Wednesday, January 2

"शिक्षा "2जनवरी2019

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             ब्लॉग संख्या :-256

शिक्षा

1
पेट की आग
क्षुब्ध करें दो हाथ
नैतिक शिक्षा।
2
वृद्धाआश्रम
मन मे जड़े ताले
कैसी ये शिक्षा?
3
मुस्काते तारे
अँधेरे में उजाला
अमूल्य शिक्षा।
4
धन से बोई
अध खिली सी शिक्षा
कटु भविष्य।

वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित

शिक्षा तो एक गहना है
जो भी इसको पहना है ।।
सुन्दरता तो बढ़ना ही है
जीवन भी ये निखरना है ।।

योनियों में भटकता मानव झूठा कलंकित है
शिक्षा वो साबुन जो करता जीवन सुगंधित है ।।
दुर्भाग्य ही कहलाता उसका जो जीवन में
रहता किसी कारण बस शिक्षा से बंचित है ।।

शिक्षा का नही है मौल कोई
शिक्षा का नही है तौल कोई ।।
जीवन भर पछताया है वह 
उड़ाया जो इसका मखौल कोई ।।

शिक्षा आज बिक रही यह ठीक नही
शिक्षा स्तर अब गिर रहा सटीक नही ।।
शिक्षा का कद सदा से ऊँचा है ''शिवम"
शिक्षा संग खिलवाड़ करना नीक नही ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
Sher Singh Sarraf प्र

विधा .. लघु कविता 
*********************
🍁
सम्पूर्ण धरा का एक सुधा,
रस अमृत सा विज्ञान रहा।
शिक्षा ही अमृत बेली है,
जिस पर ही है ये विश्व टिका॥
🍁
आडी तिरक्षी सी ये रेखा,
कागज के पन्नो पर उभरी।
यह ज्ञान की निर्मल गंगा है,
जिस पर ही सारी सृष्टि टिकी॥
🍁
शिक्षा ही वो आलंबन है,
जीवन को जिसने पूर्ण किया।
मानव हो या सम्पूर्ण राष्ट्र ,
उन्नति को अंगिकार किया॥
🍁
वो राष्ट्र ना वैभवशाली है,
जिसमे शिक्षा का मान नही।
उस व्यक्ति की बौद्धिक क्षीर्ण रही,
जिसने ना कोई ज्ञान लिया॥
🍁
भारत की धरती युग-युग से,
शिक्षा की ही अनुयायी है।
है वेद-पुराण, गीता भी यहाँ,
उपनिषदो की भी वाणी है॥
🍁
है यज्ञ अग्नि की ये भूमि ,
गुरूकुल की भी मर्यादा है।
यह शेर की रचना कहता है,
शिक्षा ही पूर्ण विधाता है॥
🍁

स्वरचित .. Sher Singh Sarraf

विद्या : हाइकु 
विषय. : शिक्षा

" शिक्षा"
१. शिक्षा शिक्षक 
जीवन के प्राण है 
जीवन पथ

२. देश समाज 
विकास की अंकुर 
पहचान है

३. शिक्षा के बिना 
हम सब अज्ञान 
अमानवीय

४. हे सरकार 
मेरे पालनहार 
शिक्षित करें

५. इस युग में 
प्रत्येक नागरिक 
साक्षरता हो

स्वरचित एवं मौलिक 
मनोज शाह मानस 
सुदर्शन पार्क,
मोती नगर, नई दिल्ली

लघु कविता,शिक्षा

अखंडित ज्योति है शिक्षा
शिक्षा कल्प लता सी होती
सद्गुण स्नेह दया समर्पण
संस्कारों को हिय में भरती
दानव को मानव कर देती
अहिंसा परमोधर्म सिखाती
सत्य असत्य भेद मिटा कर
नयी राह दुनिया दिखलाती
शिक्षा सुधा सागर मय होती
डुबकी खा पाते सब मोती
अज्ञानी अंधकार हृदय में
शिक्षा आलोक भरती ज्योति
जय हो माता प्रिय शारदे
सबक सदा सुत सिखाती
नयी खोज वैज्ञानिक करते
सुधा नीर संसार बहाती
शिक्षा ही होता जीवन है
शिक्षा स्वयं कलावती होती
बिन शिक्षा मानव पशुवत
दो पद धारक आँखे रोती
तम सो मा ज्योतिर्गमय सी
जग आलौकित शिक्षा करती
स्नेह बढ़ाती ऊर्जा भरकर
धरणि के कष्टों को हरती।।
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

विधा: छन्दमुक्त कविता
शिक्षा

आज कल की शिक्षा का ये कैसा हाल?
पाठशाला में 'मजदूर' है बाल।
सुबह सरस्वती वंदना से पहले,
कक्षा कक्ष की करते सांभ-संभाल।
सरस्वती वंदना से रह जाते वंचित,
बताओ कहाँ से हो ज्ञान बच्चों में संचित।
सुबह-सुबह की चाय बनाना,
फिर 'मिड डे मील' का खाना बनाना।
पढ़ाई से कोसो दूर है बच्चे, 
नहीं आता इन्हें पढ़कर सुनाना।
सुबह सुबह ना दूध पिलाकर,
सही नही है दूध कक्षा कक्ष में पिलाना।
चाट रहे है धूल कंप्यूटर बेकार पड़े,
कंप्यूटर,प्रोजेक्टर की है सुविधा
लेकिन हाथ मे अभी भी चॉक पकड़े।
बच्चों की आंखें पढ़ने को तरसे,
बस करते है काम,कभी आदर के साथ
तो कभी अध्यापक के डर से।
राजकीय शिक्षा में तो कही कोई कमी नही है।
पर मर गया जमीर हमारा ही,
हमारी नजर तो बस तन्ख्वाह पर तनी है।
उन शिक्षकों को मेरा सदा सलाम,
मेहनत और शिद्दत से करते,
अपने हिस्से का काम।
अपने जमीरों को जगाकर, 
पढ़ाएं मन लगाकर।
ताकि बच्चे देश का नाम रोशन करे
'चैन' हम से शिक्षा पाकर।

स्वरचित
सुखचैन मेहरा 'चैन'

शिक्षा का धन
जिसने रखा संग 
हुआ ना तंग 

गरीबी मार 
शिक्षा हुई हलाल 
बच्चे अनाथ 

शिक्षा का दीप 
अज्ञान अंधकार 
दूर भगाता 

बुझ न पाती
शिक्षा होती है वहां 
ज्ञान की ज्योति 

शिक्षा को पाना
सबका अधिकार 
हो ना अन्याय 

स्वरचित 
मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश


विधा- कविता
**************
शिक्षा प्रगति का आधार, 
माँ सरस्वती का आशीर्वाद |

शिक्षा बढ़ाये आत्मविश्वास, 
उज्ज्वल भविष्य का है द्वार |

माता-पिता प्रथम शिक्षक, 
घर शिक्षा का प्रथम स्थान |

शिक्षक हैं भगवान समान, 
उच्च शिक्षा करते हमें प्रदान |

चाणक्य गुरू थे बड़े महान, 
शिक्षा को बनाया बड़ा हथियार |

शिक्षा मिटाये मन के अंधकार, 
समाज में मिलता मान, सत्कार |

शिक्षा सबके लिए है जरूरी,
इसके बिना जिन्दगी अधूरी |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*

बनती हम सब का श्रृंगार है शिक्षा, यही जीवन को सुगम बनाती है, 
सम्मान दिलाती है यह धारक को, उसको यही जिम्मेदार बनाती है |
हो जाये शिक्षा का समुचित विकास , अपना शिक्षा अधिकार कहलाती है, 
सुसंस्कृत कर मानव जीवन को, विकास पथ पर अग्रसर कराती है |
अशिक्षा ही तो हर समाज को, पिछड़ा व दकियानूस बनाती है , 
जीवन अंधकार में डूबा रहता,समाज में कुरीतियों को फैलाती है |
शिक्षित हो समाज जो अपना, जीवन में समरसता आती रहती है, 
अविष्कारों का तांता लगता, अनुसंधानों की कीमत बढती रहती है |
दुरुपयोग हो रहा अब शिक्षा का,यहाँ हर कोई मतलबी होता जाता है, 
खतरे में रहती है मानवता, विज्ञान का हमेशा दुरुपयोग किया जाता है |
सम्मान बुजुर्गों का घट रहा, हृदयहीन नयी पीढ़ी को शिक्षा ने कर डाला है, 
कुटुंब कबीला भूल गया सब, हमसे अब अपनापन बिछडता जाता है |
शिक्षा हो संस्कार जब अपना, ज्ञान हमारे अवचेतन में बस जाता है , 
मतलब शिक्षा का नहीं समझाना पड़ता, आदत में रचा बसा रहता है |
दायित्व यही हम सबका बनता, शिक्षा को मजबूत और मशहूर बनाना है, 
हो शिक्षा से रोशन भारत का कोना कोना, अशिक्षा को इतिहास बनाना है । |स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
"शिक्षा" शीर्षकांतर्गत चंद हायकु रचना --

(1)
"
शिक्षा" औ ज्ञान 
चमत्कृत विज्ञान 
विश्व संज्ञान।

(2)
"शिक्षा" आधार 
विभिन्न है व्यापार 
नहीं बेकार।

(3)
"शिक्षा" सबल
कर्म भाव प्रबल
नहीं निर्बल। 

(4)
न विचलित 
कार्य करे उचित 
"शिक्षा" संचित। 

(5)
अर्थ वंचित 
"शिक्षा" जो अनुचित 
होते लज्जित। 

(6)
मिले सम्मान 
समग्र "शिक्षा" ज्ञान
जग में मान।

(7)
"शिक्षा" समृद्धि 
जीवन परिस्थिति 
अच्छी स्थिति।

(8)
सुखी जीवन 
"शिक्षा" से आजीवन 
परिसीमन।

(9)
न चोरी भय
"शिक्षा" है ऐसा धन
न बाँटे कोई।

(10)
"शिक्षा" माकूल 
जीवन न निर्मूल 
सुख समूल।

--रेणु रंजन 
( स्वरचित )


"शिक्षा"
शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो
स्वरोजगार की सीख हो
दो रोटी की तकदीर हो
राष्ट्र तरक्की की नींव हो
आत्मविश्वास जमीर हो
नित् विज्ञान की खोज हो
समानता का पाठ हो
बेटियाँ भी ना पीछे हो

बढ़ रही बेरोजगारी है
महँगाई बनी महामारी है
समय की भी यह माँग है
परिवर्तन की जगी आस है
हर युवा की एक ही पुकार है
शिक्षा व्यवस्था ही कर्म आधार हो

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
शिक्षा--
राम की मर्यादा शिक्षा
कृष्ण का गीता ज्ञान है
करण का हे साहस तो
अर्जुन लक्ष्य चिडिया की आँख है 
एकलव्य की गुरु दक्षिणा तो
बुद्ध का वैराग्य है 
अन्र्तमन को करें आलोकित
शिक्षा मे ये सार है
पथभ्रष्ट मत हो राही तु
ज्ञान बिना जीवन बेकार है ।

स्वरचित. 🙏


लघु कविता
"शिक्षा एक गहना"

सहभागी बन जाओ सब लोग,
शिक्षा का घर -घर अलख जगाओ।
इस पुण्य कार्य में आहुति देकर,
अपना मानव धर्म निभाओ।
अब तक जितने हैं पुण्य किये,
शिक्षा उन सबसे हट कर है।
जितने भी दान किये तुमने,
यह दान उन सबसे बढ कर है।
देवों ने इसका सृजन किया,
गीता में है इसका सार छिपा।
बिन शिक्षा मानव ऐसा दिखता है,
जैसे भुजंग है गरल बिना।
शिक्षा देती है संस्कार,
मन में लाती है भाव विनम्र।
हर लेती है यह सकल तमस,
फैलाती चहुं दिश है उजियारा।
सच्चे माने में यह धन है,
जो मानव हमें बनाती है।
शिछा ही बस वह गहना है,
जो खर्चे से भी बढता है।
गुहार लगाता यह वत्स सभी से,
पहुँचा दो शिक्षा हर अंतर मन में।
पहुँचा दो शिक्षा हर घर -घर में।।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
जयपुर

क्या बताऊँ
शिक्षा का हाल
आधुनिकता किया है
इसे बेहाल।

फोन और फेसबुक
दूरियाँ मिटा दिया
लेकिन हमारे बच्चों को
घर में ये कैद किया।

जैसे-तैसे बस ये
परीक्षा पास होते हैं
अपना सारा वक्त
घर के किसी कोने में
कम्प्यूटर, टीवी और फोन
के साथ बिताते हैं।

छात्रों के ईक्षापूर्ती ही
शिक्षा के
जर्जरता का कारण है
विद्वानों की धरती है ये
कहाँ इन्होंने जाना है।

पर यहीं कहीं
अभावों में जलता है
एक लौ,
जो बुझते-बुझते
फफक जाता है
याद कर एकलव्य की शिक्षा
स्वंय में प्रकाश
भरता है
ढ़लते सूर्य को
वही लौ
रात-भर प्रज्वलित
रहने का वचन देता है।

स्वरचित: - मुन्नी कामत।

(1)
शिक्षा की दशा
डिग्रियों को बिठाया
चलाया रिक्शा
(2)
दो दुनी आठ
भटक रही शिक्षा
रो रहे पाठ
(3)
बुद्धि थी नग्न
शिक्षा ने पहनाए
सभ्यता वस्त्र
(4)
शिक्षा की झाँकी
फेल हो के भी पास
नाचते दागी
(5)
पेट अगन
बाल मजूरी , भिक्षा
शर्मिन्दा शिक्षा
(6)
जग सागर
नाव सी माँ की शिक्षा 
जीवन तरा

स्वरचित 
ऋतुराज दवे 
राजसमंद (राज.

शिक्षा-एक संस्कार
सिखलाती-
जीवन की रीत 
सहिष्णुता व प्रीत
करती
विशुद्ध अन्तर्मन
परिष्कृत आचरण
मन में उत्पन्न
सद्भाव,सदाचार
परिवर्तित परिपेक्ष्य
मोटी पुस्तकें
डिग्री-एक व्याधि
लंबी-लंबी उपाधि
उपाधियों का कारोबार
शिक्षा-एक व्यापार
लुप्त संस्कृति,
उच्छृंखल वृति
विमुक्त मानवपन
भ्रमित सदाशय
सच-
सा विद्या या विमुक्तये
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित

विधा: हाइकु 

'शिक्षा' करती
जीवन का निर्माण-
जिंदगी खुश

'शिक्षा'से होता 
मानव का विकास- 
सभ्य समाज

'शिक्षा' से होये
तिमिर का विनाश-
राष्ट्र उत्थान 

उत्तम 'शिक्षा'
करे ज्ञान विस्तार-
देश समृद्ध

'शिक्षा' से मिले 
बढ़िया रोजगार-
प्रसन्न व्यक्ति

अच्छा भविष्य
'शिक्षा' का होता ध्येय-
आत्म विकास

मनीष श्रीवास्तव
रायबरेली
स्वरचित

विषय-शिक्षा

शिक्षा के हैं रूप अनेक,
शिक्षा से ही जागे विवेक।

संस्कार है पहली शिक्षा,
शिक्षित होना दूसरी शिक्षा।

आत्म निर्भर बनाए शिक्षा,
सद्विचार जगाए शिक्षा।

शिक्षा जीवन का उत्थान
है करती,
शिक्षा उन्नति का कारक 
बनती।

शिक्षा से होता शोषण का
अंत,
शिक्षा से मिटे कष्ट अनंत।

शिक्षा जीवन के लिए उपयोगी,
शिक्षा बनाए मन को योगी।

जीवन से मिलती असली शिक्षा,
संघर्ष करने की मिलती शिक्षा।

पग-पग नए-नए पाठ पढ़ाती,
कष्ट-कंटकों से लड़ना सिखाती।

जीवन का उद्देश्य बताती,
कर्त्तव्यों का बोध कराती।

शिक्षा कभी व्यर्थ न जाए
शिक्षा मन में अलख जगाए।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित

शिक्षा का क्षेत्र बहुत बड़ा है
इसके आधार पर विश्व खड़ा है
हर विधा की अलग कड़ी है
नहीं कह सकते कौन बड़ी है। 

सर्वोपरि है मात्रभाषा
यही सबकी हो अभिलाषा
हमारी संस्कृति रह सहन
सबकी देगी यह परिभाषा। 

सबसे पहली शिक्षा नैतिक
जो नहीं बनने देगी अनैतिक
जीवन का यह केन्द्र प्रमुख है
इसमें मानवीय सुख ही सुख है।

दूसरी शिक्षा हो रक्षा सम्बन्धी
जो बनने नहीं देगी हमको बन्दी
हमारा हर नागरिक वीर होगा
शत्रु के लिये मृत्यु का तीर होगा। 

जब आवश्यक होगा बन्दूक उठेगी
आवाज़ उसकी अब नहीं दबेगी
आकाश में हो या पहाड़ों पर हो
या तोपों और टैंकों की दहाड़ों पर हो। 

शिक्षा फिर विज्ञान की है
धरती से नभ के ज्ञान की है
पूरे जीव विज्ञान की है
हर धातु के पहचान की है। 

समाज शास्त्र है बहुत ज़रुरी
कैसे हो कम आपस में दूरी
कैसे हों आम ज़रूरतें पूरी
कैसे बने सबकी एक ही धूरी। 

कैसे भूलें हम अपना इतिहास
यह पुरखों का देता आभास
वो कौन से कारण थे जिनसे
हमारी स्वतन्त्रता का हो गया ह्रास।

शिक्षा का ही एक भाग है खेल
इसमें बढ़ते मेल ही मेल
आपसी सौहार्द की हर ज़गह
इनसे फलीभूत होती बेल। 

यह शिक्षा की छोटी बहुत झलक

पर बहुत ही बड़ी इसकी ललक।

विषय- शिक्षा

शिक्षा गहना
नित दिन निखरे
सँवारे रूप

शिक्षा का दान
गुरूजन महान
अमृत ज्ञान

शिक्षा किरण
रोशन हो जीवन
स्वर्णिम भोर

गुरू दीपक
बाल अवस्था बाती
शिक्षा है ज्योति

शिक्षा के फूल
मधुबन सा स्कूल
गुरू है माली
स्वरचित-रेखा रविदत्त

शिक्षा है अधिकार हमारा
इससे न वंचित रह जाय कोई
सह शिक्षा, स्त्री शिक्षा, प्रौढ शिक्षा
ये सब जरूरी है समाज में भाई

शिक्षित हो समाज तो स्वस्थ हो समाज
स्वस्थ समाज से देश का हो उत्थान
विश्व पटल पर हो तब देश का नाम
हमें दिलाना हैं बिटिया को शिक्षा
बिटिया हो शिक्षित, तो परिवार हो
शिक्षित।
किताबी शिक्षा के साथ नैतिक व 
व्यवहारिक शिक्षा भी है जरूरी

नर हो या नारी सबमें हो शिक्षा भारी
शिक्षित होकर देश हमारा
ज्ञान का प्रकाश फैलाये जग सारा
ऐसा हो जाये देश हमारा।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।

छंदमुक्त 

शिक्षा..
घोर अंधकार में,
आशा की एक किरण।
शिक्षा..
कांटो भरे सफर में,
चलने का हौसला।
शिक्षा..
है पतवार
जीवन के महासागर की
शिक्षा..
हार में जीत में
प्रकृति के हर संगीत में
शिक्षा..
अमृत्व का पैमाना,
ज्ञान विज्ञान की जननी।
शिक्षा..
धैर्य है संबल भी है,
समर भूमि में बाहुबल भी है।
शिक्षा..
कलम स्वर,लय,ताल है,
उन्नत राष्ट्र की पहचान है।

स्वरचित :- मुकेश राठौड़
विधा - हाइकु
विषय - शिक्षा


नैतिक शिक्षा
संयमित आचार
मन उत्थान

समाज शिक्षा
आपसी व्यवहार
सीखे इंसान

सदाचरण
व्यावहारिक शिक्षा
सहृदयता

किताबी शिक्षा
सफलता की सीढ़ी
स्वावलम्बन

शिक्षा मन्दिर
अध्यापक सोपान
ज्ञान भंडार

सरिता गर्ग
(स्व रचित)

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