Saturday, January 12

"सरगम "11जनवरी2019

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"सरगम"
1
कविता साज
शब्दों की सरगम
रचते राग।।
2
सुरीला मन
श्वासों की सरगम
खिलता तन।।

वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित
विधा - छंद मुक्त

सरगम 
सात सुरों की 
सजती 
सागर से गहरे
हृदय की अतल गहराइयों में
कभी बज उठते तार
मन वीणा के
कभी लबों को सजाती
गीत बन कर
आरोह अवरोह से
सजी सरगम
इजहार करती
प्यार का
सुख का, दुख का
कभी इसी 
सरगम के सुर
प्रभु चरणों में पहुंचाते
आंखें स्वतः बन्द हो जाती
डूब जाते
संगीत साधना में
हो जाती फिजायें भी 
संगीतमय
मन प्राणों को
सींच देती है
सरगम

सरिता गर्ग
स्व रचित



विधा- कविता(स्तुति)
************
सात सुरों से बनी है सरगम, 
मन में उठने लगी तंरग, 
तेरी वीणा ने तान जो छेड़ी,
माँ मंत्रमुग्ध हो गये सब जन |

वीणा वादिनी तू कहलाये, 
हंसवाहिनी भी तू कहलाये ,
श्वेतांबर पहने,श्वेत कमल पर विराजे,
माँ तेरी छवि मेरे मन में बस जाये |

जब जब वीणा माँ तू बजाये,
सुन्दर सरगम की साज छिड़ जायें, 
एक-एक सुर में मिठास बहुत है, 
कानों में मिस्री घुल जाये |

कितनी सुन्दर छवि है तेरी, 
दर्शन दे दो,न कर माँ देरी,
बारम्बार है तुझे प्रणाम🙏
सुख-समृद्धि का दो माँ वरदान |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*
*सरस्वती वंदना*

हों गीत मेरे, संगीत भरे ।
लय ना लय हो, #सरगम मुखरे ।

माँ शारदा विनती करूँ तुझ से ।
हों ये गीत अनूप, अटल-ध्रुव से ।
मेरे गीतों को आशीष दे माँ ।
ये मोहन हों, मुरली को धरे ॥1॥
लय ना लय हो #सरगम मुखरे ॥

आशा की किरण,भर दूँ सब में ।
प्रतिभा निखरे, मांगू रब मैं ।
रेखा चिंता की, सबकी हरूँ ।
ये गीत मेरे, दीपक से बरे ॥2॥
लय ना लय हो, #सरगम मुखरे ।

ममता से भरे, मेरे गीत सरल ।
वर्षा हो सुधा की, न कोई गरल ।
करूँ वंदना मैं, मेरे गीत सभी ।
हो रेणु-रजत, सुरभि बिखरे ॥3॥
लय ना लय हो, #सरगम मुखरे ।

मेरे गीत बने, सुंदर नागर ।
छलके ना फूहड़ता गागर ।
शालीन हों ये, लवलीन बनें ।
मेरी गीत लता, में श्वेता फरे ॥4॥
लय ना लय हो, #सरगम मुखरे ।

मेरे छंद नवीन, ग़ज़ल पारस ।
सरिता के किनारे, ज्यों सारस ।
करूँ साधना यूँ, गरिमा पाऊँ ।
मैं प्रवीण बनूँ,तू मुझे जो वरे ॥5॥
लय ना लय हो, #सरगम मुखरे ।

हों गीत मेरे, संगीत भरे ।
लय ना लय हो, #सरगम मुखरे ।

स्वरचित एवं मौलिक रचना
©®🙏
-अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'
छिंदवाड़ा मप्र

सुर गति ताल लय सरगम 
गीत मधुमय कवि सर्जना
सप्त सुरी अद्भुत संगम से
सजती सजनी स्नेह सजना
वाद्य यंत्र सुनियोजन से
गीतों में अद्भुत सुर भरते
बातें करते आसमान नित
खगरव चहक चहक चहकते
मीरा के गीतों की सरगम
गरल पीकर अमर बनाती
मेरे तो गिरधर गोपाल हैं
बन कृष्णमय गीत सुनाती
सरगम से मोहित होकर ही
जग कहलाया बिरजू बावरा
झनक झनक पायल स्वर में
नित रास रचावे प्रिय सांवरा
बिन सरगम के गीत नहीं है
बिन सरगम जगत सब सूना
सरगम से संचालित जीवन 
सुख भरता धरणि पर दूना।।
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम्
कोटा,राजस्थान।

तुम क्या हँसे जैसे बजे दिल के तार 
सांसों की सरगम से निकले अशआर ।।

तुम हो जैसे मेरे मन की वीणा 
मन के इस मंदिर में तुमसे बहार ।।

गीत भी तुम्ही संगीत भी तुम्ही
मेरी शायरी का तुम हो किरदार ।।

बजती न जो यह सरगम सुरीली
लगता इन गीतों का कैसे अंबार ।।

रोज नई सरगम है रोज नये गीत 
ओ मेरे मीत यह कैसा चमत्कार ।।

दैवी ही तुमको कहूँ मैं ''शिवम"
प्यार एक पूजा खुशी है अपार ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 11/01/2018

विधा .. लघु कविता 
************************

🍁
पूर्ण चन्द्रमा मे हुआ, बरखा जो इस रात।
चाँदनी की किरणे गिरी, मन पर बन कर पात।

🍁
तपते तन पे जो गिरी, उड गयी बन के भाप।
सगरगम की रस ध्वनि बजी, बूँदो मे थी ताल।

🍁
ऐसे मे आ प्रियतमा , कर ले नयना चार।
अधरो पर मुस्कान ले, अधरो के समताप।

🍁
भावों के मोती गिरे , टूट- टूट के हाय।
कहती है मन कामिनी, दामिनी अंग समाय।

🍁
कैसे बोले शेर सब , कुछ तो मन को भाप।
पूर्ण चन्द्रमा मे हुआ, बरखा जो इस रात।


🍁

स्वरचित ... Sher Singh Sarraf
सात सुरों से मिलकर। बनता है सरगम।
मन वीणा के तार बजे जब।
रचता है सरगम।

सुंदर सरगम से होती है।
प्रभु की उपासना।
आँखे मूँदकर गर स्मरण करो।
तो बजती है खुद मन वीणा।

समन्दर की लहरों में सुनो।
सात सुरों का सरगम।
मद्धम, मद्धम पवन चले जब।
बज उठता है सरगम।।

सरगम करता प्रफ्फुलित मन।
कराता हरि के दर्शन।
सरगम से हीं जीवन में है।
खुशियों का आगमन।।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
वीणा झा
स्वरचित
बोकारो स्टील सिटी


ताक धिना धिन नाचे जिंदगी सात सुरों की सरगम पर ,

नवरस से परिपूर्ण है दुनियाँ किस्मत सबकी चाहत पर ,

श्रृंगार वात्सल्य भरपूर ही रहता रहे भरोसा नजरों पर ,

सरगम बन जाती दिल की धड़कन बने हुए माहौल पर,

जीवन साज बजाने वाला जितना रखे नियंत्रण तारों पर ,

सरगम संचालित होती है बिखरे मधुर ध्वनि जीवन पर ,

अपनों का साथ सहयोग प्यार कसे तार मन बीणा पर ,

ढीला जब कोई तार हुआ ध्वनि सिमट गई उन्माद पर ,

बसा घरबार गया विश्वास गया विवाद हुआ हर बात पर ,

उलझन विषाद घृणा क्रोध ने पैर जमाये मष्तिष्क पर ,

नफरत द्वेष आतंक हत्या जैसे फैलें अपराध अस्मिता पर, 

जीवन की लय बाधित न हो सरगम छायी रहे मन के नभ पर ,

समर्पण त्याग प्यार उत्साह सुर सजते रहें मन सरगम पर |

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,

िधा=हाइकु 
🌷🌷🌷

(1)चली हवाएं
सुनाती सरगम 
बसंत ऋतु 
🌷🌷🌷
(2)नृत्य करते 
सरगम की धुन 
सुन के श्रोता
🌷🌷🌷
(3)मेरी तुम्हारी 
श्वासों की सरगम 
ईश्वर पास 
🌷🌷🌷
(4)माँ सरस्वती 
सरगम साधना
सच्ची है भक्ति 
🌷🌷🌷
(5)कोई ना गम 
उसके ही जीवन 
है सरगम 
🌷🌷🌷
स्वरचित 
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश 
हर घर आंगन,
रंगमंच है,

हर एक सांस,
कठपुतली,
प्यार सि॰र्फ वह डोर,
जिस पर,
नाचे बादल,नाचे बिजली,
मैं तो यही कहूंगा,
प्यार नहोता तो,
जग सारा बंजर होता,
दुख से सब बस्ती कराहती,
लपटों से हर फूल झुलसता,
करूणा ने जाकर,
नफ़रत के आंगन को,
बुहारा नहोता,
हर मौसम,
सुख का मौसम है,
अगर हवा में,
प्यार घुला हो,
एक कली की अंगड़ाई से,
सारा बाग महक जाता।
प्रेम के वियेना,
तपे वसुधा,
प्रेम के लिए,जले दीया,
कौन हृदय है नहीं प्यार की,
जिसने पढ़ीकहानी हो,
नफ़रत जब तक,
राज करती रही,
सबका सब सरगम, 
मातम है,
राही है सब एक डगर के,
सब पर प्यार लुटाता चल,
सात सुरों के सरगम में,
प्यार के गीत गाता चल,
जिदंगी के गीत गाता चल।।
देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।


संगीत के सप्त स्वर,
सुर-ताल-लय का संगम,
आरोह-अवरोह गतिक्रम,
हृदय -भावों का स्पंदन,
छेड़ता है राग मधुर,
बनके जब गीत मुखर,
गूंज उठती है मधुर सरगम।।
वीणा की झंकार में,
बांसुरी की तान में,
मृदंगों की थाप में,
शहनाई की धुन में,
स्वर के आलाप में,
कवि हृदय के विलाप में,
सरगम ही सरगम है।।
धड़कन की गति में,
सांसों की तान में,
जीवन की लय में,
भावों के स्पंदन में
सरगम ही सरगम है।।
सागर की तरंगों में,
गिरते हुए निर्झरों में,
नदिया की कल-कल में,
बहती हुई पवन में,
सरगम ही सरगम है।।
गृहणी के कार्यों में,
शिशुओं की क्रीड़ाओं में,
कदमों की ताल में
संसार की हर शय में,
गतिमान सरगम है।।
व्यथित हृदय की पुकार में,
भावों के उतार-चढ़ाव में,
कवि की कविता में,
विचारों की सरिता में,
गूंजती सरगम है।।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

है सुर साधना सरगम
है ईश आराधना सरगम
सरगम है लय,ताल
माधुर्य का आभास सरगम
सरगम बसी प्रकृति कण में
झरने की हर झरण में
सरिता की कलकल में
पक्षियों के कलरव में
सरगम साधती हर संगीत..
बांधती मन के मीत..
उमड़ते हृदय में भावना गीत..
सरगम है संगम..
भावना व शब्द का..
हर कल्पना का आधार..
सरगम ही प्रारब्ध है
भंवरे की गूँजन सरगम..
कोयलिया की कुक सरगम..
सरगम है सर सर पवन की...
है सरगम सुगंध उपवन की...

स्वरचित :- मुकेश राठौड़
लघु कविता

सुन साँसों की सरगम
झूमे मेरा मन
थिरकने लगे मेरे पाँव
आ गई मैं ये कौन सा गाँव

पपीहे की पीहू-पीहू
कोयल की कुहू-कुहू
भँवरे की गुँजन में
गा रहे वसंत के फाग

झरनों की झर-झर
नदियों की कल-कल
सावन में बरखा की बूँदें
मेघों ने गाये राग मल्हार

धड़का दिल धक-धक
बजता रहा मन का ताल
सुन तेरे प्रेम की वंशी 
आज बस में नहीं हालात

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल



विधा:हाइकु

कर्ण प्रिय है
धुन सरगम की-
सुर-साधना

सुरों की देवी
सरगम संगीत-
वीणा वादिनी

मन्द समीर
सरगम सजाती-
बसन्त ऋतु

जीवन दृष्टि
सरगम ही होती-
सम्पूर्ण सृष्टि

मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित

सुर सजने लगे है जीवन में
तुम आई मन के उपवन में
वाणी पंचम पुचकार लिए
सुर-सप्तक का संचार किए

चूड़ियों की तेरी खनक खन
पायलियों की भी छनक छन
सुर-सप्तम का आधार लिए
सुखद सरगम झंकार हिय

ओष्ठद्वय मिल अनुराग रचे
सांसें घुल-घुल मृदुराग रचे
लयमय द्वय अलंकार प्रिये
झंकृत मन के तार किए

सुध-हरण जो तन मन के
क्रीडा आरोह-अवरोहण के
मूलाधार से सहस्रार लिए
सुर-सप्तक का संचार किए
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित

विधा-वर्णपिरामिड़
विषय-सरगम


है
धुन
मधुर
वाद्य टोली
सुरों की होली
पोटली जो खोली
सरगम की बोली

ये
स्वर
उमंग
रंगारंग
वीणा तरंग
लेके स्वर सँग
बनती सरगम

है
शील
मधुर
पर्दा शर्म
निभाती धर्म
बेटी सरगम
दुखों पे मरहम
******
स्वरचित-रेखा रविदत्त
11/1/19

मत छेड़ो तुम सुरो का सरगम
मुरली मनोहर मेरे श्याम
तेरे मुरली से निकले जो सरगम
कर दे मेरा जीना बेहाल

काम काज मैं छोड़ कर भागू
सुनकर तेरे मुरली के तान
मत छेड़ो तू सुरो का सरगम
मुरली मनोहर मेरे श्याम

सुनकर तेरी मुरली का सरगम
राधा रानी करें मनुहार
छोड़ो ठिठोली, श्याम सलोने
अब न सताओ तुम आज

सुनकर तेरे बंशी का सरगम
बज उठे राधा का पाजेब
बाबा डाँटे,भैया डाँटे
मईया रानी करें सवाल

अब तो समझो मोहन प्यारे
सरगगम छेड़ न करो परेशान
पईया पड़ू मैं, हाथ मै जोड़ू
मोरे श्याम, सुनो पुकार।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।

सुर - ताल लय संगीत में , 
तुम ही तो जान, 
तुम बिन सब बैकार 
तानसेन- बेजू बावरा की तान ।
तुम बिन तबला-पेटी 
ढोलक, मृदंग और बासुरी
सितार, शहनाई, सारंगी , 
हैं व्यर्थ लगते मजाक! 
सप्त सुर पांच कोमल
और तीव्र 
उर से , गले एवं जिव्हा से
निकलते ही शहद घोले ।
बहरे की श्रवण शक्ति लोटे
प्रेम भावना घू़घंट पट खोले ।
बिन इसके संगीत अधूरा
सुर ही जीवन भरते पूरा ।
सरल कहीं तो विरल कही
इससे ही जिंदा हैं भक्ति 
जब सरगम से हो आसक्ति ।
दुखियों का आसरा 
अकेलों का मित्र 
फनकार का यही तो हमदम ।
साज, गीत, नाच में चाहिए, 
शास्त्रिय संगीत सरगम ।।
राग भैरव-भैरवी राग मल्हार! 
तुम गीतों की राज कुमारी , 
तुम ही फन के राजकुमार ।।
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा "निश्छल", उदयपुर

बाल कविता " सरगम"

स रे ग म प ध नी सा 
इन्हीं स्वरों से हैं सुर सधता |

सा नी धा पा मा गा रे सा 
इनसे ही हरमोनियम बजता |

यही गले को देते हैं स्वर 
शब्दों में लय देते हैं भर |

गीत सुरीला बन जाता है 
सबके मन को हर्षाता है |

बच्चों सीखे हम सरगम 
फिर गाना गायें मधुरम |
मंजूषा श्रीवास्तव'मृदुल'
लखनऊ , उत्तर प्रदेश

सात सुरों की सरगम 
जीवन में प्रीत भरे
जीवन संगीत बने
भावों के रंग भरे
रिश्तों की डोर से
सजते हैं सुर यहां
खुशियों के बोल से
सजते हैं गीत यहां
छोटी छोटी बातों में
बन जाते हैं तराने
अपनों का साथ हो
तो जीवन के रंग सुहाने
मत रूठों अपनों से
यह छोटी सी जिंदगानी
कल हो ना हो यह किसने जानी
हंसो गाओ मौज मनाओ
जीवन को संगीत बनाओ
जीवन तो आना जाना है
बस उसको सरगम बनाना है
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित रचना

(1)
है

तान
सुरीली 
सरगम 
वर्षा की थाप 
अवनि हँसती
हरियाली भरती।

(2)
है
मौज
दुनिया 
सरगम 
गीत-गजल
थकान मिटाए
मन को अति भाए
-- रेणु रंजन 
( स्वरचित )
11/01/2019

विधा- हाइकु, माहिया

हाइकु -
१)-
जीवन श्रम
साँसों की सरगम
मधुरतम
२)-
जीवन राग
सरगम के स्वर
आने को फाग
३)-
कठिन श्रम
जीवन सरगम
सुहास पल
#
माहिया -
सरगम सी बजती है
तेरी यादों में,
इस दिल को जँचती है
#,,, __
मेधा.
"स्वरचित"
मेधा नरायण.

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