Monday, January 28

"आत्मबल /मनोबल "25जनवरी2019

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आत्मबल अपना बढ़ाइये
इस जीवन को मंहकाइये ।।
पहचानिये वह सारे कर्म
उन्हे जीवन में अपनाइये ।।

आत्मबल ही एक शक्ति है
सत्य में सच्ची आशक्ति है ।।
वहीं आत्मबल उपजता है
जहाँ सत्य में अनुरक्ति है ।।

आत्मबल एक ऐसी उड़ान है
जिससे उड़ रहा वायुयान है ।।
अथक परिश्रम और लगन
एक दिन छूता आसमान है ।।

कमल की जो मुस्कान है
देखकर हर एक हैरान है ।।
कोई नही उसका 'शिवम'
एक आत्मबल ही शान है ।।

आत्मबल से आत्मविश्वास
हनुमान भूले थे वह खास ।।
जामबन्त जगाये जब तब
लंका लांघा प्रभु का दास ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"




(1)

शक्ति
अभेद
लक्ष्य भेद
कर्म सफल
हिमालय पार
मनोबल ही राज।।

(2)
है
आस्था
दृढ़ता
आत्मबल
धैर्य संबल
कर्म सफलता
मन मे कर्मठता ।।

वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित,मौलिक







कविता :-
वक्त कोभी जो हरा दे
कभी झुके न वह कहीं
अपनेकदमों पर झुका दे
ऐसा होता आत्म बल ।
टूटता वह नही कभी
हारना आता नही उसे 
मनोबल अपना बढ़ा
संघर्ष करते है सभी ।
वास्तविक जीवन वही
जोहमें जीना सिखा दे

लक्ष्य पर होगी विजय
कर्म पथ पर पग बढ़ादे।
स्वरचित/उषासक्सेना

ये धरती है सपूतों की खिले यहाँ संग्राम
भगतसिंह नहरू दिखे ,ऐसा देश महान

मिलता इनसे आत्मबल और बनी पहचान
ये है धरती भारत माँ दिखे यहां भगवान

चंद्रशेखर, आजाद यहाँ ,यहाँ सुभाष और राम
ये पावन धरा है जिसे दुनिया करें सलाम

राम , रहीम , कृष्णा यहाँ ये केवट का धाम
सुनो कहानी वीरों की लो इनसे अभिमान

राज पाट को त्याग कर चले प्रभु श्री राम
लाज रखी एक पिता की छोडा वैभव , धाम

लाज है तेरे हाथ अब कर न तू अब विश्राम
अब तो बढाले आत्मबल, लेकर मन को बांध

नारी को सम्मान दे कदमों मे काँटे नहीं
सबल बनेगी राह देश की वो बने एक शान
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू


आत्मबल मनोबल से है
असंभव भी संभव होता
अविश्वासी कुड़ता मन मे
वह् जीवन मात्र ही रोता
निज ऊपर ही करे भरोसा
आस पराई जो नहीं करते
करे परिश्रम नित जीवन में
वे मंजिल के पद डग भरते
आत्मबल से विज्ञान सजा है
आत्मबल से विश्व कप लाते
आत्मबल सफलता कुंजी है
प्रक्षेपास्त्र अंतरिक्ष नित जाते
आत्मबल होता महापुरुष में
गीता वेद काव्य लिख देते
बालकपन में पवनपुत्र भी
प्रचंड रवि मुठ्ठी में भर लेते
मन में जिसके मनोबल होता
रोता नहीं वह जग में हँसता 
नायक बनकर आगे बढ़ता
जन जन नित पीछे ही आता।।
स्व0 रचित
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

बिना आत्मबल कुछ संभव नहीं होता , है जीवन का तो आधार मनोबल |

बिना प्रयास कोई काम नहीं होता , देता है सदा मन ही तन को सम्बल |

मन के बिना गतिहीन तन होता , करता संचालित हमें सदा आत्मबल |

उसका निष्क्रिय निठल्ला जीवन होता , जिनके साथ नहीं होता है मनोबल |

जब भय आशंका दुविधामय मन होता , बना रहता सदा जीवन अंधकारमय |

जब दृढ संकल्प अटल मनोबल होता , जीवन धारा तब बहती अविरल |

कार्य नहीं मुश्किल कोई होता , मिल ही जाती है साधक को मंजिल |

मानव जन्म बार बार नहीं होता , कर लें पूरा हो जो जीवन का प्रण |

वह जीवन प्रेरणामय होता , जो असंभव को संभव कर देता है आत्मबल |

स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,


विधा - हाइकु
विषय- आत्मबल

प्रतियोगिता हेतु

आत्मविश्वास
मनोबल सोपान
विजय पर्व

असफलता
आत्मबल न्यूनता
डिगता धैर्य

संकल्प शक्ति
सुदृढ़ इच्छाशक्ति
आत्मा का बल

शक्ति प्रदाता
परम उपयोगी
मानस बल

आत्मिक बल
साहस पराकाष्ठा
विजय नाद

सरिता गर्ग
स्व रचित





१/उच्चविचार,
सृजनात्मक शक्ति,

दृढ़ शुभ विचार,
आत्मबल से,
नये विश्व रचना,
उन्नतिके आधार।।१।।
२/आशा के फूल,
जिसके जीवन में,
जिसके अंतर में,
आत्मबल हो,
जीवन में बढ़ ता,
दुखों से,वह लड़ें।।२।।
देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।
जीवन के इस सफ़र में हे मानव! 
हौसला रखना तुम बुलंद, 
कभी होंगे तुम विफल कभी सफल, 
बस कम न होने देना आत्मबल |

कई शस्त्रों की ताकत है मनोबल, 
दुर्गम पथों में हमारा सच्चा हमसफर, 
ताकत ये हमारी बन जाता जब कभी, 
राह में आ जाये मुसीबतों का दलदल |

बर्फ़ीले पहाड़ों पर खड़े सैनिक हमारे, 
चुनौती स्वीकारते आत्मबल के सहारे,
देश की सुरक्षा के लिए वो मर मिटते,
दाँत दुश्मनों के खट्टे वो कर देते |

नामुमकिन नहीं है कुछ भी संसार में, 
पहाड़ तोड़ रस्ता हम बना दें, 
मरूस्थल में पेड़ उगा दें... बस, 
आत्मविश्वास हो गर साथ में |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*


आत्मबल पाना अगर तो,त्याग के पथ पर चलो
सात्विक जीवन जियो और, राग द्वेषों से टलो
जन्म सार्थक हो हमारा,कर्म हम ऐसे करें
लोभ लालच छोड़ कर,इंसान की सेवा करें
हम करें न भेद बस जाने उसी का रूप सब
क्या भरोसा ज़िन्दगी का स्वांस रुक जायेगी कब
आत्मा को बल मिले गर पाप की छोड़ें डगर
स्वस्थ जीवन जी के तू संसार में हो जा अमर।।

~प्रभात
स्वरचित


"आत्मबल/मनोबल"
(1)
लघु कविता
जीवन सफर में बढता चल
बाधाओं को दे मात चल
मन में ले विश्वास चल
पर्वतों को भी काट चल
संघर्षों को ले साथ चल
छोड़कर संत्रास चल
लिये एक नई आस चल
काँटों मे भी चलता चल
जख्मों को सहलाता चल
घूँट अश्कों के पीता चल
मंजिल की ओर बढ़ता चल
गीत प्रेम का गाता चल
कर्म की ज्योति जलाता चल
दृढ़ मनोबल के साथ चल

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल



विकलांगता!
यह एक शब्द है।
भयानक शब्द।
जो भी हुये विकलांग।
करता है संसार उनसे घृणा।
पर ऐसे कितने हीं हुये।
विकलांग यहाँ प्रसिद्ध।
उनहोंने झुठलाया।
विकलांगता शब्द को।
कितने हीं अच्छे इंसान।
ऐसा कर नहीं सके।
जो उनहोंने कर दिखाया।
सेंट जोसेफ उदाहरण हैं।
इसके ज्वलन्त।
उन्होंने बैठकर।
व्हील चेयर पर।
कितनी खोज कर डाली।
खगोल शास्त्र के महान वैज्ञानिक।
जिन्होंने अच्छे, अच्छों को।
फेल कर डाला।
अपनी सख्सियत को।
एक नई दिशा दे डाली।
अपनी एक अलग हीं।
पहचान बना डाली।
धन्य हैं वो।
जो इतने लाचार।
होकर भी।
कितने काम कर डाले।
देश का नाम।
ऊँचा कर डाले।।
उन महान विकलांगों को।
शत,शत नमन है।
याद करेंगे लोग उन्हें।
जबतक ये दुनियां है।।
🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी

🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈
हे नारी दूर्गा का प्रतिरूप तू,
बनकर अरुणिमा जन्म लिया।
अपने हौसलों को देकर उड़ान,
माँ भारती को सम्मान दिया।
चंद असामाजिक तत्वों नें,
तुझ पर ऐसा आघात किया।
बनाकर रावण सा छद्म भेष,
तुझ पर ऐसा जुल्म किया।
11अप्रैल 2011की रात वो काली,
चलती ट्रेन से फेंक दिया।
इस असामयिक दुर्घटना नें,
चरणांग जब छीन लिया।
ना हारी मनोबल,
न तोड़ा आत्मबल अपना।
महीनों लड़ती रही वो,
जिंदगी और मौत के भंवर में।
ठान लिया जब संकल्प उसने,
अपनी जिजिविषा को नवरूप दिया।
लगाकर पंख हौसलों को अपने,
एवरेस्ट पर फिर झंडा गाड़ दिया।

स्वरचित :- मुकेश राठौड़


"भावों के मोती " की माला
में अपने भाव पिरोती हूँ,
दिया खूबसूरत विषय आपने 
मैं मंच पर आत्मकथा लिखती हूँ,
है तो ये कथा मेरी
पर आत्मबल से भरी हुई 
क्या नहीं सम्भव है मनोबल से 
ये पल पल जीती हूँ ।
पल पल जीते है जब
तो आत्मबल बयान करने 
को शब्द है कम ।
तबियत कुछ नासाज हुई ,
जीना हुआ बेहाल ,,सोचा 
घुट कर दर्द जिये या हालात को मात दे ।
पहली बार कुछ दिन पहले 
कलम पकड़ी हाथ मे,
विज्ञान के शोधार्थी 
काव्य विधा का ज्ञान नही ।
मात्रा भार ,भुजंगी ,हाइकु 
यगण ,मगण ,रगण सब था नया 
बार बार अपनी हिंदी को नमन किया 
सत्तावन की उम्र में सीखने का प्रयत्न किया।
पहला सम्मान मेरे अनगढ़ के लिए
नोबल पुरस्कार से कम नही ।
आज के परिपेक्ष्य में मन का उबाल निकलता
जीवन का लंबा अनुभव कागज पर उतरता ।
उम्र के इसपड़ाव पर जीवन का नया अध्याय खोला है
कितने ही अपरिचित से अपना नाता जोड़ा है
आत्मबल है मेरा,नया करने को उम्र बाधा नही ।
विद्या दान महा दान दे रही समाज को
जो करने की ठान ली ,पाना है मुझको ।
मनोबल को आत्मसात कर हालात को मात देनी है 
आपसे रचनाओं की गलतियों की क्षमा मांगते है 
पा आपका संबल अपने को निखारते है।

स्वरचित 
अनिता सुधीर श्रीवास्तव


ा डर प्यारे, संघर्षों के झंझावातों से 
आशाओं के गवाक्ष खोल कर , 
ना डर अंधियारों से ।
हो दृढ़ मनोबल तो हार अंधेरा जाता है , 
नव प्रकाश ,नव उल्लास ले 
नव सवेरा आता है ।
निराशा के छंटते बादल 
अरुणिम सूर्य मुस्काता है ।
हो नितांत एकाकी तो क्या 
आत्मबल के संग बढ़
हौसले का हाथ पकड़ ।
देखो प्रेम की पराकाष्ठा 
साहस ना जिसने छोड़ा 
पटक पटक हथौड़ा, 
जिसने पर्वत का सीना चीरा ।
क्या जग समझेगा कभी 
उसके अंतस की पीड़ा ।
बन दशरथ मांझी सा अडिग 
मनोबल के दम से लिख दी जिसने 
पर्वत की छाती पर कथा अमिट ।
हो ऊंचा आत्मबल, 
राह अपनी स्वंय बनाता है 
समाज को रास्ता नवीन दे जाता है ।

(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
भिलाई (दुर्ग )



उसकी कृति पर सवाल न उठाईये
कमी-बेशी हो तो बवाल न मचाईये

बाधा-विघ्न बन जाएंगी सीढ़ियाँ
जरा मनोबल को भी तो आजमाईए

बैठ किनारे मायूस यूँ न पछताईए
पैर पानी में डाल धीरे से हिलाईये
उठेगी उर्मिया होंगे मन में हलचल
उन उर्मियों को ही पतवार बनाईए

जो मिला सो मिला,तो रोते क्यूँ है
कसक में हौसलों को खोते क्यूँ है
मुकम्मल मुकाम पाना है अगर
सपनों को हुजूर आँखों में बसाईये

बांधे मंसूबे हवा में भरना उड़ान है
देखिये ये खाली पूरा आसमान है
थामकर मनोबल का मजबूत दामन
एक दफा इन डैनों को तो हिलाईये
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित

बढ़ा ही देते
मनोबल सभी का
प्रेरक वक्ता
🌷🌷🌷
करके योगा
आत्मबल बढ़ाते
आज के युवा
🌷🌷🌷
आया राफेल
बढ़ा है मनोबल 
सेना का आज
🌷🌷🌷
है आत्मबल
सर्वोत्तम टॉनिक 
लेते ही रहै
🌷🌷🌷
मनोबल से
रहता है जीवित 
आज मानव
🌷🌷🌷
स्वरचित 
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश 
25/1/2019


मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत।
जिसने जीत लिया मन को,
संकट उसके मीत।
हार न मानें वो कभी,
चाहे संकट में हो प्राण।
मन के बल से वो करे,
हर मुश्किल आसान।
स्वाभिमान की वो बने,
जीती-जागती मिसाल।
पुरूषार्थी बनकर सदा,
समय की बदले चाल।
चलता सीना तान कर,
जीते जीवन की जंग।
मस्ती में डूबा रहे,
बनकर रहे मलंग।
बाजी वो न हारता,
खेले मुश्किल खेल।
विकट परिस्थितियों से,
सदा बैठाता तालमेल।
गहरे पानी पैठकर,
ढूंढ के लाता मोती।
मनोबल/आत्मबल से,
जीत उसी की होती।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित


विषय : आत्मबल /मनोबल

1
करुणा,दया,धर्म, प्रेम, सेवा,और क्षमा का सतीत्व तुझे नमन 
सभ्य,शालीन,भद्र,सहनशील,
मृदुल और पवित्र नारीत्व तुझे नमन 
तेरे मनोबल पर ही टिका है सारे जगत का अस्तित्व 
हे नारी! तुम्हारे मनोबल को शत-शत नमन 

2

हों जिनके आत्मबल मजबूत 
वो जिन्दगी की हर जंग जीत जाते हैं 
टूटे दुःखों का पहाड़ 
या फूटे दर्द का अंबार 
अपने पक्के इरादों से 
वो जिन्दगी की हर जंग जीत जाते हैं 

3

वो अक्सर टूटकर बिखर जाते हैं 
जिनके आत्मबल अशक्त होते हैं 
वो ही पहुँचते हैं बुलंदियों पर 
जिनके आत्मबल सशक्त होते हैं 

4

ना कर तलाश सहारों की 
अपना सीना ताने रख 
बैसाखियाँ मजलूम बनाती है 
अपना मनोबल ऊँचा रख 

5

मदद की फरियाद अक्सर कमजोर हौंसले वाले करते हैं 
मजबूत आत्मबल वाले तो ऊँचे आसमां को भी झुका देते हैं
@ राधे श्याम 
स्वरचित

कविता (छंदमुक्त )
इन्द्रियों का दूर्पयोग 
दृश्य, श्रवण, गंध और रसना , 
हरदम होता खुद को डसना ।
बल शरीर से क्या होता हैं ? 
रोकर आत्मबल खोता हैं।
संयम रख अंतकरण जगाओ, 
दिल से हिन भावनाएँ भगाओ ।
हमारे दिल के जीते जीत हैं , 
मन के ही हारे होती हैं हार, 
पकडो़ लगाम हो जाओ सवार ।
दूर्व्यसनों से दूर रह कष्ट सहा थोडा़, 
उसका पल -क्षण आत्म बल बढ़ा ।
आत्मबल जब कभी बढ़ जाता हैं , 
शौर्य देख उसका दुश्मन भी थर्राता हैं।
आत्मबल हमारा मनोबल बढा़ता हैं , 
पैदल सैनिक घोडे़- हाथी से भीड जाता हैं, 
विकलांग पैर फिर भी ऐवरेस्ट चढ जाता हैं।
जीत सभी हुई थी हमारी योग आत्मबल से , 
मत बनो कायर, जीत लो हर बाजी मनोबल से ! 
स्वरचित -चन्द्र प्रकाश शर्मा 'निश्छल',


आते सुख कभी दुःख के बादल गहराते
हर कोई सुख में आनंदित पर
दुख आने पर घबरा क्यों जाता ?
आशा कभी निराशा के पल जीवन में दस्तक दे जाते
आशा तो राहत है देती
निराशा से तब आहत क्यों होते ?
कभी जीत से तो कभी हार से 
रूबरू हम सब ही है होते
जीत का जश्न मनाते जताते
पर हार से व्यथित क्यों होते ?
लाभान्वित होते कभी लाभ से
कभी हानि से भी टकरा जाते
लाभ में आनंद ही पाते
डरकर हानि से बिखर क्यों जाते ?
जीवन की इस रणभूमि में
इन सबसे सामना सबका होता 
सुखद पक्ष तो हर कोई भोगे
दुखद पक्ष में धैर्य क्यों खो जाता ?
ज़िंदगी जीना आसान नही होता
समझो तो ताउम्र इम्तिहान - सा होता
चाहे संघर्ष का हो विस्तृत मैदान
या काँटों से भरा हो दामन
प्रत्यक्ष अभावों का भयावह कंकाल
या चुनौतियों का हो मकड़ज़ाल
बुज़दिली ज़िंदगी को ना भाती
ज़िंदादिली ही इसकी बन पाई थाती
आत्मबल की अमोल लेखनी ही
ज़िंदगी की नई कहानी लिख पाती ।

संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘ 
स्वरचित


सबसे बडा़ आत्मबल है
यह ईश्वर का सम्बल है
जिसके पास भी यह मिलता
उसका जीवन उज्जवल है।

वह लेता बडे़ बडे़ निर्णय
रखता नहीं कोई संशय
लोगों को होता उससे भय
वह करता कर्म होकर निर्भय।

ज्ञान से भी आत्मबल बढ़ता
वह ऊँचाईयाँ सफल हो चढ़ता
वह त्वरित गति से काम करता
अपना अच्छा नाम करता।


ख्वाब टूटकर बिखर गये हैं 
फिर भी ह्रदय में आत्मबल अभी जिन्दा हैं 
हर कठिन डगर से टकरा जायेंगे

फिर भी अपना मनोबल नहीं टूटने देंगे .

हर कठिन राह को ह्रदय से लगा लेती हूँ मैं 
जिंदगी चाहे कैसी भी हो मेरा आत्मबल मेरे संग हैं 
हैं आत्मविश्वास बेइंतहा ह्रदय में मेरे 
पंछियों की तरह अपना आशियाँ आखिर ढूँढ ही लेती हूँ .

ह्रदय में आत्मबल भरा हो तो राह मिल ही जाती हैं 
हिम्मत और आत्मबल से बुझे चिराग भी जल जाते 
माना कि बदल जाता हैं हर क्षण जमाने के संग 
इन्सान अपने हिम्मत और आत्मबल से जमाने को बदल जाते हैं .
स्वरचित :- रीता बिष्ट






पर्वत पर चढ़ने वाले
वो वीर ना थकने वाले
संघर्ष किया पहुंचे ऊपर
सरताज #मनोबल वाले

कहलाए पर्वतारोही
भारत के थे रखवाले...

सीमा पर लड़ने वाले
वो बलिदानी बल वाले
शत्रु को धूल चटाई
जांबाज #मनोबल वाले

कहलाए शहीदी सैनिक
वो देश के थे रखवाले

वो कलम थामने वाले
हुंकार जगाने वाले
आखर को तीखी धार बना
तलवार चलाने वाले

कहलाए साहित्य के सर्जक
अदम्य #आत्मबल वाले

हित-पथ पर चलने वाले
बेबस जन के रखवाले
करते समाज का ही उद्धार
अंदाज #मनोबल वाले

कहलाए समाज के सेवक
वो वतन के थे रखवाले

हर क्षेत्र में नाम कमा ले
तन-मन में आज समा ले
वो बेटी है भारत की
जीने की राह खंगाले

कहलाए बेटी भारत की
जज्बात #मनोबल वाले.

_____
#स्वरचित 
डा.अंजु लता सिंह 
नई दिल्ली



आत्मबल जब जग जाता है,
दिव्यांग भी समर्थ हो जाता है, 
छुपी क्षमता से परिचय पाकर, 
व्यक्तित्व हनुमान बन जाता है l

दृढ़ता के साथ जब विश्वास भीतर आ जाता हैं,
संकल्प के साथ मिल फिर इतिहास रच जाता हैं, 
परिस्थितियां चाहे लाख बिछाए कांटे,
आत्मबल का फूल खिल ही जाता हैं l

आत्मबल वह शक्ति हैं जिससे हर युद्ध जीता जाता हैं,
प्राणों का संचार कर हीनता बोध गिरा जाता हैं, 
चुनौतियों का सामना करने में सक्षम कर जाता हैं,
पहचान बनाता है अपनी, हर शिखर फतह कर जाता हैं l

स्वरचित 
ऋतुराज दवे


विषय- मनोबल

दुर्गम राह
सशक्त मनोबल
विघ्न का नाश

जीवन जंग
मनोबल की ढ़ाल
झूका गगन

सत्य वचन
सुदृढ़ मनोबल
दुखों की हार

कष्ट सागर
मनोबल की नाव
जीवन पार
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
25/1/19
शुक्रवार


भौतिक भंगुर चारु गात में,
शाश्वत परम-ब्रह्म शुचि अंश,
पावन ऊर्जापुँज आत्मा,
अजर अमर एवम दिव्याँश।

परमशक्ति से ओतप्रोत शुचि,
मुख्य आत्मबल मानवतन में,
दृढ इच्छाशक्ति पर आधारित,
शुचि आत्मा का बल अविराम।

आत्मिकबल व दृढ़ संकल्प,
शक्ति मंत्रवत मानव मन की,
सहस्त्रगुणा करती वृद्धि नित,
साहस और उत्साह मनस में।

मात्र मनोबल के बल जग में,
सदा असम्भव होता सम्भव,
कदम चूमती प्रगति अतुलित,
निर्माण नियति होता समुचित।
--स्वरचित--
(अरुण)

आत्मबल का सम्बल पाकर
हर नर सक्षम हो जाता है।
मनोबल का दिया जला तो🎂
हर पथ सरल सुगम हो जाता है।
दृढ़ निश्चय के घी से जलकर
प्रचण्ड ज्योति जल जाती है।
न कोई तूफान न कोई आंधी
इसके प्रकाश को धुंधला पाती है।
दृढ़ निश्चय से सिंचित दीपक 
एकल ही लड़ जात है।
घोर अँधेरा घना तम भी
नहीं उसे कम्पात है।
आत्मबल का सम्बल हर लेता
हर दुविधा और स॔शय को।
चलो उठो दृढ़ निश्चय कर लो
हर बाधा को पार फिर कर लो।


**मन से कभी ना हारना**

हारो चाहे मैदान में तुम
मन से कभी ना हारना,
आत्मबल के बलबूते पर
भव सागर भी तर जाना,

खाकर ठोकरें संभल जाना
कदमों में गिर रोना मत ,
चाहे घिरो आंधी तूफानों में
विचलित पथ से होना मत,

चट्टान सा रहना डटकर
सरिताओं सा बढ़ते जाना,
रहकर शांत समुद्र सा
मेघ सा ऊंचा उठते जाना,

बन सहारा दीन दुखियों का
फूलों सा रहो महकते,
दीपक बन करना उजाला
चाँद सा तुम रहो चमकते,

गिरकर उठ, उठकर संभल
खिवैया बन नैया को तारना,
हारो चाहे मैदान में तुम
मन से कभी ना हारना,

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा(हरियाणा)

जीवन तो दुख-सुख का मेला है
हर इंसां ने इसको झेला है
जो दुःख में भी न घबराए
वो हिम्मतवाला कहलाए
क्यों रोकर जीवन खोना है
मेहनत से मिट्टी भी सोना है
हम फिर भी घरों में सोतें हैं
सैनिक रातों को भी जगते हैं
देश की खातिर जीतें हैं
मातृभूमि पर मर मिटने वाले
यह वीर सपूत होते हैं
बर्फीली हवाओं में भी
सदा अटल खड़े रहते
इनके हौसले से कुछ सीखो
आत्मबल को जगाकर
देश का ऊंचा नाम करो
विपत्तियों से कभी ना घबराना
मनोबल कभी न गिरने देना
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित रचना

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