Monday, November 11

"राख /भस्म "11नवम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-563
प्रथम प्रस्तुति

राख हो रही जिन्दगी
कुछ तो काम आ जाय ।

हरेक ढलती शाम यह
संदेशा हमें सुनाय ।

कर लो कुछ एक यतन
अभी वक्त भी कहाय ।

राख भी इक हवन की
सर मस्तक पर सजाय ।

क्यों न ऐसे कर्मों में
तूँ अपना मन लगाय ।

परहित से न बड़ा धर्म
कोई जग में कहलाय ।

कुदरत का कण-कण 'शिवम'
संदेशा यही दर्शाय ।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 11/11/2019

दिनांक - 11/11/2019
दिन - सोमवार

शीर्षक - राख

दो पल की है ज़िंदगी
मिट्टी में मिल जाना है
मांस बचे न बचे हड्डी
बस राख हो जाना है
कुछ यतन न कर सकोगे
जब बुलावा आयेगा
न तेरा न मेरा साथी
सब यहीं पड़ा रह जायेगा
किस बात का तू करता गुरूर
अहं की भावना होगी चूर- चूर
छोड़ दो सब मोह माया
बस ईश्वर का लगा सुरूर ।

दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छग
स्वरचित

दिनांक-11/11/2019
विषय-राख


मौन ओढ़े सभी , हो रही है तैयारी।

राख के नीचे दबी जरूर है एक चिंगारी।।......

राख मौन की एक शस्त्र थी।

असंतृप्त धुंआ निर्वस्त्र था।

ना आकाश में एक हार थी।

न बादलों में एक जीत थी।

धुएं के इस धुंध में............

चिंगारियों से ना प्रीति थी।

शौर्य के इस शान में

बलिदानो की एक जीत थी।

राख की मुस्कानों में

स्वरों की एक गीत थी।

निःशब्द राख मौन व्यर्थ था।

न जीत थी , न हर्ष था।

सिर्फ अंतरनाद का उत्कर्ष था।

अमूर्त सपनों का संघर्ष था।

राख नहीं है निराश में

डिगा नहीं हताश में

राख विराट एक द्वंद था।

निःशब्द एक छंद था

चिर जगत निर्द्धंद्व...था

स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज


दिनांक 11/11/19
विषय ऱाख


चुल्हा जले
लकडियां खाक
बची बस राख
बर्तन किए साफ

उज्जेन नगरी
भस्म की आरती
प्रसन्न महाकाल
जय भोलेनाथ

कंचन काया
जीवन चलाया
टूटी जब सांस
काया सब राख

दुनिया विचित्र
पद का हेै मोल
शिव संग भस्म
बाकी सब राख

कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद

दिनाँक:11/11/19
विषय:राख/भस्म

विधा:सेदोका
1
मृत्यु आगोश
शरीर हुआ राख
जीवन अनन्त में
आत्मा विलीन
हुई कर्म अधीन
पाप पुण्य प्रवीन
2
भस्म भभूत
महाकाल भाल पे
काल कपाल पर
संसार सार
जीवन उपहार
राख ही अवशेष

मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित

आज का विषय, राख, भस्म
दिन, सोमवार

दिनांक, 1 1,11,2019,

राख हो गया सपना कोई,
इसमें कुछ भी कहाँ नया है ।
हारा नहीं है जो आँख न रोई ,
सपना जिसने भी बुना नया है ।
यही हकीकत है सामने आई ,
जो जन्म लिया वो राख हुआ है।
विधाता ने जब से सृष्टि बनाई ,
तय तो तभी से यही हुआ है ।
रखना भ्रम नहीं मन में कोई ,
सिर्फ कर्म ही अपना हुआ है।
रह नहीं जाये ये आत्मा सोई ,
इसी सहारे जग टिका हुआ है।
इंसानियत यहाँ जब जब खोई,
अधर्म का बोलबाला हुआ है ।
जग में जियेगी अगर सच्चाई ,
जीवन समझो सफल हुआ है ।

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,


11/11/2019
बिषय,, राख,,भस्म

जलने वाले जलकर राख हो गए
मंसूबे सारे खाक हो गए
धीरज का फल मीठा समझ में आ गया
गागर में भरके सागर मन को लुभा गया
मन का सारा संताप दूर हो गया
एक देवदूत फिर मशहूर हो गया
सारी बाधाएं दूर नदियां बह चली
चलना ही जिंदगी है सबसे ए कह चली
भगवान के घर देर है अंधर नहीं है
उसके न्याय में उलटफेर नहीं है
अस्तित्व अपना उसने जमाने को बता दिया
सच्चाई का आईना सबको दिखा दिया
मिलती है हृदय में शांति वही प्यारा नाम
जय श्री राम जय श्री राम जय जय श्री राम
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार

11/11/2019
वार - सोमवार

बिषय - राख, भस्म

राख

जन्म मृत्यु जीवन के चक्र यही जीवन का सत्य है,
जलकर एक दिन राख हो जाना यही मूल अर्थ है।

चार दिन की जिन्दगी है जब तक है देह में जान,
नेक काम करो दुनियां में ऐसा,लोग करें गुणगान।

गीता,भागवत,सुन्दर काण्ड और पढ़ो पुराण,
पंच तत्व का बना शरीर निकल जायेगें प्राण।

क्या पाया क्या खोया तूने इसकी फिक्र न कर,
आत्मनिर्भर रहो सदा तुम न किसी से भी ड़र।

अग्नि की तपन में जलकर एक दिन होना खाक,
मिट्टी में मिल जायेगा शरीर और हो जायेगी #राख

जीवन की अंतिम यात्रा जप ले प्रभु का तू नाम,
लोभ,लालच,दम्भ छोडकर करना अच्छे काम।

पार्थिव शरीर को अग्नि देकर करते अंतिम संस्कार,
जीवन भर की यादें जुड़ी जिनसे मिला हमें प्यार।

खाली हाथ आये थे हम खाली हाथ ही जाना है,
मोहमाया में तू न फंस वंदे यही तुम्हें समझाना है।

सुमन अग्रवाल "सागरिका"
आगरा
स्वरचित

विषय:राख / भस्म
दिनांक..११-११-२०१९.

जय शिव-शंकर,जय कृपा निधान।
तेरे आशीष से मंगल है जग-विधान।
अपना आशीष प्रभु सदा बनाये रखना।
हम सब तेरे बच्चे हैं,अति-अज्ञानी नादान।।
जान रहे हैं हम कि ये जीवन क्षण-भंगुर है।
मिटकर इक दिन हो जाएगा भस्म समान।
फिर भी उलझे हैं जीवन के माया-जाल में।
दे सद्बुध्दि हमें हे भोले! कर सबका कल्याण।।
(स्वरचित) ***"दीप"**

नमन भावों के मोती
11/11/2019
विषय-राख/भस्म

==============

मौत की राख पर
जीवन रूपी पौधा उगता है
और फिर जीवन
मौत की गोद में समां जाता है

तन की कीमत
एक मुट्ठी राख से ज्यादा नहीं
मरणोपरांत तो
बिस्तर भी
ज़मीं पर लगा दिया जाता है

जीवन भर ईर्ष्या, राग-द्वेष
में जलते रहे
मरने पर तो
अपनों द्वारा ही आग में
भस्म कर दिया जाता है

धन दौलत ऐश्वर्य वैभव
सब जमा किया
सत्कर्मो के सिवा
कुछ भी साथ ना जाता है।।

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®


देख लो ऐ आज आज के इन्सान
कैसी हैं ये जालिम जिंदगी
पहले जीने के ख्वाब दिखाती हैं

फिर मिट्टी में दफन होकर राख बन जाती हैं .

पहले जिंदगी गम हज़ार लाती हैं
फिर मरहम एक नया लगाती हैं
दो पल की हैं ये जिंदगी
पहले ख़ुशी के पल दिखाकर राख में मिल जाती हैं .

हर सुबह खुशियों का सूरज लाती हैं
फिर जलती धूप में जलाती हैं
शाम को मुस्कारती हुई ख़ुशी लाती हैं
रात को चाँद का दीदार कर काली रात की राख बन जाती हैं .

ये जिंदगी किसी की अपनी नहीं हैं
हर पल किसी ना किसी बंधी हैं
हर कदम रिश्तों के संग चलती हैं
फिर एक दिन राख में मिल जाती हैं .
स्वरचित :=रीता बिष्ट

राख/भस्म

काहे का
अभिमान करे
तू इन्सान
एक दिन
भस्म हो जाएगा
तू इन्सान
रह जाएगा
तेरी नेक- नियती
यहाँ

लेते है नाम
इज्जत से हे राम
जला देते है
रावण तेरा
घमंडी नाम

जल जाये अहं
तो हो जाती राख
रह जाता नहीँ कुछ
स्वाहा हो जाता
श्मशान घाट

शिव है सुन्दर
शिव है मनोरम
लिपटाये है
राख भस्म
बताये है यही
जीवनदर्शन

भूलो मत
अंत है जीवन
पंचतत्व में
होगा विलीन
ये जीवन
करो नेक
ईमान के काम

" संतोष "
रखो सदा साथ
ये भस्म
सुखमय जीवन
बनाओ रस्म

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल


तिथि -11/11/2019/सोमवार
_* भस्म राख *

_काव्य

भस्म हुए दुर्जनों के मंसूबे।
मार्ग प्रशस्त हुआ मंदिर निर्माण का।
कृपा हुई शनिदेव की सब पर
उदघोष हुआ जय जय श्रीराम का।

महिमा सबने श्री राम की जानी।
किसकी क्या द्वेषता पहचानी।
हिंदू मुस्लिम रही सदा रहे एकता
जय जय शिवशंभु मात भवानी।

यहां कुछ नहीं शेष बचे हमारा
केवल राख पडी रह जाएगी।
यह भी सच मानें हम एकदिन
यहीं किसी नदी में वह जाएगी।

ये भाव प्रसून रह पाते सुरभित।
मन के पुष्प रहते हैं कुसुमित।
केवल रहें आस्था श्रद्धा जीवित
मसले फूल नहीं रहते प्रफुल्लित।

यही आरजू मेरी भगवन
राख चढें आपके चरणों में।
नश्वर शरीर शमशान में जलता
कब मिले भस्म विविध वर्णों में।

स्वरचित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय श्रीराम रामजी।

भा *भस्म /राख *काव्य
11/11/2019/सोमवार

 नमन भावों के मोती मंच
विषय-भस्म/राख
विधा-दोहे

दिनांकः 11/11/2019
सोमवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:

यह काया तो एक दिन,हो जाती है भस्म ।
झूठे रिश्ते हैं सभी,यहाँ निभाते रस्म।।

धन रिश्ते सारे सभी,क्या ये जाते संग।
यहाँ अंत आये निकट,माटी मिलते रंग ।।

मत काया पर गर्व कर,होती सदा अनित्य ।
उस प्रभु का तू ध्यान कर,सदा वही है नित्य ।।

जीते जी ही सब करो,माटी तन हो राख।
जग की यादों में बसो,रह जाये अब साख।।

जो पाता रहता सदा ,कोई न हो गुमान ।
इस माया को छोड़कर,करो भक्ति भगवान ।।

स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय,

11/11/2019
"राख/भस्म"
छंद मुक्त
################
दिनकर दिन-रात जलता रहता है...
जलकर राख न कभी वो होता है.....
परोपकार के लिए जो जलता है...
दुनिया रौशन करने ही आता है...।

ईर्ष्या, द्वेष से जो जलता रहता है...
मन की शांति को जलाता है..
ज्वाला सा मन धधकता है..
एकदिन स्वंय राख वो बन जाता है..।

प्रीत का दीया मन में जलता
है
आँधियों में भी जलता रहता है...
ना बुझता और ना राख होता है..
जलकर शीतलता ही देता है..।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

दि-सोमवार/11-11-19
शीर्षक -राख
विधा --दोहे
1.
पूर्ण दहन हो वस्तु का , मिले धुआँ औ राख।
दुष्कर्मों की बाढ़ से, मनुज गिराता साख।।
2.
अंतिम पड़ाव है चिता, ये तन होता राख।
कर्म बचें अच्छे बुरे, लोग तोलते साख ।।
3.
एक बार इज्जत डही, जतन करें गर लाख।
पुनः लौट मिलती नहीं, बनी वस्तु जो राख।।
4.
रोटी रोजी के बिना, बढ़ता मन में माख।
कितने देखे स्वप्न थे, सभी हुए हैं राख।।
5.
शशि शोषण जिस पक्ष में, वही कृष्ण है पाख ।
शशि पोषण हो जिस समय, शुक्ल पक्ष की साख।।

******स्वरचित*******
प्रबोध मिश्र ' हितैषी '
बड़वानी(म.प्र.)451551

11/11/19
विषय राख भस्म

विरक्ति का प्रतीक राख
सन्यासियों का मूल भाव

विरक्ति मन मे है लाय
राख का है सुभाय

शिव का अर्थ विध्वंस है
विध्वंस का अर्थ भस्म है

अंत ही अंत मे भस्म
काल ही भस्म है

पाप का अंत भस्म
तन का अंत भस्म है

आत्मा अनंत है
जीवन सार भस्म है

विषय - राख/ भस्म
11/11/19
सोमवार
कविता

राख हूँ मैं ,खाक कहकर साख कम मत कीजिए ,
अग्नि में तपकर बनी हूँ , तथ्य यह गुन लीजिए।

मेरी शुचिता पर कोई अँगुली उठा सकता नहीं ,
मेरी महिमा को कोई हरगिज़ मिटा सकता नहीं।

मैं हवन-कुण्डों क़ी शोभा , मैं चिता की शान हूँ,
मैं फसल की प्राण हूँ और स्वच्छता का भान हूँ।

ग्राम्य - जीवन में सदा मेरा रहा अधिकार है ,
और घर -आँगन की शुचिता का मेरा ही कार्य है|

मेरी महिमा को मरुस्थल के सभी जन जानते ,
कार्य साधक हूँ मैं उनकी ,सत्य यह स्वीकारते।

मैं ठिठुरते प्राणियों की ऊष्मा का सार हूँ ,
मैं निराले विग्रहों की चमक का आधार हूँ ।

मेरी ही गोदी में सृष्टि और नव - निर्माण है ,
मुझमे ही मिलकर मनुज का मोक्ष व कल्याण है।

मैं जगत की परिणीति हूँ , मैं जगत का सार हूँ ,
राख हूँ मैं , राख हूँ मैं , राख हूँ मैं , मैं राख हूँ।

स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर

विधा : ग़ज़ल - ज़िन्दगी और बद्दुआ क्या है....

ज़िन्दगी तुझसे वास्ता क्या है...
उम्र भर ढूंढना मेरा क्या है....

न मिला वो तुझे न तू उससे...
फिर तुझे गैर सा लगा क्या है....

राख में जिस्म ढल ही जाएगा...
फिर दुआ मौत मांगता क्या है...

रूह पत्थर है जिस्म बौने हुए....
ज़िन्दगी और बद्दुआ क्या है....

सारी दुनिया के ज़ख्म दे के मुझे....
तू बता मुझसे चाहता क्या है...

पल में जी कर के लूट लो ये जहां...
बाद मरने के राब्ता क्या है....

प्यार 'चन्दर' खुदा नियामत है...
राख दौलत से तौलता क्या है...

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा

विषय भस्म
विधा कविता
दिनांक 11.11.2019
दिन सोमवार

भस्म
💘💘

निभतीं हैं आखि़र की रस्म
जब होता है शरीर भस्म
अस्थियों का होता विसर्जन
शान्त होते सारे गर्जन।

लो एक प्राण निष्प्राण हुए
गया तक इसके अनुष्ठान हुए
भस्म के बाद भी तार चलते रहे
गँगा तट पर भी लोग छलते रहे।

यह भस्म पड़ती बहुत महँगी है
लोगों की भावना भी इसमें नंगी है
जाने वाला चले गया मन से श्राद्ध करो
कोरे ढकोसलों में मत किसी को बाध्य करो।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त

11/11/19

सुलगती सी जिंदगी में
खुशियां हो रहीं राख
बुझते जा रहे अरमान
और खत्म हो रही साख
दर्द एक ठहर सा गया
नयनों से कुछ बह सा गया
दर्द हो जाता भस्म
जो कर रहा जीवन राख ।

अनिता सुधीर

11/11/2019
"भस्म/राख"

1
भस्म,भभूत..
शृंगार महाकाल
अद्भुत रुप
2
माटी की काया..
राख बन जायेगा
मिथ्या गुमान
3
दुनिया भ्रम..
दावानल में भस्म
ईश्वर सत्य
4
दुष्ट संहार
"होलिका"हुई भस्म..
रक्षा "प्रहलाद"
5
पावन भस्म..
शिवभक्त ललाट
श्रद्धा तिलक

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

शीर्षक- राख
अरमानों की चिता जलाई

राख जब बन गए अरमां
तो खुद ही नदी में बहा आई।

अब सुकून से जी सकूंगी मैं
अब न दर्द उठेगा,न कसक
निश्चिन्त हो सो सकूंगी मैं।

क्यूं कामना करूं उसकी
जो तकदीर मैं नहीं लिखा
जिससे ईश्वर ने महरूम रखा।

जो भी मिला, जितना भी मिला
वो ही बहुत है मेरे लिए
शुक्रिया खुदा का उसके लिए।
स्वरचित- निलम अग्रवाल,खड़कपुर

दिनांक ११/११/२०१९
शीर्षक-राख"


बची हुई राख में
अभि चिंगारी शेष है
कह रही है चीख चीख कर
निष्फल नही, प्रयास हमारा,
जब तक जले, पोषण दिये
बुझ गये तो राख हुए
बर्तन चमके हमारे साथ
हर पल हम तुम्हारे काम
मेरी अहमियत समझो आज
भोलेनाथ भी हमारे साथ।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।


सोमबार
शीर्षक राख


जीवन एक सुलगती सी राह
कितने अँगारे कितनी चिंगारियां
चलते रहे.. कितने ही कठिन राहों पर..
सुलगते से कई दौर....
फिर धीरे धीरे बनी चिंगारियां राख...
यूँ सब दिखता है... बुझा और शांत
लेकिन राख के भीतर भी है
गर्म सी आग..
जिसे अगर लग जाये हवा...
सुलग जाती है आँच..
लावे की तरह उबलती हैं
कई चोटें....
बुझे किसी ज्वालामुखी सा
राख सा हुआ मन..
अंदर ही अंदर सुलगता है
जैसे गर्म लावा राख के अंदर भी
चाहे जब बहता है...
और अपनी गर्मी से..
सब पिघला देता है...
राख तो बस ढक लेती है
ऊपरी सतह...
अंदर तो हर वक्त तरल
गर्म से अहसास जलते बुझते हैं.
ये जिंदगी के गर्म रास्ते हैं
यहाँ अंदर के फोड़े बहुत दुखते हैं
पूजा नबीरा
काटोल
विषय= राख /भस्म
विधा=मुक्त

दिनांक=11 / 11 /19

खाक में मिल जाना है, जानता है आदमी
फिर भी महल दो महले बनाता है आदमी

हर पल काल का बज रहा गजर है
फिर भी अरमानों को सुंदर जामा पहना रहा आदमी

भस्म हो जाती ही है हर काया अंत में
स्वर्ण भस्म से फिर भी काया सजा रहा आदमी

आज फूल सा खिल रहा कल मुर्झायेगा
जान कर भी ,फूलों से प्यार जता रहा आदमी।

डा.नीलम

विषय- राख
विधा -छंद- मुक्त


उड़ान ऊँची थी
पर पा न सका मंजिल
पंख थक कर चूर
मैं निढाल
गिरता जा रहा हूँ
गहरे गर्त में
धधकते ज्वालामुखी में
भस्म होता मेरा तन
राख हो जाएगा
जानता हूँ
निराशा की अग्नि में
जल रहा हूँ
जहाँ चारों ओर
धुँआ और राख ही राख है
पर सम्भलना होगा मुझे
साहस बटोरकर
एक बार पुनः
भरनी होगी
वही ऊँची उड़ान
हिम्मत के पंखों पर सवार
निश्चित ही
छू लूंगा मंजिल
नहीं हारूँगा
न जलूँगा
दहकते अंगारों में
न बनूँगा राख
समय से पहले

सरिता गर्ग

"भावों के मोती"

विषय-- राख
विधा छंद मुक्त

जिंदगी हमें रूला
खुद रोयेगी जिस दिन
मौत संग हमें ले जायेगी

कम ही मयस्सर थे लम्हात मस्सरत के
अब "राख" भी बिखर जायेगी

दास्तान हमारी "भस्म" होगी
मगर कुछ तहरीर सफो पर
छोड़ जायेगी

आशा पंवार
" भावों के मोती "
विषय - राख

विधा - कविता

" राख "
अहम्" ये तेरा यहीं रह जाना है ।
सारे साधन भी यहीं छूट जाना है ।।

फ़िर किस बात का है ये अहंकार ।
जुटाए गए ये सारे साधन हैं बेकार ।।

क्यों मोह इतना दुनिया से रखना ।
क्यों झूठे संबंधों की आस करना ।।

इस ज़िंदगी का यही एक तराना है ।
तू ही अब तक सत्य न पहचाना है ।।

आखिर तो ये देह राख हो जाना है ।
सफ़र पूरा कर एकदिन घर जाना है ।।

©®आरती अक्षय गोस्वामी
देवास
सर्वाधिकार सुरक्षित

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