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ब्लॉग संख्या :-633
22 /1/2020
बिषय,, श्याम स्याह
श्याम है मेरा मैं श्याम पिया की श्याम रंग है भाया
जहँ तहँ देखूं श्याम ही श्याम रोम रोम में समाया
काली घटाएं स्याह रातें जब वो वंशी बजाबै
सागर जैसी उठे हिलौरे मन में चैन न आबै
संग की सखियां ताना देबैं कोई न धीर धरावै
ए कान्हा मैं भई बाबरी नयन दर्शन को अकुलाबै
तू क्या जाने पीर पराई मंद मंद मुसकावै
बैठ कदंब की.डाली पर वांसुरी मधुर बजाबै
सास ननद गारी देवै सैयां आँख दिखावै
दर्शन कब दोगे मन मोहन दुनियां मोहे न सुहावै
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय,, श्याम स्याह
श्याम है मेरा मैं श्याम पिया की श्याम रंग है भाया
जहँ तहँ देखूं श्याम ही श्याम रोम रोम में समाया
काली घटाएं स्याह रातें जब वो वंशी बजाबै
सागर जैसी उठे हिलौरे मन में चैन न आबै
संग की सखियां ताना देबैं कोई न धीर धरावै
ए कान्हा मैं भई बाबरी नयन दर्शन को अकुलाबै
तू क्या जाने पीर पराई मंद मंद मुसकावै
बैठ कदंब की.डाली पर वांसुरी मधुर बजाबै
सास ननद गारी देवै सैयां आँख दिखावै
दर्शन कब दोगे मन मोहन दुनियां मोहे न सुहावै
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
विषय श्याम,स्याह
विधा काव्य
22जनवरी 2020,बुधवार
शाम सुहानी श्यामल होती
श्याह अंधेरी रजनी शान्त।
गगन पटल पे प्रिय ज्योत्स्ना
तारे मध्य दमके रजनी कांत।
राधा के श्यामल बालों को
गूंथ रहे श्री श्याम बिहारी।
स्वकर वेणी बना रहे भव्य
गोप गोपियां सब बलिहारी।
ब्रज मंडल यमुना बहती
नीर श्याम है अति सुहाना।
धूमधाम मिल रास रचावे
राधा आती तज बरसाना।
चन्दा सी सुन्दर प्रिय राधा
नटवर नागर श्याम बिहारी।
अद्भुत है जग इनकी शौभा
विश्व नियन्ता कृष्ण मुरारी।
श्याम रंग अति शीतल होता
श्याम रंग पर जग दीवाना।
श्याम बिना जग सूना लागे
श्याममल श्री श्याम सुहाना।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
22जनवरी 2020,बुधवार
शाम सुहानी श्यामल होती
श्याह अंधेरी रजनी शान्त।
गगन पटल पे प्रिय ज्योत्स्ना
तारे मध्य दमके रजनी कांत।
राधा के श्यामल बालों को
गूंथ रहे श्री श्याम बिहारी।
स्वकर वेणी बना रहे भव्य
गोप गोपियां सब बलिहारी।
ब्रज मंडल यमुना बहती
नीर श्याम है अति सुहाना।
धूमधाम मिल रास रचावे
राधा आती तज बरसाना।
चन्दा सी सुन्दर प्रिय राधा
नटवर नागर श्याम बिहारी।
अद्भुत है जग इनकी शौभा
विश्व नियन्ता कृष्ण मुरारी।
श्याम रंग अति शीतल होता
श्याम रंग पर जग दीवाना।
श्याम बिना जग सूना लागे
श्याममल श्री श्याम सुहाना।
स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
दिनांक-22/01/2020
विषय- श्याम
छम छम बरसे अखियां मोरी
नजरें मिली तो अगियाँ तोरी
है क्या ऐसी तेरी नज़र में
समझ ना पाऊं मै तेरे बसर में
जब -जब तेरा नाम दोहराऊँ
कहो कान्हा राज है क्या तेरा
चरणों में मैं तेरे रम जाऊं
है जादू तेरा बड़ा निराला
हो तू मेरे भाग्य का उजाला
हो विभोर भीगे आंचल
रंग में तेरे रंगती जाऊं
रज चरणों पर बलिहारी पाऊँ
हल्की सी तेरी एक झलक पर
पल-पल मैं इतराऊँ
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह
इलाहाबाद
विषय- श्याम
छम छम बरसे अखियां मोरी
नजरें मिली तो अगियाँ तोरी
है क्या ऐसी तेरी नज़र में
समझ ना पाऊं मै तेरे बसर में
जब -जब तेरा नाम दोहराऊँ
कहो कान्हा राज है क्या तेरा
चरणों में मैं तेरे रम जाऊं
है जादू तेरा बड़ा निराला
हो तू मेरे भाग्य का उजाला
हो विभोर भीगे आंचल
रंग में तेरे रंगती जाऊं
रज चरणों पर बलिहारी पाऊँ
हल्की सी तेरी एक झलक पर
पल-पल मैं इतराऊँ
स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह
इलाहाबाद
विधा-छंद मुक्त
विषय-स्याह/श्याम
स्याह अंधेरा,काला सागर,
काली बदली, काला अम्बर
गीली रेत पर, भीगा एक मन
बारिश में गीला उसका तन
कडक रही थी बिजली पल पल
गरज रहे थे बादल उस पल
काँधे पर कुछ बाल बिखेरे
मुख पर काली नागिन सी लट
कौन वीराने में बेबस - सी ,
बेसुध-सी थी एक परछाई ।
होश नही था तन का अपने
कौन व्यथा मन पर थी छाई ।
बढ़ी चली सागर से मिलने,
क्रुद्ध, घोर उदधि का गर्जन
रोक सका न बढ़े कदम
अस्फुट सी भयभीत सदा ने
दे आवाज उसे था रोका
एक पल ठहरी,पलटी जब वो
नयना थे आवाक मेरे
फिर चीख उठी मैं
और नही कोई,
वो मेरी थी परछाई
फटी हुई आंखों ने
देखा था एक सपना
स्याह अंधेरा मन पर छाया
मैं घबराई
सरिता गर्ग
विषय-स्याह/श्याम
स्याह अंधेरा,काला सागर,
काली बदली, काला अम्बर
गीली रेत पर, भीगा एक मन
बारिश में गीला उसका तन
कडक रही थी बिजली पल पल
गरज रहे थे बादल उस पल
काँधे पर कुछ बाल बिखेरे
मुख पर काली नागिन सी लट
कौन वीराने में बेबस - सी ,
बेसुध-सी थी एक परछाई ।
होश नही था तन का अपने
कौन व्यथा मन पर थी छाई ।
बढ़ी चली सागर से मिलने,
क्रुद्ध, घोर उदधि का गर्जन
रोक सका न बढ़े कदम
अस्फुट सी भयभीत सदा ने
दे आवाज उसे था रोका
एक पल ठहरी,पलटी जब वो
नयना थे आवाक मेरे
फिर चीख उठी मैं
और नही कोई,
वो मेरी थी परछाई
फटी हुई आंखों ने
देखा था एक सपना
स्याह अंधेरा मन पर छाया
मैं घबराई
सरिता गर्ग
नमन साथियों
आज का शीर्षक-"श्याम"
दिनांक-२२/०१/२०२०
श्याम के रंग में, रंगी है आज राधिका,
रूप रंग भावन मन ज्यों सुहावन लगती है।
माथे मुकुट शोभे गले बाघनख पहिरे,
स्वाँग साँवरे के धर मनभावन लगती है।
होंठों पर धर बाँसुरी खड़ी है कदम्ब तरी,
यमुना भी आज क्यों सुहावनी लगती है।
देखते भर नयन श्याम सोचते हैं मन मन,
राधिका आज कैसी दिवानी लगती है।
आज का शीर्षक-"श्याम"
दिनांक-२२/०१/२०२०
श्याम के रंग में, रंगी है आज राधिका,
रूप रंग भावन मन ज्यों सुहावन लगती है।
माथे मुकुट शोभे गले बाघनख पहिरे,
स्वाँग साँवरे के धर मनभावन लगती है।
होंठों पर धर बाँसुरी खड़ी है कदम्ब तरी,
यमुना भी आज क्यों सुहावनी लगती है।
देखते भर नयन श्याम सोचते हैं मन मन,
राधिका आज कैसी दिवानी लगती है।
विषय - श्याम/स्याह
प्रथम प्रस्तुति
स्याह रात में सपने देखे
स्याह रात में अपने देखे।।
एक रोशनी हँसा रही थी
मानो पास बुला रही थी।।
हँसते हँसते रूला रही थी
रोते रोते हँसा रही थी।।
क्या क्या खेल खिला रही थी
रूह को कोई भा रही थी।।
वो बचपन याद आ रही थी
जीस्त कांटो में मुस्का रही थी।।
वो न समझी सी बातें हैं
हम समझें वो सौगातें हैं।।
रब की मंसाओं को जानो
काँटों में भी हँसना ठानो।।
सूरज तो आता ही आता
इंसा वो जो गम में गाता।।
स्याह रात का गम न करना
स्याह रात में दम तुम भरना।।
आएगा इक दिन आफताब
मंहकेगा जीवन ज्यों गुलाब।।
स्याह रात कुछ सबक सिखाए
खुद से 'शिवम' हमें मिलवाये।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 22/01/2020
प्रथम प्रस्तुति
स्याह रात में सपने देखे
स्याह रात में अपने देखे।।
एक रोशनी हँसा रही थी
मानो पास बुला रही थी।।
हँसते हँसते रूला रही थी
रोते रोते हँसा रही थी।।
क्या क्या खेल खिला रही थी
रूह को कोई भा रही थी।।
वो बचपन याद आ रही थी
जीस्त कांटो में मुस्का रही थी।।
वो न समझी सी बातें हैं
हम समझें वो सौगातें हैं।।
रब की मंसाओं को जानो
काँटों में भी हँसना ठानो।।
सूरज तो आता ही आता
इंसा वो जो गम में गाता।।
स्याह रात का गम न करना
स्याह रात में दम तुम भरना।।
आएगा इक दिन आफताब
मंहकेगा जीवन ज्यों गुलाब।।
स्याह रात कुछ सबक सिखाए
खुद से 'शिवम' हमें मिलवाये।।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 22/01/2020
श्याम
वह गाँव का,
खूला आँसमान ।
निर्मल मन ।
प्यारा बचपन ।
वह बारीश की बूंदे,
मिट्टी की सुगंध ।
वह गोधूलि श्याम ।
वह खूला आँसमान ।
खूले आँसमान में,
पश्चिम की दिशा ।
धीरे धीरे,
छाने लगी निशा ।
पंछी निकले,
अपने घर ।
मजदूर निकले,
अपने मकान ।
आँसमान में ,
दिखे सातरंगी कमान ।
कोई कहें,
राम का बाण ।
गिनते बार बार,
सातरंग को ।
समझाते,
अपने मन को ।
वह खूला आँसमान,
सुंदर हैं मेरे
गाँव की श्याम ।
X प्रदीप सहारे
वह गाँव का,
खूला आँसमान ।
निर्मल मन ।
प्यारा बचपन ।
वह बारीश की बूंदे,
मिट्टी की सुगंध ।
वह गोधूलि श्याम ।
वह खूला आँसमान ।
खूले आँसमान में,
पश्चिम की दिशा ।
धीरे धीरे,
छाने लगी निशा ।
पंछी निकले,
अपने घर ।
मजदूर निकले,
अपने मकान ।
आँसमान में ,
दिखे सातरंगी कमान ।
कोई कहें,
राम का बाण ।
गिनते बार बार,
सातरंग को ।
समझाते,
अपने मन को ।
वह खूला आँसमान,
सुंदर हैं मेरे
गाँव की श्याम ।
X प्रदीप सहारे
विषय_ श्याम/स्याह |
भरी बरसात के दिन पर लगते अच्छे |
स्याह काली रात डरावनी |
काले काले कजरारे बादल
घनघोर घटाये छारही |
मन को लगा शायद आयेगा तूफान बरसने लगे धुआधार थमे नही |
इस स्याह रात मे मची तबाई भारी
न जाने कितने गाँव नगर बह गये |
कितनी जाने लील गयेओह
तीनदिन रुका नही न स्याह,
काली रात्री ही बस रही |
मन को भय था हुआ वही |
आज भी डर जाती हूँ |
होती स्याह रात देखगमगीन |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
भरी बरसात के दिन पर लगते अच्छे |
स्याह काली रात डरावनी |
काले काले कजरारे बादल
घनघोर घटाये छारही |
मन को लगा शायद आयेगा तूफान बरसने लगे धुआधार थमे नही |
इस स्याह रात मे मची तबाई भारी
न जाने कितने गाँव नगर बह गये |
कितनी जाने लील गयेओह
तीनदिन रुका नही न स्याह,
काली रात्री ही बस रही |
मन को भय था हुआ वही |
आज भी डर जाती हूँ |
होती स्याह रात देखगमगीन |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
विषय-*श्याम/स्याह*
विधा -छंदमुक्त, काव्य
श्याम सलोने कृष्ण कन्हैया
मेरे नटनागर नंदलाल।
सुखी रखें हम सबको प्यारे,,
रहें संसार सदा खुशहाल।
स्याह अंधेरा हो न जग में,
सारी दुनिया जगमग चमके।
रहे उज्जवला श्यामा वसुधा,
प्रभु सदैव ये दमदम दमके।
गिरधर गिरधारी गोपाला।
नहीं करें कोई घोटाला।
हो भावना राष्ट्रीयता की,
मन प्रेमरसा हो भूपाला।
आपस में अभिनंदन कर लें।
नित नूतन हम वंदन कर लें।
भक्ति भावना भरी रहे कुछ,
हिय निर्मल हम चंदन कर लें।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म प्र
विधा -छंदमुक्त, काव्य
श्याम सलोने कृष्ण कन्हैया
मेरे नटनागर नंदलाल।
सुखी रखें हम सबको प्यारे,,
रहें संसार सदा खुशहाल।
स्याह अंधेरा हो न जग में,
सारी दुनिया जगमग चमके।
रहे उज्जवला श्यामा वसुधा,
प्रभु सदैव ये दमदम दमके।
गिरधर गिरधारी गोपाला।
नहीं करें कोई घोटाला।
हो भावना राष्ट्रीयता की,
मन प्रेमरसा हो भूपाला।
आपस में अभिनंदन कर लें।
नित नूतन हम वंदन कर लें।
भक्ति भावना भरी रहे कुछ,
हिय निर्मल हम चंदन कर लें।
स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
मगराना, गुना म प्र
दिनांक- 22/01/2020
शीर्षक- श्याम/स्याह
विधा- कविता
*************
श्याम वर्ण मेरे कृष्णा,
गौर वर्ण प्यारी राधा,
जब दोनों होते हैं साथ,
मिट जाती है तृष्णा |
काली कंबली वाले हैं,
मुरली मधुर बजाते हैं,
माखन,मिस्री भोग लगायें,
श्याम मुझे खूब भाते हैं |
गौर वर्ण जो होता कान्हा,
पता नहीं क्या तुम कर जाते,
श्याम वर्ण पर ही जब,
हम सब यूँ मर जाते हैं |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
शीर्षक- श्याम/स्याह
विधा- कविता
*************
श्याम वर्ण मेरे कृष्णा,
गौर वर्ण प्यारी राधा,
जब दोनों होते हैं साथ,
मिट जाती है तृष्णा |
काली कंबली वाले हैं,
मुरली मधुर बजाते हैं,
माखन,मिस्री भोग लगायें,
श्याम मुझे खूब भाते हैं |
गौर वर्ण जो होता कान्हा,
पता नहीं क्या तुम कर जाते,
श्याम वर्ण पर ही जब,
हम सब यूँ मर जाते हैं |
स्वरचित- *संगीता कुकरेती*
स्याह
स्याह अंधेरा उजालों से दूर जाएगा।
प्रेम भी जरूर प्यार से ही मुस्कुराएगा।
प्रियतम को कसक होती है विरह की।
विरह मिलन से ही दूर हो पायेगा।
दिन रात निहारती है धरती गगन को
प्रेम की ही बूँद से वह शीतलता पायेगी।
राही भी पथ चलकर बहुत व्याकुल है,
मंजिल पर पहुँच कर ही आराम पायेगा।
स्याह अंधेरी रातों से क्या किशन डरना।
राधा के प्रेम से श्याम हृदय में रौशनी भर जाएगी।।
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैया लाल गुप्त शिक्षक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय ताली, सिवान, बिहार 841239
स्याह अंधेरा उजालों से दूर जाएगा।
प्रेम भी जरूर प्यार से ही मुस्कुराएगा।
प्रियतम को कसक होती है विरह की।
विरह मिलन से ही दूर हो पायेगा।
दिन रात निहारती है धरती गगन को
प्रेम की ही बूँद से वह शीतलता पायेगी।
राही भी पथ चलकर बहुत व्याकुल है,
मंजिल पर पहुँच कर ही आराम पायेगा।
स्याह अंधेरी रातों से क्या किशन डरना।
राधा के प्रेम से श्याम हृदय में रौशनी भर जाएगी।।
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ
डॉ कन्हैया लाल गुप्त शिक्षक
उत्क्रमित उच्च विद्यालय ताली, सिवान, बिहार 841239
22/01/2020
"स्याहा/श्याम"
********
मैं सैनिक
*******
काली अंधेरी स्याह रातों में
मावस की गहन मुलाकातों में
मैं सैनिक ,हौसलों के नेत्र खोले
संजय समकक्ष बढ़ता गया,,चलता गया
कल्पतरु सा अडिग,देश हितार्थ
अंगद बनता गया,बनता गया......
लक्ष्य का संघान कर
न प्राणों पर अभिमान कर
मैं सैनिक,राही निडर बन
अर्जुन सा कर्म करता,चलता गया ,चलता गया
मौसम,बेमौसम की मार सहता
शीत, फुहारें ,पुष्प, वर्षा मान, राष्ट्रहित बढ़ता गया.....
वीरभूमि मृत्तिका को
चंदन मान तिलक धर
मैं सैनिक, महक दूर तक फैलता
बढ़ता गया,बढ़ता गया....
कण-कण इसके लहू से अपने
समर्पण,कर्तव्य के हस्ताक्षर करता गया.....
मातृभूमि को वंदन करता
लहू से शौर्य गाथाएँ लिखता
मैं सैनिक,लिपट तिरंगे घर आता
चंद जयचंदों के कारण,इतिहास नया बन जाता हूँ।लौट के घर आता हूँ।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित मौलिक
"स्याहा/श्याम"
********
मैं सैनिक
*******
काली अंधेरी स्याह रातों में
मावस की गहन मुलाकातों में
मैं सैनिक ,हौसलों के नेत्र खोले
संजय समकक्ष बढ़ता गया,,चलता गया
कल्पतरु सा अडिग,देश हितार्थ
अंगद बनता गया,बनता गया......
लक्ष्य का संघान कर
न प्राणों पर अभिमान कर
मैं सैनिक,राही निडर बन
अर्जुन सा कर्म करता,चलता गया ,चलता गया
मौसम,बेमौसम की मार सहता
शीत, फुहारें ,पुष्प, वर्षा मान, राष्ट्रहित बढ़ता गया.....
वीरभूमि मृत्तिका को
चंदन मान तिलक धर
मैं सैनिक, महक दूर तक फैलता
बढ़ता गया,बढ़ता गया....
कण-कण इसके लहू से अपने
समर्पण,कर्तव्य के हस्ताक्षर करता गया.....
मातृभूमि को वंदन करता
लहू से शौर्य गाथाएँ लिखता
मैं सैनिक,लिपट तिरंगे घर आता
चंद जयचंदों के कारण,इतिहास नया बन जाता हूँ।लौट के घर आता हूँ।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित मौलिक
विषय--श्याम/स्याह
दिनांक--22.1.2020
विधा---दोहे
1.
स्याह स्याह अँधेरे हैं, मेरे शहर में ।
लुटे लुटे सबेरे हैं,मेरे शहर में ।
बदनाम गलियों में,घूमते खुले खुले,
स्याह स्याह चेहरे हैं, मेरे शहर में।
काम की तलाश में,स्याह पड़ गया बदन,
नवयुवक मरे मरे हैं, मेरे शहर में ।
स्याह आरक्षण ने, मजबूर बना दिया,
विद्वान लूट रहे हैं, मेरे शहर में ।
स्याह घने अँधेरे हैं,मेरे शहर में ।
********स्वरचित*****
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
दिनांक--22.1.2020
विधा---दोहे
1.
स्याह स्याह अँधेरे हैं, मेरे शहर में ।
लुटे लुटे सबेरे हैं,मेरे शहर में ।
बदनाम गलियों में,घूमते खुले खुले,
स्याह स्याह चेहरे हैं, मेरे शहर में।
काम की तलाश में,स्याह पड़ गया बदन,
नवयुवक मरे मरे हैं, मेरे शहर में ।
स्याह आरक्षण ने, मजबूर बना दिया,
विद्वान लूट रहे हैं, मेरे शहर में ।
स्याह घने अँधेरे हैं,मेरे शहर में ।
********स्वरचित*****
प्रबोध मिश्र 'हितैषी'
बड़वानी(म.प्र.)451551
"भावों के मोती"
22/1/2020
स्याह
*****
दिल के गहरे स्याह
समंदर में न फैंक पत्थर
न जाने कितनी तमन्नायें
बेलिबास पड़ी हैं
सोये है ख्वाब बहुत से
कितनी हसरतें उनींदी पड़ी हैं
रो लू दामन में तेरे
ऱखकर सर
जो बख्शे तू कुछ पल
इनमें तमाम उलझनें भरी पड़ी
हैं ।।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
22/1/2020
स्याह
*****
दिल के गहरे स्याह
समंदर में न फैंक पत्थर
न जाने कितनी तमन्नायें
बेलिबास पड़ी हैं
सोये है ख्वाब बहुत से
कितनी हसरतें उनींदी पड़ी हैं
रो लू दामन में तेरे
ऱखकर सर
जो बख्शे तू कुछ पल
इनमें तमाम उलझनें भरी पड़ी
हैं ।।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
विषय, श्याम, स्याह
बुधवार
२२,१,२०२०.
हर श्याम रंग में रंगने वाला ,
रंग इस दुनियाँ के भूल गया ।
नहीं दूजा रंग फिर भाये कोई,
मन जब श्याम रंग में डूब गया।
लगे सुनहरी दुनियाँ तब तक,
जब तक दिल दीवाना न हुआ।
प्रीत श्याम की चाहने वाला तो ,
नाम श्याम श्याम ही रटने लगा।
उजला दिन लगे स्याह रात सा,
प्रिय का अगर न दीदार हुआ।
ज्यों-ज्यों डूबा है श्याम रंग मन,
वो उज्ज्वल उतना ही होता गया।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
बुधवार
२२,१,२०२०.
हर श्याम रंग में रंगने वाला ,
रंग इस दुनियाँ के भूल गया ।
नहीं दूजा रंग फिर भाये कोई,
मन जब श्याम रंग में डूब गया।
लगे सुनहरी दुनियाँ तब तक,
जब तक दिल दीवाना न हुआ।
प्रीत श्याम की चाहने वाला तो ,
नाम श्याम श्याम ही रटने लगा।
उजला दिन लगे स्याह रात सा,
प्रिय का अगर न दीदार हुआ।
ज्यों-ज्यों डूबा है श्याम रंग मन,
वो उज्ज्वल उतना ही होता गया।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
नमन मंच,भावों के मोती।
विषय-श्याम।
स्वरचित।
इस दुनिया के पूर्ण अंग।
श्वेत श्याम बस दो ही रंग।।
श्वेत-श्याम बदरा घिर आए
रिमझिम बरखा रही सुहाय।
सबके मन में उठे उमंग।।
श्वेत श्याम.....
श्याम संग राधा मन भाये
श्याम श्याम मीरा गुन गाये
छनछन घुंघरू, बाजे मृदंग।।
श्वेत श्याम....
श्याम सलोनी मोहिनी मूरत
श्याम रंग मोहे पिया मन भाए
मन में छा रहा नव बसंत।।
श्वेत श्याम ....
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
विषय-श्याम।
स्वरचित।
इस दुनिया के पूर्ण अंग।
श्वेत श्याम बस दो ही रंग।।
श्वेत-श्याम बदरा घिर आए
रिमझिम बरखा रही सुहाय।
सबके मन में उठे उमंग।।
श्वेत श्याम.....
श्याम संग राधा मन भाये
श्याम श्याम मीरा गुन गाये
छनछन घुंघरू, बाजे मृदंग।।
श्वेत श्याम....
श्याम सलोनी मोहिनी मूरत
श्याम रंग मोहे पिया मन भाए
मन में छा रहा नव बसंत।।
श्वेत श्याम ....
****
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
22/01/2020बुधवार
विषय-श्याम/स्याह
विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
स्याह अँधेरा
अमावस की रात
सन्नाटा घोले👌
💐💐💐💐💐💐
श्यामल तन
किशन कन्हैया का
राधा को भाए👍
💐💐💐💐💐💐
स्याह नयन
गोरे-गोरे तन पे
लुभाए मन💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू"अकेला"
विषय-श्याम/स्याह
विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
स्याह अँधेरा
अमावस की रात
सन्नाटा घोले👌
💐💐💐💐💐💐
श्यामल तन
किशन कन्हैया का
राधा को भाए👍
💐💐💐💐💐💐
स्याह नयन
गोरे-गोरे तन पे
लुभाए मन💐
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू"अकेला"
22/01/20
श्याम
कृष्ण पक्ष की अष्टमी ,थी भादों की रात ।
द्वापर युग केशव हुए,दें अनुपम सौगात।।
केशव मोहन श्याम हैं ,माधव के अवतार,
देवकी लाल आठवें, करें कंस पर वार।
अधरों पर बंसी सजा ,श्याम रचायें रास ।
मोर मुकुट मस्तक धरें,करते हृदय निवास ।।
विरह अग्नि राधा जले ,कहाँ गये तुम श्याम।
स्वर्ण नगरी व्यर्थ लगे,प्रेम राधिका नाम ।।
श्याम वर्ण के श्याम हैं ,श्याम वर्ण के राम ।
श्याम रात्रि की कालिमा ,दूर करे प्रभु धाम ।
अनिता सुधीर
श्याम
कृष्ण पक्ष की अष्टमी ,थी भादों की रात ।
द्वापर युग केशव हुए,दें अनुपम सौगात।।
केशव मोहन श्याम हैं ,माधव के अवतार,
देवकी लाल आठवें, करें कंस पर वार।
अधरों पर बंसी सजा ,श्याम रचायें रास ।
मोर मुकुट मस्तक धरें,करते हृदय निवास ।।
विरह अग्नि राधा जले ,कहाँ गये तुम श्याम।
स्वर्ण नगरी व्यर्थ लगे,प्रेम राधिका नाम ।।
श्याम वर्ण के श्याम हैं ,श्याम वर्ण के राम ।
श्याम रात्रि की कालिमा ,दूर करे प्रभु धाम ।
अनिता सुधीर
दिनांक २२/१/२०२०
शीर्षक_श्याम
विधा-मुक्तक
श्याम सलोने कृष्ण मुरारी,सुन लो मेरी बात।
हर वक्त तुम्हे पुकारूँ, दौड़े आओ तात।
सुनकर तेरी वंशी की धुन, दुःख बिसरेगे आज।
करो कृपा कृपालु भगवन,रोको तुम आघात।
ले लो सुध मुझ दुखियारी,हो तुम कृपा निधान।
गोपी संग रास रचाएँ, लीलाधर भगवान।
मीरा के दुःख दूर कियो,सुन लो मेरी पुकार।
सुनो श्याम नंद दुलारे,हो तुम दयानिधान।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
शीर्षक_श्याम
विधा-मुक्तक
श्याम सलोने कृष्ण मुरारी,सुन लो मेरी बात।
हर वक्त तुम्हे पुकारूँ, दौड़े आओ तात।
सुनकर तेरी वंशी की धुन, दुःख बिसरेगे आज।
करो कृपा कृपालु भगवन,रोको तुम आघात।
ले लो सुध मुझ दुखियारी,हो तुम कृपा निधान।
गोपी संग रास रचाएँ, लीलाधर भगवान।
मीरा के दुःख दूर कियो,सुन लो मेरी पुकार।
सुनो श्याम नंद दुलारे,हो तुम दयानिधान।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
3
दिन :- बुधवार
दिनांक :- 22/01/2020
शीर्षक :- स्याह/श्याम
स्वप्न सब धूमिल हुए,
स्याह उन अंधियारों में।
तड़फ ही बसी है अब,
जीवन के गलियारों में।
डर सा लगता है अब,
उन स्याह सारी रातों से।
सहम सा उठता हूँ कभी,
होती खुद से मुलाकातों से।
हौसले तो काफी बुलंद है,
आसमां की उड़ानों के।
उठ रहे हैं जनाजे पर,
मेरे जज्बाती अरमानों के।
मगर स्याह अब मुझे,
हर राह नजर आती है।
अंदर ही अंदर मेरे,
मन को खा जाती है।
उठती कभी टीस सी,
टूट जाती हर आस है।
क्या कहूँ कैसे कहूँ,
कुछ न अब मेरे पास है।
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
दिनांक :- 22/01/2020
शीर्षक :- स्याह/श्याम
स्वप्न सब धूमिल हुए,
स्याह उन अंधियारों में।
तड़फ ही बसी है अब,
जीवन के गलियारों में।
डर सा लगता है अब,
उन स्याह सारी रातों से।
सहम सा उठता हूँ कभी,
होती खुद से मुलाकातों से।
हौसले तो काफी बुलंद है,
आसमां की उड़ानों के।
उठ रहे हैं जनाजे पर,
मेरे जज्बाती अरमानों के।
मगर स्याह अब मुझे,
हर राह नजर आती है।
अंदर ही अंदर मेरे,
मन को खा जाती है।
उठती कभी टीस सी,
टूट जाती हर आस है।
क्या कहूँ कैसे कहूँ,
कुछ न अब मेरे पास है।
स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
श्याम / स्याह
जग के
खेवनहार
वृन्दावन के
पालनहार
गोपियों के प्रेमी
सदाबहार
पांडवों के
सलाहकार
महाभारत में
मचाया हाहाकार
भक्तों का
करते उद्धार
सुदामा मित्र के
मिलनसार
गीता के है
सर्वोत्तम
साहित्यकार
है सबके
प्यारे श्याम
रात हो
स्याह अधेरी
जब हो घिरे
संकटों से
न दिखे
राह कोई
आसान
याद करो
श्यामबिहारी को
कांटे संकट सब
राधा के हैं
प्यारे श्याम
यशोदा के
प्यारे लाल
वृन्दावनवासयों के
सखा साथी
दुष्ट कंस के
हैं संहारक
देते दुनियां को
मोक्ष ज्ञान
है सब के
ज्ञानी श्याम
नमो नमः
पूज्य श्याम
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
जग के
खेवनहार
वृन्दावन के
पालनहार
गोपियों के प्रेमी
सदाबहार
पांडवों के
सलाहकार
महाभारत में
मचाया हाहाकार
भक्तों का
करते उद्धार
सुदामा मित्र के
मिलनसार
गीता के है
सर्वोत्तम
साहित्यकार
है सबके
प्यारे श्याम
रात हो
स्याह अधेरी
जब हो घिरे
संकटों से
न दिखे
राह कोई
आसान
याद करो
श्यामबिहारी को
कांटे संकट सब
राधा के हैं
प्यारे श्याम
यशोदा के
प्यारे लाल
वृन्दावनवासयों के
सखा साथी
दुष्ट कंस के
हैं संहारक
देते दुनियां को
मोक्ष ज्ञान
है सब के
ज्ञानी श्याम
नमो नमः
पूज्य श्याम
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
विषय -श्याम
दिनांक २२-१-२०२०श्याम वर्ण श्यामा कहलाया।
राधा के मन को वो ही भाया।
बंसी बजा खूब रास रचाया ।
ग्वाल बाल संग धूम मचाया।
राधा कृष्ण जग ना बिसराया।
हर मंदिर मूरत स्थान पाया।
श्याम सलोने ने मन मोहा।
मन को कोई ओर ना भाया।
दीन दुखी को गले लगाया।
तारणहार वो जग कहलाया।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
दिनांक २२-१-२०२०श्याम वर्ण श्यामा कहलाया।
राधा के मन को वो ही भाया।
बंसी बजा खूब रास रचाया ।
ग्वाल बाल संग धूम मचाया।
राधा कृष्ण जग ना बिसराया।
हर मंदिर मूरत स्थान पाया।
श्याम सलोने ने मन मोहा।
मन को कोई ओर ना भाया।
दीन दुखी को गले लगाया।
तारणहार वो जग कहलाया।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
जय माँ शारदा🙏
शीर्षक -श्याम
कृष्ण श्याम रुप धर आना
दर्श की आशा पूरी कर जाना
श्याम हमारे घर भी आना
देखों बदला कैसे ये जमाना
श्याम बंसी लेकर आना
ऐसी मधुर तान बजाना
श्याम माखन खाने आना
गोपीयां साथ लेकर आना
श्याम आकर भोग लगाना
जीवन मेरा सफल बनाना
श्याम नाम पर आ जाना
हमको मुक्ति देते जाना
स्वरचित
हर्षिता श्रीवास्तव
प्रयागराज
शीर्षक -श्याम
कृष्ण श्याम रुप धर आना
दर्श की आशा पूरी कर जाना
श्याम हमारे घर भी आना
देखों बदला कैसे ये जमाना
श्याम बंसी लेकर आना
ऐसी मधुर तान बजाना
श्याम माखन खाने आना
गोपीयां साथ लेकर आना
श्याम आकर भोग लगाना
जीवन मेरा सफल बनाना
श्याम नाम पर आ जाना
हमको मुक्ति देते जाना
स्वरचित
हर्षिता श्रीवास्तव
प्रयागराज
22जनवरी20
विषय श्याम/स्याह
श्याम रंग का प्यारा गगन
जीवन का हर भाव प्रकट
सब मौसम में प्यारा गगन
वर्षा,सर्दी,गर्मी,धूप विकट
वसुधा का लाड़ला वितान
नील गगन विस्तार अनन्त
प्रकृति प्रदत्त मान-सम्मान
श्याम रंग ब्रम्हाण्ड अनन्त
श्याम रंग श्री हरि का मान
अनन्त कथा है भक्ति भाव
राम-कृष्ण अवतार महान
आदि-अन्त प्रभु दया भाव
मनीष श्री
विषय श्याम/स्याह
श्याम रंग का प्यारा गगन
जीवन का हर भाव प्रकट
सब मौसम में प्यारा गगन
वर्षा,सर्दी,गर्मी,धूप विकट
वसुधा का लाड़ला वितान
नील गगन विस्तार अनन्त
प्रकृति प्रदत्त मान-सम्मान
श्याम रंग ब्रम्हाण्ड अनन्त
श्याम रंग श्री हरि का मान
अनन्त कथा है भक्ति भाव
राम-कृष्ण अवतार महान
आदि-अन्त प्रभु दया भाव
मनीष श्री
विषय-स्याम /स्याह
गरजे नभ में जोर से,श्याम घटा घनघोर।
स्याह मेघ की सुन गरज, नाचे वन में मोर।
झूले मधुवन में पड़े, बना खुशी का धाम।
प्यारी राधा झूलती, झूला रहे हैं श्याम।
नटखट बड़ा तू श्याम है,मुझे रहा है घेर।
जाने दे अब साँवरे, होती मुझको देर।
श्याम सलोना कृष्ण है, तिलक लगाए भाल।
मोर मुकुट सिर पर सजा, गल बैजंतीमाल।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
गरजे नभ में जोर से,श्याम घटा घनघोर।
स्याह मेघ की सुन गरज, नाचे वन में मोर।
झूले मधुवन में पड़े, बना खुशी का धाम।
प्यारी राधा झूलती, झूला रहे हैं श्याम।
नटखट बड़ा तू श्याम है,मुझे रहा है घेर।
जाने दे अब साँवरे, होती मुझको देर।
श्याम सलोना कृष्ण है, तिलक लगाए भाल।
मोर मुकुट सिर पर सजा, गल बैजंतीमाल।
आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
विषय : श्याम / स्याह
तिथि : 22.1.2020
विधा : कविता
राधा के गोरे गाल पर,काला तिल
बांध लिया उसने , श्याम का दिल
निगाहों-निगाहों में ऐसी हुई बतियां
राधा का चित्त, पुष्प सा गया खिल।
श्याम की बांसुरी और राधा का तिल
रची ऐसी रास,गोपियांभी थीं शामिल
श्याम- श्याम- श्याम,हर दिल पुकारा
राधा -श्याम -गोपियां, नाचें हिलमिल।
आया फिर जुदाई का काला दिन
रोई हर आंख, हर ओंठ गया सिल
हर दिल कराहता,बार-बार पुकारता
श्याम सलोने, आ मिल, मिल, मिल।
--रीता ग्रोवर
-- स्वरचित
तिथि : 22.1.2020
विधा : कविता
राधा के गोरे गाल पर,काला तिल
बांध लिया उसने , श्याम का दिल
निगाहों-निगाहों में ऐसी हुई बतियां
राधा का चित्त, पुष्प सा गया खिल।
श्याम की बांसुरी और राधा का तिल
रची ऐसी रास,गोपियांभी थीं शामिल
श्याम- श्याम- श्याम,हर दिल पुकारा
राधा -श्याम -गोपियां, नाचें हिलमिल।
आया फिर जुदाई का काला दिन
रोई हर आंख, हर ओंठ गया सिल
हर दिल कराहता,बार-बार पुकारता
श्याम सलोने, आ मिल, मिल, मिल।
--रीता ग्रोवर
-- स्वरचित
विषय -श्याम /स्याह
22.1.2020
*****************
रास रचाए सखियों संग मेरे श्याम सलोने
यशोदा ,नन्द का राजदुलारा सुदामा को नहीं भूले
राधे बिन हैं श्याम अधूरे ,मीरा के प्रभु गिरधर,
द्रौपदी की लाज बचाई ,अर्जुन को गीता का सार दिए
एक श्याम के रूप अनेक थे न किये किसी को निराश
फिर आओ गिरधारी तुम किसी वेष में इस देश में
सबकी विपदा हर लो तुम ,लाज बचा लो बहनों की
न कोई है श्याम यहां अब ,दुःशासन हर ओर है
बस जाओ नर के अंदर तुम फिर से तुम इस देश में
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स्वरचित -निवेदिता श्रीवास्तव
22.1.2020
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रास रचाए सखियों संग मेरे श्याम सलोने
यशोदा ,नन्द का राजदुलारा सुदामा को नहीं भूले
राधे बिन हैं श्याम अधूरे ,मीरा के प्रभु गिरधर,
द्रौपदी की लाज बचाई ,अर्जुन को गीता का सार दिए
एक श्याम के रूप अनेक थे न किये किसी को निराश
फिर आओ गिरधारी तुम किसी वेष में इस देश में
सबकी विपदा हर लो तुम ,लाज बचा लो बहनों की
न कोई है श्याम यहां अब ,दुःशासन हर ओर है
बस जाओ नर के अंदर तुम फिर से तुम इस देश में
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स्वरचित -निवेदिता श्रीवास्तव
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