झोंका
सूरज था निस्तेज
सर्दी आगोश

धूलिया हवा
असह वृद्ध वृक्ष
निढाल गिरे ।

शीतल हवा
ऊर्जा करे संचार
प्रेम प्रमोद ।

वायु प्रवाह
जीवन का प्रमाण
सांस है आस ।

दूषित वायु
पर्यावरण सोच
हरित क्रांति ।

बर्फीली हवा
श्वेत चादर ओढे
पर्वत खडे।

औद्योगीकरण
गरल काली हवा
घुटती साँस ।

कश्मीर घाटी
बादल की घटाएँ
गुलाबी हवा।

होली के रंग
मदमस्त फुहार
हवा रंगीन।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव


स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
विषय-समीर /पवन/हवा
दिनांकः 24:10 :2019

गुरूवार
विधा-पद्य
आज के विषय पर मेरी रचना:

मंद मंद शीतल पवन,
मन को हर्षित करती।
खेत खलिहान लहलहाते,
जीवन में रस यह भरती ।।

मस्त मस्त सुगंधित वायु,
माहौल खुश नुमा करती ।
चाहत की जब चले हवा,
मन रोमांचित यह करती ।।

है प्राण वायु हर जीव की,
सबको जीवन यह देती ।
बिना पवन के कभी भी,
कोई साॅस नहीं चलती।।

इसके बिना न दीप जले,
न ही पावक कभी जलती।
सबकी शक्ति यही होती,
यही प्राणों का बल बनती ।।

है जो अशुद्ध खून मानव का,
शुद्ध सदा यही करती ।
जब मानव तन को न मिले,
तब उसकी साॅसे थमती ।।

शीत में होती शीत लहर,
गर्मी में यह लू बनती ।
जब चलती यह वेग से,
आॅधी तूफान यह बनती ।।

ज्वार भाटा सागर में,
यही लेकर हमेशा आती,
जब आती पुरजोर से ,
उथल पुथल मच जाती ।।

मानव की हवा जब बदले,
चाल चरित्र बदल जाता ।
सदा रहो सद मार्ग पर ,
क्यों गलत हवा रूख करता ।।

हवा का रूख मोड़ कर ,
नेता हारी बाजी जीत जाता ।
बदल गई यदि हवा कभी,
झोंके के संग उड जाता ।।

अपने से बलवान देखकर,
सिट्टी पिट्टी गुल हो जाती ,
जब भी आता सवा शेर ,
शेर की हवा निकल जाती।।

स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर
(डॉ नरसिंह शर्मा 'निर्भय ,जयपुर)
भावों के मोती
विषय-समीर/हवा/पवन

_______________________
तेरे आने की आहट से,
हवाओं में सरगम गूँज उठी।
बालों की लट झूमी लहराई,
हौले से गालों को चूम गई।

पवन झकोरे झूम-झूम के,
संदेशे तेरे सुनाने लगी।
मैं पगली भी झूम-झूम के,
पुरवा राग सुनाने लगी।

शीतल मंद बयार बहकर,
तन को मेरे सहलाने लगी।
झूम रही पेड़ों की डाली,
चूनर हवा में लहराने लगी।

धड़क उठा है यह दिल मेरा,
कानों के झुमके झूम उठे।
खनक-खनक हाथों से कंगना,
मन के भावों को बोल गए।

छमक-छमक के छमक उठी,
पैजनियाँ मेरे पांव की।
माथे की बिंदिया दमक उठी,
तेरे कदमों की ज्यों आहट सुनी।
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित

24 /10/2019
बिषय,, समीर/पवन //हवा

अबकी हवा का रुख है उस ओर
नव नव पहनावा फैशन का दौर
बहू बेटी में.नहीं कोई अंतर
बेटी बेटों से हैं बढ़चढक़र
2,,
शीतल शीतल मंद समीर बह रही है
धीरे धीरे कानों में कुछ कह रही है
अबके बरष शीत लहर जो आएगी
ठिठुर ठिठुर बहुत सताएगी
3
पवन
ओ इठला के चलने वाली पवन
जरा धीमे धीमे से बहना
सीमा पर खड़े जो प्रहरी
मेरा संदेशा जाकर के कहना
उनकी सलामत के दीपक
ईश्वर के सामने मैं जलाउंगी
सदा सुरक्षित प्रसन्न रहो मैं
अपने इष़्ट को मनाऊंगी
ईमान धर्म से फर्ज निभाना
माता पिता के हृदय में खुशी के दीप जलाना
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
दिनांक-24/10/2019
विषय-हवा


मैं हवा हूँ हवा
बहना जानती
तुम से कहना चाहती
पंचतत्व का एक अंग
मानवी संरचना लिए संग
साँसों का दान
जीवों का विज्ञान
प्राणवायु मै महान
धूल उड़ाती
रंग जमाती
ख़ुशबू महकाती
बीजरोपण करती
मैं हवा हूँ हवा ।
पेड़ पौधे जन्माते
पत्ता पत्ता लहराते
वन उपवन महकाते
पाखी कलरव करते
सरसता संदेश देते
मैं हवा हूँ हवा
देश सीमा दीवार नहीं
बाधित होना स्वीकार नही
ज़र्रे ज़र्रे में मेरा राज
अॉक्सीजन देना काज
अमीर ग़रीब प्रिय
पहाड़ मैदान भाते
मैं हवा हूँ हवा ।

स्वरचित
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘

24/10/2019
हाइकु(5/7/5)
हवा
****************
(1)
कानों का स्पर्श
मौसम की चुगली
करती हवा
(2)
अँगुली सँग
बाँसुरी रँगमंच
नाचती हवा
(3)
सूखे को देख
पवन घोड़े बैठ
आ गये मेघ
(4)
गंध सवार
हवा की पीठ पर
छेड़ती नाक
(5)
दिखे ना टिके
मौसम की गोद में
हवाएँ खेले

स्वरचित
ऋतुराज दवे

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