Sunday, December 8

"आसरा/सहारा"07दिसम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-588

नाम जब भी मेरे लब पर तुम्हारा आता है।
याद लहरों को वो बिछ्डा किनारा आता है।

दिखा के तुमने कभी जो मुझसे छीना था।
याद कितना था वो हसीं सहारा आता है।

न जी सकेंगे तुम्हारे बिना कहा था तुमने।
वाह क्या खूब तुम्हें करना गुजारा आता है।

जैसे कल ही की कोई बात हो मिलना तेरा।
याद मुझको वो हर घडी नजारा आता है।

मैंने कोशिश हजारों कर के देखी है विपिन।
ख्याल फिर भी तेरा मुझको खुदारा आता है।

स्वरचित विपिन सोहल

"भावों के मोती"
7/12/2019

आसरा/सहारा
*************
मन के जज़्बात
जैसे झरते पात
मैं आंखों से कहती
वो मूक सुनता
न वो कुछ कहता
न मैं कुछ कहती
सब जान जाते
वो चमकता
आसमान पर कभी
तेज़ कभी मद्धम सा
कभी ईद के चाँद सा
दिल के नज़दीक
ठहरा सा,
आंखों के नूर सा,
मन मे रोशन सा,
ओस की बूंद सा,
हिय के सुकून सा,
मुझमे ही कहीं
रहता सा ,
कभी खोया सा ,
कभी खोकर
पाया सा
मेरी उम्मीदों को
अंगुली से
पकड़ कर
सहारा देता सा
है आसरा सबका
वो मेरा अपना
मुझमे
कभी आधा तो
कभी पूरा पूरा सा
है वो कुछ
कुछ मेरे खुदा सा
। ।

स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर

विषय सहारा,आसरा
विधा काव्य

07 दिसम्बर 2019,शनिवार

जग नियन्ता पालन करता
बड़ा सहारा है प्रभु तेरा।
भू नभ रवि चाँद सितारे
प्रिय प्रकृति का सुंदर डेरा।

पंच तत्व जीवन के रक्षक
सब कुछ जग तेरी है माया।
शस्यश्यामल भारत माता ने
सदा सहारा तुमसे पाया।

जन्म विवाह मृत्यु अधिकारी
बिन तेरे पत्ता नहीं हिलता।
जीव जंतु सब कठपुतली हैं
एक आसरा प्रभु से मिलता।

जीवन चँचल और चपल है
पता नहीं कब क्या हो जाता।
जिसे सहारा मिले ईश्वर का
वह जीवन में हर सुख पाता।

क्षण भंगुर सबका है जीवन
माया मोह बंधन में सब है।
एक सहारा परम् पिता का
कण कण में बसता रब है।

स्वरचित,मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

विषय - आसरा / सहारा .
7,12,2019.

शनिवार .

मिले प्यार का आसरा चमन गुलजार हो,
रहे खुशी ही खुशी जहां पर प्यार हो ।

हो सकेगा हमारा आबाद ये जहाँ,
सहारा विश्वास का जो अगर साथ हो।

दीन दुखी बेसहारे हैं जो भी यहाँ,
हाथ हमारा हमेशा ही उनके साथ हो।

सताना कभी अपनों को अच्छा नहीं,
आह लेकर कभी भी गुजारा न हो।

खुद्दार को होती आसरे की चाहत ही नहीं,
फर्ज को निभाने की क्या आदत ही न हो।

मतलबी इतना होना भी अच्छा नहीं,
अपने माँ बाप का तुम जो सहारा न हो।

वृक्ष, नदी, गगन, सूर्य और चंद्रमा जो यहाँ,
सहारे हैं सभी के उन्हें कोई आस न हो।

प्रेरणा हम जो लें तो कुछ बुरा तो नहीं,
सहारा बनने से अच्छा कुछ भी न हो।

स्वरचित, मधु शुक्ला.
सतना, मध्यप्रदेश.

नमन मंच
शीर्षक-- सहारा / आसरा


वो जो दूर आसमां में सितारा है
सच मानिय वो जीने का सहारा है ।।

ये जन्म तो क्या है कुछ भी नही है
मैंने उस पर सौ सौ जनम वारा है ।।

अक्सर अँधेरों में ही रहा हूँ मैं
उसको देखकर जीवन गुजारा है ।।

उसको पता भी नही इस बात का
ये मेरा दिल भी क्या बेचारा है ।।

कुछ तो आखिर खबर किया होता उसे
बस दूर का प्यार इसे गवारा है ।।

यूँ तो आस्मां में तारों की कमी न
पर इस दिल ने उसी को पुकारा है ।।

क्या कहें सहारा क्या कहलाता है
यहाँ हरेक बशर मर्जी का न्यारा है ।।

सहारा तो 'शिवम' हौंसलों का होता है
एक हौसला ही तो वो हमारा है ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 07/12/2019

7/ 12 / 2019
बिषय आसरा ,सहारा

कुटिलता का जमाना
तीर बिन निशाना
कौन किसको दे सहारा
कौन कश्ती लगाए किनारा
कोई फिरता भूखा. प्यासा
मुख पर आशा और निराशा
आसरा बन गर किसी को मुकाम
उन्हें बांह फैलाऐ रहते हैं मेरे राम
बेसहारों को तनिक भी दे सकें अनुराग
थोड़े में भी थोड़ा कर सकें हम त्याग
फिर हमें मिल जाएगा जीवन का सच्चा आनंद
सर्व सुख सौभाग्य संग सदा सच्चिदानंद
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार

दिनांक-07/12/2019
विषय-आसरा


चल उठ स्त्री बांध कफन
बचा ले स्वयं तू अपना वसन
कोई रक्षक अब नहीं आएगा
हत्या ,शोषण, बलात्कार से
कोई तुझे नहीं बचाने आयेगा
स्नेह की आस किससे लगाओगी
स्तन पर नजरें टिकाए बैठे हैं सब
दुःशासन से ना बच पाओगी।।
कैसी आस लगा रखी है तुमने
जिस्म के ठेकेदारों से
खुद की रक्षा ,खुद के सिर है
कब तक【 आसरा 】लगाओगी
समाज के इजारेदारो से
व्यूह की रचना कर चुके हैं शकुनि
स्वयं को कितना सताओगी
खुद ही अपनी शील बचा लो
बेदर्दी हथियारों से
छोड़ो संताप, उठ जा अब भोग्या
कोई नहीं अब बचाने आएगा
रावण के पहरेदारों से

हे नारी.......
तुम हो कंचन कामिनी
तुम हो अतुल्य दामिनी
तुम हो भाव भंगिनी
तुम हो राग रागिनी
तुम हो जीवन संगिनी
आगाज के साथ करो सामना
साध्य को भेदो , साधन को छोड़ो
ईश्वर भी चरणों में शीश नवायेगा
तुम ही हो लक्ष्य की अतुल साधना

स्वरचित...
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज

आसरा
कौरव-कुल भर कुलाँच रहे

पांडव निज व्यथा बाँच रहे
उफ़्फ़, दाँव पर लगा है शील
रक्षण हेतु सतत प्रयत्नशील
नतग्रीवा आहत बैठे जो धीर
कैसे कह दूँ उनको बलवीर?
कुकृत्य में किंचित दोष नहीं?
कापुरूष है! जिनमें जोश नहीं
खल की तो वृति ही है शठता
अशिष्ट, अनिष्ट, अभद्र हठता
दुःशासन नित खल भाव भरा
कबतक मोहन का हो आसरा?
सुशिष्ट, सभ्य बन जो डोलते हैं
क्योंकर वो नहीं कड़क बोलते हैं
हे! भीष्म शपथ तुम तोड़ दो
नराधम का गला मरोड़ दो
हे! प्रवीर दिग्गज गुरु द्रोण
बैठे क्यों तुम साधकर मौन?
तबतक लुंचित होवेगी लाज
जबतक मौन-व्रत-लीन समाज
हर होंठ सजे मुरली की तान
कलंक-डंक हो समूल निष्प्राण
आँचल के दूध का मान करो
उठो, आसरा बनो, परित्राण करो
-©नवल किशोर सिंह
07-12-2019
स्वरचित
Damyanti Damyanti 

युग युतांर से बदलती परिभाषाऐ
शब्द हो या सोच बदलते परिवेश मे |शांति दूत बन भारत ने दिया आसरा सबको |

आये विदेशी कर गये छलनी हमे मर्यादित रहे |
आज हमारे ही देश मे हम को आसरा नही |
देदे निराश्रित कोई आसरा तो सुन्दर हे |
पर करे उसी का शोषण कैसा जमाना |
बालक मजदूर नारी वृद्धको नही मिल रहा आसरा |
आज राम कृष्ण ,की देव धरा के हाल देख रोती सारी खुदाई हे |
नराजा न प्रजा दोनो नहीऐसे
देदे किसी को आसरा,बने किसी के सहारे |
लूट मची हे सब तरफ ,कैसा सहारा
जो लोग ढूढ़ते आशियाना सहारे के लिऐ |
दख अंदर का नजारा हतप्रद होरह जाते |
आस लगाये बैठे माँ बाप बेटे बनेगे
सहारे की लकडी हमारे सब ले उनसे छोड देते |
यह विडंबनाऐ हे कलयुग विस्मित नही हूँ |
कह गये कृष्ण कलयुग मे देव कम
धरा पर असुर अधिक होगे मची रहेगी धमाल चहू ओर
अराजकता की राजा होगा भ्रष्टाचार मे लिप्त आँख होकर भी अंधा |
ये ही धृतराष्ट्र व कसं आदि लो आगये |
कहा मिलेगा आसरा |
स्वरचित_दमयंती मिश्रा

दिनांक : 07.12.2019
वार : शनिवार

आज का विषय :
" आसरा / सहारा
विधा : काव्य

गीत

मेरा एक सहारा माँ तू ,
खुशियाँ तेरे साथ है !!

आँखों में यादें पसरी ,
काँधों पर दुख की गठरी !
हिम्मत खूब जगाई माँ ,
बाधाएं सारी ठिठुरी !
दिन बदले तेरे खातिर ,
मीठी सी सौगात है !!

सिखलाया कैसे जीना ,
गरल , सुधा कैसे पीना !
तार तार रिश्तों को भी ,
कैसे सी सी कर जीना !
खोयी खुशबू को पा कर ,
बदल दिये हालात हैं !!

धूप छाँह का खेला हो ,
या तारों का मेला हो !
खुशियों की हो भीड़ जुटी ,
या मन कहीं अकेला हो !
तेरे आँचल में सिमटी ,
सपनों की बारात है !!

पीर हमारी तू जाने ,
सुख दुख के क्या पैमाने !
मुस्काते आनन देखे ,
भाव लिये बस अनजाने !
खुशहाली की हवा करे ,
पुलक पुलक से गात है !!

अश्रु नहीं छलकाना अब ,
कल को नहीं बुलाना अब !
भूल सभी बिसुरा देना ,
हमको नहीं रुलाना अब !
पल का साथ नहीं छूटे ,
तू शब ए महताब है !!

रचना स्वरचित एवं पूर्णतया
मौलिक है
रचियता : बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश

7/12/2019
विषय-आसरा/सहारा


हे बालिके!
न खोजो तुम कोई मसीहा
स्वयं बनो स्वयं का सहारा
प्रचंड अवतार धर बन जाओ
तुम महिषासुर मर्दिनी
'कलम की धार' तुम्हें समर्पित कर
लिखूं आज एक नई रामायणी
न ताको किसी का भी आसरा
है तुमसे जिनका अस्तित्व
तुच्छ मनुज हुआ घोर ब बावरा
उठा लो तीर तलवार आत्मरक्षा में
बहा दो फिर से,जो बहा करती थी
हमारे समाज की जाज्वल्य धारा।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित
तिथि -7/22/2019/शनिवार
विषय _*आसरा/सहारा*

विधा॒॒॒ _काव्य

सिर्फ एक सहारा हमें ईश का
नहीं कोई दूसरा मिलता है।
हमने सोंपा जीवन प्रभु आसरे
यहां पत्ता कभी नहीं हिलता है।

इधर सब झूठे हैं रिश्ते नाते
और झूठा ये संसारी प्यार।
ईश बिना कुछ नहीं हो पाएगा
सपना इसी दुनिया से उद्धार।

नहीं औकात हमारी यहां पर
दयानिधान की दया पर जिंदा।
रहे आसरा इस इसका हम पर
हम केवल सभी मेहर परिंदा।

इस भौतिकता में झूम रहे हैं।
सब रस विलास में डूब रहे हैं।
वरदहस्त परमात्मा का उठ जाए
फिर गिरे फर्श को चूम रहे हैं।

स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश
जय श्रीराम रामजी

नमन भावों के मोती
दि. - 07.12.19
विषय - #आसरा
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित...
===============

चलो आओ
बनें हम आसरा
उसका जो...
आसरा चाहता है ...

जरा चलकर तो देखें
क्या कमी है
आँखों में उसके
क्योंकर नमी है..
आओ जरा चलें
कोशिश करते हैं
उसकी कमियों को
दूर करने की
शायद हमारा
ये आसरा उसे
हँसा दे...
कुछ समय के लिये ही सही
उसका गम भुला दे..

आओ प्रयास करें
अच्छाई का ....
करें अभ्यास
आसरा दें... आसरा बनें
क्योंकि...
इंसानियत का
यही तो एक रूप है ...

पराया दर्द
अपनाना और
रोते हुए को हँसाना
मानवीयता का सबसे
अहम पहलू....
आसरा बनकर
किसी के काम आना...
अपने तो अपने
परायों के भी ..

यही है सच्ची उपासना
कर्म पथ की साधना..
और..
मानव की पहचान है
इसमें ही तो..
हमारी शान है...
===============
स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी - सिवनी म.प्र.

विषय - आसरा/सहारा
दिनांक-७-१२-२०१९
मोहब्बत कर,आसरा दिल में दिया था।
बड़ी मुश्किल से,वो दिल पर छाया था।।

सहारा उसने,अपने घर में उसे दिया था।
उसकी औकात से,रूबरू कराया था।।

गरीब होना गुनाह,अब उसका हो गया था।
बात-बात पर उसे,सदा ही सताया गया था।।

किससे करे गिला,अपनों ने दूर किया था।
बेचा बाप ने उसे,आज उसे ये बताया था।।

प्यार नहीं फंसाने का,खेल वो खेला था।
नादानी ने उसे,ये कैसा धोखा दिया था ।।

किससे करे शिकवा,कोई ना उसका था।
हर दर्द,अपनों से खामोश रह सहा था ।।

ओर बेआबरु करता,इससे तो अच्छा था।
नौकर बना उसको,सहारा तो दिया था।।

दिल से खेलना अब,फैशन हो गया था ।
सहारा दे उसे,दिल से बे सहारा किया था।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

7/12/19
विषय-आसरा


दामन में चांद

अंधेरों से डर कैसा अब,
मैने चाँद थामा दामन में
चांदनी बिखरी मेरे आंगन में
मैने चाँद थामा दामन में ।

उजाले लेने बसेरा आये
मेरे द्वारे, नयनों में डेरा डाला
पलकें मूंद रखा अंखियन में,
मैने चाँद थामा दामन में ।

हर शाख पर डोलत-डोलत
थका हारा सा चन्द्रमा
आया मुझसे लेने"आसरा",
मैने चाँद थामा दामन में ।

उर्मियां चंचल चपल सी
डोलती पुर और उपवन में
घबराई ढूंढती शशि को आई,
मैने चाँद थामा दामन में।

अमावस्या का ना रहा
नामोनिशान अब जीवन में
किरणों का वास मुझ गृह में
मैने चाँद थामा दामन में ।

स्वरचित

कुसुम कोठारी
विषय-आसरा/सहारा
विधा-छंद मुक्त

दिनांकः 7/12/2019
शनिवार

डूबते को मिले सहारा,
वह बेचारा बच जाता ।
संबल उसको मिले यदि,
वह उस पार चला जाता ।।

सहारे की आस न कर,
खुद अपने प्रयास कर।
मंजिल मिले हौसले से,
पुरजोर तू मेहनत कर ।।

वृद्ध अवस्था मात पिता की,
अपनी औलाद बने सहारा ।
नालायक औलाद आज की,
करती है दूर किनारा ।।

जो होते निर्बल कमजोर,
इसकी उन्हें ज़रूरत होती ।
जो समर्थ शक्ति वान हैं,
उनको दरकार नहीं होती ।।

जो अटक रहे किनारे पर,
नैया पार उनकी हो जाती।
उन्हें बडा संबल मिल जाता ,
मुराद पूरी उनकी हो जाती

स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर निर्भय

दिन :- शनिवार
दिनांक :- 07/12/2019

शीर्षक :- आसरा/सहारा

टूटे आसरे के सहारे...
कब तक ढोएं जड़वत तन ये..
हर आसरे हुए किनारे..
विरहिणी बन तड़पे कबतक मन ये..
जिसकी आस में...
कंकर-कंकर शंकर माना..
उस सहारे ने ही...
आज कर दिया बेगाना..
इन बूढ़ी आँखों में..
कैसे-कैसे सजाए थे सपने..
खूँ तक सुख गया अब तो..
ऐसे जार-जार हुए हर सपने..
धूप जाड़ा सब सहा खातिर जिसके..
आँच न आने दी कभी तन पर..
सर्दियों में बनी कंबल...
वर्षा में छाई बन छाता तन पर..
काटकर पेट स्वयं का..
एक-एक कौर खिलाया जिसने..
तरस रही घुँट भर पानी को..
रस वक्षःस्थल का पिलाया जिसने..
आसरे के सहारे...
फिर ऐसे कोई टूटे न...
कुछ भी हो जहां में..
पर बेटा किसी का रूठे न..

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश

सहारा / आसरा

जीवन सुगम
बन गया
जब मिला
आसरा ईश का

बनो सहारा
जरूरमंदों के
साथ उन्हें
पाओगे
मिलेंगी दुआएं
हर कदम
जीवन सफल
पाओगे

देते हैं
माता-पिता
बच्चों को
खुशी खुशी
सहारा
ढूंढते हैं वही
माता-पिता
बुढ़ापे में
अपनों से
आसरा

बस रखो भरोसा
ईश्वर पर
वहीं है सहारा
हम सब के
हर मुश्किल
हर संकट में
कब कहाँ
थाम हाथ
दे देते आसरा
जानता नहीँ
कोई

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

दिनांकः-7-12-2819

विषयः- आसरा /सहारा

रुक नहीं पथिक मंज़िल है तेरी तेरा घोंसला।
कुछ दूरी पर है मंज़िल तेरी हार न हौसला।।

वह नीड़ ही तो है प्यारे तेरा अकेला ठिकाना।
सुरक्षित रहेगा वहाँ नहीं कहीं और तुझे जाना।।

घर पर तेरी पत्नी और बच्चे कर रहे इन्तज़ार।
तेरी एक झलक पाने को रहते हैं वह बेकरार ।।

है वही तो तेरा बहुत सुन्दर सा एकमात्र सहारा।
सुन्दर सा है घर तेरा, और वही एकमात्र आसरा।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
"व्थथित हृदय मुरादाबादी"
स्वरचित

दिनांक_७/१२/२०१९
शीर्षक-"आसरा/सहारा


दुर्बल जन का बने सहारा
मन निर्मल से जो करें पुकार।
मनोबल न टूटे किसी का
मनोयोग से करें प्रयास।
कल किसने देखा जग में
बने सहारा एक दूजे के संग में।
अपेक्षा है गर किसी को आपसे
आस टूटे ना कभी किसी का।
हम किसी के सहारा बने तो
प्रभु से मिले हमें सहारा।
इस धरा पर सबको चाहिए
सदा एक दूजे का सहारा।


स्वरचित आरती श्रीवास्तव.

07/12/19
आसरा

***
जीवन का ताना बाना,सुख दुख का आना जाना।
रो रो कर दिन क्यों काटे,गम हँस कर सहते जाना ।।
आती है जब कठिनाई , हो जाता जीवन खारा ।
थामा है हाथ बढाके, देते हो सदा सहारा ।।

जग के पालनहारे तुम ,हम सबके रखवारे तुम।
प्रेम सुमन अर्पित करते ,दूर करो अंधियारे तुम।।
नाव फँसी तूफानों में,अब मिलता नहीं किनारा।
अन्तर्मन में दीप जला ,भर दो मन में उजियारा।।

अनिता सुधीर

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