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ब्लॉग संख्या :-548
27/10/19
विषय -दीप /दीपावली
****************************
रौशनी का त्यौहार दिवाली
अंतस मन में भी दीप जला
मिलजुल त्यौहार मना
वनवास से लौटे श्रीराम
भक्तों को ख़ुशी मिली अपार
प्रेम का दीप जलाकर
भेदभाव मिटाकर
दिल से सारे द्वेष मिटाकर
इक-दूजे को गले लगाकर
पटाखे कम बजाओ
पर्यावरण को बचाओ
मीत-प्रीत की रीत निभाओ
मानवता का पाठ पढ़ाओ
दिवाली के शुभ दिन अंधियारा मिटाओ
दिल से दिल का दीप जलाओ
तेरा मेरा क्यों करते हो
अंधियारे में क्यों रहते हो
सबको अपना बनाओ
अंतस मन का अंधियारा मिटाओ
बुजुर्गो का भी रखना ध्यान
बम कहीं न फोड़ें कान
वायु प्रदुषण धुएं से बचना
दीये के प्रकाश से घर-द्वार को भरना
रौशनी का त्यौहार दिपावली
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित
विषय -दीप /दीपावली
****************************
रौशनी का त्यौहार दिवाली
अंतस मन में भी दीप जला
मिलजुल त्यौहार मना
वनवास से लौटे श्रीराम
भक्तों को ख़ुशी मिली अपार
प्रेम का दीप जलाकर
भेदभाव मिटाकर
दिल से सारे द्वेष मिटाकर
इक-दूजे को गले लगाकर
पटाखे कम बजाओ
पर्यावरण को बचाओ
मीत-प्रीत की रीत निभाओ
मानवता का पाठ पढ़ाओ
दिवाली के शुभ दिन अंधियारा मिटाओ
दिल से दिल का दीप जलाओ
तेरा मेरा क्यों करते हो
अंधियारे में क्यों रहते हो
सबको अपना बनाओ
अंतस मन का अंधियारा मिटाओ
बुजुर्गो का भी रखना ध्यान
बम कहीं न फोड़ें कान
वायु प्रदुषण धुएं से बचना
दीये के प्रकाश से घर-द्वार को भरना
रौशनी का त्यौहार दिपावली
- सूर्यदीप कुशवाहा
स्वरचित
दीप/दीपावली
गीतिका
मात्रा विधान -१६,१४ की यति से =३० । अंत १ या २या ३गुरू वाचिक
आदरणीय मंच को निवेदित
वस्तु चीन की मत अपनाना, अबकी बार दिवाली में।
मिट्टी के सब दीप जलाना, अबकी बार दिवाली में।।
प्रेम भाव बस रखना मन में,नहीं नफरतें दिल में हो।
बैर भाव मन अहम न लाना, अबकी बार दिवाली में।।
तेज पटाखें नहीं फोड़ना, ध्यान धरा का सब रखना।
फुलझड़ियों से काम चलाना, अबकी बार दिवाली में।।
अनजाने जो भूल हुई हो, खत्म करो मन से सारी।
कड़वाहट तुम सभी भुलाना, अबकी बार दिवाली में।।
जाँति-पाँति अरु ऊँच-नीच सब,ऐसे भाव न मन में हो।
सारे इंसानियत दिखाना, अबकी बार दिवाली में।।
दरमियां न अब रहे फासलें, रखो ध्यान इन बातों का।
दूरी मन की सभी मिटाना, अबकी बार दिवाली में।।
धूम धड़ाका, चमक-दमक से, दूर रखो सब बच्चों को।
कपड़े सूती ही पहनाना, अबकी बार दिवाली में।।
मात-पिता की बातें सुनना,नित्य मान उनका करना।
कसमे वादें सभी निभाना, अबकी बार दिवाली में।।
शिकवे गिले किसी से भी हो, भूलो तुम उन सारो को।
रूठे हैं जो उन्हें मनाना, अबकी बार दिवाली में।।
हिंदू-मुस्लिम सिख- ईसाई, भाव नहीं मन में रखना।
मानवता की अलख जगाना, अबकी बार दिवाली में।।
तेरा मेरा इसका उसका, त्याग करो इन भावों का।
समानता का पाठ पढ़ाना, अबकी बार दिवाली में।।
भाई-भाभी चाचा- चाची, आपस में सब मिलकर के।
गीत सभी खुशियों के गाना, अबकी बार दिवाली में।।
ईर्ष्या द्वेष नहीं हो मन में, झूठ रंज सब को त्यागो।
सच्चाई का पाठ पढ़ाना, अबकी बार दिवाली में।।
कुछ कारणवश खट्टापन हो, दिल के भीतर भरा हुआ।
मीठी मिश्री खूब खिलाना, अबकी बार दिवाली में।।
काज न कोई ऐसा करना, मात-पिता की शान घटे।
मात-पिता का मान बढ़ाना, अबकी बार दिवाली में।।
स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट(म.प्र.)
गीतिका
मात्रा विधान -१६,१४ की यति से =३० । अंत १ या २या ३गुरू वाचिक
आदरणीय मंच को निवेदित
वस्तु चीन की मत अपनाना, अबकी बार दिवाली में।
मिट्टी के सब दीप जलाना, अबकी बार दिवाली में।।
प्रेम भाव बस रखना मन में,नहीं नफरतें दिल में हो।
बैर भाव मन अहम न लाना, अबकी बार दिवाली में।।
तेज पटाखें नहीं फोड़ना, ध्यान धरा का सब रखना।
फुलझड़ियों से काम चलाना, अबकी बार दिवाली में।।
अनजाने जो भूल हुई हो, खत्म करो मन से सारी।
कड़वाहट तुम सभी भुलाना, अबकी बार दिवाली में।।
जाँति-पाँति अरु ऊँच-नीच सब,ऐसे भाव न मन में हो।
सारे इंसानियत दिखाना, अबकी बार दिवाली में।।
दरमियां न अब रहे फासलें, रखो ध्यान इन बातों का।
दूरी मन की सभी मिटाना, अबकी बार दिवाली में।।
धूम धड़ाका, चमक-दमक से, दूर रखो सब बच्चों को।
कपड़े सूती ही पहनाना, अबकी बार दिवाली में।।
मात-पिता की बातें सुनना,नित्य मान उनका करना।
कसमे वादें सभी निभाना, अबकी बार दिवाली में।।
शिकवे गिले किसी से भी हो, भूलो तुम उन सारो को।
रूठे हैं जो उन्हें मनाना, अबकी बार दिवाली में।।
हिंदू-मुस्लिम सिख- ईसाई, भाव नहीं मन में रखना।
मानवता की अलख जगाना, अबकी बार दिवाली में।।
तेरा मेरा इसका उसका, त्याग करो इन भावों का।
समानता का पाठ पढ़ाना, अबकी बार दिवाली में।।
भाई-भाभी चाचा- चाची, आपस में सब मिलकर के।
गीत सभी खुशियों के गाना, अबकी बार दिवाली में।।
ईर्ष्या द्वेष नहीं हो मन में, झूठ रंज सब को त्यागो।
सच्चाई का पाठ पढ़ाना, अबकी बार दिवाली में।।
कुछ कारणवश खट्टापन हो, दिल के भीतर भरा हुआ।
मीठी मिश्री खूब खिलाना, अबकी बार दिवाली में।।
काज न कोई ऐसा करना, मात-पिता की शान घटे।
मात-पिता का मान बढ़ाना, अबकी बार दिवाली में।।
स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट(म.प्र.)
विषय दीप, दीपावली
विधा काव्य
27 अक्टूबर 2019,रविवार
महालक्ष्मी लम्बोदर पूजन
आओ मिलकर दीप जलावें।
अवधपति खुद अवध पधारे
घर आँगन हर ठौर सजाएँ।
तम सो ज्योतिर्गमय कर्ता है
महा पर्व प्रिय भू भारत का।
आदर्शो का सबक सिखाता
कम नहीं था,त्याग भरत का।
सुसंस्कृति दीपावली पावन
दीप जले अभिनन्दन करती।
भव्य रंगोली सुंदर अद्भुत ये
अंधकार अज्ञान नित हरति।
यह भरतों का देश है भारत
खड़े हुये मुस्तेद सीमा पर।
अदम्य साहस वीर पुत्रों हित
आओ दीप जलावें मिलकर।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
27 अक्टूबर 2019,रविवार
महालक्ष्मी लम्बोदर पूजन
आओ मिलकर दीप जलावें।
अवधपति खुद अवध पधारे
घर आँगन हर ठौर सजाएँ।
तम सो ज्योतिर्गमय कर्ता है
महा पर्व प्रिय भू भारत का।
आदर्शो का सबक सिखाता
कम नहीं था,त्याग भरत का।
सुसंस्कृति दीपावली पावन
दीप जले अभिनन्दन करती।
भव्य रंगोली सुंदर अद्भुत ये
अंधकार अज्ञान नित हरति।
यह भरतों का देश है भारत
खड़े हुये मुस्तेद सीमा पर।
अदम्य साहस वीर पुत्रों हित
आओ दीप जलावें मिलकर।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
नमन,वन्दन मंच भावों के मोती,गुरूजनों, मित्रों।
सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई।
"दीप/दीपावली"
चलो दीवाली मनायें आज।
गमों को भूलाकर,
दुश्मनी मिटाकर,
स्नेह का एक दीपक जलायें आज।
चलो दीवाली मनायें आज।
ईर्ष्या,द्वेष को दिल से भगाओ,
दुनियां में सद्भावना फैलाओ।
दोस्ती बढ़ाओ,
प्रेम,प्यार फैलाओ,
मुबारक हो सबको,
दीपावली का त्योहार।
चलो दीवाली मनायें आज।
एक दीया जलाओ उनके नाम,
हिफाजत में तेरी दे दी जिसने जान।
प्रेम का दीपक,
स्नेह की बाती,
इसकी ज्योति जलाओ सारी रात।
चलो दीवाली मनायें आज।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई।
"दीप/दीपावली"
चलो दीवाली मनायें आज।
गमों को भूलाकर,
दुश्मनी मिटाकर,
स्नेह का एक दीपक जलायें आज।
चलो दीवाली मनायें आज।
ईर्ष्या,द्वेष को दिल से भगाओ,
दुनियां में सद्भावना फैलाओ।
दोस्ती बढ़ाओ,
प्रेम,प्यार फैलाओ,
मुबारक हो सबको,
दीपावली का त्योहार।
चलो दीवाली मनायें आज।
एक दीया जलाओ उनके नाम,
हिफाजत में तेरी दे दी जिसने जान।
प्रेम का दीपक,
स्नेह की बाती,
इसकी ज्योति जलाओ सारी रात।
चलो दीवाली मनायें आज।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰
शुभ पावन दीपोत्सव आज।
सकल धरा प्रकाशित करदो।
हर नित जगमग ज्योति जले।
उत्तरोत्तर उजली धवल छटा।
समरसता की दीप पंक्ति यह।
लड्डू सी अब गुंथित रहे ।
मानवता की बयार दशोदिक्।
हर्षोल्लास से यह जग सारा।
बाल गोपाल युवा वृद्ध जन।
आयुष्मान सुशील समृद्ध हो।
शुभाशया अहर्निश दीपावली।
जयतु भारतवर्ष संस्कृति जय।
🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰
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स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा
२७/१०/२०१९@०८:०७
शुभ पावन दीपोत्सव आज।
सकल धरा प्रकाशित करदो।
हर नित जगमग ज्योति जले।
उत्तरोत्तर उजली धवल छटा।
समरसता की दीप पंक्ति यह।
लड्डू सी अब गुंथित रहे ।
मानवता की बयार दशोदिक्।
हर्षोल्लास से यह जग सारा।
बाल गोपाल युवा वृद्ध जन।
आयुष्मान सुशील समृद्ध हो।
शुभाशया अहर्निश दीपावली।
जयतु भारतवर्ष संस्कृति जय।
🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰🔰
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स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा
२७/१०/२०१९@०८:०७
27/10/2019
विषय- दीप/दीपावली
विधा- दोहा
रामलला लौटे सदन,पूरण होवें काज।
मावस का गहरा तमस, हार गया है आज।।
अंधकार मन से मिटे, रहे अलौकिक आग।
दीप पर्व की है प्रथा, घर- घर जले चिराग।।
धर्म निभा अपना सदा, जाग पहरुए जाग।
दीवाली मनती रहे, घर- घर जले चिराग।।
चाइनीज सामान से, अटे पड़े बाजार।
फिर भी चाक चला रहे, धन्य हैं कुम्भकार।।
चाक सदा चलता रहे, बनते रहें चिराग।
कर्मकार हों सब मुदित, बुझा पेट की आग।।
पर्व रोशनी का सुखद, समझ जरा इंसान।
तिमिर दूर होता सकल, बढ़े धरा की शान।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
विषय- दीप/दीपावली
विधा- दोहा
रामलला लौटे सदन,पूरण होवें काज।
मावस का गहरा तमस, हार गया है आज।।
अंधकार मन से मिटे, रहे अलौकिक आग।
दीप पर्व की है प्रथा, घर- घर जले चिराग।।
धर्म निभा अपना सदा, जाग पहरुए जाग।
दीवाली मनती रहे, घर- घर जले चिराग।।
चाइनीज सामान से, अटे पड़े बाजार।
फिर भी चाक चला रहे, धन्य हैं कुम्भकार।।
चाक सदा चलता रहे, बनते रहें चिराग।
कर्मकार हों सब मुदित, बुझा पेट की आग।।
पर्व रोशनी का सुखद, समझ जरा इंसान।
तिमिर दूर होता सकल, बढ़े धरा की शान।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रथम प्रस्तुति
जहाँ जरूरत है दीपक की ,
कर लेना उनकी पहचान ।।
आस-पड़ोस न उदासी हो ,
बिखरी हो खुशियाँ मुस्कान ।।
दूर नही नजदीक देखो ,
रहे नही तम नाम -निशान ।।
आज ही न कल भी जलाना ,
रौशन रहे खुद का मकान ।।
दीपक क्या बयां करता है ,
दरिया दिली मिसाल महान ।।
क्या शिकवा औ क्या शिकायत ,
सच्ची लौ परमात्म जान ।।
अपनी भी न फिकर 'शिवम' ,
धन्य दीपक धन्य वो गान ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/10/2019
जहाँ जरूरत है दीपक की ,
कर लेना उनकी पहचान ।।
आस-पड़ोस न उदासी हो ,
बिखरी हो खुशियाँ मुस्कान ।।
दूर नही नजदीक देखो ,
रहे नही तम नाम -निशान ।।
आज ही न कल भी जलाना ,
रौशन रहे खुद का मकान ।।
दीपक क्या बयां करता है ,
दरिया दिली मिसाल महान ।।
क्या शिकवा औ क्या शिकायत ,
सच्ची लौ परमात्म जान ।।
अपनी भी न फिकर 'शिवम' ,
धन्य दीपक धन्य वो गान ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 27/10/2019
27 /10 /2019
बिषय,, दीप ,दीपक,, दीपावली
मन के दीप प्रज्वलित कर हम सब मनाऐं दीपावली
रंग बिरंगे भावों के संग में खूब सजाऐं रंगोली
आज सभी के आंगन में मां लक्ष्मी जी पधारेंगी
दुख दारिद्र्य दूर कर जीवन सबका संवारेंगी
रंगोली से सजे आंगन दीपक सजेंगे देहरी द्वार
धूमधड़ाका सर्वत्र रहे फुलझड़ी की हो बौछार
न शिकवा शिकायत चहुंमुखी हो प्यार ही प्यार
चलो आज सब मिल मनाऐं दीपावली का पावन त्यौहार
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय,, दीप ,दीपक,, दीपावली
मन के दीप प्रज्वलित कर हम सब मनाऐं दीपावली
रंग बिरंगे भावों के संग में खूब सजाऐं रंगोली
आज सभी के आंगन में मां लक्ष्मी जी पधारेंगी
दुख दारिद्र्य दूर कर जीवन सबका संवारेंगी
रंगोली से सजे आंगन दीपक सजेंगे देहरी द्वार
धूमधड़ाका सर्वत्र रहे फुलझड़ी की हो बौछार
न शिकवा शिकायत चहुंमुखी हो प्यार ही प्यार
चलो आज सब मिल मनाऐं दीपावली का पावन त्यौहार
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
"आओ मनाएँ दीवाली खुशियों की"
उजला हुआ है जग सारा,
जब आई वेला दीपोत्सव की,
श्री राम का हुआ जो आगमन,
तो अयोध्या भी सजी दुल्हन सी,
बाहर जो दीप जलाएँ है तो,
मन में मी दीप जलाऐंगें,
ना जमने देंगें कूडा़ मन में,
स्वार्थ,संकीर्णता,अज्ञान,अहंकार का,
ना हो कचरा ,ऊँचनीच,जात-पाँत,
भ्रष्टाचार का,
हो भाव मन मे समरसता का,
डाले जो मन के दीपक मे ,
भाईचारे,स्नेह,समर्पण,त्याग,
के विचारो का घी,
आओ मनाएँ आज दीवाली,
शान्ति चैन -अमन की,
ना हो रक्त रंजित फिर माँ का आँगन,
ना हो कटुता व्यवहार में,
सुहानी सर्दी सा आन्दोलन प्नवीण सा,
तो होगी दीपावली की सार्थकता,
परमवैभव,विश्व गुरु की
महिमा का होगा मंडन,
तो दीपावली आएगी हर घर आँगन मे,
आओं मनाएँ दीवाली खुशियों की|
स्वरचित -सुनील चाष्टा
उजला हुआ है जग सारा,
जब आई वेला दीपोत्सव की,
श्री राम का हुआ जो आगमन,
तो अयोध्या भी सजी दुल्हन सी,
बाहर जो दीप जलाएँ है तो,
मन में मी दीप जलाऐंगें,
ना जमने देंगें कूडा़ मन में,
स्वार्थ,संकीर्णता,अज्ञान,अहंकार का,
ना हो कचरा ,ऊँचनीच,जात-पाँत,
भ्रष्टाचार का,
हो भाव मन मे समरसता का,
डाले जो मन के दीपक मे ,
भाईचारे,स्नेह,समर्पण,त्याग,
के विचारो का घी,
आओ मनाएँ आज दीवाली,
शान्ति चैन -अमन की,
ना हो रक्त रंजित फिर माँ का आँगन,
ना हो कटुता व्यवहार में,
सुहानी सर्दी सा आन्दोलन प्नवीण सा,
तो होगी दीपावली की सार्थकता,
परमवैभव,विश्व गुरु की
महिमा का होगा मंडन,
तो दीपावली आएगी हर घर आँगन मे,
आओं मनाएँ दीवाली खुशियों की|
स्वरचित -सुनील चाष्टा
आज का विषय, दीप दीपावली,
दिनांक 2 7,10,2019,
दिन, रविवार,
मंगलमय हो दीपोत्सव ये ,
शुभकामनाएं रहेंगीं हमारी ।
साफ सफाई कर लें मन की,
फिर करें हम पूजा की तैयारी।
दीप जलायें आज हम ऐसा,
जग से मिटे गम की बीमारी।
अश्रु रहे न किसी आँख में ,
खुशियों की फैले उजियारी ।
विकिसित हो देश में एकता ,
हमारा मान करे दुनियाँ सारी।
घृणा द्वेष के लिऐ न जगह हो,
प्रेम भाव की महके फुलवारी ।
मिल के रहें हम साथ हमेशा,
छोटी सी है अपनी जिंदगानी ।
कल का नहीं है कोई भरोसा,
आज की खुशियाँ ही हैं हमारीं।
हम जब दुनियाँ में आये हैं तो,
कर जायें कुछ तो भेंट निशानी।
कर्मों की पूँजी ही पास हमारे,
धन दौलत नहीं काम है आनी ।
जीवन का मतलब जिसने जाना ,
सार्थक हो गई उसी की जिंदगानी।
ज्योर्तिमय उज्ज्वल मन दीप हो ,
प्रकाशित हो सके जिससे दुनियाँ सारी ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
दिनांक 2 7,10,2019,
दिन, रविवार,
मंगलमय हो दीपोत्सव ये ,
शुभकामनाएं रहेंगीं हमारी ।
साफ सफाई कर लें मन की,
फिर करें हम पूजा की तैयारी।
दीप जलायें आज हम ऐसा,
जग से मिटे गम की बीमारी।
अश्रु रहे न किसी आँख में ,
खुशियों की फैले उजियारी ।
विकिसित हो देश में एकता ,
हमारा मान करे दुनियाँ सारी।
घृणा द्वेष के लिऐ न जगह हो,
प्रेम भाव की महके फुलवारी ।
मिल के रहें हम साथ हमेशा,
छोटी सी है अपनी जिंदगानी ।
कल का नहीं है कोई भरोसा,
आज की खुशियाँ ही हैं हमारीं।
हम जब दुनियाँ में आये हैं तो,
कर जायें कुछ तो भेंट निशानी।
कर्मों की पूँजी ही पास हमारे,
धन दौलत नहीं काम है आनी ।
जीवन का मतलब जिसने जाना ,
सार्थक हो गई उसी की जिंदगानी।
ज्योर्तिमय उज्ज्वल मन दीप हो ,
प्रकाशित हो सके जिससे दुनियाँ सारी ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
भावो के मोती
रूपमाला छंद में,,,
2122 2122 2122 21=24 मात्रा
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
************************************
आज जगमग जल रहा है,,,,,दीप का अंबार!
प्रिय दिवाली आ गई है ,,,,,,सज गए घर द्वार !!
**
आँगना में सज रहे स्वस्तिक,कलश सँग ओम,
लक्ष्मी माँ आइए,,,,,,,,,हम सब करें सत्कार//
**
आवनी श्री राम जी की,,,खुश सभी जन आज,
शुभ घड़ी आई ,,,,,,,,,,,,,,मनाएं हर्षमय त्योहार//
**
भावपूरित,आज तन-मन,,, देख झिलमिल दीप,
देखकर मन है प्रफुल्लित,,,,,ज्योति का संसार//
**
आस्था विश्वास ही तो ,,,,,,,,,,,,जिंदगी की ज्योत ,
प्रेम -ईश्वर,भक्ति पावन,,,,,,,,,,,,दीप में साकार//
**
प्रेम -"वीणा" बज रही,,,,गाती सुमंगल गीत,
प्रभु जलादो ! दीप -मन का ,,-प्रार्थना शत बार//
**
***********************************
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
रूपमाला छंद में,,,
2122 2122 2122 21=24 मात्रा
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
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आज जगमग जल रहा है,,,,,दीप का अंबार!
प्रिय दिवाली आ गई है ,,,,,,सज गए घर द्वार !!
**
आँगना में सज रहे स्वस्तिक,कलश सँग ओम,
लक्ष्मी माँ आइए,,,,,,,,,हम सब करें सत्कार//
**
आवनी श्री राम जी की,,,खुश सभी जन आज,
शुभ घड़ी आई ,,,,,,,,,,,,,,मनाएं हर्षमय त्योहार//
**
भावपूरित,आज तन-मन,,, देख झिलमिल दीप,
देखकर मन है प्रफुल्लित,,,,,ज्योति का संसार//
**
आस्था विश्वास ही तो ,,,,,,,,,,,,जिंदगी की ज्योत ,
प्रेम -ईश्वर,भक्ति पावन,,,,,,,,,,,,दीप में साकार//
**
प्रेम -"वीणा" बज रही,,,,गाती सुमंगल गीत,
प्रभु जलादो ! दीप -मन का ,,-प्रार्थना शत बार//
**
***********************************
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
आप सभी को दीपोत्सव की शुभकामनाएं
विषय -दीप/दीपावली
दिनाँक-27/10/19
दीप/दीपावली
------------------
एक दीप जलाना
हो लौ
उसकी मद्धम
उसको सतरंगो
से सजाना
वे सब तेरे मन
के रंग
देखो एक भी
भूल न जाना
लाल रंग से मिले
सम्रद्धि ,तो हरे से
स्फूर्ति, सुख शांति
नारंगी ज्ञान प्राप्ति
का प्रतीक,नीला
दे
बल शक्ति
श्वेत से मिले
पवित्रता, शांति
सारे के सारे
समाहित दीप
लौ में, न भूल
जाना उस काले
रंग को जो है
लौ के चारों
ओर वही सब रंगों
अपने अंदर है
रखता ,है मन
मानव का काला
उस मन का दीप
भी जलता मद्धम
मद्धम सुनो उसकी
लौ का तेज़ तुम
हल्का सा और
बढाना होकर
तुम प्रकाशित
इस उजाले को
दुनिया मे फैलाना
फिर होगी दीवाली
चारों दिशाओं में
जब मन का उजियारा
फैलेगा चहुं ओर ।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
विषय -दीप/दीपावली
दिनाँक-27/10/19
दीप/दीपावली
------------------
एक दीप जलाना
हो लौ
उसकी मद्धम
उसको सतरंगो
से सजाना
वे सब तेरे मन
के रंग
देखो एक भी
भूल न जाना
लाल रंग से मिले
सम्रद्धि ,तो हरे से
स्फूर्ति, सुख शांति
नारंगी ज्ञान प्राप्ति
का प्रतीक,नीला
दे
बल शक्ति
श्वेत से मिले
पवित्रता, शांति
सारे के सारे
समाहित दीप
लौ में, न भूल
जाना उस काले
रंग को जो है
लौ के चारों
ओर वही सब रंगों
अपने अंदर है
रखता ,है मन
मानव का काला
उस मन का दीप
भी जलता मद्धम
मद्धम सुनो उसकी
लौ का तेज़ तुम
हल्का सा और
बढाना होकर
तुम प्रकाशित
इस उजाले को
दुनिया मे फैलाना
फिर होगी दीवाली
चारों दिशाओं में
जब मन का उजियारा
फैलेगा चहुं ओर ।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
ग़ज़ल
हो गया है चांद ओझल देख करके रात काली ।
प्यार का दीपक जलाने आ गयी फिर से दिवाली ।
छोड़ नभ को सब सितारे अब धरा पर छा रहे हैं ।
रौनकों से हो गया है आसमां का हाथ खाली ।
टिमटिमाते जल रही है दीपमालाएं धरा पर ।
लग रहा हैं जुगनुओं ने इक नई टोली बना ली ।
आज फुलझड़ियां पटाखे शोर करते है गगन तक ।
दीपकों से भव्य सुंदर लग रही धरती निराली ।
देवताओं का घरों में हो रहा है भव्य पूजन ।
दीपमालाओं ने खुद को रोशनी से ही सजा ली ।
झिलमिलाती छाँव ठहरी गीत गाती हैं दिशाएँ ।
चुप्पियों ने मौन तोड़ा मौन करता है जुगाली ।
जल रहा है द्वेष रकमिश पल रही संवेदनायें ।
हर्षध्वनि की गूँज सुनकर दे रहे है लोग ताली ।
✍ रकमिश सुल्तानपुरी
हो गया है चांद ओझल देख करके रात काली ।
प्यार का दीपक जलाने आ गयी फिर से दिवाली ।
छोड़ नभ को सब सितारे अब धरा पर छा रहे हैं ।
रौनकों से हो गया है आसमां का हाथ खाली ।
टिमटिमाते जल रही है दीपमालाएं धरा पर ।
लग रहा हैं जुगनुओं ने इक नई टोली बना ली ।
आज फुलझड़ियां पटाखे शोर करते है गगन तक ।
दीपकों से भव्य सुंदर लग रही धरती निराली ।
देवताओं का घरों में हो रहा है भव्य पूजन ।
दीपमालाओं ने खुद को रोशनी से ही सजा ली ।
झिलमिलाती छाँव ठहरी गीत गाती हैं दिशाएँ ।
चुप्पियों ने मौन तोड़ा मौन करता है जुगाली ।
जल रहा है द्वेष रकमिश पल रही संवेदनायें ।
हर्षध्वनि की गूँज सुनकर दे रहे है लोग ताली ।
✍ रकमिश सुल्तानपुरी
विषय - दीपावली
दिनाँक 27 /10/ 2019
गरीबो की हर रात काली है ,
अमीरों की होती दिवाली है ।
💦💧💦
अपने वादे से लुभा ले गया ,
पूरी जनता भोली-भाली है ।
💦💧💦
कम खाते है गम पी लेते है ,
उनके घर तो खुशहाली है ।
💦💧💦
मेहनत हर एक दिन करते है ,
फिर भी बिगड़ी हालत माली है ।
💦💧💦
लिखा वेद-पुराण में है सारा ,
सबमें बात रही वो आली है ।
💦💧💦
अपना मोहन है छैल-छबीला ,
अभी राधा की उमर बाली है ।
💦💧💦
हर विपदाओं का भंजन करती ,
अर्धागनी बनी घरवाली है ।
💦💧💦
तमस बीच आलोक घिरा है,
जीवन दीपशिखा खाली है ।।
💦💧💦✒ आलोक मिश्र मुकुन्द
दिनाँक 27 /10/ 2019
गरीबो की हर रात काली है ,
अमीरों की होती दिवाली है ।
💦💧💦
अपने वादे से लुभा ले गया ,
पूरी जनता भोली-भाली है ।
💦💧💦
कम खाते है गम पी लेते है ,
उनके घर तो खुशहाली है ।
💦💧💦
मेहनत हर एक दिन करते है ,
फिर भी बिगड़ी हालत माली है ।
💦💧💦
लिखा वेद-पुराण में है सारा ,
सबमें बात रही वो आली है ।
💦💧💦
अपना मोहन है छैल-छबीला ,
अभी राधा की उमर बाली है ।
💦💧💦
हर विपदाओं का भंजन करती ,
अर्धागनी बनी घरवाली है ।
💦💧💦
तमस बीच आलोक घिरा है,
जीवन दीपशिखा खाली है ।।
💦💧💦✒ आलोक मिश्र मुकुन्द
भावों के मोती
दीपक
***
दीपक की टिमटिमाती लौ
देख अंधियारा मुस्करा ,ये कह उठा ,
सामर्थ्य कहाँ बची अब तुझमें
और मुझे मिटाने का ख्वाब सजा रहा।
रंग बिरंगी झालरों की रौनक में
तेरा वजूद गौण हो गया है ।
गढ़ता रहा जो कुम्हार ताउम्र तुम्हें
वो अब मौन हो गया है ।
दीपक भी हँस के बोला
मेरी सामर्थ्य का भान नहीं है तुम्हें,
मेरे वजूद की बात करते हो
तेरा वजूद मेरे ही तले है
मैं अकेला सामर्थ्य वान हूँ
तुम्हें कैद करने को ,
तमस मिटा करता हूँ उजास
अकेले दीप से दीप जलते रहेंगे
और तुम यूँ ही कैद में तड़पते रहोगे ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
दीपक
***
दीपक की टिमटिमाती लौ
देख अंधियारा मुस्करा ,ये कह उठा ,
सामर्थ्य कहाँ बची अब तुझमें
और मुझे मिटाने का ख्वाब सजा रहा।
रंग बिरंगी झालरों की रौनक में
तेरा वजूद गौण हो गया है ।
गढ़ता रहा जो कुम्हार ताउम्र तुम्हें
वो अब मौन हो गया है ।
दीपक भी हँस के बोला
मेरी सामर्थ्य का भान नहीं है तुम्हें,
मेरे वजूद की बात करते हो
तेरा वजूद मेरे ही तले है
मैं अकेला सामर्थ्य वान हूँ
तुम्हें कैद करने को ,
तमस मिटा करता हूँ उजास
अकेले दीप से दीप जलते रहेंगे
और तुम यूँ ही कैद में तड़पते रहोगे ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
दिनाँक-27/10/2019
शीर्षक - दीप ,दीपावली
विधा-कविता
*******************
झिलमिल-झिलमिल दीप जले आज दिवाली है
टिमटिम करते दीप जलते धरा पर रवानी है
दिल अपने झांक कर देखो किस आँख में पानी है
प्यार-प्रेम स्नेह उल्लास से दिवाली मनानी है ।
नन्हें नन्हें ननिहाल आज फुलझड़ी छुटाते हैं
हँसी खुशी एक दूजे से अपना हाथ बढाते हैं
लक्ष्मी गणेश को प्रसन्न करने दीप जलाते हैं
ईर्ष्या द्वेष दूर भगा प्यार का दीप जलाते हैं।
असंख्य जला कर दीप, रात को पूनम बनाते हैं
लक्ष्मी जी को पास बुलाने, अपने घर सजाते हैं
लक्ष्मी जी के स्वागत को द्वार फूल बिछाते हैं
सुंदर सुंदर रंग बिरंगी ,आंगन रंगोली बनाते हैं ।
आओ हम सब मिलकर प्रकाश का दीप जलाएं
ढेर सारा स्नेह बटोर खुशिओं का दीप जलाएं
कोई न रहे भूखा प्यासा सबको मिठाई खिलाएं
हटाकर काँटे नफरत के प्यार के फूल बिछाएं।
गरीब के घर में भी खुशियों का एक दीप जलाएं
दुर्गुणों से कर किनारा सदगुण हम अपनाएं
अंतरात्मा को शुद्ध करके सुंदर जहां बनाएं
आओ हम सब मिल कर यादगार दिवाली मनाएं ।
हलवा पूरी खील पतासे लक्ष्मी को भोग लगाएं
भोजन कपड़े देकर दान गरीब का घर महकाएं
घर घर में खुशी का दीप जले ऐसी अलख जगाएं
आओ हम सब मिलकर प्रकाश का दीप जलाएं।
प्रदूषण मुक्त हो दिवाली सबको मिल बैठ समझाएं
अमन चैन आये जग में, आतंकवाद जड़ से मिटाएं
इंसान इंसान बनकर इंसानियत की चार चाँद लगाएं
आओ आज हम सब मिलकर प्यार की दिवाली मनाएं।
*******************
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
शीर्षक - दीप ,दीपावली
विधा-कविता
*******************
झिलमिल-झिलमिल दीप जले आज दिवाली है
टिमटिम करते दीप जलते धरा पर रवानी है
दिल अपने झांक कर देखो किस आँख में पानी है
प्यार-प्रेम स्नेह उल्लास से दिवाली मनानी है ।
नन्हें नन्हें ननिहाल आज फुलझड़ी छुटाते हैं
हँसी खुशी एक दूजे से अपना हाथ बढाते हैं
लक्ष्मी गणेश को प्रसन्न करने दीप जलाते हैं
ईर्ष्या द्वेष दूर भगा प्यार का दीप जलाते हैं।
असंख्य जला कर दीप, रात को पूनम बनाते हैं
लक्ष्मी जी को पास बुलाने, अपने घर सजाते हैं
लक्ष्मी जी के स्वागत को द्वार फूल बिछाते हैं
सुंदर सुंदर रंग बिरंगी ,आंगन रंगोली बनाते हैं ।
आओ हम सब मिलकर प्रकाश का दीप जलाएं
ढेर सारा स्नेह बटोर खुशिओं का दीप जलाएं
कोई न रहे भूखा प्यासा सबको मिठाई खिलाएं
हटाकर काँटे नफरत के प्यार के फूल बिछाएं।
गरीब के घर में भी खुशियों का एक दीप जलाएं
दुर्गुणों से कर किनारा सदगुण हम अपनाएं
अंतरात्मा को शुद्ध करके सुंदर जहां बनाएं
आओ हम सब मिल कर यादगार दिवाली मनाएं ।
हलवा पूरी खील पतासे लक्ष्मी को भोग लगाएं
भोजन कपड़े देकर दान गरीब का घर महकाएं
घर घर में खुशी का दीप जले ऐसी अलख जगाएं
आओ हम सब मिलकर प्रकाश का दीप जलाएं।
प्रदूषण मुक्त हो दिवाली सबको मिल बैठ समझाएं
अमन चैन आये जग में, आतंकवाद जड़ से मिटाएं
इंसान इंसान बनकर इंसानियत की चार चाँद लगाएं
आओ आज हम सब मिलकर प्यार की दिवाली मनाएं।
*******************
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
दिनांक- 27/10/2019
शीर्षक- दीप/दीपमाला
******************
दीप से दीप मिलाकर हुई,
दीपमाला देखो ये तैयार,
अंधकार को दूर भगाकर,
रोशनी की है जगमगाहट |
पटाखों की धुम धड़ाम से,
बुरी शक्तियां डरे हैं आज,
अमावस्य की काली रात,
दीपों से रोशन है आज |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
शीर्षक- दीप/दीपमाला
******************
दीप से दीप मिलाकर हुई,
दीपमाला देखो ये तैयार,
अंधकार को दूर भगाकर,
रोशनी की है जगमगाहट |
पटाखों की धुम धड़ाम से,
बुरी शक्तियां डरे हैं आज,
अमावस्य की काली रात,
दीपों से रोशन है आज |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
शुभ दीपावली
शीर्षक-दीपावली।
दीप जलाकर कर खुशियाँ मनाये
आया दीपावली का त्योहार
सज सवँर कर पूजन करें
गणेश लक्ष्मी भगवान।
खील मीठाई का भोग लगाये
आया दीपावली त्योहार
मिट्टी के दीपक से घर सजाये
चाइनीज बिजली दे डार।
अंधकार चाहे हो बाहर
या फिर मन के अंदर
दूर भगाये आज
आया दीपावली का त्योहार।
धुआँ छोड़े जो पटाका
उससे रहे दूर,श्र्वास रोगी
रहे सुरक्षित,
कोशिश हो भरपूर।
साफ सफाई कर घर लक्ष्मी बुलाये
गणेश दे बुद्धि विवेक
पर्व मनाये, खुशियां मनाये
रौशन करें भरपूर।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक-दीपावली।
दीप जलाकर कर खुशियाँ मनाये
आया दीपावली का त्योहार
सज सवँर कर पूजन करें
गणेश लक्ष्मी भगवान।
खील मीठाई का भोग लगाये
आया दीपावली त्योहार
मिट्टी के दीपक से घर सजाये
चाइनीज बिजली दे डार।
अंधकार चाहे हो बाहर
या फिर मन के अंदर
दूर भगाये आज
आया दीपावली का त्योहार।
धुआँ छोड़े जो पटाका
उससे रहे दूर,श्र्वास रोगी
रहे सुरक्षित,
कोशिश हो भरपूर।
साफ सफाई कर घर लक्ष्मी बुलाये
गणेश दे बुद्धि विवेक
पर्व मनाये, खुशियां मनाये
रौशन करें भरपूर।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
विषय- दीपावली
दिनांक 27-10- 2019
इस बार दीपावली, हम इस तरह मनाएंगे।
हर घर रोशन हो,सोच यही अपनाएंगे।।
पटाखे जला,पर्यावरण प्रदूषण नहीं फैलाएंगे।
उन पैसों से,गरीब बच्चों के उपहार लाएंगे ।।
मिट्टी दीपक जला,रोशनी चहुँओर फैलाएंगे।
चीनी उत्पादकों को हम,अब नहीं अपनाएंगे।।
अज्ञान अंधकार दूर कर,ज्ञान दीप जलाएंगे।
खुशहाल जीवन ,जीने का हुनर सिखाएंगे ।।
मन मेल इस दीपावली,गंदगी संग दूर भगाएंगे।
सब के दिलों में बस,अपनत्व भाव जगाएंगे।।
गरीब चौखट पर,इस बार दीप जगमगाएंगे ।
भेदभाव भूलकर, मिलकर दीपावली मनाएंगे।।
बंदनवार हर द्वार लगा,रस्म कुछ यू निभाएंगे ।
रामवतार मान अतिथि,कुमकुम तिलक लगाएंगे।।
लक्ष्मी पूजन कर, माँ को प्रसन्न कर जाएंगे।
कोई भूखा ना रहे, बस यही आशीष पाएंगे।।
वसुधैव कुटुंबकम की,भावना हम अपनाएंगे ।
देश पर विपदा आए तो ,प्राण बाजी लगाएंगे।
श्रीराम को आदर्श बना,जीवन सफल बनाएंगे।
बुजुर्गों के आशीष से,गम कोसों दूर हो जाएंगे ।।
हेलो हाय की बजाय,हम जय श्रीराम बोलेंगे।
आज हम दीपावली,कुछ इस तरह मनाएंगे।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 27-10- 2019
इस बार दीपावली, हम इस तरह मनाएंगे।
हर घर रोशन हो,सोच यही अपनाएंगे।।
पटाखे जला,पर्यावरण प्रदूषण नहीं फैलाएंगे।
उन पैसों से,गरीब बच्चों के उपहार लाएंगे ।।
मिट्टी दीपक जला,रोशनी चहुँओर फैलाएंगे।
चीनी उत्पादकों को हम,अब नहीं अपनाएंगे।।
अज्ञान अंधकार दूर कर,ज्ञान दीप जलाएंगे।
खुशहाल जीवन ,जीने का हुनर सिखाएंगे ।।
मन मेल इस दीपावली,गंदगी संग दूर भगाएंगे।
सब के दिलों में बस,अपनत्व भाव जगाएंगे।।
गरीब चौखट पर,इस बार दीप जगमगाएंगे ।
भेदभाव भूलकर, मिलकर दीपावली मनाएंगे।।
बंदनवार हर द्वार लगा,रस्म कुछ यू निभाएंगे ।
रामवतार मान अतिथि,कुमकुम तिलक लगाएंगे।।
लक्ष्मी पूजन कर, माँ को प्रसन्न कर जाएंगे।
कोई भूखा ना रहे, बस यही आशीष पाएंगे।।
वसुधैव कुटुंबकम की,भावना हम अपनाएंगे ।
देश पर विपदा आए तो ,प्राण बाजी लगाएंगे।
श्रीराम को आदर्श बना,जीवन सफल बनाएंगे।
बुजुर्गों के आशीष से,गम कोसों दूर हो जाएंगे ।।
हेलो हाय की बजाय,हम जय श्रीराम बोलेंगे।
आज हम दीपावली,कुछ इस तरह मनाएंगे।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय--दीप/दीपावली
दि.रविवार/27-10-19
विधा --दोहे
1.
दीप दीप की ज्योति से, हो जग में उजियार।
भला भला हो सब तरफ, बढ़े जगत में प्यार ।।
2.
मन में उजियारा भरें , छोटे छोटे दीप।
दमके ये जीवन सदा, चमके मोती सीप।।
3.
जीवन कोरी कल्पना, बिन प्रकाश के मीत।
पूज्य सदा से रोशनी, दीप संग हो प्रीत।।
4.
उजियारा हो दीप सा, तम मन का हर जाय।
राग द्वेष के तिमिर का, अंश न जग रह पाय।।
5.
दीपों का उजियार हो, पटाके व पकवान।
इक दूजे को भेंट दें,गले मिले इंसान।।
6.
जले स्वयं दे रोशनी, लघु काया का दीप।
वही ' हितैषी 'पूज्य है, ज्यों मोती युत सीप।।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
दि.रविवार/27-10-19
विधा --दोहे
1.
दीप दीप की ज्योति से, हो जग में उजियार।
भला भला हो सब तरफ, बढ़े जगत में प्यार ।।
2.
मन में उजियारा भरें , छोटे छोटे दीप।
दमके ये जीवन सदा, चमके मोती सीप।।
3.
जीवन कोरी कल्पना, बिन प्रकाश के मीत।
पूज्य सदा से रोशनी, दीप संग हो प्रीत।।
4.
उजियारा हो दीप सा, तम मन का हर जाय।
राग द्वेष के तिमिर का, अंश न जग रह पाय।।
5.
दीपों का उजियार हो, पटाके व पकवान।
इक दूजे को भेंट दें,गले मिले इंसान।।
6.
जले स्वयं दे रोशनी, लघु काया का दीप।
वही ' हितैषी 'पूज्य है, ज्यों मोती युत सीप।।
******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
दिनांक-27/10/2019
विषय- दीपावली
दिये के लौ का राज..
पड़ी है मिट्टी के भीतर
एक सुषुप्त आवाज़।
आतुर है सच को जानने
कैसा है यह मौन आभास।
चाहत है मन के अंदर
खोया है सहारे का विश्वास।
मिट्टी से कैसे दिया बनू
मेरे लौ का क्या है राज।
इस आस की मिट्टी लेकर
मैं आशा के दिये बनाती।
हर दिवाली जर्रा- जर्रा
मैं बाजारों में बिखर जाती।
कब सजेगी दिये की बारात ?
घर-घर दीप जले
दिवाली का हमको है नाज।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
विषय- दीपावली
दिये के लौ का राज..
पड़ी है मिट्टी के भीतर
एक सुषुप्त आवाज़।
आतुर है सच को जानने
कैसा है यह मौन आभास।
चाहत है मन के अंदर
खोया है सहारे का विश्वास।
मिट्टी से कैसे दिया बनू
मेरे लौ का क्या है राज।
इस आस की मिट्टी लेकर
मैं आशा के दिये बनाती।
हर दिवाली जर्रा- जर्रा
मैं बाजारों में बिखर जाती।
कब सजेगी दिये की बारात ?
घर-घर दीप जले
दिवाली का हमको है नाज।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
तिथि_27/10/2019/रविवार
विषय_"दीप दीपावली "
विधा॒॒॒ _काव्य
मात्रा भार १८
आओ हम दीपावली मनाऐं।
यारो प्रेम के दीपक जलाऐं।
बडता रहे भाईचारा सदा,
खूब पटाखे फुलझडी चलाऐं।
मिट जाऐ हर मन से अंधेरा।
नहीं रहे कहीं तम का बसेरा।
दिखाऐं हमें खुशियां ही खुशियां
हो सभी दूर प्यार का सबेरा।
जिंदगी हमारी खुशहाल होए।
न अपनी संस्कृति जंजाल होए।
घुले सौहार्द वातावरण में ,
नहीं कभी भारत बदहाल होए।
यहां सभी समृद्ध बन के चलें।
गलवहियां डाले प्रीत से चलें।
बाती जले प्रेम तेल दीप में ,
उजाला करें प्रीत पथ में चलें।
लक्ष्मी गणेश सरस्वती पुजाऐं।
पूजन इनकी हृदय से कराऐ।
वैरभाव रागद्वेष सभी जला,
दिवाली में शांति दीप जलाऐं।
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य
94257-62471
विषय_"दीप दीपावली "
विधा॒॒॒ _काव्य
मात्रा भार १८
आओ हम दीपावली मनाऐं।
यारो प्रेम के दीपक जलाऐं।
बडता रहे भाईचारा सदा,
खूब पटाखे फुलझडी चलाऐं।
मिट जाऐ हर मन से अंधेरा।
नहीं रहे कहीं तम का बसेरा।
दिखाऐं हमें खुशियां ही खुशियां
हो सभी दूर प्यार का सबेरा।
जिंदगी हमारी खुशहाल होए।
न अपनी संस्कृति जंजाल होए।
घुले सौहार्द वातावरण में ,
नहीं कभी भारत बदहाल होए।
यहां सभी समृद्ध बन के चलें।
गलवहियां डाले प्रीत से चलें।
बाती जले प्रेम तेल दीप में ,
उजाला करें प्रीत पथ में चलें।
लक्ष्मी गणेश सरस्वती पुजाऐं।
पूजन इनकी हृदय से कराऐ।
वैरभाव रागद्वेष सभी जला,
दिवाली में शांति दीप जलाऐं।
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य
94257-62471
(मात्रा भार -18)
"दीप -दीपावली " काव्य
मात्रा भार १८
27/10/2019/ रविवार
"दीप -दीपावली " काव्य
मात्रा भार १८
27/10/2019/ रविवार
जल रहा झोपड़ी में
एक दिया
हवाओ की दस्तक से
लहराता हुआ
खुद को संभाले हुए
रात के अंधियारे से
देखो कैसे लड़ता हुआ
खुद बैठा है तम पर
रोशन जहाँ को कर रहा
परमार्थ की कहानी को
देखो कैसे गढ़ रहा
रात में चलती हवाये
है बुझाने को आतुर
पर अकेला दीप
कैसे खुद से लड़ रहा
जल रहा जलता रहैगा
जब तक तन में है स्वास
दे प्रकाश तम को हराकर
ज्ञान को गढ़ता रहेगा
स्वरचित
मीना तिवारी
एक दिया
हवाओ की दस्तक से
लहराता हुआ
खुद को संभाले हुए
रात के अंधियारे से
देखो कैसे लड़ता हुआ
खुद बैठा है तम पर
रोशन जहाँ को कर रहा
परमार्थ की कहानी को
देखो कैसे गढ़ रहा
रात में चलती हवाये
है बुझाने को आतुर
पर अकेला दीप
कैसे खुद से लड़ रहा
जल रहा जलता रहैगा
जब तक तन में है स्वास
दे प्रकाश तम को हराकर
ज्ञान को गढ़ता रहेगा
स्वरचित
मीना तिवारी
दिनांक.............27/10/2019
विषय..............🌷दीप/दीपावली🌷
विधा ...............🌷कविता🌷
¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶
*दीपावली*
*दीपों का उत्सव है,*
*चलो मनायें दीपावली।*
लगी दीपों की कतार,*
*हर अँगना घर द्वार।*
🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓
*हरन लगा.तिमिर नन्हे दीपक के प्रकाश से।*
*तन साथ मन उजियार हुआ दीप त्यौहार से।*
🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊
अयोध्या के पावन धरा पर रखे पदचाप श्री राम।
साथ धरे लखन जानकी सखा महावीर हनुमान।
🍐🍐🍐🍐🍐🍐🍐🍐🍐🍐🍐🍐🍐
*दीप चंदन अक्षत बंदन,*
*खील बतासे से थाली सजी है।*
*माँ लक्ष्मी जी की चौकी,*
*लाल वस्त्र पुष्प हार से सजी है।*
🍎🍎🍎🍎🍎🍎🍎🍎🍎🍎🍎🍎🍎
*सपरिवार मिलकर माँ लक्ष्मी का ध्यान करे।*
*पुजा आरती कर भोग लगा कर नमन करे।*
🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋
हे माँ लक्ष्मी सद बुद्धि सद ज्ञान दे,
सब संतन को धन धान्य दे।
*निरोगी काया दे ,सदगुण और सम्मान दे।*
*सारा जगत सुखमय हो ,ऐसा वरदान दे।*
🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇
स्वलिखित
*कन्हैया लाल श्रीवास*
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
विषय..............🌷दीप/दीपावली🌷
विधा ...............🌷कविता🌷
¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶¶
*दीपावली*
*दीपों का उत्सव है,*
*चलो मनायें दीपावली।*
लगी दीपों की कतार,*
*हर अँगना घर द्वार।*
🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓🍓
*हरन लगा.तिमिर नन्हे दीपक के प्रकाश से।*
*तन साथ मन उजियार हुआ दीप त्यौहार से।*
🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊🍊
अयोध्या के पावन धरा पर रखे पदचाप श्री राम।
साथ धरे लखन जानकी सखा महावीर हनुमान।
🍐🍐🍐🍐🍐🍐🍐🍐🍐🍐🍐🍐🍐
*दीप चंदन अक्षत बंदन,*
*खील बतासे से थाली सजी है।*
*माँ लक्ष्मी जी की चौकी,*
*लाल वस्त्र पुष्प हार से सजी है।*
🍎🍎🍎🍎🍎🍎🍎🍎🍎🍎🍎🍎🍎
*सपरिवार मिलकर माँ लक्ष्मी का ध्यान करे।*
*पुजा आरती कर भोग लगा कर नमन करे।*
🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋🍋
हे माँ लक्ष्मी सद बुद्धि सद ज्ञान दे,
सब संतन को धन धान्य दे।
*निरोगी काया दे ,सदगुण और सम्मान दे।*
*सारा जगत सुखमय हो ,ऐसा वरदान दे।*
🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇🍇
स्वलिखित
*कन्हैया लाल श्रीवास*
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
विषय : दीपावाली
विधा : पद ( छंदबद्ध कविता)
आओ मिलकर दीप जलाएँ
फैला जग में तिमिर बहुत है,
आओ मिल सब दीप जलाएँ ।
लक्ष्मी पूजन और दिवाली ,
मिलजुलकर हम साथ मनाएँ।
पहला दीया शहीदों हेतु ,
हर घर में प्रज्वलित होगा ।
त्याग व बलिदान का सूचक ,
लक्ष्मी माँ को अर्पित होगा।।
नाम शहीदों का लेकर हम ,
आओ मन ही मन हर्षाएँ ।
लक्ष्मी पूजन और दिवाली ,
मिलजुलकर हम साथ मनाएँ।
गरीब झोपड़ी में एक दीया ,
जाकर आज जलाना होगा।
पर्व प्यार की है परिभाषा ,
दे उपहार बताना होगा ।
तोड़ के बंधन जात-पात के,
सीमाओं से दूर भगाएँ ।
लक्ष्मी पूजन और दिवाली ,
मिलजुलकर हम साथ मनाएँ।
एक दीप घर के दरवाजे ,
मात-पिता के नाम का होगा।
संस्कार , मर्यादा मन में ,
सेवा और सम्मान का होगा ।
मात-पिता हों घर की शोभा ,
आओ मिल हम प्यार जताएँ।
लक्ष्मी पूजन और दिवाली ,
मिलजुलकर हम साथ मनाएँ।
एक दीया मन के मंदिर में ,
हम पक्का आज जलाएँगे।
रंजिश,नफरत,हीन भावना,
जड़ से हम आज मिटायेंगे।
क्षमा दान व माफी देकर ,
आओ सबको गले लगाएँ ।
लक्ष्मी पूजन और दिवाली ,
मिलजुलकर हम साथ मनाएँ।
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित रचना
मौलिक
विधा : पद ( छंदबद्ध कविता)
आओ मिलकर दीप जलाएँ
फैला जग में तिमिर बहुत है,
आओ मिल सब दीप जलाएँ ।
लक्ष्मी पूजन और दिवाली ,
मिलजुलकर हम साथ मनाएँ।
पहला दीया शहीदों हेतु ,
हर घर में प्रज्वलित होगा ।
त्याग व बलिदान का सूचक ,
लक्ष्मी माँ को अर्पित होगा।।
नाम शहीदों का लेकर हम ,
आओ मन ही मन हर्षाएँ ।
लक्ष्मी पूजन और दिवाली ,
मिलजुलकर हम साथ मनाएँ।
गरीब झोपड़ी में एक दीया ,
जाकर आज जलाना होगा।
पर्व प्यार की है परिभाषा ,
दे उपहार बताना होगा ।
तोड़ के बंधन जात-पात के,
सीमाओं से दूर भगाएँ ।
लक्ष्मी पूजन और दिवाली ,
मिलजुलकर हम साथ मनाएँ।
एक दीप घर के दरवाजे ,
मात-पिता के नाम का होगा।
संस्कार , मर्यादा मन में ,
सेवा और सम्मान का होगा ।
मात-पिता हों घर की शोभा ,
आओ मिल हम प्यार जताएँ।
लक्ष्मी पूजन और दिवाली ,
मिलजुलकर हम साथ मनाएँ।
एक दीया मन के मंदिर में ,
हम पक्का आज जलाएँगे।
रंजिश,नफरत,हीन भावना,
जड़ से हम आज मिटायेंगे।
क्षमा दान व माफी देकर ,
आओ सबको गले लगाएँ ।
लक्ष्मी पूजन और दिवाली ,
मिलजुलकर हम साथ मनाएँ।
नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित रचना
मौलिक
27/10/2019
विषय-दीप/दीपावली
💐💐💐💐💐💐💐
एक दिया अंधेरी गली में भी
जला के रखना
किसी राहगीर को राह दिखाने
के लिए
एक चिराग उस देहरी पर भी
रख देना
जिनका चिराग बुझ गया
सदा के लिए
एक दीपक उस द्वार पर जला देना
जो शहीद हो गया
वतन के लिए
थोडी रोशनी,थोड़ा अन्न मिष्ठान
उनको भी देना
जो मेहनत करके भी भूखे रह जाते हैं
हमें आका बनाने के लिये
एक दीप अंतर्मन में भी जला लेना
मन के गहन अंधकार को
मिटाने के लिए
रे मन!!ऐसे दिल वाली दीवाली
मना लेना
अपने परवरदिगार, प्रभु के
सुपात्र कहलाने के लिए...!!
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®
विषय-दीप/दीपावली
💐💐💐💐💐💐💐
एक दिया अंधेरी गली में भी
जला के रखना
किसी राहगीर को राह दिखाने
के लिए
एक चिराग उस देहरी पर भी
रख देना
जिनका चिराग बुझ गया
सदा के लिए
एक दीपक उस द्वार पर जला देना
जो शहीद हो गया
वतन के लिए
थोडी रोशनी,थोड़ा अन्न मिष्ठान
उनको भी देना
जो मेहनत करके भी भूखे रह जाते हैं
हमें आका बनाने के लिये
एक दीप अंतर्मन में भी जला लेना
मन के गहन अंधकार को
मिटाने के लिए
रे मन!!ऐसे दिल वाली दीवाली
मना लेना
अपने परवरदिगार, प्रभु के
सुपात्र कहलाने के लिए...!!
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®
शीर्षक- दीप
नेह दीप हर दिल में जलाएंगे।
तिमिर नफरत का भगाएंगे।
ऊंच-नीच, जाति-धर्म भूलकर
हम मिलकर दीपावली मनाएंगे।।
क्या मिला एक दूजे से लड़ के
घृणा द्वेष की आग में जल के।
प्रेम फूल हर आंगन में खिलाएंगे।
हम मिलकर...
कोई न भूखा,कोई न नंगा होगा।
मज़हब के नाम पर न दंगा होगा।
सबको हिल-मिल रहना सिखाएंगे।
हम मिलकर...
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
नेह दीप हर दिल में जलाएंगे।
तिमिर नफरत का भगाएंगे।
ऊंच-नीच, जाति-धर्म भूलकर
हम मिलकर दीपावली मनाएंगे।।
क्या मिला एक दूजे से लड़ के
घृणा द्वेष की आग में जल के।
प्रेम फूल हर आंगन में खिलाएंगे।
हम मिलकर...
कोई न भूखा,कोई न नंगा होगा।
मज़हब के नाम पर न दंगा होगा।
सबको हिल-मिल रहना सिखाएंगे।
हम मिलकर...
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
बचपन में था,
एक मिट्टी का मकान ।
दिपावली पर सजती,
घर में बनी मिठाई ,
और नमकिन की दूकान ।
रिश्तों में थी,
मिठी सुंगध गाँव की ।
घर गुंजती,
ननद भाभी की हँसी ठीठोली ।
परिवार में मिलता,
मान सम्मान ।
एक दूजे को लगता अभिमान ।
अब पक्के मकान संग,
रिश्ते हो गये सब,
कान से कच्चे ।
बिखर गये शहरों में ।
सपने करने पूरे ।
ननद -भाभी कभी कभी,
मिल पाती ।
आओं प्रण करें ,दीप जलाएं ।
परिवार के संग.।
दीप पर्व पर खुशी बरसाएं ,
आपके घर आंगन ।
खुशी ,उत्साह,उमंग में,
ना हो कोई कमी ।
बनी रहें सदा ,
जीवन में रोशनी ।
यही दीप पर्व पर ,
॥मंगलकामनाएं॥
✍प्रदीप सहारे
एक मिट्टी का मकान ।
दिपावली पर सजती,
घर में बनी मिठाई ,
और नमकिन की दूकान ।
रिश्तों में थी,
मिठी सुंगध गाँव की ।
घर गुंजती,
ननद भाभी की हँसी ठीठोली ।
परिवार में मिलता,
मान सम्मान ।
एक दूजे को लगता अभिमान ।
अब पक्के मकान संग,
रिश्ते हो गये सब,
कान से कच्चे ।
बिखर गये शहरों में ।
सपने करने पूरे ।
ननद -भाभी कभी कभी,
मिल पाती ।
आओं प्रण करें ,दीप जलाएं ।
परिवार के संग.।
दीप पर्व पर खुशी बरसाएं ,
आपके घर आंगन ।
खुशी ,उत्साह,उमंग में,
ना हो कोई कमी ।
बनी रहें सदा ,
जीवन में रोशनी ।
यही दीप पर्व पर ,
॥मंगलकामनाएं॥
✍प्रदीप सहारे
२७/१०/२०१९
रविवार
प्रदत्त विषय- दीप/दीपावली
विधा- कुण्डलिया छन्द
हेतु मेरी प्रस्तुत मेरी दो रचनाएँ,-
कुण्डलिया छंद -
१)-
नेह पगी हो आत्मा, उर के दीपक डाल ।
ज्योति जला सोहार्द की, फंद विद्वेष निकाल ।।
फंद विद्वेष निकाल, करो झिलमिल उजियारा ।
हिलमिल कर त्यौहार, मनेगा जगमग सारा ।
हो नित-नित हर वार, रहे खुशहाल जिन्दगी ।
बाँटे मधु मुस्कान, नेह में तब पगी-पगी ।।
२)-
दिवस-खुशी दीपावली, है प्रकाश त्यौहार ।
वर दो कमला माँ! करो, सकल हृदय उजियार ।।
सकल हृदय उजियार, प्रेम का अमृत भरदो ।
हरो समस्त विकार, सरलतम जीवन करदो ।।
पाप-ताप से दूर, रहें जीते कई बरस ।
मने सदा हर साल, दिवाली का सुखद दिवस ।।
-मेधा आर्या,
लखनऊ (उ.प्र.).
रविवार
प्रदत्त विषय- दीप/दीपावली
विधा- कुण्डलिया छन्द
हेतु मेरी प्रस्तुत मेरी दो रचनाएँ,-
कुण्डलिया छंद -
१)-
नेह पगी हो आत्मा, उर के दीपक डाल ।
ज्योति जला सोहार्द की, फंद विद्वेष निकाल ।।
फंद विद्वेष निकाल, करो झिलमिल उजियारा ।
हिलमिल कर त्यौहार, मनेगा जगमग सारा ।
हो नित-नित हर वार, रहे खुशहाल जिन्दगी ।
बाँटे मधु मुस्कान, नेह में तब पगी-पगी ।।
२)-
दिवस-खुशी दीपावली, है प्रकाश त्यौहार ।
वर दो कमला माँ! करो, सकल हृदय उजियार ।।
सकल हृदय उजियार, प्रेम का अमृत भरदो ।
हरो समस्त विकार, सरलतम जीवन करदो ।।
पाप-ताप से दूर, रहें जीते कई बरस ।
मने सदा हर साल, दिवाली का सुखद दिवस ।।
-मेधा आर्या,
लखनऊ (उ.प्र.).
27/10/2019
"दीप/दीपावली"
################
प्रथम दीपक शहीद के नाम
दीपावली का श्रीगणेश करें।
एक दीपक सुरक्षा को तैनात
उन वीर जवानों के नाम करें।
एक दीपक सरहद सीमा पर
विजय अभियान के नाम करें
एक दीपक मजदूर के घर पे
उनकी कुटिया को रौशन करे
एक दीपक वृद्धाश्रम में जीते
उन माता-पिता के नाम करें।
एक दीपक भाईचारे के नाम
मजहबी दीवारों को तोड़कर रखें।
स्व मन से वैर भाव भुलाकर
एक दीपक शांति के नाम करें।
एक दीपक घर के आँगन में
संस्कार व प्रेम के नाम करें।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।
"दीप/दीपावली"
################
प्रथम दीपक शहीद के नाम
दीपावली का श्रीगणेश करें।
एक दीपक सुरक्षा को तैनात
उन वीर जवानों के नाम करें।
एक दीपक सरहद सीमा पर
विजय अभियान के नाम करें
एक दीपक मजदूर के घर पे
उनकी कुटिया को रौशन करे
एक दीपक वृद्धाश्रम में जीते
उन माता-पिता के नाम करें।
एक दीपक भाईचारे के नाम
मजहबी दीवारों को तोड़कर रखें।
स्व मन से वैर भाव भुलाकर
एक दीपक शांति के नाम करें।
एक दीपक घर के आँगन में
संस्कार व प्रेम के नाम करें।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।
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