Sunday, January 20

"सरल "18जनवरी2019

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें |
                                                               ब्लॉग संख्या :-272

प्रस्तुति 2
डमरू 
सरल बन मुस्काता 
नहीं घबराता 
जीवन जीता 
काँटों भरा 
खिलता 
पुष्प 
तू 
फिर 
दानव 
राहगीर 
नोंच डालता 
तुझे तड़पाता 
खुशबु बिखेरता 

कुसुम पंत "उत्साही "
स्वरचित 
देहरादून
"सरल"

(1)
जाग्रत चित्त
सरल भाव खींचे
प्रेम के चित्र।।
(2)
सरल बन
सुमधुर जीवन
कर्म सफल।।
(3)
सरल भाषा
पतझड़ में हरे
प्रेम के पुष्प।।
(4)
शांत स्वभाव
कर्त्तव्य निर्वाहन
सरल राह।।
(5)
सहज जीत
क्रोध पे प्रेम लेप
मन भी हंसी।
(6)
सरल निधि
मुस्कान पूर्ण विधि
विधा परिधि।।
(7)
सरल भाषा
कुबुद्धि छत्र धोती
आत्मिक शांति।।
(8)
शिक्षा का दान
सरल प्रतिमान
विधा सम्मान।।
(9)
प्रेम की गाँठें
उदारता के धागे
खुले सरल।।
(10)
चतुर स्त्री
सरलता से रँगे
प्रेम के धागे।।
(11)
कहें गुलाब
काँटों सँग रहना
कहाँ सरल?

स्वरचित
वीणा शर्मा वशिष्ठ
विधा .. लघु कविता 
**********************
🍁
🍁
इतना सरल भी नही है जीना,
तेरी यादों के सहारे।
कई रातें जग कर कटती मेरी,
तेरी यादों के सहारे।
🍁
🍁
यादों का झंझावर इतना,
जीवन कठिन हुआ है।
टेढी- मेढी सी पगदण्डी ,
चलना कठिन हुआ है।
🍁
🍁
फिर भी मै तो कुसुम पंथ जी,
चलता रहा निरन्तर हूँ।
जीवन मेरा सरल नही पर,
हँसता रहा तदन्तर हूँ।
🍁
🍁
भावों के मोती मे लिखता,
शेर हृदय का मंतर हूँ।
कविता क्या है भाव मेरे है,
ना ही कोई जन्तर हूँ ।
🍁
🍁

स्वरचित ... Sher Singh Sarraf



अनुप्रास अलंकार में हाइकु

सीधा सरल

सजन संग साथ
सुखद सुरलोक

सुंदर साथ

सरल सहोदर
सुलभ सदा

सजा सँवरा

सरल साँवरिया
सुख संसार

सरिता गर्ग

स्वरचित

भाषा हिन्दी 

हमारी राजभाषा है हिन्दी, 

संस्कृत की लाडली बेटी है, 
सरल है मधुर है मनोरम है, 
माँ भारती के मस्तक की बिन्दी |

धर्म-जाति के नाम पर,

इसको यूँ न तुम बिखराओ,
इसकी सरलता न उलझाओ,
ईश्वर का वरदान है हिन्दी |

साहित्य का असीम सागर है, 

कबीर, तुलसी की रचना में हिन्दी, 
पढ़ने पढ़ाने में सरल है हिन्दी, 
मीरा की भक्ति में है हिन्दी |

सरल स्वभाव का प्रमाण है, 

गागर में सागर है हिन्दी, 
भारत की शान है हिन्दी, 
हिमालय का ताज है हिन्दी |

स्वरचित *संगीता कुकरेती*



है नहीं इतना सरल भावों 
को बतलाना प्रिये ....

ये समर्पण प्रेम का हृदय

का ये आगाज है

नेह तुम से हुआ , मेरा

हृदय ही जानता..
इसको अब कैसे मैं बतलाऊँ
मुझे ये नहीं पता प्रिये

साँसो की डोरी साध कर मैं

चल रही जिस पथ प्रिये
देदो अब आबाज तो मैं दोड
कर आ जाऊँ उस पथ प्रिये

दे न जाना छोड़ साथ इस 

पथ में तुम ,मैं चलूँगी बीनती
काँटों को उस पथ से प्रिये

लाज तुम रख लेना , मेरे

हृदय की कामना, मैंने सींचे
हैं ,हृदय के फूल अश्रु भरकर
प्रिये........

क्यों न अब मैं रहूँ उत्साही

बडी ,तुम जो मिल कर चल
पडे हो फूल राहों के खिले
प्रिये

स्वरचित

नीलम शर्मा# नीलू


सरल दिल 
दुनियाँ झंझावात 
दरक गया |

दीपक जला 

सरल व्यवहार 
पी प्रेम प्याला |

सब जीते हैं 

सपने अधूरे हैं 
सरल नहीं |

काँच का घर 

सरल कोई नहीं 
पत्थर वार |

कान्हा हमारा 

जीवन पतवार 
सरल भाव |

स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,


सरल विरल पथ है जीवन
सम्भल सम्भल नर आगे बढ़
कंटक कांच सूई चुभती नित
साहस रख तू पर्वत पर चढ़
सरल नहीं रे स्नेह निभाना
हर पल यँहा परीक्षा होती
प्रिय मिलन होता सुखकारी
विरह पलों में आँखे रोती
सरल नहीं है शिक्षा लेना
त्याग तपस्या पर ही मिलती
रात रात भर सदा जागरण
तब मानस में ज्योति जलती
सरल नहीं है भक्ति मार्ग भी
आस्था निष्ठा पर यह चलता
यजन अर्चन उपवास सहारे
तब भक्ति हिय दीपक जलता
सरल नहीं है पालन पौषण
सरल नहीं निज स्वावलम्बन
सरल नहीं है देश भक्ति भी
सरल नही जग अर्पण तर्पण
सरल सादगी जन मन उठता
भौतिक आडम्बर सभी व्यर्थ
लक्ष्य बड़ा रखो जीवन तुम
तब ही जीवन सुखद समर्थ।।
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।


सरल
🌸🌸
जीना दुश्वार हो जाता है।
जीवन जहर बन जाता है।
जो मनुष्य बहुत सरल हुआ।
तो ये जग बैरी बन जाता है।

तेरी सरल बातें।

नहीं किसीको सुहाती।
जो सीधे,सच्चे हो तुम।
तो नहीं हैइसजगकोभाती।

तो बनना पड़ता है थोड़ा टेढ़ा।

क्योंकि सीधी ऊँगली से नहीं निकलता है घी।
थोड़ी टेढ़ी कर लो गर ऊँगली।
टी
तो निकल जाता है घी।

इसीलिये सीधे रहो।

पर एक हद तक।
जितनी हो जरूरत।
बस उतनी हीं तक।।
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
स्वरचित
वीणा झा


ये ग़ज़ल है ग़ज़ल मेरी अपनी ग़ज़ल

थोड़ी अल्हड दिखे फिर भी है सरल।

खूब सूरत है ये हर एक अन्दाज से
झील में खिल रहा हो जैसे कमल।

हो जाता था जब दुध से अलग पानी
नहीं दिखता हमै आज वैसा अदल।

बात करके गये अदलो इन्साफ की
वो अटल भी गये चन्द दिन में बदल।

हर आदमी करें जिक्र उनका यहां पर
आज किसी में कहां शहीदों सा अमल।

जहर दे देता है आज भाई को भाई
हामिद पीता कहां कोई शिव सा गरल। 

हामिद सन्दलपुरी की कलम से

सरल होना
है गुण मानवीय
मिलते नही।।


ये सरलता
लोग समझें मूर्ख
हंसी का पात्र।।

सरल व्यक्ति
अलग अभिव्यक्ति
निहित शक्ति।।

सरलतम
सुख का परचम
मधुरतम।।

दिखे सरल
साधना है कठिन
मानव गुण।।

क्यों है असाध्य
मानवीय सद्गुण
विषय भोग।।।

भावुक

सरल सुखद सुन्दर जीवन,
सरल-स्वभाव,सरल है मन।
सरल हृदय निज भाव सरल,
सरल सहज धारा अविरल।
सुंदर तन है विचार हों सरल,
इस सरल सलिल -धारा में,
मत घोलो तुम ये कटु गरल।
सरल सहज जीवन का प्रवाह,
मत इसमें उपजाओ दाह।
सुंदर सुलझा जीवन है सरल,
उलझा कर न इसे बनाओ जटिल।
प्रेम भावना है अति प्रबल,
शीतल-शीतल बहे सरल।
घृणा -पंथ अति है मुश्किल,
जलता है जिसमें आज और कल।
करूणा का जल बरसे हर पल,
निज मन के भाव हो ऐसे सरल।
मानवता का पथ है सदा सरल,
इस पर चलना है बड़ा जटिल।
छल-छंदों में उलझा जीवन,
विचलित व्यथित सदा व्याकुल।
कुसुमित सुवासित जीवन के पल,
उत्साही बन इसे जीता चल।
क्या जाने कल हो या न हो,
सरलता को अपनाता चल।

अभिलाषा चौहान


सरल और सादगी का ही ये जुनून है
जो दिल हुआ इस तरहा मजनून है ।।
दिल की दवा बन कर जो रह गई वो
चमक से ज्यादा खुशबू देता प्रसून है ।।

हम खुशबू के कायल हैं और रहेंगे
सादगी पर मिटे सादगी पर मिटेंगे ।।
बेशक हो वो दूर उसकी खुशबू काफी
खुशबू से ही खुश रहे हैं और रहेंगे ।।

सरलता से जीवन संवारते हैं 
सरलता से जीवन निखारते हैं ।।
मिल जाये गर ऐसी सोहबत ,
रब को धन्यवाद नही विसारते हैं ।।

खुशी दूर होती है दूर से ही देखें हम 
चाँद चकोर के किस्से सच लेखें हम ।।
जिस्मानी चमक क्षणिक होती 'शिवम'
रूहानी चमक के करें न अनदेखे हम ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 18/01/2018


हाइकू

बीते वे दिन

इंसान थे सरल
इमानदार

न सरलता

हर ओर मक्कारी
ये परिवेश

नहीं भरोसा

बीते गये वो दिन
है अविश्वास

अजब सब

न जीवन सरल
है हलचल

मौलिक


सरल सा हो स्वभाव जब
अजीब सा हो प्रभाव तब
निर्मल मन हो सरिता सा
अनवरत सा हो प्रवाह तब

सरल सा हो स्वभाव जब

अडिग सा हो संकल्प तब
मिले ख्याति जगत में तुम्हें
रहे सरल तेरा व्यवहार जब

सरल सा हो स्वभाव जब

जुड़े अटूट सी प्रीती तब
हो नव उत्कर्ष जीवन का
भावों का हो प्रादुर्भाव जब

सरल सा हो स्वभाव जब

मिले असीम सम्मान तब
निरंतरता हो सद्कर्म की
मिलती सुख समृद्धि तब

स्वरचित :- मुकेश राठौड़



सरल सहृदय हो सरल हो मन।

सदा सुखद हो सरल ये जीवन।
नहीं धृष्टता हम करने की ठानें,
तो सुगम सुगंधित हो जनजन।

नहीं कोई कसर करनी में छोडें।
सरल भावनाऐं तनमन मे डोलें।
मिले शुभाशीष हमें सबका ही,
अगर प्यार सभी अमृत में घोलें।

जीवन सफल होए सब अपना।
घर सुंन्दर उपवन हो यह सपना।
सरलचित्त अगर मधुर भाव हों,
निश्चित मनमंन्दिर हो यह अपना।

ईशाशीष यही चाहता हूँ हरदम।
मन में बजे प्रेमप्यार की सरगम।
ना बसे कभी वैरभाव अंतरतम में,
सहनशील बना रहूँ प्रभु मरते दम।

स्वरचितःःः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी

"सरल"
लघु कविता
सरल मन एक फूल है
जीवन की मुस्कान है
ईश्वर के वरदान हैं
धूल में भी खिले फूल हैं
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
जीवन के कुछ सार हैं
सरल मन से स्वीकार हो--
जीवन पथ सीधा सरल नहीं
नियति का खेल असंभव नहीं
बाधाओं से घबराना नहीं
बेदनाओं से तड़पना नहीं
बदसलूकी से घबराना नहीं
शूल की चुभन से डरना नहीं
प्रताड़नाओं से अश्क बहाना नहीं
गैरों के समक्ष दु:ख कहना नहीं
बेगानों के लिए राह रोकना नहीं
अपनों की बस्ती उजाड़ना नहीं
बेईमानी कभी स्वीकारना नहीं
ईमान धर्म का सौदा करना नहीं
संबल अपना खोना नहीं
पहचान अपनी मिटाना नहीं
मन की सरलता को नकारना नहीं

स्वरचित पूर्णिमा साह पश्चिम बंगाल

हाइकु मुक्तक,
१/जगसूना है/मीत तेरे वैगर, हंसू तो कैसे।।

छेड़े अंनग/कसके अंग अंग/हंसू तो कैसे/
जीवन लता/एक क्षण हंसती/क्षण में रोती/
तेरे बिना तो/जी ना सरल नहीं/हंसू तो कैसे।।१।।
२/बड़ा कठिन/हंस कर जीना भी/जी कर देखो।
मंहगाई में/जीना सरल नहीं/जीकर देखो/
रोटी के लिए/पापड़ हम बेले/दुखड़े झेले/
सही जिन्दगी/जीना बड़ा कठिन/जीकर देखो।।२।।
देवेन्द्र नारायण दास बसना छ,ग,।



विषय:सरल
18/01/19
1
'सरल' प्रश्न
परीक्षा में जब हों-
विद्यार्थी खुश
2
'सरल' भाव
दिलाता है सम्मान-
मनुष्य मन
3
उन्नति मूल
'सरल' व्यवहार-
जीवन दृष्टि
4
'सरल' रेखा
कठिन है ज्यामिति-
रेखागणित
5
'सरल' राह
बनाता सदाचार-
ज्ञान-भंडार

मनीष श्रीवास्तव
स्वरचित


सरल सौम्य उसकी हंसी
आंगन में उससे ख़ुशी
घर में रहती है हलचल
उसकी पायल की 
छम-छम से
पकवानों की 
खुशबू उड़ती
रसोईघर से निकल
सुंदर उसका मुखड़ा है
ममता का रस 
छलकता है
उसके आंचल की छांव तले
बचपन मैंने खेला है
हर धूप-छांव से 
रखा बचाकर
सिर पर मेरे हाथ घुमाकर
संस्कारों का पाठ पढ़ाया
जीवन को मेरे 
खुशियों से सजाया
सीधी-सरल भोली सी
माँ होती है बड़ी ही प्यारी
कष्टों को खुद सह लेती
पर हम पर ममता बरसाती
***अनुराधा चौहान***मेरी स्वरचित रचना

चाल सही तो राह सरल है|
कर्म सही तो वाह सरल है ||

श्रम के बिन जीवन मुश्किल है |
श्रम है तो परवाह सरल है ||

चुनौतियों से क्या घबराना |
दम से इनका दाह सरल है ||

नेक नजरिया रखो हरपल |
सच मानो ये निगाह सरल है ||

सबको अपना मीत बना लो |
दुनिया में फिर चाह सरल है ||

कभी किसी को तुम न सताना |
समझो वरना आह सरल है ||

*सरस* ईश को मत भूलो तुम |
तो फिर उसकी पनाह सरल है ||

+++++++++++++++++++
स्वरचित 
प्रमोद गोल्हानी सरस 
कहानी सिवनी म.प्र.


विधा -हाइकु(5/7/5)शीर्षक - "सरल" 

(1)
मृत्यु सरल 
वक़्त ने पूछ डाले 
प्रश्न गरल 
(2)
मोम सा ढ़ल 
व्यवहार तरल 
जीना सरल 
(3)
काज दुःष्कर
आँसुओं को पौंछना 
हँसी सरल 
(4)
जटिल लोग 
सरल कैसे बने 
पाठ पढ़ाए 
(5)
बुना कृत्रिम 
जीवन था सरल 
बनाया क्लिष्ट 

स्वरचित 
ऋतुराज दवे

दगी जीना
जैसे पीना गरल
नहीं सरल


जीवन जीना
विपदाओं से लड़ना
मौत सरल

हंसना सदा
बना देता पल में
दुःख सरल

प्यार जो बांटा
कठिन इंसान भी
बना सरल

रखो न द्वेष
जीना यह जीवन 
होगा सरल

सब को पसंद है
सरल स्वभाव 
सरल व्यवहार 

व्यक्ति की
सरलता बताती है
उसका व्यक्तित्व 

चालाकी 
दुषित विचार 
नहीं चलते
ज्यादा दिन
जिस दिन 
खुलता राज
उस दिन वह
अपनी प्रतिष्ठा 
इज्जत सब 
खो देता है

सरलता में ही
निरंतरता है

जीवन की ऊँचाईयों को
छूता है वही
सफलता के सोपान
पाता है वही
समाज में पहचान
बनाता है वही
जिसने अपनाया है
सरल स्वभाव 
जीवन में 

स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

जीवन में सरल क्या है?
सोचा जाए तो 
कुछ भी तो नहीं 
जिंदगी की -
तंग गलियों से गुज़रते
अपनी मंज़िल तक पहुँचना
उसकी हर दिन की उलझनों से निबटते
इत्मिनान के कुछ पल जी लेना
उससे जुड़े टूटते-बिखरते रिश्तों को सँवारते
क़दम क़दम पर समझौता करना
उसकी नाकामियों को हँसते-हँसते
भूलाकर नई शुरुआत करना
कोई आसान काम तो नहीं-
उसकी चुनौतियों को मानते हुए
अपने लिए एक मुक़ाम बना लेना 
ये सरल तो नहीं -
बावजूद इसके 
हमें ज़िदगी जीना है,
उसकी ख़ूबसूरती को सहेजना है,
उसके हर पहलू को सजाना है।
उसमें नये रंग भरकर ,
उस तस्वीर को 
और भी सुंदर बनाना है ।
माना ये सरल नहीं ,
मगर ,दुश्वार भी नहीं !
आज अपने लिए,
और कल 
आने वाली पीढ़ी के लिए
हमें यह संकल्प लेना है
अपनेआप से एक वादा करना है !

स्वरचित भार्गवी रविन्द्र



शि
व जैसे जो पीले गरल
वही हो सकता है सरल
सरल होना साधारण बात नहीं
यह कोई पका पकाया दाल भात नहीं।

हमारा तो मन ही मलिन है
सरलता की तो परिभाषा ही कठिन है
हम तो तीन पाँच ही करते रहते
इसी में बीतता हमारा पल छिन है।

राम भी चाहते सरल स्वभाव
नहीं चाहते वो कभी कोई दुराव
शबरी की सरलता ने बेर खिलाये
राम को बेर झूठे बडे़ ही भाये।
Manage
































No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...