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जीवन की ,
अंतिम निशा में ।
लड़खड़ाती जुबा संग,
थरथराते हाथ ।
चेहरे की झुर्रीयों में,
छोटी निस्तेज आँखे ।
कान को ,
स्थीर रखकर ।
सोचती वह ,
कोई दस्तक,
दे दरवाजे पर !
तो मैं,
चारपाई से,
उठकर ।
दूं,
सबुत होने का ।
@प्रदीप सहारे
ये किसने दस्तक दी जो दिल गा रहा
नही अब जोर इस पर खिचा जा रहा ।।
है ये दिल मेरा मगर अब न जाने क्यों
मुझसे ही यह शनै: शनै: दूर जा रहा ।।
शायद मंजिल मिल गई इसे अपनी
अभी कुछ भी नही यहा बता रहा ।।
कौन सा कागज है कौन सी स्याही
जो दस्तक कोई मिटा न पा रहा है ।।
किसी के दस्तक मात्र से किसी की
जिन्दगी बदली यह कहा जा रहा ।।
वक्त के दस्तक भी क्या शै हैं कहीं
कामयाबी कहीं मुफलिसी दिखा रहा ।।
जो दृष्य में दस्तक ''शिवम" खास नही
अदृश्य दस्तक क्या गुल खिला रहा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 24/10/2018
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🍁🍁🍁
यादों ने दस्तक दिया है ,
आज मुझको बार-बार।
बीते दिन को याद कर मै,
रो रहा हूँ जार-जार।
🍁🍁🍁
उफ्फ ये बातें बेरूखी की,
अब हुई है बार-बार।
पर हृदय का जख्म मेरा,
रिस रहा है लगातार।
🍁🍁🍁
भूलने की बात दिल ने,
कर दिया है तार-तार।
प्यार दिल में ही रहेगा,
अब ना होगी जीत-हार।
🍁🍁🍁
शेर के दिल की है दस्तक,
तुम भी सुनलो मेरे यार।
कह सको तो कह दो कुछ,
तुम दिल से जोडो दिल के तार।
🍁🍁🍁
स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
विधा - छंद (चौपाई)
"चुनावी दस्तक"
दी चुनाव ने दस्तक प्यारे।
चर्चा चली गली गलियारे।।
चिंता में नेता हैं सारे।
जनता के हैं वारे-न्यारे।।
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मौसम देख चुनावी आया।
नेताओं का मन हरसाया।।
रोज करेंगे झूठा वादा।
मुद्दे कम अरु बक-बक ज्यादा।।
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जाति-पाति की बात करेंगे।
इक दूजे पर दोष मढेंगे।।
जनता को भगवान कहेंगे।
हँसकर उनके दर्द सहेंगे।।
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बड़ी-बड़ी डींगे हाकेंगे।
इसके उसके घर झाकेंगे।।
पाने वोट करेंगे अनशन।
अर्पित कर देंगे तन-मन-धन।।
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माँगे मत सब जाकर घर-घर।
इसकी टोपी उसके सर पर।।
हाथ जोड़ सब पूजन करतें।
जनता को सर आँखो धरतें।।
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बात करेंगे लोक लुभावन।
सबको दोषी खुद को पावन।।
खोलूँ गाँवों में विद्यालय।
घर-घर में होगा शौचालय।।
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गठबंधन के होंगे चर्चे।
खूब करेंगे पैसे खर्चे।।
आरोपों की झड़ी लगेगी।
देशभक्ति की लगन जगेगी।।
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वादों की होगी बौछारें।
दिन में दिखलाएंगे तारें।।
दौर चुनावी होगा जब तक।
बात चलेगी बस यह तब तक।।
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जीतेंगे सबको भूलेंगे।
वादों को जुमला बोलेंगे।।
यही चुनाव रीति है यारो।
दाना फेंको चिड़िया मारो।।
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स्वरचित
रामप्रसाद मीना 'लिल्हारे'
चिखला बालाघाट(म.प्र.)
चारु सूचना निकट आगमन,
शुचि प्रतीक दस्तक जीवन में,
मनभावन सी कभी दुखभरी,
तनिक अनिश्चित सी जीवन में।
शरद पूर्णिमा, रात्रि धवलतम,
शोडष कलाओं मे चारु चंद्रमा,
आलोकित विहंसें चारु सितारे,
स्मृति विस्मृत दस्तक उर द्वारे।
आघात हाथ के हल्के से,
शीतकाल ने भी दी दस्तक शुचि,
तनिक शीत अनुभूति गात में,
प्रीति भाव नित सघन रात्रि में।
दिवस छटा अनुपम प्राकृतिक,
तनिक उष्ण पिंगल दिनकर,
अम्बुज खिले सरोवर तल पर,
गुँजित भँवरों के दल उपवन।
आकाश तनिक शुचितर निर्मल,
यत्र तत्र मेघों के धवल दल,
जीवों के मुख पर अति हर्ष,
शरद ऋतुु की अदभुत दस्तक।
--स्वरचित--
(अरुण)
उम्र भी लड़खड़ाने लगी अब
साथ तेरा खोकर सहारो की आस
इस दिल को तड़पाने लगी अब
दस्तक मौत की आने लगी अब....
जन्म से आज तक
वो साथ मेरे चलती रही
मैं सोचता था जी रहा
पर वो मेरे लिए मरती रही
जी हाँ वो श्वांस मेरी
जो हरपल हरदम साथ मेरे चलती रही
मैं इतराता अपने स्वरूप पर
पर वो हरदम मेरे सीने में धड़कती रही
मेरे हर गम में
साथ मेरे रोती रही
मेरी हर खुशी में
साथ मेरे हंसती रही
बन खिलौना जीवन का
साथ मेरे रमती रही
जब आई तरूणाई
वो और तेज गति से चलती रही
उम्र के इस ढलान पर भी
इस जड़ तन का बोझ ढोती रही
अब अंत समय आया
वो द्वार पर बैठ कर रोती रही
सज रही अर्थी जब
सबकी आंखों को डबडबाती रही
जी हां वो श्वांस ही थी
जो आज तक साथ मेरा निभाती रही
अब ये तन सिर्फ माटी है
मेरी जान मेरी श्वांस अब जाती रही
हर दम हर पल साथ मेरा निभाती रही
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
१
नई किरण
खुशियों की दस्तक
मातृत्व सुख
२
बुरी संगत
पतन की दस्तक
नष्ट जीवन
३
नभ संतरी
स्वर्णिम है किरणें
द्वार दस्तक
४
यौवन रूप
सपनों की दस्तक
साजन संग
५
जर्जर काया
मौत बनी दस्तक
स्वर्ग के द्वार
स्वरचित-रेखा रविदत्त
शुभ मंगलमय ऊषा रश्मि,
दस्तक दें प्रभु शुचि हिय हो।
मानव मन हो आल्हादित,
कष्हरण करें सर्व प्रिय हो।
हरजन हो जाऐ प्रफुल्लित।
ये घरघर हो जाऐ कुसुमित।
मन मनोरंजन हो जाऐ तो,
सारा जग हो जाऐ सुरभित।
दस्तक दें हर घर में खुशियां
मनमीत हमें सब मिल जाऐं।
होंय मनोरथ पूर्ण सभी के,
मनप्रीत प्रभु हमें मिल जाऐ।
शांति शुचिता आऐ घर में,
दस्तक हो खुशियों की द्वारे।
स्वजन रहें मिलजुलकर सब,
खुशियां हों दुखियों के द्वारे।
शीतलता मधुमास की दस्तक।
सबजन हैं प्रभुजी नतमस्तक।
शरदपूर्णिमा धवल ज्योतिस्ना,
हो मृदुहास परिहास की दस्तक।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मप्र.
अजब सी ठंडक हवाओं में हैं।
मिजाजे़ - मौसम बदल रहा है।
है धडकनों में ये कैसी दस्तक।
करारे दिल क्यों मचल रहा है।
तुम्हारी आंखें, तुम्हारा चेहरा।
गुलाबी गालों पे है शर्म पहरा।
सम्हालो फिसला है ये दुपट्टा।
न तुमसे ये क्यों संभल रहा है।
तुम्हारी यादों के आईने में ।
हजारों मौसम हैं दिल्लगी के।
तड़पते साहिल की गोदियों में।
बरसता सावन उछल रहा है।
विपिन सोहल
मेरा मन,
हरपल,
प्रभु के दर्शन पर
दस्तक दे रहा है।
अपने जीवन में,
बुरे कर्म के,
पाप कर्म के,
प्रायश्चित कर रहा।
हर पल ही,
जीवन की ये घड़ी,
उसके सामने
, प्रायश्चित करने के सिवा यह,
दूसरा रास्ता औरनहीं,
मन चौबीसों घंटे,
उसके दर्शन के लिए,
उसके दर्शन पर दस्तकदे रहा है।
माया जाल बुनते,
संसारिक जीवन जीते,
कुछ बुरे कर्म,
अनजाने में
हुए होगें।
प्रभु से क्षमायाचना मांगना,
अब जीवन का,
कर्मही मेरा,
उसके चौड़े पर,
मन केवल दस्तक दे रहा है।
प्रभु मुझे क्षमा करेंगे।।
इसी विश्वास के सहारे दस्तक दे रहा हूं।
सर्वर चित देवेन्द्र नारायण दास बहना।।
किसने दिया है दरवाजे पर दस्तक?
मन मे हुआ एक दिव्य एहसास।
दरवाजे पर दौड़ कर आई
माँ लक्ष्मी प्रकट हुई आज।
लक्खी पूजा हैं आज
मैं स्वयं दस्तक देने आई आज
मैं आई खुशियाँ बाटँने
सबके लिए संदेशा लाई
जो करें गरीबों की सेवा
स्वच्छता का रखे ध्यान
घर ही नही, मन को भी
जो रखे स्वच्छता का ध्यान
वही है सच्चा सेवक मेरा
नही चाहिए मुझे घी का दीपक
नही चाहिए खील,मीठाई
स्वच्छ तन और मन ही
मुझे सदा से लुभाते आई
बड़ी बड़ी खुशियों का क्यों
करें इंतजार।
छोटी खुशियों से करें आगाज
बड़ी खुशियाँ दस्तक देने आये आप
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
मन के सूने गलियारों में,
दस्तक दे गया कोई।
टिमटिमाते रहे उम्मीद के दिये,
आबताब चुराकर ले गया कोई।।
गमों ने दस्तक दी जिंदगी में,
दूर तक अपना दिखाई न दिया।
सुखों का सूरज चमकने लगा तो
सब कहने लगे हम भी है आपके।।
गजब फलसफा है जिंदगी तेरा
सुख नजर तो आता है,
द्वार पर दस्तक तो देता है ,
पर पल भर ठहरता नहीं है।।
रचनाकार
जयंती सिंह
विषय - दस्तक
दिल के दरवाजे पर
बुद्धि ने दी दस्तक
और बोली अकड़
तुम मेरे काम में टांग अड़ाते हो!
भावनाओं में मुझे उलझाते हो!
मुझे जाल में क्यों फंसाते हो?
दिल रहा चुप कुछ न बोला,
बुद्धि ने फिर दिल को टटोला।
दिल मुस्कराया और बोला
मैं कहां तुम्हें रोकता हूँ,
बस सबकी सोचता हूँ।
तुम्हें स्वार्थ पहले भाता है,
और मुझे परमार्थ भाता है।
बोलो इनका क्या नाता है,
तुम और मैं अलग चलते हैं,
तो हालात सदा बिगड़ते हैं।
बुद्धि का विवेक जागा,
अहंकार दूर भागा।
बोली मैं न सुन पाई दस्तक,
कितना कुछ बिगड़ गया अब तक!
अब हम साथ ही रहेंगे,
मानवता का भला करेंगे।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
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अब न होती कोई आहट,
न दरवाजे पर खटखटाहट,
ये कैसा माहौल हो गया,
नहीं होती किसी की दस्तक |
मोबाइल का चढ़ा सबको बुखार,
सच्चा नहीं दिखता कहीं प्यार,
अब इसमें ही हॉय,हैलो हो जाती,
तभी किसी की दस्तक नहीं होती |
समय बढ़ा अच्छा था वो,
जब बच्चे खेलते थे खो-खो,
मौहल्ले में रौनक खूब रहती थी,
बिमारी भी कोई नहीं होती थी |
बढ़ती टैक्नॉलीजी की है दस्तक,
वरदान के साथ अभिशॉप की दस्तक,
सही इस्तेमाल ऊँचा करे मस्तक,
गलत इस्तेमाल मौत की दस्तक |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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मन के सूने आंगन में
तेरे ख्बावों ने दी दस्तक
अब ख्बाव भी तेरे
ख्याल भी तेरे
मन वीणा के राग भी तेरे
यादों में तेरी सूरत
तू ही मेरी प्रीत की मूरत
तुझसे मिलने की लगन लगी
राह निहारूं घड़ी घड़ी
ओ सपनों में आने वाले
थाम ले आकर हाथों को मेरे
तुझ बिन दिल को आए न चैना
अब न दिन कटे न कटे यह रैना
मेरे दिल में दस्तक देने वाले
अपने दिल में मुझे बसा लें
मेरे जीवन का बन कर गीत
मुझको अपना संगीत बना ले
***अनुराधा चौहान*** मेरी स्वरचित कविता
हुई दस्तक़ तुम्हारी यादों की पास में
तड़प उठा दिल,फिर ये आँख रो पड़ी
कह सकूँ वो ताक़त न रही अल्फ़ाज़ में
मेरे चेहरे से वो हँसी छीन ली तुमने
इतराता था मैं खासगी के अहसास में
तुम वो हो जो मेरे दिल में रह न सकीं
उम्र गुज़ार दी मैंने वफ़ाई की आस में
तुम्हारी परछाई भी अब पास न आने दूंगा
नफ़रत है तुमसे जब तक सांस है सांस मेंस्वरचित-राकेश ललित
चुपके से किसी ने प्यार का पैग़ाम दे दिया ।।
"दस्तक" ये कितनी लुभावनी है ।
ख़ाली दिल में इश्क को मुक़ाम दे दिया ।।
ख्वाहिश थी मैं भी किसी को प्यार का इज़हार कर दु ।
चुपके से गुल-ए- तर इब्तिसाम दे दिया ।।
बैठे है दोनों हाथ मे हाथ डाले ।
लबों के कंपन ने गुफ़्तगू को आयाम दे दिया ।।
"नीलांबरी" गुज़ारिश है दिल मे आज मेरे
कह दे लोहे को सोने का मुलामा दे दिया ।।
गुल ए तर--ताज़ा फूल
इब्तिसाम-- मुस्कुराहट
स्वरचित
सर्व हक़ स्वाधीन
डॉ नीलीमा तिग्गा(नीलांबरी)
हाइकु-
दस्तक देती
भोर सुहानी आती
आस दे जाती
पिरामिड-
है
देती
दस्तक
शुभ घड़ी
आने को अब
प्रभात की बेला
हेतु देने आशीष
सेदोका-
दस्तक देती
प्रफुल्ल जग मेला
भोर सुहानी बेला
अलसाए से
नैन आस जगाती
उमंग भर जाती
माहिया-
अंग-अंग उमंग है
दस्तक-तरंग है
गा रहा प्रत्यंग है
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"स्वरचित"
- मेधा नारायण,
२४/१०/१८,
(बुधवार).
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