Saturday, October 27

"करवा चौथ /सुहाग /सुहागिन "27अक्टूबर2018

                                                                                          
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✍️
भार
त देश की विविध कहानी 
संस्कृति,तीज त्योहारों की 
कोई न सानी
🍁
प्रमुख व्रतों में करवा चौथ
जो आता कार्तिक की चौथ
करवा कथा बड़ी निराली
🍁
भाई बहन का स्नेह दर्शाती
बहन को झूठा चांद दिखाता
भाभियाँ सब होती निराली
🍁
ननद सुहागिन कामना करती
प्रथम प्रहर सगरी करती
अंतिम पहर चंद्र दर्शन करती
🍁
सबका गहना है कंगना बिंदिया 
सिंदूर बिछिया 
सदैव चाहती रहकर सजना
🍁
आ जाते जब सजना आंगन 
छा जाता जीवन में बसंत
भूल जाती ओठों की जड़ता
🍁
सुहागिन नारी बड़ी सुहाती
घर घर में है पूजी जाती
हर सुहागिन प्रतिक्षित रहती
🍁
रहे अमर सबका सजना
एक दूसरे के पूरक दोनों
एक बिन दूजा अधूरा होता
🍁
🙏ये ईश्वर की कृति अजब
है धरती पर सर्वश्रेष्ठ सबद🙏


🌿🌹🎊🌹🎊🌹🌿

स्वरचित-आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद

करवाचौ
*********
लाल-लाल बिंदी और साजन का साथ
मन को भाए मेरे ओ मेरे दिलदार।
सुहागिन मरूँ मैं सातों जन्म
माँगू मैं शारदे एक यही वरदान।
आरजू मेरी वो ,मन्नत मेरी
खुशियों को देता एक वही दिलदार।
टिका लगाना,कुमकुम लगाना
पायल की झन झन से तुझको लुभाना।
कंगन की खन खन पे तेरा है नाम
साल बाद आया मोहन दिलदार।
धड़कन पर लिखा है तेरा ही नाम
सरगम सी धड़कन सुन मेरे दिलदार।
सांवली सी सूरत,प्यारा सा नाम
आंखे है तेरी कमाल ही कमाल।
तेरे नाम का कर रही आज श्रृंगार
मेहंदी पर लिखा है तेरा ही नाम।
करवाचौथ मैया देना तुम साथ
खुशियां हो सारी सुहागन के पास।
देखूं मैं चाँद को अर्ध्य के साथ
किरणों से मांगती मंगलों का हार।




पति के लिये ही सजती नारी

पति के लिये व्रत करती नारी ।।
पति से बढ़ कर न कोई दूजा
यही संस्कृति है रही हमारी ।।

नेम धेम भी उसको करती 
करवा चौथ का व्रत धरती ।।
साजन की लम्बी आयु हो 
माथे में सिंदूर भी भरती ।।

पति में है परमेश्वर का नूर 
पति से वो पल भर न दूर ।।
पति की खातिर यम से लड़ी
सती सावित्री का किस्सा मशहूर ।।

त्याग की ''शिवम" है वो सूरत 
प्रेम की मानो है वो मूरत ।।
सुहागनियों से घर सजता
सुहाग नारी की पहली जरूरत ।।



सोभाग्यकांक्षी
सरहद पर है, मेरा चांद
वियोग मुझ पर है भारी।
करवाचौथ आया है पिया
घर आने की करो तैयारी।।

चिरंजीवी
कैसे भूल जाऊं फर्ज मेरा, 
लाखों चांदों की जिम्मेदारी।
सरहद से नहीं लौट पाऊंगा
मत करना प्रतीक्षा हमारी।

सोभाग्यकांक्षी
जला रही है वीरहाग्नि मुझे
बताओ कैसे मैं बच जाऊँ।
न दिन में चैन न रात को नींद
कैसे तुम बिन दिन बिताऊँ।।

चिरंजीवी
हिन्द वतन के है हम रखवाले
तुम हो एक भारतीय पतिव्रता।
कैसे कर दे हवाले दुश्मन के ,
हिन्द का एक छोटा सा टुकड़ा।।

सोभाग्यकांक्षी
खुश हूँ मैं तुम्हे प्यार है हिन्द से
मैं भी हूँ सरहदी शेर की नारी।
लाखों के सुहाग सुरक्षित रहें,
निभाये मेरा सुहाग जिम्मेदारी।।

चिरंजीवी
ओह! प्यारी आ रहा हूँ मैं घर
मख़ौल ज़रा सा किया है प्रिय।

सोभाग्यकांक्षी 
आओ पिया तुम देर न लगाओ
इंतजार कर रही है छलनी प्रिय।

स्वरचित
सुखचैन मेहरा


माथे पर कुमकुम सजे
करें सोलह श्रृंगार
सुहागिनें मनाएं मिलकर
करवाचौथ का त्यौहार

मेहंदी लगे हाथों में
रंग-बिरंगी चूड़ियां
आलता लगे पैरों में
छनकती हैं पायलिया

हो सुहाग अमर 
सब गाएं मंगलगीत
व्रत यह निर्जला
है चंद्र दर्शन की प्रीत

बादलों संग अठखेलियां
कर खूब सताता चांद भी
धरती पर चांद से मुखड़े
देख इठलाता बहुत वो

देखो वो देखो चाँद नजर आया
सब सखियों का मन हर्षाया
अर्घ्य देकर चंद्रमा को करें व्रत पूर्ण
खुशियों से भरा हुआ हो जीवन सम्पूर्ण
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित कविता



मैं करवाचौध मनाऊँ पिय, साथ सदा तेरा पाऊँ पिय।
लेकर तेरी हर एक बला,बलिहारी तुझ पर जाऊँ पिय।

मैं नित निर्जल उपवास करूँ,
बस हरपल तेरा ध्यान धरूँ।
सारी खुशियाँ तुझ पर वारूँ,
हर मुश्किल से तुझको तारूँ।

बनकर मैं तेरी परछाई,पग-पग तेरा साथ निभाऊँ पिय।
मैं करवाचौध मनाऊँ पिय, साथ सदा तेरा पाऊँ पिय।

उम्र लगे सब तुमको मेरी,
मेरी सारी खुशियाँ ‌ तेरी।
मिले प्यार नित तेरा मुझको,
हरपल मेरा अर्पण तुझको।

है बस मेरी इच्छा इतनी,हरपल तुझको हरसाऊँ पिय।
मैं करवाचौथ मनाऊँ पिय, साथ सदा तेरा पाऊँ पिय।

लेकर करवा साड़ी चूड़ी,
खूब बनाऊँ हलवा पूड़ी।
मैं आशीष बड़ो का पाकर,
पूजन करूँ आरती गाकर।

देकर अर्घ्य चाँद को पहले,करवा की रीत निभाऊँ पिय।
मैं करवाचौथ मनाऊँ पिय, साथ सदा तेरा पाऊँ पिय।

सज-धज सोलह श्रृंगार करूँ,
छलनी के भीतर चाँद धरूँ।
देख‌ चाँद को मैं व्रत तोंडूँ,
पूजन करके नरियल फोंडूँ।

मिले मुझे तेरा साथ सदा,ईश्वर को भोग लगाऊँ पिय।
मैं करवाचौध मनाऊँ पिय, साथ सदा तेरा पाऊँ पिय।

स्वरचित
रामप्रसाद मीना'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट (म.प्र.)



प्यार के धागों से रिश्तों की डोरी से 
जोड़ दूँ ये संसार पिया 

करवाचौथ का व्रत में रखूँ 
कर सोलह श्रृंगार पिया 

नीराजल रहे के व्रत करूँ 
माँगू तेरी लम्बी उम्र पिया 

धरती का तू चाँद मेरा 
तुझमें सारे अरमान पिया 

चूड़ी ,बिंदी ,मेहंदी,कंगन
तुझसे सारे श्रृंगार पिया 

करवाचौथ में तुम्हें देख के 
पूरा हो व्रत मेरा पिया 

व्रत नहीं ये तो प्यार है 
जोड़े जो दो मन के तार पिया 

तेरे प्यार में वारी जाऊँ 
तू मेरा संसार पिया 

डॉक्टर प्रियंका अजित कुमार 
स्वरचित


सुहागिनों का महापर्व 
करवाचौथ है आया 
सजनी ने साजन का 
सम्मान है बढा़या
करके सोलह श्रृंगार 
बैठी है घर के द्वार 
कभी देखे छत के मुंडेर 
कभी देखे खिडकी के पार 
एक चांद निकले तो 
दूसरा चांद साथ लाये 
साथ रहे मेरे सजना का 
प्यार हो जाये अमर 
करवा चौथ पर हे माता
मांगू मैं तुझसे ये वर 
सजना को मिल जाये 
मेरी सात जनम का उमर 
मेरी सुहाग अमर रखना 
जब तक टूटे न सांसों की डोर-*
-------------------------------------------
दीपमाला पाण्डेय 
रायपुर छ.ग.



_________________________

पत्नी करती विश्वास से करवा चौथ
मिलता रहें पति का ताउम्र सहयोग ।
नारी धर्म जब करती हैं यह उपवास
पतिदेव को देते हैं दीर्घायु यमलोक ।।

मत लगाओं इधर - उधर तुम गोता
बंटाधार कर देती हैं बहार की सोत ।
गिरगिट जैसा रंग बदलते है झूठे रिश्ते
सोत नही करती हैं कभी करवा चौथ ।।

सात फेरों वाली ही हैं असली पौध
जो निर्जला होकर करती हैं करवा चौथ ।
क्या हम पति भी करें ऐसा एक उपवास
दिल-दीमाग में लाओं सकरात्मक सोच ।।

चांदनी रात मे हम दोनों देखें अपना चेहरा
दुनिया को बता दे हम आज अमिट संयोग ।
आओं आज हम पति भी करें करवा व्रत
सात वचनों को करें साकार बनकर महायोग ।।

 गोपाल कौशल
नागदा जिला धार मध्यप्रदेश
99814-67300

©स्वरचित® 24-10-18
-________________==_=__=

मुक्तक .......

(1) चांदनी - सी जिंदगी
________________________

कंगन, कुमकुम, मेहंदी कर सोलह सिंघार
चंद्र को देकर अर्ध्य , प्रिये का मुख निहार ।
रहें अमर सुहाग ,करें करवा चौथ का व्रत
मंगल भावना लिए रहती निर्जला,निराहार ।।

(2)

करवा चौथ पर मेरे प्रियतम
करना न तुम कोई सितम ।
याद रखना सदा सात वचन
करें उजाला , मिटाकर तम ।।

(3)

पतिदेव पर मैं हो जाऊँ बलिहारी
चाहें जो कहें मुझे ये दुनिया सारी ।
रहें चांद- सी शीतलता हमारे जीवन मे
हँसी-खुशी गुजरे यह जिंदगी प्यारी ।।

 गोपाल कौशल
नागदा जिला धार मध्यप्रदेश
99814-67300

(स्वरचित) 24-10-18



आओ प्रिय करवा चौथ का पर्व मनायें !
जन्म जन्म का साथ स्नेह से निभायें !!

धुप, दिप, अक्षत,कुमकुम,रोली, मोली!
सजाये संग संग प्यार भरी थाली !!

चूड़ी ,बिंदिया, महावर, कंगना !
चाँद उतरेगा आज हमारे अंगना !!

स्नेह की तुम मुझ पर बारिश कर दो !
हमारे अंगना प्रेम की गंगा बहा दो !!

दुःख दर्द का तुम आज कर दो विसर्जन !
निज नयन करेंगे आज स्वर्ग के दर्शन !!

नयन निहारे प्रिय तेरी सूरत प्यारी !
तेरी मोहनी मूरत पे मैं जाऊँ बलिहारी!!

सातों जन्म तुम्हे ही प्रियतम पाऊं !
तन मन से मैं करवा चौथ मनाऊं !!

छलनी से चाँद का करूँ दीदार !
जन्म जन्म मिले तेरा प्यार अपार!!

सत्यनारायण शर्मा "सत्य"
राजस्थान



शरद ऋतु और कार्तिक का महीना 
तीज त्योहारों वाला यह महीना 
करक चतुर्थी या कहो करवा चौथ पुनीत

हर सुहागिन के मन बसता मनमीत
प्रियतम सुहाग वह सुहागिन कहलाए
करवा चौथ व्रत हर्षित होकर मनाए
अपने प्रियतम के हृदय में बसती
अर्धांगिनी का ताज पहनती
अपने रूप में चार चाँद लगाती 
सोलह श्रिंगार कर पिया को लुभाती
कुमकुम लेकर जब माँग सजाती
प्रियतम अस्तित्व का बोध कराती
नैनों का काजल माथे की बिंदिया
प्रियतम अपने की हर लेती निंदिया
काँच की चूड़ियाँ कलाई में सजाती
अपने पिया का जीवन खनकाती
गले में शोभित उसका हार शृंगार
प्रियतम पर लुटाती प्यार ही प्यार
पायल के घुँघरू पैरों में बजते
पिया के घर आँगन को ध्वनित करते
रंजक बत्ती होठों पर लगाती
पिया के अधरों पर लालिमा छा जाती
नाक की नथनी कानों के झुमक़े
पिया मन उपवन ख़ुशियों से महके
प्रियतम उसको प्राणों से प्यारा
अपना सारा जीवन उस पर वारा
उसका प्रियतम उसका स्वाभिमान
अखंड सौभाग्यवती का माँगे वरदान
श्रद्धा से करवा चौथ पर्व मनाती
सदा सुहागिन वह कहलाना चाहती। 

स्वरचित
संतोष कुमारी



दस्तक त्योहारों की आ गई
सबके मन में खुशी छा गई
देखते देखते बीत गया साल
दस्तक करवा चौंथ की आ गई

सजी दुल्हन सी हर नारी
फिर से हाथ मेंहदी रचा रही
व्रत निर्जला रख कर दुआ
अमर सुहाग की मांग रही

किये सोलह श्रंगार फिर 
हर घर आँगन महक रहा
कुमकुम बिंदिया माथे पर
हाथ कंगना खनक रहा

रहे अमर चंद्रमा जैसा
मस्तक सिंदूर सुहाग का
देकर अर्ध्य चंद्र को
मांगे वर अमर सुहाग का

स्वरचित :- मुकेश राठौड़


करवा चौथ कितना पावन मनभावन ।
संगम प्रीत, शास्त्र रीत, जानो कितना लुभावन ।।
सौभाग्य मेरा, जीवन पती का
परीवार मिलन ।।
बारह घंटे उपवास हो शरीर शुद्ध ना आसक्त ।
प्रथिन विघटन, जनन सृजन, वसा मर्दन ।
हर त्यौहार के पीछे छुपा एक शास्त्र पुर्ण संदेश ।।
सचैल स्नान, आभुषण, वस्त्र नवीन
मुख पर विलसित तेज़ महान ।।
जल चढावू चाँद को
शीतलता के प्रतिरूप को
यही तो दिखाना है प्रियतम को
कष्ट से मैं नही डरु हर हासिल में शीतल रहूं ।।
शिव पार्वती, गणेश, कार्तिकेय का सम्मान
परिवार को लेकर चलने का अभिमान ।।
सजी करके नव श्रृंगार परिधान
उपवास त्याग पती के हाथों जल प्राशन
हे चाँद तू हमेशा चांदनी से घिरा
हम एक दूजे के प्रीत पखेरा
आशीष दे सौभाग्य मनो कामना ।।

स्वरचित
डॉ .नीलिमा तिग्गा (नीलांबरी)




विषय - करवाचौथ
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करवाचौथ पर्व अति मनोहर,
हृदय भाव आते हैं भर-भर।
सौभाग्य-कामना पत्नी करती, 
निर्जल-निराहार रह-रहकर। 

नववधू-सा करती श्रंगार, 
चंद्र भी माने अपनी हार। 
नख-शिख तक श्रृंगार करें, 
प्रेम-भाव होता है अपार। 

मां गौरी की करती आराधना, 
पति-दीर्घायु की करती कामना। 
जन्म - जन्म ये साथ न छूटे, 
मन में होती यही भावना। 

चंद्र उदित हो आया नभ में, 
लेकर चलनी-दीपक हाथ में, 
करती है वह चंद्र का दर्शन, 
देती अर्घ्य करे नमन वो मन में। 

फिर प्रियतम का दर्शन करती, 
सौभाग्य - सिंदूर से मांग भरती। 
जल पीकर पति के हाथों से, 
अपने व्रत का समापन करती। 

अभिलाषा चौहान 

स्वरचित 

ऐ चाँद आज बादलों में न छुप जाना,
पिया से पहले तुम दिखाई दे जाना, 
आज किया है मैंने सोलह सिंगार,तेरी,
चाँदनी में करूँगी पिया का दीदार |

मेंहदी लगा ली आज हाथों में मैंने,
पहन लिए फिर से सब गहनें ,
हाथ में करवा संग सजा थाल, 
संग में शामिल कईं सुहागिन बहनें |

छलनी से होगा आज तेरा दीदार,
पिया का मिलेगा खूब सारा प्यार, 
उनकी लम्बी उम्र का वर तु देना, 
वहीं हैं मेरे जीवन का असली गहना |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



ऐ चन्दा मत निर्मोही बन,
तू आ!देखूँ अपना साजन।

तेरी आशा में भोर से बैठी,
अन्न-जल सब छोड़ के बैठी,

सज-धज सब श्रृंगार सजाये,
मेहदी, महावर,सिंदूर सजाये,

लाल सजा कर चूड़ी-कंगन,
सज के सँवर के बैठी आंगन---

ऐ चन्दा मत निर्मोही बन,
तू आ!देखूँ अपना साजन।

ऐ चंदा तू वर दे मिझको,
दूँगी फिर आशीष मैं तुझको।

सात जनम साजन को पाऊँ,
सदा सुहागन ही कहलाऊँ,

व्रत ये है सुन्दर है पावन,
प्रेम भरा मोहक-मनभावन,

ऐ चन्दा मत निर्मोही बन,
तू आ!देखूँ अपना साजन।

मां गौरा के आशीष को पा के,
रहे सुहागिन सदा धरा पे,

चाँद को देखे व्रत को तोड़े,
जनम-जनम का नाता जोड़े,

'पी' के हाथ से पी कर पानी,
बन जाये पी उर की रानी,

रहे सदा सुख-दुख में शामिल,
सजनी और साजन---

ऐ चन्दा मत निर्मोही बन,
तू आ!देखूँ अपना साजन।

....स्वरचित....राकेश पांडेय,




प्रेम फिज़ा मे महक रहा है.. 
करवा-चौथ फिर आया है.. 
पति की दीर्घायु की ख़ातिर..
पत्नी ने संकल्प उठाया है..

मांग मे भर सिंदूर पिया का..
उसकी लाज निभाती है.. 
निर्जल रहकर व्रत करने को..
खुद मन भी ना हिचकाती है..

सतत् निरंतर पूजा करके.. 
परमेश्वर पति को मानती है..
सदा सुहागन रहने का..
वरदान प्रभु से मांगती है.. 

लड़ी सावित्री जैसे यम से..
अपने पति के प्राण को...
चारो लोको मे घूमी जब..
सिंदूर के मान सम्मान को..

कितना निश्छल प्रेम है इनका..
सारे दुख को सह जाती है..
अपने पति की खातिर ये..
सारे जग से भिड़ जाती है..

पति धर्म ही कर्म तू समझे..
ऐ नारी तू सौभाग्यनी है.. 
त्याग कहुँ बलिदान कहूँ जो..
उपमा दूँ.. सब नाकाफी है..

प्रेम फिज़ा मे महक रहा है.. 
करवा-चौथ फिर आया है.. 
पति की दीर्घायु की ख़ातिर... 
पत्नी ने संकल्प उठाया है..

स्वरचित - विनय गौतम
(Dubai)
चंद हाइकू 
1
गिरिजा पर्व 
करवाचौथ पूजा 
चाँद को गर्व 
2
चाँद ईर्षित 
करवे मे सिमित 
भार्या गर्वित 
3
चाँद चांदिनी 
सुहाग सुहागिनी 
रात्रि संगिनी 
कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित 
देहरादून उत्तररखण्ड
विधा दोहे
आयी करवा चौथ है कर सौलह श्रृंगार ।
प्रियतम मुझको देखते ,जैसे चाँद निहार।।

चंद्रोदय के बाद ही ,खुश होती है नार।
अर्घ्य मिठाई दे उसे , पाती है उपहार।।

गौरी जी को कर नमन ,संग सखी के साथ।
माँगू मैं वरदान यह,रहे संग पति नाथ ।।

निर्जल व्रत है चौथ का , लिए हाथ में जोत।
श्रद्धा अरु उत्साह से ,रहती हरदम प्रोत ।

स्वरचित 
कविता मिश्रा
सीतापुर

करवाचौथ लघुकथा ********* 
आज प्रिया का पहला करवाचौथ था।प्रिया आज के जमाने की पढ़ी लिखी लड़की थी और वो व्रत में विश्वास नहीं रखती थी। पर सास - ससुर का मान रखने की वजह से उसने यह व्रत रखा था।प्रिया अपने किचन में काम कर रही थी तभी उसकी नज़र अपने पति पर पढ
़ी जो आफिस का कार्य कर रहे थे और उसके पैर के नीचे सर्प देख वह घबरा गई जब तक वह भागी तब तक सर्प उसे डस चुका था और वह भागी हुई गई और अपने पति का सारा जहर पी लिया था। और खुद बेहोश हो गई। पर पति को तुरंत ही होश आ गया था। तो सब लोग अफ़रा-तफ़री में प्रिया को अस्पताल गए। डाक्टर ने उपचार के बाद सारा जहर निकाल दिया। पर कमजोरी के कारण उसे कुछ खाने को कहा इतना सुनते ही प्रिया की सास बरस पड़ी कि आज प्रिया का व्रत है और वह कुछ भी नहीं खा सकती। इतना सुनते ही प्रिया का पति तुरंत जूस लेकर आया और पिलाने जा ही रहा था कि सास ने फिर अपनी बात शुरू की।अब प्रिया का पति बोला कि बहुत हो चुका ये सब यह व्रत पति की दीर्घायु के लिए होता है और आज प्रिया ने मेरी जान बचाई है। अब मेरी बारी है इतना कहते हुए उसने जूस पिलाया और अब तक सब समझ चुके थे कि वह सही कह रहा है सच्चा प्रेम और विश्वास ही सब कुछ है बाकी सब इंसान की ही रीत है। 
इति शिवहरे
औरैया
सोलह श्रंगार किये सजनी ने,
जोडा लाल चूनरी ओढी।
श्रंगारित ऊपर से नीचे ज्यों,
नखशिख सजी दामिनी दौडी।

प्रेम प्रर्दशित करने का दिन ये,
दीर्घायु हों सखी पति तुम्हारे।
संकल्प लिया जो तुमने मनसे,
सदा साथ रहें प्रिय पति तुम्हारे।

सतत सदा सुहागिन सखी रहो,
निर्जल वृत शुभ उपवास रखो।
करवा चौथ वृत रखकर तुम,
निर्मल मन से उपवास रखो।

अंजन आँख लगा सजनी के,
मृगनयनी सी अंखियाँ इसकी।
सिंंदूर मांग में दमक रहा है,
माथे चमके बिंदिया इसकी।

चारू चंन्द्र सा चमके आनन,
जो पहने स्वयं गर्वित हैं भूषण।
चंद चकोर भ्रमित हुआ आज कुछ,
भूल गए ये खुद को आभूषण।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
प्रिय की तुलना 
आज चाँद से है,
करवाचौथ की जो रात है।

बात निकली, 
क्यों होती है,
प्रिय की तुलना चाँद से ही।

सूरज भी है,
तारे भी है,
ग्रह नक्षत्र सारे भी तो है ।

किसी ने कहा यही रीत है।
कोई बोला चाँद सुंदर है।

कोई रीत बना कर भूल गए,
कोई चाँद ही में खो गए।

मगर जवाब तो मिलता ही हे
और वो मिला भी,
सुनकर तसल्ली हुई मन को
कोई जवाब था भी।

जवाब था,
तुलना सूरत से नहीं सीरत से होती हैं।
चाँद की सीरत भी प्रिय सी होती है।

चाहे घटता है 
चाहे बढ़ता हैं,
चाहे नजरों से
ओझल भी हो जाता है कभी,
मगर साथ नहीं छोड़ता है कभी।

प्रेम भी घटता बढ़ता रहता हैं
मगर खत्म नहीं होता है कभी।

स्वरचित :-
मनोज नन्दवाना
करवा चौथ का व्रत करती हरबार
सजन मेरे आ भी जाते अबकी बार

जो चाँद मैं देखूँ 
तू भी देखती वही चाँद
यही कहते रहे हरबार 
झलक अपना तो 
दिखला जाते इस बार

करवाचौथ का व्रत करती हरबार 
सजन मेरे आ भी जाते अबकी बार 

जानती हूँ कर्मों से बंधे हैं 
मजबूरी तेरी
इसलिए तो दिल को
समझाती रही बार बार

करवा चौथ का व्रत करती हरबार 
सजन मेरे आ भी जाते अबकी बार 

सखियों संग आते सबके सुहाग
देखकर चाँद तेरी तस्वीर देखती
रही हरबार 
मन मेरा दुखता यहीं बार बार

करवा चौथ का व्रत करती हरबार 
सजन मेरे आ भी जाते अबकी बार 

तेरे बिन लगता अधूरा श्रृंगार 
चूड़ियों की खनक और
पायलों की छनक तो
सुन जाते एक बार

करवा चौथ का व्रत करती हरबार 
सजन मेरे आ भी जाते अबकी बार 

हाथों में रचायी मेहन्दी तेरे नाम
रंगों को नजरों से अपने
देख जाते इस बार 

करवा चौथ का व्रत करती हरबार 
सजन मेरे आ भी जाते अबकी बार

छलनी में साथ साथ कर लेते
चाँद का दीदार
हाथों से अपने जल तो 
पिला जाते एक बार 

करवा चौथ का व्रत करती हरबार 
सजन मेरे आ भी जाते अबकी बार 

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल

आज सजनी को भाय साजन 
आज बने वो उसके भगवन 
शेष दिन रहे वो रावण 
रोज घुर्राती पत्नि 
आज चरण छूती 
और कहती 
तुमसा ही मिले 
जीवनसाथी 
जो सुन सके
खरी -खोटी 
लम्बी आयु 
की मांगू मे दुआ 
आज के रोज 
आज है करवाचौथ 
लाना आज उपहार प्रिय 
महँगाई है डायन 
ऊपर से जी. स. टी 
किन्तु कुछ तो 
चीज लाना 
भले हो वो नेक सी 
आज मे भी चुप रहकर
शांति का दूंगी उपहार प्रिय 
यूँ ही मनाये हर वर्ष 
ये त्यौहार प्रिय... 
स्वरचित 
शिल्पी पचौरी
यह हमारे मर्म भावों का चरम है
यहाॅ एक प्रार्थना ही बस परम है
नारी सुहाग के लिए वन्दन करती
प्रार्थना में निज अन्तर्मन धरती। 

एक अनूठा व्रत अपने सुहाग के लिए 
अपने मन के अद्भुत पराग के लिए 
चन्द्रमा की सारी वो बलायें लेती है
उस पर अपनी आॅखें जमाये रहती है।

मन की भावनाओं को उमंगों से झंकृत करती
मेहन्दी कुमकुम बिन्दी से सौन्दर्य अलंकृत करती
चन्द्रमा उतारते हुए छलनी में हौले से 
प्रियतम के मन में भावों के अमृत भरती। 

नारी प्रेम की यह पराकाष्ठा 
कितनी बड़ी उसकी आस्था 
भारतीय नारी धन्य है सबसे
दूसरे देशों में कहाॅ यह आस्था।
स्निग्ध सघन श्यामल निशा ,
शरद चंद्र की उज्वललित दिशा,
चाँद सा चेहरा मुकुल घन,
बिंदी, पायल, कंगन, सिंदूरी मिशा,
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नव नूतन अभिसार चिरंतन ,
कर थामे मिस पूजन थाल, 
छलनी में यूँ शशी निहारे,
साजन हित श्रृंगारिक चाल, 
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दीप पूँज की ओट बावरी,
सज सोलह सिंगार नागरी, 
राह तके छत की मुँडेर पर, 
मेहँदी रचे हाथ, पैर पे महावरी, 
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करवा चौथ की संजरी सजाऐं
नार सुहागन चौथ मात मनाऐं
अमर रहे चूँडी,बिंदी,एहीवात,
अखंडित रहे मेरा सजन सौगात,,,,,,,,,,,,,,, 
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स्वरचित:-रागिनी नरेंद्र शास्त्री 
दाहोद(गुजरात)
व्रत रखा हैं मैंने करवा चौथ आपके नाम का पिया 
लम्बी हो उम्र हो आपकी दिल से दुआ हैं पिया 
हर जन्म मिले मुझे आपका साथ पिया 

आप ही हो हर जन्म मेरे जीवन साथी पिया .

आपके नाम की हाथों में मेहँदी लगा ली हैं मैंने पिया 
पैरों में नूपुर माथे पर बिंदिया सजा ली हैं पिया 
माँग में सिंदूर गले में मंगलसूत्र सजा लिया हैं पिया 
जल्दी से अपनी सूरत दिखा दो चाँद भी धरती पर आ गया हैं पिया .

आज का दिन बड़ा ही ख़ास हैं पिया 
हर पल हर कदम आपके आने की आस हैं पिया 
मुझे आपका बस इंतजार हैं पिया 
करवा चौथ के शुभ दिन बस आपका दीदार करना हैं पिया .

करवा चौथ का पवित्र हैं त्यौहार पिया 
सबके जीवन में लायें खुशियां हज़ार पिया 
सलामत रहे सबकी जोड़ी पिया 
सब सुहागिनों के संग हो हमेशा उनके पिया .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
सुहाग क्या है ये तो मैने कभी नहीं था जाना 
सात फेरे अग्नि साक्षी कारण उसे पहचाना 

तन-मन सोप जीवन की चिंताओं को भूली 
सुहाग संग खुशियों के पलने में मैं तो झूली 

कंगन, बिंदी, बिछीया,पायल,पहने जब सारे 
दर्पण भी लजा रहा जब साजन करते इशारे 

मन मंदिर में दीप जले नयन मेरे शरमाए
कैसे दिल को थाम लूँ जब साजन पास आए 

स्वरचित कुसुम त्रिवेदी

लेकर करवा आई मैया,भरदे मेरी झोली।
बच्चों से घर भरा रहे,साथ रहे हमजोली।

उनको भी तुम खुश रखना माँ, छोड़ जिन्हें मैं आई।
और उन्हें भी खुश रखना,जहाँ आई मेरी डोली।।

सासुजी की आशीष पाऊं, ससुर जी से बाबुल सा प्यार।
जेठ जेठानी के आशीर्वाद से,खेलूँ खुशियों की होली।।

देवर नटखट सदा सताए,जैसे हो कृष्ण कन्हैया।
अमर सुहाग देवरानी पाए,दिल से निकले बोली।।

तीज त्यौहार ननदिया आये,लेकर संग जँवाई जी।
उनके स्वागत द्वार बनाऊं,जगमग करती रंगोली।

सदा सुहागन भाभी मेरी,सज कर सोलह श्रृंगार।
पिला चुनरी लेकर आये,संग भतीजों की टोली।।

बहन बहनोई और भानजे, गाये खुशियों के गीत।
जीवन भर हो सर पर चुनड़ी,हाथ हो कंगन रोली मोली।

करवाचौथ पर ओ मोरी मैया,इतना करना उपकार।
सबके घर आँगन खुशियां हो,चलती रहे ठिठोली।।

रानी सोनी"


करवा चौथ
आया करवा चौथ, चाँद अत्यंत ही ख़ुश होगा,
सजी धजी दुल्हनों का उसे भी तो दीदार होगा,

झांकेगा जब धरती पर, सुहागनों का अम्बार होगा,
श्रंगार और सौन्दर्य देखना, उसका भी सौभाग्य होगा,

पति पत्नी के पावन प्यार का आज़ उसे एहसास होगा,
प्यार और समर्पण का है यह रिश्ता, उसे ज्ञात होगा,

एक अंजान सा रिश्ता जो जीवन भर साथ निभाता है,
सात फेरों के बंधन में बंधकर, सातों वचन निभाता है,

करवा चौथ का इंतज़ार तो हर सुहागन करती है,
लम्बी उम्र पति की हो, यही कामना करती है,

नई नवेली दुल्हन हो या फ़िर हो उम्र दराज़ सुहागन,
जब आता है करवा चौथ, झूम उठता है उनका मन,

कंगन झुमके मेंहदी कुमकुम से सोलह श्रंगार करती हैं,
साँझ ढले तब सज धज कर चंदा का इंतज़ार करती हैं,
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पति भी चोरी चोरी हर पल चंदा को तकता रहता है,
पत्नी को कुछ खिलाना, उसका प्रथम प्रयास रहता है,

प्यार तो हर दिन ही है, लेकिन यह दिन कुछ ख़ास है,
पति के हाथों से तोडना उपवास यही पत्नी की आस है,

निर्जला रहकर भी मन में रहता हर्ष और उल्लास है,
करवा चौथ पति पत्नी के अटूट प्यार का त्यौहार है,

बादलों की ओट में छुपकर चंदा नीचे निहारता है,
सबको आज़माता हुआ, धीरे धीरे ही सामने आता है,

कुछ शर्मा कर कुछ लजाकर, पति का दीदार करती हैं,
आरती उतार पति की, फ़िर जल ग्रहण वह करती हैं,

देख कर प्यार पति पत्नी का चंदा आनंदित हो जाता है,
जोड़ी उनकी सलामत रहे, वरदान भगवान से मांग लाता है।

- स्वरचित
-रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

करवा चौथ,......

कब चौत का चाँद , मेरी छत पर आएगा

करवाचौथ पर्व पर , है मन में हजारों चाह 
सुहागिने तक रही , अब चाँद तुम्हारी राह 

कहे हर सजनियाँ , ये साजन बैठो मेरे पास 
थक गए नयन भी , है अब दर्शनों की आस 

मेहंदी तय कर दी , गहरा हमारे प्रीत का रंग 
प्रेम की तपिश रहे , सदा रहें आगोश में संग

हो जाता है इस बात , का यकीं देखकर से
क्यों इतराती हैं सुहागिने , मेहंदी के रंग से

निगाहें बार बार , आसमान पर टिकीं आज 
पति के प्रेम की , चाँदनी मे नहा लेती राज 

आसमा में आज चौथ , का चाँद निकलेगा 
धरा का चाँद आसमा , के चाँद को देखेगा 

ये सुहाग के लिए , मंगल कामनाये करेगी
चाँद को देख कर , व्रत का समापन करेगी

सात जन्मों का ना जानूँ , ना माँगूँ कोई वरदान
हमेशा इस धरा पर बस , मेरा ही रहे मेरा चाँद

छोड़ चलूँ जब जहाँ , सज़ू हाथों से तेरे है सपना
ओढ़ा कर लाल चुनरी , माँग मेरी तुम ही भरना 

सज धज कर दुल्हन सी , खनकाए चूड़िया आज
सजाए पूजा की थाली , दिया भी इतराये "राज"

माँग में सिंदूर चमके लाल , माथे पे रहें सिंदूरी चाँद
दुल्हन सा लगे ये स्याह , आसमा का केसरिया चाँद

✍🏻 राज मालपाणी,.’राज’
शोरापुर-कर्नाटक


आज का दिन बड़ा ही पवित्र,पावन है
हर सुहागिनों को बड़ा ही मनभावन है।
आज चाँद से सजदे की अनमोल रात है,
लब पे तो साजन जी की ही बात है ।हाँ!...आज कार्तिक माह की चौथ को,
ले करवा सजा पूजा का थाल हाथ में,
संग सखी, सहेलियों,बहनों के साथ में,
सुहागिन लगाती मेहंदी, माँग है सजती
ओढे लाल चुनरिया करती सोलहा श्रृंगार है।
आस्था, प्रेम-विश्वास का यह बड़ा ही प्यारा सा सुहागिनों का त्यौहार है।
निर्जला व्रत रख करती पिया जी के लिए
चौथ माता से लंबी उम्र की कामना है।
गगन में चमक चाँद इतरा रहा है,
मन मेरा पिया के आसपास मंडरा रहा है।
आज चाँद अपने पूरे शबाब पर है।
लुका-छिपी खेल सुहागिनों को बहला रहा है।
पर ऐ चंदा मैं भी हार न मानूँगी,
नारी हूँ सहना आता है मुझे,
अपने प्रिय साजन जी के लिए आज
हँसते-मुस्कुराते हुए भूख- प्यास सह जाऊँगी।
चाँद जब तू चमकेगा अम्बर पे,
छलनी से तुझमें में प्रीतम को निहारूँगी
जल-ग्रहण कर पिया जी के हाथ से,
हृदयतल तक तृप्त हो जाऊँगी।
देखेगे जो वो एक नजर प्यार से
मुरझा हुआ चेहरा खिल जाएगा।
हे चंदा!....चमकेगा एक चाँद गगन में तो,
.......धरा पर भी यह चाँद चमकेगा।
.........धरा पर भी यह चाँद चमकेगा।

©सारिका विजयवर्गीय"वीणा"
नागपुर (महाराष्ट्र)
चंद्रकिरण 
बिखरी चँहु ओर 
दूधिया रात

चाँद नभ में 
एक चाँद दिल में 
किसे निहारुं

दीप उजास 
देखती सुहागिनें-
साजन रूप

करवा थाल
जगमग है चाँद-
श्रद्धा पूजन 

चाँद निकला 
छन्नी से निहारती--
व्रती नारियाँ

हर्षित सब
पूजन थाल लिए-
तोड़ते व्रत

हैं अर्ध्य देते
चंद्रदेव पूजन --
कतारबद्ध 

सैनिक पति 
चलनी में है चाँद -
रूप समाये 

शादी का जोड़ा
नव वधु बनती-
यादों में खोई

स्वरचित 

सुधा शर्मा राजिम छत्तीसगढ़
विषय, करवाचौथ
ऐ चाँद तुम जल्दी से अपना दीदार करा जाना
भूखी प्यासी बैठी हूं दिन भर से बेकरार
अब तो दरश दिखा जाना 
छलनी से करूंगी पिया मैं तेरा दीदार
ऐ चाँद तुम जल्दी से आ जाना
मेहंदी से रचे हाथ सजे चूड़ी के साथ
लेके पूजा का थाल लेकर करवा हाथ
माँगती हूँ तुमसे रहे पिया का सदैव साथ
चिरायु का वर मेरे पिया को दे जाना
मेरे व्रत का फल मेरे पिया को दे जाना
ऐ चाँद जरा अपना दीदार करा जाना
मेरा सौलह श्रगांर सब पिया से है
मेरे जीवन में प्यार पिया से है
मेरे जीवन का आधार सिर्फ पिया से है
मेरा घर संसार पिया से है
ऐ चाँद , सात जन्म साथ रहूं ऐसा वर मुझे दे जाना ,
 हर साल करवाचौथ का व्रत मे रखूं यही उपहार मुझे दे जाना ,
जीवन भर का साथ रहे पिया संग
इतना वर तुम दे जाना
🙏 स्वरचित हेमा जोशी 🙏
" सुहाग"
तेरे नाम का लगा सिंदूर,
करूँ सोलह श्रृंगार पिया,
रहे उज्जवल जीवन मेरा,
जलता रहे सुहाग का दिया,
जीवन रूपी इस किताब में,
शब्द मैं, तू अर्थ पिया,
बिना प्रेम के तेरे,
जीवन है ये व्यर्थ पिया,
संगीतमय करती जीवन मेरा,
तेरी ये मृदुल बोली,
दुख में बनकर मेरा सहारा,
खुशियों से भर दी मेरी झोली,
रख उपवास तेरे नाम का,
गाऊँ सुहाग के गीत पिया,
तेरी सांसों की महक से,
जीवन मेरा महके पिया।

स्वरचित-रेखा रविदत्त
27/10/18
शनिवार




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