Monday, January 28

"पूजा "28जनवरी2019

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तेरे दर पर खड़ी हूँ मैं माँ, 
लेकर पूजा की थाली, 
सर पर मेरे हाथ रख दो, 
माँ संकट हरने वाली |

तेरी महिमा है अपरम्पार,
रूप तेरे माँ कहीं हजार, 
ममता की तू है मूरत, 
प्यारी लगती माँ तेरी सूरत |

गौरी,लक्ष्मी और सरस्वती, 
त्रिदेवों की तुम जीवन संगिनी, 
नव दुर्गे का रूप महान,
जग करता माँ तेरा गुणगान |

पूजा-पाठ हम करें तुम्हारी, 
मन से करें माँ पूरा सम्मान,
हम पर तुम दया दृष्टि रखना,
हम सब हैं माँ तेरी संतान |
🙏जय माता दी 🙏

स्वरचित *संगीता कुकरेती* 
  




निष्काम भाव सच्ची श्रद्धा पूजा कहलाती है

कभी कभी तो प्रेम कहानी पूजा बन जाती है ।।
पूजा में लवलीन होकर के कुछ हम पाते हैं 
जब तक सच्चा प्रेम न हो पूजा न हो पाती है ।।

ईश्वर कण कण में समाया
हम तुम में भी कहलाया ।।
जब तपोगे तब ही जानोगे 
बिन तपे न कोई कुछ पाया ।।

मन मंदिर में करो सुधार
प्रभु से जुड़ जायेंगे तार ।।
हर कर्म पूजा है ''शिवम"
निष्ठा भाव न कभी विसार ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्" 


(1)
प्रेम है पूजा, समझ कर कर रहा हूँ मैं ।
प्यार पर तेरे दिनों दिन मर रहा हूँ मैं ।
यापन करूँ जीवन तुम्हारे साथ में,
चाहतें ऐसीं हृदय में भर रहा हूँ मैं ।।

(2)
यह तुम से बारहा कहती है सदाक़त मेरी ।
सनम, मंजूर कर लेनी है इबादत मेरी ।
नहीं है प्यार से बढ़ करके परस्तिश जग में,
इसलिए ध्यान में रखनी है रफ़ाक़त मेरी ।।

स्वरचित-" अ़क्स" दौनेरिया 

🙏 "पूजा"🙏
वो बचपन के दिन थे खिले
मन में मेरे भाव थे जगे
लेखन का विचार लिए
हाथों नें कलम थामे
मन मे पूजा भाव भरे
गुरुदेव के चरणों में
कलम को अर्पण किये।

कलम पकड़ लिखती रही
मन के उद्गारों को उढ़ेलती रही
लेकिन, जाने क्यों.....
पढ़ती और फाड़ देती
शब्दों की समझ ना थी
भावो को कैसे पिरोती..

एक दिन अनायास...
भाव थे दिल के पास..
वर्णों का भी मिला साथ
लिख डाली कुछ खास..
मन में जागी थी एक आस

नन्हे-नन्हे हाथों से.....
कापी ले पहूँची माँ के पास
इठलाती बोली--
'माँ पढ़ लो ना एक बार
मैंने लिखा है ये आज'
माँ थी खाना पकाने में व्यस्त
हँसकर बोली-----पगली...
जा फिर कभी पढ़ती हूँ..
तूझे भूख लगी होगी...
अभी खाना पका लूँ..

बुझे मन से दौड़ी बापी के पास
बोली--बापी बापी देखो ना..
मैंने लिखा है आज कुछ खास
बापी ने कहा----
मैं तो जरूर पढ़ूँगा....
मेरी बिटिया ने लिखा क्या
है आज.......
पर पहले तो कर लूँ
बही-खाते का हिसाब

भारी कदमों से दीदी के 
पास जा पहूँची....
बोली दीदी पढ़ लो ना
मैने लिखा है क्या खास
दीदी थी टेलीविजन 
देखने में व्यस्त...
बोली जा अभी ना 
करो मुझे तंग

डबडबाई आँखों से
गुरुदेव(रविंद्रनाथ ठाकुर)
की तस्वीर निहारती
मन ही मन कहने लगी
हे गुरुदेव!आप तो देख लो
मैंने लिखा है क्या खास..
आचानक....
फूलों की माला गिर पड़ी...
जिसमें लिखा था कुछ खास
जैसे मुझे मिला था आशीर्वाद
उस दिन के बाद फिर मैंने...
कभी लिखा नहीं कुछ खास

आज साहस बटोर कर फिर से
लिखने लगी मन के भाव
मेरे लिए ये "पूजा के फूल"हैं
अब प्रस्तुत हैं आपके पास.
अर्पण किया था गुरुदेव के
चरणों में पहली बार।

स्वरचित पूर्णिमा साह 
  
विधा - हाइकु
विषय - पूजा


गणेश पूजा
सर्वप्रथम पूज्य
आस्था विश्वास

वीणा वादिनी
सरस्वती पूजन
कला प्रदाता

लक्ष्मी पूजन
धन सम्पदा दात्री
वाहन उल्लू

गौरी पूजन
आदि शक्ति स्वरूपा
महेश भार्या

मन मन्दिर
प्रभु मूरत पूजा
मोक्ष प्रदाता

सरिता गर्ग

स्व रचित 

नहीं जानते पूजा करना।
नहीं जानते विधि,व्यवहार।
एक नाम जाने हैं ईश्वर।
नाम जपते हैं बारम्बार।

दुःख में सुमिरन सब करते हैं।
सुख में भी हम लेते नाम।
जब,जैसा भी वक्त है मिलता।
याद हैं करते सुबहो शाम।

खाने की कुछ फ़िक्र नहीं है।
सबके दाता हैं भगवान।
नहीं है चिंता मुझको कल की।
ईश्वर पूरा करेंगे बिगड़े काम।

एक भरोसा तेरा प्रभुजी।
बाकी दुनियाँ से क्या लेना।
जपेंगे तेरा नाम हरदम।
मुझको जगत से क्या लेना।।
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
स्वरचित

वीणा झा  
  
जन जन का तुम बनो सहारा
पावन उत्तम निर्मल है पूजा
परहित में जो जग जीता नित
इसे से बड़ा न धर्म कोई दूजा
पूजा सेवा आत्मसमर्पण
पूजा सृद्धा और भक्ति है
पूजा से बन गए वरदानी
भक्ति नित ऊँची शक्ति है
पूजनीयों की होती पूजा
विप्र धेनु जग पूजनीय हैं
भारत माँ की अर्चन करते
सर्वजने नित प्रशंसनीय है
सर्वसुखाय होती है पूजा
आत्मा सो परमात्मा पूजा।
प्रकृति के हर कण समाहित
स्नेह सुधा स्वर अद्भुत गूंजा
आडम्बर न ढोंग है पूजा
पर हित नेक सदा चार है 
सत्य अहिंसा सद्भावनाएँ
सद श्रेष्ठ आचार विचार हैं।।
स्व0 रचित

गोविन्द प्रसाद गौतम 



श्रद्धा सुमन अर्पित चरणों में,
हे रघुनंदन प्राण प्यारे।
नहीं जानते कुछ हम पूजा,
करें दंण्डवत चरण तिहारे।

श्रद्धा जाग्रत करें हमारी।
निष्ठा प्रभु से होय हमारी।
नहीं चाहिए हमको कुछ भी,
भजन करें दिन रैना सारी।

सत्कर्म सभी पूजा हो जाऐं।
प्रेमपुष्प विकसित हो पाऐं।
वैरभाव नहीं रहे आपस में,
हृदय प्रीत सुरभित हो जाऐं।

सत्यधर्म पुरूषार्थ हो पूजा।
निष्काम भाव नहीं हो दूजा।
हृदयालय मंन्दिर बन जाऐ,
सबसे बडी जगह हो पूजा।

स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
28/1/2019(सोमवार)  




शीर्षक : पूजा 
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ऐ पूजा! 
तू स्व-निर्मित मूर्तियों की पूजा नहीं 
आत्मवंचना,अहंकार,अज्ञान से मुक्त 
चेतना की जागृति है 
अनंत का विस्तार है 
अनादि की प्रभा है 

तू अमृत प्रकाश है 
प्रभु प्रकाश है
ईश्वर के प्रति सदभाव है
साधना पथ है

तेरा कोई आकार नहीं 
तू अमूर्त है
सभ्य है 
अहिंसक है 
प्रेमपूर्ण है
आध्यात्मिक है
सच्चा कर्म है
आनंद है
आशीष है
तू चेतना का व्यवहार है

ऐ पूजा!
तेरी चमक अनूठी है 
तू यज्ञ-हवन नहीं
सेवा का मार्ग है
मानवीय कर्म है
सच में तू ब्रह्म मार्ग है

"पूजा के थाल में क्या-क्या सजा रखा है
पूजक-चल पर मुझको एतबार नहीं 
मुझे यकीन है मगर चेतना का क्या करूँ 
इसे किसी मन्दिर-मस्जिद पर एतबार नहीं है"

ऐ पूजा!
तू प्रार्थना है
तू उपासना है
तू जीवित है
खिला हुआ फूल है

ऐ पूजा!
तू आदर भी है
तू सत्कार भी है
तू औपचारिकता नहीं 
समग्रता का स्मरण है
तू भीतर का संकल्प है
तू धड़कन की प्रदक्षिणा है

@शंकर कुमार शाको   


हमारा देश,
देव भूमि है,

देवों ने जन्म लिया
हमारी संस्कृति,
धार्मिक संस्कृति है
जन्म से ही हम,
पूजा,अर्चना, में,
पले,बढ़े, सीखें है,
ईश्वर की पूजा,
उपासना करते,
परिवार में सीखा,
जीवन का लक्ष्य,
ईश्वर से परे,
ईश्वर से श्रेष्ठ,
इस जग में कुछ नहीं,
पाश्चात्य देशों ने,
भौतिक या पर बल दिया,
भारतीय विचारधारा ने,
आध्यात्मिक ता पर बल दिया,
ईश्वर से बढ़ के,
जीवन कासाध्य,आर्दश,लक्ष्य,
नहीं होना चाहिए,
हमारे विचार कों नेकहा है,
स्वंय परमात्मा ही,
मनुष्य जीवन का,
लक्ष्य है,
चैतन्य महाप्रभु ने,
विवेकानंद ने,
वैष्णव आर्चाय ने,
शंकाराचार्य ने,
उसी का दर्शन करो,
उसी को याद करो,
उसी का पूजन करो,
संसारिक मोह-माया,प्रेम
स्वार्थ मय प्रेम,
मानव धर्म नही
निस्वार्थ प्रेम ही
ईश्वरप्रेमहै,
मानव ता धर्म ही धर्म है,
,मानव सेवा ही माधव सेवा है,
परोपकार जी वन ही,
ईश्वर की पूजा है।

देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।। 




पूजें पत्थर
बच्चा अनाथ रोये
ये विडंबना।।


पाखंडी पूजा
निकले हाथी दांत
खाने के दूजे।।

भूमि पूजन
पावन परंपरा
आत्मसंतोष।।

पितृ पूजन
कर्मकांड धार्मिक
आत्मिक मुक्ति।।

मां देव सम
पूजो होवे कल्याण
विरले मानें।।
भावुक



 1)है
पूजा
विश्वास
कर्म धर्म
दर्शन आस
रक्षण प्रयास
समर्पण सुभाष।

2)क्या
व्रत
साधना
फलाहार
नाना प्रकार
भेंट उपहार
है पूजा का हार???

स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन' 


 धूप, दीप, मधुर मिष्टान्न, नैवेद्य धरे
अक्षत-चंदन, पुष्प-पात, बेलपत्र हरे
पूजा की थाली लिए निज हाथ चली
आली मतवाली भी खींच साथ चली

तरुणी लावण्य अनन्य अति लुभावन
कुसुमित,कलित ललित अति सुहावन
चली कुछ दूर डगर, गई नज़र ठहर
पुष्पित पंकज लख अभिराम सरोवर

एक आह उठी, मन चाह उठी पावन
कमल-नाल-कमाल टंके कमल-नयन 
कर ठिठक ठिठोली सखियों से बोली
चल कमल दिला मुझे,मेरी हमजोली

सखि मान लिए, खड़ी हठ तान किए
अतल जल दुर्लभ है ये संधान प्रिये
बीच अतल नीर एक वीर चुहलखोर
सुन बात हठात मृदु मुस्कात किशोर

करि कर करतल छपाक छप जल में
सम्मुख खड़ा धरि कमलदल पल में
भोले का वरदान,वर विधि का विधान
करी आरती तरुणी लिए मृदु मुस्कान
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित

कविता 
पूजा करना पहले 
कुदाल-फावडे़ , हल-बैलो की, 
तपती गर्मी में किसान के रेलों की ।
पूजें उस गाय को जो हमको दुध पिलाती हैं, गोबर से बिजली खाद उत्पादन बढा़ती हैं।
चमड़े से जूते हड्डियों से उर्वरक बनाती हैं।
पूजा करो देश भक्तों की जो सर्वस्व लुटाते हैं।
पूजा उन नौनिहालों की जो अपना सर
कटवाते हैं।
पूजा उन वीरांगनाओं की जो बलिवेदी पर न्यौछार हुई, अंग्रेजी हकूमत को मिटाने तलवार ले घोडे़ पर सवार हुई।
पूजा उन वैज्ञानिकों की जिन्होंने सभी आविष्कार किए।
पूजा उन गुरूओं की जिन्होंने हमारे सपनों को साकार किए।
पूजा उस माँ की करें जिसने हमें धरती पर
जन्म दिया ! 
पूजा उस पिता पालनहार की जिसने हमको नाम दिया ।
पूजा इस धरती माता की जिसने हर जुल्म को माफ किया ।
पूजा करो उस नारी की जिसने तुमको सुख-दुख में थाम लिया । 
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 'निश्छल, '
किस तरह बालारुण की 
एक नन्ही सी रश्मि
सागर की अनगिनत लहरों में
प्रतिबिंबित हो उसके पकाश को
हज़ारों गुना विस्तीर्ण कर देती है !
जहाँ तक दृष्टि जाती है
ऐसा प्रतीत होता है मानो 
हर लहर पर हज़ारों सूर्य ही सूर्य
उदित होते जा रहे हैं
जिनका ताप और प्रकाश
हर पल बढ़ता ही जाता है !
जो कदाचित विश्व के कोने-कोने से
अंधकार के अस्तित्व को
मिटा कर ही दम लेने का
संकल्प धार चुके हैं ! 
सारे संसार को ज्योतिर्मय करने वाले
हे भुवन भास्कर 
तुम्हारे इस दिव्य प्रकाश के
असंख्यों वलयों के बीच
एक अभिलाषा लेकर मैं भी खड़ी हूँ
कि सम्पूर्ण रूप से आलोकित
बाह्य जगत के साथ-साथ
मेरे अंतर्मन का अन्धकार भी मिट जाये !
मेरा मन भी आलोकित हो जाये !
हे दिवाकर ,
मेरे मन में दृढ़ता से आसन जमाये
इस विकट तिमिर का संहार
तुम कैसे करोगे ?
किस यंत्र से कौन सा छिद्र
तुम मेरे हृदय की ठोस दीवार में करोगे
कि तुम्हारी प्रखर रश्मियाँ
मेरे अंतर्मन के सागर की हर लहर पर
इसी तरह नर्तन कर
हज़ारों सूर्यों का निर्माण कर सकें
और मेरे हृदय में व्याप्त अन्धकार का
समूल नाश हो जाये !
हे दिनकर
संसार में एक अकेली मैं ही नहीं
जो इस अन्धकार में निमग्न है
मुझ जैसे करोड़ों हैं जो प्रति पल
अपने अंतर के अन्धकार से जूझ रहे हैं !
आज तुमसे मेरी यही आराधना है कि
तुम उन सबके मन में भी
ऐसी ज्योति जला दो कि
उनका पथ आलोकित होकर
प्रशस्त एवँ सुगम्य हो जाये और उन्हें
अपना मार्ग तलाश करने के लिये
कभी ठोकर न खानी पड़े !
तथास्तु !

साधना वैद 
  
पूजा बिन भाव के नहीं होती
आँख बिन दर्द नहीं रोती।

कर्म भी बहुत बड़ी पूजा है
जिन्दगी का मार्ग नहीं दूजा है।

पूजा इंसान में सद्भाव जगाती है
कैसे जीवन जियें ये सिखाती है।

ये सिखाती है करना सम्मान
अच्छे बुरे का कराती है ज्ञान।

मारती है बुरे बिचारों को
जन्म देती है संस्कारों को।

अभय

अलीगढ़ 
पूजा के फूल
बनकर प्रसाद
लगे मस्तक

कर्म महान
बुजुर्गों का सम्मान
पूजा समान

कर्म आधार
बनता है भविष्य
बनके पूजा

दिल आधार
संजोकर सपने
प्रेम है पूजा

बाल हृदय
निश्वार्थ भावनाएँ
करता पूजा
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त 

 भावना हो तुम मेरी 
तेरा अक्षर अक्षर पूजा है 
तुझमे रमते अहसास मेरे 
तुम सम कोई न दूजा है 
तुमसे सुबह शाम मेरी 
तुम मेरी इबादत हो 
तुम से नूर जहां भर मे 
तुम दिल की चाहत हो 
तुम संग चैन सुकून मेरा 
तुम संग ढेरो बातें मेरी 
शब्द शब्द मे रचती बसती
जज्बातों की बस्ती मेरी 
तुम अभिलाषा चाहत मेरी 
तुम दिल की राहत मेरी 
कविता हो तुम पूजा मेरी 
ज्यों जन्मों से जोडी तेरी मेरी 

कमलेश जोशी 
कांकरोली राजसमंद 



 भटके को राह दिखाया तो हुआ पूजा,
प्यासे को पानी पिलाया तो हुआ पूजा।
सुनों कण-कण में भगवान देखने वालों,
सिर्फ क्या घंटा बजाया तो हुआ पूजा
------------
देना एम्बुलेंस को रास्ता इबादत है ,
रहे ईन्सानियत से वास्ता इबादत है।
कट जाये सर सरहद पर तो गुमां करना,
सहादत भी खुदा-न-खास्ता इबादत है।

सन्तोष परदेशी 


1)
मंदिर दूजा 
मात-पिता की सेवा 
हो गई पूजा 
(2)
पुजे संस्कार 
संस्कृति का मंदिर 
श्रद्धा के द्वार 
(3)
पूजा का भोग 
गरीब ने चढ़ाये 
आँसू के लडडू 
(4)
विविध धर्म 
व्यक्तित्व है अमर 
पूजाते कर्म 
(5)
स्वार्थ देवता 
भ्रष्टाचार करता 
पैसों से पूजा 
(6)
प्रेम प्रसाद 
मानवता की पूजा
ईश्वर सेवा 

स्वरचित 
ऋतुराज दवे 

प्रथम पूज्य ने मात-पिता को पूज के जग में नाम किया ।
हम किस मंदिर जाएं हमने घर को चारों धाम किया ॥

जन्म दिया ब्रह्मा सा पालन विष्णु जैसा करते हैं ।
शिव से संहारक बनकर मम पीड़ाओं को हरते हैं।
क्यों ना मानूं ईश इन्हें जब ईश सा सारा काम किया ॥1॥
हम किस मंदिर जाएं हमने घर को चारों धाम किया ॥

अन्नपूर्णा रूप तुम्हारा बचपन से ही देखा है ।
दादी कहती थी लक्ष्मी और मेरी तो तू लेखा है ।
गौरा सी शीतलता तुम में दुर्गा सा संग्राम किया ॥2॥
हम किस मंदिर जाएं हमने घर को चारो धाम किया ॥

मात-पिता की सेवा से बढ़कर क्या कोई पूजा है ।
इनसे बढ़कर दुनिया में भगवान न कोई दूजा है ।
हमने सारी पूजा भक्ति इन दोनों के नाम किया ॥3॥
हम किस मंदिर जाएं हमने घर को चारों धाम किया ॥

प्रथम पूज्य ने मात-पिता को पूज के जग में नाम किया ।
हम किस मंदिर जाएं हमने घर को चारों धाम किया ॥

स्वरचित एवं मौलिक रचना
©®🙏
'अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'✍ 

 मन का थाल 
सात्विक भाव फूल 
पूजा सम्पूर्ण 

२.
गुरु चरण 
त्यागे पांच विकार
पूजा सफल 

३.
मन के विकार 
पूजा अवरोधक
कर निस्तार 

4.
टूटे 'चौरासी' 
विकार बनवासी 
पूजा सुवासी 

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 
२८.०१.२०१९


  

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