Wednesday, January 16

"सूर्य/दान "15जनवरी2019

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15/1/2019
"सूर्य/दान"
1
अनाथालय,
पूर्ण है,
उतरानों,दानों से।
सोचती हूँ,
खाली हाथ जा,
प्रेम दान कर दूँ,
सिर पर ,
हाथ फेर दूँ।।

2
सूर्य प्रतिभा
छन कर निखरे
ऊर्जा का स्त्रोत

वीणा शर्मा वशिष्ठ


शुभ मुहूर्त
सूर्य उत्तरायण
दान का पर्व


आयी खिचड़ी
तिलवा ढूंढ़ी लायी
फसल नयी।।।

आयी लोहिड़ी
बदलती संक्रांति
पर्व महान।।

पोंगल आया
लाया नूतन धान्य
मन हर्षाया।।

बीहू मनायें
सब खुशी में गायें
अन्न पूजन।।

उड़ी पतंगें
रंग बिरंगा नभ
लूटते बच्चे।।

अन्न का दान
करो कर्म महान
पर्व सम्मान।।।
भावुक

धनु राशि मकर राशि मे
रवि रश्मियां प्रवेश करे
दक्षिण दिश उत्तरायण भानु
मकर संक्रांति पर्व मने
अन्न वसन तिल दान महत्व
चावल मूंग मिश्रित खिचड़ी
सुहागन सुहाग दान वस्तु दे
लख हीरे जड़ित नव चूड़ी
रंग बिरंगी उड़े पतंगे नभ
छत कोलाहल का शौर
गोप गोपियां डीजे नाचे
कोई न होता दिनभर बोर
तिलपट्टी और गजक रेवड़ी
पालक मटर गरम पकोड़े
गुड़ तिल के मधुर मोदक दे
सुस्वागत हाथों को जोड़ें
प्रयागराज अर्ध कुंभ में
गङ्गा यमुना सरस्वती संगम
भक्तिभाव से मिलकर नहाते
दृश्य अद्भुत बड़ा विहंगम
नये वर्ष का प्रथम पर्व यह
भारतवंशी अति गर्व है
हंसीखुशी उल्लासित मन
उत्साही नर नार सर्व है
सूरज की लाली नभ पर
रोग शौक धरती के हरती
शस्यश्यामला वसुंधरा पर
बासन्ती शुभ जीवन भरती।।
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

दान की महिमा जान दान से मिले जन्नत
आज किया जो दान कल करेगा उन्नत ।।
माँगे मिले न भीख सीख ये है सच्ची
दान से कटते पाप उन्नति रहे अनवरत ।।

दान की महिमा सबने गायी
हिन्दू मुस्लिम हो या ईसाई ।।
श्रष्टि की हर शय समझाये
परहित काज ये काया पायी ।।

सबमें है सामर्थय दान की 
हर रचना विधि विधान की ।।
हम ही भूले करें नही गौर 
सुने न कोई बात ज्ञान की ।।

इतिहास हमारा भरा पड़ा है
गुप्तदान अब नही रहा है ।।
चार कन्या क्या जिंमाईं 
चार लोगों का फोटो डला है ।।

हैं दान धर्म तीर्थ सब काज
मगर नही है लोक लिहाज ।।
परमसत्ता पर विश्वास नही
सब्र न 'शिवम'जरा सा आज ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्'
स्वरचित 15/01/2018
"दान/सूर्य"
1
पूण्य लालसा
शीत को लाँघकर
संक्रांति स्नान
2
मकर राशि
खिचड़ी की संक्रांति
रवि प्रवेश
3
पूस पार्वण
आहार बहुरंगी
पिठा व पूल्ली
4
प्रयाग स्नान
रहा मन का मैल
पूण्य कामना
5
सच्ची संक्रांति
सुविचारों से स्नान
मन की शुद्धि
6
मन का मैल
यदि धो पाते हम
संक्रांति स्नान
7
आशा की डोरी
संक्रांति की उमंग
उड़ी पतंग
8
दूर गगन
जागा मन तरंग
संग पतंग
9
त्याग कुबुद्धि
महाकुंभ का स्नान
सच्ची है दान
10
सूर्य सा तेज
जग को दे प्रकाश
स्व जलकर
11
तिल का दान
है मकर संक्रांति
मन की शांति
12
सच्ची संक्रांति
बेसहारा को दान
बना संबल
13
सूर्योपासना
महाकुंभ प्रयाग
संक्रांति स्नान
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल


मुक्तक-
सूर्य (विज्ञान से हट कर शिकायती तौर पर)
सूर्य देव हो तुम अग जग के आक्रांतित सारी जनता है।
आज मकर पर काल कर्क पर नियमित क्रम चलता रहता है ।
ठण्डी की भरमार है इतनी ठिठुर रहा है प्राणि वर्ग सब,
इन्सां हो तो सब कुछ कहलें पर तुम पर क्या वश चलता है।।

दान🌻🌴🌻
जाप प्यार का करते-करते बीती उम्र मेरी लखटकिया ।
मैंने बार-बार चक्खी है कम मीठी तेरी तिलकुटिया ।
प्रेम ज़ुबाँ पर नफ़्रत दिल में ऐसा दान नहीं फलदायक,
टूट रहा है मन का साहस तेरा है विधान अटपटिया ।।

स्वरचित-'अ़क्स' दौनेरिया

करते है नमन 
सूर्य देवता तुम्हें 
सम्पूर्ण सृष्टि को
करते ऊर्जावान 
देते प्रकाश और
बनाते कर्मप्रधान 

उत्तरायन और दक्षिणायन 
देख चमत्कार 
विश्व ने किया तुम्हें 
नमस्कार 

तिल गुड का 
मानवता को है संदेश
कड़वी तिल भी 
हो जाती मीठी 
मिल गुड के साथ

मूँग दाल और चावल
माल कर खिचडी का
मिलन यू हो
मिट जाऐ सब भेदभाव 

हर नदी तालाब झील पर 
दे रहे आराध्य सूर्य देव को
दान दे तिल लड्डू और
खिचड़ी का 
करें अपना जीवन सफल

स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल


प्रेरणा सूर्य से दान की हम जो लें, तो मुक्कदर सभी के संवरते रहें ,

मन में अपना पराया जो कुछ न रहे, फूल चमन में खुशियों के खिलते रहें ,

हम चाहत किसी से कुछ भी न करें, अपना सब कुछ जहाँ पर लुटाते रहें ,

हम जीवन में जो नियमों से भी जुड़ें, रास्ते फिर सभी के संवरते रहें ,

हम उर्जा उत्साह में डूबे रहें, दशों दिशाओं को रोशन करते रहें ,

दुख की परछाईं औरों पै पडने न दें , हम अकेले ही राहु-केतु से लडते रहें ,

छवि अपनी धूमिल होने न दें, प्रेरणा स्रोत बनकर सदा हम रहें ,

जिदंगी और निखरती जो तपते रहें, हम संदेश सभी को ये देते रहें |

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,

विषय-सूर्य/दान
1.सूरज
निज ताप से
पोर-पोर पिघलता है
जग में उजास के निमित्त
अंग-अंग जलता है
खाक होने की लालसा
या,निशा से मिलने को
मन इतना मचलता है
विश्राम-तपन का निदान
पुनः जगत को नवल विहान
सूरज होना भी कहाँ आसान
निज अस्तित्व का दाह
जग में उजियारा की चाह
वो,निर्धन जन भी सूरज है
दिन भर तपता है,तड़पता है
बस यूँ ही समिधा संधान में
भागते हुए मरता,खपता है

2.दान
संगम तट
कुम्भ स्नान
सूर्य को अर्घ्य
दीप दान
एक डुबकी और
करे अहंदान
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित


रख भाव दया,दान का,
ना हो भाव अभिमान का।
है पर्व संक्रांति पावन,
कर त्याग तेरे अज्ञान का।

काट पतंग लोभ,मोह की,
थामकर मांजा प्रीत का।
खुशियों की तू लूट पतंग,
है ये पर्व हर्षोल्लास का।

पतंग सी हो उड़ान तेरी,
निश्चल हो जब स्वभाव तेरा।
कर दान कुछ जरूरतमंद को,
होगा नया एक प्रभाव तेरा।

स्वरचित :- मुकेश राठौड़
स्नान,दान का पर्व है ,
मकर संक्रांति।
सूर्य उपासना का पर्व है,
मकर संक्रांति।

चावल,दाल,गुड़, 
तिल का दान करो।
जितनी है औकात,
उतना दान करो।

दान की कोई सीमा,
होती नहीं जग में।
जितना हो मन,
उतना दान करो।

गरीबों को भोजन कराओ।
खिचड़ी खाने को दो।
जितनी हो सके उतनी।
खुशियाँ उनकी झोली में भर दो।

दान, धर्म का महत्त्व।
सदा रहा है इस जग में।
अपने देश की संस्कृति है ये।
इसको फैलाओ जग में।
💐💐💐💐💐💐💐💐
धन्यवाद
🌸🌸🌸
वीणा झा
स्वरचित
बोकारो स्टील सिटी

============
(1)सूर्य रश्मियां
आगमन के साथ 
लाती प्रकाश 
🌹🌹🌹
(2)सूर्य से सीख 
कभी ना करे छुट्टी 
जीवन घुटी
🌹🌹🌹
(3)सर्दी का कत्ल 
कर देता है सूर्य 
आते ही ग्रीष्म 
🌹🌹🌹
(4)सूर्य की बेटी 
धूप करे आराम 
पेड़ की छाँव 
🌹🌹🌹
(5)सूर्य का रथ
बैठ करे किरणें 
धरा की सैर 
🌹🌹🌹

स्वरचित 
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश 
15/1/2018

दान की प्रथा बडी पुरानी, 
इसकी महिमा कह गये ज्ञानी, 

खाया पिया अंग लगेगा, 
दान किया संग चलेगा, 
बचे हुए पर जंग चढ़ेगा |

दान भाव नि:स्वार्थ हो, 
परमार्थ के साथ लोकार्थ हो, 
दान के हैं विविध प्रकार,
अन्न दान, औषध दान, अंग दान, 
ज्ञान दान और अभयदान |

एक हाथ से दिया दान,
हजारों हाथों से लौटेगा,
मन को आनंद मिलेगा, 
पुण्य खूब लगेगा, अंतत:
मोक्ष का मार्ग खुलेगा |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*


हाइकु-
१)-
किशोर सूर्य
अनुपम माधुर्य
खिलती भोर
२)-
जाड़े की भोर
ठिठुरता जीवन
मद्धम सूर्य
३)-
जागृत भोर
टुकड़ा भर धूप
चहके मोर
४)-
सूर्य मद्धम
शीत लिपटी धूप
क्लांत जीवन
५)-
थकता सूर्य
दृशय है अलबेला
साँझ की बेला
६)-
घृणा के सूर्य
दहकता जीवन
बेसुरे तूर्य
७)-
छाँव कीकर
तमतमाता सूर्य
घर-बाहर
८)-
स्वप्न वीथिका
अनंत सूर्य दीप्ति
सत्य प्रतीति
#
पिरामिड -
१)-
है
दान
प्राचीन
समीचीन
प्रसिद्ध रीति
मानवता प्रीति
परम्परा प्रतीति
२)-
ये
दान
साधन
खिन्न मन
करो प्रसन्न
खुशियाँ बाँटने
स्मृतियाँ समेटने
#,,, _
मेधा.
"स्वरचित"
-मेधा नरायण.


ग़ज़ल,
बादलों की तरह बढ़ते चल,

सूरज की तरह ढलते चल।।।१।
ग़म के फसाने पढ़ते चल,
मंजिल पे नज़र रखतें चल।।२।।
जीवन का पैगाम बहुत है,
जिदंगी से निंबाह करतें चल।।३।।
सुनते रहो लोग जो कहते,
किस्मत अपना खुद लिखते चल।।४।।
बैठे बैठे सोच रहा,
खुद में खुद को ढूंढ ते चल,।।५।।
इस संसार में प्यार ही फले,
रब से देवेन्द्र दुआ मांगते चल।।६। श्रृं
देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।

सूर्य तुम्हारा जलना मैंने देखा है,
सूर्य तुम्हारा ढलना मैंने देखा है,
घने बादलों की घेराबन्दी से,
हँसकर निकलना मैंने देखा है।

तुम अपने अस्ताचल में, संध्या का श्रंगार करते,
उसको सुन्दर लाली देकर, अपना थोड़ा प्यार भरते,
तुम भूलते अपनी गर्मी, संध्या में खोकर खुद को,
उस नवेली संध्या का सुन्दर सुन्दर विस्तार करते।

सुबह सुबह फिर आकर, एक नया वेश लेते हो,
नई नई उर्जा देकर, नया संदेश देते हो,
ऊषा के अलौकिक ऑचल में,
उमंग और आशा के परिवेश देते हो।

सूर्य तुम तो प्राण के भी प्राण,
तुम्हारे बिना होगी हर चीज निष्प्राण,
तुम स्वाभाविक ही देते , कई विपदाओं से त्राण,
तुम्हारा तेज तो होता,कई रोगों पर बाण।


(1)
है
सूर्य 
किरण 
उल्लासित 
उत्तरायण 
मकर गमन
दान कार्य उत्तम 

(1)
है 
सूर्य 
संक्रांत
प्रसन्नता 
गंगा महत्व 
दुःख का क्षरण
मन पाप हरण

-- रेणु रंजन 
( स्वरचित )
15/01/2019

सूरज है महान 

सौर मण्डल में रूतबा पिता 
सब ग्रहों को साथ घुमाता
अनुशासन का पाठ पढ़ाकर
करे ऊर्जा आहवान ,सूरज है महान

सूरज से ही बादल बन पाते
धरा की गोद, फूल खिल आते
तम को हर, ऊर्जा को भरता
धरा को देता प्राण, सूरज है महान

सूरज से ही हम दृष्टि पाते
सृष्टि सुन्दरता की सुध पाते
चन्द्रमा को चाँदनी देता
जलना जिसका काम ,सूरज है महान

सूरज ग्रहण क्षणिक आ जाता
जीवन सुख-दुःख को समझाता 
निर्लिप्त भाव से चलता रहता
करता ऊर्जा दान, सूरज है महान

स्वरचित 
ऋतुराज दवे
(१)
दें
दान
अनाथ
पुण्य धर्म
पावन पर्व
मकर संक्रांति
सुखी सब जीवन
(२)
हो
धर्म
सफल
शुभ कर्म
जीवनदान
महान कल्याण
मानवता प्रसन्न

***अनुराधा चौहान***स्वरचित

ओ आलोकनिधि हे रविकर 
झर झर नित प्रखर 
रश्मि कर

कनक सी सुनहरी रश्मियाँ 
आप्लावित करती हैं धरा
निशी के अश्रु मोती 
बटोर 
सकल सृष्टि को कर उज्ज्वला

जननी जन्मभूमि अनुग्रहित
हरते तमस नित ही दिवाकर

झर झर----

सकल सृष्टि के मन प्राण हो
आदित्य तुम परम ज्ञान हो
तुम बिन बरखा ना बरसे
मानव जीवन को तरसे

तुमसे चहुँ ओर आलोकित 
नमन है ज्योतिर्मय 
भास्कर 
झर झर---'

क्रियान्वित होता जग तुमसे
नियमित है तेरी साधना
उदय -अस्त की माला जपते
परिक्रमा करती है वसुधा 

हे ब्रम्हाण्ड के दिव्य पुंज
आराध्य विश्व के तुम प्रभाकर 
झर झर--

तुम सा नहीं दाता कोई उर्जा नवल लाता कोई 
बिन प्रतिसाद रौशनी बाँटे
त्याग समर्पण लुटाता कोई 

हे कर्मवीर हे दानवीर
अद्वितीय सदा श्रेष्ठ प्रवर

सुधा शर्मा 
राजिम छत्तीसगढ़ 
15/1/2019
देखो आया संक्रांति त्यौहार, 
देदो सूर्य को अर्घ्य आज, 
आज का दिन है बड़ा विशेष, 
नई फसल का हुआ आगाज l

कही पर पोंगल, कही बिहू 
नाचे रहा मनवा पीहू पीहू, 
कही संक्रांत कही लोहड़ी, 
है त्योहारों की अप्रितम जोड़ी l

रहते अब तक शनि के साथ, 
सूर्य की किरने बनी अमृत आज l
भीष्म पिता मृत्यु शैया पर लेटे l
आज के दिन ही मृत्यु पायी l

दान जो आज खूब करे, 
ईश्वर उसको सफल करे, 
तिल और गुड़ से बने मिठाई, 
देखो मकर में सूर्य गए भाई l
कुसुम पंत उत्साही 
स्वरचित 
देहरादून

सूर्य किरणें
सुनहरी मुस्कान
धरती चूमें

उत्तम दान
सूर्योदय में स्नान
मोक्ष मिलता

उगता सूर्य
मनमोहक दृश्य
हर्षित मन

सूर्य प्रणाम
व्ययाम अपनाकर
निरोगी काया
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
15/1/19
मंगलवार


है
सूर्य
पालक
संचालक
संसार-सृष्टि
जीवन-आधार
अंधकार-संहार।

है
दान
महान
परमार्थ
परोपकार
मानव-कल्याण
समत्व का प्रसार।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित


लगी प्रकृति मुस्काने
पीली-पीली सरसों लहराने
बसन्त का आगमन
खेतों में हरियाली
सर्दी अब जाने को हुई
तिल-तिल दिन भी लगे बढ़ने
लाल, नीली, हरी, नारंगी
पतंगों से आसमान 
हुआ सप्तरंगी
पतंग की डोर
पिया की याद 
उठ रही मन मे हिलोर
मूंगफली तिल संग गुड़ की मिठास
प्यार और स्नेह से भरपूर
अपनेपन का अहसास
नई उमंग और साहस का प्रतीक
#सूर्य की आराधना
करें पुण्य-#दान
जल चढ़ाते #सूर्य देव को
करते गंगा स्नान
कहीं पोंगल तो कही माघी
कोई कहे बिहु तो कहीं खिचड़ी
ये है मकर सक्रांति का त्यौहार
भर दे जीवन में उल्लास
मिलकर सारे खुशियां बांटे
और बांटे प्यार

बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा
सुर्य की तरह जलकर,
नीत ज्ञान प्रकाश फैलाएं।
लक्ष्य एक ही हो हमारा,

अज्ञान को समूल मिटाएं।।

प्रेम,दया, सद्भाव का,
हरओर झंड़ा फहराएं।
उमंग, आनन्द, संस्कार का,
घर घर में दीप जलाएं।।

तितलियों सी पलकों पर,
रंग-बिरंगे ख्वाब सजाएं।
पंखुड़ियों से लबों पर,
मासुम मुस्कान सजाएं।।

सारा जहां है हमारा,
यही सोच कर कदम बढाएं।
लोभ, क्रोध, घृणा को,
हर दिल से दूर भगाएं।।
निलम अग्रवाला, खड़कपुर

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