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ब्लॉग संख्या :-564
दिनांक-12/11/2019
विषय-गुमनाम
तंद्रा अब भंग हुई मेरी
व्यस्त लम्हों की मजार पे ।
कशिश भरी रह गई दिल में
गुमनाम रंजीशो के द्वार पे।।
एक एकांत गुमनामी जीवन में आया।
एक एकाकीपन को मैं आलिंगन लगाया।।
सुन ए मेरे अशांत मन
चिर प्रतीक्षित के मीत
कोई कहता है प्रतीक्षा तो
स्वयं में है एक प्रीत
युगों से मेरे मन प्रतीक्षारत
तुम अब प्रतीक्षा के युग ले लो
जगा हूं मैं मलयलीन अलको से
नींद के पलकों को मुझको दे दो
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
विषय-गुमनाम
तंद्रा अब भंग हुई मेरी
व्यस्त लम्हों की मजार पे ।
कशिश भरी रह गई दिल में
गुमनाम रंजीशो के द्वार पे।।
एक एकांत गुमनामी जीवन में आया।
एक एकाकीपन को मैं आलिंगन लगाया।।
सुन ए मेरे अशांत मन
चिर प्रतीक्षित के मीत
कोई कहता है प्रतीक्षा तो
स्वयं में है एक प्रीत
युगों से मेरे मन प्रतीक्षारत
तुम अब प्रतीक्षा के युग ले लो
जगा हूं मैं मलयलीन अलको से
नींद के पलकों को मुझको दे दो
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
प्रथम प्रस्तुति
गुमनाम हम थे गुमनाम हमें होना है
चार दिन हैं जिसमें हँसना रोना है ।।
जिन्दगी से समझौता कर लिया है
अब नही कोई सपना सलोना है ।।
एक स्वप्न कितनों को आँसू देवे
वो पाप बीज अब नही बोना है ।।
गुमनामी बदनामी से बहतर है
निज हाथों नैया नही डुबोना है ।।
कितनों के अरमां जुड़े जिन्दगी से
उन खातिर मायुसी नही सँजोना है ।।
जिन्दगी स्वतः कुछ बुनती है 'शिवम'
हैं उसूल कुछ कर्म में पिरोना है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/11/2019
गुमनाम हम थे गुमनाम हमें होना है
चार दिन हैं जिसमें हँसना रोना है ।।
जिन्दगी से समझौता कर लिया है
अब नही कोई सपना सलोना है ।।
एक स्वप्न कितनों को आँसू देवे
वो पाप बीज अब नही बोना है ।।
गुमनामी बदनामी से बहतर है
निज हाथों नैया नही डुबोना है ।।
कितनों के अरमां जुड़े जिन्दगी से
उन खातिर मायुसी नही सँजोना है ।।
जिन्दगी स्वतः कुछ बुनती है 'शिवम'
हैं उसूल कुछ कर्म में पिरोना है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/11/2019
विषय -गुमनाम
दिनांक 12-11 -2019अस्तित्व खोकर,गुमनाम जीवन जी रहे हैं।
अनमोल मिला जीवन,अंधेरे में ढो रहे हैं।।
कर गुनाह सब यहाँ, गुमनाम बन जी रहे हैं ।
जहर घोल जीवन में, अब कर्मों पर रो रहे हैं ।।
रिश्तो को बिखेर,सभी यहाँ अधूरे लग रहे हैं।
एकांकी जीवन जीने,मजबूर अब हो रहे हैं।।
बरसों लगे मुकाम पाने में,पल में गिर रहे हैं।
पहचान छुपा सबसे,ऐसे जीवन जी रहे हैं।।
जैसा बोया वैसा ही, अपनों संग काट रहे हैं ।
गलत कार्य गलत नतीजा,देखो वो पा रहे हैं ।।
राह मालूम नहीं,गुमनाम राहों पर जा रहे हैं ।
फस रहे दलदल, क्यों रोका नहीं कह रहे हैं।।
दूध जले छाछ भी,फूंक-फूंक अब पी रहे हैं।
शेष जीवन उजाले में, इस तरह जी रहे हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक 12-11 -2019अस्तित्व खोकर,गुमनाम जीवन जी रहे हैं।
अनमोल मिला जीवन,अंधेरे में ढो रहे हैं।।
कर गुनाह सब यहाँ, गुमनाम बन जी रहे हैं ।
जहर घोल जीवन में, अब कर्मों पर रो रहे हैं ।।
रिश्तो को बिखेर,सभी यहाँ अधूरे लग रहे हैं।
एकांकी जीवन जीने,मजबूर अब हो रहे हैं।।
बरसों लगे मुकाम पाने में,पल में गिर रहे हैं।
पहचान छुपा सबसे,ऐसे जीवन जी रहे हैं।।
जैसा बोया वैसा ही, अपनों संग काट रहे हैं ।
गलत कार्य गलत नतीजा,देखो वो पा रहे हैं ।।
राह मालूम नहीं,गुमनाम राहों पर जा रहे हैं ।
फस रहे दलदल, क्यों रोका नहीं कह रहे हैं।।
दूध जले छाछ भी,फूंक-फूंक अब पी रहे हैं।
शेष जीवन उजाले में, इस तरह जी रहे हैं।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
विषय: गुमनाम
12-11-2019.
ईर्ष्या,द्वेष,अहंकार से, घटता मानव का मान।
अनमोल जीवन दिया ईश ने,करो कर्म महान।
पवित्र-आत्मा के रूप में, तुममें बसे हैं भगवान।
करो उनका सम्मान,जिसने दिए हैं तुमको प्राण।।
अहंकार से इस जग में मिट जाये आन,बान, शान।
कुछ ऐसा कर जाओ जग में, हो सबका कल्याण।
अहंकार के कारण ही प्रकांड रावण हो गया गुमनाम।
त्याग किया श्री राम ने, हुये 'राम' से 'पुरुषोत्तम श्री राम'।।
(स्वरचित) ***"दीप"***
12-11-2019.
ईर्ष्या,द्वेष,अहंकार से, घटता मानव का मान।
अनमोल जीवन दिया ईश ने,करो कर्म महान।
पवित्र-आत्मा के रूप में, तुममें बसे हैं भगवान।
करो उनका सम्मान,जिसने दिए हैं तुमको प्राण।।
अहंकार से इस जग में मिट जाये आन,बान, शान।
कुछ ऐसा कर जाओ जग में, हो सबका कल्याण।
अहंकार के कारण ही प्रकांड रावण हो गया गुमनाम।
त्याग किया श्री राम ने, हुये 'राम' से 'पुरुषोत्तम श्री राम'।।
(स्वरचित) ***"दीप"***
विषय-गुमनाम
विधा-दोहे
दिनांकः 12/11/2019
मंगलवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:
गुमनामी अच्छी नहीं,करों यहाँ कुछ काम ।
रौशन करना देश यह,होगा तेरा नाम ।।
यहाँ काम वे मत करो,जिनसे हो बदनाम ।
भले काम ऐसे करो,सदा रहे बस नाम ।।
तंद्रा सारी छोड दो,कभी न रहो उदास ।
तुमको क्या कुछ कम रहे,सब कुछ होगा पास ।।
बोना तू भूल कर नहीं,अब पापों के बीज।
सदा भला यदि तू रहा,मिलती अद्भुत चीज़ ।।
जादू कर्मों के दिखा,हो जायें सब मुग्ध ।
तेरी छवि ऐसी बने,जैसे होता दुग्ध ।।
गुमनामी को छोड़ अब,ऊॅची भरो उड़ान ।
रखना संजो शक्ति भी,आये नहीं थकान ।।
चमक दमक जग में रहे,कर पूरे अरमान ।
गुमनामी मिट कर रहे ,लोग करें गुणगान।।
स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय,
विधा-दोहे
दिनांकः 12/11/2019
मंगलवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:
गुमनामी अच्छी नहीं,करों यहाँ कुछ काम ।
रौशन करना देश यह,होगा तेरा नाम ।।
यहाँ काम वे मत करो,जिनसे हो बदनाम ।
भले काम ऐसे करो,सदा रहे बस नाम ।।
तंद्रा सारी छोड दो,कभी न रहो उदास ।
तुमको क्या कुछ कम रहे,सब कुछ होगा पास ।।
बोना तू भूल कर नहीं,अब पापों के बीज।
सदा भला यदि तू रहा,मिलती अद्भुत चीज़ ।।
जादू कर्मों के दिखा,हो जायें सब मुग्ध ।
तेरी छवि ऐसी बने,जैसे होता दुग्ध ।।
गुमनामी को छोड़ अब,ऊॅची भरो उड़ान ।
रखना संजो शक्ति भी,आये नहीं थकान ।।
चमक दमक जग में रहे,कर पूरे अरमान ।
गुमनामी मिट कर रहे ,लोग करें गुणगान।।
स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय,
विषय गुमनाम
विधा काव्य
12 नवम्बर,2019 मंगलवार
स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर
कई गुमनाम शहीद हो गये।
मातृभूमि हित जीवन जीकर
सदा सदा के लिये सो गये।
जीवन में गुमनाम आये सब
मात पिता ने नाम दिया है।
उसी नाम से जीवन जीते हम
परिचित तो कर्मों ने किया है।
सब अतिथि इस जीवन में
गुमनामी यश कीर्ति पाओ।
हँसी खुशी से जीवन जी लो
मिल बाँट कर जग में खाओ।
गुमनाम हैं पितृ सभी के
वंश परंपरा आज उन्ही से।
चैन सुकून मिला है जो भी
सब उनके आशीर्वचनों से।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
12 नवम्बर,2019 मंगलवार
स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर
कई गुमनाम शहीद हो गये।
मातृभूमि हित जीवन जीकर
सदा सदा के लिये सो गये।
जीवन में गुमनाम आये सब
मात पिता ने नाम दिया है।
उसी नाम से जीवन जीते हम
परिचित तो कर्मों ने किया है।
सब अतिथि इस जीवन में
गुमनामी यश कीर्ति पाओ।
हँसी खुशी से जीवन जी लो
मिल बाँट कर जग में खाओ।
गुमनाम हैं पितृ सभी के
वंश परंपरा आज उन्ही से।
चैन सुकून मिला है जो भी
सब उनके आशीर्वचनों से।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
गुमनाम
नमन मंच भावों के मोती समूह।गुरूजनों, मित्रों।
गुमनामी की चादर ओढ़े बैठे हैं।
सबसे अनजान बने बैठे हैं।
हे ईश! कोई रास्ता बता दो।
मेरा भी कोई अच्छा सा नाम सूझा दो।
कोई जानता नहीं, कोई पहचानता नहीं।
किसी से मेरा कोई नाता नहीं।
आप एक जो हो जाओ मेरा सहारा।
बनकर मांझी नैया मेरी पार करा दो।
मेरा भी कोई अच्छा सा नाम सूझा दो।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
नमन मंच भावों के मोती समूह।गुरूजनों, मित्रों।
गुमनामी की चादर ओढ़े बैठे हैं।
सबसे अनजान बने बैठे हैं।
हे ईश! कोई रास्ता बता दो।
मेरा भी कोई अच्छा सा नाम सूझा दो।
कोई जानता नहीं, कोई पहचानता नहीं।
किसी से मेरा कोई नाता नहीं।
आप एक जो हो जाओ मेरा सहारा।
बनकर मांझी नैया मेरी पार करा दो।
मेरा भी कोई अच्छा सा नाम सूझा दो।
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
12/11/2019
"गुमनाम"
छंदमुक्त
################
दर-दर तुझे मैं ढूँढती रही
घर-घर पता तेरा पूछती रही
मुझे अकेला छोड़ कहाँ गए
गुमनामी में क्यों खो गए...।
ख्वाहिशें अब ना मन में रही
दिल की चाहतों को तोड़ गए
रिश्ते नाते सारे कैसे भूल गए
गुमनामी में कहाँ खो गए...।
तेरे कारण ही मैं बदनाम हुई
सोचो कैसी मेरी हालात हुई
दिल तोड़ कर जो चले गये
अपना बना कहाँ गुमनाम हुए।
गम कैसा सीने में लेकर गए
शायद मुझसे ही भूल हुई
जख्म तेरे मैं ना देख पाई
तेरी गुमनामी से रोती रही..।
ख़ता क्या मुझसे ऐसी हुई
एक बार मुझे कह तो देते
रूठ कर तुम्हें ना जाने देती
गुमनामी में ना खोने देती..।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"गुमनाम"
छंदमुक्त
################
दर-दर तुझे मैं ढूँढती रही
घर-घर पता तेरा पूछती रही
मुझे अकेला छोड़ कहाँ गए
गुमनामी में क्यों खो गए...।
ख्वाहिशें अब ना मन में रही
दिल की चाहतों को तोड़ गए
रिश्ते नाते सारे कैसे भूल गए
गुमनामी में कहाँ खो गए...।
तेरे कारण ही मैं बदनाम हुई
सोचो कैसी मेरी हालात हुई
दिल तोड़ कर जो चले गये
अपना बना कहाँ गुमनाम हुए।
गम कैसा सीने में लेकर गए
शायद मुझसे ही भूल हुई
जख्म तेरे मैं ना देख पाई
तेरी गुमनामी से रोती रही..।
ख़ता क्या मुझसे ऐसी हुई
एक बार मुझे कह तो देते
रूठ कर तुम्हें ना जाने देती
गुमनामी में ना खोने देती..।।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
विषय-गुमनाम
विधा-छंद मुक्त
कोमल पौधे-सी थी मैं
मेरी जड़ों से उखाड़ कर
ले आये तुम मुझे
इस गुमनाम सी जगह पर
फिर से रोपने
पर
क्या रोप पाये मुझे
मुरझा गई मैं
और तुम चले गये
न जाने कहाँ
मुझे छोड़ कर
इस अंधेरी बन्द कोठरी में
इन घुटी दीवारों में
दम घुटता है मेरा
मगर मजबूर हूँ
गुमनाम जिंदगी जीने को
खो चुकी हूँ
अपनी पहचान
हूँ गुमनाम
नहीं पहचानता
कोई मुझे यहाँ
कोई गुनाह नहीं था मेरा
क्यों मिली सिसकती जिन्दगी
प्यार की सजा
और गुमनामी
तुम भी हो गए गुमनाम
तुम कायर तो नहीं थे
मगर मैं नहीं हारूँगी
ढूंढ निकालूंगी तुम्हें
इन घने अंधेरों को चीर
तोड़ कर दरवाजे
इन बन्द दीवारों के
निकल जाऊंगी निश्चित ही
गुमनामी के
निविड़ अंधकार से
जल्दी ही
क्योंकि
हौंसले अभी बाकी हैं
सरिता गर्ग
विधा-छंद मुक्त
कोमल पौधे-सी थी मैं
मेरी जड़ों से उखाड़ कर
ले आये तुम मुझे
इस गुमनाम सी जगह पर
फिर से रोपने
पर
क्या रोप पाये मुझे
मुरझा गई मैं
और तुम चले गये
न जाने कहाँ
मुझे छोड़ कर
इस अंधेरी बन्द कोठरी में
इन घुटी दीवारों में
दम घुटता है मेरा
मगर मजबूर हूँ
गुमनाम जिंदगी जीने को
खो चुकी हूँ
अपनी पहचान
हूँ गुमनाम
नहीं पहचानता
कोई मुझे यहाँ
कोई गुनाह नहीं था मेरा
क्यों मिली सिसकती जिन्दगी
प्यार की सजा
और गुमनामी
तुम भी हो गए गुमनाम
तुम कायर तो नहीं थे
मगर मैं नहीं हारूँगी
ढूंढ निकालूंगी तुम्हें
इन घने अंधेरों को चीर
तोड़ कर दरवाजे
इन बन्द दीवारों के
निकल जाऊंगी निश्चित ही
गुमनामी के
निविड़ अंधकार से
जल्दी ही
क्योंकि
हौंसले अभी बाकी हैं
सरिता गर्ग
विषय गुमनाम
विधा गजल
दिनांक 12 /11/ 19
एक खत गुमनाम के नाम
बिछड़ो से अगर एक मुलाकात हो जाये
दिले जज्बातों को खुशियो काआयाम हो जाए
दिल की अलमारी में रखे अहसासों को
अपनेपन की हवा का एहसास हो जाये
उधड़ गई रिस्तो की सिलाई थी कभी
आज फिर से उसे तुरपने का मौका हो जाए
हो चुकी थी धुंधली तश्वीर मन मे बसी थी कभी
जमी धूल को मिटने का एक मौका हो जाये
यादो की एक लकीर चुभन दे जाती कभी कभी
उस कसक के मिटजाने का विराम हो जाय
वो हसी औऱ कहकहे वो खुशियो के साज
उन्हें मुस्कराने का वो साजो सामान होजाए
स्वरचित
मीना तिवारी
विधा गजल
दिनांक 12 /11/ 19
एक खत गुमनाम के नाम
बिछड़ो से अगर एक मुलाकात हो जाये
दिले जज्बातों को खुशियो काआयाम हो जाए
दिल की अलमारी में रखे अहसासों को
अपनेपन की हवा का एहसास हो जाये
उधड़ गई रिस्तो की सिलाई थी कभी
आज फिर से उसे तुरपने का मौका हो जाए
हो चुकी थी धुंधली तश्वीर मन मे बसी थी कभी
जमी धूल को मिटने का एक मौका हो जाये
यादो की एक लकीर चुभन दे जाती कभी कभी
उस कसक के मिटजाने का विराम हो जाय
वो हसी औऱ कहकहे वो खुशियो के साज
उन्हें मुस्कराने का वो साजो सामान होजाए
स्वरचित
मीना तिवारी
तिथि _12/11/2019/मंगलवार
विषय _*गुमनाम *
विधा_॒॒॒ गजल
रदीफ , रहने दो
मत ढूंढो मुझको तुम यारा
मुझे गुमनाम ही रहने दो।(1)
क्या बजूद है मेरा यहां पर
भला बदनाम ही रहने दो।(2)
सुंंन्दर आदत किसने डाली
इन्हें रत श्रीराम में रहने दो।(3)
जो गुमनामी में रहें बिचारे
लीन शुभकाम में रहने दो।(4)
पता चली श्रीराम की महिमा
अब तो निजधाम में रहने दो।(5)
नहीं गुमनाम रहेंगे राम
जरा हर नाम में रहने दो।(6)
नहीं भूल सकें रामजी अपने
अगर निजनाम में रहने दो।(7)
स्वरचित स्वप्रमाणित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय जय श्रीराम रामजी
१ भा ,*गुमनाम*
रदीफ _रहने दो
गजल 12/11/2019/
विषय _*गुमनाम *
विधा_॒॒॒ गजल
रदीफ , रहने दो
मत ढूंढो मुझको तुम यारा
मुझे गुमनाम ही रहने दो।(1)
क्या बजूद है मेरा यहां पर
भला बदनाम ही रहने दो।(2)
सुंंन्दर आदत किसने डाली
इन्हें रत श्रीराम में रहने दो।(3)
जो गुमनामी में रहें बिचारे
लीन शुभकाम में रहने दो।(4)
पता चली श्रीराम की महिमा
अब तो निजधाम में रहने दो।(5)
नहीं गुमनाम रहेंगे राम
जरा हर नाम में रहने दो।(6)
नहीं भूल सकें रामजी अपने
अगर निजनाम में रहने दो।(7)
स्वरचित स्वप्रमाणित
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय जय श्रीराम रामजी
१ भा ,*गुमनाम*
रदीफ _रहने दो
गजल 12/11/2019/
दिनांक.........12/11/2019
विषय...........गुमनाम
विधा ...........दोहा
★★★★★★★★★★★★★★
गुमनाम........
गुरु गुणगान सब करें,गुर महिमा चहुँ धाम।
ज्ञान दिए गुरु वर हमें,मत करना गुमनाम।
★★★★
द्वेश क्लेश अहंकार धर,मानव खोवे मान।
धरे कुमार्ग जब कभी,होय जगत बदनाम।
★★★★
कालिमा.......
मिटा तिमिर घन कालिमा,हुआ भोर उजियार।
ज्ञान जगत फैलाइये ,शिक्षित हो जगसार।
★★★★
कलेवर.....
मनुज कलेवर का सदा,मत करना अभिमान।
तन होगा जब खाक में, नित पूजो भगवान।
★ ★★★
सुगंध.......
महकी सुगंध पुष्प की, घर आँगन सब बाग।
तन मन सुरभित हो सदा,लगे न कोई दाग।
★★★★
प्रासाद........
कर दर्शन प्रासाद प्रभु , ले सतसंगी ज्ञान।
सब सतकर्म करो सखा , पावे जग में मान।
★★★★
पुष्पराज........
पुष्पराज है कमल दल,लक्ष्मी जी का वास।
फूल गुलाबी पंखुड़ी , शोभा इसकी खास।
★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
विषय...........गुमनाम
विधा ...........दोहा
★★★★★★★★★★★★★★
गुमनाम........
गुरु गुणगान सब करें,गुर महिमा चहुँ धाम।
ज्ञान दिए गुरु वर हमें,मत करना गुमनाम।
★★★★
द्वेश क्लेश अहंकार धर,मानव खोवे मान।
धरे कुमार्ग जब कभी,होय जगत बदनाम।
★★★★
कालिमा.......
मिटा तिमिर घन कालिमा,हुआ भोर उजियार।
ज्ञान जगत फैलाइये ,शिक्षित हो जगसार।
★★★★
कलेवर.....
मनुज कलेवर का सदा,मत करना अभिमान।
तन होगा जब खाक में, नित पूजो भगवान।
★ ★★★
सुगंध.......
महकी सुगंध पुष्प की, घर आँगन सब बाग।
तन मन सुरभित हो सदा,लगे न कोई दाग।
★★★★
प्रासाद........
कर दर्शन प्रासाद प्रभु , ले सतसंगी ज्ञान।
सब सतकर्म करो सखा , पावे जग में मान।
★★★★
पुष्पराज........
पुष्पराज है कमल दल,लक्ष्मी जी का वास।
फूल गुलाबी पंखुड़ी , शोभा इसकी खास।
★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
आज का प्रदत्त शब्द 👉गुमनाम
वार👉मंगलवार
तिथि👉१२/११/२०१९
👉गुमनाम 👉
वो गुमनाम हंसने पें उनके हंसना आया,
रोने पें उनके रोना आया,
निगाहें उनकी देख रही जह़ाने मंज़र,
गुमनाम तस्वीर का नजारा नज़र आया,
किसी के चेहरे की नाऊंमीदी उन निगाहो में,
ओ गुमनाम नाऊंमीदी का नज़ारा नजर आया,
देख-देख-देखती नाऊंमीदी निगाहें निर्भीक,
क्यो कर हुव़ा यह आलम गुमनाम नजर आया ।
देखती निगाहें लब-ए-गोर: वो हुए जारहे आमदा-ए-सौदा:,
कशिश दिलपर नसीब़े-दीगरा; नजर निर्भीक आया ।
गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक
स्वरचित मोलिक
वार👉मंगलवार
तिथि👉१२/११/२०१९
👉गुमनाम 👉
वो गुमनाम हंसने पें उनके हंसना आया,
रोने पें उनके रोना आया,
निगाहें उनकी देख रही जह़ाने मंज़र,
गुमनाम तस्वीर का नजारा नज़र आया,
किसी के चेहरे की नाऊंमीदी उन निगाहो में,
ओ गुमनाम नाऊंमीदी का नज़ारा नजर आया,
देख-देख-देखती नाऊंमीदी निगाहें निर्भीक,
क्यो कर हुव़ा यह आलम गुमनाम नजर आया ।
देखती निगाहें लब-ए-गोर: वो हुए जारहे आमदा-ए-सौदा:,
कशिश दिलपर नसीब़े-दीगरा; नजर निर्भीक आया ।
गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक
स्वरचित मोलिक
नमन भावों के मोती
आज का विषय, गुमनाम
दिन, मंगलवार
दिनांक, 1 2,11,2019,
राह सच की चल पड़ा वो,
बना के संस्कारों की ढाल ।
गुमनाम होकर रह गया वो ,
बदली थी जमाने की चाल ।
वहाँ झूठ रोशन हो रहा था ,
गुमनाम दिखा हर शहंशाह ।
स्वरूप बदला न्याय का था ,
रुपया बन गया था बादशाह ।
रंग शिक्षा का दिखा उड़ा उड़ा
भाव श्रद्धा का गायब हुआ ।
नफरतों का चला सिलसिला ,
माहौल हर तरफ बदला हुआ ।
गुमनाम कल को वो ढूँढता ,
निज आवाज को था खोजता।
इतिहास के पन्नों में खोया रहा,
भविष्य अपना संजोता हुआ ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
आज का विषय, गुमनाम
दिन, मंगलवार
दिनांक, 1 2,11,2019,
राह सच की चल पड़ा वो,
बना के संस्कारों की ढाल ।
गुमनाम होकर रह गया वो ,
बदली थी जमाने की चाल ।
वहाँ झूठ रोशन हो रहा था ,
गुमनाम दिखा हर शहंशाह ।
स्वरूप बदला न्याय का था ,
रुपया बन गया था बादशाह ।
रंग शिक्षा का दिखा उड़ा उड़ा
भाव श्रद्धा का गायब हुआ ।
नफरतों का चला सिलसिला ,
माहौल हर तरफ बदला हुआ ।
गुमनाम कल को वो ढूँढता ,
निज आवाज को था खोजता।
इतिहास के पन्नों में खोया रहा,
भविष्य अपना संजोता हुआ ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश
दिनांक - 12/11/2019
दिन - मंगलवार
विषय - गुमनाम
विधा - कविता
खो जाऊं मैं कभी गुमनामी के अंधेरे में ,
मेरे लिखे अल्फाज याद आयेंगे तुम्हें ।
हो जाऊं शांत मैं इस जहां की भीड़ से,
मेरी आवाज याद आयेंगे तुम्हें ।
कुछ कही अनकही कहानीयों सी मैं,
पीढीयों तक सुनाई आयेगी तुम्हें ।
जब भी होगी चर्चा ये आम महफिल में ,
मेरी नामौजूदगी हर वक्त रूलायेगी तुम्हें ।
न धन न दौलत न कोई शान-ओ-शौकत,
मेरी कविता ही मेरी याद दिलायेंगे तुम्हें ।
दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छग
स्वरचित
दिन - मंगलवार
विषय - गुमनाम
विधा - कविता
खो जाऊं मैं कभी गुमनामी के अंधेरे में ,
मेरे लिखे अल्फाज याद आयेंगे तुम्हें ।
हो जाऊं शांत मैं इस जहां की भीड़ से,
मेरी आवाज याद आयेंगे तुम्हें ।
कुछ कही अनकही कहानीयों सी मैं,
पीढीयों तक सुनाई आयेगी तुम्हें ।
जब भी होगी चर्चा ये आम महफिल में ,
मेरी नामौजूदगी हर वक्त रूलायेगी तुम्हें ।
न धन न दौलत न कोई शान-ओ-शौकत,
मेरी कविता ही मेरी याद दिलायेंगे तुम्हें ।
दीपमाला पाण्डेय
रायपुर छग
स्वरचित
12 /11/2019
बिषय,, गुमनाम
जीवन हो दलदल तो फँसे ही रहोगे
आधे अधूरे काम में अटके ही रहोगे
जितना सहोगे जुल्म लोग उतना ही सताएंगे
टांग खींच खींच नीचे गिराएंगे
गुमनाम सी राहों में भटकाएंगे
जीने नहीं देंगें मरने को उकसाएंगे
गिराकर ताली बजाना जमाने का दस्तूर है
मजबूर को उंगलियों पर नचाना नासूर है
क्यों किसी को सताएं क्यों किसी को. लजाएं
गुमनामी के अंधेरे से उजाले की ओर ले जाएं
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय,, गुमनाम
जीवन हो दलदल तो फँसे ही रहोगे
आधे अधूरे काम में अटके ही रहोगे
जितना सहोगे जुल्म लोग उतना ही सताएंगे
टांग खींच खींच नीचे गिराएंगे
गुमनाम सी राहों में भटकाएंगे
जीने नहीं देंगें मरने को उकसाएंगे
गिराकर ताली बजाना जमाने का दस्तूर है
मजबूर को उंगलियों पर नचाना नासूर है
क्यों किसी को सताएं क्यों किसी को. लजाएं
गुमनामी के अंधेरे से उजाले की ओर ले जाएं
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
दिनांक -12/11/2019
विषय - गुमनाम
गुमनाम हूँ तो गुमनाम ही रहने दीजिए
संतोष के संतोष को परखना बंद कीजिए
चाहत नही है इसको पटल पर छाने की
खुद के बलबूते पर पहचान बनने दीजिए ।
इच्छाओं की पोटली छोटी ही सही लगती
अधिकता किसी चीज़ की ठीक नही जँचती
भार तृष्णाओं का घटाकर तो देखिए एक बार
किसी शहंशाह की ज़िंदगी से कम नही लगती ।
गुमनाम होकर भी कैसे जी पा लेते हैं जानिए
जि़क्र एक बार नींव की ईंट से करके तो देखिए
आज चाहत मात्र है कंगूरे की सबको यहाँ
इसका गुमनाम आधार कभी बनकर देखिए ।
नाम की चाहत मे लोगों की उलझन को समझिए
अनाम रहकर अपना कर्म करके तो देखिए
राजनीति के दाँवपेंचों से दूर रहकर तुम
राज की अपनी नीति भी खुद से बनाकर देखिए ।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति
स्वरचित
विषय - गुमनाम
गुमनाम हूँ तो गुमनाम ही रहने दीजिए
संतोष के संतोष को परखना बंद कीजिए
चाहत नही है इसको पटल पर छाने की
खुद के बलबूते पर पहचान बनने दीजिए ।
इच्छाओं की पोटली छोटी ही सही लगती
अधिकता किसी चीज़ की ठीक नही जँचती
भार तृष्णाओं का घटाकर तो देखिए एक बार
किसी शहंशाह की ज़िंदगी से कम नही लगती ।
गुमनाम होकर भी कैसे जी पा लेते हैं जानिए
जि़क्र एक बार नींव की ईंट से करके तो देखिए
आज चाहत मात्र है कंगूरे की सबको यहाँ
इसका गुमनाम आधार कभी बनकर देखिए ।
नाम की चाहत मे लोगों की उलझन को समझिए
अनाम रहकर अपना कर्म करके तो देखिए
राजनीति के दाँवपेंचों से दूर रहकर तुम
राज की अपनी नीति भी खुद से बनाकर देखिए ।
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति
स्वरचित
"भावों के मोती "
दिनाँक-12/11/2019
दिन-मंगलवार
विषय -गुमनाम
कविता
गुमनाम
---------
थी गुमनाम
गुमनाम सी
रहना चाहती हूँ ।
देख तेरे चेहरे
का आब तुझमें
ही खो जाना
चाहती हूँ ।
जो थाम ले
उँगली मेरी
साथ तेरे ही
कदम मिलाए
चलते जाना
चाहती हूँ ।
उलझ जाऊँ
जो कभी
तुम मुझे
सुलझा देना ।
डूब रही हूँ
जो जीवन
दरिया में
तुम मेरे
माँझी बन
जाना ।
जब जन्म
मृत्यु तुम्हारी
मर्ज़ी क्यूँ
करूँ फिक्र
जीवन की ।
डूब तेरे प्रेम
में साहिल
के पार उतर
जाना चाहती हूँ
थी गुमनाम
गुमनाम ही
रहना चाहती हूँ ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
दिनाँक-12/11/2019
दिन-मंगलवार
विषय -गुमनाम
कविता
गुमनाम
---------
थी गुमनाम
गुमनाम सी
रहना चाहती हूँ ।
देख तेरे चेहरे
का आब तुझमें
ही खो जाना
चाहती हूँ ।
जो थाम ले
उँगली मेरी
साथ तेरे ही
कदम मिलाए
चलते जाना
चाहती हूँ ।
उलझ जाऊँ
जो कभी
तुम मुझे
सुलझा देना ।
डूब रही हूँ
जो जीवन
दरिया में
तुम मेरे
माँझी बन
जाना ।
जब जन्म
मृत्यु तुम्हारी
मर्ज़ी क्यूँ
करूँ फिक्र
जीवन की ।
डूब तेरे प्रेम
में साहिल
के पार उतर
जाना चाहती हूँ
थी गुमनाम
गुमनाम ही
रहना चाहती हूँ ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
दिनांक १२/११/२०१९
शीर्षक-गुमनाम"
मानवमात्र को चाहिए करें उत्तम काम
गुमनाम होकर क्यों रहे
करें कुल का नाम
मानवमात्र को चाहिए करें उत्तम काम।
कर्म पथ पर चले निरंतर
संचित न करें अतिरिक्त धन
इतना तो मनु जानते
परमानंद नही है धन।
खुले चक्षु जब ज्ञान का
मिटे मन अधंकार
सुभाषित कर अपना जीवन
करें मानव उपकार।
करके अपना हृदय परिवर्तन
गुमनाम जिंदगी को तजे आज
मानव कुल में जन्म लिया तो
मानवता का रखे लाज।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
शीर्षक-गुमनाम"
मानवमात्र को चाहिए करें उत्तम काम
गुमनाम होकर क्यों रहे
करें कुल का नाम
मानवमात्र को चाहिए करें उत्तम काम।
कर्म पथ पर चले निरंतर
संचित न करें अतिरिक्त धन
इतना तो मनु जानते
परमानंद नही है धन।
खुले चक्षु जब ज्ञान का
मिटे मन अधंकार
सुभाषित कर अपना जीवन
करें मानव उपकार।
करके अपना हृदय परिवर्तन
गुमनाम जिंदगी को तजे आज
मानव कुल में जन्म लिया तो
मानवता का रखे लाज।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव
12/11/2019
विषय-गुमनाम
===============
रहने दो अंधेरे में गुमनाम हमें
अमावस का चांद कहीं नजर आता है
मोतियों का ज़िक्र सभी किया करते हैं
गुमनाम धागा बिसरा दिया जाता है
शमा खामोशी से जलती है महफ़िल में रात भर
कुर्बानी का श्रेय परवाने को दे दिया जाता है
आजकल दिखावे औ चकाचौंध की है दुनियां यारो
कड़क नोट के आगे सिक्को की खनक को अनसुना कर दिया जाता है
जो दिखता है वही बिकता है बड़े बाजारों में
गुमनामी का अंधेरा ईमानदारी के खाते में लिखा जाता है ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®
विषय-गुमनाम
===============
रहने दो अंधेरे में गुमनाम हमें
अमावस का चांद कहीं नजर आता है
मोतियों का ज़िक्र सभी किया करते हैं
गुमनाम धागा बिसरा दिया जाता है
शमा खामोशी से जलती है महफ़िल में रात भर
कुर्बानी का श्रेय परवाने को दे दिया जाता है
आजकल दिखावे औ चकाचौंध की है दुनियां यारो
कड़क नोट के आगे सिक्को की खनक को अनसुना कर दिया जाता है
जो दिखता है वही बिकता है बड़े बाजारों में
गुमनामी का अंधेरा ईमानदारी के खाते में लिखा जाता है ।।
**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®
12-11-2019
गुमनाम
मुझी सा मेरे घर का पता
कैसे मिले अब तू ही बता
गुमनाम डगर मशहूर नहीं
सीधी सी गली मगरूर नहीं
परिंदों के बिखरे नीड़ सा
खड़ा किसी भग्न प्राचीर सा
कहीं खास नजर हुजूर नहीं
फैला भी उतना दूर नहीं
इक नजर उठाकर झाँकोगे
तबहीं मुझ को तुम आँकोगे
आओ तो मिलकर बात करें
हम बैठकर मुलाकात करें
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
गुमनाम
मुझी सा मेरे घर का पता
कैसे मिले अब तू ही बता
गुमनाम डगर मशहूर नहीं
सीधी सी गली मगरूर नहीं
परिंदों के बिखरे नीड़ सा
खड़ा किसी भग्न प्राचीर सा
कहीं खास नजर हुजूर नहीं
फैला भी उतना दूर नहीं
इक नजर उठाकर झाँकोगे
तबहीं मुझ को तुम आँकोगे
आओ तो मिलकर बात करें
हम बैठकर मुलाकात करें
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
12/11/19
विषय: गुमनाम
विधा:हाइकु
1
हो गयी है
'गुमनाम' जिंदगी-
विरह योग
2
बिना प्यार के
'गुमनाम' हो गया-
उसकी यादें
3
'गुमनामी' में
जीता रहा वो शख़्स-
नींव की ईंट
4
विश्व विकास-
'गुमनाम' विज्ञानी
नवीन खोज
विषय: गुमनाम
विधा:हाइकु
1
हो गयी है
'गुमनाम' जिंदगी-
विरह योग
2
बिना प्यार के
'गुमनाम' हो गया-
उसकी यादें
3
'गुमनामी' में
जीता रहा वो शख़्स-
नींव की ईंट
4
विश्व विकास-
'गुमनाम' विज्ञानी
नवीन खोज
विषय:-गुमनाम
मिल गया सबक गुमनाम राहो पर
दे गया वो कसक अंजान राहों पर
फिजा में आज भी महकता है गुलाब
जो सजदे में झुका था अंजान राहों पर
जो लिखे थे खत डूबकर चाहत में उनकी
रोज पढतें हैं खत इबादत में उनकी
आज उतर आए हैं बनके कश्ती वो
बन गयीं आखें समंदर चाहत मे उनकी
स्वरचित
नीलम शर्मा #नीलू
मिल गया सबक गुमनाम राहो पर
दे गया वो कसक अंजान राहों पर
फिजा में आज भी महकता है गुलाब
जो सजदे में झुका था अंजान राहों पर
जो लिखे थे खत डूबकर चाहत में उनकी
रोज पढतें हैं खत इबादत में उनकी
आज उतर आए हैं बनके कश्ती वो
बन गयीं आखें समंदर चाहत मे उनकी
स्वरचित
नीलम शर्मा #नीलू
कुछ हवाओं की खबर से सदमे में शहर है।
एक हम हैं जो कलेजे में तूफान लिए बैठे हैं।
तुम अपने दिल की करोगे यह मालूम तो था।
फिर उनका क्या जो तेरे अरमान लिए बैठे हैं।
वो गा के मेरे चार ही मिसरों को मशहूर हुए।
एक हम गुमनाम जो पूरा दीवान लिए बैठे हैं।
आज मांगी है दुआ खैर की हर एक ने रब से।
हम भी क्या जो मौत का सामान लिए बैठे हैं।
अब कौन पूछे हैं यूं मुहब्बत को इस दौरे दहर।
वाकई दीवाने हैं ये जो दिलों जान लिए बैठे हैं।
विपिन सोहल
एक हम हैं जो कलेजे में तूफान लिए बैठे हैं।
तुम अपने दिल की करोगे यह मालूम तो था।
फिर उनका क्या जो तेरे अरमान लिए बैठे हैं।
वो गा के मेरे चार ही मिसरों को मशहूर हुए।
एक हम गुमनाम जो पूरा दीवान लिए बैठे हैं।
आज मांगी है दुआ खैर की हर एक ने रब से।
हम भी क्या जो मौत का सामान लिए बैठे हैं।
अब कौन पूछे हैं यूं मुहब्बत को इस दौरे दहर।
वाकई दीवाने हैं ये जो दिलों जान लिए बैठे हैं।
विपिन सोहल
विषय= गुमनाम
विधा=मुक्त
दिनांक= 12 / 11 / 19
भीड़ में चुपचाप चल रहा हूँ
क्योंके गुमनाम हूँ मैं
नहीं कोई रहबर,ना कोई
हमसफर है
कदम दूसरों के देख
बढ़ रहा हूँ ,सहमा-सहमा सा
क्यों के गुमनाम हूँ मैं
शोर मचा है हर सूं
अपने होने का
हर कोई सर उठा-उठा
भीड़ को धकेलता
अहसास करा रहे अपने
होने का
हमारी आवाज नक्कारखाने की तूती है
क्योंकि गुमनाम हूँ मैं
नहीं मैं नहीं चिल्ला सकता
अपने होने के लिए
किसी को नहीं गिरा सकता
बस चलता हूँ ,अकेला मैं
क्योंकि गुमनाम हूँ मैं।
डा.नीलम
विधा=मुक्त
दिनांक= 12 / 11 / 19
भीड़ में चुपचाप चल रहा हूँ
क्योंके गुमनाम हूँ मैं
नहीं कोई रहबर,ना कोई
हमसफर है
कदम दूसरों के देख
बढ़ रहा हूँ ,सहमा-सहमा सा
क्यों के गुमनाम हूँ मैं
शोर मचा है हर सूं
अपने होने का
हर कोई सर उठा-उठा
भीड़ को धकेलता
अहसास करा रहे अपने
होने का
हमारी आवाज नक्कारखाने की तूती है
क्योंकि गुमनाम हूँ मैं
नहीं मैं नहीं चिल्ला सकता
अपने होने के लिए
किसी को नहीं गिरा सकता
बस चलता हूँ ,अकेला मैं
क्योंकि गुमनाम हूँ मैं।
डा.नीलम
12.11.2019
मंगलवार
विषय -गुमनाम
विधा -ग़ज़ल
गुमनाम
( ग़ज़ल )
ग़ुमनाम ज़िन्दगी जीते हैं, सरहद की सुरक्षा करते हैं
‘ नामी-अनामी’शहीदों में,हमें याद वो आया करते हैं।।
जज़्बात से जज़्बा भरा रहा, रक्षा हित देश के खड़ा रहा
साँसें सब देश समर्पित हैं,ये देश की रक्षा करते हैं।।
निज स्वार्थ सभी त्यागे कब से,शामिल सेना में हुए जब से
नियमों -अनुशासन में रह कर,
निज देश पे हर पल मरते हैं।।
हँसते-हँसते बलिदान हुए,निज देश पे ये क़ुर्बान हुए
इतने’ उदार’ इतने प्यारे,हिम्मत औ हौसला भरते हैं।।
स्वरचित
मंगलवार
विषय -गुमनाम
विधा -ग़ज़ल
गुमनाम
( ग़ज़ल )
ग़ुमनाम ज़िन्दगी जीते हैं, सरहद की सुरक्षा करते हैं
‘ नामी-अनामी’शहीदों में,हमें याद वो आया करते हैं।।
जज़्बात से जज़्बा भरा रहा, रक्षा हित देश के खड़ा रहा
साँसें सब देश समर्पित हैं,ये देश की रक्षा करते हैं।।
निज स्वार्थ सभी त्यागे कब से,शामिल सेना में हुए जब से
नियमों -अनुशासन में रह कर,
निज देश पे हर पल मरते हैं।।
हँसते-हँसते बलिदान हुए,निज देश पे ये क़ुर्बान हुए
इतने’ उदार’ इतने प्यारे,हिम्मत औ हौसला भरते हैं।।
स्वरचित
12/11/2019::मंगलवार
विषय --गुमनाम
************************************
हम लड़ कर लेंगें आज़ादी
हर दम पर लेंगें ..आज़ादी
ये नारा देने .......वालों सुन
मतलब "क्या" होता आज़ादी...
अंग्रेज़ी दाँत ......किये खट्टे
रानी झाँसी थी ....आज़ादी
दे डाला खून का हर क़तरा
नेता जी नाम था.. आज़ादी
वो झुका नहीं अंतिम क्षण तक
आज़ाद नाम था ......आज़ादी
जो झूल गए थे ......फाँसी पर
सुखदेव राजगुरु .......आज़ादी
अशफ़ाक उल्ला खाँ अरु बिस्मिल
कवि नाम रहे हैं ....आज़ादी
गुमनाम रहे हैं ......लाखों ही
जो नाम बन गए.... आज़ादी
भारत तेरे .........टुकड़े होंगे
क्या इसको.. कहते आज़ादी
जाओ सरहद ....सीना तानों
फिर बतलाओ "क्या" आज़ादी
हम सदा सदा से .....एक सुनो
ये ही अपनी है .........आज़ादी
आवाज़ दो हम एक .....हैं सब
है बुलन्द अपनी .......आजादी
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
विषय --गुमनाम
************************************
हम लड़ कर लेंगें आज़ादी
हर दम पर लेंगें ..आज़ादी
ये नारा देने .......वालों सुन
मतलब "क्या" होता आज़ादी...
अंग्रेज़ी दाँत ......किये खट्टे
रानी झाँसी थी ....आज़ादी
दे डाला खून का हर क़तरा
नेता जी नाम था.. आज़ादी
वो झुका नहीं अंतिम क्षण तक
आज़ाद नाम था ......आज़ादी
जो झूल गए थे ......फाँसी पर
सुखदेव राजगुरु .......आज़ादी
अशफ़ाक उल्ला खाँ अरु बिस्मिल
कवि नाम रहे हैं ....आज़ादी
गुमनाम रहे हैं ......लाखों ही
जो नाम बन गए.... आज़ादी
भारत तेरे .........टुकड़े होंगे
क्या इसको.. कहते आज़ादी
जाओ सरहद ....सीना तानों
फिर बतलाओ "क्या" आज़ादी
हम सदा सदा से .....एक सुनो
ये ही अपनी है .........आज़ादी
आवाज़ दो हम एक .....हैं सब
है बुलन्द अपनी .......आजादी
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
12/11/2019
कविता
विषय "गुमनाम"
ना समझ पाया
जिंदगी के सवाल
दर्द का हमनाम हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...
गरीबी ने दी ठोकरें
चमकती ईमारतों की
नींव का पाषाण हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...
आम हूँ चूसा हुआ
स्वार्थ के मेले में
फिंका हुआ सामान हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...
न चाट सका तलवे
अपनी ही शय में रहा
वो बंद सा तूफ़ान हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...
संतोष है धन मेरा
मिट्टी से पैर है जुड़ा
कर्म की पहचान हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...
अकेला बेज़ार हूँ
गिरते हुए बाज़ार में
बचा हुआ ईमान हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...
स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)
कविता
विषय "गुमनाम"
ना समझ पाया
जिंदगी के सवाल
दर्द का हमनाम हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...
गरीबी ने दी ठोकरें
चमकती ईमारतों की
नींव का पाषाण हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...
आम हूँ चूसा हुआ
स्वार्थ के मेले में
फिंका हुआ सामान हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...
न चाट सका तलवे
अपनी ही शय में रहा
वो बंद सा तूफ़ान हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...
संतोष है धन मेरा
मिट्टी से पैर है जुड़ा
कर्म की पहचान हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...
अकेला बेज़ार हूँ
गिरते हुए बाज़ार में
बचा हुआ ईमान हूँ
हाँ मैं गुमनाम हूँ...
स्वरचित
ऋतुराज दवे, राजसमंद(राज.)
गुमनाम
गुमनाम जिन्दगी
जीने का भी
अलग ही
मजा है दोस्तों
न दरवाजे पर
खट खट
न उससे
खट पट
है बहुत
बडी दुनियां
वो कहीं
गुमनाम हो गये
उम्मीद है
सब इतनी
शायद किसी
दोराहे पर
मुलाकात
हो जाए
थे कभी
जो गुलजार
जिन्दगी में
आज गुमनाम
हो गये
रहती थी महफिल
रोशन कभी
उनके आने से
आज वो गुमनाम
हो गयी
कैसे भुलाएँ उसे
रूह में बसी है वो
कह दिया उसने
न ढूंढे उसे
गुमनाम वो हो गयी
और आखिर में
दिया जिसने
जन्म "संतोष"
राह वो देखते रहे
छोड़ गुमनाम
चौराहे पर
वो अनजान
हो गये
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
गुमनाम जिन्दगी
जीने का भी
अलग ही
मजा है दोस्तों
न दरवाजे पर
खट खट
न उससे
खट पट
है बहुत
बडी दुनियां
वो कहीं
गुमनाम हो गये
उम्मीद है
सब इतनी
शायद किसी
दोराहे पर
मुलाकात
हो जाए
थे कभी
जो गुलजार
जिन्दगी में
आज गुमनाम
हो गये
रहती थी महफिल
रोशन कभी
उनके आने से
आज वो गुमनाम
हो गयी
कैसे भुलाएँ उसे
रूह में बसी है वो
कह दिया उसने
न ढूंढे उसे
गुमनाम वो हो गयी
और आखिर में
दिया जिसने
जन्म "संतोष"
राह वो देखते रहे
छोड़ गुमनाम
चौराहे पर
वो अनजान
हो गये
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
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