Friday, December 13

"नियति"09दिसम्बर 2019

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ब्लॉग संख्या :-590
विषय नियति
विधा काव्य

09 दिसम्बर 2019,सोमवार

रंक राज नियति पर निर्भर
कालचक्र नियति निर्धारण।
मानव चले कर्तव्य के पथ
नियति करे सबका संधारण।

बिन नियति पत्ता नहीं हिलता
नियति सबको सबक सिखाती।
भावी प्रबल होती जीवन में
बिगड़े सारे काम बनाती।

नियति को कौन जीत सका है
नियति अद्भुत है जीवन में।
जन्म मृत्यु विवाह निर्धारण
लावे सदा बहार उपवन में।

राजतिलक की थी तैयारी
स्वयं राम वनवास गये थे।
हरिश्चन्द्र की त्रुटि क्या थी?
वे काशी में स्वयं बिके थे।

जो हम सोचें वह नहीं होता
नियति का सब खेल निराला।
जो जीवन में सबसे प्यारा
नियति करदे सदा पराया।

स्वरचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

शीर्षक-- नियति

🌹🌹🌹🌹

नियति ने ही किया कुछ सितम
कहाँ से कहाँ आ गये हम ।।

इतने बुरे भी न थे मगर
दूर हुए कभी न मिले सनम ।।

दर्द की इंतेहा हो गयी
मुसलसल आते ही रहे गम ।।

सोचा अब मिलूँ अब मिलूँ
गवारा न नियति को संगम ।।

नियति आखिर क्या कहूँ तुझे
बता कभी तूँ ही कुछ मरम ।।

सपनों की दुनिया छली थी
अब तूँ ही कर दे कुछ करम ।।

कर वादा कोई दे कसम
सचमुच धड़कन है वो 'शिवम' ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 09/12/2019

आज के प्रद्दत शब्द ''नियति' पर मेरी प्रस्तुति

**नियति**
***********
जानते हो ?
कुछ रिश्तों की #निर्धारित होती है !!
हाँ ,,,ये सच है ,इसलिए मुझे याद है वो रिश्ता !!
जो था तुम्हारे साथ,आज भी है,आगे भी रहेगा ...
शायद आखिरी साँस तक ...
वो रिश्ता जिसे ''रूहानी'' कहते हैं ...
हर रिश्ते से हट कर ...
पावन पवित्र ...
जैसे सुबह का उगता हुआ ''सूरज '' ...
बिलकुल गुलाबी सा ......जो आँखों को ,
सिर्फ़ और सिर्फ़ शीतलता देती है ....
निग़ाहों को भली लगती है ....इसीलिए तो ,
उगते सूरज़ को सभी चाहते हैं , ....
अपनी आँखों में बसा लेना ....
''रूहानी'' रिश्ते की तरह ...
जिस रिश्ते की सिर्फ़ यादें ही रह जाती हैं ...
ताउम्र के लिए
सिमट कर,
एहसासों मे
जिन्हे सिर्फ़ महसूस कर सकते है
क्यूंकि,.....
इसकी #नियति'' शायद ''बिछड़ना'' ही होता है ...
रह जाती है तो केवल ''यादें''
कुछ एहसास ,
और आँखों में सैलाब का इक समंदर
जिन्हे समेट कर चलना होता है उन राहों पर ...
जिस पर ''मंजिल'' का पता नहीं होता ...
बस चलते जाना है ....
उस पवित्र रिश्ते की डोर थामे ..
.चलते जाना है !!!

--@मणि बेन द्विवेदी

नियति हमारे कर्मो के पीछे चलती है कहते है न --जैसा करोगे वैसा भरोगे--इसी लिये सत कर्म करने की सलाह हमारा घर्म देता है।
नियति क्या है ? नियति स्य्म्भु नही है ! उसका निर्माण स्वयं मनुष्य करता है और बार -बार करता भी जाता है जीवन भर ! मनुष्य प्रत्येक क्षण
 प्रत्येक पल उस सत्य से साक्षात्कार करने से सदा वंचित रह जाता है पर फिर भी वह वही कर रहा होता जो नही करना चाहिए जो अतीत में बो चूका है अथवा कल वही करेगा जो आज बो रहा है परिणाम उसकी समझ के बाहर है ! यदि वास्तव में इस परम सत्य से मनुष्य का साक्षात्कार हो जाय कि वह जो करता है उचित है या अनुचित है , तो उसके जीवन में फिर सुख - दुःख आपति - विपति मान - अपमान और दीनता - हीनता रहही नही जाये गी उन सब से मुक्त हो जाये गा ! वह हमेशा के लिए और उसका जीवन परम सुगन्ध से उदभाषित हो उठेगा फिर ! यदि नियति को समझना है तो अपने पिछले कर्मो पर एक दृष्टि डालिये ।

विषय:नियति

नियति मार्ग मे पग पग पर है ठोकर लाती,
कर्मवीर का धैर्य मगर है
कहाँ डिगाती ।
जो राह बनाते सदा चीर प्रस्तर की कारा,
साहस से भय भूत सदा रहता है हारा,
लक्ष्य भेदने को जो प्रतिपल आगे बढते,
आगे बढ इतिहास प्रबलतम बे हैं गढते,
साहस, शील, सत्य संयम की जो हैं थाती,
नियति मार्ग मे पग पग पर है ठोकर लाती,
कर्मवीर का धैर्य मगर है कहाॅ डिगाती ।।
कर्मवीर की कर्मठता ही उसका धन है,
कर्मवीर को सदा नमन करता जन-जन है,
भाग्य स्वयं उसकी जीवटता से डरता है,
जो जीवन मे कर्मठता -वैभव भरता है,
क्रियाशीलता जव मूरत बन खुद ढल जाती,
नियति मार्ग मे पग-पग पर है ठोकर लाती,
कर्मवीर का धैर्य मगर है कहां डिगाती ।।

अनुराग दीक्षित
Damyanti Damyanti 

विषय_ नियती |
अजब गजब निराले खेल नियतीके|
कब कोन छू ले उच्चतम शिखर ,

कब नीचे दल दल गिर जाये |
कब रंक राजा,राजा रंक बन जाये |
चाहा नियती जब वही हुआ राम
राम रह गये राजा बनते बनते
चल दिऐ वनवास |
न होता ये खेल,तो राक्षस न मारे जाते |
इस नियती के खेल मे मुख्य थी माँ कैकई व सीतामाँ |
न था दोष दोनो का ये बस नियती के हाथ |
देखो खेल नियती के दाऊ कान्हाथे
एक माँ की संताने विधना ने रच इतिहास दिया
गोकुल मे रहे किया असुरो का विनाश |
सिकदंर ,हूण डच अग्रेज सब आये
भारत के अमूल्य ही बदल गये |
नियती क्या क्या दिखलागी खेल |
हो रहे न्याय व्यवस्था ,शासन व्यवस्था मूल्यविहीन |
नैतिकता हो रहा हास न बचे
परिवार समाज,न देश |
सबके हाल बेहाल ये सब नियती के खेल |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा

दिनांक-09/12/2029
विषय-नियति


जिसकी इतनी क्रूर नियति हो
जहां सत्ता की अंतिम दुर्गति हो।
पढ़ आते ही वह करुण गाथा
झुक जाता लज्जा से मेरा माथा।।

नियति की दस्तक द्वार खड़ी
एकांत का चादर ओढ़ के।
सन्नाटे यामिनी बिल्कुल व्याकुल
यथार्थ के रथ पर मैं आगे बढ़ी।।

रेत के पठारो में नियति का चाबुक
आंखों से नींद सरहद पार खड़ी।
नियति से मैं क्यों हार मानूं
अब वक्त से मेरी है रार ठनी ।।

मरु ओर मृग मरीचिका
निरिह मृग झुंड खड़ा हुआ
नियति से निडर होकर लडू
नियति से पूर्व निर्धारित मिलन करूं

स्वरचित
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

विषय-नियति
विधा-मुक्तक

दिनांकः 9/12/2019

कर्म हमारे फल देते,जब नियति को मंजूर।
कुछ भी फल नहीं मिले,करती नियति नामंजूर ।।
नियति ही निर्धारित करती,हम सभी का भाग्य ।
इसके आगे वश नहीं,करती न करें मंजूर ।।

अगर नियति को मंजूर हो,तब लगन लगती है ।
श्रम हौसले भी वहां,हमें जय ये दिलाती है ।।
राहें खुद ही खुल जाती,यदि चाहती है नियति ।
खुली राहें बंद हों,जहाँ नियति न चाहती है ।।

स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर' निर्भय,
09/12/2019
*नियति*


नियति तू नटी, नखरेवाली
कब, क्या खेल खेलनेवाली

शिथिल हो रात भर सोते हैं
मीठे सपनों में खोते हैं
मन-मुदित लख उषा की लाली
नियति तू नटी, नखरेवाली

कल हँसता था वह जीने में
गत, पीर लिए वह सीने में
कुछ मूक, कुछ हूक रुदाली
नियति तू नटी, नखरेवाली

हरदिन जब भी हम चलते हैं
देख-देख आंखे मलते हैं
घटना कुछ अजब-गज़ब निराली
नियति तू नटी, नखरेवाली

मानुष जगत का विजेता है
सब जान कर भी विचेता है
जब वो उत्तरहीन सवाली
नियति तू नटी, नखरेवाली
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
9/12/19
विषय नियति

देखो वो सामने
विशाल बरगद का पेड़
जिसकी टहनियों
को लताये छूती थी
सैकड़ो पंछी
चहचहाते थे उसपर
गीत गाते थे
घोसले थे उनके
राही आंनद
लेते थे छ।व का
पत्ते सङ्गीत के
साथ हवा देते थे
जानते हो
अब वो बूढा हो गया
उसकी टहनियां
कमजोर हो गई
जटा ये सूख गई
पंछी भी नही आते
वक्त की बात
अब कोई नही जाता
उसके पास
वो अब बूढा
औऱ लाचार जो है
कभी जो था
सबका प्यारा
अब ठूठ बन गया
सच मे वक्त एक सा नही
रहता
जीवन काल
की तरह परिवर्तित
होता रहता है
चक्र की तरह

स्वरचित मीना तिवारी

विषय -नियति
दिनांक-९-१२-२०१९
नियति बदल,आगे जो बढ़ पाएगा।
चट्टान चीर स्वयं,राह वो बनाएगा।।

ठहर गया ,कुछ ना कर पाएगा।
हिम्मत रख,तू उस पार जाएगा।।

नियति बदल,,हुनर सीख जाएगा।
अपना मार्ग, प्रशस्त कर पाएगा।।

जहाँ आई लालसा,क्षय हो जाएगा।
वो जग में सदा, कुयश ही पाएगा ।।

अग्निपथ,अनवरत चलता जाएगा।
आनंद नहीं,जीवन लक्ष्य वो पाएगा।।

मधुमयी शांत छाया,जो ठहर जाएगा।
नियति को,वह कभी न बदल पाएगा।।

अंबर विभा,प्रबद्ध जो कर पाएगा।
स्वर्णिम इतिहास,पुन:वो लिखाएगा।।

वीणा वैष्णव
कांकरोली

09/12/2019
"नियति"

छंदमुक्त
################
फूल उपवन की शोभा बढ़ाता
काँटों संग रहके भी मुस्काता
फिज़ाओं में सुगंध बिखराता
माली मन को सुख दे जाता
भँवरे का मनमीत बन जाता
एक दिन सूखके बिखर जाता
किसी के दिल में बस जाता
कोई दिल से ज़ुदा कर देता
जीवन की रीत यही है।
नियति का खेल यही है।

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

दिनांक ९/१२/२०१९
शीर्षक_नियति


नियत में गर खोट हो तो
नियति करे चोट
नियति और कुछ नही
अपने कर्मो का फल।

नियति के भरोसे
करे ना समय बर्बाद
सब कुछ नियति ही करे
कुछ तो करिए आप।

हर क्षण हर पल
नियति को देते क्यों दोष?
मूढ़ भी ज्ञानी बन जाये
जब करे प्रयत्न।

दूसरों के उन्नति देख
रहे न मन मसोस
साथ रहे दुसरो के खुशी में
तो खुशियां बरसे द्वार।

नियत रखे सुंदर तो
उन्नति करे आपका इंतजार
हमारे कर्मों का लेखा जोखा ही
नियति बन, रहते हमारे साथ।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।

"भावों के मोती"
9/12/2019

नियति
******
होगा तेरा मेरा मिलन
ये नियति ही तो है
ये शाम रोज़ तुमसे दूरी
का एहसास करवाती
एक कांटे की चुभन
मेरे पूरी देह में
सिरहन सी दौड़ जाती
तेरी यादों की लड़ियों
मेरी पलको को तरल
कर जाती
लेकिन तेरे प्रेम का धागा
कहाँ ढीला पड़ता
मुझे तुमसे और कसकर
बांधे रखता
इस धागे की हर गठान
औऱ सख़्त होती जाती
मेरी सांसे तुम्हारे सात्विक
परम प्रेम में पड़ कर
तुममें घुलती जाती
न तुम मेरी सांसो के
एहसास से दूर जा पाते
न हमारा प्रेम बंधन
ढीला पड़ पाता
कभी तुम मेरी हथेली पकड़
अपनी और खींचते
तो कभी तुम्हारे विश्वास की
रोशनी से मैं भर जाती
मैं तुम्हारे प्यार के वशीकरण
में खिंची चली आती
तुम थाम लेते मुझे अपनी
बाहों में
देते सम्बल इस जीवन की लड़ाई
लड़ने में
ये उजाले की परियां मेरे
अन्तस् को भर देती
तुम्हारी आभा से
प्रतीक्षित मेरा ह्रदय तुम्हारे
व्योम में समा जाने को
मचल जाता
क्योंकि जिस तरह मेरा जन्म
का प्रारब्ध तय था
उसी तरह मेरी मृत्यु की भी
नियति तय है
और तय है मेरा मेरे परम
में समा जाना ।।

स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर

शीर्षक-- नियति
विधा-- नज़्म


नियति तिरी नीति निराली
कहीं दिवाली कहीं कँगाली ।।

वाह विधाता तूने सदा
दुनिया को रखा सवाली ।।

हैरां परेशां हर बशर
कहीं मन कहीं जेब खाली ।।

भूलबस दिले नादां ने
कहीं प्रीती थी लगाली ।।

रास न आयी तुझे प्रीति
कैसा तूँ जग का माली ।।

दो दिन नही खिला था फूल
तूने अपनी नजर उठाली ।।

क्या गाऊँ नियति कि गाथा
समझूँ मैं तकदीर जाली ।।

नियति न नुकर की सदा ही
मैंने भी हर इच्छा टाली ।।

अब क्या नियति से माँगू 'शिवम'
उसकी रज़ा में रज़ा बनाली ।।

हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 09/12/2019
शीर्षकः- नियति

इस संसार होता वही होती जो नियति।
उसके सम्मुख मानव की नहीं चलती।।

भाग्य किसी मानव का कहाता नियति।
उसके जीवन की घटनाये वैसी है होती।।

करता कर्म जैसे वह वैसी नियति होती।
काटेगा फसल वही जैसी है बोयी होती।।

जिन कर्मों की फसल काटनी बच जाती।
अगले जन्म में वैसी ही नियति है होती।।

डा0 सुरेन्द्र सिंह यादव
"व्यथित हृदय मुरादाबादी"
स्वरचित

Pramod Golhani 🙏🌹
सादर नमन भावों के मोती
दि. - 09.12.19
िषय - नियति
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित...
========================

नियति निराले खेल हमें दिखलाती है |
कभी हँसाती है तो कभी रुलाती है ||

चाह नहीं होती है जिन हालातों की,
उन हालातों को सम्मुख ले आती है |

कभी अर्श तो कभी फर्श हासिल होता,
तरह-तरह के रंग हमें दिखलाती है |

इसके दांव कभी न जाते खाली बिल्कुल,
अपनी चाल में सबको यह उलझाती है |

अपने कर्मों का ही तो लेखा-जोखा ये
कालांतर में वही नियति बन आती है |

==========================
स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस

विषय नियति
विधा कविता

दिनाँक 9.12.2019
दिन सोमवार

नियति
💘💘💘

नियति ही सब ओर आसीन
नियति के हम सब आधीन
नियति के विरुद्ध जब कुछ होता
हमारा कुछ न कुछ ही खोता।

वन उजाड़ रहे जी भर , नियति के हो गये विरुद्ध
रसायनिक खादें खूब डालीं ,सब कुछ ही हो गया अशुद्ध
जल स्त्रोत पाटे ,प्रदूषण फैला
हम सब हो गये, इससे अति क्षुब्ध।

साँभर झील में पक्षी, एकाएक गये मर
पानी से धरती, नहीं रहती तर
सूखेपन की समस्या, सब ओर प्रखर
ओजोन परत में ,छेद होने का डर।

हिम पिघलता,सागर तल बढ़ता
सूर्य प्रकोप में, सब कुछ जलता
पर्वत काटे बजरी लूटी, किनारे तोडे़
पेडो़ं का कई ज़गह पर ,अब नाम न मिलता।

अब समलैंगिक मिलन का,पृष्ठ खुला
यह कौन सा अजी़ब सा,रंग ढुला
मिलावटी घी ,मिलावटी मावा
मिलावटी दवा में, मृत्यु भोज घुला।

स्वरचित
सुमित्रा नन्दन पन्त

दिन :- सोमवार
दिनांक :- 09/12/2019

शीर्षक :- नियति

विस्तृत गगन चतुर्दिक..
है आवरण प्राकृतिक..
उत्तुंग शिखर विशालकाय..
अचल,अटल सुव्यवस्थित..
है सर्वस्व नियति नियंत्रित..
है विस्तार सकल जगती..
है घूर्णित आधार धरती..
श्वांस-श्वांस स्व संयमित..
है सकल जनगण पोषित..
है सर्वस्व नियति नियंत्रित..
वो पार्श्व नायक नियंता..
है वो जगत अभियंता..
खग विहग सब सज्जित..
लता तरू सब अच्छादित..
जल कण-कण अभिमंत्रित..
है सर्वस्व नियति नियंत्रित..
है सर्वस्व नियति नियंत्रित..

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश

विषय,नियति .
9,12,2019.

सोमवार.

माना होती है बलवान नियति जग में,
पर कर्म को भुलाना ठीक नहीं ।
मिलता किस्मत का लिखा हमें मेहनत से, होता आलस को अपनाना ठीक नहीं।
अक्सर साहसी बदल ही लेते हैं,
बखूबी अपने हाथों की लकीरों को ।
रोक सकी न द्रोणाचार्य की अवहेलना,
धनुर्धारी बनने से एकलव्य को।
छोटे से बालक ध्रुव की जिद ने,
पाया था परम पिता की गोद को ।
नियति के भरोसे कुछ संभव ही नहीं,
करना ही पड़ता है प्रयासों को ।
हकदार हैं हम केवल कर्मों के,
लिखता है ऊपर वाला हमारे वही खातो को ।

स्वरचित, मधु शुक्ला .
सतना, मध्यप्रदेश,.

नियति

है खेल निराले
ईश्वर के
कहीं खुशी तो
कहीं गम
है नियति
जन्म के बाद
निश्चित है मौत

है विधि का
विधान ये
निर्माण है तो
विध्वंस भी है
है आसमान तो
जमीन भी है

बेटी का जन्म
नियति
पालो पोसो
विदाई घर से

नियति
माता पिता की
पालो बच्चे
पढाओ लिखाओ
लगी नौकरी
हुई शादी
लग गये पंख
रह गय अकेले
बूढ़े वो

होता वही
जो है किस्मत में
सुख दुःख
लाभ हानि
जन्म मृत्यु
है उसके हाथ में

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

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