Monday, October 1

"रंग"01 अक्टूबर 2018




जाने कितने रंग भरे
तूने इस सुंदर संसार में
हरा रंग धरा का आंचल
फैला ऊपर नीला अंबर
लाल गुलाबी नीले पीले
फूल यहां सतरंगी खिलते
हर रंग की अलग कहानी
चित्रकार की कैसी नादानी
दर्द के रंग रंगा नारी का रूप
ममता से भरा उसका स्वरूप
फुरसत के रंग जीवन से मिटा
भेदभाव के रंग भर बैठा
यह कैसा चित्रकार है
भर रहा था रंग ले तूलिका
जब वह अपने हाथ में
काश थोड़ा फर्क करता
वो इंसान और हैवान में
जीना आसान हो जाता
इंसान का जहान में
रंग बिरंगी इस दुनिया में
रंग इंद्रधनुषी भरे हुए
पर कितना सुन्दर होता
सब प्रेम के रंग रंगे होते
***अनुराधा चौहान***
मेरी स्वरचित कविता


जीवन में कितने रंग भरे हैं, 
त्यौहारों संग खुशियाें का रंग, 
प्रेमी संग है प्रीत का रंग, 
फाल्गुन संग होली का रंग |

रंग-बिरंगी है जिन्दगानी, 
कहीं है सोना,कहीं है चाँदी, 
हरा रंग धरती की हरियाली, 
लाल रंग दुल्हन की लाली |

तीन रंग तिरंगे के प्यारे, 
शान बढाते माँ के दुलारे,
शेरों की भाँति दुश्मन से लड़ते, 
भारत माँ के वो वीर कहलाते |

रंगों बिना क्या होती जिन्दगी, 
कल्पना मुझसे न होती, 
इन्द्रधनुषी रंग भरे हैं, 
जीवन अपना सुन्दर बने है |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*




रंग का ही यह जीवन है।
रंग का ही
 यह तालमेल ।
मानव का पुरूषार्थ सफल।
रंगों की है उत्कृष्ट देन।
अर्थ धर्म काम मोक्ष मे।
रंग का ही है योगदान ।
जो रंगों पर कार्य करे।
वही जानें इनका योगदान।
प्राकृत्यै चिकित्सा मे भी।
रंग रोग का निदान करते।
सकल पीड़ा को करते दूर।
पर अब विविध रंगों में।
हरा रंग बहोत डरवाता।
आतंकी चोला का पर्याय।
अब वह बन कर रह जाता।
बैसे हरा रंग शांति हरियाली।
इसका महत्व जो जाने।
हरा रंग के आतातायी।
नर संहारक प्रकृति संहारी।
ऐसे स्वयं को मानें।।
💚💚💚💚💚💚
💙💓💗💖💚💛💙
राजेन्द्र कुमार#अमरा#स्वरचित।
🍁
रंग नही है अब कोई भी,
जीवन की रंगोली मे ।
जाने कितने जहर भरे है,
अब लोगो की बोली मे॥
🍁
चेहरे पे भी इक चेहरा है,
कौन किसे पहचाने।
लिए हलाहल घूम रहे है,
कौन है क्या ना जाने॥
🍁
लाल- गुलाबी चेहरे वालो,
के दिल भी है काले।
रंग बदलती दुनियाँ देखी,
देखी दुनियाँ वाले॥
🍁
शेर कहे रंगो मे उलझ कर,
रंगहीन मत होना।
जीवन तो है रंग-बिरंगा,
ईश्वर ही सच होगा॥
🍁
स्वरचित... Sher Si
ngh Sarraf

रंगों की दुनिया बतलाती
रंग
ों की महत्ता समझाती ।।
रंगना ही होता है हमें
श्रष्टि कितने रंग दर्शाती ।।

फूलों में भी रंग है
इन्द्र धनुष में रंग है ।।
वायु भी गाती कभी
जल में भी तरंग है ।।

मोर बड़ा अलबेला है
कितने रंगों का रेला है ।।
वो भी रंगता अपने रंग में
होता जब अकेला है ।।

गम को करता है रंग दूर
रंग बिना दुनिया बेनूर ।।
हमें भी कोई रंग दे गया
तभी लिखूँ ''शिवम"भरपूर ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 01/09/2018

  हमें डर है न लग जाए कहीं आग पानी में। 
जरा रखना कदम बाहोश चढती जवानी में।
 

मुहब्बत एक वादा था मेरा इस जिन्दगी से। 
यकीं करता नहीं कोई अब इस कहानी में। 

जमाने में बहुत से रंग देखे बेरंग बेनूर होते। 
नहीं लगता है अब दिल दुनिया ए फानी मे।

बहुत मुश्किल से जां में जां है आई, सोहल। 
मुझे लगता बड़ा डर है उनकी मेहरबानी में। 

विपिन सोहल


II रंग II 

विधा: हायकू 

१.
इंद्रधनुष 
साहित्यकी है रंग
भावों के मोती 

२.
भावों के मोती
रंग बिरंगे फूल
माला सम्पूर्ण 

३.
सुरभि जन
पुष्पित परिवार 
रंग संस्कार

४.
निस्वार्थ प्रेम
राधा के रंग चित 
कृष्णा हरण 

५.
विजय पर्व
अधर्म पराजित 
सत्य के रंग 

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 
०१.१०.२०१८


रंगों की थाल सजाएँ
हर पल मुस्कुराते हुए
देखा है तुझे मैंने ,
दर्द की चादर सिलते हुए ।
हर रंगों में रंगी हुई
तुम सतरंगी नहीं,
हर रंगों की सार हो
कुदरत की बनाई हुई 
सबसे अनमोल
माँ, तुम उपहार हो ।
प्यार के रंग से तुने
पुरे परिवार को सजाया है,
ममत्व के रंग में
मुझे आंचल में छुपाया है।
देखा है मैंने
कई रंगों में तुझे
कभी समर्पण,
कभी त्याग
कभी किया है तुने देश के लिए
अपने अंश का भी बलिदान
माँ शत् नमन है तेरी कृति
सबसे महान ।

स्वरचित :- मुन्नी
कामत।

चढ़ा है प्रीत का ऐसा रंग
कैसे चढ़ाऊं दूजा रंग
अद्भुत रंग मेरे श्याम का
भाये ना कोई दूजा संग

सुन मधुर धुन बंशी की
जागे मन में कई उमंग
प्रीत ले कान्हा दर्शन की
जाऊं पनघट सखियों संग

छुप छुप निहारूं मोहन को
अठखेलियां करते ग्वालों संग
स्वप्न लोक में खो जाऊं मैं
रास रचाते मोहन के ख्यालों संग
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
रास रचाते मोहन के ख्याविषय पर सेदोका पेश है,
1।रंगो का मेला,
रोशनी को,शहर
से,फुरसत कहाँ,
गाँव जिन्दा है,
रिश्तोँ की खुशबू से,
जीवन में हँसते।।
2।
इक रंग की,
बने सारी दुनियाँ,
प्रेम रंग उडा तू,
एक डगर,
राही है हम सब,
प्यार लुटाता चल।।
3।।
मेरे भावों के,
धुध ले चि त्रो,तुम
सदा रंग भरते,
छाया बनके,
साथ मे खडे रहे,
जीवन पथ पर।।
4।।
वासंती बहे,
कानन कानन में,
फूटे रंग गुलाबी,
दिव्य रागिनी,
सागर लहराता,
समीरण बहता।।
5।।
रंग फागुनी,
झूमें धरा गगन,
गुन गुनाने लगे,
दिव्य रागिनी,
समीरण बहता,
पुलकित वासंती।।

स्व रचित देवेन्द्रनारायण दास।।बसना
 छवि दिखे किस रंगरूप में ,
कोई न समझ पाऐ प्रवृति प्रभु की।

दी सुंन्दर मनमोहन ने जिंन्दगानी।
दी सतरंगी सुखमोहन ने जिंन्दगानी।
कृष्ण कन्हाई की माया बहुत बहुरंगी,
दी अदभुत बृजमोहन ने जिंन्दगानी।

किसी मौसम में रंगभर दिया इसने।
कोई मौसम सूखा कर दिया इसने।
कुसुमित हरित धरा हरियाली फैली,
दुखद सुखद मन कहीं दिया इसने।

जिंन्दगी अनमोल मिले खजाना।
आज आऐ हमें कल चले जाना।
सब सुंन्दर रंग भरें मनमानस में,
कल गुलाल डले हमें चले जाना।

छाऐ इंन्द्रधनुषी बहुमूल्य घटाऐ ।
कहीं घिरती कुछ मनहूस घटाऐ।
कहीं दिखती हमें विभावरी काली,
ये मनमोहक कान्हा की कलाऐं।

स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.

प्रेम की बांसुरी बजाओ पिया
अब तो मै तुम्हारी हो ली पिया
तेरे प्रेम के रंग में रंग गयी मैं तो पिया
अब तो कोई रंग ना भाये मुझे पिया 
हाय ये कैसा तूने मुझ पे ये जादू किया 
अब तो मै तुम्हारी हो ली पिया 
अब कुछ और मुझे ना भाये पिया
रात दिन धड़के मेरा जीया
अब ना रहा जाये तुझ बिन पिया
अब तो आ जाओ मेरे पिया 
यू ना मेरे मन को सताओ पिया 
प्रेम की बांसुरी बजाओ पिया
सुध बुध मैं खो बैठी पिया
अब तो आ जाओ मेरे पिया
यूं ना मुझे हर पल तड़पाओ पिया
मैं तो तेरे रंग में रंग गयी पिया
प्यार का दिया तूने जो तोहफा
हर पल उसे निहारु पिया
प्रीत की अग्नि में ना जलाओ पिया
बस अब तो तुम लौट के आओ पिया
अब ना देर करो अब तो आ जाओ मेरे पिया
🌷 स्वरचित हेमा जोशी 🌷
प्रेम व स्नेह के साथ ही जँचते 
है सभी रंग , 
प्रेम के अभाव में लगे जैसे रंग में हो भंग, 
रंग सबको लगते सुहावने 
किसान को हरा 
तो प्रेमियों को लाल 
दोस्ती के तो सभी रंग लुभावने 
काले रंग का तो गजब है फलसफा, 
काले श्याम पट्ट पर पढ़कर ही 
इंसान महान बने, 
तो कभी काला अपशकुन का 
प्रतीक बने, 
काला अक्षर भैंस बराबर 
काले बादल बरसाते जल 
और तो और 
यशोमति मैया से श्याम भी 
पूछ बैठे , 
राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला 
काले रंग का खेल है निराला 
रंगो से भरी दुनिया ही भावे सबके मन 
प्रेम व....... 
स्वरचित 
शिल्पी पचौरी

****
पिया मोहे रंग दे
सावन ऋतु आई रे
आँख-मिचौली सईयां
तेरे संग भाई रे।

रूठ जो जाऊँ सईयां
मुझको मनाना
नयनों की भाषा से
प्रीत निभाना।

धड़कन रँगीन पिया
तेरे ही तो नाम से
जुल्फों के साए गहन
रंगे तेरे नाम से।

मस्तक सिंदूरी रंग
तूने ही सजाया है
हाथों में रँगीन कँगना
तूने ही पहनाया है।

गाल गुलाबी सईयां
मोहन तेरे नाम से
राह बिसारूं तेरी
ताक-ताक द्वार से।

चाँद की चांदनी
सूनी-सूनी लगती है
साथ हो तो तेरा पिया
प्रीत रंगीन लगती है।

रँगीन दुनिया तूने
मेरी ख़ूब सजाई है
दोस्ती सी प्रीत सईयां
तूने निभाई है।

श्वासों की सरगम
बजती लय ताल मे
सुर भी रँगीन साजन
तेरे ही दुलार से।

रँगीन साथ तेरा
सातों जन्म चाहूं मैं
मुरली से बोल तेरे
मन मे समाऊं मैं।।

वीणा शर्मा
स्वरचित
1/10/2018


***************
चढ़ा आज जम के रंग 
पी कर हुए मस्त मलंग
जय बोले भोले भण्डारी
भस्म लगाए ये अंग-अंग

विवाह हुआ उमा के संग
इनकी छवि है बड़ी दबंग 
भूत पिशाच इनकी यारी
बदले ना जाने कितने रंग 

देह तो इनका लंब-तड़ंग
एक लंगोटी है नंग-धड़ंग
जो करे इनकी आराधना
रहते सदासदा उनके संग

हाथ व गल पहने भुजंग
दुश्मनों का करे अंग-भंग
फिर पहनते मुण्ड माला
देख क्रोध असुर बदले रंग

निकली इनके शिश-गंग
भोले का है अंश बजरंग 
करने लगते हैं ये ताडंव
जब करे कोई तपो-भंग

शिव का सुने जो सत्संग 
जीवन के बदले रंग-ढंग
शिव का मिलता आशीष 
जीवन में भरते है नव-रंग

===स्वरचित ===
मुकेश भद्रावले 
01/10/2018

इस रंग बिरंगी दुनिया में
इंसान की फितरत कौन जाने?
काली बिल्ली रास्ता काटे
देख मनु घबराये

कर्म न सुधारे आपना 
बिल्ली को दोषी ठहराये
इस ऱंग बिरंगी दुनिया में
इंसान की फितरत कौन जाने

बेटी के हाथ पीले करने को
हुये बापू बेताब, अब उन्हें
कौन समझाये,पढ़ लिख कर 
जब पैर पर खड़े हो जाये बेटी

फिर करायो सगाई
लाल रंग की ओढ़ी चुनरिया
दुल्हन चली ससुराल
ससुराल के रंग ढ़ंग सहज
समझ न आये।

रंग मे भंग न घुल जाये किसी का
क्यों करे ऐसा काम।
काम करे कुछ ऐसा
सुनी जीवन में किसी का 
रंग भर जाये।

जैसे निखरे सात रंगों से इन्द्रधनुष
वैसे ही मानव जीवन में सात रंग समाये
सब मानव एक हैं हिन्दू हो या ईसाई
खून का रंग सबका एक है
समझना होगा भाई
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।

(१)
प्रेम का रंग
राधारानी मोहन
गोपियों संग

(२)
त्याग का रंग
राम जानकी संग
घूमे कानन

(३)
लोभ का रंग
कौरव दुर्योधन
भ्राता हरण 

(४)
हरित रंग
हरियाली के संग
छाई उमंग
(५)
जीवन रंग
उज्ज्वल उमंग
नातों के संग

.....राकेश पांडेय...स्वरचित


🌿"'रंग"'🌿
जीवन राग
अद्भुत अनुराग
रंगता मन

प्रकृति संग
आनन्दित जीवन
सुंदर रंग

रंग विलीन
प्रताड़ित धरती
मानव लीन

तिरंगा रंग
शहीद का कफ़न
करें नमन

सरिता संग
किरण थिरकती
स्वरचित 'पथिक रचना'
 सात रंग जब मिल जाएँ
इंद्रधनुष बन जाता
अनंत उन्मुक्त गगन की

शोभा ख़ूब बढ़ाता ।

पतझड़ जब भी आता
पत्तों का जीवन मुरझा जाता
पर हरा रंग हरियाली का
वह वसंत में पा जाता ।

असंख्य हिम कण पर्वत प्रदेश की
शोभा को हमें बताता
श्वेत रंग की आभा से
प्रकृति का अंग अंग मुसकाता ।

केसरिया श्वेत हरा रंग मिलकर
मेरे देश का तिरंगा कहलाता
उसकी आन बान शान में 
मेरा मस्तक ऊँचा हो जाता।

ज़िंदगी भी एक रंगमंच कहलाती
विविध रंगों से सजी धज़ी
किसके हिस्से में कितने रंग
इस प्रश्न में आकुलता बड़ी ।

कर्म फल का रंग गहराता ??
विधि विधान का सख़्त पहरा ??

अपनी अपनी ख़ुशियों के लेकर रंग
दुनिया रंगीन बनाते है हम
किसी बेरंग ज़िंदगी को रंगरेज़ बनाओ
तब तो तुमको जानेंगे हम ।

स्वरचित
संतोष कुमारी
दिनांक ०१-१०-२०१८

हँसते रंग


" रंग"
अपनों की इस दुनियाँ में,
लोगों को तन्हा रोते देखा
पल में माशा पल में तौला,
अपनों को लुटते देखा,
उज्जवल चेहरे के पिछे,
बदरंग होते चेहरा देखा,
उठे जो खाक से फलक तक,
उन पर दौलत का नशा चढ़ते देखा,
जान छिड़कते थे जिन रिश्तों पर,
उन रिश्तों को रंग बदलते देखा,
कर देते तार-तार आबरू,
उन रिश्तों को मरते देखा,
चढ़ा रंग मजबूत इरादों का,
अबला को सबला बनते देखा,
कहे मानव अब जहाँ में,
नारी को मैनें शक्ति स्वरूपा देखा।

स्वरचित-रेखा रविदत्त

 जिंदगी के कैसे हैं ये अजब रंग 
कभी लगती हैं जिंदगी प्यारी कभी लगती हैं बेरंग
जिंदगी में खिलते हैं कभी मुस्कान के रंग 

कभी खिलते हैं बेबसी के तन्हाई के रंग .

मानो तो जिंदगी खुशियों भरी एक बगिया हैं 
ना मानो तो जिंदगी एक धोखा और छलिया हैं 
कभी खिलती कलियों के रंग अपार हैं 
कभी दुःखों का भव सागर अपार हैं .

हम तो जिंदगी में ख़ुशी के रंग ढूँढने निकले हैं 
कभी थे इस राह में हम भी अकेले 
अब लगता हैं संग हमारे हैं रंग खुशियों भरे काफिले 
आओ हम सब इन खुशियों के पल को आजमा ले .

जिंदगी पल दो पल की हैं मेहमान
फिर क्यों बने रहें हम इन खुशियों के रंग से नादान 
जिंदगी मिली हैं ख़ुशी के रंग बांटने के लिये
अपने पराये का भेद भूलाकर आओ इस जिंदगी के रंग को खुशी से गले लगा लें.
स्वरचित:- रीता बिष्ट


तु खुदा मेरा है प्यार तेरा बंदगी मेरी

महकती है हर खुशी अब संदली मेरी
तूने विश्वास और समर्पण से हैं रंग भरे 
कोरे कागज की तरह थी जिंदगी मेरी 

बेनूर इन आंखों ने कोई उमंग नहीं देखा
जीवन और यौवन का कोई तरंग नहीं देखा
उमर भर रहा अंधेरों से ऐसा रिश्ता मेरा
कैसा होता है उजाला उसका रंग नहीं देखा

ये निगाहें मेरी जिधर जाती है
हर रंग में बस तू नज़र आती हैं

हम पर ये क्या अभिशाप हो गया है
बता ऐ रब हमसे क्या पाप हो गया है
मुस्कुरा के बोला ये खुदा सुन, इंसान
रंग बदलने में गिरगिट का बाप हो गया है

रहते संग
वक्त बदलते ही
दिखाते रंग

खुशी या रंज
होते सदा आंसू के
एक से रंग

जीवन जंग
मेहंदी वाले हाथ
भरते रंग

तकदीर का तमाशा देखा है
एक दरिया को प्यासा देखा है
परम्पराओं के तमाम रंगो से रंगी
बदरंग एक बुत तराशा देखा है
विधा -हाइकु
(1)
यादें ही संग
बेटी के हाथ पीले
घर बेरंग
(2)
हैरान मन !
श्वेत श्याम "नयन"
रंगीन स्वप्न
(3)
रंगीला फाग
नाचती तितलियाँ
कूकता बाग
(3)
वादों में भंग
राजनीति की त्वचा
टिके न रंग
(4)
सांझ की गली
क्षितिज के ठेले में
नारंगी रवि 
स्वरचित
ऋतुराज दवे

No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...