Monday, November 25

"प्रेम,प्यार"23नवम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-574
विषय : प्रेम
विधा: स्वतंत्र

दिनांक 23/11/2019

शीर्षक : प्रेम

प्रेम के ढ़ाई अक्षर का महत्त्व,
कबीर और रहीम जी ने समझाया।

द्वापर युग के ग्रंथों में,
कृष्ण संग गोपियों का प्रेम बतलाया।

बचपन में माखन प्रेम ने,
कृष्ण को प्रिय ‌माखनचोर बनवाया।

गुरू संदीपनी के शिष्य प्रेम ने,
कृष्ण से गुरू पुत्र जीवित करवाया।

बांसुरी के माधुर्य प्रेम ने,
कृष्ण को राधा श्याम से मिलवाया।

मीराबाई के भक्ति प्रेम ने,
कृष्ण को गिरिधर गोपाल बनवाया।

करमाबाई के श्रद्धा प्रेम ने,
कृष्ण को स्वादिष्ट खींचड़ा खिलवाया।

नानीबाई के भ्रातप्रेम ने,
कृष्ण से बहना ने बीरा भात भरवाया।

द्रोपदी के करूणा प्रेम ने,
कृष्ण से सभा में अपना चीर बढ़वाया।

नंद गाँव के विनय प्रेम ने,
कृष्ण से गोवर्धन पर्वत कनिष्ठा उठवाया।

सुदामा के बाल सखा प्रेम ने,
कृष्ण से नैनों के नीर से पैरों को धुलवाया।

'भावों के मोती' मंच विषय 'प्रेम' ने,
'रिखब' से प्रेममय काव्य सृजन करवाया।

रचयिता
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'@
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
शीर्षक-प्रेम/प्यार।
२३/११/२०१९@०७:१८
❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
अन्नमय कोश को अन्न से प्रदीप्त किऐ।
कर्म शुभाशुभ से अन्न जो उपज हुआ।।
चित्त मन बुद्धि वाणी प्राण ऊर्जित हुआ।
सरसप्रेम बहा मनोमयकोश प्रदीप्त हुआ।
अन्न की उपज से पाशविक मानवीयता है
अन्न से ही नेह स्नेह विशुद्ध प्रेम बहा ।
दया आयी क्रुरता आयी सहजता सरलता
अक्रूर बने पाशविक अन्न के प्रभाव से ही
लोभ रहित प्रकृति प्रेम नेह अन्न की देन है
कर्म संभालो कर्म संवारो ऋषि पंरपरा है
१अन्न से२ प्राण ३मन ४विज्ञान ५आनंद बने।
नेह बहै स्नेह वहे उदारता उपकार वहै।
कर्मणो गहनों गति बलिष्ठो गहनो गति।
यहि सूत्र है सरस निरस क्रूरता प्रेम का।
यही नियम यम शालीनता सहजता का।
🔰🔰🔰🔰❤️🔰🔰🔰🔰🔰
स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा
२३११२०१९०७३७

दिनांक : 23.11.2019
विषय: प्यार

विधा: पद (छंदबद्ध कविता)

ये प्यार नहीं तो क्या है यार !...

सब मौत हाथ में लेकर चलते,
बस बचते हैं घायल दो- चार ।
जलते दीप पर मंडराते ,
प्यार में पागल पतंग हजार ।।

है पता उन्हें जलकर मरना ,
फिर भी नहीं जान से प्यार ।
ये प्यार नहीं तो क्या है यार,
ये प्यार नहीं तो क्या है यार ??

कल्पना,करुणा की कवि कलम,
भावनाओं को जब करे सलाम।
सुर से करे साधना गायक ,
रियाज करे सुबह और शाम ।।

बाहर चोट अंदर सहला ,
माट्टी से मटका गढ़े कुम्हार ।
ये प्यार नहीं तो क्या है यार ,
ये प्यार नहीं तो क्या है यार ??

इक चीरे सीना धरती का ,
सोना उपजाए पकड़ लगाम ।
इक खुश हो कुर्बान देश पे,
झुक भारत माँ को करे सलाम ।।

इक पीट - पीटकर लोहे को ,
मेहनत बल बुनता औजार ।
ये प्यार नहीं तो क्या है यार ,
ये प्यार नहीं तो क्या है यार ??

तपा - तपा अग्नी में सोना ,
सुनार सँजोए सुंदर हार ।
मूरत के मुख से बुलवाता ,
ब्रूश के दम पर चित्रकार ।।

आपस में दो दिलों के अंदर ,
होता सुख - दुख का व्यापार ।
ये प्यार नहीं तो क्या है यार ,
ये प्यार नहीं तो क्या है यार ??

इक हाथ माँ लिये है बच्चा ,
दुख सह दूजे से काम करें ।
पिता वंचित पर बच्चों खातिर ,
सुविधाएँ पूरी तमाम करें ।।

थके हुए को देकर हौसला ,
गुरु जोश भर करता तैयार ।
ये प्यार नहीं तो क्या है यार ,
ये प्यार नहीं तो क्या है यार ??

इक पल की ना सहन जुदाई ,
दूरी कर देती है बुरा हाल।
विरह सिसकियाँ बंद न होती ,
गिरते आँसू भीगते गाल।।

बेवश मन हरहाल में चाहे ,
आँखों ही आँखों इजहार ।
ये प्यार नहीं तो क्या है यार ,
ये प्यार नहीं तो क्या है यार ??

नफे सिंह योगी मालड़ा ©
Damyanti Damyanti 

विषय_प्यार/प्रेम
प्रेम शाश्वत निच्छल गौपागंनाओ का |
श्रेष्ठ प्रगाढ़ता लिऐ प्रेम छकी मीरा

विष प्याला पी ग ई समझ अमृत |
प्रेम ,वातस्लय मे छलकता माँ के आँचल से |
पी नही होते तृप्त माधव ,राम |
प्रेम हृदय से छलकता जब जब
करते रस पान जड चेतन सभी |
आज परिभाषा बदली इसकी |
मच रहो कोहराम चंहू ओर |
स्वरचित_दमयंती मिश्रा

विषय- प्रेम
दिनांक 23-11 -2019
प्रेम परिभाषा,सब से न्यारी है।
जो समझा,वो सब पे भारी है।।

प्रेम से,जग को जीता जाता है।
नफरत जो की,वो हार पाता है।।

प्रेम से, वो दिलों को जीतना है।
फिर क्यों,तू नफरत अपनाता है।।

एक नजर, प्रेम से देख दुनिया।
हर कोना ,रंगीन नजर आता है।।

बदल ओर देख,अपना नजरिया।
चहुँओर,खुशियां आलम छाता है।

नफरत से कोई,कुछ नहीं पाता।
प्रेम तो जन्नत,एहसास कराता हैं।

राधा कृष्ण प्रेम को, जग में।
कोई कभी ना, बिसराता है।।

हीर रांझा का प्रेम,आज भी।
हर युवा दिल, दोहराता है ।।

प्रेम डोरी एक,मजबूत बंधन है ।
सबको, एकता सूत्र बाधंता है।।

नफरत दिलों में, रखने वाला।
तड़ीपार, कर दिया जाता है।।

कहती है वीणा, दिल रख प्रेम।
कोई कभी, नहीं भूल पाता है।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
शीर्षक-- प्रेम / प्यार
प्रथम प्रस्तुति


🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷

प्रेम में किसी के गम भुलाये हैं
ये नुस्खे हैं जो आजमाये हैं ।।

स्याह रातों ने पीछा नही छोड़ा
देखा था चाँद अहसास जगाये हैं ।।

प्रेम का अहसास पूछो फूलों से
कैसे वो काँटों में मुस्कुराये हैं ।।

कहाँ होती ये खुशबु कोई प्रेम है
जो उसकी मुस्कुराहटें बताये हैं ।।

प्रेम के तार जिसने यहाँ छेड़े हैं
उसने सुमधुर गीत गुनगुनाये हैं ।।

प्रेम कोई रोग नही इक दवा है
कितने अँदरूनी दर्द मिटाए हैं ।।

प्रेम से पुलकित है ये तन-मन 'शिवम'
तभी धड़कनों ने साज सजाये हैं ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 23/011/2019


शीर्षक-- प्रेम / प्यार
द्वितीय प्रस्तुति


प्रेम में पलिये
प्रेम में सँभलिये ।।
प्रेम में भूल से भी
किसी को न छलिये ।।

प्रेम ही भक्ति है
प्रेम ही शक्ति है ।।
इसमें भवसागर से
मिलती मुक्ति है ।।

प्रेम रखो सच्चा
ज्यों अबोध बच्चा ।।
प्रेम की पालकी में
होगा 'शिवम' अच्छा ।।

झूठा प्रेम होवे पाप
इक दिन देवे संताप ।।
पाप को न जोड़िए
प्रेम प्रभु का है जाप ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 23/11/2019

विषय प्रेम
विधा काव्य

23 नवम्बर 2019,शुक्रवार

प्रेम सुधामय है जीवन में
भक्ति से मिलती है शक्ति।
प्रेम विव्हल शबरी ने स्वंय
श्री राम से पाई थी मुक्ति।

प्रेम बिना तो जग असार है
प्रेम दीवानी मीरा महारानी।
प्रेम देता लेता नहीं कभी
कर्ण बलि हरिश्चंद्र थे दानी।

प्रेम हिय हनुमन्त विराजे
राम सिया सब कुछ जीवन।
ध्रुव प्रह्लाद भक्तिमय डूबे
काट लिये जग सब बंधन।

जीवन उपवन भरा प्रेम से
प्रेम बेल जीवन में बोओ।
द्वेष ईर्ष्या लोभ त्याग कर
कलुषित हृदय प्रेम से धोओ।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


प्रेमाधार मातृभूमि सलौनी
बीजों को ये अंकुरित करती।
सुवासित प्रफुल्लित सुमन से
प्राणवायु दे पीड़ाएँ हरती।

प्रेम बांध दो सिरे जोड़ता
प्रेम का प्याला हर नर पीता।
प्रेम गांठ जब पड़ जाती तो
प्रेम बिना जीवन सब फीका।

प्रेम भागवत प्रेम है गीता
प्रेम सागर बड़ा विशाल यह।
प्रेम तैराकी जो जाने जग
प्रेम परीक्षा उत्तीर्ण करे वह।

प्रेम प्यास है सूने हिय की
प्रेम राम रस सबसे प्यारा।
प्रेम बिना ये जग है सूना
प्रेम खुशी करता नित दूना।

स्वरचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

विषय-प्रेम

तेरा आना प्यार था।
तेरा जाना प्यार था।।
तेरा मिलना ही नहीं-
तेरा खोना प्यार था।।
तेरा हँसना प्यार था।
मेरा रोना प्यार था।।
तेरे लिये खेल और-
मेरा जीना प्यार था।।
खामोशियों में प्यार था।
मदहोशियों में प्यार था।।
जो मुझसे है तुझे उन-
सरगोशियों से प्यार था।।
अब तन्हाई प्यार है।
यही जुदाई प्यार है।।
तू दुखी न होना तेरी-
बेवफाई भी प्यार है।।
श्रद्धान्जलि शुक्ला"अंजलि"

* विषय -- प्रेम, प्यार
* तिथि -- 23/11/2019

* वार -- शनिवार

पहली नज़र में हुआ
तुमसे पहला प्यार
बैचेन सी रहती निगाहें
करती तेरा इंतजार
शायद यही प्यार है

फूलों का खिलना
भौंरों का आगाज
झीनी-झीनी खूशबू
मन को लुभाती है
शायद यही प्यार है

वो कसमें वो वादे
वादियों में मिलना
प्यार का इजहार
खूबसूरत एहसास
शायद यही प्यार है

प्यारा सा सफर
वो दीवानापन
फिजाओं को मोहब्बत
के रंग में रंगना
शायद यही प्यार है

दो दिलों का मिलना
मन मयूर नृत्य करना
लाख बंदिशें मगर
छुप-छुप कर मिलना
शायद यही प्यार है।

सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा

दिनांक 23/11/2019
विधा:पिरामिड

विषय:प्रेम

हो
प्रेम
सफल
प्रतिफल
आज व कल
नहीं कोई छल
विनती करतल।

वो
पल
कोमल
हलचल
मन चंचल
भाव कलकल
रहे प्रेम अचल।

जो
प्यार
निडर
निरंतर
प्रेमिका स्वर
शपथ लेकर
अनन्त पथ पर।

है
प्रेम
विवाह
परवाह
मधुर राह
मिलन की चाह
लगी किसकी आह।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव

23/11/19
विषय -प्रेम/प्यार


सृस्टि का आधार है
ह्रदय का उदगार है
प्रेम संवाद है
प्रथम आधार है
आत्मा का जुड़ाव है
ह्रदय संतुष्ट हो
मन करता किलोल
निर्मल प्रवाह है
अदभुद अहसास है
देता अनोखा संजोग
ईस्वर की कृति
साधना और विस्वास है
ज्योति मन मे जले
मीत जो राह चले
कण कण में विराजे
भावना मन मे जागे
प्रेम मोती पिरोये
माला लेकर खड़ी
झलके ह्रदय में प्रेम
निर्मल निर्झर बहे
तेरे प्रेम की मैं बहती नदी

स्वरचित
मीना तिवारी
हम रहे सदा मिल जुल कर
एक परिवार बनाये
प्रेम शांति का हो नगर
अमन चैन से रह पाए

प्यार हमारा धर्म बने
ऐसा मंदिर हम बनाये
एक जुटता हो संस्कृति
ऐसा इतिहास सजाए

धर्म की न हो दीवारे
न हो भाषा की मीनारे
अपनापन हो सादा सबका
वो जज्बात सिखाये

नही कठिन है सरल डगर है
बदले अपनी भावनाएं
सर्व सम्मति हो औजार हमारे
ये संस्कार सिखाये

मत रखो नफरत दिल मे
ये ओछी भावनाएं
चैन सुरक्षित जीवन है
तृप्त होती आत्माएं

क्या मेरा क्या तेरा जग में
ईस्वर ने न कुछ बनाए
ऊपर बैठा देख रहा है
खुद की बनी रचनाये

स्वरचित
मीना तिवारी

दिनांक-23/11/2019
विषय- प्रेम / प्यार


दमक लालिमा की सुर्ख महावर
मध्य मांग में भरे सिंदूर
मैं पिया की अमिट एक बंधन बन जाऊं........
कर के आऊं जब मैं सोलह श्रृंगार
गेसू में महके गजरे का प्यार
मैं पिया के मस्तक का चंदन बन जाऊं........
लालिमा मेरे अधर की
ओढ के माधुर्य का चादर
मैं पिया के नैनो का अंजन बन जाऊं.........
बन के दमकूँ मै कुमकुम सी
मधुर मोहिनी सी गुनगुन
मैं पिया के कुंडल का कुंदन बन जाऊं........
रूप रस रची गंध की
भ्रमर गुंजित मदमस्त सुहाग
मैं प्रीत पिया की पावस अभिनंनदन बन जाऊं...
पैरों में ठहरे दस्तूर महावर
पायल की हो झंकार
मैं पिया के की दहलीज बंधन बन जाऊं..............

स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
सत्य प्रकाश सिंह
दिनांक - 23/11/19
विषय - प्रेम /प्यार


तू जब मेरे सामने आता है,
मै सारा जमाना भूल जाती हूँ ।
तेरे ख्यालो की खुशबू में ,
हर एक अफसाना भूल जाती हूँ ।

वो तेरा इशारों में इजहार करना ,
तुझमे खो इकरार करना भूल जाती हूँ ।
दिल की धड़कने बढ़ जाती है,
मैं सांसो का लेना भूल जाती हूँ ।

आँखों ही आँखों में बातें करना ,
ओठो से बया करना भूल जाती हूँ ।
स्पर्श को तेरे महसूस करके,
मैं खुद को खुद में भूल जाती हूँ ।

वो लम्हे और ठहरी हुई राते ,
तेरा मुझे छोड़ जाना भूल जाती हूँ ।
कसमें वादे वो लंबी बेचैन राते,
तेरे सपनो में खो मैं मचल जाती हूँ ।

पता नही था प्यार क्या होता है ?
मिलकर तुझसे प्रेम को समझ पायी हूँ ।
अब तेरे बिन अधूरी जिंदगी मेरी,
तुझे खोने के ख्याल से सहम जाती हूँ ।

️शशि कुशवाहा
स्वरचित और मौलिक
मेरे हाइकु पर आप की नजर हो यही कामना के संग
🌹🙏🌹🙏🌹

होत
ी अनंत
प्रेम में गहराई-
हाथ न आई

छोड़ती छाप
ह्रदय पे अपनी-
प्रेम की वाणी

जीत लो जंग -
बोल प्यार के शब्द
जग हो दंग

देते है धोखा
अपने कुछ लोग-
प्रेम के बोल

भक्ति में शक्ति
विष बना अमृत -
मीरा का प्यार

प्यार में अंधे
करते उल्टे काम-
पाते हैं कंधे

प्रीत की डोरी
मैंने ना तूने तोड़ी-
शंका की कैची

मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
23/11/2019

दिन - शनिवार
दिनांक - 23/11/2019

विषय - प्रेम

प्रेम
शहर की गलियों में , अब घुटन सा लगता है ।
हर गली हर घर में , बस पैसा ही दिखता है ।।
अपनापन खो गया , पैसों से मोह हो गया ।
क्यों आई ये दूरियां , रिश्तों को क्या हो गया ।।
सोच सोच कर मन , आज बहुत तड़पता है ।
मत भागो पैसों के पीछे, इससे प्रेम खो जाता है ।।
गले लगा कर अपना लो, जब तक हम हैं ज़िंदा।
सबको यहां से जाना है, कहना है अलविदा ।।
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दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छग
स्वरचित

विषय -प्रेम
दिनांक-23/11/2019

दिन- शनिवार
विधा - मुक्त छंद

हां/मुझे प्यार है
तुम्हारे बातों से प्यार है
तुम्हारी ही दी खामोशी है
उससे भी प्यार है
जिस दिन तुम आए
मेरी जिंदगीं में
उस दिन से प्यार है
तुम्हारी यादों को जो
सीने में दबायें बैठी हूं
मुझे उससे भी प्यार है
तुम्हारे बोलते चुप
अधरों से भी प्यार है
तुम्हारे होठों के मुस्कान से
भी मैं प्यार करती हूं
तुमने जब थामा था
मेरा मखमली हाथ,उस
उस अहसास से भी
मैं प्यार कर बैठी
क्या बताऊं मैं तुम्हें, अब
तुम्हारे प्यार से भी प्यार है

स्वलिखित डॉ.विभा रजंन (कनक)
नई दिल्ली



23/11/2019
विषय-प्रेम/प्यार

================
क्या रखा है
घृणा की अगन में जलने में
क्या हासिल
एक दूजे को नीचा दिखाने में
इंसान वही जो
प्रेम की ज्योति दिलों में जगाए

वसुधैव कुटुम्बकम की रीत को
पुनःस्थापित कर सार्थक कर दे
आपसी वैमनस्य भुला कर
प्रेम से सबको गले लगाएं

माना बहुत कठिन है आज
जीवन सहजता से जीना
दीवानी मीरा के सदृश
विष का प्याला पड़ता है पीना

नहीं असंभव जग में कुछ भी
आओ हम सब मिलकर
प्रेम रूपी तप की
पावन अलख जगाएं।।

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®


भावों के मोती
विषय-- प्रेम

________________
साँझ हुई जीवन की जबसे,
भोर बोझिल-सी हो गई।
महकती थी सुमन से बगिया,
बंजर-सी वो हो गई।

प्रेम के अहसास जो छिटके,
ओस की तरह गुम हुए।
अंतिम पथ पे आज अकेले,
बाट जोहते रह गए।

दर्द भरी आँधियों में यादें,
गुबार बीच गुम हुई,

साँझ हुई जीवन की जबसे,
भोर बोझिल-सी हो गई।
इस बीते समय की धूल में,
यादें भी गुम हो गईं।

खुरदरी आज हथेलियों में,
दिखती थी कभी ज़िंदगी ।
लिपटकर इन बाहों में कभी,
राहत तुम्हें मिलती थी।

आस के आसमान पे बैठ,
राह ताकती रह गई।

साँझ हुई जीवन की जबसे,
भोर बोझिल-सी हो गई।
आज झुरझुरी इस काया से,
मोह-ममता छूट गई।

सुनकर तोतले बोल तेरे,
झूम उठे थे खुशी से।
तुम जब चले उँगली पकड़कर ,
आँखो में सपने पले।

उन्हीं सपनों की बिखरी किर्चे,
मैं समेटती रह गई।

साँझ हुई जीवन की जबसे,
भोर बोझिल-सी हो गई।
साँझ भी ढ़ल रही है अब तो,
आशा धूमिल हो गई।।

***अनुराधा चौहान*** स्वरचित

विषय-प्रेम/प्यार
विधा-दोहे

दिनांकः 23/11/2019
शनिवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:

प्रेम खुदा की देन है,सबसे करना प्यार ।
अब हैं अपने मित्र सभी,सब ही अपने यार।।

धोखा होता प्रेम में,रहना सभी सतर्क ।
अपनो से बचकर रहें,कभी हो सके फर्क ।।

जग में सबसे प्रेम करें,पूरे हों सब ख्वाब ।
यहाँ राज ये जानता,है वही आफताब ।।

उनको कुछ मुश्किल नहीं,करते जग पर राज।
दिल पर उनका राज़ है,वे चढते परवाज ।।

पंडित सबसे वह बडा,जो जाने यह भेद ।
वह तो सदा सुखी रहे,उसे दुख नहीं खेद।।

वो होता बलवान है, हो ये जिसके पास ।
उसे कोई कमी नहीं,करते सब विश्वास ।।

इससे बढ़कर कुछ नहीं,होता ये अनमोल ।
इससे सब बौने रहें,जब जाने यह तोल।।

ईर्ष्या कुछ भी हो नहीं,सबको दे सम्मान ।
मीठी बात सदा करे,बने गुणों की खान ।।

स्वरचित

डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय, 

तिथि -23/11/2019/शनिवार
विषय_* प्रेम /प्यार *

विधा॒॒॒ _काव्य

प्रेम की बुनियाद पर
जो भी इमारत बनेगी।
सच ईश कृपा से
अनंत तक जिंदा रहेगी ।

हम ईशोपहार इसे मानते।
परमात्मा का वरदान मानते।
प्रेमोदगार से प्रेम पनपता
सौगात बडी महान मानते।

प्रीत की जब बरसात होगी।
शीतलता मन को मिलेगी।
निष्कर्ष यही हमने निकाला
प्रेम पल्लवित बगिया खिलेगी।

मन से मन की राह होती है।
हमें एकदूजे की चाह होती है।
प्यार का इजहार करते रहें
यहां सभी की वाह होती है।

1*प्रेम /प्यार *काव्य
23/11/2019/शनिवार
प्रेम
23/11/2019
ाइकु
*******
1
हृदय घात
प्रेम पुंज गली में
मावस रात।।
2
प्रेम की राह
खुशहाल बगिया
महका मन।।
3
संस्कार बीज
प्रेम का उपवन
हंसता मुन्ना।।
4
प्रेम कस्तूरी
इत उत क्यों खोजे
दिल मे झांक।।
5
प्रेम की बंसी
मधुरस स्वभाव
दूर दुर्भाव।।
6
फरेबी प्रेम
दहेज की मार ने
मन भिगोया।।
7
प्रेम की शक्ति
सावित्री धैर्य भक्ति
मृत में प्राण।।

वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित

शीर्षक --प्रेम/प्यार
दि-शनिवार/23.11.19

विधा -दोहा मुक्तक

1.
इक दूजे को चाहना, कहलाता है प्यार ।
क्षण प्रतिक्षण मन सोचता, हो उनका दीदार।
प्रेम जोत जलावन को , मन का नेह उड़ेल--
बढ़े मधुरता जितनी, उतना बढ़ता प्यार ।
2.
पाना हो गर प्यार तो, खुद भी करिए प्यार।
त्याग अहं व स्वार्थ को, हो गरिमा इकरार।
सच्चा प्यार शक्ति भरा, मिले मनचहा मीत---
बिना प्यार के जिन्दगी , हो जाती बेकार ।

******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551

आज का विषय, प्रेम / प्यार
दिन , शनिवार

दिनांक, 23,11,2019,

प्रीत डोर ने ही हम सबको एक दूजे से जोड़ दिया,
रिश्ता न होकर भी कोई हमें एक सूत्र में बाँध दिया ।
प्रेम नहीं जहाँ है आपस में, घर नहीं वहाँ पे दीवारें हैं ,
जब जुड़े प्रेम के बंधन में , तब गिर गईं सभी दीवारें हैं ।
विश्वास हमेशा ही जीता, ये आधार प्रेम का बनता है।
विश्वास बिना नहीं दुनियाँ में, रिश्ता जीवित रह सकता है ।
उपहार है ये कुदरत का, जो हम सबको उसने दिया है ।
जिंदा है इंसानियत इससे ही, विस्तार मानवता का इसी से हुआ है ।

स्वरचित, मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश,


22/11/2019
बिषय ,,प्रेम

जहाँ प्रेम छलकता है वहाँ रिद्धि सिद्धि का बास है
जहाँ प्रेम है वहाँ हर मास मधुमास है
जहाँ प्रेम है वहाँ मलय पवन सुवास है
जहाँ प्रेम है वहाँ साक्षात लक्ष्मी का निवास है
जहाँ प्रेम है वहाँ समुद्र सी तरंग हैं
जहाँ प्रेम है वहाँ हर दिल में उमंग है
जहाँ प्रेम है वहाँ साधु सा सत्संग है
जहाँ प्रेम है वहाँ आनंद ही। आनंद है
जहाँ प्रेम है वहाँ नदिया सी निर्मल धारा है
जहाँ प्रेम है वहाँ इक दूजे का सहारा है
जहाँ प्रेम है वहाँ मझधार नहीं किनारा है
जहाँ प्रेम है वहाँ पूनम सा उजियारा है
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार

दिनांक २३/११/२०१९
शीर्षक-प्रेम/प्यार


प्रेम है जीवन का सार
इसे मत भूलो इंसान
कल कल बहती नदियों की धारा
प्रेम की मधुर गीत सुनाती
आमों की बगिया में बैठी
प्रेम स्वर में कोयल कूकती
फूलों पर मंडराता भौंरा
कलियों को प्रेम का मधुर गीत सुनाता।
नभ के सुन्दर चाँद सितारे
प्रेम पथिक को राह दिखाते
प्रेममय है दुनिया सारी
प्रेम से जीत सकते हम दुनिया सारी।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

"सादर नमन भावों के मोती"
दि. - 23.11.19
्रदत्त विषय - "प्रेम"
विधा -गजल
बह्र - 2122 2122 212
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित...

*******************************

प्रेम से ही ज़िंदगी गुलज़ार है |
प्रेम जीवन का सुखद आधार है ||

क्यों समझ कर भी समझ पाते नहीं,
प्रेम ईश्वर से मिला उपहार है |

प्रेम ही भरता महक रिश्तों में भी,
ये नहीं तो झूठ का व्यवहार है |

रंग जीवन में अनेकों हैं मगर,
प्रेम के बिन रंग हर बेकार है |

नफरतों को पाल कर मत बैठिये,
नफरतों से कुछ न हासिल यार है |

प्रेम से पूरित रहे ताउम्र जो,
आज उनको मानता संसार है |

प्रेम के ही गीत गाता चल "सरस",
प्रेम से खुशियों भरी बौछार है |

********************************
स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी - सिवनी म.प्र.

23/11/19
प्रेम

***
दोहावली

प्रेम के विभिन्न आयामों को एक साथ पिरोया है
****
दोहा छन्द के माध्यम से
****
सूना है सब प्रेम बिन, कैसे ये समझाय।
त्याग भाव हो प्रेम में ,प्रेम अमर हो जाय ।।

आदर जो हो प्रेम में,सबका मान बढ़ाय।
बंधन रिश्तों में रहे ,जीवन सफल बनाय।।

प्रेम रंग से जो रँगे ,मन पावन हो जाय ।
भक्ति भाव हो प्रेम में,पूजा ये कहलाय ।।

मात पिता के प्रेम सा ,दूजा न कोइ प्यार।
साथ गुरु का प्रेम हो, जीवन धन्य अपार।।

बाँधे बंधन नेह के ,पावन रेशम डोर।
भ्रात बहन के प्रेम में,भीगे मन का कोर।।

रक्षा बंधन पर्व का ,करें सार्थक अर्थ ।
प्रेम करें जो प्रकृति से,होंगें तभी समर्थ।।

प्रेम दिलों में जो बसे , नफरत कैसे आय।
सबकी सोच अलग रही, बीता दो बिसराय ।।

हिंदी भाषा आन है, हिन्दी भाषा शान।
हिन्दी हिन्दोस्तान है,रखिये इसका मान।।

प्रकृति और मानव संग, रिश्ता है अनमोल।
देव रूप में पूज्य ये ,समझ प्रेम का मोल ।।

अद्भुत सारे प्रेम हैं , देश बड़ा नहि कोय।
नाम देश के मर मिटें, बिरले ऐसे होय ।।

स्वरचित
अनिता सुधीर

म दीवाना प्रेम पागलपन
प्रेम नहीं तो कुछ नहीं जग में।
प्रेम आलम्बन प्रेम प्रोत्साहन
प्रेम सदा बहता रग रग में।

प्रेम निष्ठा है , प्रेम सहानुभूति
प्रेम करुणा और दया है।
प्रेम सागर मारो मिल डुबकी
प्रेम नहीं तो फिर जग क्या है?

प्रेम वात्सल्य मात यशोदा
प्रेम भक्ति श्री कृष्ण सुदामा।
प्रेम बेल अंसुवन जल बोई
प्रेम सिक्त राधा बनी श्यामा।

प्रेम पुजारी भरत शत्रुघ्न
प्रेम भक्त बने वज्र अंगी।
प्रेम भक्ति शक्ति जीवन की
प्रेम जगत भरे नव रंगी।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

विषय - " प्रेम / प्यार '
विधा - " हाइकू '

*****************
1/ माँ का आंचल ,,,,
शिशु की फूलवारी,,
शास्वत प्रेम ,,,,।
2/ यौवनावस्था,,,,
मन में जगे प्यार,,
पुष्पित प्रेम ,,,।
3/ प्रेम की गली ,,,,
संभलकर चलें,,,
फिसलन है ,,।
4/ प्रेम सागर,,,,,
गहरा है, कितना ,,,
डूबो तो जानो ,,,।
5/ आपसी प्रेम ,,
बातें करलें चार ,,,,,
रखें ,,,मर्यादा ,,,,।
स्वरचित - " विमल '
भावों के मोती
23-11-2019

विषय-प्रेम/ प्यार
********
आनंदवर्धक आधार छंद गीतिका
समांत-आया
पदांत-आपने
*********
2122,2122,2122 ,212
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
**********************************
प्रेम का दीपक जलाकर,फिर बुझाया आपने /
चल दिए तुम छोड़ मोहन,क्यों रुलाया आपने /
÷
कुंज की गलियाँ सिसकतीं,याद कर कान्हा तुम्हे ,
प्रीति की बंशी बजाकर,,,,,, दिल चुराया आपने //
÷
याद है ?तुमने नचाया,,,,,,,, गोपियों को रास में,
प्रीत बंधन में बंधाकर,,,,,,,फिर छुड़ाया आपने //
÷
सांवले घन,श्याम तुम तो,,,,,,प्रेम के अवतार हो,
किन्तु अपनी विरहणी को,क्यों सताया आपने //
÷
प्रेम तो जलती किरन है जो कभी बुझती नहीं,
फिर हृदय की कामना को,क्यों जगाया आपने //
÷
यूँ नहीं बजती रही है,,, प्रेम- "वीणा" श्याम की,
पावनी सी,,,,,,,,,, नेह की गंगा बहाया आपने //
÷
तन तुम्हारा मन तुम्हारा,कुछ नहीं वश में रहा,
राधिका तेरी कहे,,,,,,, सबको रिझाया आपने //
÷
***********************************
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित ( गाजियाबाद)


23-11-2019
विषय- प्रेम / प्यार

******
एक गीत
विधाता छंद में,,,,
1222 1222 1222 1222
🌾🌷🌾🌷🌾🌷🌾🌷🌾🌷🌾
*********************************
बजाओ प्रेम की वंशी,,,,,,,,,मुरारी ! साँवरे प्यारे/
बदरिया बन बरस जावो,जलद-घनश्याम मतवारे//

हृदय के कुंज में आकर,
बसादो,,,प्रेम की नगरी!
हमारे नैन,,, व्याकुल हैं,
छलकती नेह की गगरी!!

दिखा दो मोहनी मूरत,,तुम्हारे नैन रतनारे !
बजादो प्रेम की वंशी,,मुरारी साँवरे प्यारे !!

कहीं ,यमुना तटों पे तुम,
मधुर मुरली ,,,सुनाते हो!
कभी कुंजन गली में तुम,
रसिक बन दिल चुराते हो!!

तुम्ही रसखान मेरे हो,बिरज के प्राणधन न्यारे!
बजादो प्रेम की वंशी,,, ,,,मुरारी साँवरे प्यारे!!

तुम्हारे प्रेम में,, मोहन,
सदा मन को रमाया है!
तुम्हारी ज्ञान-गीता से,
अमरता जान पाया है!!

जगत का प्रेम नश्वर है,तुम्ही पे प्राण है वारे/
बजादो प्रेम की वंशी,,,,मुरारी साँवरे प्यारे//
*********************************
🌾🌷🌾🌷🌾🌷🌾🌷🌾🌷🌾
ब्रह्माणी वीणा हिन्दी साहित्यकार
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित (गाजियाबाद)

प्रेम/प्यार
"भावों के मोती"

23/11/2019
काव्य
*****

संग सदा मेरे
उसका साया
वो अनदेखा
अनजाना
प्रेम की
अनुभुति से
सराबोर सी
उसकी यादें
मेरे ख़्यालों
में लिपटी सी
थोड़ी अलसायी
मुझे अनमना
करती सी
नम होती पलकें
जरा झुकती सी
आते ही ख्याल
उसका जेहन में
इक धुन बजती
पड़ उसके प्रेम में
स्वयं ही थिरकती
बसता वो पल,हरपल
प्रतिपल,घुलता
रहता वो मुझमें
चंदन सा
मैं भटकती ढूंढती
कस्तूरी म्रग बन
वो खुदा महकता
मुझमें लोबान सा ।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर

विषय प्रेम / प्यार

विधा गज़ल

काफ़िया आ

रदीफ़ इस प्यार से

बहर
2122 2122 212

खा लिया हमने दगा इस प्यार से ।
अब भरोसा उठ गया इस प्यार से ।।

दर्द आँसूँ और तन्हाई घुटन ,
बस यही हमको मिला इस प्यार से ।।

वेवफ़ा इसकी हुई है रूह तक ,

तुम भुला दो अब वफ़ा इस प्यार से ।।

हो गए बीमार इसके नाम पर ,
आ रही केसी हवा इस प्यार से ।

जिंदगी जब हो गई है खाक तो ,
क्या रखें अब वास्ता इस प्यार से ।

स्वरचित

देवेंद्र देशज

23/11/2019
"प्रेम"

कविता
################
मन जिसे चाहता है...
जुल्म भी वही ढाता है
दर्द से जुड़ता नाता है
तो क्या यही प्रेम है...।

पल-भर भी मिलता न चैन है
काँटों से भरी यह राह है.......
डगर चलना नहीं आसान है..
प्रेम दीवानों को होता मंजूर है

प्रेम सागर में डूबा जो इंसा है
कोई भी न निकल पाया है....
हँसते-हँसते मौत गले लगाया है
प्रेम की गहराई न जान पाया है

विरह की आग में जलकर
राधा ने उमर गुजारा है.....
प्रेम में वेदना ही पाया है...
कृष्ण प्रेम का राधा ही नाम है

कृष्ण प्रेम में मीरा हुई दीवानी है
राजपाट छोड़कर बनी बैरागी है
प्रेम की अद्भुत कई कहानी है
प्रेम के आगे हार सभी ने मानी है।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

प्रेम / प्यार

होता बड़ा
मासूम प्यार
जिससे हुई
आंखे चार
प्रेम पंख
उड़ने लगते

तोड़ो मत
दिल किसी का
बड़ा नाजुक
यह होता है
टूटता है
दिल जिसका
जानता वही
कीमत प्यार का

होता है
अनमोल प्यार
माता पिता का
लूटा देते हैं
अपना सब कुछ
औलाद पर
टूट जाते हैं वो
छोड़ असहाय
चले जातें है वो

करो ईश्वर से
प्रेम सदैव
जग पालक
हैं वह
प्रेम बिन
अधूरा है जीवन
कबीर मीरा
तुलसी ने
दिया संदेशा
सदैव प्यार का

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
तिथि 23/11/2019/शनिवार
विषय *प्रेम/प्यार *

विधा॒॒॒ काव्य

प्रेम प्रीत विश्वास हमारे।
जीवनाधार प्रेम प्यारे।
रसहीन होगी ये दुनिया
गर पास नहीं अनुराग हमारे।

ढूंढते फिरते इसके लिए हम
कहीं तो मुहब्बत मिल जाऐ।
यदि दो शब्द प्रेम के मिलें तो
सच जिंदगी हमारी जाऐ।

प्यार वरदान है भगवान का।
इससे क्या नहीं हो इंसान का।
कितनी भी संपदा मिले हमें
नहीं कुछ इसके बिना धनवान का ।

स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय श्री राम रामजी

2 भा*प्रेम/प्यार *काव्य
23/11/2019/शनिवार

शीर्षक- प्रेम/ प्यार
प्यार का कोई रंग रूप या आकार नहीं होता।

यह तो अहसास है निश्छल निर्मल हृदय का।।

जैसा सबरी का था अपने श्रीराम के लिए।
मीरा दीवानी का था उनके घनश्याम के लिए।।

प्यार का तन से होता नहीं कोई भी वास्ता।
पास या दूरी से भी कोई फर्क नहीं पड़ता।।

चांद को दुर से देखकर ही चकोर खुश हो जाता।
घटा घनघोर देखते ही मयूर नाचने लग जाता।।

मेरा भी मेरे कान्हा से कुछ ऐसा ही है अटूट रिश्ता।
खुशी से झूमती रहती हूं मैं,‌नाम ले लेकर उनका।

प्यार का धन-दौलत दुनिया से नहीं कोई वास्ता।
भावों के फूलों से भरा है, है अनोखा ही ये रास्ता।।

स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

दिनांक 23-11-19
विषय - प्रेम /प्यार

विधा - छंदमुक्त

प्रेम एक अलौकिक एहसास,
हर रिश्ते का ब्रह्माण्ड भूगोल l
परिभाषा में नहीं बंध सकता,
प्रेम की भाषा सबसे अनमोल l

प्रेम भक्ति का गहरा सागर है,
प्रेम दिलों का मृदु संगम मेला l
प्रेम खुशी है प्रेम ही जीवन,
प्रेम बिन मनुज तन्हा अकेला l

विलक्षण प्रेम की भाव प्रबलता,
हृदय में रहे प्रफुल्लित उल्लास l
तन मन पुलकित रहता हर पल,
पतझड़ भी मधुऋतु लगे सुवास l

प्रेम अलौकिक दिव्य पुंज है,
आत्मा का यह मधुर संलाप l
स्वार्थ, अहं, मद नहीं प्रेम में,
करे न कभी कोई व्यर्थ प्रलाप l

है त्याग, समर्पण सिर्फ प्रेम में,
चाहत प्रसून हिय महका जाए l
विषम परिस्थितियों में निशब्द,
अनखिली कोंपल चहका जाए l

मधुर फ़लक यह ज़ज़्बातों का,
शाश्वत दीप सा प्रज्वलित होता l
निराशा तम कितना भी घनेरा,
अविकल निश्वार्थ प्रस्फुटित होता l

समग्र जगत का आधार है प्रेम,
हृदय का हृदय से मौन संवाद l
सतत निर्झर, निर्मल, प्रवाहमय ,
यह आकर्षण का मधुर प्रमाद l

प्रेम न्योछावर अबाध निरंतर ,
सपनों की ऊँची मधुर उड़ान l
लेना नहीं केवल देना जानता,
प्रेम पावन साधना,उच्च महान l

मौलिक स्वरचित

कुसुम लता पुन्डोरा
नई दिल्ली
जिनके प्रेम की सौरभ से
सुवासित आज भी मेरा परिवेश है।
उस ह्रदय में शायद अब

मेरी स्मृति भी नही शेष है।।
उनके विरह में व्यथित है ह्रदय
क्षिण हुई काया जोगन का वेश है।
आज भी पलकें उनकी
प्रतीक्षा करती अनिमेष है।।
पहुँचती नहीं जहाँ दिल की पुकार
वो कैसा विचित्र देश है।
या फिर उस निष्ठुर ह्रदय में
निषेधित मेरा ही सन्देश है।।
उमा शुक्ला नीमच
स्वरचित
विषय -प्रेम
विधा-कविता
***********

प्रेम कविता

जिसका प्रदर्शन हो,
वो प्रेम नहीं,
नयनों से दर्शन हो,
वो प्रेम नहीं !!
!
जो हम-तुम करते है,
प्रेम वो नही,
जो मन मे विचरते है,
प्रेम वो नही !!
!
कलम के आंसुओ का,
नाम प्रेम नहीं,
पल-पल बदलते भावों का,
नाम प्रेम नहीं !!
!
प्रसंगो की उत्पत्ति
प्रेम आधार नहीं,
आकर्षण में लिप्त होना,
प्रेम का संचार नहीं !
!
प्रेम खुद में छुपा रहस्य है,
सृष्टि के मूल का तथ्य है,
!
प्रेम तपस्या में पाना नहीं,
स्वयं को लुटाते जाना धर्म है !
!
अनुभूतियाँ समाहित कर
वैराग्य में खो जाने का यत्न है !
!
प्रेम जिज्ञासा में प्रस्फुटित
समर्पण के अंकुरों का तंत्र है !
!
प्रेम ही जीवन का मूल मन्त्र है !
प्रेम स्वयं में बसा गूढ़ ग्रन्थ् है !!

स्वरचित: डी के निवातिया

दिनांक .23 .11 .2019 .
वार .शनिवार ।

प्रदत्त शब्द .प्रेम ,प्यार ,
विधा .कविता ।
*************
प्रेम, इश्क, मुहब्बत महज़ शब्द नहीं होते
इसमें निहित होता है किसी का एहसास
कई सुनहरे ख़्वाब
कुछ खट्ठी मीठी 'स्मृतियाँ'
प्रेम एक पल में
किसी एक व्यक्ति से होने वाली
''क्षणिक अनुभूति'' होता है।
जहाँ निहित होता है निःस्वार्थ ''समर्पण'
देह से परे दो आत्माओं का ''अर्पण''
एक ''विश्वास'' समाहित होता है इन शब्दों में
कहीं अपनापन का एहसास छुपा होता है
इन शब्दों में,
हाँ ये महज शब्द नहीं होते,
आकर्षण से परे मन की
''उच्च अवस्था'' को दर्शाता है प्यार
हर स्वार्थ से परे
जो बंधता नहीं शब्दों में,
नहीं व्यक्त होता लफ़्ज़ों में
हृदय की सरल अभिव्यक्ति जो
प्रकाशित करता है ''अंतर्मन'' को
आह्लादित करता है रोम रोम को
अकल्पित रंगो का ''शाश्वत रूप''
एतबार की नींव पर टिका ये अनुराग रंजीत
पवित्र रिश्ता
बस मुख़र होता है एक 'प्रणय निवेदन'
सर्वस्व समर्पण का विशुद्ध भाव
जहाँ निहित होता है श्रद्धा का अर्पण,
प्रतिबिम्बित होता आशाओं का दर्पण,
प्रेम अनंत विस्तार लिए
धरा का धैर्य लिए,
हर बंधन से परे ''विशुद्ध शाश्वत''
इन शब्दों में निहित होता है एकरूपता
कभी न टूटने वाला ''एक यक़ीन'
प्रेम में भरा होता है हृदय की अभिव्यक्ति
असीम संवेदना,
पवित्रता का एक ''अलौकिक एहसास''
जो अद्भुत प्रेरणा से हृदय को
ओत प्रोत करता है।
जहाँ संवाद मौन हो जाता है।
''देह से परे'' बस दो आत्माओं का
''विशुद्ध मिलन'' होता है
कहते हैं ''सच्चा प्रेम' कभी पूर्ण नहीं होता
वो सदैव अधूरा रहता है,
प्रेम जीना चाहता है वो मरना नहीं चाहता
क्यूंकि,....
प्रेम की पूर्णता प्रेम की समाप्ति होती है,
जहाँ प्रेम की अनुभूति महका जाता है रोम रोम
चंदन सरीखा।
वहीँ ढाई आख़र के शब्द हमें बांधते है
एक दूजे से
उस मन्नत के धागे की तरह
ओठ पर सजे पाक़ दुआओं की तरह!!
@ मणि बेन
बाग में कोयल गाती है!
क्या यह प्रेम का राग है।
गगन में बादल मडराते है

क्या यह प्रेम का एहसास है।
पपीहा पीऊ पीऊ पुकारे।
क्या यह प्रेम की प्यास है।
माँ बच्चे को पुचकारे, दुलारे
यह प्रेम की कैसी आस है!
प्रमिका प्रेमी को निहारे।
यह कैसा एहसास है।
भक्त भगवान को पुकारे।
यह भक्ति की कैसी आस है
भावनाओं का स्पन्दन
प्रेम की विरह
राधा की आस
मीरा की प्यास जीवन में रास
क्या यही प्रेम है
प्यास है।
स्वरचित कविता
डॉ कन्हैयालाल गुप्त'किशन'
उत्क्रमित उच्च विद्यालय ताली, सिवान, बिहार
पता- आर्य चौक - बाज़ार
भाटपाररानी, देवरिया,
उत्तर प्रदेश 274702

23/11/2019
चंद हाइकु
"प्रेम"

(1)
शब्द ना मिले
प्रेम का मौन स्पर्श
नयन बोलें
(2)
प्रेम बहरा
अभिव्यक्ति से गूंगा
दिल ठहरा
(3)
राधा या मीरा
छिछली वासना से
प्रेम गहरा
(4)
प्रेम प्रतीक
श्रृद्धा, आस्था, विश्वास
देवत्व वास
(5)
तन व मन
अंह का विसर्जन
प्रेम सृजन
(6)
प्रेम की धार
तपता सा जीवन
शीत फुहार
(7)
चुरा के दिल
प्रेम की गुदगुदी
छेड़ता नींद
(8)
घर को छोड़ा
तिरंगे के प्रेम ने
मोह को मोड़ा
(9)
घृणा है शूल
जीवन की बगिया
प्रेम है फूल

स्वरचित
23/11/19
विषय-प्रेम,प्यार


पाती आई प्रेम की
आज राधिका नाम
श्याम पिया को आयो संदेशो
हियो हुलसत जाय
अधर छाई मुस्कान सलोनी
नैना नीर बहाय
एक क्षण भी चैन पड़त नाही
हियो उड़ी-उडी जाय
जाय बसुं उस डगर जासे
आये नंद कुमार
राधा जी मन आंगने
नौबत बाजी जाय
झनक-झनक पैजनिया खनके
कंगन गीत सुनाय
धीर परत नही मन में
पांख होतो उडी जाय
जाय बसे कान्हा के नैनन
सारा जग बिसराय।

स्वरचित
कुसुम कोठारी।
प्यार का अंदाज़ मैंने तुम से है सीखा....
नज़रें चुराना भी तो तुम्हीं से है सीखा...
इज़हारे जज़्बात ब्यान कैसे करूं तेरा...
सिले होंठों से आँखों में मुस्काना सीखा....

कोमल कोपलों सा रोम रोम से फूटता है....
चेहरा हर मौसम खिला खिला सा रहता है....
खिली हो घूप या बादल कारे हों कितने भी...
प्यार तो हर पल बस महकता महकाता है...

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२३.११.२०१९

न मैं जानू न तू जाने....
प्रेम की भाषा प्रेम ही जाने...
जो बीता वो दिन था....
निकल गयी वो रात...
प्रेम कभी न बीता कल था....
न वो गुज़री रात....

नज़ाकत भरी उंगलियां...
चेहरे को ढूंढती तेरे...मेरे...
कानों में साँसों की सरगोशी...
थिरकती खून में तेरे...मेरे...
कैसे कह दें कि है कोई याद...
या बीती हुई बात....
कैसे कह दें....

मन तेरा मेरा कब था अलग...
भाव किसके सरिता थे...
किसके समंदर....
किसने किसको जीता...
और किसने किसको हारा....
अलविदा तुमने तू को कह दिया...
मैंने मैं को कर दिया...
न 'तुम' तुम हो न 'मैं' ही मैं हूँ....
न कल थी फ़रियाद कोई...
न आज है फ़रियाद....
किस के लिए और क्यूँ करें...
‘हम’ फ़रियाद....
प्रेम कभी न बीता कल था....
न वो गुज़री रात....

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२३.११.२०१९

प्यार : एक अहसास

प्यार एक पावन शब्द है ।

माता-पिता, भाई- बहन,पति-पत्नी,मित्र, रिश्तेदार,पड़ोसी, सहयोगी,या मातहत ; इन सबके बीच का बंधन प्यार, अनुराग या स्नेह कहलाता है ।
प्यार, माँ का शीतल आँचल है,पिता की चिंता और दुलार है,भाई की कलाई पर बहन के द्वारा बांधा गया पवित्र धागा ,पति- पत्नी के दिल की धड़कनें, मित्र का वायदा, सहयोगी या मातहत की सहायता व सहयोग प्रेम के अटूट धागे ही हैं।
प्यार एक अहसास है, एक मीठा स्पंदन है,शब्दों से परे है अर्थात जिसे बयां नही किया जा सकता । प्यार दो दिलों का मिलन है । यह एक अविस्मरणीय पल है ।
सच्चा प्यार कभी भी, कहीं भी, किसी से भी हो सकता है ।प्यार में जाति, धर्म, रंग - रूप, अमीरी- गरीबी किसी के लिए जगह नही है।
प्यार में आकंठ डूबा व्यक्ति उससे बाहर नहीं आ सकता। प्यार को मंजिल मिले या ना मिले, यह मिट नही सकता ।
प्यार शबनम की बूंद है, मन वीणा के तारों का मधुर संगीत है, मीठा झरना है, मन पंछी की उड़ान है, ह्रदय का दर्पण है,दिल की धड़कन है,कवि का काव्य है और दो आत्माओं का मिलन है ।
प्यार में अदम्य साहस है, बल है, मिट जाने और मिटा देने का जज्बा है दूसरी ओर विरह की गहन पीड़ा भी है, दर्द है , विस्मृति है, सब कुछ लुटा देने की चाहत है , आंसुओं का सैलाब है ।
प्यार एक बार दिल में घर कर गया तो यह घर खाली कराना मुश्किल है। जिससे बहुत प्यार हो उससे बहुत नाराजगी या बहुत नफरत भी मुमकिन है, यह प्यार का ही द्योतक है ।
प्यार असीम है, अनंत है, नयनों से दिल तक का सफर है, यह सिर्फ एक अहसास है इसे रूह से महसूस करिये ।

सरिता गर्ग
दिनांक-23/11/2019
आज का कार्य- प्रेम/ प्यार

विधा-#मुक्तक :::----
****************************

प्रेम सदा निश्छल ही करिए,जैसे किए श्याम अरु राधा।
इक दूजे का मन में दर्शन,लक्ष्य सदा उर को ही साधा।
आलिंगन चाहत प्रेमी की,पर कान्हा ने शीश झुकाया-
भावों का संगम ही तीरथ,घटती सतत प्रणय में बाधा।
************
अश्रु, प्रिये के पग में बहते, सुख प्राणों को अनुपम मिलता।
नतमस्तक हो वंदन हृद से,नव पल्लव सा प्रियतम खिलता।
मौन सुनें संवाद प्रेम के,नयनों में रतजग होता नित-
दिव्य प्रेम चिर अमर जगत में, सुधि में छवि ज्यूँ गंग विमलता।
************
विलग नहीं क्षण भर को मन से,झंझावातों से कब डरता ।
जड़-चेतन में प्रेम समाया,मन को पढ़ता प्रेरित करता।
पर्वत सा है अडिग समर्पण,प्रिय के दुख में हिम सा गलता-
प्रेम पुष्प की खुशबू से तर,हरसिंगार सा प्रतिपल झरता।

आशा अमित नशीने
राजनांदगाँव


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