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ब्लॉग संख्या :-233
समन्दर कितना ही गहरा क्यों न हो,
नौका पार लगा ही लेगें हम,
हौंसलें बुलंद होंगें अगर,
बाजुओं को पतवार बना लेंगें हम
इस जीवन रूपी समन्दर में,
कठिनाइयों के भँवर भी जरूर मिलेंगें,
लक्ष्य को पतवार बनाकर,
किनारे पर जरूर पहुँच जायेंगें हम |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
नौका पार लगा ही लेगें हम,
हौंसलें बुलंद होंगें अगर,
बाजुओं को पतवार बना लेंगें हम
इस जीवन रूपी समन्दर में,
कठिनाइयों के भँवर भी जरूर मिलेंगें,
लक्ष्य को पतवार बनाकर,
किनारे पर जरूर पहुँच जायेंगें हम |
स्वरचित *संगीता कुकरेती*
बनकर के पतवार कहाँ न धाये प्रभुवर
जब जब हम घबड़ाये वहाँ आये प्रभुवर ।।
जब मीरा के बहे नीर चीर बढ़ाये प्रभुवर
प्रहलाद आग में थे नरसिंग बन आये प्रभुवर ।।
बाँधे डोर जो सच्ची दरश दिखाये प्रभुवर
तुलसी के सदा सहायक कहलाये प्रभुवर ।।
मीरा का विष प्याला गले लगाये प्रभुवर
भँवर में फँसे निरीह को स्वयं उठाये प्रभुवर ।।
गज ग्राह की लड़ाई में गज बचाये प्रभुवर
सबसे बड़ी पतवार'शिवम' कहाये प्रभुवर ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/12/2018
जब जब हम घबड़ाये वहाँ आये प्रभुवर ।।
जब मीरा के बहे नीर चीर बढ़ाये प्रभुवर
प्रहलाद आग में थे नरसिंग बन आये प्रभुवर ।।
बाँधे डोर जो सच्ची दरश दिखाये प्रभुवर
तुलसी के सदा सहायक कहलाये प्रभुवर ।।
मीरा का विष प्याला गले लगाये प्रभुवर
भँवर में फँसे निरीह को स्वयं उठाये प्रभुवर ।।
गज ग्राह की लड़ाई में गज बचाये प्रभुवर
सबसे बड़ी पतवार'शिवम' कहाये प्रभुवर ।।
हरि शंकर चाैरसिया''शिवम्"
स्वरचित 10/12/2018
जीवन की नैया और खुद ही खेवैया,
बीच मझधार फंसी है पतवार,
उलझा है सबकुछ भँवर भी है गहरा,
कैसे पहुंचेंगे उलझन के पार।
बड़ी बेबसी है ये कैसी घड़ी है,
जहां राह कोई नज़र में नहीं है,
हरेक ओर जलमग्न दुनिया दिखे है,
आँखें मगर मेरी सूखी और खाली।
हाथों को अपने समझकर सहेली,
बनाया है खुद को ही मैंने पतवार,
कहीं कोई रस्ता निकल ही पड़ेगा,
होना ही होगा भँवर के उस पार।
बीच मझधार फंसी है पतवार,
उलझा है सबकुछ भँवर भी है गहरा,
कैसे पहुंचेंगे उलझन के पार।
बड़ी बेबसी है ये कैसी घड़ी है,
जहां राह कोई नज़र में नहीं है,
हरेक ओर जलमग्न दुनिया दिखे है,
आँखें मगर मेरी सूखी और खाली।
हाथों को अपने समझकर सहेली,
बनाया है खुद को ही मैंने पतवार,
कहीं कोई रस्ता निकल ही पड़ेगा,
होना ही होगा भँवर के उस पार।
फरीदाबाद,हरियाणा
जीवन की पावन पतवार
आत्म विश्वास बड़ा सहारा
जन जीवन का प्रिय आधार
दृढ़ निश्चय की पतवारों से
विजय माल गले मे सजती
सुधा स्नेह के बल पर ही
कर कमनीय महावर रचती
स्नेह दया की नाव बनालो
कड़े परिश्रम की पतवार
राम नाम का प्याला पी लो
भव सागर हो जाओ पार
जलनिधि की गर्जन होगी
तूफानी लहरों से लड़ना
प्रभंजन के झोंके होंगे
कभी भूल से मत तुम डरना
श्रम पतवारों के बल पर
अंतरिक्ष पताका फहराई
सिंधु सतह पहुंच कर हमने
मोती माणक खुशियां पाई
श्रमी कड़ी मेहनत वालो की
पतवारों से मंजिल पाई है
मात पिता गुरु जन आशीष से
जीवन मे खुशहाली छाई है।।
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
जन जीवन का प्रिय आधार
दृढ़ निश्चय की पतवारों से
विजय माल गले मे सजती
सुधा स्नेह के बल पर ही
कर कमनीय महावर रचती
स्नेह दया की नाव बनालो
कड़े परिश्रम की पतवार
राम नाम का प्याला पी लो
भव सागर हो जाओ पार
जलनिधि की गर्जन होगी
तूफानी लहरों से लड़ना
प्रभंजन के झोंके होंगे
कभी भूल से मत तुम डरना
श्रम पतवारों के बल पर
अंतरिक्ष पताका फहराई
सिंधु सतह पहुंच कर हमने
मोती माणक खुशियां पाई
श्रमी कड़ी मेहनत वालो की
पतवारों से मंजिल पाई है
मात पिता गुरु जन आशीष से
जीवन मे खुशहाली छाई है।।
स्व0 रचित
गोविन्द प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
हूं बीच समन्दर मे पतवार नही कोई।
कश्ती के मुसाफिर ने लहरो को पुकारा है।
रातो की सियाही का रन्ज नही मुझको।
इक चांद को सीने मे हमने भी उतारा है।
कातिल ही सही मेरा कुछ बात तो है तुझमे।
होने न दी खबर मुझको इस प्यार से मारा है।
हम भूल गये होंगे तो ये भूल तुम्हारी है।
गर्दिश की निगाहों मे जवां बेताब नजारा है।
दुश्मन तो हजारों ही दुनिया मे है उल्फत के।
फिर तूने ही क्यूं खंजर मेरे दिल मे उतारा है।
बस्ती के ये बाशिन्दे खामोश है क्यूं ! सोहल।
क्या फिर नगीं सियासत ने मासूम को मारा है।
हूं बीच समन्दर मे पतवार नही कोई।
कश्ती के मुसाफिर ने लहरों को पुकारा है।
विपिन सोहल
कश्ती के मुसाफिर ने लहरो को पुकारा है।
रातो की सियाही का रन्ज नही मुझको।
इक चांद को सीने मे हमने भी उतारा है।
कातिल ही सही मेरा कुछ बात तो है तुझमे।
होने न दी खबर मुझको इस प्यार से मारा है।
हम भूल गये होंगे तो ये भूल तुम्हारी है।
गर्दिश की निगाहों मे जवां बेताब नजारा है।
दुश्मन तो हजारों ही दुनिया मे है उल्फत के।
फिर तूने ही क्यूं खंजर मेरे दिल मे उतारा है।
बस्ती के ये बाशिन्दे खामोश है क्यूं ! सोहल।
क्या फिर नगीं सियासत ने मासूम को मारा है।
हूं बीच समन्दर मे पतवार नही कोई।
कश्ती के मुसाफिर ने लहरों को पुकारा है।
विपिन सोहल
विधा - गद्य
संसार एक सागर है । सृष्टि कर्त्ता ने छोड़ दिया है इसमें हमें हाथ पैर चलाने, और कर्म करने के लिए। हम उस बिन पतवार की नैया में यात्रा कर रहे हैं जिसका कोई नाविक भी नही है । हमें स्वयं इस नैया को खेना है। दुख सुख की लहरों के भीषण झंझावात सहती हमारी नैया भवसागर में डूबती - उतराती, थपेड़े खाती बही जा रही है ।
मैं उस जर्जर नाव में आँखें मूंदे बैठी उसपरम पिता परमेश्वर ,सृष्टि सृजन कर्त्ता ,अपनी जीवन नैया के खिवैया को पुकार रही हूँ । मेरी बिन पतवार की नैया
के खेवनहार ,ये झकझोरते झंझावात अब सह न पायेगी मेरी नैया,टूट जाएगी, बिखर जाएगी । चले आओ ,भर दो इतना साहस और विश्वास मुझमें की मैं तर जाऊँ पार हो जाऊँ, इस भवसागर से ।
बिन पतवार चले न नैया
रूठ गए क्यों मेरे सैंया
भव सागर मैं तर न पाऊं
आ जाओ बन मेरे खिवैया
सरिता गर्ग
संसार एक सागर है । सृष्टि कर्त्ता ने छोड़ दिया है इसमें हमें हाथ पैर चलाने, और कर्म करने के लिए। हम उस बिन पतवार की नैया में यात्रा कर रहे हैं जिसका कोई नाविक भी नही है । हमें स्वयं इस नैया को खेना है। दुख सुख की लहरों के भीषण झंझावात सहती हमारी नैया भवसागर में डूबती - उतराती, थपेड़े खाती बही जा रही है ।
मैं उस जर्जर नाव में आँखें मूंदे बैठी उसपरम पिता परमेश्वर ,सृष्टि सृजन कर्त्ता ,अपनी जीवन नैया के खिवैया को पुकार रही हूँ । मेरी बिन पतवार की नैया
के खेवनहार ,ये झकझोरते झंझावात अब सह न पायेगी मेरी नैया,टूट जाएगी, बिखर जाएगी । चले आओ ,भर दो इतना साहस और विश्वास मुझमें की मैं तर जाऊँ पार हो जाऊँ, इस भवसागर से ।
बिन पतवार चले न नैया
रूठ गए क्यों मेरे सैंया
भव सागर मैं तर न पाऊं
आ जाओ बन मेरे खिवैया
सरिता गर्ग
सोंपी जब पतवार प्रभु के हाथों,
हमें सब चिंताओं से मुक्ति मिले।
खैवनहार बने जब संसार रचैया,
हमें सदा सुखद अनुरक्ति मिले।
नहीं कोई बाधाऐं आऐंगी जग में,
नहीं कोई दुनिया में बदहाल रहेंगे।
सभीजन हम उस परमेश कृपा से,
निश्चित सभी सदा खुशहाल रहेंगे।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना. गुना म.प्र.
हमें सब चिंताओं से मुक्ति मिले।
खैवनहार बने जब संसार रचैया,
हमें सदा सुखद अनुरक्ति मिले।
नहीं कोई बाधाऐं आऐंगी जग में,
नहीं कोई दुनिया में बदहाल रहेंगे।
सभीजन हम उस परमेश कृपा से,
निश्चित सभी सदा खुशहाल रहेंगे।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
मगराना. गुना म.प्र.
भक्ति में शक्ति बड़ी बनते बिगड़े काम
पीड़ा से मुक्ति मिले मन पाए आराम।
भक्ति में शक्ति बड़ी करे जो भी नर - नार
हर संकट से मुक्त हो कर दे भव से पार।
ये जग सारा भँवर है जीवन है मंझधार
शक्ति है आराधना भक्ति है पतवार।
रोग दोष दारिद्र्य और मिटे दु:ख संताप
भक्ति में शक्ति बड़ी हर ले सारे पाप।
भक्ति में शक्ति बड़ी कर दे कष्ट निदान
कारज सब होवे सफल जन पाए सम्मान।
"पिनाकी"
धनबाद (झारखंड)
पीड़ा से मुक्ति मिले मन पाए आराम।
भक्ति में शक्ति बड़ी करे जो भी नर - नार
हर संकट से मुक्त हो कर दे भव से पार।
ये जग सारा भँवर है जीवन है मंझधार
शक्ति है आराधना भक्ति है पतवार।
रोग दोष दारिद्र्य और मिटे दु:ख संताप
भक्ति में शक्ति बड़ी हर ले सारे पाप।
भक्ति में शक्ति बड़ी कर दे कष्ट निदान
कारज सब होवे सफल जन पाए सम्मान।
"पिनाकी"
धनबाद (झारखंड)
ले चल मांझी तू मुझे बिठा के अपनी नाव
जाना मुझे उस पार है,नदी पार है गाँव।
लहर बीच ले नाव को हाथ थाम पतवार
ओ रे मांझी तू मेरा बन जा खेवनहार।
कई बरस के बाद मैं आया अपने गाँव
व्याकुल है मन मिलन को दौड़ रहे मेरे पाँव।
खेतों की पगडंडियां पीपल की वो छाँव
याद बहुत आता मुझे मेरा प्यारा गाँव।
देर न कर जल्दी चला तू अपनी पतवार
लगा टकटकी देखता राह मेरा परिवार।
"पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)
#स्वरचित
जाना मुझे उस पार है,नदी पार है गाँव।
लहर बीच ले नाव को हाथ थाम पतवार
ओ रे मांझी तू मेरा बन जा खेवनहार।
कई बरस के बाद मैं आया अपने गाँव
व्याकुल है मन मिलन को दौड़ रहे मेरे पाँव।
खेतों की पगडंडियां पीपल की वो छाँव
याद बहुत आता मुझे मेरा प्यारा गाँव।
देर न कर जल्दी चला तू अपनी पतवार
लगा टकटकी देखता राह मेरा परिवार।
"पिनाकी"
धनबाद (झारखण्ड)
#स्वरचित
पतवार
काला धन जमा जो विदेशों में उसे भ्रष्ट नेता,
राजनीति की काली स्याही से कर सफेद रहे हैं।
कर रहे हैं घोटाले कोयला से भी अधिक काले,
किन्तु बिल्कुल भी नहीं कर दुष्ट खेद रहे हैं।
कर के पुष्टी तुष्टीकरण करण चंद वोटों की खातिर दुष्ट,
काला धन जमा जो विदेशों में उसे भ्रष्ट नेता,
राजनीति की काली स्याही से कर सफेद रहे हैं।
कर रहे हैं घोटाले कोयला से भी अधिक काले,
किन्तु बिल्कुल भी नहीं कर दुष्ट खेद रहे हैं।
कर के पुष्टी तुष्टीकरण करण चंद वोटों की खातिर दुष्ट,
नागरिक नागरिक के अन्दर कर अति भेद रहे हैं।
किस्ती धर्म देश की में "पतवार"विधर्मी बैठे,
जिस किस्ती में बैठे कर उसी में ये छेद रहे हैं।
स्वरचित (मौ
किस्ती धर्म देश की में "पतवार"विधर्मी बैठे,
जिस किस्ती में बैठे कर उसी में ये छेद रहे हैं।
स्वरचित (मौ
बहती पुरबैया
कभी अविचल
कभी डगमग नैया
खड़ी बीच मँझधार
विविध विध्न,बहु बाधा
अशांत मन-सा
लहरों ने साधा
जाना,जो उस पार
मांझी,दृढ़ पकड़ पतवार
तज भय
कर निश्चय
ले निज हाथों में पतवार
मांझी,दृढ़ पकड़ पतवार
निशांत हो तो उषा है
हौसला जिजीविषा है
जलधि के अतल हृदय पर
ज्वार-भाटायें भरा है
इस भरे जलधार में
पतवार का ही आसरा है
कर्म ही एक आधार
मांझी,दृढ पकड़ पतवार।
-©नवल किशोर सिंह
स्वरचित
नाव को
दोस्ती का पैगाम दिया
नैय्या ने भी खुशी खुशी
इस दोस्ती को
दिल से बाँध लिया
चल पड़े एक सफर में
दोनों ने एकदूजे का
हाथ थाम लिया
बीच सफर में एकदिन
आचानक
तूफानों नें घेर लिया
डूब रही नैय्या को
पतवार ने
बाँहों का सहारा दिया
लहरों से टकराकर भी
नैय्या को
साहिल तक छोड़ दिया
नैय्या कहे पतवार से
किनारे पर क्यूँ तूने
मुझसे
मुँह मोड़ लिया
डूब रही थी मझधार में
फिर तो तूने
तूफानों को भी रोक लिया
अब क्यूँ बढ़ गई
दिलों में ये दूरियाँ
तू ही बता
क्या है तेरी मजबूरियाँ
स्वरचित पूर्णिमा साह
"पतवार " शीर्षकांतर्गत कुछ दोहे --
जिंदगी मझधार फँसे, समझ बने पतवार।
बुद्धि ज्ञान मंथन करें , मिलेंगे तब किनार।।1।।
बुद्धि पतवार बना के, खेवें जीवन नाव।
जितनी दुर्गम धार हो, पाएँ माकुल ठाँव।।2।।
जीवन सरिता धार में , कर्म होत पतवार।
दम रखें बाजू बल में, जीवन लेत सँवार।।3।।
अपने मन आवेग को, भाव बना पतवार।
बुद्धि अरु ज्ञान बढ़ा के, जिंदगी लो सँवार।।4।।
भव-सागर में जीवन-नैया,
पल-पल हिचकोले खाती।
थाम रखी पतवार हाथ में
मंजिल नजर न आती।
सागर की लहरें उठ-उठकर
पल-पल हैं हमें डराती,
उम्मीदों की पतवार हाथ में,
हिम्मत और बढ़ जाती।
चाहे कितने संकट आएं,
चाहे बीच भंवर फंस जाएं।
बनकर पतवार बुद्धि तब,
नयी राह हमें दिखाती।
आशाओं से जगमग मन है,
कर्म करने की अटूट लगन है।
दृढ़ निश्चय पतवार बना है,
जीवन-नैया आगे बढ़ती जाती।
अभिलाषा चौहान
जीवन नैया,
संसार सागर में,
प्रभु ने डाला,
अपने कर्म बल,
पतवार से खोना।।
साहित्य सागर में,
कलम बने पतवार।
भावों की गरिमा,
रहे सदा बरकरार।
ऐसा हो समर्पित,
मन हर रचनाकार..।
कलम जब पतवार बने,
भावों की लहरों पर सवार
शब्द नैया पहुंचे हर मन के द्वार।
शब्द संस्कृति,शब्द ही संस्कार।
शब्दकोश की उत्कृष्टता,
है विस्तृत काव्य आधार।
कवि कलम पतवार से,
सजाए काव्य महासागर
कवि धर्म यह कहता
सत्य पर सदा अडिग रहो
मत बेच कलम पतवार
बेशक हो फंसे मझधार
जिंदगी मझधार फँसे, समझ बने पतवार।
बुद्धि ज्ञान मंथन करें , मिलेंगे तब किनार।।1।।
बुद्धि पतवार बना के, खेवें जीवन नाव।
जितनी दुर्गम धार हो, पाएँ माकुल ठाँव।।2।।
जीवन सरिता धार में , कर्म होत पतवार।
दम रखें बाजू बल में, जीवन लेत सँवार।।3।।
अपने मन आवेग को, भाव बना पतवार।
बुद्धि अरु ज्ञान बढ़ा के, जिंदगी लो सँवार।।4।।
--रेणु रंजन
पल-पल हिचकोले खाती।
थाम रखी पतवार हाथ में
मंजिल नजर न आती।
सागर की लहरें उठ-उठकर
पल-पल हैं हमें डराती,
उम्मीदों की पतवार हाथ में,
हिम्मत और बढ़ जाती।
चाहे कितने संकट आएं,
चाहे बीच भंवर फंस जाएं।
बनकर पतवार बुद्धि तब,
नयी राह हमें दिखाती।
आशाओं से जगमग मन है,
कर्म करने की अटूट लगन है।
दृढ़ निश्चय पतवार बना है,
जीवन-नैया आगे बढ़ती जाती।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
संसार सागर में,
प्रभु ने डाला,
अपने कर्म बल,
पतवार से खोना।।
देवेन्द्र नारायण दास
कलम बने पतवार।
भावों की गरिमा,
रहे सदा बरकरार।
ऐसा हो समर्पित,
मन हर रचनाकार..।
कलम जब पतवार बने,
भावों की लहरों पर सवार
शब्द नैया पहुंचे हर मन के द्वार।
शब्द संस्कृति,शब्द ही संस्कार।
शब्दकोश की उत्कृष्टता,
है विस्तृत काव्य आधार।
कवि कलम पतवार से,
सजाए काव्य महासागर
कवि धर्म यह कहता
सत्य पर सदा अडिग रहो
मत बेच कलम पतवार
बेशक हो फंसे मझधार
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
पतवार बनो उपकार करो ,निज जीवन का उद्धार करो |
ना केवल सफल बनो प्यारे ,सार्थकता अंगीकार करो ||
पतवार बनो उस पीड़ित की ,जो जीवन पथ पर भटक रहा |
मंजिल तक उसको पहुंचाओ, आगे बढ़ने जो अटक रहा ||
हैं स्वप्न अधूरे कितनों के ,कुछ तो उन्हें साकार करो |
पतवार बनो उपकार करो, निज जीवन का उद्धार करो ||
मानवता रूपी नैया को ,बनकर पतवार संभालें |
सच्चाईऔर अच्छाई की राह में,इसे हम डालें ||
देश समाज की सेवा को ,अपना आधार करो |
पतवार बनो उपकार करो,निज जीवन का उद्धार करो ||
है सच्चा इंसान वही, जो काम सभी के आए |
सेवा और समर्पण को ,जीवन का अंग बनाये ||
*सरस* कहे पतवार ,न जीवन में,व्यर्थ तकरार करो |
पतवार बनो उपकार करो,निज जीवन का उद्धार करो ||
ना केवल सफल बनो प्यारे ,सार्थकता अंगीकार करो |
पतवार बनो उपकार करो,निज जीवन का उद्धार करो ||
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स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी *सरस
ना केवल सफल बनो प्यारे ,सार्थकता अंगीकार करो ||
पतवार बनो उस पीड़ित की ,जो जीवन पथ पर भटक रहा |
मंजिल तक उसको पहुंचाओ, आगे बढ़ने जो अटक रहा ||
हैं स्वप्न अधूरे कितनों के ,कुछ तो उन्हें साकार करो |
पतवार बनो उपकार करो, निज जीवन का उद्धार करो ||
मानवता रूपी नैया को ,बनकर पतवार संभालें |
सच्चाईऔर अच्छाई की राह में,इसे हम डालें ||
देश समाज की सेवा को ,अपना आधार करो |
पतवार बनो उपकार करो,निज जीवन का उद्धार करो ||
है सच्चा इंसान वही, जो काम सभी के आए |
सेवा और समर्पण को ,जीवन का अंग बनाये ||
*सरस* कहे पतवार ,न जीवन में,व्यर्थ तकरार करो |
पतवार बनो उपकार करो,निज जीवन का उद्धार करो ||
ना केवल सफल बनो प्यारे ,सार्थकता अंगीकार करो |
पतवार बनो उपकार करो,निज जीवन का उद्धार करो ||
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स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी *सरस
नौंका मजधार है
हौसलों की पतवार है
चलने का नाम जीवन है
रूकना अवसान है।
बीच धारा नीर अपारा
बढ़ते चलों अविरल
चीर तीर तूफानों के
यही कर्म व्यापार है।
नौंका मजधार है
हौसलों की पतवार है
चलने का नाम जीवन है
रूकना अवसान है।।
# रश्मि अग्निहोत्री,
हौसलों की पतवार है
चलने का नाम जीवन है
रूकना अवसान है।
बीच धारा नीर अपारा
बढ़ते चलों अविरल
चीर तीर तूफानों के
यही कर्म व्यापार है।
नौंका मजधार है
हौसलों की पतवार है
चलने का नाम जीवन है
रूकना अवसान है।।
# रश्मि अग्निहोत्री,
है कठिन अब रास्ता मां,थाम लो #पतवार।
बस तुम्हारा आसरा है,अब करो तुम पार।।
मात तेरे हैं सवाली,कर रहे गुनगान।
प्रेम हो सबमें यही बस, मांगते वरदान।।
प्रीत मां से जो लगी है,खिल उठा संसार।
जिंदगी तेरी अमानत,जीत दो या हार।।
रोग बाधा क्यों सताये,कर सदा संधान।
शान नित तेरी बढ़ेगी,कर जरा तू ध्यान।।
गुनगुनाते बस रहो तुम,गर कठिन हो राह।
मुस्करा कर पूर्ण होगी, जो करो तुम चाह।।
तन खिलौना मान लो तुम, है यही बस ज्ञान।
आज कल की आस में तू,क्यों फिरे नादान।।
चंचल पाहुजा
दिल्ली
बस तुम्हारा आसरा है,अब करो तुम पार।।
मात तेरे हैं सवाली,कर रहे गुनगान।
प्रेम हो सबमें यही बस, मांगते वरदान।।
प्रीत मां से जो लगी है,खिल उठा संसार।
जिंदगी तेरी अमानत,जीत दो या हार।।
रोग बाधा क्यों सताये,कर सदा संधान।
शान नित तेरी बढ़ेगी,कर जरा तू ध्यान।।
गुनगुनाते बस रहो तुम,गर कठिन हो राह।
मुस्करा कर पूर्ण होगी, जो करो तुम चाह।।
तन खिलौना मान लो तुम, है यही बस ज्ञान।
आज कल की आस में तू,क्यों फिरे नादान।।
चंचल पाहुजा
दिल्ली
१
प्रेम के शब्द
बनते पतवार
जीवन पार
२
संघर्ष भारी
हौंसलें पतवार
मंजिल हाथ
३
जीवन नैया
सपूत पतवार
मिले संतोष
४
बुजुर्ग साथ
आशीष पतवार
दुखों का नाश
स्वरचित-रेखा रविदत्त
प्रेम के शब्द
बनते पतवार
जीवन पार
२
संघर्ष भारी
हौंसलें पतवार
मंजिल हाथ
३
जीवन नैया
सपूत पतवार
मिले संतोष
४
बुजुर्ग साथ
आशीष पतवार
दुखों का नाश
स्वरचित-रेखा रविदत्त
बहुत आरजू हैं मेरी
पतवार थाम लें गिरधारी
जब जीवन मरण तुम्हारे हाथों,
क्यों हमें नहीं थामेंगे वनवारी।
खेवनहार जब तुम हो जग के
मै भी एक जीव इस दुनिया का।
कहां जाऊँगा तुम्हें छोडकर,
जब सोंपा हाथ इस दुनिया का।
नहीं छोडें मझधार में भगवन,
हम तो सभी तुम्हारे वंन्दे।
नहीं किसी का हमें सहारा,
हम सभी खडे हमाम में नंगे।
तुम्ही लगाना हमें किनारे,
फंसे हुऐ हम भंवरजाल में।
जीवन बहुत दुश्वार हुआ है,
फंसे हुऐ हम इस भ्रमजाल में।
तुम्हें वैतरणी से तारना होगा,
तुम प्रभु हो तारणहार।
यही प्रार्थना है परमेश्वर थामें
तुम्हें सोंप रहे जो जीवन पतवार।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
पतवार थाम लें गिरधारी
जब जीवन मरण तुम्हारे हाथों,
क्यों हमें नहीं थामेंगे वनवारी।
खेवनहार जब तुम हो जग के
मै भी एक जीव इस दुनिया का।
कहां जाऊँगा तुम्हें छोडकर,
जब सोंपा हाथ इस दुनिया का।
नहीं छोडें मझधार में भगवन,
हम तो सभी तुम्हारे वंन्दे।
नहीं किसी का हमें सहारा,
हम सभी खडे हमाम में नंगे।
तुम्ही लगाना हमें किनारे,
फंसे हुऐ हम भंवरजाल में।
जीवन बहुत दुश्वार हुआ है,
फंसे हुऐ हम इस भ्रमजाल में।
तुम्हें वैतरणी से तारना होगा,
तुम प्रभु हो तारणहार।
यही प्रार्थना है परमेश्वर थामें
तुम्हें सोंप रहे जो जीवन पतवार।
स्वरचितः ः
इंजी. शंम्भूसिंह रघुवंशी अजेय
जीवन नैय्या डूबती,छूट गयी #पतवार
छूट गए साथी सभी , छूट गया घर द्वार।
खेवनहारा भी नही , नाव फसी मझधार
कान्हा अब तो थाम लो,पास नही #पतवार।
नाव हमारी देह है,सागर जगत अपार
अच्छाई डूबे नही , कर्म बनें #पतवार।
~प्रभात
छूट गए साथी सभी , छूट गया घर द्वार।
खेवनहारा भी नही , नाव फसी मझधार
कान्हा अब तो थाम लो,पास नही #पतवार।
नाव हमारी देह है,सागर जगत अपार
अच्छाई डूबे नही , कर्म बनें #पतवार।
~प्रभात
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