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ब्लॉग संख्या :-375
सुप्रभात"भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन,🌹
"खाली/रिक्त"
1
गायब चाँद
आसमान है खाली
राहु का ग्रास
2
मन है खाली
दिन ,रात का चैन
लूटा किसीने
3
मन दर्पण
प्रतिबिंब है कहाँ
रिक्त नयन
4
जी रहे हम
खाली-खाली जीवन
क्या है उपाय
5
आ रहा "फणी"
उड़ीसा व बंगीय
समुद्री तट
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन,🌹
"खाली/रिक्त"
1
गायब चाँद
आसमान है खाली
राहु का ग्रास
2
मन है खाली
दिन ,रात का चैन
लूटा किसीने
3
मन दर्पण
प्रतिबिंब है कहाँ
रिक्त नयन
4
जी रहे हम
खाली-खाली जीवन
क्या है उपाय
5
आ रहा "फणी"
उड़ीसा व बंगीय
समुद्री तट
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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रिक्त जीवन को अपना रहने ना दें
खाली पन्ने अपने भर लीजिए
जान नहीं पाएगें हम कभी
कब वहाँ से वुलाबा आ जाएगा
हम सोचते ही रह जाएगें
जीवन के पन्ने खाली के
खाली रह जाएगें
भर लो जीवन की कहानी न ई
रह ना जाये कोई जिन्दगी की कमी
कर इरादा बुलन्द सीढियां चढने को
आगे बढना ही जीवन का मकसद है
उसको पूरा करना बडी सरपट से है
स्वरचित एस डी शर्मा
खाली पन्ने अपने भर लीजिए
जान नहीं पाएगें हम कभी
कब वहाँ से वुलाबा आ जाएगा
हम सोचते ही रह जाएगें
जीवन के पन्ने खाली के
खाली रह जाएगें
भर लो जीवन की कहानी न ई
रह ना जाये कोई जिन्दगी की कमी
कर इरादा बुलन्द सीढियां चढने को
आगे बढना ही जीवन का मकसद है
उसको पूरा करना बडी सरपट से है
स्वरचित एस डी शर्मा
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नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक रिक्त,खाली
विधा लघुकविता
03 मई 2019,शुक्रवार
रिक्त कलश में नीर भरते
वह निश्चित उसमें ठहरेगा
भरा हुआ है जो पहले से
वह गागर बाहर छलकेगा
भरा हुआ है जो भावों से
संस्कारित जिसका जीवन
बीज सदा बोता धरती में
रिक्त धरा खिल जाता उपवन
रिक्त नहीं कोई भी मानव
प्रतिभा सबमें छिपी हुई है
सतत प्रयास किया जिसने
आलोकित करती रूई है
कृषक उर्वकता रिक्त भूमि
काट पीटकर समतल करता
खून पसीना सदा बहा नित
शस्यश्यामल वह रंग भरता
रिक्त रहेगा जीवन खोता
काम करे जो आगे बढ़ता
कर्मप्रधान होते जीवन में
सदा विपदाओं से लड़ता
खालीपन आलस भरता
जीवन जग संग्राम होता
जो जीवन मे आगे बढ़ता
ऐसा मानव कभी न रोता
खाली कर जाना है सबको
कुछ जीवन मे ऐसा भरदो
यश सम्मान मिले मरने पर
परोपकार जीवन मे करलो।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
शीर्षक रिक्त,खाली
विधा लघुकविता
03 मई 2019,शुक्रवार
रिक्त कलश में नीर भरते
वह निश्चित उसमें ठहरेगा
भरा हुआ है जो पहले से
वह गागर बाहर छलकेगा
भरा हुआ है जो भावों से
संस्कारित जिसका जीवन
बीज सदा बोता धरती में
रिक्त धरा खिल जाता उपवन
रिक्त नहीं कोई भी मानव
प्रतिभा सबमें छिपी हुई है
सतत प्रयास किया जिसने
आलोकित करती रूई है
कृषक उर्वकता रिक्त भूमि
काट पीटकर समतल करता
खून पसीना सदा बहा नित
शस्यश्यामल वह रंग भरता
रिक्त रहेगा जीवन खोता
काम करे जो आगे बढ़ता
कर्मप्रधान होते जीवन में
सदा विपदाओं से लड़ता
खालीपन आलस भरता
जीवन जग संग्राम होता
जो जीवन मे आगे बढ़ता
ऐसा मानव कभी न रोता
खाली कर जाना है सबको
कुछ जीवन मे ऐसा भरदो
यश सम्मान मिले मरने पर
परोपकार जीवन मे करलो।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
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( रिक्त / खाली )
ऐ यार मिरे ! दिलदार मिरे !
तेरा जाना क्या जुल्म किया
लगा न अब तक कहीं जिया
तेरी कमी सदा सतायी
जाने क्या तूने ऐसा
इस दिल पर जादू किया
कितने नही आये गये
इस दिल की दुनिया में
मगर तेरी यह रिक्ति
का कोई स्थान न लिया
जब भी होता हूँ खाली
दिल होता मुझसे सवाली
करने लगता है सवाल
समय को रहते तूने
क्यों न कुछ किया
बता ऐ ''शिवम"
मेरी प्रीति का वह
पहला पन्ना था
संभाला न गया तुझसे
दग़ाब़ाज लब्ज भी
रह जाते सिले सिले
यूँ तो रिक्तियाँ बहुत हैं
इस जीवन में मगर
इस रिक्ति का कुछ
अलग ही अहसास
और कसक रहे
जिसने अब कलम
का सहारा लिया
कुछ खालीपन भी
क्या अजीब होते हैं
खाली ही रहते हैं
ताज़ीस्त विकल्प
होते ही नही उनके
आज ये जाना पहचाना
और महसूस किया ..!
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/05/2019
ऐ यार मिरे ! दिलदार मिरे !
तेरा जाना क्या जुल्म किया
लगा न अब तक कहीं जिया
तेरी कमी सदा सतायी
जाने क्या तूने ऐसा
इस दिल पर जादू किया
कितने नही आये गये
इस दिल की दुनिया में
मगर तेरी यह रिक्ति
का कोई स्थान न लिया
जब भी होता हूँ खाली
दिल होता मुझसे सवाली
करने लगता है सवाल
समय को रहते तूने
क्यों न कुछ किया
बता ऐ ''शिवम"
मेरी प्रीति का वह
पहला पन्ना था
संभाला न गया तुझसे
दग़ाब़ाज लब्ज भी
रह जाते सिले सिले
यूँ तो रिक्तियाँ बहुत हैं
इस जीवन में मगर
इस रिक्ति का कुछ
अलग ही अहसास
और कसक रहे
जिसने अब कलम
का सहारा लिया
कुछ खालीपन भी
क्या अजीब होते हैं
खाली ही रहते हैं
ताज़ीस्त विकल्प
होते ही नही उनके
आज ये जाना पहचाना
और महसूस किया ..!
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 03/05/2019
@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
दिनांक .. 3/5/2019
विषय .. रिक्त/खाली
विधा .. लघु कविता
********************
.....
खाली है मन का मन्दिर तुम
प्रियतम प्यारे आ जाओ।
रिक्त पडे मन के कोने को,
आकर फिर महका जाओ।
...
ढूँढ रहा है मन बावरिया,
नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे ।
मीरा का मन भटक रहा सुन,
श्याम सखी मन हारे-हारे।
...
शिव नन्दी के साथ पधारे,
पार्वती के द्वारे।
मीरा देख रही है रस्ता,
आ जा गिरधर प्यारे।
.....
रिक्त यहाँ है शेर का मन भी,
बसे है बस जग तारे।
ना भटकाओ मन को अपने,
वो ही तारन हारे।
स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
दिनांक .. 3/5/2019
विषय .. रिक्त/खाली
विधा .. लघु कविता
********************
.....
खाली है मन का मन्दिर तुम
प्रियतम प्यारे आ जाओ।
रिक्त पडे मन के कोने को,
आकर फिर महका जाओ।
...
ढूँढ रहा है मन बावरिया,
नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे ।
मीरा का मन भटक रहा सुन,
श्याम सखी मन हारे-हारे।
...
शिव नन्दी के साथ पधारे,
पार्वती के द्वारे।
मीरा देख रही है रस्ता,
आ जा गिरधर प्यारे।
.....
रिक्त यहाँ है शेर का मन भी,
बसे है बस जग तारे।
ना भटकाओ मन को अपने,
वो ही तारन हारे।
स्वरचित .. शेर सिंह सर्राफ
@@@@@@@@@@@@@@
खाली/ रिक्त
रिक्त स्थानों को कोई भर नहीं सकता।
किसीकी कमी को कोई,
पूरी कर नहीं सकता।
माँ ने जो बेटे गंवाये सीमा पर,
बेटे की कमी को कोई पूरी कर नहीं सकता।
पत्नी ने जो सीमा पर पति गंवाये,
उस रिक्तता की जगह कोई ले नहीं सकता।
बच्चे का पिता कोई दूसरा,
बन नहीं सकता।
जो अनाथ हो गये बच्चे,
उसका नाथ कोई और नहीं हो सकता।
भक्तों को भगवान की रिक्तता,
खलती रहती है सदा।
उस रिक्तता को कोई भर नहीं सकता,
गर भगवान हीं बनें सहारा किसीका,
तो उसको आगे बढ़ने से,
कोई रोक नहीं सकता।।
💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
रिक्त स्थानों को कोई भर नहीं सकता।
किसीकी कमी को कोई,
पूरी कर नहीं सकता।
माँ ने जो बेटे गंवाये सीमा पर,
बेटे की कमी को कोई पूरी कर नहीं सकता।
पत्नी ने जो सीमा पर पति गंवाये,
उस रिक्तता की जगह कोई ले नहीं सकता।
बच्चे का पिता कोई दूसरा,
बन नहीं सकता।
जो अनाथ हो गये बच्चे,
उसका नाथ कोई और नहीं हो सकता।
भक्तों को भगवान की रिक्तता,
खलती रहती है सदा।
उस रिक्तता को कोई भर नहीं सकता,
गर भगवान हीं बनें सहारा किसीका,
तो उसको आगे बढ़ने से,
कोई रोक नहीं सकता।।
💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती ,
आज का विषय , रिक्त , खाली ,
दिन , शुक्रवार ,
दिनाँक ,३,५,२०१९,
भरा मकान कभी घर नहीं बन सकता ,
अगर वहाँ खाली दिल का कोना रहता ।
जब अपनी ढपली अपना राग ही बजता ,
फिर कभी सुन्दर गीत नहीं बन सकता ।
लेखक स्याही तो खर्च बहुत शब्दों में करता ,
भाव विहीन संरचना में रंग नहीं दिखता ।
भरा कागज भी हमेशा खाली ही लगा करता ,
अगर अश्क समाज का दिखा नहीं करता ।
खाली सपना सदा रुलाया ही तो करता ,
जब तक प्रयास का रंग भरा नहीं जाता ।
जो काँटों की परवाह नहीं किया करता ,
अक्सर मंजिल का राही वही हुआ करता ।
खाली वर्तन बहुत ही शोर मचाया करता ,
दिन रात औकात हमारी दिखलाया करता ,
हर पल काँनों में ये कहता ही रहता ,
सामर्थ नहीं तो हमको फिर क्यों तू रखता।
खाली पदों को भरा ही जाता रहता ,
पर योग्यता का ध्यान रखा नहीं जाता ।
रोजगार समाचार से अखबार भरा ही रहता ,
साक्षात्कार से पहले ही व्यक्ति तय रहता ।
खाली बातों से पेट नहीं भरा करता ,
चुनावों में आश्वाशन का ठीकरा फूटा करता ।
सच्चा सेवक जनता का वही है रहता ,
जो जन संवेदनाओं को समझा करता ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
आज का विषय , रिक्त , खाली ,
दिन , शुक्रवार ,
दिनाँक ,३,५,२०१९,
भरा मकान कभी घर नहीं बन सकता ,
अगर वहाँ खाली दिल का कोना रहता ।
जब अपनी ढपली अपना राग ही बजता ,
फिर कभी सुन्दर गीत नहीं बन सकता ।
लेखक स्याही तो खर्च बहुत शब्दों में करता ,
भाव विहीन संरचना में रंग नहीं दिखता ।
भरा कागज भी हमेशा खाली ही लगा करता ,
अगर अश्क समाज का दिखा नहीं करता ।
खाली सपना सदा रुलाया ही तो करता ,
जब तक प्रयास का रंग भरा नहीं जाता ।
जो काँटों की परवाह नहीं किया करता ,
अक्सर मंजिल का राही वही हुआ करता ।
खाली वर्तन बहुत ही शोर मचाया करता ,
दिन रात औकात हमारी दिखलाया करता ,
हर पल काँनों में ये कहता ही रहता ,
सामर्थ नहीं तो हमको फिर क्यों तू रखता।
खाली पदों को भरा ही जाता रहता ,
पर योग्यता का ध्यान रखा नहीं जाता ।
रोजगार समाचार से अखबार भरा ही रहता ,
साक्षात्कार से पहले ही व्यक्ति तय रहता ।
खाली बातों से पेट नहीं भरा करता ,
चुनावों में आश्वाशन का ठीकरा फूटा करता ।
सच्चा सेवक जनता का वही है रहता ,
जो जन संवेदनाओं को समझा करता ।
स्वरचित , मीना शर्मा , मध्यप्रदेश ,
@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच🌹🙏
आदरणीय जन को नमन
🙏 🙏 🙏 🙏
विषय-रिक्त/खाली
(०३-०५-२०१९)
बस्ती की सारी रौनक
तूफान ले गया
#खाली हो गया बागवां
श्मशान ले गया
भटकती रही रूह
दर- ब- दर
उठा कर तन अकेला
शैतान ले गया!!
**स्वरचित**
सीमा आचार्य(म.प्र.)
आदरणीय जन को नमन
🙏 🙏 🙏 🙏
विषय-रिक्त/खाली
(०३-०५-२०१९)
बस्ती की सारी रौनक
तूफान ले गया
#खाली हो गया बागवां
श्मशान ले गया
भटकती रही रूह
दर- ब- दर
उठा कर तन अकेला
शैतान ले गया!!
**स्वरचित**
सीमा आचार्य(म.प्र.)
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नमन भावों के मोती
दिनाँक:-03/05/2019
शीर्षक:-रिक्त/खाली
*************************
जाने क्यूं मेरा गांव,
सुनसान हो गया,
हर एक-एक घर,
वीरान हो गया !
जो गांव चहकता था कभी,
बरगद के नीचे,
वह बरगद का पेड़ भी,
अनजान हो गया!
जाने क्यूं मेरा गांव.....
धन-दौलत की चाह में,
गांव से नौजवान जो गया,
अंजाने किसी शहर में,
इस कदर वो खो गया!
चकाचौंध भरे शहर में,
गुमनाम हो गया !
जाने क्यूं मेरा गांव......
मुफ़लिसी की आह ने,
पूरा गांव #खाली कर दिया,
लगते थे कभी मेले जहाँ,
वहां वीरानगी भर दिया!
घर की चौखट पर बैठा बूढ़ा पिता,
दरबान हो गया।
जाने क्यूं मेरा गांव....
रचनाकार-✍✍#राजेन्द्र_मेश्राम_नील
चांगोटोला, बालाघाट(मध्यप्रदेश)
दिनाँक:-03/05/2019
शीर्षक:-रिक्त/खाली
*************************
जाने क्यूं मेरा गांव,
सुनसान हो गया,
हर एक-एक घर,
वीरान हो गया !
जो गांव चहकता था कभी,
बरगद के नीचे,
वह बरगद का पेड़ भी,
अनजान हो गया!
जाने क्यूं मेरा गांव.....
धन-दौलत की चाह में,
गांव से नौजवान जो गया,
अंजाने किसी शहर में,
इस कदर वो खो गया!
चकाचौंध भरे शहर में,
गुमनाम हो गया !
जाने क्यूं मेरा गांव......
मुफ़लिसी की आह ने,
पूरा गांव #खाली कर दिया,
लगते थे कभी मेले जहाँ,
वहां वीरानगी भर दिया!
घर की चौखट पर बैठा बूढ़ा पिता,
दरबान हो गया।
जाने क्यूं मेरा गांव....
रचनाकार-✍✍#राजेन्द्र_मेश्राम_नील
चांगोटोला, बालाघाट(मध्यप्रदेश)
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1भा3/5/2019/शुक्रवार
बिषयःःः #रिक्त/खाली#
विधाःःःकाव्यःःः
हृदयपटल ये रिक्त पडा है,
आऐं बिराजे इसमें भगवन।
ये मनमंन्दिर मेरा हो जाऐ,
यदि आप पधारें मेरे श्रीमन।
रिक्त स्थान अच्छा नहीं लगता।
खाली कभी उपवन नहीं सजता।
परमार्थ परोपकार के बिन प्रभुजी,
क्या जीवन खाली सा नहीं लगता।
रिक्त हृदय में कुछ अच्छा भर लें।
प्रेमप्रीत सुंदर सब सच्चा धर लें।
खाली नहीं रह पाऐं मानव मन,
कभी गरल भरे हम ऐसा वर लें।
प्रभु भक्ति कुछ भजन करें हम।
प्रेमाशक्ति से मिलकर रहें हम।
बस आशक्ति हो श्री चरणों में,
नहीं निष्ठा से ही रिक्त रहें हम।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
1*भा.#रिक्त/खाली# ः काव्यः ः
3/5/2019/शुक्रवार
बिषयःःः #रिक्त/खाली#
विधाःःःकाव्यःःः
हृदयपटल ये रिक्त पडा है,
आऐं बिराजे इसमें भगवन।
ये मनमंन्दिर मेरा हो जाऐ,
यदि आप पधारें मेरे श्रीमन।
रिक्त स्थान अच्छा नहीं लगता।
खाली कभी उपवन नहीं सजता।
परमार्थ परोपकार के बिन प्रभुजी,
क्या जीवन खाली सा नहीं लगता।
रिक्त हृदय में कुछ अच्छा भर लें।
प्रेमप्रीत सुंदर सब सच्चा धर लें।
खाली नहीं रह पाऐं मानव मन,
कभी गरल भरे हम ऐसा वर लें।
प्रभु भक्ति कुछ भजन करें हम।
प्रेमाशक्ति से मिलकर रहें हम।
बस आशक्ति हो श्री चरणों में,
नहीं निष्ठा से ही रिक्त रहें हम।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम राम जी
1*भा.#रिक्त/खाली# ः काव्यः ः
3/5/2019/शुक्रवार
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3/5/19
भावों के मोती
विषय -रिक्त/ ख़ाली
___________________,
लिख देते हैं दिल का हाल
हम स्याही में डूबकर
एक ही तो हमदर्द है यह
यह हमारे दुःख दर्द की
दर्द लिखो आँसू लिखो
या इबादत प्यार की
शहनाई की गूंज लिखो
ख़ाली दिल का हाल लिखो
या मुरादें महबूब के लिए
खुद के लिए तन्हाई लिखो
हमराज मेरी बस मेरी कलम
भरने खालीपन कागज का
डूब जाती स्याही में दर्द से
लिखने ग़म और तन्हाई
बनाकर स्याही को परछाई
ख़ुशी और ग़म के अहसास
लिख देती ज़िंदगी कागज़ पर
लगाकर गले स्याही को
चल देती कलम तड़पकर
दिल की बनकर राजदार
कोरे कागज पे प्रिय के संदेशे बनकर
कभी बनकर खुशियों के गीत
तो कभी दर्द भरे नगमे लिखकर
एक स्याही ही तो है जो
बन जाती हमदर्द है हमेशा
हमारे अपने सुख-दुख की
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍
भावों के मोती
विषय -रिक्त/ ख़ाली
___________________,
लिख देते हैं दिल का हाल
हम स्याही में डूबकर
एक ही तो हमदर्द है यह
यह हमारे दुःख दर्द की
दर्द लिखो आँसू लिखो
या इबादत प्यार की
शहनाई की गूंज लिखो
ख़ाली दिल का हाल लिखो
या मुरादें महबूब के लिए
खुद के लिए तन्हाई लिखो
हमराज मेरी बस मेरी कलम
भरने खालीपन कागज का
डूब जाती स्याही में दर्द से
लिखने ग़म और तन्हाई
बनाकर स्याही को परछाई
ख़ुशी और ग़म के अहसास
लिख देती ज़िंदगी कागज़ पर
लगाकर गले स्याही को
चल देती कलम तड़पकर
दिल की बनकर राजदार
कोरे कागज पे प्रिय के संदेशे बनकर
कभी बनकर खुशियों के गीत
तो कभी दर्द भरे नगमे लिखकर
एक स्याही ही तो है जो
बन जाती हमदर्द है हमेशा
हमारे अपने सुख-दुख की
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित✍
@@@@@@@@@@@@@@
दि- 3-5-19
शुक्रवार
विषय- रिक्त / खाली
सादर मंच को समर्पित -
🍊🍅 रिक्त / खाली 🍅🍑
***************************
🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
नींद विचारों की खाली हो ,
जब जग जायें तभी सवेरा ।
नहीं सोचना , कल क्या बीता ,
धुंध रिक्त तो हुआ सवेरा ।।
नयी भोर का नया उजाला ,
ले आता है रूप घनेरा ।
आशावान रहें तो प्राणी ,
खाली जीवन खिले सवेरा ।
🌲🍎🍋🍒🌿🍅🌲
🍋🌿 *** ..... रवीन्द्र वर्मा , आगरा
मो0- 08532852618
शुक्रवार
विषय- रिक्त / खाली
सादर मंच को समर्पित -
🍊🍅 रिक्त / खाली 🍅🍑
***************************
🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒🍒
नींद विचारों की खाली हो ,
जब जग जायें तभी सवेरा ।
नहीं सोचना , कल क्या बीता ,
धुंध रिक्त तो हुआ सवेरा ।।
नयी भोर का नया उजाला ,
ले आता है रूप घनेरा ।
आशावान रहें तो प्राणी ,
खाली जीवन खिले सवेरा ।
🌲🍎🍋🍒🌿🍅🌲
🍋🌿 *** ..... रवीन्द्र वर्मा , आगरा
मो0- 08532852618
@@@@@@@@@@@@@@
नमन भवों के मोती
विषय -रिक्त
03/05/2019
सिसक रहा सन्नाटा,
ख़ामोशियों की गुहार यही ,
रिक्त हो रही सासों का ,
क्या यही हिसाब दोगे ?
बेज़ुबान शब्दों को ,
कब जुबान दोगे ?
जल रहे अंहकार में रिश्ते ,
मानवता की ममता क्या, यही सिला दोगे ?
ठिठुर रहे जज़्बात ,
सपनों का जला अलाव ,
स्वार्थ का जामा पहन ,
उष्ण की करे पुकार,
ठिठुर रहे ममत्व को क्या, यूँ हीं ठुकरा दोगे ?
रजत मेखला की कालिख ,
मन में मचाये उत्पात,
अंजानी अँजुली ढूंढ रहा मन ,
खुलवा सकू रिस्तों का बंद ,
ओझल सी इन राहों में क्या, यूँ हीं ठुकरा दोगे ?
उफान आते आदतन से,
रिस्तों को चख कर देखा,
व्यवहार की लवणता परखे ,
दीन की हालत देख क्या, यूँ ही ठुकरा तो न दोगे ?
- स्वरचित
-अनीता सैनी
विषय -रिक्त
03/05/2019
सिसक रहा सन्नाटा,
ख़ामोशियों की गुहार यही ,
रिक्त हो रही सासों का ,
क्या यही हिसाब दोगे ?
बेज़ुबान शब्दों को ,
कब जुबान दोगे ?
जल रहे अंहकार में रिश्ते ,
मानवता की ममता क्या, यही सिला दोगे ?
ठिठुर रहे जज़्बात ,
सपनों का जला अलाव ,
स्वार्थ का जामा पहन ,
उष्ण की करे पुकार,
ठिठुर रहे ममत्व को क्या, यूँ हीं ठुकरा दोगे ?
रजत मेखला की कालिख ,
मन में मचाये उत्पात,
अंजानी अँजुली ढूंढ रहा मन ,
खुलवा सकू रिस्तों का बंद ,
ओझल सी इन राहों में क्या, यूँ हीं ठुकरा दोगे ?
उफान आते आदतन से,
रिस्तों को चख कर देखा,
व्यवहार की लवणता परखे ,
दीन की हालत देख क्या, यूँ ही ठुकरा तो न दोगे ?
- स्वरचित
-अनीता सैनी
@@@@@@@@@@@@@@
भावों के मोती
दिनांक-३|४|२०१९
वार - शुक्रवार
विषय - रिक्त/ खाली !
विधा - मतगयंद सवैया
7 भगण, 2 गुरु 23 वर्ण , चार चरण समतुकांत !
स्त्रैण महा प्रभु रिक्त अनंतर, ग्राहक गर्भ सुधा रस पाया !
सत्य रहस्य मनोहर पावन , है रचना वृति जीवन छाया!
कंठ सुधाकर सागर भीतर , भाव भरा चित साधक गाया !
अर्पित नागर नाद अलौकिक, नष्ट हुआ दुख भौतिक माया !! १
कंकर पत्थर से घर शौभत , नार चहे चित कंचन अच्छी !
लाग लपेट लुभा दुनिया भर , भीतर पावन सुन्दर बच्ची !
काग हुआ छलता अकड़े तन , आखिर देह विनाशक कच्ची!
ज्ञान जगा अब रिक्त हुआ सब, सोच ज़रा शुभ मंगल सच्ची !!२
लूट रहा पर जीवन व्याकुल, कायिक वैभव बीत रहा है!
मोह भरा मन नीरव होकर , प्राण बसा दुख नीर बहा है !
अंबर बेल सुधा रस सिंचित , पावन प्रेम विकार ढहा है !
मौन मिला चित सागर गूँजन, रिक्त हुआ मन ध्यान चहा है !!३
छगन लाल गर्ग विज्ञ!
दिनांक-३|४|२०१९
वार - शुक्रवार
विषय - रिक्त/ खाली !
विधा - मतगयंद सवैया
7 भगण, 2 गुरु 23 वर्ण , चार चरण समतुकांत !
स्त्रैण महा प्रभु रिक्त अनंतर, ग्राहक गर्भ सुधा रस पाया !
सत्य रहस्य मनोहर पावन , है रचना वृति जीवन छाया!
कंठ सुधाकर सागर भीतर , भाव भरा चित साधक गाया !
अर्पित नागर नाद अलौकिक, नष्ट हुआ दुख भौतिक माया !! १
कंकर पत्थर से घर शौभत , नार चहे चित कंचन अच्छी !
लाग लपेट लुभा दुनिया भर , भीतर पावन सुन्दर बच्ची !
काग हुआ छलता अकड़े तन , आखिर देह विनाशक कच्ची!
ज्ञान जगा अब रिक्त हुआ सब, सोच ज़रा शुभ मंगल सच्ची !!२
लूट रहा पर जीवन व्याकुल, कायिक वैभव बीत रहा है!
मोह भरा मन नीरव होकर , प्राण बसा दुख नीर बहा है !
अंबर बेल सुधा रस सिंचित , पावन प्रेम विकार ढहा है !
मौन मिला चित सागर गूँजन, रिक्त हुआ मन ध्यान चहा है !!३
छगन लाल गर्ग विज्ञ!
@@@@@@@@@@@@@@
भावों के मोती
3/05/19
विषय - खाली, रिक्त
सागर के तट पर बैठे कर
मोतियों की चाह
सिर्फ "खाली" सीपियां
आती है किनारों पर
मुक्ता की चाह रखने वाले
रत्नाकर तल तक गोता लगाते हैं
डूबने से डरने वाले
"खाली" हाथ रह जाते हैं
या खोल कुदेरते हैं देखने को
शायद भाग्य से कोई छुटा
कोई मोती मिल जाये
हम भी सत्य खोजते प्रतिपल
तट पर बैठ के सागर के
जो पाना हो सत्य का मोती
चिंतन के सागर में उतरो
तमसा भगानी है मन से तो
सत्य का सूर्य उगावो
बैठ किनारे क्या ढूँढ़ते
सागर में एक छलांग लगावो।
स्वरचित।
कुसुम कोठारी।
3/05/19
विषय - खाली, रिक्त
सागर के तट पर बैठे कर
मोतियों की चाह
सिर्फ "खाली" सीपियां
आती है किनारों पर
मुक्ता की चाह रखने वाले
रत्नाकर तल तक गोता लगाते हैं
डूबने से डरने वाले
"खाली" हाथ रह जाते हैं
या खोल कुदेरते हैं देखने को
शायद भाग्य से कोई छुटा
कोई मोती मिल जाये
हम भी सत्य खोजते प्रतिपल
तट पर बैठ के सागर के
जो पाना हो सत्य का मोती
चिंतन के सागर में उतरो
तमसा भगानी है मन से तो
सत्य का सूर्य उगावो
बैठ किनारे क्या ढूँढ़ते
सागर में एक छलांग लगावो।
स्वरचित।
कुसुम कोठारी।
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"नमन-मंच"
"दिनांक-३/५/२०१९"
"शीर्षक-खाली"
तुम भी खाली, हम भी खाली
दोनों बैठे खाली खाली
आओ,हम तुम बातें कर ले
बीत न जाये ,ये दिन खाली।
"खाली दिमाग शैतान का घर"
कह गये,सुधी ज्ञानी
मिल बैठकर हम बातें कर ले
निपट जाये समस्या सारी।
खाली पेट न काम होय
चलो मिलकर खाये थाली
बर्तन खाली, घर भी खाली
कैसे खाये?हम व घरवाली?
हमनें जो उसे वचन दिया है
वचन न जाये मेरा खाली
"हम रखेगें तुम्हारा ध्यान"
उसे निभाने की है बारी।
खाली बैठने से तो अच्छा है,
खोज ले हम नया काम
प्रयास न जायें मेरा खाली,
जब मिलेगा हमें वेतन
फिर खायेंगे भरकर थाली।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
"दिनांक-३/५/२०१९"
"शीर्षक-खाली"
तुम भी खाली, हम भी खाली
दोनों बैठे खाली खाली
आओ,हम तुम बातें कर ले
बीत न जाये ,ये दिन खाली।
"खाली दिमाग शैतान का घर"
कह गये,सुधी ज्ञानी
मिल बैठकर हम बातें कर ले
निपट जाये समस्या सारी।
खाली पेट न काम होय
चलो मिलकर खाये थाली
बर्तन खाली, घर भी खाली
कैसे खाये?हम व घरवाली?
हमनें जो उसे वचन दिया है
वचन न जाये मेरा खाली
"हम रखेगें तुम्हारा ध्यान"
उसे निभाने की है बारी।
खाली बैठने से तो अच्छा है,
खोज ले हम नया काम
प्रयास न जायें मेरा खाली,
जब मिलेगा हमें वेतन
फिर खायेंगे भरकर थाली।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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नमन मंच
विषय -रिक्त /खाली
3/5/2019
शुक्रवार
भरा है बस घर ,
भारी भडकम
सुंदर सामान से
जैसे कोई म्यूजियम
लगता है
किन्तु इसे भरने
के लिए रिक्त हुआ
बहुत कुछ
अपनों का साथ
अपनों का प्यार
दिल में जज्बात
और कुछ वक्त
जो घर को सजाने
के लिए कभी दिया
नहीं घरवालों को
इन रिक्तियों से भरता
है घर का खाली स्थान
स्वरचित
शिल्पी पचौरी
विषय -रिक्त /खाली
3/5/2019
शुक्रवार
भरा है बस घर ,
भारी भडकम
सुंदर सामान से
जैसे कोई म्यूजियम
लगता है
किन्तु इसे भरने
के लिए रिक्त हुआ
बहुत कुछ
अपनों का साथ
अपनों का प्यार
दिल में जज्बात
और कुछ वक्त
जो घर को सजाने
के लिए कभी दिया
नहीं घरवालों को
इन रिक्तियों से भरता
है घर का खाली स्थान
स्वरचित
शिल्पी पचौरी
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नमन भाव के मोती
दिनांक -3 मई 2019
विषय -रिक्त/ खाली
विधा- हाइकु
1
बादल उड़े
'रिक्त' हुआ आकाश-
कृषक डरा
2
अंधेरी रात
'रिक्त' हुआ गगन-
तारे गायब
3
वायु रहती
'रिक्त 'अणु स्थान में-
पदार्थ ज्ञान
4
'रिक्त' रहता
मानव का मस्तिष्क -
शिक्षा अभाव
5
'रिक्त' रहतीं
प्रिय जनों की यादें -
वियोग क्षण
6
'रिक्त 'रहता
गणित का विज्ञान
विना शून्य के
7
अधूरी प्यास
'रिक्त' है तन मन -
बिना साजन
8
मिटे न प्यास
'खाली' मिला गिलास -
जल संकट
9
'खाली' दिमाग
परेशान इंसान -
शैतान घर
10
तूफान आया
'खाली' समुद्र तट -
जीवन त्रस्त
मनीष श्रीवास्तव
रायबरेली
स्वरचित
दिनांक -3 मई 2019
विषय -रिक्त/ खाली
विधा- हाइकु
1
बादल उड़े
'रिक्त' हुआ आकाश-
कृषक डरा
2
अंधेरी रात
'रिक्त' हुआ गगन-
तारे गायब
3
वायु रहती
'रिक्त 'अणु स्थान में-
पदार्थ ज्ञान
4
'रिक्त' रहता
मानव का मस्तिष्क -
शिक्षा अभाव
5
'रिक्त' रहतीं
प्रिय जनों की यादें -
वियोग क्षण
6
'रिक्त 'रहता
गणित का विज्ञान
विना शून्य के
7
अधूरी प्यास
'रिक्त' है तन मन -
बिना साजन
8
मिटे न प्यास
'खाली' मिला गिलास -
जल संकट
9
'खाली' दिमाग
परेशान इंसान -
शैतान घर
10
तूफान आया
'खाली' समुद्र तट -
जीवन त्रस्त
मनीष श्रीवास्तव
रायबरेली
स्वरचित
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नमन भावों के मंच को
विषय: रिक्त
दिनांक: 03/04/2019
विधा : गीत
रिक्त
कैसा यह दीवानापन,
दिल में है बस सूनापन,
कहां गये वो मीत जो पल पल ,
हमको अपना कहते थे,
रिक्त पड़ा है दिल का कोना,
जहां कभी तुम रहते थे।
अखियां राह में तेरी अब भी,
बरबस उठती जाती हैं।
जैसे लहरें मिलने को आतुर,
खाली लौट जाती हैं।
याद है, रोते थे तुम जब भी,
मेरे नैनां बहते थे,
रिक्त पड़ा है दिल का कोना,
जहां कभी तुम रहते थे।
मुड़ कर देखा क्यों ना सजना,
खड़े थे हम भी राहों में ।
इश्क का कैसे दर्द सुना न,
उठता था मेरी आहों में ।
वो भी दिन थे अक्सर जब,
दर्द मेरा तुम सहते थे,
रिक्त पड़ा है दिल का कोना,
जहां कभी तुम रहते थे।
इश्क हुआ बदनाम सजना,
सोच के पल पल रोते हैं।
कैसी नाव इश्क की जिसको,
नाविक खुद डुबोते हैं।
साथ नहीं था भाग्य में तो,
क्यों प्यार के पंछी चहके थे
रिक्त पड़ा है दिल का कोना,
जहां कभी तुम रहते थे।
रिक्त पड़ा है दिल का कोना,
जहां कभी तुम रहते थे।
जहां कभी तुम रहते थे।
जय हिन्द
स्वरचित: राम किशोर, पंजाब ।
विषय: रिक्त
दिनांक: 03/04/2019
विधा : गीत
रिक्त
कैसा यह दीवानापन,
दिल में है बस सूनापन,
कहां गये वो मीत जो पल पल ,
हमको अपना कहते थे,
रिक्त पड़ा है दिल का कोना,
जहां कभी तुम रहते थे।
अखियां राह में तेरी अब भी,
बरबस उठती जाती हैं।
जैसे लहरें मिलने को आतुर,
खाली लौट जाती हैं।
याद है, रोते थे तुम जब भी,
मेरे नैनां बहते थे,
रिक्त पड़ा है दिल का कोना,
जहां कभी तुम रहते थे।
मुड़ कर देखा क्यों ना सजना,
खड़े थे हम भी राहों में ।
इश्क का कैसे दर्द सुना न,
उठता था मेरी आहों में ।
वो भी दिन थे अक्सर जब,
दर्द मेरा तुम सहते थे,
रिक्त पड़ा है दिल का कोना,
जहां कभी तुम रहते थे।
इश्क हुआ बदनाम सजना,
सोच के पल पल रोते हैं।
कैसी नाव इश्क की जिसको,
नाविक खुद डुबोते हैं।
साथ नहीं था भाग्य में तो,
क्यों प्यार के पंछी चहके थे
रिक्त पड़ा है दिल का कोना,
जहां कभी तुम रहते थे।
रिक्त पड़ा है दिल का कोना,
जहां कभी तुम रहते थे।
जहां कभी तुम रहते थे।
जय हिन्द
स्वरचित: राम किशोर, पंजाब ।
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सादर नमन
रिक्त/खाली
खाली घर खाने को आए,
हर पल तेरी याद सताए,
दुनियाँ की तीर सी बातें,
हृदय के छलनी कर जाएँ,
दिल को जब मैं समझाऊँ,
आँसू अपने रोक ना पाऊँ,
पीकर आँसू गमों के,
झूठी मुस्कान लबों पर लाऊँ,
कोई नहीं है यहाँ अपना ,
टूटा अब तक हर सपना,
जिंदगी के इस सफर में,
दुख को लेकर साथ है चलना ।
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
3/5/19
शुक्रवार
रिक्त/खाली
खाली घर खाने को आए,
हर पल तेरी याद सताए,
दुनियाँ की तीर सी बातें,
हृदय के छलनी कर जाएँ,
दिल को जब मैं समझाऊँ,
आँसू अपने रोक ना पाऊँ,
पीकर आँसू गमों के,
झूठी मुस्कान लबों पर लाऊँ,
कोई नहीं है यहाँ अपना ,
टूटा अब तक हर सपना,
जिंदगी के इस सफर में,
दुख को लेकर साथ है चलना ।
*****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
3/5/19
शुक्रवार
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3/5/29
विधा - छंद मुक्त
विषय - खाली / रिक्त
मन क्यों
बुझा बुझा सा है
लगता है
मन का कोई कोना
रीत गया है
हर तरफ सूनापन
उदासी तन्हाई
ठंडी साँस और
नम आँखें
सोच रही हूँ
खाली बिस्तर पर लेटी
तकिया गीला है
मगर मुझे अहसास नहीं
शायद सब अहसास
मर गए हैं मेरे
आँख लग गई है
मगर मैं जाग रही हूँ
खुद को टटोलती
क्या वजह मैं हूँ
क्यों बिखर गया है शून्य
जीवन में
साथ का खाली बिस्तर
मुंह चिढ़ाता सा लगता है
नींद में हाथ पकड़ती तुम्हारा
रोकने की कोशिश में
बढ़ा हाथ
खाली ही रह जाता है
कुछ हाथ नहीं आता
उफ यह खालीपन
मगर कुछ तो
बाकी है अभी
देख पा रही हूँ
आशाओं और उमंगों की परछाई
जो भर देगी
मन में उजास
और मन का यह रिक्त कोना
फिर हो उठेगा गुलजार
सरिता गर्ग
स्व रचित
विधा - छंद मुक्त
विषय - खाली / रिक्त
मन क्यों
बुझा बुझा सा है
लगता है
मन का कोई कोना
रीत गया है
हर तरफ सूनापन
उदासी तन्हाई
ठंडी साँस और
नम आँखें
सोच रही हूँ
खाली बिस्तर पर लेटी
तकिया गीला है
मगर मुझे अहसास नहीं
शायद सब अहसास
मर गए हैं मेरे
आँख लग गई है
मगर मैं जाग रही हूँ
खुद को टटोलती
क्या वजह मैं हूँ
क्यों बिखर गया है शून्य
जीवन में
साथ का खाली बिस्तर
मुंह चिढ़ाता सा लगता है
नींद में हाथ पकड़ती तुम्हारा
रोकने की कोशिश में
बढ़ा हाथ
खाली ही रह जाता है
कुछ हाथ नहीं आता
उफ यह खालीपन
मगर कुछ तो
बाकी है अभी
देख पा रही हूँ
आशाओं और उमंगों की परछाई
जो भर देगी
मन में उजास
और मन का यह रिक्त कोना
फिर हो उठेगा गुलजार
सरिता गर्ग
स्व रचित
@@@@@@@@@@@@@@
'भावों के मोती'
शुक्रवार,दि.3/5/19.
विषयः रिक्त /खाली
* मुक्तकः
वे भरे तिजोरी बलशाली!
उनकी तो प्रतिदिन दीवाली!
मेहनतकश मुश्किल से जीते,
मैले , फटहे , जेबें खाली।।
समता के नारे बातों तक।
वादे स्वारथ के नातों तक।
इनकी तो प्रीति क्षुद्र सीमित,
बस,वोटों की बरसातों तक।।
-स्वरचितःडा.'शितिकंठ'
शुक्रवार,दि.3/5/19.
विषयः रिक्त /खाली
* मुक्तकः
वे भरे तिजोरी बलशाली!
उनकी तो प्रतिदिन दीवाली!
मेहनतकश मुश्किल से जीते,
मैले , फटहे , जेबें खाली।।
समता के नारे बातों तक।
वादे स्वारथ के नातों तक।
इनकी तो प्रीति क्षुद्र सीमित,
बस,वोटों की बरसातों तक।।
-स्वरचितःडा.'शितिकंठ'
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भावों के मोती : प्रेषित शब्द- ख़ाली
*****************************
इन ख़ाली ख़ाली पन्नों को कोई नये रंग से रंग लूँ मैं
ऐ ज़िंदगी !आ तुझे फिर इक नये सिरे से जी लूँ मैं ।
आँखों में इक चेहरा रफ़्ता रफ़्ता घर करने लगा है
जाती बहारों को रोक लूँ,गुलों से दामन भर लूँ मैं ।
मेरे जीने की वजह तुम,मेरी उममीदों का मरकज़ तुम
मेरी ख़ुशियाँ तुमसे बावस्ता,तुम्हें तुम से भी छुपा लूँ मैं ।
फिर इक नया एहसास लेने लगा है अँगड़ाई दिल में
ये जज़्बात ,ये हालात ,दिल को एतिमाद दिला लूँ मैं ।
मेरे साथ मेरी तनहाई भा चली आई सबसे रिश्ता तोड़कर
आज शब ए वसल कुछ तुम्हारी सुनूँ,कुछ अपनी सुना लूँ मैं ।
अजीब सा जुनूँ है ,अजीब सी है दीवानगी दिल की
माज़ी की यादों के साथ कुछ वक़्त गुज़ार लूँ मैं ।
नहीं कोई शिकवा -शिकायत ,न ही कोई रंजिश बाक़ी
खाली दर ओ दीवार पर कोई यादगार लमहा टाँक लूँ मै।
स्वरचित (c)भार्गवी रविन्द्र ........बेंगलूर ३/५/२०
मरकज़-केन्द्र , बावस्ता - संबंधित, एतिमाद - भरोसा ,शब ए वसल - मिलन की रात
जुनूँ - वहशीपन ,माज़ी - अतीत , जानिब - की ओर
हर
*****************************
इन ख़ाली ख़ाली पन्नों को कोई नये रंग से रंग लूँ मैं
ऐ ज़िंदगी !आ तुझे फिर इक नये सिरे से जी लूँ मैं ।
आँखों में इक चेहरा रफ़्ता रफ़्ता घर करने लगा है
जाती बहारों को रोक लूँ,गुलों से दामन भर लूँ मैं ।
मेरे जीने की वजह तुम,मेरी उममीदों का मरकज़ तुम
मेरी ख़ुशियाँ तुमसे बावस्ता,तुम्हें तुम से भी छुपा लूँ मैं ।
फिर इक नया एहसास लेने लगा है अँगड़ाई दिल में
ये जज़्बात ,ये हालात ,दिल को एतिमाद दिला लूँ मैं ।
मेरे साथ मेरी तनहाई भा चली आई सबसे रिश्ता तोड़कर
आज शब ए वसल कुछ तुम्हारी सुनूँ,कुछ अपनी सुना लूँ मैं ।
अजीब सा जुनूँ है ,अजीब सी है दीवानगी दिल की
माज़ी की यादों के साथ कुछ वक़्त गुज़ार लूँ मैं ।
नहीं कोई शिकवा -शिकायत ,न ही कोई रंजिश बाक़ी
खाली दर ओ दीवार पर कोई यादगार लमहा टाँक लूँ मै।
स्वरचित (c)भार्गवी रविन्द्र ........बेंगलूर ३/५/२०
मरकज़-केन्द्र , बावस्ता - संबंधित, एतिमाद - भरोसा ,शब ए वसल - मिलन की रात
जुनूँ - वहशीपन ,माज़ी - अतीत , जानिब - की ओर
हर
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नमन
भावों के मोती
३/५/२०१९
विषय-खाली/रिक्त
खाली-खाली मन का कोना,
ढूंढे कोई खोया खिलौना।
पलकें बिछाए बैठे बिछौना,
कब आएगा साथी सलोना।
जीवन में कोई अपना हो न,
जीवन लगता बड़ा ही सूना।
दिल भी सूना ,मन भी सूना,
खाली-खाली मन का कोना।
जीवन लगता मरू के जैसे,
प्यास बुझेगी इसकी कैसे।
दूर-दूर तक दिखे न कोई,
जल की बूंद मिलेगी कैसे।
तरस-तरस के मन रह जाए,
बिन बरसे बादल उड़ जाए।
झोली मेरी रह जाए खाली ,
कैसे बहारें जीवन में आए।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
भावों के मोती
३/५/२०१९
विषय-खाली/रिक्त
खाली-खाली मन का कोना,
ढूंढे कोई खोया खिलौना।
पलकें बिछाए बैठे बिछौना,
कब आएगा साथी सलोना।
जीवन में कोई अपना हो न,
जीवन लगता बड़ा ही सूना।
दिल भी सूना ,मन भी सूना,
खाली-खाली मन का कोना।
जीवन लगता मरू के जैसे,
प्यास बुझेगी इसकी कैसे।
दूर-दूर तक दिखे न कोई,
जल की बूंद मिलेगी कैसे।
तरस-तरस के मन रह जाए,
बिन बरसे बादल उड़ जाए।
झोली मेरी रह जाए खाली ,
कैसे बहारें जीवन में आए।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
@@@@@@@@@@@@@@
क्यूँ लगता है हरदम ऐसा।
दिल खाली बरतन जैसा।
ठहरूं कैसे , जाऊँ मचल।
अंगारों पर शबनम जैसा।
जाऊँ उखड़ जाऊँ बिगड़।
मै बेचैनी मे धडकन जैसा।
है बना पहेली जीवन मेरा।
अनसुलझी उलझन जैसा।
उसको कैसे भूल मै जाऊँ।
रात सफर में रहजन जैसा।
तेरा मेरा क्या खूब है रिश्ता।
झीनी-झीनी चिलमन जैसा।
विपिन सोहल
दिल खाली बरतन जैसा।
ठहरूं कैसे , जाऊँ मचल।
अंगारों पर शबनम जैसा।
जाऊँ उखड़ जाऊँ बिगड़।
मै बेचैनी मे धडकन जैसा।
है बना पहेली जीवन मेरा।
अनसुलझी उलझन जैसा।
उसको कैसे भूल मै जाऊँ।
रात सफर में रहजन जैसा।
तेरा मेरा क्या खूब है रिश्ता।
झीनी-झीनी चिलमन जैसा।
विपिन सोहल
@@@@@@@@@@@@@@
II रिक्त / खाली II शुभ रात्रि....
मन किसने देखा है....
क्या भाव मन है ?
या दिल मन ?
या दोनों....
एक दूसरे से रिक्त...
भाव या रगों में बहता खून....
बुद्धि...दिमाग....
तर्क...वितर्क...
सब इसका खेल....
पर बिना भावों के...
कैसा तर्क वितर्क ?
मन रिक्त भावों से...
मुर्दा कहलाता है...
या वैरागी....
बुद्धि तर्क...वितर्क भावों से...
रिक्त हो तो....
सभी अंग...
मर जाते हैं....
जीवन विहीन....
कितना सामजंस्य है...
मन...दिल...बुद्धि का..
ज़िन्दगी और मौत....
भाव...अभाव का संचार...
जीत...हार...
हर क्षण साथ साथ...
रगों में...हर पल...हर क्षण...
जान कर अनजान...
तभी विक्षिप्त...
प्रताड़ित...खुद से....
कभी दूसरों से...
तू निकल बाहर...
इस रिक्तता से...
जीवन के बाद मौत...
मौत के बाद जीवन...
अवश्यम्भावी है....
रिक्तता सृष्टि में...
कहीं नहीं है...
फिर तू कैसे रिक्त ?
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०३.०५.२०१९
मन किसने देखा है....
क्या भाव मन है ?
या दिल मन ?
या दोनों....
एक दूसरे से रिक्त...
भाव या रगों में बहता खून....
बुद्धि...दिमाग....
तर्क...वितर्क...
सब इसका खेल....
पर बिना भावों के...
कैसा तर्क वितर्क ?
मन रिक्त भावों से...
मुर्दा कहलाता है...
या वैरागी....
बुद्धि तर्क...वितर्क भावों से...
रिक्त हो तो....
सभी अंग...
मर जाते हैं....
जीवन विहीन....
कितना सामजंस्य है...
मन...दिल...बुद्धि का..
ज़िन्दगी और मौत....
भाव...अभाव का संचार...
जीत...हार...
हर क्षण साथ साथ...
रगों में...हर पल...हर क्षण...
जान कर अनजान...
तभी विक्षिप्त...
प्रताड़ित...खुद से....
कभी दूसरों से...
तू निकल बाहर...
इस रिक्तता से...
जीवन के बाद मौत...
मौत के बाद जीवन...
अवश्यम्भावी है....
रिक्तता सृष्टि में...
कहीं नहीं है...
फिर तू कैसे रिक्त ?
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
०३.०५.२०१९
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🙏जय माँ शारदा
सादर नमन भावों के मोती
दि.- 03.05.19विषय - खाली /रिक्त
विधा - मुक्तक
********************************
1.
रिक्त रहोगे अगर कर्म से तो कुछ न पाओगे |
जीवन का यह गीत मीत फिर कैसे तुम गाओगे |
बात बहुत सीधी सच्ची है समझ सको तो समझो -
आज अगर न समझ सके कल निश्चित पछताओगे |
*********************************
2.
आये खाली हाथ जगत में खाली ही जाना है |
लिया दिया जो भी यहाँ से यहीं छोड़ जाना है |
खाली पन्ने के जैसा ये जीवन जो हमने पाया -
कर्म कहानी जो लिख देंगे वो ही रह जाना है |
********************************
#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
सादर नमन भावों के मोती
दि.- 03.05.19विषय - खाली /रिक्त
विधा - मुक्तक
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1.
रिक्त रहोगे अगर कर्म से तो कुछ न पाओगे |
जीवन का यह गीत मीत फिर कैसे तुम गाओगे |
बात बहुत सीधी सच्ची है समझ सको तो समझो -
आज अगर न समझ सके कल निश्चित पछताओगे |
*********************************
2.
आये खाली हाथ जगत में खाली ही जाना है |
लिया दिया जो भी यहाँ से यहीं छोड़ जाना है |
खाली पन्ने के जैसा ये जीवन जो हमने पाया -
कर्म कहानी जो लिख देंगे वो ही रह जाना है |
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#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी सिवनी म.प्र.
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