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ब्लॉग संख्या :-578
27/11/2019
"पड़ाव"
"पल पल बदलते पड़ाव हैं गम न करना
मुहब्बत जो मिली है वह कम न करना।।"
"रफ्ता रफ्ता जिंदगी के पड़ाव पर आ गए
मिलता जहाँ सुकूँ हैउस शैया पर आ गए।।"
"सीखना गुलाब से हर पड़ाव पर मुस्कुराना
कांटों भरी जिंदगी में कभी न तिलमिलाना।।"
"सूरज-चाँद ,सुख-दुख ये आते-जाते रहेंगे
पड़ाव से क्यों घबराना ,गम सहलाते रहेंगे।।"
वीणा शर्मा वशिष्ठ, स्वरचित
"पड़ाव"
"पल पल बदलते पड़ाव हैं गम न करना
मुहब्बत जो मिली है वह कम न करना।।"
"रफ्ता रफ्ता जिंदगी के पड़ाव पर आ गए
मिलता जहाँ सुकूँ हैउस शैया पर आ गए।।"
"सीखना गुलाब से हर पड़ाव पर मुस्कुराना
कांटों भरी जिंदगी में कभी न तिलमिलाना।।"
"सूरज-चाँद ,सुख-दुख ये आते-जाते रहेंगे
पड़ाव से क्यों घबराना ,गम सहलाते रहेंगे।।"
वीणा शर्मा वशिष्ठ, स्वरचित
विषय पड़ाव
विधा काव्य
27 नवम्बर 2019,बुधवार
कई पड़ाव आते जीवन में
सोचो समझो कदम बढ़ाओ।
जीवन अद्भुत अति सुहाना
स्नेह सुधा जीवन बरसाओ।
लाभ हानि सुख विषाद सब
जीवन परीक्षा के पड़ाव हैं।
डरना घबराना नहीं जीवन
समय समझलो स्नेह भाव है।
बचपन यौवन और बुढ़ापा
जो जीवन के सत्य पड़ाव हैं।
कोई जीता हँसकर जीवन
कोई सहता जग कटु घाव है।
जीवन सुमनों की शैया नहीं
जीवन संघर्ष कहानी होती।
कई पड़ाव सुख दुःख आते
जीवन दिव्य दमकता मोती।
सुखद पड़ाव सबक सिखाते
जीवन नव परिवर्तन लाते ।
स्वविवेक लक्ष्य निर्धारित
मङ्गल गीत सदा ही गाते ।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
27 नवम्बर 2019,बुधवार
कई पड़ाव आते जीवन में
सोचो समझो कदम बढ़ाओ।
जीवन अद्भुत अति सुहाना
स्नेह सुधा जीवन बरसाओ।
लाभ हानि सुख विषाद सब
जीवन परीक्षा के पड़ाव हैं।
डरना घबराना नहीं जीवन
समय समझलो स्नेह भाव है।
बचपन यौवन और बुढ़ापा
जो जीवन के सत्य पड़ाव हैं।
कोई जीता हँसकर जीवन
कोई सहता जग कटु घाव है।
जीवन सुमनों की शैया नहीं
जीवन संघर्ष कहानी होती।
कई पड़ाव सुख दुःख आते
जीवन दिव्य दमकता मोती।
सुखद पड़ाव सबक सिखाते
जीवन नव परिवर्तन लाते ।
स्वविवेक लक्ष्य निर्धारित
मङ्गल गीत सदा ही गाते ।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
प्रथम प्रस्तुति
हर पड़ाव पर उसका इंतजामात है
हम भुलादें भले मगर वो साथ है ।।
ख्याल रखे वो सफ़र में हम सबका
उसी ने भेजा यहाँ उसका हाथ है ।।
सफ़र में जो हमसफ़र वो गले लगाओ
रब के सब सुझाये उनको अपनाओ ।।
शिकवा और शिकायतें कैसीं उनसे
मेल मिलाओ उनसे उनमें मुस्कुराओ ।।
हर पड़ाव को पढ़ो और लुत्फ उठाओ
खुद सँभलो सँभलने के माने समझाओ ।।
जीवन में ऐसा 'शिवम' कुछ कर जाओ
युगों-युगों तक दिल में सबके बस जाओ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/11/2019
हर पड़ाव पर उसका इंतजामात है
हम भुलादें भले मगर वो साथ है ।।
ख्याल रखे वो सफ़र में हम सबका
उसी ने भेजा यहाँ उसका हाथ है ।।
सफ़र में जो हमसफ़र वो गले लगाओ
रब के सब सुझाये उनको अपनाओ ।।
शिकवा और शिकायतें कैसीं उनसे
मेल मिलाओ उनसे उनमें मुस्कुराओ ।।
हर पड़ाव को पढ़ो और लुत्फ उठाओ
खुद सँभलो सँभलने के माने समझाओ ।।
जीवन में ऐसा 'शिवम' कुछ कर जाओ
युगों-युगों तक दिल में सबके बस जाओ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/11/2019
शीर्षक-पड़ाव
दिनांक-२७/११/२०१९
विधा- कविता
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
मुझमें भी कोई एक बच्चा है
क्या कोई समझ भी सकता है
हां सच कहता हूं में ये बात है पक्की
चुटकीभर खुशियों से ही जी उठता हूं
जीवन का पड़ाव ही कुछ ऐसा है
लगती है जिंदगी अब बोझिल
बस कुछ और नहीं चाहते हैं
सुखी रहें जीवन बस यही अभिलाषा है
सांस बाकी है चुनिंदा अब मुझमें
न कोई आशा अब न कोई निराशा है
बीत गया जो पल वो कहां आता है
अब तो उस पड़ाव पर हूं जहां
दिल बार बार बस भर आता है
मौलिक
निक्की शर्मा रश्मि
मुम्बई
दिनांक-२७/११/२०१९
विधा- कविता
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
मुझमें भी कोई एक बच्चा है
क्या कोई समझ भी सकता है
हां सच कहता हूं में ये बात है पक्की
चुटकीभर खुशियों से ही जी उठता हूं
जीवन का पड़ाव ही कुछ ऐसा है
लगती है जिंदगी अब बोझिल
बस कुछ और नहीं चाहते हैं
सुखी रहें जीवन बस यही अभिलाषा है
सांस बाकी है चुनिंदा अब मुझमें
न कोई आशा अब न कोई निराशा है
बीत गया जो पल वो कहां आता है
अब तो उस पड़ाव पर हूं जहां
दिल बार बार बस भर आता है
मौलिक
निक्की शर्मा रश्मि
मुम्बई
शीर्षक- पड़ाव
२७/११/२०१९
हे प्रभु! मेरी जिंदगी में
ये कौन सा आया पड़ाव है।
जहां हर रिश्तों से मेरा
टूट गया दिल का लगाव है।।
अब तक जो साथ चला
वो जाने कौन सा बंधन था।
एक झटके में ही टूट गया
ये कैसा अजीब जुड़ाव है।।
मस्ती भरे वो पल सुहाने
जाने किस तरफ छूट गये।
हर पल मुख पर छाया रहता
ये किस बात का तनाव है।।
अपनेपन की वो गर्माहट
अब कहीं नहीं दिखाई देती।
तपिश भी ना पिघला पाए
ये कैसा रिश्तों में जमाव है।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
२७/११/२०१९
हे प्रभु! मेरी जिंदगी में
ये कौन सा आया पड़ाव है।
जहां हर रिश्तों से मेरा
टूट गया दिल का लगाव है।।
अब तक जो साथ चला
वो जाने कौन सा बंधन था।
एक झटके में ही टूट गया
ये कैसा अजीब जुड़ाव है।।
मस्ती भरे वो पल सुहाने
जाने किस तरफ छूट गये।
हर पल मुख पर छाया रहता
ये किस बात का तनाव है।।
अपनेपन की वो गर्माहट
अब कहीं नहीं दिखाई देती।
तपिश भी ना पिघला पाए
ये कैसा रिश्तों में जमाव है।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
दिनांक-27/11/2019
विषय-पड़ाव
वक्त के पांव अनायास ठहर जाते हैं
सांझ को पंछी चले घोसले को ।
लिए पस्त हौसले मन ही मन ।
झुँझलाई.......
देखो शरद ऋतु है आयी।
नवल रूप बिखरा है भूवि पर
शरद का नील त्रिलोचन है आई।
आफताब निकला गगन पर
प्रभा किरन कमसिन लहराई।
ओंस की बूँदें गिरे दूबो पर
मणि वाले फणियो का मुख
विहवल मन मंद-मंद अकुलाई।
सरवर का शीतल जल मलय समीर
धवल किरणो को ओढे इठलाई।
कलरव चिडियों का कोलाहल
पड़ने लगा मधुर सुनाई।
मौसम संग उपवन ने ले ली
नूतन अगड़ाई।
खेतों में पीली सरसो
फूली है विहलाई।
गुंजित भौंरो के उपर भी
चढी खुमारी है छाई।
धान के पौधे लदे बालियों से
धीरे-धीरे बहती पूरवाई।
सन-सन चले हवा
काँपता तन,मन घबराई।
साँझ के पंक्षी चले घोसले को
लिये पस्त हौसले मन झुँझलाई।
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
विषय-पड़ाव
वक्त के पांव अनायास ठहर जाते हैं
सांझ को पंछी चले घोसले को ।
लिए पस्त हौसले मन ही मन ।
झुँझलाई.......
देखो शरद ऋतु है आयी।
नवल रूप बिखरा है भूवि पर
शरद का नील त्रिलोचन है आई।
आफताब निकला गगन पर
प्रभा किरन कमसिन लहराई।
ओंस की बूँदें गिरे दूबो पर
मणि वाले फणियो का मुख
विहवल मन मंद-मंद अकुलाई।
सरवर का शीतल जल मलय समीर
धवल किरणो को ओढे इठलाई।
कलरव चिडियों का कोलाहल
पड़ने लगा मधुर सुनाई।
मौसम संग उपवन ने ले ली
नूतन अगड़ाई।
खेतों में पीली सरसो
फूली है विहलाई।
गुंजित भौंरो के उपर भी
चढी खुमारी है छाई।
धान के पौधे लदे बालियों से
धीरे-धीरे बहती पूरवाई।
सन-सन चले हवा
काँपता तन,मन घबराई।
साँझ के पंक्षी चले घोसले को
लिये पस्त हौसले मन झुँझलाई।
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
27/11/2019::बुधवार
विषय --पड़ाव
**********************************
एक अरसे बाद!!!
जो हुई उनसे मुलाकात.....
साँसे थम सी गईं
धड़कने बढ़ गईं......
दोनों मौन थे
शब्द भी गौण थे....
भूली भूली सी बातें
बिसरे हुए वादे....
कुछ अधूरे सपने
यादकर संजीदा हुए....
आँखों ही आँखों में
समझे एकदूजे के ज़ज्बात....
और खामोश से चल दिए
अपने अपने पड़ाव पर......
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
विषय --पड़ाव
**********************************
एक अरसे बाद!!!
जो हुई उनसे मुलाकात.....
साँसे थम सी गईं
धड़कने बढ़ गईं......
दोनों मौन थे
शब्द भी गौण थे....
भूली भूली सी बातें
बिसरे हुए वादे....
कुछ अधूरे सपने
यादकर संजीदा हुए....
आँखों ही आँखों में
समझे एकदूजे के ज़ज्बात....
और खामोश से चल दिए
अपने अपने पड़ाव पर......
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
विधा-मनहरण
विषय-पड़ाव
जीवन के हर मोड़
को हँस कर गुजार,
यह पड़ाव जिन्दगी
के हार ना मानना।
बचपन मासूम है
तो संघर्ष है जवानी,
बुढ़ापे को देख कर
कहीं डर ना जाना।
उत्तम शिक्षा को पाना
बालपन पर तुम,
और जवानी में सारे
कर्तव्यों को निभाना।
हँसकर बिता लेना
बुढ़ापे के पल सारे,
ऐसे ही सारे पड़ाव
तुम पार करना।
स्वरचित-श्रद्धान्जलि शुक्ला"अंजलि"
विषय-पड़ाव
जीवन के हर मोड़
को हँस कर गुजार,
यह पड़ाव जिन्दगी
के हार ना मानना।
बचपन मासूम है
तो संघर्ष है जवानी,
बुढ़ापे को देख कर
कहीं डर ना जाना।
उत्तम शिक्षा को पाना
बालपन पर तुम,
और जवानी में सारे
कर्तव्यों को निभाना।
हँसकर बिता लेना
बुढ़ापे के पल सारे,
ऐसे ही सारे पड़ाव
तुम पार करना।
स्वरचित-श्रद्धान्जलि शुक्ला"अंजलि"
27/11/2019
"पड़ाव"
################
उम्र का आखिरी यह पड़ाव है.......
अब हुए जिंदगी में कितने बदलाव है
इन दिनों जीवन के सारे रंगों को देखा
मन में अकेलापन का जलता अलाव है।
स्व कर्मों में व्यस्त पूरा संसार है
संतोष फिर भी नहीं मिला हाथ है
इंसान की चाहते क्यों है अनंत
जीवन का आखिरी आया पड़ाव है।
अब तोअनुभवों से पक रहे बाल हैं
सुख-दु:ख से नाता रहा साथ है
प्यार औ द्वेष का भी रहा सिलसिला
सफर का आखिरी यह पड़ाव है...।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"पड़ाव"
################
उम्र का आखिरी यह पड़ाव है.......
अब हुए जिंदगी में कितने बदलाव है
इन दिनों जीवन के सारे रंगों को देखा
मन में अकेलापन का जलता अलाव है।
स्व कर्मों में व्यस्त पूरा संसार है
संतोष फिर भी नहीं मिला हाथ है
इंसान की चाहते क्यों है अनंत
जीवन का आखिरी आया पड़ाव है।
अब तोअनुभवों से पक रहे बाल हैं
सुख-दु:ख से नाता रहा साथ है
प्यार औ द्वेष का भी रहा सिलसिला
सफर का आखिरी यह पड़ाव है...।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
27 /11 /2019
बिषय,, पड़ाव
वक्त ने ली करवट उम्र का पड़ाव आ गया
.थम सा गया है हर पल छण
समय का ठहराव आ गया
बचपन जवानी दोनों जाने कब निकल जाते हैं
फिर बुढ़ापे में ए याद बहुत आते हैं
मन बार बार बचपन में लौट जाने का मन करता है
परिवर्तन का नाम ही जीवन.है भलीभांति समझता है
चलो.अब खाली पलों को सहेज लें
सुकर्मों को अंतर्मन में समेट लें
हमारी बगिया के फूलों की महक चहुंओर सुवासित हो
सत्संग सत्कर्म में मन समर्पित हो
रहें न रहें हम हर जुवां पर हमारा नाम हो
हर शख्स के मन में चाह हो ऐसा हमारा काम हो
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
बिषय,, पड़ाव
वक्त ने ली करवट उम्र का पड़ाव आ गया
.थम सा गया है हर पल छण
समय का ठहराव आ गया
बचपन जवानी दोनों जाने कब निकल जाते हैं
फिर बुढ़ापे में ए याद बहुत आते हैं
मन बार बार बचपन में लौट जाने का मन करता है
परिवर्तन का नाम ही जीवन.है भलीभांति समझता है
चलो.अब खाली पलों को सहेज लें
सुकर्मों को अंतर्मन में समेट लें
हमारी बगिया के फूलों की महक चहुंओर सुवासित हो
सत्संग सत्कर्म में मन समर्पित हो
रहें न रहें हम हर जुवां पर हमारा नाम हो
हर शख्स के मन में चाह हो ऐसा हमारा काम हो
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
विषय_ पडाव |
जीवन मे जन्म से मृत्यु तक क ई पडाव |
बचपन कब हंसते हंसते गुजर गया
जवानी आई साथ कई सघर्षो गुजरना पडा |
कभी ठहराव आये हारे नही बडते रहे |
कभी अच्छे लोग मिले पान प्रेम सौहार्द्रज्ञान |
बड चले अपनी मंजिल पाने |
कभी कुछ ऐसे मिले बमुश्किल बचे गिरने से |
क ई खट्टी मीठी तीखी यादो को सहेजते उम्र बडने लगी तोलोअब |
ये अतिंम पडाव आ गया पर |
सहेजी यादो के दायरो मे महसूस ये हुआ |
न डरो न घबराओ इसको भी जी लो हसते हसते |
पंछी उड जायेगा उसके सुदंर निशान यही छोड जायेगा |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा |
जीवन मे जन्म से मृत्यु तक क ई पडाव |
बचपन कब हंसते हंसते गुजर गया
जवानी आई साथ कई सघर्षो गुजरना पडा |
कभी ठहराव आये हारे नही बडते रहे |
कभी अच्छे लोग मिले पान प्रेम सौहार्द्रज्ञान |
बड चले अपनी मंजिल पाने |
कभी कुछ ऐसे मिले बमुश्किल बचे गिरने से |
क ई खट्टी मीठी तीखी यादो को सहेजते उम्र बडने लगी तोलोअब |
ये अतिंम पडाव आ गया पर |
सहेजी यादो के दायरो मे महसूस ये हुआ |
न डरो न घबराओ इसको भी जी लो हसते हसते |
पंछी उड जायेगा उसके सुदंर निशान यही छोड जायेगा |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा |
पड़ाव
**
रफ्ता रफ्ता चलते
गिरते उठते आ पहुँचे
उम्र के इस पड़ाव पर
कब कहाँ जिंदगी की
शाम हो जाए !
ख्याल आया ,
चलो यादों की किताबें खंगाले
कुछ पन्ने पलट ,
कुछ बीता निकाले ।
मन रीता रीता सा हो गया
लगा कहीं कुछ खो गया !
कुछ सपने वक़्त की
आँधिया उड़ा ले गयी
कुछ नसीब का खेल
समझ भुला दिया !
जो पाया ख़ुशी से
आँखे नम करें ,
जो खोया है उसका
क्योंकर गम करें ।
हारी नही है हिम्मत
हौसले बाकी है,
कैसा भी हो समय
फिर खड़े हो जायेंगें
गिरते उठते चलते
फिर से दौड़ लगाएंगे ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
**
रफ्ता रफ्ता चलते
गिरते उठते आ पहुँचे
उम्र के इस पड़ाव पर
कब कहाँ जिंदगी की
शाम हो जाए !
ख्याल आया ,
चलो यादों की किताबें खंगाले
कुछ पन्ने पलट ,
कुछ बीता निकाले ।
मन रीता रीता सा हो गया
लगा कहीं कुछ खो गया !
कुछ सपने वक़्त की
आँधिया उड़ा ले गयी
कुछ नसीब का खेल
समझ भुला दिया !
जो पाया ख़ुशी से
आँखे नम करें ,
जो खोया है उसका
क्योंकर गम करें ।
हारी नही है हिम्मत
हौसले बाकी है,
कैसा भी हो समय
फिर खड़े हो जायेंगें
गिरते उठते चलते
फिर से दौड़ लगाएंगे ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
आज का विषय, पड़ाव
दिन, बुधवार
दिनांक, 27,11,2019.
चार पड़ाव का ये हमारा जीवन होता है,
आखिर में विदाई फिर अपनी हो जाती है।
कोई जाग रहा यहाँ पर और कोई यहाँ पर सोता है,
अपनी अपनी मति अनुरूप यहाँ पर कमाई करता है ।
दुनियाँ में आना जाना लगा हमेशा रहता है,
रीत सदा से ये चल आई यही चला करता है ।
अपनी बाल्यावस्था ही पहला पड़ाव होता है,
खुशियों का सैलाब जहां पर बना रहता है ।
खेल कूद खाना पीना सोना चला करता है,
इक पढ़ने की जिम्मेदारी नहीं रहे कोई चिंता है।
यौवन ही जीवन का दूसरा पड़ाव होता है ,
आँखों में अनगिनत सपनों का मेला होता है।
इस पड़ाव में सबको दुनियाँ मुठ्ठी में लगती है ,
बात किसी की हमको नहीं कोई रास आती है ।
जीवन का तीसरा पडाव प्रौढावस्था होता है,
हमेशा समस्याओं से इसमें इंसान घिरा रहता है।
जिम्मेदारी घर की कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है,
चिंता करे चैन नहीं पाये बहुत बुरी हालत होती है।
वृद्धावस्था चौथा अंतिम उम्र का पड़ाव होता है,
धन यौवन रिश्तों ने मुँह को मोड़ लिया होता है।
बस कामना चिर निद्रा की मन में करता रहता है,
हर पल क्षण वह ईश्वर से प्रार्थना करता रहता है।
चार पड़ावों का असर ये जीवन पर हो जाता है,
अपनी गलतियों से ही सबक इंसा लिया करता है।
स्वरचित, मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
दिन, बुधवार
दिनांक, 27,11,2019.
चार पड़ाव का ये हमारा जीवन होता है,
आखिर में विदाई फिर अपनी हो जाती है।
कोई जाग रहा यहाँ पर और कोई यहाँ पर सोता है,
अपनी अपनी मति अनुरूप यहाँ पर कमाई करता है ।
दुनियाँ में आना जाना लगा हमेशा रहता है,
रीत सदा से ये चल आई यही चला करता है ।
अपनी बाल्यावस्था ही पहला पड़ाव होता है,
खुशियों का सैलाब जहां पर बना रहता है ।
खेल कूद खाना पीना सोना चला करता है,
इक पढ़ने की जिम्मेदारी नहीं रहे कोई चिंता है।
यौवन ही जीवन का दूसरा पड़ाव होता है ,
आँखों में अनगिनत सपनों का मेला होता है।
इस पड़ाव में सबको दुनियाँ मुठ्ठी में लगती है ,
बात किसी की हमको नहीं कोई रास आती है ।
जीवन का तीसरा पडाव प्रौढावस्था होता है,
हमेशा समस्याओं से इसमें इंसान घिरा रहता है।
जिम्मेदारी घर की कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है,
चिंता करे चैन नहीं पाये बहुत बुरी हालत होती है।
वृद्धावस्था चौथा अंतिम उम्र का पड़ाव होता है,
धन यौवन रिश्तों ने मुँह को मोड़ लिया होता है।
बस कामना चिर निद्रा की मन में करता रहता है,
हर पल क्षण वह ईश्वर से प्रार्थना करता रहता है।
चार पड़ावों का असर ये जीवन पर हो जाता है,
अपनी गलतियों से ही सबक इंसा लिया करता है।
स्वरचित, मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
शीर्षक -पड़ाव
27/11/19
चल पड़ी मैं ले कलम
उम्र के इस पड़ाव में
अनुभवों की पोटली
लेकर अपने साथ मे
नही बचा सकी हूँ
धन्य धान्य साथ मे
संजो रही मैं पोथियां
वसीयत के नाम मे
तोड़ कर मडोरकर
गीत लिखे काव्य में
दिन निशा बीत रहे
इन्ही शब्द जाल में
अभाव में प्रभाव में
वक्त के बहाव में
बह रही मैं कर सृजन
उम्र के इस पड़ाव में
स्वरचित
मीना तिवारी
27/11/19
चल पड़ी मैं ले कलम
उम्र के इस पड़ाव में
अनुभवों की पोटली
लेकर अपने साथ मे
नही बचा सकी हूँ
धन्य धान्य साथ मे
संजो रही मैं पोथियां
वसीयत के नाम मे
तोड़ कर मडोरकर
गीत लिखे काव्य में
दिन निशा बीत रहे
इन्ही शब्द जाल में
अभाव में प्रभाव में
वक्त के बहाव में
बह रही मैं कर सृजन
उम्र के इस पड़ाव में
स्वरचित
मीना तिवारी
विषय पडा़व
विधा कविता
दिनाँक 27.9.2019
दिन। बुधववार
पडा़व
💘💘💘
जीवन तो है बस एक पडा़व
सबका ही निश्चित है पर ठहराव
अलग अलग तूफा़न मिलेंगे
इसी में चलानी है अपनी नाव।
इसलिये ही कहते इसे भूमि कर्म की
कर्मयोग के निर्मल गहन मर्म की
भगवान स्पष्ट कर गये लीला में
कैसे रहती जीवन में प्रतिष्ठा धर्म की।
पडा़व है फिर भी अनूठा है खेल
सबमें ही पनपती स्वार्थ की एक बेल
इच्छाओं का हो जाता इतना गहन तालमेल
कि भूल जाते साँस तो है मौत की रखेल।
आ सकता कभी भी मृत्यु का बुलावा
नहीं दे सकते उसे कभी भी भुलावा
वह आई तो लेकर ही जायेगी ज़रुर
नहीं कर सकते कोई भी उससे छलावा।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
विधा कविता
दिनाँक 27.9.2019
दिन। बुधववार
पडा़व
💘💘💘
जीवन तो है बस एक पडा़व
सबका ही निश्चित है पर ठहराव
अलग अलग तूफा़न मिलेंगे
इसी में चलानी है अपनी नाव।
इसलिये ही कहते इसे भूमि कर्म की
कर्मयोग के निर्मल गहन मर्म की
भगवान स्पष्ट कर गये लीला में
कैसे रहती जीवन में प्रतिष्ठा धर्म की।
पडा़व है फिर भी अनूठा है खेल
सबमें ही पनपती स्वार्थ की एक बेल
इच्छाओं का हो जाता इतना गहन तालमेल
कि भूल जाते साँस तो है मौत की रखेल।
आ सकता कभी भी मृत्यु का बुलावा
नहीं दे सकते उसे कभी भी भुलावा
वह आई तो लेकर ही जायेगी ज़रुर
नहीं कर सकते कोई भी उससे छलावा।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
भावों के मोती
विषय--पड़ाव
______________
जिम्मेदारी के बोझ तले,
ख्व़ाहिशें दम तोड गईं।
बढ़ती रहीं चेहरे पे सिलवटें ,
निशानी उम्र की दे गईं।
दो से शुरू किया सफ़र,
संग साथी इस संसार में।
बच्चों से ही रही बहार,
जीवन के इस आँगन में।
ज़रूरतें पूरी करने में कब,
ज़िंदगी हाथों से फिसल गिरी।
लेखा-जोखा पढ़ने में कब,
खुशियों सूखे पत्ते सी झरी।
पलटते रहतें हैं बैठ फिर,
यादों की पुस्तक के पन्ने।
भूल गए वो भी बड़े होकर,
कल-तक जो बच्चे थे नन्हें।
यही दस्तूर ज़िंदगी का,
बड़े विकट इसके झमेले।
रिश्तों के संग जीने वाला,
रिश्तों के बीच अकेले।
श्वेत बाल सिलवटें लिए,
जीवन के अंतिम छोर खड़े।
कोई उम्मीद नहीं दिल में लिए,
जब अपने ही हैं दूर खड़े।
अंतिम पड़ाव यह ज़िंदगी का,
हर एक जीवन की सच्चाई।
इंसान रह जाता अकेला,
अपनों की सहकर जुदाई।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
विषय--पड़ाव
______________
जिम्मेदारी के बोझ तले,
ख्व़ाहिशें दम तोड गईं।
बढ़ती रहीं चेहरे पे सिलवटें ,
निशानी उम्र की दे गईं।
दो से शुरू किया सफ़र,
संग साथी इस संसार में।
बच्चों से ही रही बहार,
जीवन के इस आँगन में।
ज़रूरतें पूरी करने में कब,
ज़िंदगी हाथों से फिसल गिरी।
लेखा-जोखा पढ़ने में कब,
खुशियों सूखे पत्ते सी झरी।
पलटते रहतें हैं बैठ फिर,
यादों की पुस्तक के पन्ने।
भूल गए वो भी बड़े होकर,
कल-तक जो बच्चे थे नन्हें।
यही दस्तूर ज़िंदगी का,
बड़े विकट इसके झमेले।
रिश्तों के संग जीने वाला,
रिश्तों के बीच अकेले।
श्वेत बाल सिलवटें लिए,
जीवन के अंतिम छोर खड़े।
कोई उम्मीद नहीं दिल में लिए,
जब अपने ही हैं दूर खड़े।
अंतिम पड़ाव यह ज़िंदगी का,
हर एक जीवन की सच्चाई।
इंसान रह जाता अकेला,
अपनों की सहकर जुदाई।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
27-11-2019
विषय - पड़ाव
+++++++++++++++++
"अंतिम पड़ाव '
==========
चलो चलते सड़क उस पार ,
तनिक प्रिये जल्दी करो।
अरे सुन लो हमारी भी बात
तनिक पिया धीरे चलो।
चलते रहना ही जीवन है
रुक जायेंगे यही मरण है
नैय्या लगावै प्रभु पार
तनिक प्रिये जल्दी करो ।
बीत गये दिन कब इक पल में
जान न पाई प्रेम मगन मै
जीवन के तुम हो अधार
तनिक पिय धीरे चलो।
छूटे ना ये साथ हमारा
इक दूजे केहम हैं सहारा
उमर का अन्तिम 'पड़ाव'
तनिक प्रिये जल्दी करो।
हाथ पैर सब शिथिल हुये हैं
जोड़ जोड़ सब जटिल हुये हैं
प्रेम की बहे रसधार
तनिक पिया धीरे चलो।
+++++++++++स्नेह प्रभा खरे ( लखनऊ )
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
विषय - पड़ाव
+++++++++++++++++
"अंतिम पड़ाव '
==========
चलो चलते सड़क उस पार ,
तनिक प्रिये जल्दी करो।
अरे सुन लो हमारी भी बात
तनिक पिया धीरे चलो।
चलते रहना ही जीवन है
रुक जायेंगे यही मरण है
नैय्या लगावै प्रभु पार
तनिक प्रिये जल्दी करो ।
बीत गये दिन कब इक पल में
जान न पाई प्रेम मगन मै
जीवन के तुम हो अधार
तनिक पिय धीरे चलो।
छूटे ना ये साथ हमारा
इक दूजे केहम हैं सहारा
उमर का अन्तिम 'पड़ाव'
तनिक प्रिये जल्दी करो।
हाथ पैर सब शिथिल हुये हैं
जोड़ जोड़ सब जटिल हुये हैं
प्रेम की बहे रसधार
तनिक पिया धीरे चलो।
+++++++++++स्नेह प्रभा खरे ( लखनऊ )
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
नमन मंच
शीर्षक-- पड़ाव
द्वितीय प्रस्तुति
वो पहला पड़ाव नही भूलता
हरदम आँखों में रहे झूलता ।।
वो नैनों की मूक मधुर भाषा
वो दिल की थी पहली अभिलाषा ।।
रात- विरात बातें करती वो
हरदम मुझको मुझसे छलती वो ।।
यूँ तो पड़ाव आए हैं हजार
पर उस पड़ाव का न सानी यार ।।
नही मिला है उसका कोइ तोड़
रख दिया उसने दिल को झकझोर ।।
हर पड़ाव का अपना अलग रंग
रखना उन यादों को सदा संग ।।
सफ़र सुहाना कहाए जिन्दगी
मत भूलो सफ़र में प्रभु बन्दिगी ।।
कब तक किस पड़ाव पर 'शिवम'ठिकाना
हर पड़ाव का तुम लुत्फ उठाना ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/11/2019
शीर्षक-- पड़ाव
द्वितीय प्रस्तुति
वो पहला पड़ाव नही भूलता
हरदम आँखों में रहे झूलता ।।
वो नैनों की मूक मधुर भाषा
वो दिल की थी पहली अभिलाषा ।।
रात- विरात बातें करती वो
हरदम मुझको मुझसे छलती वो ।।
यूँ तो पड़ाव आए हैं हजार
पर उस पड़ाव का न सानी यार ।।
नही मिला है उसका कोइ तोड़
रख दिया उसने दिल को झकझोर ।।
हर पड़ाव का अपना अलग रंग
रखना उन यादों को सदा संग ।।
सफ़र सुहाना कहाए जिन्दगी
मत भूलो सफ़र में प्रभु बन्दिगी ।।
कब तक किस पड़ाव पर 'शिवम'ठिकाना
हर पड़ाव का तुम लुत्फ उठाना ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/11/2019
"भावो के मोती"
दिनाँक -27/11/2019
विषय-पड़ाव
हर कहीं पड़ाव है
हो उम्र या पूरी जिंदगी
या हो कोई रास्ता
हर किसी का पड़ाव
से वास्ता ।
कुछ पड़ाव घुमावदार
तो कुछ सीधे आ जाते
हम कभी हड़बड़ा कर
तो कुछ को हँसते हँसते
ही पार कर जाते ।
हर पड़ाव के अपने
संगी साथी होते हैं
कहीं वे दूर तक तो
कहीं पल में रास्ते
बदल आगे निकल
जाते हैं ।
एक पड़ाव से दूसरे
पड़ाव तक अपने
अपने किस्से होते हैं
कुछ हसीन तो कुछ
ग़मज़दा होते हैं ।
राही तुम कभी न थकना
एक के बाद एक हर पड़ाव
को पार करते जाना , हो रास्ता पथरीला पर चलते जाना ।
सूरज की सुनहरी कड़ी धूप
या चाँद की शीतल चांदनी
भर जाएगा मन ज़ख्मो से
न उन्हें देख , मंज़िल पर नज़र
रख
बस आगे ही आगे
कदम तू रख ।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
दिनाँक -27/11/2019
विषय-पड़ाव
हर कहीं पड़ाव है
हो उम्र या पूरी जिंदगी
या हो कोई रास्ता
हर किसी का पड़ाव
से वास्ता ।
कुछ पड़ाव घुमावदार
तो कुछ सीधे आ जाते
हम कभी हड़बड़ा कर
तो कुछ को हँसते हँसते
ही पार कर जाते ।
हर पड़ाव के अपने
संगी साथी होते हैं
कहीं वे दूर तक तो
कहीं पल में रास्ते
बदल आगे निकल
जाते हैं ।
एक पड़ाव से दूसरे
पड़ाव तक अपने
अपने किस्से होते हैं
कुछ हसीन तो कुछ
ग़मज़दा होते हैं ।
राही तुम कभी न थकना
एक के बाद एक हर पड़ाव
को पार करते जाना , हो रास्ता पथरीला पर चलते जाना ।
सूरज की सुनहरी कड़ी धूप
या चाँद की शीतल चांदनी
भर जाएगा मन ज़ख्मो से
न उन्हें देख , मंज़िल पर नज़र
रख
बस आगे ही आगे
कदम तू रख ।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
27/11/2019
विषय-पड़ाव
ये जीवन है
एक शतरंज की बाजी
जो शह और मात पर टिकी है
उतरते चढ़ते पड़ाव
कहीं नहीं ठहराव
अनवरत चलते दांव
कभी धूप कभी छाँव
सुख दुख के प्यादे
चलते अपनी चाल
कुशल खिलाड़ी वही
जो धीरज से खेले अपनी चाल
न मायूस हो जाना
हारे हुए सिपाही के जैसे
निकलना ही पड़ता है
भ्रमों के जाल से
एक संयत चाल चल के ।
जीवन में कदम कदम पर
घात लगाए बैठे हैं
शराफत का नकाब
लगाए शातिर घातिये
सोच समझ कर
उन्हें भांपिये
सावधान हो चलनी है
चाल निज जीवन की
प्रत्येक पड़ाव पर मिलता है
उतार चढ़ाव,यश अपयश
प्रतिपल न मिलता सुयश
कष्ट कंटक जीवन के हिस्से हैं
आज जीवन है तो हम हैं
याद रह जाते फिर किस्से हैं
जीवन ऐसा जिओ कि
रह जाएं सिर्फ मधुर स्मृतियां
एक बार चले जाने के बाद
कौन लौट कर आया है यहाँ ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित©
विषय-पड़ाव
ये जीवन है
एक शतरंज की बाजी
जो शह और मात पर टिकी है
उतरते चढ़ते पड़ाव
कहीं नहीं ठहराव
अनवरत चलते दांव
कभी धूप कभी छाँव
सुख दुख के प्यादे
चलते अपनी चाल
कुशल खिलाड़ी वही
जो धीरज से खेले अपनी चाल
न मायूस हो जाना
हारे हुए सिपाही के जैसे
निकलना ही पड़ता है
भ्रमों के जाल से
एक संयत चाल चल के ।
जीवन में कदम कदम पर
घात लगाए बैठे हैं
शराफत का नकाब
लगाए शातिर घातिये
सोच समझ कर
उन्हें भांपिये
सावधान हो चलनी है
चाल निज जीवन की
प्रत्येक पड़ाव पर मिलता है
उतार चढ़ाव,यश अपयश
प्रतिपल न मिलता सुयश
कष्ट कंटक जीवन के हिस्से हैं
आज जीवन है तो हम हैं
याद रह जाते फिर किस्से हैं
जीवन ऐसा जिओ कि
रह जाएं सिर्फ मधुर स्मृतियां
एक बार चले जाने के बाद
कौन लौट कर आया है यहाँ ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित©
दिनांक-२७/११/२०१९
शीर्षक-पड़ाव"
जीवन के हर पड़ाव से
हँसकर गुजर जाना है।
राहे चाहे कितनी दुष्कर हो
थककर नही रूक जाना है।
मिल जाते हैं संगी साथी
जीवन के हर पड़ाव पर।
एक एक लम्हे छककर जिये
हर पड़ाव बहुत खूबसूरत है।
बचपन बीता,बीत गये जवानी
आया अब बुढ़ापा पास।
रहे आनंदित हर पल सदा
सफर का मंजिल सामने है।
आत्मा तू अंश है परमात्मा का
अब समझने की बारी है।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
शीर्षक-पड़ाव"
जीवन के हर पड़ाव से
हँसकर गुजर जाना है।
राहे चाहे कितनी दुष्कर हो
थककर नही रूक जाना है।
मिल जाते हैं संगी साथी
जीवन के हर पड़ाव पर।
एक एक लम्हे छककर जिये
हर पड़ाव बहुत खूबसूरत है।
बचपन बीता,बीत गये जवानी
आया अब बुढ़ापा पास।
रहे आनंदित हर पल सदा
सफर का मंजिल सामने है।
आत्मा तू अंश है परमात्मा का
अब समझने की बारी है।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
विषय- पड़ाव
दिनांक 27- 11- 2019
जिंदगी में अभी पड़ाव बाकी है।
राह में बहूत घुमाव बाकी है ।।
हो गए सब से दूर हम लेकिन
लोभ लालच लगाव बाकी है।।
मुस्कुरा रहे गैरों के बीच हम।
दिल में बहुत दर्द बाकी है ।।
चाहत ना कम होगी तुमसे ।
दिल में बहुत प्यार बाकी है।।
हिम्मत न हारी मैंने अब तक।
अभी मंजिल पाना बाकी है।।
उम्र के ढलते पड़ाव में भी।
थोड़ा जुनून अभी बाकी है।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 27- 11- 2019
जिंदगी में अभी पड़ाव बाकी है।
राह में बहूत घुमाव बाकी है ।।
हो गए सब से दूर हम लेकिन
लोभ लालच लगाव बाकी है।।
मुस्कुरा रहे गैरों के बीच हम।
दिल में बहुत दर्द बाकी है ।।
चाहत ना कम होगी तुमसे ।
दिल में बहुत प्यार बाकी है।।
हिम्मत न हारी मैंने अब तक।
अभी मंजिल पाना बाकी है।।
उम्र के ढलते पड़ाव में भी।
थोड़ा जुनून अभी बाकी है।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
पड़ाव
गुजर रही है
जिन्दगी होले होले
कभी रफ़्तार
तो कभी धीमे धीमे
कभी अपने
तो कभी हुए पराये
उम्र की दहलीज
जिन्दगी की
खत्म होती लीज
है ये एक पड़ाव
जिन्दगी का
रहे न रहे कल
करे न करे याद कोई
होता खत्म सफ़र
एक शून्य
विकट भयावह
धू धू जलती चिता
अन्तिम पड़ाव
जिन्दगी का
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
गुजर रही है
जिन्दगी होले होले
कभी रफ़्तार
तो कभी धीमे धीमे
कभी अपने
तो कभी हुए पराये
उम्र की दहलीज
जिन्दगी की
खत्म होती लीज
है ये एक पड़ाव
जिन्दगी का
रहे न रहे कल
करे न करे याद कोई
होता खत्म सफ़र
एक शून्य
विकट भयावह
धू धू जलती चिता
अन्तिम पड़ाव
जिन्दगी का
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
दिनांक-२७/११/२०१९
शीर्षक-पड़ाव"
आते हैं जीवन में यों तो अनेक पड़ाव।
पर उनमें से मुख्य है सिर्फ चार पड़ाव।।
सबसे पहला मस्त पड़ाव जो है बचपन।
करते प्यार सब न होता बैर न अनबन।।
दूसरे पड़ाव में होता विकास है जवानी।
पिलाते है उसमें वह बड़े बड़ो को पानी।।
तीसरा पड़ाव अधेड़ जिसमे घर बनाता।
अपने बच्चो को सही मार्ग पर है लाता।।
अंतिम पड़ाव बुढ़ापा बिगड़ जाता हाल।
करता रहता बैठा बैठा घर की देखभाल।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
"व्थथित हृदय मुरादाबादी"
स्वरचित.
शीर्षक-पड़ाव"
आते हैं जीवन में यों तो अनेक पड़ाव।
पर उनमें से मुख्य है सिर्फ चार पड़ाव।।
सबसे पहला मस्त पड़ाव जो है बचपन।
करते प्यार सब न होता बैर न अनबन।।
दूसरे पड़ाव में होता विकास है जवानी।
पिलाते है उसमें वह बड़े बड़ो को पानी।।
तीसरा पड़ाव अधेड़ जिसमे घर बनाता।
अपने बच्चो को सही मार्ग पर है लाता।।
अंतिम पड़ाव बुढ़ापा बिगड़ जाता हाल।
करता रहता बैठा बैठा घर की देखभाल।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
"व्थथित हृदय मुरादाबादी"
स्वरचित.
दिनांक-27/11/2019
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय :-"पड़ाव"
(1)
दिखे न नीति
कौनसे पड़ाव पे
ये राजनीति
(2)
वर्षा के संग
मेघ पड़ाव डालें
तड़ित नाचे
(3)
छूटते साथ
उम्र के पड़ावों पे
स्मृतियाँ हाथ
(4)
मंज़िल सुख
जीवन की राह में
पड़ाव दुःख
(5)
रवि विदाई
निशा डाले पड़ाव
सुस्ताते प्राण
स्वरचित
ऋतुराज दवे
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय :-"पड़ाव"
(1)
दिखे न नीति
कौनसे पड़ाव पे
ये राजनीति
(2)
वर्षा के संग
मेघ पड़ाव डालें
तड़ित नाचे
(3)
छूटते साथ
उम्र के पड़ावों पे
स्मृतियाँ हाथ
(4)
मंज़िल सुख
जीवन की राह में
पड़ाव दुःख
(5)
रवि विदाई
निशा डाले पड़ाव
सुस्ताते प्राण
स्वरचित
ऋतुराज दवे
विषय- पड़ाव
विधा-मुक्त
दिनांक -27-11-19
जनम-मरण के मध्य
बहती जीवन धार है
बचपन, यौवन, प्रौढ़
बुढ़ापा जीवन के ये
आते बीच पड़ाव हैं
आता बचपन किलकारता
यौवन मदमाता मस्ताना आये
प्रौढ़ की पीठ चढ़ अनुभव आता
लेकर फिर हरकतें बचपन की बुढ़ापा आता
बचपन मासूम सा मनमोहक होता
यौवन में जीवन कुछ संजीदा होता
प्रौढ़ कर्म में डूब कर कमर झुकाए रहता
बुढ़ापे में गम्भीरता संग चंचलता का साथ रहता
यूं जीवन का दरिया
सुख-दुःख के दो किनारों में
बहता
आती जब मिलन की बेला
कायिक-तन धरा को सौंप
आत्म जा परमात्म से मिलता ।
डा. नीलम
विधा-मुक्त
दिनांक -27-11-19
जनम-मरण के मध्य
बहती जीवन धार है
बचपन, यौवन, प्रौढ़
बुढ़ापा जीवन के ये
आते बीच पड़ाव हैं
आता बचपन किलकारता
यौवन मदमाता मस्ताना आये
प्रौढ़ की पीठ चढ़ अनुभव आता
लेकर फिर हरकतें बचपन की बुढ़ापा आता
बचपन मासूम सा मनमोहक होता
यौवन में जीवन कुछ संजीदा होता
प्रौढ़ कर्म में डूब कर कमर झुकाए रहता
बुढ़ापे में गम्भीरता संग चंचलता का साथ रहता
यूं जीवन का दरिया
सुख-दुःख के दो किनारों में
बहता
आती जब मिलन की बेला
कायिक-तन धरा को सौंप
आत्म जा परमात्म से मिलता ।
डा. नीलम
विषय - " पड़ाव '
विधा -" हाइकू ' ,,,,
***************
1/ जीवन पथ ,,,
हर उम्र पड़ाव,,,
खुशियाँ बाँटो,,,,,,।
2/ बाल्यावस्था है,,,
निर्माण का पड़ाव,,,,,
ढलता व्यक्ति,,,,,,।
3/ किशोरावस्था,,,
सुन्दर पड़ाव है,,
खिले यौवन ,,,,,,।
4/ वृद्ध अवस्था,,,
अंतिम पड़ाव है,,,,
करें भजन ,,,,,,।
स्वरचित - " विमल '
विधा -" हाइकू ' ,,,,
***************
1/ जीवन पथ ,,,
हर उम्र पड़ाव,,,
खुशियाँ बाँटो,,,,,,।
2/ बाल्यावस्था है,,,
निर्माण का पड़ाव,,,,,
ढलता व्यक्ति,,,,,,।
3/ किशोरावस्था,,,
सुन्दर पड़ाव है,,
खिले यौवन ,,,,,,।
4/ वृद्ध अवस्था,,,
अंतिम पड़ाव है,,,,
करें भजन ,,,,,,।
स्वरचित - " विमल '
दिनांक-27/11/2019
विषय-पड़ाव
उम्र उनकी ढलते -ढलते
अंतिम पड़ाव पर पहुँच गई
जिंदगीभर की कड़ी मेहनत
देखते -देखते मिट्टी में मिल गई ।
उनके पैर लड़खड़ाने लगे हैं
बूढे हाथ भी कंपकंपकाने लगे हैं
आँखों ने भी धोखा दे दिया है
दिमाग भी तो बूढ़ा हो चला है ।
अपनों ने साथ छोड़ दिया
कर्तव्यों से मुँह मोड़ लिया
जिन्होने खिलाया कंधों पर
आज उन्हे बोझ समझ लिया ।
कितना अभिशप्त हो गया है
जिंदगी का यह अंतिम पड़ाव ;
जीने को ,फिर भी मज़बूर हैं वे
अपने परिवार खातिर बेचैन हैं वे ।
आखिर जाएँ तो जाएँ कहाँ ??
दर्द अपना किसे बताएँ यहाँ ??
अपने ही घर से निष्काषित हैं जो
घर अपना बसाएँ तो बसाएँ कहाँ ?
संतोष कुमारी ‘ स्ंप्रीति ‘
स्वरचित
विषय-पड़ाव
उम्र उनकी ढलते -ढलते
अंतिम पड़ाव पर पहुँच गई
जिंदगीभर की कड़ी मेहनत
देखते -देखते मिट्टी में मिल गई ।
उनके पैर लड़खड़ाने लगे हैं
बूढे हाथ भी कंपकंपकाने लगे हैं
आँखों ने भी धोखा दे दिया है
दिमाग भी तो बूढ़ा हो चला है ।
अपनों ने साथ छोड़ दिया
कर्तव्यों से मुँह मोड़ लिया
जिन्होने खिलाया कंधों पर
आज उन्हे बोझ समझ लिया ।
कितना अभिशप्त हो गया है
जिंदगी का यह अंतिम पड़ाव ;
जीने को ,फिर भी मज़बूर हैं वे
अपने परिवार खातिर बेचैन हैं वे ।
आखिर जाएँ तो जाएँ कहाँ ??
दर्द अपना किसे बताएँ यहाँ ??
अपने ही घर से निष्काषित हैं जो
घर अपना बसाएँ तो बसाएँ कहाँ ?
संतोष कुमारी ‘ स्ंप्रीति ‘
स्वरचित
दिनांक 27/11/2019
विषय -पड़ाव
जीवन के हैं अनेक पड़ाव
बचपन, जवानी ,प्रौढ़ ,बुढा़पा
इनमे मिले अनेक भाव
प्रेम , घृणा , छिपाव ,दुराव।
इन सबने दी पल -पल सीख
कौन कितना है आपके लिए ठीक ।
यह पड़ाव हमें रोकता है ठहराता है
कितना रास्ता पार किया यह तुमको बतलाता है।
रास्ते की खट्टी मीठी यादें कुछ समझाती हैं
क्या खोया? क्या पाया? हमको यह बतलाती हैं ।
इन पड़ावों मे कितने मिले ,कितने छूट जाते हैं ।
कितने हमसे मिल कर एक नई दुनिया बसाते हैं ।
ये पड़ाव हमे रुककर आगे बढ़ना सिखाते हैं
पहले से भी अधिक ऊर्जा तन में ये भर जाते हैं ।
जीवन का हर पड़ाव सुंदर है ,सुहाना है ,
यह बात अलग है कि गुजर जाने के बाद हमने जाना है ।
जीवन के हर पड़ाव को जियो समझो जानो,
इसकी पल -पल की खूबसूरती को पहचानो ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
विषय -पड़ाव
जीवन के हैं अनेक पड़ाव
बचपन, जवानी ,प्रौढ़ ,बुढा़पा
इनमे मिले अनेक भाव
प्रेम , घृणा , छिपाव ,दुराव।
इन सबने दी पल -पल सीख
कौन कितना है आपके लिए ठीक ।
यह पड़ाव हमें रोकता है ठहराता है
कितना रास्ता पार किया यह तुमको बतलाता है।
रास्ते की खट्टी मीठी यादें कुछ समझाती हैं
क्या खोया? क्या पाया? हमको यह बतलाती हैं ।
इन पड़ावों मे कितने मिले ,कितने छूट जाते हैं ।
कितने हमसे मिल कर एक नई दुनिया बसाते हैं ।
ये पड़ाव हमे रुककर आगे बढ़ना सिखाते हैं
पहले से भी अधिक ऊर्जा तन में ये भर जाते हैं ।
जीवन का हर पड़ाव सुंदर है ,सुहाना है ,
यह बात अलग है कि गुजर जाने के बाद हमने जाना है ।
जीवन के हर पड़ाव को जियो समझो जानो,
इसकी पल -पल की खूबसूरती को पहचानो ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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