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न किसी से एक पल वियोग रहे।
सकल धरा पर काल बेला।
हर क्षण अपनी दिशा मे खीचती है।
ज्ञानी जनों को बस समझना है।
हर पल हर क्षण को समझना है।
हर कण में यह क्षण जुडा है।
इसको न बेकार जाने देना है।
हर कण मे विन्दु नीर जुडा है।
इसको न व्यर्थ गवाना हैं।
हर कृषक के क्षण पल ।
यह अन्न कण तैयार हुऐ।
थाली मे अव हम उतना लेगे।
हर क्षण हर पलको समझेगे।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
स्वरचितः--
राजेन्द्र कुमार#अमरा#
बूंदों में बरसातो मे इन काली ठंडी रातों में।
तुम याद मुझे आते हो बीती गुजरी बातों में।
सिहरन दौडी तन में है अकुलाहट सी मन में।
नहीं भूलते वे क्षण जब हाथ दिया हाथों में।
जब पवन चले पुरवाई याद तुम्हारी आई।
पास नही ढूंढू तुमको फूलों कलियों पातों में।
वो छुवन नई नवेली खुश्बू थी संग सहेली।
खो गया देख मैं तुमको सपनो की बारातो में।
नयनो की मदिरा तेरी छलकाए प्यास है मेरी।
अब मन नहीं भरता मेरा दो चार मुलाकातों में।
विपिन सोहल
क्षण में उधर ।।
नाचे मन मयूर
किधर किधर ।।
क्षण में दुख
क्षण में सुख ।।
हर क्षण हमारा
है प्रमुख ।।
किस क्षण क्या ? नही खबर
क्षण वही जो जाये सँवर ।।
हर क्षण हमारी किस्मत लिखे
न रह ''शिवम" तूँ बेखबर ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्
विधा :- लघु कविता
क्षण बड़ा निर्दयी होता है
मौत की आगोश में सोता है
अपने ही दम पर जीता है
अपने ही दम पर मरता है
मौत की आगोश में सोता है
अपने ही दम पर जीता है
अपने ही दम पर मरता है
जो जी ले हर क्षण को
क्षण उसका ही होता है
हर क्षण जीने की हौसला
कहाँ हर जन में होता है
क्षण उसका ही होता है
हर क्षण जीने की हौसला
कहाँ हर जन में होता है
जी लो जी भर जिंदगी
क्यों क्षणिक गमों को रोता है
क्षण भंगुर है जीवन तेरा
क्यों इतने सपने संजोता है
क्यों क्षणिक गमों को रोता है
क्षण भंगुर है जीवन तेरा
क्यों इतने सपने संजोता है
क्षणों में टूटा हर सपना
क्यों टूटे शीशे बटोरता है
जी ले संग अपनो के
क्यों बांह गैरों की टटोलता है
क्यों टूटे शीशे बटोरता है
जी ले संग अपनो के
क्यों बांह गैरों की टटोलता है
क्षण में उड़ते प्राण पखेरू
कर्म सफल कर लो अपने
कुछ ना जाएगा संग तेरे
यहीं रह जाएंगे सारे सपने
कर्म सफल कर लो अपने
कुछ ना जाएगा संग तेरे
यहीं रह जाएंगे सारे सपने
हर क्षण बड़ा अनमोल है
इसका ना कोई तौल है
बना ले सद्व्यवहार सबसे
यही "मुकेश" के अंतर बोल है
इसका ना कोई तौल है
बना ले सद्व्यवहार सबसे
यही "मुकेश" के अंतर बोल है
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
है आज मिले जो क्षण
ये मिलन है या विछोह के
आँखों में जो अश्रु-कण
ये भाव-करुण या मोह के
पनपे थे कुछ कोमल भाव
मदिर,मलय मन उपवन में
चिरसंचित साध,समभाव
आह्लाद मीत मिलन के
स्नेह सुधा रस बरसे
ज्यों बदली से छन के
मन मयूर मगन हो हरसे
मादक तेरी चितवन से
भरम है,मन किस उलझन में
पागल मन,पर रमता इसी पागलपन में
मिथ्या है, सत्य कहाँ सपन में
है छन से टूट ये जाता निःशब्द,एक क्षण में।
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
ये मिलन है या विछोह के
आँखों में जो अश्रु-कण
ये भाव-करुण या मोह के
पनपे थे कुछ कोमल भाव
मदिर,मलय मन उपवन में
चिरसंचित साध,समभाव
आह्लाद मीत मिलन के
स्नेह सुधा रस बरसे
ज्यों बदली से छन के
मन मयूर मगन हो हरसे
मादक तेरी चितवन से
भरम है,मन किस उलझन में
पागल मन,पर रमता इसी पागलपन में
मिथ्या है, सत्य कहाँ सपन में
है छन से टूट ये जाता निःशब्द,एक क्षण में।
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
उतार चढाव जीवन में तो
सदा आते जाते ही रहते हैं।
कहां पहुंच जाऐं क्षणभर में,
हम यूंही चलते ही रहते हैं।
सदा आते जाते ही रहते हैं।
कहां पहुंच जाऐं क्षणभर में,
हम यूंही चलते ही रहते हैं।
जैसे भी हो हम मुस्कराते रहें।
स्वयं हसें दूसरों को हंसाते रहें।
हर क्षण को जी लें मस्ती से,
खुश रहें ये खुशियां लुटाते रहें।
स्वयं हसें दूसरों को हंसाते रहें।
हर क्षण को जी लें मस्ती से,
खुश रहें ये खुशियां लुटाते रहें।
प्रति क्षण का हम लाभ उठाऐं।
आत्म शक्ति का लाभ उठाऐं।
जीवन पथ पर चलना हमको ,
तो क्यों नहीं सुखचैन जताऐं।
आत्म शक्ति का लाभ उठाऐं।
जीवन पथ पर चलना हमको ,
तो क्यों नहीं सुखचैन जताऐं।
हर क्षणअवसर का लाभ लेकर,
आत्मोन्नति का मार्ग प्रशस्त करें।
धैर्यवान आशान्वित होकर हम,
विध्वंसक गतिविधि ध्वस्त करें।
आत्मोन्नति का मार्ग प्रशस्त करें।
धैर्यवान आशान्वित होकर हम,
विध्वंसक गतिविधि ध्वस्त करें।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र
प्रस्तुति 2
हर पल हर क्षण बीता जा रहा,
इंसान मोहजाल में फंसता जा रहा,
क्या कुछ तेरा क्या कुछ मेरा,
पल पल यूँ ही मिटता जा रहाl
हर पल हर क्षण बीता जा रहा,
इंसान मोहजाल में फंसता जा रहा,
क्या कुछ तेरा क्या कुछ मेरा,
पल पल यूँ ही मिटता जा रहाl
सोचती हूँ किस बात का दम्भ करूं,
क्यों किसी से ईर्ष्या करूं,
जीवन तो क्षण भंगुर है,
क्यों सोच सोच कर नष्ट करूंl
क्यों किसी से ईर्ष्या करूं,
जीवन तो क्षण भंगुर है,
क्यों सोच सोच कर नष्ट करूंl
काश... कुछ ऐसा हो पाता,
जड़ से द्वेष ख़त्म होजाता,
कितना सुंदर पल वो होता,
जब सारा जग एक जुट होताl
जड़ से द्वेष ख़त्म होजाता,
कितना सुंदर पल वो होता,
जब सारा जग एक जुट होताl
ईश मुझे ये दो वरदान,
सबको मानू मै भगवान,
विप्रो के मै काम आ सकू
बस बनी रहूँ मै इंसान l
कुसुम पंत उत्साही
देहरादून
उत्तराखंड
सबको मानू मै भगवान,
विप्रो के मै काम आ सकू
बस बनी रहूँ मै इंसान l
कुसुम पंत उत्साही
देहरादून
उत्तराखंड
क्षण की देरी
यात्रा हुई वंचित
निकली ट्रेन
यात्रा हुई वंचित
निकली ट्रेन
ह्रदय घात
क्षणभर पहले
मिला था उसे
क्षणभर पहले
मिला था उसे
खोए ना हम
रत्न सा अनमोल
क्षण का मूल्य
रत्न सा अनमोल
क्षण का मूल्य
ये बेजुबान
क्षण क्या कर डाले
जग ना जाने
क्षण क्या कर डाले
जग ना जाने
दूर संचार
क्षण में करवाता
लोगों से बात
क्षण में करवाता
लोगों से बात
चाहे आपसे
वृद्ध माता-पिताजी
क्षणिक सुख
वृद्ध माता-पिताजी
क्षणिक सुख
स्वरचित
ये क्षण वर्तमान है
ये क्षण ही जीवन है
ये क्षण सुखमय भी है
और दुखमय भी है
इस एक क्षण मे
कोई नाच रहा है कोई गा रहा है
कोई प्रेम की बांसुरी बजा रहा है
मधुर प्रेम का एहसास भी यही है
दुर्घटनाग्रस्त भी यही क्षण है
इसी क्षण में सुख दुख सब घटित है
कोई इस दुनिया को छोड़ कर
अलविदा कह रहा है
इसी एक क्षण में कटुता है
इसी क्षण में प्रेम उपजता है
इसी क्षण में वासना जन्म लेती है
इसी क्षणमें कोई रो रहा है
कोई हँस रहा है
बस यही तो है जो
अपना खेल दिखा रहा है
लिखने के लिए उकसाती
असलियत भी तो यही है
कविता और प्यार हर क्षण
पैदा होने के लिए प्रतीक्षा में रहते हैं
🙏स्वरचित हेमा जोशी
ये क्षण ही जीवन है
ये क्षण सुखमय भी है
और दुखमय भी है
इस एक क्षण मे
कोई नाच रहा है कोई गा रहा है
कोई प्रेम की बांसुरी बजा रहा है
मधुर प्रेम का एहसास भी यही है
दुर्घटनाग्रस्त भी यही क्षण है
इसी क्षण में सुख दुख सब घटित है
कोई इस दुनिया को छोड़ कर
अलविदा कह रहा है
इसी एक क्षण में कटुता है
इसी क्षण में प्रेम उपजता है
इसी क्षण में वासना जन्म लेती है
इसी क्षणमें कोई रो रहा है
कोई हँस रहा है
बस यही तो है जो
अपना खेल दिखा रहा है
लिखने के लिए उकसाती
असलियत भी तो यही है
कविता और प्यार हर क्षण
पैदा होने के लिए प्रतीक्षा में रहते हैं
🙏स्वरचित हेमा जोशी
झलक दिखाते रहते ये स्मृति के दर्पन में
भावुक क्षणों की छाप गहरी होती है मन में
ये अक्सर प्रतिबिम्बित हो जाती जीवन दर्शन में।
एकाकीपन में ये अक्सर साथ देते हैं
स्मृतियों के सुन्दर सुन्दर मिलाप देते हैं
गुदगुदाते रख जाते सूने मन को
ऐसे सजीव वार्तालाप भी देते हैं।
स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
विषय- क्षणविधा- लघु कविता
************************
वो क्षण गए थे तुम जब बीच राह में छोड़,
तकती हूँ अब तुम्हारे आगमन की आए भोर।
उसी मोड़ पे वो क्षण रुका हुआ है प्रियतम,
अब देह से भी नही निकलता है ये दम।
कभी तुम्हारे दरस हो जाये यही आस लिए,
प्राण पंखेरू ना उड़ जाए कही तेरी प्यास लिए।
वो क्षण आज भी वहीं थमा सा लगता है
ये भ्रम आज भी यहीं मेरे हृदय में रहता हैं।
तुम अपने जीवन के उस लम्हे से आज मुक्त हो,
पर मेरे हृदय में प्रिये आज भी तुम व्याप्त हो।
आकर एक बार मुझे भी स्वतंत्र कर दो,
मेरे अशांत जीवन में खुशी का एक क्षण भर दो।
स्वरचित
मोनिका गुप्ता
************************
वो क्षण गए थे तुम जब बीच राह में छोड़,
तकती हूँ अब तुम्हारे आगमन की आए भोर।
उसी मोड़ पे वो क्षण रुका हुआ है प्रियतम,
अब देह से भी नही निकलता है ये दम।
कभी तुम्हारे दरस हो जाये यही आस लिए,
प्राण पंखेरू ना उड़ जाए कही तेरी प्यास लिए।
वो क्षण आज भी वहीं थमा सा लगता है
ये भ्रम आज भी यहीं मेरे हृदय में रहता हैं।
तुम अपने जीवन के उस लम्हे से आज मुक्त हो,
पर मेरे हृदय में प्रिये आज भी तुम व्याप्त हो।
आकर एक बार मुझे भी स्वतंत्र कर दो,
मेरे अशांत जीवन में खुशी का एक क्षण भर दो।
स्वरचित
मोनिका गुप्ता
सुख और दुख को साथ लिये,
कभी दुखों के काले बादल,
तो कभी खुशियों की बारात लिये,
कितने क्षण जीवन में मेरे,
बस धूप छाँव की खेल चला
कभी किसी क्षण जीता-जीवन,
कभी तो लम्बी हार चला
वही सुखद था मेरा क्षण,
जब तुम आयी थी पास प्रिये,
कितने वर्षों के जीवन में,
बस है उस क्षण का अहसास प्रिये,
वो क्षण कितना मनभावन था,
जब तुम आयी मधुमास लिये------
कितनो से सुनते आया हूँ,
बस एक क्षण का ये जीवन है,
पर सत्य नही लगती मुझको,
की इतना छोटा ये दर्पण है,
है जीवन एक महासागर,
क्षण है छोटी-छोटी नदियाँ,
चलता है नित्य महामंथन,
है मिलती रोज नयी मणियां,
जो दोषपूर्ण कोई रत्न मिला,
क्यों समझूँ कोलाहल ही है,
जब कर्म मेरा तो फल भी मेरा,
जब प्रस्न मेरे तो मेरा ही हल है,
क्यों मान गवां दूँ वर्षों का,
जो आया कुछ क्षण अपमान लिये----
स्वरचित...राकेश पांडेय
कभी दुखों के काले बादल,
तो कभी खुशियों की बारात लिये,
कितने क्षण जीवन में मेरे,
बस धूप छाँव की खेल चला
कभी किसी क्षण जीता-जीवन,
कभी तो लम्बी हार चला
वही सुखद था मेरा क्षण,
जब तुम आयी थी पास प्रिये,
कितने वर्षों के जीवन में,
बस है उस क्षण का अहसास प्रिये,
वो क्षण कितना मनभावन था,
जब तुम आयी मधुमास लिये------
कितनो से सुनते आया हूँ,
बस एक क्षण का ये जीवन है,
पर सत्य नही लगती मुझको,
की इतना छोटा ये दर्पण है,
है जीवन एक महासागर,
क्षण है छोटी-छोटी नदियाँ,
चलता है नित्य महामंथन,
है मिलती रोज नयी मणियां,
जो दोषपूर्ण कोई रत्न मिला,
क्यों समझूँ कोलाहल ही है,
जब कर्म मेरा तो फल भी मेरा,
जब प्रस्न मेरे तो मेरा ही हल है,
क्यों मान गवां दूँ वर्षों का,
जो आया कुछ क्षण अपमान लिये----
स्वरचित...राकेश पांडेय
क्षण में तोला क्षण में मासा।
क्षण था सोना क्षण है कांसा।।
क्षण में घात क्षण प्रतिघात।
क्षण क्षण को देता मात।।
क्षण सबल क्षण निर्बल।
क्षण था मन्द अब क्षण प्रबल।।
कोई क्षण सुख कोई क्षण दुख।
क्षण है तृप्त क्षण को भूख।।
क्षण कृशकाय क्षण बलवान।
क्षण में विचलन क्षण में ध्यान।।
क्षण-क्षण क्षण बदलता रूप।
क्षण में छांव क्षण में धूप।।
क्षण की लीला अपरम्पार।
क्षण व्यवहार से चकित संसार।।
स्वरचित:शैलेन्द्र दुबे🙏🌷🙂
क्षण था सोना क्षण है कांसा।।
क्षण में घात क्षण प्रतिघात।
क्षण क्षण को देता मात।।
क्षण सबल क्षण निर्बल।
क्षण था मन्द अब क्षण प्रबल।।
कोई क्षण सुख कोई क्षण दुख।
क्षण है तृप्त क्षण को भूख।।
क्षण कृशकाय क्षण बलवान।
क्षण में विचलन क्षण में ध्यान।।
क्षण-क्षण क्षण बदलता रूप।
क्षण में छांव क्षण में धूप।।
क्षण की लीला अपरम्पार।
क्षण व्यवहार से चकित संसार।।
स्वरचित:शैलेन्द्र दुबे🙏🌷🙂
क्षणभंगुर संसार ये सारा
क्षण का जीवन
क्षण में मिटता
क्षण में बीते जीवन सारा।
क्षण ही सत्य
क्षण ही शाश्वत
क्षण का ही ये खेल है सारा।
क्षण में राजा
क्षण में रंक
क्षण में बदले संसार ये सारा।
क्षण का जीवन
क्षण में ही जीना
क्षण में मृत्यु ने आंचल पसारा।
क्षण में दुख
क्षण में सुख
क्षण में नियति का परिवर्तन सारा।
क्षण ही स्मृति
क्षण ही स्वप्न
क्षण संचालित काल ये सारा।
क्षण में मिलन
क्षण में जुदाई
क्षण आधारित संसार ये सारा।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
आओ फिर से जिंदगी में ख़ुशी के पल ढूँढ़ते हैं
फिर से मुस्कराने के वो पल ढूँढ़ते हैं
वो अनमोल पल जो खो गये हैं
फिर से प्यारे वो अनमोल क्षण ढूँढ़ते हैं .
खो गई जो ख़ुशी फिर से जीने का वो क्षण ढूंढते हैं
जो ख़ुशी मेरे घर की राह भूल गई हैं
उस ख़ुशी को फिर से घर में लाने के क्षण ढूँढ़ते हैं
मिली हैं ये जिंदगी बस ख़ुशी मनाने के बहाने और क्षण ढूँढ़ते हैं .
खिल-खिल कर ख़ुशी का आगाज करते हैं
सबके लिये ईश्वर से ख़ुशी की अर्चना करते हैं
दुःख दर्द मिट जायें सबके
सबकी झोली में ख़ुशी के अनमोल क्षण आ जायें.
ख़ुशी एक साज है
हर पल क्षण उसकी आवाज हैं
जिंदगी में ख़ुशी के क्षण सबको मिले
बस रब से यही फरियाद हैं .
#रीता बिष्ट
फिर से मुस्कराने के वो पल ढूँढ़ते हैं
वो अनमोल पल जो खो गये हैं
फिर से प्यारे वो अनमोल क्षण ढूँढ़ते हैं .
खो गई जो ख़ुशी फिर से जीने का वो क्षण ढूंढते हैं
जो ख़ुशी मेरे घर की राह भूल गई हैं
उस ख़ुशी को फिर से घर में लाने के क्षण ढूँढ़ते हैं
मिली हैं ये जिंदगी बस ख़ुशी मनाने के बहाने और क्षण ढूँढ़ते हैं .
खिल-खिल कर ख़ुशी का आगाज करते हैं
सबके लिये ईश्वर से ख़ुशी की अर्चना करते हैं
दुःख दर्द मिट जायें सबके
सबकी झोली में ख़ुशी के अनमोल क्षण आ जायें.
ख़ुशी एक साज है
हर पल क्षण उसकी आवाज हैं
जिंदगी में ख़ुशी के क्षण सबको मिले
बस रब से यही फरियाद हैं .
#रीता बिष्ट
हर पल हर क्षण बीता जा रहा,
इंसान मोहजाल में फंसता जा रहा,
क्या कुछ तेरा क्या कुछ मेरा,
पल पल यूँ ही मिटता जा रहाl
सोचती हूँ किस बात का दम्भ करूं,
क्यों किसी से ईर्ष्या करूं,
जीवन तो क्षण भंगुर है,
क्यों सोच सोच कर नष्ट करूंl
काश... कुछ ऐसा हो पाता,
जड़ से द्वेष ख़त्म होजाता,
कितना सुंदर पल वो होता,
जब सारा जग एक जुट होताl
ईश मुझे ये दो वरदान,
सबको मानू मै भगवान,
विप्रो के मै काम आ सकू
बस बनी रहूँ मै इंसान l
कुसुम पंत उत्साही
देहरादून
उत्तराखंड
इंसान मोहजाल में फंसता जा रहा,
क्या कुछ तेरा क्या कुछ मेरा,
पल पल यूँ ही मिटता जा रहाl
सोचती हूँ किस बात का दम्भ करूं,
क्यों किसी से ईर्ष्या करूं,
जीवन तो क्षण भंगुर है,
क्यों सोच सोच कर नष्ट करूंl
काश... कुछ ऐसा हो पाता,
जड़ से द्वेष ख़त्म होजाता,
कितना सुंदर पल वो होता,
जब सारा जग एक जुट होताl
ईश मुझे ये दो वरदान,
सबको मानू मै भगवान,
विप्रो के मै काम आ सकू
बस बनी रहूँ मै इंसान l
कुसुम पंत उत्साही
देहरादून
उत्तराखंड
दिनांक 25/10/2018
एक एक क्षण का महत्व है जग मे
जाया न करे हम एक क्षण
क्षणभंगुर हैं जीवन अपना
चाहे करें हम लाख जतन।
एक क्षण के लिए भी
हम न आने दे किसी के आँखो मे आँसू
न करे किसी का अपमान
वक्त बे-वक्त तो कट जायेंगे
क्षण भर लगा ले हम प्रभु का ध्यान
धरम न छोड़े एक पल भी
डिगे न धर्य हमारा,
धर्म कर्म हम करते रहे तो,
जीवन प्रत्येक क्षण आंनद हमारा
अर्जुन के लिए भारी था वह क्षण
जब उठाया गांडिव अपनों पर
कृष्ण दिये गीता का ज्ञान तत्क्षण।
क्षण क्षण प्रत्येक क्षण
खुशियाँ मिले सभी को
यही है रब से प्रार्थना हमारा
कोई बडा़ निर्णय लेने से पहले
एक क्षण सोचें जरूर
एक क्षण का लिया निर्णय
जीवन में मायने रखता जरूर।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव
एक एक क्षण का महत्व है जग मे
जाया न करे हम एक क्षण
क्षणभंगुर हैं जीवन अपना
चाहे करें हम लाख जतन।
एक क्षण के लिए भी
हम न आने दे किसी के आँखो मे आँसू
न करे किसी का अपमान
वक्त बे-वक्त तो कट जायेंगे
क्षण भर लगा ले हम प्रभु का ध्यान
धरम न छोड़े एक पल भी
डिगे न धर्य हमारा,
धर्म कर्म हम करते रहे तो,
जीवन प्रत्येक क्षण आंनद हमारा
अर्जुन के लिए भारी था वह क्षण
जब उठाया गांडिव अपनों पर
कृष्ण दिये गीता का ज्ञान तत्क्षण।
क्षण क्षण प्रत्येक क्षण
खुशियाँ मिले सभी को
यही है रब से प्रार्थना हमारा
कोई बडा़ निर्णय लेने से पहले
एक क्षण सोचें जरूर
एक क्षण का लिया निर्णय
जीवन में मायने रखता जरूर।
स्वरचित-आरती श्रीवास्तव
"क्षण"
चल उस गगन को चले
हर क्षण अपने सपनों को
जी लें
चल उस गगन .........
जहाँ तन्हाइयां भी हो डरे
हर क्षण खुशियों से हो भरे
चल उस गगन .............
ऐसे एक पलकों तले
हर क्षण प्रीत नैनो में बसे
चल उस गगन ...............
एक दूजे के लफ़्ज़ हो सिले
हर क्षण मन में गीत बजे
चल उस गगन .................
गमों को भूलकर ऐसे जीये
हर क्षण यादगार लम्हे बने
चल उस गगन ..............
एक ऐसे आशियाना तले
कुछ क्षण तो मुस्कुरा के जी ले
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
चल उस गगन को चले
हर क्षण अपने सपनों को
जी लें
चल उस गगन .........
जहाँ तन्हाइयां भी हो डरे
हर क्षण खुशियों से हो भरे
चल उस गगन .............
ऐसे एक पलकों तले
हर क्षण प्रीत नैनो में बसे
चल उस गगन ...............
एक दूजे के लफ़्ज़ हो सिले
हर क्षण मन में गीत बजे
चल उस गगन .................
गमों को भूलकर ऐसे जीये
हर क्षण यादगार लम्हे बने
चल उस गगन ..............
एक ऐसे आशियाना तले
कुछ क्षण तो मुस्कुरा के जी ले
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
विषय :-"क्षण"
जीवन में क्षण ऐसे आते हैं,
कभी हँसाते, तो कभी रुलाते हैं,
क्षण की फितरत होती है ऐसी,
राजा को रंक, रंक को राजा बना जाते हैं l
क्षण में ही मंजर बदल जाते हैं,
दिलों को लाते हैं पास,कभी दूर ले जाते हैं,
मन की तिज़ोरी में सहेजे हुए क्षण,
अविस्मरणीय यादों में बदल जाते हैं l
क्षण में विचार बदल जाते हैं,
नियत क्या इंसान बदल जाते हैं,
अपने कर्मों पे पर्दा डाल कर,
क्षण को दोष दिए जाते है l
क्षण अपनी कीमत बताते हैं,
ठोकरें देकर रास्ता भी सुझाते हैं,
एक बार छूटे जो बेफिक्र हाथों से,
बेवफा क्षण फिर लौट के न आते हैं l
स्वरचित एवँ मौलिक
ऋतुराज दवे
जीवन में क्षण ऐसे आते हैं,
कभी हँसाते, तो कभी रुलाते हैं,
क्षण की फितरत होती है ऐसी,
राजा को रंक, रंक को राजा बना जाते हैं l
क्षण में ही मंजर बदल जाते हैं,
दिलों को लाते हैं पास,कभी दूर ले जाते हैं,
मन की तिज़ोरी में सहेजे हुए क्षण,
अविस्मरणीय यादों में बदल जाते हैं l
क्षण में विचार बदल जाते हैं,
नियत क्या इंसान बदल जाते हैं,
अपने कर्मों पे पर्दा डाल कर,
क्षण को दोष दिए जाते है l
क्षण अपनी कीमत बताते हैं,
ठोकरें देकर रास्ता भी सुझाते हैं,
एक बार छूटे जो बेफिक्र हाथों से,
बेवफा क्षण फिर लौट के न आते हैं l
स्वरचित एवँ मौलिक
ऋतुराज दवे
🌿🍁 क्षण 🍁🌿
चारु चंद्र की शीतल चांदनी
प्रतिपल बढ़ती घटती
बारंबार निहारुं इसको
मन से नहीं उतरती
🍁🌿🍁🌿🍁
श्वेत धवल गगन में
जब कोई तारा टूटे
मन के एक कोने में
उस क्षण कोई ज्वाला फूटे
🍁🌿🍁🌿🍁
क्षण भर,मन ठहरे और पिघले
अविरतअश्रुधारा निज नैनों से निकले
चारु चंद्र की शीतल चांदनी
प्रतिपल बढ़ती घटती
बारंबार निहारुं इसको
मन से नहीं उतरती
🍁🌿🍁🌿🍁
श्वेत धवल गगन में
जब कोई तारा टूटे
मन के एक कोने में
उस क्षण कोई ज्वाला फूटे
🍁🌿🍁🌿🍁
क्षण भर,मन ठहरे और पिघले
अविरतअश्रुधारा निज नैनों से निकले
गगन मेंअसंख्य तारे
हर क्षण कोई टूटे
🍁🌿🍁🌿🍁
सहनशीलता देख गगन की
मन में सिहरन उमड़े
कभी ना लौटे टूटे तारे
फिर मानव क्यों टूटे
🍁🌿🍁🌿🍁
तारे भी है स्वजन गगन के
देखो वह है अविचल
स्वजन के जाने पर
क्यों मानव है कातर
🍁🌿🍁🌿🍁
मोह पाश बंधा मानव
स्वार्थ भाव जब छोड़े
स्वछन्द गगन तारों सा
निस्वार्थ भाव जब ओढ़े
🍁🌿🍁🌿🍁
पल पल सुख की चादर
तब मानव मन ताने
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
स्वरचित - आशा पालीवाल पुरोहित
हर क्षण कोई टूटे
🍁🌿🍁🌿🍁
सहनशीलता देख गगन की
मन में सिहरन उमड़े
कभी ना लौटे टूटे तारे
फिर मानव क्यों टूटे
🍁🌿🍁🌿🍁
तारे भी है स्वजन गगन के
देखो वह है अविचल
स्वजन के जाने पर
क्यों मानव है कातर
🍁🌿🍁🌿🍁
मोह पाश बंधा मानव
स्वार्थ भाव जब छोड़े
स्वछन्द गगन तारों सा
निस्वार्थ भाव जब ओढ़े
🍁🌿🍁🌿🍁
पल पल सुख की चादर
तब मानव मन ताने
🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹
स्वरचित - आशा पालीवाल पुरोहित
क्षण
मत कर घमंड ज्ञान का,
पतन के गढ्ढे में गिर जाएगा,
आज छू रहा है नभ को,
क्षण में धूल में मिल जाएगा,
पड़कर आलस के चक्कर में,
कर्म पिछे छूट जाएगें,
क्षण-क्षण की हम किमत जानें,
तब मंजिल अपनी पाएँगे,
पूरे जीवन में हमारे,
एक ऐसा क्षण भी होता है,
जो दुखों की आग में,
शीतल छाया देता है।
स्वरचित-रेखा रविदत्त
क्षण भंगुर जीवन का पथिक
संचय संपत्ति का आशिक़
जब हो प्रलय क्षण में
तहस नहस सब पल भर में
न आएगी दौलत काम
रह जायेगा यही पर दाम
संचय कर सच्चा कर्म
मददगार का जान मर्म
दे धन शिक्षा हेतु
पार करने ग़रीबी सेतु
ब्राम्हण को ना दे मोटी दक्षिणा
ना मंदिर में दान दक्षिणा
पुत्री गरीब की कर दे शादी
किसान की रोक बर्बादी
शरीर तो है नश्वर
पार लगाए नैया ईश्वर
स्वरचित, मौलिक
डॉ नीलिमा तिग्गा (नीलांबरी)
हिंदी उर्दू हो नाम हिंदुस्तानी ज़बान
दोनों की निजता पाती सम्मान
भाषाई समागम बने महान
ऐसा कल्पित पर इच्छित क्षण
इसको समर्पित मेरा मन ।
धर्म जाति की ना हो संकीर्ण दीवार
झगड़े बँटवारे की ना कोई ललकार
प्रेम सुधा बने जागीर
ऐसा कल्पित पर इच्छित क्षण
इसको समर्पित मेरा मन।
अमीर ग़रीब की ना हो खाई
रोटी कपड़ा मकान की हो भरपाई
केवल समरसता बने मधुराई
ऐसा कल्पित पर इच्छित क्षण
इसको समर्पित मेरा मन।
हर बेटी जन्मे नभ में चमके अश्लीलता ना कोई तेज़ाब छिड़के
सम्मानिता बने स्वाभिमानी
ऐसा कल्पित पर इच्छित क्षण
इसको समर्पित मेरा मन।
अनाथालय ना हो कोई वृद्धाश्रम
सबकी परवरिश सबका निज धाम
जीवन मूल्य बने महान
ऐसा कल्पित पर इच्छित क्षण
इसको समर्पित मेरा मन।
शुद्ध आचरण और सदाचार परिवेश
नैतिक मूल्यों का सदा समावेश
श्रवण मनुज़ता बने रघुराई
ऐसा कल्पित पर इच्छित क्षण
इसको समर्पित मेरा मन।
स्वरचित
संतोष कुमारी
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हर क्षण बदलता जीवन
हर क्षण बदलती काया
मत करो गुरूर जीवन पर
कब बदले इसकी माया
क्षण क्षण फिसलती
जिंदगी देती है संदेश
कर्मों की गाति तेज कर
नहीं तो हो जाएगी देर
गर्व करो न इस तन पर
क्षणभंगुर है यह काया
गले लगाले किस क्षण आकर
कोई जाने न मौत की माया
क्षण में बदलती किस्मत का
खेल किसी से न जाना
कब राजा से रंक बने
कब कोई रंक से राजा
क्षण में बदलती किस्मत की रेखा
क्षणभंगुर यह जीवन बना है
इक क्षण में मिट जाने को
जिंदा दिलों में रहना है तो
अपने सत्कर्मों से एक पहचान बनालो
***अनुराधा चौहान*** मेरी स्वरचित कविता
हर क्षण बदलता जीवन
हर क्षण बदलती काया
मत करो गुरूर जीवन पर
कब बदले इसकी माया
क्षण क्षण फिसलती
जिंदगी देती है संदेश
कर्मों की गाति तेज कर
नहीं तो हो जाएगी देर
गर्व करो न इस तन पर
क्षणभंगुर है यह काया
गले लगाले किस क्षण आकर
कोई जाने न मौत की माया
क्षण में बदलती किस्मत का
खेल किसी से न जाना
कब राजा से रंक बने
कब कोई रंक से राजा
क्षण में बदलती किस्मत की रेखा
क्षणभंगुर यह जीवन बना है
इक क्षण में मिट जाने को
जिंदा दिलों में रहना है तो
अपने सत्कर्मों से एक पहचान बनालो
***अनुराधा चौहान*** मेरी स्वरचित कविता
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