Tuesday, November 19

"अंतरात्मा"19नवम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-570
दिनांक-19/11/2019
विषय- अंतरात्मा


नारी की अंतरात्मा दर्द से पुकारती

चूड़ियों के टूटने से जख्मी होती है कलाइयां ।
बेदर्द बयां करती तन मन की रूसवाईयां।।

एक दर्द निष्प्राण करता मुझे.........

करुण क्रंदन हृदय करता
बेदर्द जख्म तेरा
मेरे प्राणों को हरता
एक कील न जाने क्यों
मेरे तन मन को चुभता
हृदय तार झंकृत हो उठता
सिद्ध चित विकृत हो जाता
कदाचित ऐ काले सूरज........
एक सृष्टि ,दो दृष्टि ना रखता
कानन उपवन से कहता
देख प्रकृति की अनुकंपा
हम दोनों को दिए उसने
एक को दर्द, एक को चंपा
कितना तूने भेद किया
क्यों कहता तु ...........
दोनों का समभाव किया
मेरा तो श्रृंगार किया
हृदयाघात तिरस्कार किया

रो रहा है आंगन
दीवारें चीखती है रात -दिन
खो गए रंगीन सपने
गुम हुई मेरी नादानियां
कील -कील चुभ रही
उड़न परियों की कहानियां
वो हँसी खिलखिलाहट
न जाने कहां गुम हो गई जवानियां
शो केस में दर्द पैदा करती
नादान चूड़ियों की बेचैनियां

स्वरचित...
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज

विषय अन्तरात्मा
विधा काव्य

19 नवम्बर,2019

अन्तरात्मा सत्य की बोधक
अन्तरात्मा हिय पुकार है।
स्वविवेक का बोध कराती
हम जीवन बहते मझधार हैं।

अन्तरात्मा अजर अमर है
संघर्षो में अनवरत हँसाती।
सदा क्रोध को काबू करती
संयम सबक सदा सिखाती।

अन्तरात्मा भक्ति शक्ति दे
राष्ट्र प्रेम रग रग भर देती।
वक्त पड़े तो मातृभूमि हित
सीने में गोली सह लेती

अन्तरात्मा की पुकार नित
मंजिल की नव राह दिखाती।
ज्ञान अज्ञान बोध कराकर
जीवन में खुशहाली लाती।

स्वरचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

आज का विषय, अन्तरात्मा
मंगलवार

19,11,2019

धीरे - धीरे मर रही,
है सदियों से बीमार,
जब से हमने भुला दिया,
है आपस का प्यार ।
सहती कितनी वेदना,
है बेबस और लाचार,
नजर न आये किनारा,
वो डूब रही मंझधार ।
कहे किसे वो निज व्यथा,
जब सोया पालनहार ,
माया ममता में बँधा,
करे दौलत का श्रृंगार ।
रहे सिसकती अन्तरात्मा,
देख रहा संसार,
भाई का भाई हुआ,
दुश्मन बीच बाजार।
मोल न आँसू का रहा,
हुए पानी की धार ।
खीझ रही संवेदना,
जग का देख व्यापार।
बिगुल नव युग का बजा,
घटा मानव का आधार,
घायल पड़ी अन्तरात्मा,
लगा रही है गुहार ।
जागो सही नहीं सोना,
करो इंसानियत से प्यार,
फलदायी सृष्टि की रचना,
देतो रहो प्रकृति को दुलार ।
स्वरचित, मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश,

"अन्तरात्मा"
कविता लेखन


खुशियां रहे जब अंतर्मन में।
तो रहे सदा खुश अंतरात्मा।
जब दुःखी रहे मानव।
तो कचोटती रहती है अंतरात्मा।

सुख हो या फिर दुःख।
समझौता कर लो खुद से।
फिर खुशहाली रहेगी मन में।
खुशहाल रहेगी तेरी अंतरात्मा।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित

भावों के मोती
शीर्षक- अंतरात्मा
कभी भी कोई भी कार्य करने से पहले

एक बार अपनी अंतरात्मा की आवाज़
कान लगाकर जरूर सुन लेना।
अगर आपकी अंतरात्मा उसे करने की
इजाजत नहीं देती तो भूलकर भी
उस कार्य को तुम मत करना।
क्योंकि अंतरात्मा की आवाज में
ईश्वर की चेतावनी होती है
जो हमें गलत कार्य को करने से
हरपल,हर क़दम पर रोकती है।
अगर इसके विरुद्ध जाओगे तो
सच कहता हूं, बहुत पछताओगे।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

19.11.2019
मंगलवार

विषय - अन्तरात्मा
विधा -ग़ज़ल

अन्तरात्मा का चलन

बहारें खिल गईं, हँसता चमन है
न जाने शोर कैसा ,मेरे मन है ।।

जरा पूछो तो ,दस्तक किसने दी है
ख़ुशी है ,या कि ग़म में खुश ये मन है ।।

#अन्तरात्मा का यह चलन है
प्रभु परमात्मा से ही मिलन है।।
समझ कर सोच कर ,कुछ बोलना तुम
अभी ठहरा हुआ ,आकाश -घन है।।

चले आओ इधर , कुछ कहना चाहूँ
मेरा मन आज तो ,ख़ुद में मगन है ।।

बड़ा मजबूत सा , जो दिख रहा है
बहुत कमज़ोर सा,पागल ये मन है।।

कभी बनता’उदार’,दरिया दिली भी है दिखाता
मगर साहिब ,बड़ा स्वार्थी ये मन है।।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘उदार ‘

भावों के मोती

“अंतर आत्मा”का यह चलन है
प्रभु परमात्मा से ही मिलन है ।

विषय-अंतरात्मा
विधा- गद्य


अंतरात्मा की सुनो.......,है मीठी आवाज।
मन को खुशियों से भरे,उर में बजते साज।।

आत्मा प्रभु का अंश है,हमारा हिस्सा है,अजर-अमर,नश्वर और शाश्वत है ।अंतरात्मा हमारी चेतना है जो हमें किसी भी काम को करने या न करने के लिए प्रेरित करती है। निर्विकार मन और आत्मा का मेल ही अंतरात्मा है,जिसका अभिप्राय सोच से है। हमारे हृदय की ऊहापोह और अनवरत चलने वाले विचारों को ही अंतरात्मा कहते हैं।विचार अच्छे हों या बुरे,वही अंतरात्मा की आवाज होते हैं।उनका पालन मनुष्य पर निर्भर करता है।
अंतरात्मा की आवाज ईश्वर की आवाज होती है,यह शुद्ध आत्मा का विधान है,हमें इसे मानना ही पड़ता है। किसी भी कार्य की अच्छाई या बुराई की निर्धारक अंतरात्मा ही होती है।वही चेतना प्रदान करती है ,क्या अच्छा है क्या बुरा, क्या करना चाहिए क्या नहीं । जो हमारे लिए प्रतिकूल है वह दूसरे के लिए अनुकूल कैसे हो सकता है ।दूसरे शब्दों में कहें तो जो बात हमारे लिए ठीक नहीं दूसरों के लिए कैसे ठीक हो सकती है।
जो अंतरात्मा की उपेक्षा करता है ,वह खुद नष्ट होने लगता है। अंतरात्मा तो हमें सन्मार्ग की ओर उन्मुख करती है पर हम उस विचार की अवहेलना कर आगे बढ़ जाते हैं।यह आवाज बहुत मीठी, मद्धम कोमल और संवेदनशील होती है पर जीवन के कोलाहल में हम उसे नजरअंदाज कर देते है,सुन नहीं पाते।यह आवाज हमें गलत-सही का आभास कराना चाहती है। किसी अशक्त की सहायता के लिए प्रेरित करती है, वृद्ध,बीमार की सेवा करने या दुर्घटना के समय किसी की सहायता करने को कहती है पर हम उस पर ध्यान नहीं देते। हृदय में पलभर की हलचल के बाद उस विचार को त्याग देते हैं,कभी मजबूरी, कभी अज्ञान,कभी नादानी, कभी झंझट से बचने के लिए या आर्थिक नुकसान की संभावना हमें उसकी सहायता करने जैसे नेक काम से रोक देती है और वह मधुर आवाज दब जाती है। जब हम उस मधुर आवाज को दबाने नहीं देते ,किसी लाभ-हानि को सोचे बिना उस प्यारी , मधुर आवाज को सुन ,किसी की सहायता करते हैं तो गूंगे को गुड मिलने जैसा अनुभव होता है।वह अव्यक्त खुशी होती है । जो अन्तर्रात्मा की आवाज सुनता है वही उस मधुरता को अनुभव कर सकता है।
अन्तरात्मा कभी गलत नहीं कहती, आवश्यकता है तुरन्त उस विचार को पालन करने की , सकारात्मक सोच की। मनुष्य की चेतना सदा अच्छाई की ओर प्रेरित करती है।

अंतर्मन की बात पर,कर लेना तुम गौर ।
ले जाती सन्मार्ग पर,मिल जाता है
ठौर ।।

सरिता गर्ग
Damyanti Damyanti 

विषय_अन्तरात्मा |
मानव तन बना पंच तत्वो से |
ग्यारह इद्रिया मन,आत्मा से |

मन भटकता इधर उधर कही भी |
भटकते मन को कराती सत्य बोध |
मन,बुद्धी की सखी अन्तरात्मा |
झूठ फरेब काहोता प्रभाव मनपर |
सखी बन कहती आवाज बन |
सुनो मनन करो क्या कर रहे हो |
सोचो सत्य या गलत नहोवो भ्रमित |
संभालो मनको गलत राहे हे |
कंटक ही कंटक हे चुभन दे भारी |
कभी खत्म न होगा चुभन के घावो का |
कहती सखी अन्तरात्मा आवो ,लौट आवो |
चलो मिलकर चले सत्य पथ,पर |
अनुभव से व ईश अनुभूतियों से जीवनसंवार लो |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा

19/11/2019
"अंतरात्मा"

################
राहें मुहब्बत की न होती आसान...
पहले मगर नहीं था इसका भान....
किस्से और कहानियों में सुना था ..
आज अंतरात्मा भी लिया ये मान....।

तड़प रही आत्मा दिन और रात...
अब छूट रहा जो अपनों का साथ...
मिली है जो आँसुओं की सौगात...
आह!सुनो अंतरात्मा की आवाज..।

आज तन्हाइयों का मिला आगोश है
किसी की निगाहें भी खामोश है....
जानें हमारी कैसी ये उल्फत है.....
जिससे अंतरात्मा भी आहत है..।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

आज का विषय👉 अंतरआत्मा
दिवस👉मंगलवार
िथि👉१९/११/२०१९
🍁🍁🍁🍁🍁
आरती,अर्चन क्याअजान
अंतरआत्मा को पहचान ,
उसीका मन्दिर,मस्जिद धूलि खुदको जान,
तेरी शब्दावली करती विघटन शब्द बखान,
इश्वर,अल्लाह धूलि-धूलि,धूलितेरी पहचान,
माटी का बखेड़ा क्यो करे सब माटी समान,
अंतरआत्मा को पहचान! !
ज्यों नामित अंग शरीर के,
सोई भिन्न-भिन्न नामित धरा की पहचान,
आ तुझे पंडित बनादूं बनजाऊं मैं मौलवी,
अनभिज्ञ से पूछेंगे क्या तेरी मेरी पहचान,
स्नेह सौहार्द से भरले झिलमिल यह दीपक जीवन,
तेरे मन भाव बनादेंगे पूज्य तेरे उत्पन्न शब्द उन्मीलन,
अंतरआत्मा को पहचान! !
जन-जन में सौहार्द के भूप बन जायेंगे प्रेम के शब्द स्पंदन,
प्रिय तू सबका प्रिय मैं सब कुछ अधर ताल शब्द पलकों का कार्य नर्तन ,
अंतर आत्मा को पहचान! !
गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक

विषय-अंतरात्मा
विधा-दोहे

दिनांकः 19/11/2019
मंगलवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:

जो कहती है आत्मा,होता सुंदर सत्य ।
मन जो कहता है हमें,होता वही असत्य ।।

ये चलती सद राह पर,करे नहीं गुमराह ।
यही दिखाती है हमें,जीवन में सदराह ।।

प्रभु से ही नाता रहे,पथ रहता है धर्म ।
हमको भटकाती नहीं,करवाती सदकर्म।।

इसकी महिमा है बड़ी,ये है हरि का रूप ।
सदा इसी को मानिये,होती सत्य स्वरूप ।।

कभी इसे तुम भूलकर,मत गल मन की मान ।
मन भटकाता है सदा,उसको झूठा जान ।।

स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय,

19/11/2019
विषय-अंतरात्मा

विधा-मुक्तछंद
"""""''''''''''""""""""""""""""
सुबह की सुहानी धूप को
अंजुली में समा लूँ
प्रकृति के सुंदर रूप को
स्वयं में समाहित कर लूँ।।
चाँद की छिटकी
चांदनी में स्नान करूँ
या स्वयं ही चाँदनी मैं
बन जाऊँ।।
चाँद तारों को
नेत्रों की ज्योति बनाऊँ
या दिनकर का प्रकाश
अपनी आत्मा में जगाऊँ।।
मैं प्रकृति के कण कण में
समा जाऊं
या सबको अपने में
समाहित कर लूँ।।
गहन रात्रि में भी
भोर का सूरज उगता देखूँ
या निज अंतरात्मा में
प्रतिपल दिव्य ज्योति मैं पाऊँ।।
तेरे अप्रतिम रूप को
अपलक मुग्ध हो कर निहारूँ।।
स्वयं जाग्रत होकर
जग उद्दीपन मैं कर पाऊँ।।

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित
विषय -अंतरात्मा
विधा - " हाइकू '

*******************
1/ नहीं सुनता ,,,
अंतरात्मा की बात
पत्थर दिल,,,,,।
2/ अंतरात्मा है,,
परमात्मा का अंश ,,,,
ढूंढे इंसान,,,,,,,।
3/जिसने सुनी ,,,,,
अंतरात्मा की वाणी,,,
बना महात्मा,,,,।
स्वरचित - " विमल '

अन्तरात्मा
सुन अन्तरात्मा की आवाज,
न हो खफा खुद ही खुद में।
ईश्वर की छांव में बैठकर न
तड़पा उस अजीज को है ।
आत्मा कही न मर जाए कर
कोशिशे जिंदगी बचाने की ।
जोड़ लें बिश्वास का बन्धन,
आत्मा परमात्मा का अटूट।
न भरमा खुद को न किसी
को बहुत खास है ये बन्धन ।
🌹🌹शुभम्वदा पाण्डेय 

अन्तरात्मा

लाचार हो
गयी है
बेबस हो
गयी है
आज
अन्तरात्मा
और उसकी
आवाज

कितना हल्का
बना दिया है
आज इसे
कितना झूठा
बना दिया है इसे

अन्तरात्मा के
नाम पर
माँगे जाते हैं
आज वोट
दहेज
और
रिश्वत

कहते हैं
अन्तरात्मा
से दिया गया
सगुन
पाने वाले को
फलता है
लेकिन
देने वाला
लुटता है

कभी
ईमान से
तो कभी
जान से

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

आज का विषय- अन्तरात्मा
19/11/2019

विधा-छंद मुक्त

युगों-युगों से धरती चंद्रमा
सूर्य यही देखते आए कि
जिन मनुष्यों ने अपनी
अंतरात्मा की आवाज सुनी
उसके निर्देशों को माना और उसे अनसुना न किया वही जीवन में
सही मार्ग पर चल पाए।
एवं बहुत आगे बढ़े।
किंतु वे मनुष्य जिन्होंने,
अपनी ही अंतरात्मा की
आवाज को अनसुना कर दिया।
, वे कभी सही और गलत में उचित और अनुचित में भेद नहीं कर पाए।
और रह गए बहुत पीछे पश्चाताप में जलते हुए।

शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

दिनांक 19/11/2019
विधा:दोहा वली

शीर्षक:अन्तर्मन/अन्तरात्मा

अन्तर्मन की जब सुनी,सिद्ध हुए सब काम।
खुशियों की बगिया खिली,मिले मुझे श्री राम।

कभी भी अनसुनी करी,अन्तर्मन की बात।
पछताती दिन भर रही,नींद न आई रात।।

देख सडक पर हादसा, पूछी मैंने खैर।
अन्तर्मन का सुन तभी,ठहरे मेरे पैर।।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव

दिनांक १९/११/२०१९
शीर्षक"अंतरात्मा"


सुनकर अपनी अंतरात्मा की आवाज
किया जो तूने ये नेक काम
मरनासन्न को दिया तूने खून दान,
मिल गया उसे जीवन दान।

मुँहमांगा जो मिल रहा था इनाम।
तूने किया उसका परित्याग
बताया तूने ये सारगर्भित बाते
रुपया पैसा नही बड़ी बाते।

सेवाधर्म ही है आभूषण हमारा
इससे बढ़ कर नहीं कोई पूजा
शोहरत के लिए नही जीते हम
मानव सेवा ही हमारा परम धर्म।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

19/11/2019
"अंतरात्मा"
ाइकु(प्रयास)
*********
ओलो की मार
रोई अंतर आत्मा
धान खराब।।

सूखी है छाती
चीत्कारी अंतरात्मा
अबोध चूसे।।

दो भाग शव
चीखती अंतरात्मा
लाल सड़क।।

वीणा शर्मा वशिष्ठ, स्वरचित

विषय अंतरात्मा

अंतरात्मा की आवाज़ से
शुचिता से ध्यान लगा
अन्तर्मन में दृष्टिगोचर
ब्रम्हांड को प्रतिबिंबित
करता ज्योतिपुंज
है आस्था का
तेजस्वी स्वरूप ।

सरल सहज आस्था से
प्रस्फुटित होते
सद्भाव और नव सृजन,
पा आस्था का संबल
मानव जीवन होता
सानंद उत्थान पथ पर अग्रसर,
है आस्था का यशस्वी रूप।

जब
धर्म की संकरी गलियों से
दूषित मानसिकता से
गुजरती है आस्था
तो जन्मता
डर ,अंधविश्वास
लहूलुहान हो
आत्मा पर चोट खा
आस्था लेती है विकृत रूप।

स्वरचित
अनिता सुधीर

🌹भावो के मोती🌹

वि
षय:-अंतरद्वंद

क्षणिका

1)))
अंतरद्वंद दिल
और दिमाग का मंथन
चिंता स्वरूप ही है
"नीलू " ये जन्मा ।

2)))
आस्था और विश्वास
के साथ गलत विचारों
की कडी अंतरद्वंद को
पैदा करती है ।

3)))
सत्कर्मों की जन्मदात्री
अंतरआत्मा की आबाज
फलस्वरूप ।

4)))

करते हैं सभी जब
अंतरद्वंद मस्तिष्क
में तब आकार लेता है
सत्य-असत्य ।

स्वरचित
नीलम शर्मा # नीलू

19/11/19

अन्तरात्मा एक
संवेदनशील मन का घर
जहां मन कुछ कहता
आत्मा कुछ कहती
हम आधुनिकता के
कोलाहल में अनसुना
कर आगे बढ़ते रहते है
बड़ी धीमी आवाज
जो सिर्फ महसूस हो तो
इस अंतर्द्वंद्व को
समझ कर मानवीय
चेतना को जाग्रत
कर लेते है
हमारा वास्तविक उद्देश्य
सफल अन्तरात्मा की
आवाज की चेतना से
एक माधुर्य फल की प्राप्ति
एक सुखद अहसास
जिसकी अनुभूति
का कोई वर्णन नही
एक ऐसा आनंद
जिसके स्वाद का
के रस का रस्वादन
गूंगा
ले सकता पर ब्यक्त नही
कर सकता

स्वरचित
मीना तिवारी

दिनांक- 19/11/2019
विषय-अंतरात्मा


आत्मा सो परमात्मा का मर्म जान लीजिए
फिर अपनी अंतरात्मा से संवाद कीजिए
इंसानियत से इंसान की पहचान कीजिए
जाति धर्म की संकीर्णता को छोड़ दीजिए ।
जीवन मूल्यों की अनिवार्यता समझिए
उनके पालन में ही खुद का भी हित मानिए ।
संकट में फँसे लोगों की सदा मदद कीजिए
परोपकार को ही सबसे बड़ा धर्म मानिए ।
धन के संचय का ऐसा सदुपयोग कीजिए
लक्ष्मी के वरदान को मान सम्मान दीजिए ।
कथनी और करनी में कोई भ्रम ना पालिए
अंतरात्मा की आवाज़ साज़ समझा कीजिए ।
हर जीव के प्रति दया भाव रखा कीजिए
अपने शौक के कारण उनका वध ना कीजिए ।
पेड़ -पौधौ को भी सजीव मान लीजिए
निर्दयता से उनको जड़ से ना यूँ उखाड़िए ।
प्रकृति के अस्तित्व से ही खुद को जोड़िए
उसके उपादानों का दोहन ना कीजिए .
प्रकृति के कण -कण में खुदा तलाशिए
चित्त में उस पिता का ही ध्यान रखा कीजिए ।
समय समय पर खुद का विश्लेषण किया कीजिए
एकाग्र होकर अंतरात्मा का मूल्याकंन कीजिए ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित

दिनांक -19/11/2019
विषय-अंतरात्मा

कार्य ऐसा हो जिसमें प्रफुल्लित हो आत्मा
कुछ भी ऐसा न करो कि कचोटे अंतरात्मा
मन वाणी कर्म से जब शुद्ध होवे आत्मा
ऐसे चिरंतन सत्य की साक्षी बन अंतरात्मा
जब भी सुने ,जब भी गुने अंश हो अंतरात्मा
इस पथ पर चलते-चलते , ही मिलेगा परमात्मा ।
स्वरचित -मोहिनी पांडेय

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