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ब्लॉग संख्या :-394
नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक नाव
विधा लघुकविता
22 मई 2019 ,बुधवार
हचकौले खा रही नैया
पवन प्रभंजन के झौखे
डगमगाती बढे न आगे
लहरें बढ़कर मार्ग रोके
भवसागर अंनत असीमित
कदम कदम पर डर लगता
तारण हारण प्रुभ आप हो
जगस्वामी तुम कर्ता धरता
नाव साधन जग जीवन का
संघर्षों से आगे बढ़ते नित
चौकन्ना हो नाव चलाते
कष्ट नित आते अपरिमित
नाव फ़स गई बीच भँवर में
केवट बन प्रभु हमें बचालो
मूरख पापी हम सब जन हैं
स्वामी अपने पास बुलालो
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
।। नाव ।।
नाव सदा हिचकोले खाऐ
प्रभु बिन पार कौन लगाये ।।
सत्य की नाव के वो खिबैया
क्यों न उससे से प्रीति लगाये ।।
जग की सारी प्रीति है झूठी
आज साथ तो कल है रूठी ।।
सत्य के साथ न कोई खड़ा
पर सत्य की नाव नही फूटी ।।
डगमगाते हुए वो भले चले
समय पर विपदा सब टले ।।
दुनिया तो है रंग बदलती
क्यों न मन यह विचार पले ।।
जिस दिन सच यह जानेगा
नेकी को ''शिवम" तूँ ठानेगा ।।
प्रभु का प्रिय बन जायेगा
साहिल भी खुद पहचानेगा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 22/05/2019
भावों के मोती
विषय--नाव
दिनांक--22/05/2019
जीवन रुपी नाव ने हल्की सी हिल़ोर जो ली,
दुःख के झंझावातों ने नैनों की कोरे भी धो लीं।
उस परम पिता को याद किया,
और फैला दी मैंने झोली,
जब सब कुछ उस पर छोड़ दिया,
मन में थी साहस की होली,
मिट गए भंवर, हुई शान्त लहर,
कृपा परमपिता की हो ली थी।।।
कृपा परमपिता की हो ली थी।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
,🌺जय माँ शारदा,🌺
मंच, भावों के मोती
22/5/2019बुधवार
शीर्षक ,,।।नाव।।
वाह री जिंदगी तेरा भी क्या कहना
कहीं किसी को फूल मिले
कहीं कांटों में रहना
किसी का ऑचल
भीगा ऑसुओं से
कहीं भरी है खुशी की झोली
कहीं अमावस की रातें हैं
कहीं दीवाली सावन होली
कहीं पे पसरा सन्नाटा
कहीं गूंजती शहनाई
किसी की नाव बीच भंवर में
किसी की नैया पार लगाई
हे प़भु तेरी निराली माया
कहीं धूप तो कहीं है छाया
मेरी नाव की पतवार
तुम्हारे ही हवाले
तू चाहे तो डुबा दे
तू चाहे तो सम्भले।।
स्वरचित,,, सुषमा ब्यौहार,,,
नमन भवों के मोती💐
कार्य:-शब्दलेखन
बिषय:-नाव
विधा:- मुक्त
सभी भूल जाते हैं इक दिन
यह मुझको मालूम न था
किन्तु भूल बैठे जबसे तुम
उसी समय विश्वास उठा
तेरे विरह में तड़प-तड़प के
ऐसा ही मालूम पड़ा ।
समय समय की बात
हुआ करती है जीवन में
कभी नाव में पानी
तो नाव कभी पानी में
ऐसा अक्सर हो जाता है जब
नाव भंवर में फंस जाती है।
स्वरचित: 22-5-2019
डॉ.स्वर्ण सिंह रघुवंशी
गुना (म.प्र.)
नमन मंच : भावों के मोती
शीर्षक : नाव
दिनांक : 22 मई 2019
** ग़ज़ल **
अपनी हस्ती को आजमाया कर ।
कश्तियां मौज में ले जाया कर ।।
खौफ के सारे भरम टूटेंगे ।
जाके लहरों को खलबलाया कर ।।
देख तुगियानियों के दिल का मिज़ाज ।
खुद को तू दरिया दिल बताया कर ।।
दिल में हिम्मत का जज्बा पाला कर ।
नाव को पाठ ये पढ़ाया कर ।।
जो भी होना है हो के रहता है ।
नाव पर दोष मत लगाया कर ।।
मौलिक , स्वरचित , अप्रकाशित ग़ज़ल
राजकुमार निजात
"माँ शारदे को नमन"भावों के मोती को सुप्रभात।
दिनांक-२२/५/२०१९"
"शीर्षक-नाव"
प्रभु जी, सुन लो मेरी पुकार
कर दो जीवन नैया पार
जिसने भी की तुमसे गुहार
तुमने सुनी पुकार।
तुम तो हो धर्म के रखवाले
सदाचारी तो हम भी प्रभु
मेरी नैया डगमग डोले
बन जाओ खेवनहार प्रभु।
तुम तो सखा हो दीनन का
बन जाओ तुम सखा मेरी
अपनी सखा का मदद कर दो
कर दो नैया पार ।
न कोई संगी ना कोई साथी
तेरे आसरे मेरी जीवन नैया
दयानिधि जब तुम कहलाते
दया दिखाने तुम अब आओ।
पाप पुण्य को करो किनारा
एक बेसहारा को है तेरा सहारा
भयाकुल को भयमुक्त कर दो
मेरी नैया तुम पार कर दो।
स्वरचित-आरती -श्रीवास्तव।
मेरी नाव के रक्षक
हैं कृष्ण मुरारी
उनके ही आसरे
है हमारी सबारी
वो चलाते है जीवन गाडी
रहते हैं हम
सबसे अगाडी
नाव ही जीवन है
जैसे पार होते नाव से
ऐसे ही जीवन के
भव सागर से पार होते हैं
विन नाव पार हो नहीं सकते
विन प्रभू के उद्धार हो नहीं सकते
स्वरचित एस डी शर्मा
नमन भवन के मोती
दिनांक 22 मई 2019
विषय नाव
विधा हाइकु
1
पानी में नाव
केवट ही खेवैया
यात्री दर्शक
2
बच्चे देखते
पानी पर तैरती
कागज़ नाव
3
जीवन नाव
प्रभु खेवनहार
अटल सत्य
4
चांदनी रात
मनमोहक दृश्य
नौका विहार
5
नाव में छेद
संकट निमंत्रण
जीव भवँर
6
उन्नत नौका
तकनीकी प्रयोग
विकास राह
7
संगम तट
नाविक आजीविका
नावों का मेला
8
सजीली नावें
सेल्फ़ी खींचते लोग
पर्यटन में
मनीष कुमार श्रीवास्तव स्वरचित
रायबरेली
22/5/2019
💐💐💐💐
नमन,वन्दन मंच।
नमस्कार गुरुजनों,साथियों।
🌹🌹🙏🙏🌹🌹
नाव
💐💐
नाव मेरी मंझधार पड़ी है,
पार लगाओ नैया।
प्रभुजी,तुम्हीं एक खेबैया।
मैं अज्ञानी मुरख प्राणी,
चल दी लेकर नाव,
आगे,पीछे कुछ नहीं सोचा,
अब फंस गई मेरी नाव।
तुम्हीं उबारनहार हो प्रभुजी,
तुम्हीं हो सबके खेबैय।
प्रभुजी.......
तूफान आया है जोरों से,
पतवार करे ना काम।
किस विधि इस तूफान से निकलूँ,
कैसे सम्भालूँ नाव।
एक सहारा तुम्हीं हो प्रभुजी,
निकालो तूफान से नैया।
प्रभुजी.........
💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
🌿🌿🌿🌿🌿🌿
1भा.22/5/2019/बुधवार
बिषयःः#नावः#
विधाःः ःकाव्यः ः
बीच मझधार में नाव फंसी है
कुछ तो सुन लो अरज हमारी।
दीनदयाल पुकार रहे हैं कबसे,
क्यों नहीं सुनते हो गिरधारी।
मोह माया में जकडे हैं कबसे।
प्रभु रागद्वेष हम पाले हैं तबसे।
सुख शांति नहीं मिलती हमको,
प्रेम प्रीत सब त्यागे हैं जबसे।
तूने जो ये जग जंजाल रचा है।
प्रत्येक आदमी यहीं फंसा है।
जीवन नैया डोले है भगवन,
जग जंगम सा कहीं बसा है।
जल्दी से आओ तुम बनवारी।
क्यों नहीं लेते सुधि नाथ हमारी।
नाव डूब रही प्रभु भंवरजाल में
लो पतवार हाथ हे बांकेबिहारी।
स्वरचितःः ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र
जय जय श्री राम जय श्री कृष्ण
1भा.#नाव #काव्यः ः
22/5/2019/बुधवार
भावों के मोती
22/05/19
विषय - नाव।
दो क्षणिकाएं
1 टुटी कश्ती वाले
हौसलों की पतवार
लिये बैठे हैं
डूबने से डरने वाले
साहिल पर नाव लिये बैठे हैं।
2 ओ नाव के अकेले मुसाफिर
तूं क्यों है फिक्र में राहगीर
तूं कहां तन्हा चल रहा है
तेरे संग सारा दरिया चल रहा है।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
नमन भावों के मोती
शीर्षक-नाव
वार-बुधवार
दिनांक-22-5-2019
बे फिक्री से बैठ गई मुश्किलों की नाव में
आसरा तेरा प्रभु ले चरणों की छाँव में
अपना ले या ठुकरादे अब ईश्वर मुझको
स्वर्ग में या नर्क के दुःख रूपी गाँव में
बचपन में खेली थी मैं कागज की नाव
जवानी में मिली रंगीन ख्यालों की छाँव
हराभरा संसार संग पति बच्चों का साथ
बुढ़ापे में सब गायब जिंदगी काँव काँव
स्वरचित कुसुम त्रिवेदी
दि- 22-5-19
बुधवार
शीर्षक- नाव
सादर मंच को समर्पित --
🍊🌷 मुक्तक 🌷🍊
****************************
🌺 नाव 🌺
🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾
लोकतंत्र के भँवर जाल में
देखें किसकी नाव बचेगी ।
राष्ट्र लाड़ले लगेंगे पार
उनकी सच्ची साख बचेगी ।
सच्चाई की होगी जीत
जनता अब जागरूक हुई है-
विश्व गुरु बनने की राह में
नयी क्रांति की आस बचेगी ।।
🍊🌴🌾🌻🍏
🌷🍀**... रवीन्द्र वर्मा आगरा
मो0-8532852618
"नमन भावों के मोती'
22 /05 /19 --बुधवार
आज का शीर्षक-- "नाव"
आ० शालिनी अग्रवाल जी
==================================
कभी तो लहरों पर है मचलती,.... ये जीवन की नाव ।
कभी डगमगा कर है चलती ,..... ये जीवन की नाव ।
कभी तो ठहरे जल में भी ये,. रहती कुछ सहमी सहमी,
और कभी तूफ़ां से लड़ती ,........ ये जीवन की नाव ।
कितनी भी मज़बूत बना लें,.. कर लें कितने ही उपाय ,
डूबे तो फिर डूब के रहती ,....... .. ये जीवन की नाव ।
एक दिन तो हरएक को,इसको छोड़ना पड़ता है आख़िर,
सदा नहीं है किसीकी चलती,.... . ये जीवन की नाव ।
==================================
"दिनेश प्रताप सिंह चौहान"
(स्वरचित)
एटा --यूपी
शीर्षक -नाव
दिनांकः 22-5-2019
विधा:-हाईकू
(1)
प्रलय काल
मच गया बवाल
नाव आधार
(2)
नाव में संग
शांतनु सत्यवती
उपजी प्रीती
(3)
जल आपार
नाव कराए पार
माने न हार
(4)
दे रोजगार
नाविक का आधार
नाव कमाल
(5)
बाल स्वभाव
कागज की है नाव
खेल का चाव
उमा शुक्ला नीमच
स्वरचित
नमन मंच
दिनांक .. 22/5/2019
विषय .. नाव
विधा .. लघु कविता
**********************
याद करो वो बात पुराना, बचपन का दिन बडा सुहाना।
सावन मे बारिश का आना, कागज का वो नाव बनाना।।
....
आँगन मे तालाब बनाना, झपक-झपक कर वहाँ नहाना।
धमा-चौकडी खूब लगाना, बारिश का आनन्द उठाना।
...
चले गये वो दिन बचपन के, गाँव भी अब कम होता जाना।
सोन्ही सी मिट्टी की खूँशबू , नही रहा अब दिन वो पुराना।
...
शेर ने यादों को खोजा है, कुछ यादों ने झिझोरा है।
मन मे आया तो लिखा है, कागज की कश्ति अरू डोरा है।
....
स्वरचित एंव मौलिक
शेरसिंह सर्राफ
भावों के मोती
शीर्षक- नाव
मेरी नाव पड़ी मझधार-२
प्रभु जी कर दो इसको पार-२
दे दी तेरे हाथों में पतवार।
जन्म-जन्म का प्यासा मैं
पड़ा हूं तेरे चरण में
दे दो दरश एक बार।
प्रभु जी दे दो दरश एक बार।
सिवा तुम्हारे कोई ना मेरा
झूठा जग,सब रैन बसेरा
खोल दो मेरे मन के द्वार।
प्रभु जी कर दो मेरा उद्धार।
स्वरचित कविता
निलम अग्रवाला, खड़कपुर
नमन भावों के मोती
विषय - नाव
22/05/19
बुधवार
मुक्तक
नाव से सीखें सदा संघर्ष है यह जिंदगी।
राह में काँटे मगर आदर्श है यह जिंदगी।
विषम लहरों की भंवर में जूझती है नाव जब-
पर किनारे पर पहुँचकर हर्ष है यह जिंदगी।
सदा उपकार में खुद को समर्पित नाव करती है।
किसी भी धर्म-मज़हब का न मन में भाव रखती है।
बस उसका लक्ष्य है सबको किनारे पर लगा देना -
वह मानव- मात्र में बस प्रेम और सद्भाव भरती है।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
नमन "भावो के मोती"
22/05/2019
"नाव"
मुक्तक
1
तनरूपी नाव को भवसागर से पार करो,
भंवर बीच अटकी नैय्या का उद्धार करो,
तूफानों को झेलकर थक गई अब हे !प्रभु ,
जग से मुक्ती दे दो जीवन का उद्धार करो ।।
2
साथी साथ निभाना मेरी नाव का पतवार बन जाना,
डर नहीं तूफानों से हर बला से हो टकराना,
हौसले हमारे देखके जग भी दंग रह जाए,
भँवर में नाव न फंस जाए इतना खयाल रखना ।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)पश्चिम बंगाल
नमन भावों के मोती
दिनाँक - 22/5/2019
विषय - नाव
विधा - हाइकु
तेरा सहारा
नौका लगाना पार
पालनहार
जीवन नौका
फंसी है मंझधार
लगा दो पार
करूँ पुकार
कर दो बेड़ा पार
तारणहार
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
नाव में छेद
बैठ के भैंस पर
नदी की पार
सर्दी की भोर
कोहरे ने निगली
समुंद्री नाव
मन सागर
हिचकोले खा रही
यादों की नाव
बारिश गिरी-
सड़कों पर दौड़ीं
कागजी नाव
नाव पतंग
लौटा है बचपन
सावन संग
होते ही रात
चली ख़्वाबों के देश
नींद की नाव
नमन भावों के मोती,
आज का विषय, नाव,
दिन, बुधवार,
दिनांक, 22,5,2019,
जीवन एक गहरा सागर है, चारों तरफ है पानी पानी।
नाव के जैसे चली जा रही , डगमग करती है जिदंगानी।
लहरों की सरगम पर नाचती रहती, मानव मन की गाड़ी।
यहाँ कोई तो है बड़ा खिलाड़ी, कोई ठहरा निपट अनाड़ी।
करें लहरों के संग भंवर शैतानी, लम्बा सफर राह अनजानी।
धारे के संग जो चले जिदंगानी, मुमकिन है चलना रहे आसानी।
चला धारा के विपरीत जब प्राणी, हुई मुश्किल बड़ी उलझी जिदंगानी।
जब थी हाथों में पतवार हिम्मत की, आमद होती रही है मंजिलों की।
अलग अलग कहानी हरेक जिंदगी की, अलग है सबकी राह अनजानी
रहा गया किनारे था बैठा कोई , कोई उतर गया है गहरे पानी ।
थे हिम्मत की किस्मत में मोती, मनकों से जगमग जली जीवन ज्योति।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
सादर नमन
22-05-2019
नेह की नाव
प्रबल वेग भरा ऊर्मिल मँझधार
उठती गिरती लहरों को पछाड़
निर्विरोध चली कैसे तेरी नाव
रे मांझी, नदी का उलट बहाव
आकर्षणबद्ध उठी ज्वार-भाटायेँ
लहरों पर लोल लचक लहराये
प्रीत-पाल बने ढाल बीच दरियाव
रे मांझी, खे चले नेह की नाव
किस भुजबल से थामे पतवार
कूल-कोर तक लाये हे खेबनहार
अल्हड़ मन मुदित प्रिय पड़ाव
रे मांझी, पहुंच गए किस ठाँव
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
नमन "भावो के मोती"
22/05/2019
"नाव"
हाइकु
1
कागज नाव
याद आता है गाँव
वर्षा का खेल
2
हौसला साथ
विपरीत हो धार
डूबी न नाव
3
जीवन दाँव
दो नावो पे सवार
नाकाम पाँव
4
ख्वाबों के नाव
सपनों की दूनिया
मन विहार
5
नौका विहार
हमसफर साथ
दिल की बात
6
प्रेम की कश्ती
विश्वास पतवार
लहर पार
7
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
II नाव २ - दूज का चाँद II
मेरे शब्दों पे ठुमकती...
मेरे साँसों से महकती....
नीले आसमान से...
तू उतरती है....
मुझे अपने संग...
सपनों में ले जाती है...
तू चन्दर की नाव है...
तभी दूज का चाँद है...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
२२.०५.२०१९
नमन भावों के मोती
दिनाँक-22/05/2019
शीर्षक-नाव
विधा-हाइकु
1.
देश की नाव
आका हुए सवार
कौन बचाए
2.
कागजी नाव
बचपन का चाव
पुरानी यादें
3.
प्रेम की नाव
मझधार डूबती
बिन भरोसे
4.
जीवन नाव
भगवान सहारे
लगी किनारे
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
22/5/19
भावों के मोती
विषय - नाव
⛵ ⛵ ⛵⛵⛵
विचारों के गहरे सागर में
गोते खाती जीवन की नाव
अंतर्मन में उठते सवालों के
थपेड़ो से डूबती-उतराती
कभी खुशियों के किनारे लगती
कभी मन के झंझावातों में फस
वहीं गोल-गोल घूमती रहती
आस नहीं छोड़ती तूफ़ानों से लड़ती
लालसा की लहरों के बीच
जीवन नैया डोलती रहती
संतोष का किनारा पकड़ने की
हरदम नाकाम कोशिश करती
विचारों के सागर से मुक्ति कहां मिलती
एक के बाद एक लहरें टकरातीं
फिर फसकर मौत के भंवर में
हताश होकर जीवन नैया टूटकर बिखरती
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित ✍
नमन भावों के मोती नमन आ0 सरिता गर्ग जी
आज का कार्यः- चित्र लेखन
खा रहा हूँ गोते भवसागर में,दिला दो कोई नाव।
नाव भी ऐसी भगवान, हो जिसमें आपकी छांव।।
खाली नाव का क्या करूंगा मै,भिजवाओ पतवार।
नाखुदा कहाँ खोजुंगा, आजाओ तुम खुद करतार।।
कर रहा था साथ प्रिया के में भवसागर को पार ।
पकड़ा हुआ हाथ एक दूजे का न नाव न पतवार।।
आये यमराज कहाँ से छुड़ा लिया प्रिया का हाथ ।
खाया नहीं तरस कोई ले गये उन्हें अपने ही साथ।।
रह गया मै अकेला भवसागर में मलते अपने हाथ।
ले चलो भगवन नाव में पकड़ा दो फिर उनका हाथ।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
शुभ साँझ
शीर्षक-- ।। नाव ।।
द्वितीय प्रस्तुति
कैसी ये इश्क की नाव
जमीं पर न रहें पांव ।।
चार दिन ही रहें चांदनी
चार दिन ही रहे छांव ।।
हंसाये कम रूलाये ज्यादा
ववंडर का बन जाय गांव ।।
आँसुओं की मिले अमानत
क्या क्या न लग जाय दांव ।।
नींद भी जाये चैन चुराये
व्यर्थ की हो कांव कांव ।।
नही किसी से कुछ छीना
फिर भी हो जाय अलगाव ।।
नही बैठना इस नाव पर
करना सदा इससे बचाव ।।
नैन कुछ झुकाय रखना
मत ढूढ़ें ये कहीं ठांव ।।
'शिवम' चोट जो हम खाये
उसका दर्द कैसे बतांव ।।
आज भी दिल उसे है रोये
तुरत मैं अपनी कलम उठांव ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 22/05/2019
नमन मंच
विषय नाव
22/5/2019
कागज की नावों के दिन
खुले आसमान के नीचे
तारों की रुनझुन
चांद सा प्यारा
कोई खिलौना दिला दे
कागज की नावों के दिन
कोई मुझे वह वक्त लौटा दे
चाची वह ,वह काकी
पड़ोसन की भाभी
सांझे तंदूर की पकती रोटियां
सोंधी सी खुशबू
कागज की नावों के दिन
कोई मुझे वो वक्त लौटा दे
त्योहारों की शान
होली की गुजिया
ईदी सिवैय्या
मेले नुमाइश के
वो करतबी नज़ारे
कागज की नावों के दिन
कोई मुझको वो वक्त लौटा दे
सांझे आँगन की
शरबती खुश्बुएं
खुली छतों पर
चांदनी से बतकही
वो यादें, वो यारा
कागज़ की नावों के दिन
कोई मुझको वो वक्त लौटा दे
सांझे आँगन की खुशियां
गमों की वो रातें
वो बूढी़ सी फूफी के
पूजा घर की सौगातें
उसकी जि़दंगी के अनकहे
अनचाहे दुखों की बारातें
कागज़ की नावों के दिन
कोई मुझको वो वक्त लौटा दे
मीनाक्षी भटनागर
स्वरचित
नमन🙏
"भावों के मोती"
शुभ साँझ
विषय-नाव
🌱🍁🌱🍁🌱🍁🌱🍁
विधा-मुक्तक
🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁
सकून सा क्यों नहीं जिंदगी के दरमियान
ले चले हैं डुबो ने मुझे कश्ती के मेहरबान
कम हो गये थे अश्क जब आई बहार थी
फिरदौस हो गई राह-ए-तस्व्वुर के दरमियान
2))
जीवन के इस भंवर में खुद को ढूंढते हैं
भटके हैं इस कदर कि किनारों को ढूंढते हैं
मंझधार हैं ये गहरी उबरेंगे अब कैसे
नैया किनारे बैठे हिचकोले ढूंढते हैं
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
नमन मंच भावों के मोती
तिथि 22/05/19
विषय नाव/नैया
विधा हाइकु
***
क्यों बेकरारी
दो नाव की सवारी
विपदा भारी।
देश की नैया
डूबती जाये भैया
कौन खिवैया।
भवसागर
सुख दुख लहर
उम्मीद ,नाव ।
मीन आकार
बना नाव आधार
सफर पार
बिन जलद
महत्वहीन नाव
अटूट ठाँव
***
स्वरचित
अनिता सुधीर
नमन मंच को
दिन :- बुधवार
दिनांक :- 22/05/2019
विषय :- नाव
वो कागज की कश्ती..
वो सुंदर सी बस्ती..
सँग यारों के..
रोज होती थी मस्ती..
वो सुहाना सा बचपन..
वो खिलता सा उपवन..
वो लहराता आँचल माँ धरणी का..
वो पगडंडियों का बांकपन..
खिलखिलाती वो सुबह..
दिनकर की अटखेलियाँ..
वो सुरमयी ढलती साँझ..
समाती नभ आँचल में..
वो तारों की बारात...
वो चाँदनी से सजी रात..
अदृश्य से होते ये सब दृश्य..
ऐसे में खा रही थी हिचकोले
जीवन की रँगीन नाव...
खेलते जा रहे हम दांव दर दांव..
फसा रहे गैर अफसानो में..
हम पांव दर पांव..
रच रहे हम षडयंत्र नए..
खो रहे हम आत्मियता..
बढ़ रहा अब अवसरवाद..
बढ़ा रहे सब स्वायत्तता..
निज अहंकार को ढो रहे हम..
नैतिक सिद्धांतों को खो रहे हम..
नजरअंदाज कर परपीड़ा को..
तान चादर पैर पसारे सो रहे हम..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
22/05/2019
हाइकु (5/7/5)
विषय:-"नाव"
(1)⛵️
तैरते घाव
अहं टकरा डूबी
रिश्तों की नाव
(2)⛵️
जोन्ह सवार (जोन्ह -चाँदनी)
रात काला सागर
चाँद की नाव
(3)⛵️
मंजिले गुम
जिंदगी का भंवर
नाव में हम
(4)⛵️
सवार धर्म
कर्म की पतवार
नाव सा तन
(5)⛵️
दुःख औ खेद
मानवता की नाव
आतंक छेद
(6)⛵
ख्वाबों से भरी
बचपन की कश्ती
उम्र ले डूबी
स्वरचित
ऋतुराज दवे
नमन मंच को
विषय : नाव
दिनांक : 22/04/2019
विधा : हाईकू
नाव
1.
पथिक देखे
उस पार मंजिल
नाव सहारा
2.
भ्रष्ट आदमी
विश्वास न करना
नाव डुबौए
3.
सत्ता के लोभी
निरंतर डुबौते
नाव देश की
4.
गहरा प्रेम
मंजिल मिल जाए
नाव प्यार की
5.
ईश्वर प्रेम
पार भवसागर
नाव विश्वास
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।
नमन मंच ...... .
22 / 05 /19
विषय=नाव /कश्ती
विधा मुक्त
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रुह की कश्ती
भाव की लहरें
डगमग जीवन
हौले हौले डोले
सफर है लंबा
बीच भंवर है
अक्षर की पतवार थाम
बंजारे शब्दों सी
गीत,गजल,मुक्तक
के टापू
लांघ लांघ जाती है
दर्रे से हाइकु
पिरामिड की चट्टानें
दोहों की लय में
बह जाती है
रुह की कश्ती.....।
डा.नीलम. अजमेर
नमन भावों के मोती
22/5/2019::बुधवार
शीर्षक--नाव
विधा कुण्डलिया
बन्धन उम्र होय नहीं, बरसे बसंत बयार
इक नाव में साथ हम, थाम चले पतवार
थाम चले पतवार, खुशी की लिए फुहारें
यहाँ प्रकृति की शान ,शान से आज निहारें
अपनी है पहचान, .पिरोयें ख़ुशियाँ मुक्तन
आया जब मधुमास, उम्र नहीं होय बन्धन
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
नमन मंच
भावों के मोती
दिनांक 22.05.2019
विषय :नाव
विधा :बाल कविता
आकाश में जब
बादल छा जाते हैं
तब बारिश
वे खूब लाते हैं
बच्चे
साइकिल चलाते हैं
पानी में छपछप
पैर बजाते हैं
कागज की नाव
वे बनाते हैं
पानी की अंजुरी
भर भर लाते हैं
इक दूजे को
पकड़ते जाते हैं
माँ की डांट भी
खाते हैं
मन करता है
बार बार उनका
खूब नहाएँ,
खेले कूदे
नाचें गायें
खुशी मनाएँ
कागज की नाव
बार बार बनायें
पानी मे
दूर तक चलाएँ
हरीश सेठी 'झिलमिल'
सिरसा
( स्वरचित)
22-5-2019
विषय :- नाव
विधा :- कुण्डलिया
काग़ज़ की किश्ती चली , डूब गई मँझधार ।
भव सागर में जा फँसी , कौन लगाए पार ।।
कौन लगाए पार , देह की किश्ती झूठी ।
मधुर लगे संसार , नहीं माया हो रूठी ।
रहे हृदय प्रभु नाम , भरा रख मन को भिश्ती ।
चाहो जाना पार , बैठ सिमरन की किश्ती ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055( हरियाणा )
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