Monday, November 18

"जिम्मेदार"18नवम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-569
प्रथम प्रस्तुति

जिम्मेदारी को जब से वो जाने हैं
रहते कुछ अनमने कुछ बेगाने हैं ।।

दिल की दुनिया से परे वो रहते हैं
सपने अपनों के उन्हे सजाने हैं ।।

अपनी ख्वाहिश के गमले हटा दिए
सबकी ख्वाहिश में अपना सुख माने हैं ।।

वक्त नही विसरी यादों को दें हवा
वर्तमान से तालमेल बनाने हैं ।।

जिम्मेदारी कहाँ सोने देती है
रोज रोज रहें नये अफ़साने हैं ।।

जिम्मेदारी कतारबद्ध जब खडीं हों
नींदों को फिर 'शिवम' कौन पहचाने हैं ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 18/11/2019
विषय : जिम्मेदारी
विधा : छंदबद्ध कविता


. पता नहीं कब पहल करोगे

ढेर , ईंट, सीमेंट , रेत का ,
कहो खड़ा कब महल करोगे।
फिर-फिर कहकर फिरते रहते,
पता नहीं कब पहल करोगे ।।

लंगड़े भी तो दौड़ रहे थे
लेकर अपने दर्द पाँव में
पेड़ अगर बोता बचपन में
बैठा होता आज छाँव में

नहीं बैठकर मिलती मंजिल ,
पहुँचोगे जब, टहल करोगे।
फिर-फिर कहकर फिरते रहते,
पता नहीं कब पहल करोगे ।।

पहल हमेशा करता वो ही ,
होता जो आत्मविश्वासी ।
रखता जो तैयार योजना ,
नहीं साथ में नींद उदासी ।

पता नहीं कब दिलो,जुबां पर,
तुम भी चहल-पहल करोगे ।
फिर-फिर कहकर फिरते रहते,
पता नहीं कब पहल करोगे

नफे सिंह योगी मालड़ा ©
स्वरचित कविता
मौलिक

दिनांक- 18/11/2019
विषय -जिम्मेदार
वि
धा- कविता
***************
पता नहीं कब तुम जिम्मेदार बनोगे?
अपने काम तुम कब आप करोगे?
समझदारी से कब तुम मिलोगे?
नादानी को कब तुम छोड़ोगे?
बेटा कब तुम जिम्मेदार बनोगे?
बोलो तुम कब जिम्मेदार बनोगे?

सुबह-सुबह तुम्हें, मैं ही जगाती,
हर-पल तुम्हारी चिंता हो जाती,
कॉलेज घर से जब तुम जाते?
लाइसेंस,पहचान पत्र भूल जाते,
गाड़ी तुम फिर खूब तेज भगाते,
क्यों तुम जिम्मेदार नहीं बन जाते?

सामने रखी चीजों को अनदेखा करते,
मम्मी मुझे ये नहीं मिला ये रोज कह जाते,
बेटा थोड़े से जिम्मेदार बन जाओ,
मेरी बढ़ती उम्र पर तरस तो खाओ,
सदा मैं कहाँ साथ रहूँगी तुम्हारे ?
मेरे चंदा सुनो मेरी आँखों के तारे |

डांट जो मैं कभी तुम्हें लगाती,
अंदर से कितना मैं जल जाती,
तुमको कैसे मैं एहसास दिलाऊँ?
कैसे बेटा तुम्हें जिम्मेदार बनाऊँ?
लापरवाही करना छोड़ो मेरे लाल,
जिम्मेदारी से अब मिला लो हाथ |

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*

विषय -जिम्मेदार/ जिम्मेदारी
दिनांक 18 -11 -2019
एक जिम्मेदारी ने मुझे,सब सिखा दिया।
छोटी सी उम्र में,देखो बड़ा बना दिया।।

जिम्मेदारी का बोझ,जब मेरे कंधें आया।
मैंने अपने बचपन को,मन से भगाया।।

अल्हड़ था जीवन मेरा,सबसे अनजान।
जिम्मेदारी ने,समाज रहना सिखा दिया।।

बुढ़ापे का तजुर्बा,मैने जवानी में लिया।
जिनसे हुई रूबरू,अनुभव नया दिया।।

ख्वाहिशों को,समझौते में बदल दिया।
अपना जीवन,परिवार नाम कर दिया।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

दिनांक-18/11/2019
विषय- जिम्मेदार


फिर ये उठी सदा- ए- आखिर आवाज हिंदुस्तान से।

हिंद को जगाया मर्द- ए- काबिल ने जिम्मेदारियों के ख्वाब से।

अत्याचार बेखौफ था.......
हिंसा थी वाचाल
क्रूरता के हाथों में थी
देश की बेखौफ कमान
जनता थी मूक नादान।
तब अवतरित हुआ
हाड मांस का जिम्मेदार इंसान।।

नायक जिम्मेदार था या खलनायक.............
गुलामी की त्रासदी से था देश बेहाल
यह तपोभूमि थी ऋषि मुनियों की
जहां पर बहता था अहिंसा का मृदु पानी।
जहां पे रागिनीयां मस्त बयारे गाती अमृतवाणी।।

जिम्मेदार कर्मयोगी.........के भाव
धर्म भाव भूतल में छाए
कर्म भाव जन-जन में आए
निष्काम फल जीवन में पाए
मन में था अटल विश्वास
कर्मयोगी के जीवन की थी यही एक आस।।

स्वरचित

सत्य प्रकाश सिंह

दिनांक 18/11/2019
विधा:छणिकाऐ

विषय:जिम्मेदार

आँखो मे जलन
नाक मे खुजली
गले मे खराश
मास्क लगा के खुद को
बचाता जन मानस ।
अस्पतालों मे डेंगू के बढते मरीज
घरों के असमय बुझते चिराग
जिम्मेदार कौन?
एक दूसरे पर आरोप लगाती सरकारें
या विभागीय अधिकारी।
क्या हम भी जिम्मेदार है?
सोच बदलो
धरती माँ, नदियाँ ,पर्वत
सब का कर्ज उतारो।
इससे पहले कि प्रलय आ जाय
हम सब जिम्मेदार
बनना है जिम्मेदार नागरिक ।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
Damyanti Damyanti 

विषय_ जिम्मेदार |
कब बचपन बीता याद नही |
आया समय ज़िम्मेदारी का |

मै कभी हारी नही जीवन मै |
बच्चो को सिखाया सबक धीरेसे |
ज़िम्मेदारी की जडे स्वतंत्रता के |
अर्थ होते क्या ,क्यो ,कैसे निभाना |
ज़िम्मेदारी बोझ नही उसके लिऐ |
जो समझते हकीकत ,विकास तभी |
जब मानव हर तरह की ज़िम्मेदारी को |
घर समाज देश के प्रति अपने श्रेष्ठ कर्यत्व को |
जापान हे विकसित देश इसीलिए सब जिम्मेदार नागरिक |
दुनिया की सबसे बडी दवा यही आगे बडने की |
जिम्मेदार कभी हारता नही|
वह जीतता या सीखता जीवन मे |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा

विषय-जिम्मेदार
विधा-दोहे

दिनांकः 18/11/2019
सोमवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:

जिम्मेदारी से सदा ,होते हैं सब काम ।
नहीं समझते जो इसे,वे होते नाकाम ।।

जिम्मेदारी ही सदा,देती हमको जीत ।
वे ही आगे अब बढें,यही सदा से रीत ।।

सभी समझ लो बात ये,मिले तभी यह चैन ।
जब हों जिम्मेदार हम,नहीं रहें बैचैन ।।

सुनो पते की बात सब,सदा करें निज कर्म ।
बिन कुछ किये नहीं मिले,कर्म हमारा धर्म ।।

आगे बढता है वही,जो जाने ये मर्म ।
जो कुछ करते ही नहीं,वे होते बेशर्म ।।

वो सीखे वो जीतता,जो चलता सदराह ।
वो दुख पाता है सदा,जो हो लापरवाह ।।

स्वरचित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय
18/11/2019
नमन मंच भावों के मोती समूह।गुर्जरों, मित्रों।


आज की कुव्यवस्था के लिए जिम्मेदार कौन।
चारों ओर फैली हुई है चोरी, बेइमानी।
एक दूजे के दुश्मन बन गये हैं सब।
एक दूजे का अस्तित्व खत्म करने की सबने ठानी।

मारामारी मची हुई है।
मार-काट हो‌ रही है।
कहीं चले बंदूक, गोली।
कारोबार सभी शैतानी।
चारों ओर फैली हुई है चोरी बेइमानी।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित

18/11/2019
विषय-ज़िम्मेदार

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अधिकार की तो सब बातें करते हैं
कर्तव्य और ज़िम्मेदारी की भी बात करें तब तो कोई बात बने..

संविधान ने सबको समान अधिकार दिए हैं
भाषा,जाति धर्म वर्ग सबमें समानता दिखे तब तो कोई बात बने...

बेटा बेटी एक समान, बेटियां हैं घर की शान
मगर अधिकारों में भी समानता हो
तब तो कोई बात बने....

वृद्ध होते माता पिता की जायदाद पर हक़ तो जमा लिया
अपनी ज़िम्मेदारी का भी भान रहे
तब तो कोई बात बने...

सरकार को कोसने में सब माहिर हैं
हक़ की मांग करने में सब तुरंत हाज़िर हैं
कुछ फ़र्ज़ की भी बात करें तब तो कोई बात बनें...

इस देश के हम सब वासी हैं ये हक हमें बख़ूबी याद हैं
ये देश हमारा घर है हम सब इसकी औलाद हैं
तो कुछ कर्तव्य निभाने की ज़िम्मेदारी भी लें तब तो कोई बात बनें....

**वंदना सोलंकी**©स्वरचित®
18 /11 2019
बिषय,, जिम्मेदार

हम सभी देश के नागरिक हैं जिम्मेदार
फिर क्यों सौंपते कमजोर हाथों में पतवार
भारत हमारा ऐसा जैसे बिशाल सागर
भूमि है माता पिता हैं दिवाकर
बीच लहरों में न डगमगाए नैया
मजबूती से बेड़ा पकड़े ऐसा हो खिवैया
हर हाल में चलता रहे न माने कभी हार
फिर तो सहज हो जाएगी कठिन से कठिन मझधार
देश की तरह ही हो सभी परिवार
सूप जैसे हों मुखिया सूत्रधार
प्रथम परिवार फिर समाज सुधरेगा
मेरे देश का चमन.सारे विश्व में महकेगा
हम सुधरेंगे युग सुधरेगा विश्व गुरु कहलाएगा
मेरा हिंदुस्तान सोने की चिड़िया. फिर हो जाएगा
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
18/11/2019
"जिम्मेदार"

लघु कविता
################
अपने घर से ही शुरुआत करें
छोटे-छोटे कार्य करके सीखें
जिम्मेदारियों का निर्वहन करें
एक जिम्मेदार सदस्य बनें...।

समाजिक कुप्रथाओं को दूर कर
समाजसेवी संस्था का गठन कर
आदर्श समाज की स्थापना कर
सामाजिक जिम्मेदार व्यक्ति बन..।

राष्ट्र के उत्थान में सहायक बनें
आर्थिक विकाश में सहयोग करें
मुश्किल घड़ी में मिलकर साथ रहें
एक जिम्मेदार नागरिक बनें।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
विषय :-जिम्मेदारी

मै
ं औरत हूँ या औ+रत
औ-- औरों के लिए
रत --- लगे रहना औरों
के लिए जीना। तो बस
औरों के लिए ही जी गई ।
.फिर न पलटकर देखा ।
तब मैं-मैं न रही, मै खुद
में ही सिमट के रह गई।
आज रंगे हैं हाथ खुद के
खून से और चमक रही हूँ ।
जिम्मेदारी के नूर से
अंतरद्वंद मन का जिसे
बहुत कुछ कहा नहीं मैंने,
अपने गुस्से को पी गई ।
उबाल आया तब जब भी
अपने होठों को सीं गई।
कर सकती थी कत्ल
औरों की संवेदनाओं का
खून अपनी ही आत्मा का
कर गई
रंगने चाहे सुनहरे ख्वाब
जिम्मेदारी में रंग गई,
उठाया सर आकांक्षाओं ने
समय के आगोश में जाने
वो फिर किधर गई।
लेकर शर्म हया अपनी
जिम्मेदारी में दब गई।

नीलम शर्मा # नीलू

दिनांक: 18 नवम्बर,2019

🙏🙏जिम्मेदार🙏🙏

हम जिम्मेदार नागरिक बनकर,
देश में अपना कर्तव्य निभाएँगे।

उन्मुक्त गगन में ध्वज फहराकर,
जन गण मन राष्ट्रगान हम गाएँगे।

देश के वीर शहीदों को वंदनकर,
हम चरणों में नित शीश झुकाएँगे

त्याग और तपस्या की धरती पर,
देश प्रेमी वीरों के गीत सुनाएँगे।

महावीर,बुद्ध,नानक को नमनकर
हम खुशियों के फूल खिलाएँगे।

अहर्निशं सत्य के पथ पर चलकर,
शांति समभाव के दीप जलाएँगे।

शिवाजी की गाथाओं को पढ़कर,
हम एक नया इतिहास‌ बनाएँगे।

तन मन और धन सदा अर्पणकर,
भारत माता का सम्मान बढ़ाएँगे।

'वसुद्यैव कुटुम्बकम्' को अपनाकर,
सर्वे भवन्तु सुखिन: भाव फैलाएँगे।

'रिखब' कविकुलगुरू सब मिलकर,
एक अभिनव कीर्तिमान बनाएँगे।

स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित®
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
जयपुर राजस्थान

जिम्मेदार

परेशान इन्सान
रसातल में जाती
इन्सानियत
दुषित पर्यावरण
फैलता प्रदूषण
हर जगह भीड़
बढती मंहगाई
विदेशों का चस्का
उपेक्षित माता पिता
भरते वॄध्दाश्रम
खाली होते गाँव
पलायन शहर
कम होते पशुधन
मिलावट जमाखोरी
आखिर है कौन
जिम्मेदार
इन हालातों का
इन्सान और
सिर्फ इन्सान

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

भटकते बच्चे

आज का विषय, जिम्मेदार,
दिनांक, 18,11,2019


पतन हो रहा व्यक्ति का,
कौन है जिम्मेदार।
खो रहा भरोसा रिश्तों का,
हर मन में हाहाकार ।
घर को बनायें माता पिता,
होकर के जिम्मेदार ।
अस्तित्व रहेगा तब घर का,
जब घर में रहेगा प्यार ।
कोई मोल नहीं अपनेपन का,
इससे ही चले संसार ।
कर्तव्य समझ लें हम अपना,
बन जायेंगे जिम्मेदार ।
होगा विकास फिर भारत का,
होगी चारों तरफ बहार ।

स्वरचित, मधु शुक्ला, सतना, मध्यप्रदेश
भावों के मोती
विषय--जिम्मेदार

______________________
जिम्मेदारी के बोझ तले,
ख्व़ाहिशें दम तोड गईं।
बढ़ती रहीं चेहरे पे सिलवटें ,
निशानी उम्र की दे गईं।

दो से शुरू किया सफ़र,
संग साथी इस संसार में।
बच्चों से ही रही बहार,
जीवन के इस आँगन में।

ज़रूरतें पूरी करने में कब,
ज़िंदगी हाथों से फिसल गिरी।
लेखा-जोखा पढ़ने में कब,
खुशियों सूखे पत्ते सी झरी।

पलटते रहतें हैं बैठ फिर,
यादों की पुस्तक के पन्ने।
भूल गए वो भी बड़े होकर,
कल-तक जो बच्चे थे नन्हें।

श्वेत बाल सिलवटें लिए,
जीवन के अंतिम छोर खड़े।
कोई उम्मीद नहीं दिल में लिए,
जब अपने ही हैं दूर खड़े।

यही दस्तूर ज़िंदगी का,
बड़े विकट इसके झमेले।
रिश्तों के संग जीने वाला,
एक दिन रह जाता अकेले।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित

18/11/19
जिम्मेदारी

सेदोका
577577

काट के वृक्ष
उगाते बोनसाई
सभ्यता चोट खाई,
खेतों में अब
मकान की फसलें
विकास दम्भ भरे।

दूषित वायु
अशुद्ध आबोहवा
कैसे बढ़े बिरवा ,
झूठा क्यों दावा
कौन है जिम्मेदार
रहेगा पछतावा

नयी पीढियां
घेरती बीमारियां
जिम्मेदारी निभाओ
करो प्रयास
पूरी करिये आस
जिम्मेदारी सुवास ।

स्वरचित
अनिता सुधीर
विषय-जिम्मेदार
विधा- हाइकु

दिनांकः 18/11/2019
सोमवार
आज के विषय पर मेरी रचना प्रस्तुति:

पर्यावरण लाचार
वृक्ष कटाई
हम जिम्मेदार।

वृद्ध लाचार
कब्जाई संपत्ति
बेटा जिम्मेदार

कुत्ता वफादार
औलाद पराई
कौन जिम्मेदार

बंद पत्राचार
मोबाइल सब कुछ
कौन जिम्मेदार

हर घर दीवार
रिश्तों में दरार
कौन जिम्मेदार

स्वरचित
विनोद वर्मा 'दुर्गेश'

विषय जिममेदार
विधा कविता

दिनांक 18.11.2019
दिन सोमवार

जिम्मेदार
💘💘💘💘

जब हम छोड़ देते हैं जिम्मेदारी
अस्त व्यस्त होजाती व्यवस्था सारी
बढ़ जाती कर्म निष्ठों की लाचारी
बढ़ जाते एकदम व्यभिचारी।

कोई भी चाहे छोटा हो या हो बडा़
किसी भी पायदान में हो चाहे खडा़
यदि वह जिम्मेदारी निभाते नहीं लडा़
तो सब कुछ यूँ ही रहेगा सदा पडा़।

जिम्मेदार !यानि आत्मानुष्ठित व्यक्ति
जिम्मेदार!यानि समर्पण और सँतुष्टि
जिम्मेदार!यानि कर्म के प्रति गहरी अनुरक्ति
जिम्मेदार!यानि अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व की प्रस्तुति।

स्व रचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
नमन भावों के मोती
दिनांक १८/११/२०१९
शीर्षक-जिम्मेदार"


अपनी बर्बादी के हम खुद है जिम्मेदार
क्षमता से ज्यादा की आकांक्षा
कर रहे हैं हमें बीमार
और "और "की चाह में
भाग रहे हम दिन व रात,
वेश भूषा बदल कर अपना
बदल दिये ख़ानपान।
धर्य खोते जा रहे हम
अस्थिरता के हुए शिकार
आत्मविश्वास खोकर हम
दूसरों की"लाइक"में जी रहे ,
समय रहते गर नही चेते तो
परजीवी बन जायेंगे हम।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

तिथि _18/11/2019/सोमवार
विषय _'जिम्मेदार'

विधा॒॒॒ _छंदमुक्त

मैने अपनी
सारी जिम्मेदारी
सरकार को सोंप दी है।
क्योंकि हमारी सरकार
बहुत नेकनीयत और
संवेदनशील है।
वह हमारी जन्म से ले
मृत्यु तक का इंतजाम
अच्छी तरह करती है
हमें केवल भारत भू पर
अवरित होना है
आगे सब
सरकार को जिम्मेदारी
लेना है।
हम चाहें जितनी शादी करें
अपनी फुटवाल या क्रिकेट टीम घर की ही बनाऐं
हमें खाने पीने
सब मुफ्त मिलेगा
बच्चों की पढाई लिखाई
यहां तक कि नौकरी का जिम्मा
सरकार के हाथ रहेगा
बिजली पानी मुफ्त
हमारे मफलर वाले भाई सा
अपने घर से करेंगे
आखिर बडे समाज सेवक हैं न
वे नहीं तोऔर कोई नेता
हमारे घर पानी भरेंगे
और हम बैठे बैठे
आराम से जुगाली करेंगे।
काम करना
अब आदत नहीं हमारी
क्योंकि सब सरकार की जिम्मेदारी
हम ही वास्तव में
स्वतंत्र हुऐ है जबसे
यहां से अंग्रेज गये हैं
जितनी भी सरकारें बनेंगी
आऐंगी जाऐंगी सभी
जिम्मेदारी हमारी
वही निभाऐंगी
और हमें आजीवन क्या
हमारी भावी पीढ़ियों को भी
आलसी बनाती जाऐंगी
अपनी संस्कृति निभाऐंगी।

स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश

18/11/2019
विषय:---"जिम्मेदार"
चंद-अनुभूतियाँ

(1)
भूले कर्तव्य
याद रहे अधिकार
बदहाल योजनाएं
कौन जिम्मेदार
(2)
जिम्मेदारियां
छीन ले गई बचपन
दर्द की सलवटें हैं
उम्र जैसे पचपन
(3)
रातों की नींद को
उम्र चुराती रही
जिम्मेदारियां
अलार्म बनके जगाती रही
(4)
वो किसी बहकावे में ना आये
जिसने समझी. ..
गरिमा कुर्सी की
जात पात से उठकर
जिम्मेदार को बैठा आये
(5)
न पिता थे खड़े
न माँ थी पास
उसे वक़्त ने कराया
जिम्मेदारी का अहसास

स्वरचित
ऋतुराज दवे

विषय जिम्मेदारी

एक नारी
जो न हारी
कहते सब बेचारी
ढेरो मिलती
जिम्मेदारी
निपुण होती
माँ बाप के घर
जली भुनी भी बनाती
जब माँ नही होती
ढेरो जिम्मेदारी की
मालकिन होती है
किलकारी देती है
दो परिवारों में ढलती है
घर को रोशन करती है
खुशियो में भर देती है
एक नारी ही ऐसी होती है
कभी फुरसत में न जीती है
अंत समय तक जिम्मेदारी
में जीती है

स्वरचित
मीना तिवारी

विषय जिम्मेदार
विधा काव्य

18 नवम्बर 2019

जिम्मेदारी बड़ी चीज़ है
संस्कार हमें सिखलाते।
आग में तपते जो जीवन
वे सच्चे इंसान कहलाते।

परिवार पालन जिम्मेदारी
मात पिता सेवा जिम्मेदारी।
राष्ट्र सेवा बड़ी जिम्मेदारी
प्रभु ध्यान मानव जिम्मेदारी।

जिम्मेदारी बोझ नहीं होती
जिम्मेदारी पावन सेवा है।
ज़िम्मेदारी जो निभाता जग
जिम्मेदारी से मिलता मेवा है।

तन मन से जो हो समर्पित
वह ही है जिम्मेदार इंसान।
स्नेह लुटाता नित मुस्काता
जीवन में वह रखता मान।

स्वरचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

दिनाँक-18/11/2019
शीर्षक-जिम्मेदारी, जिम्मेदार

विधा-हाइकु

1.
वृक्ष लगाना
जिम्मेदारी हमारी
नैतिक फर्ज़
2.
बाल विवाह
जिम्मेदार है कौन
रोकें क्यों नहीं
3.
कटते पेड़
बढ़ता प्रदूषण
घटते साँस
4.
बेटी बचाओ
जिम्मेदारी निभाओ
बेटी पढ़ाओ
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा

18/11/19
विषय.. जिम्मेदारी

........................
उठाई है जिसने हँस कर सारी जिम्मेदारी....
उसी को मिली है जिंदगी में कप्तानी...
काम से जिसने जी है चुराया...
उसने कहाँ कोई मुकाम पाया....

मेहनत से रंग भरते हैं वे ही सपनों में...
जिसने ली कांधे पर कमान सम्हाल...
उसने ही पाया जिंदगी में कोई मुकाम...
जिसने मंजिल के लिए वार दीअपनी जान...

सोया ना जागा वो सारी सारी रात...
जिसको था अपनी मंजिल से प्यार
इसी को कहते हैं जिम्मेदारी मेरे यार
पूजा नबीरा काटोल
नागपुर

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"अंदाज"05मई2020

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