ब्लॉग की रचनाएँ सर्वाधिकार सुरक्षित हैं एवं बिना लेखक की अनुमति के कहीं भी प्रकाशन एवं साझा नहीं करें |
भावनायें जुड़ी कईं हजार,
नि:स्वार्थ भाव होगा जब,
सेवा तभी होती साकार |
माता-पिता की जब होती सेवा,
आशीष मिले हमें अपार,
मन में सुकुन फिर मिलता है,
खुशियों की आ जाये बहार |
समाज सेवा कुछ कर ले बंदे,
मिट जायेंगे तेरे सारे विकार,
मानव जन्म मिला है तुझको,
प्रभु का है ये उपकार |
देश-सेवा की जब आये बारी,
पीछे न करना तू पारी,
दुश्मन के छक्के तू छुड़ाना,
खदेड़ देना उसे देश के बाहर|
स्वरचित *संगीती कुकरेती*
सेवा भाव सकल जग उपजै।
मानव मानव का उपकारी।
लोक परलोक सुधारे सबके।
जो हो सेवा भाव परायणे।
कठिन पथ की यह पथिकता।
नही क्षण यह पुरी होती।
नित हर नित जुट जाना होता।
दुर्गम पथ अपनाना होता ।
न तनिक श्रेय न यश लालसा।
बस निरंतर और निरंतरता।
सेवा भाव सेवादान भावनाऐं।
उत्तम् सेवा उत्तम उपकार।
मानवता की यही पहचान।।
🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
स्वरचितः
राजेन्द्र कुमार#अमरा#
ऐसा प्रभु वर दो हमें मँहके जीवन हमारा ।।
सेवा भाव हो मन में बनूँ मानवता का सितारा
मानव जीवन धन्य हो प्रभु मन में करो उजारा ।।
अच्छे बुरे की हो पहचान बुराई न फटके द्वारा
मन में मूरत हो तुम्हारी बनूँ औरों का सहारा ।।
इतनी शक्ति सदा ही देना बुराई से करूँ किनारा
उर में औरों की सेवा जब तक सांसों का पिटारा ।।
कुदरत की हर शै ने परहित का काम सँवारा
हम तो ''शिवम" मानव हैं क्यों न ये विचारा ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
वर्णकंजूसी
हाइकू का संसार
बाशो सेवक
2
हाइकु विधा
बाशो है जन्मदाता
सेवा वर्णो की
3
जापानी भाषा
सुंदर हैं हाइकु
हिंदी तराशा
स्वरचित
कुछ लोग धरा पर होते हैं
अपने सारे सुख खोते हैं
बस दूजों की पीड़ा हरते
#सेवा करते जीते मरते
इनको भोगों की चाह नही
प्रण से हटकर कोई राह नही
बस एक उद्देश्य निहारा है
#सेवा का व्रत ही धारा है
न लालच है न तृष्णा है
कुदरत की अद्भुत रचना हैं
हैं दया धर्म से ओतप्रोत
मन में रखते न कोई खोट
धरती पहाड़ बादल झरना
सब जीव जंतु सारी रचना
करते न कोई भेद कभी
ईश्वर का देखें रूप सभी
इनकी आंखों में सपना है
जो कुछ भी है वो अपना है
हमको भी साथ निभाना है
अब मानुष धर्म निभाना है
जिस दिन सारे मिल जाएंगे
परहित को धर्म बनाएंगे
हर मन में #सेवा भाव बने
तो क्यों न वसुधा स्वर्ग बने।
~प्रभात
शब्दकोष में सेवा जैसा
कोई शब्द नहीं बना है
आत्मा परमात्मा मिलन
जो सेवा से ही सना है
सेवा से मेवा मिलते हैं
सेवा से संतोष मिलता
नहीं कार्य कोई जग में
जो सेवा से है नहीं बनता
सेवा मिलती है किस्मत से
वरद हस्त कर्तारक प्रभु से
जीवन तो सब ही जीते हैं
पर,लौ लगी हो जग विभु से
सेवा से रावण दस्कन्दर
सेवा से हिरणा कश्यप
वरदानों की झड़ी लगी थी
दिन रात किये थे जपतप
आशीर्वचन मिलते सेवा से
सेवा बल सबने पाया है
हाथ पसारे सब ही जाते
संग साथ मे क्या लाया है
सेवा कर से नहीं होती है
सेवा तो अन्तरदिल होती
दया ममता उमड़ पड़ती है
सेवा में आँखे रो पड़ती
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
रचयिता पूनम गोयल
कहते है कि करो सेवा तो ,
मिलती है मेवा ।
फिर वह वृद्धों की , शिशुओं की ,
हो अथवा भाई-बंधुओ की सेवा ।।
क्या सत्यमेव
सेवा का कार्य ,
इतना महान है ?
जिसका वर्णन
यदा-कदा करता ,
यह सारा जहाँ है ।।
हाँ , शायद यही यथार्थ है ,
क्योंकि सेवा सभी के लिए लाभवान है ।
जब हम किसी के लिए
प्रयत्न करें तो ,
तो उसका दुःख-निवारण हो ।
साथ-साथ एक उत्तम कार्य के पश्चात् ,
स्वयं का स्वयं की दृष्टि में ,
मान-वर्धन हो ।।
सत्य ही है -
यह कथन कि
सेवा परम धर्म है ।
इससे परे नहीं उत्तम ,
कोई अन्य कर्म है ।।
सेवा करें समाज की, यही मनुज का धर्म।
ईश्वर उसके साथ है, जो समझे यह मर्म।१।
जनहितकारी है नहीं, दूर करो यह ऐब।
जनसेवा के नाम पर, छोड़ो भरना जेब।२।
० श्लेष चन्द्राकर ०
सेवा
कलयुग में माँगे मेवा
सत्यवाद का बोलबाला
जोर पकड़ रहा
स्पष्ट खुले में
मेवा माँग रहा
पुराणों को धिक्कारती
आज की सेवा।
वीणा शर्मा वशिष्ठ
Abhilasha Chauhan
पर सेवा परोपकार,
मानव के हैं संस्कार।
कर मानवधर्म अंगीकार,
करते सदा जगत-उपकार।
निस्वार्थ भाव से होते पूर्ण,
संस्कार होते संपूर्ण।
दीन-हीन दुखियों के उद्धारक,
अत्याचार के होते संहारक।
आबाल-वृद्ध की करते सेवा,
कभी नहीं थकते है देखा।
सेवा ही जीवन का लक्ष्य,
कर्म से सदा होती प्रत्यक्ष।
एक उदाहरण ऐसा जग में,
चांद सा चमके इस नभ में।
मदर टेरेसा नाम है उनका,
सेवा ही था धर्म जिनका।
कितनों का जीवन संवारा,
कितनों को दिया सहारा।
दीन-हीन की थी वे आशा,
देख उन्हें मिटती थी हताशा।
नाम अमर उनका है जग में,
चमकी बनके तारा नभ में।
अभिलाषा चौहान
सेवा नि:स्वार्थ
भावना परमार्थ
जन्म कृतार्थ
##
नि:स्वार्थ सेवा
करते माता-पिता
याद रखना
##
मतों की सेवा
जनता जनार्दन
करके रोया
##
हमारे नेता
करते देश सेवा
या खाते मेवा
No comments:
Post a Comment