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ब्लॉग संख्या :-565
विधा काव्य
13 नवम्बर 2019,बुधवार
अनल अनिल भू गगन तोय
खूबसूरत प्रकृति कण कण।
शस्य श्यामल भव्य वसुंधरा
अति हर्षित जीवन जन जन।
सुबह शाम का दृश्य अद्भुत
उदित अस्त रवि भास्कर।
स्वर्णिम रश्मियां नभ में फैले
खूबसूरत विस्फारित दिवाकर।
झर झर निर्झर अति नाद है
खग कुल करते प्रिय संवाद।
खूबसूरत हिम गिरि शौभित
भक्ति तन्मय सन्तो का नाद।
परम् भाग्यशाली हैं मित्रों
जन्म मिला खूबसूरत भारत।
ममता दया करुणा सागर
शीश झुकाते हम हो आर्त्त।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
13 नवम्बर 2019,बुधवार
अनल अनिल भू गगन तोय
खूबसूरत प्रकृति कण कण।
शस्य श्यामल भव्य वसुंधरा
अति हर्षित जीवन जन जन।
सुबह शाम का दृश्य अद्भुत
उदित अस्त रवि भास्कर।
स्वर्णिम रश्मियां नभ में फैले
खूबसूरत विस्फारित दिवाकर।
झर झर निर्झर अति नाद है
खग कुल करते प्रिय संवाद।
खूबसूरत हिम गिरि शौभित
भक्ति तन्मय सन्तो का नाद।
परम् भाग्यशाली हैं मित्रों
जन्म मिला खूबसूरत भारत।
ममता दया करुणा सागर
शीश झुकाते हम हो आर्त्त।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
प्रथम प्रस्तुति
वो काजल की कोर
वो साँझे वो भोर ।
अब भी लगे बुला रही
हो ज्यों अपनी ओर ।
दीवाने दिल का हाल
गया नही वो जमाल ।
वही शराबी आँखें
वही मस्तानी चाल ।
हो जैसे खिला चमन
हो जैसे खुला गगन ।
दिल की पहली अँगड़ाई
वो सुन्दर-सुन्दर मन ।
दिल में बसकर रह गयी
रूह उस संग बह गयी ।
भटकती रूह की उड़ान
'शिवम' क्या-क्या न कह गयी ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 13/11/2019
वो काजल की कोर
वो साँझे वो भोर ।
अब भी लगे बुला रही
हो ज्यों अपनी ओर ।
दीवाने दिल का हाल
गया नही वो जमाल ।
वही शराबी आँखें
वही मस्तानी चाल ।
हो जैसे खिला चमन
हो जैसे खुला गगन ।
दिल की पहली अँगड़ाई
वो सुन्दर-सुन्दर मन ।
दिल में बसकर रह गयी
रूह उस संग बह गयी ।
भटकती रूह की उड़ान
'शिवम' क्या-क्या न कह गयी ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 13/11/2019
विधा-मुक्तक
विषय-खूबसूरत/हसीन
बीत जाती रात सारी , सिर्फ तेरी याद में
मौत भी आई तो न, ले जा सकी चुप-चाप में
बीत जाएगी उमर , अब न भुलायेंगे तुम्हें
लम्हा लम्हा अब कटेगी जिंदगी फरियाद में
है हसीं हर पल सुहाना,खूबसूरत अब जहां
दूर हमसे क्यों हुए तुम ,छुप गए हो अब कहाँ
सात पर्दों से भी तुमको ढूंढ कर ले आयेंगे
पहुँच जाएंगे वहीं हम,जाओगे तुम अब जहाँ
ये हसीं दुनिया है,अब मिलकर के देखेंगे सनम
मौत भी आई तो , फिर से यूँ ही लेंगे हम जनम
अब नहीं दीवार कोई , राह का रोड़ा बनेगी
मार भी दे जग हमें, फिर जी उठेंगे हम सनम
खूबसूरत याद तेरी , साथ ले हम
जायेंगे
फलक पे बन के सितारा , हम नजर आ जाएंगे
दूर से देखेंगे तुमको , याद कर लेना कभी
कुछ हसीं लम्हें तुम्हारे , पास छोड़े
जायेंगे
सरिता गर्ग
विषय-खूबसूरत/हसीन
बीत जाती रात सारी , सिर्फ तेरी याद में
मौत भी आई तो न, ले जा सकी चुप-चाप में
बीत जाएगी उमर , अब न भुलायेंगे तुम्हें
लम्हा लम्हा अब कटेगी जिंदगी फरियाद में
है हसीं हर पल सुहाना,खूबसूरत अब जहां
दूर हमसे क्यों हुए तुम ,छुप गए हो अब कहाँ
सात पर्दों से भी तुमको ढूंढ कर ले आयेंगे
पहुँच जाएंगे वहीं हम,जाओगे तुम अब जहाँ
ये हसीं दुनिया है,अब मिलकर के देखेंगे सनम
मौत भी आई तो , फिर से यूँ ही लेंगे हम जनम
अब नहीं दीवार कोई , राह का रोड़ा बनेगी
मार भी दे जग हमें, फिर जी उठेंगे हम सनम
खूबसूरत याद तेरी , साथ ले हम
जायेंगे
फलक पे बन के सितारा , हम नजर आ जाएंगे
दूर से देखेंगे तुमको , याद कर लेना कभी
कुछ हसीं लम्हें तुम्हारे , पास छोड़े
जायेंगे
सरिता गर्ग
हसीन/खूबसूरत
नमन मंच भावों के मोती। गुरूजनों, मित्रों।
कविता
कितनी खूबसूरत!
प्रकृति की सुंदरता।
हरे, हरे पेड़ों की कतारें।
मन को बहुत हीं लुभाये।
कल-कल करती नदियां हैं बहती।
सुरमई संगीत सुनाये।
जी करता है बैठी रहूं यहां।
पूरे दिन चाहे बीत जाये।
सागर की लहरें।
करती है गर्जन।
जैसे कोई शेर दहाड़ मारे।
लेकिन सागर में तैरती मछलियां।
लाल,पीली, सुनहरी।
रंग बिरंगी मछलियां।
नैनों में शीतलता लाये।
प्रकृति की सुंदरता का।
कोई नहीं है अन्त।
कितना हम वर्णन सुनायें।
फूलों की खुशबू से महक रहा उपवन।
सुन्दरता इनकी खींच रहा है मन।
गुनगुन करते भौंरे है आते।
फूलों के पराग चुराकर ले जाते।
सभी ओर छाई हुई है सुन्दरता।
कितना बखान सुनायें।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन मंच भावों के मोती। गुरूजनों, मित्रों।
कविता
कितनी खूबसूरत!
प्रकृति की सुंदरता।
हरे, हरे पेड़ों की कतारें।
मन को बहुत हीं लुभाये।
कल-कल करती नदियां हैं बहती।
सुरमई संगीत सुनाये।
जी करता है बैठी रहूं यहां।
पूरे दिन चाहे बीत जाये।
सागर की लहरें।
करती है गर्जन।
जैसे कोई शेर दहाड़ मारे।
लेकिन सागर में तैरती मछलियां।
लाल,पीली, सुनहरी।
रंग बिरंगी मछलियां।
नैनों में शीतलता लाये।
प्रकृति की सुंदरता का।
कोई नहीं है अन्त।
कितना हम वर्णन सुनायें।
फूलों की खुशबू से महक रहा उपवन।
सुन्दरता इनकी खींच रहा है मन।
गुनगुन करते भौंरे है आते।
फूलों के पराग चुराकर ले जाते।
सभी ओर छाई हुई है सुन्दरता।
कितना बखान सुनायें।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन भावों के मोती
आज का विषय, हसीन, खूबसूरत,
दिन , बुधवार,
दिनांक , 1 3,11,2019,
कहो खूबसूरत तन हो या मन,
यह आज जागा प्रश्न है ।
आँखें सजल हों खिल उठे तन,
क्या कहीं देखा चमन है ।
सुदंर प्रकृति ये हसीन नदियाँ,
नहीं मलिन मन में रहे हैं।
लगता खूबसूरत चाँद कितना,
पर भूखे को तो न लगे है ।
मन ही जन्म दाता सौंदर्य का,
हसीन सब इससे लगे है ।
तब वातावरण बने खूबसूरत ,
संतोष जो मन में रहे है ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
आज का विषय, हसीन, खूबसूरत,
दिन , बुधवार,
दिनांक , 1 3,11,2019,
कहो खूबसूरत तन हो या मन,
यह आज जागा प्रश्न है ।
आँखें सजल हों खिल उठे तन,
क्या कहीं देखा चमन है ।
सुदंर प्रकृति ये हसीन नदियाँ,
नहीं मलिन मन में रहे हैं।
लगता खूबसूरत चाँद कितना,
पर भूखे को तो न लगे है ।
मन ही जन्म दाता सौंदर्य का,
हसीन सब इससे लगे है ।
तब वातावरण बने खूबसूरत ,
संतोष जो मन में रहे है ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
नमन मंच भावो के मोती
स्वरचित्-विषय खुबसुरत
आँखे सुंदर हो न हो,सबकोआँखो मे सहन,समझ,लज्जा हो।
ललाट सुंदर। ना हो भले,
सभी का सम्मान कर सके।
आप खुबसुरत हो न हो,
हर असहाय,तथा बुजूर्ग बच्चो ,
की सहाय करने वाला मन हो।
तन सुंदर हो न हो.बस मन निष्ठूर ना हो। वंदना पालीवाल
स्वरचित्-विषय खुबसुरत
आँखे सुंदर हो न हो,सबकोआँखो मे सहन,समझ,लज्जा हो।
ललाट सुंदर। ना हो भले,
सभी का सम्मान कर सके।
आप खुबसुरत हो न हो,
हर असहाय,तथा बुजूर्ग बच्चो ,
की सहाय करने वाला मन हो।
तन सुंदर हो न हो.बस मन निष्ठूर ना हो। वंदना पालीवाल
शीर्षक- हसीन /खुबसूरत उर्दू शब्द।
सौन्दर्य/सुन्दरता हिन्दी शब्द।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
वह कैसा सौन्दर्य कैसी सौन्दर्यता।
कृत्रिम लेप ओष्ठराग नेत्रपलकभ्रू।।
नखकेश अपवित्र दूषित मिश्रण रंगे।
न मेहदी केश न पाटलपंखुडी नख।
हाय अमोनिया केश रंगे रोग जड़।
पेंट नख रंगे भोजन साथ उदर भरे।
हाय अफसोस बहुत है इक दृश्य।
माताऐ बहन और शिशु का दुलार।
वनावटी बस ठगावटी होता जा रहा।
बहनों अतीव सौन्दर्य गोद मे दुलारा।
बस हाथ बोतल दुग्ध लिए प्रसन्न।
हाय यह कैसा सौन्दर्य संवारना।
कैसा यह मातृत्व सुन्दरता प्रकृति।
पैकिंग से सजे भोजन प्रसाद शोभा।
हर घर घर का स्वादु बने रोग जड़।
प्रकृति सौन्दर्यता गयी मनोभावनी।
रासायनिकी खुबसूरती छायी मनोहारणी।
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स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा
सौन्दर्य/सुन्दरता हिन्दी शब्द।
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वह कैसा सौन्दर्य कैसी सौन्दर्यता।
कृत्रिम लेप ओष्ठराग नेत्रपलकभ्रू।।
नखकेश अपवित्र दूषित मिश्रण रंगे।
न मेहदी केश न पाटलपंखुडी नख।
हाय अमोनिया केश रंगे रोग जड़।
पेंट नख रंगे भोजन साथ उदर भरे।
हाय अफसोस बहुत है इक दृश्य।
माताऐ बहन और शिशु का दुलार।
वनावटी बस ठगावटी होता जा रहा।
बहनों अतीव सौन्दर्य गोद मे दुलारा।
बस हाथ बोतल दुग्ध लिए प्रसन्न।
हाय यह कैसा सौन्दर्य संवारना।
कैसा यह मातृत्व सुन्दरता प्रकृति।
पैकिंग से सजे भोजन प्रसाद शोभा।
हर घर घर का स्वादु बने रोग जड़।
प्रकृति सौन्दर्यता गयी मनोभावनी।
रासायनिकी खुबसूरती छायी मनोहारणी।
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स्वरचित
राजेन्द्र कुमार अमरा
विषय -हसीन/ खूबसूरत
दिनांक 13-11-2019तेरी खूबसूरती में आ,चार चांद लगाते हैं।
नजर ठहरे सबकी,इतना तुम्हें सजाते हैं ।।
तुम्हारी नशीली आंखें,काजल लगाते हैं ।
जहां की नजरों से,तुम्हें ऐसे बचाते हैं।।
करा श्रृंगार सारे,ओढ़नी सर ओढाते हैं।
खूबसूरती को तुम्हारे,पर्दे में छुपाते हैं ।।
लोगों की कातिल नजरों से,ऐसे बचाते हैं।
सरेआम घर इज्जत,नहीं किया करते हैं।।
संभल चला करो,दीवाने मदहोश होते हैं ।
परी उतरी आसमा से,यही कहा करते हैं।।
खुशनसीब होते हैं वो, सपने पूरे होते हैं ।
हुस्न तारीफ सिर्फ,किस्मत वाले पाते हैं ।।
तेरी खूबसूरती पर हम,किताब लिखते हैं।
अपनी जान को,इस तरह अमर करते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 13-11-2019तेरी खूबसूरती में आ,चार चांद लगाते हैं।
नजर ठहरे सबकी,इतना तुम्हें सजाते हैं ।।
तुम्हारी नशीली आंखें,काजल लगाते हैं ।
जहां की नजरों से,तुम्हें ऐसे बचाते हैं।।
करा श्रृंगार सारे,ओढ़नी सर ओढाते हैं।
खूबसूरती को तुम्हारे,पर्दे में छुपाते हैं ।।
लोगों की कातिल नजरों से,ऐसे बचाते हैं।
सरेआम घर इज्जत,नहीं किया करते हैं।।
संभल चला करो,दीवाने मदहोश होते हैं ।
परी उतरी आसमा से,यही कहा करते हैं।।
खुशनसीब होते हैं वो, सपने पूरे होते हैं ।
हुस्न तारीफ सिर्फ,किस्मत वाले पाते हैं ।।
तेरी खूबसूरती पर हम,किताब लिखते हैं।
अपनी जान को,इस तरह अमर करते हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
13/11/2019
"हसीन/खूबसूरत"
छंदमुक्त
################
वो शाम बड़ी हसीन थी
वहाँ नजारे भी खूबसूरत थे
नजर के सामने जो तुम थे
मुझको मिल रही खुशी थी ।
वो मुस्कान खूबसूरत थी
तेरे होठों पे जो दिखी थी
खूबसूरती उभर आई थी
अपनी आँखों में बसाई थी।
वो सपने बड़े हसीन थे
सपनों में तुम आए थे
खूबसूरत से ख्वाब थे
बड़ी नशीली वो रात थी।
वो झिलमिलाती रात थी
चाँदनी बड़ी ही हसीन थी
सितारों की बारात थी......
खूबसूरत गगन का चाँद था।
वो कली बड़ी खूबसूरत थी
भँवरे को देख खिल रही थी
खूबसूरत फूल बन गई थी
मिल गई उसे नव जिंदगी थी।
वो खूबसूरत सा एहसास था
दिल में जो लगी अगन थी
रुत भी बड़ी ही हसीन थी....
सावन की हो रही फुहार थी।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"हसीन/खूबसूरत"
छंदमुक्त
################
वो शाम बड़ी हसीन थी
वहाँ नजारे भी खूबसूरत थे
नजर के सामने जो तुम थे
मुझको मिल रही खुशी थी ।
वो मुस्कान खूबसूरत थी
तेरे होठों पे जो दिखी थी
खूबसूरती उभर आई थी
अपनी आँखों में बसाई थी।
वो सपने बड़े हसीन थे
सपनों में तुम आए थे
खूबसूरत से ख्वाब थे
बड़ी नशीली वो रात थी।
वो झिलमिलाती रात थी
चाँदनी बड़ी ही हसीन थी
सितारों की बारात थी......
खूबसूरत गगन का चाँद था।
वो कली बड़ी खूबसूरत थी
भँवरे को देख खिल रही थी
खूबसूरत फूल बन गई थी
मिल गई उसे नव जिंदगी थी।
वो खूबसूरत सा एहसास था
दिल में जो लगी अगन थी
रुत भी बड़ी ही हसीन थी....
सावन की हो रही फुहार थी।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
13/11/2019
"हसीन/खूबसूरत"
छंदमुक्त
###################
भूखे को भरपेट भोजन कराओ
तृप्त आत्मा खूबसूरत लगे।
लाचार औ बेसहारा का सहारा बनों
निगाहों में खूबसूरती झलके।
किसी के दर्द की दवा बनो..
वो खुशी बहुत खूबसूरत है।
किसी के लड़खड़ाते कदम थाम लो
क्या खूबसूरत वो दृढ़ता है..।
भटके राही का हमराह बनकर देखो
खूबसूरत वो अपनापन लगे।
मासूम के साथ वक्त गुजार कर देखो
निश्छल मन कितना खूबसूरत है।
जिंदगी बड़ी हसीन होती है
गर किसी के काम आ सकें।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।
"हसीन/खूबसूरत"
छंदमुक्त
###################
भूखे को भरपेट भोजन कराओ
तृप्त आत्मा खूबसूरत लगे।
लाचार औ बेसहारा का सहारा बनों
निगाहों में खूबसूरती झलके।
किसी के दर्द की दवा बनो..
वो खुशी बहुत खूबसूरत है।
किसी के लड़खड़ाते कदम थाम लो
क्या खूबसूरत वो दृढ़ता है..।
भटके राही का हमराह बनकर देखो
खूबसूरत वो अपनापन लगे।
मासूम के साथ वक्त गुजार कर देखो
निश्छल मन कितना खूबसूरत है।
जिंदगी बड़ी हसीन होती है
गर किसी के काम आ सकें।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।
13/11/2019
बिषय,,हसीन,, खूबसूरत
खूबसूरत वादियां कितना लुभा रही हैं
दिल में हसीन सपने पल पल दिखा रही हैं
लहलहाते खेतों में शबनम की बूंदें
मोतियों की माला सी सजा रही हैं
. माँ नर्मदा का जल काँच सा चमकता है
बन दूधधारा लहरें नागिन सी बल खा रही हैं
लाखों हजारों प्राणी डुबकी लगा रहे हैं
रेवा मैया सबको गले लगा रही हैं
निर्मल जलधारा लगती बहुत सुहानी
चलते चलो वो हमको समझा रही हैं
ठहर गए तो फिर कभी चल न पाएंगे
चलना ही जिंदगी है चलती ही जा रही हैं
सौंदर्य की देवी लगतीं हैं खूबसूरत
वो रुप लावण्य चहुंओर बिखरा रही हैं
ऐसे प्राकृतिक रूप पर कौन न हो फिदा
मनमोहक छबि को माँ फहरा रही हैं
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
बिषय,,हसीन,, खूबसूरत
खूबसूरत वादियां कितना लुभा रही हैं
दिल में हसीन सपने पल पल दिखा रही हैं
लहलहाते खेतों में शबनम की बूंदें
मोतियों की माला सी सजा रही हैं
. माँ नर्मदा का जल काँच सा चमकता है
बन दूधधारा लहरें नागिन सी बल खा रही हैं
लाखों हजारों प्राणी डुबकी लगा रहे हैं
रेवा मैया सबको गले लगा रही हैं
निर्मल जलधारा लगती बहुत सुहानी
चलते चलो वो हमको समझा रही हैं
ठहर गए तो फिर कभी चल न पाएंगे
चलना ही जिंदगी है चलती ही जा रही हैं
सौंदर्य की देवी लगतीं हैं खूबसूरत
वो रुप लावण्य चहुंओर बिखरा रही हैं
ऐसे प्राकृतिक रूप पर कौन न हो फिदा
मनमोहक छबि को माँ फहरा रही हैं
स्वरचित,, सुषमा, ब्यौहार
13/11/19
विषय- ख़ूबसूरत
एक गजल ख़ूबसूरत बना दूं तो कोई बात हो,
फूल आसमानों में खिला दूं तो कोई बात हो।
हवाओं में बहका - बहका सा अंदाज है ,
एक गीत गुनगुना दो तो कोई बात हो।
माना कमसिन हो मासूम हो खूबसूरत हो ,
सितारे आंचल में सजा दूं तो कोई बात हो।
झरने सी रवानी है आपकी पायल में ,
मेरे आंगन में उतर आए तो कोई बात हो।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
विषय- ख़ूबसूरत
एक गजल ख़ूबसूरत बना दूं तो कोई बात हो,
फूल आसमानों में खिला दूं तो कोई बात हो।
हवाओं में बहका - बहका सा अंदाज है ,
एक गीत गुनगुना दो तो कोई बात हो।
माना कमसिन हो मासूम हो खूबसूरत हो ,
सितारे आंचल में सजा दूं तो कोई बात हो।
झरने सी रवानी है आपकी पायल में ,
मेरे आंगन में उतर आए तो कोई बात हो।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
शीर्षक खूबसूरत /हसीन
13/11/2019
खूबसूरत कौन??
**************
हेमलता मिश्र मानवी नागपुर
चेहरा एक दर्पण दमकता बस है जिसमें अंतर्मन
यही है खूबसूरती का आनन।।खूबसूरत है वह चेहरा आनन।। १।।
जिस दिल अंतर्मन में धड़कता देश समाज विश्व का नमन और
सर्वे भवंतु सुखिन। ।खूबसूरत है वह अंतर्मन ।।२।।
खूबसूरत है भावना
जिसमें हिलोरें लेते हैं
भाव विभाव अनुभाव
राग विराग अनुराग
एकता अखंडता की कामना।। खूबसूरत है वह भावना ।।३।।
13/11/2019
खूबसूरत कौन??
**************
हेमलता मिश्र मानवी नागपुर
चेहरा एक दर्पण दमकता बस है जिसमें अंतर्मन
यही है खूबसूरती का आनन।।खूबसूरत है वह चेहरा आनन।। १।।
जिस दिल अंतर्मन में धड़कता देश समाज विश्व का नमन और
सर्वे भवंतु सुखिन। ।खूबसूरत है वह अंतर्मन ।।२।।
खूबसूरत है भावना
जिसमें हिलोरें लेते हैं
भाव विभाव अनुभाव
राग विराग अनुराग
एकता अखंडता की कामना।। खूबसूरत है वह भावना ।।३।।
विषय_हसीन/खूबसूरत |
जहां कण कण मे समाया स्वर्णिम संदेश |
धरा शस्य श्यायला पर्वत अपार हे छुपे रत्न |
कहते सागर खारा मूंगे मोती ,धैर्य की गहराई सहनशीलता का प्रतिबिम्ब |
उत्तर मे शोभित स्वर्णिम मुकुट ,
दक्षिण मे पाँव पखारे सागर |
पूरब पश्चिम की शोभा न्यारी |
इतना खूबरत हसीन वासियो सा अन्य देश नही |
इतना विशाल खूबसूरत दिल हे
आऐ कई विदेशी हो खूबसूरती आकर्षित वह खूबसूरत देश भारत |
वेदो की वाणी ,पुराणौ मे समाया गहन ज्ञान |
अवतरित हुऐ देव यहां ओर खूबसूरती से भर गये |
हसीन ख्वाब मर्यादा कर्म ज्ञान विज्ञान के दे गये
जितना गहराई मे जाते खूबसूरत ज्ञान विज्ञान अधिक पाते |एक खूबसूरत गुलशन हे हिंदुस्तान |
रंग बिरंगे फूल इस गुलशन मे |
एक हो रहते अतंरमन खूबसूरत लोगो का |
आज स्वर्णिम खूबसूरत देश भारत |
गुणगान करते विश्व मे सभी कर नमनशीश झुकाते |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
जहां कण कण मे समाया स्वर्णिम संदेश |
धरा शस्य श्यायला पर्वत अपार हे छुपे रत्न |
कहते सागर खारा मूंगे मोती ,धैर्य की गहराई सहनशीलता का प्रतिबिम्ब |
उत्तर मे शोभित स्वर्णिम मुकुट ,
दक्षिण मे पाँव पखारे सागर |
पूरब पश्चिम की शोभा न्यारी |
इतना खूबरत हसीन वासियो सा अन्य देश नही |
इतना विशाल खूबसूरत दिल हे
आऐ कई विदेशी हो खूबसूरती आकर्षित वह खूबसूरत देश भारत |
वेदो की वाणी ,पुराणौ मे समाया गहन ज्ञान |
अवतरित हुऐ देव यहां ओर खूबसूरती से भर गये |
हसीन ख्वाब मर्यादा कर्म ज्ञान विज्ञान के दे गये
जितना गहराई मे जाते खूबसूरत ज्ञान विज्ञान अधिक पाते |एक खूबसूरत गुलशन हे हिंदुस्तान |
रंग बिरंगे फूल इस गुलशन मे |
एक हो रहते अतंरमन खूबसूरत लोगो का |
आज स्वर्णिम खूबसूरत देश भारत |
गुणगान करते विश्व मे सभी कर नमनशीश झुकाते |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
🌹भावों के मोती🌹
"हसीन/खूबसूरत"
13/11/2019
*************
काश! मुरझाया पुष्प न होती
गुलाब सी कोमल हसीन होती
वो भी,प्रभु चरणों मे गर्वित होती।
काश! रँग रूप से स्याहा न होती
नैन - नक्श से पाकीजा होती
वो भी,पिया की बाहों का हार होती।
काश! गरीब की कोख से जन्म न लेती
हसीन महल की राजकुमारी होती
वो भी,रँगीन स्वप्न हज़ारों सजाती।
काश! गंवार,अनपढ़ न होती
कागज़ कलम हाथों में होती
वो भी,हसीन ख़्वाबों के किस्से हजार लिखती।
काश! भोर की शीतल पवन होती
ओस की चादर से शरमाई होती
वो भी,मुरझाए तन को शीतलता देती।
काश! काश! ऐसा होता
चहुं ओर मंगल ही मंगल होता
झूठ,फरेब की जलेबी न बनती
अहिंसा परमोधर्म पर व्यक्तित्व टिका होता
सत्यमेव जयते का गुंजन होता
मात पिता के चरणों मे संसार होता
यकीनन,
हसीन हर पल वो जिंदगी का होता।।
स्वरचित,वीणा शर्मा वशिष्ठ।
"हसीन/खूबसूरत"
13/11/2019
*************
काश! मुरझाया पुष्प न होती
गुलाब सी कोमल हसीन होती
वो भी,प्रभु चरणों मे गर्वित होती।
काश! रँग रूप से स्याहा न होती
नैन - नक्श से पाकीजा होती
वो भी,पिया की बाहों का हार होती।
काश! गरीब की कोख से जन्म न लेती
हसीन महल की राजकुमारी होती
वो भी,रँगीन स्वप्न हज़ारों सजाती।
काश! गंवार,अनपढ़ न होती
कागज़ कलम हाथों में होती
वो भी,हसीन ख़्वाबों के किस्से हजार लिखती।
काश! भोर की शीतल पवन होती
ओस की चादर से शरमाई होती
वो भी,मुरझाए तन को शीतलता देती।
काश! काश! ऐसा होता
चहुं ओर मंगल ही मंगल होता
झूठ,फरेब की जलेबी न बनती
अहिंसा परमोधर्म पर व्यक्तित्व टिका होता
सत्यमेव जयते का गुंजन होता
मात पिता के चरणों मे संसार होता
यकीनन,
हसीन हर पल वो जिंदगी का होता।।
स्वरचित,वीणा शर्मा वशिष्ठ।
13/11/2019
विषय-हसीन/खूबसूरत
---------------------------------
प्रकृति के हसीन नज़ारे
बाहें फैला के पुकारें
कही धूप कहीं छाया
कहीं बारिश तो कहीं
उसके हर रंग निराले
खूबसूरत वादियां पुकारें
कहीं उतंग पर्वत शान से
प्रहरी बने खड़े हैं
कहीं गहन वादियों में
प्रतिध्वनित सदायें पुकारें
कल कल करती नदियां
मधुर संगीत सुना रही हैं
दिल को अति लुभा रही है..
कहीं झरनों की झन झन झंकारें
कुदरत खूबसूरत संदेश देती
स्वयं को जानने का आदेश देती
हो जाएं निज के प्रति जाग्रत
तब हसीन होते हैं सभी नज़ारे
कर्मो का हिसाब यहीं होता
सबक लेना है हमें इनसे ही
जीवन खूबसूरत तभी है दिखता
ईश्वरमय हो जाएं जो सर्व को स्वीकारें ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
विषय-हसीन/खूबसूरत
---------------------------------
प्रकृति के हसीन नज़ारे
बाहें फैला के पुकारें
कही धूप कहीं छाया
कहीं बारिश तो कहीं
उसके हर रंग निराले
खूबसूरत वादियां पुकारें
कहीं उतंग पर्वत शान से
प्रहरी बने खड़े हैं
कहीं गहन वादियों में
प्रतिध्वनित सदायें पुकारें
कल कल करती नदियां
मधुर संगीत सुना रही हैं
दिल को अति लुभा रही है..
कहीं झरनों की झन झन झंकारें
कुदरत खूबसूरत संदेश देती
स्वयं को जानने का आदेश देती
हो जाएं निज के प्रति जाग्रत
तब हसीन होते हैं सभी नज़ारे
कर्मो का हिसाब यहीं होता
सबक लेना है हमें इनसे ही
जीवन खूबसूरत तभी है दिखता
ईश्वरमय हो जाएं जो सर्व को स्वीकारें ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
दिनांक- 13/11/2019
शीर्षक- हसीन/खूबसूरत
विधा- छंदमुक्त कविता
******************
ये हसीन वादियां,ये खूबसूरत समां,
इससे बेहतर नहीं है कुछ यहां,
नदियों की ये कल-कल आवाज,
जैसे सारंगी से निकली हो साज |
प्रकृति जब करती ऐसा श्रृंगार ,
जैसे कोई मृगनयनी हसीन नार,
सन-सन जब चलती है पुरवाई,
घावों पर लग जाती जैसे दवाई |
प्रकृति की छटा सतरंगी बन गई,
इंद्रधनुषी रेखा नभ में खिंच गई,
फूल-फुलवारी से धरा सज गई,
हरियाली की चादर सी बिछ गई |
इस खूबसूरती को बरकरार रखें,
पेड़ों को लगाने का संकल्प ले लें,
पर्यावरण को हम सुरक्षित कर लें,
काम ये नेक है आज से ही कर लें |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
शीर्षक- हसीन/खूबसूरत
विधा- छंदमुक्त कविता
******************
ये हसीन वादियां,ये खूबसूरत समां,
इससे बेहतर नहीं है कुछ यहां,
नदियों की ये कल-कल आवाज,
जैसे सारंगी से निकली हो साज |
प्रकृति जब करती ऐसा श्रृंगार ,
जैसे कोई मृगनयनी हसीन नार,
सन-सन जब चलती है पुरवाई,
घावों पर लग जाती जैसे दवाई |
प्रकृति की छटा सतरंगी बन गई,
इंद्रधनुषी रेखा नभ में खिंच गई,
फूल-फुलवारी से धरा सज गई,
हरियाली की चादर सी बिछ गई |
इस खूबसूरती को बरकरार रखें,
पेड़ों को लगाने का संकल्प ले लें,
पर्यावरण को हम सुरक्षित कर लें,
काम ये नेक है आज से ही कर लें |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
13/11/2019
विषय- खूबसूरत
दिल समुंदर है हमारा ये बताया आपने,
है ख़िजा भी खूबसूरत गीत गाया आपने।
नेमतें मिलती उन्हें हैं जिनके दम से है सबा,
आफताबों को जगा कर भी उगाया आपने।
चाहतें नेमत मिलेंगी सोचकर हम खुश हुए,
हमनवाई का भरोसा भी दिलाया आपने।
तीरगी भी मिट गई है आपके दीदार से,
आसमां भी झुक गया है क्या सिखाया आपने।
नेमतें चूमें कदम बस आप के अल्फाज हों,
फिर सनम नगमात में खुद को ढलाया आपने।
ख़िजा- पतझड़
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
विषय- खूबसूरत
दिल समुंदर है हमारा ये बताया आपने,
है ख़िजा भी खूबसूरत गीत गाया आपने।
नेमतें मिलती उन्हें हैं जिनके दम से है सबा,
आफताबों को जगा कर भी उगाया आपने।
चाहतें नेमत मिलेंगी सोचकर हम खुश हुए,
हमनवाई का भरोसा भी दिलाया आपने।
तीरगी भी मिट गई है आपके दीदार से,
आसमां भी झुक गया है क्या सिखाया आपने।
नेमतें चूमें कदम बस आप के अल्फाज हों,
फिर सनम नगमात में खुद को ढलाया आपने।
ख़िजा- पतझड़
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
"भावों के मोती"
दिनाँक-13/11/2019
विषय-हसीन/खूबसूरत
तू सबसे हसीन
खूबसूरत रचना
है तू मनुष्य
ईश्वर की प्यारी
संरचना ।
सच्चाई, निश्छलता, निष्कपटता, पवित्रता जैसे गुणों की नेमत तुझमें ।
जब तू नारी रूप
माँ, बेटी ,बहन,पत्नी
स्वरूप है।
वात्सल्य, ममता ,स्नेह व दया से परिपूर्ण है ।
जब नर रूप पाये तू पिता,बेटा, भाई, पति का स्वरूप है ।
सुरक्षा, आत्मविश्वास, दयालुता देता अपनो को उपहार है ।
तू है एक जीव पृथ्वी पर सभी जीवों से महान ।
तू ही सृजनकर्ता
इस विश्व मे है ।
न जाने क्यों तू बुद्धि भृष्ट कर लेता।
होकर कठोर, घृणा से होकर ग्रसित तू कुकर्म से
भर जाता ।
होकर इंसान इंसान को ही सताता नफरत का
बीज बोकर एक दूजे की जान का प्यासा हो जाता ।
कर विचार सहज
होकर ,मनन कर
इंसानियत पर,इस
धरती पर प्यार बढ़ा ।
इंसान होने का दे सबूत
इस धरती का सौंदर्य
बढ़ा ।।।
क्योकि........
तू सबसे हसीन
खूबसूरत रचना
है तू मनुष्य
ईश्वर की सबसे
प्यारी रचना ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
दिनाँक-13/11/2019
विषय-हसीन/खूबसूरत
तू सबसे हसीन
खूबसूरत रचना
है तू मनुष्य
ईश्वर की प्यारी
संरचना ।
सच्चाई, निश्छलता, निष्कपटता, पवित्रता जैसे गुणों की नेमत तुझमें ।
जब तू नारी रूप
माँ, बेटी ,बहन,पत्नी
स्वरूप है।
वात्सल्य, ममता ,स्नेह व दया से परिपूर्ण है ।
जब नर रूप पाये तू पिता,बेटा, भाई, पति का स्वरूप है ।
सुरक्षा, आत्मविश्वास, दयालुता देता अपनो को उपहार है ।
तू है एक जीव पृथ्वी पर सभी जीवों से महान ।
तू ही सृजनकर्ता
इस विश्व मे है ।
न जाने क्यों तू बुद्धि भृष्ट कर लेता।
होकर कठोर, घृणा से होकर ग्रसित तू कुकर्म से
भर जाता ।
होकर इंसान इंसान को ही सताता नफरत का
बीज बोकर एक दूजे की जान का प्यासा हो जाता ।
कर विचार सहज
होकर ,मनन कर
इंसानियत पर,इस
धरती पर प्यार बढ़ा ।
इंसान होने का दे सबूत
इस धरती का सौंदर्य
बढ़ा ।।।
क्योकि........
तू सबसे हसीन
खूबसूरत रचना
है तू मनुष्य
ईश्वर की सबसे
प्यारी रचना ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
दिनांक १३/११/२०१९
शीर्षक-हसीन/खूबसूरत।
तन सुन्दर व मन खूबसूरत
दोनों का संयोग मिले तो
गुनगुनाती,चहचहाती,
खिलखिलाती है जिंदगी।
लाकर सादगी जीवन में
सँवार ले हम जिंदगी
सजा रखी हो लाख मकान
दिल की ख़ूबसूरती है जरूरी।
हम मनु है ईश की खूबसूरत रचना
भूल न जाये कभी,
कौन अपना,कौन पराया
हम सब है यहां बेगाना।
पूरी धरा है, परिवार हमारा
ये हैं खूबसूरत विचारधारा
तन चाहे जैसा भी हो
मन खूबसूरत कर लें जरा।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक-हसीन/खूबसूरत।
तन सुन्दर व मन खूबसूरत
दोनों का संयोग मिले तो
गुनगुनाती,चहचहाती,
खिलखिलाती है जिंदगी।
लाकर सादगी जीवन में
सँवार ले हम जिंदगी
सजा रखी हो लाख मकान
दिल की ख़ूबसूरती है जरूरी।
हम मनु है ईश की खूबसूरत रचना
भूल न जाये कभी,
कौन अपना,कौन पराया
हम सब है यहां बेगाना।
पूरी धरा है, परिवार हमारा
ये हैं खूबसूरत विचारधारा
तन चाहे जैसा भी हो
मन खूबसूरत कर लें जरा।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
विषय-हसीन/खूबसूरत
विधा-दोहे
दिनांकः 13/11/2019
बुधवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:
जब सुंदर ये मन रहे,तब हो सच्ची प्रीत ।
तन की सुंदरता नहीं,होती मन की मीत।।
मन के गंदे भी यहाँ,होते बहुत हसीन ।
जब होती उनकी परख,होता नहीं यकीन ।।
बनावटी वह ढोंग कर,कर्म करें बेशर्म ।
सदा बचे उनसे रहें,समझो अब ये मर्म ।।
नफ़रत हो जाती हमें,सुनकर उनके कर्म ।
उल्टा सीधा वे करें,नहीं कभी हो धर्म ।।
देख हसीना को सभी ,हो जाते हैं मुग्ध ।
कभी निकट कलई खुले,हो पानी सह दुग्ध ।।
सुन्दर सबको खींचता,पहले उसको जाॅच।
वह परखे बिन कभी भी,दे सकता है आॅच।
सुन्दर तो भीतर भला,बाहर हैं पाखंड ।
हो सच्चाई ज्ञान से,विश्वास खंड खंड ।।
स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय,
विधा-दोहे
दिनांकः 13/11/2019
बुधवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:
जब सुंदर ये मन रहे,तब हो सच्ची प्रीत ।
तन की सुंदरता नहीं,होती मन की मीत।।
मन के गंदे भी यहाँ,होते बहुत हसीन ।
जब होती उनकी परख,होता नहीं यकीन ।।
बनावटी वह ढोंग कर,कर्म करें बेशर्म ।
सदा बचे उनसे रहें,समझो अब ये मर्म ।।
नफ़रत हो जाती हमें,सुनकर उनके कर्म ।
उल्टा सीधा वे करें,नहीं कभी हो धर्म ।।
देख हसीना को सभी ,हो जाते हैं मुग्ध ।
कभी निकट कलई खुले,हो पानी सह दुग्ध ।।
सुन्दर सबको खींचता,पहले उसको जाॅच।
वह परखे बिन कभी भी,दे सकता है आॅच।
सुन्दर तो भीतर भला,बाहर हैं पाखंड ।
हो सच्चाई ज्ञान से,विश्वास खंड खंड ।।
स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय,
13.11.2019
बुधवार
विषय - हसीन/ ख़ूबसूरत
विधा - ग़ज़ल
ख़ूबसूरत ग़ज़ल
🌹🌹🌹🌹
ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिख रही हूँ आशिक़ी की पहल लिख रही हूँ।।
अपनी पूरी कहानी है इसमें ,
ज़िन्दगी की फ़ज़ल *लिख रही हूँ ।।
सब हैं कहते,ज़माना है दुश्मन
दोस्ती की नज़ल*लिख रही हूँ।।
आख़िरी साँस ,लेने से पहले
सारे मसलों का हल ,लिख रही हूँ।।
कौन जाने ,मुक़द्दर में क्या है?
अाज तो मैं ,ग़ज़ल लिख रही हूँ।।
बाँट कर ,अपनी ख़ुशियाँ, ख़ुशी से
ख़ुद से उलझूँ न कल, लिख रही हूँ।।
किसलिए ,कोई तहरीर लिखना
क्या ‘उदार ‘ मैं ,नक़ल लिख रही हूँ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
1-मेहरबानियाँ
2-वरदान
बुधवार
विषय - हसीन/ ख़ूबसूरत
विधा - ग़ज़ल
ख़ूबसूरत ग़ज़ल
🌹🌹🌹🌹
ख़ूबसूरत ग़ज़ल लिख रही हूँ आशिक़ी की पहल लिख रही हूँ।।
अपनी पूरी कहानी है इसमें ,
ज़िन्दगी की फ़ज़ल *लिख रही हूँ ।।
सब हैं कहते,ज़माना है दुश्मन
दोस्ती की नज़ल*लिख रही हूँ।।
आख़िरी साँस ,लेने से पहले
सारे मसलों का हल ,लिख रही हूँ।।
कौन जाने ,मुक़द्दर में क्या है?
अाज तो मैं ,ग़ज़ल लिख रही हूँ।।
बाँट कर ,अपनी ख़ुशियाँ, ख़ुशी से
ख़ुद से उलझूँ न कल, लिख रही हूँ।।
किसलिए ,कोई तहरीर लिखना
क्या ‘उदार ‘ मैं ,नक़ल लिख रही हूँ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
1-मेहरबानियाँ
2-वरदान
विषय*खूबसूरत/हसीन*
बह्न-
2122,2122,2122,212(मात्रा,26)
विधा॒॒॒ _गजल
एक प्रयास मात्र
सादर समीक्षार्थ
खूबसूरत ये जिंदगीअपनी बनाते चलें।
प्रेम परस्पर मेलजोल सभी सुख लुटाते चलें।
जानबूझ कर नहीं करें किसी से नादानियां।
सोच अच्छी रखें हसीन वादियां दिखाते चलें।
हैं तुम्हारे जानते फिर क्यों भी नहीं मानते
क्या यही दस्तूर जमाने का सच बताते चलें।
आप भूले याद चाहे हसीन वफाऐं सभी
अपने दिलों में आपको हमदम बिठाते चलें।
देखते हैं घूर कर वैरी सभी पिय जानते
सचमुच इन्हें अब सुंदरता में उलझाते चलें।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
बह्न-
2122,2122,2122,212(मात्रा,26)
विधा॒॒॒ _गजल
एक प्रयास मात्र
सादर समीक्षार्थ
खूबसूरत ये जिंदगीअपनी बनाते चलें।
प्रेम परस्पर मेलजोल सभी सुख लुटाते चलें।
जानबूझ कर नहीं करें किसी से नादानियां।
सोच अच्छी रखें हसीन वादियां दिखाते चलें।
हैं तुम्हारे जानते फिर क्यों भी नहीं मानते
क्या यही दस्तूर जमाने का सच बताते चलें।
आप भूले याद चाहे हसीन वफाऐं सभी
अपने दिलों में आपको हमदम बिठाते चलें।
देखते हैं घूर कर वैरी सभी पिय जानते
सचमुच इन्हें अब सुंदरता में उलझाते चलें।
स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
*खूबसूरत/हसीन*
आज का विषयः- हसीन खूबसूरत
खोया रहता हूँ प्रतिपल मैं, याद में ही तुम्हारी ।
करायेंगे मिलन, हमारा अब केवल कृष्ण मुरारी ।।
रहती हो रात्रि को स्वप्नों मॆं तुम, मेरे ही साथ ।
करता रहता हूँ रात दिन, तुमसे ही सदा बात ।।
ऊषा हो या निशा रहती हो, हर दम मेरे ही पास ।
रहता नहीं समय कोई भी, होतीं नहीं जब साथ ।।
कहते हैं सभी, हो पायेगी नहीं तुमसे कभी भेंट ।
पर खयालों से मेरे, सकता नहीं तुम्हें कोई मेट ।।
आती नहीं है समझ में मेरे, उनकी कोई भी बात ।
होती रहती है मेरी तुमसे, प्रति पल ही मुलाकात ।।
मरना है नहीं बस में मेरे,बिन तेरे जी नहीं सकता ।
यादों में तुम्हारी ही,तिल तिल कर रहता हूँ मरता ।।
अमृत तेरे पास, हलाहल गमों का पिये जा रहा हूँ ।
उड़ हँसी लबों से मेरे,रो रो कर ही जिये जा रहा हूँ ।।
शमा तो चुकी है जल,सुलग रहा है अब भी परवाना ।
वियोग में तुम्हारे, हो गया हूं मैं तो पूरा ही दीवाना ।।
वियोग से तुम्हारे बड़ा,हो नहीं सकता कोई भी दुख ।
मिलन से ही अपने,हो पायेगा कम यह भयंकर दुख ।।
घिर कर गमों से, न जाने कैसे मैं जिये जा रहा हूँ ।
जा नहीं पाया साथ तुम्हारे, जीते जी मरे जा रहा हूँ।।
गरल रह गया शेष जीवन में, वही पिये जा रहा हूँ ।
मघुर स्मृतियों के सहारे तुम्हारी ही, जिये जा रहा हूँ।।
प्रीतम प्यारे, पास अपने तू मुझको, अब तो बुलाले ।
साये में जुल्फों की, अपनी रानी फिर से तू सुला ले ।।
देखा सुन्दरता में तुम्हारी सनम, मैनें ईश्वर का रूप ।
आता है नज़र तुझमें केवल, प्रभु का ही मुझे प्रतिरूप ।।
करता व्यथित हृदय, याद तुमको रानी जितनी भी बार ।
आता है नाम प्रभु का भी खुद, लब पर उतनी ही बार ।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
खोया रहता हूँ प्रतिपल मैं, याद में ही तुम्हारी ।
करायेंगे मिलन, हमारा अब केवल कृष्ण मुरारी ।।
रहती हो रात्रि को स्वप्नों मॆं तुम, मेरे ही साथ ।
करता रहता हूँ रात दिन, तुमसे ही सदा बात ।।
ऊषा हो या निशा रहती हो, हर दम मेरे ही पास ।
रहता नहीं समय कोई भी, होतीं नहीं जब साथ ।।
कहते हैं सभी, हो पायेगी नहीं तुमसे कभी भेंट ।
पर खयालों से मेरे, सकता नहीं तुम्हें कोई मेट ।।
आती नहीं है समझ में मेरे, उनकी कोई भी बात ।
होती रहती है मेरी तुमसे, प्रति पल ही मुलाकात ।।
मरना है नहीं बस में मेरे,बिन तेरे जी नहीं सकता ।
यादों में तुम्हारी ही,तिल तिल कर रहता हूँ मरता ।।
अमृत तेरे पास, हलाहल गमों का पिये जा रहा हूँ ।
उड़ हँसी लबों से मेरे,रो रो कर ही जिये जा रहा हूँ ।।
शमा तो चुकी है जल,सुलग रहा है अब भी परवाना ।
वियोग में तुम्हारे, हो गया हूं मैं तो पूरा ही दीवाना ।।
वियोग से तुम्हारे बड़ा,हो नहीं सकता कोई भी दुख ।
मिलन से ही अपने,हो पायेगा कम यह भयंकर दुख ।।
घिर कर गमों से, न जाने कैसे मैं जिये जा रहा हूँ ।
जा नहीं पाया साथ तुम्हारे, जीते जी मरे जा रहा हूँ।।
गरल रह गया शेष जीवन में, वही पिये जा रहा हूँ ।
मघुर स्मृतियों के सहारे तुम्हारी ही, जिये जा रहा हूँ।।
प्रीतम प्यारे, पास अपने तू मुझको, अब तो बुलाले ।
साये में जुल्फों की, अपनी रानी फिर से तू सुला ले ।।
देखा सुन्दरता में तुम्हारी सनम, मैनें ईश्वर का रूप ।
आता है नज़र तुझमें केवल, प्रभु का ही मुझे प्रतिरूप ।।
करता व्यथित हृदय, याद तुमको रानी जितनी भी बार ।
आता है नाम प्रभु का भी खुद, लब पर उतनी ही बार ।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
हसीन/खूबसूरत
13/11/2019
*********************
विधा:-पत्र लेखन
सुनो तुमने जो छूए थे एहसास,,,,,,,
हाँ वो ही खूबसूरत पल
हसीन लम्हें ,,,,,,,
जो भिगो गये थे मेरे अंतरमन को
जो ले आते थे होठों. पर अनायास ही मुस्कान......
उन्हें ओढे बैठी हूँ ........
कभी बिम्ब. जो पानी में उभरकर
आ जाता हैं....... खुश हो जाती हूँ
देख कर उसे। ।।।।।।
तुम परदेशी हो गये !,,,,,,,,
लेकिन यादें उनका क्या करू
वो तो परदेशी नहीं होती हैं ।
सुबह की भोर पर आ जाते हो तुम
अनायास ही
और रात ढलते ही ओढ लेती हूँ तुम्हारी यादों को.........
जब साँसें उभरती हैं तेज ....
तब छलक जाती हैं आँखें,,,,,,,,
आँखों के कोरों से बहते आँसू भी
सूख जाते हैं बहते बहते ।।।।।।।
एक चिर प्रतिक्षित प्रतिक्षा में आज भी मैं हूँ
जानते हो ना मैं जन्मों से तुम्हारी ही तो
प्रतिक्षा कर रही हूं ।
शायद जब तक साँस चलेगी तबतक रहेगा इन्तजार तुम्हारा तुम्हारा सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा ।।
स्वरचित
नीलम शर्मा # नीलू
13/11/2019
*********************
विधा:-पत्र लेखन
सुनो तुमने जो छूए थे एहसास,,,,,,,
हाँ वो ही खूबसूरत पल
हसीन लम्हें ,,,,,,,
जो भिगो गये थे मेरे अंतरमन को
जो ले आते थे होठों. पर अनायास ही मुस्कान......
उन्हें ओढे बैठी हूँ ........
कभी बिम्ब. जो पानी में उभरकर
आ जाता हैं....... खुश हो जाती हूँ
देख कर उसे। ।।।।।।
तुम परदेशी हो गये !,,,,,,,,
लेकिन यादें उनका क्या करू
वो तो परदेशी नहीं होती हैं ।
सुबह की भोर पर आ जाते हो तुम
अनायास ही
और रात ढलते ही ओढ लेती हूँ तुम्हारी यादों को.........
जब साँसें उभरती हैं तेज ....
तब छलक जाती हैं आँखें,,,,,,,,
आँखों के कोरों से बहते आँसू भी
सूख जाते हैं बहते बहते ।।।।।।।
एक चिर प्रतिक्षित प्रतिक्षा में आज भी मैं हूँ
जानते हो ना मैं जन्मों से तुम्हारी ही तो
प्रतिक्षा कर रही हूं ।
शायद जब तक साँस चलेगी तबतक रहेगा इन्तजार तुम्हारा तुम्हारा सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा ।।
स्वरचित
नीलम शर्मा # नीलू
दिन :- बुधवार
दिनांक :- 13/11/2019
शीर्षक :- हसीन/खूबसूरत
******1******
कली से भी कमसीन है,जो मेरी जिंदगी है,
थोड़ी सी गमगीन है पर, वो मेरी जिंदगी है।
हँसाती भी है कभी, कभी रुला भी देती है,
पर चाँद से भी हसीन है,वो मेरी जिंदगी है।
*******2******
चलते-चलते किसी राह पर मुलाकात हो जाए,
खुदा की रहमतों की कभी यूँ बरसात हो जाए।
हसीन जिस ख्वाब को अब तक संजोए रक्खा,
मुद्दतों बाद वह भी कहीं अब साकार हो जाए।
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
दिनांक :- 13/11/2019
शीर्षक :- हसीन/खूबसूरत
******1******
कली से भी कमसीन है,जो मेरी जिंदगी है,
थोड़ी सी गमगीन है पर, वो मेरी जिंदगी है।
हँसाती भी है कभी, कभी रुला भी देती है,
पर चाँद से भी हसीन है,वो मेरी जिंदगी है।
*******2******
चलते-चलते किसी राह पर मुलाकात हो जाए,
खुदा की रहमतों की कभी यूँ बरसात हो जाए।
हसीन जिस ख्वाब को अब तक संजोए रक्खा,
मुद्दतों बाद वह भी कहीं अब साकार हो जाए।
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
13/11/19
विषय... हसीन /खूबसूरत
क्या कहूँ.. खूबसूरत हो तुम
या... कहूँ.. की पंखुड़ी पर सजी..
ओस की नमी समेटे...
मन को छूती कोई... बूँद हो...
जो देती है....
मन को यादों का मख़मली से
स्पर्श का एक अनछुआ सा अहसास.
कितनी खूबसूरत सी
बिलकुल वैसे ही
जैसे... की रवि की पहली किरण
उस ओस बूँद को
बस अपनी सिंदूरी सी किरण
से एक आभा सी भर देती है
और मन को एक कशिश से भर देती है..
वो तो मन को लुभाती है..
महक सी महसूस की जा सकती है...
हाँ सच में खूबसूरत हो....
जिसे संजोया जा सकता है..
हमेशा के लिए अपनी स्मृति में....
शीतल सी मधुर..
फुआर के रूप में.. दिल को देती हो
एक खूबसूरत सा अहसास
पूजा नबीरा
काटोल
नागपुर
स्वरचित
विषय... हसीन /खूबसूरत
क्या कहूँ.. खूबसूरत हो तुम
या... कहूँ.. की पंखुड़ी पर सजी..
ओस की नमी समेटे...
मन को छूती कोई... बूँद हो...
जो देती है....
मन को यादों का मख़मली से
स्पर्श का एक अनछुआ सा अहसास.
कितनी खूबसूरत सी
बिलकुल वैसे ही
जैसे... की रवि की पहली किरण
उस ओस बूँद को
बस अपनी सिंदूरी सी किरण
से एक आभा सी भर देती है
और मन को एक कशिश से भर देती है..
वो तो मन को लुभाती है..
महक सी महसूस की जा सकती है...
हाँ सच में खूबसूरत हो....
जिसे संजोया जा सकता है..
हमेशा के लिए अपनी स्मृति में....
शीतल सी मधुर..
फुआर के रूप में.. दिल को देती हो
एक खूबसूरत सा अहसास
पूजा नबीरा
काटोल
नागपुर
स्वरचित
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