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ब्लॉग संख्या :-555
दिनांक-03.11.2019
विषय-स्वतंत्र लेखन
विधा- ग़ज़ल
मात्राभार-2122 2122 2122 212
अर्कान-फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
क़ाफ़िया- आने स्वर
रदीफ़- गए ।
===========================
हाल-ए-दिल किससे कहें जो दिल को बहलाने गए ।
प्यार का परचम तेरे कूचे में लहराने गए ।।
***********************************
टूटती रस्म-ए-मुहब्बत काँपते से हो़ंट थे ,
हाए ,क्या हो बेबसी पत्थर से टकराने गए ।।
***********************************
मैं सदा देता हूँ तुमको भाग कर आ जाइए ,
दिल को साथ अपने दिल को बहलाने गए ।।
**********************************
एक दिन ऐसा भी आया हम तिरे दीदार को,
छोड़ कर तेरी गली उठ करके मैख़ाने गए ।।
***********************************
पेंच कुछ ऐसे फँसे बेशक़ उन्हें तुहमत लगे ,
एक दिन उनके खड़े कर यार पहचाने गए ।।
============================
'अ़क्स ' दौनेरिया
विषय-स्वतंत्र लेखन
विधा- ग़ज़ल
मात्राभार-2122 2122 2122 212
अर्कान-फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
क़ाफ़िया- आने स्वर
रदीफ़- गए ।
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हाल-ए-दिल किससे कहें जो दिल को बहलाने गए ।
प्यार का परचम तेरे कूचे में लहराने गए ।।
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टूटती रस्म-ए-मुहब्बत काँपते से हो़ंट थे ,
हाए ,क्या हो बेबसी पत्थर से टकराने गए ।।
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मैं सदा देता हूँ तुमको भाग कर आ जाइए ,
दिल को साथ अपने दिल को बहलाने गए ।।
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एक दिन ऐसा भी आया हम तिरे दीदार को,
छोड़ कर तेरी गली उठ करके मैख़ाने गए ।।
***********************************
पेंच कुछ ऐसे फँसे बेशक़ उन्हें तुहमत लगे ,
एक दिन उनके खड़े कर यार पहचाने गए ।।
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'अ़क्स ' दौनेरिया
भावों के मोती मंच को नमन
विषय: स्वतंत्र लेखन
दिनांक 03/11/2019
1996 में रचित पहली रचना
शीर्षक :सरस्वती वन्दना-
विनती करता हूँ शारदे माता,
विद्या का हमको वरदान दे दे।
हम झुके तेरे चरणों में निशदिन,
तेरा आसरा हम सबको दे दे।
विनती---------
हर वाणी में सरगम है तेरा ,
तू हमें स्वर का राग सिखा दे
हर गीत बन जाए धड़कन ,
नृत्य पे सुर लय ताल मिला दे
मन की वीणा के तार बजाकर
सुरमय संगीत हमारा कर दे
विनती--------- ।
हम गुणगान करते है तेरा ,
तू हमें सच की राह दिखा दे
विनयशाली बन जाएँ हम सब
दिव्य बुद्धि का अमृत पिला दे
मन में ज्ञान का दीपक जलाकर
जगमग जीवन 'रिखब' का कर दे
विनती--------- ।
विनती करता हूँ शारदे माता,
विद्या का हमको वरदान दे दे।
हम झुके तेरे चरणों में निशदिन,
तेरा आसरा हम सबको दे दे।
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
जयपुर (राजस्थान)
विषय: स्वतंत्र लेखन
दिनांक 03/11/2019
1996 में रचित पहली रचना
शीर्षक :सरस्वती वन्दना-
विनती करता हूँ शारदे माता,
विद्या का हमको वरदान दे दे।
हम झुके तेरे चरणों में निशदिन,
तेरा आसरा हम सबको दे दे।
विनती---------
हर वाणी में सरगम है तेरा ,
तू हमें स्वर का राग सिखा दे
हर गीत बन जाए धड़कन ,
नृत्य पे सुर लय ताल मिला दे
मन की वीणा के तार बजाकर
सुरमय संगीत हमारा कर दे
विनती--------- ।
हम गुणगान करते है तेरा ,
तू हमें सच की राह दिखा दे
विनयशाली बन जाएँ हम सब
दिव्य बुद्धि का अमृत पिला दे
मन में ज्ञान का दीपक जलाकर
जगमग जीवन 'रिखब' का कर दे
विनती--------- ।
विनती करता हूँ शारदे माता,
विद्या का हमको वरदान दे दे।
हम झुके तेरे चरणों में निशदिन,
तेरा आसरा हम सबको दे दे।
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
जयपुर (राजस्थान)
नमन मंच 🙏
स्वतंत्र लेखन आयोजन
दिनांक- 3/11/2019शीर्षक- "हरसिंगार"/पारिजात (पुष्प)
*************************
दिन भर की ये धूप-तपन,
तन-मन में लागे अगन,
रात्रि बैठी आँखें बिछाये,
हरसिंगार तब खिल जाये |
पंच पंखुड़ियों का ये पुष्प,
केसरिया डंडी में सुहाये,
रात भर खुशबू महकाये,
मन प्रसन्न,थकान मिट जाये |
पूजा,अर्चना में जब पुष्प चढ़ते,
माँ लक्ष्मी को खूब प्रसन्न करते,
कोई तुम्हें पुष्प पारिजात पुकारे,
शेफालिका भी तुम्हीं कहलाये |
हे हरसिंगार! कितने हो सरल,
रात भर का है जीवन तुम्हारा,
फिर भी महकाते हो जग सारा,
सुख,शान्ति का है संदेश तुम्हारा |
स्वरचित -*संगीता कुकरेती*
स्वतंत्र लेखन आयोजन
दिनांक- 3/11/2019शीर्षक- "हरसिंगार"/पारिजात (पुष्प)
*************************
दिन भर की ये धूप-तपन,
तन-मन में लागे अगन,
रात्रि बैठी आँखें बिछाये,
हरसिंगार तब खिल जाये |
पंच पंखुड़ियों का ये पुष्प,
केसरिया डंडी में सुहाये,
रात भर खुशबू महकाये,
मन प्रसन्न,थकान मिट जाये |
पूजा,अर्चना में जब पुष्प चढ़ते,
माँ लक्ष्मी को खूब प्रसन्न करते,
कोई तुम्हें पुष्प पारिजात पुकारे,
शेफालिका भी तुम्हीं कहलाये |
हे हरसिंगार! कितने हो सरल,
रात भर का है जीवन तुम्हारा,
फिर भी महकाते हो जग सारा,
सुख,शान्ति का है संदेश तुम्हारा |
स्वरचित -*संगीता कुकरेती*
दिनांक...............03/11/2019
विषय.................छठ पर्व
विधा.................दोहा छंद
★★★★★★★
*छठ पर्व*
🥀🥀🥀🥀🥀
विविध जाति सह बोलियाँ,विविध होत त्यौहार।
कर पूजन छठ पर्व का , लेती आशीष नार।
🥀🥀🥀🥀🥀
रवि देव पूजन करे , नदी तीर पर नार।
खुशी मिले जीवन सदा, विनय करय सब हाथ।
🥀🥀🥀🥀🥀
शुक्ल पक्ष तिथि षष्ठी का,पावन कातिक मास।
छठ मैया पूजन किया , करय मातु अरदास।
🥀🥀🥀🥀🥀
धूप दीप ले थाल पर , अर्चन कर छठ मात।
शुभ वर अक्षय धन लिया,सज सिंदुर सब माथ।
🥀🥀🥀🥀🥀
*स्वलिखित*
*कन्हैया लाल श्रीवास*
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
विषय.................छठ पर्व
विधा.................दोहा छंद
★★★★★★★
*छठ पर्व*
🥀🥀🥀🥀🥀
विविध जाति सह बोलियाँ,विविध होत त्यौहार।
कर पूजन छठ पर्व का , लेती आशीष नार।
🥀🥀🥀🥀🥀
रवि देव पूजन करे , नदी तीर पर नार।
खुशी मिले जीवन सदा, विनय करय सब हाथ।
🥀🥀🥀🥀🥀
शुक्ल पक्ष तिथि षष्ठी का,पावन कातिक मास।
छठ मैया पूजन किया , करय मातु अरदास।
🥀🥀🥀🥀🥀
धूप दीप ले थाल पर , अर्चन कर छठ मात।
शुभ वर अक्षय धन लिया,सज सिंदुर सब माथ।
🥀🥀🥀🥀🥀
*स्वलिखित*
*कन्हैया लाल श्रीवास*
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
मन मंच भावों के मोती
विषय स्वतन्त्र लेखन
विधा काव्य
03 नवम्बर 2019,रविवार
युवावर्ग उठो सचेत हो
भरो हुँकार भू विकास हो।
प्रदूषण दूर करें सब मिल
सर्व स्वच्छता निवास हो।
आओ मिल कदम बढ़ाओ
हर कण वसुंधरा सजाओ।
पेड़ लगाओ फूल खिलाओ
मङ्गल गान सदा तुम गाओ।
तुम भविष्य हो भारत के
सागर में मोती नित खोजो।
तुम विज्ञान अन्वेषण कर्ता
अंतरीक्ष में प्रक्षेपण भेजो।
शयन त्याग पुनः हो जाग्रत
कोई नहीं हो जग आर्त्त।
विश्व पटल पर एक सितारा
बस चमके प्रिय नव भारत।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विषय स्वतन्त्र लेखन
विधा काव्य
03 नवम्बर 2019,रविवार
युवावर्ग उठो सचेत हो
भरो हुँकार भू विकास हो।
प्रदूषण दूर करें सब मिल
सर्व स्वच्छता निवास हो।
आओ मिल कदम बढ़ाओ
हर कण वसुंधरा सजाओ।
पेड़ लगाओ फूल खिलाओ
मङ्गल गान सदा तुम गाओ।
तुम भविष्य हो भारत के
सागर में मोती नित खोजो।
तुम विज्ञान अन्वेषण कर्ता
अंतरीक्ष में प्रक्षेपण भेजो।
शयन त्याग पुनः हो जाग्रत
कोई नहीं हो जग आर्त्त।
विश्व पटल पर एक सितारा
बस चमके प्रिय नव भारत।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
छठ मैया जी जय
उगते सूरज को सब ही है पूजते ।
हम डूबते सूरज को भी हैं पूजते।।
मनपसंद विषय लेखन
नमन मंच
दिनांकः-3-11- 2019
वारः-छुट्टी का दिन रविवार
विधाः- छन्द मुक्त
शीर्षकः-नज़र
गये थे हम जब पहली बार।
डालने आप पे अपनी नज़र।।
घबराये थे जाने किस कदर।
लग रही बड़ी कठिन डगर।।
उठा कर डाली आपने नज़र।
मिल गई दोनों की ही नज़र।।
नज़र मिलने से आया कहर।
ले आये आपको अपने घर।।
डाली अपने घर पे एक नज़र।
आप पर डाली दूसरी नज़र।।
मिली फिर जब हमारी नज़र।
करा खुद को, आपकी नज़र।।
करके खुद को आपकी नज़र।
हो गये हम दुनिया से बेखबर।।
45 वर्ष रहे साथ मेरे हमसफर।
चुरायी क्यों तुमने हमसे नज़र।।
बिन तुम्हारे रही नही कोई कद्र।
दर्द गाने लगे, रहे नहीं डाक्टर।।
चुरा कर नज़र, गये तुम जिधर।
भूल गये रहते हैं हम तो इधर।।
लौट आओ तुम फिर अपने घर।
मिल कर बनाये हम जन्नत इधर।।
रोते रोते लिखी , जरा डालो नज़र।
व्यथित हृदय ने कीं आपकी नज़र।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव“
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
उगते सूरज को सब ही है पूजते ।
हम डूबते सूरज को भी हैं पूजते।।
मनपसंद विषय लेखन
नमन मंच
दिनांकः-3-11- 2019
वारः-छुट्टी का दिन रविवार
विधाः- छन्द मुक्त
शीर्षकः-नज़र
गये थे हम जब पहली बार।
डालने आप पे अपनी नज़र।।
घबराये थे जाने किस कदर।
लग रही बड़ी कठिन डगर।।
उठा कर डाली आपने नज़र।
मिल गई दोनों की ही नज़र।।
नज़र मिलने से आया कहर।
ले आये आपको अपने घर।।
डाली अपने घर पे एक नज़र।
आप पर डाली दूसरी नज़र।।
मिली फिर जब हमारी नज़र।
करा खुद को, आपकी नज़र।।
करके खुद को आपकी नज़र।
हो गये हम दुनिया से बेखबर।।
45 वर्ष रहे साथ मेरे हमसफर।
चुरायी क्यों तुमने हमसे नज़र।।
बिन तुम्हारे रही नही कोई कद्र।
दर्द गाने लगे, रहे नहीं डाक्टर।।
चुरा कर नज़र, गये तुम जिधर।
भूल गये रहते हैं हम तो इधर।।
लौट आओ तुम फिर अपने घर।
मिल कर बनाये हम जन्नत इधर।।
रोते रोते लिखी , जरा डालो नज़र।
व्यथित हृदय ने कीं आपकी नज़र।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव“
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
।। भुलक्कड़ कवि ।।😁
बने फिरते हैं बड़े कवि
भुलक्कड़ कहते हैं सभी ।।
इक दिन घर ही भूल गये
वो तो मैं आ गयी तभी ।।
वरन पड़ोसी था खराब
कहाँ रह जाता रूआब ।।
उसी के ही घर में ये
घुसे जा रहे थे जनाब ।।
कागज और कलम थी
मन में शायद सनम थी ।।
लिखते हुए आ रहे थे
ये आदत हरदम थी ।।
जाने कितनी बार समझाया
भाव रास्ते में ही जगाया ।।
सदा अपनी धुन में रहें ये
सब कुछ ही सुदबुद गँवाया ।।
एक दिन तो हद ही कर दी
धोती पड़ोसिन की धर दी ।।
छत से कपड़े उठाने गये
झगड़ा की एक जड़ मढ़ दी ।।
धोती भी न पहचाने
ऐसे हैं ये दीवाने ।।
हमें क्या पहचानेंगे
भूल कितनी हम जाने ।।
रोज के ही ये लपड़े हैं
कवि बेशक ये तगड़े हैं ।।
पर मेरे प्रति उपेक्षा भाव
एक नही 'शिवम' सगरें हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/10/2019
बने फिरते हैं बड़े कवि
भुलक्कड़ कहते हैं सभी ।।
इक दिन घर ही भूल गये
वो तो मैं आ गयी तभी ।।
वरन पड़ोसी था खराब
कहाँ रह जाता रूआब ।।
उसी के ही घर में ये
घुसे जा रहे थे जनाब ।।
कागज और कलम थी
मन में शायद सनम थी ।।
लिखते हुए आ रहे थे
ये आदत हरदम थी ।।
जाने कितनी बार समझाया
भाव रास्ते में ही जगाया ।।
सदा अपनी धुन में रहें ये
सब कुछ ही सुदबुद गँवाया ।।
एक दिन तो हद ही कर दी
धोती पड़ोसिन की धर दी ।।
छत से कपड़े उठाने गये
झगड़ा की एक जड़ मढ़ दी ।।
धोती भी न पहचाने
ऐसे हैं ये दीवाने ।।
हमें क्या पहचानेंगे
भूल कितनी हम जाने ।।
रोज के ही ये लपड़े हैं
कवि बेशक ये तगड़े हैं ।।
पर मेरे प्रति उपेक्षा भाव
एक नही 'शिवम' सगरें हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/10/2019
मंच को सादर नमन
दिनांक:03.11.2019
विधा : पद (छंदमुक्त कविता)
नहीं कभी नहीं
मानते हैं कि...
चिड़ियाघर में बंद शेर
शिकार करना भूल जाता है
और ....
कारागार में बंद कैदी
विचार करना भूल जाता है
क्या कभी सुना है
कि ...वृद्ध आश्रम में
बंद कोई माता-पिता
प्यार करना भूल जाता है
नहीं ... कभी नहीं
जिस प्रकार जमीन
अनाज पैदा करना
नहीं भूलती
ठीक उसी प्रकार
ममता भी
प्यार करना नहीं भूलती
इसलिए...
ममता का मान करो
दिल से सम्मान करो
मात-पिता घर की शोभा हैं
इस बात का भी ध्यान करो
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित रचना
मौलिक
दिनांक:03.11.2019
विधा : पद (छंदमुक्त कविता)
नहीं कभी नहीं
मानते हैं कि...
चिड़ियाघर में बंद शेर
शिकार करना भूल जाता है
और ....
कारागार में बंद कैदी
विचार करना भूल जाता है
क्या कभी सुना है
कि ...वृद्ध आश्रम में
बंद कोई माता-पिता
प्यार करना भूल जाता है
नहीं ... कभी नहीं
जिस प्रकार जमीन
अनाज पैदा करना
नहीं भूलती
ठीक उसी प्रकार
ममता भी
प्यार करना नहीं भूलती
इसलिए...
ममता का मान करो
दिल से सम्मान करो
मात-पिता घर की शोभा हैं
इस बात का भी ध्यान करो
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित रचना
मौलिक
भावों के मोती मंच को सादर नमन 🙏
दिनांक - 3/11/2919
विषय - स्वतंत्र लेखन
शीर्षक - मैं - एक स्त्री हूँ
***************************
कभी खुद से यूँही भागती दौड़ती-सी मैं
कभी अपने को खुद से ही जोड़ती-सी मैं,
जीवन के इन सभी इंद्रधनुषी रंगों को
शरीर पर नहीं आत्मा पे ओढ़ती-सी मैं|
टूटे रिश्तों की डोर को जोड़ती-सी मैं
इच्छाओं के हाथों को सिकोड़ती-सी मैं,
अपनों की छोटी से छोटी खुशियों के लिए
बंद मुट्ठी को फैलाकर खोलती-सी मैं|
आइने में अपना अक्स तलाशती-सी मैं
खुद को ढूँढ़ने अंतर्मन में झाँकती-सी मैं,
घर हो चाहे बाहर दोनों ही दुनिया को
लंबी-लंबी डगे भरती नापती-सी मैं|
सेल छूट जाने पर मन ममोसती-सी मैं
भाव को कम कराती खीसें निपोरती-सी मैं,
मायूस होती कभी-कभी हालात से जब
राशिफल पृष्ठ में किस्मत टटोलती-सी मैं|
टूटते सपनों पे पैबंद टाँकती-सी मैं
गृहस्थी की चादर को ले नापती-सी मैं,
कैसे भी हालात हों कभी ना मुँह मोड़ती
अपनी हर कमियों पे लिहाफ़ ढाँपती-सी मैं|
दुःख में भी अथाह खुशियाँ बटोरती-सी मैं
अपने हिस्से का भी सब परोसती-सी मैं,
अपनी हिम्मत और हौसलों की चाबी से
बंद किस्मत के ताले को खोलती-सी मैं|
अनिता तोमर ' अनुपमा '
(स्वरचित एवं मौलिक रचना)
दिनांक - 3/11/2919
विषय - स्वतंत्र लेखन
शीर्षक - मैं - एक स्त्री हूँ
***************************
कभी खुद से यूँही भागती दौड़ती-सी मैं
कभी अपने को खुद से ही जोड़ती-सी मैं,
जीवन के इन सभी इंद्रधनुषी रंगों को
शरीर पर नहीं आत्मा पे ओढ़ती-सी मैं|
टूटे रिश्तों की डोर को जोड़ती-सी मैं
इच्छाओं के हाथों को सिकोड़ती-सी मैं,
अपनों की छोटी से छोटी खुशियों के लिए
बंद मुट्ठी को फैलाकर खोलती-सी मैं|
आइने में अपना अक्स तलाशती-सी मैं
खुद को ढूँढ़ने अंतर्मन में झाँकती-सी मैं,
घर हो चाहे बाहर दोनों ही दुनिया को
लंबी-लंबी डगे भरती नापती-सी मैं|
सेल छूट जाने पर मन ममोसती-सी मैं
भाव को कम कराती खीसें निपोरती-सी मैं,
मायूस होती कभी-कभी हालात से जब
राशिफल पृष्ठ में किस्मत टटोलती-सी मैं|
टूटते सपनों पे पैबंद टाँकती-सी मैं
गृहस्थी की चादर को ले नापती-सी मैं,
कैसे भी हालात हों कभी ना मुँह मोड़ती
अपनी हर कमियों पे लिहाफ़ ढाँपती-सी मैं|
दुःख में भी अथाह खुशियाँ बटोरती-सी मैं
अपने हिस्से का भी सब परोसती-सी मैं,
अपनी हिम्मत और हौसलों की चाबी से
बंद किस्मत के ताले को खोलती-सी मैं|
अनिता तोमर ' अनुपमा '
(स्वरचित एवं मौलिक रचना)
नमन मंच
03/11/19
दोहा छन्द गीतिका
आज कल की ज्वलंत समस्या
प्रदूषण
****
बीत गया इस वर्ष का,दीपों का त्यौहार।
वायु प्रदूषण बढ़ रहा ,जन मानस बीमार ।।
दोष पराली पर लगे ,कारण सँग कुछ और।
जड़ तक पहुँचे ही नहीं ,कैसे हो उपचार ।।
बिन मानक क्यों चल रहे ,ढाबे अरु उद्योग ।
सँख्या वाहन की बढ़ी ,इस पर करो विचार।।
कचरे के पर्वत खड़े ,सुलगे उसमें आग ।
कागज पर बनते नियम ,सरकारें लाचार ।।
विद्यालय में घोषणा ,आकस्मिक अवकाश।
श्वसन तंत्र बाधित हुये ,शुद्ध करो आचार ।।
व्यथा यही प्रतिवर्ष की ,मनुज हुआ बेहाल।
सुधरे जब पर्यावरण ,तब सुखमय संसार ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
03/11/19
दोहा छन्द गीतिका
आज कल की ज्वलंत समस्या
प्रदूषण
****
बीत गया इस वर्ष का,दीपों का त्यौहार।
वायु प्रदूषण बढ़ रहा ,जन मानस बीमार ।।
दोष पराली पर लगे ,कारण सँग कुछ और।
जड़ तक पहुँचे ही नहीं ,कैसे हो उपचार ।।
बिन मानक क्यों चल रहे ,ढाबे अरु उद्योग ।
सँख्या वाहन की बढ़ी ,इस पर करो विचार।।
कचरे के पर्वत खड़े ,सुलगे उसमें आग ।
कागज पर बनते नियम ,सरकारें लाचार ।।
विद्यालय में घोषणा ,आकस्मिक अवकाश।
श्वसन तंत्र बाधित हुये ,शुद्ध करो आचार ।।
व्यथा यही प्रतिवर्ष की ,मनुज हुआ बेहाल।
सुधरे जब पर्यावरण ,तब सुखमय संसार ।।
स्वरचित
अनिता सुधीर
विषय -स्वतंत्र
दिनांक ३-११-२०१९
शब्द बाण से लोगों को,तू सदा घायल ना कर ।
सब समझदार है, खुद को पागल साबित न कर।।
तू अपनी हर बात में, तीखे व्यंग ना किया कर ।
अपनी लेखनी से,तू औकात न बताया कर ।।
अपने भावों को सदा, संयमित रह लिखा कर।
वर्षों से जो मुकाम पाया,पल में ना गिराकर ।।
दूसरों को सम्मान दे,बदलें में खुद पाया कर।
मैं ही हूँ सब,गलतफहमी में ना जिया कर ।।
जाना तो है जहां से, हकीकत ना बिसराया कर।
अपनी जगह प्रेम से, लोगों के दिल बनाया कर।।
कहती है वीणा, इस बात पर थोड़ा गौर कर।
रह जाएगा तू तन्हा,अहम छोड छोर ना कर।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक ३-११-२०१९
शब्द बाण से लोगों को,तू सदा घायल ना कर ।
सब समझदार है, खुद को पागल साबित न कर।।
तू अपनी हर बात में, तीखे व्यंग ना किया कर ।
अपनी लेखनी से,तू औकात न बताया कर ।।
अपने भावों को सदा, संयमित रह लिखा कर।
वर्षों से जो मुकाम पाया,पल में ना गिराकर ।।
दूसरों को सम्मान दे,बदलें में खुद पाया कर।
मैं ही हूँ सब,गलतफहमी में ना जिया कर ।।
जाना तो है जहां से, हकीकत ना बिसराया कर।
अपनी जगह प्रेम से, लोगों के दिल बनाया कर।।
कहती है वीणा, इस बात पर थोड़ा गौर कर।
रह जाएगा तू तन्हा,अहम छोड छोर ना कर।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
नमन मंच भावों के मोती
3 /11/ 2019
बिषय,,स्वतंत्र ,,लेखन
घने घने बादलों ने डाला आंगन डेरा
अब समझ न आता सबेरा
घनमंडल के बीच में सूरज शर्मा जाता
फिर नजर नहीं आता
कृषकों के माथे चिंता की रेखाएं
कैसे खेत खलिहान सजाऐं
खेतों के मध्य में खड़ी हुई है धान
है किसान हैरान
जलवृष्टि को रोको करें सभी गुणगान
दया करो भगवान
स्वरचित,, सुषमा
ब्यौहार
3 /11/ 2019
बिषय,,स्वतंत्र ,,लेखन
घने घने बादलों ने डाला आंगन डेरा
अब समझ न आता सबेरा
घनमंडल के बीच में सूरज शर्मा जाता
फिर नजर नहीं आता
कृषकों के माथे चिंता की रेखाएं
कैसे खेत खलिहान सजाऐं
खेतों के मध्य में खड़ी हुई है धान
है किसान हैरान
जलवृष्टि को रोको करें सभी गुणगान
दया करो भगवान
स्वरचित,, सुषमा
ब्यौहार
नमन - सम्मानित मंच
3-11-19 , रविवार ,
स्वतंत्र लेखन ( दोहा )
००००००००
जीवन - सूत्र
**********
(1)
जीवन को झंझट कहें, कायर हैं वे लोग ।
डरते हैं संघर्ष से, फिर भी चाहें भोग ।।
(2)
सत्य धर्म अरु न्याय को, देते सब सम्मान ।
जो इससे उलटा चले, कहलाता नादान ।।
(3)
बिना प्रेम के जिन्दगी, सत्य कहूँ बेकार ।
निर्मल मन से हे सखा,बाँट सभी को प्यार ।।
(4)
जीत उसी को मिल सके, चले सत्य की राह ।
लाख टके की बात है, दिल से कर परवाह ।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया
3-11-19 , रविवार ,
स्वतंत्र लेखन ( दोहा )
००००००००
जीवन - सूत्र
**********
(1)
जीवन को झंझट कहें, कायर हैं वे लोग ।
डरते हैं संघर्ष से, फिर भी चाहें भोग ।।
(2)
सत्य धर्म अरु न्याय को, देते सब सम्मान ।
जो इससे उलटा चले, कहलाता नादान ।।
(3)
बिना प्रेम के जिन्दगी, सत्य कहूँ बेकार ।
निर्मल मन से हे सखा,बाँट सभी को प्यार ।।
(4)
जीत उसी को मिल सके, चले सत्य की राह ।
लाख टके की बात है, दिल से कर परवाह ।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया
भावों के मोती
3/11/19
विषय-स्वतंत्र विधा लेखन।
विधा-गीत।
"पलकों में सपने सँजोये,
आस मन पलती रही।'
चांदनी के वर्तुलों में
सोम सुधा झरती रही।
सुख सपन सजने लगे,
युगल दृग की कोर पर।
इंद्रनील कान्ति शोभित
मन व्योम के छोर पर ।
पिघल-पिघल निलिमा से,
मंदाकिनी बहती रही ।
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।
गुनगुनाती रही दिशाएं,
लिए राग मौसम खड़ा।
बाहों में आकाश भरने
पाखियों सा मन उड़ा।
देख वल्लरियों पर यौवन
कुमुद कली खिलती रही
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।
द्रुम बजाते रागिनी सी,
मिल समीर की थाप से।
झिलमिलता नीर सरि का,
दीप मणी की चाप से ।
उतर आई अप्सराएं,
शृंगार धरा करती रही ।
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।
स्वरचित।
कुसुम कोठारी।
3/11/19
विषय-स्वतंत्र विधा लेखन।
विधा-गीत।
"पलकों में सपने सँजोये,
आस मन पलती रही।'
चांदनी के वर्तुलों में
सोम सुधा झरती रही।
सुख सपन सजने लगे,
युगल दृग की कोर पर।
इंद्रनील कान्ति शोभित
मन व्योम के छोर पर ।
पिघल-पिघल निलिमा से,
मंदाकिनी बहती रही ।
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।
गुनगुनाती रही दिशाएं,
लिए राग मौसम खड़ा।
बाहों में आकाश भरने
पाखियों सा मन उड़ा।
देख वल्लरियों पर यौवन
कुमुद कली खिलती रही
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।
द्रुम बजाते रागिनी सी,
मिल समीर की थाप से।
झिलमिलता नीर सरि का,
दीप मणी की चाप से ।
उतर आई अप्सराएं,
शृंगार धरा करती रही ।
पलकों में सपने संजोए
आस मन पलती रही।
स्वरचित।
कुसुम कोठारी।
तुम्हारें ख़त में लिखी उसकी कहानी क्या है।
भीगती हुई नम आँखों की रवानी क्या है।
धधकते शोलों की जलती ज्वाला में
उस हसीन शख्स की जवानी क्या है।
सागर में डूबी उस बेज़ान कश्ती पर
यूं तंज कसने की मेहरबानी क्या है।
चौरासी लाख योनियों में फिरने के बाद
पहली दफ़ा मिलने की निशानी क्या है।
नायाब फ़साने में अश्क़ बहा के 'भाविक'
फुर्सत में मिले फ़रिश्ते की जुबानी क्या है।
भाविक भावी
भीगती हुई नम आँखों की रवानी क्या है।
धधकते शोलों की जलती ज्वाला में
उस हसीन शख्स की जवानी क्या है।
सागर में डूबी उस बेज़ान कश्ती पर
यूं तंज कसने की मेहरबानी क्या है।
चौरासी लाख योनियों में फिरने के बाद
पहली दफ़ा मिलने की निशानी क्या है।
नायाब फ़साने में अश्क़ बहा के 'भाविक'
फुर्सत में मिले फ़रिश्ते की जुबानी क्या है।
भाविक भावी
नमन भावों के मोती
दिनांक-३/११/२०१९
स्वतंत्र लेखन
""मत करो अपराध"
करने चले जो तुम अपराध
याद करो माँ को एकबार
क्या बितेगी उस पर आज
जब तुम करोगे अपराध।
किस किस दुःख से तुम्हें है पाला
क्या क्या नहीं सपना पाला
करो ना उसका सपना चकनाचूर
मर जायेगी, होकर मजबूर।
करो ना तुम अन्याय उससे
करके उनको दुखी तुम
कैसे खुश रह पाओगे तुम?
माँ की ममता को मत भूलो।
तुम्हारे अपराध की सजा,
मॉं भोगेगी तुमसे ज्यादा
कर लो तुम अपराध से तौबा
माँ न मिलेगी दोबारा।
द्वेष,क्रोध लालच को त्यागो
अपराध करने के पहले, माँ को चाहो
भूल जाओगे सारे राग द्वेष
मिट जायेंगे,सारे क्लेश।
माँ की सपना को करो साकार
माँ के बिना, दुनिया बेकार
रख कर माँ को ध्यान में
फिर सपना बुनो तुम अपना।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
दिनांक-३/११/२०१९
स्वतंत्र लेखन
""मत करो अपराध"
करने चले जो तुम अपराध
याद करो माँ को एकबार
क्या बितेगी उस पर आज
जब तुम करोगे अपराध।
किस किस दुःख से तुम्हें है पाला
क्या क्या नहीं सपना पाला
करो ना उसका सपना चकनाचूर
मर जायेगी, होकर मजबूर।
करो ना तुम अन्याय उससे
करके उनको दुखी तुम
कैसे खुश रह पाओगे तुम?
माँ की ममता को मत भूलो।
तुम्हारे अपराध की सजा,
मॉं भोगेगी तुमसे ज्यादा
कर लो तुम अपराध से तौबा
माँ न मिलेगी दोबारा।
द्वेष,क्रोध लालच को त्यागो
अपराध करने के पहले, माँ को चाहो
भूल जाओगे सारे राग द्वेष
मिट जायेंगे,सारे क्लेश।
माँ की सपना को करो साकार
माँ के बिना, दुनिया बेकार
रख कर माँ को ध्यान में
फिर सपना बुनो तुम अपना।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
स्वतंत्र लेखन।
दिनांक--3/11/2019
कविता---
व्दव्दं छिड़ता है
जब कहीं भीतर।
उठता है ज्वार
उव्दिग्न हो विचारों का।
होता है मंथन तब
भाव-सागर का।
चेतना सौंपती है
अमृत-घट तब
संघर्ष-गति का।
करती स्पन्दित
संकल्पित मन को।
क्रियाशील करती
मानव जीवन को।।
--------लक्ष्मी दत्तव्यास
-----स्वरचित।
दिनांक--3/11/2019
कविता---
व्दव्दं छिड़ता है
जब कहीं भीतर।
उठता है ज्वार
उव्दिग्न हो विचारों का।
होता है मंथन तब
भाव-सागर का।
चेतना सौंपती है
अमृत-घट तब
संघर्ष-गति का।
करती स्पन्दित
संकल्पित मन को।
क्रियाशील करती
मानव जीवन को।।
--------लक्ष्मी दत्तव्यास
-----स्वरचित।
शीर्षक - प्रेम
एक बात बताऊं दोस्तो
पर किसी को ना कहना
अपने तक ही रखना
दिल की बात है दिल मे ही
छुपाके रखना
🤔🙏🏻🤔
उसको मुझसे प्रेम हो गया है
और बेइतिहा हो गया है
वो हर पल मेरे बारे में
ही सोचता है
😘💕😘
हर पल हर घड़ी मेरे साथ ही
रहता है
उसको मुझसे प्रेम हो गया है
उसका प्रेम इतना अटूट है की
😘💕😘
मेरे जन्म से ही वो मेरे साथ हो गया है
उसको मुझसे प्रेम हो गया है
और इतना की बेइंतिहा हो गया
😘💕😘
कितना उसको ड़ाटती हूँ मैं
कितना उसको कोसती हूँ मैं
लेकिन उसको तो मुझसे
प्रेम हो गया है
😘💕😘
एक दिन मैंने पूछा उसको
अपना नाम तो बता
वो लटके हुए मुँह से बोला
गम ह्रूँ मैं ,दर्द मेरा उपनाम है
कुछ लोग प्रेम से मुझे जख्म
और घाव से भी जानते है
😓💕😭
मैंने पूछा जन्म से तू साथ है मेरे
तू कब आया मेरे पास यह तो बता
गम यूं मुस्कुराया और बोला
तू कैसे भूल गई मुझे
🤔💕😭
जन्म से आज तक मैंने ही तो
तेरा साथ निभाया है
और तू मुस्कुराहट से मोहब्बत कर बैठी
साथ रहता हूँ मैं तेरे हर पल
🤣💕😀
और तु मुस्कुराहट को दिल दे बैठी
आज मैं बहुत छोटा हो गया हूँ
लगता है मेरे जाने का समय हो गया है
तेरे मेरे बीच बहुत फासला हो गया
😓💕🤔
मुस्कुराहट तेरे अधरों में
यूँ खिल खिलाती है सारे बत्तीसी
के दर्शन कराती है
🤣💋🤣
आँरवो में तेरी एक चमक सी आती है
और तेरी मुस्कुराहट मुझे
चिढ़ा कर जाती है
😜💕😝
बचपन में भी तो खिलखिलाती थी
आज भी तू खिल खिलाती है
चाहे कितना प्रेम कर लूं तुझको
तू मुस्कुराहट की है और
मुस्कुराहट की ही रहेगी
🤣💕😀
अलविदा ए दोस्त
अब हम शायद फिर कभी ना मिले
इसी के साथ लेता हूं विदाई
गम और दर्द को तेरे दिल में
कोई जगह नहीं मिल पायी
😭💕😭
💕🙏🏻स्वरचित -हेमा जोशी
एक बात बताऊं दोस्तो
पर किसी को ना कहना
अपने तक ही रखना
दिल की बात है दिल मे ही
छुपाके रखना
🤔🙏🏻🤔
उसको मुझसे प्रेम हो गया है
और बेइतिहा हो गया है
वो हर पल मेरे बारे में
ही सोचता है
😘💕😘
हर पल हर घड़ी मेरे साथ ही
रहता है
उसको मुझसे प्रेम हो गया है
उसका प्रेम इतना अटूट है की
😘💕😘
मेरे जन्म से ही वो मेरे साथ हो गया है
उसको मुझसे प्रेम हो गया है
और इतना की बेइंतिहा हो गया
😘💕😘
कितना उसको ड़ाटती हूँ मैं
कितना उसको कोसती हूँ मैं
लेकिन उसको तो मुझसे
प्रेम हो गया है
😘💕😘
एक दिन मैंने पूछा उसको
अपना नाम तो बता
वो लटके हुए मुँह से बोला
गम ह्रूँ मैं ,दर्द मेरा उपनाम है
कुछ लोग प्रेम से मुझे जख्म
और घाव से भी जानते है
😓💕😭
मैंने पूछा जन्म से तू साथ है मेरे
तू कब आया मेरे पास यह तो बता
गम यूं मुस्कुराया और बोला
तू कैसे भूल गई मुझे
🤔💕😭
जन्म से आज तक मैंने ही तो
तेरा साथ निभाया है
और तू मुस्कुराहट से मोहब्बत कर बैठी
साथ रहता हूँ मैं तेरे हर पल
🤣💕😀
और तु मुस्कुराहट को दिल दे बैठी
आज मैं बहुत छोटा हो गया हूँ
लगता है मेरे जाने का समय हो गया है
तेरे मेरे बीच बहुत फासला हो गया
😓💕🤔
मुस्कुराहट तेरे अधरों में
यूँ खिल खिलाती है सारे बत्तीसी
के दर्शन कराती है
🤣💋🤣
आँरवो में तेरी एक चमक सी आती है
और तेरी मुस्कुराहट मुझे
चिढ़ा कर जाती है
😜💕😝
बचपन में भी तो खिलखिलाती थी
आज भी तू खिल खिलाती है
चाहे कितना प्रेम कर लूं तुझको
तू मुस्कुराहट की है और
मुस्कुराहट की ही रहेगी
🤣💕😀
अलविदा ए दोस्त
अब हम शायद फिर कभी ना मिले
इसी के साथ लेता हूं विदाई
गम और दर्द को तेरे दिल में
कोई जगह नहीं मिल पायी
😭💕😭
💕🙏🏻स्वरचित -हेमा जोशी
नमन भावों के मोती मंच
विषय-विषय मुक्त सृजन
दिनांकः 3/11/2019
रविवार
विधा-गीत
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:
जब दिल का दर्द उभरता है,
नैनों से नीर ढुलक जाते ।
जो गम मन के भीतर होते,
आॅखो से बाहर निकल आते ।।
खुशियाँ भी नहीं समाती मन में,
आॅसू बनकर बह जाती।
विरह पीड़ा अपनों की ,
आॅसू में आकर कह जाती।।
जब भाव विभोर कोई होता,
आॅखे नम हो जाती ।
होती जब पीड़ा कोई अपार,
आॅसू बनकर कह जाती।।
जब प्रभु भक्ति में मन लगता,
गहरे में कहीं चला जाता ।
रूप अलौकिक देख प्रभु का,
अश्रु बाॅध छलक जाता ।।
स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर
(डॉ नरसिंह शर्मा 'निर्भय, जयपुर)
विषय-विषय मुक्त सृजन
दिनांकः 3/11/2019
रविवार
विधा-गीत
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:
जब दिल का दर्द उभरता है,
नैनों से नीर ढुलक जाते ।
जो गम मन के भीतर होते,
आॅखो से बाहर निकल आते ।।
खुशियाँ भी नहीं समाती मन में,
आॅसू बनकर बह जाती।
विरह पीड़ा अपनों की ,
आॅसू में आकर कह जाती।।
जब भाव विभोर कोई होता,
आॅखे नम हो जाती ।
होती जब पीड़ा कोई अपार,
आॅसू बनकर कह जाती।।
जब प्रभु भक्ति में मन लगता,
गहरे में कहीं चला जाता ।
रूप अलौकिक देख प्रभु का,
अश्रु बाॅध छलक जाता ।।
स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर
(डॉ नरसिंह शर्मा 'निर्भय, जयपुर)
नमन मंच
3.10.2019
रविवार
मन पसंद विषय लेखन
छठ पर्व
सूरज दर्शन कर ना पाए,बाक़ी रह गई प्यास है
छठ पूजा पर छिपा है सूरज,
क्या सूरज उदास है ?
जीवन देने वाली शक्ति,रूठ गई क्यों जीवन से
अर्घ्य समर्पित करते हम सब, पूरी होती आस है।।
सब कुछ पा जाने की लालसा,
ने, ख़ुदग़र्ज़ बना डाला
इतना किया प्रदूषण,देखो सूरज भी नाराज़ है।।
प्रकृति ने अनमोल सम्पदा,
सौंपी हमें ख़ज़ाने से
क्यूँ इंसान समझ ना पाता, आस-पास सब ख़ास है।।
स्वार्थ सिद्धि ने सीमित सा,कर दिया सभी को, अब सोचें
सभी फलें-फूलें बढ़ जाएँ,
सबका जीवन ख़ास है।।
ख़ुशियों के हर रंग बिखेरें ख़ुशियों से भर लें जीवन
रंग भरें जीवन में,जीवन मधुबन सा कैनवास है।।
कहीं अँधेरा रह ना जाए, अब ‘उदार ‘ जग की सोचें
मन का दीप जला कर हर लें, दीप हमारे पास है ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
3.10.2019
रविवार
मन पसंद विषय लेखन
छठ पर्व
सूरज दर्शन कर ना पाए,बाक़ी रह गई प्यास है
छठ पूजा पर छिपा है सूरज,
क्या सूरज उदास है ?
जीवन देने वाली शक्ति,रूठ गई क्यों जीवन से
अर्घ्य समर्पित करते हम सब, पूरी होती आस है।।
सब कुछ पा जाने की लालसा,
ने, ख़ुदग़र्ज़ बना डाला
इतना किया प्रदूषण,देखो सूरज भी नाराज़ है।।
प्रकृति ने अनमोल सम्पदा,
सौंपी हमें ख़ज़ाने से
क्यूँ इंसान समझ ना पाता, आस-पास सब ख़ास है।।
स्वार्थ सिद्धि ने सीमित सा,कर दिया सभी को, अब सोचें
सभी फलें-फूलें बढ़ जाएँ,
सबका जीवन ख़ास है।।
ख़ुशियों के हर रंग बिखेरें ख़ुशियों से भर लें जीवन
रंग भरें जीवन में,जीवन मधुबन सा कैनवास है।।
कहीं अँधेरा रह ना जाए, अब ‘उदार ‘ जग की सोचें
मन का दीप जला कर हर लें, दीप हमारे पास है ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
नमन भावों के मोती
03/11/19
रविवार
विषय - स्वैच्छिक
विधा- गीत
वतन के गीत हम सब साथ मिलकर आज गाएँगे,
उसी के वास्ते तन और मन सबकुछ लुटाएंगे।
वतन के गीत .......
इसी के अन्न-जल को प्राप्त कर पोषित हुए हैं हम,
कसम खाते हैं ,अपने देश का न सिर झुकाएंगे।
वतन के गीत .......
यहाँ गंगा की कल-कल धार बहती है दिशाओं में,
उसे करके प्रदूषण- मुक्त हम पावन बनाएँगे।
वतन के गीत .......
न जाति-धर्म की बातों से आपस में लड़ेंगे हम,
सभी को भाईचारे का सबक मिलकर सिखाएंगे।
वतन के गीत .......
हमारी संस्कृति संसार में है सबसे सुन्दरतम,
उसी पर कर अमल हम देश को सुंदर बनाएँगे।
वतन के गीत .......
यहाँ गणतंत्र की रक्षा करेंगे देश के वासी ,
कभी गणतंत्र को गनतंत्र न हरगिज़ बनाएँगे।
वतन के गीत .......
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
03/11/19
रविवार
विषय - स्वैच्छिक
विधा- गीत
वतन के गीत हम सब साथ मिलकर आज गाएँगे,
उसी के वास्ते तन और मन सबकुछ लुटाएंगे।
वतन के गीत .......
इसी के अन्न-जल को प्राप्त कर पोषित हुए हैं हम,
कसम खाते हैं ,अपने देश का न सिर झुकाएंगे।
वतन के गीत .......
यहाँ गंगा की कल-कल धार बहती है दिशाओं में,
उसे करके प्रदूषण- मुक्त हम पावन बनाएँगे।
वतन के गीत .......
न जाति-धर्म की बातों से आपस में लड़ेंगे हम,
सभी को भाईचारे का सबक मिलकर सिखाएंगे।
वतन के गीत .......
हमारी संस्कृति संसार में है सबसे सुन्दरतम,
उसी पर कर अमल हम देश को सुंदर बनाएँगे।
वतन के गीत .......
यहाँ गणतंत्र की रक्षा करेंगे देश के वासी ,
कभी गणतंत्र को गनतंत्र न हरगिज़ बनाएँगे।
वतन के गीत .......
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
नमन मंच
भावों के मोती
3/11/2019
रविवार
विषय -स्वतंत्र
पहले जैसे अब घर नहीं मिलते
दहलीज पर बैठे लोग नहीं मिलते
कबीर सिंह सबको पसंद आयी
अनुच्छेद 15 को दर्शक नहीं मिलते
व्यस्त से व्यस्तम हुआ आदमी
एक पल भी चैन से नहीं मिलते
घरों तक सिमट गया बचपन सारा
गिल्ली डंडा खेल नहीं मिलते
हुडदंग मचाये जमाना हुआ
संयुक्त परिवार अब नहीं मिलते
जो तीरगी को दूर रखे घर से
अब ऐसे जुगनू नहीं मिलते
स्वरचित
शिल्पी
भावों के मोती
3/11/2019
रविवार
विषय -स्वतंत्र
पहले जैसे अब घर नहीं मिलते
दहलीज पर बैठे लोग नहीं मिलते
कबीर सिंह सबको पसंद आयी
अनुच्छेद 15 को दर्शक नहीं मिलते
व्यस्त से व्यस्तम हुआ आदमी
एक पल भी चैन से नहीं मिलते
घरों तक सिमट गया बचपन सारा
गिल्ली डंडा खेल नहीं मिलते
हुडदंग मचाये जमाना हुआ
संयुक्त परिवार अब नहीं मिलते
जो तीरगी को दूर रखे घर से
अब ऐसे जुगनू नहीं मिलते
स्वरचित
शिल्पी
झलक अस्ताचल की
💟💟💟💟💟💟
शाम थी सुनहरी और मैं, देख रहा था नीलाँचल
बडा़ अच्छा लग रहा था ,सूर्य देव का अस्ताँचल
उनकी आभ पड़ रही थी,धीमे धीमे मद्धिम मद्धिम
पर उनका ओज था,बहुत सुन्दर स्वर्मिम स्वर्णिम।
मानव भी अस्ताँचल तक ,रहता सदा चलायमान
वह भी बनाता रहता है, अपने कौशल से कीर्तिमान
उसको भी हो जाता है ,बातों का सारी पर्याप्त भान
वह भी अनुभव करने लगता ,जीवन की थोडी़ थकान।
उनमें भी होती है ,अनुभवों की एक अद्भुत आभ
और यदि चाहो तो,मिल सकता है सबको लाभ
उनके पास परामर्श का,होता है विशेष कोष
अपने अनुभवों से वो,भर सकते हैं अनुपम जोश।
सामान्य अवस्था में इनको ,तुम समझो चाहे अशक्त वृद्ध
पर अपने अनुभवों से ये,होते हैं पूरे समृद्ध
ढलते सूर्य देव भी ,सृष्टि को उपकृत करते
उसी तरह ये सज्जन भी, अपने आशीषों की छत धरते।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
💟💟💟💟💟💟
शाम थी सुनहरी और मैं, देख रहा था नीलाँचल
बडा़ अच्छा लग रहा था ,सूर्य देव का अस्ताँचल
उनकी आभ पड़ रही थी,धीमे धीमे मद्धिम मद्धिम
पर उनका ओज था,बहुत सुन्दर स्वर्मिम स्वर्णिम।
मानव भी अस्ताँचल तक ,रहता सदा चलायमान
वह भी बनाता रहता है, अपने कौशल से कीर्तिमान
उसको भी हो जाता है ,बातों का सारी पर्याप्त भान
वह भी अनुभव करने लगता ,जीवन की थोडी़ थकान।
उनमें भी होती है ,अनुभवों की एक अद्भुत आभ
और यदि चाहो तो,मिल सकता है सबको लाभ
उनके पास परामर्श का,होता है विशेष कोष
अपने अनुभवों से वो,भर सकते हैं अनुपम जोश।
सामान्य अवस्था में इनको ,तुम समझो चाहे अशक्त वृद्ध
पर अपने अनुभवों से ये,होते हैं पूरे समृद्ध
ढलते सूर्य देव भी ,सृष्टि को उपकृत करते
उसी तरह ये सज्जन भी, अपने आशीषों की छत धरते।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
नमन "भावों के मोती"
विषय:- "स्वतन्त्र लेखन, दृश्य श्रव्य गीत प्रस्तुति"
दिनांक :- 03/11/2019.
विधा :- "गीत"
संयम सेवा न्याय नीति पर, अपनी आंख जमालो प्यारे।
कामुकता में फंस अपना मत, नाहक तेज गंवाओ प्यारे।
हिंसा की मजबूत तरंगें, तेज न उनका सह पाओगे।
गर मकसद से दूर रहे तो, मीत सफलता क्या पाओगे।
साहस दूर भाग जाएगा, तिल तिल कर मर जाओगे तुम।
शाख़ से सूखी पत्ती झरती, वैसे ही झर जाओगे तुम।
युक्त न यदि तुम हुए गुणों से, जीवन सार गवां बैठोगे।
अवसर द्वारे से लौटा तो, इक त्यौहार गवां बैठोगे।
ईर्ष्या स्वार्थ द्वेष तजो अब, सबको आंख दिखाना छोड़ो। मन की कुंठित इच्छाओं पर हरपल-छिन भरमाना छोड़ो।
लहरों पर सागर की तुमको, पाँव जमा कर चलना होगा।
देश फंसा है बीच भंवर में, पार तुम्हीं को करना होगा।
सोच समझ पग धरो अगाड़ी, मग में कांटे बिछे बहुत हैं।
रहजन, चोर, लुटेरे, डाकू, छद्म वेष में छिपे बहुत हैं।
उठो जवानों! भारत मां की, बेड़ी की जंजीरें खोलो।
कर दो मुक्त दुराचारों से, भारत माता की जय बोलो।
**************************************
विषय:- "स्वतन्त्र लेखन, दृश्य श्रव्य गीत प्रस्तुति"
दिनांक :- 03/11/2019.
विधा :- "गीत"
संयम सेवा न्याय नीति पर, अपनी आंख जमालो प्यारे।
कामुकता में फंस अपना मत, नाहक तेज गंवाओ प्यारे।
हिंसा की मजबूत तरंगें, तेज न उनका सह पाओगे।
गर मकसद से दूर रहे तो, मीत सफलता क्या पाओगे।
साहस दूर भाग जाएगा, तिल तिल कर मर जाओगे तुम।
शाख़ से सूखी पत्ती झरती, वैसे ही झर जाओगे तुम।
युक्त न यदि तुम हुए गुणों से, जीवन सार गवां बैठोगे।
अवसर द्वारे से लौटा तो, इक त्यौहार गवां बैठोगे।
ईर्ष्या स्वार्थ द्वेष तजो अब, सबको आंख दिखाना छोड़ो। मन की कुंठित इच्छाओं पर हरपल-छिन भरमाना छोड़ो।
लहरों पर सागर की तुमको, पाँव जमा कर चलना होगा।
देश फंसा है बीच भंवर में, पार तुम्हीं को करना होगा।
सोच समझ पग धरो अगाड़ी, मग में कांटे बिछे बहुत हैं।
रहजन, चोर, लुटेरे, डाकू, छद्म वेष में छिपे बहुत हैं।
उठो जवानों! भारत मां की, बेड़ी की जंजीरें खोलो।
कर दो मुक्त दुराचारों से, भारत माता की जय बोलो।
**************************************
भावों के मोती दिनांक 3/11/19
स्वतंत्र लेखन
विधा - व्यथा लेखन और अपील
वरिष्ठ नागरिकों की व्यथा
रेल्वे की सीनियर सिटीजनस के साथ नाइंसाफ़ी
सीनियर सिटीजनस को रेल से यात्रा में चालिस /:पचास प्रतिशत छूट रेल्वे ने दी जाती है परन्तु यह छूट "हमसफर" और "विशेष गाड़ियों" में नहीं है । यह सीनियर सिटीजन के साथ नाइंसाफ़ी है , जबकि इनका किराया भी सामान्य गाड़ियों की अपेक्षा काफी
ज्यादा है । सीनियर सिटीजन को वृध्दावस्था में बीमारी आदि के कारण आर्थिक तंगी अधिक रहती है और यात्रा के समय सुविधा की भी जरूरत रहती है ।
सामान्य गाड़ियों में आरक्षण नहीं मिलता और विशेष गाडियाँ का किराया सामान्य गाड़ियों से बहुत ज्यादा तीन - चार गुना ज्यादा रहता है ।
सीनियर सिटीजन वृद्धावस्था के कारण यात्रा भी कम और बहुत मजबूरी में करते हैं । इसके बाद मंहगे टिकिट और कमर
तोड़ देते हैं ।
आशा है भारत सरकार और रेलवे इस तरफ ध्यान देगी ।
उम्मीद है , आदरणीय पीयूष गोयल जी, रेल मंत्री सीरियर सीटिजन की इस अपील पर सकारात्मक निर्णय लेंगे ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
स्वतंत्र लेखन
विधा - व्यथा लेखन और अपील
वरिष्ठ नागरिकों की व्यथा
रेल्वे की सीनियर सिटीजनस के साथ नाइंसाफ़ी
सीनियर सिटीजनस को रेल से यात्रा में चालिस /:पचास प्रतिशत छूट रेल्वे ने दी जाती है परन्तु यह छूट "हमसफर" और "विशेष गाड़ियों" में नहीं है । यह सीनियर सिटीजन के साथ नाइंसाफ़ी है , जबकि इनका किराया भी सामान्य गाड़ियों की अपेक्षा काफी
ज्यादा है । सीनियर सिटीजन को वृध्दावस्था में बीमारी आदि के कारण आर्थिक तंगी अधिक रहती है और यात्रा के समय सुविधा की भी जरूरत रहती है ।
सामान्य गाड़ियों में आरक्षण नहीं मिलता और विशेष गाडियाँ का किराया सामान्य गाड़ियों से बहुत ज्यादा तीन - चार गुना ज्यादा रहता है ।
सीनियर सिटीजन वृद्धावस्था के कारण यात्रा भी कम और बहुत मजबूरी में करते हैं । इसके बाद मंहगे टिकिट और कमर
तोड़ देते हैं ।
आशा है भारत सरकार और रेलवे इस तरफ ध्यान देगी ।
उम्मीद है , आदरणीय पीयूष गोयल जी, रेल मंत्री सीरियर सीटिजन की इस अपील पर सकारात्मक निर्णय लेंगे ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
नमन बंधुजनों
************************
चाँद तन्हा रात तन्हा रास्ता तन्हा मिला
*************************
गए थे हम लौट के अपने बिछड़े शहर
लोग तो मिलते रहे पर कोई अपना न मिला
*******†******************
हर राह की पगडंडिया कहती जुबानी मिली।
इंतजार करता हुआ कोई अपना न
मिला।
**************************
कुछ वक्त ही क्या बिछड़े अपने चमन से।
गले लगाने वाला कोई अपना साथी न मिला
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चंद लब्जो से छी न लिया करते थे सकुन
प्यार के उन लब्जो का नजारा न मिला
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दिल की धड़कने बढ़ जाती थी कदम रखते है
धड़कने तो यू ही पर वो एहसास न मिला
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चाँद तन्हा रात तन्हा रास्ता तन्हा मिला
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गए थे हम लौट के अपने बिछड़े शहर
लोग तो मिलते रहे पर कोई अपना न मिला
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हर राह की पगडंडिया कहती जुबानी मिली।
इंतजार करता हुआ कोई अपना न
मिला।
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कुछ वक्त ही क्या बिछड़े अपने चमन से।
गले लगाने वाला कोई अपना साथी न मिला
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चंद लब्जो से छी न लिया करते थे सकुन
प्यार के उन लब्जो का नजारा न मिला
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दिल की धड़कने बढ़ जाती थी कदम रखते है
धड़कने तो यू ही पर वो एहसास न मिला
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