Tuesday, November 5

"चमक/तेज़/आभा/कांति "4नवम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-556
प्रथम प्रस्तुति

कपड़ों से नही रौनक आती
विचारों से ही रौनक आती ।
कांतिहीन चेहरा हो जाता
कुप्रवृत्ति जब-जब कुलबुलाती ।।

सदवृत्तियों को अपनाओ
तेजोमय आभा कहलाती ।
इंसा क्या है चेहरे से ही
दुनिया पढ़ कर के बतलाती ।

धीर वीर गंभीर बनो जो
इंसानियत का मान बढ़ाती ।
विश्वास करो इंसान कुछ न
कोइ शक्ति इंसा में समाती ।

'शिवम' सदा सतसंग को समझो
इसमें पाप गठरी धुल जाती ।
माया नगरी में रह कर के
सतसंग ही रूह को चमकाती ।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 04/11/2019

नमन मंच................ भावों के मोती
दिनांक.................04/11/2019
विषय ..................चमक /आभा /कांति

विधा....................दोहा छंद
🌞🌞🌞🌞🌞
चमक /आभा/कांति
🌞🌞🌞🌞🌞
चमक चाँद की तरह तुम ,कर ऐसा जग काज।
युगों युगों तक नाम हो ,कर्म करो जस राज।
🌞🌞🌞🌞🌞
चाँद चाँदनी नभ तले ,दे जग नव उजियार।
सूरज की किरणें बनी, आभा का उपहार।
🌞🌞🌞🌞🌞
जग हो सारा ज्योतिमय,चमक लगे आकाश।
जगमग सब घर द्वार हो, मिले खुशी आगाज।
🌞🌞🌞🌞🌞
पटल कांतिमय लग रहा, भाव सींचता ज्ञान।
पल पल सब रचना गढ़े,सृजन होय बलवान।
🌞🌞🌞🌞🌞
धूप शीश पर चढ़ गया,रिमझिम लग बरसात।
चमक घाम फीका पड़ा, कोयल कूकन गात।
🌞🌞🌞🌞🌞
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा

तिथि- 4/11/19
विषय - आभा, कांति


चेहरे पर ऐसी द्युति , हमको पड़ी दिखाय।
आँखियों से निंदिया उड़ी ,हमको नींद न आय।।

दंत-पंक्ति आभा रजत,पल-पल झलक दिखाय।
गहरे सागर से नयन, मनवा डूबत जाय।।

तेरे नयनों की चमक..... हमें करे बेहाल।
गये जान से हम सनम ,बुरा हमारा हाल।।

मनमोहक आभा तेरी , मेरे मन को भाय।
आकर तेरे पास में,हृदय कमल खिल जाय।।

वाणी में मधु है घुला , मीठे लागें बोल।
अधरों की आभा निरख ,मनवा जाता डोल।।

मुख पर ऐसा तेज है,शोभा द्विगणित होय।
निरख-निरख सुंदर छबी,ठगे-ठगे सब कोय।।

सरिता गर्ग

4.10.2019
सोमवार

विषय -
चमक/तेज़ /आभा/कांति
विधा -ग़ज़ल

तेज़

बहुत #तेज़ रफ़्तार है,
ज़िन्दगी की
सँभल कर ही चलना,डगर ज़िन्दगी की ।।

कहीं धूप,बारिश,कहीं आँधियाँ हैं
कहीं कुछ न मिलती ,ख़बर ज़िन्दगी की।।

मुहब्बत की राहें ,मुहब्बत भरी हैं
कहानी मुहब्बत सी , है ज़िन्दगी की।।

अगर जी सकें ,ख़्वाब हम अपने-अपने
‘उदार ‘ कुछ निशानी ,बने ज़िन्दगी की।।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
विषय-चमक/आभा/तेज/कांति
विधा दोहे

दिनांकः 4/11/2019
सोमवार
आज के विषय पर मेरी रचना:

चमक रहे उनकी सदा,जो होते हैं वीर।
शत्रु को वे ही मारते,रखें हाथ शमशीर ।।

यहाँ चमकता है वही,जिसमें कोई बात ।
जैसे हीरे की चमक,देती है सौगात ।।

मंजिल मिलती है उसे,जो करता है कर्म ।
कर्म बिना कुछ भी नहीं,यह जीवन का मर्म ।।

होती कर्मों से चमक,उनकी रहती शान।
उनको फिर भी हो नहीं,कभी नहीं अभिमान ।।

शिथिल यहाँ पर जो रहें,आता नहीं निखार ।
उनकी कोई दर नहीं,कहते सब बेकार ।।

स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर
(डाॅ नरसिंह लाल शर्मा जयपुर 'निर्भय,)

भावों के मोती मंच को नमस्कार
विषय: चमक/तेज/आभा/कांति
दिनांक ,04/11/2019

विधा: स्वतंत्र
शीर्षक : चमक

भाषा की चमक लिपि में।
लिपि की चमक व्याकरण में।
व्याकरण की चमक वर्णमाला में।
वर्णमाला की चमक वर्णों में।
वर्णों की चमक शब्दों में।
शब्दों की चमक अर्थों में।
अर्थों की चमक भावों में।
भावों की चमक वाक्यों में।
वाक्यों की चमक काव्य में।
काव्य की चमक पुस्तकों में।
पुस्तकों की चमक साहित्य में।
साहित्य की चमक ग्रंथों में ।
ग्रंथों की चमक संस्कृति में।
संस्कृति की चमक संस्कारों में।
संस्कारों की चमक रिखब में।
'रिखब'की चमक लेखन में।

रचयिता
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
जयपुर राजस्थान
नमन भावों के मोती
शीर्षक --चमक,आभा,
तेज,कान्ति

दिनांक--4-11-19
विधा---मुक्तक

1.
प्रतिभा की आभा को पहचानना जरूरी है।
जन्मे ना कुंठा ये भी जानना जरूरी है ।
देश व समाज के नाम में ये चमक भर देंगे---
मददगार हम उनके,ये जताना जरूरी है ।
2.
आभा सदा पूज्य होती है।
सपनें संग संग ढोती है ।
जब वो हो जाते हैं पूरे--
अगले लक्ष्य स्वयं बोती है।

******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
नमन मंच भावों के मोती
4 /11 /2019
बिषय ,चमक, तेज,, आभा,, कांति

चँदा चमके सूरज चमके चमक रहा है तारा
सीमा पर प्रहरी की आभा ज्यों
नभमंडल का सितारा
कलकल नदियां बहती जाती
.चमक रही जलधारा
पर्वतों की श्रंखलाओं पर भास्कर की किरणों ने डेरा डाला
सागर की लहरेंजैसे बिखरे मोती
अरुणोदय की लालिमा अपना मुंह धोती
प्रकृति की आभा ने खेतों की शोभा बढ़ाई
.अंबर ने धरती को जैसे हरित चूनर ओढ़ाई
अनुपम कांति मेरे देश की अदभुत देश है मेरा
चाँदी की होती हैं रातें सोने का है सबेरा
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
नमन मंच-भावों के मोती
दिनांक-04.112019
शीर्षक-चमक/तेज़/आभा/कांति

विधा-दोहे
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(चमक)
मोती हो या प्रेम हो,चमक न फ़ीकी होय ।
अपने-अपने भाव को,रहें सहेजे दोय ।।
(तेज़ )
जिसके उन्नत भाल का,तेज़ रहा ठहराय ।
सच मानो वह आदमी,नर पुंगव कहलाय ।।
(आभा )
सजकर बैठी कामिनी,आभा रही दिखाय ।
निरखे यदि मानव उसे, मन ही मन हुलसाय ।।
(कांति )
चाहत है यह प्यार में,रहे दर्शती कांति ।
सभी तृप्त संकल्प हों,मिट जाए उद्भ्रांति ।।
=====================
'अ़क्स ' दौनेरिया

भावों के मोती
4/11/19
विषय-चमक आभा, तेज़ कान्ति


दूर झुरमुट से भास्कर
निकले पहन स्वर्ण वसन
आलौकिक कर विश्व सारा
छाये गगन पर बन "आभा" मंडल
देखो सुमन दल झुकी-झुकी
शीश नमाये करे वंदन
हवा हो चली मंद गति,
सरिता धीमी लय में करती गुंजन
पंछी नीड़ छोड उड़ चले
छूने उजला नभ रश्मि दल
चहुँ और व्याप्त मधुर रागिनी
समय वीणा की झन-झन
चल उठ चल दे कर्म दाता
संसार चले संग तेरे पल-पल
जीवन की शुरुआत
हर नव सुबह करता चतुर जन
हर भोर नया विश्वास नई आशा
और नया उद्घघोष बन।।

स्वरचित

नमन🙏 भावों के मोती🙏
विषय- कांति/चमक/आभा
दिनांक-४-११-२०१९
माँ की आंखों का तारा हूँ,आभा जग में फैलाऊंगा।
देश विकास नए सृजन कर, चहूओर छाऊंगा।।

माँ तेरी आंखों को, कभी गैर सामने न झुकाऊंगा ।
कर श्रेष्ठ कार्य,ध्रुव तारे के समान टिमटिमाऊंगा।।

दुश्मन तड़ीपार कर, विजय ध्वज फहराऊंगा ।
तेरे आशीष से माँ,सफलता सदा ही पाऊंगा ।।

लक्ष्य से ना विचलित हो,आभा राह दिखाऊंगा।
संस्कार वाहक बन, प्रगति पथ अपनाऊंगा।।

जीवन आभा ज्योत जगा, कुछ तो मैं कर जाऊंगा।
भारत माँ को खुशहाल बनाने, नई क्रांति लाऊंगा।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली


कुसुम कोठारी

सादर नमन
04-11-2019
कांति

मुखचन्द्र कांति कुम्हल गई
बदली मावस रैन
घूँघट की झीनी ओट बीच
चमकत कजरी नैन
बिजुरी वृथा व्यथा कड़कावे
हलक रुद्ध है बैन
विधु बिन सूना नील निकेतन
हृदय बिलख बेचैन
टूटे तुहिन नयन-उपवन से
ढुलकते पारिजात
दर्प दमक के दीप तिरोहित
कुंद गगन का गात
बस मावस, कर न और बेबस
सरक रही है रात
अरुण उदय संग तम टलेंगे
मंगल मिलन प्रभात
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित

4/11/2019
विषय-चमक/कांति/आभा/ तेज
वि
धा-स्वतंत्र
💥💥💥💥💥

सागर के तट पर
चमकती रेत में खेलते
मासूम बालक
नन्हें फरिश्ते से लगते हैं

उनका दीप्त चेहरा देख
ऐसा प्रतीत होता है
मानो आसमाँ के सितारे
उनकी पलकों में चमकते हैं

दिनकर की ढलती लालिमा
रक्तिम आभा मानो
एक अल्हड़ बाला की
धानी चुनर में उतर आई हो
तब धरती आसमाँ एक दूजे में
समाए से दिखते हैं

प्रिय सङ्ग बैठी अल्हड़ बाला के
गुलाबी पंखुड़ी से होठो पर
एक हल्की सुरमई आभा
यूँ लगती है जैसे
चाँद उतर आया हो ज़मीं पर

ज्यूँ सिमट आई हो चाँदनी
चटक ओढ़नी पर
उस प्रभामयी आभामंडल से
मंत्रमुग्ध हो
सब सुध बुध अपनी खोने लगते हैं

नैसर्गिक रूप के समक्ष
स्वार्थी दम्भ रूपी
कलुषित चेहरे
कांति हीन से लगते है

प्रकृति और प्राणियों के
शोभामय रूप गुण से
कभी सौम्य कभी प्रचंड तेज से
उम्मीद के सूरज दिलो में चमकते हैं ।।

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®

भावों के मोती दिनांक 4/11/19
चमक तेज आभा कांति


चल न सका
जो तेज
जिन्दगी की
दौड़ में
पिछड़ गया
वो मंजिल की
राह में

मिलती है
सफलता
जब
जीवन में
चेहरे की
चमक
बयां
करती है
मंजिल
पाने की

बिखरी जब
आभा
क्षितिज पर
चिड़ियों की
चहक से गूंजीं
हर दिशा
निकली जब
सवारी
सूरज की
हर दिशा में
फैली
कांति
लालिमा की

करो स्वागत
नये युग का
जहाँ हो
सुख शांति
समृद्धि और
भाईचारा

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

भावों के मोती
विषय-चमक/आभा/तेज़/कांति

विधा - गीत / रास छंद (16,6) *प्रथम प्रयास*
______________________
आँखों में है आस चमकती,आभा-सी
मन भीतर खुशियाँ हैं बिखरी,सपने-सी
काश जिगर में तुम बस जाते,गम मिटता।
दिल की बात किसको सुनाते,जी करता।

कह न सकी इस दिल की पीड़ा,गम सहती
रात भर मैं करवट बदलती,कम सोती।
सुनकर मेरे दिल की बातें,जग हँसता।
काश जिगर में तुम बस जाते,गम मिटता।

हाथ पकड़कर चलदी तेरे,बिन सोचे।
पग-पग पर मिलती बाधाएं,पथ रोके
तुम्हें बसाया दिल में अपने,रब दिखता।
काश जिगर में तुम बस जाते,गम मिटता।

देख तुझे मैं खुश हो जाती,मन खिलता
सुन प्रीत भरी तेरी बातें,मन हँसता।
नयनों से परदे हट जाते,भ्रम हटता।
काश जिगर में तुम बस जाते,गम मिटता।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित

4/11/2019
"चमक/तेज/आभा/कांति"

1
व्यक्तित्व ओज...
विचारों में झलका
गुण महका
2
घर,आँगन...
संस्कारों की झलक
द्वार चमका
3
नैन झलका...
मन की निर्मलता
आभा चेहरा
4
रजनी संग...
चाँदनी की चमक
नयन दंग
5
सुंदर मन...
असली है सौंदर्य
मुखड़ा कांति
6
पूर्णिमा रात...
चाँदनी की चमक
नयनाभिराम
7
स्वर्णिम आभा...
भास्कर ने बिखेरा
नहाई धरा

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
भावों के मोती
4/11/2019
शीर्षक- आभा


क्यों मेरा वाग्दान किया
गुण छत्तीस मिल जाएं।
क्यों ऐसा बखान किया।
क्या मैं कोई वस्तु थी।
मेरा कन्यादान किया।
दूर भेजकर.. अपने से
क्या सिद्ध प्रमाण किया
मेरे पथ के शूल चुनें थे
मन ही मन मान किया।
क्यों मेरा वाग्दान किया
अपने गृह की #आभा का
क्यों दीप-दान.... किया
नीति का संज्ञान किया,
संस्कारों का भान किया
बेटी बिदा कर बाबुल ने,
रीति का सम्मान किया।
परम्पराओं की छाया में
मेरा कन्यादान किया।।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

भावों के मोती
शीर्षक- चमक/ आभा


प्रतिभा से चमक आती चेहरे पर
अच्छे लोग ही लगते हैं सुन्दर।
संस्कार से सजा लो तुम खुद को
नक़ली हीरे-मोती को तजकर।

पाना है अगर तुम्हें दुनिया में
सच्चा स्नेह और सम्मान तो करो
बगैर किसी स्वार्थ और प्रपंच के
सबकी मदद खुद आगे बढ़कर।

कुछ नहीं जाने वाला साथ तेरे
ये बात तू अच्छी तरह समझ लें।
करके सद्कर्म सबका मन जीत ले
ईश्वर ने दिया है तुम्हें एक अवसर।

स्वरचित- निलम अग्रवाल,खड़कपुर

आज का विषय, चमक, तेज, आभा, कांति
दिन , सोमवार,

दिनांक, 4,11,2019,

सूरज की चमक के आगे सब दुनियाँ ही फीकी लगती है ,
सूरज के बिना किसी जीवन की कल्पना नहीं हो सकती है।
कांति चांद की अदुभुत होती शीतलता जग को देती है ,
जब चंदा रात लेकर आता राहत सबको मिल जाती है ।
तेज ज्ञान का विद्यमान हो जहाँ अज्ञानता नहीं टिकती है,
सीढ़ियाँ विकास की चढ़ती सभ्यता उन्नति हुआ करती है।
आभा प्रकृति की मनमोहक फलदायी अति शोभित है ।
धरती का आँचल ये प्यारा मानव की बड़ी धरोहर है।
तेजहीन जीवन भी क्या आभा ही लुप्त हो जाती है ।
कांति रहे जो शुभ कर्मों की जीवन में चमक आ जाती है।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश 

नमन-भावों के मोती
दिनांक :04/10/2019
विषय:चमक/तेज/आभा /कांति

विधा:हाइकु

सोना चमका
बहू के घूंघट से
सौम्यता बन।

तेज रफ्तार
कल्पना के घोडे पे
मन की रस्सी ।

आभा मंडल
मानवीय ऊजाएँ
आध्यात्म रूप ।

औरा अशुद्ध
तन मन के भाव
ध्यान का केंद्र ।

कांति बिखरी
नभ नक्षत्र चुनर
रात्रि श्रृंगार ।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव

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