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ब्लॉग संख्या :-717
दिनांक-24/04/2020
विषय- आभारकविता शीर्षक-पुष्प की रखवाली
------------
देखा मैंने माली को उपवन के पुष्पों से खेलते हुए,
खेल खेल मे पुष्प को तोड़ते मरोड़ते हुए,
छिन्न भिन्न हर पत्र को करते,
पैरों तले मसलते हुए,
कैसा ये माली है!!सोचकर
मन मे विचलित प्रश्न उठे।
स्वयं सुसज्जित कर बाग को
अपने हाथों से उजाड़ दिये,
प्रतिदिन बोये नये बीज वह,
पानी खाद से उसे सींच वह,
कर विकसित परिपूर्ण उसे
जिसमें अब मन उसका बसे,
पुष्प असहाय भयभीत होकर,
अपने अस्तित्व को करता है विमूल,
उसके पुरुषत्व को आज्ञा मान कर,
सहता है उसका हर एक शूल।
क्यों विस्मृत हो पुष्प सहता ये अपमान है?
माली है बगिया का वह,बगिया सजाना तो बस उसका काम है।
मेरे इस बगिया के हर पुष्प को अब मैं संवारुगी,
ऐसे लज्जाहीन माली को मैं घर से बाहर निकालूंगी।
मेरे पुष्प मेरी अपरिपक्व पुत्रियों के है समान,
ऐसे लंपट पुरुष से दूर कर,बगिया की बढ़ाउगी शान।
पुष्प दे रहे थे आभार ,मुस्कुराते हुए,
एकसाथ मिल मुक्ति ग़ीत गाते हुए
बोले ," कभी ना रहने दो अपने घर मे अपरिचितों को,
ना ही सुपु्र्द करो उनके हाथों अपने बच्चों को॥
-निधि सहगल 'विदिता'
विषय- आभारकविता शीर्षक-पुष्प की रखवाली
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देखा मैंने माली को उपवन के पुष्पों से खेलते हुए,
खेल खेल मे पुष्प को तोड़ते मरोड़ते हुए,
छिन्न भिन्न हर पत्र को करते,
पैरों तले मसलते हुए,
कैसा ये माली है!!सोचकर
मन मे विचलित प्रश्न उठे।
स्वयं सुसज्जित कर बाग को
अपने हाथों से उजाड़ दिये,
प्रतिदिन बोये नये बीज वह,
पानी खाद से उसे सींच वह,
कर विकसित परिपूर्ण उसे
जिसमें अब मन उसका बसे,
पुष्प असहाय भयभीत होकर,
अपने अस्तित्व को करता है विमूल,
उसके पुरुषत्व को आज्ञा मान कर,
सहता है उसका हर एक शूल।
क्यों विस्मृत हो पुष्प सहता ये अपमान है?
माली है बगिया का वह,बगिया सजाना तो बस उसका काम है।
मेरे इस बगिया के हर पुष्प को अब मैं संवारुगी,
ऐसे लज्जाहीन माली को मैं घर से बाहर निकालूंगी।
मेरे पुष्प मेरी अपरिपक्व पुत्रियों के है समान,
ऐसे लंपट पुरुष से दूर कर,बगिया की बढ़ाउगी शान।
पुष्प दे रहे थे आभार ,मुस्कुराते हुए,
एकसाथ मिल मुक्ति ग़ीत गाते हुए
बोले ," कभी ना रहने दो अपने घर मे अपरिचितों को,
ना ही सुपु्र्द करो उनके हाथों अपने बच्चों को॥
-निधि सहगल 'विदिता'
दिनांक 24/04/2020
विषय आभार
मेरे ईश्वर
जो तुमने दिया
बहुत आभार है
तेरा सब स्वीकार है
मेरे गुरूवर
जो तुमसे मिला
बहुत आभार है
तेरा आशीष प्यार है
मेरे माता पिता
नमन कोटि तुमको
बहुत आभार है
तुमसे मेरा संसार है
मेरे मित्र
तू है मददगार
तेरा बहुत आभार
तेरे बिन क्या संसार है
मेरे जीवनसाथी
तुमसे मिला प्यार
तेरा बहुत आभार
दिल मे तेरा प्यार है
मेरे मार्गदर्शक
पथ दिया संवार
तेरा बहुत आभार
बताया जीवन सार
मेरे साथियों
स्नेह मिला अपार
आपका कोटि आभार
बस चलता रहे ये संसार
भावों के मोती
भावनाएं संजोती
सबका बहुत आभार
बना रहे हमारा प्यार
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
विषय आभार
मेरे ईश्वर
जो तुमने दिया
बहुत आभार है
तेरा सब स्वीकार है
मेरे गुरूवर
जो तुमसे मिला
बहुत आभार है
तेरा आशीष प्यार है
मेरे माता पिता
नमन कोटि तुमको
बहुत आभार है
तुमसे मेरा संसार है
मेरे मित्र
तू है मददगार
तेरा बहुत आभार
तेरे बिन क्या संसार है
मेरे जीवनसाथी
तुमसे मिला प्यार
तेरा बहुत आभार
दिल मे तेरा प्यार है
मेरे मार्गदर्शक
पथ दिया संवार
तेरा बहुत आभार
बताया जीवन सार
मेरे साथियों
स्नेह मिला अपार
आपका कोटि आभार
बस चलता रहे ये संसार
भावों के मोती
भावनाएं संजोती
सबका बहुत आभार
बना रहे हमारा प्यार
कमलेश जोशी
कांकरोली राजसमंद
24/4/20
आभार
आभार किसका न करुँ कहो तो...
जिंदगी स्पंदित है बस उन सभी
इनायतों से जिन्हें हम कभी नहीं कहते आभार.....
उस वायु का या उस सूरज का.. जिससे चलती है सारी सृष्टी..
कहाँ माना आभार....
दुनिया का हर व्यक्ति जिससे मेरी भेंट हुई...
कुछ तो सिखाया ही न.. अच्छे बुरे लोग जिन्होंने दुनिया की सच्चाई सिखाई..... उनका आभार...
मेरे वो गहरे मित्र जो हैं बहुत कम
जिनसे मेरा रिश्ता किसी स्वार्थ से नहीं.... मेरे मन की गहराई से जिनको अपना पाया....
आभार उनका भी उनसे भी मैंने कह नहीं पाया...
कुछ लोग जो मेरे अंतरमन को चोट देकर मेरे मर्म की अंतिम कोर को भी दर्द देने में सफल हुए....
उनका आभार दर्द की पराकाष्ठा का ज्ञान उन्होंने करवाया....
कुछ लोग जिन्होंने विश्वास तोड़ा मेरे अंतरमन को झिंझोड़ा....
विश्वास की कीमत का आभास करवाया.... उनका भी आभार...
मेरे माता पिता एवं उन अत्यंत निकट रक्त संबंधियों का आभार जिन्होंने मेरे अश्रुओं की कीमत की...
मेरी आस्था के दीपक का आभार...
मेरे मातृत्व को पूर्णता देने वाले
संतान का आभार...
हे ईश्वर तूने कुछ इतने गहरे से आपने दिये...
जिन्होंने मेरी भावनाओं को समझा और मेरी आँखों की परिभाषा समझी उनका आभार...
मेरे अपनों का और उन सबका जिनका तिल भर भी मेरी जिंदगी में योगदान रहा...
खुशियाँ और गम..... तुम सबका आभार...
प्यार स्नेह देने वाले परिवार का आभार.....
हे प्रकृति तेरा आभार...
नतमस्तक हूँ मेरा वज़ूद जिनके कारण है आज उन सबका आभार
पूजा नबीरा
काटोल नागपुर
आभार
आभार किसका न करुँ कहो तो...
जिंदगी स्पंदित है बस उन सभी
इनायतों से जिन्हें हम कभी नहीं कहते आभार.....
उस वायु का या उस सूरज का.. जिससे चलती है सारी सृष्टी..
कहाँ माना आभार....
दुनिया का हर व्यक्ति जिससे मेरी भेंट हुई...
कुछ तो सिखाया ही न.. अच्छे बुरे लोग जिन्होंने दुनिया की सच्चाई सिखाई..... उनका आभार...
मेरे वो गहरे मित्र जो हैं बहुत कम
जिनसे मेरा रिश्ता किसी स्वार्थ से नहीं.... मेरे मन की गहराई से जिनको अपना पाया....
आभार उनका भी उनसे भी मैंने कह नहीं पाया...
कुछ लोग जो मेरे अंतरमन को चोट देकर मेरे मर्म की अंतिम कोर को भी दर्द देने में सफल हुए....
उनका आभार दर्द की पराकाष्ठा का ज्ञान उन्होंने करवाया....
कुछ लोग जिन्होंने विश्वास तोड़ा मेरे अंतरमन को झिंझोड़ा....
विश्वास की कीमत का आभास करवाया.... उनका भी आभार...
मेरे माता पिता एवं उन अत्यंत निकट रक्त संबंधियों का आभार जिन्होंने मेरे अश्रुओं की कीमत की...
मेरी आस्था के दीपक का आभार...
मेरे मातृत्व को पूर्णता देने वाले
संतान का आभार...
हे ईश्वर तूने कुछ इतने गहरे से आपने दिये...
जिन्होंने मेरी भावनाओं को समझा और मेरी आँखों की परिभाषा समझी उनका आभार...
मेरे अपनों का और उन सबका जिनका तिल भर भी मेरी जिंदगी में योगदान रहा...
खुशियाँ और गम..... तुम सबका आभार...
प्यार स्नेह देने वाले परिवार का आभार.....
हे प्रकृति तेरा आभार...
नतमस्तक हूँ मेरा वज़ूद जिनके कारण है आज उन सबका आभार
पूजा नबीरा
काटोल नागपुर
दिनांक 24।4।2020 दिन शुक्रवार
विषय आभार
बहुत बहुत आभार मंच का।
हरदम मिलता प्यार मंच का।
भावों के मोती जिसमें है,
बने हृदय का हार मंच का।।1।।
वर्ष व्यतीत हुए दो अब तक।
रचनाकार जुड़े जो अब तक।
सीखें और सिखाएं सबको,
बढ़ता और निखार मंच का।।2।।
स्वच्छ और सुरभित वातायन।
यह है साहित्यिक क्रीडांगन।
बहे जहाँ रसधार काव्य की,
भाषा है व्यवहार मंच का।।3।।
मान यहाँ होता कविता का।
रश्मि उदय हो ज्यों सविता का।
काव्य सलिल से मन शीतल हो,
अभिनंदन उद्गार मंच का।।4।।
फूलचंद्र विश्वकर्मा
विषय आभार
बहुत बहुत आभार मंच का।
हरदम मिलता प्यार मंच का।
भावों के मोती जिसमें है,
बने हृदय का हार मंच का।।1।।
वर्ष व्यतीत हुए दो अब तक।
रचनाकार जुड़े जो अब तक।
सीखें और सिखाएं सबको,
बढ़ता और निखार मंच का।।2।।
स्वच्छ और सुरभित वातायन।
यह है साहित्यिक क्रीडांगन।
बहे जहाँ रसधार काव्य की,
भाषा है व्यवहार मंच का।।3।।
मान यहाँ होता कविता का।
रश्मि उदय हो ज्यों सविता का।
काव्य सलिल से मन शीतल हो,
अभिनंदन उद्गार मंच का।।4।।
फूलचंद्र विश्वकर्मा
24 अप्रेल 2020,शुक्रवार
हम सब भावों के प्रिय मोती
अप्रत्यक्ष हैं स्नेह अति अद्भुत।
इस साहित्यिक प्रिय मंच पर
प्रकट भाव दिखती न सूरत।
कैसा अगाध है स्नेह हमारा
मलय पवन के चलते झोंखे।
भारत पूरा है, यँहा समाहित
किसको ऐसे मिलते हैं मौके?
श्रव्य दृश्य में, हम सब दिखते
गद्य पद्य में, सब कुछ कह देते।
सुन्दर सृजन के सभी पिपासु
वाह उत्तम लाजवाब कह देते।
मोती मणियों अति धन्य तुम
माँ शारदे ! तुमको यँहा लाई।
अति सुगंधित भावों के मोती
ज्ञान प्रकाश नित रोज समाई।
हंसवाहिनी है कमलासनी माँ
ऋतुराज सम मंच हो शौभित।
नित वीणा के तार झंकृत ह्नो
सभी मिले, कितने ह्नों मोहित?
धन्यवाद अति बधाई सबको
पड़ रही विपदा कोरोना मार।
किया बहुत कहने को कुछ न
तीन शब्द प्रिय !अतिआभार।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
हम सब भावों के प्रिय मोती
अप्रत्यक्ष हैं स्नेह अति अद्भुत।
इस साहित्यिक प्रिय मंच पर
प्रकट भाव दिखती न सूरत।
कैसा अगाध है स्नेह हमारा
मलय पवन के चलते झोंखे।
भारत पूरा है, यँहा समाहित
किसको ऐसे मिलते हैं मौके?
श्रव्य दृश्य में, हम सब दिखते
गद्य पद्य में, सब कुछ कह देते।
सुन्दर सृजन के सभी पिपासु
वाह उत्तम लाजवाब कह देते।
मोती मणियों अति धन्य तुम
माँ शारदे ! तुमको यँहा लाई।
अति सुगंधित भावों के मोती
ज्ञान प्रकाश नित रोज समाई।
हंसवाहिनी है कमलासनी माँ
ऋतुराज सम मंच हो शौभित।
नित वीणा के तार झंकृत ह्नो
सभी मिले, कितने ह्नों मोहित?
धन्यवाद अति बधाई सबको
पड़ रही विपदा कोरोना मार।
किया बहुत कहने को कुछ न
तीन शब्द प्रिय !अतिआभार।
स्वरचित, मौलिक
गोविंद प्रसाद गौतम
कोटा,राजस्थान।
नमन भावों के मोती
मन में थी अजब उलझन
भटक रहा था मेरा ये बेचैन मन
नैनों में थी बेतहासा उदासी
थाम लिया आपने हाथ मेरा आभार आपका .
नीरस जिंदगी में आये आप
बरखा की फुहार बनकर
मिला जीवन एक आधार नया
ह्रदय से हैं आभार आपका .
तमस में एक ख़ुशी का दीप जला
उजाले की रोशनी में एक स्वप्न ने कदम रखा
जीवन में नव चेतन और आनंद मिला
ह्रदय से आभार आपका .
निर्जन वन में हरियाली छा गई एक बार फिर
कमल के पुष्प खिल गये फिर से निर्जन वन
फ्रफुल्लित हुआ फिर से ये बेचैन मन
ह्रदय से आभार आपका .
स्वरचित :- रीता बिष्ट
मन में थी अजब उलझन
भटक रहा था मेरा ये बेचैन मन
नैनों में थी बेतहासा उदासी
थाम लिया आपने हाथ मेरा आभार आपका .
नीरस जिंदगी में आये आप
बरखा की फुहार बनकर
मिला जीवन एक आधार नया
ह्रदय से हैं आभार आपका .
तमस में एक ख़ुशी का दीप जला
उजाले की रोशनी में एक स्वप्न ने कदम रखा
जीवन में नव चेतन और आनंद मिला
ह्रदय से आभार आपका .
निर्जन वन में हरियाली छा गई एक बार फिर
कमल के पुष्प खिल गये फिर से निर्जन वन
फ्रफुल्लित हुआ फिर से ये बेचैन मन
ह्रदय से आभार आपका .
स्वरचित :- रीता बिष्ट
विषय - धन्यवाद/आभार
विधा- कविता
🙏🙏🙏🙏🙏
किसका नही जुड़ जाए प्यार ।
किसने नही छेड़े हैं तार ।
दिल से कर लो साक्षात्कार ।
पहला है माँ बाप का प्यार ।
फिर है गली मुहल्ला यार ।
गुरु की गुरूता ज्ञान सार ।
जुड़ते गये सब रिश्तेदार ।
पाठशाला के मित्र हजार ।
सबका आशीष औ उपकार ।
ज्ञान वृद्धि और स्नेह अपार ।
तल्खियाँ भी कर गयीं सुधार ।
खोले उनने ज्ञान के द्वार ।
महबूबा से की नही रार ।
बन गयी वो परवरदिगार ।
अच्छे रखे आचार विचार ।
दुश्मन नही एक सरकार ।
हुई कृपा औ बसा संसार ।
पायी मैंने सुलक्षणा नार ।
सुत भी सुन्दर आज्ञाकार ।
करूँ 'शिवम' सबका आभार ।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 24/04/2020
विधा- कविता
🙏🙏🙏🙏🙏
किसका नही जुड़ जाए प्यार ।
किसने नही छेड़े हैं तार ।
दिल से कर लो साक्षात्कार ।
पहला है माँ बाप का प्यार ।
फिर है गली मुहल्ला यार ।
गुरु की गुरूता ज्ञान सार ।
जुड़ते गये सब रिश्तेदार ।
पाठशाला के मित्र हजार ।
सबका आशीष औ उपकार ।
ज्ञान वृद्धि और स्नेह अपार ।
तल्खियाँ भी कर गयीं सुधार ।
खोले उनने ज्ञान के द्वार ।
महबूबा से की नही रार ।
बन गयी वो परवरदिगार ।
अच्छे रखे आचार विचार ।
दुश्मन नही एक सरकार ।
हुई कृपा औ बसा संसार ।
पायी मैंने सुलक्षणा नार ।
सुत भी सुन्दर आज्ञाकार ।
करूँ 'शिवम' सबका आभार ।
हरि शंकर चौरसिया 'शिवम'
स्वरचित 24/04/2020
विषय- आभार
वार-शुक्रवार/24/07/20
तप्त हृदय को शीतल करते भावो के ये मोती है ।
अतल गहराई में जा मिलते माला एक पिरोती है ।
वरन-वरन के पुष्प सजाकर बनाई सुरभित माला है ।
माँ शारदे को करें समर्पित हृदय भोला -भाला है ।
मन के तार झंकृत होते बीणा राग मनोहारी है ।
शांत करुण रस जब मिलते बनती छवि वो न्यारी है ।
जीवन के शाश्वत प्रेम की भावों भरी कहानी है ।
अभिनंदन,आभार करें हम जीवन की अमर निशानी है ।।
स्वरचित
रामगोपाल ' प्रयास '
वार-शुक्रवार/24/07/20
तप्त हृदय को शीतल करते भावो के ये मोती है ।
अतल गहराई में जा मिलते माला एक पिरोती है ।
वरन-वरन के पुष्प सजाकर बनाई सुरभित माला है ।
माँ शारदे को करें समर्पित हृदय भोला -भाला है ।
मन के तार झंकृत होते बीणा राग मनोहारी है ।
शांत करुण रस जब मिलते बनती छवि वो न्यारी है ।
जीवन के शाश्वत प्रेम की भावों भरी कहानी है ।
अभिनंदन,आभार करें हम जीवन की अमर निशानी है ।।
स्वरचित
रामगोपाल ' प्रयास '
आभार
तीन अक्षर यह शब्द,
य़ू ही नही होता उच्चार ।
उसके पीछे,
होती कोई कहानी ।
होती कोई परेशानी ।
बिना किये छल,
कोई निकाल देता ।
उसका हल ।
तो लगता हमें,
किया उसने,
अहसान -उपकार ।
तो निकलता,
ह्वदय से,
आता जीभा पर ।
निकलता होठो से,
धन्यवाद- आभार ।
X प्रदीप सहारे
तीन अक्षर यह शब्द,
य़ू ही नही होता उच्चार ।
उसके पीछे,
होती कोई कहानी ।
होती कोई परेशानी ।
बिना किये छल,
कोई निकाल देता ।
उसका हल ।
तो लगता हमें,
किया उसने,
अहसान -उपकार ।
तो निकलता,
ह्वदय से,
आता जीभा पर ।
निकलता होठो से,
धन्यवाद- आभार ।
X प्रदीप सहारे
विषय -आभार /धन्यवाद
""""""पहला नमन विधाता के सृजन का।
आभार धन्यवाद हे विधि के विधान का।
दूजा आभार माँ पिता को ,
नवांकुरित किया गर्भ स्थान को।
तीसरा धन्यवाद उस जीवनदाता डाक्टर को।
कष्टों में डर कर धरती पर लाना।
पाँचवा आभार उस पण्डित को
नाम दिया पहचान का स्वयं की पहचान को।
छठा धन्यवाद उन गुरुवर को ज्ञान दिया स्वयं जलाकर।
हमारे आत्मसम्मान और पराकाष्ठाओं को।
सातवां सम्मान आभार आत्ममंथन को
स्वयं भू और आत्मिक जोत जलाने को।
आठवां धन्यवाद ससुराल पक्ष को
कटाक्ष कटु और वाणी अंधेरों मे जीने को।
मर्म जाना परबेटी होने का
जीना आया खुद की पहचान बनाने को।
नवां आभार धन्यवाद उन सबका
जो ईर्द गिर्द समाजिक परिववेश को।
दसवां आभार धन्यवाद पद नौकरी
अध्यापन क्षेत्रों पर कार्यबंध देने को।
गयारहवा आभार उन शिष्यों को
अनुसरण किया अनुकरण किया और मेरा चरण स्पर्श किया एक गुरु होने का।
वारहवा आभार धन्यवाद प्रतिलिपि को।
लिखने की प्रतिभाशाली मनन को।
तेरहबा आभार धन्यवाद """सत्यप्रकाश जी" काऔर """शाशिकांत जी""" का!
मुझे कहा भावो के मोती से जुड जाने को
चौहदवा आभार धन्यवाद """ वीणा जी """का
जो मान दिया सम्मान दिया नई पहचान को।
आभार धन्यवाद भावों के मोती !!!!
चमकना सदैव मोती की चमक के समान """
आपको मेरा शत शत नमन।
धन्यवाद सभी लेखकों का मान्यवर का
आदरणीया और बहनो का श्रेष्ठ जनों का।
लिखते रहे नवस्थापित धारणानुसार जैसी हो जीवन झंकार ।
स्वरचित ।
पूनम कपरवान।
देहरादून उत्तराखंड
""""""पहला नमन विधाता के सृजन का।
आभार धन्यवाद हे विधि के विधान का।
दूजा आभार माँ पिता को ,
नवांकुरित किया गर्भ स्थान को।
तीसरा धन्यवाद उस जीवनदाता डाक्टर को।
कष्टों में डर कर धरती पर लाना।
पाँचवा आभार उस पण्डित को
नाम दिया पहचान का स्वयं की पहचान को।
छठा धन्यवाद उन गुरुवर को ज्ञान दिया स्वयं जलाकर।
हमारे आत्मसम्मान और पराकाष्ठाओं को।
सातवां सम्मान आभार आत्ममंथन को
स्वयं भू और आत्मिक जोत जलाने को।
आठवां धन्यवाद ससुराल पक्ष को
कटाक्ष कटु और वाणी अंधेरों मे जीने को।
मर्म जाना परबेटी होने का
जीना आया खुद की पहचान बनाने को।
नवां आभार धन्यवाद उन सबका
जो ईर्द गिर्द समाजिक परिववेश को।
दसवां आभार धन्यवाद पद नौकरी
अध्यापन क्षेत्रों पर कार्यबंध देने को।
गयारहवा आभार उन शिष्यों को
अनुसरण किया अनुकरण किया और मेरा चरण स्पर्श किया एक गुरु होने का।
वारहवा आभार धन्यवाद प्रतिलिपि को।
लिखने की प्रतिभाशाली मनन को।
तेरहबा आभार धन्यवाद """सत्यप्रकाश जी" काऔर """शाशिकांत जी""" का!
मुझे कहा भावो के मोती से जुड जाने को
चौहदवा आभार धन्यवाद """ वीणा जी """का
जो मान दिया सम्मान दिया नई पहचान को।
आभार धन्यवाद भावों के मोती !!!!
चमकना सदैव मोती की चमक के समान """
आपको मेरा शत शत नमन।
धन्यवाद सभी लेखकों का मान्यवर का
आदरणीया और बहनो का श्रेष्ठ जनों का।
लिखते रहे नवस्थापित धारणानुसार जैसी हो जीवन झंकार ।
स्वरचित ।
पूनम कपरवान।
देहरादून उत्तराखंड
शुक्रवार 24 अप्रैल 2020
पटल पर साहित्य मनीषा को सादर समीक्षार्थ प्रेषित
विषय - आभार
-----------------------------------
उपकारों से घिरा हुआ मैं
हर शह से पाये उपहार
कृतघ्न रहा यदि
मैं नहीं करूं तो
दिल से उन सबका आभार।
धरती ने है
मुझे सिखाया
अपनों के हित सहते रहना
सहिष्णुता की प्रति मूरत को
नमन करूं मैं बारंबार
पालन कर्ती पोषण कर्ती
मां नेति नेति तेरा आभार ।
सूरज से
सीखी तपनिष्ठा
और अनवरत चलते रहना
जलना स्वयं जग रोशन करना
उत्सर्ग करे उर्जा भंडार
हे दिवाकर सचराचर स्वामी
नमन करूं मैं बारंबार।
योगक्षेम के हर प्राणी पाये
हे दिनकर तेरा आभार।
पवन सिखाए
दिल में रहना
अंग प्रत्यंग बन करके प्राण
सदा स्थित हर ओर तुम ही हो
बन कर जगती के आधार
प्राण नियामक हे सृष्टि सौरव
नमन करूं मैं बारंबार
अनल रूप जगती सुख कारक
हे मारुत तेरा आभार ।
जल से मैने
पाई समरसता
मेलजोल और समता का ज्ञान
प्रथम जीव की कौख तुम ही हो
बने तुम ही ओज के द्वार।
सप्त धातु के पुष्टि कारक
नमन करूं मैं बारंबार
सकल जीवन की आधार शिला
जल देव करूं तेरा आभार।
आकाश गुरु है
शब्द शिल्प के
हे बीज रूप वृष्टि के कारक
हेनाद बृह्म दश दिक संचारित
बन संगीत गुंजित संसार
हे ओंकार हर काल ध्वनित तुम
हे आकाश करूं आभार।
पंचमहाभूत आधार जगत के
समता योग बताते सार
हम को जीवन राह दिखाते
संतुलन जीवन आधार
हे सृष्टि नियामक त्राता जग के
विनय सहित करता आभार।
-----------------------------------
गोविंद व्यास रेलमगरा
प्रेमाश्रय
पटल पर साहित्य मनीषा को सादर समीक्षार्थ प्रेषित
विषय - आभार
-----------------------------------
उपकारों से घिरा हुआ मैं
हर शह से पाये उपहार
कृतघ्न रहा यदि
मैं नहीं करूं तो
दिल से उन सबका आभार।
धरती ने है
मुझे सिखाया
अपनों के हित सहते रहना
सहिष्णुता की प्रति मूरत को
नमन करूं मैं बारंबार
पालन कर्ती पोषण कर्ती
मां नेति नेति तेरा आभार ।
सूरज से
सीखी तपनिष्ठा
और अनवरत चलते रहना
जलना स्वयं जग रोशन करना
उत्सर्ग करे उर्जा भंडार
हे दिवाकर सचराचर स्वामी
नमन करूं मैं बारंबार।
योगक्षेम के हर प्राणी पाये
हे दिनकर तेरा आभार।
पवन सिखाए
दिल में रहना
अंग प्रत्यंग बन करके प्राण
सदा स्थित हर ओर तुम ही हो
बन कर जगती के आधार
प्राण नियामक हे सृष्टि सौरव
नमन करूं मैं बारंबार
अनल रूप जगती सुख कारक
हे मारुत तेरा आभार ।
जल से मैने
पाई समरसता
मेलजोल और समता का ज्ञान
प्रथम जीव की कौख तुम ही हो
बने तुम ही ओज के द्वार।
सप्त धातु के पुष्टि कारक
नमन करूं मैं बारंबार
सकल जीवन की आधार शिला
जल देव करूं तेरा आभार।
आकाश गुरु है
शब्द शिल्प के
हे बीज रूप वृष्टि के कारक
हेनाद बृह्म दश दिक संचारित
बन संगीत गुंजित संसार
हे ओंकार हर काल ध्वनित तुम
हे आकाश करूं आभार।
पंचमहाभूत आधार जगत के
समता योग बताते सार
हम को जीवन राह दिखाते
संतुलन जीवन आधार
हे सृष्टि नियामक त्राता जग के
विनय सहित करता आभार।
-----------------------------------
गोविंद व्यास रेलमगरा
प्रेमाश्रय
नमन मंच भावों के मोती समूह। गुरुजनों,मित्रों।
आभार/धन्यवाद
अगर कोई करे तुम पर उपकार।
बगैर कोई स्वार्थ के।
आभार व्यक्त किया करो तुम भी।
बगैर किसी हिचकिचाहट के।
उससे कोई नहीं रिश्ता नाता।
फिर भी लगता जैसे हो भ्राता।
वक्त आने पर तुम भी आना काम।
तब मिलेगा तेरी अन्तरात्मा को आराम।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
आभार/धन्यवाद
अगर कोई करे तुम पर उपकार।
बगैर कोई स्वार्थ के।
आभार व्यक्त किया करो तुम भी।
बगैर किसी हिचकिचाहट के।
उससे कोई नहीं रिश्ता नाता।
फिर भी लगता जैसे हो भ्राता।
वक्त आने पर तुम भी आना काम।
तब मिलेगा तेरी अन्तरात्मा को आराम।
स्वरचित
वीणा झा
बोकारो स्टील सिटी
आयोजन - आभार/ धन्यवाद
दिनांक - २५/४/२०
मात्राभार - १८
***********
आभार वो शब्द है जग में जो,
उतारे भार तो सब के मन का।
लेकिन हो जाता है वो भारी,
जिस पर चढता बोझ आभार का॥
आभार सार होता जीवन का,
आभार है शिष्टाचार तन का।
आभार बढाता आपकी किमत,
आभार से उपजे भाव मन का॥
करूँ आभार "भावों के मोती"
ज्ञान बढ़ाया है तुमने सब का।
धनभाग्य हमारा है ये समझो,
की हम हिस्सा हैं इस समूह का॥
मीनू@कॉपीराईट
दिनांक - २५/४/२०
मात्राभार - १८
***********
आभार वो शब्द है जग में जो,
उतारे भार तो सब के मन का।
लेकिन हो जाता है वो भारी,
जिस पर चढता बोझ आभार का॥
आभार सार होता जीवन का,
आभार है शिष्टाचार तन का।
आभार बढाता आपकी किमत,
आभार से उपजे भाव मन का॥
करूँ आभार "भावों के मोती"
ज्ञान बढ़ाया है तुमने सब का।
धनभाग्य हमारा है ये समझो,
की हम हिस्सा हैं इस समूह का॥
मीनू@कॉपीराईट
भावों के मोती
विषय - धन्यवाद/आभार ।
स्वरचित।
आभार है प्रकटीकरण
हृदय की गहराइयों से।
जिसने की आपपर कृपा
चाहे हो किसी भी रूप में।।
आभारी हैं हम सर्वप्रथम।
हिन्दी प्रतिलिपि के
आभारी हैं।।
जिसपर जुड़ने से मिल गये
"भावों के मोती" से समूह
लिखने को प्रेरित करते
सिखाते नित नयी-नयी
साहित्य की विधायें।
आभारी हैं।
हम आभारी हैं।।
***
अपनी भाषा हिन्दी में रच़ने को
अपनी अभिव्यक्ति के ढलने को
पूरे करने , शौक़ अधूरे
दे दिये अनेक मंच
आभारी हैं।
हम आभारी हैं।।
***
देर हुई जब लगा पता
पर नहीं हुई देर अब भी।
लाखों हैं समूह से जुड़े हुए
पाठक और श्रोता अभिन्न हुये।
संस्थापकों व साहित्य समूहों के
आभारी हैं।
हम आभारी हैं।।
***
आभारी हैं हम सर्वप्रथम
हिन्दी प्रतिलिपि के
आभारी हैं।।
***
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
24/04 /2020
विषय - धन्यवाद/आभार ।
स्वरचित।
आभार है प्रकटीकरण
हृदय की गहराइयों से।
जिसने की आपपर कृपा
चाहे हो किसी भी रूप में।।
आभारी हैं हम सर्वप्रथम।
हिन्दी प्रतिलिपि के
आभारी हैं।।
जिसपर जुड़ने से मिल गये
"भावों के मोती" से समूह
लिखने को प्रेरित करते
सिखाते नित नयी-नयी
साहित्य की विधायें।
आभारी हैं।
हम आभारी हैं।।
***
अपनी भाषा हिन्दी में रच़ने को
अपनी अभिव्यक्ति के ढलने को
पूरे करने , शौक़ अधूरे
दे दिये अनेक मंच
आभारी हैं।
हम आभारी हैं।।
***
देर हुई जब लगा पता
पर नहीं हुई देर अब भी।
लाखों हैं समूह से जुड़े हुए
पाठक और श्रोता अभिन्न हुये।
संस्थापकों व साहित्य समूहों के
आभारी हैं।
हम आभारी हैं।।
***
आभारी हैं हम सर्वप्रथम
हिन्दी प्रतिलिपि के
आभारी हैं।।
***
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
24/04 /2020
दिनांक- २४/०४/२०२०
विषय-धन्यवाद/आभार
विधा- रचना
====================
जब-जब प्रिय!मैंने सृजन किया
तब दी तुमने प्रतिक्रिया मुझे ।
रचना कर मेरी अवलोकन
फिर वाह -वाह में लिया मुझे।।
विषयागत मेरी कलम चली
मनवाँछित. उत्तम विधा कही।
यह गीत ग़ज़ल मुक्तक कुछ हो
जो कुछ भाया रसधार बही।।
मैं अडिग भाव लेखन करता
भावों को मोती सम जड़ता।
प्रतिक्षण मिलता आनंद मुझे
किंचित् आवेग नहीं हड़ता।।
तुमने अति सुन्दर सृजन कहा
उर ऊर्मि मोद भरता हूँ मैं।
इस रस भीनी प्रतिक्रिया हेतु
आभार. व्यक्त करता हूँ मैं।।
====================
'अ़क्स' दौनेरिया
विषय-धन्यवाद/आभार
विधा- रचना
====================
जब-जब प्रिय!मैंने सृजन किया
तब दी तुमने प्रतिक्रिया मुझे ।
रचना कर मेरी अवलोकन
फिर वाह -वाह में लिया मुझे।।
विषयागत मेरी कलम चली
मनवाँछित. उत्तम विधा कही।
यह गीत ग़ज़ल मुक्तक कुछ हो
जो कुछ भाया रसधार बही।।
मैं अडिग भाव लेखन करता
भावों को मोती सम जड़ता।
प्रतिक्षण मिलता आनंद मुझे
किंचित् आवेग नहीं हड़ता।।
तुमने अति सुन्दर सृजन कहा
उर ऊर्मि मोद भरता हूँ मैं।
इस रस भीनी प्रतिक्रिया हेतु
आभार. व्यक्त करता हूँ मैं।।
====================
'अ़क्स' दौनेरिया
नमन- भाव के मोती
दिनांक24/04/2020
विषय -आभार
क्या आभार व्यक्त करूं उन आंखों का
जिनके आँखों से दो बूंद
समन्दर के भी हारे होंगे।
जब मेहँदी वाले हाथो ने
मंगलसूत्र उतारे होंगे।।
जिनके बच्चे अबोध अभागे
तनमन ठिठुरन से कांपे होंगे।
वे ठिठुरन की कंपित रतियां
ना जाने कैसे काटे होंगे।।
एकांत के शून्य प्रहर में
हाथ जोड़कर सूर्य को तांके होंगे।
इंतजार है अविरल अमृतधारा की
सोचे होंगे श्वेत आवारा बादल आते होंगे।।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
दिनांक24/04/2020
विषय -आभार
क्या आभार व्यक्त करूं उन आंखों का
जिनके आँखों से दो बूंद
समन्दर के भी हारे होंगे।
जब मेहँदी वाले हाथो ने
मंगलसूत्र उतारे होंगे।।
जिनके बच्चे अबोध अभागे
तनमन ठिठुरन से कांपे होंगे।
वे ठिठुरन की कंपित रतियां
ना जाने कैसे काटे होंगे।।
एकांत के शून्य प्रहर में
हाथ जोड़कर सूर्य को तांके होंगे।
इंतजार है अविरल अमृतधारा की
सोचे होंगे श्वेत आवारा बादल आते होंगे।।
मौलिक रचना
सत्य प्रकाश सिंह
प्रयागराज
दिनांक - 24,4,2020
दिन - शुक्रवार
विषय - आभार, धन्यवाद
बहुत-बहुत आभार आपका परमेश्वर ,
जो आपने भावों का सागर भेंट किया ।
हमको संवेदनाओं की थाथी देकर के ,
एक अनजान गरीब को धनवान किया।
हमें स्नेहमयी आँचल देकर के माँ का,
प्रेम रस से मन की गागर को भर दिया।
हमको कर्मवीर पिता के साये में प्रभु जी,
बेहतरीन जो मोल कर्म का सिखा दिया।
करती मन से आभार आपका मनमोहन,
जीने का मकसद हमें एक परिवार दिया।
यह जाने अनजाने में पाठ क्षमा धैर्य का,
जग में भेज मुझ अज्ञानी को पढ़ा दिया।
हमने इस जीवन का मोल तभी जाना,
आपने करवाया परिचय जब रिश्तों से।
भगवन सुख दुख का मोल तभी जाना ,
जब बह निकली निर्झरणीं अँखिंयों से ।
है अतीव आभार, आपका जग पालक ,
भेज दिया, मोती करुणा ममता के देकर।
हिम्मत हौंसले दिये, खूब हमें जी भर कर,
कलम हाथ में दे दी, खाली पन्नों को देकर।
हे दयावान हे दीन बंधु, राह हमें दिखलाना,
कदमों में काँटे हों, पर उफ न जुवां पे लाना।
बहती नदिया का शीतल जल, ये जीवन हो,
सेवा, सत्कार, समर्पण,यही जीवन में लाना।
स्वरचित , मधु शुक्ला,
सतना , मध्यप्रदेश .
दिन - शुक्रवार
विषय - आभार, धन्यवाद
बहुत-बहुत आभार आपका परमेश्वर ,
जो आपने भावों का सागर भेंट किया ।
हमको संवेदनाओं की थाथी देकर के ,
एक अनजान गरीब को धनवान किया।
हमें स्नेहमयी आँचल देकर के माँ का,
प्रेम रस से मन की गागर को भर दिया।
हमको कर्मवीर पिता के साये में प्रभु जी,
बेहतरीन जो मोल कर्म का सिखा दिया।
करती मन से आभार आपका मनमोहन,
जीने का मकसद हमें एक परिवार दिया।
यह जाने अनजाने में पाठ क्षमा धैर्य का,
जग में भेज मुझ अज्ञानी को पढ़ा दिया।
हमने इस जीवन का मोल तभी जाना,
आपने करवाया परिचय जब रिश्तों से।
भगवन सुख दुख का मोल तभी जाना ,
जब बह निकली निर्झरणीं अँखिंयों से ।
है अतीव आभार, आपका जग पालक ,
भेज दिया, मोती करुणा ममता के देकर।
हिम्मत हौंसले दिये, खूब हमें जी भर कर,
कलम हाथ में दे दी, खाली पन्नों को देकर।
हे दयावान हे दीन बंधु, राह हमें दिखलाना,
कदमों में काँटे हों, पर उफ न जुवां पे लाना।
बहती नदिया का शीतल जल, ये जीवन हो,
सेवा, सत्कार, समर्पण,यही जीवन में लाना।
स्वरचित , मधु शुक्ला,
सतना , मध्यप्रदेश .
साथियों
24/4/2020/शुक्रवार
*आभार/धन्यवाद*
गीत
मां शारदे विनती करते तुमसे बारंम्बार।
वरदहस्त तुम हमपर रखना,
जयजय मां दरबार।
सुंदर सृजन करें सभी हम
लिखें कवित्त सवैये।
रचें वीर श्रृंगार सभी रस
गाऐं गीत गवैये।
करते अभिनंदन आभार।
मां शारदे-----
रस प्रेम झोली में भरदें
प्रेम ही प्रेम लुटाऐं।
दोहा छंद प्रीत में डूबे,
हमसे खूब लिखाऐं।
जय अलबेली सरकार।
मां शारदे-----
लिखें वीर की भाषा हम सब
जो सरहद पर लड़ते।
करें धन्यवाद हम उनका
जो राष्ट्रहित मरते।
जय जय मां उपकार।
मां शारदे----
एक परिवार समाज देशहित
न जाति का बंधन।
रहें प्यार से मिलजुलकर हम
करें सभी का वंदन।
बस चाहें मृदु व्यवहार।
मां शारदे----
सुन वीणा की तान सभी का
मन झंकृत हो जाऐं।
ऋतुराज से हो हरियाली,
सजें अलंकृत हो जाऐं।
यही भावों का हार।
मां शारदे----
गीत मधु गोविन्दा गाऐं
करें आरती हर की।
सुमन प्रीति से करें वंदना
जय हो हरिशंकर की।
सही भावों का संसार।
मां शारदे--
मां शारदे विनती करते तुमसे बारंम्बार।
वरदहस्त तुम हमपर रखना
जयजय मां दरबार।
स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
24/4/2020/शुक्रवार
*आभार/धन्यवाद*
गीत
मां शारदे विनती करते तुमसे बारंम्बार।
वरदहस्त तुम हमपर रखना,
जयजय मां दरबार।
सुंदर सृजन करें सभी हम
लिखें कवित्त सवैये।
रचें वीर श्रृंगार सभी रस
गाऐं गीत गवैये।
करते अभिनंदन आभार।
मां शारदे-----
रस प्रेम झोली में भरदें
प्रेम ही प्रेम लुटाऐं।
दोहा छंद प्रीत में डूबे,
हमसे खूब लिखाऐं।
जय अलबेली सरकार।
मां शारदे-----
लिखें वीर की भाषा हम सब
जो सरहद पर लड़ते।
करें धन्यवाद हम उनका
जो राष्ट्रहित मरते।
जय जय मां उपकार।
मां शारदे----
एक परिवार समाज देशहित
न जाति का बंधन।
रहें प्यार से मिलजुलकर हम
करें सभी का वंदन।
बस चाहें मृदु व्यवहार।
मां शारदे----
सुन वीणा की तान सभी का
मन झंकृत हो जाऐं।
ऋतुराज से हो हरियाली,
सजें अलंकृत हो जाऐं।
यही भावों का हार।
मां शारदे----
गीत मधु गोविन्दा गाऐं
करें आरती हर की।
सुमन प्रीति से करें वंदना
जय हो हरिशंकर की।
सही भावों का संसार।
मां शारदे--
मां शारदे विनती करते तुमसे बारंम्बार।
वरदहस्त तुम हमपर रखना
जयजय मां दरबार।
स्वरचित
इंजी शंम्भू सिंह रघुवंशी अजेय
गुना म प्र
मौसमों का शुक्रिया कुछ मेहरबानी आपकी।
खूब बरसा बन के यादे आज पानी आपकी।
कितनी ही सूरत देखता है आदमी दुनिया में।
लाख जग भूले पर न भूली जवानी आपकी।
गुज़रे तूफां ने है छोडा ऐसे वीराने मे लाकर।
दिल के जख्मों के निशां है निशानी आपकी।
हां को ना, ना को हां क्या भला तुमने कहा।
किस तरह से समझूं ऐसे बेज़ुबानी आपकी।
एक मुहब्बत के सिवा क्या खता थी सोहल।
कौन सी थी बात जो हमनें न मानी आपकी।
विपिन सोहल
खूब बरसा बन के यादे आज पानी आपकी।
कितनी ही सूरत देखता है आदमी दुनिया में।
लाख जग भूले पर न भूली जवानी आपकी।
गुज़रे तूफां ने है छोडा ऐसे वीराने मे लाकर।
दिल के जख्मों के निशां है निशानी आपकी।
हां को ना, ना को हां क्या भला तुमने कहा।
किस तरह से समझूं ऐसे बेज़ुबानी आपकी।
एक मुहब्बत के सिवा क्या खता थी सोहल।
कौन सी थी बात जो हमनें न मानी आपकी।
विपिन सोहल
विषय-आभार/धन्यवाद
सबसे श्रेष्ठ योनि ..हमें मिली
परमपिता का आभार मानिए ।
शारीरिक संरचना में समाहित
पंच तत्वों का आभार मानिए ।
बल बुद्धि का वरदान ..दिया
माँ शारदे का आभार मानिए ।
माटी में मिल ..अन्न उपजाता
अन्नदाता का आभार मानिए ।
निज सुषमा से अलंकृत करती
उस प्रकृति का आभार मानिए।
सुशिक्षा से सुनागरिक बनाता
पूज्य गुरु का आभार मानिए ।
जिनकी बदौलत यह आजादी
देशभक्तों का आभार मानिए ।
रिश्ते नातों की डोरी से बांधा
समरसता का आभार मानिए।
दुख की घड़ी में जो साथ खड़ा
सच्चे मित्र का आभार मानिए।
कंधे से कंधा मिलाकर चलता
जीवनसंगी का आभार मानिए।
मिले संस्कारों का मान बढ़ाते
नेक संतान का आभार मानिए।
दिनचर्या में मिले जिनका योग
सहयोगियों का आभार मानिए
जीवन की बाधाओं को हर लेते
रिश्तेदारों का आभार मानिए ।
आपका लेखन पहचान बनाते कलमकारों का आभार मानिए
हृदय उद्गार जहाँ पहचान पाते
भावों.मोती का आभार मानिए
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
सबसे श्रेष्ठ योनि ..हमें मिली
परमपिता का आभार मानिए ।
शारीरिक संरचना में समाहित
पंच तत्वों का आभार मानिए ।
बल बुद्धि का वरदान ..दिया
माँ शारदे का आभार मानिए ।
माटी में मिल ..अन्न उपजाता
अन्नदाता का आभार मानिए ।
निज सुषमा से अलंकृत करती
उस प्रकृति का आभार मानिए।
सुशिक्षा से सुनागरिक बनाता
पूज्य गुरु का आभार मानिए ।
जिनकी बदौलत यह आजादी
देशभक्तों का आभार मानिए ।
रिश्ते नातों की डोरी से बांधा
समरसता का आभार मानिए।
दुख की घड़ी में जो साथ खड़ा
सच्चे मित्र का आभार मानिए।
कंधे से कंधा मिलाकर चलता
जीवनसंगी का आभार मानिए।
मिले संस्कारों का मान बढ़ाते
नेक संतान का आभार मानिए।
दिनचर्या में मिले जिनका योग
सहयोगियों का आभार मानिए
जीवन की बाधाओं को हर लेते
रिश्तेदारों का आभार मानिए ।
आपका लेखन पहचान बनाते कलमकारों का आभार मानिए
हृदय उद्गार जहाँ पहचान पाते
भावों.मोती का आभार मानिए
संतोष कुमारी ‘ संप्रीति ‘
तिथि-24/04/2020
विषय धन्यवाद/आभार
'धन्यवाद'
********
चलते रहे हम अकेले राहों में
लोग आते गये साथी बनते गये
जितना दिया साथ,है दिल से धन्यवाद।
मन थका हो, निराशा हो गहे
किसी ने प्यार के दो शब्द कहे।
पीठ थपथपाया, है दिल से धन्यवाद।
ईश्वर ने बनायी है यह वसुधा
हम मानव है ईश की रचना
सर नवाते हम,है दिल से धन्यवाद।
वसुधा ने माँ की तरह पाला है हमें
जल, वायु, अन्न से सीँचा है हमें
नमन करते,है दिल से धन्यवाद।
माता-पिता के कारण ही है मेरी काया
बना रहे सदैव हमपर उनका साया
मिले आशीर्वाद, है दिल से धन्यवाद।
अपनी भाषा, अपना राष्ट्र है पहचान हमारी
हम पर है उनके ढ़ेरों अहसान
करें वंदन, है दिल से धन्यवाद।
पूरा विश्व त्रस्त है महामारी कोरोना के कहर से
प्रशासन,पुलिस,चिकित्सक डटे हैं मुस्तैदी से
करती हूँ सलाम, है दिल से धन्यवाद।
प्रतिभा निखारने का दिया मौका
धन्य भाग्य,,, हूँ मैं इसका हिस्सा
भावों के मोती का, है दिल से धन्यवाद!!
अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड
विषय धन्यवाद/आभार
'धन्यवाद'
********
चलते रहे हम अकेले राहों में
लोग आते गये साथी बनते गये
जितना दिया साथ,है दिल से धन्यवाद।
मन थका हो, निराशा हो गहे
किसी ने प्यार के दो शब्द कहे।
पीठ थपथपाया, है दिल से धन्यवाद।
ईश्वर ने बनायी है यह वसुधा
हम मानव है ईश की रचना
सर नवाते हम,है दिल से धन्यवाद।
वसुधा ने माँ की तरह पाला है हमें
जल, वायु, अन्न से सीँचा है हमें
नमन करते,है दिल से धन्यवाद।
माता-पिता के कारण ही है मेरी काया
बना रहे सदैव हमपर उनका साया
मिले आशीर्वाद, है दिल से धन्यवाद।
अपनी भाषा, अपना राष्ट्र है पहचान हमारी
हम पर है उनके ढ़ेरों अहसान
करें वंदन, है दिल से धन्यवाद।
पूरा विश्व त्रस्त है महामारी कोरोना के कहर से
प्रशासन,पुलिस,चिकित्सक डटे हैं मुस्तैदी से
करती हूँ सलाम, है दिल से धन्यवाद।
प्रतिभा निखारने का दिया मौका
धन्य भाग्य,,, हूँ मैं इसका हिस्सा
भावों के मोती का, है दिल से धन्यवाद!!
अनिता निधि
जमशेदपुर,झारखंड
विषय : धन्यवाद, आभार
विधा : हाइकू
तिथि : 24.4.2020
तेरा आभार
समूह भावमोती
दिया जो प्यार।
है धन्यवाद
दिया हर्ष प्रसाद
रहो आबाद।
प्रभु आभार
मिटे जीवन खार
श्वास बहार।
आभार न्योती
खोल हृदय सीप
पा भाव मोती।
बुद्धि प्रदान
आभार गुणखान
प्रभु का गान।
संतुष्टि गुण
दूर अवगुण
उत्तम जुड़।
नहीं प्रहार
कोरोना ले आभार
तज संसार।
पा उपचार
डॉक्टर हो आभार
दे दरकार।
सुनी पुकार
आभार हो स्वीकार
लौटाया प्यार।
लाड़ व प्यार
माता पिता आभार
ऋण अपार।
श्वसन खाद
प्रकृति धन्यवाद
मुक्त मवाद।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
विधा : हाइकू
तिथि : 24.4.2020
तेरा आभार
समूह भावमोती
दिया जो प्यार।
है धन्यवाद
दिया हर्ष प्रसाद
रहो आबाद।
प्रभु आभार
मिटे जीवन खार
श्वास बहार।
आभार न्योती
खोल हृदय सीप
पा भाव मोती।
बुद्धि प्रदान
आभार गुणखान
प्रभु का गान।
संतुष्टि गुण
दूर अवगुण
उत्तम जुड़।
नहीं प्रहार
कोरोना ले आभार
तज संसार।
पा उपचार
डॉक्टर हो आभार
दे दरकार।
सुनी पुकार
आभार हो स्वीकार
लौटाया प्यार।
लाड़ व प्यार
माता पिता आभार
ऋण अपार।
श्वसन खाद
प्रकृति धन्यवाद
मुक्त मवाद।
-रीता ग्रोवर
-स्वरचित
२४/४/२०२०
बिषय-आभार
ठंडी बयार का आलिंगन,
श्वास-श्वास करती नर्तन ,
सुरभित,कुसुमित खिला चमन,
महकाती केसर चंदन।
गंगा जल निर्मल पावन ,
स्वच्छ, शांत होता तन-मन,
रवि -रश्मियाँ धरा गगन,
हरती तम करती रोशन ।
पेड़-पौधे चलता जीवन,
पर्यावरण रहे संतुलन ,
काया ये वरदान प्रभु का,
सरल,सहज,शुद्ध अंतर्मन ।
धन्यवाद ईश को देते,
मिला अनमोल ये जीवन,
प्रकृति का आभार करे,
निःस्वार्थ सँवारे कण-कण।
स्वरचित
चंदा प्रहलादका
बिषय-आभार
ठंडी बयार का आलिंगन,
श्वास-श्वास करती नर्तन ,
सुरभित,कुसुमित खिला चमन,
महकाती केसर चंदन।
गंगा जल निर्मल पावन ,
स्वच्छ, शांत होता तन-मन,
रवि -रश्मियाँ धरा गगन,
हरती तम करती रोशन ।
पेड़-पौधे चलता जीवन,
पर्यावरण रहे संतुलन ,
काया ये वरदान प्रभु का,
सरल,सहज,शुद्ध अंतर्मन ।
धन्यवाद ईश को देते,
मिला अनमोल ये जीवन,
प्रकृति का आभार करे,
निःस्वार्थ सँवारे कण-कण।
स्वरचित
चंदा प्रहलादका
24/ 4/2020
बिषय, आभार, धन्यवाद
भावों के मोती में शामिल करने के लिए सादर आभार
दिल से आपने किया स्वीकार
आपकी नजरों ने समझा लेख के काविल मुझे
तहेदिल से धन्यवाद मिल गई मंजिल मुझे
मैंने भी स्वीकार किया है आपका ए फैसला
कह रही मैं बारबार बंदा पर शुक्रिया
सारे जहाँ की हर खुशी हो गई हासिल मुझे
मंजिल तक पहुँचने को सीढ़ी लगा दी आपने
उन्नींदी सी रहती और जगा दी आपने
सूना सूना था दिल अभी तक मिल गई महफ़िल मुझे
हृदय से करती शुक्रिया धन्यवाद आपका
भावों के मोती का चमन रहे आबाद आपका
हंस के अपने साहित्य समूह में कर लिया शामिल मुझे
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
बिषय, आभार, धन्यवाद
भावों के मोती में शामिल करने के लिए सादर आभार
दिल से आपने किया स्वीकार
आपकी नजरों ने समझा लेख के काविल मुझे
तहेदिल से धन्यवाद मिल गई मंजिल मुझे
मैंने भी स्वीकार किया है आपका ए फैसला
कह रही मैं बारबार बंदा पर शुक्रिया
सारे जहाँ की हर खुशी हो गई हासिल मुझे
मंजिल तक पहुँचने को सीढ़ी लगा दी आपने
उन्नींदी सी रहती और जगा दी आपने
सूना सूना था दिल अभी तक मिल गई महफ़िल मुझे
हृदय से करती शुक्रिया धन्यवाद आपका
भावों के मोती का चमन रहे आबाद आपका
हंस के अपने साहित्य समूह में कर लिया शामिल मुझे
स्वरचित सुषमा ब्यौहार
आज के विषय पर प्रस्तुति
*धन्यवाद*
जाने कैसा पुण्य उदय
से,
मिला हुआ ये मानव जीवन।
हे विधना विधायक नमन है
करती लाख लाख धन्यवाद। ।
नमन है उस पावन कोख को,
मुझ अकिंचन को धारण किया।
मरण तुल्य वह दारुण सहकर,
रक्त -सिंचित मुझे जन्म दिया।
सिराओं में जो बहता लहू
बूंद बूंद करता धन्यवाद
प्रथम चरण जहाँ धरणी रखा,
अन्न, नीर ,मीठा स्वाद चखा।
धूमिल होकर धूल धूसरित
है रज का कण-कण धन्यवाद ।
पथ- प्रदर्शक बनें मात- पिता,
गुरुजनों की वह शिक्षा ज्ञान।
सखी- सखा जीवन के सारे,
करती भाव पूरित अभिमान।
स्वर्णिम काल हुई चिर स्मृतियाँ,
मिले नेह, पल- छिन धन्यवाद।
जीवन साथी जन्म- मरण तक,
सात जन्मों का बंधन साथ।
सुख- दुख संगम बने सहयात्री,
छूटा ना कभी संगी साथ।
जीवन का संग्राम विकट था,
शौर्य पराक्रम धन्यवाद।
ईश ने दिया सुन्दर फुलवारी,
महकती बगिया सुन्दर क्यारी।
पँखुरी पँखुरी जीवन पाती,
सजती खुशियों की बनमाली ।
नेह आशीष पुर्वज देते
कृपानिधान ईश धन्यवाद।
मानव मुल्यों मर्म सिखाती,
भावाक्षर को शब्द बनाती।
अभिव्यक्ति का लिए स्वराँजली,
साहित्य संग पथी बनाती।
अंतरवासिनी वीणापाणि
अंतर भाव करूँ धन्यवाद।
अनुरागी बनते सृजन सृजित,
कलम वीरों से पटल भूषित।
भिन्न भिन्न भावों संप्रेषित,
रस छंद अलंकार विभूषित।
मानष मनीष सारस्वत भाव
सकल पटल लेखन धन्यवाद।
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
*धन्यवाद*
जाने कैसा पुण्य उदय
से,
मिला हुआ ये मानव जीवन।
हे विधना विधायक नमन है
करती लाख लाख धन्यवाद। ।
नमन है उस पावन कोख को,
मुझ अकिंचन को धारण किया।
मरण तुल्य वह दारुण सहकर,
रक्त -सिंचित मुझे जन्म दिया।
सिराओं में जो बहता लहू
बूंद बूंद करता धन्यवाद
प्रथम चरण जहाँ धरणी रखा,
अन्न, नीर ,मीठा स्वाद चखा।
धूमिल होकर धूल धूसरित
है रज का कण-कण धन्यवाद ।
पथ- प्रदर्शक बनें मात- पिता,
गुरुजनों की वह शिक्षा ज्ञान।
सखी- सखा जीवन के सारे,
करती भाव पूरित अभिमान।
स्वर्णिम काल हुई चिर स्मृतियाँ,
मिले नेह, पल- छिन धन्यवाद।
जीवन साथी जन्म- मरण तक,
सात जन्मों का बंधन साथ।
सुख- दुख संगम बने सहयात्री,
छूटा ना कभी संगी साथ।
जीवन का संग्राम विकट था,
शौर्य पराक्रम धन्यवाद।
ईश ने दिया सुन्दर फुलवारी,
महकती बगिया सुन्दर क्यारी।
पँखुरी पँखुरी जीवन पाती,
सजती खुशियों की बनमाली ।
नेह आशीष पुर्वज देते
कृपानिधान ईश धन्यवाद।
मानव मुल्यों मर्म सिखाती,
भावाक्षर को शब्द बनाती।
अभिव्यक्ति का लिए स्वराँजली,
साहित्य संग पथी बनाती।
अंतरवासिनी वीणापाणि
अंतर भाव करूँ धन्यवाद।
अनुरागी बनते सृजन सृजित,
कलम वीरों से पटल भूषित।
भिन्न भिन्न भावों संप्रेषित,
रस छंद अलंकार विभूषित।
मानष मनीष सारस्वत भाव
सकल पटल लेखन धन्यवाद।
स्वरचित
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़
दिनांक : 24.04.2020
दिन : शुक्रवार
माननीय पटल के समक्ष आभार सहित
गीत
कोरे पृष्ठ , कलम हाथ में ,
गढ़ते शिल्प हजार हैं !
" भावों के मोती " हैं गहरे ,
जिनकी थाह अपार है !!
विषय वस्तु मिल जाती है तो ,
मिल जाते हैं चित्र कभी !
छंदबद्ध या छंदमुक्त है ,
करते लेखन यहाँ सभी !
रोज करें लेखन सर्वोत्तम ,
होती पैनी धार हैं !!
कभी गीत हैं , कभी ग़ज़ल है ,
बहुतेरे से छंद हैं !
दोहे , चौपाई , सजते हैं ,
मदिर काव्य की गंध है !
पटल रोज सुशोभित होता ,
ऐसे हीरक हार हैं !!
नेह बड़ा है , अपनापन है ,
गुंथे हुए हैं माल से !
मात शारदा की आराधन ,
हिंदी की ही थाल से !
भेंट पुष्प हों अपने अर्पित ,
संग लिये " आभार " हैं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
दिन : शुक्रवार
माननीय पटल के समक्ष आभार सहित
गीत
कोरे पृष्ठ , कलम हाथ में ,
गढ़ते शिल्प हजार हैं !
" भावों के मोती " हैं गहरे ,
जिनकी थाह अपार है !!
विषय वस्तु मिल जाती है तो ,
मिल जाते हैं चित्र कभी !
छंदबद्ध या छंदमुक्त है ,
करते लेखन यहाँ सभी !
रोज करें लेखन सर्वोत्तम ,
होती पैनी धार हैं !!
कभी गीत हैं , कभी ग़ज़ल है ,
बहुतेरे से छंद हैं !
दोहे , चौपाई , सजते हैं ,
मदिर काव्य की गंध है !
पटल रोज सुशोभित होता ,
ऐसे हीरक हार हैं !!
नेह बड़ा है , अपनापन है ,
गुंथे हुए हैं माल से !
मात शारदा की आराधन ,
हिंदी की ही थाल से !
भेंट पुष्प हों अपने अर्पित ,
संग लिये " आभार " हैं !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )
दिनाँक24/4/2020
शीर्षक -आभार
विधा काव्य
आभार उस परमेश्वर का,
जिसने हममे काव्यभरा,
आभार आपका ऐ मंच श्रेष्ठ,
लिखने का प्रोत्साहन दिया,
आभार है उन भावों का जो
ह्दय में कविता भरते है,
शब्द के मोती चुन चुन कर
काव्य माला मे जोड देते है,
वर्णो के हर कण कण का
आभार व्यक्त हम करते है
पाठशाला के प्रांगणऔर
गुरूजनों का जयगान,
हम जिनके द्वारा करते हैं,
स्वरचित
साधना जोशी
उत्तकाशी उत्तराखण्ड
शीर्षक -आभार
विधा काव्य
आभार उस परमेश्वर का,
जिसने हममे काव्यभरा,
आभार आपका ऐ मंच श्रेष्ठ,
लिखने का प्रोत्साहन दिया,
आभार है उन भावों का जो
ह्दय में कविता भरते है,
शब्द के मोती चुन चुन कर
काव्य माला मे जोड देते है,
वर्णो के हर कण कण का
आभार व्यक्त हम करते है
पाठशाला के प्रांगणऔर
गुरूजनों का जयगान,
हम जिनके द्वारा करते हैं,
स्वरचित
साधना जोशी
उत्तकाशी उत्तराखण्ड
24 अप्रैल 2020, शुक्रवार
विषय-आभार ,धन्यवाद
जीवन धन्य है आभारी है
ईश्वर का मित्रों का समूचे जगत का
पूज्य गुरु और उन प्राणियों का
जिनसे हमने सीखा भिन्न-भिन्न।
सीखना सतत प्रक्रिया है
बाकी बहुत सीखना है
रहेंगे आभारी उस अज्ञात के
कि वह हमारा प्रेरणादायक बने।
जीवन धन्य है आभारी है
और विशेष आभार हैं,,,,हमारे मंच का
जिसने दिया हमें स्थान
अपरिपक्वता को सहा सराहा
जीवन पथ प्रदर्शित किया।
धन्य है आभारी है
मंच अक्षुण्ण बना रहे
सजा रहे सुधी लेखकों से
वीणापानी-आशीर्वाद बना रहे
धन्यवाद आभार
इन द्वि महत्वपूर्ण दिवसों का
पढ़कर असंख्य लेख
मन प्रफुल्लित हो उठा
प्रतिभाएं एक से बढ़कर एक
मन झंकृत हो उठा,,,,,
धन्यवाद भावों के मोती मंच
दिया ऐसा स्वर्णिम अवसर
आभार,,आभार,,,आभार,,,,
आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
विषय-आभार ,धन्यवाद
जीवन धन्य है आभारी है
ईश्वर का मित्रों का समूचे जगत का
पूज्य गुरु और उन प्राणियों का
जिनसे हमने सीखा भिन्न-भिन्न।
सीखना सतत प्रक्रिया है
बाकी बहुत सीखना है
रहेंगे आभारी उस अज्ञात के
कि वह हमारा प्रेरणादायक बने।
जीवन धन्य है आभारी है
और विशेष आभार हैं,,,,हमारे मंच का
जिसने दिया हमें स्थान
अपरिपक्वता को सहा सराहा
जीवन पथ प्रदर्शित किया।
धन्य है आभारी है
मंच अक्षुण्ण बना रहे
सजा रहे सुधी लेखकों से
वीणापानी-आशीर्वाद बना रहे
धन्यवाद आभार
इन द्वि महत्वपूर्ण दिवसों का
पढ़कर असंख्य लेख
मन प्रफुल्लित हो उठा
प्रतिभाएं एक से बढ़कर एक
मन झंकृत हो उठा,,,,,
धन्यवाद भावों के मोती मंच
दिया ऐसा स्वर्णिम अवसर
आभार,,आभार,,,आभार,,,,
आशा पालीवाल पुरोहित राजसमंद
विषय आभार
विधा कविता
दिनाँक 24.4.2020
दिन शुक्रवार
आभार
💘💘💘💘
जब कोई करता हमारा कार्य साकार
जब कोई करता हम पर थोडा़ भी उपकार
तो हम करते प्रकट स्वतः ही अपने उदगार
ऐसे सँस्कार को ही कहते हैं आभार।
आभार शिष्ठता का परिचायक है
आभार कुशल व्यवहार का का गायक है
आभार मित्रता के पथ का नायक है
आभार हर वर्ग और सीमा के लायक है।
मैं आभारी हूँ भाव मोती के समूह का
मैं आभारी काव्य शैली से जुडी़ हर रुह का
मैं आभारी हूँ काव्य जगत के दिग्गजों का
मैं आभारी हूँ मेरे अनुजों का अग्रजों का।
माँ सरस्वती का आभार स्वरुप करता वन्दन
हर कवयित्री का आभार स्वरुप करता अभिनन्दन
सबके आभार स्वरुप लगाता कविता का चन्दन
सबके स्नेह की अपेक्षा करता मैं सुमित्रा नन्दन।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
विधा कविता
दिनाँक 24.4.2020
दिन शुक्रवार
आभार
💘💘💘💘
जब कोई करता हमारा कार्य साकार
जब कोई करता हम पर थोडा़ भी उपकार
तो हम करते प्रकट स्वतः ही अपने उदगार
ऐसे सँस्कार को ही कहते हैं आभार।
आभार शिष्ठता का परिचायक है
आभार कुशल व्यवहार का का गायक है
आभार मित्रता के पथ का नायक है
आभार हर वर्ग और सीमा के लायक है।
मैं आभारी हूँ भाव मोती के समूह का
मैं आभारी काव्य शैली से जुडी़ हर रुह का
मैं आभारी हूँ काव्य जगत के दिग्गजों का
मैं आभारी हूँ मेरे अनुजों का अग्रजों का।
माँ सरस्वती का आभार स्वरुप करता वन्दन
हर कवयित्री का आभार स्वरुप करता अभिनन्दन
सबके आभार स्वरुप लगाता कविता का चन्दन
सबके स्नेह की अपेक्षा करता मैं सुमित्रा नन्दन।
कृष्णम् शरणम् गच्छामि
दिनांक-24-04-2020
विषय-धन्यवाद/ आभार
विधा- कविता
धन्यवाद/आभार
******************
आभार सदा मेरा तुमको
मेरे भावों को धार दिया
साहित्य सृजन जो सोचा था
मेरे सपनों को पूर्ण किया
यह जीव जगत जिसने हमको
जीवन का उपहार दिया
मैं करूँ नमन उस शक्ति को
जिसने यह जीवन दान दिया|
नमन करूँ मैं मात- पिता को
जो भूतल पर हमको लाए
मैं रहूँ कृतज्ञ उन चरणों का
इस जीवन पर उपकार किया|
आभारी मै उन गुरुओं का
लोहे को सोना बना दिया
मैं करूँ नमन उन चरणों की
जिनने शिक्षा का दान दिया|
मैं आभारी हूँ इस धरती का
जिसने धरती पर जन्म दिया
है नमन मेरा चतुरानन को
मनुज योनि में जन्म दिया|
आभारी मैं उन सबका हूँ
इस जीवन में जो साधक थे
मैं नमन करूँ जग वालों को
इस जीवन पर उपकार किया|
स्वरचित
संदीप कुमार मेहरोत्रा
गोलवा घाट लखनऊ रोड
बहराइच (उत्तर प्रदेश)
विषय-धन्यवाद/ आभार
विधा- कविता
धन्यवाद/आभार
******************
आभार सदा मेरा तुमको
मेरे भावों को धार दिया
साहित्य सृजन जो सोचा था
मेरे सपनों को पूर्ण किया
यह जीव जगत जिसने हमको
जीवन का उपहार दिया
मैं करूँ नमन उस शक्ति को
जिसने यह जीवन दान दिया|
नमन करूँ मैं मात- पिता को
जो भूतल पर हमको लाए
मैं रहूँ कृतज्ञ उन चरणों का
इस जीवन पर उपकार किया|
आभारी मै उन गुरुओं का
लोहे को सोना बना दिया
मैं करूँ नमन उन चरणों की
जिनने शिक्षा का दान दिया|
मैं आभारी हूँ इस धरती का
जिसने धरती पर जन्म दिया
है नमन मेरा चतुरानन को
मनुज योनि में जन्म दिया|
आभारी मैं उन सबका हूँ
इस जीवन में जो साधक थे
मैं नमन करूँ जग वालों को
इस जीवन पर उपकार किया|
स्वरचित
संदीप कुमार मेहरोत्रा
गोलवा घाट लखनऊ रोड
बहराइच (उत्तर प्रदेश)
सुबह उठते ही आया यह विचार
कैसे व किस किस का व्यक्त करें आभार
दिनभर जिस वस्तु का उपयोग करेंगे
उसका गुनगान कर आभार व्यक्त करेंगे
हे... खाट तेरा बहुत बहुत आभार
सारी रात तूने सहा मेरा भार
हे... दातुन तेरा शुक्रिया
तूने बड़ी सरलता से मेरे दाँतों को स्वच्छ किया
हे चूल्हा तेरा धन्यवाद
तूने खाना पकाकर बढ़ाया स्वाद
हे...केतली तू कितनी अच्छी है हाय
तू न होती तो कैसे बनती मेरी चाय
हे... कंघी तेरा बहुत बहुत आभार
तूने मेरे बालों को अच्छे से दिया सवाँर
हे झाड़ू तेरा शुक्रिया
तूने आसानी से मेरा आंगन स्वच्छ किया
अनगिनत उपयोगी वस्तुओं का आभार
आपकी सहायता बिन हम हैं लाचार
स्वरचित✍️
मीना कुमारी
कैसे व किस किस का व्यक्त करें आभार
दिनभर जिस वस्तु का उपयोग करेंगे
उसका गुनगान कर आभार व्यक्त करेंगे
हे... खाट तेरा बहुत बहुत आभार
सारी रात तूने सहा मेरा भार
हे... दातुन तेरा शुक्रिया
तूने बड़ी सरलता से मेरे दाँतों को स्वच्छ किया
हे चूल्हा तेरा धन्यवाद
तूने खाना पकाकर बढ़ाया स्वाद
हे...केतली तू कितनी अच्छी है हाय
तू न होती तो कैसे बनती मेरी चाय
हे... कंघी तेरा बहुत बहुत आभार
तूने मेरे बालों को अच्छे से दिया सवाँर
हे झाड़ू तेरा शुक्रिया
तूने आसानी से मेरा आंगन स्वच्छ किया
अनगिनत उपयोगी वस्तुओं का आभार
आपकी सहायता बिन हम हैं लाचार
स्वरचित✍️
मीना कुमारी
24-4-2020
विषय धन्यवाद/आभार
सबसे पहले आभार माता पिता का
जिसने दिया दिया आधार सुन्दर जगत का।
जिस घर बेटियों के जन्म पर होती है उदासी
आभार मेरे माता-पिता का जन्म से
पहले अपनी तीन बेटियों का कर देते थे नाम संस्कार।
शरदचंद्र की एक नायिका से प्रभावित हो विभा नाम दिया मेरे पिता ने।
आभार फिर से
हूं मैं आज यहां।
बेटों के लिए जो किया जाता जितिया पर्व
मां ने शुरू किया था अपनी प्रथम पुत्री के जन्म से।
फिर से आभार
जन्म सार्थक हुआ हमारा सबने
साथ निभाना।
हर परिस्थितियों में अपनों ने
परिवारों ने या मित्र बंधुओं जिसने भी दिया हमें सहारा ऋणि हूं
उन सबों की जो आज भी है साथ हमारे।
आभार, आभार और आभार।
विभा झा
रांची झारखंड।
भावों के मोती
विषय - धन्यवाद / आभार
************************
आभार सम्मान समान होता है,
धन्यवाद से ही लोगों का दिल जीता जाता है ।।
कहने में तो छोटा है कुछ क्षण में कह दिया जाता है,
आभार व्यक्त करना लोगों का यह हमारे संस्कार बता जाता है ।।
मां बाप सा कोई नहीं इस जग में ,
सदा मैं उनकी ऋणी रहूं।
शिक्षक समान भगवान का ,
मैं हर क्षण आभार व्यक्त करूं।
मिले सच्चे लोग मुझे,
मिले बहुत दुश्मन भी।
करती हूं उनका आभार मैं,
जिन्होंने सच्ची राह मुझे दिखाई ।।
मां समान वीणा वशिष्ठ ,,
का करती हूं हार्दिक आभार मैं।।
जिनकी प्रेरणा से आज,,
भावों के मोती में स्थान बना मैं पायी हूँ ।।
करूं उन सबका धन्यवाद मैं,,
जिनसे अभिप्रेरित मैं हुई ।।
- रेणु शर्मा
जयपुर ( राजस्थान )
विषय - धन्यवाद / आभार
************************
आभार सम्मान समान होता है,
धन्यवाद से ही लोगों का दिल जीता जाता है ।।
कहने में तो छोटा है कुछ क्षण में कह दिया जाता है,
आभार व्यक्त करना लोगों का यह हमारे संस्कार बता जाता है ।।
मां बाप सा कोई नहीं इस जग में ,
सदा मैं उनकी ऋणी रहूं।
शिक्षक समान भगवान का ,
मैं हर क्षण आभार व्यक्त करूं।
मिले सच्चे लोग मुझे,
मिले बहुत दुश्मन भी।
करती हूं उनका आभार मैं,
जिन्होंने सच्ची राह मुझे दिखाई ।।
मां समान वीणा वशिष्ठ ,,
का करती हूं हार्दिक आभार मैं।।
जिनकी प्रेरणा से आज,,
भावों के मोती में स्थान बना मैं पायी हूँ ।।
करूं उन सबका धन्यवाद मैं,,
जिनसे अभिप्रेरित मैं हुई ।।
- रेणु शर्मा
जयपुर ( राजस्थान )
दिनांक-24/04/20
विषय-आभार/धन्यवाद
धन्य है भावो से भरा आभार,
इसके मिलते बहुत ही प्रकार ।
जीवन जीने के पथ पर
चाहिये अच्छा सा संस्कार।
अच्छे कर्मों के बदले
जुबा से निकला शब्द प्रभार
जिसको कहते हम आभार।
एक दूजे को देते धन्यवाद
जीत में बनता ये उपहार।
सब को प्रोत्साहन जरूरी है
आभार चाहिये बनके पुरस्कार।
गली मोहल्ले ऑफिस हो
बधाई संग आभार देते हर त्योहार।।
उमाकान्त यादव उमंग
मेजारोड प्रयागराज
विषय-आभार/धन्यवाद
धन्य है भावो से भरा आभार,
इसके मिलते बहुत ही प्रकार ।
जीवन जीने के पथ पर
चाहिये अच्छा सा संस्कार।
अच्छे कर्मों के बदले
जुबा से निकला शब्द प्रभार
जिसको कहते हम आभार।
एक दूजे को देते धन्यवाद
जीत में बनता ये उपहार।
सब को प्रोत्साहन जरूरी है
आभार चाहिये बनके पुरस्कार।
गली मोहल्ले ऑफिस हो
बधाई संग आभार देते हर त्योहार।।
उमाकान्त यादव उमंग
मेजारोड प्रयागराज
विषय- धन्यवाद/ आभार
हे! भारत के वीर योद्धाओं
सभी समर्पित वीर युवाओं
तन मन से नित सेवा करते
तुमको धन्यवाद हम करते ||
चिकित्सक हो या वीर जवान
सफाई कर्मचारी या पत्रकार
हर क्षण जनता की सेवा को तत्पर
हम कैसे व्यक्त करें आभार ||
स्वरचित मौलिक
शिवानी शुक्ला श्रद्धा'
जौनपुर उत्तर प्रदेश
हे! भारत के वीर योद्धाओं
सभी समर्पित वीर युवाओं
तन मन से नित सेवा करते
तुमको धन्यवाद हम करते ||
चिकित्सक हो या वीर जवान
सफाई कर्मचारी या पत्रकार
हर क्षण जनता की सेवा को तत्पर
हम कैसे व्यक्त करें आभार ||
स्वरचित मौलिक
शिवानी शुक्ला श्रद्धा'
जौनपुर उत्तर प्रदेश
दिनांक- २४-४-२०
विषय- आभार
***************************
सर्वप्रथम हे परमपिता, पालनकर्ता,
सृष्टि के रचयिता दुखहर्ता,
आपका आभार है,
क्योंकि आपने ही बनाया
ये सारा संसार है।।
हे देव तुल्य; माता पिता
आपका आभार है,
क्योंकि यह मेरा शरीर
आपका ही उपहार है।।
क्षिति,जल,पावक,गगन, समीर आपका आभार है,
क्योंकि हर प्राणी मात्र में आपका अंशभार है।।
हे गुरुवर ज्ञान के दाता
आपका आभार है,
क्योंकि ज्ञान पुंज दे हमें आपने बनाया रचनाकार है।।
हे मित्र बंधु ,संगी-सखा,
अवसादों से हमें दूर रखा,
आपका आभार है,
क्योंकि आपसे हुआ हममें
सद्गुणों का प्रसार है।।
हे हर सृष्टि के कण-कण
तुझपे अर्पित तन मन
आपका आभार है।।
अंत में यह मंच आपका आभार है,
हिंदी साहित्य के आप सहयोगी बारंबार है,
आइए हम सब मिल कर सबका आभार करे,
हिंदी का मिल कर हम सब प्रसार करे।।
स्वरचित एवं मौलिक
प्रियंका प्रिया, पटना, बिहार।।
विषय- आभार
***************************
सर्वप्रथम हे परमपिता, पालनकर्ता,
सृष्टि के रचयिता दुखहर्ता,
आपका आभार है,
क्योंकि आपने ही बनाया
ये सारा संसार है।।
हे देव तुल्य; माता पिता
आपका आभार है,
क्योंकि यह मेरा शरीर
आपका ही उपहार है।।
क्षिति,जल,पावक,गगन, समीर आपका आभार है,
क्योंकि हर प्राणी मात्र में आपका अंशभार है।।
हे गुरुवर ज्ञान के दाता
आपका आभार है,
क्योंकि ज्ञान पुंज दे हमें आपने बनाया रचनाकार है।।
हे मित्र बंधु ,संगी-सखा,
अवसादों से हमें दूर रखा,
आपका आभार है,
क्योंकि आपसे हुआ हममें
सद्गुणों का प्रसार है।।
हे हर सृष्टि के कण-कण
तुझपे अर्पित तन मन
आपका आभार है।।
अंत में यह मंच आपका आभार है,
हिंदी साहित्य के आप सहयोगी बारंबार है,
आइए हम सब मिल कर सबका आभार करे,
हिंदी का मिल कर हम सब प्रसार करे।।
स्वरचित एवं मौलिक
प्रियंका प्रिया, पटना, बिहार।।
24/4/20
दिया सम्मान है मुझको।
अजी आभार आपका।
कलम के इस किरदार ने।
किया आभार आपका।
जब नही थी पहचान।
न साथ था आपका।
कोने में पड़ी थी लेखन।
चुपचाप काव्य था।
मिला नजरो को साथ आपका।
जवा हुआ काव्य था।
ताकत मिली कलम को।
ये भी आभार आपका।
पहचान मिली कलम को।
सम्मान काव्य का।
मिला वजूद जिंदगी को।
जी सलामे आभार आपका।
दोस्त मिले साथी भी राह के।
अपनापन मिला परिवार का।
निशब्द हो गई मैं।
भरे ह्रदय से आभार आपका
स्वरचित
मीना तिवारी
दिया सम्मान है मुझको।
अजी आभार आपका।
कलम के इस किरदार ने।
किया आभार आपका।
जब नही थी पहचान।
न साथ था आपका।
कोने में पड़ी थी लेखन।
चुपचाप काव्य था।
मिला नजरो को साथ आपका।
जवा हुआ काव्य था।
ताकत मिली कलम को।
ये भी आभार आपका।
पहचान मिली कलम को।
सम्मान काव्य का।
मिला वजूद जिंदगी को।
जी सलामे आभार आपका।
दोस्त मिले साथी भी राह के।
अपनापन मिला परिवार का।
निशब्द हो गई मैं।
भरे ह्रदय से आभार आपका
स्वरचित
मीना तिवारी
दिनाँक-24.04.2020
विषय-आभार
मात पिता ने दिया सदा प्यार दुलार
गुरुओं ने दिया ज्ञान सीख,संस्कार।
मित्रो सुख दुख में साथ देते रहे सदा
प्रकृति ने किया सबल कर उपकार।
जिनने कलम दे बताया काव्य सार,
साहित्य प्रतियोगिता में देते पुरस्कार
हिंदी कविता छापते रहे जो पत्रकार
करते जो तालियों उत्साह बार बार।।
स्नेह से दे मिला भावों के मोती हार,
बना रहे जो नित्य कलम का किरदार।
मिला रहा सौभाग्य जिनका आर्शीवाद,
ऐसी सभी विभूतियों सदा का आभार।।
दीनदयाल सोनी"स्वर्ण'
बाँदा उ.प्र.
विषय-आभार
मात पिता ने दिया सदा प्यार दुलार
गुरुओं ने दिया ज्ञान सीख,संस्कार।
मित्रो सुख दुख में साथ देते रहे सदा
प्रकृति ने किया सबल कर उपकार।
जिनने कलम दे बताया काव्य सार,
साहित्य प्रतियोगिता में देते पुरस्कार
हिंदी कविता छापते रहे जो पत्रकार
करते जो तालियों उत्साह बार बार।।
स्नेह से दे मिला भावों के मोती हार,
बना रहे जो नित्य कलम का किरदार।
मिला रहा सौभाग्य जिनका आर्शीवाद,
ऐसी सभी विभूतियों सदा का आभार।।
दीनदयाल सोनी"स्वर्ण'
बाँदा उ.प्र.
शुक्रवार/24अप्रैल/2020
आज का विषय- धन्यवाद/ आभार
विधा- कविता
मेरी प्रस्तुति .........
आज मन भीतर से ,
भरपूर आनंदित है ।
धन्यवाद, आभार ,
" कलम "
लिख सकूँ संघर्षरत,
जीवन चिंतन !!
पहला प्रणाम
मात - पिता को,
धन्यवाद, आभार !
हमें लाया इस पावन धरती पर।
नहीं चुकता कर सकती
आपके दिए संस्कारों का कर्ज!!
दूसरा प्रणाम
मेरे इष्ट देव, गुरुदेव,
हे मेरे भगवान -
धन्यवाद,आभार !
सात बार एक्सीडेंट
के बाबजूद भी मुझे
एक अच्छी जिंदगी बख्शी!!
धन्यवाद, आभार
जिंदगी- जो विशिष्ट सम्मानीय
लोगों से मुझे मिलवाया -
धन्य हो गयी मैं!
शायद इसीलिए ही
मर -मर कर भी मुझे
जीवन दान दिया !!
सादर प्रणाम अभिनन्दन वंदन!
धन्यवाद, आभार प्यारे रसीले
शब्दों से सराबोर सराहनीय
सम्मानीय " भावों के मोती "
एडमिन टीम, शब्द नहीं
कैसे शुक्रिया अदा करूँ
आपने जो स्नेहिल अंकुर
साहित्य योगदान से
इन्द्रियों को ज्ञान प्राप्त करने का
सुअवसर दिया सदैव आभारी रहूँगी ।
सादर अभिवादन!!
रत्ना वर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
धनबाद -झारखंड
आज का विषय- धन्यवाद/ आभार
विधा- कविता
मेरी प्रस्तुति .........
आज मन भीतर से ,
भरपूर आनंदित है ।
धन्यवाद, आभार ,
" कलम "
लिख सकूँ संघर्षरत,
जीवन चिंतन !!
पहला प्रणाम
मात - पिता को,
धन्यवाद, आभार !
हमें लाया इस पावन धरती पर।
नहीं चुकता कर सकती
आपके दिए संस्कारों का कर्ज!!
दूसरा प्रणाम
मेरे इष्ट देव, गुरुदेव,
हे मेरे भगवान -
धन्यवाद,आभार !
सात बार एक्सीडेंट
के बाबजूद भी मुझे
एक अच्छी जिंदगी बख्शी!!
धन्यवाद, आभार
जिंदगी- जो विशिष्ट सम्मानीय
लोगों से मुझे मिलवाया -
धन्य हो गयी मैं!
शायद इसीलिए ही
मर -मर कर भी मुझे
जीवन दान दिया !!
सादर प्रणाम अभिनन्दन वंदन!
धन्यवाद, आभार प्यारे रसीले
शब्दों से सराबोर सराहनीय
सम्मानीय " भावों के मोती "
एडमिन टीम, शब्द नहीं
कैसे शुक्रिया अदा करूँ
आपने जो स्नेहिल अंकुर
साहित्य योगदान से
इन्द्रियों को ज्ञान प्राप्त करने का
सुअवसर दिया सदैव आभारी रहूँगी ।
सादर अभिवादन!!
रत्ना वर्मा
स्वरचित मौलिक रचना
धनबाद -झारखंड
धन्यवाद हम जताते, आभार है हम देते,
भावों के मोती को उपहार हम है देते,
हृदय की पोथी में जो भावना छिपी थी,
सुंदर सा शीर्षक देकर भावना वो जगाते,
नव छंद भाव मिलकर दीपक सा जला है,
हृदय सोपान से वह कागज पर आ जड़ा है
कितने प्रफुल्लित है , कुछ कह नहीं सकते,
अपने सृजन को हम यूँ भावना सा लखते,
शाबाशियों को देकर, आप और पुष्ट करते,
यूँ ही आपसब का स्नेह प्रेम बना रहे बराबर
माँ शारदे से बस यही आशीष माँगते है
तेरी साधना निशिदिन हम यूँ ही लगे रहे हैं,
कर दे इसे सफल तू वरदान माँगते है
आभार मानते हैं, धन्यवाद कर रहे हैं.
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ डॉ कन्हैया लाल गुप्त किशन उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली सिवान बिहार 841239
भावों के मोती को उपहार हम है देते,
हृदय की पोथी में जो भावना छिपी थी,
सुंदर सा शीर्षक देकर भावना वो जगाते,
नव छंद भाव मिलकर दीपक सा जला है,
हृदय सोपान से वह कागज पर आ जड़ा है
कितने प्रफुल्लित है , कुछ कह नहीं सकते,
अपने सृजन को हम यूँ भावना सा लखते,
शाबाशियों को देकर, आप और पुष्ट करते,
यूँ ही आपसब का स्नेह प्रेम बना रहे बराबर
माँ शारदे से बस यही आशीष माँगते है
तेरी साधना निशिदिन हम यूँ ही लगे रहे हैं,
कर दे इसे सफल तू वरदान माँगते है
आभार मानते हैं, धन्यवाद कर रहे हैं.
स्वरचित कविता प्रकाशनार्थ डॉ कन्हैया लाल गुप्त किशन उत्क्रमित उच्च विद्यालय सह इण्टर कालेज ताली सिवान बिहार 841239
दिनांक-24-04-2020
विषय- धन्यवाद/आभार
आभार तेरा हे ! परमपिता,
जीवन सांसें जो चलाता है।
बिन तेरी कृपा के पल भर,
संसार नहीं चल पाता है।
दूजा आभार हे मात पिता,
दुनिया में जो लेकर आए।
धरती और आकाश हो मेरे,
पीपल बरगद के हैं साए।
आभार मेरे परिवार स्नेही,
आबाद मेरी दुनिया तुमसे।
परछाई सी संग में रहते,
पहचान तुम्हारी भी मुझसे ।
आभार मेरी हमदम मित्रों,
सुख दुख का सहारा तुम ।
गम के दरिया में लगते हो,
जीवनदायी किनारा तुम ।
आभार साहित्य सेवी मित्रों,
लेखनी को तुम बल देते हो।
शब्द साधना तुमसे ही मेरी,
लेखनी का स्वर्णिम कल हो।
आभार मानव सेवी जन का,
संकट में भी जान पे खेल रहे।
महामारी के भीषण दौर को,
कर्तव्यनिष्ठ होकर झेल रहे।
चिकित्सक,पुलिस,सेवाकर्मी,
संकटकाल में इनका आभार।
हम बैठे हैं घरों में सुरक्षित,
घर छोड़ ये बचा रहे संसार।
कुसुम लता 'कुसुम'
नई दिल्ली
विषय- धन्यवाद/आभार
आभार तेरा हे ! परमपिता,
जीवन सांसें जो चलाता है।
बिन तेरी कृपा के पल भर,
संसार नहीं चल पाता है।
दूजा आभार हे मात पिता,
दुनिया में जो लेकर आए।
धरती और आकाश हो मेरे,
पीपल बरगद के हैं साए।
आभार मेरे परिवार स्नेही,
आबाद मेरी दुनिया तुमसे।
परछाई सी संग में रहते,
पहचान तुम्हारी भी मुझसे ।
आभार मेरी हमदम मित्रों,
सुख दुख का सहारा तुम ।
गम के दरिया में लगते हो,
जीवनदायी किनारा तुम ।
आभार साहित्य सेवी मित्रों,
लेखनी को तुम बल देते हो।
शब्द साधना तुमसे ही मेरी,
लेखनी का स्वर्णिम कल हो।
आभार मानव सेवी जन का,
संकट में भी जान पे खेल रहे।
महामारी के भीषण दौर को,
कर्तव्यनिष्ठ होकर झेल रहे।
चिकित्सक,पुलिस,सेवाकर्मी,
संकटकाल में इनका आभार।
हम बैठे हैं घरों में सुरक्षित,
घर छोड़ ये बचा रहे संसार।
कुसुम लता 'कुसुम'
नई दिल्ली
विषय-आभार/धन्यवाद
विद्या-हाइकु✍🏻😷हाइकु आभार✍🏻😷
बहु आभार।
भावों के मोतियों का।।
हुआ सत्कार।
है धन्यवाद।
भावों के मोतियों को।।
किया जो याद।।
दे उपहार।
ऋतुराज जी दवे।।
देते है प्यार।
बड़े ही शिष्ट।
वीणा शर्मा वसिष्ठ।।
बड़े वरिष्ठ।
दिया सम्मान।
बधाई हो बधाई।।
जोड़े विद्वान।
आया कोरोना।
घर बैठी शारदे।।
सेवा करोना।
दो वर्ष पूर्ण।
भावों के मोती बिन।।
"ऐश"अपूर्ण।
©️अश्वनी कुमार चावला"ऐश"✍🏻
अनूपगढ़,श्रीगंगानगर,24/04/2020.
विद्या-हाइकु✍🏻😷हाइकु आभार✍🏻😷
बहु आभार।
भावों के मोतियों का।।
हुआ सत्कार।
है धन्यवाद।
भावों के मोतियों को।।
किया जो याद।।
दे उपहार।
ऋतुराज जी दवे।।
देते है प्यार।
बड़े ही शिष्ट।
वीणा शर्मा वसिष्ठ।।
बड़े वरिष्ठ।
दिया सम्मान।
बधाई हो बधाई।।
जोड़े विद्वान।
आया कोरोना।
घर बैठी शारदे।।
सेवा करोना।
दो वर्ष पूर्ण।
भावों के मोती बिन।।
"ऐश"अपूर्ण।
©️अश्वनी कुमार चावला"ऐश"✍🏻
अनूपगढ़,श्रीगंगानगर,24/04/2020.
विषय - आभार/धन्यवाद्
यकीन मानिए आपका एक आभार
किसी की चेहरे की मुस्कान बन सकता है
बहुत ही छोटा सा शब्द है आभार
पर शहद से भी मीठा होता है
किसी को आभार व्यक्त करना
आभार व्यक्त कर सकता है वहीं
जिसका दिल साफ और निर्मल हो
निस्वार्थ भाव से आभार कहना
हर प्राणी को नहीं आता है
आभारी हूं मैं माता पिता की
जिनके चरणों में मुझे स्थान मिला
आभारी हूं ईश्वर की मेरे
हर दुख दर्द में ईश्वर ने साथ दिया
आभारी हूं मैं मां सरस्वती की
मुझ पर जी कृपा बरसाई
मुझे मां सरस्वती ने
मेरी असली पहचान बताई
आभारी हूं मैं "भावों के मोती" की
जिन्होंने मुझे एक स्थान दिया
अपने विचार रखने का और
मुझे अभिप्रेरित किया
जया वैष्णव
जोधपुर ,राजस्थान
यकीन मानिए आपका एक आभार
किसी की चेहरे की मुस्कान बन सकता है
बहुत ही छोटा सा शब्द है आभार
पर शहद से भी मीठा होता है
किसी को आभार व्यक्त करना
आभार व्यक्त कर सकता है वहीं
जिसका दिल साफ और निर्मल हो
निस्वार्थ भाव से आभार कहना
हर प्राणी को नहीं आता है
आभारी हूं मैं माता पिता की
जिनके चरणों में मुझे स्थान मिला
आभारी हूं ईश्वर की मेरे
हर दुख दर्द में ईश्वर ने साथ दिया
आभारी हूं मैं मां सरस्वती की
मुझ पर जी कृपा बरसाई
मुझे मां सरस्वती ने
मेरी असली पहचान बताई
आभारी हूं मैं "भावों के मोती" की
जिन्होंने मुझे एक स्थान दिया
अपने विचार रखने का और
मुझे अभिप्रेरित किया
जया वैष्णव
जोधपुर ,राजस्थान
भावों के मोती
शीर्षक धन्यवाद/आभार
24.4.20
*******************
कृत कृत नमन हे आपको
करती में स्वीकार
मोती मन के भाव से
प्रकट करुँ आभार ।
स्नेह सरिता सी मन में
लहराती चंचल सी लहरें
उन्मुक्त मन में उठती हे
जीवन की सलिल तरंगे
उन लहरों का धन्यवाद में
करती हूँ स्वीकार
मन की गति के होते हे
कई आयाम हज़ार ।
कलुषता यदि मन में उपजी
तो दोषी स्वयं को पाती हूँ
औरों को क्या कहूँ में अपने
मन को ही समझाती हूँ
चंचल मन की गति छोड़ मधु
कर मस्तिष्क से विचार
धन्यवाद देती हूँ स्वयं को
खुद में करुँ सुधार
तुलना स्वयं की कभी किसी से
करना में नही चाहूँगी
स्वयं सिद्ध कर्तव्य पथ पर
नित आगे कदम बढ़ाउंगी
उन कदमों में साथी आपको
नमन करो स्वीकार
धन्यवाद माँ सरस्वती
नमन करुँ शत बार ।।
माधुरी सोनी *मधुकुंज*
शीर्षक धन्यवाद/आभार
24.4.20
*******************
कृत कृत नमन हे आपको
करती में स्वीकार
मोती मन के भाव से
प्रकट करुँ आभार ।
स्नेह सरिता सी मन में
लहराती चंचल सी लहरें
उन्मुक्त मन में उठती हे
जीवन की सलिल तरंगे
उन लहरों का धन्यवाद में
करती हूँ स्वीकार
मन की गति के होते हे
कई आयाम हज़ार ।
कलुषता यदि मन में उपजी
तो दोषी स्वयं को पाती हूँ
औरों को क्या कहूँ में अपने
मन को ही समझाती हूँ
चंचल मन की गति छोड़ मधु
कर मस्तिष्क से विचार
धन्यवाद देती हूँ स्वयं को
खुद में करुँ सुधार
तुलना स्वयं की कभी किसी से
करना में नही चाहूँगी
स्वयं सिद्ध कर्तव्य पथ पर
नित आगे कदम बढ़ाउंगी
उन कदमों में साथी आपको
नमन करो स्वीकार
धन्यवाद माँ सरस्वती
नमन करुँ शत बार ।।
माधुरी सोनी *मधुकुंज*
व्यक्त करें आभार हम, जले सदा ही ज्योति।
आभा से मंडित हृदय, भावों की यह मोति।।1
मंच दिया लेखन सुखद, किया सदा सम्मान।
आओ मिलकर कुछ करें, हम भी तो गुणगान।।2
जुड़े हुए कविगण बहुत, विधा अनेक बखान।
सबकी प्रतिभा है अलग, अलग सभी पहचान।। 3
शोभा पाते मंच पर, लिखते अपने भाव।
सबकी अपनी ख्याति है, सबका अपना चाव।। 4
भाँति-भाँति मिलता विषय, भाँति-भाँति अनुभूति।
होती रहती है सदा, जिसकी सहज अभिव्यक्ति।।5
डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही
आभा से मंडित हृदय, भावों की यह मोति।।1
मंच दिया लेखन सुखद, किया सदा सम्मान।
आओ मिलकर कुछ करें, हम भी तो गुणगान।।2
जुड़े हुए कविगण बहुत, विधा अनेक बखान।
सबकी प्रतिभा है अलग, अलग सभी पहचान।। 3
शोभा पाते मंच पर, लिखते अपने भाव।
सबकी अपनी ख्याति है, सबका अपना चाव।। 4
भाँति-भाँति मिलता विषय, भाँति-भाँति अनुभूति।
होती रहती है सदा, जिसकी सहज अभिव्यक्ति।।5
डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही
आभार
है
आभार
उन डाक्टर
योद्धाओं का
जो करोना
संकट की
घड़ी में
दे रहे
जीवनदान है
नहीं कर रहे
परवाहअपनी
जिन्दगी की
सुबह शाम रात
डटे हैं जो
मोर्चा पर
बचा रहे
खतरों से
आभार है
उन पुलिस
योद्धाओं का
दे रहे
देश को सही
राह
कठिन कदम
जो उठा रहे
"जान है
तो जहान है"
दे रहे संदेश
जो
देशवासियों को
मोदी जी को
आभार है
करना है
सबने
एकान्तवास का
पालन
रहना है
घरों में
इस संकट के
क्षणों में
धन्यवाद होगा
सभी का
जल्द निकल
जाये
ये संकट
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
है
आभार
उन डाक्टर
योद्धाओं का
जो करोना
संकट की
घड़ी में
दे रहे
जीवनदान है
नहीं कर रहे
परवाहअपनी
जिन्दगी की
सुबह शाम रात
डटे हैं जो
मोर्चा पर
बचा रहे
खतरों से
आभार है
उन पुलिस
योद्धाओं का
दे रहे
देश को सही
राह
कठिन कदम
जो उठा रहे
"जान है
तो जहान है"
दे रहे संदेश
जो
देशवासियों को
मोदी जी को
आभार है
करना है
सबने
एकान्तवास का
पालन
रहना है
घरों में
इस संकट के
क्षणों में
धन्यवाद होगा
सभी का
जल्द निकल
जाये
ये संकट
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल
आभार/धन्यवाद
प्रथम आभार मैं प्रेषित करती
हे प्रभु तेरे चरणो मे
तुझसे ही दुनिया चलती है
जन जीवन सब तेरे साथ ।
द्वितीय आभार मै प्रेषित करती
मात पिता के चरणो मे
जिनसे मैने दुनिया देखी
अपना सुख दुख त्याग कर।
धन्यवाद उन गुरू जनो को
सिखलाया हर ज्ञान हमे
बच्चो ने माँ बना के मुझको
पूर्ण किया अरमान मेरे।
जब से जुडी मै "भावो के मोती" से
सीखा हर दिन नया नया
धन्यवाद उन सभी विभूतियो का
भरते हरदम नई उडान।
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
स्वरचित
नीलम श्रीवास्तव
नमन भावों के मोती
दि - 24.04.2020
विषय- धन्यवाद
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित....
================================
धन्यवाद हे जगत नियंता जीवन का उपहार दिया|
करुणाकर करुणा कर हमको यह सुंदर संसार दिया||
मात पिता का आश्रय अनुपम |
रिश्तों नातों का सुख संगम |
सुख दुःख मिलन वियोग से पूरित,
भावनाओं के मेल मनोरम |
आशाओं का अवलंबन दे जीवन को आधार दिया|
धन्यवाद हे जगत नियंता जीवन का उपहार दिया||
नीति न्याय सिद्धांत समन्वय |
प्रबल हौसलों का नित आश्रय |
चाही अनचाही उम्मीदें -
कहे अनकहे भेद समुच्चय |
मान और अपमान समन्वित सभी कर्म अनुसार दिया|
धन्यवाद हे जगत नियंता जीवन का उपहार दिया||
==================================
स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी - सिवनी म.प्र.
दि - 24.04.2020
विषय- धन्यवाद
मेरी प्रस्तुति सादर निवेदित....
================================
धन्यवाद हे जगत नियंता जीवन का उपहार दिया|
करुणाकर करुणा कर हमको यह सुंदर संसार दिया||
मात पिता का आश्रय अनुपम |
रिश्तों नातों का सुख संगम |
सुख दुःख मिलन वियोग से पूरित,
भावनाओं के मेल मनोरम |
आशाओं का अवलंबन दे जीवन को आधार दिया|
धन्यवाद हे जगत नियंता जीवन का उपहार दिया||
नीति न्याय सिद्धांत समन्वय |
प्रबल हौसलों का नित आश्रय |
चाही अनचाही उम्मीदें -
कहे अनकहे भेद समुच्चय |
मान और अपमान समन्वित सभी कर्म अनुसार दिया|
धन्यवाद हे जगत नियंता जीवन का उपहार दिया||
==================================
स्वरचित
प्रमोद गोल्हानी सरस
कहानी - सिवनी म.प्र.
विषय :-धन्यवाद/आभार
विधा:- कविता
आपका कोटिशः आभार ,
आपने उपकार किया|
आप को हृदय से धन्यवाद ,
जो यह परोपकार किया |
आज के दिन हमें दे दी,
सम्मान की इतनी बड़ी दौलत |
आपने आज हमें जी भर,
के मालामाल किया |
आपकी चाहतों का मोल ,
कैसे हम चुका पायेंगे|
आपने आज हम सबको,
"भावों के मोती "से उपहार दिया|
ज्ञान के सागर है आप ,
भावों के मोती चुन कर |
आपने साहित्य को,
एकअनूठा मंच दिया |
आप वह सूर्य हैं जो,
आकाश में जगमगाते हैं|
आप वह चांद हैं
जो चांदनी बरसाते हैं|
हम सभी आपके ही ,
सदा गुण गाते हैं|
आपने अपना बनाया,
यह बड़ा काम किया |
ये साहित्यक दरबार है, ,
माँ सरस्वती कल्याण करें|
हर एक साहित्यकार,
रचना धर्मिता का दान करे|
हां हार्दिक कोटिशः मंच,
काआभार है स्वीकार करें|
बारम्बार है प्रणाम मंच को,
स्वीकार करें|
मैं प्रमाणित करता हूं कि
यह मेरी मौलिक रचना है
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
विधा:- कविता
आपका कोटिशः आभार ,
आपने उपकार किया|
आप को हृदय से धन्यवाद ,
जो यह परोपकार किया |
आज के दिन हमें दे दी,
सम्मान की इतनी बड़ी दौलत |
आपने आज हमें जी भर,
के मालामाल किया |
आपकी चाहतों का मोल ,
कैसे हम चुका पायेंगे|
आपने आज हम सबको,
"भावों के मोती "से उपहार दिया|
ज्ञान के सागर है आप ,
भावों के मोती चुन कर |
आपने साहित्य को,
एकअनूठा मंच दिया |
आप वह सूर्य हैं जो,
आकाश में जगमगाते हैं|
आप वह चांद हैं
जो चांदनी बरसाते हैं|
हम सभी आपके ही ,
सदा गुण गाते हैं|
आपने अपना बनाया,
यह बड़ा काम किया |
ये साहित्यक दरबार है, ,
माँ सरस्वती कल्याण करें|
हर एक साहित्यकार,
रचना धर्मिता का दान करे|
हां हार्दिक कोटिशः मंच,
काआभार है स्वीकार करें|
बारम्बार है प्रणाम मंच को,
स्वीकार करें|
मैं प्रमाणित करता हूं कि
यह मेरी मौलिक रचना है
विजय श्रीवास्तव
बस्ती
24/04/20
शुक्रवार
आभार हृदय से करती हूँ उस जीवन देने वाले का,
गुरु, मात-पिता हर स्वजन राह का संबल बनने वाले का।
बिन ईश कृपा के कभी नहीं मुझको साहस मिल सकता था,
और सुधीजनों की छाया बिन न सृजन कार्य हो सकता था।
श्रद्धा से मैं नतमस्तक हूँ उन सभी इष्ट-जन , मित्रों की,
जिनके प्रोत्साहन से मुझको एक राह मिली रसमयता की।
मैं सदा लेखनी से अपनी जन-जन को सजग बनाऊंगी ,
निज देश-धर्म की ख़ातिर मैं उनका कर्तव्य बताऊंगी ।
मेरी कविता के भाव सभी के अंतर को जब छू लेंगे,
निश्चित ही इस समाज में सुन्दर संस्कार रंग घोलेगे।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
शुक्रवार
आभार हृदय से करती हूँ उस जीवन देने वाले का,
गुरु, मात-पिता हर स्वजन राह का संबल बनने वाले का।
बिन ईश कृपा के कभी नहीं मुझको साहस मिल सकता था,
और सुधीजनों की छाया बिन न सृजन कार्य हो सकता था।
श्रद्धा से मैं नतमस्तक हूँ उन सभी इष्ट-जन , मित्रों की,
जिनके प्रोत्साहन से मुझको एक राह मिली रसमयता की।
मैं सदा लेखनी से अपनी जन-जन को सजग बनाऊंगी ,
निज देश-धर्म की ख़ातिर मैं उनका कर्तव्य बताऊंगी ।
मेरी कविता के भाव सभी के अंतर को जब छू लेंगे,
निश्चित ही इस समाज में सुन्दर संस्कार रंग घोलेगे।
स्वरचित
डॉ ललिता सेंगर
24 अप्रैल 2020
विषय - धन्यवाद आभार
दोहा मुक्तक
1
स्वागत अभिनंदन करें, करते हैं आभार।
मान पान की बात है नहीं करते इनकार।
निर्मल मन की भावना , रखें सभी से प्रेम..
भावों के मोती चुने, रखकर शुद्ध विचार।
2
भाव बिना सब शून्य है, रहे प्रेम आधार।
मनुज कर्म हैं सोच से, आते बहुत विचार।
पीढ़ी दर पीढ़ी चले, बना आचरण ज्ञान.
रखो सभी से प्रेम का ,मंगलमय व्यवहार।
स्वरचित मौलिक
केशरी सिंह रघुवंशी हंस
जिला अशोकनगर मध्य प्रदेश
विषय - धन्यवाद आभार
दोहा मुक्तक
1
स्वागत अभिनंदन करें, करते हैं आभार।
मान पान की बात है नहीं करते इनकार।
निर्मल मन की भावना , रखें सभी से प्रेम..
भावों के मोती चुने, रखकर शुद्ध विचार।
2
भाव बिना सब शून्य है, रहे प्रेम आधार।
मनुज कर्म हैं सोच से, आते बहुत विचार।
पीढ़ी दर पीढ़ी चले, बना आचरण ज्ञान.
रखो सभी से प्रेम का ,मंगलमय व्यवहार।
स्वरचित मौलिक
केशरी सिंह रघुवंशी हंस
जिला अशोकनगर मध्य प्रदेश
आज का विषय है- धन्यवाद / आभार
सर्वप्रथम बहुत-बहुत आभार
जननी जन्मदायिनी माता का
जिसने परिचय करवाया नाना जगत का
बहुत-बहुत आभार पितामह का
जीवन की इस कठिन डगर पर
अंगुल थाम चलना सिखलाया
बहुत-बहुत आभार
अखिलेश्वर का
जिसने सुंदर सृष्टि रचाई
बहुत-बहुत आभार
सतगुरु की महिमा का
अनंत किया उपकार
बहुत-बहुत आभार
अन्नपूर्णा माता का
जिनने सबकी क्षुधा बुझाई
बहुत-बहुत आभार
जल के देव वरुण देव का
जिन्होंने सबकी तृषा बुझाई
बहुत-बहुत आभार
गुनगुन कर बहती समीर का
जो प्राणवायु का संचार करें
बहुत-बहुत आभार
प्रकृति के जर्रे जर्रे का
वन उपवन नदी झरने का
बहुत-बहुत आभार
सागर पर्वत अनल का
सूरज चंद्र ग्रह नक्षत्रों का
बहुत-बहुत आभार
दूर-दूर तक फैले अनंत आकाश का
पृथ्वी के कण-कण को
तृप्त करने वाले जलधर का
बहुत-बहुत आभार
सकल विश्व में आई महामारी से युद्ध रत
हमारे भारतीय नौजवान
हमारे पुलिस जवान
हमारे चिकित्सक
हमारी परिचारिकाये
हमारे प्रधान, हमारे जिला अध्यक्ष
जिन्होंने अपनी सूझबूझ से
धर्म अर्थ काम दांव पर लगाकर
सर्वस्य विश्व को बता दिया है
जान है तो जहान है
हमारी विजय सुनिश्चित है
बहुत-बहुत आभार
भावों के इस मंच का
जिसने मुझ में ज्ञान की अलख जगाई
बहुत-बहुत आभार इस भारत देश का
जो छाया है माथे पर आशीर्वाद सा
यह रचना मौलिक एवं स्वरचित है
श्रीमती स्मृति श्रीवास्तव 'रश्मि '
शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कन्या शाला नरसिंहपुर
सर्वप्रथम बहुत-बहुत आभार
जननी जन्मदायिनी माता का
जिसने परिचय करवाया नाना जगत का
बहुत-बहुत आभार पितामह का
जीवन की इस कठिन डगर पर
अंगुल थाम चलना सिखलाया
बहुत-बहुत आभार
अखिलेश्वर का
जिसने सुंदर सृष्टि रचाई
बहुत-बहुत आभार
सतगुरु की महिमा का
अनंत किया उपकार
बहुत-बहुत आभार
अन्नपूर्णा माता का
जिनने सबकी क्षुधा बुझाई
बहुत-बहुत आभार
जल के देव वरुण देव का
जिन्होंने सबकी तृषा बुझाई
बहुत-बहुत आभार
गुनगुन कर बहती समीर का
जो प्राणवायु का संचार करें
बहुत-बहुत आभार
प्रकृति के जर्रे जर्रे का
वन उपवन नदी झरने का
बहुत-बहुत आभार
सागर पर्वत अनल का
सूरज चंद्र ग्रह नक्षत्रों का
बहुत-बहुत आभार
दूर-दूर तक फैले अनंत आकाश का
पृथ्वी के कण-कण को
तृप्त करने वाले जलधर का
बहुत-बहुत आभार
सकल विश्व में आई महामारी से युद्ध रत
हमारे भारतीय नौजवान
हमारे पुलिस जवान
हमारे चिकित्सक
हमारी परिचारिकाये
हमारे प्रधान, हमारे जिला अध्यक्ष
जिन्होंने अपनी सूझबूझ से
धर्म अर्थ काम दांव पर लगाकर
सर्वस्य विश्व को बता दिया है
जान है तो जहान है
हमारी विजय सुनिश्चित है
बहुत-बहुत आभार
भावों के इस मंच का
जिसने मुझ में ज्ञान की अलख जगाई
बहुत-बहुत आभार इस भारत देश का
जो छाया है माथे पर आशीर्वाद सा
यह रचना मौलिक एवं स्वरचित है
श्रीमती स्मृति श्रीवास्तव 'रश्मि '
शासकीय महारानी लक्ष्मीबाई कन्या शाला नरसिंहपुर
हो गया है मोहब्बत में इजहार आपका
बारम्बार शुक्रिया जी आभार आपका..
मेरी खुशी इबादत है आपसे जानेमन
जीने की वजह मेरी ये प्यार आपका..
दिन रात रहते थे हम बेताब से सखे
क्या मेरी तरह दिल बेक़रार आपका..
शहनाईयाँ बज उठीं मन के प्रदेश में
मन को सुकून दिया इक़रार आपका..
हूँ कुर्बान तुझपे मैं वादा है जानेमन
न तोड़ेंगे कभी हम ऐतबार आपका..
ये विश्वास आपका आधार है मेरा
सजायेंगे प्यार से ही संसार आपका..
अनामिका वैश्य आईना
लखनऊ
बारम्बार शुक्रिया जी आभार आपका..
मेरी खुशी इबादत है आपसे जानेमन
जीने की वजह मेरी ये प्यार आपका..
दिन रात रहते थे हम बेताब से सखे
क्या मेरी तरह दिल बेक़रार आपका..
शहनाईयाँ बज उठीं मन के प्रदेश में
मन को सुकून दिया इक़रार आपका..
हूँ कुर्बान तुझपे मैं वादा है जानेमन
न तोड़ेंगे कभी हम ऐतबार आपका..
ये विश्वास आपका आधार है मेरा
सजायेंगे प्यार से ही संसार आपका..
अनामिका वैश्य आईना
लखनऊ
दिनांक-२४-४-२०शुक्रवार
आयोजित शीर्षक"धन्यवाद" "आभार"
~•~
आत्ममुग्ध ना जाने कबहूँ श्रद्धा वचन सलोना
बिगड़े काम बनादे सीखो स्नेह का अंकुर बोना।
धन्यवाद हे जननी तुमने ही दुनियाँ दिखलाया,
प्रथम ज्ञान भी प्रथम पुज्य से ही मैने है पाया ।
माता,मात्रभूमि की प्रातः दोनों चरण पखारूं ,
आभार तेरी ! हे धरती मईय्या तुमने भार उठाया।
आभार वन्दन पिता चरण रज चंदन शीश धरूं
अन्न देव को कर कमलों से है तुमने उपजाया।
प्रत्यक्ष देव को प्रातः जल का प्रथम अर्घ्य चढ़ाया
कण कण को करें ऊर्जान्वित सूरज की ऐसी माया
सन्तोष परदेशी
आयोजित शीर्षक"धन्यवाद" "आभार"
~•~
आत्ममुग्ध ना जाने कबहूँ श्रद्धा वचन सलोना
बिगड़े काम बनादे सीखो स्नेह का अंकुर बोना।
धन्यवाद हे जननी तुमने ही दुनियाँ दिखलाया,
प्रथम ज्ञान भी प्रथम पुज्य से ही मैने है पाया ।
माता,मात्रभूमि की प्रातः दोनों चरण पखारूं ,
आभार तेरी ! हे धरती मईय्या तुमने भार उठाया।
आभार वन्दन पिता चरण रज चंदन शीश धरूं
अन्न देव को कर कमलों से है तुमने उपजाया।
प्रत्यक्ष देव को प्रातः जल का प्रथम अर्घ्य चढ़ाया
कण कण को करें ऊर्जान्वित सूरज की ऐसी माया
सन्तोष परदेशी
विषय:-आभार
विधा :-कविता
पूछ रही हूँ मन अपने से ,
कितनों के आभार शेष हैं ।
ब्रह्मलीन होने से पहले ,
रहे किसी से न विद्वेष है ।
कई आभार ऋण स्वरूप हैं ,
जिनसे उऋण नहीं हो सकते ।
जिनके मुख मंडल की आभा ,
देख देख कर कभी न थकते ।
मात पिता गुरुजन धाया का ,
धन्यवाद चाहा जब करना ।
अपनी नज़रों में तुच्छ हो गई ,
पड़ा सोच छोटी पर मरना ।
प्रकृति का आभार हूँ करती ,
जिसने सब उपहार दिये है ।
कृतज्ञता में दो पुष्प चढ़ाये ,
मौन भाव स्वीकार किये हैं ।
फूल तितलियों की आभारी ,
क्षण भंगुरता को बतलाया ।
हँसी ख़ुशी से बाँटो खुशियाँ,
ज़िंदगी का मंत्र सिखलाया ।
आभार सभी उन रिश्तों का ,
मन को आह्लादित हैं करते ।
छंद गीत कहकर भावों को ,
उनको अनुवादित हैं करते ।
ऋतुराज है बहुत संस्कारी ,
उस पर जाती बलिहारी हूँ ।
भावों के मोती उर समेट ,
वीणा की अति आभारी हूँ ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी कमाल
सिरसा
विधा :-कविता
पूछ रही हूँ मन अपने से ,
कितनों के आभार शेष हैं ।
ब्रह्मलीन होने से पहले ,
रहे किसी से न विद्वेष है ।
कई आभार ऋण स्वरूप हैं ,
जिनसे उऋण नहीं हो सकते ।
जिनके मुख मंडल की आभा ,
देख देख कर कभी न थकते ।
मात पिता गुरुजन धाया का ,
धन्यवाद चाहा जब करना ।
अपनी नज़रों में तुच्छ हो गई ,
पड़ा सोच छोटी पर मरना ।
प्रकृति का आभार हूँ करती ,
जिसने सब उपहार दिये है ।
कृतज्ञता में दो पुष्प चढ़ाये ,
मौन भाव स्वीकार किये हैं ।
फूल तितलियों की आभारी ,
क्षण भंगुरता को बतलाया ।
हँसी ख़ुशी से बाँटो खुशियाँ,
ज़िंदगी का मंत्र सिखलाया ।
आभार सभी उन रिश्तों का ,
मन को आह्लादित हैं करते ।
छंद गीत कहकर भावों को ,
उनको अनुवादित हैं करते ।
ऋतुराज है बहुत संस्कारी ,
उस पर जाती बलिहारी हूँ ।
भावों के मोती उर समेट ,
वीणा की अति आभारी हूँ ।
स्वरचित :-
ऊषा सेठी कमाल
सिरसा
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