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ब्लॉग संख्या :-395
नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक हार ,जीत
विधा लघुकविता
23 मई 2019,गुरुवार
हार होती हृदय हताशा
जीत है मेहनत की धारा
जिसने लक्ष्य ठान लिया
जीवन उसका है पौबारा
हार जीत जीवन चक्र है
बुरे भले सब जग में रहते
जिनने की है कड़ी तपस्या
वे नर जग में आगे बढ़ते
जीवन संघर्ष चलता रहता
कोई जूझते कोई रोते
अपने ही कर्मो के कारण
वे सदा जीवन में खोते
हार जीत जीवन भर होती
ईमानदारी और जग सेवा
जो करते हैं सदा परिश्रम
जीवन भर पाते नित मेवा।।
स्व0 रचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
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सुप्रभात "भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन🌹
23/05/2019
"हार-जीत"
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जीत की खुशी से अहं मन में आया यदि,
सफलता हारकर ठहर जाएगा वहीं ।
हार से टूटकर बिखर न जाना कहीं,
हार के बाद ही मंजिल जीत की मिलेगी वहीं ।
हार-जीत में उलझना न ऐ जिंदगी,
हार कर ही जी ले तू ऐ जिंदगी।
दिल हारकर खुशी जो मिली है हमें,
जीतने की खुशी न मिली हो कभी।
मिला है मुझे जो नसीब में मेरा था,
हार-जीत का न कोई सिलसिला यहाँ था।
दिल हारकर मुस्कान जो मिला था,
जीत की खुशी अश्कों में घुला था।
जो तू मिल जाए तो हार जाँऊ मैं खुद को,
समझूँ रब ने मेरी किस्मत फुर्सत से लिखा था।
अपनी तकदीर से जीता था जो जहां,
हार गई उसी से जो मुकद्दर मेरा था।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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नमन मंच-भावों के मोती
दिनांक-23.05.2019
शीर्षक- हार-जीत
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कर्त्तव्यनिष्ठ बन रहे मनुज यह हार-जीत किस्मत का प्रतिफल ।
पुरुषार्थ में लक्ष्य निहित है यह कब है दौलत का प्रतिफल ?
बहुधा यह देखा है हमने कायरता पीछे कर देती ,
वही गले जयमाल पहनता जिसपर है हिम्मत का प्रतिफल ।।
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परिभाषित कैसे कर पाऊँ मैं जिस पर विचार भटका है ।
किन्तु पहुँचना उस सीमा तक जिसमें स्वाभिमान अटका है ।।
स्पष्टवादिता से कहदूँ अब हार-जीत पर दृष्टि गढ़ाकर,
पहले तुम ने क्यों न बताया मुझको शब्द आज खटका है ।।
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भवदीय- "अ़क्स" दौनेरिया
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हार-जीत का प्रश्न नही है, बात है बस विश्वास की।
समय बदलता रहता है जब, निश्चय क्या इस आस की।
....
आज हार है कल जीतेगे, कर्म की गति बेहतर कर लेगे।
हार-जीत का जो अन्तर है, कर्म के रथ का वो मन्तर है।
...
ना करना अभिमान जीत का, हार पे दुखी नही होना।
शेर की कविता पढा करो, जीवन अनन्त सुख मे होगा।
..
शेरसिंह सर्राफ
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।। हार-जीत ।।
जीत का सेहरा उन्हे मिला जो हारे हैं
हार कर वह भाग्य अपने संवारे है ।।
गिर कर उठना होता वह जान गये
आज सफलता देखो उनके द्वारे हैं ।।
हमने हर हार में चिन्तन मनन किये
न मायूस हुए न आँसुओं को डारे हैं ।।
असफलता की सीखें रखे जिह्न में
स्वयं प्रकाश पाये भये उजियारे हैं ।।
सारे घाव सारीं चोटें दिखीं बदलते
सदा न रहे यहाँ कोई गम के मारे हैं ।।
चीटी चढ़ी पहाड़ कछुआ बाजी मारे
हिम्मत लगन 'शिवम' मित्र हमारे हैं ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 23/05/2019
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23मई2019
हार जीत
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नमन मंच।
नमन,वन्दन गुरूजनों,मित्रों।
🙏🙏🌹🌹
कब किसकी जीत हो,
कब किसकी हार हो।
ये तो कोई जाने ना।
जो हार जीत होती है किसीकी,
वो सिर्फ प्रभु के हाथ है,
सिर्फ कर्म मेरे साथ है।
जो होगा,देखा जायेगा,
हार जीत से डरना कैसा।
सत्कर्म करने बाले जीतते हैं बाजी,
यही सबक याद रखना सदा।
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स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
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भावों के मोती दिनांक 23/5/19
हार जीत
विधा - हाइकु
कठिन रास्ते
जिन्दगी है मुश्किल
है हार जीत
करो संघर्ष
हार बदले जीत
रखो संतोष
हार जीत में
उलझता इन्सान
खेल निराला
परेशानी में
भटकती जिन्दगी
है हार जीत
स्वलिखित लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
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नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक-हार/जीत
विधा-दोहे
दिनांक-23/05/2019
हार जीत को सोचकर, करो नहीं आराम।
कर्म धर्म अपनाइये ,रजनी हो या याम।।
हार बदलती जीत में, करो सकल संघर्ष।
शूल बदलते फूल में, मिले चरम उत्कर्ष।।
मन का क्षोभ मिटाइये, कभी न करिए खेद।
हार मिली तो क्या हुआ, मिला जीत का भेद।।
जीत मिली तो क्या हुआ, मन को रखिए थाम।
मन घोटक की टाप पर, कसिये एक लगाम।।
शालिनी अग्रवाल
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
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तिथि - तेईस/ पांच/ उन्नीस
विषय - हार जीत
थक गई हूँ
बहुत लड़ते लड़ते
लगता है
हार चुकी हूँ
खुद से
हालात से
परिवार से, समाज से
कैसी लड़ाई है ये
समझ नहीं पाती
कब हारी और
कब जीती हूँ
मन विद्रोह करता है
रूढ़ियों और परंपराओं का
कभी कभी
जी चाहता हूँ
उड़ जाऊं
किसी अनजान नभ में
चल पडूं अकेली
किसी सुनसान डगर पर
लड़ूँ एक लड़ाई खुद से
और जीत लूँ खुद को
अगर तुम साथ हो
कर सकती हूँ मुकाबला
किसी भी तूफान से
बदल सकती हूँ
अपनी हार को
सुनिश्चित जीत में
आओ साथ मेरे
थमा जाओ
विजय पताका
मेरे हाथ में
पलट कर न देखें
किसी हार को हम
सामने हो
मदिर बयार सी
मन शीतल करती
जीत हमारी
सरिता गर्ग
स्व रचित
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माँ शारदे को नमन,
सुप्रभात भावों के मोती
दिनांक-२३/५/२०१९
"शीर्षक-हार जीत"
जीत मिले या हार मिले
दोनो हो हमें स्वीकार
हार जीत तो जीवन के संग
दोनो को ले सहजता से हम।
अभिष्ट नही तो जीवन कैसा?
यह नही है सही सोच
जीत हार के आगे भी दुनिया
इसे क्यों भूल जाते लोग?
अकर्मण्य न हो बैठे हम
सतत प्रयास करें हम
ये जीवन है रजतपट नही
इसे सदा याद रखें हम।
याद करें अपने कर्मठता को
जीत मिलेगी और मिलेगा लक्ष्य
हार से सबक मिले हमें
क्यों पीछे छूट गयें हम।
उस कमी को पूरा करके
जीत जायेंगे फिर से हम।
हार जीत तो जीवन के अंग
इसे न भूल जाये हम।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव ।
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23/5/19
भावों के मोती
विषय- हार-जीत
__________________
हार-जीत की होड़ मे
हम खड़े किस मोड़ पर
रिश्तों को लगातार दांव पर
अहम और वहम की जंग में
हारती ज़िंदगी अपनों के संग
न कोई कम न कोई ज्यादा
फिर भी कैसा है दिखावा
एक-दूसरे को दिखाएं नीचे
कैसे हैं आजकल के रिश्ते
क्या घर क्या बाहर मची एक होड़
हम श्रेष्ठ की नीति से लगाएं दौड़
जीतकर भी हार जाते हैं
जब अपनापन खो देते हैं
अपनों की भीड़ में अकेले खड़े रहते हैं
अहम के घोड़े पर सवार होकर
हाथों में लालच की तलवार लेकर
सही ग़लत को जाते हैं भूल
सच्चाई को हरा जीत जाते हैं झूठ
हराना ही है तो बुराई को हरा दो
ज़िंदगी को भलाई के काम में लगा दो
रहेगा सदा होंठों पर नाम सबके
लाखों की भीड़ में सबसे हटकर
अहम को हटाकर वहम को मिटा दो
नफ़रत मिटा प्यार को जगह दो
***अनुराधा चौहान***© स्वरचित©
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नमन भावों के मोती मंच 🙏
दिनांक - 23/05/2019
वार - गुरुवार
विषय - हार - जीत
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हार - जीत
हार-जीत से क्या घबराना,
यह तो आनी - जानी है।
स्थितप्रज्ञ रहना हरदम,
जीवन बहता पानी है।
धूप-छाँव की आँख मिचौली,
राजा रंक सभी देखे,
कर्म का फल खट्टा-मीठा,
है ये नियति के लेखे।
सामने तूफां को पाकर,
बैठ हार नहीं जाना,
हिम्मत के बल बढ़ते जाना,
लक्ष्य शिखर को पा जाना।
सीधे रास्ते चल कर के,
मंजिल पास नहीं आती,
मिल जाये जो बिना परिश्रम
वह जीत स्वाद नहीं पाती।
अगर कहीं किसी मोड़ पर,
सामना हार से हो जाए,
हाथ मिलाकर मुस्कुराओ कि,
हार भी तुमसे हार ही जाए।
पाकर जीत नहीं इतराना,
जो विनित सरल बन जाओगे,
सच कहती है उषा तुमसे,
तुम जीत दुनिया जाओगे।
स्व रचित
डॉ उषा किरण
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कहीं जीत कहीं हार लगती है।
ये जिन्दगी इश्तिहार लगती है।
अभी भी मुझपे असर है तेरा।
जो न उतरा खुमार लगती है।
थी लडकपन की भूल मेरी।
जवां पहला बुखार लगती है।
कभी लगती के कमाई नफरत।
तो कभी खोया प्यार लगती है।
मै उसे रोज ही याद करता हूँ।
ये बात उसे नागवार लगती है।
मुझे शायद न होश आए अब।
वो खिंजाओं मै बहार लगती है।
हूँ सरोबार जिसमें आज तक।
बस वही गर्दो - गुबार लगती है।
जिनसे खेले थे हम कभी रोज।
वही मुश्किलें बेशुमार लगती है।
विपिन सोहल
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नमन
भावों के मोती
२३/५/२०१९
विषय-हार-जीत
मन के हारे हार है,
मन के जीते जीत।
जिसने जीत लिया मन को
संकट उसके मीत।
हार न मानें वो कभी,
चाहे संकट में हो प्राण।
मन के बल से वो करे,
हर मुश्किल आसान।
स्वाभिमान की वो बने,
जीती-जागती मिसाल।
पुरूषार्थी बनकर सदा,
समय की बदले चाल।
चलता सीना तान कर,
जीते जीवन की जंग।
मस्ती में डूबा रहे,
बनकर रहे मलंग।
बाजी वो न हारता,
खेले मुश्किल खेल।
विकट परिस्थितियों,
से बैठाता तालमेल।
गहरे पानी पैठकर,
ढूंढ के लाता मोती।
अपने आत्मबल से,
जीत उसी की होती।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
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भावों के मोती
23/05 /19
विषय - हार-जीत
फतह तो किले किये जाते हैं
राहों को कौन जीत पाया भला
करना हो कुछ भी हासिल
कुछ खोना कुछ पाना हो
चाहे हो सिकंदर कहीं का
इन्ही राहों से जाना हो
कोई हार के दिल
जीत गया विजेताओं के
कोई जीत के हार गया
सम्मान आंखों से
क्या हारा क्या जीता का
हिसाब बहुत ही टेढ़ा है
जीत हार का मान दंड
सदा अलग सा होता है
सभी जीत का जश्न मनाते
हार गये तो रोता है
नादान ऐ इंसान हार जीत में
कितने रिश्ते खोता है
अपना दिल हार के देखो
संसार तुम पर हारेगा
महावीर ने जग हार कर
सिद्धत्व को जीत लिया
जग में कितने जीतने वालों ने
अपना मान ही हार दिया
तो क्या जीता क्या हारा
आंकलन हो बस खरा खरा।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
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नमन भावों के मोती,
आज का विषय, हार जीत,
दिन, गुरुवार,
दिनांक, 23,5,2019,
संघर्ष नाम है जीवन का, सबको ही करना पड़ता है ।
सिलसिला हमारे जीवन में हार जीत का चलता रहता है।
चलने वाला ही जीवन में गिर गिर कर सम्हलता है।
मंजिल की चाह जिन्हें होती ठोकर भी खाना पड़ता है।
फूलों की सेज किसे मिलती खुद काँटे चुनना पड़ता है ।
जीवन में कुछ पाने के लिए हार कर जीतना पड़ता है ।
थक कर जो बैठ गये रहों में हार का सामना करना पड़ता है।
जीवन जीने के कौशल को नहीं कभी समझने पाता है ।
विरासत में मिलीं सुख सुविधाओं का आनंद नहीं कुछ आता है।
जो कुआँ खोद कर पीता है वही प्यास समझने पाता है।
यहाँ जीत उसी को मिलती है जो नजर लक्ष्य पर रखता है ।
सतत निर्भय होकर चलने वाला हासिल जीत को करता है।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
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🙏🙏🌺🌹"नमन भावों के मोती"
विधा-छंद मुक्त कविता
विषय-हार/जीत
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हार और जीत में , क्या रखा ऐसी प्रीत. में
द्वेष को मिटादे ,लग जाओ ऐसी रीति में
शब्दों में भरो वो स्वर तान छिड़े संगीत में
दे दो शंख नाद स्वर ,भरे ऊर्जा शरीर में
नेताओं ने पछाड़ा राजनीति की होड़ में
गिरा रहे ईमान वो राजनीति की दौड़ मे
हार और जीत का फैसला जब दौड़ में
बाँधो कफन सिर झुके वतन-ए - हिंद में
स्वरचित
नीलम शर्मा # नीलू
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नवम भाव के मोती
दिनांक- 23 मई 2019
विषय- हार जीत
विधा -हाइकु
शराबी व्यक्ति-
हार जाता जिन्दगी
नशे में चूर
अंकों का खेल
परीक्षा परिणाम-
हार व जीत
मनुष्य कर्म-
प्रयत्न व अभ्यास-
जीत की सीढ़ी
निश्चय लक्ष्य
कठिन परिश्रम-
जीत का द्वार
साहसी लोग
हार कर जीतते-
जीवन अंग
सफल चुनाव
लोकतंत्र की जीत-
राष्ट्र निर्माण
प्रेम सद्भाव
हार और जीत में-
खेल भावना
अंकों का खेल
लोकतंत्र की नींव-
जीत व हार
जीतना तय
भरोसा स्वयं पर-
संघर्ष कर्म
स्वरचित
मनीष श्री
रायबरेली
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नमन भावों के मोती
विषय - हार-जीत
23/05/19
गुरुवार
कविता
लोकतंत्र का पर्व आज फिर हार- जीत के नाम रहा,
किसी पक्ष को जीत मिली तो कोई पक्ष नाकाम रहा।
हार -जीत का चक्र जगत में प्रतिपल चलता रहता है ,
जिससे मानव मन पर दुख-सुख भी प्रतिबिंबित रहता है।
जो भी समय सिखाता ,उसको मन से अंगीकार करें,
विजयी होकर रखें धैर्य , न प्रतिपक्षी पर वार करें।
हार सदा व्यक्ति को चिंतन और मनन सिखलाती है,
अपनी त्रुटियों को सुधारने का सत्पथ दिखलाती है।
इसीलिए इस हार- जीत से जीवन गतिमय रहता है,
मानव इनसे प्रेरित होकर सतत कर्म-पथ गहता है।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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भावों के मोती
शीर्षक- हार-जीत
हार में भी जीत है
अगर दिल में प्रीत है।
गम में भी खुशी है
अगर साथ में मीत है।
अपनों के अपनेपन से
अमर जीवन संगीत है।
तु खुश तो मैं भी खुश,
यही हृदय का गीत है।
स्वरचित
निलम अग्रवाला, खड़कपुर
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शुभ संध्या
शीर्षक -- ।। हार-जीत ।।
द्वितीय प्रस्तुति
क्या रखा हार जीत के खेल में
एक आदर्श जीवन का पाठ पढो ।।
जीत से ज्यादा सुख पाओगे
उन उसूलों को तुम आज गढ़ो ।।
सफलता पाकर भूल से भूलें सब
राहें हैं कुछ उनका अहसास करो ।।
आदर्श जीवन राम का अनुकरणीय
जीत के सब आसार बने याद करो ।।
आज हम आदर्शवादिता भूलें हैं
आदर्शवादी बनो इसका जाप करो ।।
जीत का सेहरा पाकर न कोई
राज खुले, खुद पर इंसाफ करो ।।
गलत राह जीत मिले वो जीत नही
जानो और अपना दामन पाक करो ।।
राम अमर हैं अमर रहेंगे जीत को
कितने न पाये मनमें ये उजास भरो ।।
ऊँचाइयाँ वैसे 'शिवम' बहुत छुईं
पर मानवता खोए पश्चाताप करो ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 23/05/2019
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भावों के मोती
23/05/19
विषय - हार-जीत
द्वितीय प्रस्तुति
विधा हाइकु
हार औ जीत
यही जग की रीत
थोड़ा ठहर।
लगा है देखो
हार जीत का मेला
दिनों का खेला।
दिलों में रह
बना सबको मीत
क्या हार जीत।
जग को जीत
सबको अपना बना
न रह तन्हा ।
रे मनु मुर्ख
हार जीत में रोता
आपा क्यों खोता।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
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नमन भावों के मोती
23/5/2019
विषय : हार जीत
जीवन को कुछ
यूँ आकार दो
सपने सब नहीं
पर कुछ तो साकार हो
पल-पल भले ना
ख़ुशियों की भरमार हो
पर कभी-कभी
इस मन का भी सत्कार हो
बिछड़ना चाहे बार-बार हो
पर सच्चा प्यार तो एक बार हो
जीतना चाहे बार-बार हो
पर एक बार हार भी स्वीकार हो
क़दम लड़खड़ाये बार- बार
पर इरादों की ना हार हो
जीने कै पल सिर्फ़ चार हों
पर फिर बाक़ी ना
जीवन का कुछ उधार हो
जीना मरना चाहे बार- बार हो
पर हिम्मत की कभी ना हार हो
शेहला जावैद
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नमन मंच
विषय हार जीत
२३/०५/२०१९
!
हार जीत के खेल में, उलझा यह संसार,
जनम मरण के बीच में, जीती जंग अपार,
जीती जंग अपार, मगर हाथ कुछ न आया,
अंत हाल में देख, मुटठी खाली पाया,
खेला कैसा खेल, आया तनिक न समझ में,
खुद से पूछे कौन, कब जीते कभी हारे ।।
!
स्वरचित: डी के निवातिया
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23-5-2019
विषय:- हार जीत
विधा :-सार छंद
जीवन पथ में हार जीत ही , आगे ले जाते हैं ।
इन चप्पुओं से नाव को खे कर , तट पर ले जाते हैं ।।
कभी डूबती दिखती नैया , हिचकोले खाती है ।
कभी किनारा जब दिख जाता , दिल को हर्षाती है ।।
चलते पीछे जो हैं हारें , आगे चलते जो जीतें ।
अपनी नज़रों में गिर जाते , घूँट जहर का पीते ।।
ढाल पराजय की बनती जब , जीत सदा जाते हैं ।
अपनी नजर लक्ष्य पर रख कर , भेद उसे जाते हैं ।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
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नमन मंच को
विषय : हार/जीत
दिनांक : 23/05/2019
विधा : गीत
हार - जीत
जीवन भी इतना नहीं आसां,
केवल सुख ही नहीं हैं यहां ।
क्यूँ रोता उसे जो गया बीत है ,
कभी हार मिलती कभी जीत है ।
इस जीवन की यारो यही रीत है ।
कभी हार मिलती कभी जीत है ।
मिले जो भी हारें न होना निराश ।
जीवन का दूजा ही नाम है आस।
टूट न जाना कहीं हार से तुम,
कदमों पे अपने तू कर विश्वास ।
रात अंधेरी गुजर जाएगी,
नयी सुबह समझ नया गीत है,
इस जीवन की यारो यही रीत है ।
कभी हार मिलती कभी जीत है ।
लड़ना भी सीखो ललकार से
ले ले सबक तू भी हर हार से।
मजबूत हौसले ही जीत हैं,
जीत ले प्यार या तलवार से।
जीत तो हौसलों की मुरीद है,
कभी हार मिलती कभी जीत है ।
इस जीवन की यारो यही रीत है ।
कभी हार मिलती कभी जीत है ।
इस जीवन की यारो यही रीत है ।
जय हिंद
स्वरचित : राम किशोर, पंजाब ।
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नमन भावों के मोती
दिनाँक- 23/05/2019
शीर्षक-हार, जीत
विधा-हाइकु
1.
हार न माने
प्रयास बढ़ाइए
जीत मिलेगी
2.
जीत की खुशी
आकर गले लगी
मन में बसी
3.
हार व जीत
जीवन के पहलू
रहते चालू
4.
नन्हीं सी चींटी
हार नहीं मानती
जीत पाने को
5.
मन की हार
करे नहीं उद्धार
जीत बेकार
*********
स्वरचित
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर(झज्जर)
हरियाणा
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