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ब्लॉग संख्या :-596
विषय स्वतन्त्र लेखन,अपने
विधा काव्य
15 दिसम्बर रविवार,2019
जो अपने थे आज नहीं हैं
सपनों में वे अब भी आते।
स्नेह विमल दिया था उनने
गीत उन्ही के दिल से गाते।
क्या नहीं किया था उनने
उज्ज्वल भविष्य हमें देने में।
मात पिता श्री गुरु नमन है
ऊर्जा मिली प्रिय कहने में।
अपने तो अपने होते नित
नहीं आज, पर याद सताती।
लाखों दर्द सदा सहन कर
जीवन ज्योति जलाई बाती।
देव तुल्य थे जनक हमारे
माँ करुणा की प्रिय मूरत।
अलौकिक शक्ति भक्ति थी
कैसे भूलूँ दिव्य मय सूरत?
बचपन कभी लौट नहीं आता
लाखों त्रुटियां की थी हमने।
चित्र विचित्र सजीव हो उठते
चँचल बचपन के क्या कहने?
दो आँसू दे सकते उनको
सद संस्कार दिये नित उनने।
सेवा अवसर दे नहीं पाये
सब कुछ छीन लिया हमने।
धन्य धन्य प्रिय मात पिता थे
मिलकर शीश झुकाते तुमको।
सब कुछ दिया हम दे न सके
फिर आशीष दो प्रभु हमको।
स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
विधा काव्य
15 दिसम्बर रविवार,2019
जो अपने थे आज नहीं हैं
सपनों में वे अब भी आते।
स्नेह विमल दिया था उनने
गीत उन्ही के दिल से गाते।
क्या नहीं किया था उनने
उज्ज्वल भविष्य हमें देने में।
मात पिता श्री गुरु नमन है
ऊर्जा मिली प्रिय कहने में।
अपने तो अपने होते नित
नहीं आज, पर याद सताती।
लाखों दर्द सदा सहन कर
जीवन ज्योति जलाई बाती।
देव तुल्य थे जनक हमारे
माँ करुणा की प्रिय मूरत।
अलौकिक शक्ति भक्ति थी
कैसे भूलूँ दिव्य मय सूरत?
बचपन कभी लौट नहीं आता
लाखों त्रुटियां की थी हमने।
चित्र विचित्र सजीव हो उठते
चँचल बचपन के क्या कहने?
दो आँसू दे सकते उनको
सद संस्कार दिये नित उनने।
सेवा अवसर दे नहीं पाये
सब कुछ छीन लिया हमने।
धन्य धन्य प्रिय मात पिता थे
मिलकर शीश झुकाते तुमको।
सब कुछ दिया हम दे न सके
फिर आशीष दो प्रभु हमको।
स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
15 /12/2019
बिषय,, स्वतंत्र लेखन
आज मेरी जिंदगी से मुलाकात हो गई
नजरों ही नजरों में कुछ ऐसी बात हो गई
देखते ही फूट पड़े बाढ़ से सैलाब सारे
बहने लगे संग में अरमां सारे हमारे
पल क्षण मेरे लिए सौगात हो गई।।
शिकवा गिले में वक्त बीत जाएगा
खाली घड़ा सा दिल फिर रीत जाएगा
लब खुल न पाए आंसुओं की बरसात हो गई ।।
आज जो मिले बड़े नसीब से
देखा था जिन्हें कभी बहुत करीब से
मिलने मिलाने की फिर शुरुआत हो गई ।।
पकड़ूं हाथ फिर छुड़ा न पाऐंगे
जन्मजन्मांतर के बंधन कैसे टूट जाऐंगे
आज घर आंगन में सितारों की बारात हो गई
वो और कोई नहीं मेरे कृष्ण कन्हैया हैं
मेरे हृदय के स्वामी बंशी बजैया हैं
आज मेरे मन की पूरी मुराद हो गई।।
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
बिषय,, स्वतंत्र लेखन
आज मेरी जिंदगी से मुलाकात हो गई
नजरों ही नजरों में कुछ ऐसी बात हो गई
देखते ही फूट पड़े बाढ़ से सैलाब सारे
बहने लगे संग में अरमां सारे हमारे
पल क्षण मेरे लिए सौगात हो गई।।
शिकवा गिले में वक्त बीत जाएगा
खाली घड़ा सा दिल फिर रीत जाएगा
लब खुल न पाए आंसुओं की बरसात हो गई ।।
आज जो मिले बड़े नसीब से
देखा था जिन्हें कभी बहुत करीब से
मिलने मिलाने की फिर शुरुआत हो गई ।।
पकड़ूं हाथ फिर छुड़ा न पाऐंगे
जन्मजन्मांतर के बंधन कैसे टूट जाऐंगे
आज घर आंगन में सितारों की बारात हो गई
वो और कोई नहीं मेरे कृष्ण कन्हैया हैं
मेरे हृदय के स्वामी बंशी बजैया हैं
आज मेरे मन की पूरी मुराद हो गई।।
स्वरचित,, सुषमा ब्यौहार
जब रोम रोम में हो स्पन्दन
भाव भाव में हो केवल वन्दन
नेत्र अविरल बहें हो अभिनन्दन
उसके सामिप्य का महके चन्दन।
जब पग में हो स्वतः थिरकन
जब लगे कोमल हर धड़कन
जब प्यारी लगने लगे तड़पन
स्मृति भी उतरे छन छन छन।
जब शब्दों का कोई अर्थ न हो
भाषा की भी कोई पर्त न हो
उत्थान हो पर गर्त न हो
कोई भी क्षण फिर व्यर्थ न हो।
बस एक ध्यान बस एक ध्यान
बस मुरली की हो मुग्ध तान
सुनते रहें इसे अविरल कान
और सब हो जाये फिर निष्प्रान।
क्या दे सकते हो यह आशीष
झुका है तुम्हारे आगे शीश
यह मेरी है अन्तिम इच्छा
स्वीकारोगे क्या इसको ईश।
अहम् नमामि अहम् नमामि
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
अन्तरमन से निकली वाणी
करलो प्रभु मेरा ग्रहणपाणी।
भाव भाव में हो केवल वन्दन
नेत्र अविरल बहें हो अभिनन्दन
उसके सामिप्य का महके चन्दन।
जब पग में हो स्वतः थिरकन
जब लगे कोमल हर धड़कन
जब प्यारी लगने लगे तड़पन
स्मृति भी उतरे छन छन छन।
जब शब्दों का कोई अर्थ न हो
भाषा की भी कोई पर्त न हो
उत्थान हो पर गर्त न हो
कोई भी क्षण फिर व्यर्थ न हो।
बस एक ध्यान बस एक ध्यान
बस मुरली की हो मुग्ध तान
सुनते रहें इसे अविरल कान
और सब हो जाये फिर निष्प्रान।
क्या दे सकते हो यह आशीष
झुका है तुम्हारे आगे शीश
यह मेरी है अन्तिम इच्छा
स्वीकारोगे क्या इसको ईश।
अहम् नमामि अहम् नमामि
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
अन्तरमन से निकली वाणी
करलो प्रभु मेरा ग्रहणपाणी।
😔।। दीवानगी ।।😔दीवाने ऐसे हुए खुद का न होश
कभी डांटती पत्नि कभी डांटता बोस
बेटे को भी रहे शिकायत फोन की
पता न पापा को दीवानगी कौन की ।।
मैं कहूँ दीवानगी नही जुनून है
बरसों कि मायूसी को मिला सुकून है ।।
कलम ने भी साथ दिया उससे मेल है
कवितायें लिखना नही हँसी खेल है ।।
रात रात भर नींद ये गँवाना होती
और संग अपनी आँख रूलाना होती ।।
तब कहीं भरती है भावों की गगरी
प्रेम की गली होती है बड़ी सकरी ।।
क्या-क्या मैं खोऊँ और क्या-क्या पाऊँ
रात और दिन असमंजस में कहलाऊँ ।।
टेलीफोन नही अब मैं कर पाता हूँ
कुछ फर्ज़ से भी बंचित कहलाता हूँ ।।
माफ करना कुर्बानी में आप भी हैं
नही समय दे पाता पश्चाताप भी हैं ।।
रूह की ही कुछ कहन है ये करता हूँ
अपने मकसद में मैं रंग भरता हूँ ।।
बड़े दिनों में मनमाफिक कुछ मिला है
उसी का ही यह 'शिवम' जादू चला है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 15/12/2019
कभी डांटती पत्नि कभी डांटता बोस
बेटे को भी रहे शिकायत फोन की
पता न पापा को दीवानगी कौन की ।।
मैं कहूँ दीवानगी नही जुनून है
बरसों कि मायूसी को मिला सुकून है ।।
कलम ने भी साथ दिया उससे मेल है
कवितायें लिखना नही हँसी खेल है ।।
रात रात भर नींद ये गँवाना होती
और संग अपनी आँख रूलाना होती ।।
तब कहीं भरती है भावों की गगरी
प्रेम की गली होती है बड़ी सकरी ।।
क्या-क्या मैं खोऊँ और क्या-क्या पाऊँ
रात और दिन असमंजस में कहलाऊँ ।।
टेलीफोन नही अब मैं कर पाता हूँ
कुछ फर्ज़ से भी बंचित कहलाता हूँ ।।
माफ करना कुर्बानी में आप भी हैं
नही समय दे पाता पश्चाताप भी हैं ।।
रूह की ही कुछ कहन है ये करता हूँ
अपने मकसद में मैं रंग भरता हूँ ।।
बड़े दिनों में मनमाफिक कुछ मिला है
उसी का ही यह 'शिवम' जादू चला है ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 15/12/2019
विषय--स्वतंत्र लेखन
विधा--गीत
----------------------------
टूटे पँखो को ले करके,
कैसे जीवन जीना हो।
घुट-घुटकर नहीं मरना हो,
हँसकर जीवन जीना हो।
टूट के बिखरे सपने जो,
इस दिल पे आघात लगा।
अपना बना के साथ छोड़,
वो साथी बेकार लगा।
रोकर जीवन अब न गुजरे,
दुख को परे झटकना हो,
टूटे पँखों को लेकर के,
कैसे जीवन जीना हो।
काँटे चुभे पथ पर कितने,
कदम नहीं रुकने पाए।
अँधेरा भरे जीवन में,
कभी तो उजाला आए।
मिले कोई साथी ऐसा,
खुशियों भरा आगाज हो।
टूटे पँखो को ले करके,
कैसे जीवन जीना हो।
दुख से कभी भी घबराकर ,
मार्ग भटक न जाना है।
रात के बाद भोर होगी,
सपने चुनते जाना है।
सूने मन और जीवन में,
खुशियों की ही बहार हो।
टूटे पँखों को ले करके,
कैसे जीवन जीना हो।।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
विधा--गीत
----------------------------
टूटे पँखो को ले करके,
कैसे जीवन जीना हो।
घुट-घुटकर नहीं मरना हो,
हँसकर जीवन जीना हो।
टूट के बिखरे सपने जो,
इस दिल पे आघात लगा।
अपना बना के साथ छोड़,
वो साथी बेकार लगा।
रोकर जीवन अब न गुजरे,
दुख को परे झटकना हो,
टूटे पँखों को लेकर के,
कैसे जीवन जीना हो।
काँटे चुभे पथ पर कितने,
कदम नहीं रुकने पाए।
अँधेरा भरे जीवन में,
कभी तो उजाला आए।
मिले कोई साथी ऐसा,
खुशियों भरा आगाज हो।
टूटे पँखो को ले करके,
कैसे जीवन जीना हो।
दुख से कभी भी घबराकर ,
मार्ग भटक न जाना है।
रात के बाद भोर होगी,
सपने चुनते जाना है।
सूने मन और जीवन में,
खुशियों की ही बहार हो।
टूटे पँखों को ले करके,
कैसे जीवन जीना हो।।
***अनुराधा चौहान***स्वरचित
विषय - ह्रदय इच्छा
*******************
कुछ बुनता हूँ मै बातो में
अब चलता हूँ जज्बातों में
मरने की चाह खो डाली मै
जीने की राह चुनता हूँ …..
हर रोज युही कुछ बुनता हूँ
खुद में ही खुद को चुनता हूँ
कही घमंड अभी ना पा जाऊ
तभी हार बहुत मै गिनता हूँ
की चल कर के राहो पे राही
घाव बहुत पा जाते है
जख्मो के इस खेल खेल में
कुछ पत्थर बिक जाते है
जाने कैसे इनमे ही तो
हीरे भी दिख जाते है
मतलब की दीवारो में मै
संगमरमर सा बन आता हूँ
की सपनो के सौदागर को मै
खुशियो सा तब दिख पाता हूँ
हर रोज युही मै लूट जाता हूँ
इसमे ही जीवन चाहता हूँ
की बाग़ चमक कर फूलो वाला
मालाओ में पीर जाता हूँ
युही तब घर घर में जाकर
गीत गुणों के गाता हूँ ….
कुछ बुनता हूँ मै बातो में
अब चलता हूँ जज्बातों में
डर न कुछ भी खो जाने से
सुकून किसी को मिल जाने पे …..
ना रुको टूटे काँच से भी
अब चलू एक आश से ही मै …...
-रश्मि मलिक (हकीकत मलिका)
*******************
कुछ बुनता हूँ मै बातो में
अब चलता हूँ जज्बातों में
मरने की चाह खो डाली मै
जीने की राह चुनता हूँ …..
हर रोज युही कुछ बुनता हूँ
खुद में ही खुद को चुनता हूँ
कही घमंड अभी ना पा जाऊ
तभी हार बहुत मै गिनता हूँ
की चल कर के राहो पे राही
घाव बहुत पा जाते है
जख्मो के इस खेल खेल में
कुछ पत्थर बिक जाते है
जाने कैसे इनमे ही तो
हीरे भी दिख जाते है
मतलब की दीवारो में मै
संगमरमर सा बन आता हूँ
की सपनो के सौदागर को मै
खुशियो सा तब दिख पाता हूँ
हर रोज युही मै लूट जाता हूँ
इसमे ही जीवन चाहता हूँ
की बाग़ चमक कर फूलो वाला
मालाओ में पीर जाता हूँ
युही तब घर घर में जाकर
गीत गुणों के गाता हूँ ….
कुछ बुनता हूँ मै बातो में
अब चलता हूँ जज्बातों में
डर न कुछ भी खो जाने से
सुकून किसी को मिल जाने पे …..
ना रुको टूटे काँच से भी
अब चलू एक आश से ही मै …...
-रश्मि मलिक (हकीकत मलिका)
15/12/2019
स्वतंत्र लेखन
************
खंडहर
******
खंडहर खंडहर था मन
रेत के बवण्डर थे इसमें
समुंदर के तूफ़ान इसमें
न जाने कब वो आया
पास थाम मेरी उंगली
ले चला साथ ,रास्ते थे
न जाने कितनी सकरी
गलियों से भरे ,मन हो
रहा था उद्देलित लेकिन
वो शांत मुझे देख रहा था
कदम कदम मिलाओ जैसे
ये कह रहा था, आँखों में
उसकी अजब सी ख़ामोशी
चमक थी जिसमे मैं खोती
जा रही थी बस चलती जा
रही थी,अचानक आंख खुली
अपने आपको अकेला पाया
चारों तरफ नज़र दौड़ाई वो
मुस्कुरा रहा था, बोला मैं
कहीं नहीं जाता हर वक़्त
साथ होता हूं हर एक के
अंतर्मन में जाओ अपने मे
पा लो मुझे क्योकि खंडहर
मन जो ध्वंस हो गया ,ध्वंस
से ही निर्माण है,आपने आपको
पाना ही मुक्त हो जाना है ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
स्वतंत्र लेखन
************
खंडहर
******
खंडहर खंडहर था मन
रेत के बवण्डर थे इसमें
समुंदर के तूफ़ान इसमें
न जाने कब वो आया
पास थाम मेरी उंगली
ले चला साथ ,रास्ते थे
न जाने कितनी सकरी
गलियों से भरे ,मन हो
रहा था उद्देलित लेकिन
वो शांत मुझे देख रहा था
कदम कदम मिलाओ जैसे
ये कह रहा था, आँखों में
उसकी अजब सी ख़ामोशी
चमक थी जिसमे मैं खोती
जा रही थी बस चलती जा
रही थी,अचानक आंख खुली
अपने आपको अकेला पाया
चारों तरफ नज़र दौड़ाई वो
मुस्कुरा रहा था, बोला मैं
कहीं नहीं जाता हर वक़्त
साथ होता हूं हर एक के
अंतर्मन में जाओ अपने मे
पा लो मुझे क्योकि खंडहर
मन जो ध्वंस हो गया ,ध्वंस
से ही निर्माण है,आपने आपको
पाना ही मुक्त हो जाना है ।।।
स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर
15/12/19
जब खुद करने लगा मैं कमाई।
माँ बाप की कीमत समझ आई।
घिसे जूतों की जबदेखी सिलाई।
ब्रांडेड जूतों की कीमत समझ आई।
फटे कपडो की पुनः देखी तुरपाई।
अपनी कमीज की कीमत समझ आई।
टूटी साइकिल ही जीवन भर भाई।
अपनी बाइक की कीमत समझ आई।
खुद चले बसों में धक्के खाकर।
हवाई जहाज की कीमत समझ आई।
सादा भोजन ही मुझको भाएभाई।
हमे हमेशा जवानी की कीमत याद दिलाई।
आज जब बच्चों की देखी पढ़ाई।
सच पापा की असली कीमत याद आई।
स्वरचित
मीना तिवारी
जब खुद करने लगा मैं कमाई।
माँ बाप की कीमत समझ आई।
घिसे जूतों की जबदेखी सिलाई।
ब्रांडेड जूतों की कीमत समझ आई।
फटे कपडो की पुनः देखी तुरपाई।
अपनी कमीज की कीमत समझ आई।
टूटी साइकिल ही जीवन भर भाई।
अपनी बाइक की कीमत समझ आई।
खुद चले बसों में धक्के खाकर।
हवाई जहाज की कीमत समझ आई।
सादा भोजन ही मुझको भाएभाई।
हमे हमेशा जवानी की कीमत याद दिलाई।
आज जब बच्चों की देखी पढ़ाई।
सच पापा की असली कीमत याद आई।
स्वरचित
मीना तिवारी
विषय_ मन पंसद लेखन |
बावरो मन मेरा हरा इधर उधर भटक |
जबसे सपने मे देखी सूरत नटखट की |
सावली सलोनी छबि लटकत घुघराली अलके |
श्याम मुख लगे खिला नील कमल
अलके लगत भ्रमर झूम रहे |
हंस्त देखी द्वेदंती मुख माही
लाल होठं मध्य हीरे की चमक समाई |
पीत पीताबंरी सोहे नीलकटि काछनी |
पग पैजंनी सोहे चलत उठत गिरत
बजती छम छम अचरज मन न समाये |
घुटुरु चल धरनी पर दोपग धरत गिर जाई |
कभी शीशे मे निरख छबि स्व की मुदित हुई जाई |
अँचरा गहे नन्हे हाथन से छोडे नाही
रूठत खीजत किलकत हंसत
करत अंनत लीला श्याम सलोनो |देखत माँ यशोदा फूली न समाये |
धन्य भाग वाके अखिल भुवन पति
नव नव लीला करे अंगना माही |
सपने सब दिखाय गयो मन भरमा गयो नटखट कान्ह मोहे पीर दे गयो
पीर ऐसी जलत हूँ देखन को वा छबि तरस रही अब दिन रैना |
अब न तरसवो लल्ला मोहे
आओ मेरी गोद माही |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
बावरो मन मेरा हरा इधर उधर भटक |
जबसे सपने मे देखी सूरत नटखट की |
सावली सलोनी छबि लटकत घुघराली अलके |
श्याम मुख लगे खिला नील कमल
अलके लगत भ्रमर झूम रहे |
हंस्त देखी द्वेदंती मुख माही
लाल होठं मध्य हीरे की चमक समाई |
पीत पीताबंरी सोहे नीलकटि काछनी |
पग पैजंनी सोहे चलत उठत गिरत
बजती छम छम अचरज मन न समाये |
घुटुरु चल धरनी पर दोपग धरत गिर जाई |
कभी शीशे मे निरख छबि स्व की मुदित हुई जाई |
अँचरा गहे नन्हे हाथन से छोडे नाही
रूठत खीजत किलकत हंसत
करत अंनत लीला श्याम सलोनो |देखत माँ यशोदा फूली न समाये |
धन्य भाग वाके अखिल भुवन पति
नव नव लीला करे अंगना माही |
सपने सब दिखाय गयो मन भरमा गयो नटखट कान्ह मोहे पीर दे गयो
पीर ऐसी जलत हूँ देखन को वा छबि तरस रही अब दिन रैना |
अब न तरसवो लल्ला मोहे
आओ मेरी गोद माही |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा
दिनांक १४/१२/२०१९
स्वतंत्र_लेखन
कुंडलियां_नारी
नारी जग की जान है,है वसुधा की शान
मूरत ममता की सदा,सीरत की ये खान
सीरत की ये खान,बने ये घर की रानी
निर्बल इसको मान,करता जग मनमानी
इज्जत इनकी करें,खुशी की चाहत भारी
सृष्टि की ये जननी, उपेक्षित रहे न नारी।
पानी
पानी बूँद अमोल है,समझो इसको मीत
इसके बिना जीवन नही,जानो जग की रीत
जाने जग की रीत,ये जो मिला उपहार
जायेगा ना ये व्यर्थ,जल ही जीवन आधार
जल बिना अन्न नही,सुनो मानव ज्ञानी
कहे कवि समुझाये,बेकाम न जाये पानी।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
स्वतंत्र_लेखन
कुंडलियां_नारी
नारी जग की जान है,है वसुधा की शान
मूरत ममता की सदा,सीरत की ये खान
सीरत की ये खान,बने ये घर की रानी
निर्बल इसको मान,करता जग मनमानी
इज्जत इनकी करें,खुशी की चाहत भारी
सृष्टि की ये जननी, उपेक्षित रहे न नारी।
पानी
पानी बूँद अमोल है,समझो इसको मीत
इसके बिना जीवन नही,जानो जग की रीत
जाने जग की रीत,ये जो मिला उपहार
जायेगा ना ये व्यर्थ,जल ही जीवन आधार
जल बिना अन्न नही,सुनो मानव ज्ञानी
कहे कवि समुझाये,बेकाम न जाये पानी।
स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
विषय-स्वतंत्र लेखन
दिनांक 15 -12- 2019दिमाग को कचरे का डिब्बा,सबने बना दिया।
क्रोध लोभ मोह माया अंहकार,इसमे भर दिया।।
इन सबने मिलकर,जीवन को नर्क बना दिया।
अपने अमूल्य जीवन को,कोडी का बना दिया।।
अंहकारी रावण को भी,पथभ्रष्ट उसने किया।
दिया विनाश को निमंत्रण,सीता का हरण किया।।
जलती लकड़ी देख कर,भी नहीं विचार किया।
तन की होनी यही गति मनु अंहकार क्यों किया।।
अंहकार दान कर,जीवन को महान बना दिया।
गुमान सुरूर सिर सवार,उन सबको हटा दिया।।
प्रेम दिया ऐसा जला,अंहकार को भुला दिया।
मैं बहुत खुश हूँ,तुने मुझे अपनों से मिला दिया।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
स्वरचित
दिनांक 15 -12- 2019दिमाग को कचरे का डिब्बा,सबने बना दिया।
क्रोध लोभ मोह माया अंहकार,इसमे भर दिया।।
इन सबने मिलकर,जीवन को नर्क बना दिया।
अपने अमूल्य जीवन को,कोडी का बना दिया।।
अंहकारी रावण को भी,पथभ्रष्ट उसने किया।
दिया विनाश को निमंत्रण,सीता का हरण किया।।
जलती लकड़ी देख कर,भी नहीं विचार किया।
तन की होनी यही गति मनु अंहकार क्यों किया।।
अंहकार दान कर,जीवन को महान बना दिया।
गुमान सुरूर सिर सवार,उन सबको हटा दिया।।
प्रेम दिया ऐसा जला,अंहकार को भुला दिया।
मैं बहुत खुश हूँ,तुने मुझे अपनों से मिला दिया।।
वीणा वैष्णव
कांकरोली
स्वरचित
15-12-2019
कह-मुकरी-सपना
1
चोरी से रैना में आवे
वा मोरे मन को बहलावे
वा का आना लागे अपना
का सखि साजन? ना सखि सपना
2
मीठी नींदहि वो आ जावे
सच्ची झूठी कहि फुसलावे
खुली आँख तो पड़े तड़पना
ए सखि साजन? ना सखि सपना
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
कह-मुकरी-सपना
1
चोरी से रैना में आवे
वा मोरे मन को बहलावे
वा का आना लागे अपना
का सखि साजन? ना सखि सपना
2
मीठी नींदहि वो आ जावे
सच्ची झूठी कहि फुसलावे
खुली आँख तो पड़े तड़पना
ए सखि साजन? ना सखि सपना
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
✍🏻अनमोल समय✍🏻अनमोल समय नही खोना है।
काम के वक्त नही सोना है।।
इस जीवन की क़दर करो सब।
ये माटी नहीं खरा सोना है।।
उलझे रहते हैं मोबाइल में सब।
कहे वक्त नहीं है का रोना है।।
फ़सल काटनी है मन माफ़िक।
तो बीज वही फिर तुझे बोना है।।
ठान लिया गर मंज़िल पाने का।
तो हर इक रस्ता लगे बौना है।।
छोड़ दे डोर तूं ऊपर वाले पर।
फ़िर जो चाहेगा वही होना है।।
हो जाएगी "ऐश" तेरी बल्ले बल्ले।
और दुनियां कहे ये जादू टोना है।।
©ऐश...(स्वरचित)15/12/2019✍🏻
अश्वनी कुमार चावला,अनूपगढ़,श्रीगंगानगर
काम के वक्त नही सोना है।।
इस जीवन की क़दर करो सब।
ये माटी नहीं खरा सोना है।।
उलझे रहते हैं मोबाइल में सब।
कहे वक्त नहीं है का रोना है।।
फ़सल काटनी है मन माफ़िक।
तो बीज वही फिर तुझे बोना है।।
ठान लिया गर मंज़िल पाने का।
तो हर इक रस्ता लगे बौना है।।
छोड़ दे डोर तूं ऊपर वाले पर।
फ़िर जो चाहेगा वही होना है।।
हो जाएगी "ऐश" तेरी बल्ले बल्ले।
और दुनियां कहे ये जादू टोना है।।
©ऐश...(स्वरचित)15/12/2019✍🏻
अश्वनी कुमार चावला,अनूपगढ़,श्रीगंगानगर
दिनांक 15-12-2019
वार रविवार
विधाः- छन्द मुक्त (हास्य व्यंग्य)
मनपसन्द विषय लेखन
शीर्षकः-सोते यमराज को मत जगाईये हास्य व्यंग्य
आने पर चुनाव, याद है आता कुछ नेताओं को यमराज।
सहानुभूति पाने जनता की, बजाने लगते हैं उनका साज।।
करते प्रचार कुछ लोगों का है षड़यन्त्र मुझको मारने का।
अपने प्रिय नेता को, इस प्रकार से आपसे दूर करने का।।
कुछ चतुर नेताओं के होते हैं बड़े काम के ही यही बहाने।
लगा देते हैं इन बहानों से ही कई शत्रु अपनों को ठिकाने।।
है सलाह नेताओ को मेरी, करें न भूल से भी ऐसी नादानी।
हो सकती है ऐसे चतुर बुध्दिमान नेताओ को बड़ी ही हानी।
आजाये गर याद यमराज को, इन नेताओं को भी है लाना।
यही सोच कर आरम्भ न करदें, बही खाता उनका खोलना।।
बही खाते से ज्ञात हो उनकी जगह वह अन्य को ले आये।
तब यमराज जी भी, सरलता से भूल सुधार अवसर पा गये।।
दिलाने पे याद, कहीं यमराज उन पर ही प्रसऩ्न न हो जाये।
हो प्रसऩ्न ऐसे नेताओं को, मगन होकर साथ अपने ले जायें।।
सलाह व्यथित हृदय की नेताओं को यम को याद न कीजिये।
लोक प्रियता बढ़ाने को सोते हुये यमराज को मत जगाईये।।
डा0 सुरेन्द्र सिंद यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
वार रविवार
विधाः- छन्द मुक्त (हास्य व्यंग्य)
मनपसन्द विषय लेखन
शीर्षकः-सोते यमराज को मत जगाईये हास्य व्यंग्य
आने पर चुनाव, याद है आता कुछ नेताओं को यमराज।
सहानुभूति पाने जनता की, बजाने लगते हैं उनका साज।।
करते प्रचार कुछ लोगों का है षड़यन्त्र मुझको मारने का।
अपने प्रिय नेता को, इस प्रकार से आपसे दूर करने का।।
कुछ चतुर नेताओं के होते हैं बड़े काम के ही यही बहाने।
लगा देते हैं इन बहानों से ही कई शत्रु अपनों को ठिकाने।।
है सलाह नेताओ को मेरी, करें न भूल से भी ऐसी नादानी।
हो सकती है ऐसे चतुर बुध्दिमान नेताओ को बड़ी ही हानी।
आजाये गर याद यमराज को, इन नेताओं को भी है लाना।
यही सोच कर आरम्भ न करदें, बही खाता उनका खोलना।।
बही खाते से ज्ञात हो उनकी जगह वह अन्य को ले आये।
तब यमराज जी भी, सरलता से भूल सुधार अवसर पा गये।।
दिलाने पे याद, कहीं यमराज उन पर ही प्रसऩ्न न हो जाये।
हो प्रसऩ्न ऐसे नेताओं को, मगन होकर साथ अपने ले जायें।।
सलाह व्यथित हृदय की नेताओं को यम को याद न कीजिये।
लोक प्रियता बढ़ाने को सोते हुये यमराज को मत जगाईये।।
डा0 सुरेन्द्र सिंद यादव
“व्यथित हृदय मुरादाबादी”
स्वरचित
विषय-मनपसंद
मेरा विषय-दोहागजल
समांत-अर
दिनांक-15 दिसम्बर 2019
धुआँ भरा ये है शहर , हालत बिगड़े रोज।
मानव पीता है जहर , हालत बिगड़े रोज।
काली नभ की रात है , हृदय उठी है टीस।
चहुं धुँए का है पहर , हालत बिगड़े रोज।
खाँस रहे है अब सभी, मानव फूली श्वास।
नभ से बरसा है कहर ,हालत बिगड़े रोज।
दुर्घटना नित बढ रहीं , हाथों में है जान।
सड़क रक्त की है नहर ,हालत बिगड़े रोज।
दिल्ली नित अब रो रही , नेता हैं बड़बोल।
चली जुबानी है लहर , हालत बिगड़े रोज।
दशा बुरी अब हो गई , हाल हुआ बेहाल।
गई जिंदगी है ठहर , हालत बिगड़े रोज।
राकेशकुमार जैनबन्धु
मेरा विषय-दोहागजल
समांत-अर
दिनांक-15 दिसम्बर 2019
धुआँ भरा ये है शहर , हालत बिगड़े रोज।
मानव पीता है जहर , हालत बिगड़े रोज।
काली नभ की रात है , हृदय उठी है टीस।
चहुं धुँए का है पहर , हालत बिगड़े रोज।
खाँस रहे है अब सभी, मानव फूली श्वास।
नभ से बरसा है कहर ,हालत बिगड़े रोज।
दुर्घटना नित बढ रहीं , हाथों में है जान।
सड़क रक्त की है नहर ,हालत बिगड़े रोज।
दिल्ली नित अब रो रही , नेता हैं बड़बोल।
चली जुबानी है लहर , हालत बिगड़े रोज।
दशा बुरी अब हो गई , हाल हुआ बेहाल।
गई जिंदगी है ठहर , हालत बिगड़े रोज।
राकेशकुमार जैनबन्धु
विषय, कागज
विधा, हाइकु
15,12,2018.
रविवार .
कोरा कागज
बचपन निखार
लिखें विचार ।
कलमकार
कलम हथियार
कागज साथ।
चीजें जरूरी
कागज अनमोल
समझें बात।
रंगो का साथ
कल्पना चित्रकार
कागज सार ।
भावों का मेला
कलम से उकेरा
कागज हँसा ।
याद सताये
सहारा कागज का
लिखते पत्र ।
वृक्ष लगायें
शुद्ध पर्यावरण
कागज बने ।
खेल खिलौने
कागज से निर्माण
बच्चों का प्यार ।
ज्ञान सागर
कागज के सहारे
साहित्य कोष ।
कागज देन
धरोहर हमारी
बात पुरानी ।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
विधा, हाइकु
15,12,2018.
रविवार .
कोरा कागज
बचपन निखार
लिखें विचार ।
कलमकार
कलम हथियार
कागज साथ।
चीजें जरूरी
कागज अनमोल
समझें बात।
रंगो का साथ
कल्पना चित्रकार
कागज सार ।
भावों का मेला
कलम से उकेरा
कागज हँसा ।
याद सताये
सहारा कागज का
लिखते पत्र ।
वृक्ष लगायें
शुद्ध पर्यावरण
कागज बने ।
खेल खिलौने
कागज से निर्माण
बच्चों का प्यार ।
ज्ञान सागर
कागज के सहारे
साहित्य कोष ।
कागज देन
धरोहर हमारी
बात पुरानी ।
स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश
14/12/2019
"सेदोका"
1
दो बुढ़ी आँखें
कमरे से झाँकती
थोड़ा स्नेह माँगती
डरी सहमी
भीड़ में भी अकेली
काश!कोई सहेली।
2
कजली आँखें
रात हुई बावरी
बनी है विरहिणी
प्रीतम प्यारे
सरहद के द्वारे
कर्तव्य वो निभाते।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
"सेदोका"
1
दो बुढ़ी आँखें
कमरे से झाँकती
थोड़ा स्नेह माँगती
डरी सहमी
भीड़ में भी अकेली
काश!कोई सहेली।
2
कजली आँखें
रात हुई बावरी
बनी है विरहिणी
प्रीतम प्यारे
सरहद के द्वारे
कर्तव्य वो निभाते।
स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।
🌷चंद अशआर🌷तुम एक शिफ़ागर हो
और मैं एक मरीज हूँ ।।
आओ कभी देखो भी
आखिर मैं क्या चीज हूँ ।।
मैं तो कुछ भी नही था
तुम क्या मिलीं रईस हूँ ।।
जैसे पहले था वैसे
आज भी आपका मुरीद हूँ ।।
माना कि तुम बीस और
मैं तुमसे उन्नीस हूँ ।।
पर प्यार में चलता है
जो भी हूँ पर अज़ीज़ हूँ ।।
जैसा पहले था 'शिवम'
वैसा अब भी नफ़ीस हूँ ।।
शिफ़ागर- डाक्टर, बैध
नफ़ीस- साफ स्वच्छ निर्मल नाजुक
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 15/12/2019
और मैं एक मरीज हूँ ।।
आओ कभी देखो भी
आखिर मैं क्या चीज हूँ ।।
मैं तो कुछ भी नही था
तुम क्या मिलीं रईस हूँ ।।
जैसे पहले था वैसे
आज भी आपका मुरीद हूँ ।।
माना कि तुम बीस और
मैं तुमसे उन्नीस हूँ ।।
पर प्यार में चलता है
जो भी हूँ पर अज़ीज़ हूँ ।।
जैसा पहले था 'शिवम'
वैसा अब भी नफ़ीस हूँ ।।
शिफ़ागर- डाक्टर, बैध
नफ़ीस- साफ स्वच्छ निर्मल नाजुक
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 15/12/2019
दिनांक 15 दिसंबर 2019
दिन रविवार
वज़्न -2122 1212 22/112
हम्द
रब के बंदों से की मोहब्बत है ।
अपनी तो बस यही इबादत है ।
सारी तारीफ़ है ख़ुदा के लिए,
जिसकी दोनों जहां में अज़मत है ।
फूल पत्तों में बेल बूटों में,
देखिए रब की ही इबारत है ।
शुक्र है रब का जो दिया इतना,
अपनी क़िस्मत से कब शिकायत है ।
ये नमाज़ें ज़कात हज रोज़े,
रब को पाने की ही रवायत है ।
ग़म में भी ढूंढ ली ख़ुशी मैंने,
ये हुनर उसकी ही इनायत है ।
लाख बेचैनियां सही लेकिन,
उसके एहसास से ही राहत है ।
जिसके दिल में हो नूर ईमां का,
कब उसे तीरगी से दहशत है ।
'आरज़ू' ख़ल्क़ से लड़ी तन्हा,
रब के दम से ही सारी हिम्मत है ।
-अंजुमन 'आरज़ू' ©106/19
दिन रविवार
वज़्न -2122 1212 22/112
हम्द
रब के बंदों से की मोहब्बत है ।
अपनी तो बस यही इबादत है ।
सारी तारीफ़ है ख़ुदा के लिए,
जिसकी दोनों जहां में अज़मत है ।
फूल पत्तों में बेल बूटों में,
देखिए रब की ही इबारत है ।
शुक्र है रब का जो दिया इतना,
अपनी क़िस्मत से कब शिकायत है ।
ये नमाज़ें ज़कात हज रोज़े,
रब को पाने की ही रवायत है ।
ग़म में भी ढूंढ ली ख़ुशी मैंने,
ये हुनर उसकी ही इनायत है ।
लाख बेचैनियां सही लेकिन,
उसके एहसास से ही राहत है ।
जिसके दिल में हो नूर ईमां का,
कब उसे तीरगी से दहशत है ।
'आरज़ू' ख़ल्क़ से लड़ी तन्हा,
रब के दम से ही सारी हिम्मत है ।
-अंजुमन 'आरज़ू' ©106/19
विषय : मनपसंद
विधा: स्वतंत्र
दिनांक 15/12/2019
शीर्षक प्रदर्शक
माँ संस्कार प्रदर्शक है।
देव पुण्य प्रदर्शक है।
गुरु धर्म प्रदर्शक है।
भक्ति शक्ति प्रदर्शक है।
पिता प्रेरणा प्रदर्शक है।
घड़ी समय प्रदर्शक है।
शिक्षक ज्ञान प्रदर्शक है।
परीक्षा परिणाम प्रदर्शक है।
सड़क पथ प्रदर्शक है।
पहिया गति प्रदर्शक है।
जीवन भविष्य प्रदर्शक है।
विनय उन्नति प्रदर्शक है
महापुरुष आदर्श प्रदर्शक है।
'रिखब' शिक्षा प्रदर्शक है।
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित @
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
जयपुर (राजस्थान)
विधा: स्वतंत्र
दिनांक 15/12/2019
शीर्षक प्रदर्शक
माँ संस्कार प्रदर्शक है।
देव पुण्य प्रदर्शक है।
गुरु धर्म प्रदर्शक है।
भक्ति शक्ति प्रदर्शक है।
पिता प्रेरणा प्रदर्शक है।
घड़ी समय प्रदर्शक है।
शिक्षक ज्ञान प्रदर्शक है।
परीक्षा परिणाम प्रदर्शक है।
सड़क पथ प्रदर्शक है।
पहिया गति प्रदर्शक है।
जीवन भविष्य प्रदर्शक है।
विनय उन्नति प्रदर्शक है
महापुरुष आदर्श प्रदर्शक है।
'रिखब' शिक्षा प्रदर्शक है।
स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित @
रिखब चन्द राँका 'कल्पेश'
जयपुर (राजस्थान)
15.12.2019
रविवार
स्वपसंद
मुक्तक ( देहदान )
(1)
ना जलाना इसे,ना गलाना इसे
राख कर ना,हमें अब मिटाना इसे
ज़िन्दगी स्वप्न है, स्वप्न साकार है
इसको आकार देकर,बढ़ाना इसे।।
(2)
दान पा, ज़िन्दगी मुस्कुराने लगी
गीत गाने लगी,मुस्कुराने लगी
अहमियत जानिए, असलियत मानिए
आपकी ही अमानत, सजाने
लगी ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
रविवार
स्वपसंद
मुक्तक ( देहदान )
(1)
ना जलाना इसे,ना गलाना इसे
राख कर ना,हमें अब मिटाना इसे
ज़िन्दगी स्वप्न है, स्वप्न साकार है
इसको आकार देकर,बढ़ाना इसे।।
(2)
दान पा, ज़िन्दगी मुस्कुराने लगी
गीत गाने लगी,मुस्कुराने लगी
अहमियत जानिए, असलियत मानिए
आपकी ही अमानत, सजाने
लगी ।।
स्वरचित
डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
अनुष्ठुप अष्टाक्षर वृत
वार्णिक छंद
8 वर्ण प्रति चरण
क्रमशः - नगण सगण लघु गुरु
111112 12
सुन पवन साथ में।बह चल प्रभात में ।
प्रिय उर बहा चली।सजन घर मैं चली।
नव कुसुम हैं खड़े, मन खिल रहे बड़े ।
कुहुक मन की कली, दहक मन में फली ।
मद नयन डोलते ।कुछ सपन बोलते ।
तन फिर तु ही खिला।जब हृदय ही मिला ।
लरज कर मैं खड़ी । मिलन मन में पड़ी
दुख घुल रहे बड़े । दृग बह रहे पड़े ।
स्वरचित ✍
नीलम शर्मा # नीलू
वार्णिक छंद
8 वर्ण प्रति चरण
क्रमशः - नगण सगण लघु गुरु
111112 12
सुन पवन साथ में।बह चल प्रभात में ।
प्रिय उर बहा चली।सजन घर मैं चली।
नव कुसुम हैं खड़े, मन खिल रहे बड़े ।
कुहुक मन की कली, दहक मन में फली ।
मद नयन डोलते ।कुछ सपन बोलते ।
तन फिर तु ही खिला।जब हृदय ही मिला ।
लरज कर मैं खड़ी । मिलन मन में पड़ी
दुख घुल रहे बड़े । दृग बह रहे पड़े ।
स्वरचित ✍
नीलम शर्मा # नीलू
दिनांक.................15/12/209
रविवार ................ गीत
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
"चिंतन को अब नई दिशा दें,
मिलकर आज।"
आधार छंद- निश्चल (16,7) पदांत 21
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
सृजन कर छंद के प्रयोग से,
कर शुभ काज।
चिंतन को अब नई दिशा दें,
मिल कर आज।
★★★★★
भावी जीवन सुखी बना ले,
कर प्रभु ध्यान।
संस्कृति जगा नव पीढ़ी में,
दे सद् ग्यान।
मन निर्मल कर ज्ञान जगाकर,
कर प्रभु काज।
चिंतन को अब नई दिशा दें,
मिल कर आज।
★★★★★★
मद्य पान नर त्याग करे तब,
सुख परिवार।
तन मन सुखी उपजन लगी जब,
कर सतकार।
पश्चिमी सभ्यता खींच रही,
मत कर नाज़।
चिंतन को अब नई दिशा दें,
मिल कर आज।
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
रविवार ................ गीत
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
"चिंतन को अब नई दिशा दें,
मिलकर आज।"
आधार छंद- निश्चल (16,7) पदांत 21
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
सृजन कर छंद के प्रयोग से,
कर शुभ काज।
चिंतन को अब नई दिशा दें,
मिल कर आज।
★★★★★
भावी जीवन सुखी बना ले,
कर प्रभु ध्यान।
संस्कृति जगा नव पीढ़ी में,
दे सद् ग्यान।
मन निर्मल कर ज्ञान जगाकर,
कर प्रभु काज।
चिंतन को अब नई दिशा दें,
मिल कर आज।
★★★★★★
मद्य पान नर त्याग करे तब,
सुख परिवार।
तन मन सुखी उपजन लगी जब,
कर सतकार।
पश्चिमी सभ्यता खींच रही,
मत कर नाज़।
चिंतन को अब नई दिशा दें,
मिल कर आज।
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
स्वलिखित
कन्हैया लाल श्रीवास
भाटापारा छ.ग.
जि.बलौदाबाजार भाटापारा
विषय-छल बल
विधा विधा-छंद (कुंडलियां)
दिनांकः 16/12/2019
सोमवार
छल बल के इस जाल में,लगे हुए दिन रैन।
मुफलिस का दुख देख क्यों,हुआ न मन बैचैन ।।
हुआ न मन बैचैन,किसी का ह्रदय न रोया,
सुरा सुंदरी जाम ,' जमा वो रकम डुबोया ।।
सोचो जब हों दीन , काम आता गरीब के,
थी गाॅधी की सीख, लालच न छल बल के ।।
छल बल सुख मिलता नहीं,मनसा रहे अतृप्ति ।
संतोषी के भाव ही,करें ह्रदय की तृप्ति ।।
करें ह्रदय की तृप्ति,हमे हो इसमे सेवा,
हो न वहां अन्याय,शाॅत दिल का ये मेवा
कह निर्भय कविराज,प्रसन्न रहते निज मन से,
छल बल तृष्णा हटा,कभी मिटे न धन से ।।
स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर ' निर्भय,
विधा विधा-छंद (कुंडलियां)
दिनांकः 16/12/2019
सोमवार
छल बल के इस जाल में,लगे हुए दिन रैन।
मुफलिस का दुख देख क्यों,हुआ न मन बैचैन ।।
हुआ न मन बैचैन,किसी का ह्रदय न रोया,
सुरा सुंदरी जाम ,' जमा वो रकम डुबोया ।।
सोचो जब हों दीन , काम आता गरीब के,
थी गाॅधी की सीख, लालच न छल बल के ।।
छल बल सुख मिलता नहीं,मनसा रहे अतृप्ति ।
संतोषी के भाव ही,करें ह्रदय की तृप्ति ।।
करें ह्रदय की तृप्ति,हमे हो इसमे सेवा,
हो न वहां अन्याय,शाॅत दिल का ये मेवा
कह निर्भय कविराज,प्रसन्न रहते निज मन से,
छल बल तृष्णा हटा,कभी मिटे न धन से ।।
स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर ' निर्भय,
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