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ब्लॉग संख्या :-389
रसुप्रभात "भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन🌹
17/05/2019
"उदर/पेट"
मुक्तक
1😊😊
गर्मी से हाल बेहाल है,
तन थककर हुआ निढाल है,
दिनभर करने पड़ते काम,
पापी पेट का सवाल है ।।
2😊😊
रसना लगी जबसे करने भोग,
तो लग ही गया है उदर का रोग,
वैद्य भी अब हो है गए नाकाम,
रह गया है भरोसा सिर्फ योग ।।
3😢😢
मासूम सी कली भूख से तड़प रही,
सभी को निरीह नजरों से निहार रही,
ईश्वर ने जो जन्म दिया गरीबी में,
पेट के लिए ही तो लाचार हो रही।।
4🤔🤔
पेट के लिए ही तो भागदौड़ है,
इसके लिए दुनिया भी गतिशील है,
वर्ना अजगर सी जिंदगी जीते सभी,
ईश्वर का अनोखा यह संसार है ।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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नमन मंच भावों के मोती
शीर्षक पेट,उदर
विधा लघुकविता
17 मई 2019,शुक्रवार
पेट पालन सहज नहीं है
खून पसीना पड़े बहाना
जब बच्चे भूखे बिलखते
लाना पड़ता पानी दाना
जठराग्नि जले उदर में
भूखा इंसा क्या न करता
दीन हीन अपाहिज नर तो
फुटपाथ कराह के मरता
देश भक्ति सिखाने वालों
पहले भूखा पेट तो भरदो
स्वास्थ्य शिक्षा सबसे पहले
दुःखी आत्मा विपदा हरलो
पेट नरम हो पेट हो कोमल
यह सुस्वास्थ्य की पहिचान
सुख अपरिमित हैं जीवन में
सदा करो परहित के काम।।
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
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नमन भावों के मोती
दिनांक - 17/5/2019
आज का विषय - उदर/पेट
**पेट की भूख**
शिखर दोपहरी
सड़क पर तपती धूप में
छोटी सी बालिका
जान जोखिम में डाल
बांसों के सिरों पर बंधी रस्सी
रस्सी पर चलने को
माँ कह रही बार - बार
चाल बेटी चाल,
कर दे तेरा खेल शुरू
दिखा तू करतब,
बेटी सोच रही मन ही मन
ये सिलसिला चलेगा कब तक,
माथे पर बेबसी की लकीरें
आंखों में दर्द के आँसू
चलने को मजबूर
बिना किसी सहारे के
सिर पर जल का भरा लोटा,
डोल रही रस्सी ऊपर नीचे
हाथ मे डंडा मोटा,
लोगो की भीड़ देख रही
खड़ी मूक, छांव में,
चले भी क्यों ना,
जान जोखिम में डाले भी क्यों ना,
पेट की भूख क्या क्या नहीं करवाती
कभी मौत पर चलने को तैयार
तो कभी खून के आँसू रुलाती।
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा(हरियाणा)
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माँ,शारदे को नमन,सुप्रभात, भावों के मोती, ।
दिंनाक-१७/५/२०१९
"शीर्षक-पेट/उदर"
पेट पर ध्यान दीजिए
पेट कराये सब काम
ऐसा काम न कीजिए
हो जाये बदनाम।
दावत खूब उड़ाइये
छक कर खाईये भोग
याद हमेशा रखिए
हो न जाये रोग।
पेट भरे तो मगरूर हुये
पेट न भरे तो मजबूर
गरीब के पेट पर लात न मारिये
गरीब है मजबूर।
पेट मे जब चूहे कूदे
रोकिए काम तुरंत
सुस्वादु, स्वास्थ्यकर
भोजन दीजिए ,पेट को जरूर।
धनवानों को चाहिए
गरीबों को दे दान
निभाये अपनी जिम्मेदारी
करें जगत कल्याण।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
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( उदर/पेट )
भूखें भजन न होंय गोपाला
पेट की खातिर करें घोटाला ।।
भूल जायें वो सीमायें सब
हो जाये चाहे पेट में छाला ।।
इतना खाना इतना कमाना
छीनना हैं औरों का निवाला ।।
नीयत जमाने की नही ठीक
अमीर ने गरीब पर डाका डाला ।।
राम बचाये शातिर बुद्धि से
भूखा है अब भोला भाला ।।
कामयाबी का सेहरा उसको
बाकी के दिमाग में जैसे जाला ।।
दिमाग ही पेट भरता शायद
मेहनत ईमान को अब है टाला ।।
किसान भूखा मजदूर भूखा
दिमाग का न खोला जो ताला ।।
पेट भी कहाँ पचा पायेगा
इसका भी न 'शिवम' ख्याला ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 17/05/2019
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भावों के मोती
उदर/ पेट
हर इंसान यहां
उदर पूर्ति के लिए
जाने क्या क्या कर रहा
कोई करता व्यापार
कोई करता नौकरी
कोई घर घर जाकर
बेचे दूध,फल, सब्जी
जब किसी तरह से भी
न हो पाती उदर पूर्ति
तो उतर आता वो करने
चोरी, डकैती, गुंडागर्दी
यह उदर ही है दुनिया में
हर फसाद की वजह
काश कि ईश्वर ने
इसे ना बनाया होता।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर
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रसुप्रभात "भावो के मोती"
🙏गुरुजनों को नमन🙏
🌹मित्रों का अभिनंदन🌹
17/05/2019
"उदर/पेट
विधा-कुंडलियां
विषय-पेट ,उदर
पेट सताये है बहुत, करता नित ये काम
भूंख सताये जब इसे,नहीं लेता विश्राम
नहीं लेता विश्राम , कराता नित नये काम
बालक मन डोलता,रटाता भूंख का नाम
रस मलाई मोदक ,सेब अंगूर और बेर
सब में नजर आते, रोटी मिलती भर पेट
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
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🏵🌷🙏🙏जय माँ शारदा,🙏🙏🌷🏵
नमन मंच भावों के मोती
बिषय ,उदर पेट,
वर्तमान में के इस युग में
पेट तो हर शख्स का
भर जाता है
मृगतृष्णा लालसा में
गहराई तक डूबा जाता है
भौतिक सुखों की अभिलाषा
कभी न होती पूरी
बैंक भरे जेब भरे
मगर तृष्णा अधूरी
एअट्टलिकाऐं खड़े
महल तुझे चिढ़ाते
झूठ कपट का ए
धन किस लिए कमाते
लालच नहीं गया तो
उदर नहीं भर पाओगे
खाली हाथ आए थे
खाली हाथ जाओगे
उन बेचारों की लाचारी
जो तंबू में रहते
गर्मी सर्दी वरषा
हँस हँसकर सहते
कल की चिंता नहीं जिन्हे
आज तो भूख बुझा ली
इनको तो नित ही सावन
नित होली दीवाली
,,स्वरचित,,
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नमन मंच 🙏
सुप्रभात मित्रों 😊
दिनांक- 17/02/2019
शीर्षक- "उदर/पेट"
विधा- कविता
************
"पेट की भूख"
***************
गरीबी जिनका दुर्भाग्य है,
उदर जिनके खाली हैं,
पेट में कैसे वो पट्टी बाँधे,
ये आग बड़ी भयानक है |
दर-दर वो भटकती है,
बच्चों को हाथ में लिये,
धूप से बदन जले हुए,
और दरवाजे बंद ही मिले |
कभी तो भोजन दिया मैंने,
रोज न उसे सुना मैंने,
कितना मैं भी तरस खाऊँ?
किस-किस की भूख मिटाऊँ?
कहीं भोजन की है बर्बादी,
कहीं पेट हैं बिल्कुल खाली,
किस-किस को मैं समझाऊँ?
कहाँ से इतना भोजन लाऊँ?
वो नंगे,भूखे ,मासूम बच्चे,
चौराहें पर मुझे जब दिखते,
हाथ में कटोरा बाल उलझे,
ये देख मेरे आँसू न रुकते |
हे देव! कैसे दिन दिखाये?
गरीबों के पेट क्यों लगाये?
रोटी सबको देना तुम दाता,
तुम ही सबके भाग्य विधाता |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
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नमन भावों के मोती
17मई19
विषय -उदर/पेट
विधा -हाइकु
1
'पेट' पालते
मजदूरी करते-
बाल श्रमिक
2
सड़कों पर
भिक्षा माँगते बच्चे-
'उदर'प्रश्न
3
कष्ट सहती
माँ 'उदर 'भरती-
नयन अश्रु
4
झूठ बोलते
पापी 'पेट' का प्रश्न-
संसार भ्रान्ति
5
'पेट' पालना
स्वयं जीवन रक्षा-
जीव कर्तव्य
6
धर्म विमुख
अपना 'उदर' भरे-
आज मनुष्य
मनीष श्री
स्वरचित
रायबरेली
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।। अपना वक्त ।।
अग्नि पेट में सही है
ह्दय में ही सही है
घर के कमरों में नहीं
तहखानों में नहीं है।
स्वप्न भले हो बड़े
भले हो खड़े
अग्नि उसमे सही है
स्वप्न तपाने में सही है।
पंचतत्व में न घुलना है
न कभी भूलना है
तुझे तो आगे जाना है
बस यही रचना है।
चल रहा चक्र है
जीवन का फक्र है
कर्मों से पाना है
यही अपना वक्त है।
भाविक भावी
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दिनांक-17-5-2019
स्वरचित कविता
शीर्षक- "पेट"
'पापी पेट का सवाल है'
क्यों भला?
सुनो गौर से जरा-
जवाब बेमिसाल है.
पुण्य का प्रारब्ध यह-
प्रेम का प्रतीक है-
जिंदगी इसी से है-
हाल-चाल ठीक है.
श्रमजन्य अन्न से भरो-
हाथ पेट पर धरो,
बुरे विचार त्याग दो-
नेक बन जियो मरो.
पेट ना होता, हम ना होते-
होता ना संसार,
जन्मे मां के उदर से -
बनकर सृष्टि का सार.
'बुभुक्षितं किं ना करोति पापम्'-
कथोक्ति नहीं सटीक,
सुकर्मों से भूख मिटा जन!
चला नई यह लीक.
___
डा. अंजु लता सिंह
नई दिल्ली
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1*भा.17/5/2019/शुक्रवार
बिषयःःः# उदर/पेट#
विधाःःःकाव्यःःः
भगवन भरे उदर सबका ही,
यहां ना कोई खाली सो पाऐ।
रूखी सूखी चाहे जैसी रोटी,
बचपन खाली पेट न रो पाऐ।
बडी विकट परिस्थिति निर्धन की,
कभी रोटी तक नहीं मिल पाती है।
भूखे प्यासे सोते हैं मजदूर हजारों,
कहीं पेट पीठ में ही मिल जाती है।
भूखे इन फुटपाथों पर मरते हैं
इन्हें देख हम नाक सिकोडते।
बदनसीब लगते सबको ही ये
स्वयं फुटपाथों से हम खचोरते।
उदरपूर्ति को इज्ज़त बिकती है।
सरेआम नीलामी सी दिखती है।
यहां बचपन बूढा व्याकुल सोता,
खुशियां हमें यहां नहीं मिलती हैं।
स्वरचितःः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्री राम रामजी
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1भा. #उदर /पेट #काव्य ः
17/5/2019/शुक्रवार
🌹नमन भावों के मोती🌹
17 मई 2019
~~~~~
आजादी महलों की दीवानी क्यों है
दीवारों की आपस में मनमानी क्यों है।
बदहाली की सूरत पे चमकते है नारे
पेट और भूख का मसला आसमानी क्यों है।
पिछड़े तो पिछड़े ,ये तगड़ों का भी देश
शर्मिंदा कोई नहीं मरता, हैरानी क्यों है।
गुल होने से पहले ही नोंचे जाते हो बदन
फिजाओं में आज जहर खुरानी क्यों है।
आलीशान रुतबों को नहीं दीखता
मगरूर लोगों में ये शैतानी क्यों है।
सूखता है समुन्दर भी रोकर आखों से
दिखाते सब्जबाग रेगिस्तानी क्यों है।
तुष्टिकरण से होते सत्ता के हरण
जनता में इतनी नादानी क्यों है।
आजादी तुझे कितनी महबूबा लिखूं
पास सबके सितम की कहानी क्यों है
#राय दशकों से लानत ओढ़े सोता देश
ये मर्ज आखिर कार हिंदुस्तानी क्यों है।
पी राय राठी
भीलवाड़ा, राज
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नमन भावों के मोती
17 मई 19 शुक्रवार
विषय -उदर/पेट
विधा-मुक्त छंद,कविता
💐💐💐💐💐💐
भूखों
मरता है
पेट
और
बोझ
ढोता है
बेचारा
निर्दोष
पीठ👌
अकारण
बेवजह
आखिर क्यों...?
सदियों से
यह सवाल
हाजिर है
और...
जवाब...?
है नदारद
लापता...फरार...
और गायब👍
💐💐💐🎂🎂🎂
श्रीराम साहू अकेला
बसना 36गढ़
🎂🎂🎂💐💐💐
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17/5/19
आज का शीर्षक-उदर/पेट
नमन मंच।
नमन गुरुजनों, मित्रों।
🐦🐦🐦🐦🐦🐦
पेट की भूख मिटाने की खातिर,
किसी भी हद से गुजरते हैं लोग।
पर किसी किसी का तो पेट कभी भरता हीं नहीं,
ऐसे भी यहां पर हैं बहुत से लोग।
इमानदार तो केवल पेट भरने के लिए खटता है,
पर बेइमान जेब भरता रहता है।
अगर पेट भरने के बाद खाना छोड़ दें लोग,
तो कभी भूखे पेट नहीं रहेंगे बाकी के लोग।
राम राज्य आ जायेगा धरती पर,
गर एक दूजे की फ़िक्र करेंगे लोग।।
🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚🦚
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
🦜🦜🦜🦜🦜🦜
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तिथि - सत्रह/पांच/उन्नीस
विषय - पेट/ उदर
अगर भगवान पेट न देता
कोई भूखा
पेट पकड़ न रोता
पेट न होता
इंसान कोई काम नहीं करता
कितना चैन होता
तब लम्बी तान कर सोता
बच्चों को भूखा सुला
कोई माँ
आँचल न भिगोती
पिता खुद को नाकारा न समझता
पेट की खातिर
गलत राह न जाता
पेट की भूख गज़ब होती है
भूख में किवाड़ पापड़
बन जाते है
इंसान दानव बन जाते हैं
छीन कर खाते हैं
बिखरा , झूठा
नही छोड़ते
बीन बीन कर खाते हैं
पेट की जलती आग
हैवान बना देती है
चोरी, डकैती
सब करवा देती है
रिश्ते नाते बिखर जाते है
पेट की आग बुझाने
छीन छीन कर खाते हैं
पैसा जिसके पास होता है
पेट भरा उसका
होता है
कल की चिंता नही होती
चैन की नींद सोता है
ज्यादा खाने से
अपच भी
उन्हीं को होता है
पेट हल्का करने की
दवाइयां वो खाता है
पेट सभी का हो भरा
हर कोई रोटी पाय
एक टुकड़ा उनको खिला
जो भूखा सो जाय
केवल इतना खाइए
अपच न होने पाए
थोड़ा खा कर ही हमें
परम् तृप्ति हो जाये
सरिता गर्ग
स्व रचित
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नमन भावों के मोती मंच 🙏
दिनांक - 17/05 /2019
वार - शुक्रवार
विषय - उदर /पेट
वह खींच रहा है रिक्शा देखो,
जीर्ण शरीर मन से लाचार।
है पेट रक्त से वह भरता,
जिससे पोषित है परिवार।
उदर की आग है ऐसी ठगिनी,
कर्म - कुकर्म कराती है।
उस बदनाम गली में देखो,
कितनी रक्काशा गाती है।
हैं कितने फुटपाथ पटे,
उन भूखे पेट लाचारों से।
कूड़ेदान भी भरे - पड़े हैं,
विविध व्यंजन आचारों से।
आँखें मूँदे लोग यहाँ हैं,
सत्ता के गलियारों में।
आत्मा को सूली टाँग दिया,
कुर्सी के व्यवहारों में।
कुर्सी ही जिनकी भूख है,
रोटी की भूख वे क्या जाने!
सोने की बिस्किट खाने वाले,
भूखों का निवाला क्या जाने!
स्व रचित
- डॉ उषा किरण
पूर्वी चंपारण, बिहार
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भावों के मोती
17/05/19
विषय =पेट /उदर
दस्तूर जमाने के निराले...
कोई धूल से उठा शीश पर धर लिया जाता
कोई टिमटिमाता तारा आसमां भी नही पाता।
इस दुनिया के दस्तूर निराले हैं भाई
यहां गर चल पडी तो नाम है गाड़ी।
हां में हां मिलाते हैं यहां जी हजूरी में
कहां" पेट" भर पाता सिर्फ मजूरी मे ।
चले तो सिक्का भी चल पड़ता खोटा
नही तो रूपये का भाग भी खोटा ।
चमचागिरी से पैसा बन जाता मोटा
ईमान के घर दाल रोटी का टोटा ।
गरीब पहने तो कपड़ा टोटे में छोटा
फैशन ने पहना देखभाल कर ही छोटा।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
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भावों के मोती
"पेट"
सिली लकड़ी धुआं धुंआ हो
बुझी बुझी आंखें झुलसा रही
लो आई बैरी बौछार तेजी से
अध जला सा चूल्हा बुझा रही
काम नही मिलता मजदूरों को
बैरी जेबें खाली मुह चिढा रही
बच्चे भुखे,खाली पेट,तपे तन
मजबूर मां बातों से बहला रही।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
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सुप्रभात !🌄
नमन "भावों के मोती"🙏
17/05/2019
विषय:-"पेट/उदर"
कुछ लघु विधाएँ...
विधा:-"हाइकु"(5/7/5)
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
(1)
पेट की आग
आदर्श हुए भस्म
नीतियाँ राख़
(2)
शादी की थाली
छप्पन पकवान
पेट हैरान!
------------------------------
विधा:-"पिरामिड"(1-7)
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
था
पेट
बिछौना
बचपन
चैन से सोना
ममता आँगन
याद करता मन
------------------------------
विधा :-"तांका" (5/7/5/7/7)
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
चीर के देख
भ्रष्टाचारी का पेट
खा गए देश
उधार का पिया घी
भाग गए विदेश
------------------------------
"सायली छंद" (1/2/3/2/1शब्द )
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
गरीब
चाँद रोटी
पेट पर पट्टी
रात रोती
बदनसीब
------------------------------
विधा:-"डमरू"
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
अपराध कराये
आलस भगाये
कर्म जगाये
ललचाये
दौड़ाये
पेट
यूँ
शिक्षा
शर्मिंदा
बेहाल दशा
पेट ले परीक्षा
बाल मजूरी,भिक्षा?
------------------------------
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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"उदर" विषयाधारित सृजन
उत्सव अपने फीके लगते,
रिक्त उदर के साथ।
नर्तन-गायन अनुचित लगते,
रिक्त उदर के साथ।।
झरने नदिया
वे ताल तलैया,
बहुत भले हैं
जब तृप्ति है साथ।
चाँद सितारे
वे मौसम प्यारे,
गले उतरते
संतुष्टि के साथ।
प्रेम उपकरण अनुचित बनते,
तिक्त उदर के साथ।
नर्तन-गायन अनुचित लगते,
रिक्त उदर के साथ।।
भोला बचपन
परिपक्व हो चलता,
बोझिल-बोझिल
दायित्वों के घर।
स्वप्न आँख में
तिरने को लगते,
मारें ठोकर
धरती सह अम्बर।
सदा स्वप्न मुश्किल ले आते,
भृत्य उदर के साथ।
नर्तन-गायन अनुचित लगते,
रिक्त उदर के साथ।।
शुष्क उदर नित
आ राह किनारे,
दिनचर्या में
हैं भाग्य सहारे।
कोमल शिशु कर
मांगे मधुकरी जब,
श्रीमंतों से
मिलती दुत्कारें।
आग उगलती साँसे उनकी,
उग्र उदर के साथ।
नर्तन-गायन अनुचित लगते,
रिक्त उदर के साथ।।
प्रासादों के
सम्मुख बौनी सी,
गास-फूस की
तिरपाली दुनिया।
शहनाई से
क्या काम वहाँ पर,
बिक जाती है
दीनों की मुनिया।
वर्ग-विभाजन उचित नही है,
लुप्त उदर के साथ।
नर्तन-गायन अनुचित लगते,
रिक्त उदर के साथ।।
एक दिवस ही
श्रीमंतों देखो,
गर्म पथों पर,
बिना छाँव के घर।
भूख-प्यास का
आघात देखकर,
अनुभव करना
जीता जन मर-मर।
जीना-मरना बिना प्रयोजन,
तप्त उदर के साथ।
नर्तन-गायन अनुचित लगते,
रिक्त उदर के साथ।।
जल की शीतल
चल बूँद मिलाने,
श्रम सीकर के
उजड़े उपवन में।
मृदल मधुर स्वर
चल उच्चारित कर,
श्रम सहकारी
मुरझे मधुबन में।
आज भारती साथ चाहती,
दग्ध उदर के साथ।
नर्तन-गायन अनुचित लगते,
रिक्त उदर के साथ।।
-त्रिलोकी मोहन पुरोहित, पुणे ।।महाराष्ट्र।।
@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन "भावों के मोती"
दिनाँक---17/5/19
शीर्षक--उदर/पेट
पुतला अपना बनाकर जब
जान डाली उसमें भगवान ने
नाम दे दिया खुश होकर इंसान
फिर उसको भगवान ने
दिल दिमाग देकर फिर भगवान
भी घबरा गया सोचा यह मैंने क्या किया
तर्क-वितर्क करके यह मुझको भुलायेगा
धरती पर अधिकार करके सब भूल जायेगा
इसलिये सोचकर फिर उसने पेट बना दिया
इसकी भूख ना इंसान से भरी जायेगी
और उसको फिर मेरी याद आयेगी
गुरूर उसका यह पेट तोडे़गा
लगेगी भूख और वह मेरे दर को दौडे़गा
----नीता कुमार(स्वरचित)
@@@@@@@@@@@@@@@@
🌸नमन भावों के मोती🌸
🙏गुरुवर को नमन🙏
विषय-पेट/उदर
दिनांक-17/5/19
अबै न अइयो #उदर पे
ओ डायन भूख
जेठ मोरे अंगना ठाड़े
बलम खड़े दरवाजे आड़े
भात चढ़ो है चूल्हे पे
कैसे खालेओं बूट
अबै न अइओ उदर पे
ओ डायन भूख
सास गई मोरी खितवा लौं
काकी सास कों पीर सुनालौं
ननदी मोरी झबरा पहने
बेर बेर जाये ढूक
अबै न अइओ उदर पे
ओ डायन भूख
मौड़ा मोरो भूखो रोवे
गौहूँ धरो है आसों धोवे
देवरानी में नहींआ लच्छन
ढोर लौं बांधन खूट
अबै न अइओ उदर पे
ओ डायन भूख।।
👵**स्वरचित***
-सीमा आचार्य-(म.प्र)
@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन
भावों के मोती
१७/५/२०१९
विषय-उदर/पेट
वो आंखें जो करती
सदा अच्छे दिन की उम्मीद
उनके जीवन में भी कभी
आ जाए ईद
रहती है सदा उनकी
जेब खाली
नहीं मनती कभी
वहां दीवाली
खुशियां उनकी
हो जाती होली
चुभती हैं उन्हें
बडी बडी बोली
दो वक्त की रोटी के
पडे जहां लाले
वहां बडे बडे सपने
कोई कैसे पाले
सर पर छत
न कपडे नसीब हो
गरीबी ने फोडे
जिनके नसीब हो
आंखों में जिनके
हर पल नमी हो
जिनके जीवन में
खुशियां ही नहीं हो
जो अपना भविष्य ही
अंधेरे में पाते हैं
देश के भविष्य को
कहां समझ पाते हैं
सूनी आँखों से कहीं
सपने देखे जाते हैं
भूखे पेट कहीं
भजन किए जाते हैं ! !
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
@@@@@@@@@@@@@@@@
सादर नमन
विधा-हाईकु
विषय- पेट/उदर
१
जोड़ते हाथ
लगाकर मुखौटा
पेट में दाढ़ी
२
उदर पीड़ा
परिवार उदास
ठंड़ा है चूल्हा
३
पेट की भूख
मेहनत कराए
मिलती रोटी
४
रोटी बुझाती
बनकर फुहार
पेट की आग
****
स्वरचित-रेखा रविदत्त
17/5/19
शुक्रवार
@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
विषय - उदर/पेट
17/05/19
गुरुवार
कविता
रोटी ,कपड़ा और मकान तो मानव के अधिकार बने हैं,
लेकिन अगणित लोग यहाँ पर भूख- ग़रीबी में जीते हैं।
भूखे पेट बिलखते बच्चे माँ के आँचल में सोते हैं,
खून -पसीना बहाकर भी वे अक्सर भूखे ही रहते हैं।
कहीं इसी रोटी की खातिर सारे नियम टूट जाते हैं,
जब अपने व्याकुल बच्चे वे किंचित नहीं देख पाते हैं।
नहीं संतुलन है समाज में रोटी, कपड़ा और मकान का,
कहीं सजी वैभव की दुनिया,कहीं पड़े फाकें रहते है।
भारत की उर्वर धरती तो सबके लिए अन्न उपजाती,
फिर क्यों उसके बच्चे खाली पेट यहाँ रोया करते हैं।
यदि शासन सच्चे अर्थों में अपना हर कर्तव्य निभाए,
तो मौलिक अधिकारों से कोई भी वंचित न रह जाए।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
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नमन भावों के मोती
दिनांक : - १७/५/०१९
विषय : - उदर/ पेट
सूखा तन पेट हार्डी
कंधे पर बोरी टाँगे
कुड़ा - कड़कट उधेड़ते देखा
राजधानी में रेलवे स्टेशन पर
कई मासूम को यूँ ही
अपना भविष्य ढूँढ़ते देखा।
अमीरों के शहर में
इनसानियत का नया रूप देखा
जहाँ कुत्ते बिस्किट और पिज्जा खाते
वहाँ ३ साल के बच्चे को
खाली पेट सोते देखा।
स्वरचित: - मुन्नी कामत।
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नमन "भावो के मोती"
17/05/2019
"पेट उदर"(2)
हाइकु
1
पूजा,अजान
पेट बड़ा सवाल
धर्म न दिखा
2
रोता किसान
सबको तृप्त कर
स्व भूखे पेट
3
भूखा बालक
प्रसाद की चाहत
उदर तृप्ती
4
अन्न को फेक
दौलत की जो भूख
पेट न भरा
5
जन्म गरीबी
भूखे पेट जो सोया
आँचल रोया
चोका
1
सोना उगाते
अन्नदाता हमारे
सारी कमाई
ऋण किस्त मिटाया
खाली है हाथ
भरपेट न खाया
एक ही आस
आनेवाला है साल
कुछ हो खास
शायद हो कमाल
देश के नेता
किसान की झोली में
डाले ईनाम
रोटी का हो जुगाड़
पूरी अबकी
खुश है परिवार
सुन नाची छुटकी ।।
तांका
1
निश्छल शिशु
भूख से तड़पके
गोद में सोया
ये पेट की खातिर
माँ बिलख के रोई।।
2
देश समक्ष
गरीबी महामारी
बड़ा सवाल
संसंद कोहराम
पेट को मिले काम ।।
3
दौलतमंद
असंतुष्ट जीवन
पेट से ज्यादा
दौलत की है भूख
छिन लेती है सुख ।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)
पश्चिम बंगाल
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नमन भावों के मोती
विषय - पेट / उदर
चंद हाइकु
1
माँ का उदर
समग्र पीड़ा पीता
जाने ना विश्व
2
भूखा उदर
यौवन लील गया
रोया गरीब
3
तपता रवि
प्रकृति का उदर
मिटाए भूख
4
पेट की आग
झुलसा बचपन
जला जीवन
5
कर्ज का दर्द
पेट पे बांध पट्टी
सोता कृषक
(स्वरचित )सुलोचना सिंह
भिलाई (दुर्ग )
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2*भा,नमन साथियों,
तिथि ः17/5/2019/शुक्रवार
बिषयःःः उदर/पेट
विधाःः मुक्तक
उदरपूर्ति के लिए यहां पर तपती धूप में चमडी दिखती।
होता बचपन भूख से व्याकुल रोती ममता तगडी धरती।
आग पेट की बुझाऐं कैसे हम यही सोच मजदूरी करते,
कभी कभी तो हद हो जाती जबनिर्धनता ही सिकुडी दिखती।
पेट पीठ सब एक हुए से हमको गरीब दिखते हैं।
लदे बोझ से बूढे बच्चे सबको करीब दिखते हैं।
डाट डपट कर काम कराते कुछ अपने महल हवेली में,
फटकारें सुनते से मरते मानो इनके नसीब दिखते हैं।
स्वरचितःः मौलिक
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना म.प्र.
जय जय श्रीरामराम जी
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उदर/पेट#ःःमुक्तक#
2*भा.17/5/2019/शुक्रवार।
नमन भावों के मोती,
आज का विषय, उदर , पेट,
दिन, शुक्रवार,
दिनांक, 17,8,2019,
चाहे और कुछ हो न हो सबका पेट भरना चाहिए,
कुछ काम करना है जरूरी उदर पोषण के लिए ।
सारा दिन भटकते हैं प्राणीं कुछ तो मिलना चाहिए,
बनती है भूख भी अभिशाप मानवता के लिए ।
भूखा कुछ भी करेगा बस रोटी उसको चाहिए,
कत्ल भी कर सकता है वो सिर्फ रोटी के लिए ।
भूखा कह रहा खुदा से भूख न देना चाहिए ,
क्या-क्या करना पड़ता है पेट की आग के लिए।
रो रहे हैं देखो तो दुधमुँहे उनको तो ममता चाहिए ।
आजकल खट रहीं हैं नारियाँ घर को चलाने के लिए ।
हैं प्यार की बातें कहाँ नहीं उनको प्यार चाहिए ।
बिक रहे हैं जिस्म यहाँ पर महज पेट भरने के लिए ।
दावतें उड़तीं हैं कहीं उनको तो दिखावा ही चाहिए ।
जूठन उठा रहे हैं कहीं पर इस पापी पेट के लिऐ ।
दौलत का दिखावा ऐसा भी कभी भी न होना चाहिए,
बजा रहे हैं गाल वो दो जून की रोटियां देने के लिए ।
सरकार ने दे दिया अनाज कोई भूखा न रहना चाहिए ।
मगर हजम कर रहे हैं लोग यहाँ पेट बढ़ाने के लिए ।
गिरा दो ये सब दीवारें अब भेद भाव न होना चाहिए,
दुनियाँ में साधन पर्याप्त होना चाहिए हर एक के लिऐ ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
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आज का विषय उदर,पेट,।
गजल पेश है साथियों,
गजल,
दुख की चादर को सीने दे,
पेट की आग को बुझाने दे।।1।।
कोदों कुटकी खा के जी ले,
खेतों की फसलें पकने दे।।2।।
आसंमा में चाँद निकलने दे,
उजली रातों कोहोने दे।।3।।
दिल की किताब पढ़ने दे,
प्रेम का दीया जलने दे।।4।।
येजिन्दगी संवर जायेगी,
हालात के रास्ते निकलने दे।।
स्वरचित देवेन्द्र नारायण दास बसनाछ,ग,।।
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आज का विषय उदर,पेट,
सेदोका मेरे,
1/फसलें कटी,
छीनी गई जमीन,
फिरंगी के राज में
गोलियां चली,
मेरा भारत गांव,
जीते ओढ़ गरीबी।।1।।
2/वक्तके हाथों,
पेट भर खा ले तू,
बिखरी है उदासी,
मिट जायेगी,
फिर हँस उठेंगे,
कांटों भरी जिदंगी,।।2।।
3/रोटी के लिए,
लहू हम जलाते,
भरी दोपहरी में
तेज धूप में,
जीवन को हँसाते,
धन्ना सेठो,हँसाते।
4/सलोने बच्चे,
भूख से बिलखते,
मजूरी नही देते,
कोने में खड़ी,
ममता रोती रही,
मजबूर है बाप।।4।।
स्वरचित सेदोका कार देवेन्द्र नारायण दासबसना छ,ग,।।
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भरो उदर
लक्ष्य हर जीव का
भूखे हैं बच्चे।।
चढ़ी पतीली
एकटक निहारे
सो गये बच्चे।।
पेट की जंग
घूमें नँग धड़ंग
बीनें कचरा।।
रिक्त उदर
भजन कहां होवे
उद्दिग्न मन।।
भूख बावली
कराती अपराध
गुनाह माफ़।।
उदर भरो
एक ही अभियान
लूटते नेता।।
भावुक
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नमन मंच को
दिन :- शुक्रवार
दिनांक :- 17/05/2019
विषय :- उदर/पेट
क्षुधा विकल..
धधकती जठराग्नि ले..
पाषाण तक विखंडित कराता..
विकल उदर..
निर्जन में भटकाता..
मोह,लोभ में लटकाता
पथभ्रष्ट तक करवाता..
दुष्ट उदर..
पल-पल देता इम्तिहान..
करवाता परिश्रम महान..
तृप्तता की आस लिए..
अतृप्त उदर..
जिम्मेदारियां साथ ले..
नख से शिख तक कर्जदार..
दो जून रोटी को तरसता..
रिक्त उदर..
कर्मनिष्ठा बनी रहे..
मनु सतत् प्रयत्नशील जो..
अंतःकरण संतुष्ट हो..
प्रफुल्लित हो उठता वो..
तृप्त उदर...
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
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"हाइकु कविता"
उदर/पेट
विषय-प्रदाता-त्रिलोकी मोहन पुरोहित
क्यों दिया जन्म
सड़कों पर छोड़ा
सहें तपन।
कैसे बिताएँ
कष्टों भरी जिंदगी
उजड़े स्वपन।
ठोकर खाएँ
उदर पड़ा खाली
छत गगन।
बने अनाथ
फुटपाथ ठिकाना
रूदित मन।
दे काज ऐसा
हो पेट का भरण
हे भगवन!
रचनाकार:-
राकेशकुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा,
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भावों के मोती
सादर नमन
विषय=पेट/उदर
विधा=हाइकु
🌹🌹🌹
पेट की भेंट
चढ जाता है आज
सच व झूठ
🌹🌹🌹
पेट की आग
करवाती है कार्य
राजा व रंक
🌹🌹🌹
बड़ी निष्ठुर
तुड़वाये पत्थर
पेट की भूख
🌹🌹🌹
पेट में बच्चा
सिर लकड़ी गठ्ठा
बेचे अबला
🌹🌹🌹
पेट की आग
मंहगाई का श्राप
झेल जनता
🌹🌹🌹
सुख को भोग
घी तेल खाना छोड़
उदर रोग
🌹🌹🌹
उदर पीड़ा
झेलती नौ महीने
शिशु की मैया
🌹🌹🌹
बड़ा उदर
खा कर खूब सोया
दुःख को बोया
🌹🌹🌹
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
17/05/2019
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17/5/19
भावों के मोती
विषय - उदर/पेट
___________________
खाली बर्तन भूखा पेट
भीगी आँखों में सपने अनेक
सिर पर छत नहीं
पीठ के नीचे बिस्तर नहीं
गुजरे ज़िंदगी
कहीं किसी छांव तले
जीने की चाहत लिए
तलाशते कचरों के ढेर में
दिन भर कबाड़
कुछ मिला तो बेच लिए
बुझाने पेट की आग
नहीं मिला तो हताश हो
पेट पकड़ बैठे
पानी से भूख मिटाने का
भरकस प्रयत्न करते
नहीं मिटती जब भूख
जूठन खाने को मजबूर होते
सब भूखे पेट की माया
कहीं धूप कहीं छाया
अन्न की कीमत जाने वो ही
खाने मिली न जिनको रोटी
दाने-दाने को हैं मजबूर
भूख की तड़प लिए हैं ग़मों से चूर
पेट भरने के लिए
रोज फिरते काम तलाशते
कुछ भी करने को तैयार
भूखे पेट के वास्ते
***अनुराधा चौहान***©स्वरचित
@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन मंच
17/07/19
उदर/पेट
***
"पापी पेट का सवाल है" ,कह पेट को पापी कहें
इस पेट की खातिर कितने ही खुद वो पाप करें
बच्चे का जो पेट भरा ,माँ का पेट भर जाए
ठूस ठूस के खाये जो ,कितने ही रोग बुलाये
आठ दिन तक अन्न नही, पेट को सिकुड़ते देखा है
राजधानी की बच्चियों को भूख से मरते देखा है
पेट की खातिर मासूमों को दर दर भटकते देखा है
अन्नदाता को पेड़ो पर फंदे मे लटकते देखा है
ये भूख क्या नही करवाती,कितने तमाशे दिखाती है
पेट की ख़ातिर कोठों पर जिस्म को बिकते देखा है
जिस्म की भूख के लिए बर्बरता का नंगा नाच देखा है
मासूमों की बोटी खाते,पाखंडियों को देखा है।
सौ ,हजार ,लाख में भी कुछ का पेट नहीँ भरता
हजार करोड़ की भूख में बैंक को लूटते देखा है
रिश्वत से पेट भरे और ईमान बेचते देखा हैं
मौत सस्ती हो गयी ,इमारतों को गिरते देखा है ।
काश कुछ ऐसा करें हम सब मिल कर प्रण करे
दो निवाला हम खाये,'दो' ही भूखे को खिलाएं
सच्चाई और ईमानदारी से हम अपना पेट भरें
ये भूख कभी ना शांत हो ये क्षुधा बढ़ती ही जाए ।
अनिता सुधीर
स्वरचित
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शुभ साँझ 🌇
नमन "भावों के मोती"🙏
17/05/2019
कविता
विषय:-"पेट "
विषम अजीब हाल है,
पेट के कई सवाल है,
कोई मरा भूखे पेट,
कोई खाके बेहाल है l
कहीं पेट बना तिज़ोरी,
मुफ्त का रखा माल है,
कहीं रोटी मयस्सर नहीं,
कुछ पेट मालामाल है l
पेट के खातिर देखो,
हुए कितने हलाल है,
उसूल, तन बेचने पड़े,
हाथों में रहा मलाल है l
कुछ नेताओं का पेट नहीं,
अच्छा-खासा गोदाम है,
हक़ खा गए गरीब का,
हाजमा बेमिसाल है l
खूब दौड़ाये बुद्धि को,
क्षमता से करे मिलाप है,
तन,जीवन का केंद्र पेट,
परिधि दौड़ता संसार है l
स्वरचित
ऋतुराज दवे
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नमन भावों के मोती 🌹🙏🌹17-5-2019
विष य:- उदर / पेट
विधा :- कुणडलिया
सुरसा का मुख दीखता , करें उदर की बात ।
भूखा रहता है सदा , सुबह शाम परभात ।।
सुबह शाम परभात , जलती जठराग्नि रहती ।
होती कभी न शांत , आखिरी दम तक रहती ।
बहुत बड़ा है पेट , माप सके नहीं पुरसा ।
खा जाती सब आग , बना मुख इसका सुरसा ।।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी
सिरसा 125055 ( हरियाणा )
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नमन भावों के मोती नमन आ0 त्रिलोकी मोहन पुरोहित जी
विषय उदर / पेट
भरता नहीं नेताओं का पेट।
कहता है यह देहाती ठेठ ।।
सब्ज़ बाग दिखायेंगे हमको।
चुनाव बाद न पहचाने हमको।।
चुनाव मे बनाते है हमें सेठ।
भरते केवल कुछ का ही पेट।।
बाकी जनता सोती भूखे पेट।
चुनाव बाद खाता लात पेट।।
नेता बनते जाते धन्ना सेठ।
बढ़ती ही जाती है उनकी ऐंठ।।
डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
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शुभ संध्या
शीर्षक-- ( उदर/पेट )
द्वितीय प्रस्तुति
उदर भले निकल रहा
पर लालच न घट रही ।
छीनके रोटी गरीब की
इंसानियत सिमट रही ।
दो जून की रोटी भी
आज आसान नही ।
किसी के चूल्हे की
किसी को ध्यान नही ।
रोटी तो सभी को
खाना ही खाना है ।
रहा गर ऐसा ही तो
रूसी क्रान्ति आना है ।
भूख बड़ी जालिम है
यह कुछ न देखेगी ।
एक न एक दिन ये
यह कदम टेकेगी ।
रोटी कपड़ा मकान
है यह सबका हक ।
रोटी से बड़ा नही है
कोई 'शिवम' मजहब ।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 17/05/02019
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3*भा.17/5/2019/शुक्रवार
बिषयःःः#उदर/पेट#
विधाःः ःकाव्यः ः
ऊपर पंख पसारे पंछी उडता।
खुला आसमां इसको मिलता।
अधिकार मिला ईश से इसको,
विस्तार यहां जो कर सकता।
पेट पालने पंछी भी उडते हैं।
दाना पानी सब कुछ चुगते हैं।
परिवार नीढ में रहता इनका
पालन बच्चों का भी करते हैं।
सीमित परिवार सभी रखते हैं।
उदरपूर्ति यह मिलजुल करते हैं।
यहां बहुत विदेशी मेहमान पधारें
पेट पालने हम सबकुछ करते हैं।
अधिकार मिला जीवन जीने का
दो दो हाथ मिले हम सबको ही।
क्यों समक्ष किसी के हाथ पसारें,
मिलता पालन पोषण सबको ही।
स्वरचितःः ः
इंजी.शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना
3भा# उदर/पेट #काव्य
17/5/2019/शुक्रवार
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भावों के मोती दिनांक 17/6/19
पेट / उदर
विधा - हाइकु
भूखा उदर
याचक है इन्सान
दुत्कारो मत
दुखियारी वो
पिचका भूखा पेट
रोता बचपन
महके खुशी
आनंद घरद्वार
भरा हो पेट
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
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नमन भावों के मोती,
आज का विषय, उदर, पेट,
दिन, शुक्रवार,
दिनांक, 17,5,2019,
जीवन धारा
पेट बना सहारा
मिली जिंदगी ।
पेट भरना
नामुमकिन हुआ
नहीं सहारे ।
पेट का जना
बेवफा बेअदब
गंगा जमुना ।
पेट बेचारा
असफल प्रयास
भूख से हारा ।
स्वास्थ्य चाहिए
करते उपवास
उदर साफ ।
खड़ा भिखारी
नहीं पडा दिखाई
भरा था पेट ।
पेट भरना
रोजगार तलाश
खाली हैं हाथ ।
ईश्वर माया
इन्सान घबराया
पेट बनाया ।
स्वरचित, मीना शर्मा, मध्यप्रदेश,
@@@@@@@@@@@@@@@@
नमन भावों के मोती
दिनांक- 17/5/2019
विषय -उदर,पेट
उदरपूर्ति के लिए करता जतन
भूखा पेट सूखा बदन ।
फटे कपड़े अधनंगा तन
कूड़े में भी पूँजी ढूंडता मन।
लुटता बचपन ,छिनता जीवन
समाज का यही है चलन,
गरीब और गरीब होते
दिन प्रतिदिन और अमीर बनते जन ।
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
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II उदर / पेट II नमन भावों के मोती....
पेट कई प्रकार के होते हैं....
गोल पेट बच्चे की टिंड (सर) जैसे होते हैं...
तबला बजाने में बड़ा मजा आता है....
और जिसका तबला बज रहा होता...
उसको भी बहुत मजा आता...
मतलब दोनों का मजा...
एक पेट अंडे जैसे आकार का होता है...
लंबूतरा सा...लटका सा...
मुंह चिढ़ाता हुआ...
जिसका होता और जिसे दीखता...
दोनों का मुंह टेढ़ा हो जाता है....
षट्कोण जैसा पेट काबू में नहीं रहता...
इधर उधर मटकता है अपनी मर्जी से....
उस पर कोई डाँट का असर नहीं होता है...
खाने पीने में भी मर्जी उसकी और...
मटकने में भी उसकी मर्जी...
लेकिन एक पेट की किस्म ऐसी है...
पता नहीं चलता की पीठ है या पेट...
कहीं तो स्लिम-ट्रिम रहने के लिए...
फैशन की खोज है वो...
तो कहीं...एक पोस्टर....
जिसे भूख ने दीवार पर चिपका रखा है...
II स्वरचित - सी.एम्.शर्मा II
१७.०५.२०१९
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