Thursday, January 24

"धर्म "23जनवरी2019

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धर्म धर्म के चक्कर में कितने हुये अधर्म
मानव अब न मानव है भूल गया सब मर्म ।।
धर्म एक इंसानियत का वही सांसे ले रहा 
पशु भी हमको देखकर अब करने लगे शर्म ।।

एक दिन एक बन्दर हमें दुत्कारा था
हाथ में मेरे चने का एक पिटारा था ।।
मुझे खिलाने आया पड़ोसी से पूछा
कितने दिन से वह भूखा बेचारा था ।।

यह गीता और यह कुरान 
लड़ाई के हैं ये सब सामान ।।
आचरण में न उतर पायें ये
''शिवम्" समझाना न आसान ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 23/0172018

"धर्म"
(1)
ये
वीर
सैनिक
राष्ट्रभक्त
अमूल्य कर्म
जीवन का मर्म
देश सेवा ही धर्म।।

(2)

हो
कर्म
सुखद
प्रेम भाव
सेवा स्वभाव
गरीब को रोटी
मानवता ही धर्म।।

(3)

है
श्रेष्ठ
व्यापक
सत्य आंत्र
प्रेमत्व मंत्र
दया व अहिंसा
मानव धर्म कर्म

वीणा शर्मा वशिष्ठ
स्वरचित,मौलिक


जीवन शैली
धर्म सत्याचरण
सकारात्मक

धार्मिक आस्था

आध्यात्मक दर्शन
सर्वकालिक

धर्म लक्षण

धीरज क्षमा विद्या
आत्म संयम

धर्म धारण

व्यापक दृष्टिकोण
कर्म प्रधान

विभिन्न धर्म

भिन्न भिन्न मान्यता
मत अंतर

सरिता गर्ग

स्व रचित
सद्कर्म जो धारण योग्य
वह् ही जीवन धर्म होता
सदमार्ग नित प्रेरणा देता
भक्तिभाव सद हिय झरता
जगति का आधार धर्म है
सत्य अहिंसा स्वयं धर्म है
मातपिता गुरुजन की सेवा
हितकारी सुखकारी धर्म है
नेताओं का राज धर्म है
सीमा रक्षण सैनिक धर्म
राष्ट्रगीत और राष्ट्र गायन
जन जन का है प्रिय धर्म
पर्यावरण स्वच्छमय रखना
दीन हीन नित सेवा करना
धर्म अमोलक है जीवन में
सद कर्मी बन अग्र ही रहना
पतिपत्नी का प्रेम धर्म है
मित्र मैत्री स्नेह धर्म है
जग अमीय मधु रस पीना
मुक्ति पाना एक धर्म है
डटे धर्म पर महापुरुष वे
निर्मल ज्ञान संत की वाणी
लालन पालन स्नेह पिलाती
जय जय भारत माँ कल्याणी
सद कर्म नित होती पूजा
धर्म बड़ा नहीं जग दूजा
भारत माता सदा अमर हो
नारा सर्वसुखाय जग गुंजा।।
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


========
गलत कार्य 
अधर्मी कर रहे 
धर्म की आड़ 
🌷🌷🌷
धर्म का धागा
अनेक जाती फूल 
रखा है बांध 
🌷🌷🌷
बिखेर रहे 
एकता की चमक
धर्म के मोती 
🌹🌹🌹
सत्य का मार्ग 
हमारे धर्म गुरु 
दिखाते राह
🌹🌹🌹
मानव सेवा 
सबसे बड़ा धर्म
करे ये कर्म 
🌹🌹🌹
स्वरचित 
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश 


एे वतन .....एे वतन ......एे वतन .......
आ अमन ....आ अमन ....आ अमन .......
हो अमन ......हो अमन .....हो अमन ......!!!

चल शांति के पथ !

यही है तेरा धर्म...!!

हिन्दू मुस्लिम सिख ईशाई !

अगर सभी है भाई भाई !!

तो ले शपथ ...ले शपथ .....ले शपथ .....!!!


चल शांति के पथ !

यही है तेरा धर्म...!!

एेसे नहीं ......,

हिन्दू ओ हाथ में गीता रख ...
मुस्लमानो हाथ में कुरान रख ...
ईशाई ओ हाथ में बा ई बल रख ..
सिखों के हाथ में हो गुरू ग्रंथ ..!!

गुरू ग्रंथ .....गुरू ग्रंथ .....गुरू ग्रंथ ......!


ले शपथ .....ले शपथ .....ले शपथ .......!


हो अमन ....हो अमन ....हो अमन .......!


चल शांति के पथ !

यही है तेरा धर्म...!!

मेरा रक्त लाल है ..!

तेरा लहु लाल है ..!!
उसका खून लाल है ..!!!
इसका ब्लड लाल है !!!

नाम अलग अलग रंग सबका लाल है ...!


किया नहीं उपर वाले ने फरक 

क्यो बना रहा है तू अग्नीपथ ..!!

अग्नीपथ ....अग्नीपथ .....अग्नीपथ .....!


चल शांति के पथ !

यही है तेरा धर्म...!!

मुठी बांधकर आया है .!

मुठी खोलकर ज़ायेगा ..!!
खाली हाथ आया है ...!!!
खाली हाथ ज़ायेगा .....!!!

क्यो कर रहा है दुनियाँ फुकने का हठ ...!


फूंकने का हठ ......!


चल शांति के पथ !

यही है तेरा धर्म...!!

स्वरचित एवं मौलिक 

मनोज शाह मानस 
सुदर्शन पार्क 
मोती नगर नई दिल्ली
मानसिक द्वद से,
उदार भाव,
जातिगत भाव से
बंधुत्व प्रेम होना।।१।।
२/जातिवाद से,
संप्रदाय वाद से,
युद्ध लीला चलती,
बंधुत्व भाव से,
मानव का मानव
मानव धर्म टिका।।२।।
३/रंग रोशन,
भवन है पुराना,
नया नहीं होता है,
अगर गंदा,
दिल का देवालय,
धर्म,कर्म,है फंदा।।३।।
देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।।

मानव धर्म बड़ा जग में इसे आओ निभाते हैं। 
हम तो सदा ही मानवता के दीप जलाते हैं।।

उलझें न कभी आपसी राग द्वेष में हम कभी।
हौंसला बढ़ाकर उनको भी चलना सिखाते हैं।।

कर देते पग डगमग कभी उलझनें देखकर।
मन में साहस लेकर हम फिर भी मुस्कराते हैं।।

मिल जाये साथ सभी का बन जायेगा कारंवा।
मानव धर्म से अब एकता की माला बनाते हैं।।

लक्ष्य को पाने में सदा आती हैं कठिनाईयां।
साहस से जो डटे रहते सदा मंजिल वही पाते हैं।।

राह रोकने को आती दिवारें सदा बड़ी-बड़ी।
सच्चाई पाने को अब हम दिवारों से टकराते हैं।।

फैलायें आओ मानवता को मिलकर चारों ओर।
दुनियां में हम मानवता का धर्म आओ दिखाते हैं।।
....भुवन बिष्ट

रानीखेत (उत्तराखण्ड) 
        
शीर्षक : धर्म 

हे धर्म! 
तू पूर्ण है, सम्पूर्ण है
तू अंतस का ज्ञान, परम विज्ञान है 

हे धर्म! 
तू सत्य, यथार्थ है 
तू विश्वास से नहीं 
ज्ञान से नि:सृत है 

हे धर्म! 
तू अनेकता में समग्रता है 
तू विविधता में एकता है 
तू एक लयबद्ध अखंडता है 

हे धर्म! 
तू आप्तकाम है 
तू परितृप्त है 
तू पूर्णता की पवित्रता है

हे धर्म! 
तू न हिन्दू 
न मुसलमान 
न जैन
न बौद्ध है 
तू सजगता की स्थिति है 

हे धर्म! 
तू न पूर्वाग्रह 
तू न संघर्ष 
तू न आहुति 
तू न संहार है 
तू जन गण मन है 

हे धर्म! 
तू स्वाभाविक है 
तू गहन आकर्षण है 
तू चैतन्य है 
तू प्रसुप्त प्रज्ञा का विस्फोट है।

हे धर्म! 
तू सिर्फ राष्ट्र ही नहीं
सम्पूर्ण मानवता है 
तुझ से ही ब्रह्म है 
तुझ से ही जीवन की सृजनात्मकता है।
@राधे श्याम 

स्वरचित 


धर्म कर्म की बाते कर लो
मेरे मनुआ, तुम भी सुन लो
दो राहे चलती साथ साथ
एक धर्म की राह एक अधर्म के साथ

सूत्रधार रखते लेखा जोखा
कर ले हम कुछ धर्म कर्म
धर्म है आस्था का प्रतीक
धर्मान्ध नही बनना है हमे

पर धर्मविरोधी भी नही बने हम
धर्म के नाम पर लूट-खसोट
यह नही है उचित सोच
अलग अलग है धर्म हमारे

पर हम सब है ईश सहारे
धर्म नही है सिर्फ ईश की पूजा
धर्म का रूप और भी है दूजा
माँ बाप की सेवा भी धर्म हमारा

मानवता भी धर्म हमारा
सबसे ऊपर देश हमारा
राष्ट्रधर्म है हमको प्यारा
सबसे न्यारा, सबसे प्यारा।

स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव। 


सत्यवादी श्रेष्ठ नर थे
विभीषण धर्म के साधक

दानव में मानव वर थे
हरिश्चंद्र बिक गए धर्म हित
दधीचि ने धर्म निभाया
तन मन धन अर्पण कर के
देदी अपनी परहित काया
धर्म निभाया था सीता ने
धर्म निभाया उर्मिला ने
धर्म निभाया अनसूया ने
धर्म निभाया अहिल्या ने
जग आधार धर्मपालन है
धर्म कर्म जीवन की पूंजी
परहिताय जीवन अपना है
है सफलता पावन कुंजी
स्वहित जीवन क्या जीवन है
परहित शुभ होता है जीवन
सुखदा वरदा भारत माता यह
खिला हुआ जग पावन उपवन
सद कर्तव्य शुभ धर्म है
यह जीवन का प्रिय मर्म
असत्य मिथ्या पागलपन
मत पालो तुम व्यर्थ भरम
मोती चमके दमके भावों के
धर्म उपासक जो नर होता
पुण्य त्यागकर पाप कमाता
वह् आजीवन मनभर रोता।।
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम

कोटा,राजस्थान।      



धर्म बन रहा अखाड़ा,
राजनीतिक द्वेष का।
विविधता में बंटकर,
हो रहा पतन देश का।

बन रहे दुश्मन यहाँ,
भीड़तंत्र के भेष में।
चल रहा उद्दंड नाच,
हमारे भारत देश में।

कटते है लोग यहाँ,
गौ माता के नाम पर।
हो रहे कत्ल यहाँ,
लव जिहाद के नाम पर।

मंदिर और मस्जिद में,
बांटते सत्ताधीश यहाँ।
अपने आप सब बन रहे
धर्म के मठाधीश यहाँ।

स्वरचित :- मुकेश राठौड़ 


धर्म,संस्कृति का पाठ पढ़ाता
सत्य सदा,सन्मार्ग दिखलाता
वैर-भाव का कर संताप हरण
हिय प्रेम-प्रसून पुण्य अंकुरण
भाषित चरित्र,चराचर का मूल 
धर्म,जीवन-पथ-गमन-अनुकूल
मायामोह,आशा-तृष्णा विकार
अहं-निस्तरण,उत्पन्न सदविचार
ज्ञान-चक्षु-अनावृत्त,जागृत बोध
धर्म-सद्धरन करे आत्म-शोध
तन-मन-धन वश,जीव परतंत्र
सफल जीवन-यापन,मूल-मंत्र 
-©नवल किशोर सिंह

स्वरचित 


धर्म

धर्म अपना बखूबी निभाती हूं मैं ।
हार कर भी सदा जीत जाती हूं मैं ॥

नेह दोगे मिलेगा तुम्हें नेह ही ।
बेवजह ना किसी को सताती हूं मैं ॥
धर्म अपना बखूबी निभाती हूं मैं ।

सर पे मेरे दुपट्टा सुहाता मगर ।
दुश्मनों के भी छक्के छुड़ाती हूं मैं ॥
धर्म अपना बखूबी निभाती हूं मैं ।

शास्त्र ले हाथ में शारदा मैं ही हूं ।
चंडी बन शस्त्र भी तो उठाती हूं मैं ॥
धर्म अपना बखूबी निभाती हूं मैं ।

मान सम्मान रक्षा परम धर्म है ।
हाथ बंदूक ले ये जताती हूं मैं ॥
धर्म अपना बखूबी निभाती हूं मैं ।

शांति चाहूं मैं हूं गांधीवादी सही ।
नेताजी सा बिगुल भी बजाती हूं मैं ॥
धर्म अपना बखूबी निभाती हूं मैं ।

रचना तिथि 23/01/2019
रचना स्वरचित एवं मौलिक है ।


धर्म मेरा मान हो।
धर्म स्वाभिमान हो।
रखूँ राष्ट्र का गौरव मै,
यही मान सम्मान हो।

देश स्वयं के देखूँ प्रभु,
निंदा कभी नहीं बनूँ।
सत्कर्म ही करते रहते,
निजधर्म से सदा डरूँ।

परोपकार परमार्थ करूँ मै,
हाथों से पुरूषार्थ करूँ।
समता हो समभाव सभी से,
प्रभु सदैव परस्वार्थ करूँ।

रहूँ उदारमना अहिंसक,
सत्य धर्म चरितार्थ करूँ।
जो दिया परमेश ने मुझको,
उसमें ही मैं कृतार्थ रहूँ।

स्वरचितःःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय


धर्म पंतग
सियासत डोर
जंग का शोर

(2)

रोटी दिलाये
चेहरे पर हँसी 
है सच्चा धर्म

(3)

धर्म का तवा
राजनीति की रोटी
सेकते नेता

(4)

धर्म है कला
मजहबों का सार
करो सम्मान 

स्वरचित *संगीता कुकरेती
*


खोज अमरत्व की 
विज्ञान और अध्यात्म की 
लिए जिज्ञासा मूल में 
और बोध शून्य का 
अभिलाषा अनंत की 

अध्यात्म के सँस्कार 
विज्ञान के चमत्कार 
हैं 
व्यवहारिक 
प्रायोगिक 
कुछ कथ्य हैं 
कुछ तथ्य हैं 
किन्तु.. 
लिए अभी 
अर्ध सत्य हैं 
यथा 
मानदंड, 
नैतिकता की 
पराकाष्ठा 
युद्ध की, विनाश की 
पराजय 
जीवन मूल्यों, संस्कृति की 
विकृत होते ये अपरूप 
हैं कुरूप कई अर्थों में 
यथा... 
परिचायक... 
धर्मांध के, उन्माद के 
कलुषित 
राजनीति के, संप्रदाय के 
ढिंढोरे 
मानवता के, समाज के 
चाहे समाधिस्थ हो अध्यात्म 
या हो 
विज्ञान ब्रह्माण्ड में लीन 
रहेगा अनुसंधान अनवरत 
रहेगी साध अधूरी 
मनुष्यता के आने तक 
नहीं होनी ये बातें पूरी 

स्वरचित 
ऋतुराज दवे



















  


















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