Tuesday, December 31

"नश्वर"28दिसम्सबर 2019

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ब्लॉग संख्या :-609
विषय नश्वर
विधा काव्य

28 दिसम्बर,2019 शनिवार

नश्वर कौन नहीं जगत में
मायावी नश्वर यह जीवन ।
आज खिले कल मुरझाये
ऐसा है यह जीवन उपवन।

माया मोह का चश्मा पहने
घूम रहे सब पागल बनकर।
सत्य प्रकाश के जानकार हैं
मूर्ख बने बैठे सब मिलकर।

हम आकारित परमपिता के
नश्वर जीवन दिया सभी को।
आना जाना क्रम जीवन का
अपना कुछ भी नहीं तभी तो।

सत हरि भजन जग है सपना
कोई नहीं मित्रों जग अपना।
अपनी ढपली राग स्वयम का
सत्य सनातन प्रभु को जपना।

नश्वर तन का एक ठिकाना
माटी तन माटी में मिलना।
गिला शिकवे भूलो सब मिल
सीखो जीवन मे नित खिलना।

स्वरचित, मौलिक
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।

दिनांक- 28/12/2019
शीर्षक- "नश्वर"
वि
धा- छंदमुक्त कविता
*****************
शरीर तेरा हवा हो रहा, क्या ये खबर है,
वक्त रोज फिसल रहा,क्या ये खबर है,
जीवन ये नश्वर है बंधु,मजबूत क्यों पकड़ है,
तन ये तेरा नश्वर प्यारे ,मन को खबर है |

हुस्न पे इतना गुरूर करके,कहां जाओगे?
एक न एक दिन तुम भी ,मिट्टी में मिल जाओगे,
क्षणभंगुर के सुखों पर, न नाज कर ज्यादा,
खाली हाथ आये थे यहां, कुछ न ले जा पाओगे |

स्वरचित- *संगीता कुकरेती*

28/12/2019
नश्वर
*****
है तन यह माटी का
मन को नहीं हाड़ मास
तन नश्वर मन
नश्वर
नश्वर है यह संसार ।।
करे बोध पंच
तत्व का
पाएं आत्म ज्ञान
जो शाश्वत सत्य है
वही परम् संज्ञान ।।।

स्वरचित
अंजना सक्सेना
इंदौर

शीर्षक- नश्वर

नश्वर तन का ज्यादा ख्याल
अमर आत्मा है बेहाल ।।
ऐसी इंसान की है मति
कहे खुद को मालामाल ।।

पूँजी जोड़ी नश्वर सारी
आत्मा की हरदम विसारी ।।
उसकी रटन रही सच की
सच की राह नही निहारी ।।

ले जाने को कुछ न साथ
कैसे बने कोई बात ।।
खरी पूँजी शुभ कर्मों की
शुभ कर्म का टोटा हाथ ।।

नश्वर तन भी क्षीण हो रहा
विकार में बंध 'शिवम' रो रहा ।।
माया की मटमैली राह
अब भी मन वहीं डुबो रहा ।।

हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 28/12/2019

Damyanti Damyanti 

 विषय_ नश्वर |
प्राणी मात्र हे नश्वर
आया हे जायेगा भी |

ईश्वरीय सृष्टि है नश्वर
समय आने पर मिटजायेगी |
मानव तू हे बुद्धिमान
कर तनमन का सदुपयोग
तन तो माटी मे मिल जायेगा
तेरे अच्छे कर्म सिद्धात ही शेष
शेष पर चलेगे आने वाले|
मत कर मान तन बुद्धि का
सब नश्वर हे संसार म |
स्वरचित_ दमयंती मिश्रा

दिनांक-28/12/2019
शीर्षक-नश्वर
***********************

उठ रहा धुआँ,
उड़ रही है राख,

ये सुंदर सा तन ,
हो रहा है खाक!

उखड़ रहे है जो ,
थे इक्के-दुक्के,

कोरी कल्पनाओं के ,
देखो परखच्चे,

सारी की सारी ,
खबर फैलेगी,
कोरी मिथ्याएं,
यहीं जलेगी!

सुंदर काया ,
नही बोलेगी!

पर,
शास्वत सत्य ,
भेद खोलेगी,

धीरे धीरे ,
तन हुआ जर्जर
ये मिट्टी,ये सृष्टि, ,
केवल है नश्वर

********************
स्वरचित-राजेन्द्र मेश्राम "नील"

28 /12/2019
बिषय,, नश्वर,,
ए काया माटी का पुतला पानी पड़े गल जाना
ए काया कागज की पुड़िया हवा चले उड़ जाना
ए जीवन डाल का पत्ता गिरकर सड़ गल जाना
चलती सांसें कब थम जाए किसी ने नहीं जाना
महल अटारी बाग बगीचे
मोह ममता का जाल बिछाना
इस नश्वर संसार में नहीं नहीं किसी का ठिकाना
मैं मेरा करते करते दुनियां से बिदा हो जाना
क्यों समेटे है धन दौलत माल खजाना
इन नश्वर वस्तुओं को त्याग हरी चरणों में प्रीत लगाना
समझ गया सो भव पार हुआ
न समझा तो दलदल में समाना
स्वरचित, सुषमा ब्यौहार
दिनांक-28/12/2019
विषय- नश्वर

भौतिक मन एक व्यर्थ है

यह असंतृप्त मन निर्वस्त्र है

न मन में एक हार है

न मन में एक जीत है

जिंदगी के जाम में

घमंड से ना प्रीति है

शौर्य के शान में

बलिदानों की एक जीत है।

अधरों की मुस्कानों में

स्वरों की एक गीत है।

निःशब्द शरीर व्यर्थ है

न जीत है ,न हर्ष है

अंतरनाद का उत्कर्ष है।

अमूर्त सपनों का संघर्ष है

झुका नहीं हूँ निराश में

डिगा नहीं हूँ हताश में

विराट देह एक द्वंद है।

चिर जगत निर्द्धंद्व..........

स्वरचित

सत्य प्रकाश सिंह प्रयागराज

शीर्षक .. नश्वर
******************

जगत मोहिनी भुवन सुन्दरी, श्रीराधा इक नाम।
जिसके रंग रंगरसिया रंग गए, श्रीराधा इक नाम।

सबके मन मे प्रीत जगाए, कण-कण मे भगवान,
शेर के मन मे कृष्ण हृदय मे, श्रीराधा इक नाम।

नश्वर है संसार जगत का नश्वर प्राणी मात्र।
नश्वर काम क्रोध में जलता नश्वर मन का ताप।

भावों से मोती झलकाता ऋद्धि सिद्धि का जाप,
प्रातः वन्दन करो आप ले श्री राधा इक नाम।

प्राण पखेरू के उडने तक, मिटा न मन से पाप।
भोग कर रहा संतति फिर क्यो, नही तुझे संताप।

धूँ- धूँ जली चिता की अग्नि, जला नही पर पाप।
भोग छोड कर आ ले वन्दे, श्री राधा इक नाम।

मानव रूप में ही जन्में थे, राधा मीरा श्याम।
कर्म ने इष्ट बनाया भज तू, श्री राधा इक नाम।

श्री राधे की महिमा जिससे, भव हो जाता पाप।
शेर भज रहा तू भी भज ले, श्री राधा इक नाम।

शेर सिंह सर्राफ

दिन :- शनिवार
दिनांक :- 28/12/2019
शीर्षक :- नश्वर
विधा :- वर्ण पिरामिड
(1)
है
जीव
अतिथि
जग रीती
नश्वर काया
परिवार माया
पंचतत्व समाया
(2)
है
जग
झंझट
मोह माया
नश्वर काया
फंसता मानव
आचरण दानव

स्वरचित :- राठौड़ मुकेश
विषय, नश्वर .
शनिवार .
28,12, 2019.

नश्वर जग
भटक रहा मृग
दौलत शौहरत
माया ममता
पता नहीं कल का
स्मरण ईश्वर का ।

तन हमारा
निकेतन आत्मा का
चक्र घूमे वक्त का
करते प्यार
हरदम सत्कार
नश्वर ये संसार

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .
दिनांक👉२८/१२/२०१९
दिवस 👉शनिवार
िषय 👉नश्वर
विधा👉 स्वैच्छिक
-------------------
नश्वर को लालषा बड़ी
खड़े कर्ता माटी के रंग महल,
नश्वर है नश्वर होने को सजाता धरती पर संसार,
धुवाॅ - धुवाॅ होता जो मोटी का पुतला धुवाॅ-धुवाॅ हो जाता अभिलाषा भरा संसार ! !
नश्वर नगरी में सुनसान सजाता रंग महल,
पंडित,मुल्ला,नाई,सूद्र सम हुए सभी जहाँ,
नश्वर वो माया भरा संसार,
देखा गुमान नश्वर थे लोग शम हुव़ी शांन सभीकी ! !

अटल मान सजाई उन्होंने यहाँ रंग भरी दुनियाॅ,
मैं -मेरा होते हुए भी
वो घर उसका, बस वही स्थान नश्वर माया नश्वर इन्सान !
छोड़कर आशा,अभिलाषा के महल चौबारे,
हुआ जो धुवाॅ -धुवाॅ वो नश्वर इन्सान ! !

आह ना कराह, बस,
माटी से उठती लौ ,
क्या अजब-गजब वक्त !
लपटों से थे राख के फूल उड़रहे,
नश्वर उठती लौ की सेज में इक नश्वर संसार !
धुवाॅ -धुवाॅ लपेटे खुदको अटल मान उड़ता वो नश्वर इन्सान !!
नश्वर ता में
मैं और मेरा छोडगया
खड़ा तमाशा देखरहा
उसीका चलता-फिरता
नश्वर मानव रूपी हर इन्सान!

गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक

दिनांक👉२८/१२/२०१९
दिवस 👉शनिवार
िषय 👉नश्वर
विधा👉 स्वैच्छिक
-------------------
नश्वर को लालषा बड़ी
खड़े कर्ता माटी के रंग महल,
नश्वर है नश्वर होने को सजाता धरती पर संसार,
धुवाॅ - धुवाॅ होता जो मोटी का पुतला धुवाॅ-धुवाॅ हो जाता अभिलाषा भरा संसार ! !
नश्वर नगरी में सुनसान सजाता रंग महल,
पंडित,मुल्ला,नाई,सूद्र सम हुए सभी जहाँ,
नश्वर वो माया भरा संसार,
देखा गुमान नश्वर थे लोग शम हुव़ी शांन सभीकी ! !

अटल मान सजाई उन्होंने यहाँ रंग भरी दुनियाॅ,
मैं -मेरा होते हुए भी
वो घर उसका, बस वही स्थान नश्वर माया नश्वर इन्सान !
छोड़कर आशा,अभिलाषा के महल चौबारे,
हुआ जो धुवाॅ -धुवाॅ वो नश्वर इन्सान ! !

आह ना कराह, बस,
माटी से उठती लौ ,
क्या अजब-गजब वक्त !
लपटों से थे राख के फूल उड़रहे,
नश्वर उठती लौ की सेज में इक नश्वर संसार !
धुवाॅ -धुवाॅ लपेटे खुदको अटल मान उड़ता वो नश्वर इन्सान !!
नश्वर ता में
मैं और मेरा छोडगया
खड़ा तमाशा देखरहा
उसीका चलता-फिरता
नश्वर मानव रूपी हर इन्सान!

गौरीशंकर बशिष्ठ निर्भीक

. नश्वर
कबीर के शब्दों में यह संसार ही नश्वर है।
तभी तो कबीर ने कहा माया महा ठगनी हम जानी।
आज इस संसार में कार्ल मार्क्स का सिद्धांत प्रभावी दिखता है।
संसार के जन; धन संग्रह में मस्त-व्यस्त है।
किसी को अपने पद का अभिमान है तो कोई रूप पर गरुर किये हुए है , कोई अनगिनत भू का स्वामी है तो कोई धन संग्रह में किसी जान लेने पर उतारू है।
कोई यह कहता है कि इसके कफ़न में भी जेब है।
किन्तु संसार की नश्वरता का ज्ञान तो श्मशान घाट तक ही सिमित है।
डॉ कन्हैया लाल गुप्त " शिक्षक "

दिनांक : 28.12.2019
वार : शनिवार
आज का शीर्षक : नश्वर
विधा : दोहे

दोहे

काया को कंचन करें , मन में राखें मैल !
खुद को अंधी दौड़ में , पीछे रहे धकेल !!

मुख से निकले राम पर , अधर टिके ना राम !
दूजों के घर झांकते , और बुराई काम !

मन के मनके फेरते , लगता मन बैचेन !
दौड़ यहाँ है अर्थ की , कट जाते दिन रैन !!

फल की चिंता ना करें , ठहरे लापरवाह !
समय छूटता हाथ से , रहें अधूरी चाह !!

मुस्कानें अब नहीं खरी , इनमें गहरे राज !
नहीं सरल जीवन रहा , सभी चाहते ताज !!

गुरु की गुरुता है घटी , शिष्यों की भरमार !
रोज भरोसा टूटता , कौन लगाये पार !!

अपने गुरु खुद ही बनें , झाँकें मन के द्वार !
नश्वर जीवन जान लें , लगता बेड़ा पार !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

28/12/2019
"नश्वर"
1
नश्वर काया
जीवन है छलावा
शाश्वत आत्मा
2
नश्वर तन
भ्रम जाल में मन
मिथ्या है दंभ
3
नश्वर काया
छलिया मोह-माया
मिट्टी समाया
4
नश्वर जीव
अमरता न प्राप्त
काहे को साज
5
नश्वर तन
मृत्यु करे वरण
राम हैं सत्य

स्वरचित पूर्णिमा साह
पश्चिम बंगाल ।।

दिनांक - 28/12/2019
विषय - नश्वर
विधा - दोहा गीत

हम पानी के बुलबुले, रहना दिन दो चार।।
नश्वर सारे जीव हैं, नश्वर ये संसार।

तेरा मेरा मत करो, जाना कुछ नहिं साथ।
आये खाली हाथ थे, जाना खाली हाथ।।
वाणी में संयम रखो, नहीं जहर तू घोल।
रहो प्रेम से तुम सभी, बोलो मीठे बोल।।
भज बंदे तू राम को, करते बेड़ा पार।
नश्वर सारे जीव हैं, नश्वर ये संसार।।

चार दिनों की चाँदनी, फिर अंधेरी रात।
वक्त करे जब न्याय तो, देता सबको मात।।
धन-दौलत में डूब कर, मत करना अभिमान।
मोह-लोभ को त्याग दे, कर प्रभु का गुणगान।।
भव बंधन से मुक्त हो, कर जीवन साकार।
नश्वर सारे जीव हैं, नश्वर ये संसार।।

राधा मीरा देखिये, तुलसी शबरी सूर।
रहे भक्ति में लीन ये, जगत मोह से दूर।।
राम नाम में शक्ति है, इसका मनका फेर।
शाश्वत ईश्वर एक है, देह मृदा का ढेर।।
मौत अटल बस सत्य है, कर्म बने आधार।
नश्वर सारे जीव हैं, नश्वर ये संसार।।

हम पानी के बुलबुले, रहना दिन दो चार।।
नश्वर सारे जीव हैं, नश्वर ये संसार।

स्वरचित
बलबीर सिंह वर्मा
सिरसा (हरियाणा)


दिनांक-२८/१२/२०१९ (शनिवार)
विषय:-नश्वर
विधा-मुक्तक छन्द

सदा तौलते रहिये बाबू, धरम-करम की माया।
इस'नश्वर'जीवन में तुमने,क्या खोया-क्या पाया?
स्वार्थपरकता सीख ली बेशक,सेवाभाव भूलकर,
जिस हेतु यह जनम मिला है, शायद व्यर्थ गंवाया।

जीवन मिला समंदर जितना,अंगुल जितनी काया।
इस'नश्वर'काया की खातिर,शाश्वत जन्म गंवाया।
मेरा-तेरा करते-करते, भूल तू ये कर बैठा,
जिसका वादा करके आया,उसको आज भुलाया।।

स्वरचित रचना-
रचनाकार-चरण सिंह'प्रजापति'हिण्डौन सिटी(राज.

28/12/2019
विषय:-नश्वर
विधा:-स्वतंत्र काव्य

नश्वर जीव-जगत की काया
सम्पूर्ण सृष्टि ईश्वर की माया

प्रकृति सुकोमल तरुवर छाया
विश्व विदित सब सुंदर माया

प्रियजन अरु परिवार की माया
मोह-लोभ दुनिया में समाया

अजर-अमर आत्मा ही भाया
बिना आत्मा शून्य है काया

मनीष कुमार श्रीवास्तव
स्वरचित

28/12/19
नश्वर

गीतिका छंद
२१२२ २१२२ २१२२ २१२

रीतियाँ नश्वर जगत की यों निभाना चाहिए ,
चार दिन की ज़िंदगी का ढंग आना चाहिए ।

राख से पहले यहाँ क्यों हो रहा जीवन धुआँ,
ध्यान चरणों में सदा प्रभु के लगाना चाहिये।

देह माटी की बनी अभिमान इस पर क्यों करें ,
मोह माया से परे ,जीवन बिताना चाहिए ।

ईश है कारक सदा से ,भाव कारक क्यों रखे
कर्म से झोली भरें अब पुण्य पाना चाहिए ।

पाप करते जा रहे क्यों ,धर्म के धारक बनें ,
कीर्ति से शोभित पताका ही दिखाना चाहिए ।

स्वरचित
अनिता सुधीर

नश्वर
नमन मंच भावों के मोती। गुरूजनों,मित्रों।


नश्वर तेरा ये सुन्दर तन है।
ये एक दिन मिट जायेगा।
कर्म जगत में कुछ अच्छे कर लो।
वही साथ में जायेगा।

नश्वर सब हैं जीव यहां।
नश्वर यह संसार है।
बस एक कर्म है अमर जगत में।
कर्म हीं जीवन का आधार है।

कुछ कर लो काम यहां अच्छे।
देख रहा है ऊपरवाला।
गर्व नहीं करना इस नश्वर तन पर।
ये तन है एक दिन मिटनेवाला।

वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
स्वरचित

28/12/2019
विषय-नश्वर

विधा-दोहे

नश्वर इस संसार में,सब कुछ तो है क्षणिक।
सुकर्म तू कर ले बंदे,,सोच जरा ले तनिक।।१।।

माटी की काया बनी,माटी में मिल जाय।
परिवर्तन तो नियत है,नश्वर सब हो जाय।।२।।

गया समय आता नहीं, कार्य करो तुम आज।
जीव,वस्तु सब नश्वर है,पूर्ण कर सब काज।।३।।

नश्वर जीवन जग मिथ्या,विधाता का विधान।
सब नष्ट हो जाएगा,बात हमारी मान।।४।।

*वंदना सोलंकी*©स्वरचित

दिनांक २८/१२/२०१९
शीर्षक_"नश्वर"


नश्वर है ये जिंदगी
कर ले तू ईश्वर की बंदगी
परमेश्वर है सबके साथ
उनकी बंदगी से ही सार्थक नाम।

करे जो उनकी बंदगी,
पार हो जाये ये नश्वर जिंदगी
धन दौलत,मोह माया
धरा रह जाये इसी धरा पर।

साथ जाये बस कर्म अपना
शुभ कर्म करके सदा
अमर कर ले नाम अपना
नश्वर है ये जिंदगी।

राजा हो या प्रजा
त्यागे स्वार्थ,करे परमार्थ
शत्रु हो या मित्र
मिलकर रहे सभी।

नश्वर है ये जिंदगी
कर ले इश्वर की बंदगी
भज ले हरी का नाम
हो जायेगा जग पार।

स्वरचित आरती श्रीवास्तव।
28/12/19
नश्वर


नश्वर काया
नश्वर माया
क्या कमाया
क्या खोया
है मन का
यह भ्रम
जाना नहीँ
किसी ने
यह मर्म

रहते जब तलक
दुनियां में
मेरा तेरा करता
इन्सान
पहुँचता जब
श्मशान शरीर
चिता में जलते
है अरमान

है कैसी
विडम्बना
जीवन में
लूट खसोट
करता इन्सान
कभी भ्रष्टाचार
कभी घोटाले
करता अपना
नाम बदनाम

जन्म से ही
समझे इन्सान
है नश्वर ये तन
आता जाता
रहता धन
करें सेवा
सब की हम
रखे साफ
इन्सान मन

स्वलिखित
विषय-नश्वर
नश्वर है संसार ये

अमर राम का नाम।
नित सांझ-सकारे
लेना हरि का नाम।।
कोई नहीं तेरा यहां
झूठे सारे रिश्ते नाते।
वक्त पड़े मुश्किल में
कोई काम ना आते।।
माया-मोह को त्याग
प्रभु में ध्यान लगा यार।
यह जन्म ही नहीं तू तो
अगला जन्म भी सुधार।।
स्वरचित- निलम अग्रवाल, खड़कपुर


विषय-नश्वर

जो आया है जायगा,नश्वर है यह देह।
मिट्टी का यह तन बना ,करो न इससे नेह।।

नश्वर है यह जिंदगी,छूटेंगे जब प्राण।
सुखों-दुखों से जगत के,पा जायेगा त्राण।।

अंत समय जब आ गया,जाना खाली हाथ।
जोड़-जोड़ धन तू मरा, कुछ न जाए साथ।।

जीवन जल का बुलबुला,पल में ही मिट जाय।
जल में ही मिल जाय जब, फिर नहीं दे दिखाय ।।

जीवन क्षणभंगुर तेरा ,इतना ले तू जान।
धन-वैभव से दूर हो,प्रभु में धर ले ध्यान।।

सरिता गर्ग

तिथि-28/12/2019/ शनिवार
विषय -*नश्वर*

विधा॒॒॒ -काव्य

नश्वर काया नश्वर माया,
नश्वर यहां ये संसार है।
नहीं कोई सचमुच हमारा
लगे जग सारा व्यापार है।

खाली हाथ आए थे सबही
खाली हाथों ही जाऐंगे।
ऐसा ही संसार यहीं पर
हम सभी छोडकर जाऐंगे।

सत्य सनातनी नियम यही है।
अपना कोई यहां नहीं है।
नश्वरता में जीती दुनिया,
मानो इसका सार नहीं है।

देखो फिर इससे चिपका हूं।
पता नहीं क्यों यूं लपका हूं।
आजकल में मुझे भी जाना,
ले उधार जीवन लटका हूं।

स्वरचितःः
इंजी शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना गुना मध्य प्रदेश

विषय-नश्वर
विधा-कविता

दिनांकः 28/12/2019
शनिवार

नश्वर सारे जीव जन्तु हैं
नश्वर सबकी काया
नाशवान सारे यहाँ
नाशवान सब माया
सब धन दौलत है
नाशवान ये
एक आत्मा अजर अमर
जिसने जन्म लिया
धरती पर उन सबको
इक दिन जाना
जो संग्रह तू कर रहा
यहीं पर रहे
माल खजाना
क्या लेकर कोई
आया है
क्या लेकर अब जाना
मत गर्व करो
धन दौलत पर
जब ये यहीं छोड़ कर जाना
छोड सारे छल प्रपंच
क्यों झूठे जग में
तू भरमाया
नश्वर केवल प्रभु हैं
क्यों नहीं उसको जपता
क्यों नश्वर जग के
पीछे अब दौडे फिरता

स्वरचित एवं स्वप्रमाणित
डॉ एन एल शर्मा जयपुर 'निर्भय,



28/12/19
विषय-नश्वर

विधा छंद-मुक्त

आत्म बोध

निलंबन हुवा निलाम्बर से
भान हुवा अच्युतता का
कुछ क्षण
गिरी वृक्ष चोटी ,इतराई
फूलों पत्तों दूब पर देख
अपनी शोभा मुस्काई ।

गर्व से अपना रूप मनोहर
आत्म प्रशंसा भर लाया
सूर्य की किरण पडी सुनहरी
अहा शोभा द्विगुणीत हुई !
भाव अभिमान के थे अब
उर्धवमुखी।

हा भूल गई " मैं "
अब निश्चय है अंत पास में
मैं तुषार बूंद नश्वर,भूली अपना रूप
कभी आलंबन अंबर का
कभी तृण सहारे सा अस्तित्व
पर आश्रित नाशवान शरीर
या
"मैं "आत्मा अविनाशी
भूल गई क्यों शुद्ध स्वरूप
अपना।
स्वरचित
कुसुम कोठारी।

विषय, नश्वर .
दिनांक, 28,12, 2019.

शनिवार .

नश्वर सब संसार है ,
फिर भी करते प्रीत।
कठपुतली मानव हुआ,
यही बनी है रीत।।

माया ममता का रचा,
जग का सारा जाल ।
रेशम का बंधन बना ,
रिश्तों का जंजाल ।।

जानबूझ कर हो गया ,
दौलत के आधीन।
दुनियाँ दारी दी भुला,
अपने में ही लीन ।।

चला चली चलती रहे ,
कुछ पल को गमगीन ।
नश्वर काया के लिए ,
तड़पे जल बिन मीन ।।

बड़े बड़े ज्ञानी मिटे ,
मन ही बनता नीच ।
सारा जग ये चल रहा,
मन की आँखें मीच ।।

जिसने जाना भेद ये ,
उसकी होती जीत ।
नश्वर इस संसार से ,
करना कभी न प्रीत।।

स्वरचित , मधु शुक्ला .
सतना , मध्यप्रदेश .

विषय- नश्वर
विधा-मुक्त

दिनांक -28 / 12 /19

अजर, अमर ,अभेद्य ,अछेद्य
रुह का आलय नश्वर है
धरा-गगन के मध्य दिखती
हर शैय नश्वर है

नश्वर फूल -पात, शूल हैं
तो नश्वर ही ये काया है
फिर भी नहीं मानता मानव
घमंड में मरता रहता है

ईश्वर प्रदत्त जिस्म से करता खिलवाड़ है
अपने ही बनाए संस्कारों से करता बलात्कार है

माटी तन है, माटी में मिल जाना है
पर दिल से अधिक दिमाग से
लेता नहीं काम है

माना के कायनात में जीवन आना- जाना है
फिर भी बंदा इस जनम में ही चाहता सबकुछ पाना है

साधु-संत की अमर वाणी का करके तिरस्कार
लोभी, ढोंगी बाबाओं की सुनकर करता व्यभिचार है

काल का गजर है बज रहा
चेत मानखां
नश्वर है तू इक दिन तो मिट जायेगा
जितनी साँसे दी ईश्वर ने
उतना तो जिंदगी बना।

डा. नीलम






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