Friday, January 4

"बेटी /तनया "4जनवरी2019

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             ब्लॉग संख्या :-258



बेटियों का हरदम मान करो 

बेटियों का सदा सम्मान करो ।।
स्वावलंबी बनाओ उन्हे उनकी 
कोमल भावना का ध्यान करो ।।

बेटियाँ घर की शान है
उनसे घर में मुस्कान है ।।
बेटी को संस्कारित करना 
अच्छे समाज का निर्माण है ।।

संकीर्ण विचारधाराओं को छोड़ो 
समाज के निर्माण से नाता जोड़ो ।।
कर भला होगा भला ये सच 'शिवम'
उपेक्षा न करो उनसे न मुँह मोड़ो ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"

विषय .. बेटी/तनया
विधा .. लघु कविता 
**********************
🍁
अधनंगी चिथडो मे लिपटी,
वहाँ लाश पडी है कोई।
जाने किस निर्दयी ने लूटा,
बेटी पडी है कोई॥
🍁
छोटे से मासूम से मुँख पे,
दर्द अनेको होए।
बचपन भी ना बीता ना,
अस्मित ना जीवन होए॥
🍁

जाने किस पापी के मन मे,
पाप जगा है भाई।
नन्ही सी मासूम कली को,
रौंदा लाज ना आई॥
🍁
शेर कहे अन्तर्मन रोये,
इन्सान नही वो दानव।
छोटो सी बच्ची के दुख से,
इन्सानियत जगा ना मानव॥
🍁

स्वरचित ... Sher Singh Sarraf


ऑग
न की महकती कली हैं बेटीयाँ,
दिल की एक सुन्दर गली है बेटीयाँ,
बहार की प्यारी किलकारी है बेटीयाँ,
बहुत निराली और प्यारी है बेटीयाँ।

वो आदमी हीं नहीं जो जलाते हैं बेटीयाॅ,
वो आदमी हीं नहीं जो रूलाते हैं बेटीयाॅ,
वो आदमी ही नहीं जो धमकाते बेटियाँ
वो आदमी नहीं जो गले नहीं लगाते बेटियाँ।

शीश अम्बा के आगे झुकते ,उसके मूल में भी बेटीयाॅ,
माॅ के लिये लिखते न थकते ,उसके मूल में भी बेटीयाॅ,
हमारी सॅस्कृति पर गौर करो, जो बताती है यही,
सम्पदा शक्ति और विद्या, इनके मूल में भी बेटीयाॅ।

बेटियाँ! हमारे उपवन की शान हैं
बेटियाँ!हमारे कुल की पहचान हैं
बेटियाँ!मत समझो कुछ समय की मेहमान हैं
बेटिया!तो हमारे जीवन भर की तान हैं।

बेटी/तनया
1
बेटी ओढनी
लज्जा, संस्कारो भरी
सासरे चली।
2
नन्ही तनया
बन गई गुलाब
बगिया सजी।
3
एक चाय की प्याली हो 
जो बिटिया ने बनाई हो
सभी गमों को भूल कर
अमृत जो पिलाई हो।
-/-/-/
वीणा शर्मा वशिष्ठ


घर का श्रृंगार है बेटी।
मातु,पिता का प्यार है बेटी।
भाइयों की वो प्यारी बहना।
मन का उद्गार है बेटी।

गर बेटी ना हो घर में।
तो लगता घर सूना, सूना।
पर एक बेटी हो घर में।
तो महके घर का कोना,कोना।

बेटियों को पढ़ाओ।
बेटियों को बचाओ।।

यही बेटियां करेंगी नाम।
दुनियाँ में देश का नाम।
लायेंगी मेडल परदेशों से।
ऊँचा करेंगी देश का नाम।।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी



विघा .... घनाक्षरी
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
आँगन की बहार बेटी , माँ की पुकार बेटी ,
बापू के लाड़ प्यार शान की पहचान बेटी ।
दादी का संसार बेटी नानी का आधार बेटी
हमारी खुशी का , पारावार अरमान बेटी ।
घर का दुलार बेटी , खुशियाँ अपार बेटी 
मन में हमारे बसे ,तन - मन प्रान बेटी ।
करती न देर बेटी , सुनती है दुख बेटी 
ले चली आती है दुआओं का जहान बेटी ।
आदेश कुमार पंकज
स्वरचित

*****
भूमण्डल के तल पर तनया,
संचित पुण्यों का प्रतिफल चारु,
मानवीय जीवन उपवन की,
अनुपमेय कलिका उर भाव।

आदि-शक्ति स्त्री प्रतीक शुचि,
गहन हृदय न किंचित थाह,
मानस का विस्तार व्योम सा,
चिन्तन में शुचि परहित भाव।

व्यथा वेदना के पल-छिन में,
सहचर अतुल्य अदभुत सी,
केन्द्रबिन्दु उल्लास भाव की,
ऊर्जामय गतिमयता में।

मानव के जीवन मे तनया,
खुशियों की अनुपम निर्झरिणी,
भाव और संवेदन बल पर, 
शुचि विस्मयकारी वैतरिणी।

अचलातल पर एकमात्र शुचि,
गूढ़ पहेली अवर्णनीय श्रुत,
चिंतन मंथन कर हुआ पराजित,
बूझ न पाया स्वयं ब्रह्म भी।
--स्वरचित--
(अरुण)



रचयिता पूनम गोयल

मेरे प्राण हैं बेटी ,
मेरा अभिमान है बेटी ।
हर क्षेत्र में बढ़ाती ,
मेरी शान है बेटी ।।
पर न जानें क्यों ?
एक समाज विशेष में
परिवार का दंश भी है बेटी ।
और इसीलिए वहाँ
एक के बाद , एक
मारी जाती है बेटी ।।
कुछ तो हो जाती हैं शिकार ,
भ्रूण-हत्या की ।
और चढ़ जाती हैं कुछ ,
दहेज की वेदी ।।
कोई मुझे बताए
कि क्या अन्तर है —बेटी और बेटे में ?
क्यों बेटे के जन्म पे ख़ुश ,
और दुखी है व्यक्ति ,
बेटी के पैदा होने में ।।
यदि हर कोई बेटा ही चाहने लगे ,
तो बहू कहाँ से लाओगे ?
और उसके बिना कैसे ?
घर की ख़ुशियों को बढ़ाओगे ।।



माँ को बेटी का एक सन्देश

मेरे हालात रक से भी बदतर हो गये है,माँ
जहां तूने रानी बनाकर विदा किया था।
फटी चटाई पर सोती है तेरी रानी बिटिया,
उस पलंग पर नहीं जो दहेज में दिया था।।

हारकर संदेश भेज रही हूँ , मेरी सार लेलो,
तन के साथ साथ धन के भी लोभी है माँ।
मेरा ससुराल किसी कैद खाने से कम नही,
कोई नहीं सुनता मेरी, 'वो' भी मनमौजी है माँ।।

भाई को भी बताना तेरी बात सच हो गयी,
कहता था तुझे शराबी सईंया ढूंढ के दूंगा।।
बाबू जी को भी कहना घर भी गिरवी रख दे,
चेताया है दमाद ने, 'नहीं तो तलाक दे दूंगा'।।

माँ कोई काम नहीं आये तेरे वो सोने के कंगन, 
जिन्हें बेचकर आपने ढेर सारा दहेज दिया था।
और नही काम आयी विचोलिये को दी अंगूठी,
जिसने लड़के को सभ्य, सुशील करार दिया था।।

जल्दी से सार लेना कहीं ये सन्देश आखरी न हो,
मुझे घर से निकालने की साजिश चल रही है माँ।
कहीं जला ही न दे, कई बार गैस खुला रह गया,
बस यूँ समझना कि अंतिम सांस चल रही है माँ। 

-:-स्वरचित-:-

सुखचैन मेहरा




जब बेटा बेटी दोनों संतान, 
क्यों सहती रहती बेटी अपमान |
सेवा करती बनती सृष्टि पालक ,
तडपती है पाने को सम्मान |
पालन पोषण कर्तव्य निर्वहन ,
भली-भांति सब कर डाले |
अवसर आया दिल की बातों का ,
लगा लिये हमने ताले |
विस्मय कुंठा अवसाद ललक ,
हमनें क्यों दे दिये गहने |
उत्पीड़न का सहयोगी बन ,
लगा दिये विकास पर पहरे |
माँ बेटी बहन बहू पत्नी ,
इनको हम अबला ही समझे |
हर घर में खिला कुसुम तो था ,
हम समझ समझ के न समझे |
संघर्ष किया है बेटी ने कितना ,
अपना अस्तित्व बचाने को |
परवाह न की दुत्कारों की ,
खुद को सौंपा मझधारों को |
बेटी ने जतन किए कितने ही ,
घर का सम्मान बढाने को |
हम द्वार हृदय का बंद करें ना ,
कहें उसे भी आने को |
बेटा बेटी दोनों हैं जरूरी ,
घर संसार चलाने को |

स्वरचित , मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,

बेटी आँगन का फूल हो तुम... 
जीवन स्वर में संगीत हो तुम...
तुम से घर में उजियारा है....
तेरी पायल का छनकारा है...
तुम हो तो घर में बहारें हैं...
बिन तेरे शमशान ये सारे हैं...
बस मेरा मश्वरा एक है यही.....
समझना अपने को निर्बल नहीं...
शक्ति तुम में असीमित समायी है...
कुदरत की ही तू परछाई है....
पत्थर दिल मत बनना तुम...
पत्थर बन मुसीबत से लड़ना तुम....
ललकारे गर जीवन में कोई...
धोबी पछाड़ से पछाड़ना तुम...
बढे हाथ किसी राक्षस का अगर...
दुर्गा बन तब संहारना उसे तुम...
बन लक्ष्मी बाई देश जगाना है...
माँ टेरेसा जैसे भी संभालना है....
मत माँगना भीख किसी से तुम...
अधिकार स्वयं पैदा करना तुम...
अटल हो तुम परचंड हो तुम....
कर्म करो निर्भय हो कर तुम...
माँ बाप का गौरव मान हो तुम...
इस भारत माँ को शान हो तुम...

II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II 

माँ बाप के कलेजे की है जान बेटियाँ।
अपने ही घर में क्यों है मेहमान बेटियाँ। 


कुदरत ने धरा रूप और घर तेरे आई।
इन्सानियत को है तो है वरदान बेटियाँ। 

माँ बाप के माथे की शिकन मत कहना।
हर घड़ी में दिल की है मुस्कान बेटियां। 

लाओगे सजाने को तुम घर पे डोलियाँ। 
रहे खबर बाबुल का है अरमान बेटियाँ। 

हर सुबह सिहरता हूँ पढ के अखबार में। 
निगले हवस मे मासूम है, शैतान बेटियाँ।

विपिन सोहल

चंद हाइकु विषय:-"बेटी"(1)
अजब मूढ़ें
"बिटिया" फेंकी कूडे
बहु को ढूँढ़े
(2)
नाली में भ्रूण
मानवता के आँसू
स्वप्नों का खून
(3)
यादें समेट
"बेटी" जो हुई विदा
कलेजा फटा
(4)
"बेटी "चिरैया
कर्तव्य तिनके से
बुने घरौंदा
(5)
गृह चेतना
"बिटिया"संवेदना
बाँटे वेदना
(6)
घर महका 
"बिटिया" की ऊर्जा से 
चूल्हा चहका 
(7)
यादें ही संग 
"बेटी" के हाथ पीले 
घर बेरंग 
(8)
"बेटी"सँस्कार 
पल्लू बँधा विश्वास 
पिता की खास
(9)
रस्सी पे चाल
पीहर -ससुराल
बेटी कमाल

स्वरचित 
ऋतुराज दवे 
राजसमंद (राज.

मनहरण घनाक्षरी छंद 
8+8+8+7 

कुल की है ताज बेटी, 
घर की भी लाज बेटी, 
जिस घर रहे वहाँ, 
लक्ष्मी का भी वास है। 

माता की तो जान है ये, 
मधुर सा गान ये है, 
आन-बान, शान-मान 
नहीं परिहास है। 

पति की संगिनी बन, 
रहती है साथ सदा, 
कभी बहू बन कर, 
करती निवास है। 

अबला ये नहीं रही, 
कुलछिनी कहो नहीं, 
तेज बल बुद्धि सब, 
इसके भी पास है। 

भाविक भावी


विधा लघु कविता
04 ,01 ,2019,शुक्रवार

तनया मात्र तनया नहीं है
तनया वंदे जग की जननी
तन रूधिर सिंचित करती
निमित्त मात्र साजन सजनी
तनया ममता की मूरत है
लाल प्रसूता वह् जगति की
संस्कारों की वह् प्रेरणा है
शिशु हित ही जीवन जी ती
तनया भाई का बंधन है
वह् ललाट का चंदन है
वह् फूलों का गुलदस्ता है
हर नर का पावन वन्दन है
सृष्टि की सृष्टा है तनया
महके स्वयं सदा महकाती
प्रकृति अद्भुत स्वयम छटा
निर्मल नीर मरुधरा बहाती
गंग धार तनया विमल है
अडिग हिमालय साहस होती
शांत प्रशांत महासागर सी
अद्भुत अनमोलित देती मोती
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

1. घर की बेटी
प्रभात किरन सी
चमकने दो।

2. बेटी बचाओ
इतिहास बने यें
बेटी पढ़ाओ

3. बेटी न होगी
रोटी बनेगी कैसे
घर सजेगा।

4. बेटा नीलाम
परिवार तबाह
खुशियाँ गुम।

5. आने दो घर
नन्हीं परी बेटियाँ
सुख मिलेगा।

6. घर घर में
जनमेंगी बेटियाँ
मंगल होगा।

7. माँ का आँचल
हर खुशी से कहीं
बढ़कर है।

8. घर की देवी
बहन पत्नी बेटी
माँ, महादेवी।

9. उत्तम पूजा
माता-पिता की सेवा
मन से करो।

10. बहू बेटी सी
ससुराल घर क्यों 
नहीं बनता।

बृजेश भार्गव


प्यारी बेटियां 

अनमोल मोतियां 
सहती पीड़ा 



मनु तनया 
दीपक सी जलती 
तम सहती 


प्राची की भोर 
नम आंखो की कोर 
विभोर बेटी 


मधुर राग 
वसुधा का पराग 
पुष्प तनया 



मन की धरा 
प्रस्फुटित झरना 
प्राण तनया 

(स्वरचित )सुलोचना सिंह 
मौलिक 
भिलाई (दुर्ग )
बेटी/तनया
कोख में
कातर भाव से
ताकती बेटियाँ
मूक-बधिर-सी मांसपिंड
विधाता के
मन को भाँपती बेटियाँ
सड़क पर
भयभीत हिरणी-सी
भागती बेटियाँ
अपने ही घर में
पराया धन
अस्तित्व अपना
आंकती बेटियाँ
ससुराल के लाक्षागृह में
आग की लपटों से
बेबस झाँकती बेटियाँ
गृहलक्ष्मी है-
हमारी थाती बेटियाँ
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित

विषय=बेटी 
विध
ा=हाइकु 
=============
बेटी ले जन्म 
लक्ष्मी करे निवास
घर आंगन 
🌹🌹🌹
बहू नादान
रखो बेटी समान
खुशी अपार 
🌹🌹🌹
बेटी का जन्म 
भाग्य नहीं सौभाग्य 
प्राप्त से होता
🌹🌹🌹
बेटी हत्याएं
आतंकवाद सम
कर दो बंद 
🌹🌹🌹
काटो ना इन्हें 
ममता का दो पानी 
बेटी का वृक्ष 
🌹🌹🌹
बेटी बचाओ 
दहेज़ बनी आग
इसे बुझाओ
🌹🌹🌹
शिक्षित बेटी 
दहेज़ का दानव
वध करेगी
🌹🌹🌹
स्वरचित 
मुकेश भद्रावले 
हरदा मध्यप्रदेश 

विधा - छंद मुक्त

उतरी थी आँगन में
एक मासूम परी
दादा दादी की आंखें थी भरी
वंश बेल बढ़ेगी
पोता होगा तो
सोच कर खुश थे
पर न ख्वाइश 
हो पाई पूरी
पिता ने पहली बार 
तनया को 
गोद में उठाया
अपने अंश को गले से लगाया
छाती चौड़ी थी
सुता धन पाया
माँ ने प्यार से
बेटी को सहलाया
फिर ममता से दूध पिलाया
प्रसव पीड़ा भूली थी
अधर मुस्कुराये
सपने आंखों में
नए झिलमिलाए
घर में गूंजेंगी अब
नन्हीं किलकारियां
अँगना में घूमेगी
बजेगी पैजनियाँ
रूठना मनाना होगा
लाड लड़ाना होगा
खुशियों का खजाना
मेरी बिटिया है लाई
एक दिन हो जाएगी 
यह तो पराई
यही सोच माँ की
आंख भर आईं
न भेजूंगी तनया को 
अँखियों से दूर
दुलारी हमारी है
अनमोल कोहिनूर
जो आएगा ब्याहने उसे 
यहीं उसे रहना होगा
बदल देंगे हम मिलके
दुनिया का दस्तूर
अब न समझो बेटी को 
धन कभी पराया
दौलत है अपनी
अपना सरमाया
भाग वाले होते हैं
बेटी जिनके घर होती
वो घर आँगन में
खुशियों की
लड़ियाँ पिरोती

सरिता गर्ग
(स्व रचित)


विषय:बेटी

पापा की परी सब की हंसी
गुलाबी कली होती है बेटियां,
फिर क्यों बड़े होने पर,
जड़ से उखाड़ दी जाती हैं बेटियां
नए आंगन नई मिट्टी में छोड़
भाग्य भरोसे खुद पनपने को,
भेज दी जाती हैं बेटियां,
कभी सम्मान परिवार का,
कभी जला दी जाती है बेटियां
क्यों चोसड जैसे हार जीत के,
खेल में आजमाई जाती है बेटियां 
परिपक्व होने पर फिर एक नए माली
नाम उपनाम संग जोड़ दी जाती है बेटियां
बेटी, बीवी ,मां के नाम से ही जाने जाती हैं बेटियां
क्यों हर बार अस्तित्व की लड़ाई लड़ती है यह बेटियां
नीलम तोलानी



1)दर्द की दवा 
"तनया"जो मुस्काये
हरती पीड़ा

2)"बेटी" हँसती
आँगन महकाती
दो कुल खिले 

3)"बेटी" गुलाब 
पंखुड़ी महकाती 
घर बगिया

4)"बेटी" किरण
सुबह का उजाला
तम मिटता

5)काज सँवारे
तनया होशियार
बाबुल प्राण

@सारिका विजयवर्गीय"वीणा"



विषय -बेटी, तनया
विधा- पिरामिड


1)है 
बेटी
मासूम
जिजीविषा
खिले सुमन
महके आँगन
मायका ससुराल।

2)श्री 
अंश
तनया
ज्योति पुंज
देविस्वरूपा
जगतजननी
मृदुल निर्झरणी।

गीता गुप्ता 'मन'



खुशियों की हैं किलकारी बेटियाँ
होती हैं प्यारी प्यारी बेटियाँ

जूही चमेली सी घर महकाती 
लगती फूलों की क्यारी बेटियाँ

सपन सलोने की बनती धरोहर 
होती हैं पिता महतारी बेटियाँ 

दुख के समंदर भरती आँचल में 
नित बहाती सुख की वारि बेटियाँ 

हर रिश्ते को निभातीं हैं बखूबी 
जग में सबसे हैं न्यारी बेटियाँ
दोनों कुल को रौशन करती सदा
होती ऐसी संस्कारी बेटियाँ

होती अमावस में प्रभा दीपिका 
फागुन की हैं पिचकारी बेटियाँ

शक्ति पुंज हैं आदि सृष्टि रचयिता
कोख 
फिर भी जाती क्यूँ मारी 
बेटियाँ 

स्वरचित वन
सुधा शर्मा 
राजिम छत्तीसगढ़ 


बेटी है तो कल है,
समय चक्र का फल है।
हर खुशियों का आधार,
बेटी की कलकल है।
स्नेह भाव पूरित,
ममता की है मूरत।
बेटी बिन घर संसार अधूरा,
ये करे मात पिता के सपनों को पूरा।
बेटी वो कली है,
जिस आँगन में पली है,
सपनों से सुंदर वो गली है।
हर घर आँगन महका इससे,
जहाँ जहाँ ये चली है।
स्नेह बांध बनाती वो,
दो परिवारों का।
अनमोल मेल कराती वो,
दो घर संसारों का।
नदियों सी पावन पुनीता,
चंचल सी सुनीता।
बहती पवन की पुरवैया,
चहके जैसे गोरैया।

स्वरचित :- मुकेश राठौड़


!! तनया हूँ!!

विषय पुरातन 

किन्तु अध्याय
नया हूँ
इच्छा नहीं 
अनिच्छा हूँ 
अनगिनत,सम्बन्ध मेरे
पर सम-बन्ध
एक भी नहीं
क्योंकि!
तनय नहीं 
तनया हूँ
बँटी हुई हूँ 
खंड-खंड
हर खण्ड में 
समर्पण/अखण्ड हूँ
कर्तव्य मेरे 
हैं कई/अधिकार
एक भी नहीं
क्योंकि!
तनय नहीं
तनया हूँ 
दया/करूणा 
शील और लज्जा हूँ 
स्नेह की अस्थि 
नेह की मज्जा हूँ 
धैर्य/धीरज 
त्याग की मूरत
प्रेम का धागा कच्चा हूँ 
क्योंकि!
तनय नहीं
तनया हूँ 
स्वर्ण थी मैं
तपकर हो गई कुंदन
फिर भी मेरा 
मोल नहीं
मेरे हिस्से में क्यों!
इतना सहना
नहीं है घर मेरा
धन हूँ पराया
ये है कहना
क्योंकि?
तनय नहीं 
तनया हूँ .... 

रचनासिंह"रश्मि"
स्वरचित



बेटी बचाओ..., बेटी पढ़ाओ...! 
बेटाको भी बहुत कुछ सिखाओ!! 

नियम कानून को ताकपर रखकर, 
घूमते रहते सिरफिरा बनकर......। 
हैवानियत शैतानियत सवार हमेशा ,
नारी भक्षकको कर दो संघार हमेशा।। 

सौ में से छियानब्बे बरी सिर्फ चार को सजा ।
उसी समय चौराहे पर दो बलात्कार को सजा।। 

औन दी स्पोट सजा वाली कानून लगाओ ।
प्रतिकुल प्रभाव पड़नेवाली नियम सुधारो।। 

बेटा को भी बहुत कुछ सिखाओ ।
बेटी बचाओ..., बेटी पढ़ाओ....!! 

रेप और बलात्कार के डर से ।
निकलते नहीं बेटियाँ घर से ।।

भूख की संगीन जुर्म में ,
तीन बेटियाँ मौत के मुंह में ।
सड़ रहा गल रहा अनाज खेत में ,
चढ़ रही रोज बेटियाँ भेड़ीयों के भेट में।। 

यें तेरा दिल्ली यें मेरा दिल्ली करते रहो ।
कभी अनशन कभी धरना में बैठते रहो।। 

खिलाओ कमल कीचड़ में ,
लगाओ झाड़ू कीचड़ में ।
प्रतिद्वंदी बनकर बैठे रहो ,
बजाओ ताली कीचड़ में ।।

इनसानियत के नाम पर भी कुछ शरमाओ। 
प्रतिकुल प्रभाव पड़नेवाली नियम सुधारो ।।

औन दी स्पोट सजा वाली कानून लगाओ ।
बेटा को भी बहुत कुछ सिखाओ ।।
बेटी बचाओ..., बेटी पढ़ाओ...!!!!!!!!!!!

स्वरचित एवं मौलिक 
मनोज शाह मानस 
सुदर्शन पार्क 
मोती नगर ,नई दिल्ली

बिटिया 
बिटिया है घर की फुलवारी, 
महकाती है आंगन वाडी, 
नन्ही सी चिड़िया है ये, 
चह चहाए दुनिया मे सारी l 

क्यूँ कहते बोझ है सिर का, 
ये तो ओज है जीवन का, 
प्रकाश मय करती माँ आंगन, 
चिराग है सास के घर का l

दो दो कुल का मान है ये, 
पूरे जग का सम्मान है ये, 
बेटियां हैं युग निर्माता, 
इनके कारण जग उजियाता l

एक दिन ना दिवस मनाऊ, 
रोज रोज मै उसे समझाऊँ, 
'उत्साही 'की जान है 'मनोकृति '
फैलाएगी जग मे यश और कीर्ति l
कुसुम पंत 'उत्साही '
स्वरचित 
देहरादून



बेटी/तनया
"लघु कविता"

बेटी थी मासूम
फूल ना बन सकी
खिलने से पहले
कुचल दी गई
दर्द से तड़पती रही
जिन्दगी जी ना सकी
आँखें छलकती रही
जन्म को अपने कोशती रही
समाज में पलते दरिंदों ने
ऐसा ही काम जो किया
लाचार जुबान से पुकारती रही

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल

विषय-बेटी
अजन्मी बेटी का खत

मेरी प्यारी मां,

मां मैं तो हूं,
बस छाया तुम्हारी।
तुमसे हैं,
आशाएं सारी।

मत करना तू मुझको
निराश ,
तुझसे ही है मुझको
आस।

अभी तो मैं जन्मी भी नहीं हूं,
अभी तो मैं पनपी भी नहीं हूं।

दुनिया की निष्ठुरता सुन-सुन,
रहना चाहूं सदा कोख में तुम्हारी।

मां तुम कमजोर न पडना,
मेरे लिए तुम्हें दुनिया से लड़ना।

हार गई दुनिया से गर मां,
मारी न जाऊं कहीं कोख में तुम्हारी।

मां की ममता कभी नहीं बंटती,
चाहे उसे बेटा हो या बेटी।

बदल न लेना मां नजर तुम्हारी,
मेरी तुम पर जिम्मेदारी।

जब मैं दुनिया में आऊंगी,
नाम तेरा रोशन कर दूंगी।

बेटे से बढ़कर निकलूंगी,
फिक्र मैं तेरी हर पल करूंगी।

मां मैं बन तेरी परछाईं,
तेरे पदचिह्नों पर चलूंगी।

मां तू जीवन देनेवाली,
तुझसे सृष्टि चलती सारी।

मेरा ये विश्वास अटल है,
तेरे हाथों में मेरा कल है।

सुन लेना मेरी अरदास,
रखना सदा मुझे दिल के पास।

तुम्हारी अजन्मी बेटी

अभिलाषा चौहान
स्वरचित


बेटी को मत कहो मासूम
बेटी तो है नौ देवी रूप
हर अवतार में है शक्ति स्वरूप

पिता ने दिया बेटी को प्यार
माँ ने दिया भरपूर दुलार
बेटी से है घर में सुखी संसार

बेटी का जितना करो 
उतना कम है गुणगान 
वह तो है गुणों की खान

बेटी फैहरा रही
विजय पताका दुनियां में 
किसी क्षेत्र में पीछे नहीं 
वो दुनियां में 

बेटी है फुलवारी बगिया की
उसे मौका दो बनने 
सुगंध बगिया की

स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल


बधाई हो 
लक्ष्मी आई है 
आँख भर आई 
नजरे आकाश में 
सवाल या शुक्रिया 
सपने 
कितने सारे 
कितने महीनो से 
साथ साथ बुने
कितने नाम सोचे 
कितने खिलौने लाए 
स्वागतोत्सुक दोनो ही 
उत्सुकता 
पहले जैसी ही
जब पहली हुई थी 
आज दूसरी भी 
दिल क्यूं मायूस फिर 
दबी किसी कोने मे क्या 
एक बेटे की ख़्वाहिश 
बेटा 
कुलदीपक
घर का चिराग
वंश चलाने वाला
बेटी तो पराया धन
कल फिर किस आंगन 
कहा था 
सबने हर दफा 
मन्नते भी कई की 
पर दिल का फैसला 
अबोध की हत्या नहीं
बेटी आएगी 
मेरा आंगन खिलेगा
कलियां मुस्कराएगी
मुस्कान बिखरेगी जब वो 
मेरी चिंताएं मिट जाएगी 
स्वागत 
तेरा बेटी
बेटो से बढके तू
मेरे आंगन बढेगी तू 
मेरे आंगन पलेगी तू
मेरी पहचान बनेगी तू 
सबकी मुस्कान बनेगी तू 
गर्व है मुझे मेरी बेटी है तू 

कमलेश जोशी 
कांकरोली राजसमंद

हाइकु

बेटी गौरव
लहराये पताका
मिले वैभव

बेटी पराई
समाज ने बताई
आई विदाई

बेटी पुकारे
घर खुशियाँ लाये
मान दिलाये

गर्भ में बेटी
मन मेरा हर्षाये
मान दिलाये।
(अशोक राय वत्स)

 मेरी बेटी मेरा हर बात कहा मानती है
मेरी खुशियों से ज्यादा ग़म मेरा पहचानती है
उदास होता हूँ जब भी चली आती है दौड़़ी

मुस्कुरा कर मेरे सीने से लिपट जाती है
उसकी मुस्कान पाकर मैं भी मुस्कुराता हूँ
नन्हीं बाहों में अपना ग़म मैं भूल जाता हूँ
खुदा ने डाल दी नैमत है मेरे दामन में
खिलखिलाती है चहकती है मन के आँगन में
नन्हीं ऊँगली से थामती है जब वो हाथ मेरा
हौसला चार गुना बढ़ता है जीने का मेरा
मेरे जीने का सबब और मकसद है वही
ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं जो वो ज़िंदगी में नहीं।
"पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)


(कठुआ गैंगरेपपरआधारित कविता)

क्या हो गया है इंसान तुझको 
कैसे तेरा ईमान डगमगाया था
क्या तेरे अंदर का इंसान निकल-कर 
तुझमे हैवान समाया था ।
क्या फूल सी कोमल बच्ची को छूते
तेरी रूह नहीं कांपी होगी 
तेरे अंदर की इंसानियत क्या 
थोङी सी भी नहीं जागी होगी। 
निर्लज, निष्ठुर तेरे अंदर क्या कोई दरिंदा समाया था। 
क्या हो गया इंसान तुझको 
कैसे तेरा ईमान डगमगाया था

सोचा था हमने बेटी को, अब बोझ नहीं मनेंगे हम।
पढा लिखाकर क़ाबिल बनाकर 
उसको अपने पैरों पर खड़ा करेंगे हम।
बेटा-बेटी का भेद छोङ 
अब- जब हमने सुन्दर सपना सजाया था ।
क्या हो गया इंसान तुझको 
कैसे तेरा ईमान डगमगाया था। 

अब-जब भी बेटी घर से निकले,
डर का साया होता है ।
पल- पल उसके आगे- पीछे ,
माँ-बाप का पहरा होता है। 
गुड्डे-गुड़िया खेलने की उम्र में हमने 
इन दुष्टों से बचना सिखलाया ।
क्या हो गया इंसान तुझको 
कैसे तेरा ईमान डगमगाया था।

यूँ आंखें नम करने से अब
काम नहीं चलेगा 
आवाज़ उठानी होगी हमको 
एक कदम बढ़ाना होगा। 
अपने अंदर की ज्वाला को अब
और सुलगाना होगा। 
जब तक फांसी के फंदे का खौफ न तेरे अंदर जागेगा,
तब तक तेरे अंदर का शैतान कैसे निकल- कर भागेगा ।
कैसे निकल भागेगा।।

नीति अग्रवाल 
स्वरचित

🌷 
"बेटी" शीर्षकांतर्गत दोहे --

(1
)
बेटी कभी बोझ नहीं, करना इसका मान।
वो दो कुलों की रखती , मर्यादा और शान।।

(2)
बेटी बन दुल्हन गई , अपने पति के साथ।
ससुरा घर हलचल हुई, मेंहदी लाल हाथ।।

(3)
पिता की प्यारी बिटिया, चमके भाग्य लिलार।
माता की छाया बनी , बरसे खुशी दुआर।।

--- रेणु रंजन 
( स्वरचित )

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