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ब्लॉग संख्या :-572
विषय औलाद ,संतान
विधा काव्य
21 नवम्बर 2019,गुरूवार
जनसंख्या विस्फोट हो रहा
बेरोज़गारी असहनीय हो रही ।
औलादें भटक रही सद्पथ को
मंहगाई निज आपा खो रही।
जीवन का बस एक लक्ष्य है
संस्कारित सभ्य औलाद हो।
सुख शांति का वास सदन में
गृह क्लेश न कभी फसाद हो।
यह जीवन शैशव से प्रारम्भ
वृद्धावस्था अंत है इसका।
संतान संस्कारित आज्ञाकारी
जीवन सुखी है प्रिय उसका।
अभाव कभी न हो शिक्षा का
सेवाभावी प्रिय औलाद हो।
कौहिनूर सा जग मग चमके
मातृभूमि हिय सदा प्यार हो।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
21 नवम्बर 2019,गुरूवार
जनसंख्या विस्फोट हो रहा
बेरोज़गारी असहनीय हो रही ।
औलादें भटक रही सद्पथ को
मंहगाई निज आपा खो रही।
जीवन का बस एक लक्ष्य है
संस्कारित सभ्य औलाद हो।
सुख शांति का वास सदन में
गृह क्लेश न कभी फसाद हो।
यह जीवन शैशव से प्रारम्भ
वृद्धावस्था अंत है इसका।
संतान संस्कारित आज्ञाकारी
जीवन सुखी है प्रिय उसका।
अभाव कभी न हो शिक्षा का
सेवाभावी प्रिय औलाद हो।
कौहिनूर सा जग मग चमके
मातृभूमि हिय सदा प्यार हो।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
नमन भावों के मोती
"डगमगाते हुए कदमों को तू चलना न सिखा,
कितने ही गिरतों को उन्होंने सम्हाला होगा।
परवरि़श वाले हाथों को कमजोर न समझ,
इन्हीं हाथों ने तुझे हवाओं में उछाला होगा।
बूढ़े माँ बाप की आँखों में झाँक कर देखो,
कितनी उम्मीद से औलाद को पाला होगा।
पढ के अखबार में शहादत को पलट देते हैं,
माँ की आँख का वो भी तो जियाला होगा।
तुम तो बस ये सुन कर ही सिहर जाते हो,
किस तरह आँख से काटें को निकाला होगा।
विपिन सोहल. स्वरचित
"डगमगाते हुए कदमों को तू चलना न सिखा,
कितने ही गिरतों को उन्होंने सम्हाला होगा।
परवरि़श वाले हाथों को कमजोर न समझ,
इन्हीं हाथों ने तुझे हवाओं में उछाला होगा।
बूढ़े माँ बाप की आँखों में झाँक कर देखो,
कितनी उम्मीद से औलाद को पाला होगा।
पढ के अखबार में शहादत को पलट देते हैं,
माँ की आँख का वो भी तो जियाला होगा।
तुम तो बस ये सुन कर ही सिहर जाते हो,
किस तरह आँख से काटें को निकाला होगा।
विपिन सोहल. स्वरचित
प्रथम प्रस्तुति
अब नसीहत नही वसीयत पर यकीन करते
आज के बच्चे अब कहाँ किसी से डरते ।।
आँख दिखाऐं बच्चे, जिन्हे पाने को
माँ बाप कितने दैवी दैवता सुमरते ।।
औलादों की बदसलूकी बढ़ती जा रही
अच्छे घरों के बच्चे भी दिखते बिगड़ते ।।
माँ बाप को कमाने से फुरसत नही
ये वही बच्चे हैं जो झूलाघर में पलते ।।
दोष संतान पर ही देना उचित नही
जो झूलाघर भेजे थे वो वृद्धाश्रम भेजते ।।
बच्चे खुदा की नेमत कच्ची मिट्टी हैं
जैसा उन्हे सजाओ वैसा वो सजते ।।
संतान पाना एक दायित्व पाना है
दायित्वों से 'शिवम' आज सभी मुकरते ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 21/11/2019
अब नसीहत नही वसीयत पर यकीन करते
आज के बच्चे अब कहाँ किसी से डरते ।।
आँख दिखाऐं बच्चे, जिन्हे पाने को
माँ बाप कितने दैवी दैवता सुमरते ।।
औलादों की बदसलूकी बढ़ती जा रही
अच्छे घरों के बच्चे भी दिखते बिगड़ते ।।
माँ बाप को कमाने से फुरसत नही
ये वही बच्चे हैं जो झूलाघर में पलते ।।
दोष संतान पर ही देना उचित नही
जो झूलाघर भेजे थे वो वृद्धाश्रम भेजते ।।
बच्चे खुदा की नेमत कच्ची मिट्टी हैं
जैसा उन्हे सजाओ वैसा वो सजते ।।
संतान पाना एक दायित्व पाना है
दायित्वों से 'शिवम' आज सभी मुकरते ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 21/11/2019
विधा - दोहे
विषय-सन्तान/औलाद
प्रभु ने बख्शा है हमें , यह सुंदर उपहार।
मुखड़ा जिसका देखकर उमड़े मन में प्यार।।
उंगली पकड़े आज है,चलती मुझको थाम।
वो दिन भी आ जायेगा,मुझको लेगी थाम।।
मन मेरा शीतल करे,हर ले सब संताप।
ऐसी ही औलाद दें,ईश्वर मुझको आप।।
सत्कर्मों पर जो चले,मर्यादित हो चाल।
प्रभु ऐसी सन्तान से, करना मालामाल।।
मन में कोमल भाव हों,परहित का संज्ञान।
करुणा उर में हो बसी ,देना उसको ज्ञान।।
सरिता गर्ग
विषय-सन्तान/औलाद
प्रभु ने बख्शा है हमें , यह सुंदर उपहार।
मुखड़ा जिसका देखकर उमड़े मन में प्यार।।
उंगली पकड़े आज है,चलती मुझको थाम।
वो दिन भी आ जायेगा,मुझको लेगी थाम।।
मन मेरा शीतल करे,हर ले सब संताप।
ऐसी ही औलाद दें,ईश्वर मुझको आप।।
सत्कर्मों पर जो चले,मर्यादित हो चाल।
प्रभु ऐसी सन्तान से, करना मालामाल।।
मन में कोमल भाव हों,परहित का संज्ञान।
करुणा उर में हो बसी ,देना उसको ज्ञान।।
सरिता गर्ग
विषय_ ओलाद/संतान |
सोच मानव की नित रही बदल
मंहगाई व प्राकृतिक आपदा से
आई देश मे आर्थीक मंदी |
जनसंख्या विफोस्ट से प्रकृतिपतन |
जंगल नही आक्सीजन नही |
एक या दो बस चलन |
मात पिता की महत्वाकांक्षा ऐ बडी |
उच्च शिक्षा महंगी हुईकरते जतन
क ई औलाद के लिऐ बने उच्च अधिकारी |
व्यवहारिक जीने की कला की भूल बैठे |
भावनाऐ मरने लगी बडी धन लालसा मे |
चाहत रहती संतान से मिले सुख हमे |
निज जीवन की दौड भाग सब भूली संतान |
गये विदेश ,आये नही लौटकर |
धनकी आशा करते ,सेवा बनती नही |
कैसी ये विडंबना बीते जीवन निराशामे |
बडी ख्वाहिशौ का गजब कमाल हे |
रहो अकेले या वृद्धा श्रम मे |
बीज बोया जैसा फल वैसा मिले |
अग्रजी शिक्षा का असर हे मानवता भूले |
संस्कार भूले बडे औलाद सीखे कैसे |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
सोच मानव की नित रही बदल
मंहगाई व प्राकृतिक आपदा से
आई देश मे आर्थीक मंदी |
जनसंख्या विफोस्ट से प्रकृतिपतन |
जंगल नही आक्सीजन नही |
एक या दो बस चलन |
मात पिता की महत्वाकांक्षा ऐ बडी |
उच्च शिक्षा महंगी हुईकरते जतन
क ई औलाद के लिऐ बने उच्च अधिकारी |
व्यवहारिक जीने की कला की भूल बैठे |
भावनाऐ मरने लगी बडी धन लालसा मे |
चाहत रहती संतान से मिले सुख हमे |
निज जीवन की दौड भाग सब भूली संतान |
गये विदेश ,आये नही लौटकर |
धनकी आशा करते ,सेवा बनती नही |
कैसी ये विडंबना बीते जीवन निराशामे |
बडी ख्वाहिशौ का गजब कमाल हे |
रहो अकेले या वृद्धा श्रम मे |
बीज बोया जैसा फल वैसा मिले |
अग्रजी शिक्षा का असर हे मानवता भूले |
संस्कार भूले बडे औलाद सीखे कैसे |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
दिनांक-21/11/2029
विषय- संतान
संतान उज्जवल भविष्य का फल..........
तुम्हीं ही हो हो मेरे सपनों का कल
फूलों सी मुस्कानो के पल
तुम्हीं हो मेरे नयनों के उत्पल
तुम्हीं ही हो मेरे संस्कारों का जल
तुम्हीं हो मेरे सल्तनत के प्रतिफल
तुम ही हो मेरी बाजुओं का बल।।
संतान बचाने को हिरनी भी
सिंहो के संग अड़ जाती है
वह बात संतान के आन की हो
जंगी तलवारे भी लड़ जाती है
कष्टों के आलिंगन को स्वीकार
हर माता मौत के संग अड़ जाती है
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय- संतान
संतान उज्जवल भविष्य का फल..........
तुम्हीं ही हो हो मेरे सपनों का कल
फूलों सी मुस्कानो के पल
तुम्हीं हो मेरे नयनों के उत्पल
तुम्हीं ही हो मेरे संस्कारों का जल
तुम्हीं हो मेरे सल्तनत के प्रतिफल
तुम ही हो मेरी बाजुओं का बल।।
संतान बचाने को हिरनी भी
सिंहो के संग अड़ जाती है
वह बात संतान के आन की हो
जंगी तलवारे भी लड़ जाती है
कष्टों के आलिंगन को स्वीकार
हर माता मौत के संग अड़ जाती है
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
21-11-19 , गुरुवार
शीर्षक - औलाद , संतान
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मुक्तक
--------
मात पिता भूखे मरें,
मस्त रहे औलाद,
बात-बात पर नित्य ही,
करते वाद-विवाद,
बिगड़ रहे घर बार सब,
नहीं समझते बात-
बर्बादी की राह यह,
हो न सकें आबाद।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया
शीर्षक - औलाद , संतान
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मुक्तक
--------
मात पिता भूखे मरें,
मस्त रहे औलाद,
बात-बात पर नित्य ही,
करते वाद-विवाद,
बिगड़ रहे घर बार सब,
नहीं समझते बात-
बर्बादी की राह यह,
हो न सकें आबाद।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया
विषय -औलाद /संतान
दिनांक-21-11-2019औलाद सदा ही, माँ बाप की जान होते हैं।
आज नहीं कल भी,उनकी पहचान होते हैं।।
जिस औलाद के लिए,वो जहां से लड़ते हैं।
बड़े होने पर,माँ बाप दर्द से अनजान होते हैं ।।
उनके सपने पूरे करने में,अपने भूला देते हैं।
क्या किया हमारे लिए, ऐसे प्रश्न वो करते हैं।।
गलत संगत पड़,जीवन अपना नर्क बनाते हैं।
सही कहने पर,माँ बाप को आँख दिखाते हैं ।।
फंस जाते हैं,जब वो कर बुराई दलदल में।
माँ-बाप तब उन्हें,बहुत याद ऐसे आते हैं ।।
श्रवण नहीं, कंस बन जीवन वो जीते हैं।
माँ बाप दे दुख,अपने लिए खाई खोदते हैं।।
आजकल के बच्चे,अनुकरण बहुत करते हैं।
जैसा बीज बोते हैं,वैसा ही फल वो पाते हैं।।
माँ बाप, तब उन्हें बहुत याद आते हैं ।
औलाद सुख,जब वह स्वयं नहीं पाते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक-21-11-2019औलाद सदा ही, माँ बाप की जान होते हैं।
आज नहीं कल भी,उनकी पहचान होते हैं।।
जिस औलाद के लिए,वो जहां से लड़ते हैं।
बड़े होने पर,माँ बाप दर्द से अनजान होते हैं ।।
उनके सपने पूरे करने में,अपने भूला देते हैं।
क्या किया हमारे लिए, ऐसे प्रश्न वो करते हैं।।
गलत संगत पड़,जीवन अपना नर्क बनाते हैं।
सही कहने पर,माँ बाप को आँख दिखाते हैं ।।
फंस जाते हैं,जब वो कर बुराई दलदल में।
माँ-बाप तब उन्हें,बहुत याद ऐसे आते हैं ।।
श्रवण नहीं, कंस बन जीवन वो जीते हैं।
माँ बाप दे दुख,अपने लिए खाई खोदते हैं।।
आजकल के बच्चे,अनुकरण बहुत करते हैं।
जैसा बीज बोते हैं,वैसा ही फल वो पाते हैं।।
माँ बाप, तब उन्हें बहुत याद आते हैं ।
औलाद सुख,जब वह स्वयं नहीं पाते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
21/11/2019
विषय-औलाद/संतान
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:
विधा-दोहे
असीमित संतान जहाँ,इसमें भी हैं खोट।
होता पूरे देश में,जनसंख्या विस्फोट ।।
औलाद सदा चाहिए,जिनमें सुसंस्कार ।
क्या ऐसी वह लाभ दे,जिसमें भरे विकार।।
वह शिक्षित वह सुशील हो,जिसमें हो सदज्ञान।
सेवा हो माॅ बाप की,दे उनको सम्मान ।।
सबको होती लालसा,हो लायक संतान ।
कुल भी वह रौशन करे,बन जाये विद्वान ।।
नहीं पुत्री पुत्र भेद हो,समझो एक समान ।
जिम्मेदारी तय करो,नहीं अधिक अरमान ।।
परहित करूणा हो सदा,मर्यादित व्यवहार ।
आदर्शों पर वह चले,ऊॅचे रहें विचार ।।
आशा पर उतरे खरा,जो रखते माँ बाप ।
चले सदा सदराह पर,कभी न हो संताप ।।
कच्ची मिट्टी ज्यों ढले,जो ढाले कुम्हार ।
सदा परवरिश यूँ करें,वह बनता सुकुमार ।।
स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय
विषय-औलाद/संतान
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:
विधा-दोहे
असीमित संतान जहाँ,इसमें भी हैं खोट।
होता पूरे देश में,जनसंख्या विस्फोट ।।
औलाद सदा चाहिए,जिनमें सुसंस्कार ।
क्या ऐसी वह लाभ दे,जिसमें भरे विकार।।
वह शिक्षित वह सुशील हो,जिसमें हो सदज्ञान।
सेवा हो माॅ बाप की,दे उनको सम्मान ।।
सबको होती लालसा,हो लायक संतान ।
कुल भी वह रौशन करे,बन जाये विद्वान ।।
नहीं पुत्री पुत्र भेद हो,समझो एक समान ।
जिम्मेदारी तय करो,नहीं अधिक अरमान ।।
परहित करूणा हो सदा,मर्यादित व्यवहार ।
आदर्शों पर वह चले,ऊॅचे रहें विचार ।।
आशा पर उतरे खरा,जो रखते माँ बाप ।
चले सदा सदराह पर,कभी न हो संताप ।।
कच्ची मिट्टी ज्यों ढले,जो ढाले कुम्हार ।
सदा परवरिश यूँ करें,वह बनता सुकुमार ।।
स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय
आज का विषय, औलाद, संतान
दिन, गुरुवार
दिनांक, 21,11,2019
औलाद बिना लगे जीवन सूना,
सबसे बड़ी ये पूँजी है ।
मात पिता के दिल से पूछो ,
कितनी अनमोल ये पूँजी है ।
सपने जो संजोए थे घर के,
रौनक उनमें बिखेरी है ।
अल्हड़ नादान कभी जो थे,
उन्हें सिखाई जिम्मेदारी है ।
अपनी पलकों की छाया से,
औलाद की धूप बचाई है।
वो दिन जीवन में न आये कभी,
बन जाये संतान पराई है।
आँखों का पानी न शिकवा करे ,
ये बात सहन न हो पाई है।
दो मीठे बोल गजब कर जाते,
नहीं इससे बड़ी कोई कमाई है ।
होती धनवान है औलाद वही,
जो आशीष की दौलत पाई है ।
माँ बाप से बढ़कर दुनियाँ में,
नहीं शुभचिंतक होता कोई है ।
स्वरचित, मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
दिन, गुरुवार
दिनांक, 21,11,2019
औलाद बिना लगे जीवन सूना,
सबसे बड़ी ये पूँजी है ।
मात पिता के दिल से पूछो ,
कितनी अनमोल ये पूँजी है ।
सपने जो संजोए थे घर के,
रौनक उनमें बिखेरी है ।
अल्हड़ नादान कभी जो थे,
उन्हें सिखाई जिम्मेदारी है ।
अपनी पलकों की छाया से,
औलाद की धूप बचाई है।
वो दिन जीवन में न आये कभी,
बन जाये संतान पराई है।
आँखों का पानी न शिकवा करे ,
ये बात सहन न हो पाई है।
दो मीठे बोल गजब कर जाते,
नहीं इससे बड़ी कोई कमाई है ।
होती धनवान है औलाद वही,
जो आशीष की दौलत पाई है ।
माँ बाप से बढ़कर दुनियाँ में,
नहीं शुभचिंतक होता कोई है ।
स्वरचित, मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
21/11/2019
"संतान/औलाद"
छंदमुक्त
################
घर का चिराग होता संतान....
आँगन की शोभा बढ़ाते संतान
मन को खुशी देते हैं संतान.....
संपत्ति के वारिस होते हैं संतान।
गृहस्थी के धागे बनते हैं संतान
मोह बंधन बाँचते है संतान.....
आँचल को तृप्ति देते हैं संतान...
ममता की छाँव में पलते हैं संतान।
प्रेम के साथ अनुशासन का पाठ पढ़ाना..
बचपन से धर्म-अधर्म में भेद बताना...
संतान के मन में संस्कारों के बीज बोना.
संतान के प्रति कर्तव्य है हमारा......।
माता-पिता जो बीज बोते हैं..........
फल वही संतान हमें देते हैं...........
क्यों बुढ़ापा में संतान को कोसते हैं
"बोया पेड़ बबूल का तो आम कैसे खाए"।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"संतान/औलाद"
छंदमुक्त
################
घर का चिराग होता संतान....
आँगन की शोभा बढ़ाते संतान
मन को खुशी देते हैं संतान.....
संपत्ति के वारिस होते हैं संतान।
गृहस्थी के धागे बनते हैं संतान
मोह बंधन बाँचते है संतान.....
आँचल को तृप्ति देते हैं संतान...
ममता की छाँव में पलते हैं संतान।
प्रेम के साथ अनुशासन का पाठ पढ़ाना..
बचपन से धर्म-अधर्म में भेद बताना...
संतान के मन में संस्कारों के बीज बोना.
संतान के प्रति कर्तव्य है हमारा......।
माता-पिता जो बीज बोते हैं..........
फल वही संतान हमें देते हैं...........
क्यों बुढ़ापा में संतान को कोसते हैं
"बोया पेड़ बबूल का तो आम कैसे खाए"।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
21/11/2019/
बिषय,, संतान,, औलाद
लोग औलाद को कितने अरमानों से पालते हैं
मानों कुम्हार घड़ा सांचे में ढालते हैं
स्वयं गीले रह सूखे में सुलाते हैं
वही बच्चे खून के आंसू रुलाते हैं
बृद्धाश्रम खुल रहे इनका कारण है संतान
नहीं जानते कैसे करना चाहिए सम्मान
वर्तमान में पैसा है संस्कार नहीं है
पति पत्नि हैं परिवार नहीं है
नौकर चाकर हैं ब्यवहार नहीं है
इनके जीवन का कोई आधार नहीं है
पाश्चात्य सभ्यता में हम पीछे हो गए
यही कारण हमारे संस्कार खो गए
रामायण गीता के बिषय में बच्चे नहीं जानते
सीता राम का रिश्ता नहीं पहचानते
यदि यही हाल रहे तो हमको पछताना पड़ेगा
दरबदर की ठोकरें खाना पड़ेगा
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय,, संतान,, औलाद
लोग औलाद को कितने अरमानों से पालते हैं
मानों कुम्हार घड़ा सांचे में ढालते हैं
स्वयं गीले रह सूखे में सुलाते हैं
वही बच्चे खून के आंसू रुलाते हैं
बृद्धाश्रम खुल रहे इनका कारण है संतान
नहीं जानते कैसे करना चाहिए सम्मान
वर्तमान में पैसा है संस्कार नहीं है
पति पत्नि हैं परिवार नहीं है
नौकर चाकर हैं ब्यवहार नहीं है
इनके जीवन का कोई आधार नहीं है
पाश्चात्य सभ्यता में हम पीछे हो गए
यही कारण हमारे संस्कार खो गए
रामायण गीता के बिषय में बच्चे नहीं जानते
सीता राम का रिश्ता नहीं पहचानते
यदि यही हाल रहे तो हमको पछताना पड़ेगा
दरबदर की ठोकरें खाना पड़ेगा
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
विषय_*संतान औलाद *
विधा॒॒॒_काव्य
हो सुसंस्कृत संस्कारी संतान।
हम बनें सभी मानसिक वलवान।
बच्चे जिऐं सदाचार का जीवन
दिखे सदैव हमें इनकी मुस्कान।
औलाद कभी कदाचारी न हो।
यहां जनमन मंगल प्रमुदित हो।
करें रौशन नाम खानदान का
अपनाघर आंगन भी कुसुमित हो।
स्वधर्म कर्म में लीन रहें सब
जिनको मानवीयता प्यारी हो।
रागद्वेष से अलग हों संतान
जिन्हें भारतीयता दुलारी हो।
कृपा करें औलाद पर माते
ये सदा शारदा शरण गहें।
ज्ञानवंत सभी चरित्रवान हों
यहां परोपकार कर प्रेम लहें।
स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
विधा॒॒॒_काव्य
हो सुसंस्कृत संस्कारी संतान।
हम बनें सभी मानसिक वलवान।
बच्चे जिऐं सदाचार का जीवन
दिखे सदैव हमें इनकी मुस्कान।
औलाद कभी कदाचारी न हो।
यहां जनमन मंगल प्रमुदित हो।
करें रौशन नाम खानदान का
अपनाघर आंगन भी कुसुमित हो।
स्वधर्म कर्म में लीन रहें सब
जिनको मानवीयता प्यारी हो।
रागद्वेष से अलग हों संतान
जिन्हें भारतीयता दुलारी हो।
कृपा करें औलाद पर माते
ये सदा शारदा शरण गहें।
ज्ञानवंत सभी चरित्रवान हों
यहां परोपकार कर प्रेम लहें।
स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
21/11/2019
"संतान/औलाद"
1
संतान धन..
श्रेष्ठतम ये पूँजी
सुख की कुँजी
2
संस्कार बीज
संतान के मन में..
प्रेम से सींच
3
गृह आश्रम
अनुशासन पाठ..
पढ़े संतान
4
सेवा ही धर्म
माता-पिता का ऋण..
संतान कर्म
5
मोक्ष के द्वार..
संतान के हाथों से
मृत्यु पश्चात
6
आत्मा को तृप्ति
औलाद की बाँहों में..
अंतिम साँसें
7
संतान धर्म
बुढ़ापे का सहारा..
सेवा निभाया
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।
"संतान/औलाद"
1
संतान धन..
श्रेष्ठतम ये पूँजी
सुख की कुँजी
2
संस्कार बीज
संतान के मन में..
प्रेम से सींच
3
गृह आश्रम
अनुशासन पाठ..
पढ़े संतान
4
सेवा ही धर्म
माता-पिता का ऋण..
संतान कर्म
5
मोक्ष के द्वार..
संतान के हाथों से
मृत्यु पश्चात
6
आत्मा को तृप्ति
औलाद की बाँहों में..
अंतिम साँसें
7
संतान धर्म
बुढ़ापे का सहारा..
सेवा निभाया
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।
आज का प्रदत्त शब्द 👉औलाद / संतान
दिनांक👉२१/११ /२०१९
दिवस👉गुरूवार
👉👉👉👉👉👉👉
औलाद👉संतानों को पालने का दर्द,
देख रहे है उन्हें,
अपनी संतानों को जीवन का पथ भ्रष्ट कर उच्च शिक्षित करा रहे
औलाद जो संस्कार,संस्कृति,सभ्यता, मर्यादा हीन हो केवल धनके प्रलोभन में,
आभास कर रहे छलित बहकावे नकल की होड़ से बहती भारतीयता को ।
👫👫👫👫👫👫👫
चुप्प बैठे है पिता मंथन औलाद को संवारने का,
बोल नही रहे बोलरही नैना,
चुप्प बैठे है,
बुनते तानाबाना दिल के उद्गारों में,
नैन मूँदे हुए बुनरहे है संतानों के जीवन की चादर,
माँ-बाप जब संग बैठते है चाँदनी भरी धूप में खोलते है ऊंमीदों के पल्लव,
करती है दोनों की मन कल्पनायें कुछ मंथन,
चुप्प बैठे रहते है,
पंख हीन उड़ान से बृथित होकर,
बोलती है उनकी नैना अपना अधिकार लेकर,
वांचरही हों परिस्थिति यों की किताब ,
ऊंमीदों के आंगन में असमर्थता के पथ,
ऑख फाड़े निहार रहते है,
एक दूसरे की नैना वांचरही हर्ष भरा दुख,
अपने ही शब्दो में समझते-समझाते,
उनके जीवन की जामिती निकाल रही संतानों के जीवन का गुणन फल,
उलझी हुई जामिती के वर्ण माला में मात-पिता के संग संतानों का गुणनफल ,
परिश्रम के विधानों को देख तथ्य बेहोश हो गए,
मांत-पिता के जीवन की गाथा औलाद के हर्षो के विरामों में बसी है,
ऊंमीदों का कितना भारी-भरकम ठहराव,
पर चुप्प बैठे है,
आजके ठहराव को भाषित होते देख,
आशाओ भरी दुख की नदी सी बहरही है,
संतानों के भरण-पोषण में ,
अमावस पूनम भरे परिश्रम के परिदृश्य की भीड़ में,
कही खोगई जीवन की हरियाली,
आशाओ भरा पंथ से हारा शरीर,
ऑख बंद सी होरही है
स्मरणों के आंगन में,
स्वास्थ्य पौष्टिकता के संग ज्ञान वर्धा की उच्चश्रेणी को एकत्रित करवाने में व्यतीत जीवन,
महंगाई,निर्धनता में कितनी उठापटक ऊंमीदों की चढ़ाई चढ़ते उतरते,
आशा-अभिलाषाओ का बीज बोते-बोते कभी परिश्रम के पल हाथ नही लगे,
निभा रहा हरकोई अपनी औलाद /संतानों को पालने में ।गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक हल्द्वानी नैनीताल
मोलिक प्रमाणित
दिनांक👉२१/११ /२०१९
दिवस👉गुरूवार
👉👉👉👉👉👉👉
औलाद👉संतानों को पालने का दर्द,
देख रहे है उन्हें,
अपनी संतानों को जीवन का पथ भ्रष्ट कर उच्च शिक्षित करा रहे
औलाद जो संस्कार,संस्कृति,सभ्यता, मर्यादा हीन हो केवल धनके प्रलोभन में,
आभास कर रहे छलित बहकावे नकल की होड़ से बहती भारतीयता को ।
👫👫👫👫👫👫👫
चुप्प बैठे है पिता मंथन औलाद को संवारने का,
बोल नही रहे बोलरही नैना,
चुप्प बैठे है,
बुनते तानाबाना दिल के उद्गारों में,
नैन मूँदे हुए बुनरहे है संतानों के जीवन की चादर,
माँ-बाप जब संग बैठते है चाँदनी भरी धूप में खोलते है ऊंमीदों के पल्लव,
करती है दोनों की मन कल्पनायें कुछ मंथन,
चुप्प बैठे रहते है,
पंख हीन उड़ान से बृथित होकर,
बोलती है उनकी नैना अपना अधिकार लेकर,
वांचरही हों परिस्थिति यों की किताब ,
ऊंमीदों के आंगन में असमर्थता के पथ,
ऑख फाड़े निहार रहते है,
एक दूसरे की नैना वांचरही हर्ष भरा दुख,
अपने ही शब्दो में समझते-समझाते,
उनके जीवन की जामिती निकाल रही संतानों के जीवन का गुणन फल,
उलझी हुई जामिती के वर्ण माला में मात-पिता के संग संतानों का गुणनफल ,
परिश्रम के विधानों को देख तथ्य बेहोश हो गए,
मांत-पिता के जीवन की गाथा औलाद के हर्षो के विरामों में बसी है,
ऊंमीदों का कितना भारी-भरकम ठहराव,
पर चुप्प बैठे है,
आजके ठहराव को भाषित होते देख,
आशाओ भरी दुख की नदी सी बहरही है,
संतानों के भरण-पोषण में ,
अमावस पूनम भरे परिश्रम के परिदृश्य की भीड़ में,
कही खोगई जीवन की हरियाली,
आशाओ भरा पंथ से हारा शरीर,
ऑख बंद सी होरही है
स्मरणों के आंगन में,
स्वास्थ्य पौष्टिकता के संग ज्ञान वर्धा की उच्चश्रेणी को एकत्रित करवाने में व्यतीत जीवन,
महंगाई,निर्धनता में कितनी उठापटक ऊंमीदों की चढ़ाई चढ़ते उतरते,
आशा-अभिलाषाओ का बीज बोते-बोते कभी परिश्रम के पल हाथ नही लगे,
निभा रहा हरकोई अपनी औलाद /संतानों को पालने में ।गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक हल्द्वानी नैनीताल
मोलिक प्रमाणित
शीर्षक- औलाद
मत कोसों हमेशा मां-बाप की परवरिश को
क्योंकि हमेशा गलती परवरिश में नहीं होती।
आस-पास के लोग भी इसका कारण हो सकते हैं।
अच्छे संस्कार भी ग़लत संगति में पड़ कर
खराब हो सकते हैं।
क्यूं हमेशा औलाद के ग़लत काम का इल्जाम मां-बाप पर ही लगता है।
हालात और मजबूरी का भी तो इसमें हाथ हो सकता है।
असलीयत तो ये है कि हर एक व्यक्ति इसके लिए खुद जिम्मेदार हैं,
परवरिश और माहौल ही नहीं केवल इसका आधार है।
कब कैसे कौन क्या हो जाए, यह कोई कह नहीं सकता ।
किसी के गुण दोष का असल कारण कोई समझ नहीं सकता ।
कमल किचड़ में रहकर भी अपनी सुन्दरता नहीं खोता।
और चंदन सांपों के बिच रहकर भी खुशबु से भरा होता।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
मत कोसों हमेशा मां-बाप की परवरिश को
क्योंकि हमेशा गलती परवरिश में नहीं होती।
आस-पास के लोग भी इसका कारण हो सकते हैं।
अच्छे संस्कार भी ग़लत संगति में पड़ कर
खराब हो सकते हैं।
क्यूं हमेशा औलाद के ग़लत काम का इल्जाम मां-बाप पर ही लगता है।
हालात और मजबूरी का भी तो इसमें हाथ हो सकता है।
असलीयत तो ये है कि हर एक व्यक्ति इसके लिए खुद जिम्मेदार हैं,
परवरिश और माहौल ही नहीं केवल इसका आधार है।
कब कैसे कौन क्या हो जाए, यह कोई कह नहीं सकता ।
किसी के गुण दोष का असल कारण कोई समझ नहीं सकता ।
कमल किचड़ में रहकर भी अपनी सुन्दरता नहीं खोता।
और चंदन सांपों के बिच रहकर भी खुशबु से भरा होता।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
दिनांक 21/11/2019
विषय- संतान/ औलाद
विधा #लावणी_छंद::--
***********************************
तुझे रखा नौ माह कोख में , माँ ने हर सुख वार दिया,
छाँव संग ममता की हर पल , शिक्षा ,प्रेम, दुलार दिया।
राह दिखाई बाबा ने नित ,खून पसीना बहा सदा,
उँगली पकड़ी कदम बढ़ाए ,काँधे पर तू रहा लदा।
त्याग किया औ भाग्य सँवारा,मंजिल तक है पहुँचाया,
चाँद सजा तेरी किस्मत पर, तम माँ के हिस्से आया।
खुशियाँ कर दीं सभी समर्पित , मिला बुढ़ापे में तपना,
कतरा-कतरा बँटवारा कर , किया अधूरा हर सपना।
पूँजी भेंट चढ़ी जीवन की , बच्चों की मुस्कान चुनी,
अंत समय नजदीक रहा तब, बेटों ने माँ की न सुनी ।
पीर हृदय की सही न जाती ,कड़वाहट हर पल बरसे,
वृद्धावस्था में हर पालक, मीठे बोलों को तरसे।
इक कमरे में खुश थे पहले,आज महल क्यों कम पड़ता,
बहू कभी तानें देती अरु , कभी खून अपना लड़ता।
कातर आँखें माँग रही हैं , इक कोना अपने घर में,
बूढ़ी देह सहारा चाहे , प्राण तजें तेरे कर में ।
कलयुग है अति पीड़ादायक , कुल का दीप जलाता घर,
दर दर भटके मन्नत माँगी , वही लाल करता बेघर।
लौकिक देह विलीन हुई जब , करते ढ़ोंग जिमाने का,
कल तक भोजन को तरसाया, नाटक आज खिलाने का।
काश बात इतनी समझें सब , शुभ कर्मों से उजियारा,
मात-पिता का दिल मत तोड़ें, दुनिया का सुख दें सारा।
सेवा में कुछ समय बिताएँ , माँ के पावन पग चूमें,
घर आँगन की रौनक बाबा , पा आशीष हृदय झूमें ।
आशा अमित नशीने
राजनांदगाँव
विषय- संतान/ औलाद
विधा #लावणी_छंद::--
***********************************
तुझे रखा नौ माह कोख में , माँ ने हर सुख वार दिया,
छाँव संग ममता की हर पल , शिक्षा ,प्रेम, दुलार दिया।
राह दिखाई बाबा ने नित ,खून पसीना बहा सदा,
उँगली पकड़ी कदम बढ़ाए ,काँधे पर तू रहा लदा।
त्याग किया औ भाग्य सँवारा,मंजिल तक है पहुँचाया,
चाँद सजा तेरी किस्मत पर, तम माँ के हिस्से आया।
खुशियाँ कर दीं सभी समर्पित , मिला बुढ़ापे में तपना,
कतरा-कतरा बँटवारा कर , किया अधूरा हर सपना।
पूँजी भेंट चढ़ी जीवन की , बच्चों की मुस्कान चुनी,
अंत समय नजदीक रहा तब, बेटों ने माँ की न सुनी ।
पीर हृदय की सही न जाती ,कड़वाहट हर पल बरसे,
वृद्धावस्था में हर पालक, मीठे बोलों को तरसे।
इक कमरे में खुश थे पहले,आज महल क्यों कम पड़ता,
बहू कभी तानें देती अरु , कभी खून अपना लड़ता।
कातर आँखें माँग रही हैं , इक कोना अपने घर में,
बूढ़ी देह सहारा चाहे , प्राण तजें तेरे कर में ।
कलयुग है अति पीड़ादायक , कुल का दीप जलाता घर,
दर दर भटके मन्नत माँगी , वही लाल करता बेघर।
लौकिक देह विलीन हुई जब , करते ढ़ोंग जिमाने का,
कल तक भोजन को तरसाया, नाटक आज खिलाने का।
काश बात इतनी समझें सब , शुभ कर्मों से उजियारा,
मात-पिता का दिल मत तोड़ें, दुनिया का सुख दें सारा।
सेवा में कुछ समय बिताएँ , माँ के पावन पग चूमें,
घर आँगन की रौनक बाबा , पा आशीष हृदय झूमें ।
आशा अमित नशीने
राजनांदगाँव
दिनांक-21.11.19
विषय-औलाद/सन्तान
विधा --मुक्तक
1.
जिसको फिक्र न काम की, बोझ वही सन्तान।
जीवन फिजूल बीतता, मिटे न कष्ट निशान ।
खुदा मानते काम को, खुशियाँ उनकी दास --
अगर भली सन्तान हो, पूजा यही अजान ।
2.
जीवन के उत्थान हित, दृढ़ हो गर सन्तान ।
इसमें यदि प्रयास जुड़े, निश्चित हो उत्थान ।
दूर कर्म निंदित रहें,पक्का हो ये लक्ष्य--
प्रगति भरे उन्वान से , बढ़ता सन्तति मान।
******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
विषय-औलाद/सन्तान
विधा --मुक्तक
1.
जिसको फिक्र न काम की, बोझ वही सन्तान।
जीवन फिजूल बीतता, मिटे न कष्ट निशान ।
खुदा मानते काम को, खुशियाँ उनकी दास --
अगर भली सन्तान हो, पूजा यही अजान ।
2.
जीवन के उत्थान हित, दृढ़ हो गर सन्तान ।
इसमें यदि प्रयास जुड़े, निश्चित हो उत्थान ।
दूर कर्म निंदित रहें,पक्का हो ये लक्ष्य--
प्रगति भरे उन्वान से , बढ़ता सन्तति मान।
******स्वरचित ******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551
दिनांक -21/11/2019
विषय- औलाद/संतान
औलाद है अभागों की
फिर भी वे हताश हैं
वृद्धावस्था का तकाज़ा
अनदेखी से निराश हैं ।
औलाद के ममत्व को
भुला नही पाते हैं !!
इसके बदले में अभागे
दुत्कार ही तो पातें हें ।
आँखों से बहती अश्रुधारा
चुपचाप पी जातें हैं
हृदय की सारी पीड़ा
अंतरमन में सह जाते हैं ।
अभिशप्त हो गया उनका जीवन
मात्र आशाओं पर जि़दा हैं
मर मरकर जीना होगा उन्हे
जब तक संग प्राण परिंदा है ।
माता पिता के सारे फर्ज़
अद्यतन जारी हैं
उनकी औलाद की मगर
मर चुकी खुद्दारी है ।
तिल -तिल करके जी रहे
संघर्षों की चलती आरी है
ममता उनकी दाँव पर लगाई
कानूनी पारी एक कमजोरी है ।
अहसास नही औलाद को
मात -पिता मुक्तिधाम है
अपनी दुनिया में रहे मशगूल
मात्र ज़ायदाद से काम है ।
औलाद उनकी भूल रही
उनकी भी संतान है
वक्त जब मारेगा पलटी
भोगेंगे वही पर आज अंजान है ....!
उनकी पीड़ा जग जाहिर है
समाज फिर भी मौन है
स्वार्थ के वशीभूत सब
कहो ! यहाँ किसका कौन है ?
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति
स्वरचित एवं मौलिक
विषय- औलाद/संतान
औलाद है अभागों की
फिर भी वे हताश हैं
वृद्धावस्था का तकाज़ा
अनदेखी से निराश हैं ।
औलाद के ममत्व को
भुला नही पाते हैं !!
इसके बदले में अभागे
दुत्कार ही तो पातें हें ।
आँखों से बहती अश्रुधारा
चुपचाप पी जातें हैं
हृदय की सारी पीड़ा
अंतरमन में सह जाते हैं ।
अभिशप्त हो गया उनका जीवन
मात्र आशाओं पर जि़दा हैं
मर मरकर जीना होगा उन्हे
जब तक संग प्राण परिंदा है ।
माता पिता के सारे फर्ज़
अद्यतन जारी हैं
उनकी औलाद की मगर
मर चुकी खुद्दारी है ।
तिल -तिल करके जी रहे
संघर्षों की चलती आरी है
ममता उनकी दाँव पर लगाई
कानूनी पारी एक कमजोरी है ।
अहसास नही औलाद को
मात -पिता मुक्तिधाम है
अपनी दुनिया में रहे मशगूल
मात्र ज़ायदाद से काम है ।
औलाद उनकी भूल रही
उनकी भी संतान है
वक्त जब मारेगा पलटी
भोगेंगे वही पर आज अंजान है ....!
उनकी पीड़ा जग जाहिर है
समाज फिर भी मौन है
स्वार्थ के वशीभूत सब
कहो ! यहाँ किसका कौन है ?
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति
स्वरचित एवं मौलिक
औलाद/संतान
अरमान भरे
इन्तजार भरे
खुशियों भरे
होते है वह दिन
शादी के बाद
जब सुनती बहुरिया
गोद भरी है उसकी
सहती नौ महिने
कष्ट अनेक
पल रही संतान
गर्भ में
रीति रिवाज
उम्मीदों में
कट जाता
समय अविरल
चलता जब
ठुमुक ठुमक कर
बोलता जब
तुतलाकर वो
सारे जहां की
खुशियां होती
मुट्ठी में
गुजर जाते
दिन पंख लगाकर
बुढापे में
देगी साथ
औलाद
छिन्न-भिन्न
हो जाते सपने
जब औलाद
छोड़ जाती
असहाय
माँ बाप को
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
अरमान भरे
इन्तजार भरे
खुशियों भरे
होते है वह दिन
शादी के बाद
जब सुनती बहुरिया
गोद भरी है उसकी
सहती नौ महिने
कष्ट अनेक
पल रही संतान
गर्भ में
रीति रिवाज
उम्मीदों में
कट जाता
समय अविरल
चलता जब
ठुमुक ठुमक कर
बोलता जब
तुतलाकर वो
सारे जहां की
खुशियां होती
मुट्ठी में
गुजर जाते
दिन पंख लगाकर
बुढापे में
देगी साथ
औलाद
छिन्न-भिन्न
हो जाते सपने
जब औलाद
छोड़ जाती
असहाय
माँ बाप को
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
21/11/19
विषय-औलाद,संतान
मेरा नन्हा झूल रहा था
मेरी आस के पलने में
किसलय सा कोमल सुकुमार
फूलों जैसी रंगत
मुस्कानो के मोती लब पर
उसकी अंनुगूज अहर्निस
किलकारी में सरगम
मुठठी बांधे हाथों की थिरकन
ज्यों विश्व विजय पर जाना
प्रांजल जैसा रूप मनोहर
प्रांजल सी प्रति छाया
देख के उस के करतब
अंतस तक हरियाया ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
विषय-औलाद,संतान
मेरा नन्हा झूल रहा था
मेरी आस के पलने में
किसलय सा कोमल सुकुमार
फूलों जैसी रंगत
मुस्कानो के मोती लब पर
उसकी अंनुगूज अहर्निस
किलकारी में सरगम
मुठठी बांधे हाथों की थिरकन
ज्यों विश्व विजय पर जाना
प्रांजल जैसा रूप मनोहर
प्रांजल सी प्रति छाया
देख के उस के करतब
अंतस तक हरियाया ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
दिनांक २१/११/२०१९
शीर्षक-औलाद/संतान
दे दो मुझे एक औलाद
माँ-बाप माँगे ये मुराद
घर की शोभा है संतान
इसके बिना जीना बेकार।
भगवान ने सुन ली पुकार
पूरी कर दी संतान की चाह
खुशियों से भर गई झोली
हर मुराद हो गई पूरी।
नीज सुख त्याग करने लगे परवरिश,
बोल कर नही, उदाहरण बन
भरे संस्कारों की झोली
आया बुढ़ापा , संतान ने रख ली
परवरिश की लाज
उत्तम संतान बन रख रहे
माँ-बाप का खयाल।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक-औलाद/संतान
दे दो मुझे एक औलाद
माँ-बाप माँगे ये मुराद
घर की शोभा है संतान
इसके बिना जीना बेकार।
भगवान ने सुन ली पुकार
पूरी कर दी संतान की चाह
खुशियों से भर गई झोली
हर मुराद हो गई पूरी।
नीज सुख त्याग करने लगे परवरिश,
बोल कर नही, उदाहरण बन
भरे संस्कारों की झोली
आया बुढ़ापा , संतान ने रख ली
परवरिश की लाज
उत्तम संतान बन रख रहे
माँ-बाप का खयाल।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
विषय संतान
रुदन संतान,सब जन मुस्काय।
निरखि शिशु रूप हिया हरषाय ।।
पीर सह माँ नव जीवन पाय।
अंक में भर बलिहारी जाय ।।
पहन के पायल वो इतराय,
ठुमक जो चलती गिर गिर जाय।।
दौड़ के मातु तब अँक लगाय।
क्षुधा तब माँ सुता की मिटाय।।
चिहुक कर माता डरि डरि जाय,
हुलस तब बिटिया को थपकाय ।
जगत में तू कोय दुख न पाय,
कली आँगन की सदा मुस्काय।
स्वरचित
अनिता सुधीर
रुदन संतान,सब जन मुस्काय।
निरखि शिशु रूप हिया हरषाय ।।
पीर सह माँ नव जीवन पाय।
अंक में भर बलिहारी जाय ।।
पहन के पायल वो इतराय,
ठुमक जो चलती गिर गिर जाय।।
दौड़ के मातु तब अँक लगाय।
क्षुधा तब माँ सुता की मिटाय।।
चिहुक कर माता डरि डरि जाय,
हुलस तब बिटिया को थपकाय ।
जगत में तू कोय दुख न पाय,
कली आँगन की सदा मुस्काय।
स्वरचित
अनिता सुधीर
दिनाँक-21/11/2019
शीर्षक-संतान , औलाद
विधा-हाइकु
1.
सुशील नारी
पढ़ी लिखी संतान
घर की शान
2.
बड़ी शैतान
अनपढ़ संतान
जाने जहान
3.
मान सम्मान
गुणकारी संतान
पिता की शान
4.
करे बर्बाद
नशाखोर औलाद
चरित्र हीन
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
शीर्षक-संतान , औलाद
विधा-हाइकु
1.
सुशील नारी
पढ़ी लिखी संतान
घर की शान
2.
बड़ी शैतान
अनपढ़ संतान
जाने जहान
3.
मान सम्मान
गुणकारी संतान
पिता की शान
4.
करे बर्बाद
नशाखोर औलाद
चरित्र हीन
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
दिनांक 21/11/19
शीर्षक औलाद
मा बैठी चौखट को निहारे
द्वार पे दीपक आस का जलाए
लीप पोत घर द्वार सजाकर
बार बार घड़ी को निहारे
चैन न मन को नेकु न आये
काहे लला घर न आए
छोटी दीवाली भी बीती जाए
फ़ोन लाल का स्विच ऑफ बतावे
अजी सु नो मुन्ना के पापा
जाके अपना फ़ोन दिखाओ
फोनवा में है कुछ गडबडी
मन मे मची मोरे हड़बड़ी
कुछ तो मोहे पता चल जावे
याद उसकी बहुत सतावे
अरे पगली मत कर सोच
पक्षी उड़ गए पंख को खोल
पहुँच गये दूर है विदेश
होने आई साँझ की बेला
दीप जला कर दूर कर अंधेरा
स्वरचित
मीना तिवारी
शीर्षक औलाद
मा बैठी चौखट को निहारे
द्वार पे दीपक आस का जलाए
लीप पोत घर द्वार सजाकर
बार बार घड़ी को निहारे
चैन न मन को नेकु न आये
काहे लला घर न आए
छोटी दीवाली भी बीती जाए
फ़ोन लाल का स्विच ऑफ बतावे
अजी सु नो मुन्ना के पापा
जाके अपना फ़ोन दिखाओ
फोनवा में है कुछ गडबडी
मन मे मची मोरे हड़बड़ी
कुछ तो मोहे पता चल जावे
याद उसकी बहुत सतावे
अरे पगली मत कर सोच
पक्षी उड़ गए पंख को खोल
पहुँच गये दूर है विदेश
होने आई साँझ की बेला
दीप जला कर दूर कर अंधेरा
स्वरचित
मीना तिवारी
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