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ब्लॉग संख्या :-387
🌹भावों के मोती🌹
15/5/2019
"मुखौटा"
हाइकु
1*
मुखौटा हँसा
आहों का संसार ले
उर से रोया।।
2*
शैतान बच्ची
मुखौटे बदलती
हँसती रोती।।
3*
खून की होली
आतंकी मुखौटो से
धूर्त ने खेली।।
4*
शातिर नेता
भेड़िए की चाल में
गाय मुखौटा।।
5*
जीवन खास
विदूषक मुखौटा
देता उजास।।
6*
ऋतु बदले
गिरगिटी मुखौटा
सुनामी,सूखा।।
7*
सत्य की जीत
असत्य का मुखौटा
सदा हरता।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
15/5/2019
"मुखौटा"
हाइकु
1*
मुखौटा हँसा
आहों का संसार ले
उर से रोया।।
2*
शैतान बच्ची
मुखौटे बदलती
हँसती रोती।।
3*
खून की होली
आतंकी मुखौटो से
धूर्त ने खेली।।
4*
शातिर नेता
भेड़िए की चाल में
गाय मुखौटा।।
5*
जीवन खास
विदूषक मुखौटा
देता उजास।।
6*
ऋतु बदले
गिरगिटी मुखौटा
सुनामी,सूखा।।
7*
सत्य की जीत
असत्य का मुखौटा
सदा हरता।।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
नमन मंच
15-05-2019
*मुखौटा* (लघुकथा)
राहुल बहुत शैतान था, किसी की भी बात नही सुनता था। बस जो मन मे आया वही करता और सब को तंग करता था। दशहरे का दिन था, राहुल घर मे बहुत ही उछल कूद कर रहा था, और अपनी माँ को कोई भी काम नहीं करने नहीं दे रहा था, इसलिये राहुल की माँ ने राहुल की बहन से कहा कि
माँ - " सीमा क्या कर रही है बेटा तू "
सीमा - "कुछ नही माँ बस स्कूल का थोड़ा काम ख़त्म कर रही थी, लेकिंन आप बताये कोई काम था, क्या मुझे से"
माँ -" हा बेटा , सुन तेरा भाई बहुत तंग कर रहा है, सुबह से इधर - उधर कूद रहा है , और मुझे काम भी नहीं करने दे रहा है, तुम इसको थोड़ी देर के लिये जाओ , और जाकर दशहरे का मेला देखा लाओ, नहीं तो यह ऐसे ही तंग करता रहेगा मुझे"
सीमा - "ठीक है, माँ मैं राहुल को घुमा लाती हूँ, आप अपना काम करे, क्योंकि पापा के आने का भी वक़्त हो रहा है, मैं बुलाती हु , राहुल को"
इतना बोलकर सीमा राहुल को आवाज़ लगती है कि
सीमा - "भाई कहा हो तुम , चलो तैयार हो जाओ मैं और तुम आज घुमने चलते हैं "
राहुल यह बात सुनकर बहुत खुश होता हैं, और ऊपर से ही नाचता - नाचता आता है, और भागकर सीमा के पास आ जाता है , और सीमा से बोलता है कि
राहुल - " दीदी मुझे भगवान राम का मुखौटा लेना है,आप लेकर दोगे ना "
सीमा - "हा भाई बिल्कुल , मैं माँ से पैसे इसलिये लेकर जा रही हूँ, तुम चिन्ता मत करो।"
ठीक है दीदी मैं पांच मिनट मे तैयार होकर आता हु, और राहुल तैयार होने चला जाता हैं।
थोड़ी देर बाद दोनो भाई- बहन मेला देखने के लिये घर से निकलते हैं।
जाते - जाते राहुल सिर्फ सीमा को बोलता जा रहा होता है , कि दीदी तुम मुझे राम जी वाला मुखौटा दिलवाना।
सीमा " बोल तो दिया राहुल दिलवा दूगी। तुम अधिक ना सोचो उस बारे मे, मैं पक्का दिला दूगी।
कुछ समय बाद सीमा और राहुल मेले मे आ जाते हैं, पहले तो दोनो मेला देखते है और अच्छे से घूमते हैं, फिर कुछ चाट खाते हैं।
दोनो बहुत खुश थे, तभी राहुल की नज़र एक मुखौटे बेचने वाले पर पड़ी, तभी उसने सीमा का हाथ खीचा और उसे मुखौटे वाले के पास ले गया।
सीमा भी बड़े प्यार से राहुल से बोली, अच्छा बताओ मेरे भाई को कौन सा लेना है।
राहुल रंगा - बिरगे मुखौटे देखने लगा, इतने मे सीमा ने बेचाने वाले भैया से पुछा कि
सीमा - " भाई यह राम जी का मुखौटा कितने का दिया "
मुखौटे बेचने वाला - " बेटा बीस रुपय का"
सीमा - " अच्छा और रावण का कितने का दिया"
मुखौटे बेचने वाला -" बेटा यह भी बीस रुपया का ही है "
सीमा यह बात सुनकर कुछ सोच मे पड़ गई, कि भगवान राम और रावण का मूल्य एक समान कैसे ?
लेखिका – चाँदनी सेठी कोचर ( दिल्ली )
15-05-2019
*मुखौटा* (लघुकथा)
राहुल बहुत शैतान था, किसी की भी बात नही सुनता था। बस जो मन मे आया वही करता और सब को तंग करता था। दशहरे का दिन था, राहुल घर मे बहुत ही उछल कूद कर रहा था, और अपनी माँ को कोई भी काम नहीं करने नहीं दे रहा था, इसलिये राहुल की माँ ने राहुल की बहन से कहा कि
माँ - " सीमा क्या कर रही है बेटा तू "
सीमा - "कुछ नही माँ बस स्कूल का थोड़ा काम ख़त्म कर रही थी, लेकिंन आप बताये कोई काम था, क्या मुझे से"
माँ -" हा बेटा , सुन तेरा भाई बहुत तंग कर रहा है, सुबह से इधर - उधर कूद रहा है , और मुझे काम भी नहीं करने दे रहा है, तुम इसको थोड़ी देर के लिये जाओ , और जाकर दशहरे का मेला देखा लाओ, नहीं तो यह ऐसे ही तंग करता रहेगा मुझे"
सीमा - "ठीक है, माँ मैं राहुल को घुमा लाती हूँ, आप अपना काम करे, क्योंकि पापा के आने का भी वक़्त हो रहा है, मैं बुलाती हु , राहुल को"
इतना बोलकर सीमा राहुल को आवाज़ लगती है कि
सीमा - "भाई कहा हो तुम , चलो तैयार हो जाओ मैं और तुम आज घुमने चलते हैं "
राहुल यह बात सुनकर बहुत खुश होता हैं, और ऊपर से ही नाचता - नाचता आता है, और भागकर सीमा के पास आ जाता है , और सीमा से बोलता है कि
राहुल - " दीदी मुझे भगवान राम का मुखौटा लेना है,आप लेकर दोगे ना "
सीमा - "हा भाई बिल्कुल , मैं माँ से पैसे इसलिये लेकर जा रही हूँ, तुम चिन्ता मत करो।"
ठीक है दीदी मैं पांच मिनट मे तैयार होकर आता हु, और राहुल तैयार होने चला जाता हैं।
थोड़ी देर बाद दोनो भाई- बहन मेला देखने के लिये घर से निकलते हैं।
जाते - जाते राहुल सिर्फ सीमा को बोलता जा रहा होता है , कि दीदी तुम मुझे राम जी वाला मुखौटा दिलवाना।
सीमा " बोल तो दिया राहुल दिलवा दूगी। तुम अधिक ना सोचो उस बारे मे, मैं पक्का दिला दूगी।
कुछ समय बाद सीमा और राहुल मेले मे आ जाते हैं, पहले तो दोनो मेला देखते है और अच्छे से घूमते हैं, फिर कुछ चाट खाते हैं।
दोनो बहुत खुश थे, तभी राहुल की नज़र एक मुखौटे बेचने वाले पर पड़ी, तभी उसने सीमा का हाथ खीचा और उसे मुखौटे वाले के पास ले गया।
सीमा भी बड़े प्यार से राहुल से बोली, अच्छा बताओ मेरे भाई को कौन सा लेना है।
राहुल रंगा - बिरगे मुखौटे देखने लगा, इतने मे सीमा ने बेचाने वाले भैया से पुछा कि
सीमा - " भाई यह राम जी का मुखौटा कितने का दिया "
मुखौटे बेचने वाला - " बेटा बीस रुपय का"
सीमा - " अच्छा और रावण का कितने का दिया"
मुखौटे बेचने वाला -" बेटा यह भी बीस रुपया का ही है "
सीमा यह बात सुनकर कुछ सोच मे पड़ गई, कि भगवान राम और रावण का मूल्य एक समान कैसे ?
लेखिका – चाँदनी सेठी कोचर ( दिल्ली )
🌹मित्रों का अभिनंदन🌹
15/05/2019
"मुखौटा"
तांका
1
साथी था झूठा
पहन के मुखौटा
सच को लूटा
विश्वास के दर पे
अविश्वास दस्तक।
2
चेहरा दिखा
मुखौटा जब गिरा
फरेबी दिखा
वो साथी था अपना
टूट गया सपना ।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
15/05/2019
"मुखौटा"
तांका
1
साथी था झूठा
पहन के मुखौटा
सच को लूटा
विश्वास के दर पे
अविश्वास दस्तक।
2
चेहरा दिखा
मुखौटा जब गिरा
फरेबी दिखा
वो साथी था अपना
टूट गया सपना ।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
विधा लघुकविता
15 मई,2019,बुधवार
सब जौकर पहन मखौटा
स्वार्थ साधन लगे हुये हैं
असली नकली पता नहीं
पाप असंख्य छिपे हुये हैं
भौतिकवादी चकाचौंध में
सबका एक दिखावा होता
पहन मुखौटा घूम रहे मिल
खुले सत्य वह नित है रोता
महापुरुष और संत महात्मा
जैसे तुम चलकर तो देखो
अद्भुत अमूल्य यह जीवन है
कुछ तो तुम सत्यता परखो
रंगमंच सुन्दर वसुधा पर
सबका अपना है किरदार
कोई नायक खलनायक है
बना हुआ कोई चौकीदार
सभी मुखौटे भिन्न भिन्न हैं
रूप रंग व्यवहार भिन्न है
चमचमाती यह दुनियां है
देख मुखौटा मन खिन्न है।।
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
15 मई,2019,बुधवार
सब जौकर पहन मखौटा
स्वार्थ साधन लगे हुये हैं
असली नकली पता नहीं
पाप असंख्य छिपे हुये हैं
भौतिकवादी चकाचौंध में
सबका एक दिखावा होता
पहन मुखौटा घूम रहे मिल
खुले सत्य वह नित है रोता
महापुरुष और संत महात्मा
जैसे तुम चलकर तो देखो
अद्भुत अमूल्य यह जीवन है
कुछ तो तुम सत्यता परखो
रंगमंच सुन्दर वसुधा पर
सबका अपना है किरदार
कोई नायक खलनायक है
बना हुआ कोई चौकीदार
सभी मुखौटे भिन्न भिन्न हैं
रूप रंग व्यवहार भिन्न है
चमचमाती यह दुनियां है
देख मुखौटा मन खिन्न है।।
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
''मुखौटा"
मुखौटों से दूरी
मुखौटा मजबूरी ।
जानिये जनाब
वरना पढ़ाई अधूरी ।
ज़ीस्त पाठशाला
कभी पढ़ाई न पूरी ।
मुखौटे की प्रशंसा
कभी होए भूरी भूरी ।
हकीकत बड़ी ही
होती है खराब ।
जरूरी पहनना
कभी होता नकाब ।
कौन नही रखता
दो मुखौटों को साथ ।
जिन्दगी है जिन्दगी
से रखिये ताल्लुकात ।
जज्बात में बहना
कभी खुद से है घात ।
पर रूह से भी'शिवम'
रखना मुलाकात ।
आ ही जाती
मुखौटों की याद ।
मुखौटों की अहमियत
रही है सदा खास ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 15/05/2019
मुखौटों से दूरी
मुखौटा मजबूरी ।
जानिये जनाब
वरना पढ़ाई अधूरी ।
ज़ीस्त पाठशाला
कभी पढ़ाई न पूरी ।
मुखौटे की प्रशंसा
कभी होए भूरी भूरी ।
हकीकत बड़ी ही
होती है खराब ।
जरूरी पहनना
कभी होता नकाब ।
कौन नही रखता
दो मुखौटों को साथ ।
जिन्दगी है जिन्दगी
से रखिये ताल्लुकात ।
जज्बात में बहना
कभी खुद से है घात ।
पर रूह से भी'शिवम'
रखना मुलाकात ।
आ ही जाती
मुखौटों की याद ।
मुखौटों की अहमियत
रही है सदा खास ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 15/05/2019
विषय-मुखौटा
दिनांक-15/5/19
जहाँ चाहे दंगा करवाते
सत्ता कुर्सी को ललचाते
देश प्रेम का #मुखौटा लगाये
ये आज के नेता कहलाते।
गिरगिट जैसा रंग बदलते
नित पार्टियों का संघ बदलते
देशभक्ति इनकी गजब निराली
सत्ता पाने को मचलते।
जात पात में ये उलझाते
राम बन गरीबों के घर खाते
वोट की खातिर क्या क्या करते
ये परम देशभक्त कहलाते।
कौन कहता देश आज़ाद है
इनसे ही देश बर्बाद है
इस देश का यही दुर्भाग्य है
गुलामों जैसी जनता पिसती नेता आबाद है।।
👌👌👌👌👌👌👌
**स्वरचित***
-सीमा आचार्य-(म.प्र)
दिनांक-15/5/19
जहाँ चाहे दंगा करवाते
सत्ता कुर्सी को ललचाते
देश प्रेम का #मुखौटा लगाये
ये आज के नेता कहलाते।
गिरगिट जैसा रंग बदलते
नित पार्टियों का संघ बदलते
देशभक्ति इनकी गजब निराली
सत्ता पाने को मचलते।
जात पात में ये उलझाते
राम बन गरीबों के घर खाते
वोट की खातिर क्या क्या करते
ये परम देशभक्त कहलाते।
कौन कहता देश आज़ाद है
इनसे ही देश बर्बाद है
इस देश का यही दुर्भाग्य है
गुलामों जैसी जनता पिसती नेता आबाद है।।
👌👌👌👌👌👌👌
**स्वरचित***
-सीमा आचार्य-(म.प्र)
शीर्षक- मुखौटा
सादर मंच को समर्पित -
🍑🌻 गीतिका 🌻🍑
**************************
🌹 मुखौटा 🌹
🌸 समांत-यहाँ , अपदांत 🌸
🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
लोग रखते हैं मुखौटे अब यहाँ ।
दीखते कुछ और होते कुछ यहाँ ।।
स्वार्थ में अन्धा हुआ है आदमी ,
आदमीयत मर रही हर दम यहाँ ।
कीजिये किस पर भरोसा बन्धु अब ,
मीत करते हैं छलावा खुद यहाँ ।
बात-बात पर बदलें जब पैंतरे ,
कौन किसे मात दे जाय कब यहाँ ।
रिश्ते-नाते , अपनापन खो गया ,
बस 'मैं ' की गूँज बसी है मन यहाँ ।
दौर चलें रात भर मदहोशी के ,
चीखती नैतिकता नित सजल यहाँ ।
बढ़ रही है होड़ छूने आसमाँ ,
देखता है जमीन पर कौन यहाँ ।
जिन्दगी का सत्य खोजें जगत में ,
झाँकते नहीं खुद मन-मन्दिर यहाँ ।
सच्ची सुख शान्ति की है चाह अगर ,
खोल दिल कपाट बन इन्सान यहाँ ।।
🍑🍈🌱🍒🍓🌹
🌹**.... रवीन्द्र वर्मा , आगरा
सादर मंच को समर्पित -
🍑🌻 गीतिका 🌻🍑
**************************
🌹 मुखौटा 🌹
🌸 समांत-यहाँ , अपदांत 🌸
🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
लोग रखते हैं मुखौटे अब यहाँ ।
दीखते कुछ और होते कुछ यहाँ ।।
स्वार्थ में अन्धा हुआ है आदमी ,
आदमीयत मर रही हर दम यहाँ ।
कीजिये किस पर भरोसा बन्धु अब ,
मीत करते हैं छलावा खुद यहाँ ।
बात-बात पर बदलें जब पैंतरे ,
कौन किसे मात दे जाय कब यहाँ ।
रिश्ते-नाते , अपनापन खो गया ,
बस 'मैं ' की गूँज बसी है मन यहाँ ।
दौर चलें रात भर मदहोशी के ,
चीखती नैतिकता नित सजल यहाँ ।
बढ़ रही है होड़ छूने आसमाँ ,
देखता है जमीन पर कौन यहाँ ।
जिन्दगी का सत्य खोजें जगत में ,
झाँकते नहीं खुद मन-मन्दिर यहाँ ।
सच्ची सुख शान्ति की है चाह अगर ,
खोल दिल कपाट बन इन्सान यहाँ ।।
🍑🍈🌱🍒🍓🌹
🌹**.... रवीन्द्र वर्मा , आगरा
15/05/19
विषय-मुखौटा
किस पर करें एतबार यहाँ
कितने मुखौटे चढ़ाए बैठे हैं लोग ,
जुबां पे शहद
दिल में नाखुन लिये बैठे हैं लोग ,
क्या दिखते क्या छुपाये बैठे हैं लोग
संस्कृति घुट रही,सभ्यता विरान है,
दम तोड रहे संस्कार हैं
न जाने किस दौङ में भागे जा रहे हैं हम
जाने क्या होगा अंजाम ,
स्वयं का स्वरूप खोते जा रहे हैं हम ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
विषय-मुखौटा
किस पर करें एतबार यहाँ
कितने मुखौटे चढ़ाए बैठे हैं लोग ,
जुबां पे शहद
दिल में नाखुन लिये बैठे हैं लोग ,
क्या दिखते क्या छुपाये बैठे हैं लोग
संस्कृति घुट रही,सभ्यता विरान है,
दम तोड रहे संस्कार हैं
न जाने किस दौङ में भागे जा रहे हैं हम
जाने क्या होगा अंजाम ,
स्वयं का स्वरूप खोते जा रहे हैं हम ।
स्वरचित
कुसुम कोठारी ।
बिषय,, मुखौटा
नकली मुखौटा लिए जीेते हैं लोग
मन ही मन घुट घुट
जहर पीते हैं लोग
अंदर गमों का सागर
बाहर से मुस्कराना
कहें क्या किसी से
हर दर्द है छिपाना
किसी को बेटे बेटी
का गम किसी को तन्हाई
और किसी को डस गई
अपनों की बेबफाई
फिर भी अथाह दर्दों
को समेट जहॉ का
दस्तूर निभाते रहे
आस्तीन के साांपों
को गले लगाते रहे
अंदर छुरी मुखौटा पे प्यार
मौका मिलते ही बन जाते
हैं ए तलवार की धार
सदियों से चल रहा
इनका जमाना
चेहरा नया अंदाज पुराना
,,स्वरचित,,
नकली मुखौटा लिए जीेते हैं लोग
मन ही मन घुट घुट
जहर पीते हैं लोग
अंदर गमों का सागर
बाहर से मुस्कराना
कहें क्या किसी से
हर दर्द है छिपाना
किसी को बेटे बेटी
का गम किसी को तन्हाई
और किसी को डस गई
अपनों की बेबफाई
फिर भी अथाह दर्दों
को समेट जहॉ का
दस्तूर निभाते रहे
आस्तीन के साांपों
को गले लगाते रहे
अंदर छुरी मुखौटा पे प्यार
मौका मिलते ही बन जाते
हैं ए तलवार की धार
सदियों से चल रहा
इनका जमाना
चेहरा नया अंदाज पुराना
,,स्वरचित,,
सुप्रभात भावों के मोती 🌹🌹
विषय -मुखौटा
1
बड़ी अनोखी
मुखौटों की दुनिया
कहे कहानी
2
धूप सुहानी
झरने में नहाती
छाँव मुखौटा
3
लगा मुखौटा
छल की राजनीति
घूमते नेता
4
आँसू लगाये
मुस्कान का मुखौटा
संसार झूठा
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
विषय -मुखौटा
1
बड़ी अनोखी
मुखौटों की दुनिया
कहे कहानी
2
धूप सुहानी
झरने में नहाती
छाँव मुखौटा
3
लगा मुखौटा
छल की राजनीति
घूमते नेता
4
आँसू लगाये
मुस्कान का मुखौटा
संसार झूठा
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
मुखौटा
💐💐
नमन मंच,वन्दन गुरुजनों तथा मित्रों।
☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️
अपने चेहरे पे मुखौटा लगाए हुए हैं,
जमाने को यूंहीं भरमार हुए हैं।
करते हैं कुछ और दिखाते हैं कुछ,
सबसे खुद को छुपाये हुए हैं।
वोट मांगने के लिए कुछ भी करेंगे,
जनता के आगे सर को झुकाए हुए हैं।
पर कुर्सी पर बैठते हीं भूलेंगे सब वादे,
जनता को ये फुसलाये हुए हैं।
🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
💐💐
नमन मंच,वन्दन गुरुजनों तथा मित्रों।
☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️
अपने चेहरे पे मुखौटा लगाए हुए हैं,
जमाने को यूंहीं भरमार हुए हैं।
करते हैं कुछ और दिखाते हैं कुछ,
सबसे खुद को छुपाये हुए हैं।
वोट मांगने के लिए कुछ भी करेंगे,
जनता के आगे सर को झुकाए हुए हैं।
पर कुर्सी पर बैठते हीं भूलेंगे सब वादे,
जनता को ये फुसलाये हुए हैं।
🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
विधा .. लघु कविता
**********************
एक मुखौटा लगा के वो, सम्मुख तेरे आया है।
फेसबुक की रंगी दुनिया, मे वो ले आया है।
...
तरह-तरह की सुन्दर कविता, सुन्दर छवि छाया है।
पर होता है नही वो जैसा, तुमको दिखलाया है।
...
सम्प्रेषण का मार्ग बना ,पर आधा ही आया है।
जगमग जग सौन्दर्य बिखेरा, भावों पर छाया है।
....
शेर हृदय ने एक मुखौटा, ऐसा बनवाया है।
आँखो मे है चमक मगर, मन मे अधियारा है।
.....
स्वरचित एवं मौलिक
शेरसिंह सर्राफ
**********************
एक मुखौटा लगा के वो, सम्मुख तेरे आया है।
फेसबुक की रंगी दुनिया, मे वो ले आया है।
...
तरह-तरह की सुन्दर कविता, सुन्दर छवि छाया है।
पर होता है नही वो जैसा, तुमको दिखलाया है।
...
सम्प्रेषण का मार्ग बना ,पर आधा ही आया है।
जगमग जग सौन्दर्य बिखेरा, भावों पर छाया है।
....
शेर हृदय ने एक मुखौटा, ऐसा बनवाया है।
आँखो मे है चमक मगर, मन मे अधियारा है।
.....
स्वरचित एवं मौलिक
शेरसिंह सर्राफ
मुखौटे
छंद मुक्त लेखन
ईश्वर
ने बनाया
सादा जीवन
इन्सान ने
मुखौटा
पहन लिया
थाम लिया
झूठ भरेव और
मक्कारी का
हर जगह
दिख रहे मुखौटे
घर, परिवार
या हो
देश समाज
रहो
असली चेहरे में
मुखौटों
का न
धर्म ईमान
मिलजुल कर
रहे सब
प्रेम भाव
बनाए रखें
मुखौटे है
एक धोखा
बच कर
इनसे रहे
स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल
छंद मुक्त लेखन
ईश्वर
ने बनाया
सादा जीवन
इन्सान ने
मुखौटा
पहन लिया
थाम लिया
झूठ भरेव और
मक्कारी का
हर जगह
दिख रहे मुखौटे
घर, परिवार
या हो
देश समाज
रहो
असली चेहरे में
मुखौटों
का न
धर्म ईमान
मिलजुल कर
रहे सब
प्रेम भाव
बनाए रखें
मुखौटे है
एक धोखा
बच कर
इनसे रहे
स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल
विषय==मुखौटा
😀😁😂😎😍🤗
प्रत्येक चेहरे पर लगा है मुखौटा
अच्छे-बुरे कर्मों का आईना मुखौटा
नेता अपने चेहरे पर लगा घूमते
मतदाता को लुभाते हुवे मुखौटा
धर्म की आड़ में करतें गोरख धंधा
ऐसे भी धूर्त लुट रहे लगा मुखौटा
कुछ सज्जन मेहनत से अपनी
लोगों का उतार देते नकली मुखौटा
वाणी में मिठास दिल हो साफ
लगाना नहीं पड़ेगा कोई मुखौटा
आज आवश्यकता है कि हम उनसे
सावधान रहें जो रंग बदलता मुखौटा
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
15/05/2019
😀😁😂😎😍🤗
प्रत्येक चेहरे पर लगा है मुखौटा
अच्छे-बुरे कर्मों का आईना मुखौटा
नेता अपने चेहरे पर लगा घूमते
मतदाता को लुभाते हुवे मुखौटा
धर्म की आड़ में करतें गोरख धंधा
ऐसे भी धूर्त लुट रहे लगा मुखौटा
कुछ सज्जन मेहनत से अपनी
लोगों का उतार देते नकली मुखौटा
वाणी में मिठास दिल हो साफ
लगाना नहीं पड़ेगा कोई मुखौटा
आज आवश्यकता है कि हम उनसे
सावधान रहें जो रंग बदलता मुखौटा
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
15/05/2019
15/05/19
बुधवार
कविता
मुखौटे में छुपा चेहरा दिखाई दे नहीं पाता,
है ऊपर क्या व अंदर क्या समझ में कुछ नहीं आता ।
यहाँ चेहरे पर फैली मुस्कराहट में दबी पीड़ा ,
तमाशा देखने वाला परख किंचित नहीं पाता ।
न जाने कितने रंगों को वे चेहरे पर सजाते हैं ,
मगर जीवन में उनके रंग सब धुँधला से जाते हैं ।
नहीं वे चाहते हँसना मगर खुलकर हँसाते हैं,
हृदय की वेदना को मुस्कराहट में छुपाते हैं।
सभी सर्कस के जोकर इस तरह जीवन बिताते हैं,
दूसरों की खुशी में अपने सब गम भूल जाते हैं।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
बुधवार
कविता
मुखौटे में छुपा चेहरा दिखाई दे नहीं पाता,
है ऊपर क्या व अंदर क्या समझ में कुछ नहीं आता ।
यहाँ चेहरे पर फैली मुस्कराहट में दबी पीड़ा ,
तमाशा देखने वाला परख किंचित नहीं पाता ।
न जाने कितने रंगों को वे चेहरे पर सजाते हैं ,
मगर जीवन में उनके रंग सब धुँधला से जाते हैं ।
नहीं वे चाहते हँसना मगर खुलकर हँसाते हैं,
हृदय की वेदना को मुस्कराहट में छुपाते हैं।
सभी सर्कस के जोकर इस तरह जीवन बिताते हैं,
दूसरों की खुशी में अपने सब गम भूल जाते हैं।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
"मुखौटा"
छंदमुक्त
😊😊😊😊😊😊😊
लगा के मुखौटा .....
जोकर मैं बन जाता हूँ..
बड़े बुजुर्गों को प्रणाम कर..
करतब अपना दिखाता हूँ..
बच्चों की खुशी को देख..
मैं भी झूम-झूम गाता हूँ..
तालियों की आवाज़ मे ही..
मैं तो खो जाता हूँ......।
लगा के मुखौटा......
जोकर मै बन जाता हूँ..
छुपा के अपने दर्द को..
हँसी मैं लुटाता हूँ....
काम है मेरा हँसना-हँसाना.
गम कोसों दूर भगाता हूँ...।
लगा के मुखौटा....
जोकर मैं बन जाता हूँ..
हँसते-हँसते यारों...
दिल की बातें...
कह जाता हूँ...
एक ही मुखड़े पर...
मुखौटे से ...चेहरा अपना..
बार-बार बदल लेता हूँ..
लेकिन सीधा-सादा ...
एक ही दिल रखता हूँ...।
लगा के मुखौटा......
जोकर मै बन जाता हूँ..
काम समाप्त कर...
दुनिया को हँसाते-हँसाते..
अपने दर्द के साथ....
घर को लौट आता हूँ...
लगा के मुखौटा....
जोकर मैं बन जाता हूँ..।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
छंदमुक्त
😊😊😊😊😊😊😊
लगा के मुखौटा .....
जोकर मैं बन जाता हूँ..
बड़े बुजुर्गों को प्रणाम कर..
करतब अपना दिखाता हूँ..
बच्चों की खुशी को देख..
मैं भी झूम-झूम गाता हूँ..
तालियों की आवाज़ मे ही..
मैं तो खो जाता हूँ......।
लगा के मुखौटा......
जोकर मै बन जाता हूँ..
छुपा के अपने दर्द को..
हँसी मैं लुटाता हूँ....
काम है मेरा हँसना-हँसाना.
गम कोसों दूर भगाता हूँ...।
लगा के मुखौटा....
जोकर मैं बन जाता हूँ..
हँसते-हँसते यारों...
दिल की बातें...
कह जाता हूँ...
एक ही मुखड़े पर...
मुखौटे से ...चेहरा अपना..
बार-बार बदल लेता हूँ..
लेकिन सीधा-सादा ...
एक ही दिल रखता हूँ...।
लगा के मुखौटा......
जोकर मै बन जाता हूँ..
काम समाप्त कर...
दुनिया को हँसाते-हँसाते..
अपने दर्द के साथ....
घर को लौट आता हूँ...
लगा के मुखौटा....
जोकर मैं बन जाता हूँ..।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
दिनांक :- 15/05/2019
विषय :- मुखौटा
रिश्तों ने पहन लिए अब..
स्वार्थ के मुखौटे..
मतलबी इस दुनिया में..
खा रहे गोते..
बदले भाईचारा..
बदला अब परिवार..
खेल निराला खेल रहे..
टूट रहे परिवार..
लगाकर मुखौटा कोई..
छल रहा अपनों को..
नियत में खोट लिए..
तोड़ रहा सपनों को..
घिर आए अनजाने बादल..
लील रहे महकते उपवन..
बदल रहा मुखौटा कोई..
कुचल रहा बचपन..
घर में भी सुरक्षित नहीं अब..
वो मासूम का बचपन..
हवस के दरिंदे देखो..
अब घर में ही मिल जाते..
करते तार- तार रिश्तों को..
अपनों को ही लील जाते..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
विषय :- मुखौटा
रिश्तों ने पहन लिए अब..
स्वार्थ के मुखौटे..
मतलबी इस दुनिया में..
खा रहे गोते..
बदले भाईचारा..
बदला अब परिवार..
खेल निराला खेल रहे..
टूट रहे परिवार..
लगाकर मुखौटा कोई..
छल रहा अपनों को..
नियत में खोट लिए..
तोड़ रहा सपनों को..
घिर आए अनजाने बादल..
लील रहे महकते उपवन..
बदल रहा मुखौटा कोई..
कुचल रहा बचपन..
घर में भी सुरक्षित नहीं अब..
वो मासूम का बचपन..
हवस के दरिंदे देखो..
अब घर में ही मिल जाते..
करते तार- तार रिश्तों को..
अपनों को ही लील जाते..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
"शीषर्क-मुखौटा"
ये मुखौटा क्यों लगाते है लोग?
असली चेहरा क्यों छिपाते है लोग?
आजादी लगती है जब हमकों प्यारी
चेहरा भी माँगे आजादी,
इसे क्यों भूल जाते है लोग?
गर जरूरी है मुखौटा लगाना
तो सिर्फ अपना दर्द ही क्यों
दिखाते है लोग?
सखा का मुखौटा लगाकर
दुश्मनी क्यों निभाते है लोग
राम का मुखौटा लगाकर
समाज को क्यों भरमाते है लोग?
बने हो गर राम तो
राम बन के दिखाओ
राम का मुखौटा लगाकर
रावण तो मत बन जाओ।
मुखौटा तो मुखौटा है
एक दिन उतर जायेगा
असली चेहरा समाज को
दिख जायेगा।
गर समाज का ध्यान नही जायेगा
मुखौटा लगाकार जब तुम स्वयं
थक जायोगे
अपना मुखौटा अपने हाथ से उतारोगे।अपना मुखौटा अपने हाथ से उतारोगे ।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
ये मुखौटा क्यों लगाते है लोग?
असली चेहरा क्यों छिपाते है लोग?
आजादी लगती है जब हमकों प्यारी
चेहरा भी माँगे आजादी,
इसे क्यों भूल जाते है लोग?
गर जरूरी है मुखौटा लगाना
तो सिर्फ अपना दर्द ही क्यों
दिखाते है लोग?
सखा का मुखौटा लगाकर
दुश्मनी क्यों निभाते है लोग
राम का मुखौटा लगाकर
समाज को क्यों भरमाते है लोग?
बने हो गर राम तो
राम बन के दिखाओ
राम का मुखौटा लगाकर
रावण तो मत बन जाओ।
मुखौटा तो मुखौटा है
एक दिन उतर जायेगा
असली चेहरा समाज को
दिख जायेगा।
गर समाज का ध्यान नही जायेगा
मुखौटा लगाकार जब तुम स्वयं
थक जायोगे
अपना मुखौटा अपने हाथ से उतारोगे।अपना मुखौटा अपने हाथ से उतारोगे ।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
"दिंनाक-१५/५/२०१९"
"शीषर्क-मुखौटा"
लगा मुखौटा चेहरे पे असलियत छुपाये बैठे हैं।
जो दिखता वो सच नहीं पहचान बनाये बैठे हैं।
कोई नही समझ सका इनका गहरा कोई राज,
बुराइयों पर पर्दा डालकर नकाब चढ़ाये बैठे हैं।
छल-कपट, फरेब, अय्यारी जहन में गया समाय,
ऊपर से दिखावा कर लोग नाम कमाये बैठे हैं।
गिरगिट की तरह जन रंग बदल रहे नित-रोज,
अंदर से कुछ और बाहर जाल बिछाये बैठे हैं।
समझ नहीं आता हमें इनका गहरा कोई राज,
मन में तो खुश है मगर अंदर से घबराये बैठे हैं।
ख्वाब तो इनके बहुत कुछ ज्यादा चाहने को,
पूरी जन्नत हमें मिल जाये मन बहलाये बैठे हैं।
षणयंत्र रचा रहे लोग कहीं चलते नित नई चालें,
कामयाब हो गये तो कहीं, वो नाकाम हुये बैठे है।
सुमन अग्रवाल सागरिका
"शीषर्क-मुखौटा"
लगा मुखौटा चेहरे पे असलियत छुपाये बैठे हैं।
जो दिखता वो सच नहीं पहचान बनाये बैठे हैं।
कोई नही समझ सका इनका गहरा कोई राज,
बुराइयों पर पर्दा डालकर नकाब चढ़ाये बैठे हैं।
छल-कपट, फरेब, अय्यारी जहन में गया समाय,
ऊपर से दिखावा कर लोग नाम कमाये बैठे हैं।
गिरगिट की तरह जन रंग बदल रहे नित-रोज,
अंदर से कुछ और बाहर जाल बिछाये बैठे हैं।
समझ नहीं आता हमें इनका गहरा कोई राज,
मन में तो खुश है मगर अंदर से घबराये बैठे हैं।
ख्वाब तो इनके बहुत कुछ ज्यादा चाहने को,
पूरी जन्नत हमें मिल जाये मन बहलाये बैठे हैं।
षणयंत्र रचा रहे लोग कहीं चलते नित नई चालें,
कामयाब हो गये तो कहीं, वो नाकाम हुये बैठे है।
सुमन अग्रवाल सागरिका
विषय : मुखौटा
दिनांक : 15/04/2019
विधा : हाईकू
मुखौटा
पाखंडी नेता
हवाई आश्वासन
देख मुखौटा
टूटते रिश्ते
बिखरे परिवार
अहं मुखौटा
राज छुपाना
उजड़े परिवार
छोड़ मुखौटा
ईश्वर प्रेम
निस्वार्थ अभिप्राय
सार्थक भक्ति
लगा मुखौटा
परेशान इंसान
मिलता धोखा
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।
दिनांक : 15/04/2019
विधा : हाईकू
मुखौटा
पाखंडी नेता
हवाई आश्वासन
देख मुखौटा
टूटते रिश्ते
बिखरे परिवार
अहं मुखौटा
राज छुपाना
उजड़े परिवार
छोड़ मुखौटा
ईश्वर प्रेम
निस्वार्थ अभिप्राय
सार्थक भक्ति
लगा मुखौटा
परेशान इंसान
मिलता धोखा
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।
मुखौटा
भिखारी की फटी झोली
और मेरी जिंदगी
दोनों में बहुत तालमेल है।
उधर,उसके भाग्य की विडम्बना
इधर,मेरी नियति का खेल है।
उसकी फटी झोली
उसपर दर्जनों पैबन्द लगे है
रंग-बिरंगा, बदरंगा।
मेरी जिंदगी
कई मुखौटों से घिरी है
सभ्य,सलज, क्रूर,मोहक,बेढंगा।
उसकी तो झोली फ़टी है।
मेरी जिंदगी,घिसी-पिटी लुटी है।
विवशता के तले
हर किसी के आगे
वह अपनी झोली फैलाता है।
स्वार्थ के वशीभूत
सहजता के साथ मन
हर किसी को आजमाता है।
फिर भी अच्छी है उसकी झोली
गाहे-बगाहे, चन्द गिन्नियाँ तो आ गिरती है।
क्या मायने,मेरी जिंदगी का
तुष्टि-कभी पास न फिरती है।-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
भिखारी की फटी झोली
और मेरी जिंदगी
दोनों में बहुत तालमेल है।
उधर,उसके भाग्य की विडम्बना
इधर,मेरी नियति का खेल है।
उसकी फटी झोली
उसपर दर्जनों पैबन्द लगे है
रंग-बिरंगा, बदरंगा।
मेरी जिंदगी
कई मुखौटों से घिरी है
सभ्य,सलज, क्रूर,मोहक,बेढंगा।
उसकी तो झोली फ़टी है।
मेरी जिंदगी,घिसी-पिटी लुटी है।
विवशता के तले
हर किसी के आगे
वह अपनी झोली फैलाता है।
स्वार्थ के वशीभूत
सहजता के साथ मन
हर किसी को आजमाता है।
फिर भी अच्छी है उसकी झोली
गाहे-बगाहे, चन्द गिन्नियाँ तो आ गिरती है।
क्या मायने,मेरी जिंदगी का
तुष्टि-कभी पास न फिरती है।-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
विषय - मुखौटा
_________________
कुंडली मारकर बैठे हैं यह
इंसानियत के दामन पर
तिल-तिल मरती मानवता
मुखौटा धारी मानव से
कौन अपना और कौन प्यारा
कैसे यह पहचान करे
एक चेहरे पर कई-कई चेहरे
कैसे कोई पहचान करे
वही सुखी इस दुनिया में
जो पहने झूठ का मुखौटा
सच्ची सूरत वाले को तो
पग-पग पर मिलता है धोखा
मानवता का पहन मुखौटा
हैवानियत के काम करें
इंसानों के बीच इन इंसानों की
इंसानियत भला क्या पहचान करे
गिरगिट जैसी सीरत इनकी
नीयत के पीछे खोट छुपी
असली सूरत जाने न कोई
भोले सूरत में बुराई छुपी
सच्चाई जो समझ सके
ऐसी नज़र कहाँ से आए
चेहरे के पीछे चेहरों का
वो राज उजागर कर जाए
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित
_________________
कुंडली मारकर बैठे हैं यह
इंसानियत के दामन पर
तिल-तिल मरती मानवता
मुखौटा धारी मानव से
कौन अपना और कौन प्यारा
कैसे यह पहचान करे
एक चेहरे पर कई-कई चेहरे
कैसे कोई पहचान करे
वही सुखी इस दुनिया में
जो पहने झूठ का मुखौटा
सच्ची सूरत वाले को तो
पग-पग पर मिलता है धोखा
मानवता का पहन मुखौटा
हैवानियत के काम करें
इंसानों के बीच इन इंसानों की
इंसानियत भला क्या पहचान करे
गिरगिट जैसी सीरत इनकी
नीयत के पीछे खोट छुपी
असली सूरत जाने न कोई
भोले सूरत में बुराई छुपी
सच्चाई जो समझ सके
ऐसी नज़र कहाँ से आए
चेहरे के पीछे चेहरों का
वो राज उजागर कर जाए
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित
विधा-मुक्त छंद
जिंदगी में कैसे - कैसे लोग आते हैं दोस्तो
खुद को मेरा पक्का यार बताते हैं दोस्तो
हर वक्त मीठी - मीठी बातों में बहलाकर
मिलकर सब मजाक मेरा उड़ाते हैं दोस्तो
उधार के पैसे माँगकर ले गए कई बार
माँगने पर पैसे सब रूठ जाते हैं दोस्तो
आवारा घूमते सब इधर-उधर गलियों में
नजरों में सबकी नीचा गिराते हैं दोस्तो
कबके सितारे चल रहे हैं गर्दिश में उनके
पीठ में खंजर धीरे से चलाते हैं दोस्तो।
किस-किस पर विश्वास करूँ मैं आज
सबने नकली मुखौटे लगा रखे हैं दोस्तो।
रचनाकार:-
राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा
जिंदगी में कैसे - कैसे लोग आते हैं दोस्तो
खुद को मेरा पक्का यार बताते हैं दोस्तो
हर वक्त मीठी - मीठी बातों में बहलाकर
मिलकर सब मजाक मेरा उड़ाते हैं दोस्तो
उधार के पैसे माँगकर ले गए कई बार
माँगने पर पैसे सब रूठ जाते हैं दोस्तो
आवारा घूमते सब इधर-उधर गलियों में
नजरों में सबकी नीचा गिराते हैं दोस्तो
कबके सितारे चल रहे हैं गर्दिश में उनके
पीठ में खंजर धीरे से चलाते हैं दोस्तो।
किस-किस पर विश्वास करूँ मैं आज
सबने नकली मुखौटे लगा रखे हैं दोस्तो।
रचनाकार:-
राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा
दिनांक, 15,5,2019,
आजकल की जरूरत बना है मुखौटा,
हकीकत से रह गया ही नहीं है वास्ता।
हर काला धंधा उजले मुखोटे में होता,
दर्दे दिल भी छुपा मुखौटे में ही होता।
ज्ञान के दिये में भी तेल अहंकार का रहता,
चिराग तले हमेशा अंधेरा ही बना रहता।
उपदेशक हमारे पहने ही रहते हैं मुखौटा ,
लेते नहीं कभी अपने उपदेशों से शिक्षा ।
कभी कष्टदायी कभी सुखदायी है मुखौटा ,
अपनों को सुख देने का तरीका है मुखौटा ।
प्रेम प्यार बाँटने का तरीका है मुखौटा ,
खुशियों के इजहार का नमूना है मुखौटा ।
कभी खुशी कभी गम है जिंदगी में होता ,
अच्छा है जो गमों पै बना मुखौटा ही रहता।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
आजकल की जरूरत बना है मुखौटा,
हकीकत से रह गया ही नहीं है वास्ता।
हर काला धंधा उजले मुखोटे में होता,
दर्दे दिल भी छुपा मुखौटे में ही होता।
ज्ञान के दिये में भी तेल अहंकार का रहता,
चिराग तले हमेशा अंधेरा ही बना रहता।
उपदेशक हमारे पहने ही रहते हैं मुखौटा ,
लेते नहीं कभी अपने उपदेशों से शिक्षा ।
कभी कष्टदायी कभी सुखदायी है मुखौटा ,
अपनों को सुख देने का तरीका है मुखौटा ।
प्रेम प्यार बाँटने का तरीका है मुखौटा ,
खुशियों के इजहार का नमूना है मुखौटा ।
कभी खुशी कभी गम है जिंदगी में होता ,
अच्छा है जो गमों पै बना मुखौटा ही रहता।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
मुखौटा है छद्म वेश
छुपाता है सच्चाई
दूसरों से
कभी ठगी के लिए
कभी प्रेम पाने के लिए
कभी मनोरंजन के लिए
तो कभी
स्वार्थ के लिए
अपने चेहरे पर
लगा लेता है
दूसरा नकली चेहरा
छुपाता है असलियत
कलाकार अभिनय में
खुद को भूल
पात्र का मुखौटा लगा
उसी को जीता है
नर्तक चेहरा रंग कर
उसी भाव को जीता
खुद को भूल कर
जोकर अपना व्यक्तित्व भूल
हंसाता है दूसरों को
कलाकार लगाते हैं मुखौटा
आजीविका के लिए
मगर बातें करके
ठग लेते हैं मक्कार
चेहरे पर लगाते
मासूमियत का चेहरा
नेता लगाता है
स्वार्थ का मुखौटा
झूठे वायदे कर
प्रवंचक
नेक इंसान बनने का
करता है दिखावा
झूठे प्रेमी बन
तोडते हृदय
मासूम बालाओं का
झूठे मुखौटे
नासूर हैं समाज के
कदम कदम पर
बिखरे हैं समाज में, देश में
और दुनिया में
छद्मवेश धारी
आवश्यकता
सावधानी की
सरिता गर्ग
स्व रचित
छुपाता है सच्चाई
दूसरों से
कभी ठगी के लिए
कभी प्रेम पाने के लिए
कभी मनोरंजन के लिए
तो कभी
स्वार्थ के लिए
अपने चेहरे पर
लगा लेता है
दूसरा नकली चेहरा
छुपाता है असलियत
कलाकार अभिनय में
खुद को भूल
पात्र का मुखौटा लगा
उसी को जीता है
नर्तक चेहरा रंग कर
उसी भाव को जीता
खुद को भूल कर
जोकर अपना व्यक्तित्व भूल
हंसाता है दूसरों को
कलाकार लगाते हैं मुखौटा
आजीविका के लिए
मगर बातें करके
ठग लेते हैं मक्कार
चेहरे पर लगाते
मासूमियत का चेहरा
नेता लगाता है
स्वार्थ का मुखौटा
झूठे वायदे कर
प्रवंचक
नेक इंसान बनने का
करता है दिखावा
झूठे प्रेमी बन
तोडते हृदय
मासूम बालाओं का
झूठे मुखौटे
नासूर हैं समाज के
कदम कदम पर
बिखरे हैं समाज में, देश में
और दुनिया में
छद्मवेश धारी
आवश्यकता
सावधानी की
सरिता गर्ग
स्व रचित
द्वितीय प्रस्तुति
मुखौटे डराते हैं
मुखौटे हंसाते हैं ।
संजीदगी से न लें
जग वाले कहाते हैं ।
अच्छे मुखौटे भी
पहनना इन्हे आते हैं ।
वक्त की ही बात सब
वक्त ही ये कराते हैं ।
नाट्य मंच ये दुनिया
ये प्रभु ही बनाते हैं ।
मुखौटा बिना कहाँ
काम चल पाते हैं ।
वक्त के यह बाजू
मजबूत कहलाते हैं ।
कौन भूमिका में कब
हम नजर आते हैं ।
मुखौटों को यहाँ
कौन न अपनाते हैं ।
जन्म से ही इनसे
होते 'शिवम'नाते हैं ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 15/05/2019
मुखौटे डराते हैं
मुखौटे हंसाते हैं ।
संजीदगी से न लें
जग वाले कहाते हैं ।
अच्छे मुखौटे भी
पहनना इन्हे आते हैं ।
वक्त की ही बात सब
वक्त ही ये कराते हैं ।
नाट्य मंच ये दुनिया
ये प्रभु ही बनाते हैं ।
मुखौटा बिना कहाँ
काम चल पाते हैं ।
वक्त के यह बाजू
मजबूत कहलाते हैं ।
कौन भूमिका में कब
हम नजर आते हैं ।
मुखौटों को यहाँ
कौन न अपनाते हैं ।
जन्म से ही इनसे
होते 'शिवम'नाते हैं ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 15/05/2019
विषय मुखौटा
विधा कविता
दिनांक 15-५-2019
दिन बुधवार
मुखौटा
🎻🎻🎻🎻
मुखौटा लगाना यानि अपने से दूर होना
छल कपट से भरपूर होना
सारी मर्यादायें तोड़कर
दानवीय नशे में चूर होना।
रावण मुखौटा लगाकर आया
सारा कुटिल माहौल बनाया
लेकिन क्या हुआ परिणाम आखि़र
मौत ने उसे बेवक्त गले लगाया।
मुखौटा अन्त में तो पता पड़ जाता
सारा कमाया नाम झड़ जाता
आज सामने सब कुछ हो रहा
कोई कुटिलता काट रहा और कोई बो रहा।
स्व रचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
विधा कविता
दिनांक 15-५-2019
दिन बुधवार
मुखौटा
🎻🎻🎻🎻
मुखौटा लगाना यानि अपने से दूर होना
छल कपट से भरपूर होना
सारी मर्यादायें तोड़कर
दानवीय नशे में चूर होना।
रावण मुखौटा लगाकर आया
सारा कुटिल माहौल बनाया
लेकिन क्या हुआ परिणाम आखि़र
मौत ने उसे बेवक्त गले लगाया।
मुखौटा अन्त में तो पता पड़ जाता
सारा कमाया नाम झड़ जाता
आज सामने सब कुछ हो रहा
कोई कुटिलता काट रहा और कोई बो रहा।
स्व रचित
सुमित्रा नन्दन पन्त
जयपुर
मुखौटा
तुम आ ही गई हो मुद्दतों के बाद तो ,
आज बस हर वो मुखौटा उतार दो।
दिलों से दिलों को करने दो बातें ,
गिर भी जाने दे अब हर दीवार को।
शिकवे शिकायतें फ़िर कभी कर लेना
बस आज मुझको जी भर के प्यार दो।
सदियों से देखा नहीं खुशियों को हमने,
भूल जाओ सब बस खुशियां उपहार दो।
तुम से बिछुड़ कर टूट भी गए थे हम,
अब न रुलाओगी बस इतना करार दो।
रूठी सब खुशियां थी मेरे अंगने की,
आओ अब फिर मुझे वो ही बहार दो।
कसमें न वादे चाहूं अब यारा तुमसे,
भूल जाऊँ दुनिया को ऐसा ही दुलार दो।
तेरे बिना जिंदगी भी क्या खाक थी
निश्चल प्रेम से मेरी जिंदगी संवार दो।
गाँठ जो दिलों में है सुलझा ही जाएगी,
रिश्तों को बस जरा थोड़ा सा आधार दो।
मिल बांट लेंगे हर गम जिंदगी का,
मैं भी कुछ कहूँ कुछ तुम भी विचार दो।
मुखौटों से बढते हैं फासले दिलों में बस,
जिंदगी से अब यह मुखौटे दुत्कार दो।
रूह से रूह का मिलन अब होने दो
बाहों में मेरी अब जिंदगी गुजार दो।
आज बस हर वो मुखौटा उतार दो।
आज बस हर वो मुखौटा उतार दो।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।
विषय -मुखौटा
विधा-कविता
यहाँ हर चीज छलावा है
हर चेहरे पर मुखौटा है
यहाँ हर चीज दिखावा है
सामने केवल मुखौटा है
यहाँ बाहर पहनावा है
झूठ पर दिखावटी सच का मुखौटा है
अंदर जहर बाहर अमृत का भुलावा है
धोखे पर विश्वास का मुखौटा है
अन्याय पर न्याय की हवा है
स्वार्थ पर परमार्थ का मुखौटा है
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
विधा-कविता
यहाँ हर चीज छलावा है
हर चेहरे पर मुखौटा है
यहाँ हर चीज दिखावा है
सामने केवल मुखौटा है
यहाँ बाहर पहनावा है
झूठ पर दिखावटी सच का मुखौटा है
अंदर जहर बाहर अमृत का भुलावा है
धोखे पर विश्वास का मुखौटा है
अन्याय पर न्याय की हवा है
स्वार्थ पर परमार्थ का मुखौटा है
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
शीर्षक-मुखौटा
विधा-हाइकु
1 .
बना मुखौटा
घृणित राजनीति
स्वार्थी नेता
2.
झूठा मुखौटा
सच को है छुपाता
स्वार्थ के लिए
3.
आते हैं नेता
लगाकर मुखौटा
वोट मांगने
4.
बने मुखौटा
तार तार सम्बन्ध
आज के दिन
5.
ओढ़ मुखौटा
तार हुई जिंदगी
झूठ के साथ
*******
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
विधा-हाइकु
1 .
बना मुखौटा
घृणित राजनीति
स्वार्थी नेता
2.
झूठा मुखौटा
सच को है छुपाता
स्वार्थ के लिए
3.
आते हैं नेता
लगाकर मुखौटा
वोट मांगने
4.
बने मुखौटा
तार तार सम्बन्ध
आज के दिन
5.
ओढ़ मुखौटा
तार हुई जिंदगी
झूठ के साथ
*******
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
हाइकु (5/7/5) विषय:-"मुखौटा"
(1)🎭
चलते खोटे
दुनिया रंगमंच
लगे मुखौटे
(2)🎭
सफ़ेदपोश
उतरते मुखौटे
दिखी नीयत
(3)🎭
जग हंसाया
मुखौटे की ओट
आँसू छुपाये
(4)🎭
लौटी किरण
बादलों के मुखौटे
छुपा सूरज
(5)🎭
चेहरा कहाँ
मुखौटों वाले नेता
जनता हेरां
(6)🎭
"चेहरा" भ्रम
मुखौटे की दुनिया
सच्चा है मन
स्वरचित
ऋतुराज दवे
(1)🎭
चलते खोटे
दुनिया रंगमंच
लगे मुखौटे
(2)🎭
सफ़ेदपोश
उतरते मुखौटे
दिखी नीयत
(3)🎭
जग हंसाया
मुखौटे की ओट
आँसू छुपाये
(4)🎭
लौटी किरण
बादलों के मुखौटे
छुपा सूरज
(5)🎭
चेहरा कहाँ
मुखौटों वाले नेता
जनता हेरां
(6)🎭
"चेहरा" भ्रम
मुखौटे की दुनिया
सच्चा है मन
स्वरचित
ऋतुराज दवे
अपने चहरे पे हम चहरा लगाए बैठे हैं....
अपनी ही नज़रों से खुद को चुराए बैठे हैं...
दिल कहे जब कुछ तो दिमाग कुछ और....
कैसे कहें तेरे नहीं दिल के सताये बैठे हैं....
बिकने वाले बिक गए हम शहसवार बैठे हैं...
जीने मरने का शौक लिए दिलदार बैठे हैं...
दम है किसी में तो आये खरीदने हमें....
कफ़न सर सजाये मौत के ज़मीदार बैठे हैं...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१५.०५.२०१९
अपनी ही नज़रों से खुद को चुराए बैठे हैं...
दिल कहे जब कुछ तो दिमाग कुछ और....
कैसे कहें तेरे नहीं दिल के सताये बैठे हैं....
बिकने वाले बिक गए हम शहसवार बैठे हैं...
जीने मरने का शौक लिए दिलदार बैठे हैं...
दम है किसी में तो आये खरीदने हमें....
कफ़न सर सजाये मौत के ज़मीदार बैठे हैं...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१५.०५.२०१९
🌹संध्या वंदन🌹
विषय=मुखौटा
विधा=हाइकु
🌹🌹🌹🌹
छुपा ही लेते
अपने अवगुण
लगा मुखौटा
🌹🌹🌹🌹
जग हँसाने
निकला है जोकर
लगा मुखौटा
🌹🌹🌹🌹
सभ्य भी आज
काले काम करते
लगा मुखौटा
🌹🌹🌹🌹
धर्म लुटेरे
लगाकर छलते
संत मुखौटा
🌹🌹🌹🌹
फैनी मुखौटा
लगा उठा तूफान
किया बर्बाद
🌹🌹🌹🌹
सूर्य पहना
बादलों का मुखौटा
गर्मी राहत
🌹🌹🌹🌹
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
15/05/2018
विषय=मुखौटा
विधा=हाइकु
🌹🌹🌹🌹
छुपा ही लेते
अपने अवगुण
लगा मुखौटा
🌹🌹🌹🌹
जग हँसाने
निकला है जोकर
लगा मुखौटा
🌹🌹🌹🌹
सभ्य भी आज
काले काम करते
लगा मुखौटा
🌹🌹🌹🌹
धर्म लुटेरे
लगाकर छलते
संत मुखौटा
🌹🌹🌹🌹
फैनी मुखौटा
लगा उठा तूफान
किया बर्बाद
🌹🌹🌹🌹
सूर्य पहना
बादलों का मुखौटा
गर्मी राहत
🌹🌹🌹🌹
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
15/05/2018
मुखौटा
क्यूं इस जहां का हर इंसान
मुखौटा लगाए फिरता है।
अश्क को छुपाकर आंखों में
मुस्कान लिए फिरता है।।
गिले सिकवे भरे हैं सीने में,
मगर तारीफ के पुल बांध रहा।
नफरत से मन की गोदाम भरी
वो प्यार की दुकान चला रहा।।
स्वरचित
निलम अग्रवाल,खड़कपुर
क्यूं इस जहां का हर इंसान
मुखौटा लगाए फिरता है।
अश्क को छुपाकर आंखों में
मुस्कान लिए फिरता है।।
गिले सिकवे भरे हैं सीने में,
मगर तारीफ के पुल बांध रहा।
नफरत से मन की गोदाम भरी
वो प्यार की दुकान चला रहा।।
स्वरचित
निलम अग्रवाल,खड़कपुर
विषय-मुखौटा
विधा- मुक्त
आईनों की गर्द
हर बार
साफ कर चेहरा
तलाशता रहा
अस्तित्व दांव पर लगा
मुखौटे बदलता रहा
बार बार
करता रहा शिकायतें
अपनी जिंद से
जमीर जो अपना
हर बार मारता रहा
मुफलिसी का दौर
देखा था कभी
बदलने मुक्कदर अपना
मुखौटे बदलता रहा
अस्तित्व की तलाश में..........।
डा.नीलम .अजमेर
विधा- मुक्त
आईनों की गर्द
हर बार
साफ कर चेहरा
तलाशता रहा
अस्तित्व दांव पर लगा
मुखौटे बदलता रहा
बार बार
करता रहा शिकायतें
अपनी जिंद से
जमीर जो अपना
हर बार मारता रहा
मुफलिसी का दौर
देखा था कभी
बदलने मुक्कदर अपना
मुखौटे बदलता रहा
अस्तित्व की तलाश में..........।
डा.नीलम .अजमेर
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