ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें |
ब्लॉग संख्या :-257
विधा :- लघु कविता
कर्म की दहलीज पर,
खड़ी है जिंदगी।
सबकुछ है हाथ तेरे,
संवार ले जिंदगी।
मौत करती हिसाब,
कर्मो के दाम से।
मिल जाता है मोक्ष यहाँ,
योनियों के धाम से।
कर्म की आँच पर,
निखरता है जीवन।
तपकर कुंदन सा,
चमकता है जीवन।
कर्म अमिट है,
अनंत काल तक।
लिख डालो कर्म की इबारत,
काल के कपाल तक।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
कर्म की दहलीज पर,
खड़ी है जिंदगी।
सबकुछ है हाथ तेरे,
संवार ले जिंदगी।
मौत करती हिसाब,
कर्मो के दाम से।
मिल जाता है मोक्ष यहाँ,
योनियों के धाम से।
कर्म की आँच पर,
निखरता है जीवन।
तपकर कुंदन सा,
चमकता है जीवन।
कर्म अमिट है,
अनंत काल तक।
लिख डालो कर्म की इबारत,
काल के कपाल तक।
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
झूठ पाप तज पूर्ण करलो सच्चे पावन काम
घट घट में बसे हैं राम, घट घट में बसे हैं राम
जीवन रण है सत्य पथिक मत करना आराम
घट घट में बसे हैं राम, घट घट में बसे हैं राम
संकल्प शुध्द मन बने बुध्द इसी मे चारो धाम
घट घट में बसे हैं राम, घट घट में बसे हैं राम
नीति और अनीति का प्रतिपल रखना ध्यान
घट घट में बसे हैं राम, घट घट में बसे हैं राम
राम नाम वाणी धारित कर करोगे अमृतपान
घट घट में बसे हैं राम, घट घट में बसे हैं राम
पुरुषोत्तम का चरित्र बनो बनो गुणों की खान
घट घट में बसे हैं राम, घट घट में बसे हैं राम
दृष्टि दिव्य सृष्टि नव्य के दिखेंगे नूतन आयाम
घट घट में बसे हैं राम, घट घट में बसे हैं राम
विपिन सोहल
घट घट में बसे हैं राम, घट घट में बसे हैं राम
जीवन रण है सत्य पथिक मत करना आराम
घट घट में बसे हैं राम, घट घट में बसे हैं राम
संकल्प शुध्द मन बने बुध्द इसी मे चारो धाम
घट घट में बसे हैं राम, घट घट में बसे हैं राम
नीति और अनीति का प्रतिपल रखना ध्यान
घट घट में बसे हैं राम, घट घट में बसे हैं राम
राम नाम वाणी धारित कर करोगे अमृतपान
घट घट में बसे हैं राम, घट घट में बसे हैं राम
पुरुषोत्तम का चरित्र बनो बनो गुणों की खान
घट घट में बसे हैं राम, घट घट में बसे हैं राम
दृष्टि दिव्य सृष्टि नव्य के दिखेंगे नूतन आयाम
घट घट में बसे हैं राम, घट घट में बसे हैं राम
विपिन सोहल
गहन है कर्म गति।
बलिष्ठ है कर्म गति।
धर्म से त्वरित गति।
ऐसा सिद्धजन माने।
जो मिला कर्म से।
जो खोया कर्म से।
अनुराग विराग भी।
कर्मो की श्रंखला हैं।
जन्मांतर ऋण धन।
सो आदान प्रदान।
हम सब करते सदा ।
गुरुशिष्य ,मातृपितृ।
पतिपत्नी, पितापुत्र।
शत्रुमित्र और अतिथि।
विरोधी सहयोगी भी।
पशु भी जुडे हमसे।
कर्मो की गहनता में।
मनन योग्य विषय है।
मनन करे पुनः पुनः।
जैसे हाल रखें हरि।
उस हाल रहे सदा।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
स्वरचितः
राजेन्द्र कुमार अमरा
बलिष्ठ है कर्म गति।
धर्म से त्वरित गति।
ऐसा सिद्धजन माने।
जो मिला कर्म से।
जो खोया कर्म से।
अनुराग विराग भी।
कर्मो की श्रंखला हैं।
जन्मांतर ऋण धन।
सो आदान प्रदान।
हम सब करते सदा ।
गुरुशिष्य ,मातृपितृ।
पतिपत्नी, पितापुत्र।
शत्रुमित्र और अतिथि।
विरोधी सहयोगी भी।
पशु भी जुडे हमसे।
कर्मो की गहनता में।
मनन योग्य विषय है।
मनन करे पुनः पुनः।
जैसे हाल रखें हरि।
उस हाल रहे सदा।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
स्वरचितः
राजेन्द्र कुमार अमरा
कर्म की गति ही न्यारी
राजतिलक की थी तियारी ।।
वन गमन की आई बारी
कैकई की गई मति मारी ।।
कुछ तो लेखा जोखा है
कब दुलार कब धोखा है ।।
पूरी कहानी लिखी हुई है
वही गिराये वही दे मौका है ।।
पुत्र वियोग में दशरथ का मरना
कर्म का फल पड़ा उन्हे भरना ।।
पीढ़ियों का यह लेखा जोखा
मुश्किल बहुत है इसको पढ़ना ।।।
राम के हाथों रावण का बध
कहाँ लंका और कहाँ अवध ।।
स्क्रिप्ट लिखी सबकी ''शिवम"
पढ़िये और पहचानिये सुपथ ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/01/2019
विधा - दोहा
विषय - कर्म
कर्मों की खेती करो , फसल उगाओ खूब
फल मीठा मिल जाएगा , नहीं उगेगी दूब
दीनों का दुख बांट लो पकड़ो उनका हाथ
कर्म भलाई के करो , जाते वो ही साथ
खाली कभी न बैठना , धरे हाथ पर हाथ
कर्म सभी मिलकर करें लगे सफलता हाथ
कर्म भलाई के करें , फल की हो नहिआस
कर्मों का खाता बही , उस इश्वर के पास
कर्म सुमति के सींच लो , कुमति पास नहि आय
परहित में जीवन लगे , उर आनन्द समाय
सरिता गर्ग
(स्व रचित)
विषय - कर्म
कर्मों की खेती करो , फसल उगाओ खूब
फल मीठा मिल जाएगा , नहीं उगेगी दूब
दीनों का दुख बांट लो पकड़ो उनका हाथ
कर्म भलाई के करो , जाते वो ही साथ
खाली कभी न बैठना , धरे हाथ पर हाथ
कर्म सभी मिलकर करें लगे सफलता हाथ
कर्म भलाई के करें , फल की हो नहिआस
कर्मों का खाता बही , उस इश्वर के पास
कर्म सुमति के सींच लो , कुमति पास नहि आय
परहित में जीवन लगे , उर आनन्द समाय
सरिता गर्ग
(स्व रचित)
विधा लघुकविता
03,01,2019,गुरुवार
कर्म धर्म है कर्म है पूजा
ईश्वर सद्कर्मो में बसता
कोई रोता कोई हँसता
कर्म से जग जीवन चलता
कर्म ईद है कर्म दिवाली
कर्म क्रिसमस रक्षाबन्धन
कर्म प्रधान इस सृष्टि में
सद्कर्मो का होता वन्दन
कर्म शुद्ध तो जीवन शुद्ध है
कर्म अशुद्ध जीवन अशुद्ध है
सत्य सनातन आध्यत्मिकता
यह वाणी सद्गुण विशुद्ध है
कर्मवीर मंजिल पर चढ़ते
जग तूफानों से वे लड़ते
संघर्षों से सदा जूझ कर
वे जीवन नित आगे बढ़ते
फल की चिंता कभी न करते
जीवन मे वे कभी न डरते
मातृभूमि की सेवा सद करते
जैसा करते वैसा नित भरते
मनन चिंतन सोच कर्म है
सकारात्मक एक मर्म है
नकारात्मक पागलपन है
जीवन का यही अधर्म है।
कर्म अमृत कर्म गरल है
कर्म नरक तो कर्म स्वर्ग है
कर्म आधारित इस जीवन मे
शुद्ध कर्म ही,जग जगमग है।।
स्व0 रचित
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
03,01,2019,गुरुवार
कर्म धर्म है कर्म है पूजा
ईश्वर सद्कर्मो में बसता
कोई रोता कोई हँसता
कर्म से जग जीवन चलता
कर्म ईद है कर्म दिवाली
कर्म क्रिसमस रक्षाबन्धन
कर्म प्रधान इस सृष्टि में
सद्कर्मो का होता वन्दन
कर्म शुद्ध तो जीवन शुद्ध है
कर्म अशुद्ध जीवन अशुद्ध है
सत्य सनातन आध्यत्मिकता
यह वाणी सद्गुण विशुद्ध है
कर्मवीर मंजिल पर चढ़ते
जग तूफानों से वे लड़ते
संघर्षों से सदा जूझ कर
वे जीवन नित आगे बढ़ते
फल की चिंता कभी न करते
जीवन मे वे कभी न डरते
मातृभूमि की सेवा सद करते
जैसा करते वैसा नित भरते
मनन चिंतन सोच कर्म है
सकारात्मक एक मर्म है
नकारात्मक पागलपन है
जीवन का यही अधर्म है।
कर्म अमृत कर्म गरल है
कर्म नरक तो कर्म स्वर्ग है
कर्म आधारित इस जीवन मे
शुद्ध कर्म ही,जग जगमग है।।
स्व0 रचित
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
यार तू जल्दी से पढ़ले कुरान
मैं भी भजलूँ अपने भगवान्
है तो दोनों एक ही शक्ति
दोनों का करना हमें सम्मान
जैसे हम दोनों साथ में रहते
वैसे ये दोनों ब्रह्मांड में बसते
साथ में रहना साथ में घूमना
कर्म भी दोनों एक ही करते
आत्माओं से सृष्टि को रचाई
इंसानियत की जात बनाई
कहा हिलमिल कर है रहना
इंसान ने आके धमाल मचाई
हिंदू मुस्लिम तराजू बनाया
धर्म अधर्म को वहाँ बिठाया
लहू के रंग को ना समझकर
ब्रम्हांडशक्ति का सर झुकाया
स्वरचित मौलिक रचना
कुसुम त्रिवेदी दाहोद
मैं भी भजलूँ अपने भगवान्
है तो दोनों एक ही शक्ति
दोनों का करना हमें सम्मान
जैसे हम दोनों साथ में रहते
वैसे ये दोनों ब्रह्मांड में बसते
साथ में रहना साथ में घूमना
कर्म भी दोनों एक ही करते
आत्माओं से सृष्टि को रचाई
इंसानियत की जात बनाई
कहा हिलमिल कर है रहना
इंसान ने आके धमाल मचाई
हिंदू मुस्लिम तराजू बनाया
धर्म अधर्म को वहाँ बिठाया
लहू के रंग को ना समझकर
ब्रम्हांडशक्ति का सर झुकाया
स्वरचित मौलिक रचना
कुसुम त्रिवेदी दाहोद
विधा=हाइकु
=============
🌹🌹🌹🌹🌹
(1)कर्म से प्रीत
सदा उसकी जीत
यही है रीत
🌹🌹🌹🌹🌹
(2)निस्वार्थ कर्म
करके बने स्वयं
प्रेरक मित्र
🌹🌹🌹🌹🌹
(3)यहा जो जन्मा
करना तो पड़ेगा
कर्म अपना
🌹🌹🌹🌹🌹
(4)पाल ही देती
सम्पूर्ण परिवार
कर्म की ढ़ाल
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
(5)आज का युग
कर्महीन रहता
सदैव दीन
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
स्वरचित
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
=============
🌹🌹🌹🌹🌹
(1)कर्म से प्रीत
सदा उसकी जीत
यही है रीत
🌹🌹🌹🌹🌹
(2)निस्वार्थ कर्म
करके बने स्वयं
प्रेरक मित्र
🌹🌹🌹🌹🌹
(3)यहा जो जन्मा
करना तो पड़ेगा
कर्म अपना
🌹🌹🌹🌹🌹
(4)पाल ही देती
सम्पूर्ण परिवार
कर्म की ढ़ाल
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
(5)आज का युग
कर्महीन रहता
सदैव दीन
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
स्वरचित
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
" कर्म "
कर्म का मर्म कुछ लोग नहीं जानते हैं
इसलिये कर्म से दूर भाग अपनी जिंदगी बिगाड़ते हैं
जब आतीं हैं विघ्न बाधाएँ उनके जीवन मे इसकी ख़ातिर
वो सारा सारा दोष अपनी किस्मत और भगवान पर डालते हैं
चाहें जो वो कहें या कर लें सच तो ये की अपनी किस्मत स्वयं वो पत्थर से फोड़ डालते हैं
सफल व्यक्तियों को कोसना और उन्हें गाली देना उनका बनता शग़ल
पर अपनी गलतियों और कर्महीन जीवन को जिम्मेदार वो नहीं मानते हैं
(स्वरचित)
अखिलेश चंद्र श्रीवास्तव
गद्य
“कर्मण्यधिकारेष्तु मा फलेषू कदाचन”-श्रीमदभगवद्गीता
अर्थात
“कर्म किए जा फल की चिंता मत करना इंसान
ये है गीता का ज्ञान, ये है गीता का ज्ञान”
उपरोक्त पंक्तियाँ कर्म की महत्ता को परिभाषित करती है। जीवन-पथ पर अगर हमे गतिशील रहना है तो हमें कर्म करते रहना होगा।ऐसी किसी भी स्थिति की कल्पना करना संभव नहीं जो बिना कर्म के संपादित हो जाए।जीने के लिए रोटी की आवश्यकता होती है और रोटी पाने के लिए उद्यम करना पड़ता है,बल्कि थाली से उठाकर रोटी खाना भी एक कर्म ही है –“न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा”।
अतएव,जीवन में यदि सफल होना है तो हमें सार्थक कर्म करते रहना होगा।बहुत बार ऐसी परिस्थितियाँ आती है या विफलता के डर से हम निराश हो अकर्मण्य हो जाते हैं ऐसे में राष्ट्रकवि श्री मैथिली शरण गुप्तजी की इन पंक्तियों को स्मरण करना चाहिये-
नर हो,न निराश करो मन को
कुछ काम करो,कुछ काम करो
जो तमाम बाधा बिघ्न से न डरते हुये, किंचित भी विचलित हुये बिना सदैव डटा रहता है वही सच्चा कर्मठ और कर्मवीर है,ऐसों को ही इंगित करते हुये कविशिरोमणि श्री हरिऔध जी ने लिखा है
देखकर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं
रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं
अतः हमें भी अपने सार्थक कर्मपथ पर गोस्वामी तुलसीदास जी की निम्न पंक्तियों को स्मरण करते हुए सदैव डटे रहना चाहिए।
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा
जो जस करै सो तस फल चाखा
-नवल किशोर सिंह
स्वसंयोजित
“कर्मण्यधिकारेष्तु मा फलेषू कदाचन”-श्रीमदभगवद्गीता
अर्थात
“कर्म किए जा फल की चिंता मत करना इंसान
ये है गीता का ज्ञान, ये है गीता का ज्ञान”
उपरोक्त पंक्तियाँ कर्म की महत्ता को परिभाषित करती है। जीवन-पथ पर अगर हमे गतिशील रहना है तो हमें कर्म करते रहना होगा।ऐसी किसी भी स्थिति की कल्पना करना संभव नहीं जो बिना कर्म के संपादित हो जाए।जीने के लिए रोटी की आवश्यकता होती है और रोटी पाने के लिए उद्यम करना पड़ता है,बल्कि थाली से उठाकर रोटी खाना भी एक कर्म ही है –“न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा”।
अतएव,जीवन में यदि सफल होना है तो हमें सार्थक कर्म करते रहना होगा।बहुत बार ऐसी परिस्थितियाँ आती है या विफलता के डर से हम निराश हो अकर्मण्य हो जाते हैं ऐसे में राष्ट्रकवि श्री मैथिली शरण गुप्तजी की इन पंक्तियों को स्मरण करना चाहिये-
नर हो,न निराश करो मन को
कुछ काम करो,कुछ काम करो
जो तमाम बाधा बिघ्न से न डरते हुये, किंचित भी विचलित हुये बिना सदैव डटा रहता है वही सच्चा कर्मठ और कर्मवीर है,ऐसों को ही इंगित करते हुये कविशिरोमणि श्री हरिऔध जी ने लिखा है
देखकर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं
रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं
अतः हमें भी अपने सार्थक कर्मपथ पर गोस्वामी तुलसीदास जी की निम्न पंक्तियों को स्मरण करते हुए सदैव डटे रहना चाहिए।
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा
जो जस करै सो तस फल चाखा
-नवल किशोर सिंह
स्वसंयोजित
विधा-पिरामिड
1-
है
श्रेष्ठ
जग में
कर्मवीर
छू लो गगन
कर्म आचमन
सुखमय जीवन ।
2- स्व
कर्म
प्रदेता
लाभ सदा
कर है अस्त्र
आलस्य तिमिर
कर शर संधान।
स्वरचित
गीता गुप्ता 'मन'
जीवन का सबसे सुन्दर यदि मर्म है
तो वह केवल केवल अच्छा कर्म है
भगवान भी इसी को देते तूल हैं
जो नहीं समझें इसे वे करते भूल हैं।
जीवन कर्म प्रधान है
कर्मवीर ही महान है
करता है सत्कर्म जो
उसका होता सदा गान है।
सूर्य चन्द्र गतिमान हैं
जल देता आसमान है
ऋतुओं का आना प्रकृति के
कर्म का ही तो प्रमाण है।
सब कर्म से बंधे हुए
सब कर्म से सधे हुए
हम अकर्मण्य हैं यदि तो
हम बेकार के बंदे हुए।
कर्म
जीवन में कर्म ही प्रधान होता है
जो कर्म करने से बचे वही आलसी इंसान होता है
जिसे कर्म करना न पड़े वो ही भगवान होता है
दुनिया में आये हो तो कर्म करने ही पड़ेंगे
बिना कर्म करे कहाँ किसी का नाम होता है
कर्म करने पर ही इस पृथ्वी पर जीवन संभव है
क्योंकि कर्म ही सबसे बलवान होता है
जीवन में जितना हो सके अच्छे कर्म करने चाहिए हमें
अच्छे कर्मो से ही मोक्ष का रास्ता आसान होता है
बुरे कर्म वही व्यक्ति करता है
जो ईश्वर जैसी अलौकिक शक्ति से अनजान होता है
बुरे कर्म करने वालों को क्या पता इस बात का
की इन बुरे कर्मो से उनका खुद का ही नुक्सान होता है
बुरे कर्मो को त्याग कर अच्छे कर्मो को अपनाओ तुम
क्योंकि अच्छे कर्मो से ही तो इस संसार में सम्मान होता है
कर्मो की माया बुद्धिमान इंसान ही समझ पाते है
जो समझ गया वही व्यक्ति महान होता है
स्वरचित :''जनार्धन भारद्वाज ''
श्री गंगानगर (राजस्थान )
जीवन में कर्म ही प्रधान होता है
जो कर्म करने से बचे वही आलसी इंसान होता है
जिसे कर्म करना न पड़े वो ही भगवान होता है
दुनिया में आये हो तो कर्म करने ही पड़ेंगे
बिना कर्म करे कहाँ किसी का नाम होता है
कर्म करने पर ही इस पृथ्वी पर जीवन संभव है
क्योंकि कर्म ही सबसे बलवान होता है
जीवन में जितना हो सके अच्छे कर्म करने चाहिए हमें
अच्छे कर्मो से ही मोक्ष का रास्ता आसान होता है
बुरे कर्म वही व्यक्ति करता है
जो ईश्वर जैसी अलौकिक शक्ति से अनजान होता है
बुरे कर्म करने वालों को क्या पता इस बात का
की इन बुरे कर्मो से उनका खुद का ही नुक्सान होता है
बुरे कर्मो को त्याग कर अच्छे कर्मो को अपनाओ तुम
क्योंकि अच्छे कर्मो से ही तो इस संसार में सम्मान होता है
कर्मो की माया बुद्धिमान इंसान ही समझ पाते है
जो समझ गया वही व्यक्ति महान होता है
स्वरचित :''जनार्धन भारद्वाज ''
श्री गंगानगर (राजस्थान )
कर्म करो तो फल मिलता है,
आज नही तो कल मिलता है।
जितना गहरा होगा कुँआ,
उतना मीठा जल मिलता है।।
लाख मुसीबत हो सफ़र में,
संगर्षो से हल मिलता है।
जिंदगी की दौड़ है प्यारे,
हिम्मत से ही फल मिलता है।।
मेहनत करके खूब कमाले,
बेईमानी से छल मिलता है।
हिम्मत मत हार मुसाफिर,
आज नही तो कल मिलता है।।
गिर कर उठना, फिर सम्भलना,
चींटी को थोडा बल मिलता है।
अथक प्रयासों के बाद ही ,
उसे मेहनत का फल मिलता है।।
तिनका तिनका करके ही,
चिड़िया को घर मिलता है।
छोटी छोटी नदियो से ही,
समुन्द्र को जल मिलता है।।
कर्म करो तो फल मिलता है,
आज नही तो कल मिलता है।
जितना गहरा होगा कुँआ,
उतना मीठा जल मिलता है।।
कवि जसवंत लाल खटीक
देवगढ़ , राजसमंद
आज नही तो कल मिलता है।
जितना गहरा होगा कुँआ,
उतना मीठा जल मिलता है।।
लाख मुसीबत हो सफ़र में,
संगर्षो से हल मिलता है।
जिंदगी की दौड़ है प्यारे,
हिम्मत से ही फल मिलता है।।
मेहनत करके खूब कमाले,
बेईमानी से छल मिलता है।
हिम्मत मत हार मुसाफिर,
आज नही तो कल मिलता है।।
गिर कर उठना, फिर सम्भलना,
चींटी को थोडा बल मिलता है।
अथक प्रयासों के बाद ही ,
उसे मेहनत का फल मिलता है।।
तिनका तिनका करके ही,
चिड़िया को घर मिलता है।
छोटी छोटी नदियो से ही,
समुन्द्र को जल मिलता है।।
कर्म करो तो फल मिलता है,
आज नही तो कल मिलता है।
जितना गहरा होगा कुँआ,
उतना मीठा जल मिलता है।।
कवि जसवंत लाल खटीक
देवगढ़ , राजसमंद
II छंद - कुंडलियां II
रँगमँच है सारा जहां, इसके हम किरदार...
रंग बदलता है यहां, हर कोई किरदार....
हर कोई किरदार, बैठा चहरा छुपाये...
तू मत भाग पीछे, चहरा नकली लगाये...
कर निस्वार्थ कर्म, तू छोड़ के सब प्रपंच...
ढूंढें तुम्हें जहां, जब जाओ छोड़ रँगमँच...
II स्वरचित - सी.एम्. शर्मा II
रहे सदा छलकती कर्म की गगरी, यह संसार स्वप्न की नगरी,
होते कर्म ही सबके साथी, हमारी सबसे बड़ी हैं यही थाथी |
होता कर्म क्षेत्र यह संसार हमारा, कर्मों का ही मिलता सहारा,
यहाँ कर्म बना आइना हमारा, कर्मठ ने खुद को पहचाना |
चलता रहता हसना रोना, है कर्मों का भी एक खजाना,
कर्म प्रभाव ही सामने आता, है कोई नहीं इससे अधजाना |
यश अपयश नदी कर्म की धारा, चलता जाये सृजनहारा,
कर्तव्य बोध ही ज्ञान हमारा, कर्मों का फल न्यारा न्यारा |
सेवा के जैसा कर्म नहीं होता, मानवता का दरिया बहता,
आशीषों का आँचल रहता,बना रहता दुआओं का पहरा |
कर्म ज्ञान बड़ा फलदाई ,सुयश व सम्मान की झड़ी लगाई ,
लेखन कर्म बडा़ सुखदाई,आनंदित मन जो शारदा सहाई|
देश भक्ति सा कर्म न दूजा,हो जीवन धन्य ऐसी यह पूजा ,
कर्मवीर को होते सुख नाना,नहीं कर्महीन का कहीं ठिकाना|
रहे कर्मों की कुछ ऐसी तैयारी,झुके न गर्दन कभी हमारी,
ऐसी खेलें कर्मों की हम पारी , जिससे लेंय प्रेरणा सब संसारी |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
विषय:कर्म
छंदमुक्त कविता
कर्म बंधन ,कर्म मुक्ति,
कर्म गणित बेहद जटिल,
कर्म की धारा,
प्रालब्ध, क्रियामान और संचित,
रचियता का अनोखा हथियार...
कर्म से छूटना,मानव ने ना जाना ,
प्रारब्ध संचित हाथ ना तेरे,
क्रियामान से हो..
भवसागर छुटकारा।
सुकर्म, कुकर्म पांव की बेड़ी,
चाहे कुंदन की..
चाहे लोहे की..
निष्काम हो बंदे,
करले बंदगी..
चौरासी के पार,
जो हो जाना...
नीलम तोलानी
स्वरचित व मौलिक
छंदमुक्त कविता
कर्म बंधन ,कर्म मुक्ति,
कर्म गणित बेहद जटिल,
कर्म की धारा,
प्रालब्ध, क्रियामान और संचित,
रचियता का अनोखा हथियार...
कर्म से छूटना,मानव ने ना जाना ,
प्रारब्ध संचित हाथ ना तेरे,
क्रियामान से हो..
भवसागर छुटकारा।
सुकर्म, कुकर्म पांव की बेड़ी,
चाहे कुंदन की..
चाहे लोहे की..
निष्काम हो बंदे,
करले बंदगी..
चौरासी के पार,
जो हो जाना...
नीलम तोलानी
स्वरचित व मौलिक
कर्म ही जीवन है
कर्म ही पूजा है
कर्म ही धर्म है
जीवन में है सफल
वही इन्सान
जो है कर्म प्रधान
कृष्ण का भी
यही है संदेश
करो कर्म
कर्मवीर बनो
अच्छे कर्म जब करेगा
इन्सान
तभी अच्छे फल मिलेंगे
उसे जीवन में
राम नानक
ईसा सभी थे
कर्म प्रधान
और यही रास्ता दिखाया
जन जन को
कर्म को अपनाए हम
जीवन में सफलता पाए हम
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
कर्म ही पूजा है
कर्म ही धर्म है
जीवन में है सफल
वही इन्सान
जो है कर्म प्रधान
कृष्ण का भी
यही है संदेश
करो कर्म
कर्मवीर बनो
अच्छे कर्म जब करेगा
इन्सान
तभी अच्छे फल मिलेंगे
उसे जीवन में
राम नानक
ईसा सभी थे
कर्म प्रधान
और यही रास्ता दिखाया
जन जन को
कर्म को अपनाए हम
जीवन में सफलता पाए हम
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
छंदमुक्त कविता
यू खड़ी हूं कतार में
कर्मों का लेखा जोखा चल रहा !
सोच रही हूं,मन अब काहे तू डर रहा ?
समय था मनो विचार का तब,
तू बेपरवाह होकर था जी रहा।
कभी सोचा रे तूने भले मानस,
क्यों हर मंजिल के बाद,
नई मंजिल की तृष्णा थी?
की कैसी भागती जिंदगी में,
ठहराव की आशा थी?
क्या था तुझे जो खींच रहा?
भीतर ही भीतर कसोट रहा?
खींच रहा था तेरा असल तुझे,
पर तू समझने में विफल रहा।
था जोर उस आत्मा का,
परमात्मा से मिलने के प्रयोजन का।
पर तेरा ध्यान कहां कहां था भटक रहा?
अब कई बातों का सैलाब उमड़ पड़ा,
सोचती हूं तो पाती हूं,
अच्छे कर्मों पर,
बुरे कर्मों का पलड़ा भारी पड़ा।
हो रही है गिनती एक-एक क्षण की,
हिसाब एक-एक कण का देना पड़ रहा।
डर लगता है अब गिरने से,
चौरासी के चक्कर में फिरने से।
मनुष्य जन्म की काया मिली थी
राम भजने की,
देख तेरे जीने के तरीके ने,
नरक द्वार पर आ कर किया खड़ा।
मिष्ठी अरुण
स्वरचित रचना
अमृतसर पंजाब
यू खड़ी हूं कतार में
कर्मों का लेखा जोखा चल रहा !
सोच रही हूं,मन अब काहे तू डर रहा ?
समय था मनो विचार का तब,
तू बेपरवाह होकर था जी रहा।
कभी सोचा रे तूने भले मानस,
क्यों हर मंजिल के बाद,
नई मंजिल की तृष्णा थी?
की कैसी भागती जिंदगी में,
ठहराव की आशा थी?
क्या था तुझे जो खींच रहा?
भीतर ही भीतर कसोट रहा?
खींच रहा था तेरा असल तुझे,
पर तू समझने में विफल रहा।
था जोर उस आत्मा का,
परमात्मा से मिलने के प्रयोजन का।
पर तेरा ध्यान कहां कहां था भटक रहा?
अब कई बातों का सैलाब उमड़ पड़ा,
सोचती हूं तो पाती हूं,
अच्छे कर्मों पर,
बुरे कर्मों का पलड़ा भारी पड़ा।
हो रही है गिनती एक-एक क्षण की,
हिसाब एक-एक कण का देना पड़ रहा।
डर लगता है अब गिरने से,
चौरासी के चक्कर में फिरने से।
मनुष्य जन्म की काया मिली थी
राम भजने की,
देख तेरे जीने के तरीके ने,
नरक द्वार पर आ कर किया खड़ा।
मिष्ठी अरुण
स्वरचित रचना
अमृतसर पंजाब
लघु कविता
नर हो या हो नारी
स्वकर्म ही पहचान है
कर्म से है नाम तो
कर्म से बदनाम है
कृष्ण के उपदेश सारे
कर्म ही गीता का ज्ञान है
कर्म से है नर तो
कर्म ही नारायण है
कर्म से हैं राम तो
कर्म ही हनुमान है
कर्मो से ही है मंथरा तो
कर्म से ही अहिल्या है
कर्म से ही वीरांगना
वो लक्ष्मी बाई है
कायरता है अकर्म तो
कर्म से ही वीरता है
कर्म से है सुंदर रुप
कुकर्म से कुरुप है
कर्म से है धर्म तो
कर्म ही अधर्म है
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
नर हो या हो नारी
स्वकर्म ही पहचान है
कर्म से है नाम तो
कर्म से बदनाम है
कृष्ण के उपदेश सारे
कर्म ही गीता का ज्ञान है
कर्म से है नर तो
कर्म ही नारायण है
कर्म से हैं राम तो
कर्म ही हनुमान है
कर्मो से ही है मंथरा तो
कर्म से ही अहिल्या है
कर्म से ही वीरांगना
वो लक्ष्मी बाई है
कायरता है अकर्म तो
कर्म से ही वीरता है
कर्म से है सुंदर रुप
कुकर्म से कुरुप है
कर्म से है धर्म तो
कर्म ही अधर्म है
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
विषय - कर्म
1
हों
कर्म
महान
देश हित
न्यौछारें प्राण
वीरगाथा तेरी
ये धरा रखे याद
२
है
सत्य
शाश्वत
कर्म गति
स्वर्ग व नर्क
यहीं दोनों हाल
पग रखो संभाल
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
1
हों
कर्म
महान
देश हित
न्यौछारें प्राण
वीरगाथा तेरी
ये धरा रखे याद
२
है
सत्य
शाश्वत
कर्म गति
स्वर्ग व नर्क
यहीं दोनों हाल
पग रखो संभाल
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
"जीवन का आधार कर्म"
कर्म है पूजा
कर्म इबादत
कर्म ही काबा काशी है।
कर्म है भक्ति
कर्म है शक्ति
कर्म ही सच्ची इनायत है।
कर्म है चाहत
कर्म है ताकत
कर्म ही सच्ची संतुष्टि है।
प्यार कर्म है
कर्म धर्म है
मेरा तो ईमान कर्म है।
कर्म सुबह है
रात्रि कर्म है
सच्चाई का मार्ग कर्म है।
कर्म है सेवा
मुक्ति कर्म है
जीवन का सच्चा सार कर्म है
कर्म जन्म है
मृत्यु कर्म है
ईश्वर प्राप्ति का मार्ग कर्म है।
कर्म बिना यह जग सूना,
जीवन का आधार कर्म है।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
जयपुर
दैनिक कार्य स्वरचित लघु कविता
दिनांक 3.1.2019
दिन बृहस्पतिवार
विषय कर्म
रचयिता पूनम गोयल
कर्म की महिमा
जाने संसार ।
कर्म से अच्युत
जीवन बेकार ।।
भगवदगीता में है
कर्म-ज्ञान का भंडार ।
जिसे अर्जित कर ,
मनुष्य का , हो जाए बेड़ा पार ।।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा
कि हे मानव , तू कर्म किए जा ।
और उसके फल की चिंता
तू मुझ पर छोड़ता जा ।।
परन्तु यह हठी मानव
उचित फल की प्रतीक्षा में ,
बार-बार अपने
यथोचित कर्म से विमुख हो जाता है ।
एवं अनजाने में सही ,
एक के बाद , एक अनुचित कार्य कर देता है ।।
समझ कर कर्म की मर्यादा को ,
उसे हर काज करना चाहिए ।
भले ही कठिन हों
जीवन की राहें ,
पथ पर अपने उसे
संभल कर चलना चाहिए ।।
दिनांक 3.1.2019
दिन बृहस्पतिवार
विषय कर्म
रचयिता पूनम गोयल
कर्म की महिमा
जाने संसार ।
कर्म से अच्युत
जीवन बेकार ।।
भगवदगीता में है
कर्म-ज्ञान का भंडार ।
जिसे अर्जित कर ,
मनुष्य का , हो जाए बेड़ा पार ।।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा
कि हे मानव , तू कर्म किए जा ।
और उसके फल की चिंता
तू मुझ पर छोड़ता जा ।।
परन्तु यह हठी मानव
उचित फल की प्रतीक्षा में ,
बार-बार अपने
यथोचित कर्म से विमुख हो जाता है ।
एवं अनजाने में सही ,
एक के बाद , एक अनुचित कार्य कर देता है ।।
समझ कर कर्म की मर्यादा को ,
उसे हर काज करना चाहिए ।
भले ही कठिन हों
जीवन की राहें ,
पथ पर अपने उसे
संभल कर चलना चाहिए ।।
कर्म का मर्म
समझाती है गीता ।
धर्म पथ पर
कर्म को लाई हैगीता ।
विना कर्म के
जीना भी दुश्वार हुआ
उस जी्वन का
निस्तरण बतलाती है गीता।
सत्य की असत्य पर
विजय को दर्शाती है गीता ।
ज्ञान से विज्ञान तक
हमें ले जाती है गीता ।
मृत्यु पर अमृत्व के
रहस्य को समझाती है गीता ।
कर्म का अधिकार है
मानव तुझे केवल यहां पर
फल मिलेगा एक दिन
अवश्य ही कहती है गीता ।
स्वरचित :-उषासक्सेना
समझाती है गीता ।
धर्म पथ पर
कर्म को लाई हैगीता ।
विना कर्म के
जीना भी दुश्वार हुआ
उस जी्वन का
निस्तरण बतलाती है गीता।
सत्य की असत्य पर
विजय को दर्शाती है गीता ।
ज्ञान से विज्ञान तक
हमें ले जाती है गीता ।
मृत्यु पर अमृत्व के
रहस्य को समझाती है गीता ।
कर्म का अधिकार है
मानव तुझे केवल यहां पर
फल मिलेगा एक दिन
अवश्य ही कहती है गीता ।
स्वरचित :-उषासक्सेना
विधा-हाईकु
विषय- कर्म
१
कर्म औजार
खुशियों का आधार
कटते दुख
२.
कर्म के तार.
बनकर व्यापार.
पूर्ण सपने
३
सोच विचार
मिलते हैं सबको
कर्म के फल
४
कर्म की नाव
सत्य की पतवार
जीवन पार
५
कर्म अक्षर
पुस्तक है जीवन
ईच्छा कलम
६
कर्म सूरज
करते उजियारा
चमके भाग्य
७
आलसी जन
दूसरों पर आस
कर्म से भागे
स्वरचित-रेखा रविदत्त
3/1/19
विषय- कर्म
१
कर्म औजार
खुशियों का आधार
कटते दुख
२.
कर्म के तार.
बनकर व्यापार.
पूर्ण सपने
३
सोच विचार
मिलते हैं सबको
कर्म के फल
४
कर्म की नाव
सत्य की पतवार
जीवन पार
५
कर्म अक्षर
पुस्तक है जीवन
ईच्छा कलम
६
कर्म सूरज
करते उजियारा
चमके भाग्य
७
आलसी जन
दूसरों पर आस
कर्म से भागे
स्वरचित-रेखा रविदत्त
3/1/19
* कर्म *
(1)
मिला जीवन
कर्म से पहचान
आत्मसम्मान
(2)
कर्म प्रेरणा
करो नि:स्वार्थ सेवा
मानव धर्म
(3)
कर्म सुमन
ईश्वर को अर्पित
मिटे अहम
(4)
अच्छे हो कर्म
मिले स्वर्ग में स्थान
प्रभु शरण
(5)
ये देश प्रेम
सैनिक का है कर्म
परम धर्म
(6)
कर्म है पूजा
जीवन का आधार
सच्चा हो पथ
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
(1)
मिला जीवन
कर्म से पहचान
आत्मसम्मान
(2)
कर्म प्रेरणा
करो नि:स्वार्थ सेवा
मानव धर्म
(3)
कर्म सुमन
ईश्वर को अर्पित
मिटे अहम
(4)
अच्छे हो कर्म
मिले स्वर्ग में स्थान
प्रभु शरण
(5)
ये देश प्रेम
सैनिक का है कर्म
परम धर्म
(6)
कर्म है पूजा
जीवन का आधार
सच्चा हो पथ
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
कर्म से ही होती उन्नति,
कर्म से ही होती प्रगति।
कर्म ही से हों सपने साकार,
कर्म ही जीवन का है आधार।
कर्म से ही व्यक्ति की हो पहचान,
कर्म से ही है मानव की है शान।
कर्म से ही जागे स्वाभिमान,
जागे स्वावलंबन का भाव महान।
कर्म ही धर्म,कर्म ही पूजा,
कर्म से बढ़कर कोई न दूजा।
सत्कर्म करें मानवता का प्रसार,
दुष्कर्म से हो मानवता का संहार।
कर्म से पुरूषार्थी भाग्य बनाए,
कर्महीन दुर्भाग्य को रोता जाए।
कर्म मनुष्य को कर्मठ बनाए,
कर्महीन जीवन को बोझ बनाए।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
"शीर्षक-कर्म"
कर्म है जीवन का दूसरा नाम
राजा हो या रंक, कर्म है प्रधान
लाभ हानि का न करें परवाह
कर्म हो उतम,तभी हम महान
दुःशासन का दुष्कर्म कर दिये
पूरे वशं का सत्यानाश
इस मर्त्यलोक मे रखे सदा
अपने कर्मों का ध्यान
करें हम सत्यकर्म सदा
हो अपना व जग का भला
सोच हो सही, तो कर्म भी सही
ये तो हम जाने सभी
चिंतन,मनन,ध्यान से होते है
हमारे कर्म मे सुधार
गर रखे हम अपने कर्मो का लेखा जोखा
सुधर जाये कर्म हमारा।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
कर्म है जीवन का दूसरा नाम
राजा हो या रंक, कर्म है प्रधान
लाभ हानि का न करें परवाह
कर्म हो उतम,तभी हम महान
दुःशासन का दुष्कर्म कर दिये
पूरे वशं का सत्यानाश
इस मर्त्यलोक मे रखे सदा
अपने कर्मों का ध्यान
करें हम सत्यकर्म सदा
हो अपना व जग का भला
सोच हो सही, तो कर्म भी सही
ये तो हम जाने सभी
चिंतन,मनन,ध्यान से होते है
हमारे कर्म मे सुधार
गर रखे हम अपने कर्मो का लेखा जोखा
सुधर जाये कर्म हमारा।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
कर्म ही होता,संपूर्ण जगत की उन्नति का सार।
विश्व विदित यह बात है ,कर्म ही बनता जीवन सार।।
रीते हाथ जीव आते ,लेकर शून्य विचार।
शिक्षा के द्वारा फिर, उद्गम होते उच्च विचार ।।
दुष्कर्मों पर दंड दिलाकर ,दुनिया करती है तिरस्कार।।
सत्कर्मों पर पुरस्कृत कर,दुनिया जाती उस पर वार।।
सत्कर्मों की सीढ़ी बनती,
जीव प्रगति आधार ।
गुण -अवगुण से ही उसे, मिलता सबका प्यार।।
प्रकृति लुटाती दुनिया में ,अपना वैभव अपरंपार ।
कर्म योग से ही मिलता ,उसका अतुलित प्यार।।
मनीष कुमार श्रीवास्तव स्वरचित रायबरेली
कर्म
1
करो सत्कर्म
आत्मा होती पवित्र
नहीं अधर्म
2
धरती माता
कर्म है गति शील
होती विधाता
3
है कर्म गति
सर्वश्रेष्ठ आधार
मिले संसार
4
कर्म सफल
ईश देते है फल
बने महल
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
1
करो सत्कर्म
आत्मा होती पवित्र
नहीं अधर्म
2
धरती माता
कर्म है गति शील
होती विधाता
3
है कर्म गति
सर्वश्रेष्ठ आधार
मिले संसार
4
कर्म सफल
ईश देते है फल
बने महल
कुसुम पंत उत्साही
स्वरचित
देहरादून
विधा .. लघु कविता
******************
🍁
रसवन्ती सी लजवन्ती सी,
सुन्दर सी इक नार।
कमल पंखुडी अधर खुले थे,
नैना तनिक विशाल॥
🍁
बलखाती सी इठलाती वो,
चले मोहिनी चाल।
बडे-बडो के कर्म बिगड गये,
नैना तीर कमान॥
🍁
मधुर कोकिला केशु घटा से,
स्वर्ण भस्म की ताप।
जो भी देखे विस्मृत हो वो,
ऐसी थी मुस्कान॥
🍁
क्या तुमने देखा है सच मे,
ऐसी सुन्दर नार।
शेर कहे वो स्वर्ग अप्सरा,
रम्भा जिसका नाम॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
******************
🍁
रसवन्ती सी लजवन्ती सी,
सुन्दर सी इक नार।
कमल पंखुडी अधर खुले थे,
नैना तनिक विशाल॥
🍁
बलखाती सी इठलाती वो,
चले मोहिनी चाल।
बडे-बडो के कर्म बिगड गये,
नैना तीर कमान॥
🍁
मधुर कोकिला केशु घटा से,
स्वर्ण भस्म की ताप।
जो भी देखे विस्मृत हो वो,
ऐसी थी मुस्कान॥
🍁
क्या तुमने देखा है सच मे,
ऐसी सुन्दर नार।
शेर कहे वो स्वर्ग अप्सरा,
रम्भा जिसका नाम॥
🍁
स्वरचित .. Sher Singh Sarraf
विधा- सायली छंद
**प्रार्थना**
कर्म
सदा हों
बस प्रभु मेरे
जीवन में
निष्काम
ऐसे
कर्म करू
ध्याकर प्रभु तुमको
सबका रक्खूं
ध्यान
कभी
किसी को
दुःख न पहुँचे
कर्मो के
परिणाम
बस
करके मैं
शुभ कर्मों को
ही पाऊँ
आराम
~प्रभात
स्वरचित
**प्रार्थना**
कर्म
सदा हों
बस प्रभु मेरे
जीवन में
निष्काम
ऐसे
कर्म करू
ध्याकर प्रभु तुमको
सबका रक्खूं
ध्यान
कभी
किसी को
दुःख न पहुँचे
कर्मो के
परिणाम
बस
करके मैं
शुभ कर्मों को
ही पाऊँ
आराम
~प्रभात
स्वरचित
No comments:
Post a Comment