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ब्लॉग संख्या :-254
अलविदा"
***********************
पल हर पल बीत जायेगा,
यही बीता कल कहलायेगा,
दु:ख के पलों को भुला देना,
आने वाले पल का स्वागत करना |
कभी एक लम्हा ऐसा भी आयेगा,
जिसमें बीता कल नजर आयेगा,
बीते कल को तुम ढ़ाल बना लेना,
नये साल पर थोड़ा मुस्कुरा लेना |
मौसम तो फिर से वो ही आयेंगें,
बस जहां में किरदार बदल जायेगें,
नव वर्ष का हो रहा है आगमन,
अलविदा एे जाने वाले साल |
कुछ संकल्प आओ लें हम सभी,
सुधारें गल्तियां जो की थी कभी,
रिश्तों को बना लें हम सब खास,
गले लग जायें भुला के कड़वाहट |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
***********************
पल हर पल बीत जायेगा,
यही बीता कल कहलायेगा,
दु:ख के पलों को भुला देना,
आने वाले पल का स्वागत करना |
कभी एक लम्हा ऐसा भी आयेगा,
जिसमें बीता कल नजर आयेगा,
बीते कल को तुम ढ़ाल बना लेना,
नये साल पर थोड़ा मुस्कुरा लेना |
मौसम तो फिर से वो ही आयेंगें,
बस जहां में किरदार बदल जायेगें,
नव वर्ष का हो रहा है आगमन,
अलविदा एे जाने वाले साल |
कुछ संकल्प आओ लें हम सभी,
सुधारें गल्तियां जो की थी कभी,
रिश्तों को बना लें हम सब खास,
गले लग जायें भुला के कड़वाहट |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
''बीता कल"
बीता कल जाने क्यों मन को भाता है
बेशक था काँटों में पर वह सुहाता है ।।
देवों पर चढ़े हुये गुलाब भी मुरझाये
बीता कल शायद उनको रूलाता है ।।
जन्म लेते ही बच्चे का क्रंदन
शायद गर्भ में था वह मगन ।।
बेटी रोते हुये ससुराल जाये
बीते कल की ही है तड़फन ।।
हर लम्हे जी भरके जीना
बन रहा है यही सफ़ीना ।।
कल 'शिवम' यह भायेगा
बीता साल बीता महीना ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
बीता कल जाने क्यों मन को भाता है
बेशक था काँटों में पर वह सुहाता है ।।
देवों पर चढ़े हुये गुलाब भी मुरझाये
बीता कल शायद उनको रूलाता है ।।
जन्म लेते ही बच्चे का क्रंदन
शायद गर्भ में था वह मगन ।।
बेटी रोते हुये ससुराल जाये
बीते कल की ही है तड़फन ।।
हर लम्हे जी भरके जीना
बन रहा है यही सफ़ीना ।।
कल 'शिवम' यह भायेगा
बीता साल बीता महीना ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
पर गुज़स्ता साल में जो कुछ हुआ सब
भूल जाएं ।
भद्र हों राहें सभी कल्याण कारी दिन
हमारे ।
सत्य जगदाधार मानें हम हृदय परहित
विचारे ।
नफ़्रतों की खाइयों पर हम वफ़ा के पुल
बनाएं ।
एकता के बीज बो कर प्रेम की सरिता
बहाएं ।
भाव समता भरें हम अग्रणी संज्ञान
हो ।
ज्ञान वर्धन के लिए हर क्षेत्र में विज्ञान
हो ।
देश पर क़ुर्बान हो पल-पल वतन का
नौजवान ।
विश्व पर शासन करे मेरा वतन भारत
महान ।
चाँद ओ सूरज उतारें इस धरा की
आरती ।
विश्व के हर छोर पर गुँजे हमारी
भारती ।
अलविदा हों रंज सारे देश में छाए
अमन ।
फ़स्ले गुल आती रहे खिलता रहे सदियों
चमन ।
आपकी रौशन डगर हो हर क़दम पर
हर्ष हो।
साध पूरी हो मुबारक 'अ़क्स' नूतन
वर्ष हो ।
स्वरचित-राम सेवक दौनेरिया 'अ़क्स'
बाह-आगरा (उ०प्र०)
भूल जाएं ।
भद्र हों राहें सभी कल्याण कारी दिन
हमारे ।
सत्य जगदाधार मानें हम हृदय परहित
विचारे ।
नफ़्रतों की खाइयों पर हम वफ़ा के पुल
बनाएं ।
एकता के बीज बो कर प्रेम की सरिता
बहाएं ।
भाव समता भरें हम अग्रणी संज्ञान
हो ।
ज्ञान वर्धन के लिए हर क्षेत्र में विज्ञान
हो ।
देश पर क़ुर्बान हो पल-पल वतन का
नौजवान ।
विश्व पर शासन करे मेरा वतन भारत
महान ।
चाँद ओ सूरज उतारें इस धरा की
आरती ।
विश्व के हर छोर पर गुँजे हमारी
भारती ।
अलविदा हों रंज सारे देश में छाए
अमन ।
फ़स्ले गुल आती रहे खिलता रहे सदियों
चमन ।
आपकी रौशन डगर हो हर क़दम पर
हर्ष हो।
साध पूरी हो मुबारक 'अ़क्स' नूतन
वर्ष हो ।
स्वरचित-राम सेवक दौनेरिया 'अ़क्स'
बाह-आगरा (उ०प्र०)
जो गुजरा साल है वो लौट कर हरगिज न आएगा
बस एक मीठी याद बन , दिल में मेरे मुस्कुराएगा
कभी अँखियों में खुशियों के सितारे झिलमिलायेंगें
कभी ये आंख नम होगी, हमें वो पल रुलाएंगे
किसी भी दोस्त से लड़ना झगड़ना याद आएगा
भुला कर बैर फिर मिलना दोबारा याद आएगा
गुजरते साल में जो छोड़ गए दुनिया भुला न उनको पायेंगे
नव अंकुर ने भरा अँगना , हमें आ गुदगुदाएंगे
ये जीवन है सदा चलता , यूँ ही चलता रहेगा
भरें दामन खुशी से दूसरों का बस , चमन खिलता रहेगा
तजे दिल की बुराई , फिर नया एक काल* होगा
कल होगा फिर नया प्रारम्भ , नया साल होगा
*काल - समय
सरिता गर्ग
(स्व रचित)
बस एक मीठी याद बन , दिल में मेरे मुस्कुराएगा
कभी अँखियों में खुशियों के सितारे झिलमिलायेंगें
कभी ये आंख नम होगी, हमें वो पल रुलाएंगे
किसी भी दोस्त से लड़ना झगड़ना याद आएगा
भुला कर बैर फिर मिलना दोबारा याद आएगा
गुजरते साल में जो छोड़ गए दुनिया भुला न उनको पायेंगे
नव अंकुर ने भरा अँगना , हमें आ गुदगुदाएंगे
ये जीवन है सदा चलता , यूँ ही चलता रहेगा
भरें दामन खुशी से दूसरों का बस , चमन खिलता रहेगा
तजे दिल की बुराई , फिर नया एक काल* होगा
कल होगा फिर नया प्रारम्भ , नया साल होगा
*काल - समय
सरिता गर्ग
(स्व रचित)
चंद हाइकु 2018की विदाई में...
(1)
ना जीना व्यर्थ
जाते साल ने कहा
बन समर्थ
(2)
विदा के साथ
जाते वर्ष ने सौंपे
अधूरे ख्वाब
(3)
यादों का धन
बीते साल के लम्हें
तिज़ोरी मन
(4)
स्वप्न मकान
गरीब फुटपाथ
एक सा साल
(5)
वर्ष विदाई
झोली में सुख दुःख
शिक्षा भी पाई
(6)
क्या दें जवाब
वर्ष आखिरी दिन
माँगे हिसाब
स्वरचित
ऋतुराज दवे
राजसमंद(राज.)
(1)
ना जीना व्यर्थ
जाते साल ने कहा
बन समर्थ
(2)
विदा के साथ
जाते वर्ष ने सौंपे
अधूरे ख्वाब
(3)
यादों का धन
बीते साल के लम्हें
तिज़ोरी मन
(4)
स्वप्न मकान
गरीब फुटपाथ
एक सा साल
(5)
वर्ष विदाई
झोली में सुख दुःख
शिक्षा भी पाई
(6)
क्या दें जवाब
वर्ष आखिरी दिन
माँगे हिसाब
स्वरचित
ऋतुराज दवे
राजसमंद(राज.)
सरहद पर कहते करें सफर
साथियों तुम्हें हमारा अलविदा।
तुम रहते क्यों हमसे खफा,
चलो कहीं हमारा अलविदा।
जीव की क्या औकात यहाँ,
उसका आदेश हमारा अलविदा।
आपसे मिलना होगा कभी,
कहते तुमसे हमारा अलविदा।
जय भारत हो जय भारती,
अंतिम सफर हमारा अलविदा।
स्वरचितःःः
इंजी।
शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
साथियों तुम्हें हमारा अलविदा।
तुम रहते क्यों हमसे खफा,
चलो कहीं हमारा अलविदा।
जीव की क्या औकात यहाँ,
उसका आदेश हमारा अलविदा।
आपसे मिलना होगा कभी,
कहते तुमसे हमारा अलविदा।
जय भारत हो जय भारती,
अंतिम सफर हमारा अलविदा।
स्वरचितःःः
इंजी।
शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
न मैं जानू न तू जाने....
प्रेम की भाषा प्रेम ही जाने...
जो बीता वो दिन था....
निकल गयी वो रात...
प्रेम कभी न बीता कल था....
न वो गुज़री हुई रात....
नज़ाकत भरी उंगलियां...
चेहरे को ढूंढती तेरे...मेरे...
कानों में साँसों की सरगोशी...
थिरकती खून में तेरे...मेरे...
कैसे कह दें कि है कोई याद...
या बीती हुई बात....
कैसे कह दें....
मन तेरा मेरा कब था अलग...
भाव किसके सरिता थे...
किसके समंदर....
किसने किसको जीता...
और किसने किसको हारा....
अलविदा तुमने तू को कह दिया...
मैंने मैं को कर दिया...
न 'तुम' तुम हो न 'मैं' ही मैं हूँ....
न कल थी फ़रियाद कोई...
न आज है फ़रियाद....
किस के लिए और क्यूँ करें...
‘हम’ फ़रियाद....
प्रेम कभी न बीता कल था....
न वो गुज़री हुई रात....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
प्रेम की भाषा प्रेम ही जाने...
जो बीता वो दिन था....
निकल गयी वो रात...
प्रेम कभी न बीता कल था....
न वो गुज़री हुई रात....
नज़ाकत भरी उंगलियां...
चेहरे को ढूंढती तेरे...मेरे...
कानों में साँसों की सरगोशी...
थिरकती खून में तेरे...मेरे...
कैसे कह दें कि है कोई याद...
या बीती हुई बात....
कैसे कह दें....
मन तेरा मेरा कब था अलग...
भाव किसके सरिता थे...
किसके समंदर....
किसने किसको जीता...
और किसने किसको हारा....
अलविदा तुमने तू को कह दिया...
मैंने मैं को कर दिया...
न 'तुम' तुम हो न 'मैं' ही मैं हूँ....
न कल थी फ़रियाद कोई...
न आज है फ़रियाद....
किस के लिए और क्यूँ करें...
‘हम’ फ़रियाद....
प्रेम कभी न बीता कल था....
न वो गुज़री हुई रात....
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
न मन्दिर सा लगता है, न ये महफिल सा लगता है।
मुहब्बत हो न जिस दिल मे क्या दिल सा लगता है।
कभी देखू तुझे तो क्यों , मेरा दिल यह कहता है।
तेरा चेहरा न जाने क्यूँ मेरे, कातिल सा लगता है।
जिसे सब चांद कहते हैं, लगे सबको बडा प्यारा।
टकां अम्बर में गालों के वो तेरे तिल सा लगता है।
अधेंरो का सफर तन्हा आखें यूं, हर रात करती हैं।
बस रौशन तेरा चेहरा किसी मन्जिल सा लगता है।
कभी हाँ की कभी ना की, जाने है क्या रहा बाकी।
ये मिलना बिछड़ना लहरों से साहिल सा लगता है।
विपिन सोहल
मुहब्बत हो न जिस दिल मे क्या दिल सा लगता है।
कभी देखू तुझे तो क्यों , मेरा दिल यह कहता है।
तेरा चेहरा न जाने क्यूँ मेरे, कातिल सा लगता है।
जिसे सब चांद कहते हैं, लगे सबको बडा प्यारा।
टकां अम्बर में गालों के वो तेरे तिल सा लगता है।
अधेंरो का सफर तन्हा आखें यूं, हर रात करती हैं।
बस रौशन तेरा चेहरा किसी मन्जिल सा लगता है।
कभी हाँ की कभी ना की, जाने है क्या रहा बाकी।
ये मिलना बिछड़ना लहरों से साहिल सा लगता है।
विपिन सोहल
विधा .. लघु कविता
*********************
🍁
मिलने की आशा को रखना,
प्रेम भरी भाषा ही रखना।
जाता है जाने दो साल को,
अलविदा तुम लेकिन ना कहना॥
🍁
आवाहृन कर नये साल का,
आलिंग्न कर स्नेह भाव का।
पूर्ण समर्पित कर दो खुद को,
आते हुई इस नये साल का॥
🍁
भाव भरो नव ऊर्जा का तुम,
दृष्टि समागम पर रखो।
उत्कर्ष मिले इस मातृभूमि को,
मधुर सुनहरे भाव भरो॥
🍁
गर दावत की करो व्यवस्था,
शेर हृदय को याद करो।
कविता की महफिल अपना कर,
नये सृजन नव भाव भरो॥
🍁
स्वरचित... Sher Singh Sarraf
*********************
🍁
मिलने की आशा को रखना,
प्रेम भरी भाषा ही रखना।
जाता है जाने दो साल को,
अलविदा तुम लेकिन ना कहना॥
🍁
आवाहृन कर नये साल का,
आलिंग्न कर स्नेह भाव का।
पूर्ण समर्पित कर दो खुद को,
आते हुई इस नये साल का॥
🍁
भाव भरो नव ऊर्जा का तुम,
दृष्टि समागम पर रखो।
उत्कर्ष मिले इस मातृभूमि को,
मधुर सुनहरे भाव भरो॥
🍁
गर दावत की करो व्यवस्था,
शेर हृदय को याद करो।
कविता की महफिल अपना कर,
नये सृजन नव भाव भरो॥
🍁
स्वरचित... Sher Singh Sarraf
मेरा यादगार साल,
जब मैं शादी के बाद ससुराल आयी, बहुत सारे अपने जाने हुए रिश्तो को छोड़कर नए अनजान लोगो के साथ जुड़ने, मन में एक डर,संकोच्, लिए कुछ अभिलाषाओं क साथ ।
बात 6 साल पहले की है जब मेरी शादी फिक्स हुई थी मायके में सबने हसते हुए कहा की इस बार तो नया साल, नयी जगह, नए लोग, पर ये लाइन सुनते ही मै बेचैन हो जाती थी सबसे दूर कैसे रहुँगी ?, ससुराल के लोग कैसे होंगे ?, क्या मै यहाँ की तरह New year Celebrarte कर पाऊंगी ?
समय आया शादी भी हो गयी नए लोगो के बिच भी आ गयी, और नया साल भी आ गया, रात को १२ बजे से ही मायके का फ़ोन आने लगा हैप्पी न्यू ईयर , सबका एक ही सवाल कैसे मना रही है New year ?। क्या बोलती समझ नही आ रहा था यहाँ तो सब शांति शांति था ।
कहानी में ट्विस्ट तो तब आया जब सुबह मै उठी तो सब लोग मेरे दरवाजे पे खड़े होकर एक साथ ही बोल उठे Happy New year, मेरे लिए सरप्राइज था ये सब, सामने सब थे खड़े, देवर - देवरानि, जेठ-जेठानी, उनके बच्चे, पूरी की पूरी टीम नयी दुल्हन को हैप्पी न्यू ईयर कहने के लिए खडा, और इस टीम के टीम लीडर थे मेरे पतिदेव। इतना प्यारा परिवार देखकर ख़ुशी से झूम उठी और सबको मैंने भी हैप्पी न्यू ईयर बोला।
इतने में मम्मी जी यानि सासु माँ की आवाज़ आयी क्या शोर गुल मचा रखा है ? सबके सब लोग चुप हो गये, मै भी थोड़ा डर गई, फिर उन्होंने कड़क आवाज़ में मुझे कहा नहा के तैयार हो जा ढंग से कुछ लोग आ सकते है आज न्यू ईयर पे मिलने तुझसे, मै तैयार हुई सारे श्रृंगार किये और थोड़ी लाज और थोड़े डर से मम्मी जी और पापा जी का आशीर्वाद लेने गयी, खूब सारा आशीर्वाद मिला ।
पापाजी ने बहुत सारा आशीर्वाद दिया और मम्मी जी ने मुझे गौर से देखा बहुत देर तक मै डर से खड़ी थी फिर उन्होंने कहा आ बहु बैठ, फिर उन्होंने मेरा चेहरा देखते हुए अपने भ्रम को तोडा और बोली तू तो कितनी प्यारी है, मुझे तो लगा था की तू काली है, छोटी है, पर तू तो वो लड़की है ही नही जो मै सोच कर बैठी थी, तू तो बहुत सुन्दर है, संस्कारी है, तेरी हाथ और लम्बी उंगलिया तो डॉक्टर की तरह लग रहे है, मुझे थोड़ी हसी आ गयी फिर मै थोड़ा रिलैक्स फील करने लगी, उन्होंने खूब सारा आशीर्वाद दिया । मैंने मायके फ़ोन लगाया सबको ये सब बताया, सब बहुत खुश हुए मै भी बहुत खुश हुयी ।
हर रिश्ते क साथ एक याद जुडी हैं बहन जैसी जेठानिया उनका प्यार हर रिश्ते के साथ एक याद जुड़ी हैं, जिसको मै जब भी सोचती हूं मेरे मन गद गद हो जाता है । नई जगह, नए लोग, नया साल सच में मेरे लिए यादगार बन गया।
छवि शर्मा
स्वरचित !
जब मैं शादी के बाद ससुराल आयी, बहुत सारे अपने जाने हुए रिश्तो को छोड़कर नए अनजान लोगो के साथ जुड़ने, मन में एक डर,संकोच्, लिए कुछ अभिलाषाओं क साथ ।
बात 6 साल पहले की है जब मेरी शादी फिक्स हुई थी मायके में सबने हसते हुए कहा की इस बार तो नया साल, नयी जगह, नए लोग, पर ये लाइन सुनते ही मै बेचैन हो जाती थी सबसे दूर कैसे रहुँगी ?, ससुराल के लोग कैसे होंगे ?, क्या मै यहाँ की तरह New year Celebrarte कर पाऊंगी ?
समय आया शादी भी हो गयी नए लोगो के बिच भी आ गयी, और नया साल भी आ गया, रात को १२ बजे से ही मायके का फ़ोन आने लगा हैप्पी न्यू ईयर , सबका एक ही सवाल कैसे मना रही है New year ?। क्या बोलती समझ नही आ रहा था यहाँ तो सब शांति शांति था ।
कहानी में ट्विस्ट तो तब आया जब सुबह मै उठी तो सब लोग मेरे दरवाजे पे खड़े होकर एक साथ ही बोल उठे Happy New year, मेरे लिए सरप्राइज था ये सब, सामने सब थे खड़े, देवर - देवरानि, जेठ-जेठानी, उनके बच्चे, पूरी की पूरी टीम नयी दुल्हन को हैप्पी न्यू ईयर कहने के लिए खडा, और इस टीम के टीम लीडर थे मेरे पतिदेव। इतना प्यारा परिवार देखकर ख़ुशी से झूम उठी और सबको मैंने भी हैप्पी न्यू ईयर बोला।
इतने में मम्मी जी यानि सासु माँ की आवाज़ आयी क्या शोर गुल मचा रखा है ? सबके सब लोग चुप हो गये, मै भी थोड़ा डर गई, फिर उन्होंने कड़क आवाज़ में मुझे कहा नहा के तैयार हो जा ढंग से कुछ लोग आ सकते है आज न्यू ईयर पे मिलने तुझसे, मै तैयार हुई सारे श्रृंगार किये और थोड़ी लाज और थोड़े डर से मम्मी जी और पापा जी का आशीर्वाद लेने गयी, खूब सारा आशीर्वाद मिला ।
पापाजी ने बहुत सारा आशीर्वाद दिया और मम्मी जी ने मुझे गौर से देखा बहुत देर तक मै डर से खड़ी थी फिर उन्होंने कहा आ बहु बैठ, फिर उन्होंने मेरा चेहरा देखते हुए अपने भ्रम को तोडा और बोली तू तो कितनी प्यारी है, मुझे तो लगा था की तू काली है, छोटी है, पर तू तो वो लड़की है ही नही जो मै सोच कर बैठी थी, तू तो बहुत सुन्दर है, संस्कारी है, तेरी हाथ और लम्बी उंगलिया तो डॉक्टर की तरह लग रहे है, मुझे थोड़ी हसी आ गयी फिर मै थोड़ा रिलैक्स फील करने लगी, उन्होंने खूब सारा आशीर्वाद दिया । मैंने मायके फ़ोन लगाया सबको ये सब बताया, सब बहुत खुश हुए मै भी बहुत खुश हुयी ।
हर रिश्ते क साथ एक याद जुडी हैं बहन जैसी जेठानिया उनका प्यार हर रिश्ते के साथ एक याद जुड़ी हैं, जिसको मै जब भी सोचती हूं मेरे मन गद गद हो जाता है । नई जगह, नए लोग, नया साल सच में मेरे लिए यादगार बन गया।
छवि शर्मा
स्वरचित !
विषय-अलविदा/यादगार/बीता कल
अलविदा हो रहा है, मिल लो सभी,
आएगा ना पलट कर , यह समय फिर कभी।
लेलो दुआ जाने वाले कि तुम,
कर लेना फिर स्वागत मिलकर सभी।
बनाओ यादगार इन पलों को सभी,
कि वक्त यह कभी भी ठहरता नहीं।
जी लो जी भर कर इन लम्हों को सभी,
बीते लम्हे लौट कर फिर आते नहीं।
करेंगे फिर स्वागत नए वर्ष का सभी,
यों अकेले से बात वो बनती नहीं।
मेरी आरजु है बुरे व्यसन छोड़ो,
यह जीवन दुबारा है मिलता नहीं।
चढा है नशा आने वाले को लेकर,
इतनी आसानी से वह उतरना नहीं।
कामना है मेरी तुम आगे ही बढना,
ना खोना ना रोना हर मंजिल को पाना।
मुबारक हो तुमको यह नव वर्ष सुहाना
मुबारक हो तुमको यह नव वर्ष सुहाना।।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
जयपुर
अलविदा हो रहा है, मिल लो सभी,
आएगा ना पलट कर , यह समय फिर कभी।
लेलो दुआ जाने वाले कि तुम,
कर लेना फिर स्वागत मिलकर सभी।
बनाओ यादगार इन पलों को सभी,
कि वक्त यह कभी भी ठहरता नहीं।
जी लो जी भर कर इन लम्हों को सभी,
बीते लम्हे लौट कर फिर आते नहीं।
करेंगे फिर स्वागत नए वर्ष का सभी,
यों अकेले से बात वो बनती नहीं।
मेरी आरजु है बुरे व्यसन छोड़ो,
यह जीवन दुबारा है मिलता नहीं।
चढा है नशा आने वाले को लेकर,
इतनी आसानी से वह उतरना नहीं।
कामना है मेरी तुम आगे ही बढना,
ना खोना ना रोना हर मंजिल को पाना।
मुबारक हो तुमको यह नव वर्ष सुहाना
मुबारक हो तुमको यह नव वर्ष सुहाना।।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
जयपुर
बीता जो कल सबको लुभाता, देता नयी एक प्रेरणा,
कल जो बीता उसे भूल जा, बढ वक्त का कर सामना |
खट्टा-मीठा और कडवा , होता अनुभवों का सिलसिला,
होती जिंदगी बढते ही रहना, है इसमें उसकी ही रजा |
है ये गुलदस्ता विविध रंगों का , हर रंग जीवन से जुड़ा,
खिलते फूल रिश्तों के यहाँ , है यह खुशबुओं का बांगबां |
निखरती है त्याग ही से जिंदगी, है स्वार्थ से लुटता जहाँ ,
बीता हुआ हर लम्हा कहता,अपनी ढूँढ ले मुझमें खुशी |
यादगार बना लो कल को, तुम्हारी खिल उठेगी जिंदगी,
अलविदा कह दो गमों को, खुशियों की रख लो पोटली |
बाँट लो जी भर के खुशियाँ, होता आगमन नव वर्ष का,
जागना आगाज है भोर का, होता उदय फिर से सूर्य का |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
कल जो बीता उसे भूल जा, बढ वक्त का कर सामना |
खट्टा-मीठा और कडवा , होता अनुभवों का सिलसिला,
होती जिंदगी बढते ही रहना, है इसमें उसकी ही रजा |
है ये गुलदस्ता विविध रंगों का , हर रंग जीवन से जुड़ा,
खिलते फूल रिश्तों के यहाँ , है यह खुशबुओं का बांगबां |
निखरती है त्याग ही से जिंदगी, है स्वार्थ से लुटता जहाँ ,
बीता हुआ हर लम्हा कहता,अपनी ढूँढ ले मुझमें खुशी |
यादगार बना लो कल को, तुम्हारी खिल उठेगी जिंदगी,
अलविदा कह दो गमों को, खुशियों की रख लो पोटली |
बाँट लो जी भर के खुशियाँ, होता आगमन नव वर्ष का,
जागना आगाज है भोर का, होता उदय फिर से सूर्य का |
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
अलविदा प्यारे 2018 तुम्हारा ।
इस वर्ष प्रति पल दिया हमारा ।।
अच्छे बुरे सब ही पल थे आय़े ।
नहीं कभी भी तुम हमे बिसराये।।
आज सदा को तुम छोड़ जाओगे।
आज के बाद नहीं कभी मिलोगे।।
हमको तुम सदा ही याद आओगे।
नहीं हमसे कभी, भुलाये जाओगे।।
हर घटना तुम्हारी इतिहास बनेगी।
भविष्य के लिये भी मिसाल रहेगी।।
बिताये हुये सुखद पल याद रखेंगे ।
दुखद पल भुलाने का प्रयास करेंगे।।
अलविदा अलविदा अलविदा अलविदा।
अलविदा अलविदा अलविदा अलविदा।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबाद”
स्वरचित
इस वर्ष प्रति पल दिया हमारा ।।
अच्छे बुरे सब ही पल थे आय़े ।
नहीं कभी भी तुम हमे बिसराये।।
आज सदा को तुम छोड़ जाओगे।
आज के बाद नहीं कभी मिलोगे।।
हमको तुम सदा ही याद आओगे।
नहीं हमसे कभी, भुलाये जाओगे।।
हर घटना तुम्हारी इतिहास बनेगी।
भविष्य के लिये भी मिसाल रहेगी।।
बिताये हुये सुखद पल याद रखेंगे ।
दुखद पल भुलाने का प्रयास करेंगे।।
अलविदा अलविदा अलविदा अलविदा।
अलविदा अलविदा अलविदा अलविदा।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबाद”
स्वरचित
इस जाते हुए साल ने....
दिये कुछ तोहफे अनमोल..।
उन तोहफों में...
मेरे लिए हो आप अनमोल..
कुछ यादें समेटे....
जा रहा ये साल...
बना रहे रिश्ता हमारा..
साल दर साल..
हो आप दूर मुझसे..
पर रंज नहीं मुझको...
आंखे बंद करूं जब..
करीब पाऊं आपको..
है ये वादा मेरा आपसे...
साथ रहूंगा जनम जनम..
नहीं भूलूंगा कभी..
चाहे खुशियाँ हो या गम...
स्वरचित मुकेश राठौड़
विधा: छंद मुक्त कविता
यादगार बनाते है हर पल
यादगार बनाते है,
हसीन पलों को।
आओ साथी,
इस साल के अंतिम दिन
आओ साथी ,आ जाओ साथी।
दिल की बात सुनाते है
एक दूजे को हम
आओ साथी,
आमने सामने बैठकर
आओ साथी, आ जाओ साथी।
चलो आज भूल जाते है
बुरे बीते वक्त को हम।
आओ साथी,
रात गई बात गई कहकर
आओ साथी, आ जाओ साथी।
चलो आज मुस्करा लेते है
याद कर कुछ किस्सों को हम।
आओ साथी,
बतियाते है साथ बैठकर
आओ साथी, आ जाओ साथी
हा, यादगार बनाते है
आज के अंतिम क्षणों को हम।
आओ साथी,
दो पल साथ बैठकर
आओ साथी आ जाओ साथी।
दे देते है क्षमा एक दूजे को
जाने अनजाने में करी गलतियों की हम।
आओ साथी,
क्या कर लेंगे हम नाराज हो कर
आओ साथी आ जाओ साथी।
शुरू करते है एक नई जिंदगी
पुरानी को अलविदा कह देते है हम।
आओ साथी,
नव वर्ष की शुभकामनाएं देकर
आओ साथी आ जाओ साथी।
स्वरचित
सुखचैन मेहरा
यादगार बनाते है हर पल
यादगार बनाते है,
हसीन पलों को।
आओ साथी,
इस साल के अंतिम दिन
आओ साथी ,आ जाओ साथी।
दिल की बात सुनाते है
एक दूजे को हम
आओ साथी,
आमने सामने बैठकर
आओ साथी, आ जाओ साथी।
चलो आज भूल जाते है
बुरे बीते वक्त को हम।
आओ साथी,
रात गई बात गई कहकर
आओ साथी, आ जाओ साथी।
चलो आज मुस्करा लेते है
याद कर कुछ किस्सों को हम।
आओ साथी,
बतियाते है साथ बैठकर
आओ साथी, आ जाओ साथी
हा, यादगार बनाते है
आज के अंतिम क्षणों को हम।
आओ साथी,
दो पल साथ बैठकर
आओ साथी आ जाओ साथी।
दे देते है क्षमा एक दूजे को
जाने अनजाने में करी गलतियों की हम।
आओ साथी,
क्या कर लेंगे हम नाराज हो कर
आओ साथी आ जाओ साथी।
शुरू करते है एक नई जिंदगी
पुरानी को अलविदा कह देते है हम।
आओ साथी,
नव वर्ष की शुभकामनाएं देकर
आओ साथी आ जाओ साथी।
स्वरचित
सुखचैन मेहरा
जो बीते लम्हें गुजर गये।
उसे भूल जा,नहीं याद रख।
जो आने बाला कल है वो।
उसे साद रख,आबाद रख।
दुःखभरे लम्हें भूल जा।
सुख के क्षणों को याद रख।
जिंदगी का यही फलसफा।
रीत जहाँ का ये याद रख।।
बीते साल की गलतियों को माफ़ करना।
आने बाले साल केलिये दिल साफ रखना।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
उसे भूल जा,नहीं याद रख।
जो आने बाला कल है वो।
उसे साद रख,आबाद रख।
दुःखभरे लम्हें भूल जा।
सुख के क्षणों को याद रख।
जिंदगी का यही फलसफा।
रीत जहाँ का ये याद रख।।
बीते साल की गलतियों को माफ़ करना।
आने बाले साल केलिये दिल साफ रखना।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
इन क्षणों को कैसे रोकूँ ,इनमें नहीं है अपना बस,
इस वर्ष का लेकिन देखो ,आ गया अन्तिम दिवस।
आज रात हम रहेंगे, नीले गगन के नीचे,
मैं तुम्हें कुछ भेंट दूँगा,तुम रहना बस आँखें मींचे,
तुम पहनना ,वो ही साड़ी आसमानी,
हम भी याद करेंगे अपनी ,फिर बातें पुरानी,
इस साल का भी ,मंथन करेंगे,
इस निशा में ही ,चिन्तन करेंगे।
आते जाते वर्ष का होगा , क्षणिक मधुर आलिंगन,
आदमी कितना बढ़ा देता,इन बातों का स्पन्दन।
हम भी मिलकर स्वागत की ,चलो धुन बजायेंगे,
पुराने वर्ष की विदाई के, सुन्दर गीत गायेंगे,
और मन में खुशी मनायेंगे,
नई योजना भी बनायेंगे।
आनन्द ढूँढो तो,जीवन है,
मन भी सुन्दर, उपवन है,
इसमें ही अनुपम ,धन है,
प्रेम ही सच्चा, अर्जन है।
आओ थोड़ी सी,बात करें,
काली निशा को ,आत्मसात् करें,
एक दूजे के मन में, नई फिर से बरसात करें,
सुगन्धों की सौगात भरें,
सुगन्धों की सौगात भरें।
जय श्री कृष्ण।
इस वर्ष का लेकिन देखो ,आ गया अन्तिम दिवस।
आज रात हम रहेंगे, नीले गगन के नीचे,
मैं तुम्हें कुछ भेंट दूँगा,तुम रहना बस आँखें मींचे,
तुम पहनना ,वो ही साड़ी आसमानी,
हम भी याद करेंगे अपनी ,फिर बातें पुरानी,
इस साल का भी ,मंथन करेंगे,
इस निशा में ही ,चिन्तन करेंगे।
आते जाते वर्ष का होगा , क्षणिक मधुर आलिंगन,
आदमी कितना बढ़ा देता,इन बातों का स्पन्दन।
हम भी मिलकर स्वागत की ,चलो धुन बजायेंगे,
पुराने वर्ष की विदाई के, सुन्दर गीत गायेंगे,
और मन में खुशी मनायेंगे,
नई योजना भी बनायेंगे।
आनन्द ढूँढो तो,जीवन है,
मन भी सुन्दर, उपवन है,
इसमें ही अनुपम ,धन है,
प्रेम ही सच्चा, अर्जन है।
आओ थोड़ी सी,बात करें,
काली निशा को ,आत्मसात् करें,
एक दूजे के मन में, नई फिर से बरसात करें,
सुगन्धों की सौगात भरें,
सुगन्धों की सौगात भरें।
जय श्री कृष्ण।
"बीता कल/यादगार/अलविदा"
लघु कविता
✍️✍️✍️
सुबह की किरणें,शर्माती आती
धरा पर पड़ते ही नाच उठती
बीता पहर,साँझ ढलती
झूमता इठलाता,चाँद भी आता
निंदिया आती,रात गहराती
रात और दिन की पूरी हुई कहानी
खुशियों संग"आज"आई
गुजरा वक्त 'बीता कल 'कहलाया
✍️✍️✍️
सुख दुःख साथ-साथ चलते
नाते-रिश्ते बनते और बिगड़ते
कुछ मिलते कुछ बिछुड़ते
चलता रहा वक्त का पहिया
कुछ भूल गई, कुछ याद रहा
बीता कल सीखला गया
✍️✍️✍️
"बीता कल"बना अतीत
कुछ प्रश्न करते विस्मित
रही जिंदगी सवालों के घेरों में
उत्तर सारे ढूँढ पाना कठिन
कुछ मिली,कुछ रही नामुमकिन
✍️✍️✍️
मुस्कुराते होठों से सपने सजाई
जागे अरमान ,जागी आशाऐं
कुछ पूरी हुई, कुछ रही अधूरी
यादों की बरसातें झूमकर आई
यादगार बना हर लम्हा
बीता कल कहलाया
✍️✍️✍️
जन्म हुआ है आज तो
मृत्यु भी करीब है
शुरू हुई है बात तो
समाप्ति भी होगी
यह साल कुछ पल का है मेहमान
आ रही विदाई की घड़ी
अलविदा कहने को है आतुर
✍️✍️✍️
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
लघु कविता
✍️✍️✍️
सुबह की किरणें,शर्माती आती
धरा पर पड़ते ही नाच उठती
बीता पहर,साँझ ढलती
झूमता इठलाता,चाँद भी आता
निंदिया आती,रात गहराती
रात और दिन की पूरी हुई कहानी
खुशियों संग"आज"आई
गुजरा वक्त 'बीता कल 'कहलाया
✍️✍️✍️
सुख दुःख साथ-साथ चलते
नाते-रिश्ते बनते और बिगड़ते
कुछ मिलते कुछ बिछुड़ते
चलता रहा वक्त का पहिया
कुछ भूल गई, कुछ याद रहा
बीता कल सीखला गया
✍️✍️✍️
"बीता कल"बना अतीत
कुछ प्रश्न करते विस्मित
रही जिंदगी सवालों के घेरों में
उत्तर सारे ढूँढ पाना कठिन
कुछ मिली,कुछ रही नामुमकिन
✍️✍️✍️
मुस्कुराते होठों से सपने सजाई
जागे अरमान ,जागी आशाऐं
कुछ पूरी हुई, कुछ रही अधूरी
यादों की बरसातें झूमकर आई
यादगार बना हर लम्हा
बीता कल कहलाया
✍️✍️✍️
जन्म हुआ है आज तो
मृत्यु भी करीब है
शुरू हुई है बात तो
समाप्ति भी होगी
यह साल कुछ पल का है मेहमान
आ रही विदाई की घड़ी
अलविदा कहने को है आतुर
✍️✍️✍️
स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल
करे स्वागत
देकर के बिदाई
जो बीता कल
होंगा साकार
छुटा जो बीता कल
ख्वाब आकार
सुख व दुःख
यादगार थे क्षण
जो बीता कल
करके पुण्य
यादगार मनाएं
नूतन वर्ष
खुशियाँ बाँट
अलविदा कहता
बिता है कल
यही प्रयत्न
कर्म हो यादगार
नूतन वर्ष
भावों के मोती
यादगार सफर
रहा है मेरा
मेरा सौभाग्य
कलम भी निखरी
बीते कल में
स्वरचित
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
देकर के बिदाई
जो बीता कल
होंगा साकार
छुटा जो बीता कल
ख्वाब आकार
सुख व दुःख
यादगार थे क्षण
जो बीता कल
करके पुण्य
यादगार मनाएं
नूतन वर्ष
खुशियाँ बाँट
अलविदा कहता
बिता है कल
यही प्रयत्न
कर्म हो यादगार
नूतन वर्ष
भावों के मोती
यादगार सफर
रहा है मेरा
मेरा सौभाग्य
कलम भी निखरी
बीते कल में
स्वरचित
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
जीर्ण वर्ष के साथ मेरी उपस्थिति
1
बीता कल
चेहरे वही, कहाँ कोई चाल बदला है
बदलते कलेंडर कहते साल बदला है
दिसम्बर से जनवरी,पलभर की दूरी है
पुनर्मिलन,हा,कितनी लंबी मजबूरी है
ये तो बिछड़ेंगे पर फिर मिल जाएंगे
जीवन के बीते पल अब कहाँ आएंगे
कितने ही ऐसे आज बीतकर कल हुए
आनेवाले कल का फिर कहाँ संबल हुए
**************
2
यादगार
सीने में दफन
यादों की कब्र
साँसों में पलती
विस्मृतियों को
पुरजोर छलती
मृत अहसासों की
मधु-कटु स्मार्त
धड़कने रह गई
बनकर यादगार
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
"' इस नववर्ष पर बचाये रखना""
बचाए रखना, सुंदर धरती के लिए अनन्त आभार...
आसमान के लिए एक गहरा सम्मोहन...
बचाए रखना,सूरज को स्वार्थ की धुंध से...
शीतल चाँदनी को अँधेरों से...
बचाए रखना, मधुर कलरव के लिए अपनी चकित दृष्टियाँ...
सुंदर फूलों के लिए रंगीन तितलियों का सा स्नेह...
बचाए रखना, घर के आँगन में विश्वास की हरियाली की छाँव...
रिश्तों की टहनी पर स्नेह के फूल...
बचाए रखना, भीड़ भरी दुनिया में एक सच्चा अपना...
उम्र के कटघरे में खड़ी साँसो के लिए थोड़ा बचपना...
सुख की नींद के लिए एक मीठा सपना...
मंजिल की ऊँचाइयों के लिए साहस-विश्वास बचाए रखना...
बचाए रखना, दीन-दुखियों के लिए थोड़े आँसू ...
थके बटोही के लिए विनम्र भाव...
पशुओं के प्रति भी थोड़ा लगाव...
बचाए रखना, कवि हृदय में सुंदर कल्पनाएं...
अर्थपूर्ण भावनाएं...
और नव वर्ष की ढ़ेर सारी शुभकामनाओं सहित अंत में यही कि...
बचाए रखना, सबसे कमजोर वक्त के लिए अपना सबसे मजबूत धैर्य...
स्वरचित "पथिक रचना"
बचाए रखना, सुंदर धरती के लिए अनन्त आभार...
आसमान के लिए एक गहरा सम्मोहन...
बचाए रखना,सूरज को स्वार्थ की धुंध से...
शीतल चाँदनी को अँधेरों से...
बचाए रखना, मधुर कलरव के लिए अपनी चकित दृष्टियाँ...
सुंदर फूलों के लिए रंगीन तितलियों का सा स्नेह...
बचाए रखना, घर के आँगन में विश्वास की हरियाली की छाँव...
रिश्तों की टहनी पर स्नेह के फूल...
बचाए रखना, भीड़ भरी दुनिया में एक सच्चा अपना...
उम्र के कटघरे में खड़ी साँसो के लिए थोड़ा बचपना...
सुख की नींद के लिए एक मीठा सपना...
मंजिल की ऊँचाइयों के लिए साहस-विश्वास बचाए रखना...
बचाए रखना, दीन-दुखियों के लिए थोड़े आँसू ...
थके बटोही के लिए विनम्र भाव...
पशुओं के प्रति भी थोड़ा लगाव...
बचाए रखना, कवि हृदय में सुंदर कल्पनाएं...
अर्थपूर्ण भावनाएं...
और नव वर्ष की ढ़ेर सारी शुभकामनाओं सहित अंत में यही कि...
बचाए रखना, सबसे कमजोर वक्त के लिए अपना सबसे मजबूत धैर्य...
स्वरचित "पथिक रचना"
यादों का कोई मोल नहीं होता हैं
जो बीत गया पल वो अनमोल होता हैं
बस बंद आँखों में उसका अहसास होता हैं
दूर होकर भी वो पल कुछ ख़ास होता हैं .
हमारे पास यादों का पिटारा कुछ ख़ास हैं
जो हर पल मन के पास हैं
बीते पल की वो बातें हैं कितनी प्यारी
जिसमें हैं खुशियाँ सारी.
पुराने साल के साथ दिन बीते गये
अपने प्यारे अजीज रिश्तें कहीं दिल में रह गये
मुलाक़ात हो ना हो पर उनकी सूरत आँखों में हैं
कभी ख़ुशी में कभी गम में हम उनको याद कर ही लेते हैं .
बीते साल की यादों का बसेरा आँखों में हैं
कल एक नये साल का सवेरा आने वाला हैं
बीते साल की बातों में आपका साथ था
उम्मीद हैं ये साथ हमेशा संग रहे
नववर्ष की हार्दिक बधाई सभी को .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
जो बीत गया पल वो अनमोल होता हैं
बस बंद आँखों में उसका अहसास होता हैं
दूर होकर भी वो पल कुछ ख़ास होता हैं .
हमारे पास यादों का पिटारा कुछ ख़ास हैं
जो हर पल मन के पास हैं
बीते पल की वो बातें हैं कितनी प्यारी
जिसमें हैं खुशियाँ सारी.
पुराने साल के साथ दिन बीते गये
अपने प्यारे अजीज रिश्तें कहीं दिल में रह गये
मुलाक़ात हो ना हो पर उनकी सूरत आँखों में हैं
कभी ख़ुशी में कभी गम में हम उनको याद कर ही लेते हैं .
बीते साल की यादों का बसेरा आँखों में हैं
कल एक नये साल का सवेरा आने वाला हैं
बीते साल की बातों में आपका साथ था
उम्मीद हैं ये साथ हमेशा संग रहे
नववर्ष की हार्दिक बधाई सभी को .
स्वरचित:- रीता बिष्ट
विषय-बीता कल
समय बीता तो कल बन गया
बीते लम्हों, यादों का सिलसिला शुरू हुआ
ऐ बीते कल! तू बहुत याद आएगा
तेरी यादों का सिलसिला बहुत सताएगा
ज़िंदगी गुज़र रही या कट रही
कहने का हौंसला कहाँ से आएगा ?
जो हुआ, जैसा हुआ पर सामना तो किया
इसी को ज़िंदादिली मैंने नाम दिया
कुछ अच्छा कुछ बुरा कुछ अप्रत्याशित घटा
कर्तव्यपथ की सारथी किसी से ना शिकवा ना कोई गिला
कुछ सपने बुने अरमानों की भेंट भी चढ़े
जी सोचा वो पाया नही
जो पाया वो भाया नही
कभी ख़ुद को बनाया तो कभी मिटाया
बनने बिखरने का दौर याद आएगा
कोई अपना रूठा तो कोई अपना मना लिया
रिश्तों के अहसास को साकार बना दिया
कभी हँसे तो कभी रोना भी आ गया
मगर आँख के आँसू को कभी
ग़ैरों को ना दिखने दिया
हसरतों का दामन भले ही ख़ाली -सा रहा
पर चेहरे पर शिकन का साया ना पड़ने दिया
समय मुझे परखता मैं समय को निरखती
एक अज़ीब सा द्वंद्व निर्बाध
बस चलता ही रहा......
उसके थे अपने दाँवपेच
मुश्किल था करना भेद अभेद
हारने हराने का शीतयुद्ध अनवरत चला
अंतर्वेदना का मर्म किसी को बताया नही
समय बेरहम ने धीरज बँधाया नही
बीता समय तू भी यादगार कहलाया
आज तू अंतिम पड़ाव पर है
गुज़रा हुआ समय कल हो चुका
सुनो प्रिये ! मेरा आगामी कल
तेरे बीते कल से होगा जुदा ....।
स्वरचित
संतोष कुमारी
समय बीता तो कल बन गया
बीते लम्हों, यादों का सिलसिला शुरू हुआ
ऐ बीते कल! तू बहुत याद आएगा
तेरी यादों का सिलसिला बहुत सताएगा
ज़िंदगी गुज़र रही या कट रही
कहने का हौंसला कहाँ से आएगा ?
जो हुआ, जैसा हुआ पर सामना तो किया
इसी को ज़िंदादिली मैंने नाम दिया
कुछ अच्छा कुछ बुरा कुछ अप्रत्याशित घटा
कर्तव्यपथ की सारथी किसी से ना शिकवा ना कोई गिला
कुछ सपने बुने अरमानों की भेंट भी चढ़े
जी सोचा वो पाया नही
जो पाया वो भाया नही
कभी ख़ुद को बनाया तो कभी मिटाया
बनने बिखरने का दौर याद आएगा
कोई अपना रूठा तो कोई अपना मना लिया
रिश्तों के अहसास को साकार बना दिया
कभी हँसे तो कभी रोना भी आ गया
मगर आँख के आँसू को कभी
ग़ैरों को ना दिखने दिया
हसरतों का दामन भले ही ख़ाली -सा रहा
पर चेहरे पर शिकन का साया ना पड़ने दिया
समय मुझे परखता मैं समय को निरखती
एक अज़ीब सा द्वंद्व निर्बाध
बस चलता ही रहा......
उसके थे अपने दाँवपेच
मुश्किल था करना भेद अभेद
हारने हराने का शीतयुद्ध अनवरत चला
अंतर्वेदना का मर्म किसी को बताया नही
समय बेरहम ने धीरज बँधाया नही
बीता समय तू भी यादगार कहलाया
आज तू अंतिम पड़ाव पर है
गुज़रा हुआ समय कल हो चुका
सुनो प्रिये ! मेरा आगामी कल
तेरे बीते कल से होगा जुदा ....।
स्वरचित
संतोष कुमारी
बीते पल न रीते गये
दे गये वे सुखद एहसास
कल जो पहली बार मिले
आज हो गये वो अपने खास
कल के नींव पर जो कल होगा
होगा सुन्दर भविष्य हमारा
अतीत जो गया बीत
दे गया हमें वो सीख
आज जो है वह कल बनेगा
जी भर कर जी ले आज
अनमोल है ये आज का पल
बना ले इसे हम यादगार
अलविदा कहने से पहले
बीत न जाये आज का पल
गीले शिकवे भूल कर हम
क्यों न गले मिल जाये हम।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
बीता कल जाते-जाते
फोड़ गया
मन पर पडे़
कुछ छाले
रिसते घावों पर
मरहम लगाने
नव उम्मीदों का
नव वर्ष
अकेला नहीं आया
ले आया बाँह पकड़
अनुभवों के यादगार
कुछ लम्हे उधार
पुराने अनुभवों से
नई सीख लें
कह रहा
बीता कल
उमंगों के झोंके ले
चला आ रहा
नव वर्ष ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
फोड़ गया
मन पर पडे़
कुछ छाले
रिसते घावों पर
मरहम लगाने
नव उम्मीदों का
नव वर्ष
अकेला नहीं आया
ले आया बाँह पकड़
अनुभवों के यादगार
कुछ लम्हे उधार
पुराने अनुभवों से
नई सीख लें
कह रहा
बीता कल
उमंगों के झोंके ले
चला आ रहा
नव वर्ष ।
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
बीता जो साल।
यादें है बेमिसाल।।
क्या दूं मिसाल।
वक़्त की चाल।
तारीखें मिलकर।।
बदलें साल।
रखना ख्याल।
इस साल जिनका।।
जीना मुहाल।
नूतन वर्ष।
यादगार बनाओ।।
फैलाओ हर्ष।
नये बरस।
खुशियां फ़ैले "ऐश"।।
हर तऱफ।
©ऐश...✍🏻
🍁अश्वनी कुमार चावला,अनूपगढ़ ,श्री गंगानगर🍁
यादें है बेमिसाल।।
क्या दूं मिसाल।
वक़्त की चाल।
तारीखें मिलकर।।
बदलें साल।
रखना ख्याल।
इस साल जिनका।।
जीना मुहाल।
नूतन वर्ष।
यादगार बनाओ।।
फैलाओ हर्ष।
नये बरस।
खुशियां फ़ैले "ऐश"।।
हर तऱफ।
©ऐश...✍🏻
🍁अश्वनी कुमार चावला,अनूपगढ़ ,श्री गंगानगर🍁
बीता कल
बीता कल गुजर गया देकर यादें हज़ार
मन अब भी कुछ पाने को है बेकरार
ख्वाब अधूरे ,काम अधूरे ,हैं अभी स्वप्न हज़ार
कल कल करके जिंदगी बीत जाएगी यार
पर बीता कल दे रहा सन्देश हज़ार
कुछ भी संग नहीं जाएगा कर लो जरा विचार
कर लो जरा विचार क्यों ऐसे हैं अनबन के किस्से
दो दिन की है जिंदगी करो न इसके हिस्से
मन में प्रीत जगाय के करो काम दो चार
दया धर्म संतोष परहित ही है सार
परहित ही है सार जिंदगी बन जाएगी
अपनों के साथ -साथ परयों को भी भा जाएगी
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
बीता कल गुजर गया देकर यादें हज़ार
मन अब भी कुछ पाने को है बेकरार
ख्वाब अधूरे ,काम अधूरे ,हैं अभी स्वप्न हज़ार
कल कल करके जिंदगी बीत जाएगी यार
पर बीता कल दे रहा सन्देश हज़ार
कुछ भी संग नहीं जाएगा कर लो जरा विचार
कर लो जरा विचार क्यों ऐसे हैं अनबन के किस्से
दो दिन की है जिंदगी करो न इसके हिस्से
मन में प्रीत जगाय के करो काम दो चार
दया धर्म संतोष परहित ही है सार
परहित ही है सार जिंदगी बन जाएगी
अपनों के साथ -साथ परयों को भी भा जाएगी
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
विधा-हाईकु
विषय- यादगार
१
लम्हें प्यार के
बनती यादगार
हर्षित मन
२
चँदनी रात
मिलन यादगार
हाथों में हाथ
३
बूढ़े नयन
खिलौने यादगार
निहारें राह
४
जीवन पथ
सुख-दुख गुलाब
है यादगार
स्वरचित-रेखा रविदत्त
विषय- यादगार
१
लम्हें प्यार के
बनती यादगार
हर्षित मन
२
चँदनी रात
मिलन यादगार
हाथों में हाथ
३
बूढ़े नयन
खिलौने यादगार
निहारें राह
४
जीवन पथ
सुख-दुख गुलाब
है यादगार
स्वरचित-रेखा रविदत्त
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