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ब्लॉग संख्या :-377
नमन मंच भावों के मोती
स्वतंत्र लेखन
विधा लघुकविता
05 मई 2019 ,रविवार
उत्तर में गिरिराज हिमालय
दक्षिण सागर चरण पखारे
पूरब में है आसाम सुहाना
पश्चिम रेगिस्तान रंग सवारे
बहुमूल्य खनन भारत भूमि
हरियाली वसुधा पर छाई
भरणपोषण सबका करती
धन धन्य प्रिय भारत माई
अद्भुत पावन सौंदर्य मयी
पावन चारों धाम विराजे
कश्मीरी केसर क्यारियां
स्वर्गीम सुख समृद्धि साजे
अन्न वसन स्वच्छ वायु जल
भारत माता निशदिन देती
वह देती हमको है सब कुछ
क्या वह बदले में है जो लेती
ऋण उऋण नहीं हो सकते
माँ ने हमको क्या न दिया है
सदा सुखी प्रसन्न रहें हम
इसीलिये नित गरल पिया है
शस्यश्यामल वसुधंरा पर
खुशियों ने नित डेरा डाला
सब सुखी नित प्रसन्नमय
गाती नर्तन करती है बाला
भाग्यशाली कौन नहीं है
जिसने जन्म यँहा पर पाया
हँसते गाते लोग सभी हैं
नित रहता संग रब का साया
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
स्वतंत्र लेखन
विधा लघुकविता
05 मई 2019 ,रविवार
उत्तर में गिरिराज हिमालय
दक्षिण सागर चरण पखारे
पूरब में है आसाम सुहाना
पश्चिम रेगिस्तान रंग सवारे
बहुमूल्य खनन भारत भूमि
हरियाली वसुधा पर छाई
भरणपोषण सबका करती
धन धन्य प्रिय भारत माई
अद्भुत पावन सौंदर्य मयी
पावन चारों धाम विराजे
कश्मीरी केसर क्यारियां
स्वर्गीम सुख समृद्धि साजे
अन्न वसन स्वच्छ वायु जल
भारत माता निशदिन देती
वह देती हमको है सब कुछ
क्या वह बदले में है जो लेती
ऋण उऋण नहीं हो सकते
माँ ने हमको क्या न दिया है
सदा सुखी प्रसन्न रहें हम
इसीलिये नित गरल पिया है
शस्यश्यामल वसुधंरा पर
खुशियों ने नित डेरा डाला
सब सुखी नित प्रसन्नमय
गाती नर्तन करती है बाला
भाग्यशाली कौन नहीं है
जिसने जन्म यँहा पर पाया
हँसते गाते लोग सभी हैं
नित रहता संग रब का साया
स्व0 रचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
नमन भावों के मोती
दिनांक -5/5/2019
आज का विषय - स्वतंत्र लेखन
गजल
2122 2122 212
दर्द में भी मुस्कुराना आ गया,
हर किसी को आजमाना आ गया,
लो मनाएं ना मनाएं वो यहां
अब हमें खुद को मनाना आ गया,
वास्ता जब ये गमों से हो गया
तो गमों को भी सजाना आ गया,
खाये धोखे प्यार में मैंने बड़े
इश्क में अब दिल लगाना आ गया,
नफरतों को जो दिलों से दे भुला
जिंदगी को गुनगुनाना आ गया,
इश्क के रास्ते चलो सम्भल जरा
राज दिल का अब छुपाना आ गया,
मतलबी दुनिया मतलबी लोग हैं
देख ये कैसा जमाना आ गया,
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
दिनांक -5/5/2019
आज का विषय - स्वतंत्र लेखन
गजल
2122 2122 212
दर्द में भी मुस्कुराना आ गया,
हर किसी को आजमाना आ गया,
लो मनाएं ना मनाएं वो यहां
अब हमें खुद को मनाना आ गया,
वास्ता जब ये गमों से हो गया
तो गमों को भी सजाना आ गया,
खाये धोखे प्यार में मैंने बड़े
इश्क में अब दिल लगाना आ गया,
नफरतों को जो दिलों से दे भुला
जिंदगी को गुनगुनाना आ गया,
इश्क के रास्ते चलो सम्भल जरा
राज दिल का अब छुपाना आ गया,
मतलबी दुनिया मतलबी लोग हैं
देख ये कैसा जमाना आ गया,
स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
रिसालियाखेड़ा सिरसा (हरियाणा)
दिनांक -05.05.2019
ग़ज़ल
====================
अदाएं यार की टकरा रही हैं ।
निगाहें तड़पना सिखला रही हैं ।।
🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹
बरसती ही नहीं हैं घर हमारे,
घटाएं क्यूँ हमें तरसा रही हैं ?
🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹
चले जाओ जहाँ तुम चाहते हो,
दिशाएं रास्ता बतला रही हैं ।
🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹
चमन में क्यूँ नहीं आती हरितिमा?
बहारें किसलिए झुठला रही हैं ?
🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹
कि बू लेकर के उनके पैरहन की,
हवाएं बामोदर महका रही हैं ।
====================
" अ़क्स " दौनेरिया
ग़ज़ल
====================
अदाएं यार की टकरा रही हैं ।
निगाहें तड़पना सिखला रही हैं ।।
🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹
बरसती ही नहीं हैं घर हमारे,
घटाएं क्यूँ हमें तरसा रही हैं ?
🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹
चले जाओ जहाँ तुम चाहते हो,
दिशाएं रास्ता बतला रही हैं ।
🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹
चमन में क्यूँ नहीं आती हरितिमा?
बहारें किसलिए झुठला रही हैं ?
🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹🔹
कि बू लेकर के उनके पैरहन की,
हवाएं बामोदर महका रही हैं ।
====================
" अ़क्स " दौनेरिया
भावों के मोती
मंच को नमन🙏
सुप्रभात सभी प्रबुद्ध रचनाकारों को🙏💐
दैनिक कार्य
स्वरचित लघु कविता
दिनांक 5.5.19
दिन रविवार
विषय प्रेम
विधा स्वतंत्र ( हाइकु )
रचयिता पूनम गोयल
१)- विशुद्ध प्रेम
करे मन झंकृत
हो सुसंस्कृत
२)- प्रेम परीक्षा
अत्याधिक कठिन
करें जतन
३)- प्रेम सफल
यदि रहे निर्मल
बनें भविष्य
मंच को नमन🙏
सुप्रभात सभी प्रबुद्ध रचनाकारों को🙏💐
दैनिक कार्य
स्वरचित लघु कविता
दिनांक 5.5.19
दिन रविवार
विषय प्रेम
विधा स्वतंत्र ( हाइकु )
रचयिता पूनम गोयल
१)- विशुद्ध प्रेम
करे मन झंकृत
हो सुसंस्कृत
२)- प्रेम परीक्षा
अत्याधिक कठिन
करें जतन
३)- प्रेम सफल
यदि रहे निर्मल
बनें भविष्य
नमन भावों के मोती।
स्वतंत्र शीर्षकांतर्गत मेरी ओर से भी एक छोटा प्रयास --
**खोल देना दृग अपना परवर**
--------------------------------------------------------
हो गई जिंदगी धुआँ - धुआँ-
और मैं रह गई यहाँ - कहाँ।
रूकना नहीं एक पल मुझे-
कद्र जज्बात की नहीं जहाँ।
लौट कर आए विरानगी से-
मिलती नहीं खुशी कभी वहाँ।
उस जगह लेकर चल मुसाफ़िर-
तन्हा दिल मेरा खिल सके जहाँ।
टूटना नहीं है रब अब मुझे-
जी लूंगी संभल कर मैं यहाँ।
खोल देना दृग अपना परवर-
है ठिकाना इस दर - सा कहाँ।
क्षण मिले आनंद का हर ओर-
जी सकेगी 'रेणु' खुल के यहाँ।
-- रेणु रंजन
( स्वरचित )
05/05/2019
स्वतंत्र शीर्षकांतर्गत मेरी ओर से भी एक छोटा प्रयास --
**खोल देना दृग अपना परवर**
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हो गई जिंदगी धुआँ - धुआँ-
और मैं रह गई यहाँ - कहाँ।
रूकना नहीं एक पल मुझे-
कद्र जज्बात की नहीं जहाँ।
लौट कर आए विरानगी से-
मिलती नहीं खुशी कभी वहाँ।
उस जगह लेकर चल मुसाफ़िर-
तन्हा दिल मेरा खिल सके जहाँ।
टूटना नहीं है रब अब मुझे-
जी लूंगी संभल कर मैं यहाँ।
खोल देना दृग अपना परवर-
है ठिकाना इस दर - सा कहाँ।
क्षण मिले आनंद का हर ओर-
जी सकेगी 'रेणु' खुल के यहाँ।
-- रेणु रंजन
( स्वरचित )
05/05/2019
ग़ज़ल
आपकी एक अदा मुझे भा रही
वो ठहरी हुई हँसी याद आ रही ।।
फिर कभी मिलो वो हँसी देखूँ
बार बार वो मुझको लुभा रही ।।
वादा करो मिलने का मुझसे
जाने क्यों अब जुदाई सता रही ।।
उन झील सी आँखों में खोऊँ
यही एक इल्तिजा कहा रही ।।
दुनिया के मेले में अकेला 'शिवम'
मायूसी न इस दिल की जा रही ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 05/05/2019
आपकी एक अदा मुझे भा रही
वो ठहरी हुई हँसी याद आ रही ।।
फिर कभी मिलो वो हँसी देखूँ
बार बार वो मुझको लुभा रही ।।
वादा करो मिलने का मुझसे
जाने क्यों अब जुदाई सता रही ।।
उन झील सी आँखों में खोऊँ
यही एक इल्तिजा कहा रही ।।
दुनिया के मेले में अकेला 'शिवम'
मायूसी न इस दिल की जा रही ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 05/05/2019
शेर की कविताएं...
विषय .. दरवाजा
दिनांक .. 05/05/2019
विधा .. लघु कविता
************************
......
खोल दे दिल के दरवाजे को, अन्दर तो आ आने दो।
कब से दस्तक लगा रहा हूँ, दिल की बात बताने दो।
....
बात करोगे जब हम से तो, बात समझ मे आयेगी,
सामने आकर तुम बैठो, मुझे अपनी बात बताने दो।
....
हे मृगनयनी रसवन्ती तुम, मुझको गले लगाने दो।
द्वौ अधरो के मध्य अधर रख, सोम सुधा बरसाने दो
.....
कोशिश करके देखोगे जो, मन के भेद भुला कर के,
जीवन अमृत बन जायेगा, पास मुझे तुम आने दो।
......
तुम ही मेरी कविता हो अरू, तुम ही मुक्तक दोहा।
तुम ही हो कुण्डलिया मेरी ,छंद सोरठा रोला।
.....
तुम ही मेरी रचना हो और, प्रेम की हो परिभाषा।
शेर के मन की राग-रागिनी, खोल दे अब दरवाजा।
......
वर्ना बाहर भीड बढेगी, बातें होगी ज्यादा।
शेर के प्रेम पे शब्द उठेगे, थोडा कम या ज्यादा।
.....
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
विषय .. दरवाजा
दिनांक .. 05/05/2019
विधा .. लघु कविता
************************
......
खोल दे दिल के दरवाजे को, अन्दर तो आ आने दो।
कब से दस्तक लगा रहा हूँ, दिल की बात बताने दो।
....
बात करोगे जब हम से तो, बात समझ मे आयेगी,
सामने आकर तुम बैठो, मुझे अपनी बात बताने दो।
....
हे मृगनयनी रसवन्ती तुम, मुझको गले लगाने दो।
द्वौ अधरो के मध्य अधर रख, सोम सुधा बरसाने दो
.....
कोशिश करके देखोगे जो, मन के भेद भुला कर के,
जीवन अमृत बन जायेगा, पास मुझे तुम आने दो।
......
तुम ही मेरी कविता हो अरू, तुम ही मुक्तक दोहा।
तुम ही हो कुण्डलिया मेरी ,छंद सोरठा रोला।
.....
तुम ही मेरी रचना हो और, प्रेम की हो परिभाषा।
शेर के मन की राग-रागिनी, खोल दे अब दरवाजा।
......
वर्ना बाहर भीड बढेगी, बातें होगी ज्यादा।
शेर के प्रेम पे शब्द उठेगे, थोडा कम या ज्यादा।
.....
स्वरचित एंव मौलिक
शेर सिंह सर्राफ
नमन मंच
भावों के मोती
दिनांक: 05.05.2019
विषय:स्वतंत्र लेखन
जीवन का सफर
पीढ़ी दर पीढ़ी
जीवन की सीढ़ी
संस्कार सिखाती
जीने का ढंग बताती
सेवा भाव जगाती
माँ गोदी में खिलाती
बचपन, किशोरावस्था में
दोस्त खूब बनाते हैं
हँस हँस कर बाते करते
बात बात पर खिलखिलाते है
किशोरावस्था के बाद
जब युवावस्था आती
जीवन में वह
परिवर्तन है लाती
युवा जब पढ़ता है
निश्चित ही आगे बढ़ता है
नव तकनीक का प्रयोग करता है
जीवन के ख़ालीपन को भरता है
जब कभी वह पथ से भटक जाता है
अंधकार ही उसे नज़र आता है
अंतिम सीढ़ी वृद्धावस्था
जब आती है
चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाती हैं
बचपन से बुढ़ापे का सफर
ऐसे ही कटता जाता है
दीये का तेल
ऐसे ही घटता जाता है
कुछ ख्वाहिशें
पूरी हो जाती है
तो कुछ ख्वाहिशें
अधूरी ही रह जाती हैं
हरीश सेठी 'झिलमिल'
सिरसा
(स्वरचित)
भावों के मोती
दिनांक: 05.05.2019
विषय:स्वतंत्र लेखन
जीवन का सफर
पीढ़ी दर पीढ़ी
जीवन की सीढ़ी
संस्कार सिखाती
जीने का ढंग बताती
सेवा भाव जगाती
माँ गोदी में खिलाती
बचपन, किशोरावस्था में
दोस्त खूब बनाते हैं
हँस हँस कर बाते करते
बात बात पर खिलखिलाते है
किशोरावस्था के बाद
जब युवावस्था आती
जीवन में वह
परिवर्तन है लाती
युवा जब पढ़ता है
निश्चित ही आगे बढ़ता है
नव तकनीक का प्रयोग करता है
जीवन के ख़ालीपन को भरता है
जब कभी वह पथ से भटक जाता है
अंधकार ही उसे नज़र आता है
अंतिम सीढ़ी वृद्धावस्था
जब आती है
चेहरे पर झुर्रियां पड़ जाती हैं
बचपन से बुढ़ापे का सफर
ऐसे ही कटता जाता है
दीये का तेल
ऐसे ही घटता जाता है
कुछ ख्वाहिशें
पूरी हो जाती है
तो कुछ ख्वाहिशें
अधूरी ही रह जाती हैं
हरीश सेठी 'झिलमिल'
सिरसा
(स्वरचित)
नमन
भावों के मोती
५/५/२०१९
स्वतंत्र विधा
जड़ जीवन
----------------
ठहर जाता है जहां जीवन,
थम जाती है सारी उम्मीदें।
लुटती नजर आती खुशियां,
टूटती उम्मीदें बिखरते सपने।
अपनों को खोकर रोते अपने,
अस्पतालों का ये जड़ जीवन।
संवेदनाओं का यहां अकाल पड़ा,
हरकोई यहां पेशेंट बनके पड़ा।
टूटती सांसों से जुड़े जो जीवन,
पत्थरों पर कहां कोई असर पड़ा।
लगने लगे हैं यहां भी अब मेले,
भीड़ के बीच हैं सब अकेले।
गुजर जाता जब कोई अपना,
पत्थरों से कोई झरना बहे न,
जड़वत जिंदगी अस्पतालों की।
संवेदनाओं ने हिम्मत हारी,
एक अस्तित्व पेशेंट बन के पड़ा।
गया जहां से पेशेंट बन के गया,
निराशाओं और विपत्तियों
की सौगात मिली।
किसी की मौत से यहां
की व्यवस्था न हिली,
जड़ता से घिरा होता यहां का जीवन,
भाग्यशाली को मिलता यहां संजीवन।
यहां हर रोज जंग लड़ी जाती है,
जिंदगी फिर भी हार जाती है।
मरती संवेदनाओं में कौन
किसी का यहां,
हर कोई है बस अकेला यहां।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
भावों के मोती
५/५/२०१९
स्वतंत्र विधा
जड़ जीवन
----------------
ठहर जाता है जहां जीवन,
थम जाती है सारी उम्मीदें।
लुटती नजर आती खुशियां,
टूटती उम्मीदें बिखरते सपने।
अपनों को खोकर रोते अपने,
अस्पतालों का ये जड़ जीवन।
संवेदनाओं का यहां अकाल पड़ा,
हरकोई यहां पेशेंट बनके पड़ा।
टूटती सांसों से जुड़े जो जीवन,
पत्थरों पर कहां कोई असर पड़ा।
लगने लगे हैं यहां भी अब मेले,
भीड़ के बीच हैं सब अकेले।
गुजर जाता जब कोई अपना,
पत्थरों से कोई झरना बहे न,
जड़वत जिंदगी अस्पतालों की।
संवेदनाओं ने हिम्मत हारी,
एक अस्तित्व पेशेंट बन के पड़ा।
गया जहां से पेशेंट बन के गया,
निराशाओं और विपत्तियों
की सौगात मिली।
किसी की मौत से यहां
की व्यवस्था न हिली,
जड़ता से घिरा होता यहां का जीवन,
भाग्यशाली को मिलता यहां संजीवन।
यहां हर रोज जंग लड़ी जाती है,
जिंदगी फिर भी हार जाती है।
मरती संवेदनाओं में कौन
किसी का यहां,
हर कोई है बस अकेला यहां।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
5मई19
स्वतन्त्र लेखन
नमन मंच।
सुप्रभात गुरुजनों,मित्रों।
💐💐💐💐💐
ओ मुरली बाले।
दिल किया तेरे हवाले।
ना मै चाहूँ रुपया,पैसा,
ना चाहूं घर,बार।
दर्शन दे दो मुझको मोहन,
यही चाहे दिल बार,बार।
यमुना तट पर कब से खड़ी मैं,
राह निहारूँ कृष्णा,
बन्शी बजाके मुझको सुना जा,
तुष्ट हो जाये तृष्णा।
बड़ी देर कर दी,अब तो आजा,
पर गये धुप से पांव में छाले।
ओ मुरली बाले,
दिल किया तेरे हवाले।।
💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वतन्त्र लेखन
नमन मंच।
सुप्रभात गुरुजनों,मित्रों।
💐💐💐💐💐
ओ मुरली बाले।
दिल किया तेरे हवाले।
ना मै चाहूँ रुपया,पैसा,
ना चाहूं घर,बार।
दर्शन दे दो मुझको मोहन,
यही चाहे दिल बार,बार।
यमुना तट पर कब से खड़ी मैं,
राह निहारूँ कृष्णा,
बन्शी बजाके मुझको सुना जा,
तुष्ट हो जाये तृष्णा।
बड़ी देर कर दी,अब तो आजा,
पर गये धुप से पांव में छाले।
ओ मुरली बाले,
दिल किया तेरे हवाले।।
💐💐💐💐💐💐💐
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वतन्त्र लेखन ,नमन🙏🌹
__
इश्क मे वो काबिल, है कमाल के
बचा के रखना ज़रा दिल संभाल के।
वो जो चाहे तो सब कर गुजरते है
अभी की सोच न की बहरहाल के।
होशफ़ाख्ता होकर होश भी न आए
सब सितम जो है उनकी मज़ाल के।
इश्क कर क्या बचालोगे पास अपने
दे दिया है दिल तो तुमने उछाल के।
इश्क में भला कौन अपना रह सका
क्या जी लेगा तु अपनी मौत टाल के।
कहाँ से ख़तम कहाँ से शुरू हुआ
मतलब नहीं होते बेमतलब सवाल के।
आशिकी जरा संभल के कीजियेगा
#राय ये रंग है बड़े रंग जमाल के।
पी राय राठी
भीलवाड़ा, राज
__
इश्क मे वो काबिल, है कमाल के
बचा के रखना ज़रा दिल संभाल के।
वो जो चाहे तो सब कर गुजरते है
अभी की सोच न की बहरहाल के।
होशफ़ाख्ता होकर होश भी न आए
सब सितम जो है उनकी मज़ाल के।
इश्क कर क्या बचालोगे पास अपने
दे दिया है दिल तो तुमने उछाल के।
इश्क में भला कौन अपना रह सका
क्या जी लेगा तु अपनी मौत टाल के।
कहाँ से ख़तम कहाँ से शुरू हुआ
मतलब नहीं होते बेमतलब सवाल के।
आशिकी जरा संभल के कीजियेगा
#राय ये रंग है बड़े रंग जमाल के।
पी राय राठी
भीलवाड़ा, राज
🌹भावों के मोती🌹
🌹सादर प्रणाम 🌹
स्वतंत्र लेखन
विषय =सफ़र
विधा=हाइकु
🌹🌹🌹
(1)पल में करे
कई मिलों सफ़र
मन हमारा
🌹🌹🌹
(2)प्रभु के द्वार
चली सफ़र पर
देह से आत्मा
🌹🌹🌹
(3)हो यादगार
जीवन का सफ़र
कर्म हो ऐसे
🌹🌹🌹
(4)कटती नहीं
हम सफ़र बिना
यात्रा अपूर्ण
🌹🌹🌹
(5)कई शरीर
आत्मा भी अविरल
करे सफ़र
🌹🌹🌹
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
5/05/2019
🌹सादर प्रणाम 🌹
स्वतंत्र लेखन
विषय =सफ़र
विधा=हाइकु
🌹🌹🌹
(1)पल में करे
कई मिलों सफ़र
मन हमारा
🌹🌹🌹
(2)प्रभु के द्वार
चली सफ़र पर
देह से आत्मा
🌹🌹🌹
(3)हो यादगार
जीवन का सफ़र
कर्म हो ऐसे
🌹🌹🌹
(4)कटती नहीं
हम सफ़र बिना
यात्रा अपूर्ण
🌹🌹🌹
(5)कई शरीर
आत्मा भी अविरल
करे सफ़र
🌹🌹🌹
===रचनाकार ===
मुकेश भद्रावले
हरदा मध्यप्रदेश
5/05/2019
*इंतजार*
अपनी अधूरी दास्तान को पूरा कर
सपने को साकार हम करेंगे
दिल तुमको दिया है तुम्हीं से प्यार
हम करेंगे,
खुदा कर दे करम रहम मुझ पर
उडा दे नकाब की दीदार हम
करेंगेंं,
अब बिजलिया गिराना छोड़िए,
सितम सारे बर्दाश्त हम करेंगें
छोड के पतझड को गुलशन
में आ जाओ हर रोज
मोहब्बत के सावन की फुहार
हम करेंगें,
हम से दिल्लगी करना सोच समझकर
तीर नजर के तेरे जिगर के पार हम
करेंगे,
यूं छुप छुप कर मिलने में मजा नही,
हिम्मत करो ,अब खुले में इजहार हम करेंगें,
जो अब न आ सके तो देख लेना ,
मरने के बाद भी आंखें रहेंंगी खुली मेरी
कुरवत पेे चले आना इन्तजार हम करेंगेंं
*कामेश की कलम से*
*कुछ अनकही सी*
अपनी अधूरी दास्तान को पूरा कर
सपने को साकार हम करेंगे
दिल तुमको दिया है तुम्हीं से प्यार
हम करेंगे,
खुदा कर दे करम रहम मुझ पर
उडा दे नकाब की दीदार हम
करेंगेंं,
अब बिजलिया गिराना छोड़िए,
सितम सारे बर्दाश्त हम करेंगें
छोड के पतझड को गुलशन
में आ जाओ हर रोज
मोहब्बत के सावन की फुहार
हम करेंगें,
हम से दिल्लगी करना सोच समझकर
तीर नजर के तेरे जिगर के पार हम
करेंगे,
यूं छुप छुप कर मिलने में मजा नही,
हिम्मत करो ,अब खुले में इजहार हम करेंगें,
जो अब न आ सके तो देख लेना ,
मरने के बाद भी आंखें रहेंंगी खुली मेरी
कुरवत पेे चले आना इन्तजार हम करेंगेंं
*कामेश की कलम से*
*कुछ अनकही सी*
नमन साथियों,
आज का कार्य ःस्वतंत्र/स्वछंद/स्वपसंद लेखन
तिथि ःः5/5/2019/रविवार
बिषयःःः#साहित्यकार#
विधाःःःकाव्य ः
कलमवीर हम कलम हस्त है।
कलम हाथ मे कलम शस्त्र है।
सद्साहित्य सृजन हम करते,
सृजनकार की कलम मस्त है।
गद्य पद्य सभी सृजन करें हम।
संगीत सभी भजन लिखें हम।
कलमकार बस कलम थामता,
समाज समस्या खनन करें हम।
ये कलम बहुत प्रहार करती है।
रूके नहीं सदा चलती रहती है।
कलम हर क्षेत्र में कदम बडाती,
सूंघ सूंघकर लिखती रहती हैं।
सृजनशीलता इससे दिखती है।
न भयभीरुता इसमें दिखती है।
साहित्यकार की यही निशानी
कलम निर्भीकता में मिलती है।
स्वरचित ःइंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
आज का कार्य ःस्वतंत्र/स्वछंद/स्वपसंद लेखन
तिथि ःः5/5/2019/रविवार
बिषयःःः#साहित्यकार#
विधाःःःकाव्य ः
कलमवीर हम कलम हस्त है।
कलम हाथ मे कलम शस्त्र है।
सद्साहित्य सृजन हम करते,
सृजनकार की कलम मस्त है।
गद्य पद्य सभी सृजन करें हम।
संगीत सभी भजन लिखें हम।
कलमकार बस कलम थामता,
समाज समस्या खनन करें हम।
ये कलम बहुत प्रहार करती है।
रूके नहीं सदा चलती रहती है।
कलम हर क्षेत्र में कदम बडाती,
सूंघ सूंघकर लिखती रहती हैं।
सृजनशीलता इससे दिखती है।
न भयभीरुता इसमें दिखती है।
साहित्यकार की यही निशानी
कलम निर्भीकता में मिलती है।
स्वरचित ःइंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
नमन भावों के मोती
5/5/2019
रविवार
स्वतंत्र लेखन
सुनो ,
क्या तुम भी चाहती हो पलायन ,
क्या तुम्हे भी है उलझन ,
क्या सब्र का बांध टूट रहा है ,
क्या अकेलापन घेर रहा है ,
क्या तुम्हे भी यही शिकायत है ,
कोई तुझे समझता नहीं ,
क्या छोटी -2 बातो से
आशि याना डूब रहा है ,
तो सुनो सखी ,
तुम अकेली नहीं हो ऐसी ,
हर नारी की दास्तां ऐसी ,
पर मत बनना काग भगोडा
कुछ नया -कर थोड़ा -2
तन नहीं मन को भी व्यस्त रख
तू स्व के लिए सदा हँस ,
कोई न मिले तो कान्हा
की बन जा मीरा ,
कान्हा ही हरेगे हर पीडा ......
स्वरचित
शिल्पी पचौरी
5/5/2019
रविवार
स्वतंत्र लेखन
सुनो ,
क्या तुम भी चाहती हो पलायन ,
क्या तुम्हे भी है उलझन ,
क्या सब्र का बांध टूट रहा है ,
क्या अकेलापन घेर रहा है ,
क्या तुम्हे भी यही शिकायत है ,
कोई तुझे समझता नहीं ,
क्या छोटी -2 बातो से
आशि याना डूब रहा है ,
तो सुनो सखी ,
तुम अकेली नहीं हो ऐसी ,
हर नारी की दास्तां ऐसी ,
पर मत बनना काग भगोडा
कुछ नया -कर थोड़ा -2
तन नहीं मन को भी व्यस्त रख
तू स्व के लिए सदा हँस ,
कोई न मिले तो कान्हा
की बन जा मीरा ,
कान्हा ही हरेगे हर पीडा ......
स्वरचित
शिल्पी पचौरी
गद्य विधा लिखने का प्रयास
विवाह दो रिश्तो की गांठ ही नही बल्कि दो परिवारों द्वारा बाँधी गांठ है। विवाह पवित्र बंधन है, जिसके मायने आज अटूट नही रहे। युवा पीढ़ी विवाह को मात्र ढ़कोसला समझती है चाहे जब जोड़ लिया चाहे कब तोड़ दिया। रिश्ते के मायने तो अब कहीं घूम से गये है। पुरानी पीढ़ी के विवाह लम्बे समय तक चलते थे। शायद कोई बात तो रही होगी। रिश्तों के मायने समझते होंगे या रिश्तों में बेड़िया लगी होंगी, माता-पिता के मान को समझते होंगे या उनके डर को, प्यार में प्यार के साथ रहते होंगे या प्यार के कष्ट सहकर, मंजिले पा लेते होंगे या सही जीवन साथी। किन्तु आज के रिश्ते लंबे समय तक टिक नही पाते। कम समय बिताने या कोर्ट मैरिज के परिणाम स्वरूप, सांसारिक चकाचौंध या भाग जाने के रूप में, अधिक पढ़-लिख जाने या माता-पिता का कहा न मानने पर, परिवार द्वारा सताये जाने या धोखा खाने से; जो भी कारण रहे हो। किन्तु रिश्ते निभाने के कोई मायने, कोई बात, कोई याद, कोई चाह, कोई प्यार नही रहा हैं। रिश्ते निभाने का ना कोई सलीका रहा और ना ही कोई कद्र। रिश्तों के निम्न स्तर तक आने के साथ-साथ हमारी संस्कृति जो थोड़ी बहुत बची हुई थी निम्न स्तर पर पहुँच गई। समय बीतने पर सीढिया चढ़ी जाती है किंतु अब उतर रही है। पुराने समय विवाहोत्सव में रौनक छा जाती, रिश्ते-नाते झूम उठते, मार्मिक-भाव भरे गीत गाये जाते, बदरी भी मिलने आती और खुशियाँ भी संग लाती, माता-पिता की खुशियाँ आसमान छूने लगती। सभी कार्य परिवार के सदस्यों द्वारा हाथों से किये जाते। आंगन में हाथों से लिपाई-पुताई और रंगरोगन होता। आज दो-चार मित्रों के हस्ताक्षर या दो-चार मित्रों और रिश्तेदारों संग पार्टी। भोजन भी खड़े-खड़े जैसे भाग रहा हो। संगीत की धुने डीजे वाले बाबू , झूम शराबी न जाने क्या-क्या ? पहले पंगत बैठती, केले के पत्तों या पलाश के पत्तों से बने पत्तलों में भोजन परोसा जाता, दो-चार बातें होती, खुशियाँ छा जाती। विवाहोपरांत सबकुछ शांत हो जाता जैसे सारा संसार निंद्रामग्न हो गया हो। अब विवाहोपरांत टेंट-तंबू वाले पहुँच जाते है। मानो ऐसा लगता है जैसे किसी दुश्मन देश ने आक्रमण कर दिया हो। रिश्ते बदले, घर बदले, परिवार बदले, कुटुम्ब बदले, समाज बदले, रीति-रिवाज बदले, खान-पान बदला, संगिनी बदली, परेशानियाँ बदली, इज्जत बदली, इच्छाएँ बदली, गरीबी बदली, इंसानियत बदली; सबकुछ बदल सा गया।
भारत गाँवों में बसता था। आसरा खेती-बाड़ी, ढोरपालन (पशुपालन), हस्तशिल्प उद्योग ही पनपे हुए थे। भोर मे ही ओरखेड़िये (कृषक) नित्य कार्य पूर्ण कर गाड़ा (बैलगाड़ी) ले खेतों की ओर चल पड़ते। बड़द से ओर (हल) बांधकर खेती कार्य मे व्यस्त हो जाते। ओर (हल) के पास एयणी (बीजो को खेत मे डालने का साधन) लगी होती जिससे मुट्ठी भर के बीज धीरे-धीरे उसमें डालते इस तरह खेतों में बीज बोये जाते। बीज बोते पुरुष मस्ती में झूमते हुए गुनगुनाते........
घर की औरतें गाय-भैसों का दुग्ध निकाल, भोजन बना और अन्य कार्य पूर्ण कर खेतों में कार्य कर रहे अपने पति व अन्य सदस्यों के लिए भोजन लेकर चल पड़ती। परिवार के सभी सदस्य डागले (चार लकड़ियों के खंभों पर या पेड़ की शाखाओं के सहारे बनाई गई महचान नुमा आकृति) के नीचे बैठ मस्ती में, हँसी-ठिठोली करते हुए भोजन करते। भोजन ग्रहण करने के बाद पुरुषों संग महिलाएं भी खेती कार्यों लग जाती।
वर्षा अच्छी हो इस कारण बच्चों की टोली प्रत्येक घर जा-जाकर अच्छी वर्षा की भीख मांगते हुए गुनगुनाते "ऐ भाई वरहात मांगवा आव्यो भाई, ऐ भाई वरहात मांगवा आव्यो भाई.......
वर्षा आने पर गाउआ भराई ग्या (खेत भर जाते) तो धान की रोपाई शुरू हो जाती। फेरे लगाते हुए चारों ओर मधुर गीत सुनाई पड़ता.........
विवाह दो रिश्तो की गांठ ही नही बल्कि दो परिवारों द्वारा बाँधी गांठ है। विवाह पवित्र बंधन है, जिसके मायने आज अटूट नही रहे। युवा पीढ़ी विवाह को मात्र ढ़कोसला समझती है चाहे जब जोड़ लिया चाहे कब तोड़ दिया। रिश्ते के मायने तो अब कहीं घूम से गये है। पुरानी पीढ़ी के विवाह लम्बे समय तक चलते थे। शायद कोई बात तो रही होगी। रिश्तों के मायने समझते होंगे या रिश्तों में बेड़िया लगी होंगी, माता-पिता के मान को समझते होंगे या उनके डर को, प्यार में प्यार के साथ रहते होंगे या प्यार के कष्ट सहकर, मंजिले पा लेते होंगे या सही जीवन साथी। किन्तु आज के रिश्ते लंबे समय तक टिक नही पाते। कम समय बिताने या कोर्ट मैरिज के परिणाम स्वरूप, सांसारिक चकाचौंध या भाग जाने के रूप में, अधिक पढ़-लिख जाने या माता-पिता का कहा न मानने पर, परिवार द्वारा सताये जाने या धोखा खाने से; जो भी कारण रहे हो। किन्तु रिश्ते निभाने के कोई मायने, कोई बात, कोई याद, कोई चाह, कोई प्यार नही रहा हैं। रिश्ते निभाने का ना कोई सलीका रहा और ना ही कोई कद्र। रिश्तों के निम्न स्तर तक आने के साथ-साथ हमारी संस्कृति जो थोड़ी बहुत बची हुई थी निम्न स्तर पर पहुँच गई। समय बीतने पर सीढिया चढ़ी जाती है किंतु अब उतर रही है। पुराने समय विवाहोत्सव में रौनक छा जाती, रिश्ते-नाते झूम उठते, मार्मिक-भाव भरे गीत गाये जाते, बदरी भी मिलने आती और खुशियाँ भी संग लाती, माता-पिता की खुशियाँ आसमान छूने लगती। सभी कार्य परिवार के सदस्यों द्वारा हाथों से किये जाते। आंगन में हाथों से लिपाई-पुताई और रंगरोगन होता। आज दो-चार मित्रों के हस्ताक्षर या दो-चार मित्रों और रिश्तेदारों संग पार्टी। भोजन भी खड़े-खड़े जैसे भाग रहा हो। संगीत की धुने डीजे वाले बाबू , झूम शराबी न जाने क्या-क्या ? पहले पंगत बैठती, केले के पत्तों या पलाश के पत्तों से बने पत्तलों में भोजन परोसा जाता, दो-चार बातें होती, खुशियाँ छा जाती। विवाहोपरांत सबकुछ शांत हो जाता जैसे सारा संसार निंद्रामग्न हो गया हो। अब विवाहोपरांत टेंट-तंबू वाले पहुँच जाते है। मानो ऐसा लगता है जैसे किसी दुश्मन देश ने आक्रमण कर दिया हो। रिश्ते बदले, घर बदले, परिवार बदले, कुटुम्ब बदले, समाज बदले, रीति-रिवाज बदले, खान-पान बदला, संगिनी बदली, परेशानियाँ बदली, इज्जत बदली, इच्छाएँ बदली, गरीबी बदली, इंसानियत बदली; सबकुछ बदल सा गया।
भारत गाँवों में बसता था। आसरा खेती-बाड़ी, ढोरपालन (पशुपालन), हस्तशिल्प उद्योग ही पनपे हुए थे। भोर मे ही ओरखेड़िये (कृषक) नित्य कार्य पूर्ण कर गाड़ा (बैलगाड़ी) ले खेतों की ओर चल पड़ते। बड़द से ओर (हल) बांधकर खेती कार्य मे व्यस्त हो जाते। ओर (हल) के पास एयणी (बीजो को खेत मे डालने का साधन) लगी होती जिससे मुट्ठी भर के बीज धीरे-धीरे उसमें डालते इस तरह खेतों में बीज बोये जाते। बीज बोते पुरुष मस्ती में झूमते हुए गुनगुनाते........
घर की औरतें गाय-भैसों का दुग्ध निकाल, भोजन बना और अन्य कार्य पूर्ण कर खेतों में कार्य कर रहे अपने पति व अन्य सदस्यों के लिए भोजन लेकर चल पड़ती। परिवार के सभी सदस्य डागले (चार लकड़ियों के खंभों पर या पेड़ की शाखाओं के सहारे बनाई गई महचान नुमा आकृति) के नीचे बैठ मस्ती में, हँसी-ठिठोली करते हुए भोजन करते। भोजन ग्रहण करने के बाद पुरुषों संग महिलाएं भी खेती कार्यों लग जाती।
वर्षा अच्छी हो इस कारण बच्चों की टोली प्रत्येक घर जा-जाकर अच्छी वर्षा की भीख मांगते हुए गुनगुनाते "ऐ भाई वरहात मांगवा आव्यो भाई, ऐ भाई वरहात मांगवा आव्यो भाई.......
वर्षा आने पर गाउआ भराई ग्या (खेत भर जाते) तो धान की रोपाई शुरू हो जाती। फेरे लगाते हुए चारों ओर मधुर गीत सुनाई पड़ता.........
नमन मंच
दिनांक-05/05/2019
विषय:-स्वतंत्र लेखन
**************************
तरुवर छाया की आस लिए,
तरबतर हुआ ये सारा तन,
मरुस्थली बन गई ये धरा,
कट गए अकारण सारे वन !!1!!
बारहसिंगा न मृग बचे,
किट पतंगा न खग बचे!
दिखे न धरती बनी-ठनी
ढूंढता पथिक छांव घनी!!2!!
अधर कांपे कंठ भी तड़पे
पसीना सिर से नीचे बरसे
धरती निचोड़ सुखा दी सारी,
मानव अब बूंद-बूंद को तरसे !!3!!
ये पेड़ नही तो वन नही,
शीतलता भी सघन नही
जलती धरती चीत्कार रही,
मानव का तृप्त अब मन नही !!4!!
अग्नि लपट अब नभ से गिरती
गर्म हवायें चहुँ ओर से लिपटी!
अग्नि बाण से तन को चुभते,
दिनकर की किरणें जब पड़ती !!5!!
न मेघ कहीं न हवा शीतल
वन रक्षा पर नही होता अमल ?
न समझे ये संसार कभी!
उजाड़ रहा वन व्यापक !!6!!
सुख रहे डाल ,पात झड़ गए,
घरौंदे भी पंछी के उजड़ गए ,
फिर कैसा विकास तेरा मानव,
अब सारे वन यूँ ही कट गए !!
जंगलो में आगजनी होती रही,
इधर सारे गांव जल गए !!7!!
रचना:-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
चांगोटोला, बालाघाट ( मध्यप्रदेश
दिनांक-05/05/2019
विषय:-स्वतंत्र लेखन
**************************
तरुवर छाया की आस लिए,
तरबतर हुआ ये सारा तन,
मरुस्थली बन गई ये धरा,
कट गए अकारण सारे वन !!1!!
बारहसिंगा न मृग बचे,
किट पतंगा न खग बचे!
दिखे न धरती बनी-ठनी
ढूंढता पथिक छांव घनी!!2!!
अधर कांपे कंठ भी तड़पे
पसीना सिर से नीचे बरसे
धरती निचोड़ सुखा दी सारी,
मानव अब बूंद-बूंद को तरसे !!3!!
ये पेड़ नही तो वन नही,
शीतलता भी सघन नही
जलती धरती चीत्कार रही,
मानव का तृप्त अब मन नही !!4!!
अग्नि लपट अब नभ से गिरती
गर्म हवायें चहुँ ओर से लिपटी!
अग्नि बाण से तन को चुभते,
दिनकर की किरणें जब पड़ती !!5!!
न मेघ कहीं न हवा शीतल
वन रक्षा पर नही होता अमल ?
न समझे ये संसार कभी!
उजाड़ रहा वन व्यापक !!6!!
सुख रहे डाल ,पात झड़ गए,
घरौंदे भी पंछी के उजड़ गए ,
फिर कैसा विकास तेरा मानव,
अब सारे वन यूँ ही कट गए !!
जंगलो में आगजनी होती रही,
इधर सारे गांव जल गए !!7!!
रचना:-राजेन्द्र मेश्राम "नील"
चांगोटोला, बालाघाट ( मध्यप्रदेश
नमन भावों के मोती
दिनांक- 05/05/2019
विषय- स्वतंत्र लेखन
गज़ल= इश्क या हादसा
212-212-212-212
काफिला- ऐसा
रदिफ़ - लगा
इश्क का ये मुझे,रोग कैसा लगा|
कोई समझा नही,जाने कैसा लगा||
जौहरी ना रहा, कोई बाज़ार में|
मुफ्त में बिक गया,मोल ऐसा लगा||
ले रहा हूँ दवा,रोज़ उपचार की|
दर्द जाता नही,मुफ्त पैसा लगा||
लोग पागल समझने लगे हैं मुझे|
नर्स का चेहरा तेर जैसा लगा||
इश्क में पीटने का,मज़ा आ गया|
पीटना भी सरल,मालिशो सा लगा||
सुरेश जजावरा"सरल"
©®
दिनांक- 05/05/2019
विषय- स्वतंत्र लेखन
गज़ल= इश्क या हादसा
212-212-212-212
काफिला- ऐसा
रदिफ़ - लगा
इश्क का ये मुझे,रोग कैसा लगा|
कोई समझा नही,जाने कैसा लगा||
जौहरी ना रहा, कोई बाज़ार में|
मुफ्त में बिक गया,मोल ऐसा लगा||
ले रहा हूँ दवा,रोज़ उपचार की|
दर्द जाता नही,मुफ्त पैसा लगा||
लोग पागल समझने लगे हैं मुझे|
नर्स का चेहरा तेर जैसा लगा||
इश्क में पीटने का,मज़ा आ गया|
पीटना भी सरल,मालिशो सा लगा||
सुरेश जजावरा"सरल"
©®
स्वतंत्र लेखन
दिनांक-05/05/2019
सागर के मझधार में......
धो आई क्या इन्हें
अंधेरी रात के अंधकार में
क्यों कंपित हैं तेरे सजल अंग
सिहरा-सिहरा तेरा मन
श्यामल -श्यामल तेरा तन
कैसा विह्वल ये स्पंदन
अंतर्द्वंद के शंखनाद में।
मुख मंडल तेरा भीना- भीना
पथ में जुगनू ,केश स्वर्ण के फूल
दीपक देता राहों में
न जाने क्यों आज एक शूल।
वक्षस्थल ये चंचल
कंधों पे लपेटे दुकूल
अरविंद कर देता पागल
पलाश के हार से
निःस्वास मुझे छू जाती
सारगर्भित पथ पग के धूल।
पथ पर चला पंथी अकेला
लेकर संग रश्मियों का मेला
मिल गया उसे गौड़ गंतव्य
करुण क्रंदन की कथा कहें
बिरह मिलन की प्रथा रहे
मौन रहा क्यों स्तब्ध।
व्यथित मन की रागनी
अग्नि कण उन्मादिनी
प्यास ज्वार ज्वाला बहे
मन शून्य प्रहरी
चितवन हुआ मेरा तम
भृकुटी अंगारा बहे।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
दिनांक-05/05/2019
सागर के मझधार में......
धो आई क्या इन्हें
अंधेरी रात के अंधकार में
क्यों कंपित हैं तेरे सजल अंग
सिहरा-सिहरा तेरा मन
श्यामल -श्यामल तेरा तन
कैसा विह्वल ये स्पंदन
अंतर्द्वंद के शंखनाद में।
मुख मंडल तेरा भीना- भीना
पथ में जुगनू ,केश स्वर्ण के फूल
दीपक देता राहों में
न जाने क्यों आज एक शूल।
वक्षस्थल ये चंचल
कंधों पे लपेटे दुकूल
अरविंद कर देता पागल
पलाश के हार से
निःस्वास मुझे छू जाती
सारगर्भित पथ पग के धूल।
पथ पर चला पंथी अकेला
लेकर संग रश्मियों का मेला
मिल गया उसे गौड़ गंतव्य
करुण क्रंदन की कथा कहें
बिरह मिलन की प्रथा रहे
मौन रहा क्यों स्तब्ध।
व्यथित मन की रागनी
अग्नि कण उन्मादिनी
प्यास ज्वार ज्वाला बहे
मन शून्य प्रहरी
चितवन हुआ मेरा तम
भृकुटी अंगारा बहे।
स्वरचित
सत्य प्रकाश सिंह केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज
भावों के मोती
5/05/19
विषय- स्वतंत्र लेखन
एक निष्ठ सूरज
ओ विधाता के
अनुपम खिलौने !
चंचल शिशु से तुम
कभी आसमां
छूने लगते
कभी सिंधु में
जा गोते लगाते
दौड़े फिरते
दिनभर
प्रतिबद्धता
और निष्ठा से
फिर थककर
काली कंबली
ओढकर सो जाते
उठकर प्रभात में
कनक के पहनते
वसन आलोकित
छटा फैलाते
ब्रहमाण्ड से धरा तक
कभी मिहिका का
ओढ आंचल
गोद में माँ के
सो जाते
जैसे कोई
दिव्य कुमार
कभी देते सुकून
कभी झुलसाते
कभी बादलों
की ओट में
गुम हो जाते
ये तो बताओ
पहाड़ी के पीछे
क्यों तुम जाते
नाना स्वांग रचाते
अपनी प्रखर
रश्मियों से
कहो क्या
खोजते रहते
दिन सारे ?
ओ विधाता के
अनुपम ! खिलौने।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
5/05/19
विषय- स्वतंत्र लेखन
एक निष्ठ सूरज
ओ विधाता के
अनुपम खिलौने !
चंचल शिशु से तुम
कभी आसमां
छूने लगते
कभी सिंधु में
जा गोते लगाते
दौड़े फिरते
दिनभर
प्रतिबद्धता
और निष्ठा से
फिर थककर
काली कंबली
ओढकर सो जाते
उठकर प्रभात में
कनक के पहनते
वसन आलोकित
छटा फैलाते
ब्रहमाण्ड से धरा तक
कभी मिहिका का
ओढ आंचल
गोद में माँ के
सो जाते
जैसे कोई
दिव्य कुमार
कभी देते सुकून
कभी झुलसाते
कभी बादलों
की ओट में
गुम हो जाते
ये तो बताओ
पहाड़ी के पीछे
क्यों तुम जाते
नाना स्वांग रचाते
अपनी प्रखर
रश्मियों से
कहो क्या
खोजते रहते
दिन सारे ?
ओ विधाता के
अनुपम ! खिलौने।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।
मंच को नमन
दिनांक -5/5/2019
विषय- स्वतंत्र लेखन
कविता (ज़िंदगीनामा )
ए ज़िंदगी ! ज़िंदगीनामा तेरा
ध्यान से पढ़ना बहुत जरूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
बैठकर फ़ुरसत के पलों में
विचार करना बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
जीवन मरण के दो पाटों का
सत्य आकलन बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
निज प्रकृति का प्रकृति संग
तालमेल होना बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
सुख का उजाला दुःख का अंधकार
इनका आवागमन बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
कुछ छूट जाता मिल कुछ पाता
समझौता होना बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
कभी निखार देती कभी बिखेर देती
ख़ुद को समेटना बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
कभी लगती मुकम्मल कभी अधूरी
ख़्वाहिशों पर लगाम बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
कौन है पराया कौन है अपना ?
यह पहचान करना बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
मुख पर मुखौटा सच्चा या झूठा
विश्लेषण करना बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
आशा निराशा के समभावों को
छककर पीना बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
अपेक्षाओं और उपेक्षाओं के मध्य
तार्किकता करनी बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
ज़िंदगी हमें जिए या हम ज़िंदगी
अंतर्मन का संवाद बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
जीवन मूल्यों की आस्था का प्रश्न
प्रासंगिक बनना आज बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
दिनांक -5/5/2019
विषय- स्वतंत्र लेखन
कविता (ज़िंदगीनामा )
ए ज़िंदगी ! ज़िंदगीनामा तेरा
ध्यान से पढ़ना बहुत जरूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
बैठकर फ़ुरसत के पलों में
विचार करना बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
जीवन मरण के दो पाटों का
सत्य आकलन बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
निज प्रकृति का प्रकृति संग
तालमेल होना बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
सुख का उजाला दुःख का अंधकार
इनका आवागमन बहुत ज़रूरी है
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कुछ छूट जाता मिल कुछ पाता
समझौता होना बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
कभी निखार देती कभी बिखेर देती
ख़ुद को समेटना बहुत ज़रूरी है
🌸🌸🌸🌸🌸🌸
कभी लगती मुकम्मल कभी अधूरी
ख़्वाहिशों पर लगाम बहुत ज़रूरी है
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कौन है पराया कौन है अपना ?
यह पहचान करना बहुत ज़रूरी है
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मुख पर मुखौटा सच्चा या झूठा
विश्लेषण करना बहुत ज़रूरी है
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आशा निराशा के समभावों को
छककर पीना बहुत ज़रूरी है
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अपेक्षाओं और उपेक्षाओं के मध्य
तार्किकता करनी बहुत ज़रूरी है
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ज़िंदगी हमें जिए या हम ज़िंदगी
अंतर्मन का संवाद बहुत ज़रूरी है
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जीवन मूल्यों की आस्था का प्रश्न
प्रासंगिक बनना आज बहुत ज़रूरी है
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✍🏻 संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
स्वरचित
विषय - स्वतंत्र लेखन
दिनांक -05/05/2019
बटोही
###
अब के गुजरो
उस राह से
जरा ठहर जाना
पीपल की छाँव में
तुम पलट जाना
उस मिट्टी के ढलान पर
बैठी है उम्मीद
साथ उस का निभा देना
तपती रेत पर डगमगाएगें कदम
तुम हाथ थाम लेना
उसकी जमीरी ने किया
ख्वाहिशों का क़त्ल
तुम दीप अरमानों का जलादेना
नाक़ाम रही वो राह में
ना -उम्मीद तो नहीं
बटोही हो तुम राह के
मंजिल टक पहुँचा देना |
स्वरचित -
-अनीता सैनी
दिनांक -05/05/2019
बटोही
###
अब के गुजरो
उस राह से
जरा ठहर जाना
पीपल की छाँव में
तुम पलट जाना
उस मिट्टी के ढलान पर
बैठी है उम्मीद
साथ उस का निभा देना
तपती रेत पर डगमगाएगें कदम
तुम हाथ थाम लेना
उसकी जमीरी ने किया
ख्वाहिशों का क़त्ल
तुम दीप अरमानों का जलादेना
नाक़ाम रही वो राह में
ना -उम्मीद तो नहीं
बटोही हो तुम राह के
मंजिल टक पहुँचा देना |
स्वरचित -
-अनीता सैनी
II स्वतंत्र लेखन II नमन भावों के मोती....
ग़ज़ल - साँसों की डोर जितना ही उड़ना हिसाब में....
हम फंस गए हसीन के हुस्न-ए-सराब में...
करती सवाल जिसकी अदाएं जवाब में....
उड़ती हुई पतंग ने हम को सिखा दिया...
साँसों की डोर जितना ही उड़ना हिसाब में....
बेशक चढ़ा लो कोई मुलम्मा ज़ुबान पर...
छिपती कहाँ है इश्क़-ए-खुश्बू हिजाब में...
गुल कर दिए चिराग सभी यादगार के...
मिलता नहीं गुलाब कोई अब किताब में....
कल रात फिर मुझे तेरी परछाईआं मिलीं...
फिर रात एक और गुज़ारी अजाब में...
तन्हाईओं का दौर हसीं और हो गया....
जब से मिले वो रात मुझे माहताब में....
'चन्दर' तलाश लो नया घर अपने वास्ते...
कब तक रहें दो जिस्म-इक-जान के नकाब में...
सराब = धोखेबाजी, मृगतृष्णा
अजाब = पीड़ा, पाप का फल
II स्वरचित - सी.एम्. शर्मा II
०५.०५.२०१९
ग़ज़ल - साँसों की डोर जितना ही उड़ना हिसाब में....
हम फंस गए हसीन के हुस्न-ए-सराब में...
करती सवाल जिसकी अदाएं जवाब में....
उड़ती हुई पतंग ने हम को सिखा दिया...
साँसों की डोर जितना ही उड़ना हिसाब में....
बेशक चढ़ा लो कोई मुलम्मा ज़ुबान पर...
छिपती कहाँ है इश्क़-ए-खुश्बू हिजाब में...
गुल कर दिए चिराग सभी यादगार के...
मिलता नहीं गुलाब कोई अब किताब में....
कल रात फिर मुझे तेरी परछाईआं मिलीं...
फिर रात एक और गुज़ारी अजाब में...
तन्हाईओं का दौर हसीं और हो गया....
जब से मिले वो रात मुझे माहताब में....
'चन्दर' तलाश लो नया घर अपने वास्ते...
कब तक रहें दो जिस्म-इक-जान के नकाब में...
सराब = धोखेबाजी, मृगतृष्णा
अजाब = पीड़ा, पाप का फल
II स्वरचित - सी.एम्. शर्मा II
०५.०५.२०१९
नमन मंच को
विषय : स्वतंत्र लेखन
दिनांक : 05/04/2019
दीप
तेरी बेवफाई का तराना हमें,
जी भर के गुणगुनाने तो दे,
मत रोको मुझे यारो, इन आंधियों में,
दीप प्यार के फिर से जलाने तो दे।
हम चलते चलते थोड़ा थक से गये हैं,
पांव में पड़े छालों को सहलाने तो दे।
बहुत शिकवे शिकायतें हैं उनको हमसे,
दर्द उनसे मिले जो बताने तो दे।
लोग तारिफें करते थकते नहीं उनकी,
एक बार जरा हमें भी आजमाने तो दे।
वो कहते हैं अपनों ने दिया ही क्या है,
रिश्ते गैरों से उनको निभाने तो दे।
मांगते रहे थोड़ी सी पनाह, न मिली उम्र भर,
अब आशियाना हमको भी अपना बनाने तो दे।
हर बार झुकते रहे हैं हम ही,
एक बार उनको भी मनाने तो दे।
समझा न उसने कभी दर्द को मेरे,
घाव उनको भी इश्क में खाने तो दे।
कहते थे, मूर्ख हैं जो इश्क में जान दे देते हैं,
समय उन पर भी ऐसा जरा आने तो दे ।
मत रोको मुझे यारो, इन आंधियों में,
दीप प्यार के फिर से जलाने तो दे।
जय हिंद
स्वरचित: राम किशोर, पंजाब ।
विषय : स्वतंत्र लेखन
दिनांक : 05/04/2019
दीप
तेरी बेवफाई का तराना हमें,
जी भर के गुणगुनाने तो दे,
मत रोको मुझे यारो, इन आंधियों में,
दीप प्यार के फिर से जलाने तो दे।
हम चलते चलते थोड़ा थक से गये हैं,
पांव में पड़े छालों को सहलाने तो दे।
बहुत शिकवे शिकायतें हैं उनको हमसे,
दर्द उनसे मिले जो बताने तो दे।
लोग तारिफें करते थकते नहीं उनकी,
एक बार जरा हमें भी आजमाने तो दे।
वो कहते हैं अपनों ने दिया ही क्या है,
रिश्ते गैरों से उनको निभाने तो दे।
मांगते रहे थोड़ी सी पनाह, न मिली उम्र भर,
अब आशियाना हमको भी अपना बनाने तो दे।
हर बार झुकते रहे हैं हम ही,
एक बार उनको भी मनाने तो दे।
समझा न उसने कभी दर्द को मेरे,
घाव उनको भी इश्क में खाने तो दे।
कहते थे, मूर्ख हैं जो इश्क में जान दे देते हैं,
समय उन पर भी ऐसा जरा आने तो दे ।
मत रोको मुझे यारो, इन आंधियों में,
दीप प्यार के फिर से जलाने तो दे।
जय हिंद
स्वरचित: राम किशोर, पंजाब ।
जय माँ शारदा
....नमन भावों के मोती....
दि. - 05.05.19
स्वतंत्र सृजन अंतर्गत मेरी प्रस्तुति सादर.....
----------------------------------------------------
नाम बड़े और दर्शन छोटे
इस दुनिया के हमने खेल निराले देखे |
नाम बड़े और दर्शन छोटे वाले देखे ||
औरों को जो सीख सदा देते फिरते हैं |
किंतु स्वयं विपरीत आचरण जो करते हैं |
मापदंड मतलब अनुसार बदलते उनके-
आदर्शों की बातें जो हरदम करते हैं |
हमने तन के उजले मन के काले देखे |
नाम बड़े और दर्शन छोटे वाले देखे ||
लेकर धर्म की आड़ जगत को छलने वाले |
श्रद्धा और विश्वास को धूमिल करने वाले |
वैभव और विलासिता की पोषक बनकर-
खुद को ही भगवन मनवाने मानने वाले |
पोल खुली तो होते हुए मुँह काले देखे |
नाम बड़े और दर्शन छोटे वाले देखे ||
बड़ी-बड़ी बातें और वादे कर जाते जो |
सिर्फ चुनावी मौसम में ही दिखलाते जो |
अंतर कथनी और करनी में होता जिनकी -
रंग बदले तो गिरगिट को भी शरमाते जो |
राजनीति में रोज बदलते पाले देखे |
नाम बड़े और दर्शन छोटे वाले देखे ||
दुनिया और दुनियावालों के अजब तमाशे |
मानवता को शर्मसार करते खुलासे |
आडंबर के मकड़जाल में फंसे हुए सब-
मानवीय मूल्यों पर गहराते हुए कुहासे |
घने तमस से लड़ते तनिक उजाले देखे |
नाम बड़े और दर्शन छोटे वाले देखे ||
इस दुनिया के हमने खेल निराले देखे |
नाम बड़े और दर्शन छोटे वाले देखे ||
********************************
#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी- सिवनी म.प्र.
....नमन भावों के मोती....
दि. - 05.05.19
स्वतंत्र सृजन अंतर्गत मेरी प्रस्तुति सादर.....
----------------------------------------------------
नाम बड़े और दर्शन छोटे
इस दुनिया के हमने खेल निराले देखे |
नाम बड़े और दर्शन छोटे वाले देखे ||
औरों को जो सीख सदा देते फिरते हैं |
किंतु स्वयं विपरीत आचरण जो करते हैं |
मापदंड मतलब अनुसार बदलते उनके-
आदर्शों की बातें जो हरदम करते हैं |
हमने तन के उजले मन के काले देखे |
नाम बड़े और दर्शन छोटे वाले देखे ||
लेकर धर्म की आड़ जगत को छलने वाले |
श्रद्धा और विश्वास को धूमिल करने वाले |
वैभव और विलासिता की पोषक बनकर-
खुद को ही भगवन मनवाने मानने वाले |
पोल खुली तो होते हुए मुँह काले देखे |
नाम बड़े और दर्शन छोटे वाले देखे ||
बड़ी-बड़ी बातें और वादे कर जाते जो |
सिर्फ चुनावी मौसम में ही दिखलाते जो |
अंतर कथनी और करनी में होता जिनकी -
रंग बदले तो गिरगिट को भी शरमाते जो |
राजनीति में रोज बदलते पाले देखे |
नाम बड़े और दर्शन छोटे वाले देखे ||
दुनिया और दुनियावालों के अजब तमाशे |
मानवता को शर्मसार करते खुलासे |
आडंबर के मकड़जाल में फंसे हुए सब-
मानवीय मूल्यों पर गहराते हुए कुहासे |
घने तमस से लड़ते तनिक उजाले देखे |
नाम बड़े और दर्शन छोटे वाले देखे ||
इस दुनिया के हमने खेल निराले देखे |
नाम बड़े और दर्शन छोटे वाले देखे ||
********************************
#स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी- सिवनी म.प्र.
नमन मंच
०५/०५/२०१९
स्वतंत्र विषय
गीत
"हमसा न मिलेगा दुबारा"
आओ कराएं हम पहचान हमारे रिस्ते की,
खूबसूरती कभी न कम होगी हमारे इस रिस्ते की।
मिलेगी हर पल शीतलता यदि पास तुम आओगी,
नफरत की इस दिल में कभी बात नहीं पाओगी।
जो बनातें हैं रिस्ते बस मतलब की खातिर,
कभी भी वो रिस्ते निभाते नहीं हैं।
आजमाना हो हमको तो दिल में उतर के देखो,
चोट खाकर भी रिस्ते निभाते हैं हम तो।
देखनी हो जो तुमको हकीकत हमारी,
तो चुपके से आंखों में झांको हमारी।
जो सूरत तुम्हारी न नजर आए उसमें,
तो समझो फरेबी है मुहब्बत हमारी।
ये दौलत जहां की मिले न हमें तो भी,
ये खुशियाँ तो हरपल आती रहेंगी।
अगर साथ दोगी जहां में हमारा,
तो मुहब्बत हमारी भी दास्तान होगी।
इस कदर न दुखाओ दिल तुम हमारा,
मिलेगा न हमसा हमसफर दुबारा।
मानो बात वत्स की करो कुछ जतन,
इस दुनिया में हमसा न मिलेगा दुबारा।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
जयपुर
०५/०५/२०१९
स्वतंत्र विषय
गीत
"हमसा न मिलेगा दुबारा"
आओ कराएं हम पहचान हमारे रिस्ते की,
खूबसूरती कभी न कम होगी हमारे इस रिस्ते की।
मिलेगी हर पल शीतलता यदि पास तुम आओगी,
नफरत की इस दिल में कभी बात नहीं पाओगी।
जो बनातें हैं रिस्ते बस मतलब की खातिर,
कभी भी वो रिस्ते निभाते नहीं हैं।
आजमाना हो हमको तो दिल में उतर के देखो,
चोट खाकर भी रिस्ते निभाते हैं हम तो।
देखनी हो जो तुमको हकीकत हमारी,
तो चुपके से आंखों में झांको हमारी।
जो सूरत तुम्हारी न नजर आए उसमें,
तो समझो फरेबी है मुहब्बत हमारी।
ये दौलत जहां की मिले न हमें तो भी,
ये खुशियाँ तो हरपल आती रहेंगी।
अगर साथ दोगी जहां में हमारा,
तो मुहब्बत हमारी भी दास्तान होगी।
इस कदर न दुखाओ दिल तुम हमारा,
मिलेगा न हमसा हमसफर दुबारा।
मानो बात वत्स की करो कुछ जतन,
इस दुनिया में हमसा न मिलेगा दुबारा।
(अशोक राय वत्स) स्वरचित
जयपुर
"नमन-मंच'
"दिंनाक-५/५/२०१९"
"स्वतंत्र-लेखन"
आने वाले थे तुम
हर एक को था खबर
दिन रात एक कर दिया
तुमसे पाने को निजात।
घर पर बैठा निश्चित होकर
कर लिया मैने पुख्ता इंतजाम
मोबाइल किया फूल रिर्चाज
मोमबत्ती टार्च लिया निकाल,
राशन, पानी सब्जी भाजी
ज्यादा से ज्यादा लिया मंगाए
,दहशत भरे गुजरे दिन
कब हो गये सुबह से शाम।
"फणी"मैं तो सिर्फ दहशत में था,
तेरे आने के खबर मात्र से
पर जहाँ से तुम होकर गुजरे
देखकर हुआ मेरा हाल बेहाल।
सोच सोच कर मैं हुआ परेशान
कितना आंतकित था मैं
तेरे आने के खबर मात्र से
है वे कितने हिम्मती ,
जो झेले तुम्हारा आंतक
नमस्कार करूँ मैं उनको
और करूँ प्रार्थना ईश से
जल्दी सहज हो उनका जीवन।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
"दिंनाक-५/५/२०१९"
"स्वतंत्र-लेखन"
आने वाले थे तुम
हर एक को था खबर
दिन रात एक कर दिया
तुमसे पाने को निजात।
घर पर बैठा निश्चित होकर
कर लिया मैने पुख्ता इंतजाम
मोबाइल किया फूल रिर्चाज
मोमबत्ती टार्च लिया निकाल,
राशन, पानी सब्जी भाजी
ज्यादा से ज्यादा लिया मंगाए
,दहशत भरे गुजरे दिन
कब हो गये सुबह से शाम।
"फणी"मैं तो सिर्फ दहशत में था,
तेरे आने के खबर मात्र से
पर जहाँ से तुम होकर गुजरे
देखकर हुआ मेरा हाल बेहाल।
सोच सोच कर मैं हुआ परेशान
कितना आंतकित था मैं
तेरे आने के खबर मात्र से
है वे कितने हिम्मती ,
जो झेले तुम्हारा आंतक
नमस्कार करूँ मैं उनको
और करूँ प्रार्थना ईश से
जल्दी सहज हो उनका जीवन।
स्वरचित-आरती-श्रीवास्तव।
नमन मंच को
दिन :- रविवार
दिनांक :-05/05/2019
विषय :- स्वतंत्र लेखन
बुन रहा एक भारत श्रेष्ठ भारत..
बन रहा फिर जगनायक भारत..
कर रहा प्रतिनिधित्व जगत का..
नित्य नव सोपान चढ़ता भारत..
है सभ्यताओं का प्रणेता भारत..
संस्कृतियों का जन्मदाता भारत..
सर्वधर्म सम्भाव की है सद्भावना..
धर्म निरपेक्षता का आधार भारत..
जगनायक की राह नहीं आसान है..
योगी तपस्वीयों की आन बान है..
वेदों ग्रंथों से सज्जित भूमि भारत की..
कल भी महान थी आज भी महान है..
यह पावन भूमि है कृष्ण श्री राम की..
विवेकानंद, गौतम,और परशुराम की..
बनेगी फिर ये सकल सृष्टि की नायक..
रखती भावना सदा जगत कल्याण की..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
दिन :- रविवार
दिनांक :-05/05/2019
विषय :- स्वतंत्र लेखन
बुन रहा एक भारत श्रेष्ठ भारत..
बन रहा फिर जगनायक भारत..
कर रहा प्रतिनिधित्व जगत का..
नित्य नव सोपान चढ़ता भारत..
है सभ्यताओं का प्रणेता भारत..
संस्कृतियों का जन्मदाता भारत..
सर्वधर्म सम्भाव की है सद्भावना..
धर्म निरपेक्षता का आधार भारत..
जगनायक की राह नहीं आसान है..
योगी तपस्वीयों की आन बान है..
वेदों ग्रंथों से सज्जित भूमि भारत की..
कल भी महान थी आज भी महान है..
यह पावन भूमि है कृष्ण श्री राम की..
विवेकानंद, गौतम,और परशुराम की..
बनेगी फिर ये सकल सृष्टि की नायक..
रखती भावना सदा जगत कल्याण की..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
नमन "भावों के मोती"
स्वतंत्र सृजन
05/05/19
रविवार
रदीफ- सीखिए
व्यर्थ में न वक्त को बर्बाद करना सीखिए ,
राष्ट्र-हित में मंत्र कुछ ईज़ाद करना सीखिए।
बहुत आगे देश को जनता ही लेकर जाएगी,
नव-सृजन का हृदय में उन्माद भरना सीखिए।
देश को जो बाँटने की बात करते हर समय,
उन सभी से देश को आजाद रखना सीखिए।
आज जो संवेदना से शून्य यह संसार है,
प्रेम से सबकी उचित फरियाद सुनना सीखिए।
धर्म- जाति -वर्ग का न कोई अंतर हो कहीं
देश में समरूपता का वाद गढ़ना सीखिए।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
स्वतंत्र सृजन
05/05/19
रविवार
रदीफ- सीखिए
व्यर्थ में न वक्त को बर्बाद करना सीखिए ,
राष्ट्र-हित में मंत्र कुछ ईज़ाद करना सीखिए।
बहुत आगे देश को जनता ही लेकर जाएगी,
नव-सृजन का हृदय में उन्माद भरना सीखिए।
देश को जो बाँटने की बात करते हर समय,
उन सभी से देश को आजाद रखना सीखिए।
आज जो संवेदना से शून्य यह संसार है,
प्रेम से सबकी उचित फरियाद सुनना सीखिए।
धर्म- जाति -वर्ग का न कोई अंतर हो कहीं
देश में समरूपता का वाद गढ़ना सीखिए।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
दि- 5-5-19
विषय- स्वतंत्र लेखन
सादर मंच को समर्पित -
🍓🌿 व्यंग बाण 🌿🍓
**************************
🍋🌲 ताँका 🌲🍋
**************************
🍑🍑🍑🍑🍑🍑🍑🍑🍑
🍓🍍( 1 )
जनता राज
जनता का , जन को
जन उदास
लूटें सत्ता धन को
कौन देखे जन को
🍈🍋 ( 2 )
चुनावी नारा
मिटे बेरोजगारी
न मारा मारी
बेरोजगारी भत्ता
रोज हारी जनता
🍓🍊 ( 3 )
सभी को शिक्षा
गरीब को तो मुफ्त
गरीब कौन
फर्जी कागजी मौन
सच्चे गरीब त्रस्त
🍎🌲 ( 4 )
दलित उठें
सब मिलेगा मुफ्त
रेबडी़ बटें
कोटा कोठी बालों को
लाठी दीन हीन को
🍎🍊🍈🍑
🍓🍒*** ... रवीन्द्र वर्मा, आगरा
विषय- स्वतंत्र लेखन
सादर मंच को समर्पित -
🍓🌿 व्यंग बाण 🌿🍓
**************************
🍋🌲 ताँका 🌲🍋
**************************
🍑🍑🍑🍑🍑🍑🍑🍑🍑
🍓🍍( 1 )
जनता राज
जनता का , जन को
जन उदास
लूटें सत्ता धन को
कौन देखे जन को
🍈🍋 ( 2 )
चुनावी नारा
मिटे बेरोजगारी
न मारा मारी
बेरोजगारी भत्ता
रोज हारी जनता
🍓🍊 ( 3 )
सभी को शिक्षा
गरीब को तो मुफ्त
गरीब कौन
फर्जी कागजी मौन
सच्चे गरीब त्रस्त
🍎🌲 ( 4 )
दलित उठें
सब मिलेगा मुफ्त
रेबडी़ बटें
कोटा कोठी बालों को
लाठी दीन हीन को
🍎🍊🍈🍑
🍓🍒*** ... रवीन्द्र वर्मा, आगरा
नमन"भावो के मोती"
05/05/2019
"स्वतंत्र लेखन"
गजल़
################
जीना होगा मरना होगा
वादा अपना रखना होगा।
चाहे घर हो या बाहर हो
दिल की बातें सुनना होगा।
ना जाने वो क्या करता है,
भूल के मुझको तड़पा होगा।
आँखे उसकी बोल रही है,
सारी रात न सोया होगा।
चाहे मंजर बिखरा-बिखरा हो
"फोनी" तो ही आया होगा।
ये शम्मा बुझने वाला है
अब जलता परवाना होगा।
वो इंसा कैसे अच्छा होगा,
झूठों से जिसका रिस्ता होगा।
नाता किसका किससे होगा,
ऊपर से तय होता होगा।
अब भूल के उनकी यादों को
अश्कों में बह जाना होगा।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)पश्चिम बंगाल
05/05/2019
"स्वतंत्र लेखन"
गजल़
################
जीना होगा मरना होगा
वादा अपना रखना होगा।
चाहे घर हो या बाहर हो
दिल की बातें सुनना होगा।
ना जाने वो क्या करता है,
भूल के मुझको तड़पा होगा।
आँखे उसकी बोल रही है,
सारी रात न सोया होगा।
चाहे मंजर बिखरा-बिखरा हो
"फोनी" तो ही आया होगा।
ये शम्मा बुझने वाला है
अब जलता परवाना होगा।
वो इंसा कैसे अच्छा होगा,
झूठों से जिसका रिस्ता होगा।
नाता किसका किससे होगा,
ऊपर से तय होता होगा।
अब भूल के उनकी यादों को
अश्कों में बह जाना होगा।।
स्वरचित पूर्णिमा साह(भकत)पश्चिम बंगाल
भावो के मोती ।
5-5-/19
विषय --स्वतत्रं लेखन ।
सवाल सभी से एक करना चाहती ।
क्या मानव जो कर रहा ठीक हे या गलत ।
पेड काट घर सजाना हे कोनसी महानता ।
छीन रहा पशु पक्षियो से उनका निवास ।
रहने को एक मकान कम.है क्या जो करता दुर्पयोग खेतो खलिहानो का ।
चिल्ला रहा जल पानी हवा के लिऐ क्यो ।
दोष है स्वंय मै जानता फिर भी देता ईश्वर को दोष ।
क्या यही वास्विकता है या कुछ ओर ।
सोचो सोचा जरा पूछते सभी जड चेतन ः
दमयंती मिश्रा ।
गरोठ मध्यप्रदेस ।
5-5-/19
विषय --स्वतत्रं लेखन ।
सवाल सभी से एक करना चाहती ।
क्या मानव जो कर रहा ठीक हे या गलत ।
पेड काट घर सजाना हे कोनसी महानता ।
छीन रहा पशु पक्षियो से उनका निवास ।
रहने को एक मकान कम.है क्या जो करता दुर्पयोग खेतो खलिहानो का ।
चिल्ला रहा जल पानी हवा के लिऐ क्यो ।
दोष है स्वंय मै जानता फिर भी देता ईश्वर को दोष ।
क्या यही वास्विकता है या कुछ ओर ।
सोचो सोचा जरा पूछते सभी जड चेतन ः
दमयंती मिश्रा ।
गरोठ मध्यप्रदेस ।
भावों के मोती समूह
दिनांक -05/05/2019
दिन -रविवार
विषय -स्वतंत्र लेखन
=========================
==========================
तिरंगा सदा शान हमारी।
भारत भू यह सुंदर प्यारी।।
सारे जग में भारत प्यारा।
जन जन ने यह देश सवाँरा।।
एकता को सब जग ने माना।
हमें विश्व गुरु है बन जाना।।
देश प्रेम का मन में सागर।
प्रेम भाव से करें उजागर ।।
मान ध्वज का सदा बढ़ाना।
रक्षा करें आगे बढ़ जाना।।
हम सीमा की रक्षा करेंगें।
देश प्रेम का जोश भरेंगें।।
सर्व धर्म का देश हमारा।
भू वीरों की भारत प्यारा।।
चरण धूलि हम शीश लगायें।
भारत माँ के गुण हम गायें।।
बड़ा यह संविधान हमारा।
समानता की बहती धारा।।
वीर शहीद अमर बलिदानी।
देश प्रेम की लिखे कहानी।।
सदा तिरंगा लहरायेगा।
अब गुण नित्य वीर गायेगा ।।
...............भुवन बिष्ट
रानीखेत (उत्तराखंड)
(स्वरचित /मौलिक)
दिनांक -05/05/2019
दिन -रविवार
विषय -स्वतंत्र लेखन
=========================
==========================
तिरंगा सदा शान हमारी।
भारत भू यह सुंदर प्यारी।।
सारे जग में भारत प्यारा।
जन जन ने यह देश सवाँरा।।
एकता को सब जग ने माना।
हमें विश्व गुरु है बन जाना।।
देश प्रेम का मन में सागर।
प्रेम भाव से करें उजागर ।।
मान ध्वज का सदा बढ़ाना।
रक्षा करें आगे बढ़ जाना।।
हम सीमा की रक्षा करेंगें।
देश प्रेम का जोश भरेंगें।।
सर्व धर्म का देश हमारा।
भू वीरों की भारत प्यारा।।
चरण धूलि हम शीश लगायें।
भारत माँ के गुण हम गायें।।
बड़ा यह संविधान हमारा।
समानता की बहती धारा।।
वीर शहीद अमर बलिदानी।
देश प्रेम की लिखे कहानी।।
सदा तिरंगा लहरायेगा।
अब गुण नित्य वीर गायेगा ।।
...............भुवन बिष्ट
रानीखेत (उत्तराखंड)
(स्वरचित /मौलिक)
नमन :'भावों के मोती'
स्वतंत्र लेखन
रविवार,दि.5.5.19
* एक गीत*
श्रेय नर - देह का प्रेय शुभ - कर्म है।
कर सके यदि न परहित,वृथा धर्म है
कामना त्याग - सर्वस्व की वंचना,
कामना के बिना है कहाँ सर्जना।
पूज्य है सर्व-हित कामना वह जहाँ-
स्वार्थयुत भोग की चाहना रंच ना।
श्रेष्ठ मनुजत्व का तो यही मर्म है ।
'मोह-माया तजो,हरिभजो,हरिभजो',
ये सदुपदेश भी चिन्त्य है'सब तजो'।
वंद्य माया - जनित देह के गेह में,
जो अदेही भजो, गेह को भी सजो।
पथ-समन्वय सुगति का सुभग-वर्म है।
जो निबल को सताये वो`बल व्यर्थ है,
काम परहित न आए वो`धन व्यर्थहै।
रूप वह व्यर्थ, प्रिय को लुभाए नहीं,
स्वार्थ-हित ही मरे,वह मरण व्यर्थ है।
ईश चिन्तन रहित जिन्दगी शर्म है !
श्रेय नर-देह का प्रेय शुभ कर्म है।।
--डा.उमाशंकर शुक्ल 'शितिकंठ'
स्वतंत्र लेखन
रविवार,दि.5.5.19
* एक गीत*
श्रेय नर - देह का प्रेय शुभ - कर्म है।
कर सके यदि न परहित,वृथा धर्म है
कामना त्याग - सर्वस्व की वंचना,
कामना के बिना है कहाँ सर्जना।
पूज्य है सर्व-हित कामना वह जहाँ-
स्वार्थयुत भोग की चाहना रंच ना।
श्रेष्ठ मनुजत्व का तो यही मर्म है ।
'मोह-माया तजो,हरिभजो,हरिभजो',
ये सदुपदेश भी चिन्त्य है'सब तजो'।
वंद्य माया - जनित देह के गेह में,
जो अदेही भजो, गेह को भी सजो।
पथ-समन्वय सुगति का सुभग-वर्म है।
जो निबल को सताये वो`बल व्यर्थ है,
काम परहित न आए वो`धन व्यर्थहै।
रूप वह व्यर्थ, प्रिय को लुभाए नहीं,
स्वार्थ-हित ही मरे,वह मरण व्यर्थ है।
ईश चिन्तन रहित जिन्दगी शर्म है !
श्रेय नर-देह का प्रेय शुभ कर्म है।।
--डा.उमाशंकर शुक्ल 'शितिकंठ'
भावों के मोती
स्वतन्त्र सृजन
कह मुकरी--कह कर मुकर जाना
5/5/2019::रविवार
परदेसी वादे कर जाए
मन भीतर इक आस जगाए
झूठ सच्च वो सब कह देता
का सखि साजन!!ना सखि नेता
साँझ ढ़ले मिलने है आता
देख देख मुझको मुसकाता
लगता मुझको है वो प्यारा
का सखि साजन!!ना सखि तारा
जब नयनों में कजरा डारूँ
बार बार तब उसे निहारूँ
अपना सब कुछ करूँ समर्पण
का सखि साजन!!ना सखि दर्पण
मैं उसकी सूरत की कायल
नैनो से कर देता घायल
उसके जैसा कोई न और
का सखि साजन!!न नन्द किशोर
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
स्वरचित
स्वतन्त्र सृजन
कह मुकरी--कह कर मुकर जाना
5/5/2019::रविवार
परदेसी वादे कर जाए
मन भीतर इक आस जगाए
झूठ सच्च वो सब कह देता
का सखि साजन!!ना सखि नेता
साँझ ढ़ले मिलने है आता
देख देख मुझको मुसकाता
लगता मुझको है वो प्यारा
का सखि साजन!!ना सखि तारा
जब नयनों में कजरा डारूँ
बार बार तब उसे निहारूँ
अपना सब कुछ करूँ समर्पण
का सखि साजन!!ना सखि दर्पण
मैं उसकी सूरत की कायल
नैनो से कर देता घायल
उसके जैसा कोई न और
का सखि साजन!!न नन्द किशोर
रजनी रामदेव
न्यू दिल्ली
स्वरचित
नमन,"भावों के मोती "
🙏शुभ साँझ
दिनांक-5/5/ 2019🌱🌸🌱🌸🌱🌸🌱
विधा -नज्म
🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿
तुम जो आये जिन्दगी में साँसों को महकना आ गया
अरमान कुछ चहकने लगे सपनों को सजाना आ गया
पलकों ने बुने जो ख्वाब थे उनको संवरना आ गया
हर गीत सजने लगे नज्म को मुस्कराना आ गया
वादों भरी एक शाम थी तुम थे तुम्हारी याद थी
अब भरी महफिल मे मुझको हँसना हँसाना आ गया
क्या गिला शिकवा रहा जब साथ उनका ना रहे
दिल की हसरत को शब्दों में पिरोलाना आ गया
माना चंद साँसों का सफर बाकी रहा ओ महरबान
कट ही जायेगा सफर जो शिकायत भुलाना याद रहा
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
🙏शुभ साँझ
दिनांक-5/5/ 2019🌱🌸🌱🌸🌱🌸🌱
विधा -नज्म
🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿🌹🌿
तुम जो आये जिन्दगी में साँसों को महकना आ गया
अरमान कुछ चहकने लगे सपनों को सजाना आ गया
पलकों ने बुने जो ख्वाब थे उनको संवरना आ गया
हर गीत सजने लगे नज्म को मुस्कराना आ गया
वादों भरी एक शाम थी तुम थे तुम्हारी याद थी
अब भरी महफिल मे मुझको हँसना हँसाना आ गया
क्या गिला शिकवा रहा जब साथ उनका ना रहे
दिल की हसरत को शब्दों में पिरोलाना आ गया
माना चंद साँसों का सफर बाकी रहा ओ महरबान
कट ही जायेगा सफर जो शिकायत भुलाना याद रहा
स्वरचित
नीलम शर्मा#नीलू
नमन मंच 🙏
स्वतंत्र लेखन
दिनांक- 5/5/2019
विषय- उदासी
विधा- कविता
************
क्यों ये उदासी छायी है?
बिन पूछे क्यों आई है ?
बेचैनी क्यों बढ़ाती है?
उदासी कहाँ से आती है ?
नित का कार्य छूट गया,
दिल थोड़ा सा टूट गया,
मौसम की अँगड़ाई है,
तभी उदासी छाई है |
मधुर संगीत मैंने सुना,
एक रचना को मैंने लिखा,
ताजगी मुझमें आई है ,
उदासी की हुई विदाई रे |
लिखना अपनी आदत है,
सबसे बड़ी इबादत है,
मेरे मर्ज की दवा यही,
इसके बिना "मैं" नहीं |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
स्वतंत्र लेखन
दिनांक- 5/5/2019
विषय- उदासी
विधा- कविता
************
क्यों ये उदासी छायी है?
बिन पूछे क्यों आई है ?
बेचैनी क्यों बढ़ाती है?
उदासी कहाँ से आती है ?
नित का कार्य छूट गया,
दिल थोड़ा सा टूट गया,
मौसम की अँगड़ाई है,
तभी उदासी छाई है |
मधुर संगीत मैंने सुना,
एक रचना को मैंने लिखा,
ताजगी मुझमें आई है ,
उदासी की हुई विदाई रे |
लिखना अपनी आदत है,
सबसे बड़ी इबादत है,
मेरे मर्ज की दवा यही,
इसके बिना "मैं" नहीं |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
नमन "भावों के मोती"
दिनाँक: 05.05.2019
विषय: स्वतंत्र लेखन
कहाँ बाँधोगी राखी को ??
भाई
बहना मेरी कलाई सलामत नहीं
तुम कहां बन्धों गी राखी को।
बिन हाथों के कैसे रक्षा करूँगा
क्या निभा पाऊँगा मैं साखी को??
बहन
भाई तुम उदास ना हो इस दिन
पैरों पर बांध दूंगी मैं राखी को।
मेरी रक्षा तेरे दिए संस्कार करेंगे
हां ऐसे निभाएगा तू साखी को।।
भाई
फिर भी कमी तो कमी होती है
असफल हूँ कुछ भी करने में।
जब कोई मुसीबत आती है तो
विश्वास रखता हूँ मैं डरने में ।।
बहन
कोई कमीं नहीं दिखती तुझ में
किस्मत समझती हूँ तेरी बहन।
हार मत मान यूँ मेरे प्यारे भैया
आग उगले सदा जहरी जहन।।
भाई
छोटी है पर होंसले में है बड़ी
जिद्दी भी हो तु हमेशा से ही।
सही कहता हूं बिल्ली तुझको
काटती है जो मेरी बात कही।।
बहन
बिल्ली मत कहा कर भाई मुझे
आगे से मैं तुझे उल्लू नई कहूंगी।
पर लड़े बगैर नींद नहीं आती है
कभी कभी तो जरूर लड़ा करूंगी।।
भाई
ठीक, बांध दो राखी मेरे पैरों पर
सदा मुस्कराती रह दुआ यही है।
आज से वो सब तुम करती जाओ
जो तेरे और सब के लिए सही है।।
बहन
ठीक है भैया, तेरे बताए रास्ते पर
सदा चली हूँ, आगे भी चलती रहूंगी।
तेरे जैसे मन का भाई रब सबको दे
बस रब से सदा यही दुया करूंगी।।
स्वरचित
सुखचैन मेहरा
दिनाँक: 05.05.2019
विषय: स्वतंत्र लेखन
कहाँ बाँधोगी राखी को ??
भाई
बहना मेरी कलाई सलामत नहीं
तुम कहां बन्धों गी राखी को।
बिन हाथों के कैसे रक्षा करूँगा
क्या निभा पाऊँगा मैं साखी को??
बहन
भाई तुम उदास ना हो इस दिन
पैरों पर बांध दूंगी मैं राखी को।
मेरी रक्षा तेरे दिए संस्कार करेंगे
हां ऐसे निभाएगा तू साखी को।।
भाई
फिर भी कमी तो कमी होती है
असफल हूँ कुछ भी करने में।
जब कोई मुसीबत आती है तो
विश्वास रखता हूँ मैं डरने में ।।
बहन
कोई कमीं नहीं दिखती तुझ में
किस्मत समझती हूँ तेरी बहन।
हार मत मान यूँ मेरे प्यारे भैया
आग उगले सदा जहरी जहन।।
भाई
छोटी है पर होंसले में है बड़ी
जिद्दी भी हो तु हमेशा से ही।
सही कहता हूं बिल्ली तुझको
काटती है जो मेरी बात कही।।
बहन
बिल्ली मत कहा कर भाई मुझे
आगे से मैं तुझे उल्लू नई कहूंगी।
पर लड़े बगैर नींद नहीं आती है
कभी कभी तो जरूर लड़ा करूंगी।।
भाई
ठीक, बांध दो राखी मेरे पैरों पर
सदा मुस्कराती रह दुआ यही है।
आज से वो सब तुम करती जाओ
जो तेरे और सब के लिए सही है।।
बहन
ठीक है भैया, तेरे बताए रास्ते पर
सदा चली हूँ, आगे भी चलती रहूंगी।
तेरे जैसे मन का भाई रब सबको दे
बस रब से सदा यही दुया करूंगी।।
स्वरचित
सुखचैन मेहरा
भाव के मोती :स्वतंत्र लेखन :
शाम ए तन्हाई
-------------
शामें-तन्हाई कुछ उसके आने की बातें करो ,
अफ़सुरदा तबियत है दिल के बहलाने की बातें करो ।
जहाँ न साथ हो मेरे माज़ी की कोई परछाईं ,
दुनिया से दूर उस ठिकाने की बातें करो ।
सहने-चमन में अब वीराने की गुंजाइश न हो
बहारों का यहाँ मुस्तकिल ठहर जाने की बातें करो ।
पुरसिश -ए -हाल को तो ज़िंदगी पड़ी है अभी ,
सोज़-ए-दिल से ख़ुशगवार ज़माने की बातें करो
ज़िंदगी से मुख़ातिब कोई नई नज़्म गुनगुनाओ
जिंदगी के साज़ पर हँसी तराने की बातें करो ।
कोई तो राह होगी , जो मंज़िल तक ले जाएगी
साथ चले हो तो साथ निभाने की बातें करो ।
माना वो दम नहीं रहा अब अपने फ़साने में ,वले
जिसमें ज़िक्र था कभी उस फ़साने की बातें करो।
बेनूर सी इन आँखों में कोई तो खाब सजाओ
शब-ए-हिज़र खाबों के सजाने की बातें करो ।
************************************
स्वरचित((c)भार्गवी रविन्द्र
अफसुरदा -उदास , माज़ी - अतीत , रहगुज़र - रास्ता , पुरशिशे-हाल - हालचाल पूछना
सोज़ ए दिल - दिल का ग़म , मुख़ातिब - संबंधित , वले - लेकिन , शब ए हिजर - जुदाई की रात , मुस्तकिल -स्थायी
शाम ए तन्हाई
-------------
शामें-तन्हाई कुछ उसके आने की बातें करो ,
अफ़सुरदा तबियत है दिल के बहलाने की बातें करो ।
जहाँ न साथ हो मेरे माज़ी की कोई परछाईं ,
दुनिया से दूर उस ठिकाने की बातें करो ।
सहने-चमन में अब वीराने की गुंजाइश न हो
बहारों का यहाँ मुस्तकिल ठहर जाने की बातें करो ।
पुरसिश -ए -हाल को तो ज़िंदगी पड़ी है अभी ,
सोज़-ए-दिल से ख़ुशगवार ज़माने की बातें करो
ज़िंदगी से मुख़ातिब कोई नई नज़्म गुनगुनाओ
जिंदगी के साज़ पर हँसी तराने की बातें करो ।
कोई तो राह होगी , जो मंज़िल तक ले जाएगी
साथ चले हो तो साथ निभाने की बातें करो ।
माना वो दम नहीं रहा अब अपने फ़साने में ,वले
जिसमें ज़िक्र था कभी उस फ़साने की बातें करो।
बेनूर सी इन आँखों में कोई तो खाब सजाओ
शब-ए-हिज़र खाबों के सजाने की बातें करो ।
************************************
स्वरचित((c)भार्गवी रविन्द्र
अफसुरदा -उदास , माज़ी - अतीत , रहगुज़र - रास्ता , पुरशिशे-हाल - हालचाल पूछना
सोज़ ए दिल - दिल का ग़म , मुख़ातिब - संबंधित , वले - लेकिन , शब ए हिजर - जुदाई की रात , मुस्तकिल -स्थायी
सादर नमन
स्वतन्त्र लेखन में मेरी रचना
"बचपन"
बचपन की यादें आज,
मन को गुदगुदा गई,
करते थे इंतजार छुट्टियों का,
आता था जब महिना मई,
बन जाती योजनाएँ,
अवकाश से ही पहले,
कर लेते थे गृह-कार्य सारा,
फिर कोई ना कहता तू पढ़ले,
धमा-चौकड़ी खूब थे करते,
बना बना शरबत पीते,
सब चिंताओ से रहते मुक्त,
बिना परेशानी के जीवन जीते,
भागमभाग की आज की दौड़़में,
रिश्ते-नाते रह गए अधूरे,
दिल-ओ-दिमाग में प्रशन हैं उठते
सपने होंगे कैसे पूरे,
*******
स्वरचित-रेखा रविदत्त
5/5/19
शनिवार
स्वतन्त्र लेखन में मेरी रचना
"बचपन"
बचपन की यादें आज,
मन को गुदगुदा गई,
करते थे इंतजार छुट्टियों का,
आता था जब महिना मई,
बन जाती योजनाएँ,
अवकाश से ही पहले,
कर लेते थे गृह-कार्य सारा,
फिर कोई ना कहता तू पढ़ले,
धमा-चौकड़ी खूब थे करते,
बना बना शरबत पीते,
सब चिंताओ से रहते मुक्त,
बिना परेशानी के जीवन जीते,
भागमभाग की आज की दौड़़में,
रिश्ते-नाते रह गए अधूरे,
दिल-ओ-दिमाग में प्रशन हैं उठते
सपने होंगे कैसे पूरे,
*******
स्वरचित-रेखा रविदत्त
5/5/19
शनिवार
नमन भावों के मोती
दिनांक 5/5/2019
माँ
उस ममतामयी जीवनदायिनी माँ को शत -शत प्रणाम ।
जिसने अपने रक्त से मुझे अभिसिंचित किया ।
वात्सल्य की मधुर शक्ति से मुझे पुष्ट किया ।
अपने त्याग से मुझे सुदृढ़ किया ।
अपने ज्ञान से मुझे आलोकित किया ।
स्वयं कष्ट सह -सहकर मुझे हँसाया ।
अपनी आँखों से मुझे दुनिया दिखाया ।
जब भी मैं डरी ,तुम्हारी गोद में अपने को सुरक्षित पाया ,
दुनिया के भयावह थपेड़ो से दूर ।
जब भी मैं भटकी तुम्हारे सानिध्य ने रास्ता दिखाया ।
सहज सरल और निष्कंटक ।
तुम्हारे ही आशीषों ने मुझे पहुँचाया ,उन ऊँचाइयों की ओर
जिनको छूना तो क्या कल्पना भी नहीं की थी मैंने ।
ओ माँ ! ओ माँ ! ओ माँ !
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
दिनांक 5/5/2019
माँ
उस ममतामयी जीवनदायिनी माँ को शत -शत प्रणाम ।
जिसने अपने रक्त से मुझे अभिसिंचित किया ।
वात्सल्य की मधुर शक्ति से मुझे पुष्ट किया ।
अपने त्याग से मुझे सुदृढ़ किया ।
अपने ज्ञान से मुझे आलोकित किया ।
स्वयं कष्ट सह -सहकर मुझे हँसाया ।
अपनी आँखों से मुझे दुनिया दिखाया ।
जब भी मैं डरी ,तुम्हारी गोद में अपने को सुरक्षित पाया ,
दुनिया के भयावह थपेड़ो से दूर ।
जब भी मैं भटकी तुम्हारे सानिध्य ने रास्ता दिखाया ।
सहज सरल और निष्कंटक ।
तुम्हारे ही आशीषों ने मुझे पहुँचाया ,उन ऊँचाइयों की ओर
जिनको छूना तो क्या कल्पना भी नहीं की थी मैंने ।
ओ माँ ! ओ माँ ! ओ माँ !
स्वरचित
मोहिनी पांडेय
भावों के मोती दिनांक 5/5/19
स्वतंत्र लेखन
संस्मरण
दोस्ती हो तो ऐसी
बात आज से 45 साल पुरानी है । मैं भोपाल में 9 वी में पढता था । स्कूल से कुछ दूरी पर सिनेमा हाल था , उस समय
" दोस्ती " पिक्चर आई थी उसमें दो दोस्तों की
कहानी है ।
अब क्लास के दोस्तों में यह होड़ थी कि अपने दोस्तों के साथ वह पिक्चर देखने जाएँ ।
हमारी क्लास में एक लड़का सूरज नारदमुनी का काम करता था ।
एक बार जब क्लास के 8-10 लडके दोस्तों के साथ पिक्चर गये थे तब उसने क्लास टीचर को यह खबर कर दी । अब क्लास टीचर ने स्कूल के तीन चार दूसरे टीचर्स लिए और शो के खत्म होने पर, टाकीज के गेट पर खड़े को कर लड़को को पकड़ लिया और घेर कर स्कूल लाए और प्राचार्य के सामने सबने माफी मांगी तब उन्हें छोड़ा । इससे दोस्तों की दोस्ती और मजबूत हो गयी । जो
इतने दिनों बाद आज भी चल रही है ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल
स्वतंत्र लेखन
संस्मरण
दोस्ती हो तो ऐसी
बात आज से 45 साल पुरानी है । मैं भोपाल में 9 वी में पढता था । स्कूल से कुछ दूरी पर सिनेमा हाल था , उस समय
" दोस्ती " पिक्चर आई थी उसमें दो दोस्तों की
कहानी है ।
अब क्लास के दोस्तों में यह होड़ थी कि अपने दोस्तों के साथ वह पिक्चर देखने जाएँ ।
हमारी क्लास में एक लड़का सूरज नारदमुनी का काम करता था ।
एक बार जब क्लास के 8-10 लडके दोस्तों के साथ पिक्चर गये थे तब उसने क्लास टीचर को यह खबर कर दी । अब क्लास टीचर ने स्कूल के तीन चार दूसरे टीचर्स लिए और शो के खत्म होने पर, टाकीज के गेट पर खड़े को कर लड़को को पकड़ लिया और घेर कर स्कूल लाए और प्राचार्य के सामने सबने माफी मांगी तब उन्हें छोड़ा । इससे दोस्तों की दोस्ती और मजबूत हो गयी । जो
इतने दिनों बाद आज भी चल रही है ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव
भोपाल
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