Sunday, December 8

"एहसास "06दिसम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-587
06/12/2019
"एहसास"

1
शब्द पिरोया
एहसास धागे में
सृजन काव्य
2
पुरानी यादें
जीवित एहसास
मन कोने में
3
हवस भूख
एहसास भी मृत
मन विकृत
4
चाहत प्रेम
विशेष एहसास
रूह के पास

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

"भावों के मोती"
6/12/2019

एहसास
*******
शब्द जब निः शब्द
हो जायें
मचल उठते हैं भाव
चित्त के
पिघल जाते हैं दिल भी
पत्थर दिल के
जब एहसास रह जाते
मन में मन के
बह उठते हैं ज्यों हो
नदी की कोमल धार
लांघ अपनी सीमाओं
को अंतस के समंदर
में जा मिल जाते
एहसासों के परे कुछ
होता है
उसे शब्दों में गूँथने की
नाकाम कोशिश
होता जिसमें थोड़ा प्यार
तो थोड़ा अवसाद होता
है
चीरता है चित्त के किसी
कोने को
कभी जो हम बयां न
कर सकते वो सब
जो कहना चाहते हैं
तब मनका एहसास
बोलता है
क्यूँ..…....?
हैअंतस का वो
कोना इतना खाली
जिनके पास कोई
शब्द नहीं होते
होते हैं
रीते रीते से
सिर्फ़ और सिर्फ़
एहसास होते हैं ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
विषय- एहसास
विधा-दोहा मुक्तक

दिनांक-6/12/2019

1.✍️

एहसास अब हो गया , रहकर मुझसे दूर।
खोए थे जो ख्वाब में , वो हैं चकनाचूर।
भूल गया वो जब मुझे,विरह मिली है खूब
मुरझाया है चेहरा , खोया उसका नूर।

2.✍️

सूख चुका है आज जल,था सबका ही खास
नहीं मिला पानी तुझे ,लगी बहुत है प्यास
पानी अब ढूँढे कहाँ , है मुश्किल का दौर
पहले तो जागा नहीं ,आज हुआ एहसास

3.✍️

पिता प्रतीक्षा अब करे,समय नहीं है पास
भागदौड़ है जिंदगी , हुआ उसे एहसास
बेटे ने भूला दिया , कौन हरे अब पीर
खटिया पर है अब पड़ा,दु:ख बने हैं खास

✍️
राकेश कुमार जैनबन्धु
रिसालियाखेड़ा, सिरसा
हरियाणा
6 /12/ 2019
बिषय,, एहसास

सर्द हवाओं ने ठंड का एहसास करा दिया
ठिठुरती रातों ने अपना रंग जमा दिया
लगने लगी सुनहरी धूप सुहानी
तन को भाने लगा गर्मागर्म पानी
शबनम की बूंदें जैसे हो मोती
भोर की किरण धरा का मुख धोती
चूनर सी ओढ़े खेतों की हरियाली
महकने लगी चंपा की खुशबू मतवाली
मन फंस गया प्रकृति के झंझावातों में
जैसे कि प्रिय प्रेयशी अधूरे मुलाकातों में
ईश्वरीय रचना अप्रतिम अद्भुत निराली
अनुपम अनोखी छटा चहुँ दिश बिखरा डाली
नमन है तुम्हें हे रचनाकार
एहसास हो जाता तुम्हीं हो साकार
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
दिनांक-06/12/2029
विषय-एहसास


【 संतुलित पर्यावरण का एहसास】....।।

हो संतुलित अपनी ये धरा
हरियाली से हो जीवन भरा
रक्षित हो जीव जंतु नभ थल के
प्रकृति पाताल गगन तारण तल के

क्यों पेड़ काट रहे हो...?

हम अपने पैरों को प्रतिदिन
क्यों मिटा रहे सौंदर्य स्वप्न को
वसुधा के अंगों को गिन- गिन
क्यों रणभूमि में बदल रहे
आश्रय दाई सब अभयारण्य चुन- चुन
नदियों की सांसे रुकी- रुकी
सागर प्यासे खडे हुए
प्रकृति है मौन विवश खड़ी थकी-थकी

क्यों बनूं दुःशासन के अनुयाई?

करते धरती का चीर हरण
हां लुप्तप्रायः हो गए बहुत से
देवदार ,साखू के घट- परण
है माघ पसीने में लथपथ
अपनी अवनी कहती सत्य पथ
अब गगन में विचरते खग गिरते
गुम हो गए हो कहां वो आँशिया के शरण
आओ करें हम प्राण प्रतिष्ठा
करें अब तन मन से धरा का वरण

गगन की धूमिल हुई क्यों चमक....?

गगनचुंबी तारों की धूमिल हुई चमक
चिमनियों के विषैले धुएं की भभक
चहल-पहल अब वो कहां खो गई
पूछो अब अंधे कुएँ की कसक
ओजोन क्षत्र भी क्षीण हुआ
हो रहे बहुत बड़े बड़े छेद
तपता सीना तपती माथा
हिम पिघला कहता अपनी गाथा

स्वरचित....
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
दिनांक-06/12/2029
विषय-एहसास


एहसास

तेरा मेरा यूँ मिलना अनायास रहा।
साथ बिताए लम्हें मेरे लिए खास रहा।

जब जरूरत पड़ी तेरी किसी मुकाम पर,
तुझे याद कर ये मेरा मन उदास रहा।

जिंदगी भी उम्मीदों पर टिकी होती है,
भले ही प्यार ना मिला पर विश्वास रहा।

जिसे मिलना था क़िस्मत में वो मिला,
फिर भी ख़्वाहिशों का कल्पवास रहा।

कभी ग़म कभी खुशी मिली जिंदगी में,
थोड़ी सी हँसी के लिए सदा प्रयास रहा।

तू मुझसे भले ही कोसों दूर हो मगर,
फिर भी तू मेरे दिल के आस-पास रहा।

तेरी अहमियत क्या है मेरी जिंदगी में,
तेरे दूर जाने के बाद एहसास रहा।

सुमन अग्रवाल "सागरिका
आगरा
स्वरचित अप्रकाशित
06/12/2019
एहसास

अंगीठी के अंदर
धुएं का समंदर
सुलग रहा कोयला
तिसपर एक मुड़ा-तुड़ा तसला
भरे कुलबुलाता पानी
सारे जग से बेमानी
पलभर में अपने आप
उड़ने लगे भाप
कुछ कोरों से टपकता
दिशाहीन, अनजान ठिठकता
जैसे
बिन मौसम बरसात में
ठीक आधी रात में
टपकता है छप्पर
शनैः-शनैः, वक्षपर
बुझ चुकी अंगीठी
मुट्ठी में राख़ समेटी
एक प्रश्न शेष-
क्या यही है,
एहसासों का अवशेष?
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित

6.12.2019
शुक्रवार

आज का विषय -एहसास

विधा -ग़ज़ल

ग़ज़ल
एहसास

मेरे #एहसास मुझको दे रहे, संकेत कुछ ऐसा
मेरा मन भी हमेशा दे रहा, संदेश कुछ ऐसा।।

मेरा मानव जनम सार्थक बने, कुछ काम कर जाऊँ
मेरा जीवन भी मुझको दे रहा,आदेश कुछ ऐसा ।।

निभाएँ आपसी सौहार्द्र, सबके काम आएँ सब
सुखद संसार सबका हो,बने परिवेश कुछ ऐसा।।

नमन भारत की भूमि को,है पावन पुण्य -कर्मों से
सिखाया योग, जीवन मंत्र भी,सविशेष कुछ ऐसा।।

मुहब्बत को मुहब्बत के,इसी एहसास से जीना
कि जीने के लिए,दूजा नहीं विकल्प कुछ ऐसा ।।

किया है दान अपने देह का, जीवन बचा पाऊँ
‘उदार ‘ हमने लिया निज देश हित संकल्प कुछ ऐसा ।।

स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘

विषय, एहसास
दिनांक, 6,12,2019.

वार, शुक्रवार

अगर दुनियाँ एहसासों की नहीं होती ,
अनुभूति हमें सुख दुख की कैसे होती ।

संवेदनाएं मनु मन में जो नहीं होतीं,
गरिमा रिश्तों की फिर कैसे रह पाती ।

समाज में कायम भाई चारा नहीं होता,
शरीक कोई किसी के गम में नहीं होता।

अनमोल देन ये कुदरत की हमें मिलती है,
पालन पोषण की प्रक्रिया यूँ ही चलती है।

मिलन अंजानों का एहसास ही से होता है ,
एहसास बिना क्या कोई किसी पे मरता है ।

देश हमारा हम इसके जब दिल में जज्बा होता है,
पावन धरती पे तभी जन्म शूरवीरों का होता है।

हमको अपने एहसासों को बनाए रखना है ,
जीवन में समरसता अगर हमें लाना है।

है सबको पता दुनियाँ में अमर कौन होता है,
बस सदभाव पूर्ण कर्मों ही का सहारा होता है।

स्वरचित, मधु शुक्ला,
सतना, मध्यप्रदेश,
विषय...............एहसास
मात्रा भार...........16-14

★★★★★★★★★★★★★★★★★★
एहसास दिलो के मिलन का,
नयन के ठहराव से है।
अंदाजे बयां जुबां से हो,
जिगर के लगाव से है।।
★★★★★
नभ में बिखरी चमकते तारे,
निशा की मदमस्त जवानी।
चाँद की मद्धिम रौशनी में,
नदी तट दिल की रवानी।
मुझे एहसास हो रहा है,
अपनो के अभाव से है।
एहसास दिलो के मिलन का,
नयन के ठहराव से है।।
★★★★★★
कलुषित अपने कर्म धर्म का,
कर ले विचार रे मनवा।
बाद कुछ हासिल नहीं होगा,
लाख जतन कर ले मनवा।
बाजी जीत ले अब दिलो की,
एहसास मिलाव से है।
अंदाजे बयां जुबां से हो
जिगर के लगाव से है।।
★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
Damyanti Damyanti

विषय_ एहसास
मन मे कई उठते सवाल |
सुख दुख से भरे पल होते

देते नये एहसास होती अनुभूति
एहसास से ही मिलते हे
कुछ कर गुजरने की नवीन राहे |
कहते मन के ये एहसास |
नही मिलता मानव तन बारंबार
कुछ ऐसा कर जा बंदे चला जाऐ गर
छूटे ऐसे निशान सदियों तलक चले
मानव उन पद चिन्हो पर जो छोडे |स्वरचित_ दमयंती मिश्रा

6/12/2019
विषय-अहसास


पहले प्यार का अहसास
होता है कुछ खास

माँ की शिशु से
शिशु की माँ से
जुड़ी होती है श्वास

अनहोनी की आशंका का
न जाने कैसे
माँ को हो जाता है आभास

जन्मों का है ये नाता
जो होता नहीं अनायास

पहले प्यार का अहसास
होता है कुछ खास ।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

विषय -एहसास
दिनांक ६-१२-१९
एक तेरे एहसास को,सदा महसूस मैंने किया है।
दूर रहकर,अपनेपन का एहसास तूने दिया है।।

प्यार का एहसास मेरे दिल,तूने जगा दिया है।
दूर रहना मुश्किल,प्यार तुमसे मैंने किया है ।।

एक तेरे खातिर मैंने,अपनों को रुसवा किया है।
अब तुम ही बता दो, मैंने गुनाह क्या किया है।।

प्यार करना गुनाह है,तो आज यह मैंने किया है।
एहसास तुम्हें दिलऊंगी,वादा यह मैंने किया है।।

कर यकिन लौट आ,खामोशी जहर मैंने पिया है।
मजबूर ना कर तू,अरमानों को दफन किया है।।

सांसे टूटने से पहले आ,जहां से रुखसत किया है।
एक तेरे एहसास ,हसीन पलों को मैंने जिया है।।

हजार उलझनों बाद भी ,याद तुझे मैने किया है।
रख एहसास जिंदा,कह दे प्यार तूने किया है।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

एहसास

छूए जो फूल
बगीया में
हाथों को
सुखद एहसास
हो गया
छुए जो चरण
बुजुर्गों के
जीवन सफल
हो गया

की प्रार्थना
देव से
कामना पूरी
हो गयी
तपती रेत पर
शीतलता का
एहसास हो गया

करो महसूस
हर एक के
दुःख दर्द को
बनें सहारा
जरूरतमंदों के
मानवता का
एहसास हो गया

बनो सहारा
बूढापे में
माता पिता को
स्वर्ग सा
एहसास हो जाऐगा

है जितनी जिन्दगी
नेक ईमान से जियो
ईश्वर से सामीप्य का
एहसास हो जाएगा

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

विधा-दोहे
दिनांकः 6/12/2019
शुक्रवार

कलुषित करते कर्म हम,हो हमें एहसास ।
मानवता होती यही,सच का हो आभास ।।

हम राहें सच की चलें,तब जागे ये आस।
मानवता क्या चीज है,तब होता विश्वास ।।

धर्म,न्याय को हम जियें,यह जीवन का सत्य ।
प्रेम कर्म जीवन सदा,बाकी सभी असत्य ।।

भाग दौड़ कर हम जियें,संग चले क्या साथ।
आये खाली हाथ थे,जायें खाली हाथ ।।

तेरा मेरा व्यर्थ है,कभी नहीं ये खास।
दुख में कर महसूस सुख ,यही सही है आस ।।

मालिक में विश्वास रख,जो जग रचना कार ।
चलता ये संसार सब,करता वह साकार ।।

मौत एक सच है बड़ी,ले जाती बन मीत ।
हमारी सदा एक है,यही निभाती रीत ।।

स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय 

दिनांक-06/12/2019
कविता
िषय :-"एहसास"

बढ़ रही है दूरियां
रिश्ता सुलग रहा है
स्वार्थ के घरों में
एहसास बिखर रहा है..

दिखने में सभ्य हुए
आचरण बिगड़ रहा है
इंसानियत हुई शर्मसार
एहसास मर रहा है..

धीरे-धीरे दुनिया का
अंदाज़ बदल रहा है
चकाचौंध के विस्तार में
एहसास सिमट रहा है....

तकनीक की गुलामी
मनुज रोबोट हो रहा है
वक़्त की भागमभाग में
एहसास छिटक रहा है....

जाग रहा अवसाद
हाथ का सुख खो रहा है
अहं गोलियों के नशे में
एहसास सो रहा है....

स्वरचित
ऋतुराज दवे

दिनांक 06/12/19
विषय - "एहसास'

विधा - " हाइकू '
1/ परोपकार,,,
सुन्दर" एहसास '
" आत्म संतोष ',।
2/ प्रभु में मन ,,,
प्रेम का "एहसास '
धन्य जीवन,,,।
3/ भावों के मोती
एहसास कराए ,,,
भाव सृजन,,,,।
स्वरचित -- विमल ,,

तिथि 6/12/2019/शुक्रवार
विषय _*अहसास*

विधा॒॒॒ _छंदमुक्त

अहसास हमें
अपनों से होता है
मगर कोई नहीं
आज अपनों सा होता है।
जब बीतती स्वयं के ऊपर
तभी खास
सपनों सा होता है।
भूखे रहकर देखें एकदिन
क्या होता है इस पेट में
चूहे कूदते इसके अंदर
तभी भूख का अहसास हो
मृगमरीचिकाओं में
घिरते जब हम
क्या होती है प्यास सही
अहसास हो ।
दर्द हमारे तन में हो तो
रोना हमको आता है
नहीं किसी को इधर
अहसास है
भले इधर बैठा पास है।

स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशीअजेय मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय श्री राम रामजी

भावों के मोती
विषय--एहसास

_______________
आज़
मुद्दतों बाद खोली
यादों में बंद
रिश्तों की पोटली
धूप दिखाने रखती यहाँ वहाँ
सहेजकर
सीली यादों को
तभी खन्न से गिरी चिल्लर
एक आने,दो आने की
खट्टी-मीठी गोलियाँ मिलती
तब इनसे चौराहे पर
दो चोटी बाँधे कपड़े की गुड़िया
लिपटी
माँ की रेशमी साड़ी में
मिट्टी की गुल्लक खनक उठी
उसमें रखे पाँच आने से
कहीं से सरककर गिरा
गुलाब सूखा
तोड़ा था पड़ोसी के आँगन से
तह बना रखा वो रुमाल
जिस पर लिखा था नाम
मैंने रेशम के धागे से
इक चिट्ठी
माँ के हाथ लिखी
महकती मायके के एहसासो से
बाबूजी का फाउंटेन पेन देख
आँसू बहते आँखों से
छीना था भाई से कभी
यादों में झट से झाँक उठा
वो पुराना दो का नोट
कह गया एक पल में
अनगिनत बातें
भाई के एहसास जगा
बस बहुत लग चुकी धूप
रख देती हूँ इन्हें सहेजकर
यह यादें ख़ामोशी से
टटोलकर मन को मेरे
आँसू दे जाती आँखों में
मैं फिर से बंद कर रख देती
रिश्तों की पोटली को
यादों के संग
खामोशी से ताले में
***अनुराधा चौहान***स्वरचित 
शीर्षक- एहसास
प्यार क्या है

एहसास दिलों का
ना होता कम

नहीं छुपता
एहसास प्यार का
रुह का रिश्ता

चांदी ना सोना
एहसास चाहिए
बस प्यार का
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर

दिनांक_६/१२/२०१९
शीर्षक_एहसास"


हो एहसास अपने कर्मो का
नही हो बेपरवाह अपने कर्मो का
कण कण में है प्रभु हमारे
ये एहसास रखना है सभी को।

ख्याति मिले जब अपने कर्मो का
खुशी के एहसास होते सभी को
धन की लालसा ठीक नही
ये एहसास हो सभी को।

मानव है हम दानव नही
ये एहसास जागे सभी में
हमसब है देशवासी
प्यारा एहसास है सभी को।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।


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