ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें
ब्लॉग संख्या :-562
दिनांक-10.11.2019
शीर्षक-मनपसन्द विषय लेखन
विधा-ग़ज़ल
मात्राभार- 1222 1222 1222 1222
क़ाफ़िया- अर स्वर
रदीफ़-बैठ जाएगा ।
=============================
अगर मीठी सदा दोगे पिघलकर बैठ जाएगा ।
बुलाओगे मुहब्बत से बिरादर बैठ जाएगा ।।
**********************************
ख़ुदा जाने कहाँ से ताब आती है सदाओं में,
पड़ेगीं कान में जिसके वो रुककर बैठ जाएगा ।।
************************************
वफ़ा करना,निभा लेना ये लाज़िम है मुहब्बत में ,
दग़ा दोगे किसी को तुम लरजकर बैठ जाएगा ।।
************************************
लगी आबोहवा अच्छी गजरदम टहलने निकला,
बुलाऊँगा किसी को पास आकर बैठ जाएगा ।।
************************************
हक़ीक़त बात है मेरी भले इन्सां अजनबी हो,
अगर दोगे मुहब्बत तुम तो पलभर बैठ जाएगा ।।
=============================
'अ़क्स ' दौनेरिया
शीर्षक-मनपसन्द विषय लेखन
विधा-ग़ज़ल
मात्राभार- 1222 1222 1222 1222
क़ाफ़िया- अर स्वर
रदीफ़-बैठ जाएगा ।
=============================
अगर मीठी सदा दोगे पिघलकर बैठ जाएगा ।
बुलाओगे मुहब्बत से बिरादर बैठ जाएगा ।।
**********************************
ख़ुदा जाने कहाँ से ताब आती है सदाओं में,
पड़ेगीं कान में जिसके वो रुककर बैठ जाएगा ।।
************************************
वफ़ा करना,निभा लेना ये लाज़िम है मुहब्बत में ,
दग़ा दोगे किसी को तुम लरजकर बैठ जाएगा ।।
************************************
लगी आबोहवा अच्छी गजरदम टहलने निकला,
बुलाऊँगा किसी को पास आकर बैठ जाएगा ।।
************************************
हक़ीक़त बात है मेरी भले इन्सां अजनबी हो,
अगर दोगे मुहब्बत तुम तो पलभर बैठ जाएगा ।।
=============================
'अ़क्स ' दौनेरिया
नमन मंच भावों के मोती
सभी विद्वजनों को सादर अभिवादन
10/11/19
***
शुभ समय
**
कार्तिक एकादश उठे ,शालिग्राम भगवान।
होने लगे विवाह अब ,गाते मंगल गान ।।
द्वारे वंदनवार है,आयी शुभ बारात ।
होने लगे विवाह जो,खुशियों की है रात ।।
देव उठे जो नींद से, होते अब शुभ काम ।
वर्षों लटका फैसला ,न्यायपालिका नाम।।
अमर नवम्बर नौ हुई ,गिरी बर्लिन दिवार ।
मिला राम को धाम जो, खुला द्वार करतार ।।
स्वरचित
अनिता सूधीर
सभी विद्वजनों को सादर अभिवादन
10/11/19
***
शुभ समय
**
कार्तिक एकादश उठे ,शालिग्राम भगवान।
होने लगे विवाह अब ,गाते मंगल गान ।।
द्वारे वंदनवार है,आयी शुभ बारात ।
होने लगे विवाह जो,खुशियों की है रात ।।
देव उठे जो नींद से, होते अब शुभ काम ।
वर्षों लटका फैसला ,न्यायपालिका नाम।।
अमर नवम्बर नौ हुई ,गिरी बर्लिन दिवार ।
मिला राम को धाम जो, खुला द्वार करतार ।।
स्वरचित
अनिता सूधीर
प्रथम प्रस्तुति
महाराजपुर नाम गाँव का
महाराजाओं सा ठाठ था ।
नौकरी क्या होती भला
घर में राज पाठ था ।
पान कृषि थी चरम पर
गुटका न आया था ।
इसी पान कृषि में मैंने
बचपन निज बिताया था ।
छत्रशाल महाराजा ने
यह गाँव बसाया था ।
गाँव नही आज नगर है
हर सुख सुविधा पाया था ।
सुन्दर सा तालाब गाँव में
खुशियों का भण्डार था ।
हरेक नगर वासी यहाँ
एक दूजे का रिश्तेदार था ।
मर्यादायें क्यों न होगीं
मर्यादाओं का पाठ था ।
भोलापन ही भोलापन था
मेरी ज़ीस्त का आगाज़ था ।
बुंदेलों की यह धरा
शान जग ने जानी थी ।
आल्हा ऊदल न दूर
रही यहीं कहानी थी ।
खजुराहो की मूर्तिकला
लोहा दुनिया मानी थी ।
यहीं मेरी पावन नगरी
'शिवम' स्वर्ग सी सानी थी ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/11/2019
महाराजपुर नाम गाँव का
महाराजाओं सा ठाठ था ।
नौकरी क्या होती भला
घर में राज पाठ था ।
पान कृषि थी चरम पर
गुटका न आया था ।
इसी पान कृषि में मैंने
बचपन निज बिताया था ।
छत्रशाल महाराजा ने
यह गाँव बसाया था ।
गाँव नही आज नगर है
हर सुख सुविधा पाया था ।
सुन्दर सा तालाब गाँव में
खुशियों का भण्डार था ।
हरेक नगर वासी यहाँ
एक दूजे का रिश्तेदार था ।
मर्यादायें क्यों न होगीं
मर्यादाओं का पाठ था ।
भोलापन ही भोलापन था
मेरी ज़ीस्त का आगाज़ था ।
बुंदेलों की यह धरा
शान जग ने जानी थी ।
आल्हा ऊदल न दूर
रही यहीं कहानी थी ।
खजुराहो की मूर्तिकला
लोहा दुनिया मानी थी ।
यहीं मेरी पावन नगरी
'शिवम' स्वर्ग सी सानी थी ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/11/2019
मनपसंद विषय लेखन
दिनांक 10-11-2019
वारः- रविवार
रसः- वीर रस
विधाः-छन्द मुक्त
शीर्षकः- करके कुछ दिखाना है।शत्रु की हस्ती मिटना है।।
जा का शत्रु बार बार पीटे, नहीं उसे जीने अधिकार ।
ऐसे शत्रु को जिन्दा छोड़े वा के जीने को धिक्कार।।
भारत माता हम भारतवासी , बहुत ही शर्मिन्दा है।
बार बार वार करे तुम पर, फिर भी वह जिन्दा है।।
यह जीवन हमारा माँ बस आपकी ही है अमानत ।
शत्रु मूछों पर देवे ताव, जीने पर हमारे है लानत है।।
यह करा वो करा हम शान से बहुत रहते फरमाये।
हाय मार डाला, पर यह शत्रु किंचित न चिल्लाये।।
बहुत बजा लिया गाल अब नहीं गाल को बजाना है।
लक्ष्य अब एक ही हमारा, शत्रु को धूल चटाना है।।
छिप कर जो करता रहता वार वह कायर होता है।
होता है वह भी कायर सामने लड़ने सेजो डरता है।।
हमारे जवानों को शत्र कायरता से मारता रहता है।
उस नापाकिस्तानको सबक सिखाना अब करारा है।।
कर बहुत बार बात, बातों का दौर नहीं चलाना है।
करनी नहीं बात कोई ,हस्ती ही उसकी मिटाना है।।
खौल रहा रक्त हमारा, बदला भयंकर अब लेना है ।
हटे पीछे जो, उसे चुल्लू भर पानी में डूब मरना है ।।
वन्दे मातरम् अब तो शत्रु को धूल हमें चटाना है ।
काश्मीर ही नहीं पाक पे अब तिरंगा फहराना है ।।
जय हिन्द जय हिन्द जय जय हिन्द जय जय हिन्द।
करना है वार कसकर उस पे पड़ना नहीं अब मन्द।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
दिनांक 10-11-2019
वारः- रविवार
रसः- वीर रस
विधाः-छन्द मुक्त
शीर्षकः- करके कुछ दिखाना है।शत्रु की हस्ती मिटना है।।
जा का शत्रु बार बार पीटे, नहीं उसे जीने अधिकार ।
ऐसे शत्रु को जिन्दा छोड़े वा के जीने को धिक्कार।।
भारत माता हम भारतवासी , बहुत ही शर्मिन्दा है।
बार बार वार करे तुम पर, फिर भी वह जिन्दा है।।
यह जीवन हमारा माँ बस आपकी ही है अमानत ।
शत्रु मूछों पर देवे ताव, जीने पर हमारे है लानत है।।
यह करा वो करा हम शान से बहुत रहते फरमाये।
हाय मार डाला, पर यह शत्रु किंचित न चिल्लाये।।
बहुत बजा लिया गाल अब नहीं गाल को बजाना है।
लक्ष्य अब एक ही हमारा, शत्रु को धूल चटाना है।।
छिप कर जो करता रहता वार वह कायर होता है।
होता है वह भी कायर सामने लड़ने सेजो डरता है।।
हमारे जवानों को शत्र कायरता से मारता रहता है।
उस नापाकिस्तानको सबक सिखाना अब करारा है।।
कर बहुत बार बात, बातों का दौर नहीं चलाना है।
करनी नहीं बात कोई ,हस्ती ही उसकी मिटाना है।।
खौल रहा रक्त हमारा, बदला भयंकर अब लेना है ।
हटे पीछे जो, उसे चुल्लू भर पानी में डूब मरना है ।।
वन्दे मातरम् अब तो शत्रु को धूल हमें चटाना है ।
काश्मीर ही नहीं पाक पे अब तिरंगा फहराना है ।।
जय हिन्द जय हिन्द जय जय हिन्द जय जय हिन्द।
करना है वार कसकर उस पे पड़ना नहीं अब मन्द।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
तिथि _10/11/2019/ रविवार
विषय _*आरक्षण व्यंग्य *
विधा॒॒॒ _क्षणिका
॑ एक आरक्षित मंत्रीजी ने
अपना समभाव दिखाया।
अपने गेह के लिऐ इंजीनियर
और देह के लिये डाक्टर
सचमुच अनारक्षित वर्ग से
अपनी सेवा में लगाकर
अद्भुत चमत्कार दिखाया।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जयजय श्री राम रामजी
२ भा*आरक्षण व्यंग्य*
_क्षणिका
10/11/2019/रविवार
विषय _*आरक्षण व्यंग्य *
विधा॒॒॒ _क्षणिका
॑ एक आरक्षित मंत्रीजी ने
अपना समभाव दिखाया।
अपने गेह के लिऐ इंजीनियर
और देह के लिये डाक्टर
सचमुच अनारक्षित वर्ग से
अपनी सेवा में लगाकर
अद्भुत चमत्कार दिखाया।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जयजय श्री राम रामजी
२ भा*आरक्षण व्यंग्य*
_क्षणिका
10/11/2019/रविवार
10.11.2019
रविवार
मन पसंद विषय लेखन
सरस्वती वंदना
विधा -गीत
वर दो , हे वरदायिनी
🍁🍁🍁
वर दो वीणावादिनी ,वर दो हे वरदायिनी
हे शुभ्र वस्त्र धारिणी ,माँ सरस्वती सुखदायिनी ।।
पद्मासना कमलासना,माँ हंसिनी हंसासिनी
वीणा के सुर गुंजित करो ,हे माँ वीणा वादिनी ।।
शुभ्रता लेकर हृदय की ,गीत निर्झर बह चलें
संकल्प शुभ मुखरित रहे ,हे माँ हृदय निवासिनी ।।
शब्दों में माँ वो धार दो ,गीतों में भाव उतार दो
नव छंद नव लय ताल हो ,नव गीत की मंदाकिनी ।।
ओज वाणी में रहे ,हो वंदना बस देश की
उज्ज्वल,सुखद हो, ‘ उदार ‘ हो वाणी , हे वाणी विलासिनी ।।
🍁🍁🍁
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
रविवार
मन पसंद विषय लेखन
सरस्वती वंदना
विधा -गीत
वर दो , हे वरदायिनी
🍁🍁🍁
वर दो वीणावादिनी ,वर दो हे वरदायिनी
हे शुभ्र वस्त्र धारिणी ,माँ सरस्वती सुखदायिनी ।।
पद्मासना कमलासना,माँ हंसिनी हंसासिनी
वीणा के सुर गुंजित करो ,हे माँ वीणा वादिनी ।।
शुभ्रता लेकर हृदय की ,गीत निर्झर बह चलें
संकल्प शुभ मुखरित रहे ,हे माँ हृदय निवासिनी ।।
शब्दों में माँ वो धार दो ,गीतों में भाव उतार दो
नव छंद नव लय ताल हो ,नव गीत की मंदाकिनी ।।
ओज वाणी में रहे ,हो वंदना बस देश की
उज्ज्वल,सुखद हो, ‘ उदार ‘ हो वाणी , हे वाणी विलासिनी ।।
🍁🍁🍁
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
स्वपसंद
लघुकथा
बदलाव की बयार
" माँ सौरभ कल सुबह आफिस के काम से एक हफ्ते के लिए कानपुर आ रहे है । मै पेन्टु के स्कूल की वजह से नहीं आ पा रही हूँ, ध्यान रखना ।"
संगीता के फोन के बाद रमा परेशान सी हो गयी । अभी तक तो संगीता साथ आती थी तो सौरभ का ध्यान रखती थी और निश्चिंत रहती थी ।
इस बार ऐसा हो रहा है कि सौरभ अकेला आ रहा है । खैर रमा ने जल्दी से घर जमाना शुरू कर दिया अब अभी तक तो अकेली जान के लिए बस थोडा बहुत कर लिया , और हो गया । रमा बाजार गयी और सौरभ की पसंद की सब्जियां, पनीर और नाश्ते का सामान ले कर आई ।
इसी भागदौड़ और मानसिक तनाव के कारण शाम तक रमा की तबियत बिगड़ने लगी । रात दस बजे तक तो जैसे उसमें जान ही नही बची थी और वह निढ़ाल सी पलंग पर गिर गयी , बुखार से शरीर तपने लगा था ।
सौरभ के खाने पीने और रहने में नखरे भी बहुत थे वो तो संगीता थी जो उसे संभाले रहती थी । एक बार मन हुआ संगीता को बोल दे कि सौरभ कहीं होटल में रूक जाएं लेकिन फिर हिम्मत नहीं कर
सकी ।
रमा ने रात का खाना भी नही खाया और दरवाजे की कुंडी लगा कर सो गयी ।
सुबह सात बजे दरवाजे पर दस्तक होने पर किसी तरह उठ कर रमा ने दरवाजा खोला ।
सामने सौरभ खड़ा मुस्कुरा रहा था उसने रमा के पैर पड़े और रमा का हाथ पकड़ कर सहारा दिया , तभी उस लगा मम्मी को तो बुखार है ।
उसने नाराजगी बताते हुए कहा :
" मम्मी आपको तो बुखार है आपने बताया भी नहीं ।"
रमा ने कहा: " कुछ बेटा जरा थकान सी हो गयी है आप नहा लें मै चाय नाश्ता ले कर आती हूँ ।"
सौरभ ने उनको पलंग पर लेटाते हुए कहा : " मम्मी सबस पहले तो मैं डाक्टर को बुलाता हूँ आफिस जाने में तीन घंटे हैं , आपको समय से दवाई मिल जाएगी तो तबियत भी जल्दी ठीक हो जाऐगी। "
रमा जो काम करने की कोशिश करती सौरभ रोक देता ।
रमा को दवाई दी थी जिससे उस आराम लग रहा था नींद सी लग गयी थी
इब बीच सौरभ ने खाना बगैरह बना कर सफाई भी कर ली थी
ग्यारह बजे सौरभ तैयार हो गया और रमा के पास आ कर बोला :
" मम्मी आप कहे तो मैं छुट्टी ले लेता हूँ। "
रमा ने मना कर दिया तब खाना परोस कर मम्मी को खिलाया और दवाई के बारे में बता कर खुद ही अपने हाथ से खाना ले और खा कर आफिस चला गया ।
दोपहर को संगीता का फोन
आया । रमा की आँखो से आंसू बह रहे थे अंर आवाज रुंध रही थी । संगीता को लगा सौरभ ने वहाँ दामादपना दिखाया होगा । उसे गुस्सा आ रहा था । वह सोच रही थी " हम ससुराल में जरा भी बहूपना दिखाये तो इन्हें सहन नहीं होता और ये ।"
रमा ने अपने संभालते हुए अपनी बीमारी और सौरभ की सब बाते बता दी ।
रमा कह रही थी :
" बेटी , सौरभ दामाद ही नहीं, बेटे से भी बढ़कर है । आज मेरी सौरभ के लिए धारणाएं बदल
गयी हैं ।"
समाज में आज बदलाव की बयार चल रही है । काश ऐसा ही होते रहे और दामाद बेटों का फर्क खत्म हो जाए ।
अभी तक सौरभ पर गुस्सा करने वाली संगीता को सौरभ पर प्यार आ रहा था ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
लघुकथा
बदलाव की बयार
" माँ सौरभ कल सुबह आफिस के काम से एक हफ्ते के लिए कानपुर आ रहे है । मै पेन्टु के स्कूल की वजह से नहीं आ पा रही हूँ, ध्यान रखना ।"
संगीता के फोन के बाद रमा परेशान सी हो गयी । अभी तक तो संगीता साथ आती थी तो सौरभ का ध्यान रखती थी और निश्चिंत रहती थी ।
इस बार ऐसा हो रहा है कि सौरभ अकेला आ रहा है । खैर रमा ने जल्दी से घर जमाना शुरू कर दिया अब अभी तक तो अकेली जान के लिए बस थोडा बहुत कर लिया , और हो गया । रमा बाजार गयी और सौरभ की पसंद की सब्जियां, पनीर और नाश्ते का सामान ले कर आई ।
इसी भागदौड़ और मानसिक तनाव के कारण शाम तक रमा की तबियत बिगड़ने लगी । रात दस बजे तक तो जैसे उसमें जान ही नही बची थी और वह निढ़ाल सी पलंग पर गिर गयी , बुखार से शरीर तपने लगा था ।
सौरभ के खाने पीने और रहने में नखरे भी बहुत थे वो तो संगीता थी जो उसे संभाले रहती थी । एक बार मन हुआ संगीता को बोल दे कि सौरभ कहीं होटल में रूक जाएं लेकिन फिर हिम्मत नहीं कर
सकी ।
रमा ने रात का खाना भी नही खाया और दरवाजे की कुंडी लगा कर सो गयी ।
सुबह सात बजे दरवाजे पर दस्तक होने पर किसी तरह उठ कर रमा ने दरवाजा खोला ।
सामने सौरभ खड़ा मुस्कुरा रहा था उसने रमा के पैर पड़े और रमा का हाथ पकड़ कर सहारा दिया , तभी उस लगा मम्मी को तो बुखार है ।
उसने नाराजगी बताते हुए कहा :
" मम्मी आपको तो बुखार है आपने बताया भी नहीं ।"
रमा ने कहा: " कुछ बेटा जरा थकान सी हो गयी है आप नहा लें मै चाय नाश्ता ले कर आती हूँ ।"
सौरभ ने उनको पलंग पर लेटाते हुए कहा : " मम्मी सबस पहले तो मैं डाक्टर को बुलाता हूँ आफिस जाने में तीन घंटे हैं , आपको समय से दवाई मिल जाएगी तो तबियत भी जल्दी ठीक हो जाऐगी। "
रमा जो काम करने की कोशिश करती सौरभ रोक देता ।
रमा को दवाई दी थी जिससे उस आराम लग रहा था नींद सी लग गयी थी
इब बीच सौरभ ने खाना बगैरह बना कर सफाई भी कर ली थी
ग्यारह बजे सौरभ तैयार हो गया और रमा के पास आ कर बोला :
" मम्मी आप कहे तो मैं छुट्टी ले लेता हूँ। "
रमा ने मना कर दिया तब खाना परोस कर मम्मी को खिलाया और दवाई के बारे में बता कर खुद ही अपने हाथ से खाना ले और खा कर आफिस चला गया ।
दोपहर को संगीता का फोन
आया । रमा की आँखो से आंसू बह रहे थे अंर आवाज रुंध रही थी । संगीता को लगा सौरभ ने वहाँ दामादपना दिखाया होगा । उसे गुस्सा आ रहा था । वह सोच रही थी " हम ससुराल में जरा भी बहूपना दिखाये तो इन्हें सहन नहीं होता और ये ।"
रमा ने अपने संभालते हुए अपनी बीमारी और सौरभ की सब बाते बता दी ।
रमा कह रही थी :
" बेटी , सौरभ दामाद ही नहीं, बेटे से भी बढ़कर है । आज मेरी सौरभ के लिए धारणाएं बदल
गयी हैं ।"
समाज में आज बदलाव की बयार चल रही है । काश ऐसा ही होते रहे और दामाद बेटों का फर्क खत्म हो जाए ।
अभी तक सौरभ पर गुस्सा करने वाली संगीता को सौरभ पर प्यार आ रहा था ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
बडे दिनो के बाद पाया सकुन |
हृदय आनंदी ति हो गया |
था जिस एकता की मिसाल का |
फैसला विद्वत जजो से मिल गया |
इस फैसले व जजो की पीठ कोनमन |
अति सुन्दर फैसला सब को भा गया |
होते कुछ फरेबी नाखुश लोग उनको क्या कहे |
धर्म सब रब ने बनाये गृह बनाये मानव |
यही झगडे की जड थी बुद्धिजीवी ने उखाड फेकी सबब सुन्दर मिल गया |
खुश रहे हम सब ईश्वर के बंदे |
जाति सप्रदाय मानव निर्मित |
मत फसो इसमे प्रार्थना इबादत करो प्रेम से |
रखो एक मानव धर्म कायम मार्ग यही बताया |
भारत एक गुलशन सब समाहित इसमे |
लगता बडा सुन्दर,न उजाडो यही कहते ब्रह्महे |
सब किसान ,सैनिक जनता करती विकास देश का |
फिर क्यू ये फूट की नीति |
छोडो ये भाव हम सब भारत माता की संताने |
न बाटो धरती माँ को निज हितार्थ |
जय भारत ,जय हिंद |
स्वरचित,,,,दमयंती मिश्रा |
हृदय आनंदी ति हो गया |
था जिस एकता की मिसाल का |
फैसला विद्वत जजो से मिल गया |
इस फैसले व जजो की पीठ कोनमन |
अति सुन्दर फैसला सब को भा गया |
होते कुछ फरेबी नाखुश लोग उनको क्या कहे |
धर्म सब रब ने बनाये गृह बनाये मानव |
यही झगडे की जड थी बुद्धिजीवी ने उखाड फेकी सबब सुन्दर मिल गया |
खुश रहे हम सब ईश्वर के बंदे |
जाति सप्रदाय मानव निर्मित |
मत फसो इसमे प्रार्थना इबादत करो प्रेम से |
रखो एक मानव धर्म कायम मार्ग यही बताया |
भारत एक गुलशन सब समाहित इसमे |
लगता बडा सुन्दर,न उजाडो यही कहते ब्रह्महे |
सब किसान ,सैनिक जनता करती विकास देश का |
फिर क्यू ये फूट की नीति |
छोडो ये भाव हम सब भारत माता की संताने |
न बाटो धरती माँ को निज हितार्थ |
जय भारत ,जय हिंद |
स्वरचित,,,,दमयंती मिश्रा |
दिनांक=10/11/2019
शीर्षक= नारी
अबला नही हूँ मैं शक्ति हूं
सृष्टि की अभिव्यक्ति हूँ
जब जब चोट लगी तुमको
अति कष्ट हुआ है जीवन में
मैंने ही पत्नी, बेटी, माँ बनकर
सौ फूल खिलाया जीवन में
मैं ही त्याग सरल हृदय की
मैं कामी की आसक्ति हूँ...
अबला नही हूँ मैं शक्ति हूं
सृष्टि की अभिव्यक्ति हूँ
मैं रिश्तों की मर्यादा हूँ
मैं मीरा,सीता,राधा हूँ
मैं शापित सती अहिल्या हूँ
मैं ही शिव की सुकुमारी हूँ,
जो प्राण पति के लौटा लायीं
मैं सत्यवान की प्यारी हूँ...
मैं आदि-अनन्त जगत की हूँ,
मैं ही जग की उतपत्ति हूँ,
अबला नही हूँ मैं शक्ति हूं
सृष्टि की अभिव्यक्ति हूँ
🌹स्वरचित =हेमा जोशी
शीर्षक= नारी
अबला नही हूँ मैं शक्ति हूं
सृष्टि की अभिव्यक्ति हूँ
जब जब चोट लगी तुमको
अति कष्ट हुआ है जीवन में
मैंने ही पत्नी, बेटी, माँ बनकर
सौ फूल खिलाया जीवन में
मैं ही त्याग सरल हृदय की
मैं कामी की आसक्ति हूँ...
अबला नही हूँ मैं शक्ति हूं
सृष्टि की अभिव्यक्ति हूँ
मैं रिश्तों की मर्यादा हूँ
मैं मीरा,सीता,राधा हूँ
मैं शापित सती अहिल्या हूँ
मैं ही शिव की सुकुमारी हूँ,
जो प्राण पति के लौटा लायीं
मैं सत्यवान की प्यारी हूँ...
मैं आदि-अनन्त जगत की हूँ,
मैं ही जग की उतपत्ति हूँ,
अबला नही हूँ मैं शक्ति हूं
सृष्टि की अभिव्यक्ति हूँ
🌹स्वरचित =हेमा जोशी
10/11/2019
"स्वतंत्र लेखन"
################
शख्सियत किसी की भा गई
सूरत उसकी नैनों में बस गई
सपनें उसके ही देखा करती..
जब भी मैं दर्पण निहारती..
ख्वाबों में मुलाकातें होती..
आहिस्ता-आहिस्ता........
जिंदगी में इस कदर समाया
मैंनें मन-मंदिर में उसे बिठाया
लेकिन हाय ! रे नियति.....
भावनाओं को कहाँ समझा
देवता बना जिसे मैंनें पूजा
अब पत्थर की मूरत बन बैठा
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"स्वतंत्र लेखन"
################
शख्सियत किसी की भा गई
सूरत उसकी नैनों में बस गई
सपनें उसके ही देखा करती..
जब भी मैं दर्पण निहारती..
ख्वाबों में मुलाकातें होती..
आहिस्ता-आहिस्ता........
जिंदगी में इस कदर समाया
मैंनें मन-मंदिर में उसे बिठाया
लेकिन हाय ! रे नियति.....
भावनाओं को कहाँ समझा
देवता बना जिसे मैंनें पूजा
अब पत्थर की मूरत बन बैठा
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
भावों के मोती समूह
10-11-2019
स्वतंत्र लेखन
जय श्री राम
**********
रघुकुलचंद्र श्रीरामचन्द्र जी के जन्मोत्सव पर,,,,,,
🍀🌼🌹🍀🌼🌹🍀🌼🌹🍀🌼
सुंदरी सवैया छंद में,,,,, भावोदगार
112 112 112 112,112 112 112 112 2 ( 8 सगण +2 गुरू)
दूसरा छंद दुर्मिल सवैया छंद में,,,,
112×8 अंत तुकांत
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
********************************
अवतारण-धारण आजु कियो,
रघुनन्दन राम लला सुखदाता//
हरषैं उमंगें,अवधेश-नरेश,
सनेह निहारति हैं छबि,,,माता//
सुखदायक हैं रघुनायक जी,
अवतार लियो,हरि विष्णु विधाता//
शरणागत हूँ प्रभु राम-कृपालु,
रमापति जन्म लियो ;;;नवराता //
*********************************
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*********************************
भवतारन दीनदयाल प्रभो,
नवमी-नवरातहि जन्म लियो //
रघुनाथ भए,सुखदायक राम,
धरा,,,जननी,कुल धन्य भयो //
सुरनायक हैं जगपालक राम,
प्रजा-हितकारन वन्य गयो //
दश -शीश विनाशक वीर विभो!
जग,,राम-सिया हरिनाम रट्यो//
*********************************
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
#ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
10-11-2019
स्वतंत्र लेखन
जय श्री राम
**********
रघुकुलचंद्र श्रीरामचन्द्र जी के जन्मोत्सव पर,,,,,,
🍀🌼🌹🍀🌼🌹🍀🌼🌹🍀🌼
सुंदरी सवैया छंद में,,,,, भावोदगार
112 112 112 112,112 112 112 112 2 ( 8 सगण +2 गुरू)
दूसरा छंद दुर्मिल सवैया छंद में,,,,
112×8 अंत तुकांत
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
********************************
अवतारण-धारण आजु कियो,
रघुनन्दन राम लला सुखदाता//
हरषैं उमंगें,अवधेश-नरेश,
सनेह निहारति हैं छबि,,,माता//
सुखदायक हैं रघुनायक जी,
अवतार लियो,हरि विष्णु विधाता//
शरणागत हूँ प्रभु राम-कृपालु,
रमापति जन्म लियो ;;;नवराता //
*********************************
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
*********************************
भवतारन दीनदयाल प्रभो,
नवमी-नवरातहि जन्म लियो //
रघुनाथ भए,सुखदायक राम,
धरा,,,जननी,कुल धन्य भयो //
सुरनायक हैं जगपालक राम,
प्रजा-हितकारन वन्य गयो //
दश -शीश विनाशक वीर विभो!
जग,,राम-सिया हरिनाम रट्यो//
*********************************
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
#ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
10/11/19
विषय- स्वतंत्र लेखन
विधा- मनहरण घनाक्षरी
_______________________
कलम का प्रहार हो,
दो धारी तलवार हो,
मन मजबूत कर,
आवाज उठाइए।
बड़े-बड़े यहाँ चोर,
मंहगाई करे शोर,
जनता का लिखे दर्द,
लेखनी चलाइए।
डरती नहीं है यह,
खोलती है कान यह,
कमजोर समझ के,
भूल मत जाइए।
खोलती है यह राज,
लिखती है दिन-रात,
कलम की ताकत को,
कम मत मानिए।
लिखती है बार-बार,
एक ही करे पुकार,
लुट रही बेटियों की,
लाज को बचाइए।
बैठे आँख बंद कर,
ऊँची-ऊँची कुर्सियों पे,
अब आप-बीती भला,
किसको सुनाइए।
थक कर रुके नहीं,
लेखनी का धर्म यही,
बुराई से लड़ने में,
हार मत मानिए।
कोशिश हर जंग की,
अनेक रूप रंग की,
सच्चाई की राह चल,
सब अपनाइए।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
विषय- स्वतंत्र लेखन
विधा- मनहरण घनाक्षरी
_______________________
कलम का प्रहार हो,
दो धारी तलवार हो,
मन मजबूत कर,
आवाज उठाइए।
बड़े-बड़े यहाँ चोर,
मंहगाई करे शोर,
जनता का लिखे दर्द,
लेखनी चलाइए।
डरती नहीं है यह,
खोलती है कान यह,
कमजोर समझ के,
भूल मत जाइए।
खोलती है यह राज,
लिखती है दिन-रात,
कलम की ताकत को,
कम मत मानिए।
लिखती है बार-बार,
एक ही करे पुकार,
लुट रही बेटियों की,
लाज को बचाइए।
बैठे आँख बंद कर,
ऊँची-ऊँची कुर्सियों पे,
अब आप-बीती भला,
किसको सुनाइए।
थक कर रुके नहीं,
लेखनी का धर्म यही,
बुराई से लड़ने में,
हार मत मानिए।
कोशिश हर जंग की,
अनेक रूप रंग की,
सच्चाई की राह चल,
सब अपनाइए।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
मनपसंद विषय लेखन
दिनांक 10-11/19
विधा गीत
कृपा की न होती जो आदत तुम्हारी।
तो सहारे न होते दयानिधि तुम्हारी।
नही पास कुछ था जब तक हमारे।
सहारे बने तुम खुदाया हमारे।
तुम्हारे सिवा नाथ कोई था न हमारा।
फिर आज क्यों छोड़। दामन हमारा।
हमारी खता क्या हमें तुम बात दो।
सवारा था कल आज फिर तुम सवारों।
नही पास कहने को कुछ भी बच। है।
की चरणों मे तेरे मेरा सिर झुका है।
मैं भुला हूं भटका हूँ पापी और अधमी।
जैसा भी हु अब तुम साथ निभा दो
दिनांक 10-11/19
विधा गीत
कृपा की न होती जो आदत तुम्हारी।
तो सहारे न होते दयानिधि तुम्हारी।
नही पास कुछ था जब तक हमारे।
सहारे बने तुम खुदाया हमारे।
तुम्हारे सिवा नाथ कोई था न हमारा।
फिर आज क्यों छोड़। दामन हमारा।
हमारी खता क्या हमें तुम बात दो।
सवारा था कल आज फिर तुम सवारों।
नही पास कहने को कुछ भी बच। है।
की चरणों मे तेरे मेरा सिर झुका है।
मैं भुला हूं भटका हूँ पापी और अधमी।
जैसा भी हु अब तुम साथ निभा दो
II मनपसंद विषय लेखन II नमन भावों के मोती....
कविता - कौन मेरे भीतर और मैं हूँ कौन….
मेरी आँखों की नींद चुरा कर…
है उनमें सपने सजाता कौन….
चुरा के लाली वो अरुण की….
मेरी आँखों को है देता कौन….
जब होता दिल कभी बोझिल….
झोँका हवा का है लाता कौन….
दर्द कभी जो उभरे कहीं भी….
धीमे धीमें उसे सहलाता कौन….
पथ मेरा पत्थर सा भी हो तो….
नरम मुलायम बनाता कौन….
कांटे राह में हों कितने भी….
मन खुशबू भर जाता कौन….
हंसी मेरी से जब बिखरें मोती….
हर कोई पूछे मुझसे है तू कौन….
हो उदास या ग़मगीन कोई भी….
चोट मेरे दिल पे है करता कौन….
मैं अनजान न जानूं अपने को….
बिन कहे मेरे मुझे चलाता कौन….
हर पल खोजूं उसको अपने संग….
कौन मेरे भीतर और मैं हूँ कौन….
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१०.११.२०१९
कविता - कौन मेरे भीतर और मैं हूँ कौन….
मेरी आँखों की नींद चुरा कर…
है उनमें सपने सजाता कौन….
चुरा के लाली वो अरुण की….
मेरी आँखों को है देता कौन….
जब होता दिल कभी बोझिल….
झोँका हवा का है लाता कौन….
दर्द कभी जो उभरे कहीं भी….
धीमे धीमें उसे सहलाता कौन….
पथ मेरा पत्थर सा भी हो तो….
नरम मुलायम बनाता कौन….
कांटे राह में हों कितने भी….
मन खुशबू भर जाता कौन….
हंसी मेरी से जब बिखरें मोती….
हर कोई पूछे मुझसे है तू कौन….
हो उदास या ग़मगीन कोई भी….
चोट मेरे दिल पे है करता कौन….
मैं अनजान न जानूं अपने को….
बिन कहे मेरे मुझे चलाता कौन….
हर पल खोजूं उसको अपने संग….
कौन मेरे भीतर और मैं हूँ कौन….
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१०.११.२०१९
दिन :- रविवार
दिनांक :- 10/11/2019
विषय :- स्वतंत्र लेखन
कलम भी मेरी रोएगी इक दिन,
छूटेगा उसका साथ जिस दिन।
छाएगी वीरानगी सी आँगन में,
सजेगी वो बारात फिर उस दिन।
फिर भीगेगी पलकें तुम्हारी भी,
उलझेगी वो अलकें तुम्हारी भी।
निहारोगे जब बारात वो हमारी,
भरेगी आहें धड़कनें तुम्हारी भी।
अंतिम वह भी समय आएगा,
बनकर काल घर पर छाएगा।
सज रही होगी पालकी भी,
उठाने कंधे पर हूजूम आएगा।
टूटेगी खनकती वो चूड़ियाँ तब,
तरसेगी आने को खुशियाँ तब।
सूख जाएगा आँचल अमृत का,
किसे सुनाएगी माँ लोरियां तब।
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
दिनांक :- 10/11/2019
विषय :- स्वतंत्र लेखन
कलम भी मेरी रोएगी इक दिन,
छूटेगा उसका साथ जिस दिन।
छाएगी वीरानगी सी आँगन में,
सजेगी वो बारात फिर उस दिन।
फिर भीगेगी पलकें तुम्हारी भी,
उलझेगी वो अलकें तुम्हारी भी।
निहारोगे जब बारात वो हमारी,
भरेगी आहें धड़कनें तुम्हारी भी।
अंतिम वह भी समय आएगा,
बनकर काल घर पर छाएगा।
सज रही होगी पालकी भी,
उठाने कंधे पर हूजूम आएगा।
टूटेगी खनकती वो चूड़ियाँ तब,
तरसेगी आने को खुशियाँ तब।
सूख जाएगा आँचल अमृत का,
किसे सुनाएगी माँ लोरियां तब।
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
10-11-2019
विषय : स्वतंत्र लेखन
विधा - दोहा
घन पावस बरसे नहीं, जर्जर वसुधा बेचैन
बाट देख कर बालम की, थक चुके हैं नैन।
पुष्प बिछाए थे राहों में, कांटे चुभे ना पैर
प्रीत बढ़े नयना हर्षाएं, मिटे दिलों से वैर।
करवट भी मतलबी हुई, चुराए दिल का चैन
आँखों में भी नींद नहीं, दिन सम लगती रैन।
जुल्फों के साये में गुमा, मन मेरा बेजार
ढूँढूँ कैसे बतलओ तो, नैना हैं पहरेदार।
अंतस खाली ही रहा है, नहीं भरा है भाव
ज्यों गूंगे को है गुड़ का, फकत मीठा अनुमान।
मौलिकता प्रमाण-पत्र
प्रमाणित किया जाता है कि उक्त दोहे मौलिक, अप्रकाशित और अप्रसारित हैं।
विनोद वर्मा 'दुर्गेश',
वार्ड नं 1, गुलशन नगर,
तोशाम (भिवानी)
हरियाणा-127040
विषय : स्वतंत्र लेखन
विधा - दोहा
घन पावस बरसे नहीं, जर्जर वसुधा बेचैन
बाट देख कर बालम की, थक चुके हैं नैन।
पुष्प बिछाए थे राहों में, कांटे चुभे ना पैर
प्रीत बढ़े नयना हर्षाएं, मिटे दिलों से वैर।
करवट भी मतलबी हुई, चुराए दिल का चैन
आँखों में भी नींद नहीं, दिन सम लगती रैन।
जुल्फों के साये में गुमा, मन मेरा बेजार
ढूँढूँ कैसे बतलओ तो, नैना हैं पहरेदार।
अंतस खाली ही रहा है, नहीं भरा है भाव
ज्यों गूंगे को है गुड़ का, फकत मीठा अनुमान।
मौलिकता प्रमाण-पत्र
प्रमाणित किया जाता है कि उक्त दोहे मौलिक, अप्रकाशित और अप्रसारित हैं।
विनोद वर्मा 'दुर्गेश',
वार्ड नं 1, गुलशन नगर,
तोशाम (भिवानी)
हरियाणा-127040
"भावों के मोती"
दिन-रविवार
दिनांक-10/11/2019
स्वतंत्र लेखन
कविता
प्रेम
----
तेरे प्रेम का सागर
जब जब लहराता है
अपनी मद भरी बौछारों से
मन को भिगो भिगो जाता है
ज्यूँ आषाढ़ करता है आलाप
सावन सुरीली सरगम सुनाता है
धरती के आँगन में बजती
नूपुर बूंदों की
पुरवाई छेड़ती है राग इश्क का
,यादों के आलिंगन में बांध
मेरी तन्हाई को महफ़िल
महफ़िल कर जाता है ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
दिन-रविवार
दिनांक-10/11/2019
स्वतंत्र लेखन
कविता
प्रेम
----
तेरे प्रेम का सागर
जब जब लहराता है
अपनी मद भरी बौछारों से
मन को भिगो भिगो जाता है
ज्यूँ आषाढ़ करता है आलाप
सावन सुरीली सरगम सुनाता है
धरती के आँगन में बजती
नूपुर बूंदों की
पुरवाई छेड़ती है राग इश्क का
,यादों के आलिंगन में बांध
मेरी तन्हाई को महफ़िल
महफ़िल कर जाता है ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
विषय- स्वतंत्र लेखन
दिनांक १०-११-२०१९कर अभिमान, पतन को पाते।
स्वयं हाथ,विनाश न्योता देते।।
समझाने से वो,समझ न पाते।
ठोकर लगे,सत्य पथ अपनाते।।
अभिमानी यश,कभी न पाते।
मन ही मन,मियां मिट्ठू बनते।।
अनीति पैसे कमा,जश्न मनाते ।
बच्चों के जहन,गलत बीज बोते।।
एकांकी जीवन, सदा वह जीते।
दर-दर ठोकर,जग में रह खाते।।
दुर्योधन गलत कार्य,जो दोहराते।
अपनों को भी,गर्त वो ले जाते।।
साथ नहीं जब,कुछ भी ले जाते।
फिर क्यों, समाज जहर फैलाते।।
इतिहास साक्षी,दंभी प्रलय मचाते।
मनुष्य जन्म,फिर कभी न पाते।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक १०-११-२०१९कर अभिमान, पतन को पाते।
स्वयं हाथ,विनाश न्योता देते।।
समझाने से वो,समझ न पाते।
ठोकर लगे,सत्य पथ अपनाते।।
अभिमानी यश,कभी न पाते।
मन ही मन,मियां मिट्ठू बनते।।
अनीति पैसे कमा,जश्न मनाते ।
बच्चों के जहन,गलत बीज बोते।।
एकांकी जीवन, सदा वह जीते।
दर-दर ठोकर,जग में रह खाते।।
दुर्योधन गलत कार्य,जो दोहराते।
अपनों को भी,गर्त वो ले जाते।।
साथ नहीं जब,कुछ भी ले जाते।
फिर क्यों, समाज जहर फैलाते।।
इतिहास साक्षी,दंभी प्रलय मचाते।
मनुष्य जन्म,फिर कभी न पाते।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
🌷चंद अशआर🌷
मिरे प्यार की ज्योत जहाँ से है
वो शम्मा अभी तक जली है ।
कितनी दीवाली निकली
ये मुहब्बत कितनी भली है ।
वस्ल की कोई बजह नही
कब की छूटी वो गली है ।
सोचूँ उनको खबर दे दूँ
ये मुहब्बत मुझको फली है ।
इक बार तो मिलने आ जाओ
चर्चा अब ये गली-गली है ।
अब कहाँ वो सारी बातें
वो शाम तो मानो ढली है ।
क्या करूँ पर परछायी 'शिवम'
कोइ संग-संग जरूर चली है ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/112019
मिरे प्यार की ज्योत जहाँ से है
वो शम्मा अभी तक जली है ।
कितनी दीवाली निकली
ये मुहब्बत कितनी भली है ।
वस्ल की कोई बजह नही
कब की छूटी वो गली है ।
सोचूँ उनको खबर दे दूँ
ये मुहब्बत मुझको फली है ।
इक बार तो मिलने आ जाओ
चर्चा अब ये गली-गली है ।
अब कहाँ वो सारी बातें
वो शाम तो मानो ढली है ।
क्या करूँ पर परछायी 'शिवम'
कोइ संग-संग जरूर चली है ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/112019
10/11/19
रविवार
स्वतंत्र सृजन
गीत
अपनी मिटटी की सुगन्ध जब
घर की याद दिलाती है ,
तब परदेसी की आँखों में
सहज नमी छा जाती हैं।
अपनी मिटटी की सुगन्ध जब......
वह माँ की मीठी थपकी ,
वह ममतामय उसका व्यवहार,
वह भाई - बहनों की हँसी-
ठिठोली मन तरसाती है।
अपनी मिटटी की सुगन्ध जब......
स्नेहसिक्त भावों से पूरित
पिता की आशाओं के रंग,
और तरल आशीषों की
बौछार उसे तड़पाती है।
अपनी मिटटी की सुगन्ध जब......
वह नदियों की कल-कल लहरें
वह सुंदर सरसों के खेत ,
वह सावन की हरियाली
आँखों में लहरा जाती है।
अपनी मिटटी की सुगन्ध जब......
वह दीवाली की जगमग ,
वह होली का मधुरस हुड़दंग ,
एक छोटी सी खुशी भी
अंतर्मन को सहला जाती है।
अपनी मिटटी की सुगन्ध जब.....
मन करता है लौट चलें फिर
अपनी जन्मभूमि के पास,
जहाँ बसी है अपनी दुनिया
जहाँ पर अपनी माटी है।
अपनी मिटटी की सुगन्ध जब.....
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
रविवार
स्वतंत्र सृजन
गीत
अपनी मिटटी की सुगन्ध जब
घर की याद दिलाती है ,
तब परदेसी की आँखों में
सहज नमी छा जाती हैं।
अपनी मिटटी की सुगन्ध जब......
वह माँ की मीठी थपकी ,
वह ममतामय उसका व्यवहार,
वह भाई - बहनों की हँसी-
ठिठोली मन तरसाती है।
अपनी मिटटी की सुगन्ध जब......
स्नेहसिक्त भावों से पूरित
पिता की आशाओं के रंग,
और तरल आशीषों की
बौछार उसे तड़पाती है।
अपनी मिटटी की सुगन्ध जब......
वह नदियों की कल-कल लहरें
वह सुंदर सरसों के खेत ,
वह सावन की हरियाली
आँखों में लहरा जाती है।
अपनी मिटटी की सुगन्ध जब......
वह दीवाली की जगमग ,
वह होली का मधुरस हुड़दंग ,
एक छोटी सी खुशी भी
अंतर्मन को सहला जाती है।
अपनी मिटटी की सुगन्ध जब.....
मन करता है लौट चलें फिर
अपनी जन्मभूमि के पास,
जहाँ बसी है अपनी दुनिया
जहाँ पर अपनी माटी है।
अपनी मिटटी की सुगन्ध जब.....
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
दिनांक-10/11/2019
छंदमुक्त कविता-परिंदे
तिनका तिनका जोड़कर अपना घोंसला बनाते हैं
इतनी सूझ बूझ ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
नन्हें नन्हें पंखों से आसमान नाप आते हैं
इतना हौंसला ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
समूह बनाकर ऊँची ऊँची उड़ान भरते है
एकता प्रीति भाव ये परिंदे कहाँ से लाते है
निज कलरव से वातावरण मधुर बनाते हैं
इतना सारा माधुर्य ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
दिन ढलने से पहले घौंसलों में लौट आते हैं
इतना अनुशासन ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
छोटी सी चोंच से अपनी भूख मिटा पाते हैं
इतनी तुष्टि ना जा जाने ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
पंखों तले छिपाकर नव जीवन को पनपाते है
मातृत्व की मिसाल ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
मौसम की हर मार को चुपचाप सह जाते हैं
सहनशीलता इतनी ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
उजड़ते वृक्षों को देखकर बस आँसू चुपचाप बहाते हैं
संकट सहने का अन्दाज़ ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
सीखना चाहे तो बहुत कुछ सीख सकते हैं
मगर लोग अपनी फ़ितरत से भला कब बाज़ आते हैं
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित एवं मौलिक
छंदमुक्त कविता-परिंदे
तिनका तिनका जोड़कर अपना घोंसला बनाते हैं
इतनी सूझ बूझ ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
नन्हें नन्हें पंखों से आसमान नाप आते हैं
इतना हौंसला ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
समूह बनाकर ऊँची ऊँची उड़ान भरते है
एकता प्रीति भाव ये परिंदे कहाँ से लाते है
निज कलरव से वातावरण मधुर बनाते हैं
इतना सारा माधुर्य ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
दिन ढलने से पहले घौंसलों में लौट आते हैं
इतना अनुशासन ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
छोटी सी चोंच से अपनी भूख मिटा पाते हैं
इतनी तुष्टि ना जा जाने ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
पंखों तले छिपाकर नव जीवन को पनपाते है
मातृत्व की मिसाल ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
मौसम की हर मार को चुपचाप सह जाते हैं
सहनशीलता इतनी ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
उजड़ते वृक्षों को देखकर बस आँसू चुपचाप बहाते हैं
संकट सहने का अन्दाज़ ये परिंदे कहाँ से लाते हैं
सीखना चाहे तो बहुत कुछ सीख सकते हैं
मगर लोग अपनी फ़ितरत से भला कब बाज़ आते हैं
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित एवं मौलिक
दिनांक.............10/11/2019
विषय............... प्रदूषण
विधा ...............कविता
*प्रदुषण*
करो वायु प्रदूषण दुर, मन में लेवे ठान ।
पर्यावरण कर हमेशा, दे समाज को ज्ञान।
*स्वच्छ प्यारा भारत हो ,*
*मिलकर करें सब काम।*
*जग में भारत रौशन हो ,*
*भारत बने सुंदर धाम।*
जल दूषित हो रहा है,
करे पान पशु नर नारी।
अन्न भी दुषित हो गया,
कर भोजन लगे बीमारी।
*स्वच्छ भारत का सपना,*
*गांधी लाल ने देखा था।*
*सपना साकार करने को,*
*मोदी अभियान छेड़ा था।*
सबका साथ सबका विकास ,
मोदी अभियान हिन्द में जारी है।
विश्व जगत में सुख शांति रखने,
भारतवासियों ने की तैयारी है।
कारखाने से निकली धुआँ,
जन धमनी में जमने लगी।
श्वसन संबंधी बीमारी ,
काल ग्रसित करने लगी।
हो रही पेड़ो की कटाई,
वन सम्पदा कहाँ से आयेगी।
और प्राण रक्षक दवाई,
दुर्लभ जड़ी बूटियाँ खो जायेगी।
*वन संरक्षण कर धरा का श्रृंगार करो।*
*पर्यावरण कर प्राण वायु स्वच्छ करो।*
शोर शराबा रात दिन,
करती कर्कश नाद।
वाहन धीरे चलाइये,
कटे हर अभिषाप।
*स्वच्छ भारत हो हर घर का गहना,*
*कहता मोदी मन की बात।*
*सुदृढ़ हिन्द हो जन गण का सपना,*
*सजता गोदी तन के साथ।*
*(स्वलिखित)*
*कन्हैया लाल श्रीवास*
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
विषय............... प्रदूषण
विधा ...............कविता
*प्रदुषण*
करो वायु प्रदूषण दुर, मन में लेवे ठान ।
पर्यावरण कर हमेशा, दे समाज को ज्ञान।
*स्वच्छ प्यारा भारत हो ,*
*मिलकर करें सब काम।*
*जग में भारत रौशन हो ,*
*भारत बने सुंदर धाम।*
जल दूषित हो रहा है,
करे पान पशु नर नारी।
अन्न भी दुषित हो गया,
कर भोजन लगे बीमारी।
*स्वच्छ भारत का सपना,*
*गांधी लाल ने देखा था।*
*सपना साकार करने को,*
*मोदी अभियान छेड़ा था।*
सबका साथ सबका विकास ,
मोदी अभियान हिन्द में जारी है।
विश्व जगत में सुख शांति रखने,
भारतवासियों ने की तैयारी है।
कारखाने से निकली धुआँ,
जन धमनी में जमने लगी।
श्वसन संबंधी बीमारी ,
काल ग्रसित करने लगी।
हो रही पेड़ो की कटाई,
वन सम्पदा कहाँ से आयेगी।
और प्राण रक्षक दवाई,
दुर्लभ जड़ी बूटियाँ खो जायेगी।
*वन संरक्षण कर धरा का श्रृंगार करो।*
*पर्यावरण कर प्राण वायु स्वच्छ करो।*
शोर शराबा रात दिन,
करती कर्कश नाद।
वाहन धीरे चलाइये,
कटे हर अभिषाप।
*स्वच्छ भारत हो हर घर का गहना,*
*कहता मोदी मन की बात।*
*सुदृढ़ हिन्द हो जन गण का सपना,*
*सजता गोदी तन के साथ।*
*(स्वलिखित)*
*कन्हैया लाल श्रीवास*
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
No comments:
Post a Comment