Sunday, January 19

स्वतंत्र लेखन "19जनवरी 2020

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ब्लॉग संख्या :-630
शेर की कविताए...
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हमारी हसरतें भी थी कि हम भी, फूल से खिलते।

मगर ताजिन्दगी काँटो मे ही ,उलझे रहे हरदम।
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हम अपनी चाहतों के लाश को काँधे पे लेकर के।
गुजारी जिन्दगी को शेर ने, हँसते रहे हरदम॥
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जो भी मिला इस जिन्दगी में, मुझसे आकर के।
उसी से प्यार की चाहत में हम अटके रहे हरदम॥
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कई रातें गुजारी नींद बिन, तारों की पहलू में।
यही सोचा की शायद आ मिले मुझसे मेरे हमदम॥
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खनक चाँदी के सिक्कों की नही अब, कागजी है पर।
मगर मन शेर का कागज में ही, उलझा रहा हरदम॥
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क्या लाया था जो तेरा है, क्या तेरा है जो खो देगा।
यही पर ही मिला है सब यही के सब रहे हरदम॥
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खुदा के बिन इशारें के यदि पत्ता नही हिलता।
तो फिर हर एक मिसरे पे,वे क्या घायल रहे हरदम॥
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मै आधी रात को दो गजल, मिसरे लिख रहा हूँ क्यो।
उजालों में मै दिल के जख्म को, ढाके रहा हरदम॥
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शेर सिंह सर्राफ

विषय मन पसंद, विषय लेखन
विधा काव्य

19 जनवरी 2020,रविवार

कदम कदम में पद्म पद्म है
तुम आगे बढ़ते जाओ।
भूले भटके राहगीर हैं
साथ साथ लेते जाओ।कदम

भव्य भव्य है प्रकृति सारी
भव्य भव्य है चारों धाम।
सुंदरता फैली जगति में
हर कण वास करें श्री राम।
ज्ञान गठरी बगल दबाकर
शान्ति भाव चलते जाओ।कदम

जीवन संघर्षो का मेला
जीवन सुख दुःख का डेरा।
खून पसीना सदा बहाओ
विपदाओं का मिटे अँधेरा।
दीनदुःखी को गले लगाकर
प्रगति पथ बढ़ते जाओ।कदम

पौध लगाओ फूल खिलाओ
पर्यावरण को स्वच्छ बनाओ।
वसुंधरा के प्रिय आँगन को
प्राणवायु भर इसे सजाओ।
पथ कर्त्तव्य बढ़ो सदा तुम
मंजिल को छूते जाओ।कदम

जीवन सुख का साधन हैं
जीवन गायन और वादन है।
संकल्पी जीवन को जी लो
कर्म सदा लक्ष्य वाहन है।
जीवन कड़ी परीक्षा जग में
सत्य मार्ग चलते जाओ।कदम

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

नारी
💘💘💘💘

सम
्बोधनों का गुलदस्ता,जब मैंने देखा मैं झूमा
बार बार चूमा मैंने,बार बार मैंने चूमा।

वह सह न सकी , मेरा रोदन
पिघला माँ का सम्बोधन
वक्ष से चिपटा,ऐसा करती सम्मोहन
आँखों आँखों में कर देती,मेरी बात का अनुमोदन
उसके होते नहीं टिके,मेरे आगे अवरोधन
माँ का प्यारा सम्बोधन,नहीं माँगता कोई संशोधन।

मेरी बलायें ,लेती रहना
मैं था अपने,कुल का गहना
अच्छे कपडे़,पहना पहना
मेरी कमियाँ,कभी न कहना
भावना में ,बहते ही रहना
सोचते रहना,बारहों महना
सम्बोधन का यह था कहना
यही होती है,बस प्यारी बहना।

बसन्त आया ,बडा़ अलबेला
सजा उमंगों का,सुन्दर मेला
बोला क्यों ,रहता है अकेला
दो दिन का है,सारा खेला
भौंरे सा, कोई गीत गाले
तू भी अपना ,मीत बनाले
केश निराले,वेश निराले
कर दे सब,उसके हवाले
न होगा जीवन,रीता रीता
सम्बोधन की भेंट होगी,एक प्यारी परिणिता।

प्रकृति मेरे पास आई,पर खा़ली हाथ नहीं आई
एक कली भी साथ लाई,जि़न्दगी मेरी मुस्कराई
यह थी उम्र की अंगडा़ई,मन को बहुत बहुत भायी
भावना मेरे साथ आई,और मेरे साथ रही लेटी
सम्बोधन बोला ले ,यही तो होती है बेटी।

नारी तू अबला होती तो,पौरुष कैसे पाता भव
तुझसे ही तो है सम्भव,पुरुष का सृष्टि में उदभव
तू है इसलिये शिव भी शिव हैं,वरना तो हैं केवल शव
तू नहीं जानती तू ही तो,प्रकृति की अदभुत कलरव।

तेरे आँचल का जब भी,आकाश सा वृहद विस्तार होगा
निश्चित ही धरती पर,गौरी का अवतार होगा।

Vina Jha मनपसंद विषय लेखन
नमन मंच भावों के मोती समूह।गुरूजनों, मित्रों।
19/1/2020

इज्जत और शोहरत विरासत में मिलती नहीं।
घिस जाते हैं चप्पलें वीणा यूंहीं मंजिल मिलती नहीं।
दिन-रात जाग जागकर करते हैं काम।
सोचते नहीं हैं करने को आराम।
फिर भी मनचाहा मिलता नहीं है दाम।
रह जाते हैं कितने लोग यहां नाकाम।
हार नहीं मानते फिर भी,सफर खत्म होती नहीं।
घिस जाते हैं चप्पलें वीणा यूंहीं मंजिल मिलती नहीं।
इज्जत और शोहरत विरासत में मिलती नहीं।
घिस जाते हैं चप्पलें वीणा यूंहीं मंजिल मिलती नहीं।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित
दिन :- रविवार
दिनांक :-19/01/2020
विषय :- स्वतंत्र लेखन

भौर के दामन में...
शबनम के मोती झरते..
नवप्रभाती रश्मिक तंतु..
दूबकण तक ऊर्जित करते...
भरते नवल एहसास..
प्रकृति के कण-कण में...
शुभ्र वर्ण धारित ये...
भरते उमंग अंतर्मन में..
लहलहाती धरा ये..
पहन हरित वसन को...
पर्वत,कानन,खग,विहग..
संजोए जैसे सजन को..
सकुचाती,इठलाती..
प्रकृति निज सौंदर्य पर...
जैसे कोयल इठलाती..
निज कंठ माधुर्य पर..

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
19 /1/2020
बिषय,, स्वतंत्र लेखन
हम संबंधों की डोर को संवारते गए
प्यार से उनको पुकारते गए
कभी तो होंगी हसरतें पूरी
चाहतों की लहरों में डुबकी लगाते रहे
मंजिल दूर सही मन में था जज्बा
अपलक नयनों से निहारते रहे
रिश्तों से भरी गागर छलक ही न जाए
कभी सिर पर रख कभी उतारते रहे
परिस्थितियों से आखिर समझौता कर लिया
अपने आप को हम सुधारते रहे
मिल गया सो ले लिया छूट गया सो छूट गया
मन को अपने यूं ही मारते रहे
स्वरचित, सुषमा ब्यौहार

😄ओपसन का ज़माना है 😄
😄बस नज़र दौड़ाना है 😄

ओपसन का जमाना है
करप्सन का ज़माना है।।

हे मानुष तुझे इसी में
अपने पैर जमाना है।।

अच्छा हो चाहे बुरा हो
दूजा न कोई ठिकाना है।।

बच्चों खातिर मोम परेशान
आज कौन नाश्ता बनाना है।।

चिंटू मैंगी को मचला है
मिंटू का स्वाद बेगाना है।।

बाजार में पेन नित नया मिले
पेन में रोज हाथ बैठाना है।।

पिछली साल साड़ी खरीदी बीबी को
आज वो फ़ैशन हुआ पुराना है।।

रिश्ते भी अब टिकाऊ नही हैं
इक रिश्ता देर तक न सुहाना है।।

एक बीबी का ही रिश्ता है
जो हर हाल में निभाना है।।

हम भारतीय जो ठहरे हैं
जल्द भारतीयता न जाना है।।

फ्रेंड का तो ट्रेंड ही न्यारा है
सोशल मीडिया में खजाना है।।

रोज ही बदलिए फ्रेंड
डरना नही डराना है।।

करप्सन की कमी कहाँ है यहाँ
फेवर में कानून बनवाना है।।

अमेरिका की तरह हमें भी
बाप को सर कह बुलाना है।।

अठारह वर्ष बाद हम स्वतंत्र
हैं गर गर्ल मौज़ उड़ाना है।।

'शिवम' की छोड़िए इसे तो
रूस न भाया न भाना है।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 19/01/2020
दिनांक-१९/०१/२०
आज का शीर्षक- स्वतंत्र लेखन
विधा-ग़ज़ल
मापनी- २१२२ २१२२ २१२
क़ाफ़िया- आया स्वर
रदीफ़- जाएगा ।
====================
गर्द को ऊपर चढ़ाया जाएगा।
आसमाँ नीचे गिराया जाएगा।।
************************
दे रहा है आज दस्तक वक्त यूँ,
दीप नफ़्रत का बुझाया जाएगा।।
************************
चल रही है बात गुलशन में यहाँ,
फूल बे ख़ुशबू खिलाया जाएगा।।
*************************
ठन गयी है रार सरगम में यहाँ,
बेसुरा नग़्मा सुनाया जाएगा।।
************************
क़ैद खाने बन्द होंगे आज सब,
रेप को शूली चढ़ाया जाएगा।।
====================
'अ़क्स' दौनेरिया

विषय-मनपसन्द।
स्वरचित।
शीर्षक-"समझ नहीं आता"

आइना है या हकीकत ?
समझ नही आता
माने दिल की या नही?
समझ नही आता
किससे किसका जिक्र करे?
समझ नही आता
कौन अपना है पराया कौन?
समझ नही आता
फिक्र किसको है दिखाता कौन?
समझ नही आता।।
****
अपना समझा जिसको हमने
क्या सच मे वो अपना था?
ख्वाव सजाया था दिल मे जो
क्या वो सिर्फ इक सपना था?
****

चला गया जो छोङ भंवर मे
कह सकते क्या अपना है?
साथ रहे जो बनके हमदम
सच मे बस वो ही अपना है।।
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
19-01-2020
मुक्त विषय
*गुरु-शिष्य*
अब तो ऐसे ही छात्र होवे।
राजनीति के कृपा पात्र होवे।।
पढ़ने से भले न नाता हो।।
पर हर विषय का ज्ञाता हो।
वो, विष-विषय का शोधी हो।
स्वभाव से जरा विरोधी हो।।
सिर लिए क्रोध का घड़ा हो।
थोड़ा-सा, बाप से भी बड़ा हो।।
तथ्यों से जिसको खूब बैर हो।
टीचर भी जिससे माँगे खैर हो।।
खैर! तो क्या संग चूना होगा?
वो छात्र सगर नमूना होगा।।
जितना अधिक गुरु को गाली।
करे चिल्लपों-चीख संग ताली।
वो रतन, गुणागार शिष्य होगा।
उज्ज्वल उसका भविष्य होगा।।
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
है खाक छानी जहाँ की हमनें।
मिला न कूचा ए यार फिर भी।

मेहनतो की तो कमी न कुछ थी।
फली न फ़सलों बहार फिर भी।

मेरा झुका सर, हर एक दर पर।
क्यूं रही खुदा की मार फिर भी।

कभी न हारा है, कोई दौर मैने।
रही मेरे सर क्यों , हार फिर भी।

मिला के रख दूं, दो जहां को ।
मिला नहीं है, करार फिर भी ।

बढी है यूं तो तरबियत जहां मे ।
गिरा है लेकिन मेयार फिर भी।

है मुद्दतों से हम, नदीद उनके।
नहीं है उतरा, खुमार फिर भी।

विपिन सोहल
19-1-2020
मन पसंद रचना
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

गीतिका
----------

नजर कहीं आते नहीं,
कहाँ छुपे हैं वीर,
दुश्मन दस्तक दे रहा,
क्यों धारे हैं धीर।

साहस सब दिखलाइए,
देनी उसको मात,
रहम नहीं करनी तनिक,
दें अब सीना चीर।

मानवता वह तज चुका,
देना उसको दंड,
उसके हाथों तीर है,
हम लेंगे शमशीर।

चुप रहना अभिशाप है,
जागो सारे मीत,
टालो मत इस सत्य को,
बात बड़ी गम्भीर।

धोखेबाजी में प्रथम,
शातिर बेईमान,
कुटिल चाल वो नित चले,
बदलें यह तस्वीर।।

~~~~~~~~~
मुरारि पचलंगिया

19 /1/2020
बिषय-मनपसंद लेखन

यह जो सफ़र है
जिंदगी का
जिस में मिलते हैं
लोग ,अपने लोग।

कई रंग लिए
और कई मुखोटे
लगाए ,छलते हैं ,
और उतार कर रख
देते हैं मुखौट।

, फिर
दूसरे रंग में आ कर
दूसरा मतलब
निकालते हैं ।

चिकनी चुपड़ी बातों
से बार-बार धोखा खाने
पर घायल विश्वास
कहता है
बहुत बुरी है दुनिया ।

पर तभी अचानक
से कुछ प्यारे चेहरे
अपने निश्छल हृदय
की छोड़ जाते हैं
गहरी छाप मन पर ।

और गिरता हुआ
विश्वास फिर उठ कर
खड़ा हो जाता है नए
जोश के साथ और
कहता है मुस्कुराकर
बहुत अच्छी है दुनिया,।

आशा शुक्ला
शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश
दिनांक - १९-१-२०
दिवस - रविवार
आयोजन - स्वतंत्र
¿¿¿¿¿!!!!?????
🐂🐐🐟पशु-पक्षी-परिंदा🐓🐧🐦
😢
इस धरती पर पक्षी-परिंदा न होते,
तो मानव अभी तक जिंदा न होते ।

गर वे कीट-पतंगों का भक्षण न करते,
विमारियों से सबका संरक्षण ना करते।

तो कभी होता नहीं कोई नर और नारी,
पैदा होने से पहले खा जाती बिमारी ।

😢 ? किन्तु-परन्तु-लेकिन ? 😢

कितना हैवान इन्सान बन गया है!!
कि आदमी का पेट कब्रिस्तान बनगया है।

दफ्न होते हैं जहां संख्य-असंख्य पशु-पक्षी,
शरीर मंदिर नहीं मजार आलीशान बनगया है।

कि आदमी का पेट कब्रिस्तान बनगया है।

कितना हैवान इन्सान बनगया है!!

मजाक की बात नहीं ये मामला संगीन हो रहा है,
आदमी!आदमी को खायेगा मुझे यकीन हो रहा है।

इश्वर किस गर्भ से आये धर्म विरान बनगया है,
क्योंकि आदमी का पेट कब्रिस्तान बनगया है ।

कितना हैवान इन्सान बन गया है !!

हे मानव तुम लज्जित शर्मिंदा जो होते,
तो दुर तुमसे आज पक्षी-परिंदा न होते ।

अपने ही भले-बुरे से अंजान बन गया है😢
कितना हैवान इन्सान बन गया है कि-आदमी का पेट कब्रिस्तान बन गया है¿
सहृदय ! सन्तोष परदेशी
तिथि-19/1/2020/रविवार
विषय-* हमारे सदाचार*
विधा-छंदमुक्त व्यंग्य

मैंने
अपने जीवन में
सदाचार उच्च विचार जैसा
एक नियम बना रखा है।
भाई भ्रष्टाचार को
सदाअपने पास ही रखा है।
इसके कारण किसी
को परेशानी नहीं होती
और हमारी सेवाऐं आराम से ‌होतीं
रिश्वत का माहौल अच्छा बना है
हमारे लेन-देन का रिश्ता घना है
कतार में हमारे भाईयों को
कहीं खडा नहीं होना पड़ता
निःशुल्क सेवा की इन्हें जरूरत नहीं है
और हमें भी ऐसी फुर्सत नहीं है।
हमारी सेवा का इन्हें विश्वास भी नहीं होता
जब तक हमें दान दक्षिणा नहीं दें
मानते हैं इनका
कभी कहीं काम नहीं होता।
इसलिए हम अनवरत यहां
पुण्य कमा रहे हैं
अपने संगी साथियों आकाओं को
विशुद्ध लाभ पहुंचा रहे हैं।
यह सद्भाव का मूलमंत्र हमें
अपने साथी अग्रजो ने दिया है
ऐसे सद्ववहारी आचरण का
हमसे शपथ पत्र लिया है।
लक्ष्मी हाथ थमाकर भी लोग
हमारे कदमों गिड़गिड़ाते हैं
जबतक इसे पकड़ते बहुत फड़फड़ाते हैं
क्यों कि इंन्हे
अपना काम पूरा होने का कभी
भरोसा नहीं होता
हमने अपनी धाक ही बना ली है ऐसी
चपरासी भले बने हम लेकिन
हमारे बिन यहां कोई काम नहीं होता।
माया हमारे हाथ में ही आती
ये हमें नहीं गैरों को ही नचाती।
हमपर तो सबका ही वरदहस्त है
अधिकारी करे क्या हमारा रूतवा तो
मंत्रियों तक जबरदस्त है।
हम अब ऐसा ही सदाचार करते ही रहेंगे
अपनी आगे की पीढ़ियों का मार्ग दर्शन कर
इनका इतिहास बदलते रहेंगे
बस हम पर कृपादृष्टि अपने अपनों की बनी रहे
हमारे सुविचार सुविधाओं की
तरक्की बलवती होती रहे।

स्वरचित,
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
दिनांक 19/1/2020
विषय:स्वतंत्र (उपदेश)

विधा:सयाली छंद

गुरुकुल
उपदेश महान
गुरु शिष्य परम्परा
सीखें संस्कार
महापुरुष ।

राजनीति
कोरे उपदेश
नेताओं का कुरुक्षेत्र
पीडित समाज
लोकतंत्र ।

मोहल्ला
लगती पंचायत
नित नये उपदेश
क्रियान्वन कठिन
बदहाली।

स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
Damyanti Damyanti 
धरा पुकारती बार बार तुम्हे |
कहती सुनो वो नोनिहालो आवाज मेरी |

बचो मुझे अभी समय हे,धर्म ,दया भाव बाकी |
बिन वृक्ष जगल,बिन बेटी सृष्टि बचेगी नही |
हरियाली मेरा वसन ,बेटी शान सृष्टि की |
मशीनरी से ये कैसी तरक्की,कैसा विकास हे |
छलनी हो रहा सीना मेरा श्रृंगार लूट रहा |
बेटी ,नारी हर उम्र की ठगी छली जारही |
कब तक दबाऊ दर्द हृदय मे अब फटा जा रहा |
उठो मेरे भारतवासियो ,सज्जन ईमानदारो फूख दो पांचजन्य शंख
बदल दो दुर्यव्यस्था,दुष्यकर्म सारे
स्थापित करो अमन,शांति सब ओरसुव्यस्था इस देव धरा पर |
करो विध्वंस ,समस्त विषमता क्लेश को |
लाली टीका ललाटपर करो धारण
लगेमेरे कुपुत्रो ,विद्रौहियो शैतानों को काल सम |
व्यथित हो रहा निहार रही
रोती हुई पुकारती |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
19.1.2020
रविवार

मनपसंद विषय लेखन
विधा -गीत

देशभक्ति गीत
🌹🌹🌹🌹

धरती अपनी अम्बर अपना अपने सब इंसान
हमारा प्यारा व। हिन्दुस्तान
हमारा भारत देश महान।
राम-कृष्ण की पावन धरती
वीरों की गाथाएँ रचती
‘गीता’अपनी’कुरान’ अपना
‘ बाइबल’,’ग्रंथ’ महान
हमारा प्यारा हिन्दुस्तान
हमारा भारत देश महान।
असहयोग बापू की अहिंसा
हमें न करने देती हिंसा
मातृप्रेम से,भातृप्रेम से
मिला यही वरदान
हमारा प्यारा हिन्दुस्तान
हमारा भारत देश महान।
हम सबके सपनों का भारत
अपने और अपनों का भारत
चमन बनाएँ,अमन बनाएँ,
हम सब इसे महान
हमारा प्यारा हिन्दुस्तान
हमारा भारत देश महान।
बच्चे अपनी फुलवारी के
पत्ते हर डाली -डाली के
कल के माली,कर रखवाली
फैलाएँ यशगान
हमारा प्यारा हिन्दुस्तान
हमारा भारत देश महान।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘

नमन मञ्च
भावों
 के मोती
19/01/2020रविवार
विषय-मनपसन्द
विधा-हाइकु
💐💐💐💐💐💐
(१)
वेदना घनी
विकल हृदय की
प्रीत पुरानी
👌👌👌👌👌👌
(२)
आँखों में पानी
जब याद सताती
प्रीत पुरानी
👍👍👍👍👍👍
(३)
प्रीत पुरानी
हमारी पहचान
सुनो सुजान
💐💐💐💐💐💐
(४)
आँखें शराबी
अब भी है तुमसे
प्रीत पुरानी
🎂🎂🎂🎂🎂🎂
(५)
प्रीत की कथा
नई हो या पुरानी
सदैव ताजा
💐💐💐💐💐💐
श्रीराम साहू "अकेला"
१९-१-२०२०
विषय-स्वतंत्र लेखन।

विधा-कुण्ड़लियाँ छँद

कुसुम की कुण्डलियाँ-७

२५विषय :- कोयल
छाया अब मधुमास है , गाये कोयल गीत ,
कितनी मीठी रागिनी , घर आए मनमीत ,
घर आए मनमीत , मधुमास मधु भर लाता ,
पुष्पित है हर डाल , भ्रमित भौंरा भरमाता ,
कहे कुसुम ये बात , आज बसंत मुस्काया ,
तरुण हुवा हर पात , बाग पर यौवन छाया।।

२६विषय :- अम्बर
बरसे है शशि से विभा , वल्लरियों के पात ,
अम्बर निर्मल कौमुदी , सजा हुआ है गात ,
सजा हुआ है गात , विटप मुख चूम रही है ,
सरित सलिल रस घोल ,मधुर स्वर झूम रही है,
विधु का वैभव दूर , निरख के चातक तरसे ,
जलते तारक दीप , धरा पे ज्योत्स्ना बरसे ।।

२७विषय-अविरल
अविरल घन काले घिरे , छाये छोर दिगंत ,
भ्रम है या जंजाल है , दिखे न कोई अंत ,
दिखे न कोई अंत , गूढ़ गहराती मिहिका ,
बची न कोई आस , त्रास में घिरी सारिका ,
कहे कुसुम ये बात , राह कब होगी अविचल ,
सुनें आम की कौन , हुआ जग जीवन अविरल ।

२८ विषय- सागर
सागर में उद्वेग है , सूर्य मिलन की चाह ,
उड़ता बन कर वाष्प वो , चले धूप की राह ,
चले धूप की राह , उड़े जब मारा मारा ,
मृदु होता है फिर , झेल प्रहार बेचारा ,
कहे कसुम ये बात ,सिंधु है जल का आगर ,
कुछ पल गर्वित मेघ , फिर जा मिलता सागर ।।

स्वरचित
कुसुम कोठारी
19/1/20

भाषण पर मन की बात सुनी
लगता परिवर्तन आएगा।
जब पिछला दर्द मिट जाएगा
तो शायद परिवर्तन आएगा।

उम्मीदों का दामन छाया है
विचारो में परिवर्तन आएगा।
जब अनुशासन छ। जाएगा
औऱ भ्रस्टाचार मिट जाएगा।

बच्चा बच्चा पढ़ जाएगा
संस्कारित जीवन बन जायेगा।
शिक्षित होगा जब जन जन
बेरोजगारी मिट जाएगा।

आतंकवाद मिट जाएगा
मानव मेहनत कश बन जायेगा।
मन की बातों को समझेगा
तो राम राज्य खुद आएगा।

स्वरचित
मीना तिवारी
दिनांक-१९/१/२०२०
स्वतंत्र-लेखन

शीर्षक-युवा"
विधा-मनहर घनाक्षरी।

हे देश की युवा उठो,नही तुम देर करो।
माँ भारती पुकारती,देश की सेवा करो।
कर्म सदा सही करो, किसी से भी नही डरो।
तर्क भलिभाँति करो, देशहित में मरो।
राह गर कठिन हो,खुद पे भरोसा करो।
देश हित काम करो,भय मन से हरो।
दर्प तुम मत करो,जो भी तुम श्रम करो।
ओज अपने में भरो,जय देश की करो।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

विषय - स्वतंत्र
दिनांक-१९-१-२०२०
मेहनत मजदूरी कर ,मात पिता ने घर बनाया था।
कर दिन रात मेहनत, प्रभु मंदिर सा सजाया था।।

संस्कार सिंचित घर,आँगन तुलसी को लगाया था।
बच्चों की किलकारीयों ने,मन बहुत लुभाया था।।

साथ साथ बड़े हुए,हर सपने को साथ संजोया था।
एक दूजे से दूर कभी भी ,कोई नहीं रह पाया था।।

फिर कैसी हवा चली,क्यूं अपना हुआ पराया था।
बरसों का प्यार भुला,बस बँटवारा करवाया था।।

सपनों का मंदिर,यूं पल में ढहता नजर आया था।
बुजुर्ग सह ना पाए, प्रभु द्वार आसरा बनाया था।।

भाई भाई बने दुश्मन,इतिहास फिर दोहराया था।
कृष्ण नहीं कलयुग में,नहीं समझौता कराया था।।

इसी फूट का ही फायदा,जग में सबने उठाया था।
जब हँसाई कर मूर्खों ने,अपनों को बिसराया था।।

पड़ी जब विपदा, गैर नजर ना कोई आया था।
आँगन दीवार तोड़, अपनों को गले लगाया था।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

मेरी रचना प्रस्तुति

मन पनघट से भरूँ सदा मैं,
आराधना की गगरिया।
छल छल छलके भावों के रस,
बूंद बूंद नेह डगरिया।

लिए दीप अंतस की बाती
तन डाली का फूल धरे।
सुरभित साँसों का चंदन बन
साँस साँस है नाम झरे।

रक्त शिराओं में तरंगित,
जीवन सरगम साँवरिया।

नयनों के छाये बादल से,
करूँ अश्रु जल आचमनी।
कंपित अधरों की भाषा में
मूक भजन है भाव सनी।

तेरे आगम पथ तक हारे
नैना आकुल बावरिया।

जागी जागी पलकों में है
प्रभुवर निशी दिवस मेरे।
जन्मों का बंधन फेरे सब,
नहीं सुलझते बिन तेरे।

शरण पड़ी हूँ अंग लगा लो
फँसी नाव बीच लहरिया।

स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
19-1-2020
भावो के मोती
विसय -मन पसंद रचना

*******************
ओ शराब के नशे में
आता गिरता उठ जाता
चिल्लाता ,गला फाड़ के
बच्चे अपने खेल छोड़
कर भाग जाते घर की ओर
दरवाजे की कुण्डी को
पिटते छटपटाते कही
पहुँच न जाये जल्दी
मम्मी मम्मी चिल्ल्लाते
मम्मी रसोई में जो कुछ
कल की बातो को
याद कर सहमी थी
दौड़ कर दरवाजा खोलीं
बच्चे को दिल से लगा कर बोली
क्या है बेटा क्यूँ इतने घबराये हो
मम्मी मम्मी आज पापा ने फिर
शराब पी है ,
मम्मी की आँखों में सन्नाटा
हाय क्या कर दिया बिधाता
चलो तुम इस कोने में छुप जाओ
थोड़ी देर में फिर खाना खा लेना
कोने में अपने हाथो से पैरो
को खींचकर दुपक कर बैठा
जैसे यमराज से डरा हो
घर में फिर किसी के कदम
लड़खड़ाने की आवाज आती है
मम्मी सहमी सहमी जाती है
कल के जख्म अभी सही
से उभर नहीं पाये थे
आज फिर चीख चीख
चिल्लाने की आवाज सुन
बच्चे के आँखों से आँशू की
धार बहने लगी
अपने मम्मी की दुहाई में
भूख दया की भीख माँगती
फिर चुप सी हो जाती
मेरे पापा ऐसे क्यूँ है
ओ बच्चा धीरे धीरे वाही दुपके
ही अँधेरो में सो गया
पापा मम्मी को मारेंगे
कहते कहते अपने
प्राण को त्याग दिया
मम्मी अधमरी सी
कराहते हुए
एक लालटेन के सहारे
आयी ,देख कर बेटे को
आवाज लगायी,
बेटा खाना खालो
बेटे की आत्मा से आवाज
आयी मम्मी ठीक हो न
माँ आखिर माँ है
कितने सितम सहकर
अपने बच्चों को
पाल पाई
बच्चा मर गया था
बिलख पड़ी ,टूट सी गई
ओ दर्द आज तक भुला न पाई
अब उस घर में कोई नहीं
केवल चीख पुकार ही आती है
आज भी मानवता
ऐसे मानव पर शरमाती है
छबिराम यादव *छबि*
मेजारोड प्रयागराज
मनपसंद
विधा लघुकथा


तिरंगे की शान

" पापा मुझे भी तिरंगा झंडा दिलवाओ ना , कल स्कूल में सब बच्चों के लिए मुझे ही ले जाना है। "
मनीष ने कहा ।
" हाँ बेटा चलो अभी दिलवा देते हैं।"
रमेश ने कहा, वो उसी स्कूल में अध्यापक हैं।
बाजार में कई बच्चे तिरंगा झंडे बेच रहे थे ।
रमेश ने एक बच्चे को झंडा लेने के लिए बुलाया
वह मुफ्त में दे रहा था ।
रमेश को आश्चर्य हुआ और नाम पूछा :

तब उस बच्चे ने अपना नाम सुमित बताय और उसने कहा :
" साहब मैंने यह घर पर ही
बनाये हैं । "
तभी मनीष ने कहा :
" पापा हम यह सभी तिरंगे झंडे ले लेते हैं "
और सब झंडे ले लिये और सुमित को स्कूल आने का निमंत्रण दिया ।
26 जनवरी को मनीष और सुमित को ले कर स्कूल आये और सुमित के झंडे सब बच्चों को बांटते हुए सुमित के देशभक्ति के काम को सब लोगों को
बताया ।
प्राचार्य ने सुमित के काम को सच्ची देशभक्ति बताया और सब बच्चों को देश के लिए कुछ न कुछ करने का संकल्प दिलवाया । जिसमें ईमानदारी, मेहनत और लगन से पढ़ाई करने और बड़े हो कर अपने काम को ईमानदारी से करने के लिए कहा ।
जिसकी सभी बच्चों ने शपथ ली ।
रमेश ने बताया :
" देशभक्ति एक जज़्बा है , देश के लिए हम जो भी अच्छे काम करेंगे वह एक उदाहरण होगा और देश के लिए हमारा योगदान होगा ।"
अगले दिन सुमित के देशभक्ति के काम सभी समाचार पत्र में छपे और कलेक्टर साहब ने सम्मानित किया ।

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव

रविवारीय आयोजन / गतिविधि
मनपसंद विषय

विधा : हाइकू
तिथि : 19 . 1 . 2020

शीत
----

शीत लहर
ढा रही है कहर
आठों पहर।

ठिठुरे तन
ताप चाहता मन
सहन जन।

ठंडी हवाएं
कब होंगी समाप्त
बुड़ापा क्लांत।

सताती ठंड
सभी को किया दंग
जारी है जंग।

ठंड मलंग
है घूमती फिरती
वीर सत्संग।

करती भीत
आक्रामक ये शीत
मन से जीत।
-- रीता ग्रोवर
-- स्वरचित
भावों के मोती
विषय-- स्वतंत्र लेखन

__________________
फागुनी छू कर गई और,
मन मेरा बौरा गया।
कान में हौले से मेरे,
गीत कोई सुना गया।।

पलाश फूले डालियों पर‌,
दहक उठे अंगारों से।
खिलखिलाती धूप आ रही,
संदेश ले मधुमास के।
उल्लास भरता बसंत मन में,
तन मेरा सहला गया।
फागुनी छू कर गई और,
मन मेरा बौरा गया।।

कोयल की कूक से चहकी,
धुन कोई मधुमास की।
अमराई संग महका मन,
महकती पुरवाई भी।
पीले पीले खेत सरसों,
खिल चूनर लहरा रहा।
फागुनी छू कर गई और,
मन मेरा बौरा गया।।

फागुन की रौनक बसी है,
होली का त्यौहार में।
भाँग के मस्ती में झूमते,
लोग गली हर गाँव में ‌।
बज उठे हैं ढोलक ताशे,
सरगम बजती फाग की।
मच रही है धूम हर ओर,
खुशियाँ हैं बरसा गया।
फागुनी छू कर गई और,
मन मेरा बौरा गया।।

***अनुराधा चौहान***
दिनांक-19/1/2020
विषय -प्रीत पुरानी


प्रीत पुरानी हो या नई
क्या फ़र्क़ इससे पड़ता है ,
व्यक्ति के व्यक्तित्व पर
हाँ, असर ज़रूर पड़ता है ।

समय एक-सा नही रहता
यह प्रतिपल रूप बदलता है ,
प्रीत के मायने साकार होकर
समर्पण भाव जैसे मचलता है ।

ख़ुद की ज़िम्मेदारियों में जब
प्रीत तक को भुला बैठता है ,
भागदौड़ भी रहती है इतनी
ख़ुद सुकून के कान ऐंठता है ।

जीवन के विषम हालातों में
प्रीत पुरानी याद आ जाती है ,
आस लगाए बैठे रहते तब हम
कर्तव्य बोध गरिमा बन जाती है ।

प्रीत पुरानी जब होती जाती
उसे याद हमेशा रखना चाहिए ,
फटेहाल देख प्रिय सुदामा को
कन्हैया बनकर आना चाहिए ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति 

१९/०१/२०२०
स्वतंत्र विषय


"विरोध देश द्रोह का है"
शिक्षा के मंदिर में जाकर, क्या खूब जुटाई हमदर्दी।
पैसे के खातिर जमीर बेच, क्या खूब दिखाई बेशर्मी।।

जो भारत मुर्दाबाद कहे,उनका है तुमने साथ दिया।
अब किस मुंह से कहते हो, हमने है तुम्हारा विरोध किया।।

जिसने लक्ष्मी को झुलसाया, क्यों नाम छुपाया है उसका ।
जो शिक्षा को बदनाम करे, क्यों साथ दिया तुमने उसका।।

तुम कहती हो तुम भावुक हो, पीड़ित का साथ है मानवता।
जब उठी प्रियंका की अर्थी, तब कहाँ गई थी मानवता।।

माना तुमको पैसा प्यारा, पर नमक राष्ट्र का खाया है।
नुमाईस कर करके तुमने, सब धन भी यहीं कमाया है।।

यदि गुस्सा तुमको आता है,गुस्सा हमको भी आता है।
जो करे राष्ट्र से गद्दारी, उसे सबक सिखाना आता है।।

जिसे ज्ञान नहीं नर मादा का वो आज समर्थन करते हैं।
सीता लक्ष्मण का ज्ञान नहीं और बातें संविधान की करते हैं।।

तुमको तो पैसा प्यारा है, इज्जत जाए तो चल जाए।
हमको तो देश यह प्यारा है, गरदन कटती हो कट जाए।।

तुम हुनर बेचने वाले हो, मैं कलम चलाने वाला हूँ।
तुम जयचंदो के उपासक हो, मैं भूषण और निराला हूँ।

मेरा लिखना यदि खलता है,तो देश प्रेम अपनाओ तुम।
पूरब पश्चिम सा अभिनय कर, क्रांति वीर बन जाओ तुम।।

हमें विरोध नहीं फिल्मों का,न लोभ हमें पैसों का है।
हम तो बस कलम के साधक हैं,यह विरोध देश द्रोह का है।।
अशोक राय वत्स ©® स्वरचित
रैनी,मऊ, उत्तरप्रदेश
आज से तीस वर्ष पूर्व कश्मीर में घटित एक घृणित घटना पर चंद पंक्तियां..

अपने ही हालात पर वो घाटी शर्मिंदा थी...
अधजली या अधमरी कुछ लाशें जिंदा थी..
मौन पड़े थे सत्ता के सारे गलियारे..
बहरे खड़े थे मिडिया के सारे चौबारे..
लूटी जा रही थी अस्मिता भारती की..
आओ सुनाउं मैं करुण व्यथा भारती की...
कट्टरपंथ के चरमपंथ से जन्मी थी दानवता..
पलपल में लील रही थी जन-जन की मानवता.
भूखे भेडियों की तरह टूटे थे निर्बल पर..
हाथ मार रहे थे कहीं क्षत विक्षत तन पर..
तार तार हो रही थी तस्वीर भारती की..
आओ सुनाउं मैं करुण व्यथा भारती की...
नरभक्षी दानव निकले थे पेट अपना भरने को..
हर कश्मीरी पंडित तैयार खड़ा था मरने को..
छिन्न भिन्न हो रहे थे वस्त्र सब नारियों के..
मुंह दबाए जा रहे थे मासूम किलकारियों के..
रक्त से लिखी गई थी ये गाथा भारती की..
आओ सुनाउं मैं करुण व्यथा भारती की...

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
मुक्तक

खास होकर भी जो दगा दे गए,
दर्द दिल पर हम सह गए,
बनकर मेरे वो अपने,
मेरे अपने को ही चुरा ले गए।

आँखों में धूल झोंक गए,
आज दोस्त ऐसे हो गए,
किसी ओर की खातिर,
हमसे वो गैर हो गए।

एक दिल के करीब था,
एक रूह के करीब था,
चोट ऐसी दी दोनों ने,
खोया हमें ये उनका नसीब था।
***
स्वरचित रेखा रविदत्त
19/1/20
रविवार
दि. 19-1-2020
स्वतन्त्र लेखन (स्वरचित)

हे दयानिधि भक्ति - वत्सल, निज चरण अनुरक्ति दे दो ।
बुद्धि, ज्ञान, विवेक दो, निज पाद - पंकज भक्ति दे दो।
दाल, बाटी, चूरमा, लड्डू व पेड़ा और रबड़ी
भोग छप्पन सामने हैं किन्तु खा सकते नहीं हैं।
हे दयानिधि भूख दे दो,
हे दयानिधि भक्ति वत्सल निज चरण अनुरक्ति दे दो ।
डबलबेड, मोटे से गद्दे साथ में अपिधान भी है
मखमली चादर बिछी है किन्तु सो सकते नहीं हैं।
हे दयानिधि नींद दे दो,
हे दयानिधि भक्ति वत्सल निज चरण अनुरक्ति दे दो ।
एक या दो तीन बेटे अथवा बेटी जो दिया है
वधू पोतों से भरा घर किन्तु हँस सकते नहीं हैं।
आपसी सद्भाव दे दो,
हे दयानिधि भक्ति वत्सल निज चरण अनुरक्ति दे दो ।
जिनको दी है भूख वे रोटी नमक के साथ खाते
जिनको दी है नींद टूटी खाट को बिस्तर बनाते।
हे दयानिधि! हास का भी अब उन्हें विश्वास दे दो।
हे दयानिधि भक्ति वत्सल निज चरण अनुरक्ति दे दो ।
बुद्धि, ज्ञान, विवेक दो निज पाद पंकज भक्ति दे दो।।
विषय-स्वतंत्र-लेखन (संस्मरण)

हमारा खेल

बात बहुत पुरानी है। मैं करीब 9-10 बरस की थी। हम सब मोहल्ले के बच्चे खूब हुड़दंग मचाते कभी किसी के घर , कभी किसी के घर दौडते- भागते खेला करते थे। हमेशा नए -नए खेल हमें सूझा करते। कभी किसी को तंग करते,कभी चीजें छुपा देते। गर्मी की भरी दोपहर में जब घर के सब बड़े सो जाते ,हम चुपचाप अपने-अपने घर से निकलते ।यह समय किसी के बाग से फल-फूल चुराने का सर्वोत्तम समय होता था।उस समय पेड़ों पर यूँ ही चढ़ जाया करते थे।माली द्वारा कभी-कभी पकड़े जाने पर कान भी
पकड़े जाते थे।
आगे की कहानी मजेदार है, हुआ यूं कि हमारे घर के बराबर में एक जमीन का खाली टुकड़ा पड़ा था। अचानक वहाँ हलचल शुरू हो गई। मतलब मकान बनाने की तैयारी शुरू हो गई।ईंटें , रोड़ी , बदरी, सीमेंट ,रेत आदि सामान आना शुरू हो गया। हम ईंटों से घर बनाते , रेत में घरौंदे बनाते , खूब खेलते।
हमारे घर की दीवार से मिलाकर एक चार-दिवारी बना दी गई,उस पर छत नहीं बल्कि खुला आसमान था। वहाँ चार-पांच फीट ऊँचा रेत का ढेर लगा दिया गया था। अब हमारे दिमाग में एक नई शैतानी ने जन्म लिया। तय हुआ कि हमारे घर की छत से इस रेत के ढेर पर कूदना है।
सब बच्चे भागे हुए हमारे घर की छत पर पहुंच गए। सबसे पहले कौन कूदे, निर्णय हुआ सबसे बड़ा लड़का यानी लम्बाई में ,सबसे पहले कूदेगा। वो सफलता पूर्वक कूद गया,फिर दूसरा लड़का,फिर दो लड़कियाँ। आखरी में डरते -डरते मैने भी छलांग लगा दी। सारा डर निकल चुका था। हम बार-बार रेत पर कूदने के बाद घर की सीढ़ियों पर हँसते हुए चढ़ते और कूदने के बाद फिर सीढियाँ चढ़ते। हमारे हुड़दंग को माँ ने देख लिया। तुम बार-बार ऊपर जा रहे हो पर ऊपर से नीचे आते तो मैंने तुम्हें देखा नहीं। हमें साँप सूँघ गया।
सारी बात जब उन्हें पता चली तो हमारी खूब धुनाई हुई । शिकायत पर पड़ौसी ने उन चार दिवारों को तिरपाल से ढक कर छत बना दी, और हम बहुत दुखी हुए, आपस में बोले टूटी छत अब बन गई। अब नहीं कूद पायेंगे ,और फिर उस टूटी छत के बन जाने से हमारे खूबसूरत खेल का दी -एंड हो गया। आज भी बचपन की वो यादें गुदगुदा जाती है।

सरिता गर्ग

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