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ब्लॉग संख्या :-536
14 /10 /2019
बिषय ,,प्रपंच,, षडयंत्र
आज के समय में किसी को किसी का भला नहीं सुहाता
टांग खींचने में बड़ा मजा आता
हित करते में कतराते हैं लोग
अहित करने सामने आ जाते हैं लोग
जहाँ तहाँ षडयंत्र बदले की भावना
आगे न बढ़ पाए की प्रबल कामना
मुफ्त के वकील हजारों मिलेंगे
ज्ञान बांटने को हुजूम में दिखेंगे
काम पड़ने पर नजरें चुराएंगे
मुफ्त का माल लूट लूट खाएंगे
पीठ पीछे आपका मखौल उड़ाएंगे
सामने आपके हितैषी बन जाएंगे
आज के लोगों को समझ न पाया है
यहाँ कौन अपना कौन पराया है
जिसने इन्हें पहचाना वो जग जीत गया
वरना दमुँही दुनिया में खाली घड़ा सा रीत गया
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय ,,प्रपंच,, षडयंत्र
आज के समय में किसी को किसी का भला नहीं सुहाता
टांग खींचने में बड़ा मजा आता
हित करते में कतराते हैं लोग
अहित करने सामने आ जाते हैं लोग
जहाँ तहाँ षडयंत्र बदले की भावना
आगे न बढ़ पाए की प्रबल कामना
मुफ्त के वकील हजारों मिलेंगे
ज्ञान बांटने को हुजूम में दिखेंगे
काम पड़ने पर नजरें चुराएंगे
मुफ्त का माल लूट लूट खाएंगे
पीठ पीछे आपका मखौल उड़ाएंगे
सामने आपके हितैषी बन जाएंगे
आज के लोगों को समझ न पाया है
यहाँ कौन अपना कौन पराया है
जिसने इन्हें पहचाना वो जग जीत गया
वरना दमुँही दुनिया में खाली घड़ा सा रीत गया
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
विषय प्रपंच,षडयंत्र
विधा लघु काव्य
14 नवम्बर 2019,सोमवार
कई प्रपंच भरी दुनियां में
अपनी ढपली राग स्वंय का।
सब स्वार्थ में अंधे होकर
इस जीवन में कौन किसी का?
लोकतंत्र कल्याण कारी है
पर कल्याण होता नेता का।
षडयंत्रो से भरी राजनीति
सगा नहीं वह निज बेटा का।
षडयंत्रो में चल रहा जीवन
सिंहासन पर ध्यान सभी का।
नारे वादे सब मिथ्या वादी
पर्दा डालते स्वयं कमी का।
षडयंत्रो के करतब लिपटे
भला नहीं होता जीवन का।
सत्य सन्तोषी सद्कर्मों से
भला हुआ जग उपवन का।
स्व0 रचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा लघु काव्य
14 नवम्बर 2019,सोमवार
कई प्रपंच भरी दुनियां में
अपनी ढपली राग स्वंय का।
सब स्वार्थ में अंधे होकर
इस जीवन में कौन किसी का?
लोकतंत्र कल्याण कारी है
पर कल्याण होता नेता का।
षडयंत्रो से भरी राजनीति
सगा नहीं वह निज बेटा का।
षडयंत्रो में चल रहा जीवन
सिंहासन पर ध्यान सभी का।
नारे वादे सब मिथ्या वादी
पर्दा डालते स्वयं कमी का।
षडयंत्रो के करतब लिपटे
भला नहीं होता जीवन का।
सत्य सन्तोषी सद्कर्मों से
भला हुआ जग उपवन का।
स्व0 रचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
प्रथम प्रस्तुति
दिमाग ने जब जब भी साज़िशें रचीं
इतिहास में तब महाभारतें लिखीं ।।
उपजती साज़िश इंसा के ज़िहन में
शकुनी सी शररारतें आज भी दिखीं ।।
जरा सी बातों पर लड़ते झगड़ते
इंसानियत मानवता कब की बिकीं ।।
कितना गिर चुका इंसान का जमीर
अपनों से अपनों की अस्मतें लुटीं ।।
दिमाग में शैतान का वास हो ज्यों
रोज अखबार में ये कहानियाँ पढ़ीं ।।
जिसे भी देखो वो सहमा है 'शिवम'
देख जग का हाल है आँख में नमीं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 1410/2019
दिमाग ने जब जब भी साज़िशें रचीं
इतिहास में तब महाभारतें लिखीं ।।
उपजती साज़िश इंसा के ज़िहन में
शकुनी सी शररारतें आज भी दिखीं ।।
जरा सी बातों पर लड़ते झगड़ते
इंसानियत मानवता कब की बिकीं ।।
कितना गिर चुका इंसान का जमीर
अपनों से अपनों की अस्मतें लुटीं ।।
दिमाग में शैतान का वास हो ज्यों
रोज अखबार में ये कहानियाँ पढ़ीं ।।
जिसे भी देखो वो सहमा है 'शिवम'
देख जग का हाल है आँख में नमीं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 1410/2019
दिनांक-14/10/2019
विषय- "प्रपंच/षड़यंत्र"
विधा- *हाइकु*
**************
(1)
ये लाक्षागृह
कौरव षड़यंत्र
फंसे पांडव
(2)
झूठा प्रपंच
सियासती मक्कारी
करते नेता
(3)
सोने का मृग
रचता षड़यंत्र
सीता हरण
(4)
शकुनी मामा
पासों का षड़यंत्र
दाव द्रोपदी
(5)
भजता राम
रचता षड़यंत्र
कपटी मनु
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
विषय- "प्रपंच/षड़यंत्र"
विधा- *हाइकु*
**************
(1)
ये लाक्षागृह
कौरव षड़यंत्र
फंसे पांडव
(2)
झूठा प्रपंच
सियासती मक्कारी
करते नेता
(3)
सोने का मृग
रचता षड़यंत्र
सीता हरण
(4)
शकुनी मामा
पासों का षड़यंत्र
दाव द्रोपदी
(5)
भजता राम
रचता षड़यंत्र
कपटी मनु
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
14अक्टूवर19सोमवार
विषय-प्रपंच/षड्यंत्र
विधा-क्षणिका
💐💐💐💐💐💐
सावधान !
यह
लोकतंत्र है...👌
खबरदार !!
जहाँ
घोर षड़यंत्र है...👍
💐💐💐💐💐💐
जो
बने हैं
पंच-सरपंच...👌
उनका
हक है कि
ओ करें
मनमाफिक
प्रपंच...👍
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
विषय-प्रपंच/षड्यंत्र
विधा-क्षणिका
💐💐💐💐💐💐
सावधान !
यह
लोकतंत्र है...👌
खबरदार !!
जहाँ
घोर षड़यंत्र है...👍
💐💐💐💐💐💐
जो
बने हैं
पंच-सरपंच...👌
उनका
हक है कि
ओ करें
मनमाफिक
प्रपंच...👍
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू अकेला
बिषय- प्रपंच
छल प्रपंच कर जो अपनों को लूटते।
एक रोज वो खुद इस भंवर में फंसते।।
अपनों के साथ जो करते दगाबाजी,
हार जाते वो जीवन की हर बाजी।
न खेलना कभी अपनों के जज्बातों से
ना बहलाना झूठी मीठी प्यारी बातों से।
पछताओगे बहुत इस गलत राह पे चलके।।
रह जाओगे इस जीवन सफर में तनहा
छूट जाएगा जब अपनों का कारवां।
तरसोगे,तड़पोगे अपनों के अमृत को
पीना पड़ेगा जब जीवन के जहर को।
रोओगे हो बेबश,दीवारों से सर धुन-धुन के।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
छल प्रपंच कर जो अपनों को लूटते।
एक रोज वो खुद इस भंवर में फंसते।।
अपनों के साथ जो करते दगाबाजी,
हार जाते वो जीवन की हर बाजी।
न खेलना कभी अपनों के जज्बातों से
ना बहलाना झूठी मीठी प्यारी बातों से।
पछताओगे बहुत इस गलत राह पे चलके।।
रह जाओगे इस जीवन सफर में तनहा
छूट जाएगा जब अपनों का कारवां।
तरसोगे,तड़पोगे अपनों के अमृत को
पीना पड़ेगा जब जीवन के जहर को।
रोओगे हो बेबश,दीवारों से सर धुन-धुन के।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
भावों के मोती
विषय-प्रपंच/षड़यंत्र
_____________________
कुछ पलछिन नैनों में बसे
कुछ भीतर-बाहर भाग रहे
कुछ अलमारी में छुप बैठे
कुछ मेरी खुली किताब बने
कुछ कब सावन की बन बदरी
नयनों से बरसकर चले गए
कुछ जेठ की तपती धूप से
दिन-रात जलाते मन की नगरी
कुछ सूख-सूख कर चटक रहे
ज्यों धूप से चटकती धरती हो
कुछ हवाओं संग कर इतराते
जैसे पुरवाई मुझसे जलती हो
नयनों को मेरे आराम नहीं
दिन-रात देख रहे रस्ता तेरा
आजा ओ परदेशी कहीं से
क्या भूल गया तू प्यार मेरा
बुझने लगी जीवन की बाती
जीवन के दीप जलाने जा
कुछ भूली-बिसरी यादें बची हों
उन यादों के साथ में आजा
पूनम का चाँद देख मुझे
कुछ मुरझाया सा रहता है
हर वक़्त मेरी आँखों में
अब तेरा ही साया रहता है
चाँदनी सहलाकर कहती
क्यों रहती हो खोई-खोई
कुछ प्रीत के गीत सुना दे मुझे
मेरी न सखी-सहेली कोई
कैसे कहूँ अब तुम बिन मेरे
सजते नहीं हैं सुर कोई
बिखर गई जीवन से सरगम
मैं जल बिन तड़पती मीन कोई
मैं दुखियारी किस्मत की मारी
जिसकी क़िस्मत ने ही षड़यंत्र रचे
मृग मरीचिका-सी खुशियाँ देखकर
दिल ने कांँटो भरे यह मार्ग चुने
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित
विषय-प्रपंच/षड़यंत्र
_____________________
कुछ पलछिन नैनों में बसे
कुछ भीतर-बाहर भाग रहे
कुछ अलमारी में छुप बैठे
कुछ मेरी खुली किताब बने
कुछ कब सावन की बन बदरी
नयनों से बरसकर चले गए
कुछ जेठ की तपती धूप से
दिन-रात जलाते मन की नगरी
कुछ सूख-सूख कर चटक रहे
ज्यों धूप से चटकती धरती हो
कुछ हवाओं संग कर इतराते
जैसे पुरवाई मुझसे जलती हो
नयनों को मेरे आराम नहीं
दिन-रात देख रहे रस्ता तेरा
आजा ओ परदेशी कहीं से
क्या भूल गया तू प्यार मेरा
बुझने लगी जीवन की बाती
जीवन के दीप जलाने जा
कुछ भूली-बिसरी यादें बची हों
उन यादों के साथ में आजा
पूनम का चाँद देख मुझे
कुछ मुरझाया सा रहता है
हर वक़्त मेरी आँखों में
अब तेरा ही साया रहता है
चाँदनी सहलाकर कहती
क्यों रहती हो खोई-खोई
कुछ प्रीत के गीत सुना दे मुझे
मेरी न सखी-सहेली कोई
कैसे कहूँ अब तुम बिन मेरे
सजते नहीं हैं सुर कोई
बिखर गई जीवन से सरगम
मैं जल बिन तड़पती मीन कोई
मैं दुखियारी किस्मत की मारी
जिसकी क़िस्मत ने ही षड़यंत्र रचे
मृग मरीचिका-सी खुशियाँ देखकर
दिल ने कांँटो भरे यह मार्ग चुने
***अनुराधा चौहान*** स्वरचित
विषय प्रपंच
विधा कविता
दिनांक 14.10.2019
दिन सोमवार
प्रपंच
💘💘💘
देख लो कोई भी मंच
छिपा होगा छल प्रपंच
स्पर्धा सब बिगड़ गई
सैद्धान्तिक फसल सड़ गई।
स्वार्थ सिद्धि की है परम्परा
भोला जीव बस है डरा डरा
बिन सिद्धान्त बनते समीकरण
मधुर भावनाओं के होते अपहरण।
प्रपंचों ने कब किसे सँवारा है
इसने सोने की चिडि़या को उजाडा़ है
एक वृहद प्राँगण था भारत का
इसने हमारी इस धरा को फाडा़ है।
टूटन की भयावह कितनी है तपन
फिर भी टूटन गैंग संजोती यही सपन
सही काम भी होते निर्माण के
तो भी लगाती अपनी ही अगन।
कथाओं के मंच प्रश्नों से घिर गये
तथाकथित संत नज़रों से गिर गये
अध्यात्मवेदी पर ही मच गये प्रपंच
भावनाओं के हुए इस तरह तीखे विध्वंस।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
विधा कविता
दिनांक 14.10.2019
दिन सोमवार
प्रपंच
💘💘💘
देख लो कोई भी मंच
छिपा होगा छल प्रपंच
स्पर्धा सब बिगड़ गई
सैद्धान्तिक फसल सड़ गई।
स्वार्थ सिद्धि की है परम्परा
भोला जीव बस है डरा डरा
बिन सिद्धान्त बनते समीकरण
मधुर भावनाओं के होते अपहरण।
प्रपंचों ने कब किसे सँवारा है
इसने सोने की चिडि़या को उजाडा़ है
एक वृहद प्राँगण था भारत का
इसने हमारी इस धरा को फाडा़ है।
टूटन की भयावह कितनी है तपन
फिर भी टूटन गैंग संजोती यही सपन
सही काम भी होते निर्माण के
तो भी लगाती अपनी ही अगन।
कथाओं के मंच प्रश्नों से घिर गये
तथाकथित संत नज़रों से गिर गये
अध्यात्मवेदी पर ही मच गये प्रपंच
भावनाओं के हुए इस तरह तीखे विध्वंस।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
विषय -षड्यंत्र
दिनांक 14 -10-2019रच षड्यंत्र अपनों को, नीचा दिखा रहे हैं।
कर अपमानित उन्हें, खुश वो हो रहे हैं ।।
षड्यंत्र रचने वालों को,कोई नहीं भूला रहे हैं।
बरसों बाद भी,कौरव कुयश पा रहे हैं।।
रावण का कुकृत्य, इतिहास दोहरा रहा है।
हर वर्ष उपहास का, पात्र वो बन रहा है ।।
षड्यंत्र रचने वाले, दुख बहुत पा रहे हैं।
नहीं सुख चैन, जीवन नर्क बना रहे हैं ।।
अपना सुख षड्यंत्र रचने में, वह गवाँ रहे हैं ।
कैसे दे दुख ओरों को,षड्यंत्र वो रच रहे हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 14 -10-2019रच षड्यंत्र अपनों को, नीचा दिखा रहे हैं।
कर अपमानित उन्हें, खुश वो हो रहे हैं ।।
षड्यंत्र रचने वालों को,कोई नहीं भूला रहे हैं।
बरसों बाद भी,कौरव कुयश पा रहे हैं।।
रावण का कुकृत्य, इतिहास दोहरा रहा है।
हर वर्ष उपहास का, पात्र वो बन रहा है ।।
षड्यंत्र रचने वाले, दुख बहुत पा रहे हैं।
नहीं सुख चैन, जीवन नर्क बना रहे हैं ।।
अपना सुख षड्यंत्र रचने में, वह गवाँ रहे हैं ।
कैसे दे दुख ओरों को,षड्यंत्र वो रच रहे हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
14/10/2019
विषय-प्रपंच/षड्यंत्र
=============≠===
छल कपट प्रपंच में
लोग आजकल
कुछ ज्यादा ही
लिप्त रहने लगे हैं
प्रत्येक दिमाग मे
षड्यंत्रों के बीज
उगने लगे हैं
षड्यंत्रों की रीत
बड़ी पुरानी है
आदमी आज प्रायः
भस्मासुर बनने लगे हैं
छल प्रपंच में करके
वो कितना कुछ खोने लगे हैं
कि स्वयं से ही दूर होने लगे हैं
हमें घुटन सी होती है
इन दुराचारों से
क्या हम आतंकी हैं जो
भेष बदल घात करने लगे हैं
मन विरक्त हुआ
जग प्रपंच से ऐसा
इस पंक जगत में
न बुझे हिय पिपासा
अविश्वास रूपी विष
हम अनायास ही पीने लगे हैं
बाहर का
अंतहीन कोलाहल देख
अब हम इस प्रपंच से
दूर ही रहने लगे हैं
तब सांसो की माला
गूंथ कर हम
प्रभु के गले का हार
बनने लगे हैं ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
विषय-प्रपंच/षड्यंत्र
=============≠===
छल कपट प्रपंच में
लोग आजकल
कुछ ज्यादा ही
लिप्त रहने लगे हैं
प्रत्येक दिमाग मे
षड्यंत्रों के बीज
उगने लगे हैं
षड्यंत्रों की रीत
बड़ी पुरानी है
आदमी आज प्रायः
भस्मासुर बनने लगे हैं
छल प्रपंच में करके
वो कितना कुछ खोने लगे हैं
कि स्वयं से ही दूर होने लगे हैं
हमें घुटन सी होती है
इन दुराचारों से
क्या हम आतंकी हैं जो
भेष बदल घात करने लगे हैं
मन विरक्त हुआ
जग प्रपंच से ऐसा
इस पंक जगत में
न बुझे हिय पिपासा
अविश्वास रूपी विष
हम अनायास ही पीने लगे हैं
बाहर का
अंतहीन कोलाहल देख
अब हम इस प्रपंच से
दूर ही रहने लगे हैं
तब सांसो की माला
गूंथ कर हम
प्रभु के गले का हार
बनने लगे हैं ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
तिथि 1410/19
विषय प्रपंच
***
मूल अर्थ लुप्त हुआ
नकरात्मकता का सृजन हुआ
नई परिभाषा रच डाली
प्रपंच का प्रपंच हुआ ।
पंच का मूल अर्थ संसार
"प्र" ,पंच को देता विस्तार
क्षिति ,जल,पावक ,गगन समीर
पांच तत्व का ये संसार
और पंचतत्व की काया है ।
"प्र" लगे जब सृष्टि में,अर्थ
अद्भुत अनंत विस्तार हुआ,
नश्वर काया मे प्र जुड़ कर
भौतिकता का विस्तार करे
अधिकता इसकी ,जीवन
का जंजाल और झमेला है
स्वार्थ सिद्धि हेतु लोग
छल का सहारा ले
नित नए प्रपंच रचते हैं
अनर्गल बातों का दुनिया
में प्रचार किये फिरते हैं ।
प्रपंच मूल संसार नहीं
प्रपंच माया लोक हुआ
मूल अर्थ न विस्मृत कर
प्र को और विस्तृत कर ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
विषय प्रपंच
***
मूल अर्थ लुप्त हुआ
नकरात्मकता का सृजन हुआ
नई परिभाषा रच डाली
प्रपंच का प्रपंच हुआ ।
पंच का मूल अर्थ संसार
"प्र" ,पंच को देता विस्तार
क्षिति ,जल,पावक ,गगन समीर
पांच तत्व का ये संसार
और पंचतत्व की काया है ।
"प्र" लगे जब सृष्टि में,अर्थ
अद्भुत अनंत विस्तार हुआ,
नश्वर काया मे प्र जुड़ कर
भौतिकता का विस्तार करे
अधिकता इसकी ,जीवन
का जंजाल और झमेला है
स्वार्थ सिद्धि हेतु लोग
छल का सहारा ले
नित नए प्रपंच रचते हैं
अनर्गल बातों का दुनिया
में प्रचार किये फिरते हैं ।
प्रपंच मूल संसार नहीं
प्रपंच माया लोक हुआ
मूल अर्थ न विस्मृत कर
प्र को और विस्तृत कर ।
स्वरचित
अनिता सुधीर
14/10/2019
"षड़यंत्र/साजिश"
################
मानव क्यों तू षड़यंत्र रचाए
चैन मन का तू वृथा ही लुटाए
बुद्धि-विवेक को तू क्यों खोए
इंसानियत अपनी क्यों भुलाए
धोखाधडी तू क्यों अपनाए
खामखा मान-सम्मान लुटाए
कपटीपन से जो बाज न आए
छल-प्रपंच से भगवान बचाए
मानव क्यों मानवता भूलाए
तुझे शांति क्यों न रास आए
स्वार्थ क्यों सम्मान के आगे
तोड़ते क्यों हो प्रेम के धागे।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"षड़यंत्र/साजिश"
################
मानव क्यों तू षड़यंत्र रचाए
चैन मन का तू वृथा ही लुटाए
बुद्धि-विवेक को तू क्यों खोए
इंसानियत अपनी क्यों भुलाए
धोखाधडी तू क्यों अपनाए
खामखा मान-सम्मान लुटाए
कपटीपन से जो बाज न आए
छल-प्रपंच से भगवान बचाए
मानव क्यों मानवता भूलाए
तुझे शांति क्यों न रास आए
स्वार्थ क्यों सम्मान के आगे
तोड़ते क्यों हो प्रेम के धागे।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
तिथि __14/10/2019/सोमवार
बिषय ___षडयंत्र/प्रपंच
विधा ___काव्य
षडयंत्रों के चक्रव्यूह से,
कैसे प्रभु बच पाऊं मै।
आप दिखाऐं मुझे रास्ते,
तभी इनसे बच पाऊं मैं।
जब से अस्तित्व में आई ,
बनी घाघ ये सारी दुनिया।
यहां प्रपंचों लगा जमावड़ा,
झूठी लगती यारी दुनिया।
संघर्ष सदा चलता रहता है
राजनीति के बडे खिलाड़ी।
समझ नहीं पाऐं हम इसको
हम तो बिल्कुल रहे अनाडी।
गले काट स्पर्धा चल रही
एक-दूसरे को लगे गिराने।
कोई धनबल से मात देता,
कुछ प्रपंचों से लगे सताने।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय जय श्री राम रामजी
1भा. षडयंत्र /प्रपंच-' काव्य '
14/10/2019/सोमवार
बिषय ___षडयंत्र/प्रपंच
विधा ___काव्य
षडयंत्रों के चक्रव्यूह से,
कैसे प्रभु बच पाऊं मै।
आप दिखाऐं मुझे रास्ते,
तभी इनसे बच पाऊं मैं।
जब से अस्तित्व में आई ,
बनी घाघ ये सारी दुनिया।
यहां प्रपंचों लगा जमावड़ा,
झूठी लगती यारी दुनिया।
संघर्ष सदा चलता रहता है
राजनीति के बडे खिलाड़ी।
समझ नहीं पाऐं हम इसको
हम तो बिल्कुल रहे अनाडी।
गले काट स्पर्धा चल रही
एक-दूसरे को लगे गिराने।
कोई धनबल से मात देता,
कुछ प्रपंचों से लगे सताने।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय जय श्री राम रामजी
1भा. षडयंत्र /प्रपंच-' काव्य '
14/10/2019/सोमवार
दिनांक १४/१०/२०१९
शीर्षक-प्रपंच/षड़यंत्र
षड़यंत्र जब हम करते हैं
अपनी ही धुन में रहते हैं
क्यो भूल जाते ऊपरवाला
जवाब देने को बैठे हैं।
ईष्या है षड़यंत्र का मित्र
निर्मल मन हरे सब पीड़
दे विराम कुटिल चालों का
"कर भला तो हो भला।"
षड़यंत्र है अधर्म समान
आधि बढ़ जाये दिन रात
आचार हो विचार के बाद
खर नहीं ,खरा है आप।
जीवन है अनमोल उपहार
अपनी हस्ती बने मिसाल
षड़यंत्र नहीं हो आस पास
प्यार ही प्यार हो सदा पास।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक-प्रपंच/षड़यंत्र
षड़यंत्र जब हम करते हैं
अपनी ही धुन में रहते हैं
क्यो भूल जाते ऊपरवाला
जवाब देने को बैठे हैं।
ईष्या है षड़यंत्र का मित्र
निर्मल मन हरे सब पीड़
दे विराम कुटिल चालों का
"कर भला तो हो भला।"
षड़यंत्र है अधर्म समान
आधि बढ़ जाये दिन रात
आचार हो विचार के बाद
खर नहीं ,खरा है आप।
जीवन है अनमोल उपहार
अपनी हस्ती बने मिसाल
षड़यंत्र नहीं हो आस पास
प्यार ही प्यार हो सदा पास।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
विषय, प्रपंच, षड्यंत्र
1 4,10,2019
षड्यंत्र रचा था कभी चालाक शकुनि ने जब ,
अपनों के हाथों ही घर की मर्यादा बिखर गई ।
जब मति भ्रम से प्रपंच किया उस कपटी ने,
कौरवों के ही सर्वनाश की घड़ी आ गई ।
जब से प्रपंच कर डाला था दासी मंथरा ने ,
संसार में बदनाम तभी से विमाता हो गई।
प्राणों से भी ज्यादा प्यारे थे पुत्र राम कैकयी को,
मंथरा की कुबुद्धि में अपने सुहाग को निगल गई ।
मिल जाते हैं कितने ही उदाहरण ,
अपने आसपास व इतिहासों के पन्नों में ।
कितने नरेश खो दिए सम्मान और जान,
षड्यंत्रकारियों की प्रपंच भरी चालों से ।
कार्यस्थल हो या कोई सामूहिक कार्य ,
घर हो या विद्यालय या फिर कि बैंक ।
षड्यंत्रों का हर तरफ जाल बिछा रहता ,
लग जाती कदम कदम पर ठोकर है ।
शिक्षा ले कर के चलें हम इन बातों से,
षड्यंत्रों से हम दूर रहें और सावधान रहें।
अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए ही ,
षड्यंत्रों को हम निष्क्रिय और नाकाम करें ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
1 4,10,2019
षड्यंत्र रचा था कभी चालाक शकुनि ने जब ,
अपनों के हाथों ही घर की मर्यादा बिखर गई ।
जब मति भ्रम से प्रपंच किया उस कपटी ने,
कौरवों के ही सर्वनाश की घड़ी आ गई ।
जब से प्रपंच कर डाला था दासी मंथरा ने ,
संसार में बदनाम तभी से विमाता हो गई।
प्राणों से भी ज्यादा प्यारे थे पुत्र राम कैकयी को,
मंथरा की कुबुद्धि में अपने सुहाग को निगल गई ।
मिल जाते हैं कितने ही उदाहरण ,
अपने आसपास व इतिहासों के पन्नों में ।
कितने नरेश खो दिए सम्मान और जान,
षड्यंत्रकारियों की प्रपंच भरी चालों से ।
कार्यस्थल हो या कोई सामूहिक कार्य ,
घर हो या विद्यालय या फिर कि बैंक ।
षड्यंत्रों का हर तरफ जाल बिछा रहता ,
लग जाती कदम कदम पर ठोकर है ।
शिक्षा ले कर के चलें हम इन बातों से,
षड्यंत्रों से हम दूर रहें और सावधान रहें।
अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए ही ,
षड्यंत्रों को हम निष्क्रिय और नाकाम करें ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
दिन :- सोमवार
दिनांक :- 14/10/2019
शीर्षक :- प्रपंच/षड़यंत्र
भाव बदले के जब..
पलते अंतर्मन में..
फूटते अंकुर षड़यंत्र के..
स्वतः अंतर्मन में...
छल-कपट सब भेद है इसके...
साम-दाम सब रूप है इसके...
अपने ही अपनों को फांसते है...
सीमा मर्यादा की तब लांघते है..
चलते चाले कुटिल कुबुद्धि से..
भटक जाते जब सद्बुध्दि से...
रचाते नित नए षड़यंत्र..
अपनाते नए-नए तंत्र...
ईर्ष्या-द्वेष जब फूलते-फलते...
फूटते अंकुर तब षड़यंत्र के...
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
दिनांक :- 14/10/2019
शीर्षक :- प्रपंच/षड़यंत्र
भाव बदले के जब..
पलते अंतर्मन में..
फूटते अंकुर षड़यंत्र के..
स्वतः अंतर्मन में...
छल-कपट सब भेद है इसके...
साम-दाम सब रूप है इसके...
अपने ही अपनों को फांसते है...
सीमा मर्यादा की तब लांघते है..
चलते चाले कुटिल कुबुद्धि से..
भटक जाते जब सद्बुध्दि से...
रचाते नित नए षड़यंत्र..
अपनाते नए-नए तंत्र...
ईर्ष्या-द्वेष जब फूलते-फलते...
फूटते अंकुर तब षड़यंत्र के...
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
विषय -षडयंत्र/ प्रपंच
14/10/19
सोमवार
दोहे
आज सभी के हो रहे, धन से पूरे काम ।
जिसकी खातिर हो रहे , अब षडयंत्र तमाम।।
केवल अपना लाभ ही ,देख रहा इंसान ।
रिश्ते -नाते भी यहाँ , धन पर हैं क़ुर्बान ।।
अब तक तो षड्यंत्र थे, राजनीति के नाम।
पर अब तो हर क्षेत्र में, इनके कुत्सित धाम।।
न भोजन में शुद्धता ,न शिक्षा में मान ।
पूजा भी षडयंत्र की , आज बनी पहचान ।।
सच्चाई की आड़ में , सब रचते षड्यंत्र ।
भूल गए वे स्वार्थ में, नीति- निदेशक मन्त्र ।।
मानवता पर हो रहे , षडयंत्रों के वार ।
इसी विषमता का करें, हम कोई उपचार ।।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
14/10/19
सोमवार
दोहे
आज सभी के हो रहे, धन से पूरे काम ।
जिसकी खातिर हो रहे , अब षडयंत्र तमाम।।
केवल अपना लाभ ही ,देख रहा इंसान ।
रिश्ते -नाते भी यहाँ , धन पर हैं क़ुर्बान ।।
अब तक तो षड्यंत्र थे, राजनीति के नाम।
पर अब तो हर क्षेत्र में, इनके कुत्सित धाम।।
न भोजन में शुद्धता ,न शिक्षा में मान ।
पूजा भी षडयंत्र की , आज बनी पहचान ।।
सच्चाई की आड़ में , सब रचते षड्यंत्र ।
भूल गए वे स्वार्थ में, नीति- निदेशक मन्त्र ।।
मानवता पर हो रहे , षडयंत्रों के वार ।
इसी विषमता का करें, हम कोई उपचार ।।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
तिथि__14/10/2019/सोमवार
बिषय__ षडयंत्र /प्रपंच
विधा __ काव्य
इन षडयंत्रों के चक्रव्यूह में
फंस गये हम सबही भगवान।
बडी जालिम प्रभु तेरी दुनिया
अब तुझे बचाना हमें भगवन।
बहुत जोर की चली स्पर्धा
यहां एकदूजे की टांग खिंचाते।
रातदिन चाल शतरंजी चलतीं
क्यों नयी विसातें रोज बिछाते।
हम तो गरीब परिवार से आऐ
यहां राजनीति के बडे खिलाड़ी।
इसमें हम कोई कुछ नहीं जानें
इस संस्कृति में सदा अनाडी।
हरदिन ही महाभारत होता है ,
चक्रव्यूह में कोई भी फंसता है।
अब राजनीति रंडी सी हो गई,
कभी सज्जन नहीं जंचता है।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
बिषय__ षडयंत्र /प्रपंच
विधा __ काव्य
इन षडयंत्रों के चक्रव्यूह में
फंस गये हम सबही भगवान।
बडी जालिम प्रभु तेरी दुनिया
अब तुझे बचाना हमें भगवन।
बहुत जोर की चली स्पर्धा
यहां एकदूजे की टांग खिंचाते।
रातदिन चाल शतरंजी चलतीं
क्यों नयी विसातें रोज बिछाते।
हम तो गरीब परिवार से आऐ
यहां राजनीति के बडे खिलाड़ी।
इसमें हम कोई कुछ नहीं जानें
इस संस्कृति में सदा अनाडी।
हरदिन ही महाभारत होता है ,
चक्रव्यूह में कोई भी फंसता है।
अब राजनीति रंडी सी हो गई,
कभी सज्जन नहीं जंचता है।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
दिनांक-14/10/2019
विषय- षडयंत्र
एक अघोषित युद्ध से
कब तक करोगे जंग।
सत्य को स्वीकार करो
कर न पाओगे सूरज से छल छंद।।
जहर भरा है विष के प्याली में
झूठा नेह देख कर उड़ जाए रंग।
वह कौम का रहबर ढोंगी है
जो रहता है नफरतों के संग।।
यह कैसा षड्यंत्र....................
काबा की मस्जिदें ,काशी के शिवाले
लुट गए मंदिरों के बजते शंख।।
हर पल लुटती गीता ,हर पल कुरान
चैनो अमन की गली है अब तंग।
जहर का इलाज खोजते जहरीले
तनहाई राम रहीम की है मस्त मलंग
यह कैसा षड्यंत्र......................
गरल प्रेम से मिले तो पी लो
ना रखो किसी से गमों रंज।।
जब रूठ गये कबीर नानक के छंद
सृजन करने उतरेंगे
कविवर -भाव के मोती के मुक्त कंठ..........
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
विषय- षडयंत्र
एक अघोषित युद्ध से
कब तक करोगे जंग।
सत्य को स्वीकार करो
कर न पाओगे सूरज से छल छंद।।
जहर भरा है विष के प्याली में
झूठा नेह देख कर उड़ जाए रंग।
वह कौम का रहबर ढोंगी है
जो रहता है नफरतों के संग।।
यह कैसा षड्यंत्र....................
काबा की मस्जिदें ,काशी के शिवाले
लुट गए मंदिरों के बजते शंख।।
हर पल लुटती गीता ,हर पल कुरान
चैनो अमन की गली है अब तंग।
जहर का इलाज खोजते जहरीले
तनहाई राम रहीम की है मस्त मलंग
यह कैसा षड्यंत्र......................
गरल प्रेम से मिले तो पी लो
ना रखो किसी से गमों रंज।।
जब रूठ गये कबीर नानक के छंद
सृजन करने उतरेंगे
कविवर -भाव के मोती के मुक्त कंठ..........
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज
दिनांक-14/10/2019
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय:-"षड़यंत्र"
(1)
छल, प्रपंच
कलियुग का मंत्र
ॐ षड़यंत्र
(2)
आतंक जेब
षड़यंत्र खरीदे
नापाक देश
(3)
रिश्ते गारत
षड़यंत्र कराये
महाभारत
(4)
भीतरघाती
रचते षड़यंत्र
देश की छाती
(5)
स्वार्थ न छूटा
मानव षड़यंत्र
धरा को लूटा
स्वरचित
ऋतुराज दवे
विधा-हाइकु (5/7/5)
विषय:-"षड़यंत्र"
(1)
छल, प्रपंच
कलियुग का मंत्र
ॐ षड़यंत्र
(2)
आतंक जेब
षड़यंत्र खरीदे
नापाक देश
(3)
रिश्ते गारत
षड़यंत्र कराये
महाभारत
(4)
भीतरघाती
रचते षड़यंत्र
देश की छाती
(5)
स्वार्थ न छूटा
मानव षड़यंत्र
धरा को लूटा
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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