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ब्लॉग संख्या :-551
आज का विषय, अर्थ
दिन, बुधवार
दिनांक, 30,10,2019.
मानव जीवन के बने हुए हैं , चार प्रमुख ही स्तंभ,
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, हमको जीना है इनके ही संग ।
सतयुग, द्वापर, त्रेता, कलियुग हर युग में रहते यही प्रसंग,
मानव जीवन को मिलता सदा इनसे ही संतुलित रंग ।
अर्थ शब्द विस्तृत बड़ा करता हमें हमेशा ही है ये दंग ,
कहीं - कहीं तो ये कर गया है इंसानी जीवन को बदरंग ।
समझदार है सबसे बड़ा वह जो समझ सके इसके ढंग ,
होता है सफलतम वही रहे पास में उत्साह और उमंग ।
स्वरचित , मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
दिन, बुधवार
दिनांक, 30,10,2019.
मानव जीवन के बने हुए हैं , चार प्रमुख ही स्तंभ,
धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, हमको जीना है इनके ही संग ।
सतयुग, द्वापर, त्रेता, कलियुग हर युग में रहते यही प्रसंग,
मानव जीवन को मिलता सदा इनसे ही संतुलित रंग ।
अर्थ शब्द विस्तृत बड़ा करता हमें हमेशा ही है ये दंग ,
कहीं - कहीं तो ये कर गया है इंसानी जीवन को बदरंग ।
समझदार है सबसे बड़ा वह जो समझ सके इसके ढंग ,
होता है सफलतम वही रहे पास में उत्साह और उमंग ।
स्वरचित , मीना शर्मा, मध्यप्रदेश
दिनांक.. 30/10/2019
शीर्षक .. अर्थ
************************
क्या अर्थ नयनों के तेरे , भाव का बतला प्रिये।
यू उठ रहे अरू गिर रहे, मनभाव तू बतला प्रिये॥
क्यो नयन नयनों मे समा, कुछ अलग अर्थ बता रहे,
मन शेर का चंचल है क्यो, ये बात भी बतला प्रिये।
हाँ बात ये बतला प्रिये...
***
क्यो कामना की भावना, अन्तःहृदय मे जग रहे।
क्यो दिन सुहाने लग रहे, अरू रात मेरी जग रहे।
आ भावों के मोती पिरों के, मै करू श्रृँगार सब,
यह भाव तुमको देख करके, हर समय ही जग रहे।
हाँ हर समय ही जग रहे....
***
है बावडी नयना हुए, जो नीर से है भरे हुए।
सब पूछते है अर्थ पर , निःशब्द से बने हुए।
तुम पढ लो मन की भावना, जो भाव से भरे हुए,
कुछ अर्थ है इसमे भरें, जो सिर्फ है तेरे लिए।
हाँ सिर्फ है तेरे लिए......
***
शेर सिंह सर्राफ
शीर्षक .. अर्थ
************************
क्या अर्थ नयनों के तेरे , भाव का बतला प्रिये।
यू उठ रहे अरू गिर रहे, मनभाव तू बतला प्रिये॥
क्यो नयन नयनों मे समा, कुछ अलग अर्थ बता रहे,
मन शेर का चंचल है क्यो, ये बात भी बतला प्रिये।
हाँ बात ये बतला प्रिये...
***
क्यो कामना की भावना, अन्तःहृदय मे जग रहे।
क्यो दिन सुहाने लग रहे, अरू रात मेरी जग रहे।
आ भावों के मोती पिरों के, मै करू श्रृँगार सब,
यह भाव तुमको देख करके, हर समय ही जग रहे।
हाँ हर समय ही जग रहे....
***
है बावडी नयना हुए, जो नीर से है भरे हुए।
सब पूछते है अर्थ पर , निःशब्द से बने हुए।
तुम पढ लो मन की भावना, जो भाव से भरे हुए,
कुछ अर्थ है इसमे भरें, जो सिर्फ है तेरे लिए।
हाँ सिर्फ है तेरे लिए......
***
शेर सिंह सर्राफ
अर्थ
नमन मंच भावों के मोती समूह गुरूजनों,
मित्रों।
एक हीं शब्द के अलग-अलग अर्थ होते हैं।
यह अपनी अपनी सोच है।
जब भी बोलो सोच समझकर बोलो।
अर्थ के अनर्थ भी होते हैं।
मीठी वाणी में निकले जो शब्द।
वे शब्द कर्णप्रिय होते हैं।
गर थोड़ा उल्टा भी होता है अर्थ।
पर सुनने वाले शान्तचित्त रहते हैं।
जीवन है दो दिनों का।
इसको सही अर्थों में जियो।
ऐसे कुछ काम करो धरती पर।
औरों के लिए भी कुछ सीख छोड़ो।।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन मंच भावों के मोती समूह गुरूजनों,
मित्रों।
एक हीं शब्द के अलग-अलग अर्थ होते हैं।
यह अपनी अपनी सोच है।
जब भी बोलो सोच समझकर बोलो।
अर्थ के अनर्थ भी होते हैं।
मीठी वाणी में निकले जो शब्द।
वे शब्द कर्णप्रिय होते हैं।
गर थोड़ा उल्टा भी होता है अर्थ।
पर सुनने वाले शान्तचित्त रहते हैं।
जीवन है दो दिनों का।
इसको सही अर्थों में जियो।
ऐसे कुछ काम करो धरती पर।
औरों के लिए भी कुछ सीख छोड़ो।।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
प्रथम प्रस्तुति
🌷🌷🌷🌷🌷
सिर्फ शब्द ही अर्थ न देंय
नजरें भी देती हैं अर्थ ।
महबूबा की नजरें देखीं
कितनी अर्थ में थीं समर्थ ।
आज तलक हम अर्थ निकालें
मिले नही उनका ओर-छोर ।
कैसी थी वो नजर नशीली
रख गयी जो दिल को झकझोर ।
पहेली ही थी बूझता हूँ
बन जाती है ग़ज़ल रूबाई ।
गम में थोड़ा गा लेता हूँ
होय ज्यों वो गम की दवाई ।
अर्थ का तो न पता हो जो
मिरी ज़ीस्त को अर्थ मिला ।
चल रहा था 'शिवम' निरर्थक
शायरी का आज गुल खिला ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 31/10/2019
🌷🌷🌷🌷🌷
सिर्फ शब्द ही अर्थ न देंय
नजरें भी देती हैं अर्थ ।
महबूबा की नजरें देखीं
कितनी अर्थ में थीं समर्थ ।
आज तलक हम अर्थ निकालें
मिले नही उनका ओर-छोर ।
कैसी थी वो नजर नशीली
रख गयी जो दिल को झकझोर ।
पहेली ही थी बूझता हूँ
बन जाती है ग़ज़ल रूबाई ।
गम में थोड़ा गा लेता हूँ
होय ज्यों वो गम की दवाई ।
अर्थ का तो न पता हो जो
मिरी ज़ीस्त को अर्थ मिला ।
चल रहा था 'शिवम' निरर्थक
शायरी का आज गुल खिला ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 31/10/2019
विषय अर्थ
विधा काव्य
30 अक्टूबर 2019,बुधवार
हर शब्द का अर्थ अलग है
कभी अर्थ अनर्थ न करना।
काव्य मर्मज्ञ है प्रिय मित्रों
हितं भाव सुधा रस भरना।
दमके नित भावों के मोती
अर्थ गाम्भीर्य काव्य अद्भुत।
कवि कल्पना में कमनीयता
कमलासनी की दिखे सूरत।
अर्थ बिना जग असार है
सब मतलबी अर्थ के भूखे।
मंदी का चल रहा दौर यह
बेरोजगार सब रूखे सूखे।
अर्थव्यवस्था अति दयनीय
आय व्यय सब अति मन्दा।
जग जीवन मची खलबली
जैसे पड़ा हो गले में फंदा।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
30 अक्टूबर 2019,बुधवार
हर शब्द का अर्थ अलग है
कभी अर्थ अनर्थ न करना।
काव्य मर्मज्ञ है प्रिय मित्रों
हितं भाव सुधा रस भरना।
दमके नित भावों के मोती
अर्थ गाम्भीर्य काव्य अद्भुत।
कवि कल्पना में कमनीयता
कमलासनी की दिखे सूरत।
अर्थ बिना जग असार है
सब मतलबी अर्थ के भूखे।
मंदी का चल रहा दौर यह
बेरोजगार सब रूखे सूखे।
अर्थव्यवस्था अति दयनीय
आय व्यय सब अति मन्दा।
जग जीवन मची खलबली
जैसे पड़ा हो गले में फंदा।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
शब्द के अर्थ,
शब्द के मायने ।
ना कैसे बदल जाते ।
हम अपने अाप,
अनुकरन करते ।
और शब्द हमेशा,
अमर हो जाते ।
हम सरल भाषा में,
शब्द का अर्थ समझाते ।
शब्द का अर्थ समझते ।
जैसे कोई हाथ,
अनुकरनीय काम करते तो!
करकमल हो जाते ।
और पैर चलते,
सही राह पर तो !
चरण बन जाते ।
सोच उतरती,
विचारों में तो !
ग्रंथ,कविता,गजल,
बन जाते ।
जीसे हम सदियों तक,
गाते गुणगुनाते ।
@प्रदीप सहारे
शब्द के मायने ।
ना कैसे बदल जाते ।
हम अपने अाप,
अनुकरन करते ।
और शब्द हमेशा,
अमर हो जाते ।
हम सरल भाषा में,
शब्द का अर्थ समझाते ।
शब्द का अर्थ समझते ।
जैसे कोई हाथ,
अनुकरनीय काम करते तो!
करकमल हो जाते ।
और पैर चलते,
सही राह पर तो !
चरण बन जाते ।
सोच उतरती,
विचारों में तो !
ग्रंथ,कविता,गजल,
बन जाते ।
जीसे हम सदियों तक,
गाते गुणगुनाते ।
@प्रदीप सहारे
विषय _"अर्थ"
विधा॒॒॒ _काव्य
हर बात का अर्थ अलग है
अर्थ निरर्थक नहीं हो पाऐ।
जीवन में सबका महत्व है
समझें कुछ व्यर्थ नहीं जाऐ।
अर्थ व्यर्थ निकालते कुछ
बात बतंगड बहुत बनाते।
छुटपुट बातों में फंसाकर
आपस में झगड़े करबाते।
एक शब्द के अर्थ अनेक हैं
जब जी चाहे जो इसे मानले।
घडी शब्द में कितनी घड़ियाँ
सिर्फ उदाहरण इसे जान लें।
एक हलंन्त से मतलब बदले।
कहीं ज्वलंत से कुछ बदले।
हम समदर्शी भगवान पुकारें
तुम काने के रूप में बदले।
सोच समझकर भाषा बोलें।
कैसा समय देख कर बोलें।
अनपढ अनघढ अर्थ लगाकर
लट्ठ उठाकर सिर कहीं खोलें।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय मगराना गुना मध्य प्रदेश
"अर्थ "काव्य*
30/10/2019/ बुधवार
विधा॒॒॒ _काव्य
हर बात का अर्थ अलग है
अर्थ निरर्थक नहीं हो पाऐ।
जीवन में सबका महत्व है
समझें कुछ व्यर्थ नहीं जाऐ।
अर्थ व्यर्थ निकालते कुछ
बात बतंगड बहुत बनाते।
छुटपुट बातों में फंसाकर
आपस में झगड़े करबाते।
एक शब्द के अर्थ अनेक हैं
जब जी चाहे जो इसे मानले।
घडी शब्द में कितनी घड़ियाँ
सिर्फ उदाहरण इसे जान लें।
एक हलंन्त से मतलब बदले।
कहीं ज्वलंत से कुछ बदले।
हम समदर्शी भगवान पुकारें
तुम काने के रूप में बदले।
सोच समझकर भाषा बोलें।
कैसा समय देख कर बोलें।
अनपढ अनघढ अर्थ लगाकर
लट्ठ उठाकर सिर कहीं खोलें।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय मगराना गुना मध्य प्रदेश
"अर्थ "काव्य*
30/10/2019/ बुधवार
शीर्षक- अर्थ
कोई गहरा अर्थ छुपा है
तेरी सीधी-सादी बातों में।
समझ कर भी ना समझा
क्या कह गईं तू इशारों में।।
दिखती है बहुत भोली पर
है बहुत ही समझदार तू।
दुनिया चाहे कुछ भी कहे
दे दी ज़िन्दगी तेरे हाथों में।।
पल दो पल का साथ नहीं
जीवन भर का साथ चाहिए।
खुल कर अब इजहार करो
और सब्र नहीं इन बांहों में।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
कोई गहरा अर्थ छुपा है
तेरी सीधी-सादी बातों में।
समझ कर भी ना समझा
क्या कह गईं तू इशारों में।।
दिखती है बहुत भोली पर
है बहुत ही समझदार तू।
दुनिया चाहे कुछ भी कहे
दे दी ज़िन्दगी तेरे हाथों में।।
पल दो पल का साथ नहीं
जीवन भर का साथ चाहिए।
खुल कर अब इजहार करो
और सब्र नहीं इन बांहों में।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
दिन बुधवार
दिनाँक 30/10/19
विषय अर्थ
विधा कविता
अर्थ
अर्थ
चारों पुरुषार्थ में
प्रथम पुरुषार्थ है
अर्थ ,धर्म ,काम, मोक्ष
जीवन यात्रा के
अभिन्न अंग हैं
कौटिल्य नीति के अनुसार
अर्थ का व्यापक
अर्थ है
अर्थ में अनन्त
सामर्थ्य है
या यूँ कहे
अर्थ बिना जीवन व्यर्थ है।
रचनाकार
जयंती सिंह
दिनाँक 30/10/19
विषय अर्थ
विधा कविता
अर्थ
अर्थ
चारों पुरुषार्थ में
प्रथम पुरुषार्थ है
अर्थ ,धर्म ,काम, मोक्ष
जीवन यात्रा के
अभिन्न अंग हैं
कौटिल्य नीति के अनुसार
अर्थ का व्यापक
अर्थ है
अर्थ में अनन्त
सामर्थ्य है
या यूँ कहे
अर्थ बिना जीवन व्यर्थ है।
रचनाकार
जयंती सिंह
विषय -अर्थ
दिनांक 30 -10-2019अर्थ नहीं समझ,वो गलत अर्थ लगाते हैं ।
सोच के अनुरूप,अपना दिमाग चलाते हैं।।
अर्थ बिना सब व्यर्थ, समझ नहीं पाते हैं ।
बिन कही बात का भी,अर्थ वो लगाते हैं।।
राग द्वेष सब, इसी वजह से पैदा होते हैं ।
अर्थ का अनर्थ कर,अपनों से दूर जाते हैं ।।
अर्थ गागर में सागर भर,यश को पाते हैं।
समझदार ही,इस भाषा को समझ पाते हैं ।।
बाकी सब विवेकानुसार,अर्थ लगाते हैं।
मन मोती संग,इच्छानुसार माला पिरोते हैं।।
सकारात्मक सोच अपना,सही अर्थ लगाते हैं ।
इंसान वास्तव में, वही पूज्य बन जाते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 30 -10-2019अर्थ नहीं समझ,वो गलत अर्थ लगाते हैं ।
सोच के अनुरूप,अपना दिमाग चलाते हैं।।
अर्थ बिना सब व्यर्थ, समझ नहीं पाते हैं ।
बिन कही बात का भी,अर्थ वो लगाते हैं।।
राग द्वेष सब, इसी वजह से पैदा होते हैं ।
अर्थ का अनर्थ कर,अपनों से दूर जाते हैं ।।
अर्थ गागर में सागर भर,यश को पाते हैं।
समझदार ही,इस भाषा को समझ पाते हैं ।।
बाकी सब विवेकानुसार,अर्थ लगाते हैं।
मन मोती संग,इच्छानुसार माला पिरोते हैं।।
सकारात्मक सोच अपना,सही अर्थ लगाते हैं ।
इंसान वास्तव में, वही पूज्य बन जाते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
30/10/2019
"अर्थ"
कविता
################
जिंदगी यूँ ही जिये जा रहे हैं,
अर्थ ही ना समझ पा रहे हैं।
हम अर्थ उपार्जन की खातिर,
अंधी दौड़ लगाए जा रहे हैं।
सुख का अर्थ दौलत में ढूँढते,
मन की शांति लुटाए जा रहे हैं
शिकवे-गिले करते रहे उम्रभर
और प्रेम का अर्थ ढूँढें जा रहे हैं
दिवा सपनों में कभी खाबो में
अर्थहीन मन भटकाए जा रहे हैं।
भावना का अनादर हम करते रहे
अर्थ का अनर्थ निकाले जा रहे हैं।
मनुष्य जन्म का अर्थ जान लें तो
धरती अपनी स्वर्ग बन जाए।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"अर्थ"
कविता
################
जिंदगी यूँ ही जिये जा रहे हैं,
अर्थ ही ना समझ पा रहे हैं।
हम अर्थ उपार्जन की खातिर,
अंधी दौड़ लगाए जा रहे हैं।
सुख का अर्थ दौलत में ढूँढते,
मन की शांति लुटाए जा रहे हैं
शिकवे-गिले करते रहे उम्रभर
और प्रेम का अर्थ ढूँढें जा रहे हैं
दिवा सपनों में कभी खाबो में
अर्थहीन मन भटकाए जा रहे हैं।
भावना का अनादर हम करते रहे
अर्थ का अनर्थ निकाले जा रहे हैं।
मनुष्य जन्म का अर्थ जान लें तो
धरती अपनी स्वर्ग बन जाए।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
विषय :- अर्थ
दिनांक :- 30/10/19
अर्थ
****
तुम मेरे जीवन की परिभाषा
तुम मेरे दिल की हो आशा ,
तुम मेरे दिल में समाई हो,
तुम मेरे लिए ही आई हो,
तुम जीवन का शीतल रूप ,
तुम बिन जीवन जैसे धूप ,
तुम बिन जीवन व्यर्थ है,
मैं शब्द हूँ तुम्हारा,
तू मेरा अर्थ हैं।
उमा वैष्णव
मौलिक और स्वरचित
दिनांक :- 30/10/19
अर्थ
****
तुम मेरे जीवन की परिभाषा
तुम मेरे दिल की हो आशा ,
तुम मेरे दिल में समाई हो,
तुम मेरे लिए ही आई हो,
तुम जीवन का शीतल रूप ,
तुम बिन जीवन जैसे धूप ,
तुम बिन जीवन व्यर्थ है,
मैं शब्द हूँ तुम्हारा,
तू मेरा अर्थ हैं।
उमा वैष्णव
मौलिक और स्वरचित
विषय --अर्थ
दि.30-10-19/बुधवार
विधा --दोहा मुक्तक
1.
धन के पीछे भागते, इस दुनिया के लोग।
बढ़े गुलामी अर्थ की, बढ़े मानसिक रोग।
अर्थ जरूरी मनुज को, वही न जीवन सार --
डॉलर जेबों में भरे, भोगन चाहें भोग ।
2.
धन के जो हैं लालची, धन को खूब छिपाय।
अर्थ व्यर्थ गर जाय तो, उस दिन भूख सताय।
न पी सकें,न त खा सकें, धन पर बैठे नाग---
सोच सोच कर अंत में, सिर धुन कर पछताय।
******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
दि.30-10-19/बुधवार
विधा --दोहा मुक्तक
1.
धन के पीछे भागते, इस दुनिया के लोग।
बढ़े गुलामी अर्थ की, बढ़े मानसिक रोग।
अर्थ जरूरी मनुज को, वही न जीवन सार --
डॉलर जेबों में भरे, भोगन चाहें भोग ।
2.
धन के जो हैं लालची, धन को खूब छिपाय।
अर्थ व्यर्थ गर जाय तो, उस दिन भूख सताय।
न पी सकें,न त खा सकें, धन पर बैठे नाग---
सोच सोच कर अंत में, सिर धुन कर पछताय।
******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
30/10/2019/
बिषय,, अर्थ,,
जीवन का अर्थ जान लें
वक्त को पहचान लें
कटुता को लगाम दें
मानवता का पैगाम दें
बृद्धों को आराम दें
चंचलता को विश्राम दें
जरूरत से ज्यादा चले न अकल
जिंदगी हो जाएगी सफल
जीना तो बस उसी का जिसने जीने का अर्थ जाना
परोपकार परमोधर्मः जिसने माना
पर हित सरिस धर्म न दूजा
यही आराधना यही है पूजा
सत्कर्मों से परमेश्वर का संबंध
सद्व्यवहार से मन में आनंद
स्वरचित ,,सुषमा ब्यौहार
बिषय,, अर्थ,,
जीवन का अर्थ जान लें
वक्त को पहचान लें
कटुता को लगाम दें
मानवता का पैगाम दें
बृद्धों को आराम दें
चंचलता को विश्राम दें
जरूरत से ज्यादा चले न अकल
जिंदगी हो जाएगी सफल
जीना तो बस उसी का जिसने जीने का अर्थ जाना
परोपकार परमोधर्मः जिसने माना
पर हित सरिस धर्म न दूजा
यही आराधना यही है पूजा
सत्कर्मों से परमेश्वर का संबंध
सद्व्यवहार से मन में आनंद
स्वरचित ,,सुषमा ब्यौहार
नमन "भावों के मोती"🙏🏻
दिनांक-30/10/2019
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय :-"अर्थ"
(1)
नीति को फेंक
बदल गया अर्थ
अर्थ को देख
(2)
मथे विचार
मति ने किया श्रम
अर्थ बाहर
(3)
शिला में खिला
बतलाता सुमन
जीने का अर्थ
(4)
छोड़ा विचार
निकाल लिए अर्थ
स्वार्थानुसार
(5)
एक मात्रा से
बदल जाता अर्थ
हिंदी आहत
स्वरचित
ऋतुराज दवे
दिनांक-30/10/2019
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय :-"अर्थ"
(1)
नीति को फेंक
बदल गया अर्थ
अर्थ को देख
(2)
मथे विचार
मति ने किया श्रम
अर्थ बाहर
(3)
शिला में खिला
बतलाता सुमन
जीने का अर्थ
(4)
छोड़ा विचार
निकाल लिए अर्थ
स्वार्थानुसार
(5)
एक मात्रा से
बदल जाता अर्थ
हिंदी आहत
स्वरचित
ऋतुराज दवे
दिनांक- 30/10/2019
विषय- अर्थ
विधा- लघु कविता
***************
शब्द-शब्द की फेरूँ माला,
अर्थ बिना किस काम की,
शब्द-शब्द पे टिका ये जीवन,
अर्थ बिना जिन्दगी बस नाम की |
बिना अर्थ कोई शब्द नहीं,
कहीं शब्द हैं फूल समान,
कहीं शब्द है शूल समान,
अर्थ बिना ये धूल समान |
एक शब्द के कहीं हैं अर्थ,
जो न समझे जीवन व्यर्थ,
शब्दों का तो कोई अंत नहीं,
अर्थ बिना कोई मोल नहीं |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
विषय- अर्थ
विधा- लघु कविता
***************
शब्द-शब्द की फेरूँ माला,
अर्थ बिना किस काम की,
शब्द-शब्द पे टिका ये जीवन,
अर्थ बिना जिन्दगी बस नाम की |
बिना अर्थ कोई शब्द नहीं,
कहीं शब्द हैं फूल समान,
कहीं शब्द है शूल समान,
अर्थ बिना ये धूल समान |
एक शब्द के कहीं हैं अर्थ,
जो न समझे जीवन व्यर्थ,
शब्दों का तो कोई अंत नहीं,
अर्थ बिना कोई मोल नहीं |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
30-10-2019
विषय:-अर्थ
विधा :- पद्य
अर्थ ढूँढने जब भी निकली
अर्थ जिंदगी के निकले हैं ।
दिखे व्यर्थ की ही मरीचिका
अच्छे लम्हे सब फिसले हैं ।
अर्थ उपार्जन की चाहत में , ,
शब्द से अर्थ भिन्न हो गए ।
जीवन की संतुष्टि प्रेम धन ,
वो सम्बन्ध विछिन्न हो गए ।
अर्थ सर्प की बाँबी बैठा ,
विरहिणी को फुँकारें मारे ।
किंशुक के फूलों का वन भी ,
देख उसे अंगारे मारे ।
माया मीठी ठगिनी बन कर ,
फेंका करती अर्थ जाल को ,
सिद्ध तपस्वी योगी मुनि भी ,
समझे नहीं इस जंजाल को ।
सभी बुराइयों की जड़ अर्थ है ,
जन्म मस्तिष्क में है लेता ।
केवल स्वार्थ जनित रिश्तों से ,
सब रिश्तों की बलि है लेता ।
सब ज़रूरतों की करे पूर्ति ,
जीवन में अर्थ जरूरी होता ।
दुनियादारी के कामों में ,
अर्थ बड़ी मजबूरी होता ।
सब ऐश्वर्य अर्थ से मिलते , संतोष धन नहीं है मिलता ।
मिल जाती है ऊँची पदवी ,
आनंद धन नहीं है मिलता ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा
विषय:-अर्थ
विधा :- पद्य
अर्थ ढूँढने जब भी निकली
अर्थ जिंदगी के निकले हैं ।
दिखे व्यर्थ की ही मरीचिका
अच्छे लम्हे सब फिसले हैं ।
अर्थ उपार्जन की चाहत में , ,
शब्द से अर्थ भिन्न हो गए ।
जीवन की संतुष्टि प्रेम धन ,
वो सम्बन्ध विछिन्न हो गए ।
अर्थ सर्प की बाँबी बैठा ,
विरहिणी को फुँकारें मारे ।
किंशुक के फूलों का वन भी ,
देख उसे अंगारे मारे ।
माया मीठी ठगिनी बन कर ,
फेंका करती अर्थ जाल को ,
सिद्ध तपस्वी योगी मुनि भी ,
समझे नहीं इस जंजाल को ।
सभी बुराइयों की जड़ अर्थ है ,
जन्म मस्तिष्क में है लेता ।
केवल स्वार्थ जनित रिश्तों से ,
सब रिश्तों की बलि है लेता ।
सब ज़रूरतों की करे पूर्ति ,
जीवन में अर्थ जरूरी होता ।
दुनियादारी के कामों में ,
अर्थ बड़ी मजबूरी होता ।
सब ऐश्वर्य अर्थ से मिलते , संतोष धन नहीं है मिलता ।
मिल जाती है ऊँची पदवी ,
आनंद धन नहीं है मिलता ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा
विषय: अर्थ
दिनांक ,30/10/2019
शीर्षक : अर्थ
अर्थ के बिना जीवन व्यर्थ हैं।
जीवन की यही पहली शर्त है।
पाप करने से मनु बेड़ा गर्क है।
पापियों को मिले सजा नर्क है।
हरेक शब्द के विभिन्न अर्थ है।
अंग्रेजी पृथ्वी का नाम अर्थ है।
चार पुरूषार्थ में दूसरा अर्थ है।
भावों के मोती में शब्द अर्थ है।
साधू नित्य करे संवाद तर्क है।
धनी निर्धन जीवन में फर्क है।
बारह राशियाें में एक कर्क है।
भूगोल मानचित्र रेखा कर्क है।
देव शास्त्र व गुरू नमन धर्म है।
जीव दया यही सर्वश्रेष्ठ कर्म है।
पुण्य अर्जित मानव का धर्म है।
जीवन जीने का असली मर्म है।
प्राकृतिक सौम्य वसुधा फर्श है।
परिश्रमी सफलता पाते अर्श है।
ईश प्रार्थना भक्ति शक्ति दर्श है।
'रिखब'का जीवन मंगल हर्ष है।
रचयिता
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
जयपुर राजस्थान
दिनांक ,30/10/2019
शीर्षक : अर्थ
अर्थ के बिना जीवन व्यर्थ हैं।
जीवन की यही पहली शर्त है।
पाप करने से मनु बेड़ा गर्क है।
पापियों को मिले सजा नर्क है।
हरेक शब्द के विभिन्न अर्थ है।
अंग्रेजी पृथ्वी का नाम अर्थ है।
चार पुरूषार्थ में दूसरा अर्थ है।
भावों के मोती में शब्द अर्थ है।
साधू नित्य करे संवाद तर्क है।
धनी निर्धन जीवन में फर्क है।
बारह राशियाें में एक कर्क है।
भूगोल मानचित्र रेखा कर्क है।
देव शास्त्र व गुरू नमन धर्म है।
जीव दया यही सर्वश्रेष्ठ कर्म है।
पुण्य अर्जित मानव का धर्म है।
जीवन जीने का असली मर्म है।
प्राकृतिक सौम्य वसुधा फर्श है।
परिश्रमी सफलता पाते अर्श है।
ईश प्रार्थना भक्ति शक्ति दर्श है।
'रिखब'का जीवन मंगल हर्ष है।
रचयिता
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
जयपुर राजस्थान
दिन :- बुधवार
दिनांक :- 30/10/2019
शीर्षक :- अर्थ
सारे अर्थ,
निरर्थक ही रह गए।
निकाले जो,
तुमने मेरे इरादों के।
खेल गया स्वार्थ,
अपना खेल पहले ही।
लगा दी बोली,
भरे बाजार में,
मेरे नादान जज्बातों की।
बांधे रखी थी अब तक,
डोर जो एक विश्वास की,
पलभर में ही टूट गई,
हर छड़ी वो आस की।
खड़े रहे हम मौन,
उन वीरान सड़कों पर।
लहरा जाते समंदर,
इन निर्दोष पलकों पर।
समझ लिया होता गर,
अर्थ हमारे इरादों का।
यूँ सरेआम मोल न करते,
नादान मेरे जज्बातों का।
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
दिनांक :- 30/10/2019
शीर्षक :- अर्थ
सारे अर्थ,
निरर्थक ही रह गए।
निकाले जो,
तुमने मेरे इरादों के।
खेल गया स्वार्थ,
अपना खेल पहले ही।
लगा दी बोली,
भरे बाजार में,
मेरे नादान जज्बातों की।
बांधे रखी थी अब तक,
डोर जो एक विश्वास की,
पलभर में ही टूट गई,
हर छड़ी वो आस की।
खड़े रहे हम मौन,
उन वीरान सड़कों पर।
लहरा जाते समंदर,
इन निर्दोष पलकों पर।
समझ लिया होता गर,
अर्थ हमारे इरादों का।
यूँ सरेआम मोल न करते,
नादान मेरे जज्बातों का।
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
30/10/19
विषय-अर्थ
जीवंत होने का अर्थ है
जीवन की दहलीज पर
चुनौती ताजी रखें
कुछ नया खोजते रहे
क्योंकि नए की खोज में ही
हमारे भीतर जो छिपे हैं स्वर
उन्हें मुक्त कर पायेंगे
नई राग, नई धुन,
नया संगीत दे पायेंगे
नए की खोज में ही
हम स्वयं नये रह पायेंगे
जैसे ही नया अन्वेषण बंद होता है
हम पुराने हो जाते,
जर्जर् खंडहर,
जो गिरने की राह तकने लगते हैं
रुकती है जब जब भी नदी
धार मलीन होने लगती है
शुरू हो जाती है पंक उत्पत्ति
पावनता तो सतत बहते रहने का नाम है
तभी तक धार पवित्र और निर्मल रहती है
जब तक बहती रहती है
सदा बहते रहो
निरन्तर गतिमान रहो
और सदा मन दहलीज पर
चुनौतियां ताजी रखो।
स्वरचित
कुसुम कोठरी।
विषय-अर्थ
जीवंत होने का अर्थ है
जीवन की दहलीज पर
चुनौती ताजी रखें
कुछ नया खोजते रहे
क्योंकि नए की खोज में ही
हमारे भीतर जो छिपे हैं स्वर
उन्हें मुक्त कर पायेंगे
नई राग, नई धुन,
नया संगीत दे पायेंगे
नए की खोज में ही
हम स्वयं नये रह पायेंगे
जैसे ही नया अन्वेषण बंद होता है
हम पुराने हो जाते,
जर्जर् खंडहर,
जो गिरने की राह तकने लगते हैं
रुकती है जब जब भी नदी
धार मलीन होने लगती है
शुरू हो जाती है पंक उत्पत्ति
पावनता तो सतत बहते रहने का नाम है
तभी तक धार पवित्र और निर्मल रहती है
जब तक बहती रहती है
सदा बहते रहो
निरन्तर गतिमान रहो
और सदा मन दहलीज पर
चुनौतियां ताजी रखो।
स्वरचित
कुसुम कोठरी।
दिनांक 30/10/2019
विधा: हाइकु
विषय:अर्थ
शब्द का अर्थ
शब्द कोश सागर
ज्ञान की नाँव ।
भावों के अर्थ
समझे बेजुबान
नयन भाषा ।
अर्थ अनर्थ
नासमझ समाज
भूचाल मचा।
मंथन कर
ज्ञान की मथानी से
जीवन अर्थ ।
हिन्दी रचना
स्वर व्यंजन ज्ञान
अर्थ द्रवित ।
जीवन अर्थ
शिक्षा की किरण से
है सूर्योदय ।
मृत्यु अडिग
जीवन सत्य मार्ग
अर्थ संपूर्ण ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
विधा: हाइकु
विषय:अर्थ
शब्द का अर्थ
शब्द कोश सागर
ज्ञान की नाँव ।
भावों के अर्थ
समझे बेजुबान
नयन भाषा ।
अर्थ अनर्थ
नासमझ समाज
भूचाल मचा।
मंथन कर
ज्ञान की मथानी से
जीवन अर्थ ।
हिन्दी रचना
स्वर व्यंजन ज्ञान
अर्थ द्रवित ।
जीवन अर्थ
शिक्षा की किरण से
है सूर्योदय ।
मृत्यु अडिग
जीवन सत्य मार्ग
अर्थ संपूर्ण ।
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
अर्थ
शब्द एक है
अर्थ
लिये अपने में
अर्थ अनेक
जो समझे
बात का
अर्थ अगर
तो है वो सार्थक
नहीं तो होता
अनर्थ , अर्थ का
अर्थ पर
टिकी है
दुनियां
खाली जेब
नहीं किसी
काम की
अर्थ ही
बन जाता है
धरती
अर्थहीन है
जीवन
धरती बिन
समझा
अर्थ जिसने
जीवन का
उसका ही है
सफल
जीवन का
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
शब्द एक है
अर्थ
लिये अपने में
अर्थ अनेक
जो समझे
बात का
अर्थ अगर
तो है वो सार्थक
नहीं तो होता
अनर्थ , अर्थ का
अर्थ पर
टिकी है
दुनियां
खाली जेब
नहीं किसी
काम की
अर्थ ही
बन जाता है
धरती
अर्थहीन है
जीवन
धरती बिन
समझा
अर्थ जिसने
जीवन का
उसका ही है
सफल
जीवन का
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
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