Friday, December 13

"अखिल,सम्पूर्ण, समस्त"13दिसम्सबर 2019

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नहीं करें 
ब्लॉग संख्या :-594
विषय अखिल,सम्पूर्ण, समस्त
विधा काव्य

13 दिसम्बर 2019,शुक्रवार

अखिल जगत ब्रह्मांड नियन्ता
प्रिय जगति के पालन करता।
मायावी कठपुतली हम सब
दीन दयालु प्रिय दुःख हरता।

सम्पूर्ण जगत के तुम स्वामी
जन जन मन हो अंतर्यामी।
भाव भक्ति हम कुछ न जाने
कृपा बरसाओ हर जग प्राणी।

अखिल भारत वासी हम सब
सत्य अहिंसा के पक्षधर हैं।
वसुधैव कुटुंब प्रिय सुन्दरमय
सुख शांति जीवन सहचर हैं।

बैर भाव घृणा न फैले जग
सुख शांति का वास सकल हो।
हँसी खुशीमय हो जन जीवन
दीन दुःखी जन नहीं विकल हो।

यह जीवन प्रिय रैन बसेरा
करें परिश्रम मधुर फल पाएँ।
चार दिनों की है जिंदगानी
गीत खुशी सम्पूर्ण मिल गाएँ।

स्वरचित ,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

शीर्षक-- अखिल / सम्पूर्ण / समस्त
प्रथम प्रस्तुति


सम्पूर्ण जग की जिसे खबर
रखता है जो बड़ा जिगर ।।
उस परमपिता के पथ पर
कुछ तो चला कर बेखबर ।।

बार-बार रूह जिसे पुकारे
जिससे हैं ये चाँद सितारे ।।
समस्त जीव जिसके अधीन
उसमें रम होंगे उजियारे ।।

इधर उधर में मन भटकाता
माला भी झूठी सटकाता ।।
उसी के हर जीव को ठगकर
उसे भजने का स्वाँग रचाता ।।

समस्त जीव में वो समाया
समभाव का भाव न भाया ।।
छल कपट और दंभ भाव में
हीरा जनम 'शिवम' गँवाया ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 12/12/2019

शीर्षक-- अखिल/सम्पूर्ण/समस्त
द्वितीय प्रस्तुति


समस्त सुखों को भर दे जो
समस्त दुखों को हर दे जो ।।
उसी में अपना ध्यान रमाँ
पल में क्या नही कर दे वो ।।

है सब ही उसके अधीन
दूर नही वो मन में चीन्ह ।।
सुपथ पर जो 'शिवम' चलेगा
होगा मेल बजेगी बीन ।।

कहीं भटकना है फिजूल
मन ही है मंजिल का मूल ।।
अन्तर्मन के खोल किवारे
चल न कभी उसके प्रतिकूल ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 13/12/2019
3 /12/2019
बिषय,, अखिल ,,सम्पूर्ण,,समस्त

अखिल ब्रम्हांड नायक को भुला दिया
मानव स्वभाव ने खुद को स्वयंभू बना लिया
सृष्टि के रचऐता से कर लिया दरकिनार
जो कि समस्त जगत का है आधार
पाश्चात्य संस्कृति को खुश हो अपनाते
भारतीय.सभ्यता को भूलते जाते
प्रकृति से नित हो रही छेड़छाड़
निज स्वार्थपरता में काटते पर्वत पहाड़
प्राकृतिक सौंदर्य की छटा निराली
वसुंधरा को ओढ़ाई चूनर हरियाली
हरे भरे पेड़ बहती सरिता की कलकल धारा
मनुष्य चाहता सम्पूर्ण साम्राज्य हो हमारा
अरे आज इन्हें नहीं बचाओगे तो कल पछताओगे
भावी पीढ़ी की धरोहर छीन क्या पाओगे
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
नमन भावों के मोती
विषय अखिल/सम्पूर्ण
विधा कविता

दिनाँक 13.12.2019
दिन शुक्रवार

अखिल/सम्पूर्ण
💘💘💘💘💘

अखिल ब्रह्माण्ड, तुम में ही समाया
हर ज़गह फैला रखी है ,तुमने माया
तुम अदृश्य अगोचर ,सबने यही बताया
देखी नहीं किसी ने भी, कभी कोई तुम्हारी छाया।

एक आस्था है ,एक भाव है, तुम्हारा बस ध्यान करते
आँखें बन्द परिकल्पना में ,तुम्हारा सम्मान करते
तरह तरह के ग्रन्थ हैं ,और अलग हैं रास्ते
महापुरुषों ने बताये ,तुम्हें पाने के वास्ते।

"गूँगे केरी सरकरा" ,कबीर यही उल्लेख करते
पर साकार की बात के,कहाँ कोई परिवेश धरते
निर्मल मन जन जो मोहि पावा,बतलाते तुलसी
वे भी कठिन ऐसे,अपनी बात के पेच धरते।

नितान्त सरल ,नितान्त सरल
ऐसे स्वच्छ कि,दिख जाये तल
नहीं पा सकता,हे सम्पूर्ण तुम्हें
यह योग्यता तो है, बस एक छल।

चले जायेंगे यहाँ से,हाथों को मल
हो कर निर्बल,हो कर निर्बल
यह जन्म रहेगा,एकदम निष्फल
यदि ऐसी ही रही,सब ओर दलदल।

कृष्णम् शरणम् गच्छामि

सुमित्रा नन्दन पन्त
विषय -संपूर्ण/ समस्त /अखिल
दिनांक 13 -12 -2019

सं
पूर्ण जगत को एक कहते,करते अनेकता के काम।
सत्य अहिंसा बातें करते,करते नित हिंसा के काम।।

दीन दुखी कोई ना रहे,यह भाषण के तकिया कलाम।
सुख शांति बातें करते,करते आतंक फैलाने के काम।।

संपूर्णता कहीं नजर ना आई, बातों में बस राम नाम।
वसुधैव कुटुंबकम भावना मन में, करते खोटे काम।।

जीवन है बस रेन बसेरा,फिर भी सब इससे अनजान।
दो जून रोटी खातिर,कर रहे वह सबका काम तमाम।।

हकीकत को बिसराने वाले,नहीं पाते कहीं भी सम्मान।
मन ही मन राजा बनते,जग में सदा होते वह बदनाम।।

संपूर्ण जगत के स्वामी को,तू ना समझ पाया इंसान।
अंतर्मन से देख रहा सब,कर देगा तेरा काम तमाम।।

प्रभु की श्रेष्ठ रचना है तू,कुछ तो तू भी कर काम महान।
छल कपट दंभ भाव त्याग,इनसे तो ले ले अब तू विराम।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली
शीर्षक- सम्पूर्ण
संम्पूर्ण जगत के, जो हैं स्वामी

उन परमपिता को,मेरा प्रणाम।
हर प्राणी से करते, प्यार समान
अल्लाह ईश्वर है, जिनका नाम।।

हमारे दुःख दर्द तो हैं असल में
हमारे ही खोटे कर्मों का परिणाम।
दोष ईश्वर को देते, बगैर सोचे-समझे
सच में हम है, कितने नादान।।

सत्य अहिंसा का मार्ग माना कि
है दुर्गम,कठिन, कांटों से भरा
मगर इसी पर चलकर पाएगा तू
सच्चा सुख सुकूं व आराम।।

स्वरचित- निलम अग्रवाल,खड़कपुर

3/12/2019
"अखिल/समस्त/संपूर्ण"(1)

################
हे प्रभु!!तुम तारणहार..

अखिल ब्रह्मांड के तुम स्वामी
तुम हो सबके अंतर्यामी......
कोई भी न रहे लाचार........
कर दो सबका बेड़ा पार......
हे प्रभु!!तुम तारणहार..।

समस्त चराचर के तुम स्वामी
जग क्यों हो रहा है अभिमानी
अहंकार तुम दो निसार......
जग में न रहे व्यभिचार....
हे प्रभु!! तुम तारणहार...।

संपूर्ण जगत के तुम स्वामी..
भूल रहे संतान अपनी जननी
प्रार्थना कर लो अब स्वीकार
दर्शन दे दो तुम साकार.....
हे प्रभु!! तुम तारणहार...।।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
विषय, अखिल /सम्पूर्ण / समस्त
13,12,2019,


रहती दुनियाँ परिवार है एक ,
सृष्टा अखिल ब्रम्हांड का एक ।

सम्पूर्ण जगत है उसकी माया ,
समस्त ब्रम्हांड ईश्वर में समाया ।

तेरा मेरा ये सब है अज्ञानता,
नहीं कुछ अपना जग सारा जानता।

भटक रहा है मन पंछी सा ,
साथ न जाये किसी के तिनका ।

सब रिश्ते नाते अजनबी है काया,
भज ले हरि को क्यों उसे भुलाया ।

सबके हितार्थ कुछ न कुछ कर ले,
काया जो मिली सदुपयोग तो कर ले ।

यहाँ कर्म ही तेरे होगें चिरंजीवी,
रैन दिवस हर पल बन श्रमजीवी ।

स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
भावों के मोती"
13/12/2019

अखिल /सम्पूर्णता /समस्त
जब जब मन
पथ से तुम
गुजरे
प्रेम से हम सराबोर
हो गए
अन्तस से उठी
सदायें
हवाओं से फिज़ाओ
में घुल गयी
तेरी प्रेम की रोशनी
से हो गयी
सराबोर मैं
हुई तेरी रहमत
जो प्रेम की
आज़माइश
हुई
प्रेम तो है
उपलब्ध हर जीव
में पाए वही
संपूर्णता जो इस
प्रेम को
एहतसाब कर उसको
पा जाए ।।

स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
विषय-सम्पूर्ण/समस्त
विधा-पद्य

दिनांकः 13/12/2019
शुक्रवार

इस सारे संसार में,
है केवल ईश्वर पूर्ण ।
उसके शिवा सारा जग,
होता है निरा अपूर्ण ।।

दया , ज्ञान ,प्रेम का सागर वो,
समस्त सृष्टि का सृजन करता।
पालन सब जीवों का करता,
संहार सभी का वह करता ।।

श्रेष्ठ तम जो जीव धरा पर,
वह केवल मानव ही होता ।
मस्तिष्क पूर्ण विकसित उसका,
सब पर आधिपत्य वही करता ।।

किन्तु मानव में अभी भी,
कमियां,कमजोरी बहुत हैं ।
कोई भी तुलना हरि से नहीं,
अमानवीयता अभी बहुत हैं ।।

माना कि बहुत विकास किया,
वह अंतरिक्ष में पहुंच सका ।
है तकनीक और विज्ञान बहुत ,
उसकी गति ,शक्ति नहीं पहुंच सका ।।

साधन सम्पन्न वह हुआ,
ईश्वर सदा अतुल्य है ।
है वह कल्पना से अतीत,
अनंत अगोचर अदृश्य है।।

है वह ब्रह्माण्ड से कई गुना ,
कोई जिसका ओर न छोर है।
होती उसी से दिन और रात हैं ,
संभव उसी से साॅझ और भोर है।।

हर शय उसके बिना यहाँ,
होली सदा अधूरी है ।
जब चाहे वह जो चाहे,।
होती वहीं कामना पूरी है ।।

स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर ' निर्भय,
भावों के मोती मंच को नमन
विषय : अखिल/सम्पूर्ण/समस्त
विधा: स्वतंत्र

दिनांक 13/12/2019

सूर्य सम्पूर्ण जगत आधार,
प्रकाश ऊष्मा सदा संचार।
सूर्य देव की महिमा अपार,
समस्त विश्व करें नमस्कार।

अखिल विश्व एक परिवार,
मनु संस्कार शिष्ट व्यवहार।
ईद,दीवाली,पावन त्योहार,
वैसाखी, क्रिसमस उपहार।

वेदपुराण धर्मग्रंथों का सार,
तन,मन,वचन मनु उपकार।
जीवदया उत्तम कर्म संसार,
"अतिथि देवों भव:"सत्कार।

सभी जन सुखी हो करतार,
शांति प्रेम की बरसे रसधार।
प्रार्थना सुन लो ईश सरकार,
'रिखब'करें विनती बारम्बार।

रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित
जयपुर राजस्थान

13/12/19
अखिल ब्रम्हाड के स्वामी प्रभु मेरी भी सुन लीजिए

लीजिए मुझको शरण मे ज्ञान थोड़ा दीजिए।

पापी हु अधमी हूं अज्ञानी ओर हूं सिरफिरा।
जैसा भी हूं प्रभु हूं पर तेरा मुझ पर दया प्रभु कीजिये।

न ताल है ना सुर ही है न शब्दो का कुछ ज्ञान है।
तेरी शरण मे आ गया हूं अब ज्ञान मुझको दीजिए।

दुनिया के हर दर्द सह कर गम से मैं प्रभु चूर हूं।
हे विधाता गले लगा कर राह सुरक्षित कीजिये।

नाव मेरी है पड़ी मझधार मे कब से
प्रभु।
आ गया तेरे दर पे दूर विपदा प्रभु कीजिये।

आप दाता हो जगत के मैं भिखारी हूं तेरा।
क्या समर्पित करू तुमको बंदन स्वीकार कीजिये।

पास मेरे नही है वस्तु उपहार जो तुमको मैं दू।
अश्को के प्यालो का जल स्वीकार प्रभु कीजिए।

दीन हु तुम दिन रक्षक दीनता मेरी हरो।
ज्ञान का दीपक जला प्रभु अज्ञान को हर लीजिए।

स्वरचित
मीना तिवारी
अखिल/सम्पूर्ण/समस्त

हे जगत के पालनहार
है तेरी रचना शानदार
सम्पूर्ण ब्रहमांड तेरे अधीन
गाऊँगा सदा तेरे गुनगान

है माता पिता जगत आधार
बनते बच्चों के आधार
लूटाते लाड़-दुलार सम्पूर्ण
है उनके चरणों में समस्त संसार

हो मानवतावादी समाज
सुख दुःख में शामिल समाज
मानवता की है पहचान
सर्वे भव॔तु सुखिन:

है नमन जगतस्वामी
करता प्रणाम गृहस्वामी
दो सुख शांति सब को
समस्त जग तेरे बस में

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

13/12
ब्रहांड


आस्था व्यक्तिगत है और अपरिमित ,अपरिभाषित।

अंतस की आवाज़ से
शुचिता से ध्यान लगा
अन्तर्मन में दृष्टिगोचर
ब्रम्हांड को प्रतिबिंबित
करता ज्योतिपुंज
है आस्था का
तेजस्वी स्वरूप ।

सरल सहज आस्था से
प्रस्फुटित होते
सद्भाव और नव सृजन,
पा आस्था का संबल
मानव जीवन होता ,सकल
सानंद उत्थान पथ पर अग्रसर
है आस्था का यशस्वी रूप।

जब
धर्म की संकरी गलियों से
दूषित मानसिकता से
गुजरती है आस्था
तो जन्मता
डर ,अंधविश्वास
लहूलुहान हो
आत्मा पर चोट खा
समस्त विश्व में
आस्था लेती है विकृत रूप।

स्वरचित
अनिता सुधीर

दिनांक १३/१२/२०१९
शीर्षक-"अखिल/सम्पूर्ण


अखिल भारत में हो शांति
मन में है आकांक्षा यही
नाश हो जाये,अधर्मियो का
धर्म प्रकाश फैलाये।

अखिल जगत के हे परमेश्वरी
करना एक उपाय
मर्यादा में रहे सभी
सौहार्द न भूल जाये।

जैसे अखिल विश्व में एक सूर्य है
एक ही चाँद लुभाये
उसी तरह से विश्व पटल पर
भारत ज्ञान प्रकाश फैलाये।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव

दिनांक -13/12/2019
विषय-संपूर्ण/समस्त/अखिल

विधा-छंदमुक्त कविता

जीव जगत हो या प्रकृति
संपूर्ण स्वयं में कौन है ?
एक दूजे बिन आधे अधूरे
विवेक फिर भी मौन है !!

मनुष्य प्रकृति का उपभोक्ता
प्रकृति ही इसकी पोषिका
पेड़ पौधौ की तरुणाई देकर
बनती जीवन की संरक्षिका ।

नर के बिन यह नारी सूनी
बिन नारी के नर भी सूना
एक दूजे की समरसता से
इनका जीवन संपूर्ण बना ।

चाँद सूरज से नभ की शोभा
चाँदनी तारे संग पाते सम्मान
दिवस- रात्रि में होता संवाद
दिनचर्या का बढ़ जाता मान ।

हम सब के एक परम पिता
हर जीव आत्मा में उसका वास
उसकी रहमत से जीवन चलता
यही संपूर्णता का परम एहसास ।

संतोष कुमारी ‘संप्रीति ‘
स्वरचित

No comments:

Post a Comment

"अंदाज"05मई2020

ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं बिना लेखक की स्वीकृति के रचना को कहीं भी साझा नही करें   ब्लॉग संख्या :-727 Hari S...