Wednesday, November 20

"विधि/विधान"20नवम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-571
"विधि/विधान"
1

एक विधान
उत्तम अभियान..
"कश्मीर" मान्य
2
श्रेष्ठ विधान..
देश का संविधान
हमारी शान
3
मनु परास्त..
ईश विधि विधान
किस्मत साथ
4
ईश विधान
जन्म, मृत्यु, विवाह
कभी न रुका
5
विधि-विधान
उतार व चढ़ाव
सभी के साथ

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

प्रथम प्रस्तुति

विधि का विधान कोई न समझ पाया
कब हो धूप औ कब हो जाय छाया ।।

इधर राजतिलक की तैयारियाँ थीं
और उधर विधि ने क्या रास रचाया ।।

विधि यानि बृह्मा बृह्मा यानि मस्तिष्क
कब किसके मस्तिष्क को क्या सुहाया ।।

कुलीन घर की कैकई ने ये अपना
कौन सा रूप था जग को बताया ।।

विधि से कौन नही डरा है जग में
चौदह बर्ष राम को वन में भटकाया ।।

पल में यहाँ मंज़र बदलते हैं 'शिवम'
विधि ने इंसान को कठपुतली बनाया ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 20/11/2019
आज का विषय, विधि/विधान
दिन, बुधवार

दिनांक, 20,11,2019,

वेद पुराण कई गंथ्र हमारे,
विधि विधान हमको समझाते ।
राह सुगम बनाने के तरीके,
अनेक प्रकार से हमको समझाते।
हमारे सही तरह से किये काम के,
गलत परिणाम कभी नहीं आते।
थे समझदार सब पूज्य हमारे ,
वे हर रीत रिवाज की विधि अपनाते।
बच्चे सभी उन्हें देख देख के ,
अपने जीवन में थे अपनाते।
खुशी खुशी यूँ परिवार हमारे ,
जीवन पथ पर बढ़ते जाते ।
काल चक्र के कुछ घूमे पहिए ,
तौर तरीके हमने सब बदले ।
मार्ग खुल गये फिर कई पतन के,
गये रसातल में कई आजाद परिंदे ।
हम लकीर के फकीर न बनें,
पर अपनी संस्कृति को पहचानें।
मिले विरासत में जो संस्कारों के खजाने,
उनकी तो हम सब कीमत पहचानें ।

स्वरचित, मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश

विधि/विधान
हमारे संस्कार हैं ये विधि/विधान।

जो काम हम विधिपूर्वक करते।
फलीभूत होता है।
जो संस्कारों से बंधा हुआ है।
वो सुसंस्कृत होता है।

विधि विधान से जो होते हैं कार्य।
वही अग्रसर होते हैं जीवन पथ पर।
कुसंस्कारी कभी नहीं बढ़ पाया आगे।
चिढ़ता हुआ रहता है सबोंपर।

हिन्दू हैं हम, विधिपूर्वक करते सब काम।
चाहे कुछ हो जाए।
पूजा पद्धति मिली विरासत में हमें।
इसे विधिपूर्वक हम आगे बढ़ाते जाएं।

अपने बच्चों को हम विधान सिखायेंगे।
रीति रिवाज से हर काम करना सिखायेंगे।
ताकि पीढ़ी दर पीढ़ी चले ये विधि विधान।
हिन्दू हैं हम बच्चों को संस्कारी बनायेंगे।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
आज का विषय👉 विधि / विधान
दिवस👉 बुधबार
िनांक 👉२०/१२/२०१९
👉👉👉👉👉👉👉
विधि का विधान लिए,
खड़ा राह में 73 का बृक्ष ,
देख पतझड़ बधाई देता हर शक्स,
तनिक हवा में हिलती उसकी जड़,
कुरूप लेकर आता पतझड़,
यही विधि का विधान! !
समय परिवर्तन देह धारा हुयी उबड़ -खाबड़,
उर की सागर माया करती गड़बड़,
श्वेत स्याम छोटे-बड़े पल्लव उगते,
हरियाली हीन शिखर को दर्शाते,
यही विधि का विधान समय परिवर्तन! !
समय-समय पर बृक्ष का आता विदाई का समय,
समय कुसम विदाई होतो मित्र मंड़ली
को भय,
रोक सका कोन रूक पाया यथावत,
समय चक्रव्यूह चलता रहे आया समय जाता समय,
यही विधि का समय परिवर्तन विधान! !
माया मोह का समय भाया छोड़ कुण्डली मारने के बंधन ,
कोन अपना कोन पराया सर्व समान जीवन बंधन , विधि के विधान को पहचान !!
पूर्ण मौलिक
गौरीशंकर बशिष्ट निर्भीक

20/11/2019
विषय-विधि विधान

विधा-दोहा
""""""""""""""""""""""""""
"विधि विधान"

चाहिए जो जीवन में
अमन सुख शांति का बास
फौरन त्याग दीजिये
ज्यूँ हो कटुता का आभास ।।

अस्थि हीन जिव्हा
देखो है तो ये ज़रा सी
कहर ढा दे या अमन
है बात सोचने की सी ।।

जीने का ढ़ंग बदल
चैन बहुत तू पाएगा
बुराई का साथ छोड़
इंसां तू बन जाएगा।।

विधि का ये विधान है
जैसा करेगा वैसा पायेगा
फूलों संग सुगंध मिले
कांटो में छिल जाएगा ।।

कर्म गति बलवान है
ना राजा देखे न रंक
संतुलित आचार करो
जियो सदा ही निशंक।।

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
दिनांक-20/11/2019
विषय- विधी/विधान


यह कैसा विधि का विधान...?
मेहनत मेरी लाठी है
मजबूत मेरी काठी है
हर बाधाओं को हम कर देते हैं दूर दुनिया मुझे कहती है मजदूर।

उखड़ी सांसे थाम -थाम ,सुबह दोपहर या शाम -शाम।
दिन किसी तरह से बीते है ,न जाने कैसे हम जीते हैं।।
बेदर्द वक्त से हार- हार ,चाहत मन की मार -मार ।
बने बेस्वाद कसैले तीते खाते है, न जाने हम कैसे जीते हैं।।

जिसके हाथों में छाले हैं ,पैरों में पडी बीवाई है।
उसी के दम से अमीरों के महलों में रौनक आई है।।
रोटी कितनी महंगी है ,ये वो एक औरत बताएगी।
जिसने जिस्म गिरवी रखकर एक कीमत चुकाई है।।

यह कैसा विधि का विधान.....
अमीरों के बंगलों की हर एक निशा भी होती है रंगीली।
फिर हमारे घरों की लाचारी भी उन्हें लगती है जहरीली।।
शहरों की सड़कों पर उन बेबस लाचारो से पूछो
कौन है जिम्मेदार उनके सपनों का उन हरकारों से पूछो।
वह क्या जाने स्वतंत्रता की सच्ची अस्मिता को।
उनके मन में भड़कती ज्वाला की भष्मिता से पूछो।।

यह कैसा विधि का विधान.....।
क्यों कैद हुए उनके सपने अमीरों की चाहरदीवारी में।
चकनाचूर करते हैं गरीबों के गौरव को अपनी रंगदारी मे।

भरी दुपहरी में अंधियारा, सूरज परछाई से हारा।
आहुति बाकी ,यज्ञ अधूरा ,मजदूरों को है विघ्नों ने घेरा।।
पांव के नीचे अंगारे, सिर पर बरसे ज्वालाएं ,आग लगाकर जलना होगा फिर भी हमें गंगाजल बनकर बहाना होगा।।

यह कैसा विधि का विधान.....
छत खुला आकाश है ,हो रहा वज्रपात है।
फिर भी हमारे वेदना के तूफानों का घोर दंश भरा संताप है।।
सूरज की तपती तपिश में हथौडा कर रहा प्रहार
माथे पर टपके मेरे सिंहनाद का पसीना फिर भी मजदूर है लाचार।।

यह कैसा विधि का विधान....
अंतिम पंक्तियां?.......

मंदिरों के बहरे पाषाण हम अपने वज्र छाती से तेरी कब्र खोदने आते है।
हटो हमारे गरीबी के व्योम मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं।।

सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज

2०-11/19, बुधवार,
शीर्षक - विधि / विधान
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ताटंक छंद आधारित 'मुक्तक'
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पाप कर्म करने से मानव,
आँखों से गिर जाता है,
विधि का यही विधान साथियो,
कभी नहीं उठ पाता है,
लोक-लाज की सारी बातें,
क्यों भूले जाते हैं हम-
पाप कर्म करने वाला भी,
अंत समय पछताता है।।
~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया

बिषय- विधि/विधान
हानि-लाभ, सुख-दुख, जीवन-मरण

सब है विधि के हाथ।
बस कर्म ही कर सकते हैं हम
यही है सिर्फ हमारे हाथ।।
इसलिए क्या पाया,क्या खोया
इसकी परवाह ना करो
बस अपना कार्य करते चलो।
विधि का विधान जान
बगैर किसी गिले-शिकवे के
हानि-लाभ, सुख-दुख, जीवन-मरण
सबको हृदय से स्वीकार करो।
स्वरचित- निलम अग्रवाल,खड़कपुर
20/11/2019
बिषय,, बिधि, बिधान

बिधि का बिधान कोई समझ न पाया
राम ही जाने सब राम की ही माया
हमें खबर नहीं स्वयं अपने पल की
फिर भी हम बात करते हैं कल की
जैसी करनी हो रच देता रचनाकार
दुनियां में सबसे महान वही कलाकार
बड़े बड़े ज्ञानी समझ न पाए बिधाता के बिधान को
फिर क्यों नहीं मानते राम के संविधान को
जिन्हें पल की खबर नहीं क्या भविष्य बताऐंगे
बोलने का सऊर नहीं क्या देश चलाऐंगे
राम एक है एक रहेगा ए राम का देश है
विजयी रामप्रभु का सारे जमाने को संदेश है
स्वरचित,, सुषमा ,ब्यौहार

विषय-विधि/विधान
विधा-दोहे

दिनांकः 20/11/2019
बुधवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:

जब कोई जैसा करे,मिले उसी अनुरूप ।
नहीं लगाता पेड़ जो,पाता है वह धूप ।।

फल भी उसको वो मिले,जैसा करता काम ।
प्रयास करता जो नहीं,हो जाता नाकाम ।।

यहाँ फूल जो बो रहा,पाता वही सुवास ।
जो कीचड़ में गिर रहा,उसमें आती बास ।।

जो करता नेकी यहाँ,वह पाता है मान।
साहस रख आगे बढे,वह होता विद्वान ।।

नहीं आत्मा ये मरे,तन का होता नाश।
अजर आत्मा है अमर,होता नहीं विनाश ।।

यहाँ जन्म जो ले रहे,होता उनका अंत।
वही ईश्वर है अमर,जो है सदा अनंत ।।

जो मर जाता है यहाँ,वो फिर लेता जन्म ।
बार बार क्रम ये चले,यही है पुनः जन्म ।।

वो ही गड्ढा खोदता,जो होता नादान ।
खुद उसमें जाकर गिरे,विधि का यही विधान ।।

स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय
20/11/2019
"विधि/विधान"

छंदमुक्त(2)
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विधि का विधान कौन मिटा पाया है...
कर्मों का लेखा-जोखा ही...
किस्मत की लकीरों में पाया है
सब ईश्वर की माया है......।

चौरासीयों में घूमकर ही....
हमने मानव जन्म को पाया है
विधि का विधान सबने निभाया है..
कुदरत का सब करिश्मा है..।

जन्म,मृत्यु और विवाह....
कोई न रोक पाया है...
विधि का है विधान.....
उपर से तय होना है....।।

स्वरचित पूर्णिमा साह

पश्चिम बंगाल ।।

दिनांक_२०/११/२०१९
शीर्षक-विधि -विधान


अकारण नही होता,विधि का विधान
इसके पीछे होता कोई नेक काम
पित्राज्ञा मान राम गये बनवास
ये तो था विधि का विधान।

राक्षस के भार से धरा को मुक्त कराना
छिपा था उद्देश्य महान
संचित होता कई जन्मों का फल
तब मिलता हमे मानव जीवन।

विधि का विधान चाहे कुछ भी हो
कर्म से पीछे हटना नहीं हमारा कर्म
जाति भेद से ऊपर उठकर
करें मानव कल्याण ।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

विषय- विधि/ विधान
दिनांक -20-11-2019
विधि विधान को, बिरला ही बदल पाएगा।
अपने कर्मों से, वह जग में जाना जाएगा।

भाग भरोसे रहने वाला, दुखों को पाएगा।
जीवन अपना इस तरह,अंधकार में ढोएगा।।

कर श्रेष्ठ कार्य,अपनी पहचान जो बनाएगा।
जग प्रसिद्ध पा,नाम अमर कर जाएगा।।

अपने बच्चों को, जो संस्कारवान बनाएगा।
अपने गुणों से ,पूज्य बन सम्मान पाएगा।।

विरासत मिला खजाना,जो संभाल पाएगा।
पीढ़ी दर पीढ़ी, जीवन खुशहाल बनाएगा।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

विषय विधि,विधान
विधा काव्य

20 नवम्बर 2019,बुधवार

राजा रंक बने जीवन में
विधि विधान खेल निराला।
सोच सकारात्मक सदा रखो
श्रेष्ठ करे सब ऊपर वाला।

विधि विधान से पांचो पांडव
बारह बरस कानन में घूमे।
सीता माता वन वन घूमी
कंकर पत्थर पद नित चूमे।

सत्य अडिग राजा हरिश्चन्द्र
बिक गये सपत्नी स बालक।
विधिविधान सब खेल निराले
सेवक बन जाता कभी नायक।

विधिविधान खेल किस्मत के
कौन कब क्या बन जावे ?
कोई सप्त सितारा आवास
कोई भूखा जग रह जावे ।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान
विषय-विधी/विधान
विधा-मुक्त

दिनांक -20 /11 /19

नारी के लेखे विधी की विडंबना ही आई है
देकर सर्वस्व अपना
जहां की बेरुखी हाथ
आई है

तन समर्पित, मन समर्पित
जीवन का हर क्षण समर्पित
देकर खतरे लहु के भी अपने
विरक्ति ही हाथ आई है

विधी का विधान देखो
हाथों की लकीरों में भी
प्रीत की लकीर देकर
खुदा ने लिख दी जुदाई है

कभी बनी गज़ल, कभी गीतों में सज, कभी बनी रुबाई है
भरी महफिल में लेकिन
साकी ही बन पाई है

आँसूओं से जिसकी लिखी कहानी है
उडी़ आकाश में भले ही
जमाने ने मगर जमीं पर
डोर पकड़ की खिंचाई है

लक्ष्मी कहलाती है जग की
लक्ष्मी कभी हाथ ना आई है
काली, महाकाली, दुर्गा का अवतार बनी, पर यथार्थ में
अबला नारी है

आँसूओं से लिखी इसकी कहानी है।

डा. नीलम

विषयः- विधि का विधान

एक पण्डित जी थे बड़े ही विद्वान ।
था ज्योतिष का उनको उत्तम ज्ञान।।

ज्योतिष की हर समस्या थे सुलझाते ।
कष्टों के निवारण का, उपाय बताते ।।

लिया उनके घर एक कन्या ने जन्म ।
अगले वर्ष लिया दूजी कन्या ने जन्म ।।

उन्होने ने जन्म का समय करा नोट ।
बनाई नहीं जन्मपत्री कमाते रहे नोट ।।

थी दोनो कन्यायें सुन्दर, हो गई बड़ी ।
पण्डित जी को उनकी शादी की पड़ी ।।

पण्डित जी ने उनकी जन्मपत्री बनाईं ।
बनाते ही जन्मपत्री चिन्ता बड़ी सताई ।।

बड़ी कन्या की पत्री में था विधवा योग ।
सोचा बड़ा उपाय,पर कट न पाया रोग ।।

छोटी कन्या की पत्री में था नहीं दोष ।
इतना देख आया पण्डित जी को होष ।।

एक मित्र को उन्होंने कष्ट था बताया ।
मित्र ने सोचने के बाद उपाय सुझाया ।।

चलते हैं दफ्तर बैठे होंगे जहाँ बड़े बाबू ।
मित्र ने बताया, करते तुरन्त कष्ट काबू ।।

जा बड़े बाबू के पास बड़ा चढ़ावा चढ़ाया ।
रखा अन्टी में चढ़ावा तब उपाय बताया ।।

कर दीजिये एक वर से दोनों की शादी ।
दोनों सुहागन रहेंगी होगी नहीं बरबादी ।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
"व्थथित हृदय मुरादाबादी"
स्वरचित.

दिन :- बुधवार
दिनांक :- 20/11/2019

शीर्षक :- विधि/विधान

प्रचंड रवि को भी ढलना है..
साँझ को तारों से सजना है..
गहराती निशा स्याह गर्त में...
विधि-विधान की ये रचना है..

बोए बीज को भी फलना है..
खिले फूल को भी झरना है..
जन्म मरण का है खेल रचा..
विधि-विधान की ये रचना है..

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश

विषय विधि विधान
विधा कविता

दिनाँक 20.11.2019
दिन बुधवार

विधि विधान
💘💘💘💘

कोई न कर सके अपनी शक्तियों का ग़लत सन्धान
लक्ष्मण रेखा की तरह ही है विधि विधान
कोई काम कैसे किया जाय और
किस किस बात का लिया जाये सँँज्ञान।

जब अवहेलना होती है विधि विधान की
एक आग सुलग जाती है मान और अपमान की
सारी मान्यतायें बिखर जातीं
धज्जियाँ उड़ जाती हैं ज्ञान की।

आँखों से पर्दा हट जाता है
जिद्दी स्वभाव डट जाता है
सारा मंच उलट जाता है
सामंजस्य एकदम नट जाता है।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त

विधि / विधान

ईश्वरीय
विधान
है न्यायपूर्ण
"जैसे
कर्म करेगा
इन्सान
वैसा फल
वो पायेगा"
रखे इसे
ध्यान में
इन्सान
सुखमय
जीवन
कट जायेगा

काम हो जो
विधि विधान से
सफल होता
वह कार्य
जीवन में

शादी ब्याह में
होती रस्मे रिवाज
विधि विधान से
हँसी खुशी मजाक
सब होता है इसमें
रूला देती है रस्म
होती है वो विदाई

रखो मान
हर विधि
विधान का
महत्व बहुत है
मानव जीवन में

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

विषय_* विधि विधान *
विधा॒॒॒ _मुक्तक

विधि के विधान को कौन मोड सकता।
न कहीं महान जो इसे छोड सकता।
उसके विचार हम समझ नहीं सकते
अपने विधान में वही जोड सकता।

मिले प्रीत प्यार से हम सब जानते।
क्या हम अपनी संस्कृति अब मानते।
प्रेम प्यारी परंम्पराऐं छोड रहे
उसका बना संविधान कब मानते।

अभी आस्था हिंदुस्तान में निहित है।
विसंगति इस संविधान में बहुत हैं।
योग्यता का अब कोई सम्मान नहीं
मगर इस विधि का विधान तो नियत है।

स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश

भा *विधि विधान* मुक्तक
20/11/201/बुधवार

दिनांक-20/11/2019
विषय-विधि/विधान


अर्जुन ने कृष्ण से महा भारत के बाद पूछा कि जब आपको सब कुछ पता था तो पहले मुझे क्यौं नहीं बताया?
तब कृष्ण ने कहा कि अर्जुन

फिल्मी पैरौडी-घूंघट की आड़ में दिलवर का,,,

काम ऐसे अर्जुन मैं नहीं करता तो ये व्यान अधूरा रह जाता।
इस जगत का बनाया जो "विधि" ने वो "विधान" अधूरा रह जाता।
काम ऐसे अर्जुन मैं नहीं करता।

देख करके तू रण में निज परिवार को
न रहा था उठा अपने हथियार को।
तब मुख फाड़ मैंने दिखाया था।
सारा बृह्माण्ड तुझको दर्शाया था।
मैं उस वक्त गीता को नहीं गाता तो ये ज्ञान अधूरा रह जाता।। काम ऐसे अर्जुं0।।

दानियों में कर्ण बड़ा दानी था।
पूरी करता वो अपनी जुवानी था।
जब घायल पड़ा कर्ण मैदान में।
तोड़ स्वर्ण दन्त दीया था दान में।
दान उससे मैं अर्जुन नहीं मांगता तो उसका दान अधूरा रह जाता।। काम ऐसे अर्जुन0।।

दुर्योधन को निज वल पर अभिमान था।
युद्ध करने का लीया मन ठान था।
देने हिस्से को दीया था ऐलान कर।
बिन लड़ के न दूंगा जमीं इंच भर।
दुर्योधन से अर्जुन तू नहीं लड़ता तो उसका अरमान अधूरा रह जाता।। काम ऐसे अर्जुं0।।

काम ऐसे ही थे और सौहर के।
पूरे होते न बिन महाभारत के
इससे सब कुछ मैंने छिपाया था।
युद्ध से पहले कुछ ना बताया था।
आज महफिल में "महावीर" ये नहीं गाता तो मेरा गान अधूरा रह जाता।
काम ऐसे अर्जुन मैं नहीं करता तो ये व्यान अधूरा रह जाता।
इस जगत में बनाया जो "विधि" ने वो "विधान" अधूरा रह जाता।

कवि महावीर सिकरवार
आगरा (उ.प्र.)

दिनांक-20/11/2019
विधा-हाइकु (5/7/5)
िषय :-"विधि/विधान"
(1)
न्याय की आस
विधि के दरबार
लम्बी कतार
(2)
शर्म का काम
विधि के होते हुए
लुटा विधान
(3)
विधि का मान
विविध भारत में
एक विधान
(4)
हाथ में कृत्य
ईश्वर का विधान
अटूट सत्य
(5)
अमूल्य निधि
विधानों की सुरक्षा
करती विधि

स्वरचित
ऋतुराज दवे

विषय- विधि / विधान
विधा - हाइकू,,,

1/ मानव माने,,,
ये विधि का विधान
अकर्मण्यता ,,,
2/ भुलना मत
विधि का है विधान,,,
कर्म प्रधान,,,,।
3/ नेकी का फल
ईश्वर का विधान,,
अच्छा ही होता,,,।
4 / विधि को मानो
सबका भगवान,,
बनो महान,,,,।
5/ सेवा करलो
ईश का है , विधान,,,
मेवा मिलेगा,,,।
स्वरचित -" विमल '




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"अंदाज"05मई2020

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