Friday, November 8

"आकर्षण / कशिश "08नवम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-560
Hari Shankar Chaurasia

शीर्षक-- आकर्षण / कशिश
प्रथम प्रस्तुति

🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

वो तो नही मिलते हैं अब पर
उन गालियों में मैं घूम आता ।
पड़े थे जहाँ-जहाँ वो कदम
उन गालियों को मैं चूम आता ।

न जाने क्या कशिश रही उनमें
आज तक वो कशिश न भूल पाता ।
होती मिरी जो किस्मत बस में
नही उनसे कभी दूर जाता ।

जब भी कोई फूल खिला देखूँ
वो अक्स आँखों में झूल जाता ।
उनकी यादों में ही कशिश 'शिवम'
अब तक वो यादें न भूल पाता ।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 08/11/2019

Govind Prasad Gautam
नमन मंच,भावों के मोती
विषय आकर्षण,कशिश
विधा काव्य
08 नवम्बर 2019,शुक्रवार

परम् पिता ने सृष्टि बनाई
कण कण है आकर्षण भव्य।
पुरातनता प्रकृति पसंद नहीं
रूप सँजोवे नित वह नव्य।

स्वर्ण रश्मियां भव्य उदित रवि
मयंक निशा आलोक बरसाता।
रजत ताज हिमालय शौभित
अडिग खड़ा जगति सरसाता।

शस्य श्यामला माँ वसुंधरा
गङ्गायमुना नितअँचल खेले।
वनस्पति शौभित धरती पर
पर्व आकर्षित लगते मेले।

सिंधु गरजता और लरजता
कश्मीरी केसर की क्यारी।
भारत माता अति आकर्षक
शौभा इसकी जग है न्यारी।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
 

Kanhaiya Lal Shrivas

नमन मंच ...........भावों के मोती
दिनांक...............08/11/2019
*विषय.................तुलसी विवाह*
विधा..................दोहा छंद
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
*तुलसी विवाह*
★★★★★★★
पावन कातिक मास में,एकादश का वार।
तुलसी विवाह लग रहा,देव उठन त्यौहार।
★★★
*मंडप छाजन लग गया,ईख रखे घर द्वार।*
*तुलसी भाँवर पड़ रहा, नर नारी सत बार।*
★★★
तुलसी सालिक सह चली,ब्याह रचा प्रभु वाम।
नंदनी घर माता बनी , शुभ वृन्दा हरि नाम।
★★★
*वृन्दा सत माता बनी,रही जलंधर नार।*
*पाप करे दानव बड़ा,लग तुलसी सत भार।*
★★★
तुलसी पावन पौध है , शुभ पूजन घर लाय।
हाथ जोड़ विनती करें, रोग हरण सब काय।
★★★
स्वलिखित
*कन्हैया लाल श्रीवास*
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा


Deepmala Pandey
नमन भावों के मोती
दिनांक - 08/11/2019
शीर्षक - आकर्षण
विधा - मुक्त
---------------------------------
युवा मन में आजकल
हो जाता है आकर्षण
जीने मरने की कसमें खाते
कर देते जीवन अर्पण
बड़ों की बात ये सुनते नहीं
बस अपनी मर्जी करते हैं
उल्टा सीधा हो जाये तो
सिर पकड़ कर रोते हैं
मां- बाप उस वक्त कैसे
बच्चों को समझाते हैं
बीती ताहि बिसार दे
बस यही पाठ पढा़ते हैं
सुन लो युवा कभी न पड़ना
आकर्षण के जाल में
प्रीत करो तो सोच समझकर
धोखा है बहुत इस राह में।

दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छग
08/11/2019


Sarita Garg
विधा - दोहे
विषय - आकर्षण/ कशिश

आकर्षण संसार का, मुझको खींचें जाय ।
प्रभु भक्ति में मन मेरा,तनिक न टिकने पाय ।।

आकर्षण धरती गहे, खींचें अपनी ओर।
ऊपर जायें फिर गिरें......चाहे टूटे पोर।।

आकर्षित मन को करे, तेरा सुंदर रूप।
खिल जाता है ज्यों सुमन,पाकर उजली धूप।।

सुख वैभव में है कशिश,मनवा है बेचैन।
सब पाने की लालसा,सदा चुराये चैन।।

कशिश तुम्हारे प्यार की,एक पल चैन न आय।
जग रुसवाई हो भले,तेरा ख्याल न जाय।।

सरिता गर्ग
 
 

Purnima Sah

08/11/2019
"आकर्षण/कशिश"
कविता
################
हे !!रे मनवा........
आकर्षण है भूल-भुलैय्या
क्यों इसमें तू भटकता है
अज्ञानता की छाया छोड़
दूर तलक तुझे जाना है ।

हे!!रे मनवा..........
आकर्षण है मृग मरीचिका
प्यास नहीं बुझा पाता है
भ्रम जाल तू छोड़ के चल
मंजिल तक तुझे चलना है।

हे!!रे मनवा............
आकर्षण देता क्षणिक सुख
यौवन का मूढ़ उन्मादना है
दिवा स्वप्न को तोड़ के चल
यहाँ तेरा ना कोई अपना है।

हे!!रे मनवा...........
आकर्षण है ठहराव पथ का
यहाँ रिश्ता नाता सब झूठा है
शाम दण्ड और भेद जग का
क्यों इन सबसे तू घबराता है

हे!!रे मनवा............
आकर्षण है छल माया का
अधोगति से हाथ मिलाता है
इस नगरी को तू छोड़ के चल
कृष्ण धाम तुझे पाना है....।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
 

भावों के मोती
शीर्षक- कशिश
जाने कैसी कशिश थी तुझमें

बिन डोर तेरी ओर चला आया मैं।
अनजानी ऐसी खुशी मिली मुझे
ग़म से रिश्ता पल में तोड़ आया मैं।।

न जाना अब कभी छोड़ के मुझे
है इतनी सी मैरी गुज़ारिश तुम्हें।
तुमने ही सीखाया है जीना मुझे
वरना मर जाते हम घुट घुट के।।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

नमन भावों के मोती मंच
विषय-आकर्षण
विधा-दोहे

दिनांकः 8/11/2019
शुक्रवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:

होती यौवन में कशिश,युवा रहें बेचैन ।
जब सुंदर युवती मिले,तब मिलता सुख चैन ।।

प्रकृति में होती कशिश,बरबस लेती मोड़ ।
दुनियां में कोई नहीं,होता उसका तोड़ ।।

केसर क्यारी जब खिले,महक उठे कश्मीर ।
कशिश झील डल की यहाँ,रंग गुलाल अबीर।।

नदी सरोवर भी यहाँ,देते हमको हर्ष ।
देख मनोहर ये छटा,मिल जाता उत्कर्ष ।।

यहाँ हिमालय की कशिश,सफेद चादर ओड।
उस पर यहाँ निसार हो,दौलत कई करोड़ ।।

सुन्दरता से मुग्ध हों,खो बैठें निज होश।
युवा देखते कुछ नहीं,हरदम हैं बेहोश ।।

स्वरचित

डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय, 

Damyanti Damyanti

नमन मंच |
विषय_ आकर्षण/ कशिश |
ईश्वर ने सजाई सृष्टि,हे आकर्षण भर पूर

कोई रमता जोगी ,जोग जगाये
कोई धनाकर्ष लोलुप |
कोई भक्त भक्ति से प्रभु रिझाये
आकर्षित कान्ह दौडा आये |
देश भक्त भन सैनिक करता सर्वस न्यौछार |
रूप आकर्षक सब भारी होता मटियामेट |
पाक आकर्षित आतंकवाद से स्वयं डूबा ओर को डूबाये |
संभलो भव्य आकर्षणौ से मत फिसलो लोगो |
मीरा नरसी बनो बनो आजाद भगत |
हो उनकेगुणो से आकर्षित निज जीवन सवारो|
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा


विषय -आकर्षण/ कशिश
दिनांक 8-11 -2019
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एक तेरा आकर्षण, मुझे वहाँ से खींच लाया है।
वरना मैंने तो जहां को, कब का बिसराया है।।

तेरे आकर्षण का सोच,रात को जाग बिताया है।
मन बावरा सदा रहा, चैन कहीं ना पाया है ।।

तेरा अद्भुत आकर्षण,दिलो दिमाग छाया है।
कई बार मुझसे मिलने,खुला निमंत्रण आया है।।

कोई मेरे दिल को,तेरे सिवा कभी ना भाया है ।
तन मन के भावों को, सबसे मैंने छुपाया है ।।

इससे पहले जग जाने,और कहे तुझे पराया है ।
कान्हा राधा बन उदाहरण,धोखा ना मैंने खाया है ।।

चाहत का इजहार कर दे,देख अब सावन आया है।
मेरे सिवा आँसुओं को तेरे,कोई ना समझ पाया है।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली


आज का विषय, आकर्षक, कशिश
शुक्रवार

8,11,2019

है कैसी कशिश तेरी बातों में ,
मन पंछी भूल गया रस्ता ।
रुचि घटने लगी है दुनियाँ में ,
दामन में तेरे ही ठिठका ।।

छबि बसी तुम्हारी आँखों में,
न जाने है ये आकर्षण कैसा ।
मिले चैन न तुम बिन जीने में,
ये हाल हुआ है इस दिल का ।।

है आकर्षण अजब ही मूरत में,
शीश ये खुद ही स्वतः झुकता ।
मिलता आनंद पूजन अर्चन में,
सुकून बहुत दिल को मिलता ।।

कशिश दुनियाँ की हर शय में,
बिन बाँधे ही मन बँध जाता ।
दिल के कोमल एहसासों में ,
चुपके से कोई आ बस जाता ।।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश


दिनांक ८/११/२०१९
शीर्षक-आकर्षण/कशिश


रूकना नही जीवन में कभी
सदैव चलते जाना है
करें स्वागत,प्रत्येक सूर्योदय का
हर रोज का है अलग आकर्षण।

उल्लासित रहे हर पल अपना
तभी सहज सरल होगा जीवन
अनुपम है प्रकृति हमारी
पल पल करती हमें आकर्षित।

अजायबघर है दुनिया सारी
करें अवलोकन अपना परिवेश
जो होते है सहज प्राप्त
उनमें नही होता आकर्षण।

संकल्प कर लें आज हम
बेपरवाह नहीं हो प्रकृति से,
उसी से है धरा का आकर्षण
इसे बचाये रखें हम ।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव

ये उनकी सूरत का आकर्षण हैं
या मेरे प्रेम का समर्पण
जब भी निहारती हूँ सूरत उनकी

दिखता का उजला ह्रदय का दर्पण .

रुकना चाहती हूँ मैं
इस प्रेम के बंधन से
पर रुक ना सकी
आकर्षण नहीं हैं कोई ये प्रेम हैं मेरे मन का .

आकर्षण तो एक मन का अहसास हैं
सम्पर्ण हर पल मन के पास हैं
सम्पर्ण ही सच्ची प्रेम कहानी हैं
आकर्षण तो बस आनी जानी हैं .
स्वरचित :=रीता बिष्ट


दिनांक- 8/11/2019
शीर्षक- "आकर्षण /कशिश"
विधा- छंदमुक्त कविता

********************
न जाने मैं कहाँ खो गई ,
कैसे मैं आकर्षित हो गई,
सालों-साल नहीं मिलें हम,
एकाएक मुलाकात हो गई |

मन में तब एक कशिश थी,
पर दुनियां की कुछ दबिश थी,
लबों को तब हमने सी लिया,
प्रेम को मन में दफन कर लिया |

मुद्दतों के बाद आज मिले हो,
सब कुछ कितना आज बदल गया,
आकर्षण अब भी गजब का,
भोलापन भी सहज रखा |

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*

नमन भावों के मोती
8/11/ 19
कशिश


कौन सी कशिश है आप की बातों में
रह गये हम बंध कर जज्बातों में
भूल गये हम हस्ती खुद की..
कोई जादू सा था निगाहों में...
ये कशिश ही थी जो..
हम जुड़ गये उनसे यादों में...
छाये रहे वो एक साये की तरह
हम बेबस से थे... उनकी यादों में
पूजा नबीरा काटोल


तिथि _8/11/2019/ शुक्रवार
विषय _*आकर्षण /कशिश*

विधा॒॒॒ _अतुकांत

आकर्षण रहता
मात्र भौतिकता में
भोलापन मासूमियत
सच्चाई बचपन में
दिखाई देता।
नकली झूठी
बातों में मुलम्मा चढी
वस्तुओं में चमकती तस्वीर में आकर्षण।
रंगीन मिजाज और दमकते खोखले चेहरों में ढूढें मिलेगा।
अपनी प्रशंसा एवं अपने प्रशंसकों में ।
मै वह जाता हूँ इनके फरेबी आश्वासन और आकर्षक भाषणों में ।
मुझे वास्तविक से आकर्षण नहीं हुआ
न ही ऐसे प्रेम प्रीत से।
क्योंकि इस मामले में
अभागा हूं हमेशा ठगा गया हूं आकर्षण विकर्षण के घर्षण में।
सुंंन्दरता से रीझा मगर
अंदर की विद्रूप नहीं देख सका किसी के
अंतरतम की कलुषित भावनाओं का
मूल्यांकन नहीं कर सका

स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय श्रीराम रामजी
भा *आकर्षण/कशिश * अतुकांत
8/11/2019/शुक्रवार

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